নমস্কার কি?

একজন বৈদিক তথা সনাতন হিন্দু
ধর্মালম্বী ব্যক্তির অন্যতম
একটি বৈশিষ্ঠ্য হল
কারো সাথে দেখা হলে কড়জোড়ে
তাকে নমস্কার প্রদান করে অভিবাদন
বা সম্মান জানানো।
কিন্তু হিন্দুসমাজ মানেই হল
ধর্মগ্রন্থকে বুড়ো আঙ্গুল
দেখিয়ে নিজে নিজে নতুন নিয়ম
বানানো,ঐক্য আমাদের পছন্দ
নয়,অযাচিত বিভেদেই আমাদের
আসক্তি।আর এই সুত্র ধরেই
অনেকে বিশেষত নির্দিষ্ট কিছু
সংগঠনের সদস্যরা সার্বজনীন
এবং পবিত্র বেদাদি কর্তৃক
অনুমোদিত,সকল প্রাচীন ঋষি-
মহাঋষিসহ আমাদের সকল পূর্বপুরুষদের
ব্যবহৃত সম্বোধন ‘নমস্কার’
না বলে ‘হরে কৃষ্ণ’,’জয় রামজীকি’
ইত্যাদি ব্যবহার করা শুরু করেছেন।শুধু
তাই নয়,তাদের অনেকেই
উল্টো নমস্কার প্রদানকারী সাধারন
হিন্দুদেরকে জিজ্ঞেস
করছেন,”আপনারা কেন নমস্কার দেন?
হরে কৃষ্ণ দেয়া ই ভাল!”
প্রথমেই জেনে নেই নমস্কার
সম্বন্ধে কিছু তথ্য।
বৈদিক শাস্ত্রে ‘মুদ্রা’ হল হাতের
বা দেহের বিশেষ একটি অবস্থান।
নাট্যশাস্ত্রে ২৪ প্রকার মুদ্রার
বর্ননা করা হয়েছে।দুই হাত জোড় করার
এই বিশেষ মুদ্রাটির নাম
হল ‘অঞ্জলী মুদ্রা’।
এটির দুটো ব্যবহার-১)কাউকে দেখলে
অভিবাদন জানাতে যখন এটি ব্যবহার
করা হয় তখন একে বলা হয় নমস্কার।
২)বৈদিক সান্ধ্য উপাসনার শেষ
ধাপে যখন ঈশ্বরকে উদ্দেশ্য করে এই
মুদ্রা করা হয় তখন একে বলে প্রনাম-
আসন।
মূলত শব্দটি হল ‘নমস্তে’ যার
বাংলা রুপ হল নমস্কার। ‘নম’ শব্দের
অর্থ হল নত হওয়া বা শ্রদ্ধা/সম্মান
প্রদর্শন করা যার সাথে ‘তে’ ধাতু যুক্ত
হয় যার অর্থ তোমাকে অর্থাত্
নমস্তে অর্থ হল তোমার প্রতি রইল
শ্রদ্ধা।
ভারতের বিভিন্ন প্রাচীন
মন্দিরে এবং প্রত্নতাত্তিক
নিদর্শনে শ্রীকৃষ্ণ,শ্রীরামচন্দ্র সহ
বিভিন্ন ব্যক্তিত্ত্বের নমস্কাররত
অবস্থায় খচিত নকশা পাওয়া যায়।
আপস্তম্ব ও বৌধায়ন সুত্রেও
অভিবাদনের নিয়ম হিসেবে নমস্কার
দেবার কথা পাওয়া যায়।
পবিত্র বেদে অনেকবার ই
নমস্তে তথা নমস্কার প্রদানের
উল্লেখ পাওয়া যায়।
পবিত্র বেদে অনেকবার ই
নমস্তে তথা নমস্কার প্রদানের
উল্লেখ পাওয়া যায়।
নমস্তে স্ত্বায়তে নমো অস্তু পরায়তে।
নমস্তে রুদ্র তিষ্ঠতে আসীনাযোত
তে নমঃ।।(অথর্ববেদ ১১.২.১৫)
অনুবাদ-নমস্কার তোমায়(কেননা)
আমাদেরকে দেয়া চৈতন্যের
জন্য,হে রুদ্র তোমায় নমস্কার
কেননা তুমি ই এই
বিবেকরুপে আমাদের মাঝে অবস্থান
কর!
আরেকটি মন্ত্র কৃষকদের অভিনন্দন
জানাতে গিয়ে বলছে-
নমস্তে লাঙ্গলেভ্যো নম…
বিরুত্ক্ষেত্রিযনাশন্যপা…(অথর্ববেদ
২.৮.৪)
অর্থাত্ যারা লাঙ্গল ও চাষের
মাধ্যমে জমিতে ফসল ফলান তাদের
জানাই নমস্কার।
অভিবাদনরুপে নমস্কার প্রদানের
উত্কৃষ্ট উদাহরন যজুর্বেদের
নিম্নলিখিত মন্ত্রটি-
নমো জ্যেষ্ঠায় চ কনিষ্ঠায় চ
নমং পূর্বজায় চাপরজায চ
নমো মধ্যমায় চাপগল্ভায় চ
নমো জঘন্যায় চ বুধ্ন্যায় চ।।(যজুর্বেদ
১৬.৩২)
অনুবাদ-নমস্কার
জ্যেষ্ঠদেরকে,নমস্কার
কনিষ্ঠদেরকে,নমস্কার
উচ্চবিত্ত,মধ্যবিত্ত,ধনী-
গরীব,জ্ঞানী,স্বল্পজ্ঞানী সকলকে!
অর্থাত্ এ
থেকে আমরা জানতে পারি যে
নমস্কার এমন ই এক অনন্য অভিবাদন
যাতে ধনী-গরীব,ছোট-বড়,শিক্ষিত-
অশিক্ষিত ভেদ নেই।যে কেউ ই
এটা যে কাউকে দিতে পারে।
আমাদের বৈদিক ঋষিগন সকলেই
নমস্কার দিয়ে অভিবাদন
জানাতেন,শ্রীরাম,শ্রীকৃষ্ণ সকলেই
নমস্তে ব্যবহার করতেন অভিবাদন
জানাতেন।আর তার ই ভক্তরুপ
ব্যক্তিগন আজ হিন্দুসমাজে নিয়ম চালু
করছে নমস্কার না বলে ‘হরে কৃষ্ণ’
ইত্যাদি নিজেদের
বানানো কথা বলতে।অথচ শ্রীকৃষ্ণ
নিজেও তাঁর ভক্তদেরকে নমস্কার বাদ
দিয়ে ‘হরে কৃষ্ণ’ বলতে বলেন নি।ঈশ্বর
অজ্ঞানীদের আলোর পথ দেখাক এই
কামনা থাকল।
তবে শেষ করার আগে একটি চমকপ্রদ
তথ্য দিয়ে শেষ করি।২০০২ সালের জুন
মাসে প্রকাশিত ইন্ট্যারন্যশনাল
ইয়োগা সোসাইটির
ম্যগাজিনে বলা হয়
যে তারা বৈজ্ঞানিক পরীক্ষার
মাধ্যমে দেখেছেন যে নমস্কার
ভঙ্গীতে অর্থাত্ অঞ্জলি মুদ্রায়
প্রানায়াম বা ধ্যন করলে তা হাতের
মাংসপেশীকে শিথিল
করে এবং এটি মাংসপেশীজনিত
ব্যথা নিরাময়ে উপকারী।
ওঁ শান্তি শান্তি শান্তি

