Category Archives: इस्लाम

अरब का मूल मजहब (भाग ६)

अरब का मूल मजहब
भाग ६
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

मै ने इस लेख की श्रृंखला मे “सैरुलकूल” नामक पुस्तक की चर्चा किया था जिसमे अरब के कवियों के उन रचनाओं को शामिल किया गया है जो समय-समय पर अरब मे प्रचलित धर्म संबंधी मान्यताओं का वर्णन करता है .
पिछले भागों मे कहा गया था कि उन शेरों को पेश किया जायेगा जिसमें भगवान कृष्ण की पुरानोक्त लीलाओं का वर्णन है.
यह शेर कवि ‘ आर बिन अंसबिन मिनात’ की रचना है जो हजरत मोहम्मद से ३०० वर्ष पूर्व की है .
ये रहा शेर …

🔴 जा इनाबिल अम्रे मुकर्रमतुन फ़िद्दनिया इलस्समाए ।
व मुखाज़िल काफिरीना कमा यकूलून फ़िलकिताबन ।।

अर्थ :- हे मेरे स्वामी आपने अपनी असीम कृपा से जो इस संसार के लिए अवतार लिया जबकि पापियों ने इस पर कब्जा कर रखा था , जैसा कि आपने स्वंय अपने ग्रंथ मे कहा है .

🔴 आयैन आयैन तब अरत दीन-अस्सादिक़ फिल-इन्स ।
जायत तबर्रल मूमिनीना व तत्तख़िज़लकाफिरीन शदीदन ।।

अर्थ :- जब जब संसार मे धर्म की कमी होती है और जब पाप बढ़ जाता है तब तब भक्तों की रक्षा और पापियों को दण्ड देने के लिए मैं जन्म लेता हूं .

🔴 रब्बना मुबारका बलदतुन नुज़िल्त मसरुरततुन ।
व ताकुलल अर्ज़ा बक़रतुन फ़ी उतुब्बि मसरुरु ।।

अर्थ :- हे प्रभु ! वह नगर धन्य है जहां आपने जन्म लिया और वह भूमि धन्य है जहां आप गौ चराते हुए अपने मित्रों के साथ खेला करते थे .

🔴 वल हुना फिस्सूरत अल-मलीह कमा जिइना फ़िस्सूरत बहुस्थि ।
नयना तत्तख़िज़ी यदिहा फ़िस्समाई लाक़रारा मसीहा ।।

अर्थ :- आपकी सांवली सूरत देखकर ऐसा मालूम होता है कि साक्षात् सौंदर्य की प्रतिमा मानवदेह में प्रकट हुई है . जब आप बांसुरी बजाते हैं तो उसकी मनोहर और सुरीली धुन पुरुषों और स्त्रियों को अपना भक्त बना लेती है .

🔴 रऐतु जमाली इलाहतुन फ़िलमलबूसे यदाहु नयना ।
राअसहु हुल्ली फ़िज़्ज़तुन मिनल इन्सि मसरुरा ।।

अर्थ :- हे ईश्वर ! एक बार मुझे भी अपना रुप दिखा दो जब कि आपने पीताम्बर पहना हुआ हो और हाथ मे बांसुरी हो , सिर पर ताज हो और कानों मे कुण्डल हो , जिस रुप को देखकर दुनिया आनन्द विभोर हो जाती है .

🔴 वजन्नतल हूर तनजी व तत्ताख़िज़ा बिललैनाते जबलून ।
व लि इबाद स्साहिलीन-अल-हुब्बि हल कुन्तु मसरुरा ।।

अर्थ :- हे प्रभो ! आपने अपनी पवित्र चरणों की ठोकर से स्वर्ग की अप्सरा को मोक्ष प्रदान किया था और अंगुली पर पर्वत उठाया था . भक्तों और मित्रों के लिए सब कुछ किया था . क्या हमें वंचित रखोगे ?

