औरतों का खतना: एक दर्दनाक इस्लामिक मान्यता

khatna

मोमिन कहते है कि इस्लाम में नारी को जो सम्मान मिला है वो किसी मत मतान्तर में नहीं मिला,

मत मतान्तर मेने प्रयोग किया है और उपयुक्त भी है परंतु धर्म की परिभाषा से अनभिज्ञ लोग इस्लाम ईसाइयत आदि मत मतान्तरों को भी धर्म कहते है, यह लम्बा विषय है जिस पर कभी भी लिखा जा सकता है परंतु हम आज जिस बात पर चर्चा कर रहे है वो मुद्दा इस सृष्टि के रचनाकार के माध्यम यानी नारी शक्ति को लेकर है तो मोमिनों की भांति विषयांतर ना करके हम विषय को आगे बढ़ाते है

इस्लाम में नारी की स्थिति इस्लामिक नरक में काफिरों के जैसी है
जहाँ पर्दा प्रथा यानी काला बुरका पहनने की पाबंदी चाहे कितनी ही झुलसा देने वाली गर्मी हो पर उस काले हीटर को धारण करना अतिआवश्यक है
फिर बच्चों की पूरी फ़ौज पैदा करना
प्रसव पीड़ा को एक नारी ही समझ सकती है और इस पीड़ा से इस्लाम में बार बार गुजरना पड़ता है

और तलाक के तीन शब्द कहने मात्र से यहाँ नारी की जिंदगी जो पहले से नरक थी और बदतर हो जाती है

विवाह जैसे रिश्ते यहाँ मकड़ी के जाल से भी कच्चे होते है

{हा जिसे बचपन से ऐसे ही संस्कार मिले हो उनके लिए तो यही जन्नत है परन्तु उन्हें भी चाहिए की इस इस्लामिक कुए से बाहर निकलकर सनातन वैदिक धर्म के स्वर्ग से रूबरू हो}

ये ऐसे नर्क वाले तथ्य तो लगभग सभी जानते है परंतु आज आपको एक नए तथ्य से अवगत कराते है

इसे पढ़ने मात्र से आपका रोम रोम खड़ा हो जाएगा तो सोचिये उस नारी की स्थिति क्या होगी जो इसे सहन करती है

इस्लाम में लड़कों का खतना तो हमने सुना ही है

आज आपको लड़कियों के खतने के बारे में बताते है

हवस से भरे इस मजहब में जहाँ कुछ इस्लामिक विद्वान खतने को शरीर की सफाई से जोड़ते है वही कुछ विद्वान इसे सेक्स का समय और आनन्द बढाने का माध्यम बताते है

अब लड़कियों के बारे में विचार किया जाए तो यहाँ कौनसी शारीरिक सफाई उससे होती है समझ से बाहर दिखेगी

हदीस मे लेखक कहता है कि

“लड़कियों का खतना भी वाजिब है और मुस्तहिब यह है कि फजूल खाल कम कम काटे और ज्यादा न काटे”

इस्लामिक विद्वान/नबी अपने आप को अल्लाह/ईश्वर से बढ़कर स्वयं को समझते है जो उसकी बनाई मानवीय कृति में भी छेड़छाड़ कर उसे ईश्वरीय बताते है

लड़कों के लिंग की खाल और लड़कियों के शर्मगाह की चमड़ी क्या अल्लाह/ईश्वर ने बेवजह बनाई है?

क्या अल्लाह अल्पज्ञ है ?

क्या अल्लाह को इतना भी ज्ञान नहीं की वो मनुष्यों में कुछ फ़ालतू अंग या चमड़ी आदि दे रहा है ?

क्या अल्लाह को अब इस्लामिक विद्वानों से सीखने की जरुरत है ?

इन विद्वानों को देखकर इन सब का जवाब “हां” ही लगता है

आगे लेखक लिखता है

“जिसका खतना न हुआ हो जमीन उसके पेशाब से कराहत करती है”

इस हास्यास्पद ब्यान पर में अपने शब्द लिखने की जगह पाठकों पर ये जिम्मेदारी देता हूं कि आप इसे ब्यान पर दो शब्द कहें

आगे लेखक ने हजरत मोहम्मद की बात रखते हुए इस हास्यास्पद ब्यान को पुख्ता करने का प्रयत्न किया है

“रसूल फरमाते है कि जिसका खतना न हुआ हो उसके पेशाब से जमीन चालीस दिन नजिस (परेशान) रहती है”

