कुरान समीक्षा : इन्सान को बन्दर बना कर नगद सजा दी

इन्सान को बन्दर बना कर नगद सजा दी

जब हर एक के कार्मों का फैसला कयामत के दिन होने का कुरान का दावा है तो खुदा ने अपने ही उसूल को तोड़कर इन्सान को बन्दर और सुअर क्यों बना दिया? जब खुदा खुद ही अपना कानून तोड़ता है तो उसकी किसी बात पर विश्वास कैसे किया जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व लकद् अलिम्तुमुल्लजीनअ्-तदौ………..।।

(कुरान मजीद पारा १ सूरा बकर रूकू ८ आयत ६५)

तुममें से जिन्होंने हफ्ते के दिन (शनिवार) में ज्यादती की तो हमने उनसे कहा ‘‘बन्दर बन जाओ’’ (ताकि जहां जाओ) दुतकारे जाओ।

समीक्षा

इस आयत में खुदा ने दो बातें बताई हैं, एक तो यह कि कर्मों का फल मनुष्य से बन्दर की योनि में जाकर अर्थात् पुनर्जन्म’ के बाद भोगा गया।

दूसरी यह कि कर्मों का फल मिलने के लिए कयामत अर्थात् फैसले के दिन तक इन्तजार करना ही होगा यह कोई जरूरी नहीं है।

भारत निवासियों का यह प्राचीन सिद्धान्त है कि कर्मों का फल यहीं पर तथा मनुष्य एवं पशु पक्षी कीट-पतंग आदि की योनियों में भोगने को जाना पड़ता है। उसके लिए पृथक कोई स्वर्ग नरक आदि स्थान नियत नहीं है।

कुरान ने इस आयत में उसी बात को स्वीकार किया है तथा अन्यत्र दोजख या जन्नत में जाने तथा कयामत के दिन फैसला होने की बात का खण्डन किया है।

काशी शास्त्रार्थ में वेदः- राजेन्द्र जिज्ञासु

काशी शास्त्रार्थ में वेदः-

‘परोपकारी’ के एक पिछले अंक में महर्षि दयानन्द जी द्वारा जर्मनी से वेद संहितायें मँगवाने विषयक आचार्य सोमदेव जी को व इस लेखक को प्राप्त प्रश्नों का उत्तर दिया गया था। कहीं इसी प्रश्न की चर्चा फिर छिड़ी तो उन्हें बताया गया कि सन् 1869 के काशी शास्त्रार्थ में ऋषि जी ने महाराजा से माँग की थी कि शास्त्रार्थ में चारों वेद आदि शास्त्र भी लाये जायें ताकि प्रमाणों का निर्णय हो जाये। इससे प्रमाणित होता है कि वेद संहितायें उस समय भारत में उपलध थीं। पाण्डुलिपियाँ भी पुराने ब्राह्मण घरों में मिलती थीं।
परोपकारी में ही हम बता चुके हैं कि आर्यसमाज स्थापना से बहुत पहले पश्चिमी देशों में पत्र-पत्रिकाओं में छपता रहा कि यह संन्यासी दयानन्द ललकार रहा है, कि लाओ वेद से प्रतिमा पूजन का प्रमाण, परन्तु कोई भी वेद से मूर्तिपूजा का प्रमाण नहीं दे सका। ऋषि यात्राओं में वेद रखते ही थे। हरिद्वार के कुभ मेले में ऋषि यात्राओं में वेद रखते ही थे।

हरिद्वार के कुभ मेले में ऋषि विरोधी पण्डित भी कहीं से वेद ले आये। लाहौर में श्रद्धाराम चारों वेद ले आये। वेद कथा भी उसने की। ऐसे अनेक प्रमाणों से सिद्ध है कि जर्मनी से वेद मँगवाने की बात गढ़न्त है या किसी भावुक हृदय की कल्पना मात्र है। देशभर में ऐसे वेद पाठियों की संया तब सहस्रों तक थी जिन्हें एक-एक दो-दो और कुछ को चारों वेद कण्ठाग्र थे। सेठ प्रताप भाई के आग्रह पर कोई 63-64 वर्ष पूर्व एक बड़े यज्ञ में एक ऐसा वेदापाठी भी आया था, जिसे चारों वेद कण्ठाग्र थे। तब पूज्य स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज भी उस यज्ञ में पधारे थे। आशा है कि पाठक इन तथ्यों का लाभ उठाकर कल्पित कहानियों का निराकरण करेंगे।

श्री कृष्ण चोर या महापुरुष

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कृष्ण जन्माष्टमी आते ही योगिराज श्री कृष्ण की मान मर्यादा को तार तार करने का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है, सोशल मिडिया को महापुरुषों के लिए शोषण मिडिया बनाकर रख दिया है

महापुरुषों की या हिन्दू देवी देवताओं के किसी की भी जयंती आने वाली हो सोशल मिडिया पर ऐसे संदेशों की बहार आ जाती है जिसमें उन पर कई गन्दी और बेहूदा मजाक बनाई होती है

जन्माष्टमी पर कृष्ण को लेकर एक संदेश बहुत चल रहा है

गुरुवार तारीख 25-08-2016 को दुनिया के सबसे
बड़े डॉन का बर्थडे है
कोई ऐसा गुनाह नहीं जो उन्होंने नहीं किया हो….
1. जेल में जन्म
2. माँ-बाप की हेरा-फेरी
3. बचपन में लड़कियों का चक्कर
4. नागदेवता को भी मार दिया
5. कंकर मार कर लडकियों को छेड़ना
6. 16108 लफड़ा
7. दो-दो बीवियां
8. अपने मामू का मर्डर
9. मथुरा से तड़ीपार
फिर भी भाई कभी पकडे नहीं गये
इसलिए तो उसे में भगवान मानता हूँ