इन कसीदों को पढ़ने के बाद शायद ही कोई निरा मुर्ख और नासमझ होगा जो इस बात से इनकार करदें कि समय – समय पर भारत मे धर्म संबंधी जो मान्यताएँ प्रचलन मे रही है उस समय अरब मे भी वही प्रचलन मे था .वहां के विद्वान ज्ञान – विज्ञान , विधि व्यवस्था , समाजिक नियम आदि सब कुछ मे भारत का ही अनुशरण करता था . यहि वजह था कि भारत के उचित और अनुचित सभी परंपराओं को अपनाता गया और मोहम्मद के जन्म तक भारत से भी अधिक अवैदिक कार्यों मे फंस गया . इन शेरों मे वहां के कवियों ने जो भी कहा है , वह सभी कथाएं उस समय भारत मे पौरानिकों ने प्रचलित कर रखा था जिसमे भगवान कृष्ण पर मिथ्या दोष लगाया गया है जिसे आर्य समाज सदा से विरोध किया है . उन शेरों को यहां पर पेश करने का एक ही उद्देश्य है कि जिस समय भारत मे पौरानिक मान्यताएँ प्रचलन मे थी , उस समय अरब मे भी वही प्रचलन मे थी . अर्थात् जिस प्रकार भारत मे वैदिक धर्म होता गया उसी प्रकार विश्व के अन्य भागों जैसे अरब आदि मे भी वैदिक धर्म का ह्रास होता गया और अंतत: नये नये मजहबों के उत्पति की परिस्थिति तैयार कर दी .

अब मोहम्मद के समय मे प्रचलित धार्मिक मान्यताओं को भी इसी तरह के शेरों के माध्यम से अगले भागों मे पढ़ेगे . देखेंगे की किस प्रकार अरबवासीयों मे मद्य , मांस आदि का प्रचलन हो गया ! किस प्रकार भारत मे प्रचलित चार्वाक मत का प्रसार वहां भी हो गया !
इसलिए जरुर पढ़ें .
पढ़ते रहें , पढ़ाते रहें !

क्रमश :

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब

अरब का मूल मजहब (भाग ५)

