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मनु नाम की महत्ता : पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय

वैदिक साहित्ष्किो के मार्ग मे इस प्रकार की सहस्त्रो अडचने है जिनका अधिक उल्लेख यहाॅ नही करना

मनु नाम की महता  चाहिए । परन्तु इसमे भी सन्देह नही कि कोई न कोई विद्वान मनु हो गये है जिनहोने आचार (Moral Laws) और व्यवहार (Juris-prudence) के सम्बन्ध मे नियम बनाये जिनका नाम मानव धर्म शास्त्र या मनुस्मृति पड गया । मनु नाम की महता अन्य देशो के प्राचिन इतिहास से भी विदित होती है । सर विलियम जोन्स (Sir W.Jones) लिखते है:-

“We cannot but admit that Minos Mnekes or Mneuis have only Greek terminations but that the crude noun is composed of the same radical letters both in greek and Sanskrit”

अर्थात यूनानी भाषा के माइनोस आदि शब्द संस्कृत के मनु शब्द के ही विकृत रूपा है।

Leaving others to determine whether our Menus ¼or Menu in the nominative½ the son of Brahma was the same personage with minos the son of jupitar and legislator of the Cretsans ¼who also is supposed to be the same with Mneuis spoken of as the first Law giver receiving his laws from thw Egyp-tian deity Hermes and Menes the first king of the Egyptians ½ remarks :-

“ Dara Shiloha was persuaded and not without sound reason that the first Manu of the Brahmanas could be no other person than the progenitor of makind to whom jews, Christians and mussulmans unite in giving the name of adam “ ¼Quoted by B.Guru Rajah Rao in his Ancient Hindu Judicature½

बी0 गुरू राजाराउ ने अपनी पुस्तक । Ancient Hindu Judicature मे लिखा है कि यदि हम यह अनुसधान दूसरो के लिए छोड दे कि ब्रहा का पुत्र मनु वही है जिसे कोटवालों का धर्म शास्त्र रचियता माइनौस ज्यूपीटर का पुत्र कहा जाता हे (ओर जिसके विषय मे कहा जाता है कि यह वहर म्नयूयस था जिसने मिश्र देश के देवता हमीज से धर्मशास्त्र सीखा और जो मिक्ष देश के देवता हर्मीज से धर्मशास्त्र सीखा और जो मिश्र देश का पहला राजा बना) तो भी जोन्स के इस उद्धरण पर अवश्य ध्यान देना चाहिए कि दाराशिकोह का यह विचार कुछ अनुचित न था कि ब्राह्मणो का आदि मनु वही है जो मनुष्य जाति का पूर्वज समझा जाता है और जिसको यहूदि ईसाई और मुसलमान आदम के नाम से पुकारते है।

इन उद्धरणो में कहाॅ मे कहाॅ तक सचाई है इसमे भिन्न भिन्न मत हो सकते है । परन्तु क्या यह आश्चर्य की बात नही है कि प्राचीन जितने कानून बनाने वाले हुए उनके सब युगो के नाम मनु शब्द से इतना सादृश्य रखते थे । इसके हमारी समक्ष मे दो कारण हो सकते । एक तो यह कि मनु के उपदेश ही दूसरे देशो में किसी न किसी साधन द्वारा और किसी न किसी रूप में गये हो और संस्कृत नाम मनु का ही उन भाषाओ मे विकृत रूपा हो गया हो । दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि मनु का नाम कानून बनाने के लिए इतना प्रसिद्ध हो गया हो कि वह भारतवर्ष मे व्यक्तिवाचक और अन्य देशो मे जातिवाचक बन गया हो अर्थात अन्य देशीय कानून बनाने वालो ने भी अपने को इसी प्रसिद्ध नाम से सम्बोधित करने मे गोरव समक्षा हो । जैसे शेक्सपियर कहलवाना गौरव समझे । दोनो दशाओं मे मनु की प्रसिद्धि स्वीकार करनी पडती है ।

जो भी संसार में है, उसका नाम व काम परमेश्वर द्वारा नियम किया हुआ है। कहा जाता है कि मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है, इसका हनन उपरोक्त कथन में होता है।