इस संदेश की जड़ वैसे तो कुलषित मनोवृत्ति का कोई असामाजिक तत्व है
परन्तु ये सब बाते फैली है विष्णु पुराण आदि की वजह से, जिसमें हमारे पूर्वज योगिराज श्री कृष्ण के जीवन चरित्र को बेहद घटिया बताया है

हम लोग इन अवैदिक झूठे ग्रन्थों को सही मान कर कृष्ण को इस तरह का समझ बैठते है और ऐसे घटिया बेहूदा संदेशों को मजाक समझकर आगे भेजते रहते है

श्री कृष्ण योगिराज थे और ये विचारणीय बात है की कोई योगिराज क्या धर्मपत्नी को छोड़कर अन्य औरतों के साथ सम्बन्ध रखेगा यहाँ यह बात भी झूठी है कि “नरकासुर की कैद से १६१०० स्त्रियाँ छुड़ाई गई थी जिन्हें संभवतः समाज स्वीकार नहीं कर रहा था, उन्हें पत्नी का सम्मानजनक दर्जा दिया, वे भोगी नहीं योगी थे”

श्री कृष्ण का ओहदा उस समय भी उच्च स्तर का था तो यदि ऐसी कोई घटना हुई की १६१०० स्त्रियों को छुड़ाया तो सम्भवतः कृष्ण जब लोगों को समझाते की ये स्त्रियाँ पवित्र है और जो विवाह योग्य है उनसे उचित व्यक्ति विवाह करे और जो छोटी है उन्हें अपनी बेटी बना उनका लालन पालन करें तो आमजन उनकी बात को समझकर उसे स्वीकार उन स्त्रियों को अपनाते

बाकी जो कपडे चुराना लडकियां छेड़ना जैसी असभ्य हरकतों का जो जिक्र है वह वाम मार्गियों द्वारा बनाये गए ग्रन्थ भागवत हरिवंश पुराण आदि की देन है श्री कृष्ण का जीवन चरित्र महाभारत में मिलता है उससे इतर बाद के लोगों और वाममार्गियों ने उनके बारे में झूठी बाते लिखकर हमारे इतिहास को बदलने की चेष्टा की है

परन्तु यह हम सनातनियों का दायित्व है की हम अपने महापुरुषों को जानकर, समझकर, उनके बारे में सत्य जीवन चरित्र पढ़कर गलतफहमियों को मिटाने का प्रयास करे

youtube पर “pandit lekhram vedic mission” के नाम से एक चैनल है

श्री कृष्ण के विवाहों का सच

राधा का सच

श्री कृष्ण की माखन चोरी और वस्त्र चोरी सच क्या

द्रौपदी के विवाह का सच

जहाँ श्री कृष्ण के बारे में जो झूठी भ्रांतियां फैलाई गई है उनके बारे में एनीमेशन विडियो बनाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है उन विडियो को भी शेयर करके आप लोगों को जागरूक कर सकते है

जरूरत है लोगों में श्री कृष्ण के जीवन चरित्र को लेकर जागरूकता फैलाने की इसके लिए हमें स्वयं इनके जीवन चरित्र को पढना पड़ेगा और कुछ वेबसाइट पर उनके जीवन चरित्र को लेकर सत्यता बताई है उसे अधिक से अधिक शेयर करने की

इसके लिए आप
www.aryamantavya.in पर जाकर और अधिक विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते है

कोई अकेले नहीं रहना चाहता

लघु कथा
मेरी पति ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए और एक छोटा सा गार्डन बना लिया।
पिछले दिनों मैं छत पर गई तो ये देख कर हैरान रह गई कि कई गमलों में फूल खिल गए हैं,नींबू के पौधे में दो नींबू भी लटके हुए हैं और दो चार हरीमिर्च भी लटकी हुई नज़रआई।
मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस का जो पौधा गमले में लगाया था,उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रहे थे |
मैं बोली आप इस भारी गमले को क्यों घसीट रहे हो ?
पतिदेव ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं।
मैं हंस पड़ी और कहा अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो। इसे खिसका कर किसी और पौधेके पास कर देने से क्या होगा?”
पति ने मुस्कुराते हुए कहा ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है।इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।
“यह बहुत अजीब सी बात थी। एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती चली गईं।…
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…मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे।हालांकि मां के जाने के बाद सोलह साल तक वो रहे,लेकिन सूखते हुए पौधे की तरह।
…मां के रहते हुए जिस पिता जी को मैंने कभी उदास नहीं देखा था, वो मां के जाने के बाद खामोश से हो गए थे।
मुझे पति के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था ।लग रहा था कि सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते होंगे।
बचपन में मैं एक बार बाज़ार से एक छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाई थी औरउसे शीशे के जार में पानी भर कर रख दिया था।
मछली सारा दिन गुमसुम रही।मैंने उसके लिए खाना भी डाली , लेकिन वो चुपचाप इधर-उधर पानी में अनमना सा घूमती रही।सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ गया, मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिनों तक वो ऐसे ही रही, और एक सुबह मैंने देखा कि वो पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी।
आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली याद आ रही थी।…बचपन में किसी ने मुझे ये नहीं बताया था, अगर मालूम होता तो कम से कम दो, तीन या ढ़ेर सारी मछलियां खरीद लाती और मेरी वो प्यारी मछली यूं तन्हा न मर जाती।
बचपन में माँ से सुनी थी कि लोग मकान बनवाते थे और रौशनी के लिए कमरे में दीपक रखने के लिए दीवार में इसलिए दो मोखे बनवाते थे क्योंकि माँ का कहना था कि बेचारा अकेला मोखा गुमसुम और उदास हो जाता है।
मुझे लगता है कि संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं।
….आदमी हो या पौधा, हर किसी को किसी न किसी के साथ की ज़रुरत होती है।
आप अपने आसपास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना साथ दीजिए, उसे मुरझाने से बचाइए।
अगर आप अकेले हों, तो आप भी किसी का साथ लीजिए, आप खुद को भी मुरझाने से रोकिए।
💬अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है। गमले के पौधे को तो हाथ से खींचकर एक दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के लिए जरुरत होती है रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की।
……अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि ज़िंदगी का रस सूख रहा है,जीवन मुरझा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए।
खुश रहिए और मुस्कुराइए।
….कोई यूं ही किसी और की गलती से आपसे दूर हो गया हो तो उसे अपने करीब लाने की कोशिश कीजिए
…और हो जाइए हरा-भरा।

