वैदिक संध्योपासना

वैदिक संध्या पूर्णत वैज्ञानिक और प्राचीन काल से चली आ रही हैं। यह ऋषि-मुनियों के अनुभव पर आधारित हैं वैदिक संध्या की विधि से उसके प्रयोजन पर प्रकाश पड़ता है। मनुष्य में शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, चित और अहंकार स्थित हैं। वैदिक संध्या में आचमन मंत्र से शरीर, इन्द्रिय स्पर्श और मार्जन मंत्र से इन्द्रियाँ, प्राणायाम मंत्र से मन, अघमर्षण मंत्र से बुद्धि, मनसा-परिक्रमा मंत्र से चित और उपस्थान मंत्र से अहंकार को सुस्थिति संपादन किया जाता है। फिर गायत्री मंत्र द्वारा ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना और उपासना की जाती हैं। अंत में ईश्वर को नमस्कार किया जाता हैं। यह पूर्णत वैज्ञानिक विधि हैं जिससे व्यक्ति धार्मिक और सदाचारी बनता हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करता हैं। हमें … Continue reading वैदिक संध्योपासना

मन्त्र व्याख्या : पण्डित चमूपति जी

गत पृष्ठों में यज्ञ के प्रत्येक अङ्ग को आध्यात्मिक विचार किया गया है। इसका अभिप्राय कहीं यह न समझा जाय कि विना कुण्ड तथा वेदी बनाए, तथा आहुति दिये, काल्पनिक कुण्ड में काल्पनिक यज्ञ किया जा सकता है। मानसिक हवन की स्थिरता क्रियात्मिक हपन के बिना नहीं हो सकती। भारतीय विचार शैली में यह बड़ा दोष है कि मन की एकाग्रता के बहाने वास्तविक संसार से आंखें मूंद लेते हैं। मन का संयम अलौकिक अभ्यास है। यह भारत की पैतृक पूंजी है । इसे त्यागने की आवश्यकता नहीं। किन्तु अलौकिक से लौकिक बनाने की आवश्यकता है । संसार से सम्बद्ध सर्वोत्तम समाधि है।  ___आगामी पृष्ठों में हम उन मन्त्रों की व्याख्या करेंगे जिन से नित्य का हवन किया जाता है … Continue reading मन्त्र व्याख्या : पण्डित चमूपति जी

हनूमान् का वास्तविक स्वरूप श्री हनूमान् की उत्पत्ति : डॉ. शिवपूजनसिंह कुशवाह एम. ए.

हनूमान् वास्तविक स्वरूप : डॉ. शिवपूजनसिंह कुशवाह एम. ए. .  हनूमान् का वास्तविक स्वरूप श्री हनूमान् की उत्पत्ति  हनुमान जी की जन्म-कथा भिन्न-भिन्न पुराणों में भिन्न-भिन्न प्रकार की पाई जाती है पर इस विषय में सभी एकमत हैं कि हनूमान् के पिता केसरी और माता अंजनी थी। किसी भी प्राणी का जन्म एक बाप द्वारा एक ही माता के गर्भ से देखा जाता है परन्तु हनूमान् केसरी और अंजनी के अतिरिक्त, महादेव-पार्वती तथा वायु (मरुत्) के पुत्र भी कहे गये हैं, अर्थात् ३ पितामों से हनुमान जी उत्पन्न हुए, क्या यह माननीय है ? पुराणों ने बड़ा ही अनर्थ विश्व में फैलाया है। मिथ्या कथा लिखकर हनुमान जी को कहीं का न छोड़ा।  शिवपुराण, शतरुद्रसंहिता अध्याय २० श्लो०१ से १० तक’  … Continue reading हनूमान् का वास्तविक स्वरूप श्री हनूमान् की उत्पत्ति : डॉ. शिवपूजनसिंह कुशवाह एम. ए.

