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( शिखा ) चोटी क्यों रक्खें? धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व

|| ओ३म् ॥
( शिखा ) चोटी क्यों रक्खें? धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व
वैदिक धर्म में सिर पर चोटी (शिखा ) धारण करने का असाधारण महत्व है। प्रत्येक बालक के जन्म के बाद मुण्डन संस्कार के
नवजात बच्चे पश्चात् सिर के उस भाग पर गौ के के खुर के प्रमाण वाले आकार की चोटी रखने का विधान है।
यह वही स्थान सिर पर होता है, जहां से सुषुम्ना नाड़ी पीठ के मध्य भाग में से होती हुई ऊपर की ओर आकर समाप्त होती है
और उसमें से सिर के विभिन्न अंगों के वात संस्थान का संचालन करने के लिए अनेक सूक्ष्म वात नाड़ियों का प्रारम्भ होता है ।
सुषुम्ना नाड़ी सम्पूर्ण शरीर के वात संस्थान का संचालन करती है।
दूसरे शब्दों में उसी से वात संस्थान प्रारम्भ व संचालित होता है। यदि इसमें से निकलने वाली कोई भी नाड़ी किसी भी कारण
से सुस्त पड़ जाती है तो उस अंग को फालिज़ (अधरंग) मारना कहते हैं। आप यह ध्यान रक्खें कि समस्त शरीर को जो भी
शक्ति मिलती है, वह सुषुम्ना नाड़ी के द्वारा ही मिलती है।
सिर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है, उसी स्थान पर अस्थि के नीचे लघुमस्तिष्क का स्थान होता है, जो गौ के नवजात
बच्चे के खुर के ही आकार का होता है और शिखा भी उतनी ही बड़ी उसके ऊपर रखी जाती हैं।
बाल गर्मी पैदा करते हैं। बालों में विद्युत का संग्रह रहता है जो सुषुम्ना नाड़ी को उतनी ऊष्पा हर समय प्रदान करते रहते हैं,
जितनी कि उसे समस्त शरीर के वात नाड़ी संस्थान को जागृत व उत्तेजित रखने के लिए आवश्यकता होती है। इसका
परिणाम यह होता है कि मानव का वात नाड़ी संस्थान आवश्यकतानुसार जागृत रहता है जो समस्त शरीर को बल देता है।
किसी भी अंग में फालिज गिरने का भय नहीं रहता. है । और साथ ही लघु मस्तिष्क विकसित होता रहता है जिसमें जन्म-
जन्मान्तरों के एवं वर्तमान जन्म के संस्कार संग्रहीत रहते हैं।
यह परीक्षण करके देखा गया है कि बड़ी गुच्छेदार शिखा धारण करने वाले दाक्षिणीय ब्राह्मणों के मस्तिष्क शिखा न रहने
वाले ब्राह्मणों की अपेक्षा विशेष विकसित पाये गये हैं। यह परीक्षण अनेक वैज्ञानिकों ने दक्षिण भारत में किया था।
सुषुम्ना का जो भाग लघुमस्तिष्क को संचालित करता है । वह उसे शिखा द्वारा प्राप्त ऊष्मा (विद्युत) से चैतन्य बनाता है।
इससे स्मरण शक्ति भी विकसित होती है।
वेद में शिखा धारण करने का विधान कई स्थानों पर मिलता है, देखिये-
शिखिभ्यः स्वाहा॥

  • अथर्ववेद १९-२२-१५
    अर्थ- चोटी धारण करने वालों का कल्याण हो। आत्मन्नुपस्थे न वृकस्य लोम मुखे श्मश्रूणि न व्याघ्रलोमा केशा न शीर्षन्यशसे
    श्रियैशिखा सिँहस्य लोमत्विषिरिन्द्रियाणि ॥
  • यजुर्वेद अध्याय १९ मन्त्र ९२ यश और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सिर पर शिखा धारण करें।
    याज्ञिकैगोदर्पण माजनि गोक्षुर्वच्च शिखा ।
  • यजुर्वेदीय काठकशाखा । अर्थात् सिर पर यज्ञाधिकार प्राप्त मानव को गौ के खुर के बराबर स्थान में चोटी रखनी चाहिये।
    नोट-गौ के खुर के प्रमाण से तात्पर्य है कि गाय के पैदा होने के समय बछड़े के खुर के बराबर सिर पर चोटी धारण करें।
    • केशानाँ शेष कारणं शिखास्थापनं केश शेष करणम्।

इति मंगल हेतोः ॥
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-पारस्कर गृह्य सूत्र
मुण्डन संस्कार के बाद जब भी बाल सिर के कटावे तो चोटी के बालों को छोड़कर शेष बाल कटावे, मंगलकारक होता है।
सदोपवीतिना भाव्यं सदा वद्धशिखेन च। बिशिखो व्युपवीतश्च यत् करोति न तत्कृतम् ॥
यह

  • कात्यायन स्मृति ४ अर्थ-यज्ञोपवीत सदा धारण करें तथा सदा चोटी में गांठ लगा कर रखें। बिना शिखा व यज्ञोपवीत के
    कोई यज्ञ सन्ध्योपासनादि कृत्य न करें अन्यथा वह न करने के ही समान है।
    बड़ी शिखा धारण करने से वीर्य की रक्षा करने में भी सहायता मिलती है। शिखा बल-बुद्धि लक्ष्मी व स्मृति को संरक्षण प्रदान
    करती है।
    एक अंग्रेज डॉक्टर विक्टर ई क्रोमर ने अपनी पुस्तक विरलि कल्पक में लिखा है जिसका भावार्थ निम्न प्रकार है-
    ध्यान करते समय ओज शक्ति प्रकट होती है। किसी वस्तु पर चिन्तन शक्ति एकाग्र करने से ओज शक्ति उसकी ओर दौड़ने
    लगती है।
    यदि ईश्वर पर ध्यान एकाग्र किया जावे तो मस्तिष्क के ऊपर शिखा के चोटी के मार्ग से ओज शक्ति प्रकट होती है या प्रवेश
    करती है। परमात्मा की शक्ति इसी मार्ग से मनुष्य के भीतर आया करती है।
    सूक्ष्म दृष्टि सम्पन्न योगी इन दोनों शक्तियों के असाध रण सुन्दर रंग भी देख लेते हैं। जो शक्ति परमात्मा के द्वारा मस्तिष्क में
    आती है वह वर्णनातीत है।
    प्रोफेसर मैक्समूलर ने भी लिखा था-
    The Concentration of mind upwards sends a rush of this power through the of the head.
    अर्थात् शिखा द्वारा मानव मस्तिष्क सुगमता से इस ओज शक्ति को धारण कर लेता है। श्री हापसन ने भारत भ्रमण के पश्चात्
    एक लेख में गार्ड पत्रिका नं० २५८ में लिखा था।
    For a long time in India I studied on Indian civilization and tradition southern Indians cut their hair up to
    half head only. I was highly effected by their mentality. I assert that the hair tuft on head is very useful in
    Culture of mind. I also believe in Hindu religion now. I am very particular about hair tuft.
    अर्थात् भारत में कई वर्षों तक रहकर मैंने भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं का अध्ययन किया। दक्षिण भारत
    में आधे सिर तक बाल रखने की प्रथा है। उन मनुष्यों की बौद्धिक विलक्षणता से मैं प्रभावित हुआ। निश्चित रूप से शिखा
    बौद्धिक उन्नति में बहुत सहायक है । मेरा तो हिन्दू धर्म में अगाध विश्वास है और अब मैं चोटी धारण करने का कायल हो गया
    हूँ।
    इसी प्रकार सरल्यूकस वैज्ञानिक ने लिखा है-
    शिखा का शरीर के अंगों से प्रधान सम्बन्ध है। उसके द्वारा शरीर की वृद्धि तथा उसके तमाम अंगों का संचालन होता है। जब
    से मैंने इस वैज्ञानिक तथ्य का अन्वेषण किया है मैं स्वयं शिखा रखने लगा हूँ।

सिर के जिस स्थान पर शिखा होती है उसे Pinial- Joint कहते हैं। उसके नीचे एक ग्रन्थि होती है जिसे Picuitary कहते हैं।
इससे एक रस बनता है जो सम्पूर्ण शरीर व बुद्धि को तेज सम्पन्न तथा स्वस्थ एवं चिरंजीवी बनाता है। इसकी कार्य शक्ति
चोटी के बड़े बालों व सूर्य की प्रतिक्रिया पर निर्भर करती है।
मूलाधार से लेकर समस्त मेरु मण्डल में व्याप्त सुषुम्ना नाड़ी का एक मुख ब्रह्मरन्ध ( बुद्धि केन्द्र) में खुलता है।
इसमें से तेज (विद्युत) निर्गमन होता रहता है।
शिखा बन्धन द्वारा यह रुका रहता है। इसी कारण से शास्त्रकारों ने शिखा में गांठ लगाकर रखने का विधान किया है।
डॉक्टर क्लार्क ने लिखा है- के
मुझे विश्वास हो गया है कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से भरा हुआ है। चोटी रखना हिन्दुओं का धार्मिक चिन्ह ही नहीं
बल्कि सुषुम्ना नाड़ी की रक्षा लिए ऋषियों की खोज का एक विलक्षण चमत्कार है।
अर्ल टामस ने सन् १८८१ में अलार्म पत्रिका के विशेषांक में लिखा था-
Hindus keep safety of Medulla oblongle by lock of hair. It is superior than other religious experiments.
Any way the safety of oblongle is essential.
अर्थात् सुषुम्ना की रक्षा हिन्दू शिखा रख कर करते हैं। अन्य धर्म के कई प्रयोगों में चोटी सबसे उत्तम है। किसी भी प्रकार
सुषुम्ना की रक्षा आवश्यक है।
गुच्छेदार चोटी बाहरी उष्णता को अन्दर आने से रोकती है और सुषुम्ना व लघुमस्तिष्क तथा सम्पूर्ण स्नायविक
संस्थान की गर्मी से रक्षा करती है और शारीरिक विशेष उष्णता को बाहर निकाल देती है। हां, यदि अत्यन्त उष्ण प्रदेश हो तो
शिखा न रखना भी हानिकारक नहीं होगा।
संन्यासी ( चतुर्थ आश्रमी ) को शिखा न रखने का आदेश इस आधार पर है कि उसने तीन आश्रमों में उसे रखकर शरीर को पुष्ट
कर लिया होता है और चौथे आश्रम में वह योगाभ्यास द्वारा वात नाड़ी संस्थान को पुष्ट करता रहता है, अतः उसके लिये
शिखा विहित नहीं रह जाती है।

  • इस प्रकार वैदिक धर्म में शिखा वैज्ञानिक- आयुर्वेदिक तथा धार्मिक दृष्टि से मानव मात्र के लिये अत्यन्त उपयोगी है । किन्तु
    उससे लाभ तभी होगा जबकि शास्त्रादेश के अनुसार गौ के पैदाशुदा बच्चे के खुर के बराबर की जगह पर रखकर उसे बड़ा
    किया जायेगा व ग्रन्थि लगाकर रखा जावेगा।
    जापानी पहलवान अपने सिर पर मोटी चोटी गांठ लगाकर धारण करते हैं, यह भारतीय परम्परा जापान में आज भी
    विद्यमान देखी जा सकती है।
    चोटी के बाल वायु मण्डल में से प्राणशक्ति ( आक्सीजन) को आकर्षण करते हैं और उसे शरीर में
    स्नायविक संस्थान के माध्यम से पहुंचाते हैं। इससे ब्रह्मचर्य के संयम में सहायता मिलती है। जबकि शिखाहीन व्यक्ति कामुक व
    उच्छृंखल देखे जाते हैं।
    शिखा मस्तिष्क को शान्त रखती है तथा प्रभु चिन्तन में साधक को सहायक होती है। शिखा गुच्छेदार रखने व उससे गांठ
    बांधने के कारण प्राचीन आर्यो में ब्रह्मचर्य -तेज- मेधा बुद्धि व दीर्घायु तथा बल की विलक्षणता मिलती थी।
    जब से अंग्रेजी कुशिक्षा के प्रभाव में शिखा व सूत्र का परित्याग करना प्रारम्भ कर दिया है उनमें यह शीर्षस्थ गुणों का निरन्तर
    ह्रास होता चला जा रहा है।

