Atharv Ved Sookt 12.3 is a very interesting and big Sookt containing 60 mantras.
Among many other topics I have been studying thisSookt also. I take the opportunity to share my interpretation of the first ten mantras of this Sookt.
I shall be obliged and honoured to hear comments of Vedic scholars on my understanding of this Sookt. Family AV12.3 ऋषि: -यम: , देवता:-स्वर्ग;, ओदन: ,अग्नि:
लेखक – सुबोध कुमार
गृहस्थाश्रम का आरम्भ. Start of Married Life
1. पुमान्पुंसोऽधि तिष्ठ चर्मेहि तत्र ह्वयस्व यतमा प्रिया ते ।
यावन्तावग्रे प्रथमं समेयथुस्तद्वां वयो यमराज्ये समानं । । AV12.3.1
शक्तिशालियों में भी शक्तिशाली स्थान पर स्थित होवो ।(ब्रह्मचर्याश्रम के पूर्ण होने पर सब प्रकार की शक्ति और कुशलता प्राप्त कर गृहस्थाश्रम में स्थित होवो)
जो तुझे सब से प्रिय हो उस को अपनी जीवन साथी बना । प्रथम तुम दोनों द्वारा अलग अलग जैसे ब्रह्मचर्याश्रम का पालन किया अब दोनों सन्युक्त हो कर समान रूप से व्यवस्था चला कर सन्यम पूर्वक गृहस्थाश्रम का धर्म निर्वाह करो ।
दाम्पत्य जीवन Sex Life
2. तावद्वां चक्षुस्तति वीर्याणि तावत्तेजस्ततिधा वाजिनानि ।
अग्निः शरीरं सचते यदैधोऽधा पक्वान्मिथुना सं भवाथः । । AV12.3.2
कामाग्नि जब तुम्हारे शरीर को ईंधन की तरह जलाने लगे तब अपने परिपक्व सामर्थ्य से संतानोत्पत्ति के लिए मैथुन करो परंतु यह ध्यान रहे कि कामाग्नि में शरीर ईंधन की तरह जलने पर भी (गृहस्थाश्रम में ) तुम्हारी दृष्टि, समस्त उत्पादक सामर्थ्य, तेज और बल वैसे ही बने रहें जैसे पहले (ब्रह्मचर्याश्रम में थे )
संतान पालन Bringing up Children
3. सं अस्मिंल्लोके सं उ देवयाने सं स्मा समेतं यमराज्येषु ।
पूतौ पवित्रैरुप तद्ध्वयेथां यद्यद्रेतो अधि वां संबभूव । । AV12.3.3
इस संसार में तुम दोनों दम्पति यम नियम का पालन करते हुए संयम से सब लौकिक काम एक मन से करते हुए देवताओं के मार्ग पर चलो। पवित्र जीवन शैलि और शुभ संस्कारों द्वारा प्राप्त संतान को अपने समीप रखो।
(जिस से वह तुम्हारे आचार व्यवहार से अपने जीवन के लिए सुशिक्षा प्राप्त करे और तुम्हारे प्रति उस की भवनाएं जागृत हो सकें ) ।
आहार Food for the family
4. आपस्पुत्रासो अभि सं विशध्वं इमं जीवं जीवधन्याः समेत्य ।
तासां भजध्वं अमृतं यं आहुरोदनं पचति वां जनित्री । । AV12.3.4
तुम स्वयं परमेश्वर की संतान हो , अपना जीवन धन धान्य से सम्पन्न बनाओ जिस से अपनी संतान के समेत अपने सब कर्त्तव्यों के पालन कर सको और इन्हें सुपच, अमृत तुल्य भोजन) दो जिस के सेवन से संतान अमृतत्व को प्राप्त करे। (शाकाहारी कंद मूल फल वनस्पति इत्यादि जिसे प्रकृति पका रही है
5. यं वां पिता पचति यं च माता रिप्रान्निर्मुक्त्यै शमलाच्च वाचः ।
स ओदनः शतधारः स्वर्ग उभे व्याप नभसी महित्वा । । AV12.3.5
वह अन्न जिसे आकाश से सहस्रों जल धाराओं से सींच बनाया जाता है जिसे द्युलोक रूप पिता भूमि माता बनाते हैं और फिर जिसे माता पिता भोजन के लिए पकाते हैं वह शरीर से मल को मुक्त करके निरोगी बनाने वाला और मस्तिष्क की पुष्टि से वाणी को शांत बनाने वाला हो । सौ वर्षों तक स्वर्गमय दोनों लोकों में यश प्राप्त कराने वाला हो ।