जिज्ञासा- 

  1. इसलिए जो भी संसार में है, उसका नाम व काम परमेश्वर द्वारा नियम किया हुआ है।

कहा जाता है कि मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है, इसका हनन उपरोक्त कथन में होता है।

अमरसिंह आर्य, सी-12, महेश नगर, जयपुर-15

समाधान-

(ग) जिज्ञासा-समाधान 103 में जो समाधान ‘क’ के अन्त में लिखा ‘‘इसलिए जो भी संसार में है, उसका नाम व काम परमेश्वर द्वारा नियम किया हुआ है।’’ इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि मनुष्य के कर्म करने की स्वतन्त्रता का हनन हो रहा है। वहाँ मनु का प्रमाण देते हुए कहा था-

सवेषां तु नामानि कर्माणि च पृथक्-पृथक्।

वेदशदेय एवाऽऽदौ पृथक्संस्थाश्च निर्ममे।।

-मनु. 1.21

परमेश्वर ने संसार के सब पदार्थों के नाम व काम निर्धारित कर रखे हैं। सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, गो, अश्व, मनुष्यादि, इनके भिन्न-भिन्न कर्म, जैसे-सूर्य का गर्मी व प्रकाश देना, चन्द्रमा का शीतलता देना, गाय का दूध देना, अश्व का यान के रूप में आदि। गाय-अश्व आदि को हम विद्यालंकार, वेदालंकार करवाना चाहें तो वह होगा ही नहीं, क्योंकि यह काम इनका है ही नहीं। ऐसे ही मनुष्यों के कर्म विद्या अध्ययन करना, अगले नये शुा अथवा अशुभ कर्म करना मनुष्य की स्वतन्त्रता है।

यह स्वतन्त्रता परमेश्वर की ओर से निर्धारित है। इस निर्धारण के आधार पर मनुष्य स्वतन्त्र होकर शुभ अथवा अशुभ कर्म कर सकता है। इस रूप में जिज्ञासा-समाधान 103 के तात्पर्य को समझना चाहिए। अलमिति।

कुरान समीक्षा : जमीन और पहाड़ उठाकर तोड़े जायेंगे

जमीन और पहाड़ उठाकर तोड़े जायेंगे

निराधार आकाश में स्थित जमीन को उठाकर तोड़ना कैसे सम्भव होगा? सप्रमाण यह स्पष्ट किया जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

फयौमइजिंव्व-क-अतिल…………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू १ आयत १४)

और जमीन और पहाड़ दोनों उठा लिये जायेंगे और एक बारगी तोड़-फोड़ कर बराबर कर दिये जायेंगे।

समीक्षा

उठाकर तोड़ना उसका होता है जो किसी पर रखा होता है। जमीन आकाश में निराधर रूप से स्थिर है। उसका उठाना गिराना बताना कम अक्ल की बात है।

मुक्ति-महर्षि ने कर्म, उपासना, ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया, जबकि कपिलमुनि ने ज्ञान से मुक्ति मानी है तथा गीता में कर्म और ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया है। कृपया स्पष्ट करें कि ज्ञान मुक्ति का मार्ग है या कर्म-ज्ञान दोनों।

जिज्ञासा- 

  1. इसी अंक पृष्ठ 33 पर जिज्ञासा-समाधान-103 पर मुक्तिमहर्षि ने कर्म, उपासना, ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया, जबकि कपिलमुनि ने ज्ञान से मुक्ति मानी है तथा गीता में कर्म और ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया है। कृपया स्पष्ट करें कि ज्ञान मुक्ति का मार्ग है या कर्म-ज्ञान दोनों।

समाधान-

(ख)मुक्ति दुःखों से छूटने का नाम है। दुःख से पूर्णतः छूटना यथार्थ ज्ञान से ही हो सकता है। कर्म, उपासना से दुःख को दबाया जा सकता है, कम किया जा सकता है, किन्तु सर्वथा नहीं हटाया जा सकता, दुःख को सर्वथा तो ज्ञान से ही हटाया जा सकता है। जिस दिन ज्ञान से दुःख को पूर्णरूप से दूर कर दिया जायेगा, उस दिन मुक्ति की भी अनुभूति होगी।