पागलपन-अन्धत्व तथा मस्तिष्क के रोग शिखाधारियों को नहीं होते थे, वे अब शिखाहीनों में बहुत देखे जा सकते हैं।
जिस शिखा व सूत्र की रक्षा के लिए लाखों भारतीयों ने विधर्मियों के साथ युद्धों में प्राण देना उचित समझा, अपने बलिदान
दिये। महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी गुरु गोविन्दसिंह धर्मवीर हकीकतराय आदि सहस्रों भारतीयों ने चोटी जनेऊ की रक्षार्थ
अन्तिम बलिदान देकर भी इनकी
रक्षा मुस्लिम शासन के कठिन काल में की, उसी चोटी जनेऊ को आज का बाबू टाइप का अंग्रेजीयत का गुलाम सांस्कृतिक
चिन्ह (चोटी जनेऊ) को त्यागता चला जा रहा है यह कितने दुःख की बात है।
आज के इस बाबू को इन परमोपयोगी धार्मिक एवं स्वास्थ्यवर्धक प्रतीकों को धारण करने में ग्लानि व हीनता महसूस होती
है।
परन्तु अंग्रेजी गुलामी की निशानी ईसाईयत की वेषभूषा पतलून पहन कर खड़े होकर मूतने (पेशाब करने) में कोई शर्म
अनुभव नहीं होती है जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक है तथा भारतीय दृष्टि से घोर असभ्यता की निशानी है।
आजकल का ये सभ्य कहलाने वाला व्यक्ति जहाँ चाहे खड़े होकर स्त्रियों, बच्चों अन्य पुरुषों की उपस्थिति का ध्यान किये बिना
ही मूतने लगता है, जबकि टट्टी और पेशाब छिपकर आड़ में एकान्त स्थान में त्यागने की भारतीय परम्परा है।
प्रश्न- यदि केवल चोटी न रखकर समस्त सिर पर लम्बे बाल रखे जावें तो क्या हानि होगी?
उत्तर-तालु भाग पर लम्बे बालों से स्मृति शक्ति कम हो जावेगी, दाहिने कान के ऊपर सिर पर लम्बे बालों से जिगर को हानि
होगी व बायें कान के ऊपर के भाग पर रखने से प्लीहा को नुकसान पहुंचेगा।
स्त्रियों के सिर पर लम्बे बाल होना उनके शरीर की बनावट तथा उनके शरीरगत विद्युत के अनुकूल रहने से उनको अलग से
चोटी नहीं रखनी चाहिए। उनका फैशन के चक्कर में पड़कर बाल कटाना अति हानिकारक रहता है।
अतः स्त्रियों को बाल कदापि नहीं कटाने चाहिये।
समाप्त।

हनुमान जी बन्दर नहीं थे : आचार्य डा० श्रीराम आर्य

हनुमान जी बन्दर नहीं थे : आचार्य डा० श्रीराम आर्य

हनुमान जी जिनको महावीर जी भी कहा जाता है हिन्दू समाज में एक विशेष स्थान रखते हैं। राम के साथ वे रामायण के सर्वप्रमुख पात्र हैं। राम को यदि हनुमान जी का सहयोग प्राप्त न हुआ होता तो राम को सीता का पता लगाना भी सम्भव नहीं था तथा रावण के साथ युद्ध में राम का विजय होना भी संदिग्ध हो जाता। लक्ष्मण शक्ति के बाद संजीवनी बूटी की खोज करना और उसे लाकर उसको पुनर्जीवित करना हनुमान जी के ही उद्योग का फल था अन्यथा राम को लक्ष्मण जी के जीवन की आशा ही नहीं रह गयी थी। 

हनुमान जी को अकेले लंका में जाकर वहां सीता जी का पता लगाना, रावण के द्वारा बन्दी बनाये जाने पर सारी लंका में हल-चल मचा देना जिसे कवियों ने अपनी भाषा में आग लगा देना लिखा है जो हनुमान जी की वीरता, धीरता, राजनीतिज्ञता, चतुरता एवं शारीरिक बल का अद्भुत प्रमाण उपस्थित करता है। 

भारतीय आर्य जाति में हनुमान जी का अत्याधिक आदर है। उनकी मूर्तियाँ व चित्र सर्वत्र इस देश में प्रतिष्ठा के साथ लगाये व पूजे जाते हैं। उनके महान् ब्रह्मचर्य की गाथायें बालकों को सुनाकर सच्चरित्रवान बनने के उपदेश दिये जाते हैं। सारे संस्कृत साहित्य में उनको महान् आदित्य ब्रह्मचारी के रूप में आदर के साथ स्मरण किया गया है। महर्षि बाल्मीकि ने संस्कृत में तथा अन्य भाषाओं की रामायणें भी राम के साथ-साथ हनुमान जी के शौर्य पर्ण वर्णन की गाथाओं से भरी पड़ी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि महावीर हनुमान आर्य जाति के परममान्य आदरणीय एवं अनुकरणीय चरित्रवान् महान व्यक्ति हुए हैं तथा सम्पूर्ण समाज उनको अपना पूर्वज गौरव के साथ स्वीकार करता है। 

महावीर हनुमान जी का कोई जीवन चरित्र पृथक् कभी नहीं लिखा गया है। कुछ एक छोटी जीवनियां उनकी एक दो स्थानों से छपी थीं किन्तु वे अधूरी एवं बिना विशेष खोज के साथ लिखी गयी थी। पौराणिक साहित्य में भी हनुमान जी के विषय में अनेक पुराणकारों अनेक प्रकार के परस्पर विरुद्ध विवरण प्रस्तुत किये गये हैं, जिनमें हनुमान जी के उज्जवल रूप करने के स्थान पर उनको कलंकित करने का प्रयत्न किया गया है। साथ ही वे विवरण इतने बुद्धि विरुद्ध भी हैं कि उनको पढ़कर उनके लेखकों की बुद्धि पर तरस भी आता है। हनुमान जी को तुलसीदास जी ने तो स्पष्टतया “कपि” लिखकर पशु अर्थात् बन्दर ही घोषित कर दिया है जबकि दूसरे रामायण लेखकों ने उनको वैदिक आदर्शों से ओत-प्रोत महामानव प्रतिपादित किया है। हम प्रथम हनुमान जी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न पौराणिक ग्रन्थों के कुछ विवरण उद्दधृत करते हैं। 

शिव पुराण में हनुमान जी की उत्पत्ति 

शिव पुराण शतरुद्र संहिता अध्याय २० में हनुमान जी की उत्पत्ति निम्न प्रकार से लिखी हुई है। 

एकस्मिन्समये शम्भुरभ्द तोतिकरः प्रभुः। ददशं मोहिनीरूपं विष्णोस्स हि वसद्गुणः॥३॥
चक्रे स्वं क्षुभितं शम्भुः काम बाण हतो यथा। स्वम्वीय॑म्पातयामास रामकार्यार्थमीश्वरः।।४॥
तद्वीर्य स्थापयामासुः पत्रे सप्तर्षयश्च ते। प्रेरिता मानसातेन रामकार्यार्थं मादरात्॥५॥
तैगौतम सुतायां तद्वीर्य शम्भौः महर्षिभि। कर्ण द्वारा तथाजन्यां राम कार्यार्थ माहितम्॥६॥
ततश्च समये तस्माद्धनूमानित नामभा। शम्भुर्जज्ञे कपितनुर्महाबल पराक्रमः॥७॥ 

(शिवपुराण)
अर्थ-एक समय गुण युक्त लीला करने वाले प्रभु शिवजी ने विष्णु का मोहिनी रूप देखा ॥३॥ तो कामदेव के बाणों से ताड़ित हुए शिवजी ने अपने आपको काम से व्याकुल किया और रामचन्द्र जी के कार्य के निमित्त अपना वीर्य गिराया ॥४॥ तब आदर से रामचन्द्र जी के कार्य के अर्थ मन से शिवजी के द्वारा प्रेरणा किये हुए उन सप्त ऋषियों ने उस वीर्य को पत्ते पर स्थापित किया ॥५॥ उन महर्षियों ने वह शिवजी का वीर्य गौतम की पुत्री अन्जनी में (उसके कान में घुसेड़ कर ) रामचन्द्र जी के कार्यार्थ प्रवेश किया ॥६॥ उस समय उस वीर्य से महाबली तथा पराक्रम युक्त बानर के शरीर वाले हनुमान नामक शिवजी उत्पन्न हुए ॥७॥ 

इस कथा में हनुमान जी को शिवजी के वीर्य से उत्पन्न होने के कारण उन्हें शिवजी का अवतार बताया गया है किन्तु जो तरीका ऊपर लिखा है वह सर्वथा मिथ्या है। अंजनी के साथ शिवजी का विषय भोग होकर यदि गर्भाध न दिखाकर हनुमान जी की उत्पत्ति पुराणकार ने दिखाई होती तब तो बात कुछ ठीक-ठीक बन भी जाती, किन्तु शिवजी का मोहनी स्त्री रूपधारी विष्णु को देखकर वीर्यपात हो जाना और सप्तर्षियों का उस वीर्य के झरते ही उसे पत्ते या दौने में जमा कर लेना तथा उसे अंजनी के कान में घुसेड़ कर अंजनी के गर्भाधान हो जाना यह बात बताना व उस गर्भ से हनुमान बालक की पैदायश का लिखना स्पष्ट चन्डूखाने की गल्प है। स्त्री के न तो कान में होकर गर्भाध न हो सकता है और न भागते हुए शिवजी के वीर्यपात होने पर उस वीर्य को जमा करने के लिए लोटा, कटोरा या दौना लिए पहले ही से सप्तर्षियों के वहाँ तैयार रहने की बात ही सच्ची मानी जा सकती है तथा यह भी नहीं हनुमान जी बन्दर नहीं थे माना जा सकता है कि शिवजी को कोई भयंकर प्रमेह का रोग होगा। 

भागवत में हनुमान जी की उत्पत्ति इस कथा के मिथ्या होने की पुष्टि भागवत पुराण से ही हो जाती है उसमें तथा एक स्थान पर स्कन्द पुराण अध्याय ८, श्लोक १२ में लिखा है कि एक बार विष्णु के मोहिनी अवतार के सुन्दर रूप को देखकर शिवजी कामातुर होकर मोहिनी को पकड़ने के लिए उसके पीछे भाग पड़े। मोहनी भी भागी, भागते-भागते वह नंगी हो गयी इसी दौड़ में एक बार तो शिवजी ने उसे पीछे से पकड़कर अपनी जांघों पर गिरा लिया किन्तु वह फिर भी छूटकर भाग निकली और शिवजी उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागते चले गये। शिवजी का उसी कामातुर अवस्था में भागते-भागते वीर्यपात हो गया। 

यत्र यत्र पतन्ह्यां रेतस्तस्य महात्मनः तानि रूप्यश्च हेम्नश्च क्षेत्रण्यां सन्महीपते ॥ ३३॥
वह वीर्य जहां-जहां भी पृथ्वी पर गिरा वहां-वहां सोने व चाँदी की खानें बन गईं।। 