 

कुरान समीक्षा : खुदा ने गोश्त पकाकर उतारा

खुदा ने गोश्त पकाकर उतारा

खुदा ने गोश्त स्वयं पकाया था या किसी होटल में पकवाया था? खुदा ने अंगूर, रबड़ी, हलवा पूड़ी के थाल क्यों नहीं उतारे थे ? क्या खुदा भी गोश्त खाना पसंद करता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व अल्लल्ना अलैकुमुल्-गमा-म……….।।

(कुरान मजीद पारा १ सूरा बकर रूकू ६ आयत ५७)

मैंने तुम पर बादल की छाया की और तुम पर ‘‘मन्न’’ और ‘‘सलवा’’ भी उतारा और हमने जो तुमको पवित्र भोजन दिये है उनको खाओ।

समीक्षा

खुदा पक्षियों को पकड़ के कत्ल करता था उनके पंख व हड्डी नौचकर साफ करता था और मांस को पकाकर अरबी मुसलमानों को खिलाता था। तो क्या इससे खुदा एक बवर्ची जैसा साबित नहीं होता? गोश्त को पकाकर ‘‘सलवा’’ बनाना भी कोई खुदा का पेशा हो सकता है ? अरबी खुदा भी विचित्र आदमी या होटल का मैंनेजर था।

मैं इनका ऋणी हूँ :- – राजेन्द्र जिज्ञासु

मैं इनका ऋणी हूँ :-

ऋषि के जीवनकाल में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर उसी समय उर्दू में एक पुस्तक छपी थी। तब तक ऋषि जीवन पर बड़े-बड़े ग्रन्थ नहीं छपे थे, जब पं. लेखराम जी ने अपने एक ग्रन्थ में उक्त पुस्तक के आधार पर यह लिखा कि शास्त्रार्थ के आरभ होने से पूर्व मुसलमानों ने ऋषि से कहा था कि हिन्दू व मुसलमान मिलकर ईसाइयों से शास्त्रार्थ करें। ऋषि ने यह सुझाव अस्वीकार कर दिया। जब मैंने ऋषि जीवन पर कार्य किया, इतिहास प्रदूषण पुस्तक में यह घटना दी तब यह प्रमाण भी मेरे ध्यान में था।
मुसलमान लीडरों डॉ. इकबाल, सर सैयद अहमद खाँ, मौलवी सना उल्ला व कादियानी नबी ने पं. लेखराम का सारा साहित्य पढ़ा। पण्डित जी के साहित्य पर कई केस चलाये गये। पाकिस्तान में आज भी पण्डित जी के साहित्य की चर्चा है। किसी ने भी इस घटना को नहीं झुठलाया, परन्तु जब मैंने यह प्रसंग लिखा तो वैदिक पथ हिण्डौन सिटी व दयानन्द सन्देश आदि पत्रों में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर लेख पर लेख छपे। मेरा नाम ले लेकर मेरे कथन को ‘इतिहास प्रदूषण’ बताया गया। मैंने पं. लेखराम की दुहाई दी। देहलवी जी, ठा. अमरसिंह, महाशय चिरञ्जीलाल प्रेम के नाम की दुहाई तक देनी पड़ी। किसी पत्र के सपादक व मालिक ने तो मेरे इतिहास का ध्यान न किया, न इन गुणियों पूज्य पुरुषों की लाज रखी। थोथा चना बाजे घना। मैंने प्राणवीर पं. लेखराम का सन्मान बचाने के लिये उनके ग्रन्थ के उस पृष्ठ की प्रतिछाया वितरित कर दी। पं. लेखराम जी पर कोर्टों के निर्णय आदि पेश कर दिये। लेख देने वाले को तो मुझे कुछ नहीं कहना। इन पत्रों के स्वामियों व सपादकों का मैं आभार मानता हूँ। मैं इनका ऋणी हूँ। यह वही लोग हैं जो नन्हीं वेश्या पर लेख प्रकाशित करके उसे चरित्र की पावनता का प्रमाण-पत्र दे रहे थे। इनका बहुत-बहुत धन्यवाद। इन पत्रों के स्वामी पं. लेखराम जी के ज्ञान की थाह क्या जानें।
विषदाता कह पत्थर मारे। क्या जाने किस्मत के मारे।।
सुधा कलश ले आया। उस जोगी का भेद न पाया।।
हाँ! मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि वैदिक पथ पर श्री ज्वलन्त जी का सपादक के रूप में नाम छपता है। आप ने ऐसी गभीर बात पर चुप्पी साध ली। मुझ से बात तक न की। मेरा उनसे एक नाता है, उस नाते से उनका मौन अखरा और किसी से कोई शिकायत नहीं। जी भर कर मुझे कोई कोसे। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाना चाहिये। कन्हैया, केजरीवाल व राहुल ने सबकी राहें खोल दी हैं।
‘फूँकों से यह चिराग बुझाया न जायेगा