योगदर्शन के अन्दर दुःख का हेतु अविद्या कहा है- ‘तस्यहेतुरविद्या’

दुःख का कारण अन्य कुछ नहीं कहा। जब दुःख का कारण अविद्या है तो अर्थापत्ति से दुःख के हटने का नियत कारण विद्या ही होगा। इसी बात को महर्षि कपिल ने सांखयदर्शन में कहा है ‘ज्ञानान्मुक्तिः’ज्ञान से मुक्ति होती है, इसी बात को अन्य शास्त्र भी पुष्ट करते हैं।

ज्ञान से ही मुक्ति होती है यह बात भक्ति-मार्गी तथा कर्ममार्गियों को नहीं पचती। उनको लगता है कि यह बात तो विपरीत है। कुछ लोग उपासना को ही प्रधान बनाकर चलते हैं। उनको उपासना ही मुक्ति का मार्ग दिखता है, किन्तु वे यह नहीं जानते कि बिना ज्ञान के परिष्कृत हुए उपासना भी ठीक-ठीक नहीं होने वाली, उपासना का स्तर नहीं बढ़ने वाला। जब तक व्यक्ति के सिद्धान्त परिष्कृत नहीं होंगे, तब तक वह कैसे ठीक-ठीक उपासना कर सकता है। हाँ, अपने आधे-अधूरे ज्ञान के बल पर उपासना करता है और उसी में सन्तुष्ट रहने लगता है तो वह कैसे आगे प्रगति कर सकता है। यदि व्यक्ति ठीक-ठीक उपासना करता है तो उसको ज्ञान के महत्त्व का भी पता लगेगा और वह ज्ञान प्राप्ति के लिए अधिक प्रयत्नशील रहेगा।

ज्ञान का तात्पर्य यहाँ केवल शाबदिक ज्ञान से नहीं है। अपितु यथार्थ ज्ञान, तात्विक ज्ञान से है। जब यथार्थ ज्ञान होता है, तब हमारे अन्दर के क्लेश परेश्वर के सहयोग से क्षीण होने लगते हैं। क्षीण होते-होते सर्वथा नष्ट हो जाते हैं, दग्धबीजभाव को प्राप्त हो जाते हैं, ऐसी अवस्था में मुक्ति होती है।

जैसे भक्तिमार्गी ज्ञान की आवश्यकता नहीं समझते, ऐसे ही कर्ममार्गी भी ज्ञान को आवश्यक नहीं मानते। उनका कथन होता है कि कर्म करते रहो, मुक्ति अपने आप हो जायेगी। उनका यह कहना अधूरी जानकारी का द्योतक है। यथार्थ ज्ञान के बिना शुद्ध-कर्म कैसे होगा? इसलिए ऋषियों की मान्यता के अनुसार ज्ञान से ही मुक्ति होती है। इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं कि कर्म और उपासना को छोड़ देना चाहिए। शुद्ध कर्म-उपासना हमारे अन्तःकरण को पवित्र करते हैं। पवित्र अन्तःकरण ज्ञान को ग्रहण करने में अधिक समर्थ होता जाता है। जैसे-जैसे यथार्थ ज्ञान होता जायेगा, वैसे-वैसे साधक मुक्ति की ओर अग्रसर होता चला जायेगा।

गीता के हवाले से जो बात आपने कही है, तो गीता में भी यत्र-तत्र ज्ञान को ही महत्त्व दिया है। कुछ प्रमाण गीता से ही-

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।

तत्स्वं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।    – 4.38

यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।

ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरूते तथा।। – 4.37

तस्मादज्ञानसंभूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः।

छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत।।     – 4.42

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एक भक्तिर्विशिष्यते।

प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।   – 7.27

गीता के इन सभी श्लोकों में ज्ञान को श्रेष्ठ कहा है, ज्ञान की महिमा कही है। इसलिए शास्त्र के मत में तो ज्ञान से ही मुक्ति होती है। इसमें न तो कोई ज्ञान के साथ लगकर मुक्ति देने वाला है और न ही ज्ञान का कोई विकल्प है। अस्तु