हम कब सुधरेंगे ?

हम कब सुधरेंगे ? हम so called सेक्युलर ईराक से सिमटते हुए आज भारत तक सिमित रह गए है धर्म के नाम पर बंटवारा हुआ पाकिस्तान बनाया पर सही मायनों में बंटवारा नहीं हो पाया भारत में आज वो अल्पसंख्यक हक़ के नाम पर फिर से भारत के टुकड़े करने पर आमादा है और हम सेक्युलर आज भी उन्हें *भटके* हुए *भाई* समझ कर अपनी रिस रिस कर आती मौत को बुला रहे है इस्लाम गैर इस्लामिक से दोस्ती कभी नहीं सिखाता यदि सिखाता हो तो बताओ वो आयत इस्लाम कहता है गैर इस्लामिक तुम्हारा दोस्त तभी हो सकता है जब वो इस्लाम समर्थक हो इस्लाम कभी नहीं कहता की तुम दूसरे की मान्यताओं को भी समर्थन करो गजवा ए हिन्द मिशन को सफल बनाने के लिए कौम दिन रात लगी हुई है पर हम सो रहे है किसी ने सही ही कहा है की हिन्दू सोता हुआ शेर है उसे मत जगा वरना वो कही और जाकर सो जाएगा यही तो हुआ ईराक से जगा हुआ सेक्युलर हिन्दू भारत में आकर सो गया पकिस्तान से हिन्दू को जगाया गया वो भी भारत आकर सो गया अब कुछ हिंदुओं को कश्मीर से जगाया गया वो भी इधर उधर जाकर सो गया कब तक सोते रहोगे इस *सेक्युलर नींद* में ? कोई माने या ना माने कश्मीर को भारत से तोड़ दिया गया है यहाँ बात तर्क करने की नहीं है की कैसे तोडा, हम कश्मीर नहीं छीनने देंगे तो ये आपके हाथ नहीं ये तो वहां की आवाम का मुद्दा रह गया है जो की यासीन मल्लिक जैसे टटुओं के कहने पर चलती है यासीन मल्लिल भी केजरीवाल के डीएनए से मिलता जुलता नमूना है जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता है और पाक से भी नहीं मिलने की बात करता है पर यह सार्वभौमिक है की वो अलग होने के बाद(यदि हुआ तो) क्या करेगा उसके बाद इसी तरह की भारत को तोड़ने की नीतियां धीरे धीरे कश्मीर के नीचे दिल्ली में भी प्रारम्भ हो चुकी है जो की केजरीवाल, यासीन मल्लिक और कांग्रेस का मिक्सचर है *कन्हैया* कश्मीर में उठ रहे भारत को तोड़ने की आवाजे अब दिल्ली के jnu में भी सुनाई देने लगी है *भारत तेरे टुकड़े होंगे* जैसे नारे लगाना ये कोई भटका हुआ नहीं अपितु देशद्रोही लगा सकता है, इन्हें भटका हुआ मत कहो, क्योंकि जो ये भटकते तो अपनी अन्य गतिविधियों से तो नहीं भटके दरअसल हो यह रहा है की मुस्लमानों की किताब *क़ुरआन* आतंकवाद की जड़ है, ये जो तर्क दिए जाते है ना की जो आतंकवादी बना है उसने क़ुरआन को सही मायने में समझा ही नहीं ये तर्क वास्तव में खुद के वजूद को बनाये रखने कद लिए ही दिया जाता है ताकि भारत के अंदर उनका और उनकी किताब का विरोध प्रारम्भ नहीं हो जाए पर सच यही है की क़ुरआन पढ़ने के बाद व्यक्ति हिंसक, खूंखार और आपके शब्दों में भड़का हुआ मुसलमान बन जाता है यदि हम इसी तरह सेक्युलर रहे तो एक दिन पाकिस्तान की तरह कश्मीर भी जाएगा फिर हिमाचल फिर दिल्ली और धीरे धीरे आने वाली सदियों में ये इस्लाम नाम का घुन इस देश को खोखला कर देगा और मेरा दावा है की सेक्युलर हिन्दू अंत तक चिर निंद्रा में सोया रहेगा और जब सोने को कही जगह नहीं मिलेगी तो वो भी इस घुन के रूप में खुद को ढाल देगा जो लोग कहते है की भारत के मुसलमान धर्म निरपेक्षता का समर्थन करते है वे तुर्की के मौजूदा हालात पर अपनी नजर दौड़ा ले तुर्की की आर्मी ने तुर्की को धर्म निरपेक्ष बनाने के लिए सता को हथियाने का प्रयास किया परन्तु भटकी हुई इस्लामिक आवाम ने उसे असफल कर दिया ये नमूने है इस्लाम के कॉन्सेप्ट को समझने के लिए ये शान्ति कभी नहीं चाहते इनका मन्तव्य केवल और केवल गजवा ए हिन्द ही रहा है और रहेगा भी भारत का भविष्य भी इसी तुर्की धटना जैसा होगा ऐसा लगता है हम अपनी तरक्की के चक्कर में धर्म और देश की रक्षा को किनारे किये जा रहे है पर मुसलमानों के दिमाग में केवल और केवल गजवा ए हिन्द है समय रहते नहीं सम्भले तो आने वाला समय हमें सम्भलने के लिए मौक़ा भी नहीं देगा भारत हो या कोई भी जगह मुसलमान एक जैसे ही है उनकी किताब एक है, उसका कॉन्सेप्ट भी एक है और उनका लक्ष्य भी है हमें सेक्युलरिज्म का चौला उतारना होगा, आर्थिक असहयोग को बढ़ाना होगा, *कट्टर* होना होगा, देश हित की बाते फेसबुक, whatsapp, ट्विटर पर करने से कुछ नहीं होगा देश के घुनों को पहचानों, औवेसी, जाकिर नाईक जैसे छद्म भेड़ियों को पहचानों और इनके सफाये के लिए कमर बाँध लो यही समय की मांग है हो सकता है, होगा भी की लोग इसे हेट स्पीच कहेंगे नकारात्मकता कहेंगे पर ये उज्जवल भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है हमारा तो इतिहास भी वीरता से भरा रहा है, समय समय पर मुगलों को हमने धूल चटाई है, तो हम आज सोये हुए क्यों है महाराणा प्रताप की जयंती मनाने मात्र से कुछ नहीं होगा हमें तो उनके रास्ते पर चलना होगा समय की मांग रही तो हिंसा को भी अपनाना पड़ेगा पर फिलहाल हमें इस *शान्ति के मजहब* का आर्थिक असहयोग करना होगा पढ़ने में ये बहुत मामूली और असफल सा अभियान लगता होगा या हम ये सोचते होंगे की हम अकेले के सोचने से क्या होगा तो आप म्यांमार के असीन विराथू को पढ़िए बौद्ध मत जो शान्ति और अहिंसा के लिए प्रसिद्ध रहा है उस मत के लोगों को हिंसा को अपनाया और रोहिंग्या मुसलमानों को चुन चुनकर अपने देश से भगाया जबकि वहां पर तो उनका प्रतिशत भी बहुत कम रहा है पर वे समय रहते सम्भले और एक व्यक्ति ने पुरे देश को बचा लिया बस वही आसीन विराथू हमें बनने की आवश्यकता है आर्थिक असहयोग के लिए तैयार होइए वरना अपनी घर की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने के लिए तैयार रहिये पसन्द आपकी है मेरा उद्देश्य स्पष्ट है जो मेने अपने शब्दों में कहा है किसी को यदि ये ग्रुप की *so called शालीनता* के विरुद्ध लगता हो तो मुझे निकाल दे में सेक्युलर नहीं हूँ और मेने अपना आर्थिक असहयोग प्रारम्भ कर दिया है आप में से मेरे साथ कौन है ?
writer: gaurav arya