औरतों का खतना: एक दर्दनाक इस्लामिक मान्यता

khatna

मोमिन कहते है कि इस्लाम में नारी को जो सम्मान मिला है वो किसी मत मतान्तर में नहीं मिला,

मत मतान्तर मेने प्रयोग किया है और उपयुक्त भी है परंतु धर्म की परिभाषा से अनभिज्ञ लोग इस्लाम ईसाइयत आदि मत मतान्तरों को भी धर्म कहते है, यह लम्बा विषय है जिस पर कभी भी लिखा जा सकता है परंतु हम आज जिस बात पर चर्चा कर रहे है वो मुद्दा इस सृष्टि के रचनाकार के माध्यम यानी नारी शक्ति को लेकर है तो मोमिनों की भांति विषयांतर ना करके हम विषय को आगे बढ़ाते है

इस्लाम में नारी की स्थिति इस्लामिक नरक में काफिरों के जैसी है
जहाँ पर्दा प्रथा यानी काला बुरका पहनने की पाबंदी चाहे कितनी ही झुलसा देने वाली गर्मी हो पर उस काले हीटर को धारण करना अतिआवश्यक है
फिर बच्चों की पूरी फ़ौज पैदा करना
प्रसव पीड़ा को एक नारी ही समझ सकती है और इस पीड़ा से इस्लाम में बार बार गुजरना पड़ता है

और तलाक के तीन शब्द कहने मात्र से यहाँ नारी की जिंदगी जो पहले से नरक थी और बदतर हो जाती है

विवाह जैसे रिश्ते यहाँ मकड़ी के जाल से भी कच्चे होते है

{हा जिसे बचपन से ऐसे ही संस्कार मिले हो उनके लिए तो यही जन्नत है परन्तु उन्हें भी चाहिए की इस इस्लामिक कुए से बाहर निकलकर सनातन वैदिक धर्म के स्वर्ग से रूबरू हो}

ये ऐसे नर्क वाले तथ्य तो लगभग सभी जानते है परंतु आज आपको एक नए तथ्य से अवगत कराते है

इसे पढ़ने मात्र से आपका रोम रोम खड़ा हो जाएगा तो सोचिये उस नारी की स्थिति क्या होगी जो इसे सहन करती है

इस्लाम में लड़कों का खतना तो हमने सुना ही है

आज आपको लड़कियों के खतने के बारे में बताते है

हवस से भरे इस मजहब में जहाँ कुछ इस्लामिक विद्वान खतने को शरीर की सफाई से जोड़ते है वही कुछ विद्वान इसे सेक्स का समय और आनन्द बढाने का माध्यम बताते है

अब लड़कियों के बारे में विचार किया जाए तो यहाँ कौनसी शारीरिक सफाई उससे होती है समझ से बाहर दिखेगी

हदीस मे लेखक कहता है कि

“लड़कियों का खतना भी वाजिब है और मुस्तहिब यह है कि फजूल खाल कम कम काटे और ज्यादा न काटे”

इस्लामिक विद्वान/नबी अपने आप को अल्लाह/ईश्वर से बढ़कर स्वयं को समझते है जो उसकी बनाई मानवीय कृति में भी छेड़छाड़ कर उसे ईश्वरीय बताते है

लड़कों के लिंग की खाल और लड़कियों के शर्मगाह की चमड़ी क्या अल्लाह/ईश्वर ने बेवजह बनाई है?

क्या अल्लाह अल्पज्ञ है ?

क्या अल्लाह को इतना भी ज्ञान नहीं की वो मनुष्यों में कुछ फ़ालतू अंग या चमड़ी आदि दे रहा है ?

क्या अल्लाह को अब इस्लामिक विद्वानों से सीखने की जरुरत है ?