उत्तराखंड की मुस्लिम महिला का बड़ा बयान- ‘ट्रिपल तलाक से बेहतर है हम हिंदू बन जाए’

उत्तराखंड की मुस्लिम महिला का बड़ा बयान- ‘ट्रिपल तलाक से बेहतर है हम हिंदू बन जाए’

उत्तराखंड की मुस्लिम महिला का बड़ा बयान- 'ट्रिपल तलाक से बेहतर है हम हिंदू बन जाए'

 

नई दिल्ली: उत्तराखंड में किच्छा की एक महिला ने ट्रिपल तलाक के खिलाफ बडा बयान दिया है. पीड़ित महिला की बहन ने कहा है कि हम अपना धर्म बदल लेंगे. ट्रिपल तलाक से बेहतर है कि हम हिंदू बन जाए.

वहां कोई भी तीन बार बोलकर तलाक तो नहीं देगा

महिला ने कहा कि वहां कोई भी तीन बार बोलकर तलाक तो नहीं देगा. महिला ने ट्रिपल तलाक को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी सराहना की और कहा कि ट्रिपल तलाक के खिलाफ मोदी और योगी ने आवाज उठाकर अच्छा किया है. मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के लिए अच्छा काम किया है. गौर हो कि सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ 11 मई से तीन तलाक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी.

तीन तलाक के खिलाफ योगी ने भी उठाई है आवाज

तीन तलाक’ के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आवाज उठाने से मुसलमानों की इस प्रथा पर चल रही बहस के तूल पकड़ने के बीच चंद दिन पहले  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस मुद्दे पर जो चुप हैं, वे इसका पालन करने वालों की तरह ही दोषी हैं. आदित्यनाथ ने तीन तलाक के ज्वलंत मुद्दे पर राजनीतिक वर्ग की चुप्पी पर सवाल उठाया. तीन तलाक पर नेताओं की चुप्पी और महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण के बीच तुलना करते हुए योगी ने लखनउ में कहा कि राजनीतिक वर्ग में चुप्पी साधे हुए मौजूद लोगों को अपराध और उसमें साथ देने वालों के साथ कठघरे में खड़ा किए जाने की जरूरत है.

पीएम योगी ने भी तीन तलाक खत्म करने की वकालत की है

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने तीन तलाक का विरोध करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि मुसलमान महिलाओं का शोषण खत्म होना चाहिए और उन्हें न्याय मिलना चाहिए. हालांकि, मोदी ने इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय में किसी तरह का ‘टकराव’ पैदा करने की कोशिश के खिलाफ कहा था और इसे सामाजिक जागरूकता के जरिए हल किए जाने का सुझाव दिया था.

source: http://zeenews.india.com/hindi/india/up-uttarakhand/muslim-woman-hailed-pm-modi-and-cm-yogi-on-triple-talaq-issue/324769

सोनू निगम का सिर मुंडवाने का ‘फतवा’, गायक ने पूछा- क्या ये धार्मिक गुंडागर्दी नहीं ?

कुरान समीक्षा : खुदा ने खालों के डेरे बनाये

खुदा ने खालों के डेरे बनाये

मुर्दा जानवरों की खाल उतारकर खुदा ने खुद ही डेरे-तम्बू आदि की सिलाई करने का चमारों जैसा काम खुशी से किया या किसी मजबूरी में किया था? इसका खुलासा करें।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

वल्लाहु ज-अ-ल लकुम् मिम्…………।।

(कुरान मजीद पारा १४ सूरा नहल रूकू ११ आयत ८०)

और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए घरों को रहने की जगह बनाया और उसी ने चौपायों की खालों से तुम्हारे लिए डेरे बनाये कि तुम अपने कूंच के वक्त अपने ठहरने के वक्त उनको इल्का पाते हो।

समीक्षा

मुर्दा चौपायों को जिस पर से खाल उधेड़ना, उसे साफ करना और फिर उसे सीं कर डेरे बनाना चमारों का काम होता है क्या खुदा को ऐसे काम करने की जरूरत भी पड़ती थी?