अरब का मूल मजहब
भाग ५
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि महाभारत के पश्चात् भी अरब जगत वैदिक संस्कृति के रंगों मे रंगा हुआ था . लोग वेद वाणी को ही ईश्वरीय वाणी मानता था और उसी अनुरुप अपना जीवन जीया करता था , परन्तु ऐसी क्या परिस्थिति बनी की लोग इस ज्ञान से दूर होकर अवैदिक रिति-रिवाजों को अपने घर कर लिया .
जैसा की सभी जानते हैं कि है भारतवर्ष सृष्टि के आदि से ही ज्ञान – विज्ञान का जननी रहा है . विश्व का प्रत्येक देश इस भूमि को अपना गुरु मानता था और यहीं से विद्या ग्रहण करता था . इसी की वजह से भारत मे प्रचलित वैदिक धर्म अन्य देशों मे भी मौजूद था . स्वाभाविक सी बात है गुरु देश मे जो मान्यताएँ होगी वही शिष्य देश भी ग्रहण करेगा . जब महाभारत हुआ तो करोड़ों वर्षों से संरक्षित भारतीय ज्ञान – विज्ञान का क्षय का हो गया . इस ज्ञान को संरक्षित रखन हेतु योग्यत्तम व्यक्तियों का अभाव हो गया .लोग धीरे – धीरे वैदिक मान्यताओं को त्यागने लगे और अवैदिक मान्यताओं को अपनाने लगे . जब ज्ञान विज्ञान की जननी देश मे ही यह स्थिति हो गई तो स्पष्ट है अन्य देश मे भी यहां की अवैदिक मान्यताएँ अपनायी जायेगी  और वही हुआ . भारत मे लोग पाखंड, अंधविश्वास, बलि प्रथा आदि का प्रचलन शुरु हो गया . यज्ञ मे हजारों की संख्या मे पशुबलि होने लगी , लोग मांसाहारी हो गया . सब तरफ हिंसा का बोलबाला हो गया . तब हिंसा की इस चर्मोत्कर्ष परिस्थिति ने भारत मे अहिंसावादी मानव ‘बुद्ध’ और ‘महावीर’ का जन्म हुआ जिसने अहिंसा का प्रचार-प्रसार किया और पुन: विश्व के देशों ने भारत से इस संदेश को ग्रहण किया. परन्तु लोगों ने बाद मे उसी बुद्ध और महावीर का मुर्ति बनाकर पूजने लगा. तब वैदिक धर्मावलम्बी जो की अवैदिक मान्यताओं मे फंस चुका था , अपनी अस्तित्व को बचाने हेतु विभिन्न प्रकार के पुरानों की रचना करके विभिन्न प्रकार के देवी- देवताओं की कल्पना किया और उसका मूर्ति बना कर लोगों के बीच प्रस्तुत किया. इस प्रकार वेद की पावन उक्ति – ” एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति ” को भूलकर ऐकेश्वरवाद से बहुदेववाद की ओर लोग बढ़ गया और अवतारवाद की नई अवैदिक मान्यता की कल्पना की गई . जब भारत मे अवतारवाद, मूर्तिपूजा आदि प्रचलित हो गई . इसको देखकर अरब मे भी यह अवतारवाद और मूर्तिपूजा का सिद्धांत प्रचलन मे आ गया . जिसको उस समय के अरब के प्रख्यता कवियों ने अपनी कविताओं मे बहुत ही स्पष्ट वर्णन किया है .