कासगंज समाज का ऋणी हूँ :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

कासगंज समाज का ऋणी हूँ :-
आर्यसमाज के एक ऐतिहासिक व श्रेष्ठ पत्र ‘आर्य समाचार’ उर्दू मासिक मेरठ का कोई एक अंक शोध की चिन्ता में घुलने वाले किसी व्यक्ति ने कभी देखा नहीं। इसके बिना कोई भी आर्यसमाज के साहित्य व इतिहास से क्या न्याय करेगा? श्रीराम शर्मा से टक्कर लेते समय मैं घूम-घूम कर इसका सबसे महत्त्वपूर्ण अंक कहीं से खोज लाया। कुछ और भी अंक कहीं से मिल गये।

तबसे स्वतः प्रेरणा से इसकी फाईलों की खोज में दूरस्थ नगरों, ग्रामों व कस्बों में गया। कुछ-कुछ सफलता मिलती गई। श्री यशपाल जी, श्री सत्येन्द्र सिंह जी व बुढाना द्वार, आर्य समाज मेरठ के समाज के मन्त्री जी की कृपा व सूझ से कई अंक पाकर मैं तृप्त हो गया। इनका भरपूर लाभ आर्यसमाज को मिल रहा है।

अब कासगंज के ऐतिहासिक समाज ने श्री यशवन्तजी, अनिल आर्य जी, श्री लक्ष्मण जी और राहुलजी के पं. लेखराम वैदिक मिशन से सहयोग कर आर्य समाचार की एक बहुत महत्त्वपूर्ण फाईल सौंपकर चलभाष पर मुझ से बातचीत भी की है। वहाँ के आर्यों ने कहा है, हम आपके ऋणी हैं। आपने हमारे बड़ों की ज्ञान राशि की सुरक्षा करके इसे चिरजीवी बना दिया। इससे हम धन्य-धन्य हो गये। आर्य समाचार एक मासिक ही नहीं था। यह वीरवर लेखराम का वीर योद्धा था।

पं. घासीराम जी की कोटि का आर्य नेता व विचारक इसका सपादक रहा। इसमें महर्षि के अन्तिम एक मास की घटनाओं की प्रामाणिक सामग्री पं. लेखराम जी द्वारा सबको प्राप्त हुई। वह अंक तो फिर प्रभु कृपा से मुझे ही मिला। उसी के दो महत्त्वपूर्ण पृष्ठों को स्कै निंग करवाकर परोपकारिणी सभा को सौंपे हैं।
पं. रामचन्द्र जी देहलवी तथा पं. नरेन्द्र जी के जन्मदिवस पर इन अंकों पर एक विशेष कार्य आरभ हो जायेगा। इसके प्रकाशन की व्यवस्था यही मेधावी युवक करेंगे

কিভাবে সৃষ্টি হয়েছিল এ পৃথিবী?(বেদ ও বিজ্ঞান)