भागवत की यह कथा विस्तार से हमने अपनी पुस्तक  हनुमान जी बन्दर नहीं थे “शिवलिंग पजा क्यों*?” में शिव वीर्य से सोने चाँदी की उत्पत्ति नामक शीर्षक से दी है, वहां देखी जा सकेगी। इस कथा में शिवजी के वीर्यपात होने की बात तो लिखी है तथा उसमें सोना चाँदी की उत्पत्ति का विवरण भी दिया है, न कि सप्तर्षियों के द्वारा उसे कटोरा, गिलास या पत्तों पर जमा करके अन्जनी के कान में डालकर हनुमान को पैदा कराने की बेतुकी घटना दी है। 

इस प्रकार उपरोक्त हनुमान जी की उत्पत्ति की शिव पुराण की कथा भागवत के विरुद्ध होने से हम गल्प (गपोड़ा) मानते हैं। वह ऐतिहासिक तथ्य नहीं मानी जा सकती है। आकाश में सप्तर्षि मण्डल सात तारों के समूह ‘का नाम है जो उत्तर दिशा में ध्रुव के चारों ओर आकाश में घूमा करता है। वह आदमी नहीं जो किसी का वीर्य या रज इकट्ठा करने को शिवजी के साथ-साथ घूमता फिरता था। 

भविष्य पुराण में हनुमान जी की उत्पत्ति 

शिवोऽपि च स्वपूर्वार्द्धान्जातो वै सानसोत्तरे। गिरो यत्र स्थितादेवी गौतमस्य तनूद्भवा॥३१॥ 

अन्जना नाम विख्याता कीण केसरि भोगिनी॥३२॥
रौद्रं तेजस्तदा धोरं मुखे केसरिणो ययौ। स्मरातुर कपन्द्रस्तु बुभुजे तां शुभाननाम्॥३३॥
एतस्मिनन्तरे वायुः कपीन्द्रस्य तनौ गतः। वांछितामंजना शुभ्रं रमयामास वै बलात्॥३४॥
द्वादशाब्दगतो जातं दंपत्योर्मे थुनस्थयो:। तदनु भ्रूणमांसाद्य वर्षमात्र हि सादधत्॥३५॥
पुत्रौ जातस्सरागातमा स रुद्र वानरानन। कुरुपाच्च ततोमात्रा प्रक्षिप्तोऽभुग्दिरेरधः॥३६॥ बलादागत्य बलवान्दृष्टवा सूर्यमुपस्थितम्। विलिख्य भगवान्द्रो देवस्तत्र समागतः॥३७॥
वज्रसन्ताडितो वापि न तत्याज तदा रविम्। भयभातस्तदा प्रांशुस्सूर्यं त्राहोति जल्पितः॥३८॥
श्रुत्वा तदात वचनं रावणो लोक रावणः। पुच्छे गृहीत्वा त कीशं मुष्टियुद्धमचीकरत्॥३९॥
तदा तु केसरि सुनो रवि त्यक्त्वा रुषन्वितः। वर्ष मात्रं महाघोरं मल्लयुद्धं चकार ह॥४०॥
श्रमितो रावणस्तत्र भयभीतस्समंततः। पलामनपरौ भूतः कीशरुद्रेण ताडितः॥४१॥ 

( भविष्य पुराण प्रति सर्ग पर्व ४ अध्याय १३)

अर्थ-एक बार शिवजी मानसोत्तर वर पर्वत पर गये। वहाँ केसरी की पत्नी अन्जना रहती थी। शिवजी का तेज (वीर्य) केसरी के मुंह में चला गया और उससे कामातुर हनुमान जी बन्दर नहीं थे होकर केसरी अन्जना से भोग करने लगा। इसी बीच में वायु ने भी केसरी के शरीर में प्रवेश किया और वह बलपूर्वक उसके प्रभाव से बारह वर्ष तक अन्जना से विषय भोग करता रहा। इस लम्बे मैथुन से अन्जना के गर्भ रह गया और एक वर्ष बाद उसने वानर की सी शक्ल वाले हनुमान जी को जन्म दिया, जोकि अत्यन्त कुरूप था इससे माता ने उसे त्याग दिया। हनुमान बालक ने बलपूर्वक सूर्य को निगल लिया। महादेव जी देवताओं के साथ वहाँ आ गये किन्तु वज्र से ताड़ित होने पर भी उन्होंने सूर्य को नहीं छोड़ा। तब सूर्य ने भयभीत होकर बचाओ बचाओ (त्राहि त्राहि ) की, तब उसके दीन वचनों को सुनकर रावण ने हनुमान जी की पूँछ पकड़कर खींचा। इस पर हनुमान ने सूर्य को तो छोड़ दिया परन्तु क्रोधित होकर रावण से युद्ध करने लगे और एक साल तक मल्ल युद्ध उससे करते रहे। रावण थक गया और डरकर तथा हनुमान जी से पिटकर वहाँ से भाग गया। ___ भविष्य पुराण की इस कथा में शिवजी का वायु (तेज) केसरी के मुंह में घुसने की बात लिखी है तथा वायु ने भी केसरी के शरीर से प्रविष्ट होकर अन्जनी को केसरी के साथ-साथ भोगा था। इस प्रकार भविष्य पुराण, हनुमान जी के तीन बाप बताता है। शिवजी, वायु तथा केसरी जी। पैदा होते ही हनुमान ने जमीन से भी १३ लाख  गुना बड़े सूर्य को निगल लिया जो कि ९ करोड़ मील दूर है। वहाँ रावण भी न जाने कहाँ से टपक पड़ा और सूर्य के मुकाबले में पिद्दी-सा रावण एक साल तक बालक हनुमान से मल्ल युद्ध करता रहा, यह सारी की सारी पुराणकार की कोरी गप्प है। इस कथा से हनुमान जी के बारे में एक ही बात सार रूप में मिलती है कि वह केसरी पिता से अन्जनी माता के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। केसरी, अन्जनी तथा हनुमान जी तीनों मनुष्य थे, पशु नहीं थे, यह बात भी इससे इसलिए स्पष्ट है कि रावण मनुष्य था उसका एक वर्ष तक किसी भी पशु के साथ लगातार मल्लयुद्ध सम्भव नहीं था, मल्ल युद्ध मनुष्यों की कला है, बन्दरों की नहीं है। दूसरी बात यह है कि बन्दरियाँ एक दर्प अथवा ९ या ८ माह तक गर्भ धारण नहीं किये रहती है। समस्त बन्दर जाति का गर्भ काल ६ महीने से अधिक नहीं होता है। पुराण के अनुसार अन्जनी ने हनुमान का गर्भ एक वर्ष तक धारण किया था जोकि स्त्रियों के औसत काल ९ या १० माह के समीप है। विशेष अवस्था में स्त्रियों का गर्भकाल ११ या १२ माह तक खिंच जाता है। इस आधार से भी अन्जनी मानव जाति की स्त्री थी। 

तीसरी बात यह भी समझने की है कि किसी बन्दर ‘ का नाम केसरी तथा बन्दरिया का नाम अन्जनी नहीं होता है। नाम रखने की परम्परा बोलचाल के लिए सम्बोधन के रूप में केवल मनुष्य जाति में ही होती है पशुओं में न तो वाणी अथवा स्पष्ट उच्चारण की सामर्थ्य होती है और न उसकी एक-दूसरे को पुकारने के लिए सम्बोधन के रूप में नाम रखने की परम्परा होती है। एक-एक बन्दर के साथ कई-कई दर्जन बन्दरियाँ भोगने को उसकी मण्डली में होती हैं जबकि केसरी व अन्जनी पति-पत्नी थे। लगन के साथ कामातुर होकर पत्नी के साथ रमण करने और दीर्घकाल तक रहते रहने की बात मनुष्य जाति में ही सम्भव है। कवि ने उस दीर्घकाल की अवधि को अपनी कल्पना से १२ वर्ष बढ़ाकर लिख दी है यह केसरी की मैथुन शक्ति को बढ़ाकर दिखाने के लिए किया गया है। बन्दर का मैथुन अवधि लिखने की न तो आवश्यकता होती है और न ही इतनी अवधि की सीमा हो सकती है। पशु योनि में शिवजी का जन्म हुआ तो उससे शिवजी की महत्ता नहीं बढ़ेगी। अत्यन्त पाप कर्म करने वाले महापापी मनुष्यों को उनके अशुभ कर्मों का फल भोग कराने तथा कुसंस्कारों का विनाश करने के लिए पशु आदि निकृष्ट योनियों में जन्म धारण परमात्मा कराता है। बन्दरों की योनि में शिवजी ने जन्म लेकर मानव जाति अथवा बन्दरों की कोई सेवा पथ प्रदर्शन किया हो ऐसी भी कोई बात हनुमान जी के जीवन में देखने में नहीं आई है। उनके जीवन की प्रमुख घटना सीता जी का लंका में जाकर पता लगाना और रामचन्द्र जी की ओर से युद्ध करना मात्र रही है। 

एक बार लक्ष्मण जी के युद्ध में मूर्च्छित हो जाने पर संजीवनी बूटी नाम की औषधि खोज कर लाने का काम उन्होंने किया था। उनके जीवन की केवल वही घटनायें हैं जो किसी अवतार के लिए शोभाजनक नहीं। सीता जी की खोज करना एक गुप्तचर का कार्य था, लड़ना सैनिक का पेशा होता है, औषधि लाना सेवक का धर्म है, इनमें अवतारपन की कोई बात नहीं थी। 

राम ने भी हनुमान जी को वेदादि शास्त्रों तथा व्याकरण एवं संस्कृत विद्या का महान विद्वान् माना था। जब राम लक्ष्मण सीता के हरण पर वियोग से व्यथित सुग्रीव के स्थान की ओर जा रहे थे तो सुग्रीव ने दूर इन अजनबी नवागन्तुकों को देखकर इनकी वास्तविकता का पता लगाने के लिए हनुमान जी को उनके पास भेजा। हनुमान जी ब्रह्मचारी का रूप धारण करके राम जी के पास गये और उनसे वार्तालाप करके उनका परिचय पूछा तो राम ने लक्ष्मण से कहा था 

हनुमान जी वेदज्ञ तथा राजमन्त्री थे 

सचिवोऽयं कपीन्द्रस्य सुग्रीवस्य महात्मनः। तमेव कांक्षमाणस्य ममान्तिक मिहागतः॥२६॥
ना ऋग्वेद विनीतस्य ना यजुर्वेदधारिणः। ना सामवेदविदुषः शक्यमेव विभाषितम्॥२८॥
नूनं व्याकरण कृत्सनमनेन बहुधा श्रुतम्। बहुल्याहारतानेन नकिञ्चिदपशब्दितम्॥२९॥ 

(बाल्मीकि रामायण किष्किन्था काण्ड सर्ग-३)

अर्थ-हे लक्ष्मण! यह (हनुमान जी) सुग्रीव के मन्त्री हैं और उनकी इच्छा से यह मेरे पास आये हैं। जिस व्यक्ति ने ऋग्वेद को नहीं पढ़ा है, जिसने यजुर्वेद को धारण नहीं किया है, जो सामवेद का पण्डित नहीं है वह व्यक्ति, जैसी वाणी यह बोल रहे हैं वैसी नहीं बोल सकता है। इन्होंने निश्चय पूर्वक सम्पूर्ण व्याकरण पढ़ा है क्योंकि इन्होंने अपने सम्पूर्ण वार्तालाप में कोई भी अशुद्ध शब्द नहीं बोला है॥२९॥ इससे स्पष्ट है कि हनुमान जी वेदों एवं व्याकरण के प्रकाण्ड पंडित थे। 