सन्युक्त परिवार वृद्धावस्था Joint family Old age care
6. उभे नभसी उभयांश्च लोकान्ये यज्वनां अभिजिताः स्वर्गाः ।
तेषां ज्योतिष्मान्मधुमान्यो अग्रे तस्मिन्पुत्रैर्जरसि सं श्रयेथां । । AV12.3.6
(उभे नभसी) द्यावा पृथिवी के अपने परिवारके वातावरण सात्विक आहार और यज्ञादि की जीवन शैलि से (ज्योतिष्मान मधुमान) प्रकाशमान और माधुर्य वाला बना कर (स्वर्गा: ) तीनों स्वर्ग प्राप्त प्राप्त करो. जिस में संतान, दम्पति माता पिता, और जरावस्था को प्राप्त तीनो मिल कर मधुरता से आश्रय पाएं ।
No divorce
7. प्राचींप्राचीं प्रदिशं आ रभेथां एतं लोकं श्रद्दधानाः सचन्ते ।
यद्वां पक्वं परिविष्टं अग्नौ तस्य गुप्तये दंपती सं श्रयेथां । । AV12.3.7
श्रद्धा से गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए, पके अन्न की यज्ञ (बलिवैश्वदेव यज्ञ)में आहुति से यज्ञशेष ग्रहण करने वाले हुए दम्पति पति पत्नी जीवन में उन्नति करते हुए साथ साथ मिल् कर रहो।
8. दक्षिणां दिशं अभि नक्षमाणौ पर्यावर्तेथां अभि पात्रं एतत् ।
तस्मिन्वां यमः पितृभिः संविदानः पक्वाय शर्म बहुलं नि यछात् । । AV12.3.8
(दक्षिणं दिशम् अभि) दक्षिण दिशा निपुणता से प्रगति करने की दिशा है। ( इस प्रगति के मार्ग पर चलते हुए लोग प्राय: भोगमार्गावलम्बी हो जाते हैं) । गृहस्थ में प्रगति के मार्ग पर चलते हुए तुम दोनो ( एतत् पात्रम् अभि पर्यावर्त्तेथाम् ) इस रक्षक देवमार्ग की ओर लौट आओ । देवमार्ग में तुम्हारा (यम: ) नियंता (पितृभि: ) घर के बुज़ुर्ग (सं विदान) से सलाह (पक्वाय) mature दूरदर्शी विवेक पूर्ण मार्ग दर्शन द्वारा अत्यंत सुखी जीवन प्रदान करेगी ।
Simple living High thinking –Good company
9. प्रतीची दिशां इयं इद्वरं यस्यां सोमो अधिपा मृडिता च ।
तस्यां श्रयेथां सुकृतः सचेथां अधा पक्वान्मिथुना सं भवाथः । । AV12.3.9
(इयं प्रतीची) = पीछे (प्रति अञ्च ) यह प्रत्याहार –इ न्द्रियों को विषय्पं से वापस लाने की दिशा –पीछे जाने की दिशा ही(दिशाम् इत वरम् ) दिशाओं में निश्चय ही श्रेष्ठ है। सोम – शांत स्वभाव से प्रेरित आचरण रक्षा करने वालाऔर सुखी करने वाला है । (तस्यां श्रेयाम ) उस प्रत्याहार की दिशाका आश्रय लो, (सुकृत: सचेथाम्) –पुण्य कर्म करने वाले लोगों से ही मेल करो, (पक्वात् मिथुनां संभवाथ:) परिपक्व वीर्य से ही संतान उत्पन्न करो ।
Virtuous Nation
10. उत्तरं राष्ट्रं प्रजयोत्तरावद्दिशां उदीची कृणवन्नो अग्रं ।
पाङ्क्तं छन्दः पुरुषो बभूव विश्वैर्विश्वाङ्गैः सह सं भवेम । । AV12.3.11
उत्कृष्ट राष्ट्र प्रकृष्ट संतानों से ही उत्कृष्ट होता है । इस उन्नति की दिशा में प्रत्येक मनुष्य पञ्च महाभूतों “पृथ्वी,जल,तेज,आकाशऔर वायु” से (पांक्तम् ) पांचों कर्मेद्रियों से , पांचों ज्ञानेंद्रियों से , पांचों प्राणों “पान , अपान,व्यान, उदान और समान” से पांच भागों में विभक्त “ मन, बुद्धि,चित्त, अहंकार और हृदय” मे बंटे अन्त:करण से , यह सब पांच मिल कर जो जीवन का (छन्द) का संगीत हैं, विश्व के लिए सब अङ्गों से पूर्ण समाज का निर्माण करते हैं।