दूसरी हदीस में फरमाते है की

“जमीन उसके पेशाब से खुदाए तआला के सामने फ़रियाद करती है”

“खतना करने से औरत अपने शौहर की नजर में इज्जत पाती है फिर औरत को क्या चाहिए”

ये एक पंक्ति ही बता देती है की इस्लाम में औरत के लिए केवल एक ही कार्य है वह है उसके पति के सामने अपनी इज्जत बनाये रखने के लिए अपने शरीर तक को पीड़ा पहुचाती रहे

ये कैसा मजहब है और विचार कीजिये वो पति कितना सख्त दिल होगा जो अपनी अर्धांगनी को ऐसी शारीरिक पीड़ा से गुजरने देगा और जो गुजरने दे तो उससे भविष्य में क्या अपेक्षा की जा सकती है ?? यह विचार तो इस्लाम में घुट घुट कर जी रही महिलाओं को करना चाहिए

“औरतों का खतना सात बरस बाद करे”

सात वर्ष का होने के बाद से अत्याचार की शुरुआत हो जाती है

जो इस्लाम पग पग पर कुरान के अनुसार जीने को प्रेरित करता रहा है वही इस्लाम कुरान से इतर भी कर्म करता है उसी का उदाहरण है ये महिलाओं का खतना

दूसरी हदीस में लिखा है की
“पहली औरत जिसकी खतना की गई वह हजरते हाजरा हजरते इस्माइल अलैहिस्सलाम की वालिदा थी की हजरते सारा वालिदा-ए-हजरते इस्हाक अलैहिस्सलाम ने गुस्से से उनकी खतना कर दी थी मगर वह और हजरते हाजरा की खूबी की ज्यादती का बाएस हुई और उसी दिन से औरतों की खतना करने की सुन्नत जारी हुई”

और एक जगह देखिये हजरत क्या कहते है

एक बार लड़कियों के खतना करने वाली महिला “उम्मे-हबीबा” से हजरत ने फरमाया की

“ऐ उम्मे-हबीबा! जो काम तू पहले करती थी अब भी करती है ??

तो उसने कहा “रसुल्लाह अब तक तो करती हूँ मगर अब आप मना फरमाएंगे तो छोड़ दूंगी !

तो हजरत ने कहा

“नहीं छोड़ नहीं ! यह तो हलाल काम है बल्कि आ ! में तुझे समझा दूँ की क्या करना चाहिए, जब तू औरतो का खतना करे तो ज्यादा मत काटा कर बल्कि थोड़ा थोड़ा की उससे चेहरा ज्यादा नुरानी हो जाता है और रंग ज्यादा साफ़, और शौहर की नजर में इज्जत ज्यादा हो जाती है”

ये कोई इस्लामिक अविज्ञान होगा जिसका पल्लू अभी मुसलमान पकडे बैठे है

हिन्दू मत में अंधविश्वास की बाते करने वाले मत सम्प्रदायों को अपने मतों में फैले ऐसे अंधविश्वासों पर भी आँखे और मुह खोलने चाहिए

इस्लाम को औरतों के लिए जन्नत कहने वालों को इस्लाम का वास्तविक चेहरा एक बार स्वयं देख लेना चाहिए ऐसी बात कहना भी बैमानी लगता है

हां यह सही है की औरतों को चाहे वे इस्लाम में है या इस्लाम की और आकर्षित है या किसी मुस्लमान के प्यार में फसी हुई है उन सभी को ये वास्तविकता को देखना चाहिए पढना चाहिए

पाठकगण से आग्रह है की इसे लोगों में फैलाए जागरूकता बढाये और अपनी बहन बेटियों को इस्लाम के इस नरक से रूबरू कराए

इसी नरक को छुपाने को ये मुसलमान झूठे जन्नत के फलसफे सुनाते है

सन्दर्भ : तहजीब उल इस्लाम, अल्लामा मजलिसी

14 thoughts on “औरतों का खतना: एक दर्दनाक इस्लामिक मान्यता”