हनुमान जी शब्दशास्त्र (व्याकरण) के महान पण्डित थे
श्रीरामो लक्ष्मणं प्राह पश्यैनं बटूरूपिणाम। शब्दशास्त्रमशेषेण श्रुतं नूनमनेकधा॥१७॥
अनेकभाषितं कृत्सनं न किञ्चिदपशब्दितम्। ततः प्राह हनूमन्तं राघवो ज्ञान विग्रहः॥१८॥
 

                                                                    (अध्यात्म रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग १)

राम ने कहा “हे लक्ष्मण! इस ब्रह्मचारी को देखो। अवश्य ही इसने सम्पूर्ण शब्दशास्त्र (व्याकरण) कई बार भली प्रकार पढ़ा है॥१७॥ देखो! इसने इतनी बातें कहीं किन्तु इसके बोलने में कहीं कोई एक भी अशुद्धि नहीं हुई। विदिता नौ गुणा विद्वान् सुग्रीवस्य महात्मनः॥३७॥ 

( बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग ३)

लक्ष्मण जी ने हनुमान जी को कहा कि हे विद्वान्! हमको महात्मा राजा सुग्रीव के गुण ज्ञात हैं। 

हनुमानजी सर्व शास्त्रों के पण्डित थे 

महर्षि अगस्त ने रामजी से कहा पराक्रमोत्साहमति प्रताप, सौशील्यमाधुर्य्य नया नयैश्च। गम्भीर्य चातुर्य सुचीर्य्यधैर्खे:, हनूमंतः कोऽस्ति लोके॥४३॥

अमौ पुनर्व्याकरणं ग्रहीष्यन्, सुर्योन्मुखः पृष्टमना कपीन्द्रः। उद्यग्निरेरस्त गिरि जगाम, ग्रन्थं महद्वारयन प्रमेयः॥४४॥

ससूत्र बृत्यर्थपदं महार्थ, स संग्रह सिध्यति वैकपीन्द्रः। हास्य कश्चित्सद्धशोऽस्ति शास्त्रे, वैशारदे छन्द गतौ तथैव।॥४५॥

सर्वासु विद्यासु तपो विधाने, प्रस्पर्धतेऽयंहि गुरु सुराणाम्॥४६।। 

(बाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड सर्ग ३६ )

अर्थ-पराक्रम, उत्साह, बुद्धि, प्रताप, सुशीलता, नम्रता, न्याय, अन्याय का ज्ञान, गम्भीरता, चतुरता, बल और धैर्य में हनुमान जी के समान लोक में कोई भी मनुष्य नहीं है॥४३॥ 

अध्ययन काल में वे व्याकरण पढ़ते हुए इतने व्यस्त रहते थे कि सूर्य सामने होकर पीछे चला जाता था अर्थात् प्रात:काल से सायंकाल हो जाता था, तब तक वह पढ़ते ही रहते थे। और इतने समय में जितने में सूर्य उदयाचल से अस्ताचल पर्वत तक पहुंचता था वे एक दिन में बड़े-बड़े ग्रन्थ को कण्ठस्थ करने में अनुपम थे।॥४५॥ 

हनुमान जी ने सूत्र, वृत्ति, वार्तिक भाष्य, साधन और संग्रह सहित सब पढ़ा है। व्याकरण के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों ( वेदांगों ) छन्द आदि में भी वे अद्वितीय विद्वान् हैं।  समस्त विद्याओं तथा तपस्या में यह हनुमान जी गुरु बृहस्पति के समान हैं॥४६॥

बाल्मीकि रामायण के उपरोक्त उद्धरण हनुमान जी को बन्दर सिद्ध नहीं करते हैं वरन् वे उनको मनुष्य, ब्रह्मचारी, विद्वान्, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता, महान वैयाकरण व धुरन्धर वेदज्ञ घोषित कर रहे हैं। यह गुण बन्दर में नहीं हो सकते हैं। बन्दर का गला इतना सिकुड़ा हुआ होता है कि वह स्पष्ट शब्दोउच्चारण नहीं कर सकता। इसीलिए आवश्यकता होने पर बन्दर केवल किलकारी मारता है। चीखता है। अत: महान् विद्वान् राजा सुग्रीव के सचिव (मन्त्री) को बन्दर बताना उनका ही नहीं अपितु, आर्य सभ्यता का अपमान करना है तथा अपनी बुद्धि हीनता का परिचय देना है बन्दर राजा लोगों के मन्त्री नहीं हुआ करते हैं। राज्य मन्त्री मनुष्य ही होते हैं। 

हनुमान जी के श्वेत वस्त्र ततः शाखान्तरे लीनं दृष्ट्वा चलित मानसा। वेष्टतार्जुन वस्त्र तं विद्युत्सघांत पिंगलम्॥१॥ 

(बाल्मीकि रामायण सुन्दर काण्ड ३१)

ऊपर वृक्ष की शाखाओं में छिपे हुए हनुमान जी को देखकर जानकी जी घबरा गईं। हनुमान जी उस समय श्वेत वस्त्र पहने हुए गोरे शरीर वाले ऐसे लगते थे जैसे बिजली चमकती है। ___मनुष्य ही वस्त्र पहिनते हैं बन्दर कभी वस्त्र नहीं पहना करते हैं। हनुमान जी का वस्त्र पहिनना उन्हें मनुष्य बताता  सुग्रीव मनुष्य था अरयश्च मनुष्येण विज्ञेयाश्छद्म चारिणः॥२२॥ 

( बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग )

अपने बारे में सुग्रीव ने कहा कि कपट वेष में घूमने वाले शत्रुओं का मनुष्यों को अवश्य ही भेद जानना चाहिए। 

सुग्रीव का अपने को मनुष्य बताना यह प्रमाणित करता है कि समस्त वानर जाति मनुष्य थी। 

 सुग्रीव का सिंहासन ततः सुग्रीव मासीन कांचने परमासने। महार्हास्तरणोपेते ददर्शा दित्य यन्निभम्॥६३॥ 

(बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग ३३)

अर्थ-राजा सुग्रीव सुन्दर स्वर्ण के सिंहासन पर बैठा हुआ था। और उस पर बहुमूल्य सुन्दर बिछौना बिछा हुआ था।

सोने के घड़े अप: कनक कुम्भेषु निधाय विमला जलः॥३३॥

शुभंषभश्रृनगैश्च कलशश्चैव कांचनेः॥३४॥

अभ्यषिन्चन्त सुग्रीवं प्रसन्नेक सुगन्धिना॥३५॥

सलिलेन सहस्त्राक्ष बसवा वासवं यथा॥३६॥ 

( बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग २६)

स्वर्ण के कलशों में पवित्र जल भर कर सुगन्धित जल से सुग्रीव को बानर लोग इस तरह स्नान कराने लगे जैसे बसुगण इन्द्र को स्नान कराते हैं। 

सोने के छत्र और चंवर तस्य पाण्डुरमाजु हृश्छत्रंहेम परिष्कृतम्। शुक्ले च वाल व्यंजने हेम दण्डे यशस्करे॥२३॥ 

(बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग २६)

जब सुग्रीव का राज्याभिषेक हुआ तब कुछ बानरों ने उसके ऊपर स्वर्ण से जड़ा हुआ धवल छत्र लगाया और कुछ ने सोने की डण्डी वाला चंवर और पंखा भी ढुलाया। उपरोक्त चन्द प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि बानर लोग बन्दर नहीं थे, वे मनुष्य थे, आभूषण तथा वस्त्र पहिनते थे, राजसिंहासन पर बैठते थे, स्वर्ण का प्रयोग करते थे, जबकि बन्दरों को इन सबकी कोई आवश्यकता नहीं होती है। 

बानरों का यज्ञोपवीत धारण करना ततोऽग्नि विधिवद्दत्वसोप सव्यं चकार ह॥५॥ 

(बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग २५) __

अंगद ने बाली के शव को विधिवत् अग्नि देकर अपना वज्ञोपवीत दाहिने कन्धे पर रख लिया। ___ “अपसव्य” का अर्थ होता है यज्ञोपवीत को दाहिने कन्धे पर लेना। यज्ञोपवीत हमेशा बायें कन्धे पर रहता है उसे दायें पर लेने को “अपसव्य” करना कहते हैं। ___बन्दर जाति के पशु यज्ञोपवीत नहीं पहन सकते हैं। यह केवल यज्ञ के अधिकारी मनुष्यों को ही धारण करने का शास्त्रीय अधिकार है। इससे सिद्ध है कि बानर जाति मनुष्यों की क्षत्रीय वंश की दक्षिणीय शाखा थी। 

मृतक पुरुषों का ही अन्त्येष्टि संस्कार किया जाता है, बानर जाति के मनुष्यों में यह प्रथा होना भी उनको मनुष्य प्रमाणित करती है। 

तारा ने बालि को “आर्य पुत्र” कहा :

समीक्ष्य व्यथिता भूमौ सश्भ्रान्तानिपपातह। सप्त्वेव पुनरुत्थाय आर्य पुत्रेति वादिनी॥२८॥ 

(बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग १९)

पति (बाली) को हत्त देखकर तारा अति दुखी होकर मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। कुछ देर बाद चैतन्य होने पर वह बाली को ‘आर्य पुत्र’ कहकर रुदन करने  लगी। 

इससे स्पष्ट है कि बानर लोग आर्य पुत्र (आर्य जाति के) मनुष्य ही थे, पशु नहीं थे। __ बानर जाति आज भी विद्यमान है। वनों में विचरण करने वाले, वनों में रहने वाले लोग बानर कहे जाते थे। 

राजस्थान के बाड़मेर क्षेत्र में आज भी बानर जाति के क्षत्रीय लोग निवास करते हैं, रांची (मध्य प्रदेश) के आसपास उरांव और मुण्डा नाम की दो जातियां निवास करती हैं जिनके गोत्र वानर और भुल्लूक हैं ये उन्हीं रामायण और भुल्लक कालीन उस देश की मानव जातियों के वंशज हैं। 

“कपि” शब्द का अर्थ संस्कृत के प्रसिद्ध कोषकार आप्टे ने अपने कोष में ‘कपि’ शब्द का अर्थ -सुगन्धि, हाथी, सूर्य और शिलारस लिखे हैं। सम्भव है सूर्यवंशी क्षत्रिय जाति के वंशज होने से इन वनवासी एवं पर्वतीय जाति के लोगों को बानर या कपि शब्द से सम्बोधित किया जाने लगा हो, जिसे ठीक प्रकार से न समझने के कारण बन्दरों की भाँति पशु जाति का मान लिया गया है। 

हनुमान जी अपने समाज के अत्यन्त प्रतिष्ठित, महान विद्वान् महान शूरवीर योद्धा, सेनापति तथा सुग्रीव के राजमन्त्री थे। उनकी अद्भुत योग्यता की सर्वत्र बड़ी धाक थी। सव ओर उन्हीं की पुकार होती थी। प्रत्येक कार्य में उनसे परामर्श लिया जाता था। राजा तथा प्रजा में उनकी अत्यन्त पूछ होने के कुछ लोगों ने यह समझ लिया है कि उनके जानवरों जैसी लम्बी पूंछ (दुम) लगी हुई थी। वास्तविक अर्थ का अनर्थ लोगों ने अपनी नासमझी से कर दिया है। मनुष्य और पशुओं में पूंछ भेदक चिन्ह है पशुओं की पूंछ (दुम) होती है। मनुष्यों के दुम नहीं होती है। कहा जाता है कि विद्वानों की बड़ी भारी पूछ होती है सर्वत्र वे पूछे जाते हैं, उनका महान यश तथा विद्वता उनकी पूछ का कारण होती है। भाषा के शब्दों को समझना चाहिए। 