जैसा की मै पिछले भागों मे वह शेर पेश कर चुका हूं जिसमे वेद का वर्णन किया गया है और जो की लगभग ३८-३९०० वर्ष पुराना शेर है .उस से स्पष्ट हो गया था कि जिस समय भारत मे वैदिक मान्यताएँ प्रचलित थी उस समय तक अरब मे भी वैदिक व्यवस्था थी . अब मै प्रमाण के रुप मे उन कवि का वह शेर पेश करुंगा , जिसमें भगवान कृष्ण और उनकी गीता और अवतारवाद का वर्णन है. अर्थात् भारत मे जब वैदिक मान्यताओं का ह्रास हो गया और अवैदिक मान्यताएं , अवतारवाद आदि प्रचलित हुआ तो वहां भी वही मान्यताएं प्रचलित हो गई. लेख लंबी हो चुकी है , शेर को अगले भाग मे पेश करुंगा . अगला भाग जरुर पढ़ें , भारत मे प्रचलित भगवान कृष्ण की पुरानोक्त लीला का वर्णन अरब के ही कवि के शब्दों मे !

पढ़ते रहें , पढ़ाते रहें !

क्रमश :

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब

अरब का मूल मजहब (भाग ४)

अरब का मूल मजहब
भाग ४
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

पिछले भाग मे सिर्फ एक शेर अर्थ सहित उद्धृत किया था . शेष चार शेर इस भाग मे प्रस्तुत है …

द्वितीय शेर :-
” वहल बहलयुतुन अैनक सुबही अरब अत ज़िक्रू,
हाज़िही युनज्ज़िल अर रसूलु मिन-आल-हिन्दतुन. ”
अर्थ :- वे चार अलहाम अर्थात् परमेश्वरीय वाणी “वेद” जिनका दैवी ज्ञान ऊषा के नूर समान है हिन्दुस्तान में खुदा ने अपने रसूलों पर नाजिल किये हैं . अर्थात् उनके हृदयों मे प्रकाशित किये हैं .

तृतीय शेर :-
यकूलून-अल्लाहा या अहल-अल-अर्जे आलमीन कुल्लुहम ,
फत्तबाऊ जिक्रतुल वीदा हक्कन मालम युनज्ज़िलेतुन .”
अर्थ :- अल्लाह ने तमाम दुनिया के मनुष्यों को आदेश दिया है कि वेद का अनुसरण करो जो नि:सन्देह मेरी ओर से नाजिल हुए हैं .

चतुर्थ शेर :-
“व हुवा आलमुस्साम वल युजुर् मिनल्लाहि तन्जीलन् ,
फ़-ऐनमा या अख़ीयु तबिअन् ययश्शिबरी नजातुन् . “

अर्थ :- वह ज्ञान का भंडार साम और यजुर हैं जिनको अल्लाह ने नाजिल किया है, बस ! हे भाईयों उसी का अनुशरण करो जो हमें मोक्ष का ज्ञान अर्थात् बशारत देते हैं .