কিভাবে সৃষ্টি হয়েছিল এ পৃথিবী? আদিকাল থেকে এখনো পর্যন্ত এ যেন মানুষের এক অনন্ত জিজ্ঞাসা। সৃষ্টিতত্ত্ব নিয়ে বেদ এর বিখ্যাত নাসাদিয় সুক্ত এবং হিরন্যগর্ভ সুক্ত এর কথা অনেকেই জানেন।ধর্মবিশেষজ্ঞ ও বিজ্ঞানী মহলে বহুল আলোচিত এই দুটি সুক্তের আলোকে সৃষ্টিতত্ত্ব সংক্ষেপে আলোচনা করা হল-
ঋগবেদ ১০/১২৯/১
“নাসাদাসিস নঃ সদাসিত্ তদানীম নাসিদ রজ ন ব্যামাপ্রো যৎ…”
“শুরুতে কোন অস্তিত্ব(সৎ) বা অনস্তিত্ব(অসৎ) ছিলনা।সেখানে ছিলনা কোন বায়ুমন্ডল”
ঋগবেদ ১০/১২৯/৩
“তম অসিৎ তমস… তপসস্তন্মহিনাজা
য়াতৈকম”
“চারদিক ছিল অন্ধকারাচ্ছন্ন।সমস্ত জিনিস একত্রে পুন্জীভুত ছিল।সেখান থেকে প্রচন্ড তাপের সৃষ্টি হল”
একইভাবে
ঋগবেদ ১০/১২১/১
“হিরন্যগর্ভ সামাভরতাগ্রে..”
“প্রথমেই হিরন্যগর্ভ সৃষ্টি হল”
ঋগবেদ ১০/১২১/৭
“আপ হ য়দ বৃহাতিরিবিশ্বমায়ান গর্ভম…”
“সেই হিরন্যগের্ভ ছিল উত্তপ্ত তরল যাতে ছিল সৃষ্টির সমস্ত বীজ”
একই ধরনের কথা বলছে শতপথ ব্রাক্ষ্মন ১১.১.৬.১
“হিরন্যগর্ভানি অপঃ তে সলিলা…”
“প্রথমে হিরন্যগর্ভ সৃষ্টিহল।সেখানে
ছিল উত্তপ্ত গলিত তরল।এটি ছিল মহাশুন্যে ভাসমান।বছরের পরবছর এই অবস্থায় অতিক্রান্ত হয়।”
ঋগবেদ ১০.৭২.২
“তারপর যেখানে বিস্ফোরন ঘটল গলিত পদার্থ থেকে,বিন্দু থেকে যেন সব প্রসারিত হতে শুরু হল”
ঋগবেদ ১০.৭২.৩
“সেই বিস্ফোরিত অংশসমূহ থেকে বিভিন্ন গ্রহ,নক্ষত্র তৈরী হল”
ঋগবেদ ১০.৭২.৪
“তার এক জীবনপ্রদ অংশ থেকে পৃথিবী সৃষ্টি হল”
ঋগবেদ ১০.৭২.৮-৯
“তারপর সৃষ্ট ক্ষেত্রে সাতধাপে সংকোচন-প্রসারন সম্পন্ন হল।তারপর সৃষ্টি হল ভারসাম্যের।”
এই অংশটুকু পরলেই স্পষ্ট বোঝা যায় বেদের সৃষ্টিতত্ত আধুনিক বিজ্ঞানের সাথে কতটুকু সামঞ্জস্যপূর্ণ।সৃষ্টিতত্তের সবচেয়ে গ্রহণযোগ্য মডেল “Lambda-CDM Concordance Model” অনুযায়ী “The evolution of the universe from a very uniform, hot, dense primordial state to its present অর্থাৎ একটি উত্তপ্ত, কেন্দ্রীভূত আদি অবস্থা থেকেই বর্তমান অবস্থার উত্থান।” এছাড়া বেদএ উল্লেখিত বিস্ফোরণ বর্তমান বিশ্বের বহুল আলোচিত বিগ ব্যাংগ তত্তের সাথে প্রায় পুরোপুরি মিলে যায়।
আশ্চর্যের এখানেই শেষ নয়।বেদ এর মতে সৃষ্টির শুরুতেই ওঁম উচ্চারিত হয় আর এর প্রভাবেই হয় বিস্ফোরন ।
বেদান্ত সূত্র(4/22) “অনাবৃতিঃ শব্দহম” অর্থাৎ শব্দের মাধ্যমেই সৃষ্টির শুরু যা মাত্র দুই বছর আগে বিজ্ঞানীরা আবিস্কার করেছেন।
এই শব্দ তরঙ্গকে আধুনিক বিজ্ঞানের ভাষায় Cosmic sound wave বলা হয়। ইউনিভার্সিটি অব এরিজোনা এর এস্ট্রোনমির প্রফেসর ডেনিয়েল জে আইনস্টাইন এবং জন হপকিন্স ইউনিভার্সিটির পদার্থবিদ্যার প্রফেসর চার্লস বার্নেটের সম্মিলিত আর্টিকেল “Cosmic sound wave rules” থেকে কি করে এই শব্দের মাধ্যমে মহাবিশ্ব সৃষ্টি হল তার ব্যখ্যা দেয়া হল। আমরা জানি যে সৃষ্টির শুরুতে মহাবিশ্ব ছিল একটি ঘন,উত্তপ্ত পিন্ড(বেদের ভাষায় হিরন্যগর্ভ বা হিরন্ময় ডিম)।
এই পিন্ডের মধ্যস্থিত পদার্থসমূহকে Cosmologist রা দুই ভাগে ভাগ করেন-Baryonic&Non-baryonic.Baryonic পদার্থ হল ইলেকট্রন,প্রোটন ও নিউট্রন।এইসময় এরা সকলেই ছিল আয়নিত অবস্থায়। প্রসারন শুরু হবার জন্য মূল ভূমিকা ই ছিল এই উত্তপ্ত ও আয়নিত Baryonic পদার্থগুলোর মধ্যস্থিত ইলেকট্রনগুলোর মাধ্যমে নিঃসৃত ফোটন কনাগুলো(Compton scattering of photon from electron)।এই ফোটন কনাগুলো উত্তপ্ত প্লাসমার সাথে Baryon-photon fluid তৈরী করে।কনাসমূহের মধ্যে সংঘর্ষের কারনে এই Fluid এর সংকোচন ঘটে কিন্তু এই সংকোচিত প্লাসমাই ফোটনসমূহকে উচ্চ বেগে বিচ্ছুরিত করে।যে স্থান থেকে ফোটনসমূহ নির্গত হয়ে যায় সেই স্থান ফাঁকা হয়ে যাওয়ায় সেখানে একটি নিম্নচাপ যুক্ত স্থান তৈরী হয় যা তার চারদিকের Fluid দ্বারা চাপ প্রাপ্ত হয়।আর এই চাপই সেই পানিতে একটি শব্দ তরঙ্গের সৃষ্টি করে,শুধু পার্থক্য হল এই যে এখানে কাউকে মুখে শব্দ করে তরঙ্গ তৈরী করতে হয়নি বরং ফোটন নির্গত হয়ে যাওয়ায় সৃষ্ট চাপের কারনেই এই তরঙ্গের তৈরী হয়। আর বৈদিক সৃষ্টিতত্ত্ব মতে এই শব্দ হল ওঁ! তাই বেদের সৃষ্টিতত্ত পড়ে ক্যালিফোর্নিয়া বিশ্ববিদ্যালয় এর Dr. Kevin Hurley বলেছিলেন
“How could Aryan sages have known all this 6000 years ago, when scientists have only
recently discovered this using advanced equipments which didn’t exist that time!”
নোবেল লরেট Count Maurice Maeterlinck বৈদিক সৃষ্টিতত্ত্ব নিয়ে বলেন “A Cosmogony which no European conception has ever surpassed!”