मृतक श्राद्ध पर 21 प्रश्न

प्रश्न १.– पितर संज्ञा मृतकों की है या जीवितों की ? यदि जीवितों की है तो मृतक श्राद्ध व्यर्थ होगा। यदि मृतकों की हैं तो – आधत्त पितरो गर्भकुमार पुष्करसृजम”। | (यजुर्वेद २-३३) “ऊर्ज वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिश्रुतम् ।। स्वधास्थ तर्पयतमे पितृन्’ ।। (यजुर्वेद २-३४) “आयन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्तः पथिभिर्देवयानैः । (यजुर्वेद १८-५८) इत्यादि वेद मंत्रों से पितरों का गर्भाधान करना, अन्नजलं, दृ आदि का सेवन करना, आना-जाना-बोलना आदि क्रियायें करने वाला बताया गया है, जोकि मृतकों में संभव नहीं है। इससे पितर संज्ञा जीवितों की ही सिद्ध है। अतः मृतकों का श्राद्ध करना अवैदिक कर्म है । प्रश्न २.– | जीवात्मा की गति जब निजकर्मानुसार होती है तो मृतक श्राद्ध की क्या आवश्यकता है ? प्रश्न ३.– | … Continue reading मृतक श्राद्ध पर 21 प्रश्न

संध्योपासना क्यों?: – डॉ. धर्मवीर

यह लेख आचार्य धर्मवीर जी द्वारा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में दिये गये प्रवचन का संकलन है। ये प्रवचन एक निश्चित विषय पर दिये गये हैं, इसलिये अति उपयोगी हैं। इन प्रवचनों को आचार्य प्रवर की ज्येष्ठ पुत्री सुयशा आर्य द्वारा लेखबद्ध किया गया है। – सम्पादक आदरणीय प्रधान जी, मन्त्री जी, उपस्थित माताओ, बहनो, बन्धुओ! बनिए तो बहुत देखे, पर सुधीर जैसा नहीं मिला, आना था एक कार्यक्रम में पर वो कहने लगे कि एक दिन पहले आ रहे हो तो कार्यक्रम रख लेते हैं। मैंने कहा, खाली नहीं रहना चाहिए कोई आदमी। मैं तो इससे डरता हँू कि मैं १० साल से आपको बता रहा हँू, नया क्या बताऊँगा। लेकिन चलिए,  दोहराने में भी कोई बुराई नहीं है। आपने प्रश्र … Continue reading संध्योपासना क्यों?: – डॉ. धर्मवीर

जिज्ञासा समाधान : – आचार्य सोमदेव

जिज्ञासा- कुछ प्रश्रों के द्वारा मैं अपनी शंकाएँ भेज रही हँू। कृपया उनका निवारण कीजिए। (क) ‘गायत्री मन्त्र’ और ‘शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।’ दोनों मन्त्र सन्ध्या में दो-दो बार आयें हैं इनका क्या महत्त्व है? (ख) कुछ विद्वानों का कथन है कि प्रात:काल की सन्ध्या पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए और सायंकाल की सन्ध्या पश्चिम दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। इसमें क्या भेद है? (ग) दैनिक यज्ञ करने वाला व्यक्ति यदि रुग्ण हो जाये या किसी कारणवश ५-७ दिन के लिए बाहर चला जाये, यज्ञ न कर पाये और घर में दूसरा व्यक्ति यज्ञ करने वाला न हो तो वह क्या दैनिक यज्ञ का अनुष्ठान अपूर्ण हो जाता है? यज्ञकत्र्ता क्या करे? (घ) परमाणु … Continue reading जिज्ञासा समाधान : – आचार्य सोमदेव

राधा को थिइन् ?

ओ३म्.. नपढेकाहरुको कुरो त के गरौँ र, आजभोली आँफूलाई निक्कै आधुनिक शिक्षा पढेलेखेको सम्झनेहरुको जिब्रोमा पनि ‘राधे-राधे’ शब्द झुण्डिएको हुन्छ। नगर तथा गाउँमा पनि राधा-कृष्णको मन्दिर देख्न पाइन्छ। तर कसैको मुखबाट योगिराज श्रीकृष्णकी प्राण प्रिय धर्म पत्नी रुक्मिणीको नाउ उच्चारण हुँदैन र उनको कहीं कुनै एउटा पनि मन्दिर देख्न सकिएको छैन। राधा को थिई भनेर कसैलाई सोध्यो भने पनि सिधा उत्तर पाइन्न कसैबाट। यस्तो घुमाउरो पाराले उत्तर दिने गर्दछन कि ति स्वयं पनि अन्तिममा अक्क-बक्क मै पर्छन्, मैले के भनें भनेर। किनकि तिनलाई पनि थाहा छैन वास्तवमा राधा एक काल्पनिक पात्र हो भनेर। बस्, सुगा रटाइ र भेडा-चाल मात्र छ…! हजुर, राधालाई यसकारणले काल्पनिक पात्र भन्न सकिन्छ कि श्रीकृष्ण आफ्नो समयका एक महान आदर्शवान चरित्रले भरिएका महामानव थिए। महाभारतका सबै … Continue reading राधा को थिइन् ?

