भगवान मनु ओर दलित समाज

मित्रो ओम |
मै जो लेख लिख रहा हु उससे सम्बंधित अनेक लेख आर्य विद्वान अपने ब्लोगों पर डाल चुके है| कई तरह की पुस्तके भी लिखी जा सकती है | जिसमे सबसे महत्वपूर्ण योगदान सुरेन्द्र कुमार जी का है| जिन्होंने मह्रिषी मनु के कथन को स्पष्ट करने का ओर मनु स्म्रति को शुद्ध करने का प्रसंसिय कार्य किया है| इस सम्बन्ध में आपने जितने भी लेख जैसे मनु और शुद्र,मनु और महिलायें आदि विभिन्न blogger द्वारा लिखे पढ़े होंगे |वे सब इन्ही की किताबो ओर शोधो से लिए गये है |हमारा भी ये लेख इन्ही की किताब से प्रेरित है|
मह्रिषी मनु को कई प्राचीन विद्वान ओर ब्राह्मणकार कहते है की मनु के उपदेश औषधि के सामान है लेकिन आज का दलित समाज ही मनु का कट्टरता से विरोध करता है | ओर बुद्ध मत को श्रेष्ट बताते हुए मनु को गालिया देता है ओर उनकी मनुस्म्र्ती को भी जलाते है | इसके निम्न कारण है :-
(१) मनु द्वारा वर्णव्यवस्था को बताना ..
(२) मनु पर जाति व्यवस्था को बनाने का आरोप
(३) मनु द्वारा स्त्री के शोषण का आरोप .
उपरोक्त आरोपों पर विचार करने से पहले हम बतायेंगे की मनु को हिन्दू विद्वानों ने ही नही बल्कि बुद्ध विद्वानों ने भी माना है | बौद्ध महाकवि अश्वघोस जो की कनिष्क के काल में था अपने ग्रन्थ वज्रकोपनिषद में मनु के कथन ही उद्दृत करता है| इसी तरह बुद्ध ने भी धम्म पद में मनु के कथन ज्यो के त्यों लिखे है..इनमे बस भाषा का भेद है मनुस्म्र्ती संस्कृत में है ओर धम्मपद पाली में ..देखिये मनुस्म्रती के श्लोक्स धम्मपद में :

अभिवादन शीलस्य नित्यं वृध्दोपसेविन:|

चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्||मनुस्मृति अध्याय२ श्लोक १२१||
अभिवादन सीलस्य निञ्च वुड्दा पचभिनम्|
खतारी धम्मावड््गत्ति आनुपवणपीसुलम्||धम्मपद अध्याय ८:१०९||
न तेन वृध्दो भवति,येनास्य पलितं शिर: |
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवा स्थविंर विदु:||मनुस्मृति अध्याय२:१५६||
न तेन चेरो सीहोती चेत्तस्य पालितं सिरो|
परिपक्को वचो तस्यं पम्मिजितीति बुध्दवति||धम्मपद ९:१२०||

iइन निम्न श्लोको को आप देख सकते है ,और धम्मपद के भी निम्न वाक्य देख सकते है जो काफी समानता दर्शाते है ..इससे पता चलता है की बुद्ध ओर अन्य बौद्ध विद्वान मनुस्म्रती से प्रभावित थे|
मनु द्वारा धर्म के १० लक्षणों में से एक अंहिसा को जैन ओर बुद्धो ने अपने मत का आधार बनाया था ..
अब मनु पर लगाये आरोपों की  संछेप में यहाँ विवेचना करते है :-
(१) मनु द्वारा वर्णव्यवस्था चलाना :
मह्रिषी मनु वर्णव्यवस्था के समर्थक थे लेकिन वे जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था के नहीं बल्कि कर्म आधरित वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे जो की मनुस्म्र्ती के निम्न श्लोक्स से पता चलता है :-
शूद्रो ब्राह्मणात् एति,ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्|

क्षत्रियात् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात्तथैव च||
(मनुस्मृति १०:६५)
गुण,कर्म योग्यता के आधार पर ब्राह्मण,शूद्र,बन जाता है| ओर शूद्र ब्राह्मण|
इसी प्रकार क्षत्रिए ओर वैश्यो मे भी वर्ण परिवरितन समझने चाहिअ|

ओर महात्मा बुद्ध भी कर्माधारित वर्ण व्यवस्था को समर्थन करते थे ..वर्ण व्यवस्था का विरोध उन्होंने भी नही किया था|इस बारे में अलग से ब्लॉग पर एक नया लेख आगे लिखा जायेगा |
(२) मनु पर जातिवाद लाने का आरोप :-
ये सत्य है की मनु ने जाति शब्द का प्रयोग किया लेकिन ये इन लोगो का गलत आरोप है की मनु ने जाति व्यवस्था की नीव डाली ..मनु ने जाति शब्द का अर्थ जन्म के लिए किया है न की ठाकुर ,ब्राह्मण ,भंगी आदि जाति के लिए ..देखिये मनुस्म्रती से :-
 जाति अन्धवधिरौ(१:२०१)=जन्म से अंधे बहरे|