ये प्रेरक प्रसंग, यह किया और यह दिया: राजेन्द्र जिज्ञासु

ये प्रेरक प्रसंग, यह किया और यह दिया :- मार्च 2016 के वेदप्रकाश के अंक में श्री भावेश मेरजा ने मेरी दो पुस्तकों के आधार पर देशहित में स्वराज्य संग्राम में आर्यसमाज के बलिदानियों को शौर्य की 19 घटनायें या बिन्दु दिये हैं।

किन्हीं दो आर्यवीरों ने ऐसी और सामग्री देने का अनुरोध किया है। आज बहुत संक्षेप से आर्यों के साहस शौर्य की पाँच और विलक्षण घटनायें यहाँ दी जाती हैं।
1. देश के स्वराज्य संग्राम में केवल एक संन्यासी को फाँसी दण्ड सुनाया गया। वे थे महाविद्वान् स्वामी अनुभवानन्दजी महाराज। जन आन्दोलन व जन रोष के कारण फाँसी दण्ड कारागार में बदल दिया गया।

2. हैदराबाद राज्य के मुक्ति संग्राम में सबसे पहले निजामशाही ने पं. नरेन्द्र जी को कारागार में डाला अन्य नेता बाद में बन्दी बनाये गये।

3. निजाम राज्य में केवल एक क्रान्तिवीर को मनानूर के कालेपानी में एक विशेष पिंजरे में निर्वासित करके बन्दी बनाया गया।

4. स्वराज्य संग्राम में केवल एक राष्ट्रीय नेता को पिंजरे में गोराशाही ने बन्दी बनाया। वे थे हमारे पूज्य स्वामी श्रद्धानन्द जी।

5. जब वीर भगतसिंह व उनके साथियों ने भूख हड़ताल करके अपनी माँगें रखीं तब उनके समर्थन में एक विराट् सभा की। अध्यक्षता के लिए एक बेजोड़ निर्ाीक सेनानी की देश को आवश्यकता पड़ी। राष्ट्रवासियों की दृष्टि हमारे भीमकाय संन्यासी स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी पर पड़ी।

सरकार उनके उस ऐतिहासिक भाषण से हिल गई। आर्य समाज के पूजनीय नेता के उस अध्यक्षीय भाषण को क्रान्तिघोष मान कर सरकार ने केहरी को (स्वामी जी का पूर्व नाम केहर सिंह-सिंहों का सिंह था) कारागार में डाल दिया। आज देशवासी और आर्यसमाज भी यह इतिहास-गौरव गाथा भूल गया।

पाठक चाहेंगे तो ऐसी और सामग्री अगले अंकों में दी जायेगी। मेरे पश्चात् फि र कोई यह इतिहास बताने, सुनाने व लिखने वाला दिख नहीं रहा। श्री धर्मेन्द्र जिज्ञासु इस कार्य को करने में समर्थ हैं यदि……..

हटावट के नये उदाहरण :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु जी

हटावट के नये उदाहरण :-

‘इतिहास प्रदूषण’ पुस्तक पढ़कर प्रदूषण के नये प्रकार हटावट के और ठोस उदाहरण इस सेवक से माँगे जा रहे हैं। मैं कितने उदाहरण दूँ? अजमेर में मनाई गई सन् 1933 की अर्धशतादी का वृत्तान्त आप पढ़ें। इसके पृष्ठ 74 पर पं. विश्वबंधु शास्त्री के और स्वामी सत्यानन्दजी के विरुद्ध प्रस्तावों को आप पढ़ें। परोपकारिणी सभा के इतिहास से इनको निकाल दिया गया। हटावट का यह पाप किसने किया? उसमें विश्वबंधु की करतूतों का उल्लेख मिलेगा।

पं. भगवद्दत्त जी ने ऋषि के पत्र-व्यवहार में बहुत कुछ लिख दिया है। इस सामग्री का सीधा सबन्ध परोपकारिणी सभा से है। हटावट की तीखी छुरी चलाकर इतिहास प्रदूषित किया गया है। इसका प्रयोजन? पं. भगवद्दत्त जी को अपमानित करने व करवाने वाले को महिमा मण्डित करने का घृणित पाप तो चलो कर दिया, परन्तु पं. भगवद्दत्त जी से दुर्व्यवहार की हटावट का कारण? हटावट वालों का अपना ही मिशन है। ऋषि के मिशन से इन्हें क्या लेना?