जब हनुमान जी लंका में सीता से मिलने के बाद पकड़ लिए गए तो वे अपनी बुद्धि व शारीरिक बल से सारी लंका में एक प्रबल हलचल (क्रांति) पैदा कर आये थे जिससे सारी लंका जलने लगी थी। यह बात करने का एक प्रकार है। यदि यह कहा जाये कि चीन ने आक्रमण करके सारे भारत में आग लगा दी सर्वत्र क्रोध की लहर दौड़ने लगी थी, तो इसका यही अर्थ होगा कि जनता की विचारधारा में एक तीव्र आक्रोश तथा बदला लेने की भावना पैदा हो गई थी। यह अर्थ नहीं होगा कि चीन ने दियासलाई जलाकर मिट्टी का तेल डालकर सारे भारत में जगह-जगह भौतिक आग लगा कर लपटें पैदा कर दी थीं। जिन लोगों ने हनुमानजी को पशु तथा उनको पूंछवाला लिखा है, उन्होंने उनका अपमान किया है। 

तारा की योग्यता 

यह यहां एक प्रमाण बानरों की स्त्रियों के विषयों में उनकी योग्यता को दिखाने के लिए प्रस्तुत करते हैं, तारा की योग्यता के विषय में लिखा है :

सुषेण दुहिता चेयम अर्थ सूक्ष्म विनिश्चये। औत्यातिके च विविधे सर्वत परिनिष्ठता॥१३॥

यदेषा साध्विति ब्रूयात्कार्य तन्मुक्त सशम्य। नहि तारामत किंचिदन्यथा परिवर्तते॥१४॥ 

( बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग २२)

हे सुग्रीव! सुषेण की पुत्री तारा तुम्हारे सामने बैठी है। इनकी योग्यता तुमको ज्ञात ही है, यह अत्यन्त सूक्ष्म और पेचीदे राजकीय प्रश्नों का निर्णय करने में तथा अनेक राजनैतिक गुत्थियों को सुलझाकर राज्य को व्यवस्थित बनाने के कार्य में अत्यन्त कुशल है। जिस कार्य में यह अनुमति देवे उसे अवश्य करो उससे कभी असफलता नहीं मिलेगी। ___भारतवर्ष की महान स्त्रियों के अन्दर यह राज्य संचालन मंत्रणा देना पेचीदा बातों का निर्णय देना आदि गुण होते थे: यह गुण पशु जाति की बन्दरियों में कभी भी संभव नहीं थे और न कभी होंगे। 

इस प्रकार हमने यह बताया है कि हनुमान जी मनुष्य थे, क्षत्रिय जाति के रत्ल थे, भारतीयों के गौरवमय पूर्वज थे। उनके बारे में जो भी भ्रम देश में पैदा कर दिए गए हैं   उनका निवारण हो जाना चाहिए, हनुमान जी के विषय में  बाल्मीकि रामायण ही सर्वाधिक प्रमाणिक ग्रन्थ है। उनके समकालीन महर्षि बाल्मीकि की रचना होने से ऐतिहासिक दृष्टि से माननीय है। तुलसी रामायण अकबर के राज्य में अब से लगभग ३०० वर्ष पूर्व की रचना होने से ऐतिहासिक महत्व की पुस्तक न होने से मान्य नहीं है। 

महावीर हनुमान जी के पिता का नाम केसरी तथा माता का नाम अन्जनी देवी था। वे बानर क्षत्रीय वंश के आर्य मानव थे, आर्यों के वंशज थे। 

हनुमान जी के विषय में सम्भवतः किसी जैन ग्रन्थ में हमने कहीं लिखा देखा है कि वे राजा सुग्रीव के दामाद थे। सुग्रीव की पुत्री पदमप्रभा से उनका विवाह हुआ था। पर इस विषय का कोई प्रमाण हमको संस्कृत साहित्य के अन्दर दृष्टि में नहीं आया है। 

आध्यात्मिक रामायण में एक स्थान पर लिखा है कि जब रामचन्द्र जी चौदह वर्ष के वनवास की अवधि पूर्ण करके लंका विजय के पश्चात अयोध्या को वापिस लौटे थे तो उन्होंने भरत जी को अपने आने की सूचना देने के लिए हनुमान जी को आगे भेज दिया था। भरत जी को जब राम के आने का शुभ समाचार हनुमान जी ने दिया तो वे अत्यन्त प्रसन्न हुए और हनुमान जी से बोले 

आलिंगय भरतः शीघ्रं मारुति प्रियवादिनम्। आनन्दरश्रु जलै सिषेच भरतः कपिम्।।५९।।

देवौ वा मानुषोवात्वमनको शादिहागतः। , प्रियाख्यानस्य ते सौम्य ददामिब्रुवतः प्रियमम्॥५०॥

गवांशत सशस्त्रं ग्रामाणा च शतं वरम्। सर्वाभरण सम्पन्ना मुग्धाः कन्यास, षोडश॥६१॥ 

(अध्यात्म रामायण युद्ध काण्ड सर्ग १४)

अर्थ-भरत जी ने तुरन्त ही प्रियवादी हनुमान जी को हृदय से लगा लिया और आनन्द के कारण उमड़े हुए अश्रु जलों से उस बानर श्रेष्ठ को सींचने लगे।।५९॥ 

(वे वोले ) भैया! तुम कोई देवता हो या मनुष्य हो जो दया करके यहां आये हो? हे सौम्य! इस प्रिय समाचार के सुनाने के बदले मैं तुम्हें एक लाख गौ, अच्छे-अच्छे सौ गांव और समस्त आभूषणों युक्त परम सुन्दरी सोलह कन्यायें देता हूं।५०-६१॥ 

यहां भरत जी ने हनुमान जी को मनुष्य या देवता कहा था बन्दर या देवता नहीं माना था। यदि बन्दर माना होता तो इस प्रकार का दान कभी न देते। तभी तो उन्होंने गौए, गांव व कन्यायें उनको पुरस्कार में भेंट स्वरूप दी थी। यदि हनुमान जी बन्दर (पशु) होते तो गौओं के थन चंबा जाते, गांवों को उजाड़ डालते तथा औरतों के लंहगे, ब्लाउज फाड़-फाड़कर उनकी ऐसी दुर्गति बनाते कि देखने वालों को भी भरत जी की त्रुटि पर, ऐसा दान देने पर तरस आता, किन्तु बन्दर को तो औरतों की जगह पर सौ दो सौ बन्दरियां देना ही ठीक रह सकता था। गायें, ग्राम व कन्यायें मनुष्यों के ही प्रयोग की वस्तु हैं अतः भरत जी का हनुमान जी को यह दान देना भी उनको मनुष्य ही घोषित करता है। 

इतने प्रमाणों की उपस्थिति में आशा है अब आगे कभी कोई व्यक्ति महानात्मा हनुमान जी को पूंछ वाला बन्दर वंशीय मानने का दुस्साहस नहीं करेगा। 

मृतक श्राद्ध पर 21 प्रश्न

प्रश्न १.–

पितर संज्ञा मृतकों की है या जीवितों की ? यदि जीवितों की है तो मृतक श्राद्ध व्यर्थ होगा। यदि मृतकों की हैं तो – आधत्त पितरो गर्भकुमार पुष्करसृजम”।

| (यजुर्वेद २-३३) “ऊर्ज वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिश्रुतम् ।। स्वधास्थ तर्पयतमे पितृन्’ ।।

(यजुर्वेद २-३४) “आयन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्तः पथिभिर्देवयानैः ।

(यजुर्वेद १८-५८) इत्यादि वेद मंत्रों से पितरों का गर्भाधान करना, अन्नजलं, दृ आदि का सेवन करना, आना-जाना-बोलना आदि क्रियायें करने वाला बताया गया है, जोकि मृतकों में संभव नहीं है।

इससे पितर संज्ञा जीवितों की ही सिद्ध है। अतः मृतकों का श्राद्ध करना अवैदिक कर्म है ।

प्रश्न २.– | जीवात्मा की गति जब निजकर्मानुसार होती है तो मृतक श्राद्ध की क्या आवश्यकता है ?

प्रश्न ३.– | जब जीवात्मा में लिंगभेद नहीं होता है तो शरीर त्यागने के बाद उसे पितर आदि मानना कैसे बनेगा ? उपनिषद में जीवात्मा को

| “नैव स्त्री न पुमानेषु न चैवायं नपुंसकः। / यद् यच्छरीरं आधत्ते तेन तेन स युज्यते ।।

| (श्वेताश्वेतर उपनिषद ५-१०) अर्थात् जीवात्मा स्त्री, पुरुष या नपुंसक भेद वाला नहीं है। वह जिस-जिस शरीर में जाता है, वैसा ही कहलाता है ।

प्रश्न ४.–

शरीर त्याग के पश्चात् जीवात्मा के लौकिक सम्बन्ध पिता-पुत्रादि के नष्ट हो जाते हैं तो उनके पुत्रादि के दिये पदार्थ वे कैसे प्राप्त करते हैं ?

प्रश्न ५.–

जो अविवाहित रहते हुए मर जाते हैं उनके पितर (मरने के बाद पौराणिक कल्पनानुसार उनकी आत्मा के) न बनने से उनकी मोक्ष कैसे होगी ? भीष्म पितामह व शुकदेव जी की क्या गति हुई होगी ?

प्रश्न ६.–

जिनका वंशनाश हो जाता है, क्या वे पितर भूखे ही मरते रहते हैं ? यदि हां तो क्यों ?

प्रश्न ७.– | किन जीवों का पुनर्जन्म होता है किनका नहीं होता है, किनकी मोक्ष हो जाती है इसका पता लगाने का क्या साधन आपके पास है ? और बिना पता लगाये मृतक का श्राद्ध करना निरर्थक क्यों नहीं है ?

प्रश्न ८.–

मरने पर स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है, सूक्ष्म शरीर को भूख-प्यास से कोई सम्बन्ध नहीं होता है न उसे भोजनादि का ग्रहण होता है, तब

आपके पितर भोजन कैसे करते है ?

. प्रश्न ९.– | श्राद्ध में जो पदार्थ दिया जाता है; यदि वह पुनर्जन्म प्राप्त जीवों की यानियों के स्वाभाविक भोजन के अनुकूल न हो तो श्राद्ध से क्या लाभ होगा ?

प्रश्न १०.–

यदि एक पुरुष के चार बेटे चार दूरस्थ नगरों में एक ही दिन, एक ही समय उनका श्राद्ध करें तो उनकी आत्मा चारों स्थानों पर श्राद्ध ग्रहण करने व खाने को कैसे जा सकेंगी ? क्योंकि एक देशीय जीव एक समय पर एक ही स्थान पर विद्यमान हो सकता है ?

प्रश्न ११.–

श्राद्ध का अधिकार सभी जातियों को क्यों नहीं है ?

प्रश्न १२.– | जिन जातियों को श्राद्ध का अधिकार नहीं होता है उनके पितर तो भूखे ही मरते होंगे या दूसरों का माल छीनकर खाते होगे ? उस दशा में उनके झगड़े-फिसाद की शान्ति कौन कैसे करता होगा ? मरने के बाद भी जीवों में ऊँच-नीच का भेद कायम रहना आप क्यों मानते हैं ?

प्रश्न १३.– | मरने के बाद लापता जीवात्माओं के पास पण्डित जी श्राद्ध का मालटाल पहुँचा देते हैं इसका प्रमाण क्या है ?

प्रश्न १४.–|

जब लापता शरीर विहीन जीवात्माओं के पास आप माल पहुँचाना मानते हैं तो परदेश गये लोगों के नाम पर भोजनों का थाल भी क्यों नहीं पहुँचाकर

उन्हें भूख-प्यास से तृप्त कर देते हैं ?

प्रश्न १५.– | कौवों और पितरों का श्राद्ध से क्या सम्बन्ध है जो श्राद्धों में कौवों को भोजन कराया जाता है ? क्या वे पितरों के प्रतिनिधि हैं ?

प्रश्न १६.:

वर्षा ऋतु में क्वार में जब नदी-तालाबों में सर्वत्र जल भरा रहता है, आकाश में बादल पानी लिये खड़े रहते हैं तब जलदान पितरों को करने की क्या

आवश्यकता है ? ग्रीष्म की प्रचण्ड गर्मी में ज्येष्ठ-वैसाख में जलदान क्यों नहीं किया जाता है जबकि पानी की सभी का सख्त जरूरत होती है ?

प्रश्न १७.–

वर्ष भर में केवल एक बार खिला करके पितरों को साल भर तक भूखा मारना और अपना पट दिन में तीन बार रोजाना भर पेट भोजन करके भरते रहना अपने बुजुर्ग पितरों के साथ निकृष्टतम मजाक नहीं है ?

क्या पितरों का हाजमा इतना खराब होता है कि एक बार वाकर साल भर तक उसे हजम भी नहीं कर पाते हैं ?

प्रश्न १८.– | महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय ३२ में लिखा है कि – ‘‘चिकित्सक, मन्दिर का. पुजारी, दूध बेचने वाला, गायत्री जाप व संध्या करने वाला, वेतन लेकर पढ़ाने वाला, इन ब्राह्मणों को यज्ञदान व श्राद्ध में नहीं बुलाना चाहिये । यदि इनको बुलाया जावेगा तो दान का फल नष्ट हो जावेगा तथा यज्ञ-दान व श्राद्ध करने वाले के पितर घोर नरक में जाते हैं।

प्रश्न यह है कि क्या उपरोक्त कर्म करना, पुराण पढ़ना आदि महापाप

कर्म है जो वैसा करने वालों को महापापी माना है ? इनको श्राद्धादि में बुन्नाने का पाप तो श्राद्ध कर्ता द्वारा किया जाता है तो उसके कुकर्म का फल स्वयं विना किये पितरों को क्यों भोगना पड़ता है ?

प्रश्न १९.–

जबकि महाभारत वन पर्व अध्याय १३ श्लोक ७७ (गीता प्रेस) में स्पष्ट लिखा है –

आयुषोऽन्ते प्रहादेव क्षीण प्रायः कलेवरम् ।

सम्भवत्येव युगपदयोनो नास्त्यन्तराभवः’ ।। अर्थात् – एक शरीर त्यागकर दूसरे शरीर को जीव तत्क्षण ग्रहण कर लेता है । वह विना स्थूल शरीर के आश्रय बिना एक क्षण भी नहीं रहता है। गीता २-२२ ने भी जीव के तुरन्त पुनर्जन्म की पुष्टि की है। तब पुनर्जन्म प्राप्त जीवों के लिए श्राद्ध करना मिथ्या कर्म क्यों नहीं है ? क्योंकि प्रत्यक्ष में जन्मे हुए वालको व वड़ों को किसी को भी उनके पूर्व जन्म के स्थान में दिया हुआ श्राद्ध पदार्थ नहीं पहुँचता है ।

प्रश्न २०.–

बतादें कि पितर से तात्पर्य आपका जीवात्मा से हैं या शरीर से है। अथवा जीव संयुक्त शरीर से है ? यदि जीवात्मा से है तो मरने के बाद रिश्ता ही समाप्त हो जाता है । यदि शरीर से है तो वह भस्म होकर समाप्त हो जाता है । यदि जीव संयुक्त शरीर से है तो पितर जीवित पुरुष हुए न कि मृतक ! तब श्राद्ध मुर्दो के नाम पर गलत होगा ।

प्रश्न २१.–

भविष्य पुराण ब्राह्म पर्व अध्याय १८४ श्लोक ५६ में लिखा है

| ‘‘मृतान्न मधु माँसं च यस्तु भन्जीथ ब्राह्मणः ।।

स त्रीण्यहान्युपवसेदेका – हं चोदके वसेत् ।। अर्थात् – जो ब्राह्मण मुर्दे के निमित्त (श्राद्ध का) अन्न, शराब व मांस का सेवन करे वह तीन दिन उपवास करे और एक दिन जल में बैठा रहे तब शुद्ध होगा। इससे स्पष्ट है कि श्राद्ध भोजन किसी भी ब्राह्मण को नहीं करना चाहिए । तब क्या पौराणिक ब्राह्मण श्राद्ध खाकर उक्त प्रकार से प्रायश्चित करते हैं ?

‘‘लाजपतराय अग्रवाल” नोट – | श्री आचार्य डा० श्रीराम आर्य जी द्वारा रचित समस्त खण्डन मन्डनात्मक

 

कुरान समीक्षा : कुरान में जन्नत के नजारे

कुरान में जन्नत के नजारे

कुरान में जन्नत के नजारों को क्या सही साबित किया जा सकता है या ये नासमझ अय्याश अरबी लोगों को फुसला कर इस्लाम में भरती करने का फर्जी लालच की बातें हैं?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

उलाइ-क लहुम् जन्नातु अदनिन्…………।।

(कुरान मजीद पारा १५ सूरा कहफ रूकू ४ आयत ३१)

यही लोग है जिनके रहने के लिए जन्नत में बाग हैं इन लोगों के मकानों के नीचे नहरें बह रहीं होंगी। वहाँ सोने के कंगन पहनाये जायेंगे और वह महीन और मोटे रेश्मी हरे कपड़े पहनेंगे। वहाँ तख्तों पर तकिये लगाये बैठेंगे। क्या खूब बदला है और क्या खूब आरामगाह है?

इन्-न ल-क अल्ला तजू-अ…………।।

(कुरान मजीद पारा १६ सूरा ताहा रूकू ५ आयत ११८)

और यहाँ (जन्नत में) तुमको ऐसा सुख है कि न तो तुम भूखे रहोगे न नंगे।

व अन्न-क ला तअ्मउ फीहा व ला…………।।

(कुरान मजीद पारा १६ सूरा ताहा रूकू ५ आयत ११९)

और यहां न तुम प्यासे होवोगे और न धूप में रहोगे ।

फवाकिहु व हुम् मुक्रमून………..।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साफ्फात रूकू २ आयत ४२)

खाने को मेवे और इनकी इज्जत होगी।

अला सुरूरिम्-मु-त-कालिबिलीन……………।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साफ्फात रूकू २ आयत ४४)

नेतम के बागों में आमने सामने होंगे।

बैजा-अ लज्जतिल्-लिश्शारिबीन………।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साफ्फात रूकू २ आयत ४६)

सफेद रेग वाली शराब पीने वालों को मजा देगी।

ला फीहा गौलुं व्-व ला हुम्…………..

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साफ्फात रूकू २ आयत ४७)

न उससे सर घूमते हैं और उसको पीने के बाद बकते हैं।

व अिन्दहुम् कासिरातुत्तर्फि………।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साफ्फात रूकू २ आयत ४८)

उनके पास नीची निगाह वाली बड़ी-बड़ी आँखों वाली औरतें (हूरें) होंगी।

क-अन्नहुन्-न बैजुम्-मक्नून्…………।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साफ्फात रूकू २ आयत ४९)

………गोया वह छिपे अण्डे रखे हैं

जन्नाति अद्निम्-मुफत्त-तल्……….।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साद रूकू ४ आयत ५०)

हमेशा रहने को जन्नत के बाग जिनके दरवाजे उनके लिए खुले होंगे।

मुत्तकिई-न फीहा यद्अू-न फीहा………..।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साद रूकू ४ आयत ५१)

उनमें तकिया लगाकर बैठेंगे, वहाँ जन्नत के नौकरों से बहुत मेवे और शराब मंगावेंगे।

व अिन्दहुम् कासिरातुत-तर्फि…………।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा साद रूकू ४ आयत ५२)

उनके पास नीची नजर रखने वाली हूरें होंगी और हम उम्र होंगी।

उद्खुलुल्-जन्न-त अन्तुम् व……….।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ४ आयत ७०)

तुम और तम्हारी बीबियाँ जन्नत में दाखिल हों ताकि तुम्हारी इज्जत की जावे।

युताफु अलैहिम् बिसिहाफिम्……….।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा जुरूरूफ रूकू ४ आयत ७१)

उन पर सोने की रकाबियाँ चलेंगी और जिस चीज को उनका जी चाहे और नजर में भली मालूम हो जन्नत में होंगी और तुम हमेशा यहीं रहोंगे।

कजालि-क जव्वज्-नाहुम………..।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा दुखान रूकू ३ आयत ५४)

ऐसी ही होगा बड़ी-बड़ी आंखों वाली हूरों से हम उनका ब्याह कर देंगे।

म-सलुल्-जन्नतिल्लती बुअिदल्……….।।

(कुरान मजीद पारा २६ सूरा माहम्मद रूकू २ आयत १५)

(जन्नत में) ऐसी पानी की नहरें हैं जिनका स्वाद नहीं बदला और शराब की नहरें हैं जो पीने वालों को बहुत ही मजेदार मालूम होंगी और साफ शहद की नहरें हैं और उनके लिए वहां हर तरह के मेवे होंगे।

मुत्तकिई-न अला सुरूरिम्………..।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा तूर रूकू १ आयत २०)

हमने बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरें उनको ब्याह दी हैं।

व अम्द द्नाहुम् विफाकिह तिंव……….।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा तूर रूकू १ आयत २२)

जिस मेवे और मांस को उनका जी चाहेगा हम उनको देंगे।

य-त-नाज अू-न फीहा कअ्-………….।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा तूर रूकू १ आयत २३)

वह वहाँ आपस में शराब के प्यालों की छीना झपटी करेंगे, उनमें उसे पीने से न बकवाद लगेगी और न कोई गुनाह होगा।

व यतू फु अलैहिम् गिल्मानुल………….।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा तूर रूकू १ आयत २४)

और लड़के अर्थात! गिलमें उनके पास आयेंगे जायेंगे, गोया यत्न से रखे हुए मोती के मानिन्द हैं।

मुत्तकिई-न अला फुरूशिम्………।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा रहमान रूकू २ आयत ५४)

फरशों पर तकिये लगाये बैठे होंगे। ताफ्ते और उनके अस्तर होंगे। और दोनों बागों के फल झुके होंगे।

फीहिन-न कासिरातुत्तर्फि………..।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा रहमान रूकू २ आयत ५६)

उनमें पाक हूरें होंगी जो आँख उठाकर भी नहीं देखेंगी और जन्नत वासियों से पहले न तो किसी आदमी ने उन पर हाथ डाला होगा और न जिन्न ने।

फी हिन्-न खैरातुन् हिसान………..।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा रहमान रूकू २ आयत ७०)

उनमें अच्छी खूबसूरत औरतें होंगी।

हुरूम्-मक्सूरातुन् फिल- खियामि……….।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा रहमान रूकू २ आयत ७२)

हूरें जो खेमों में बन्द हैं।

मुत्तकिई-न अला रफरफिन्……….।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा रहमान रूकू १ आयत ७६)

जन्नती लोग वहाँ सब्ज कालीनों और उम्दा उम्दा फर्शों पर तकिये लगाये बैठे होंगे।

अला सुरूरिम्-मौजूनतिम्…………..।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा वाकिआ रूकू २ आयत १५)

जड़ाऊ तख्तों के ऊपर।

युतुफु अलैहिम् विल्दानुम-मु………….।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा वाकिआ रूकू २ आयत १७)