    1. Namste aacharya ji

      Yah तहजीबुल इस्लाम – अल्लामा मजलिसी के आधार पर है

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    Qureshi Nasir Ahmed
    एक और झुठ आर्य मंतव्य का जब किसी को फोड़ा हो जाए तो ईलाज के लिए वह महीनो का दर्द सह लेता हैं औरत व मर्द का खत्ना इस्लाम मे फर्ज़ नही बल्की विर्य इन्फेक्शन से होनी वाली सेक्सुअन बिमारीयों की संभावना को 90% कम करने का एक तरीका हैं औरतों की शर्मगाह मे योनिद्वार की शुरुआत मे दोनों दिवारों पर एक चमड़ी होती हैं जब मर्द विर्य योनि मे छोड़ता हैं और मासिक धर्म के दौरान खुन के कत्ले इस चमड़ी के कारण बाहर नही निकले और गंदगी से औरतों को सिपलीस ,योनी इन्फेक्शन और ल्युकोरिया व सोम रोग हो जाते हैं इन रोगों से भारतीय महीलाए सबसे ज्यादा ग्रसित होती हैं कारण समय समय पर योनि की सफाई न होना ला परवीही यह रोग औरतों को खोखला तक कर देता हैं इन जैसे कई इन्फेक्शन से औरतों को बचाने के लिए औरतों की खत्ना की जाती अगर ये रोग एक साल भी रह जाए तो औरत कमर दर्द पेडु मे दर्द मासिक धर्म मे दर्द पिंडलियों का दर्द आँखों का दर्द आँखो की रोशनी कम होना,बाँझपन ,थकान ,लगातार बुखार बने रहना, रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी अ नियमीत मासिक धर्म मासिक धर्म मे बहुत खुन जाना मासिक धर्म 20,25 दिनो मे और समस्या बढ़ने पर 10 दिनों तक खुन जाने व पेशाब रुक रुक कर जलन के साथ आने जैसे असहनीय लक्षण का समना करना पड़ सकता हैं
    हदीस मे खत्ना करने का जिक्र सात साल की उम्र मे या बाद मे जरुरी होने का कोई उल्लेख नही यह चमड़ी अतिरिक्त होती हैं और इसमे किसी पके हुए फोड़े से भी कम दर्द होता हैं और तीन दिन ठीक हो जाती लडके की खत्ना से भी कम समय लगता हैं ।आज जबकी उच्च क्वालीटी के एंटीओक्सिडेंट और दर्द निवारक कॉम्बिनेशन के चलते दर्द बस 15 मिनीट ही रहता हैं । फिर भी इन अनाआर्यों के इल्लॉजिकल बेवकुफ़ी भरे झुठ को पढ़ो किसी की भलाई के लिए किए गए ओपरेशन को सिर्फ इसलिए गलत ठहराते हैं क्योंकी वह मुसलमानों ने इजाद किया इन खुले आवारा सांड से मेरा एक सवाल खत्ना से ज्यादा दर्द तो नाक कान छेदने मे होता हैं और ठीक होने मे भी वक्त इनको ज्यादा लगता हैं अगर विरोध दिखाना ही है तो इंसाफ से दिखाओ और नाक कान छेदने वाली हिन्दुओं की प्रथा का भी विरोध को बल्की आर्यसमाजियों पहले अपनी बेटियों के नाक कान छेदना छोड़ो फिर आपत्ति करना तब तक हम तो आपको झुठा खुला सांड जो सही गलत न देखकर किसी के भी खेत मे घुसने वाला और मक्कार ही कहेंगे अब इन आर्य मंतव्य वालों का एहतराज़ देखो
    औरतों का खतना: एक दर्दनाक इस्लामिक मान्यता
    AUGUST 23, 2016 RISHWA ARYA 2 COMMENTS
    मोमिन कहते है कि इस्लाम में नारी को जो सम्मान मिला है वो किसी मत मतान्तर में नहीं मिला,
    मत मतान्तर मेने प्रयोग किया है और उपयुक्त भी है परंतु धर्म की परिभाषा से अनभिज्ञ लोग इस्लाम ईसाइयत आदि मत मतान्तरों को भी धर्म कहते है, यह लम्बा विषय है जिस पर कभी भी लिखा जा सकता है परंतु हम आज जिस बात पर चर्चा कर रहे है वो मुद्दा इस सृष्टि के रचनाकार के माध्यम यानी नारी शक्ति को लेकर है तो मोमिनों की भांति विषयांतर ना करके हम विषय को आगे बढ़ाते है
    इस्लाम में नारी की स्थिति इस्लामिक नरक में काफिरों के जैसी है
    जहाँ पर्दा प्रथा यानी काला बुरका पहनने की पाबंदी चाहे कितनी ही झुलसा देने वाली गर्मी हो पर उस काले हीटर को धारण करना अतिआवश्यक है
    फिर बच्चों की पूरी फ़ौज पैदा करना
    प्रसव पीड़ा को एक नारी ही समझ सकती है और इस पीड़ा से इस्लाम में बार बार गुजरना पड़ता है
    और तलाक के तीन शब्द कहने मात्र से यहाँ नारी की जिंदगी जो पहले से नरक थी और बदतर हो जाती है
    विवाह जैसे रिश्ते यहाँ मकड़ी के जाल से भी कच्चे होते है
    {हा जिसे बचपन से ऐसे ही संस्कार मिले हो उनके लिए तो यही जन्नत है परन्तु उन्हें भी चाहिए की इस इस्लामिक कुए से बाहर निकलकर सनातन वैदिक धर्म के स्वर्ग से रूबरू हो}
    ये ऐसे नर्क वाले तथ्य तो लगभग सभी जानते है परंतु आज आपको एक नए तथ्य से अवगत कराते है
    इसे पढ़ने मात्र से आपका रोम रोम खड़ा हो जाएगा तो सोचिये उस नारी की स्थिति क्या होगी जो इसे सहन करती है
    इस्लाम में लड़कों का खतना तो हमने सुना ही है
    आज आपको लड़कियों के खतने के बारे में बताते है
    हवस से भरे इस मजहब में जहाँ कुछ इस्लामिक विद्वान खतने को शरीर की सफाई से जोड़ते है वही कुछ विद्वान इसे सेक्स का समय और आनन्द बढाने का माध्यम बताते है
    अब लड़कियों के बारे में विचार किया जाए तो यहाँ कौनसी शारीरिक सफाई उससे होती है समझ से बाहर दिखेगी
    हदीस मे लेखक कहता है कि
    “लड़कियों का खतना भी वाजिब है और मुस्तहिब यह है कि फजूल खाल कम कम काटे और ज्यादा न काटे”
    इस्लामिक विद्वान/नबी अपने आप को अल्लाह/ईश्वर से बढ़कर स्वयं को समझते है जो उसकी बनाई मानवीय कृति में भी छेड़छाड़ कर उसे ईश्वरीय बताते है महाशय कौन मुसलमान इसे खुदा की तरफ से फर्ज कहता ज़रा कुरआन हदीस से सबुत तो दो

