‘‘अध्यात्मवाद’’ आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में समबन्ध क्या है-इस विषय का नाम अध्यात्मवाद है। मैंने किसी जगह पढ़ा था कि अध्यात्म वह स्थिति है, जब बुद्धि आत्मा में स्थित हो जाता है और उस समय जो विचार आता है वह उत्तम ही आता है। कृपया स्पष्ट करें।

– आचार्य सोमदेव1. परोपकारी के अंक जनवरी (द्वितीय) 2016 के पृष्ठ 30 पर ‘‘अध्यात्मवाद’’ आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में समबन्ध क्या है-इस विषय का नाम अध्यात्मवाद है।

मैंने किसी जगह पढ़ा था कि अध्यात्म वह स्थिति है, जब बुद्धि आत्मा में स्थित हो जाता है और उस समय जो विचार आता है वह उत्तम ही आता है। कृ पया स्पष्ट करें।

समाधान-(क) आत्मा-परमात्मा को अधिकृत करके उस विषय में विचार करना, उसको आत्मसात करना अध्यात्म है। इस विचार को मानना अध्यात्मवाद है। व्यक्ति जब अपने आत्मा को जानना चाहता है, आत्मा क्या है, इसका स्वरूप क्या है, नाश को प्राप्त होता है या नित्य है, मरने के बाद आत्मा कहाँ जाता है, आत्मा बन्धन में क्यों बंध जाता है, इसका बंधन कैसे छूटेगा आदि-आदि आत्मा विषय में विचारना अध्यात्म ही है। ऐसे ही परमात्मा क्या है, स्वरूप क्या है परमातमा का? परमात्मा करता क्या है, उसको कैसे प्राप्त किया जा सकता है, उसके प्राप्त होने पर क्या अनुभूति होती है आदि विचारना अध्यात्म है। गीता में भी कुछ ऐसा ही कहा है-

अक्षरं परमं ब्रह्म स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते। गी. 8.3

अपने मन में छिपे संस्कारों को देखना, अविद्यायुक्त संस्कारों को देखकर दूर करने का प्रयत्न करना, उनसे दुःख और हानि को देखना, अपने मन को उपासना, तप आदि के द्वारा निर्मल बनाना, बनाने का प्रयत्न करना अध्यात्म है। बुद्धि और आत्मा को पृथक् देखना, संसार के विषयों से विरक्त हो अन्तर्मुखी होना यह सब अध्यात्म है। विरक्त हो आत्मा का दर्शन करना, प्रज्ञा बुद्धि को प्राप्त करना, प्राप्त गुणातीत हो ईश्वर-दर्शन करना अध्यात्म है, अध्यात्म की पराकाष्टा है।

आपने जो पढ़ा वह स्थिति आध्यात्मिक व्यक्ति की होती है, हो सकती है। जब व्यक्ति अध्यात्मवाद को अपनाकर चलता है तो उसके अन्दर से श्रेष्ठ विचार उत्पन्न होने लगते हैं। इन्हीं उत्तम विचारों से व्यक्ति अपने जीवन को कल्याण की ओर ले जाता है। श्रेय मार्ग की ओर ले जाता है।

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