इन विद्वानों को देखकर इन सब का जवाब “हां” ही लगता है

आगे लेखक लिखता है

“जिसका खतना न हुआ हो जमीन उसके पेशाब से कराहत करती है”

इस हास्यास्पद ब्यान पर में अपने शब्द लिखने की जगह पाठकों पर ये जिम्मेदारी देता हूं कि आप इसे ब्यान पर दो शब्द कहें

आगे लेखक ने हजरत मोहम्मद की बात रखते हुए इस हास्यास्पद ब्यान को पुख्ता करने का प्रयत्न किया है

“रसूल फरमाते है कि जिसका खतना न हुआ हो उसके पेशाब से जमीन चालीस दिन नजिस (परेशान) रहती है”

दूसरी हदीस में फरमाते है की

“जमीन उसके पेशाब से खुदाए तआला के सामने फ़रियाद करती है”

“खतना करने से औरत अपने शौहर की नजर में इज्जत पाती है फिर औरत को क्या चाहिए”

ये एक पंक्ति ही बता देती है की इस्लाम में औरत के लिए केवल एक ही कार्य है वह है उसके पति के सामने अपनी इज्जत बनाये रखने के लिए अपने शरीर तक को पीड़ा पहुचाती रहे

ये कैसा मजहब है और विचार कीजिये वो पति कितना सख्त दिल होगा जो अपनी अर्धांगनी को ऐसी शारीरिक पीड़ा से गुजरने देगा और जो गुजरने दे तो उससे भविष्य में क्या अपेक्षा की जा सकती है ?? यह विचार तो इस्लाम में घुट घुट कर जी रही महिलाओं को करना चाहिए

“औरतों का खतना सात बरस बाद करे”

सात वर्ष का होने के बाद से अत्याचार की शुरुआत हो जाती है

जो इस्लाम पग पग पर कुरान के अनुसार जीने को प्रेरित करता रहा है वही इस्लाम कुरान से इतर भी कर्म करता है उसी का उदाहरण है ये महिलाओं का खतना

दूसरी हदीस में लिखा है की
“पहली औरत जिसकी खतना की गई वह हजरते हाजरा हजरते इस्माइल अलैहिस्सलाम की वालिदा थी की हजरते सारा वालिदा-ए-हजरते इस्हाक अलैहिस्सलाम ने गुस्से से उनकी खतना कर दी थी मगर वह और हजरते हाजरा की खूबी की ज्यादती का बाएस हुई और उसी दिन से औरतों की खतना करने की सुन्नत जारी हुई”

और एक जगह देखिये हजरत क्या कहते है

एक बार लड़कियों के खतना करने वाली महिला “उम्मे-हबीबा” से हजरत ने फरमाया की

“ऐ उम्मे-हबीबा! जो काम तू पहले करती थी अब भी करती है ??

तो उसने कहा “रसुल्लाह अब तक तो करती हूँ मगर अब आप मना फरमाएंगे तो छोड़ दूंगी !

तो हजरत ने कहा

“नहीं छोड़ नहीं ! यह तो हलाल काम है बल्कि आ ! में तुझे समझा दूँ की क्या करना चाहिए, जब तू औरतो का खतना करे तो ज्यादा मत काटा कर बल्कि थोड़ा थोड़ा की उससे चेहरा ज्यादा नुरानी हो जाता है और रंग ज्यादा साफ़, और शौहर की नजर में इज्जत ज्यादा हो जाती है”

ये कोई इस्लामिक अविज्ञान होगा जिसका पल्लू अभी मुसलमान पकडे बैठे है

हिन्दू मत में अंधविश्वास की बाते करने वाले मत सम्प्रदायों को अपने मतों में फैले ऐसे अंधविश्वासों पर भी आँखे और मुह खोलने चाहिए

इस्लाम को औरतों के लिए जन्नत कहने वालों को इस्लाम का वास्तविक चेहरा एक बार स्वयं देख लेना चाहिए ऐसी बात कहना भी बैमानी लगता है

हां यह सही है की औरतों को चाहे वे इस्लाम में है या इस्लाम की और आकर्षित है या किसी मुस्लमान के प्यार में फसी हुई है उन सभी को ये वास्तविकता को देखना चाहिए पढना चाहिए

पाठकगण से आग्रह है की इसे लोगों में फैलाए जागरूकता बढाये और अपनी बहन बेटियों को इस्लाम के इस नरक से रूबरू कराए

इसी नरक को छुपाने को ये मुसलमान झूठे जन्नत के फलसफे सुनाते है

सन्दर्भ : तहजीब उल इस्लाम, अल्लामा मजलिसी

वेदस्रोत से मानवीयमूल्य

वेदस्रोत से मानवीयमूल्य

शिवदेव आर्य

गुरुकुल पौन्धा, देहरादून

मो.—8810005096

 

सुख शान्तिमय जीवन यात्रा तथा परमानन्द के लिए परमपिता परमेश्वर ने सृष्टि के प्रारम्भ में वेदज्ञान की ज्योति प्रदान की, जिसके आलोक में जीवन श्रेय एवं प्रेयमार्ग पर सुचारूतया संचारित होता है। वेद प्रतिपादित जीवनपद्धति ही नैतिकता का सर्वोच्च आदर्श है। इन उच्चतम जीवनमूल्यों का वैदिक वाङ्मय  एवं परवत्र्ती भारतीय साहित्य में मनीषियों एवं कवियों द्वारा अनेक आख्यानों उपाख्यानों द्वारा चारु चित्रण किया गया है। आपस्तम्ब, बौधायन तथा गौतम आदि धर्मसूत्रकारों द्वारा चारों वर्णों एवं आश्रमियों के कर्तव्यों का विधिवत् उल्लेख किया गया है। मनु महाराज, याज्ञवल्क्य, पाराशर आदि स्मृतिकारों ने श्रुतिवाक्यों का अनुसरण कर पुनः हमें उनका स्मरण कराया। महामना विदुर, आचार्य चाणक्य, महाराज भर्तृहरि आदि मनीषियों ने अपने विधिनीतिवचनों से सुख-शान्ति तथा समृद्धि के प्रशस्त मार्ग पर चलने के लिए पुनः पे्ररित किया, किन्तु अविवेकग्रस्त आधुनिक मानवजाति को श्रुतिस्मृति के विधिनीतिवचन मूर्खतापूर्ण एवं हास्यस्पद प्रतीत होते हैं।