सभी को उस पर तरस आवेगा। कुरानी इन्सान के काम भी करता है।

वेद में मनु शब्द : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय

मनु शब्द भिन्न 2 विभकित्यो मे ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद तथा अर्थवर्वेद में कई स्थलो पर प्रयुक्त  हुआ

वेद मे मनु शब्द है  और इसलिए कई विद्वानो का ऐसा मत है  कि जिस मनु का वेदो में उल्लेख है उसी के उपदेश मनुस्मृति मे वणित है । यह मत प्राचिन वेदाचाययो के कथनो से अनुकुलता नही रखता । इसमे सन्देह नही कि मनुस्मृति के लेखको का वेदो से समंबध जोड देने मे मनुस्मृति के गौरव में आधिक्य हो जाता है । इसी गोरव को दृष्टि में रखकर कई विद्वानो ने मनुस्मृति के लेखक के विषय में वेदो के पन्ने पलटने का यत्र किया उदाहरण के लिए ऋग्वेद 1।80।16अ1।114।2 तथा 2।33। 13 मे मनु और पिता दो शब्द साथ साथ आये है। इससे लोगो ने यह अनुमान किया है कि यह वही प्रजापति मनु है जिनहोने सृष्टि को उत्पन किया तथा मनुस्मृति की नीव डाली । परन्तु यह मत उन लोगो को स्वीकार नही हो सकता जो वेदो को ईश्वर जो वेदों को ईश्वर की और मानते है और जिनको वेदो मे इतिहास मानने से इनकार है । इस कोटि मे प्राचिन उपषित्कार दर्शनकार नैहत्क वैयाकरण तथा शंकरा चायर्य आदि मध्यकालीन विद्वान भी सम्मिलित है स्वामी दया-नन्द का जो स्पष्ट मत है कि वेदो मे किसी पुरूष-विशेष का उल्लेख नही है । आजकल के यूरोपियन संस्कृतज्ञ तथा उनके अनुयायी भारतीय विद्वानसें का तो दृष्टिकोण ही ऐतिहासिक है। यह लोग पत्येक वैदिक ग्रन्थ को उसी दृष्टि से देखते है और उनको अपने मत की पुष्टी में पुष्कल सामग्री प्राप्त हो जाती है ।उनका यह मत कहाॅ तक ठीक है इस पर हम यहाॅ विचार नही कर सकते  । परन्तु इसमें भी सन्देह नही कि केवन पिता और मनु दो शब्दो को साथ साथ देखकर उनसे किसी विशेष पुरूष का अथ्र्र ले लेना युक्ति -संगत नही है जब तक कि ऐसा करने के लिए अन्य पुष्कल प्रमाण न हों । यदि निरक्तकार यास्काचार्य का मत ठीक है कि वेदो में समस्त पद यौगिक है तो मानना पडेगा कि किसी विशेष पुरूष का नाम मनु होने से पूर्व यह शब्द अपने यौगिक अर्थ में बहुत काल तक प्रचलित रह चुका होगा । यह बात आजकल की समस्त व्यक्ति वाचक संज्ञाओं से भी सिद्ध होती है । चाहे किसी व्यक्ति का नाम चुन लीजिए । पहले वह अवश्य ही यौगिक रहा होगा । और बहुत दिनो पश्चात व्यक्यिाॅ उस नाम से प्रसिद्ध हुई होगी इसलिए इसमें कुछ भी अनुचित नही है कि मनु शब्द का वेद मुत्रो में यौगिक अर्थ लिया जाये । यजुवैद 5।16 में आये हुए मनवे शबद का अर्थ उव्वट ने यजमानय और महीधर ने मनुते जानातीत मनुज्ञानवान यजमान किया है। इसी प्रकार यदि ऋग्वेद में भी मनु का अंर्थ ज्ञानवान किया जाय तो क्या अनथ होगा। फिर ऋग्वेद के जिन तीन मंत्रो  की आद्यैर हमने ऊपर संकेत किया है उनमे से पहले (1।8016) में मनु पिता और अर्थवा मनुष्पिता ) तीनो शब्द आये है जिनमे से एक विशेयष्य और अन्य विशेष्ण है । ऋग्वेद 1।114।2 मे अर्थवा का न नाम है न संबध 2।33।13 मे मनु पिता का भेषजा अर्थात ओषधियो से संबध है । इस प्रकार अर्थवा या मनु या प्रजापति शब्दो से ऐतिहासिक पुरूषो का सम्बन्ध जोडना एक ऐसी अटकल है जिस पर आधुनिक विद्वान लटठ हो रहे है । आजकल का युग अटकल युग है जिसको शिष्ट भाषा मे aAge of hypotheses कह सकते है हमारा यहाॅ केवल इतना ही कथन है कि वेदों मे आये हुए मनु और मनुस्मृति के आदि गृन्थकार से कुछ सम्बध नही है । ऋग्वेद 8।3013 में  पार्थना की गई –