पंचम् शेर :-
“व इस्नैना हुमा रिक् अथर नासिहीना उख़्वतुन् ,
व अस्नाता अला ऊदँव व हुवा मशअरतुन् .”

अर्थ :- उनमें से बाकी दो ऋक् और अथर्व हैं जो हमें भ्रातृत्व अर्थात् एकत्व का ज्ञान देते हैं . ये कर्म के प्रकाश स्तम्भ हैं , जो हमें आदेश देते हैं कि हम उन पर चलें .

तो मित्रों ! इस शेर को प्रस्तुत करने के बाद अरब के मूल मजहब संबंधि शीर्षक पर टिप्पणी करने की कोई जरुरत ही नही है . क्योंकि अरब के प्रसिद्ध विद्वान ‘लबी बिन अख्तब बिन तुर्फा’ ने खुद घोषणा कर रखी है कि हमारा मूल मजहब वेद आधारित था और उसी के अनुसार चलें तभी हमारा कल्याण होगा . यह हजरत मोहम्मद से २४०० वर्ष पुर्व के शेर है अर्थात् आज से लगभग ३८४६ वर्ष पूर्व की शेर है . अर्थात् महाभारत के बाद तक भी वहां पर वेद विद्या का ही प्रचार प्रसार था . इस प्रमाण को लेकर किसी को शक है तो वह येरोसलम जाकर उस पुस्तकालय मे जाकर अपनी शक का निवारण कर सकता है.यह अरबी काव्य-संग्रह “सीरुलउकूल” नाम से पुस्तक रूप में West Publishing Company “West Palaestine” ने प्रकाशित किया है. यह पुस्तक भारत में “हाज़ी हमज़ा शीराजी एन्ड को.” पब्लिशर्स एण्ड बुकसेलर्स, बान्द्रा रोड, मुम्बई से उपलब्ध है. यह कविता सीरुलउकूल के पृष्ठ संख्या-118 पर है.
मै अपने तमाम मुसलिम मित्रों से निवेदन करना चाहते है कि कृपया अपने जड़ की ओर लौटें . तथ्य को मत ठुकरायें . सत्य को ग्रहण करने की शक्ति रखें और पुर्वजों की बात को माने . जब अरबवासी खुद वैदिक था तो आप तो निश्चित रुप से वैदिक ही हो क्योंकि आपका जन्म भारत मे हुआ है . आप बलात् वैदिक धर्म से दूर किये गये हो ! इसलिए आप से आग्रह है कि आप भी पंडित महेन्द्रपाल और ज्ञानेन्द्र सूफी जी की तरह सत्य को स्वीकार कर सूझ – बूझ परिचय दें और वैदिक व्यवस्था को पुन: इस भूपटल पर स्थापित करने मे आर्य समाज का साथ दें !
अब तो मूल मजहब का पता चल चुका है तो प्रश्न उठता है कि वहां के लोग वैदिक विचारधारा से अलग होकर लोग मूर्तिपूजक और हिंसक कैसे हो गये ? जिसे पुन: निराकार की तरफ लाने के लिए मोहम्मद साहब को आना पड़ा.
इसका उत्तर भी वहां के प्राचीन कवि ही देते है . जो आगे चर्चा की जायेगी .
पढ़ते रहें और दुसरों को भी पढ़ाते रहें !

जय आर्य, जय आर्यावर्त .
क्रमश :

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब

अरब का मूल मजहब (भाग ३)