প্রশ্ন- আপনারা আর্যরা শুধু বেদ বেদ করেন অথচ গীতাতো বেদকে পুষ্পিত বাক্য বলেছে ও বিবেকবর্জিত লোকেরাই এর দ্বারা আসক্ত হয় বলেছে।

উত্তর-বেদ, বেদান্ত ও উপনিষদ আপনি বা আপনারা মনে হয় চোখেও দেখেন নাই অধ্যায়ন তো দূরের কথা।
আর গীতা থাকলেও পুরোটা অধ্যায়ন করেছেন বলে মনে হয় না অথবা পড়লেও বুঝেছেন বলে মনে হয় না। বেদ বেদান্ত উপনিষদে নাই গেলাম, ইসকনের গীতা ও তাদেরই করা তাৎপর্য থেকেই আপনার কথাটা মিথ্যা প্রমাণ করে দিচ্ছি। দেখুন- . গীতার ২।৪২ও৪৩নং শ্লোকে আপনার কথাটাই বলা আছে, তবে বেদের চরম উদ্দেশ্য যে এটা নয় তা গীতার ১৫।১৫ স্পষ্ট বলা হয়েছে। সেখানে বলা হয়েছে “আমিই (ঈশ্বরই) সমস্ত বেদের জ্ঞাতব্য এবং আমিই বেদান্তকর্তা ও বেদবিৎ” অর্থাৎ বেদের একমাত্র জানার বিষয় ঈশ্বর। . গীতা২।৪৬নং শ্লোকের তাৎপর্যে ইসকনের গীতায় বলা হয়েছে “বেদে যে কর্মকান্ড ও আচার অনুষ্ঠান ও যাগ যজ্ঞের বিধান দেওয়া আছে তার উদ্দেশ্য জীবকে ক্রমশ আত্ম তত্ত্বজ্ঞান লাভ করতে উৎসাহিত করা।” . এখন প্রশ্ন হল যারা আত্ম তত্ত্বজ্ঞানী তারা কি ঐ সব নিত্যকর্ম যথা যজ্ঞ আচার অনুষ্ঠান করবে না? এর উত্তর গীতাতেই বলা আছে দেখুন- . “তুমি শাস্ত্রোক্ত কর্মের অনুষ্ঠান কর .. কর্ম না করে কেউ দেহযাত্রাও নির্বাহ করতে পারেনা। ভক্তরা সমস্ত পাপ থেকে মুক্ত হন, কারণ তারা যজ্ঞাবশিষ্ট অন্নাদি গ্রহণ করেন। আর যারা নিজের জন্যই কেবল অন্ন পাক করে তারা কেবল পাপই ভোজন করে। আর প্রাণীর জীবন ধারণ থেকে শুরু করে বৃষ্টি ও অন্ন উৎপাদন তা সব শাস্ত্রোক্ত (বেদ) কর্ম থেকে যজ্ঞ উৎপন্ন হয়। বেদ থেকেই যজ্ঞাদি কর্ম উৎপন্ন হয়েছে। বেদ অক্ষর বা পরমেশ্বর থেকে প্রকাশিত। যে ব্যক্তি এই জীবনে বেদের দ্বারা প্রতিষ্ঠিত যজ্ঞ অনুষ্ঠান না করে, সে পাপী ব্যক্তির জীবন ধারণ করা বৃথা।” # গীতা ৩।৮-১৬. সংক্ষেপে. . তাহলে কেন গীতায় পূর্বে বেদকে বিবেক বিবেকবর্জিত পুষ্পিত বাক্য বলেছে? বেদকে বিবেক বর্জিত বাক্য বলেনি, বলেছে বিবেকবর্জিত লোকেরা বেদের পুষ্পিত বাক্যগুলোকে না বুঝে সকাম কর্ম করে। প্রকৃত পক্ষে বেদের মোক্ষ উদ্দেশ্য যারা ধর্মের কিছুই করে না ও বুঝে না তাদেরকে সকাম কর্মের মাধ্যমে ধর্মের পথে নিয়ে এসে নিষ্কাম কর্মে নিয়োজিত করার মাধ্যমে মুক্তি সুখ দেওয়া। গীতাতেই তাই বলা আছে- “ফলভোগের কামনা পরিত্যাগ করে যোগস্থ হয়ে স্বধর্ম বিহিত কর্ম আচরণ কর।” গীতা২।৪৮. . বেদ যদি শুধুমাত্র বিবেক বর্জিত বাক্যই হতো তাহলে কেন গীতায় যজ্ঞ নিয়ে নিম্নোক্ত কথাগুলো বলা হল? দেখুন- . “কেউ দ্রব্য দান রূপ যজ্ঞ করেন, কেউ তপস্যারূপ যজ্ঞ, কেউ অষ্টাঙ্গ ও কেউ পরমার্থিক জ্ঞান লাভের জন্য বেদ অধ্যায়নরূপ যজ্ঞ করেন। যজ্ঞের প্রভাবে পাপ থেকে মক্ত হয়ে তারা যজ্ঞাবশিষ্ট অমৃত আস্বাদন করেন এবং সনাতন ব্রহ্মকে লাভ করেন। হে কুরুশ্রেষ্ঠ! যজ্ঞ অনুষ্ঠান না করে কেউই এই জগতে সুখে থাকতে পারে না, তা হলে পরলোকে সুখপ্রাপ্তি কি করে সম্ভব? এই সমস্ত যজ্ঞই বৈদিক শাস্ত্রে অনুমোদিত হয়েছে…সেগুলোকে যথাযথ ভাবে জানার মাধ্যমে তুমি মুক্তি বা মোক্ষ লাভ করতে পারবে। দ্রব্যময় যজ্ঞ থেকে জ্ঞানময় যজ্ঞ শ্রেয়। সমস্ত কর্মই পূর্ণরূপে জ্ঞানরূপ যজ্ঞে গিয়ে শেষ হয়।” #গীতা ৪।২৮-৩৩. . এখন প্রশ্ন হল অগ্নিহোত্রাদি কর্ম কি করা উচিত না অনুচিত? এই ব্যাপারে গীতাতেই বলা আছে যে- “যিনি অগ্নিহোত্রাদি কর্ম ত্যাগ করেছেন এবং দৈহিক চেষ্টাশুন্য তিনি সন্ন্যাসী বা যোগী নয়। যিনি কর্মফলের আসক্তি ত্যাগ করে কর্তব্য কর্ম করেন তিনিই যথার্থ সন্যাসী বা যোগী।” গীতা ৬।১. এখন আমার প্রশ্ন ইসকনের প্রভুরা প্রতিদিন দ্রব্য যজ্ঞ করেন কিনা? . গীতার ১৩।১নং শ্লোকে অর্জুন যখন কৃষ্ণের কাছে ক্ষেত্র ও ক্ষত্রজ্ঞ সম্পর্কে জানতে চেয়েছেন, তখন কৃষ্ণ একটু বলার পরেই বলেছেন- . “ক্ষেত্র ও ক্ষেত্রজ্ঞের জ্ঞান ঋষিগণ কর্তৃক বিবিধ বেদবাক্যের দ্বারা পৃথক পৃথক ভাবে বর্ণিত হয়েছে। বেদান্তসূত্রে তা বিশেষ ভাবে যুক্তিযুক্ত সিদ্ধান্ত সহকারে বর্ণিত হয়েছে।”গীতা ১৩।৫. বেদ বেদান্ত যদি তথাকথিত বিবেক বর্জিত বাক্যই হত তাহলে কেন কৃষ্ণ বেদ বেদান্ত ও বৈদিক শাস্ত্রের কথা বার বার বলছেন? প্রকৃত পক্ষে কৃষ্ণ এটাই বলেছেন যে যারা বেদের মূল ভাব বুঝেনা তারা বিবেক বর্জিত। . বেদ যে প্রকৃত পক্ষে কি তা বুঝার জন্য গীতার ১৫।১-৬নং শ্লোকই যথেষ্ট, দেখুন- . “উর্ধ্বমূল ও অধঃশাখা যুক্ত একটি নিত্য অশ্বথু বৃক্ষের কথা বলা হয়েছে। বৈদিক মন্ত্রগুলো সেই বৃক্ষের পত্রস্বরূপ। যিনি বৃক্ষটিকে যানেন তিনিই বেদজ্ঞ। বৃক্ষের শাখাগুলো অধোভাগ ও উর্ধ্বভাগে বিস্তৃত, উহার বাসনারূপ মূলগুলো মানুষ্যলোকে অধোভাগে বিস্তৃত রয়েছে। সেগুলো মনুষ্যলোকে সকাম কর্মের বন্ধনে আবদ্ধ করে। এই সংসারে স্থিত জীবেরা উর্ধ্ব মূলের স্বরূপ উপলব্দি করতে পারে না। আদি,অন্ত ও স্থিতি যে কোথায় তা কেউ বুঝতে পারে না। তীব্র বৈরাগ্যরূপ শস্ত্রদ্বারা ছেদন করে সত্য বস্তুর অন্বেষণ করা কর্তব্য, যেখানে গমন করলে পুনরায় ফিরে আসতে হয় না। ‘আমি সেই আদি পুরুষের শরণ লইতেছি’ এই বলিয়া তার অন্বেষণ করতে হবে। যারা অভিমান ও মোহশুন্য, সঙ্গদোষ রহিত, নিত্য অনিত্য বিচার পরায়ন,কামনা বাসনা বর্জিত… তারা সেই পরম অব্যয় পদ লাভ করেন।..সেখানে গেলে আর এই জড় জগতে ফিরে আসতে হয় না।” # গীতা১৫ ।১থেকে৬নং সংক্ষেপ। . শাস্ত্র তথা বেদ বিধি যারা পরিত্যাগ করে তাদের কি গতি হবে ও বেদই যে একমাত্র প্রমাণ তা গীতা থেকেই দেখুন- . “যে শাস্ত্র বিধি পরিত্যাগ করে কামাচারে বর্তমান থাকে সে পরম গতি লাভ করতে পারে না। অতএব, কর্তব্য ও অকর্তব্য নির্ধারণে শাস্ত্রই তোমার প্রমাণ। শাস্ত্রে যে কর্ম বিধান বলা হয়েছে, তা জেনে তুমি সেই কর্ম করতে যোগ্য হও।”গীতা ১৬।২৩ও২৪. . “ফলের আশা রহিত ব্যক্তিগণ শাস্ত্রের বিধি অনুসারে অনুষ্ঠান করা কর্তব্য এভাবেই মনকে একাগ্র করে যে যজ্ঞ অনুষ্ঠিত হয় তা সাত্বিক যজ্ঞ। শাস্ত্র বর্জিত যজ্ঞকে তামসিক যজ্ঞ বলে। গীতা ১৭।১১,১৩। . বেদ উক্ত কর্ম কি ত্যাগ করা উচিত?গীতা বলিতেছে- . যজ্ঞ, দান ও তপস্যা ত্যাজ্য নয়,তা অবশ্যই করা কর্তব্য।গীতা ১৮।৫

