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हनुमान आदि बन्दर नहीं थे ? – स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

वानर –  वने भवं वानम , राति ( रा आदाने ) गृह्णाति ददाति वा. वानं वन सम्बन्धिनम फलादिकम् गृह्णाति ददाति वा –  जो वन   उत्पन्न होने वाले फलादि खाता है वह वानर कहलाता है. वर्तमान में जंगलों व पहाड़ों में  रहने और वहाँ पैदा होने वाले पदार्थों पर निर्वाह करने वाले “गिरिजन” कहाते हैं. इसी प्रकार  वनवासी और वानप्रस्थ वानर वर्ग में गिने जा सकते हैं. वानर शब्द से किसी योनि विशेष जाति  प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।

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जिसके द्वारा जाति  एवं जाति  के चिन्हों को प्रगट किया जाता है वह आकृति है. प्राणिदेह के अवयवों की नियत रचना जाति  का चिन्ह होती है. सुग्रीव बाली  आदि के जो  चित्र देखने में आते हैं उनमें  उनके पूंछ  लगी दिखाई है  परन्तु उनकी स्त्रियों के पूंछ  नहीं होती। नर मादा में इस प्रकार का भेद अन्य किसी वर्ग में देखने में नहीं आता. इसलिए पूंछ  के कारण हनुमान आदि को बन्दर नहीं माना जा सकता। Continue reading हनुमान आदि बन्दर नहीं थे ? – स्वामी विद्यानन्द सरस्वती