वैदिक परंपरा एवं कुरान की प्रमुख शिक्षाएं – संदीप कुमार उपाध्याय

भूमिका   वैदिक शिक्षा का इतिहास भारतीय सभ्यता का इतिहास है | भारतीय समाज के विकास और उसमें होने वाले परिवर्तनों की रूपरेखा में शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं | सूत्र काल तथा लोकायत के बीच शिक्षा की सार्वजनिक प्रणाली के पश्चात हम बौद्धकालीन शिक्षा को निरंतर भौतिक तथा सामाजिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण होते देखते हैं| बौद्ध काल में स्त्रियों और शूद्रों को भी शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित किया गया लेकिन प्राचीन वैदिक भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था | वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत व उत्कृष्ट थी ,लेकिन कालांतर में भारतीय शिक्षा व्यवस्था  का ह्रास हुआ विदेशियों ने यहां की शिक्षा व्यवस्था को … Continue reading वैदिक परंपरा एवं कुरान की प्रमुख शिक्षाएं – संदीप कुमार उपाध्याय

मनुस्मृति में क्षेपक : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय

इस पाॅचवी बात के विषय में हम कुछ थोडा सा वर्णन करते हैं। मनुस्मृति का वर्तमान रूप कम मनुस्मृति में क्षेपक से कम दो सहस्त्र वर्ष पुराना है। इसमें क्षेपक बहुत हैं। परन्तु ये क्षेपक भी नये नही हैं। याज्ञवल्क्य आदि स्मृतियों में इसी मनुस्मृति के उद्धरण मिलते है। मेघातिथि आदि ने जो भाष्य किये हैं वे सब के सब इसी मनुस्मृति के है। कुछ पाठ-भेद अवश्य है। श्लोकों में भेद भी है। बहुत से ऐसे श्लोक हैं जो मेघातिथि तथा कुल्लूक आदि के भाष्यों नहीं मिलते और पीछे के भाष्यों में इनका उल्लेख है। कुछ ऐसे भी श्लोक हैं जो पीछे से निकल गये हैं। इस प्रकार हस्ताक्षेप तो इधर भी रहा है, परन्तु अधिक नहीं। और न सिद्धान्तों … Continue reading मनुस्मृति में क्षेपक : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय

हिन्दुओं के साथ विश्वासघात

हिन्दुओं के साथ विश्वासघात – चन्द्रिका प्रसाद आह! क्या हृदय है? धर्म के स्थान में अधर्म, पुण्य के स्थान में पाप, सदाचार के स्थान पर दुराचार, ज्ञान के स्थान में मूर्खता, सत्यता के स्थान में छल-कपट, प्रेम और समाज-संगठन के स्थान में द्वेष और कलह! हा भारत! तुझे कैसेायङ्कर रोगों ने आ घेरा! जिस जाति में कभी व्यास जैसे ऋषि ने एक ईश्वर की पूजा का वेदोक्त उपदेश सुनाया हो, जिस जाति में राम और जनक जैसे सच्चे ईश्वर-भक्त रहे हों, आज उसमें एक ओर से ‘‘अहम्ब्रह्म’’ ध्वनि आ रही है तो दूसरी ओर से ‘‘नास्तिकता’’ का अलाप सुनाई पड़ता है। आज कहीं यह वितण्डा खड़ा है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों में कौन बड़ा और कौन छोटा … Continue reading हिन्दुओं के साथ विश्वासघात