सूख का मूल धर्म है, इसके स्थान पर सुख एवं समृद्धि का आधार अधर्म एवं अनीति प्रतीत होते हैं। धर्मविरुद्ध आचरण या अनैतिकता से भले ही कोई व्यक्ति करोड़पति या अरबपति बन जाये, किसी की सम्पत्ति का अपरहण कर ले, बलात् किसी का उपभोग कर लें किन्तु इससे उसे सुख-शान्ति तथा वैभव की प्राप्ति नहीं हो सकती है।

सुख या रसानुभूति का आधार हमारा अन्तःकरण है। मन, बुद्धि आदि का विषय के साथ तद्रूपता या तन्मयता ही सर्वविध सुखों का मूलाधार है। दार्शनिक दृष्टि से कहें तो मन की एकाग्रता ही सांसारिक सुखानुभूतियों का एकमात्र कारण है। जब हम किसी सुन्दररूप का दर्शन, मधुर संगीत का श्रवण अथवा सुमधुर रस का आस्वादन कर रहे होते हैं तब इन विषयों के माध्यम से हमारे मन, बुद्धि आदि अन्तःकरण तदाकार हो चित्तवृत्तियों की शान्तता से सुखानुभव कराते हैं। अपरतः कोई भी मनुष्य आत्मा के गुण, धर्म एवं स्वभाव के विरुद्ध अधर्म, पापाचरण या अनैतिककर्म करता है तो उसके मन में स्वाभाविक भय, लज्जा, संकोच आदि का भाव उत्पन्न हो जाता है।

वेद न केवल प्राचीनतम ग्रन्थ हैं अपितु सब सत्यविद्याओं का आदि स्रोत है। मनुष्य तथा देश के निर्माण की संकल्पना को व्यवहारिक रूप से प्रतिपादन करने में जितना वैदिक साहित्य का स्थान महत्त्वपूर्ण है उतना संसार के किसी भी साहित्य का नहीं है। जीवन के उदात्त मानवीयमूल्यों की अभिव्यक्ति वैदिक साहित्य में  पग-पग पर दृष्टिगोचर होती है। इसीलिए हमें वैदिक साहित्य का स्वाध्याय करना चाहिए।

वेद का ज्ञान समस्त मानव तथा प्राणियों के हित को द्योतित करते हुए आदेश देता है कि मनुष्य को अपने कर्तव्य पालन करने में सदैव उद्यत रहना चाहिए। यह कर्तव्य व्यक्तिगत भी है और समष्टिगत भी। मनुष्य का सोचना, समझना और एक निष्कर्ष तक पहुॅंचना, उसके कर्तव्य का हिस्सा ही है। यह कर्तव्य दिव्यमन से शुचितापूर्ण हो, सामुदायिक हो तो निश्चय ही सर्वहितकारी कार्य बिना किसी समस्या के पूर्ण हो सकते हैं। मनुष्य की सोच-समझकर निर्णय लेने की नीति समाज में संगठन को जन्म देती है। अथर्ववेद में कहा गया है कि सं जानामहै मनसा सं चिकित्वा। मा युष्महि मनसा दैव्येन।। (अथर्व.-७/५२/२) अर्थात् हम मन से उत्तम  ज्ञान प्राप्त करें, ज्ञान प्राप्त करके एक मत से रहें तथा परस्पर विरोध न करते हुए दिव्य मन से युक्त होवें।

वैदिक मान्यता के अनुसार सामाजिक संगठन में इकट्ठे होने की भावना होनी चाहिए, साथ ही एक मन और वाणी से परमात्मा की उपासना करने का भाव भी होना चाहिए, क्योंकि सामुदायिक उपासना में सब मनुष्य एक दूसरे से जुडे़ हुए होते हैं। जैसा कि समेत विश्वे वचसा पतिं दिव दिव एको विभूरतिथिर्जनानाम्। स पूव्र्यो नूतनमाविवासत् तं वर्तनिरनु तं वर्तनिरनु वावृतएकमित्पुरु।। (अथर्व.-७/२१/१)  यह मन्त्र कहता है – परमात्मा दिव्य है, सर्वव्यापक है, पुराने और नये सबमें व्याप्त है। उसके प्रति सब इकट्ठे होकर एक वाणी से उसके यशोगीत गायें।

मानवीय दृष्टिकोण को प्रतिपादित करते हुए वेदों में कहा है कि तुम बस एक दुसरे से प्रेमपूर्वक सत्य, प्रिय एवं हितकर भाषण करते हुए आगे बढ़ो, पृथक्-पृथक् मत होओ, परस्पर विरोध मत करो, सम्मिलित होकर रहो।

असत्य, अधर्म, अनीति के प्रति सबके अन्तःकरण में अश्रद्धा, भय लज्जा, संकोच आदि के भाव   उत्पन्न होते हैं तथा सत्य, धर्म, नैतिकता के प्रति सबके अन्तःकरण में श्रद्धा आदि का भाव  परमेश्वर ने स्वभावतः उत्पन्न किया है। अधर्म या अनैतिक आचरणजन्य इन अश्रद्धा भय आदि से हमारा मन अशान्त हो जाता है। ऐसी मनःस्थिति में सुखानुभव नहीं होता है अपितु नकारात्मकभावों से हमारा मनोमय शरीर सन्तापित होता है, जो कि विविध परीक्षणों से प्रमाणित हो चुका है।