भीष्म स्वामी जी धीरता, वीरता व मौन :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

भीष्म स्वामी जी धीरता, वीरता व मौन :-
इस बार केवल एक ही प्रेरक प्रसंग दिया जाता है। नरवाना के पुराने समर्पित आर्य समाजी और मेरे विद्यार्थी श्री धर्मपाल तीन-चार वर्ष पहले मुझे गाड़ी पर चढ़ाने स्टेशन पर आये तो वहाँ कहा कि सन् 1960 में कलायत कस्बा में आर्यसमाज के उत्सव में श्री स्वामी भीष्म जी कार्यक्रम में कूदकर गड़बड़ करने वाले साधु से आपने जो टक्कर ली वह प्रसंग पूरा सुनाओ। मैंने कहा, आपको भीष्म जी की उस घटना की जानकारी कहाँ से मिली? उसने कहा, मैं भी तब वहाँ गया था।

संक्षेप से वह घटना ऐसे घटी। कलायत में आर्यसमाज तो था नहीं। आस-पास के ग्रामों से भारी संया में लोग आये। स्वामी भीष्म जी को मन्त्र मुग्ध होकर ग्रामीण श्रोता सुनते थे। वक्ता केवल एक ही था युवा राजेन्द्र जिज्ञासु। स्वामी जी के भजनों व दहाड़ को श्रोता सुन रहे थे। एकदम एक गौरवर्ण युवा लंगडा साधु जिसके वस्त्र रेशमी थे वेदी के पास आया। अपने हाथ में माईक लेकर अनाप-शनाप बोलने लगा। ऋषि के बारे में भद्दे वचन कहे। न जाने स्वामी भीष्म जी ने उसे क्यों कुछ नहीं कहा। उनकी शान्ति देखकर सब दंग थे। दयालु तो थे ही। एक झटका देते तो सूखा सड़ा साधु वहीं गिर जाता।

मुझसे रहा न गया। मैं पीछे से भीड़ चीरकर वेदी पर पहुँचा। उस बाबा से माईक छीना। मुझसे अपने लोक कवि संन्यासी भीष्म स्वामी जी का निरादर न सहा गया। उसकी भद्दी बातों व ऋषि-निन्दा का समुचित उत्तर दिया। वह नीचे उतरा। स्वामी भीष्म जी ने उसे एक भी शद न कहा। उस दिन उनकी सहनशीलता बस देखे ही बनती थी। श्रोता उनकी मीठी तीन सुनने लगे। वह मीठी तान आज भी कानों में गूञ्ज रही हैं :-