जाति स्मरति पौर्विकीम्(४:१४८)=पूर्व जन्म को स्मरण करता है|
द्विजाति:(१०.४)=द्विज ,क्युकि उसका दूसरा जन्म होता है|
एक जाति:(१०.४) शुद्र क्युकि विद्याधरित दूसरा जन्म नही होता है|

अत स्पष्ट है मनु जातिवाद के जनक नही थे …
(३) मनु पर नारी विरोधी का आरोप :-
मनुस्मृति में निम्न श्लोक आता है :-
पुत्रेण दुहिता समा(मनु•९.१३०)
पुत्र पुत्री समान है|वह आत्मारूप है,अत: पैतृक संपति की अधिकारणी है|
इससे पता चलता है कि मह्रिषी मनु पुत्र ओर पुत्री को समान मानते है |
मनु के कथन को निरुक्त कार यास्क मुनि उदृत कर कहते है :-
अविशेषेण पुत्राणां दायो भवति धर्मत:|
मिथुनानां विसर्गादौ मनु: स्वायम्भुवोsब्रवीत्(निरूक्त३:१.४)
सृष्टि के आरंभ मे स्वायम्भुव मनु का यह विधान है कि दायभाग = पैतृक भाग मे पुत्र पुत्री का समान अधिकार है|
अत स्पष्ट है कि मनु पुत्री को पेतर्क सम्पति में पुत्र के सामान अधिकार देने का समर्थन करते थे ..
मनु से भारत ही नही विदेश में भी कई प्रभावित थे चम्पा दीप (दक्षिण वियतनाम ) के एक शीला लेख में निम्न मनु स्मरति का श्लोक मिला है :-
वित्तं बन्धुर्वय: कर्म विद्या भवति पञ्चमी|
एतानि मान्यस्थानानि गरीयो यद्यत्तरम्||[२/१३६|
इसी तरह वर्मा,कम्बोडिया ,फिलिपीन दीप आदि जगह मनु और उनकी स्मृति की प्रतिष्टा देखी जा सकती है|
लेकिन भारत में ही एक वर्ग विशेष उनका विरोधी है जिसका कारण है मनुस्म्रती में प्रक्षेप अर्थात कुछ लोभी लोगो द्वारा अपने स्वार्थ वश जोड़े गये श्लोक जिनके आधार पर अपने वर्ग को लाभ पंहुचाया जा सके ओर दुसरे वर्ग का शोषण कर सके ..
मनुस्मर्ती में कैसे और कोन कोनसे प्रक्षेप है इसे जानने के लिए निम्न लिंक पर जा कर विशुद्ध मनुस्मर्ती डाउनलोड कर पढ़े :
वही इस चीज़ को अपने वोट बैंक के लिए कुछ दलित नेता भी बढ़ावा देते है ताकि ब्राह्मण विरोध को आधार बना कर अपना वोट पक्का कर सके इसके लिए वै आर्ष ग्रंथो को भी निशाना बनाते है | एक दलित साहित्यकार स्वप्निल कुमार जी अपनी एक पुस्तक में लिखते है की मनु शोषितों ओर किसानो का नेता था|(भारत के मूल निवाशी और आर्य आक्रमण पेज न ६१) इनके इस कथन पर हसी आती है कि कभी मनु को मुल्निवाशी नेता तो कभी विदेशी आर्य ये लोग अपनी सुविधा अनुसार बनाते रहते है |
मनुस्म्रति से सम्बंदित इसी तरह के आरोपों के निराकरण के लिए निम्न पुस्तक मनु का विरोध क्यूँ अवश्य पढ़े जो की इसी ब्लॉग के ऊपर होम के पास दिए गये लिंक में है …
अंत में यही कहना चाहूँगा की प्रक्षेपो के आधार पर मनु को गाली न देवे इसमें महाराज मनु का कोई दोष नही है ..सबसे अच्छा होगा की मनुस्मर्ती से प्रक्षेप को हटा मूल मनु स्मृति का अनुशरण किया जाये जैसे की सुरेन्द्र कुमार जी की विशुद्ध मनुस्मृति ….
संधर्भित पुस्तके एवम ग्रन्थ :-(१) मनु का विरोध क्यूँ ?- सुरेन्द्र कुमार 
(२) विशुद्ध मनुस्मृति -डा सुरेन्द्र कुमार 
(३) निरुक्त -यास्क मुनि 
(४) वृहत भारत का इतिहास भाग ३-आचार्य रामदेव 
                                              (५) बोलो किधर जाओगे -आचार्य अग्निव्रत नेष्ठिक जी  