विषमभाव अशान्ति और दुःख का प्रयोजक है तथा समभाव शान्ति और आनन्द का आविर्भावक है। इसका प्रत्यक्ष अनुभव मनुष्यों को अपने लौकिक व्यवहारों में भी होता रहता है। परमार्थ अर्थात् कल्याणमार्ग में तो इसका (विषमभाव) त्याग अनिवार्य है। अतः विषम भाव का त्याग विष के समान करके अमृत के समान समभाव को धारण करने के लिए सब मनुष्यों का संकल्प, निश्चय तथा व्यवहार समभाव वाला होना चाहिए, सब मानवों के विचार समान हों, जिससे प्रत्येक का कल्याण होगा। इसी प्रकार हमारा अन्तःकरण होवे। यह समता की भावना ही  संगठन को दृढ़ बनाती है, समता की भावना मनुष्यमात्र में ही नहीं, अपितु प्राणिमात्र में होनी चाहिए।

जीवन में सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है। अतः वेदों में अनेकत्र अग्निस्वरूप परमेश्वर से सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना करते हुए एक मन्त्र में कहा गया है अग्ने नय सुपथा राये   इस मन्त्र में सर्वप्रकाशक परमात्मा से बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करने की अभ्यर्थना करते हैं। वैदिक जीवनपद्धति में उपासना एवं यज्ञ को जीवन का अभिन्न अंग माना गया है। उपासना एवं यज्ञों के द्वारा आत्माग्नि को परमप्रकाशस्वरूप परमात्मा के समीप पहुॅंचा जा सकता है। जहाॅं प्रकाश ही प्रकाश है, ज्ञान का दिव्य आलोक परमज्योति है, जिसके प्रकाश से जीवन में कोई भी अनैतिक कार्य व पापाचार नहीं हो सकता। ऐसे भाव मनुष्य के अन्तःकरण में जब निहित होंगे तब लोभ, मोह, काम, क्रोध, द्वेष, हिंसा आदि आसुरीय प्रवृत्तियाॅं स्वतः ही समाप्त हो जायेंगी।

इसलिए हमें वेद के स्रोत से आत्मप्रकाश के स्रोत का उदयन करना चाहिए। यही हम सबका परम मार्ग व उद्देश्य है। आओ! वेद के स्रोत से अभ्युदयपथ के पथानुगामी होवें……

 

जमीन के बाद सात आसमान बनाये

जमीन के बाद सात आसमान बनाये

खुदा द्वारा सात आसमान बनाये जाने से पहले इस अनन्त पोल स्थान में क्या भरा था और अब कहां गया? यदि कुछ भरा था तो वह कब से था, क्या वह खुदा की ही तरह अनादि था?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

हुवल्लजी ख-ल-क लकुम् मा………….।।

(कुरान मजीद पारा १ सूरा बकर रूकू ३ आयत २९)

वही है जिसने तुम्हारे लिये धरती की चीजें पैदा की, फिर आकाश की तरफ ध्यान दिया तो सात आसमान हम बार अर्थात् एक के ऊपर एक बना दिये और वह हर चीज से जानकार है।

समीक्षा

यह आयत भी बुद्धि के विरूद्ध है। यदि पहले आकाश नहीं था तो जमीन को कहाँ पर और कैसे बनाया? यदि आकाश को बाद में बनाया गया तो पहले इस शून्य में क्या भरा हुआ था और वह कहाँ गया? यदि परमाणु भरे थे तो उनको इकट्ठा करने पर पहले आकाश उत्पन्न होगा तब बाद में जमीन या अन्य कुछ बनेगा। इस दशा में जमीन बनाने के बाद आकाश बनाने की बात कहना गलत होगा।

आकाश तो अनन्त है, और उस अनन्त के साथ भाग बताना बुद्धि विरूद्ध बात है, यदि हिस्से हो जावेंगे तो वह अनन्त ही रहेगा। वर्तमान विज्ञान आकाश व विश्व को अनन्त मानता है। ‘‘सात आसमानों को हमवार बनाना’’ ऐसा लिखना ही यह साबित करता है कि अरबी खुदा को विद्या नहीं आती थी।

स्तुता मया वरदा वेदमाता-34

स्तुता मया वरदा वेदमाता-34

उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः

ऋग्वेद के दशम मण्डल में एक सौ सैतीसवाँ सूक्त हे। इसमें सात मन्त्र है। इन मन्त्रों के ऋषि के रूप में सप्तर्षयः ऐसा उल्लेख है। इस का अभिप्राय है- प्रत्येक ऋचा का एक-एक ऋषि है। सप्तर्षयः कहने से सात ऋषियों का गहण होता है। वैदिक साहित्य से सप्त ऋषय कहने से पाँच प्राण और अहंकार महत का ग्रहण है, कही सप्त ऋषि, पञ्चप्राण, सूत्रात्मा, धनञ्जय का उल्लेख है। सप्तर्षयः सूर्य की रश्मियों का नान भी है। पाँच इन्द्रियों के साथ मन और विद्या को भी सप्तर्षयः कहा गया। मन्त्र के देवता के रूप में विश्वेदेवाः कहा गया है। यहाँ देवा, विद्वान्सः विद्वान् समझदार, बड़े लोगों का ग्रहण किया जाता है। इन्द्रियों के लिये भी देव शद का उपयोग किया गया है।