    1. बंधुवर प्रश्न अर्थात अल्लाह की कृति में दोष है जिसे ठीक करने केलिए उसे उसके बनाये लोगों की जरूरत पड़ती है

  2. Khatna इस्लाम मे कोई जरूरी नही और खतना योनि मे वीर्य संक्रमण को रोकने का एक उपाय है ।जो औरत की अपनी इचछा पर है। आप सिर्फ औरत की खतना का विरोध क्यों करते हो दर्द तो औरत को नक कन छिदवाने पर भी होता है बल्कि मैंने तो खतना की सच्चाई जानने के लिए 40 साल की उमर मे खुद का खतना करवाया और इससे ज्यादा दर्द तो मुझे अपने कान छिदवाने से हुआ था ।मेरे कान तो दो बार पक भी गए थे और 2 महीने तकलीफ उठाई थी जबकि खतना मे 5 दिन मे दर्द कम हो गया और 11 दिन मे तो स्वस्थ हो गयी ।इस खतना से मुझे एक फयदा हुआ मेरी योनि से बदबू आना बंद हो गयी और मासिक धर्म के दौरान मुझे अधिक सुविधा रहने लगी।योनि की पर्दे वाली चमड़ी न होने से उसे साफ करना आसान था ।इस अहसास ने मुझे इस्लाम के करीब कर दिया। — Linda

    1. मोहतरमा नंदिता कुरेसी जी
      औरत की खतना के बारे में कुछ लेख डाले हैं जिसमे यहाँ तक जानकारी दी गयी है इस कारण औरत को सेक्स करने से मन हट जाता है और इसे जबरदस्ती भारत में भी करवाया जाता है इस पर भी मैंने दो लेख डाले हैं उसे पढ़े औरत की खतना से क्या क्या होती है कैसे जबरदस्ती की जाती है | झूठ कब तक बोलोगी मोहतरमा | वैसे आपके कारण कल एक लेख शाम को पोस्ट करूँगा जिसमे औरत खुद खतना को बंद करने की मांग करेंगे उसकी जानकारी दी जायेगी |