अरब का मूल मजहब
भाग ३
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

अरब के विद्वानों की रचना जो कि महाभारत काल के पश्चात की है , उसे मै प्रमाण स्वरुप पेश कर रहा हूं जिस से स्पष्ट पता चलता है कि अरब निवासी आज अपने मुख्य मजहब से भटक गया है . किसी स्वार्थी के चक्कर मे आकर अपनी पुरानी संस्कृति को भूला दिया या फिर उसे जबरदस्ती अपनी मान्यताओं को बदलने या छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया . इसकी जीता जागता प्रमाण इस नवीन मजहब वालों का खुनी इतिहास है जिस पर समय आने पर चर्चा किया जायेगा .
आर्य समाज के पास पंडित महेन्द्रपाल की तरह ही एक और उज्वल रत्न हुए है जिन्हे पं. ज्ञानेन्द्रदेव सूफी के नाम से जाना जाता है. पंडित जी वैदिक धर्म को अपनाने से पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब के नाम से जाने जाते थे . उन्होने १९२५ से लेकर १९३१ ई. तक विभिन्न अरब एवं मुसलिम देशों की यात्रा की और बहुत सारा शोध किया जिसमे वाकई चौकाने वाले तथ्य है . उसी यात्रा के दौरान उन्हे ‘येरोसलम’ मे सुल्तान अब्दुल हमीद के नाम पर मौजुद एक प्रसिद्ध पुस्तकालय देखने को मिला जिसमे हजारों की संख्या मे पांडुलिपियां मौजूद थी . इनमें अरबी , सिरियानी , मिश्री , इब्रानी भाषाओं के विभिन्न कालों के सैकड़ों नमूने रखे हुए थे . इसी पुस्तकालय मे पंडित जी को ऊंट की झिल्ली पर लगभग ९०० वर्ष पूर्व की लिखी हुई “सैरुलकूल” नाम की पुस्तक मिली जिसमे अरब के प्राचीन कवियों का इतिहास है . इस पुस्तक के लेखक ‘अस्मई’ था जो आज से लगभग १३०० वर्ष पूर्व अलिफलैला की कहानियों के कारण प्रसिद्ध खलीफा “हारूँ रशीद” के दरबार मे कविशिरोमणि के पद पर विराजमान था . लेखक अश्मई ने अपनी पुस्तक मे विभिन्न कालों के कवियों की रचना के बारे बताया है . जिसमे उन्होने कवि “लबी बिन अख्तब बिन तुर्फा” के बारे मे कहता है कि वे अरबी साहित्य में कसीदे का जन्मदाता है. उसका समय बताते हुए कहता है कि वह हजरत मोहम्मद से लगभग २३-२४ सौ वर्ष पूर्व का है . अर्थात् महाभारत काल के बाद के कवि थे . उनका मै पांच शेर अर्थ सहित यहां पर उधृत करता हूं .जिसे पढ़कर महर्षि दयानन्द की सत्यार्थ प्रकाश वाली कथन की पुष्टि हो जाएगी कि महाभारत काल तक सर्व भूगोल वेदोक्त नियमो पर चलने वाला था .
यहां पर सिर्फ एक शेर पेश कर रहा हूं , बांकी अगले भाग मे पेश करुंगा . क्योंकि लेख लम्बी हो चुकी है .

प्रथम शेर :-

“अया मुबारक-अल-अर्जे युशन्नीहा मिन-अल-हिन्द ,
व अरदिकल्लाह यन्नज़िजल ज़िक्रतुन .”

अर्थ :- अय हिन्द की पुण्य भूमि ! तु स्तुति करने योग्य है क्योंकि अल्लाह ने अपने अलहाम अर्थात् दैवी ज्ञान का तुझ पर अवतरण किया है .

इस शेर से इस बात की भी पुष्टि होती है कि वेद का ज्ञान आदि मे आर्यावर्त के चारों ऋषि को प्रदान किया था और यहीं से वेद विद्या का पुरे विश्व मे प्रचार – प्रसार हुआ . इसलिए इस विश्वगुरु भारत के भूमि की वह कवि वंदना कर रहा है .  पर अफशोष की आज जिस पैगम्बर की दुहाई देकर लोग ‘भारत माता की जय’ कहने से इनकार कर रहा है उसी पैगम्बर के पूर्वजों के पूर्वज इसी भूमि की वन्दना करके ज्ञान पाने की आशा रखता था , अपनी इस वन्दना वाली कविता से कविशिरोमणि का पद पाया करता था .इस भारत भूमि की दर्शन हेतु ललायित रहता था , इस भूमि के ज्ञान की प्रकाश के बिना खुद को मोक्ष का अधिकारी नही समझता था . दुर्भाग्य है इस भूमि के ऐसे व्यक्तियों का जो इस पुण्य भूमि की अवहेलना करता है , उसकी जय घोष करने से इनकार करता है .शर्म करो कृतघ्नों ! आज जिस पैगम्बर की टूटी फूटी ज्ञान पर तुम इस भूमि की उपकार को भूल रहे हो उसी भूमि की ज्ञान की प्रकाश मे तुम्हारे पैगम्बर पल-बढ़ कर इस योग्य हुआ कि तुम्हे एकेश्वरवाद का पाठ पढ़ा सका !!
अगले शेर मे और भी नये – नये पिटारे खुलेंगे ! पढ़ते रहें और लोगों को पढ़ाते रहें !

जय आर्य , जय आर्यावर्त !
क्रमश :

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब

अरब का मूल मजहब (भाग २ )

अरब का मूल मजहब
भाग २
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

यह सर्वविदित है कि आज से लगभग ५५-५६ सौ वर्ष पुर्व लगभग पुरी दुनिया मे वैदिक धर्म का एक क्षत्र राज था . सब लोग वैदिक थे . वेद के अनुसार ही अपना जीवनयापन करते थे और सुखीसम्पन्न थे .इस व्यवस्था मे भारत विश्वगुरु कहा जाता था . लोग यहां आकर ज्ञान-विज्ञान की बातें सिखा करते थे . महर्षि दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश के सम्मुलास दस मे लिखते हैं कि “महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भूगोल के राजा, ऋषि, महर्षि आये थे।
देखो! काबुल, कन्धार, ईरान, अमेरिका, यूरोप आदि देशों के राजाओं की कन्या गान्धारी, माद्री, उलोपी आदि के साथ आर्यावर्त्तदेशीय राजा लोग विवाह आदि व्यवहार करते थे। शकुनि आदि, कौरव पाण्डवों के साथ खाते पीते थे कुछ विरोध नहीं करते थे। क्योंकि उस समय सर्व भूगोल में वेदोक्त एक मत था। ” सत्यार्थ प्रकाश की इन बातों की पुष्टि महर्षि मनु की इस घोषणा से स्पष्ट रुप से हो जाती है ….”ऐतद्येशप्रसूतस्य….मनु. २/२०” अर्थात् संसार के लोग आर्यावर्त मे आकर विद्या ग्रहण करें .इस सत्य को पश्चिम के विद्वानों ने भी स्वीकार किया है . प्रमाण के रुप मे कुछ विद्वानों का मत यहां प्रस्तुत है .
जैकालियट ने Bible in India मे पेज नंबर १० पर कहा है कि “भारत सभ्यता के हिंडोले है , ज्ञान विज्ञान के जनक है ” .
भारतीय सभ्यता संस्कृति को नाश करने वाले मैक्समूलर को भी सत्य स्वीकार करना पड़ा और अपनी पुस्तक ‘India : what can it teach us ‘ के पेज ४ पर लिखना पड़ा कि “यूरोपीय, यूनानियों, रोमनों और यहूदी जिस साहित्य के विचारों के साथ पले है , वह भारत की साहित्य ही है ” .
प्रो. हिरेन ने अपनी पुस्तक Historical researches  के Vol 2 , page 45 पर लिखा है कि समस्त एशिया सहित समस्त पश्चात्य जगत को प्राप्त होने वाले विद्या और धर्म का मुख्य स्त्रोत भारतवर्ष ही है .
मेजर डी. ग्राह्मपोल ने तो यहां तक लिख डाला कि “जिस समय भारत सभ्यता और विद्या के उच्च शिखर पर था उस समय हमारे पुर्वज वृक्षों की छाल के बने हुए कपड़े पहनकर अफरा-तफरी में इधर – उधर भटक रहे थे “….देखें Modern Review के June 1934 का अंक .
इन सब प्रमाणों से स्पष्ट हो चुका है कि भारत विश्वगुरु था . तो जाहिर सी बात है जो मत गुरुदेश मे होगा वही अन्य देश मे भी प्रचलन मे भी आया होगा क्योंकि भारत जिस सिद्धांत और मत के सहारे विश्व का गुरु था उसी सिद्धांतों का सबने अपने अपने देश मे अपनाया ताकि वो भी उन्नति करें . अत:  महाभारत पुर्व तक सम्पुर्ण धरा वैदिक सिद्धांत से ओत प्रोत था . जब बात सम्पुर्ण धरा की हो तो उसमे अरब जगत भी आ ही जाता है . जी , यह बात मै नही कह रहा हूं बल्कि महाभारत कालीन अरब के विद्वान खुद कह रहे हैं कि हम वैदिक है , हमारा पवित्र ग्रंथ वेद है , हम वेद के अनुसार चलें . अरबवासियों की इस वैदिक सिद्धांतों पर दृढ़ विश्वासों की वजह से ही मोहम्मद साहब ने भी उसे अपनी बनाई पुस्तकों से समाज मे प्रचलित वैदिक नियम व सिद्धातों को निकाल नही पाये जो आज भी अरब निवासियों का मूल मजहब वैदिक था, इसकी पुष्टि करता है .महाभारत के बाद जब भारत खुद वैदिक सिद्धांतों से विमुख हो गया तो विश्व के अन्य देश भी इस से विमुख हो गया और परिस्थिति के अनुकुल नये नये पथ , मत और मजहब जन्म ले लिया . जिसे हम विभिन्न नामों जैसे जैन , बौद्ध, इसायत, इसलाम आदि से जानते है . इस लेख की श्रृखंला मे हम सिर्फ इसलाम पूर्व अरब का मूल मजहब, फिर इसलाम के पैदा होने की परिस्थिति तक ही सीमित रहेगें .
भाग ३ जरुर पढ़ें , उसमे अरब के विद्वानों की उन रचनाओं को पेश किया जायेगा जिस से यह स्पष्ट हो जायेगा कि महाभारत कालीन अरब की समाजिक व्यवस्था बिलकुल वेद पर आधारित था और सब एकेश्वरवादी एवं निराकार ईश्वर के उपासक थे  . फिर आगे देखेंगे कि भारत के साथ – साथ वहां एवं विश्व के अन्य भागों मे भी कैसे निराकार से साकार की तरफ लोग बढ़कर मूर्तिपूजक हो गया !