इस पूरे सूक्त में मनुष्य जीवन के लिये आवश्यक बातों का उल्लेख किया गया। मनुष्य जड़ चेतन का संयोग है। चेतन आत्मा तो स्वरूप से अनादि है, उसके स्वभाव में, स्वरूप में कोई परिवर्तन कभी नहीं होता। शरीर का भौतिक स्वरूप दो प्रकार का है, एक स्थूल तथा दूसरा सूक्ष्म। जो पदार्थ जितना स्थूल होगा, उसका स्वरूप उतना ही अधिक परिवर्तनशील होगा। दूसरे शबदों में उसका नाश उतना ही शीघ्र होगा। भौतिक पदार्थों में स्थूल शरीर तो बहुत शीघ्र नष्ट हो जाता है, परन्तु मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ, भौतिक होने पर भी सूक्ष्म होने के कारण इनकी अवधी पूरी सृष्टि के काल तक है।

संसार यात्रा स्थल है। यात्रा का लक्ष्य आत्म साक्षात्कार है। इसके साधन स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर है। बाह्यजगत् की यात्रा स्थूल शरीर से होती है और अन्तर्जगत् की यात्रा मन, बुद्धि से या सूक्ष्म शरीर से होती है। स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और जीवात्मा मिलकर एक इकाई बनती है, जिसे शास्त्र में आत्मेन्द्रिय मनोभुक्तं भोक्ते, यादुर्मजीषीणः कहा है। आत्मा इन्द्रिय मन जब संसार से जुड़ते हैं, तब आत्मा की सेता भोक्ता होती है, तब वह संसार का उपभोग करने में समर्थ होता है। केवल चेतन आत्मा संसार का साक्षात्कार नहीं कर सकता है। केवल सूक्ष्म शरीर के साथाी संसार के सपर्क में नहीं आ सकता। संसार की यात्रा स्थूल शरीर से होती है। मुक्ति की यात्रा सूक्ष्म शरीर से होती है। ये दोनों ही साधन स्वस्थ, समर्थ होने चाहिए। इसलिये इस सूक्त में दोनों को स्वस्थ रखने की बात कही गई है।

जब-जब मनुष्य अनुचित विचारों के सपर्क में आता है, तब-तब उसका मानसिक पतन होता है। मानसिक पतन का कारण यदि बुरे विचार हैं, तो मानसिक स्वास्थ्य के लिये अच्छे विचारों का विकल्प चाहिए। वैद्य मन और शरीर दोनों की चिकित्सा करता है। वात, पित, कफ से शरीर चिकित्सा की जाती है। रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण के ज्ञान से मानस चिकित्सा की जाती है। शरीर की चिकित्सा के लिये परमेश्वर की प्रार्थना और औषधियों का युक्तिपूर्वक सेवन करना, स्वस्थ होने का उपाय है, तो मन के स्वास्थ्य के लिये शास्त्र कहता है- ज्ञान विज्ञान धैर्य स्मृति समाधिर्भिः। ज्ञान आत्मा के विषय में जानना, विज्ञान शास्त्र का जानना, धैर्य, धीरता, स्मरण शक्ति, समाधि, एकाग्रता, इन बातों से मन के रोगों की चिकित्सा की जाती है। यह चिकित्सा विद्वान् वैद्य के बिना सभव नहीं होती।

मन और शरीर दोनों भौतिक हैं, इस कारण एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। शरीर में रोग, असमर्थता होने पर मन में निराशा, अनुत्साह होने लगता है। मन में खिन्नता होती है। मानसिक दुःख होता है, तब उसका प्रभाव शरीर पर होने लगता है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिये शरीर, आत्मा दोनों का ध्यान रखना पड़ता है। हम केवल शरीर की चिन्ता करें और मन को स्वस्थ रखने का उपाय न करें, तो मनुष्य के अन्दर राग, द्वेष, ईर्ष्या, काम, क्रोध आदि की भावनाएँ बढ़ने लगती हैं। इसको केवल शरीर के उपायों से नियन्त्रित नहीं किया जा सकता। मनुष्य काम, क्रोध से राग द्वेष में पड़ जाता है, तो उसकी भूख और नींद समाप्त होने लगती है, शरीर रोगी होने लगता है। मानसिक रोगों का मूल कारण स्वार्थ है। मानसिक स्वास्थ्य का प्रमुख उपाय परोपकार है। जो मनुष्य स्वार्थी है, वह कभी भी स्वस्थ नहीं हो सकता, परोपकारी व्यक्ति कभी दुःखी नहीं होता। स्वार्थी व्यक्ति किसी बात को करने के लिये, किसी वस्तु को पाने के लिये अनुचित विचारों की सहायता लेता ही है, उसके न मिलने की आशंका से भय, ईर्ष्या, द्वेष स्वाभाविक रूप से बनते हैं। इसलिये मनुष्य को प्रतिदिन शरीर के स्वास्थ्य के उपायों के साथ-साथ मानसिक उपाय का प्रयास करना चाहिए।

मनुष्य के मन में रजोगुण बढ़ता है, तो मन चंचल और रागद्वेष से युक्त होता है। परोपकार और उपासना से मन में सतोगुण की वृद्धि होती है। देव लोग पतित मनुष्य को भी इन उपायों से उठा देते हैं, मानसिक रूप से स्वस्थ कर देते हैं।