6 thoughts on “भगवान मनु ओर दलित समाज”

  1. वर्तमान में एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलने वाले विद्वान मिल जायेगे ।इसलिए स्व विवेक से पूण चेतना के शाथ जीना चाहिए आज के uwa को पुराना शोच नहीं रखना चाहिए ।वो उस समय की परिस्थिति के अनुसार था ।

    1. सभी को बुद्धि से निर्णय लेना चाहिए और सत्य का ग्रहण करना चाहिए

  2. bhai dekh chl man lu ki mnu rishi ne kem adrit jatiya banti pr inti jatiya uske bad jo brahmn ka kam krne lg gye wo prmamnent bn gye or dusro ko bewkuf bna kr dhn lut te rhe
    diffrence anarya or arya
    chamar and brahmn
    hmesha dusman apne dushm ko kmjor bnata h or wohi aryo ne kiya
    jese ki ravan mahisur jo chamar isliye kyonki wo indian king the or unko jitkr hi in pkhndi aryo ne is desh ko brbad kiya

    1. नवीन जी
      इतिहास देखो और बात को समझो जो आप जैसे लोग समझ नहीं सकते क्यूंकि आप पूर्वाग्रह से ग्रसित हो | सबसे पहले बात बतला दू मनु महाराज के लाखो वर्ष बाद राम का शाशन हुवा था उस समय विश्वरथ क्षत्रिय थे और राजा थे जो बाद में ज्ञान प्राप्त कर विश्वामित्र कहलाये और वह क्षत्रिय से ब्राह्मण हो गए इसी प्रकार पराशर ऋषि जो थे शुद्र से ब्राह्मण हुए | इतिहास को जानने की कोशिश करो भाई | यह बतलाना आर्य किसे बोलते हैं | और यह भी जानो की रावण ब्राह्मण था मगर आप उसे चमार बोल रहे हो भाई पहले अपना इतिहास देखो सीखो और चर्चा करना | एक बात बिना जानकारी के कोई कमेंट करना मुर्खता कहलाता है | आप इतिहास को देखो समझो और चर्चा करो | यह जाती वयवस्था महाभारत के समय के पास से आरम्भ हुवा था | पहले इतिहास को जानो समझो फिर चर्चा करना | चलो अब कुछ दिनों तक मैं बाहर जा रहा हु तो आपको जवाबी नहीं दे पाउँगा | हो सकता है हामारे सहयोगी आपको जवाब दें यदि कोई शंका हो तो | धन्यवाद |

  3. सिरी मानजी..,
    आपकी मनुग्रस्तता दिन- ब -दिन बढ़ती जा रही है इस मनु मूढ़ता के कारण आप संविधान का विस्मरण होना लाजमी नही है . सिरिमान …सुरेद्र कुमार का यह मनु फीवर आप पर इतना हावी हो गया है की आप धम्मपद को अर्वाचीन तथा मनु को प्राचीन घोषित करने पर तुले है.
    आपके तथाकथित मनु किमान बुद्ध के समकालिन भी होते तो शायद धम्मपद नही तो अन्य किसी पाली साहित्य में जरूर नजर आते पर असंभव को संभव करना तो कोई आप से सीखे …!
    जिस प्रकार आपने धम्मपद के सहस्सो वग्गो का गाथा का उपयोग कर धम्मपद और मनु को समकालीन या सहचरी बताने का कष्ट किया है निःसन्देह पूरी तरह व्यंगात्मक है.
    एक गाथा का सन्दर्भ तो आपने बराबर दिया है पर दूसरी गाथा धम्मपद की नही है ..सच बताये कहा से चुराई है ..??
    मुझे लगता है सुत्त निपात से संबंधित है .यदि आप धम्मपद की उक्त गाथा की पहली तथा बाद की गाथा पढ़ लेते तो शायद आपका भ्रम टूट जाता पर आपके पास समय कहा है .
    कई बार मनुष्य पुरा काल्पनिक लोक में रममाण रहने के कारण अक्सर वास्तविक जगत का सत्य तथा विवेक का विस्मरण हो जाता है.
    आपका कार्य’ उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ..’
    जैसा ही है आपके सनातनी ..रामायण ,महाभारत …इत्यादि के कई सन्दर्भ बुद्ध के पश्चात के साहित्य में मिल जाते है इतना ही नही चीनी बौद्ध भिक्षुओ ने भी समय-समय पर अपने प्रवास वर्णन में किया है .

    आपका प्रयास अच्छा है …, आधुनिक शशांक ,मिहिरकुल और कुमारिल भट्ट के पुरस्कार के पात्र है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *