मैक्समुलर के सफ़ेद झूठ…….

maxmuller

जिज्ञासा – समाधान

जिज्ञासा –( जिज्ञासु- अनिरुद्ध आर्य, दिल्ली ) कुछ विद्वान वेदों का काल पाश्चात्य विद्वानों के आधार पर २००० या ३००० ईसा पूर्व हि मानते है, क्या यह ठीक है ? और मैक्समुलर ऋग्वेद को दुनिया के पुस्तकालय की सबसे पुरानी पुस्तक मानता है , क्या यह मैक्समुलर की मान्यता ठीक है ? क्या हम आर्यो को भी इसी के अनुसार मानना चाइये | कृपया मार्गदर्शन करे |

समाधान – ( समाधान करता – आचार्य सोमदेव,ऋषि उद्यान, अजमेर)  वेदों का काल जब से मानव उत्पति हुई है तभी से है | आज इस काल को महर्षि दयानंद के अनुसार १ अरब ९६ करोड़ ५३ हज़ार ११५ वा वर्ष चल रहा है | पाश्चात्य विद्वानों की, की गयी काल गणना ठीक नहीं है | क्यों की इनके द्वारा की गयी काल गणना निर्धन और पक्षपात पूर्ण कपोल कल्पना मात्र है | इस गणना की लिए इन विद्वानों के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है |जब हमे हमारा लाखो वर्ष पुराना इतिहास सप्रमाण प्राप्त हो रहा है, तब हम इनकी कुछ हज़ार वर्ष पुरानी बात कैसे स्वीकार कर ले | हा इनकी बात पर वे विश्वास कर सकते है  जिन्हें अपने ऋषियों, महापुरषो से प्रभावित न होकर, पाश्चात्य संस्कृति व विद्वानों से प्रभावित रहा हो |

कुछ लोगो का निराधार व अल्पज्ञान भरी बात है की ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई और इसके बाद अन्य वेदों की | ऐसी मान्यता वाले लोग अथर्ववेद को तो ऋग्वेद के बहोत बाद का मानते है | इस बात का भी उनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है |

हमारे ऋषियों के अनुसार चारो वेदों का काल एक हि है, एक हि साथ एक हि समय परमेश्वर ने ४ ऋषियों के हृदय मे चारो वेदों का अलग-अलग ज्ञान दिया अर्थात अग्नि ऋषि को ऋग्वेद का, वायु ऋषि को यजुर्वेद का, आदित्य ऋषि को सामवेद का, और अंगिरा ऋषि को अथर्ववेद का ज्ञान दिया | ऋषियों ने ऐसा कही नहीं लिखा की चारो वेदों की उत्पति अलग-अलग समय मे हुई | हमे वेद व ऋषियों के अनेक प्रमाण प्राप्त है की जिनसे ज्ञात होता है की चारो वेद एक हि समय मे उत्पन्न होते है |

जैसे –

yasmin

rushayo

इन दो मंत्रो मे वेद शब्द का बहुवचनान्त वेदा: शब्द प्रयुक्त हुआ है | यह वेदा: शब्द चार वेदों का संकेतक है |

tasma

इत्यादि अनेक वेद व ऋषियों के प्रमाण सिद्ध करते है की चारो वेदों का काल एक हि है |

आप मैक्समुलर की मान्यता के विषय मे भी जानना चाहते है कि उनकी मान्यता ठीक है या नहीं | मैक्समुलर ने तथाकथित भाषा शास्त्र के आधार पर वेदों के रचना काल कि सम्भावना सर्वप्रथम १८५९ ई. मे प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘ ए हिंदी ऑफ एंशियट संस्कृत लिटरेचर’ मे कि थी | उनकी यह कालावधि किसी तथ्य पर आश्रित न होकर विशुद्ध कल्पना पर आधारित थी किन्तु यह मान्यता इतनी बार दुहरायी गई कि परवर्ती समय मे आधुनिक इतिहासकारों मे बिना सोचे-समझे स्थापित सी माने जाने लगी | लेकिन स्वयं मैक्समुलर ने १८८९ मे ‘ जिफोर्ड व्याख्यानमाला ‘ के अंतर्गत अपने इस मात् पर संदेह प्रकट किया था और हृटनी जैसे पाश्चात्य व प्रो. कुंजन राजा प्रभूति भारतीय इतिहासकारों ने भी मैक्समुलर के भाषा शास्त्र के आधार पर वेदों के काल सम्बन्धी मात् का जोर्धर खंडन किया था | दूसरा जो मैक्समुलर ऋग्वेद को दुनिया कि सबसे पुरानी पुस्तक कहता है | उसकी यह बात वेदों कि रचना के सम्बन्ध मे भ्रम फैलाने के उद्देश्य से कही गयी प्रतीत होती है | ऋषियों-महर्षियो के आधार पर आर्य समाज कि दृढ़ मान्यता के विपरीत ये वेदों का क्रमिक विकास सिद्ध करती है, जिससे वेद ईश्वरीय रचना न सिद्ध होकर मानवीय रचना सिद्ध हो सके |

इस सारे प्रसंग को मैक्समुलर कि इन मान्यताओ के सन्दर्भ मे भी देखा जाना चाइये कि वह वेदों को बाइबिल से निचली श्रेणी का मानता है |कैथोलिक कॉमनवैल्थ के दिए गए साक्षात्कार मे पूछे जाने पर कि विश्व मे कौनसा धर्म ग्रन्थ सर्वोतम है, तो मैक्समुलर ने कहा था –

“There is no doubt, however, that ethical teachings are far more prominent in the old and New Testament than in any sacred book.” He also said “It may sound prejudiced, but talking all in all, I say the New Testament. After that, I should place the Quran which in its moral teachings is hardly more than a later edition of the New Testament. Then would follow…. According to my opinion, the old Testament, the Southern Buddhist Tripitika……The Veda and the Avesta.” (LLMM, vol.II, Pg. 322-323)

अर्थात “इसमें कोई संदेह नहीं कि यद्यपि किसी भी अन्य ‘पवित्र पुस्तक’ कि अपेक्षा ( ईसाइयों के धर्म ग्रन्थ ) ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट मे नैतिक शिक्षाये प्रमुखता से विद्यमान है | उसने यह भी कहा भले हि यह पक्षपातपूर्ण लगे लेकिन सभी दृष्टियों से मै कहता हूँ कि न्यू टेस्टामेंट (सर्वोत्तम है ) | इसके बाद मै कुरान को कहूँगा जो कि अपने नैतिक शिक्षाओ मे न्यू टेस्टामेंट के नविन संस्करण के लगभग समीप है | उसके बाद…..मेरे विचार से ओल्ड टेस्टामेंट ( यहूदियों का धर्मग्रन्थ ), दी सदर्न बुद्धिस्ट त्रिपिटी का, ( बौद्धों का धर्म ग्रन्थ ) फिर वेद और अवेस्ता ( पारसियो का ग्रन्थ ) है |”

अत: आर्यो को वेद के सन्दर्भ मे मैक्समुलर जैसे लोगो के मात् को उध्दृत करने से बचना चाइये | इसके स्थान पर ऋषि-महर्षियो के मात् को रखना चाइये | लेकिन अगर कोई आर्य वेदों की प्राचीनता सिद्ध करने लिए मैक्समुलर को इस रूप मे उध्दृत करता है कि ‘मैक्समुलर’ भी वेदों कि प्राचीनता के प्रसंग मे एक सत्य को अस्वीकार न कर सका, उसे भी ऋग्वेद को प्राचीनतम पुस्तक स्वीकार करना पड़ा’ इस रूप मे बात रखी जा सकती है |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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