मा नः पथः पित्रयान मानवादधिदूरे नैष्ट परावत

अर्थात हम (पित्रयात मानवात पथः) अपने पूर्वजों के बुद्धि-पूर्वक मार्ग से विचलित न हो । इससे भी कुछ विद्धानो ने यह अनुमान किया है कि मानवात पथः का अर्थ है मनु महाराज क बताये मार्ग से । (vide Principles of Hindu law vol I by jogendra chamdra Ghos and P.V Kane History of Dharma shastra )

ऋृग्वेद 10।63।7 मे (येभ्यो होत्रां प्रथमामायेजे मनुः) कुछ लोगो के विचार से किसी मनु-विशेष का उल्लेख है जिसने सबसे प्रथम यज्ञ किया था । परन्तु इन दोनों मंत्रो में मनु का अर्थ विचारवान या ज्ञानवान पुरूष क्यो न लिया जाए और क्यों यह मान लिया जाय कि अमुक व्यक्ति की और ही संकेत है इसके लिये अटकल के सिवाय और क्या हेतू हो सकता कोई ऐसी ऐतिहासिक घटनाये हमारे ज्ञान में नही है जिनसे बाधित होकर हम यहाॅ मनु शब्द को विशेष व्यक्ति का नाम मान ले । फिर यह तो बडी ही हास्यप्रद बात होगी कि मनु वेदो के गीत गावें और वेद मनु के । क्यो न वेद में आये हुए मनु का अर्थ ईश्वर ही लिया जाए जैसा कि मनुस्मृति के निम्न श्लोक से विदित हैः-

एतमेके वदन्त्यग्निं मनुमन्ये प्रजापतिम ।

इन्द्रमेके परे पा्रणमपरे ब्रहाशाश्वतम ।।

(अघ्याय 12।123)

अर्थात कुछ लोग ईश्वर को अग्रि नाम से पुकारते है कुछ मनु नाम से कुछ प्रजापति नाम से कुछ इन्द्र नाम से कुछ प्राण नाम से और कुछ ब्रहा शाश्वत नाम से ।

कुछ लोग कह सकते है कि ऋृग्वेद के कुछ मंत्रो का ऋषि भी तो मनु था । क्या यह वही मनु नही था जिसने मनुस्मृति के विचारो का प्रचार किया। यह अवश्य एक मीमासनीय प्रश्र है। कुछ लोग ऋषियो को मंत्रो का कर्ता मानते है और कुछ केवल द्रष्टा । यास्काचार्य का तो यही मत है ।  कि ऋषि मंत्रो के द्रष्टा मात्र थे और चादर की दृष्टि से उनका नाम वैदिक सूक्तो के आरम्भ में लिखा चला आता है । जो लोग इन ऋषियो को मत्रो के कर्ता मानते है उनके लिए कठिनाई यह अवश्य होगी कि अग्रिम वायु आदित्य और अगिरा की क्या स्थिति होगी । सायणाचार्य ने ऋृषियो को मत्रो के कर्ता मानते उनके लिये एक कठिनाई यह अवश्य होगी कि अग्रिम वायु आदित्य और अंगिरा की क्या स्थिति होगी ।सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य की उपक्रमणिका मे स्पष्ट लिखा है कि

जीवविशेषेरग्रिवाटवादित्यैवेदानामुत्पादितत्वात ।

ऋग्वेद एपाग्रेरजायत । यजुवेदो वायो। समवेद

आदियादिति श्रुतेरीश्वरस्पारन्यादि प्ररेकत्वेन निर्मातृत्व द्रष्टव्यम।।

अर्थात अग्रिम वायु आदित्य नामी जीव विशेषो से वेदों का आविर्भाव हुआ । यदि मनु किसी मंत्र का कर्ता भी होत तो भी अन्य पुष्ट प्रमाणो के अभाव में यह कहना कठिन था कि जिस मनु ने अमुक वेद – मत्र बनाया उसीने मानव धर्म शास्त्र का आरंम्भ  किया ।  इसी प्रकार तैतरीय संहिता 2।2।50।2 मे लिखा है  कि यदै कि च मनुरवदत तदृ भेषजम और ताण्डय ब्राह्मण 23।6।।17 का वचन है कि मनुवै सत किचावदत तद भेषज भेषजतरयै अर्थात मनु ने जो कुछ कहा वह औषधि है । इन वाक्यो से भी हमारे प्रष्न पर कुछ अधिक प्रकाश नही पडता । ऋग्वेद 2।33।13 मे मनु का भेषज से कुछ सम्बन्ध है परन्तु ऊपर दो वाक्यों में भेषज शब्द का वास्तविक अर्थ न लेकर आलंकारिक अर्थ लिया गया है और उन स्थलो पर यह स्पष्ट नही है कि मनु के किसी वचन और उन स्थलों पर यह स्पष्ट नही है कि मनु के किसी वचन की और संकेत है ।

‘‘अध्यात्मवाद’’ आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में समबन्ध क्या है-इस विषय का नाम अध्यात्मवाद है। मैंने किसी जगह पढ़ा था कि अध्यात्म वह स्थिति है, जब बुद्धि आत्मा में स्थित हो जाता है और उस समय जो विचार आता है वह उत्तम ही आता है। कृपया स्पष्ट करें।

– आचार्य सोमदेव1. परोपकारी के अंक जनवरी (द्वितीय) 2016 के पृष्ठ 30 पर ‘‘अध्यात्मवाद’’ आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में समबन्ध क्या है-इस विषय का नाम अध्यात्मवाद है।

मैंने किसी जगह पढ़ा था कि अध्यात्म वह स्थिति है, जब बुद्धि आत्मा में स्थित हो जाता है और उस समय जो विचार आता है वह उत्तम ही आता है। कृ पया स्पष्ट करें।

समाधान-(क) आत्मा-परमात्मा को अधिकृत करके उस विषय में विचार करना, उसको आत्मसात करना अध्यात्म है। इस विचार को मानना अध्यात्मवाद है। व्यक्ति जब अपने आत्मा को जानना चाहता है, आत्मा क्या है, इसका स्वरूप क्या है, नाश को प्राप्त होता है या नित्य है, मरने के बाद आत्मा कहाँ जाता है, आत्मा बन्धन में क्यों बंध जाता है, इसका बंधन कैसे छूटेगा आदि-आदि आत्मा विषय में विचारना अध्यात्म ही है। ऐसे ही परमात्मा क्या है, स्वरूप क्या है परमातमा का? परमात्मा करता क्या है, उसको कैसे प्राप्त किया जा सकता है, उसके प्राप्त होने पर क्या अनुभूति होती है आदि विचारना अध्यात्म है। गीता में भी कुछ ऐसा ही कहा है-

अक्षरं परमं ब्रह्म स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते। गी. 8.3

अपने मन में छिपे संस्कारों को देखना, अविद्यायुक्त संस्कारों को देखकर दूर करने का प्रयत्न करना, उनसे दुःख और हानि को देखना, अपने मन को उपासना, तप आदि के द्वारा निर्मल बनाना, बनाने का प्रयत्न करना अध्यात्म है। बुद्धि और आत्मा को पृथक् देखना, संसार के विषयों से विरक्त हो अन्तर्मुखी होना यह सब अध्यात्म है। विरक्त हो आत्मा का दर्शन करना, प्रज्ञा बुद्धि को प्राप्त करना, प्राप्त गुणातीत हो ईश्वर-दर्शन करना अध्यात्म है, अध्यात्म की पराकाष्टा है।

आपने जो पढ़ा वह स्थिति आध्यात्मिक व्यक्ति की होती है, हो सकती है। जब व्यक्ति अध्यात्मवाद को अपनाकर चलता है तो उसके अन्दर से श्रेष्ठ विचार उत्पन्न होने लगते हैं। इन्हीं उत्तम विचारों से व्यक्ति अपने जीवन को कल्याण की ओर ले जाता है। श्रेय मार्ग की ओर ले जाता है।

मस्जिदों में होती हैं हिंदू विरोधी बातें, टीवी डिबेट पर चला दिया वीडियो

 

अजान विवाद: विवेक अग्निहोनी का दावा- मस्जिदों में होती हैं हिंदू विरोधी बातें, टीवी डिबेट पर चला दिया वीडियो

सोनू ने ट्वीट करके मस्जिद की अजान की आवाज को लेकर सवाल खड़े किए थे उसके बाद से ही इस मामले ने तुल पकड़ लिया।

 

फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री।

बॉलीवुड के मशहूर सिंगर सोनू निगम ने सोमवार को एक नया विवाद को जन्म दे दिया। सोनू ने ट्वीट करके मस्जिद की अजान की आवाज को लेकर सवाल खड़े किए। इसी मुद्दे पर कई चैनलों पर दिनभर बहस होती रही है। ऐसी ही आजतक में की एक बहस में शामिल फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने आरोप लगया कि मस्जिदों में नमाज के दौरान भड़काऊ भाषण दिए जाते हैं। इसके लिए उन्होंने बकायदा एक वीडियों भी दिखाया जिसमें उनके अनुसार भड़काऊ भाषण दिया जा रहा है। विवेक ने कहा कि मेरे पास ये रिकॉर्डिंग है कि जिसमें  मौलाना साहब बोल रहे हैं कि याकूब को जो फांसी मिली थी वो गलत थी इसलिए हिंदू नेताओं को पकड़ पकड़कर फांसी दी जानी चाहिए। इसके बाद सब लोग चिल्लातें है कि हिंदुओं को फांसी दी जानी चाहिए। जिसके बाद विवेद वो वीडियो प्ले कर देते हैं। इसके जवाब में मौलना रजा कहते हैं कि आप इसपर केस क्यों नहीं करते हैं। इसके बाद दोनों लोग आपस में भिड़ जाते हैं। विवेक सवाल करते हैं हिंदू लीडर्स को मारने की बात मस्जिद में क्यो हो रही हैं। विवेक मशहूर फिल्म निर्देशक हैं और बुद्धा इन ए ट्रेफिक जाम बना चुके हैं।

यह सारा विवाद तब शुरु हुआ कि जब सोमवार सुबह लगभग 5:30 बजे सोनू निगम ने ट्वीट किया कि मैं मुसलमान नहीं हूं लेकिन फिर भी मस्जिद की अजान की आवाज से जगना पड़ता है। सोनू ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर अजान की आवाज पर हमला करते हुए लिखा कि जब मुहम्मद साहब जिंदा थे तब उनके टाइम पर तो बिजली आती नहीं थी..फिर एडिसन के आविष्कार के बाद ऐसे चोंचलों की क्या जरूरत है। सोनू यहीं नहीं रुके उन्होंने तो ये तक कह डाला कि ये सब तो सिर्फ गुंडागर्दी है। सोनू निगम के इन ट्वीट्स के बाद एक के बाद एक लोगों इसके समर्थन और विरोध में आगे आ गए।

 

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.@vivekagnihotri ने जुम्मे की नमाज़ में भड़काऊ भाषण का वीडियो दिखाया. http://bit.ly/at_liveTV