तज करके घरबार को, माता-पिता के प्यार को,
करने परोपकार को, वे भस्म रमा कर चल दिये……

वे बाबा अपने अंधविश्वासी, चेले को लेकर अपने डेरे को चल दिया। मैं भी उसे खरी-खरी सुनाता साथ हो लिया। जोश में यह भी चिन्ता थी कि यह मुझ पर वार-प्रहार करवा सक ता था। धर्मपाल जी मेरे पीछे-पीछे वहाँ तक पहुँचे, यह उन्हीं से पता चला। मृतकों में जीवन संचार करने वाले भीष्म जी के दया भाव को तो मैं जानता था, उनकी सहन शक्ति का चमत्कार तो हमने उस दिन कलायत में ही देखा। धर्मपाल जी ने उसकी याद ताजा कर दी।

मैं इनका ऋणी हूँ : प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

मैं इनका ऋणी हूँ :- ऋषि के जीवनकाल में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर उसी समय उर्दू में एक पुस्तक छपी थी। तब तक ऋषि जीवन पर बड़े-बड़े ग्रन्थ नहीं छपे थे, जब पं. लेखराम जी ने अपने एक ग्रन्थ में उक्त पुस्तक के आधार पर यह लिखा कि शास्त्रार्थ के आरभ होने से पूर्व मुसलमानों ने ऋषि से कहा था कि हिन्दू व मुसलमान मिलकर ईसाइयों से शास्त्रार्थ करें। ऋषि ने यह सुझाव अस्वीकार कर दिया। जब मैंने ऋषि जीवन पर कार्य किया, इतिहास प्रदूषण पुस्तक में यह घटना दी तब यह प्रमाण भी मेरे ध्यान में था।
मुसलमान लीडरों डॉ. इकबाल, सर सैयद अहमद खाँ, मौलवी सना उल्ला व कादियानी नबी ने पं. लेखराम का सारा साहित्य पढ़ा। पण्डित जी के साहित्य पर कई केस चलाये गये।

पाकिस्तान में आज भी पण्डित जी के साहित्य की चर्चा है। किसी ने भी इस घटना को नहीं झुठलाया, परन्तु जब मैंने यह प्रसंग लिखा तो वैदिक पथ हिण्डौन सिटी व दयानन्द सन्देश आदि पत्रों में चाँदापुर शास्त्रार्थ पर लेख पर लेख छपे। मेरा नाम ले लेकर मेरे कथन को ‘इतिहास प्रदूषण’ बताया गया। मैंने पं. लेखराम की दुहाई दी। देहलवी जी, ठा. अमरसिंह, महाशय चिरञ्जीलाल प्रेम के नाम की दुहाई तक देनी पड़ी। किसी पत्र के सपादक व मालिक ने तो मेरे इतिहास का ध्यान न किया, न इन गुणियों पूज्य पुरुषों की लाज रखी। थोथा चना बाजे घना।

मैंने प्राणवीर पं. लेखराम का सन्मान बचाने के लिये उनके ग्रन्थ के उस पृष्ठ की प्रतिछाया वितरित कर दी। पं. लेखराम जी पर कोर्टों के निर्णय आदि पेश कर दिये। लेख देने वाले को तो मुझे कुछ नहीं कहना। इन पत्रों के स्वामियों व सपादकों का मैं आभार मानता हूँ।

मैं इनका ऋणी हूँ। यह वही लोग हैं जो नन्हीं वेश्या पर लेख प्रकाशित करके उसे चरित्र की पावनता का प्रमाण-पत्र दे रहे थे। इनका बहुत-बहुत धन्यवाद। इन पत्रों के स्वामी पं. लेखराम जी के ज्ञान की थाह क्या जानें।
विषदाता कह पत्थर मारे। क्या जाने किस्मत के मारे।।
सुधा कलश ले आया। उस जोगी का भेद न पाया।।

हाँ! मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि वैदिक पथ पर श्री ज्वलन्त जी का सपादक के रूप में नाम छपता है। आप ने ऐसी गभीर बात पर चुप्पी साध ली। मुझ से बात तक न की। मेरा उनसे एक नाता है, उस नाते से उनका मौन अखरा और किसी से कोई शिकायत नहीं। जी भर कर मुझे कोई कोसे। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाना चाहिये। कन्हैया, केजरीवाल व राहुल ने सबकी राहें खोल दी हैं।
‘फूँकों से यह चिराग बुझाया न जायेगा’

पं. श्रद्धाराम फिलौरी विषयक गभीर प्रश्न :प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

पं. श्रद्धाराम फिलौरी विषयक गभीर प्रश्न :-

परोपकारी के एक इतिहास प्रेमी ने लखनऊ से प्रश्न पूछा है कि पं. श्रद्धाराम फिलौरी का ऋषि के नाम पत्र पढ़कर हम गद्गद् हैं, परन्तु पं. श्रद्धाराम ने ऋषि के विरुद्ध कोई पुस्तक व ट्रैक्ट तक नहीं लिखा, आपका यह कथन पढ़कर हम दंग रह गये। इसकी पुष्टि में कोई ठोस प्रमाण हमें दीजिये। प्रश्न बहुत गाीर व महत्त्वपूर्ण है। ऋषि की निन्दा करने वालों को मेरे कथन का प्रतिवाद करना चाहिये था। तथापि मेरा निवेदन है कि श्रद्धाराम जी के साहित्य की सूची कोई-सी देखिये। इन सूचियों में श्री कन्हैयालाल जी अलखधारी व श्री नवीन चन्द्रराय के विरुद्ध एक भी पृष्ठ नहीं लिखा गया। किसी को ऐसी कोई सूची न मिले तो फिर हमारे पास आयें। जो इसका प्रमाण माँगेंगे ठोस प्रमाण दे देंगे। सूचियाँ दिखा देंगे। हम हदीसें गढ़ने वाले नहीं हैं। इतिहास प्रदूषण को पाप मानते हैं। जिस विषय का ज्ञान न हो उसमें टाँग नहीं अड़ाते।
– वेद सदन, अबोहर-152116