उनके पास लड़के हैं जो हमेशा लड़के ही बने रहेंगे।

बि-अक्वाबिंव्-व अबारी-क…………।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा वाकिआ रूकू २ आयत १८)

उनके पास आबखोरे और लोटे और साफ शराब के प्याले लाते और ले जाते होंगे।

व हूरून् अीनुन्……………।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा वाकिआ रूकू २ आयत २२)

और हूरें बड़ी-बड़ी आँखों वाली जैसे छिपे हुए मोती।

इन्ना अन्शअ्नाहुन्-न इन्शा-अन्…………..।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा वाकिआ रूकू २ आयत ३५)

हम हूरों की एक खास सृष्टि बनाई है।

फ-ज-अल्नाहुन-न अब्कारन्………..।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा रहमान वाकिआ २ आयत ३६)

फिर इनको क्ंवारी बनाया है।

अरूबन् अत्राबल………….।।

(कुरान मजीद पारा २७ सूरा रहमान वाकिआ २ आयत ३७)

प्यारी-प्यारी समान अवस्था वाली।

लाकिनिल्-लजीनत्तकों रबहुम्………..।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा जुमर रूकू २ आयत २०)

जन्नत में खिड़कियों पर खिड़कियाँ बनी होती हैं

मुत्तकिई-फीहाअलल्-अराइकि ला…………..।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा दह रूकू १ आयत १३)

न वहां धूप देखेंगे न ठण्ड।

व दानि -य-तन् अलैहिम् जिला…………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा दह्र रूकू १ आयत १४)

वहां वृक्षों की छाया होगी उनके फल भी नजदीक झुके होंगे।

व युताफु अलैहिम् बिआनि-यतिम्…………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा दह्र रूकू १ आयत १५)

वहां चांदी के बर्तनों और गिलासों का दौर चल रहा होगा कि वह शीशे की तरह होंगे।

व युस्कौ-न फीहा कअ्-सन्……….।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा दह्र रूकू १ आयत १७)

वहां उनको शराब के ऐसे प्याले पिलाये जायेंगे, जिसमें सौंठ मिली होगी।

व यतुफ् अलैहिम् विल्दानुम्………..।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा दह्र रूकू १ आयत १९)

और उनके नजदीक नौजवान लड़के फिरते हैं।

आलि-यहुम् सियाबु सुन्दुसिन्…………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा दह्र रूकू १ आयत २१)

और उनका परवरदिगार उन्हें निहायत पाक शराब पिलावेगा।

इन्नल्-अब्रा-र यश रबू…………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा दह्र रूकू १ आयत २५)

निःसन्देह सुकर्मी ऐसी शराब के प्याले पीवेंगे जिनमें कपुर की मिलावट होगी।

व कवाअि-ब अत-राबत्……..।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा नबा रूकू २ आयत ३३)

और नौजवान औरतें हमउम्र।

व कअ्-सन् दिहांका……….।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा नबा रूकू २ आयत ३४)

और शराब के छलकते हुए प्याले।

युस्कौ-न मिर्रहीकिम्-मखतूम………..।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुतफ्फिफीन (तत्फीफ) रूकू १ आयत २५)

उनको खालिस शराब मुहरबन्द अर्थात शील लगी हुई पिलाई जायेगी।

खितामुहू मिस्क व फी जालि-क……..।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुतफ्फिफीन (तत्फीफ) रूकू १ आयत २६)

जिस (बोतल) की मुहर कस्तूरी की होगी और इच्छा करने वालों को चाहिये कि उसी की इच्छा करें।

जन्नत में हूरों का बाजार होगा

हजरत अब्दुल्लाबिनउमर ने फरमाया कि स्वर्ग में रहने वालों में से अदना (सबसे छोटे) दर्जे का वह आदमी होगा जिसके पास ६० हजार सेवक होंगे और सेवक का काम अलग-अलग होगा। हजरत ने फरमाया कि हर जन्नति ५०० हूरें, ४००० क्ंवारी औरतें और ८००० ब्याहता औरतों से ब्याह करेगा। कुरान पश्चिम तथा                                                       (सही बुखारी)

जन्नत (स्वर्ग) में एक बाजार है जहाँ पुरूषों और औरतों के हुस्न का व्यापार होता है। पस! ज्ब कोई व्यक्ति किसी सुन्दर स्त्री की ख्वाहिश करेगा तो वह उस बाजार में आवेगा जहाँ बड़ी- बड़ी आँखों वाली हूरें जमा हैं। वे कहेंगी कि-

‘‘मुबारिक है वह शख्स जो हमारा है और हम उसकी हैं।’’

(मिर्जा हैरत देहलवी कृत तफसिरूल कुरान सफा ८३ व ८४)

हजरत अंस ने फरमाया‘‘ हूरें गाती हैं, हम सुन्दर दासियाँ हैं, हम प्रतिष्ठित पुरूषों के लिए सुरक्षित हैं।’’

(कुरान परिचय पृष्ठ ११७ तथा मुकद्दमाये तफसीरूल्कुरान पृष्ठ ८३)

ह-दाइ-क व अअ्-नाबंव………..।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा नबा रूकू २ आयज ३२)

खाने को अंगूर और मेवे होंगे।

व कवाअि-ब अत-राबव्………..।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा नबा २ आयज ३३)

भौगने को नौजवान औरतें हम उम्र।

फीहा अैनुन् जारियः…………..।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा गाशियः रूकू १ आयत १२)

वहाँ चश्में बह रहे होंगे।

फीहा सुरूरूम्-मर्फूअतुव्……………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा गाशियः रूकू १ आयत १३)

उससे ऊँचे तख्त होंगे।

व अक्वा-बुम्-मौजूअतु व्…………..।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा गाशियः रूकू १ आयत १४)

उसमें आबखोरे रखे होंगे।

व नमारिकु मस्फू फतुं व…………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा गाशियः रूकू १ आयत १५)

गाव तकिये एक पंक्ति में लगे होंगे।

व जरा बिय्यु मब्सूस………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा गाशियः रूकू १ आयत १६)

और उम्दा मसनद व कालीन बिछे होंगे।

दर मुख्तार हदीस जिल्द २ सफा १०६ पर लिखा है-

जन्नत में अप्राकृतिक व्यभिचार अर्थात् गुदा मैथुन करना जायज है।

समीक्षा

अरब के लोगों में अप्राकृतिक व्यभिचार लड़को से करने का रिवाज था यह कुरान में मौजूद है जहाँ हजरत लूत के यहाँ आये दो खूगसूरत लड़को (फरिश्तों) को देखकर सारी बस्ती के लोगों को उनसे सम्भोग करने को एकत्रित होने की घटना से स्पष्ट है जो कि कुरान में जगह-जगह पर आता है-

व लूतन इज् का-ल लिकौमिही…………..।।

(कुरान मजीद पारा ८ सूरा आराफ रूकू १० आयत ८१)

………तुम ऐसा बेहयाई का काम क्यों करते हो, जिससे तुमसे पहले किसी ने नहीं किया।

इन्नकुम् ल-तअ्तनर्रिजा-ल शह्……………।।

(कुरान मजीद पारा ८ सूरा आराफ रूकू १० आयत ८१)

यानी अपने मजे की खातिर औरतों को छोड़कर लौड़ों पर गिरते हो अर्थात लौंडेबाजी करते हो।

व जा- अहू कौमुह युह्रअू-न इलैहि………।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू ७ आयत ७८)

जैसे लूत की कौम के लोग उनके पास से बे-तहाशा दौड़ते हुए आये, और ये लोग पहले ही से ये गन्दा काम (लौंडे बाजी) किया करते थे। लूत ने कहा कि ऐ कौम !

यह मेरी लड़कियां जो पाक और जायज हैं, ये तुम्हारें लिये हैं, पर आप लोग खुदा से ड़रो और मेरे मेहमानों में मेरी आबरू न खोओ, क्या तुमसे से कोई भला आदमी नहीं है?

का-ल-हाउल्लाह बनाती इन् कुन्तुत्………।।

(कुरान मजीद पारा १४ सूरा हिज्र रूकू ५ आयत ७१)

(उन्होनें) कहा कि अगर तम्हें (सम्भोग) करना ही है तो यह मेरी (कौम की) लड़कियां हैं इनसे शादी कर लो।

ल अम्रू-क इन्नहुम् लफी सक……………।।

(कुरान मजीद पारा १४ सूरा हिज्र रूकू ५ आयत ७२)

(ऐ मुहम्मद) तुम्हारी जान की कसम! वे अपनी मस्ती में मदहोश थे और मेरी बेआबरू अर्थात् गुदा मैथुन करने पर उतारू थे।

व लूतन् इज् का-ल लिकौमिही………..।।

(कुरान मजीद पारा १९ सूरा नम्ल रूकू ४ आयत ५४)

और लूत को याद करो जब उन्होंने अपनी कौम से कहा कि तुम बेहयाई अर्थात् लौंडेबाजी के काम क्यों करते हो?

अ-इन्नकुम ल-तअ्तूनर्-रिजा-ल…………..।।

(कुरान मजीद पारा १९ सूरा नम्ल रूकू ४ आयत ५५)

क्या तुम औरतों को छोड़कर लज्जत हासिल करने के लिए मर्दों अर्थात् लौंड़ों की तरफ मायल होते हो? सच तो यह है कि तुम लोग लौंडेबाजी करने के कारण जाहिल लोग हो।

व लूतन् इज् का-ल लिकौमिही………..।।

(कुरान मजीद पारा २० सूरा अंकबूत रूकू ३ आयत २८)

और लूत ने जब अपनी कौम से कहा कि तुम बेहयाई अपनाते हो, तुमसे पहले दुनिया वालों में से किसी ने ऐसा (गन्दा) काम नहीं किया।

व इन्नकुम् ल- तअ्तूनर-रिजा-ल……….।।

(कुरान मजीद पारा २० सूरा अंकबूत रूकू ३ आयत २९)

क्या तुम अपने मजे के लिए लौंडों की तरफ भागते रहते हो और मुसाफिरों की लूटमार करते रहते हो और अपनी मजलिसों में नापसन्दीदा काम करते रहते हो।

यह सुनकर उनकी कौम के लोग बोले-अगर मुम सच्चे (पैगम्बर) हो तो हमारे ऊपर कोई अजाब (दुख) लाकर दिखाओ।

का-ल रब्बिन्सुर्नी अ- लल्कौमिल्………….।।

(कुरान मजीद पारा २० सूरा अंकबूत रूकू ३ आयत ३०)

हजरत लूत ने कहा कि-

ऐ मेंरे परवरदिगार! इन फसादी लोगों के मुकाबले में मुझे नुसरत इनायत फरमा।

पारा २० सूरा अनाबूत रूकू ३ आयत २८ व २९ के वर्ण से स्पष्ट है-

बेशुमार औरतों से विवाह करना, रखेलें, बाँदियों से व्यभिचार करना अरब में जायज था।

शराबखोरी वहां पर आम थी। उनकी आदतों को देखकर मुहम्मद साहब ने उनको उपने नये मजहब में लाने के लिए जन्नत अर्थात् स्वर्ग में शराबें, औरतें अर्थात् हूरें वे गिलमें अर्थात् खूबसूरत लोंडों का लालच दिया था जिसके चक्कर में फंसकर सैकड़ों ही अय्याश लोग इस्लाम में शामिल हो गये थे। डकैत व बदमाशों को लूट का लालच देकर इस्लाम में खींचा था उसका वर्णन भी इसी पुस्त में दिया गया है।

गैर मुस्लिमों को कत्ल करने या इस्लाम स्वीकार कराने का हुक्म भी दिया गया था और कत्ल करने वालों को जन्नत मिलने का प्रलोभन दिया गया था। जन्नत अर्थात् स्वर्ग की इस कल्पना का केवल यही रहस्य है।

वास्तव में इस प्रकार की जन्नत अर्थात् स्वर्ग का होना स्म्भव नहीं जहाँ खुदा मनुष्यों को व्यभिचार के अलावा कोई ऊँची शिक्षा न दे सके।

शराब, गोश्त व लोंडे और औरतों की भरमार के अतिरिक्त अरबी खुदा की जन्नत में और कुछ भी नहीं है।

इस कुरानी बहिश्त की कल्पना पर इस्लाम के सुप्रसिद्ध विद्वान ‘‘मौलाना सर सैय्यद अहमद खाँ’’ ने अपनी पुस्तक ‘‘तफसीरूल्कुरान भाग १ पृष्ठ ३३’’ पर लिखा है, जो कुरानी जन्नत की असलियत का पर्दाफाश कर देता है।

देखिए- मौलाना सर सैय्यद अहमद खाँ की राय-

‘‘यह समझना कि स्वर्ग एक बाग के रूप में उत्पन्न किया हुआ है और संगमरमर और मोती के जड़ाऊ महल हैं तहां शरसब्ज (हरे भेर) पेड़ हैं, दूध शराब और शहद की नहरें बह रही हैं हर तरह के मेवा खाने को मौजूद हैं।

साकी व साकनीन (शराब देने वाली) अत्यन्त खूबसूरत चाँदी के गहने पहने कंगन पहने हुए जो हमारे यहाँ घोसिनें पहनती हैं, शराब पिला रही हैं और एक जन्नती (स्वर्ग) निवासी एक हूर के गले में हाथ डाले पड़ा है, एक ने रान (उसकी जांघ) पर सर रखा है, एक छाती से लपिट रहा है, एक ने बख्श (प्राणदायी) अधर होठ का बोसा लिया है, कोई किसी कोने में अय्याशी की हालत में पड़ा हुआ है, वहां कु़छ ऐसा बेहूदापन है जिस पर आश्चर्य होता है।

यदि यही बहिश्त (स्वर्ग) है तो बिना मुबालिगा अर्थात् बिना सोचे समझे हम यह कह सकते हैं कि-

‘‘हमारे खराबात अर्थात् वेश्यालय इससे हजार गुना बेहतर हैं।’’

देखिये जन्नत के बारे में मशहूर शायर गालिब ने भी कहा था कि-

हम खुब जानते हैं, जन्नत की हकीकत, गालिब। दिल के बहलाने को मगर ये ख्याल अच्छा है।।

।। समाप्त।।

कुरान समीक्षा : खुदा क्या ईमानदार परीक्षक था?

खुदा क्या ईमानदार परीक्षक था?

क्या इससे खुदा ईमानदार परीक्षक साबित किया जा सकता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व अल-ल-म-आदम ल अस्मा………..।।

(कुरान मजीद पारा १ सूरा बकर रूकू ४ आयत ३१)

और (हमने) आदमी ‘‘आदम’’को सब (चीजों के) नाम बता दिये। फिर उन चीजों को फरिश्तों के सामने पेश करके कहा कि अगर सच्चे हो तो हमको इन चीजों के नाम बताओ।

कालू सुब्हान-क ला इल्-म……………….।।

(कुरान मजीद पारा १ सूरा बकर रूकू ४ आयत ३२)

फरिश्ते-बोले-तू पाक है जो तूने हमको बता दिया है। उसके सिवाय हमको कुछ नहीं मालूम सचमुच तू ही जानने वाला और पहचानने वाला है।

का-ल या आदमु अम्बिअ्हुम्……….।।

(कुरान मजीद पारा १ सूरा बकर रूकू ४ आयत ३३)

तब खुदा ने हुक्म दिया कि ऐ आदम! तुम फरिश्तों को इनके नाम बता दो, फिर जब आदम ने फरिश्तों को उन (चीजों) के नाम बता दिए तो खुदा ने फरिश्तों से कहा, क्यों हमने तुमसे नहीं कहा था कि हमको सब पोशिदा बातें मालूम हैं।

समीक्षा

जब एक परीक्षक एक विद्यार्थी को पूछें जाने वाले प्रश्नों के उत्तर बता दे और दूसरों को न बतावे। फिर परीक्षा में वे ही प्रश्न सभी से पूछे और उस एक को पास व दूसरों को फेल कर दे तो क्या उसे ‘‘बेईमान परीक्षक’’नहीं कहा जायेगा? इस प्रकार की परीक्षा लेकर खुदा ने आदम को ‘‘पास’’ व फरिश्तों को ‘‘फेल’’कर दिया। क्या यह खुदा की ईमानदारी का सबूत था?

कुरान समीक्षा : खुदा बिना कारण रोजी कम या ज्यादा करता है

खुदा बिना कारण रोजी कम या ज्यादा करता है

इस आयत के होते हुए खुदा को मुन्सिफ अर्थात् न्यायकत्र्ता साबित करें।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अल्लाहु यब्सुतुर्रिज-क लिमंय्यशाउ…………।।

(कुरान मजीद पारा २० सूरा अकंबूत रूकू ६ आयत ६२)

अल्लाह ही अपने बन्दों में से जिसको चाहे रोजी देता है और जिसको चाहे नपी तुली कर देता है और जिससे चाहे छीन भी लेता है बेशक! अल्लाह हर चीज से जानकार है।

व मा अर्सल्ना मिर्रसूलिन् इल्ला…………..।।

(कुरान मजीद पारा १३ सूरा इब्राहीम रूकू १ आयत ४)

खुदा जिसको चाहता है भटकाता है और जिसे चाहता है राह दिखा देता है।

समीक्षा

खुदा का हर काम किसी न किसी आधार पर होता है। बिना कारण किसी को ज्यादा या कम देना, किसी को सजा या इनाम दे तो यह खुदा को बे-इन्साफ साबित करता है। तो जब खुदा ही बेइन्साफी करेगा तो दुनियां में उसकी देखा-देखी बेइन्साफी व धांधलेबाजी क्यों न चलेगी?

कुरान की यह आयत खुदा को दोषी स्वेच्छाचारी अन्यायी घोषित करती है। यदि ऐसा ही कोई मजिस्ट्रेट यहाँ भी करने लगे तो उसे क्या कहा जावेगा? वही खुदा के बारे में भी समझ लेवें। उसका तबादला तुरन्त दूसरी जगह करा दिया जावेगा।

कुरान समीक्षा : खुदा बहुत ऊँचा है

खुदा बहुत ऊँचा है

खुदा दिन में तथा रात में किस दिशा में बहुत ऊंचाई पर रहता है सप्रमाण यह स्पष्ट किया जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

फ-त- आलल्-लाहुल-मालिकुल्………….।।

(कुरान मजीद पारा १८ सूरा मुअ्मिनून रूकू ६ आयत ११६)

जो खुदा सच्चा बादशाह बहुत ऊँचा है। उसके सिवाय कोई पूजित नहीं, वही बड़े तख्त का मालिक है।

समीक्षा

जमीन हर समय घूमती रहती है दोपहर को जो तारे हमारे ऊपर होते हैं वे शाम को हट जाते हैं और रात को वे विपरीत दिशा में होते है। अतः स्पष्ट किया जावे कि ऊपर से तात्पर्य किस दिशा से है खुदा जब ऊपर रहता है तो यहाँ पर तथा नीचे की दिशा में वह नहीं रहता है यह स्पष्ट है, न वह हाजिर नाजिर अर्थात् सर्वव्यापक ही है।

कुरान समीक्षा : जमीन और पहाड़ उठाकर तोड़े जायेंगे

जमीन और पहाड़ उठाकर तोड़े जायेंगे

निराधार आकाश में स्थित जमीन को उठाकर तोड़ना कैसे सम्भव होगा? सप्रमाण यह स्पष्ट किया जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

फयौमइजिंव्व-क-अतिल…………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू १ आयत १४)

और जमीन और पहाड़ दोनों उठा लिये जायेंगे और एक बारगी तोड़-फोड़ कर बराबर कर दिये जायेंगे।

समीक्षा

उठाकर तोड़ना उसका होता है जो किसी पर रखा होता है। जमीन आकाश में निराधर रूप से स्थिर है। उसका उठाना गिराना बताना कम अक्ल की बात है।

कुरान समीक्षा : खुदा ने खालों के डेरे बनाये

खुदा ने खालों के डेरे बनाये

मुर्दा जानवरों की खाल उतारकर खुदा ने खुद ही डेरे-तम्बू आदि की सिलाई करने का चमारों जैसा काम खुशी से किया या किसी मजबूरी में किया था? इसका खुलासा करें।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

वल्लाहु ज-अ-ल लकुम् मिम्…………।।

(कुरान मजीद पारा १४ सूरा नहल रूकू ११ आयत ८०)

और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए घरों को रहने की जगह बनाया और उसी ने चौपायों की खालों से तुम्हारे लिए डेरे बनाये कि तुम अपने कूंच के वक्त अपने ठहरने के वक्त उनको इल्का पाते हो।

समीक्षा

मुर्दा चौपायों को जिस पर से खाल उधेड़ना, उसे साफ करना और फिर उसे सीं कर डेरे बनाना चमारों का काम होता है क्या खुदा को ऐसे काम करने की जरूरत भी पड़ती थी?

सभी को उस पर तरस आवेगा। कुरानी इन्सान के काम भी करता है।

कुरान समीक्षा : खुदा को गूंगे-बहरों से घृणा है

खुदा को गूंगे-बहरों से घृणा है

गूंगे बहरे लोगों से घृणा करने वाला खुदा रहीम अर्थात् रहम करने वाला कैसे है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्-न शर्रद्दवाब्बि…………।।

(कुरान मजीद पारा ९ सूरा अन्फाल रूकू ३ आयत २२)

अल्लाह के नजदीक सब जानवरों में निकृष्ट बहरे गूंगे हैं जो नहीं समझते।

व लौ अलिमल्लाहु फीहिम्………..।।

(कुरान मजीद पारा ९ सूरा अन्फाल रूकू ३ आयत २३)

अगर अल्लाह इनमें भलाई पाता तो इनको सुनने की योग्यता भी जरूर देता लेकिन अगर खुदा इनको सुनने की काबलियत भी दे, तो भी यह लोग मुँह फेर कर उल्टे भागें।

समीक्षा

जिनको जन्म से गूंगा बहरा खुदा ने बनाया है उनको किस खता के बदले में यह दण्ड खुदा ने दिया है, यह खोला जावे? जन्म से पहले खुदा जीवों की काबलियत की जांच कब और कैसे करता है? जबकि कुरान के मत से जन्म पहली बार ही होता है।

किसी को भी अपनी भली बुरी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर वर्तमान जन्म से पूर्व नहीं मिलता है तब स्वयं ही बिना कारण के जीवों को गूंगा बहरा नहीं मिला है। तब स्वयं ही बिना कारण के जीवों को गूंगा बहरा बनाकर अपनी हालत प्रगट करना और फिर उन दीन दुखी गूंगे बहरों से घृणा करना खुदा की शराफत कैसे मानी जा सकती है?

ऐसे दुखी जीवों पर तो सभी को दया व प्रेम करना चाहिए। मनुष्य भी उन पर तरस खाते हैं पर अरबी बेरहम खुदा जो ‘रहमानर्रहीम’ बनने का दम भरता है, उनसे घृणा करता है, जब कि खुदा ही उनको गूंगा बहरा बनाता है?

क्या ऐसे अरबी खुदा को ‘‘रहीम’’ अर्थात् रहम करने वाला साबित किया जा सकता है?