  3. ek baate bataye की जबरदस्ती अगर इंसान करता है तो निंदा भी इंसान की होती हैं और मैंने 20 साल मुसलमान औरतों के बीच बिताये है मुझे तो जबर दस्ती होती न दिखाई दी और न इससे सेक्स पर असर पड़ता हैं और न हदीस मे यह कही नही हैं की जबर दस्ती करो सनातनियों ने बहुत कुछ वेद के खिलाफ किया तो क्या आप वेद के खिलाफ पोस्ट डालोगे पूरे भारतीयों के खिलाफ डालोगे य सिर्फ सनातनियों के दरअसल आपकी पोस्ट के शब्द आपकी धार्मिक नफरत दर्शाते हैं

    1. मोहतरमा नंदिता कुरेसी जी
      सबसे पहले महिलाओ का खतना ७ ८ साल की उम्र में कर दी जाती है जबकि मुझे आपके बारे में जितनी जानकारी है उस हिसाब से आपने ३२ ३४ साल के बाद इस्लाम को अपनाया | आपका खतना हुयी ही नहीं | फिर आपको कैसे मालुम चलेगा जिन औरतो का खतना हुयी उसकी दर्द के बारे में | आपका तो बस यही होता है सत्य को असत्य करने की कोशिश करो और असत्य को सत्य करने की कोशिश | आज शाम को हम एक लेख आजतक से डाल रहे हैं जिसमे खुद मुस्लिम महिला ने मुस्लिम खतना को रोकने के लिए pm मोदी के पास ख़त लिखा है इस्लाम में तीन तलाक के ख़तम होने के कारण | आज का महिला खतना का टाइटल है जो ५:३० में पोस्ट होगी ” मुस्लिम महिला का PM को खुला खत, तीन तलाक के बाद महिला का खतना हो BAN “ उसे पढ़ लेना | इसमें मुस्लिम महिला ने ही आवाज़ उठाई है | इस कारण हमें ना सिखाये कितने मुस्लिम महिला पर जुल्मो सितम किये जाते हैं | पहले आज हमारे लेख पढ़े | काश आपके अल्लाह आपको अकल में दखल देने को नसीहत दे | मगर ऐसा नहीं करेगा नहीं तो अल्लाह की इस्लाम खतरे में आ जायेगा

    2. जब दिन रात बच्चे पैदा करना ही आपके मत में काम हो तो किसी को वो जबरदस्ती क्यों लगेगी

      और देखिए बहन जी यह सब जबरदस्ती तब लगेगी जब जिस पर यह अत्याचार हो रहा है वह स्वयं उस कार्य का आदि ना हो

      जैसे शराबी को शराब में बुराई नही लगती

      जैसे नेता को भृष्टाचार नही दिखता

      ठीक उसी तरह

      बाकी आप समझ गई होंगी

  4. महिला खतने का हदीस से प्रमाण दे सकते हैं रिश्वा आर्य जी हमारी जानकारी में वृद्धि होगी क्योंकि पुस्तक का नाम लिख देने से प्रमाण ढूंढ लेना कठिन कार्य है।

    1. irshad khan
      जिन लोगों के लिए अपना प्रमाण पत्र ढूँढना भी एक कठिन कार्य है उनसे क्या अपेक्षा रखे ?

  5. Kya mardo ka khatna ko kur pratha kyu nahi mana jata ye bhi to ek ulonghon hi hai sarkar is par paband rok kyu nahi lagate kitni dard se gujarna padta hai ladka ko kisiki sharm haya ke sath jabardasti karna ye koi bhi dharm izazat nahi deta islam me jabardasti karti hai aur ye na quran se sabit hota hai fir bhi kyu hota hai yesa, log ladko ke khilaf awaz kyu nahi uthate jab dekho choti choti baato pe ladkiyon ke khilaf hi awaz uthate hai kya ye jaruri nahi banta.

  6. Mard ka khatna band honi chahiye isse kuch lav nahi hone wala sirf ulonghon hai mardo ka apni ghar ki aurato ke samne ladka ka izzat jate hai is kur pratha se isko rok lagane chahiye ye ek sexsual harrasment hai ladko ke liye child abuse hai ki uski sharmgah par hath lagana uski anumati ke bina kisiko izzazat nahi hoti kisi ki sharmgah dekhna jaiz nahi phir bhi baap maa ladka ke sath yese kese kar sakte he khatna ka koi zikr nahi quran me phir bhi musalman ispe lage rehte hai sharm karo izzat chupane ke bajaye ulonghon karte ho ladko ko.our body own right hum kya kare kya na kare ye ghar walo ki zaroori nahi ye khud ki baat hai its depend on boys.

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