क्रमश :

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब )

अरब का मूल मजहब (भाग १)

अरब का मूल मजहब
भाग १
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

यह कोई आश्चर्य की बात नही कि आज पुरी दुनिया में जितने भी मत और सम्प्रदाय बिना शिर-पैर का सिद्धांत लेकर एक-दुसरे को निगलने को तैयार है वे सभी एक ही मूल के विकृतावस्था मे आ जाने के फलस्वरुप कुछ नये और पुराने बातों को समेट कर विभिन्न नामों से पनपा है .क्योंकि कोई कितना भी खुद के बनाये मतों को परिष्कृत करके उसे खुदाई मत का नाम देकर लोगों के सामने जाल की तरह फैलाने की कोशीश करें , उसे उस समाज मे फैली तत्कालीन मत और सिद्धातों की साया उसे छोड़ नही सकता और जब किसी समाज मे दैवीय सिद्धांत मौजूद हो तब तो उसे अपने मतों को उस दैवीय सिद्धांत से सर्वथा अलग कर ही नही सकता . यहि वजह है कि प्रत्येक मत और सम्प्रदाय मे उसे अपने अस्तित्व मे आने से पहले का समाजिक नियम , परंपरा आदि अवशेष रुप मे मौजूद रह जाता है जो आगे चलकर उस खोखली मतों और मजहबों के खोखली सिद्धांतों का पोल खोल देती है , और जिसे थोड़ी भी सोचने समझने , सही गलत परखने की शक्ति होती है वह उसे मानने से इनकार कर देता है और अपने मूल सिद्धांतों जिस पर उनके पूर्वज करोड़ों वर्ष से चले आ रहे हैं , अपना लेता है और शायद इसे ही बुद्धिमानी भी कहते है . आखिर असत्य की बुनियाद पर कोई कितने बड़ा महल खड़ा पायेगा कभी न कभी तो उसे गिरना ही है . आज विभिन्न मतों का यहि हाल है , उसके अपने ही जो मनशील है , बुद्धिमान है , कुछ सोचने समझने की क्षमता रखता है वह इस गिरते हुए मजहबों , मतों , सम्प्रदायों रुपी महल मे क्रूरता की आग मे जलती मानवता , खत्म होती मानवीय जीवन मूल्य, दम तोड़ती मासूम जिन्दगी आदि विभीषिका को देखकर उसकी बुनियाद खंगालकर लोगों के सामने रखा है और इस खोखली बुनियाद वाले महल को ठोकर मार कर अपने मूल एवं ठोस बुनियाद वाले महल की तरफ लौटा है जिसमे न तो मानवता खत्म होती है , न ही कभी मानवीय जीवन मूल्य खत्म होता है , न ही कोई मासूम दम तोड़ती है जिसके सिद्धांतों के बल पर उनके पुर्वज करोड़ों वर्षों से सुखी , संपन्न और वैभवशाली थे और रहे है . तो दोस्तों मै बात कर रहा हूं ऐसे मजहब की जिसकी महल आज तो बहुत बड़ी है परन्तु बहुत ही कमजोर है और आज खोखली सिद्धांतों की बजह से ही कहीं आइसिस के रुप मे मानवता को तार-तार कर रही तो कहीं लश्कर के रुप मे , कही कोई सीरिया इसकी आग मे जलता है तो कही कोई पाकिस्तान पांच-पांच वर्ष के मासूमों की गोली से भुना हुआ शव की चित्कार पर रोता है , कहीं कोई आधी आबादी की विकास मे प्रयासरत मलाला जैसी देवी दिन-दहारे जानलेवा हमले का शिकार होती है तो कहीं कोई यजीदी लड़कियों को लूट का धन समझ उसकी अस्मतों को बीस-बीस दिन तक इसलिए रौंदा जाता है क्योंकि यह उसके मजहब मे जायज है. ये सब के सब मजहब की खोखली नियम से उस मे धर्म का कार्य समझा जाता है जो किसी भी रुप मे और किसी भी सभ्य समाज मे मान्य नही है . अब उस मजहब का नाम बताने की जरुरत नही है ,आप निश्चित रुप से समझ गये होंगे , इसमें शक की कोई नही.
तो क्या ऐसी कमी है कि ये सब घिनौने कार्य हो रहे है आज ? क्यों आज सब परेशान है ऐसे मजहब से ? क्यों आज उस मजहब को मानने वाले भी इस कुकृत्य है शर्मिंदा है ? क्योंकि इसका सिद्धांत किसी अल्पज्ञ मनुष्य द्वारा बनाया गया है जो महत्वाकांक्षी था , खुद को इतिहास मे पैगम्बर के रुप देखना चाहता था , लोगों पर अपना अधिपत्य चाहता था तो आप खुद सोच सकते है ऐसे मंसूबों वाले का सिद्धांत कभी सार्वभौमिक और समाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाला हो सकता है क्या ?
अगले भाग मे मुहम्मद साहब से पुर्व की अरेबियन समाज मे फैली धर्मिक मान्यताओं के बारे मे विचार करेंगे !

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब )

शैतानी किसने कर दी? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

शैतानी किसने कर दी?

एक बार कादियाँ (पंजाब) में अल्लाह मियाँ पहुँचा था। कादियाँ के नबी मिर्जा गुलाम अहमद के मरने पर अल्लाह शोक मनाने (पंजाब में मकानी बोलते हैं) आया था। यह नबी ने आप लिखा है। तब कादियाँ वालों को अल्लाह के आने का पता तक न चला। मैं कॉलेज का विद्यार्थी था। आर्य सभासदों के चन्दे मैं ही लाकर कोषाध्यक्ष को दिया करता था। जब ला. दाताराम का चन्दा लेने जाता था, तब उनके बहुत वृद्ध पिताजी ला. मलावामल की बैठकर बातें सुनने लग जाता था। आप मिर्जा के संगी साथी थे। आपने कभी अल्लाह के कादियाँ में आने की बात की पुष्टि नहीं की थी। आपने तब उसे  देखा ही नहीं था तो पुष्टि क्या करते?

टी.वी. देखते-देखते जब हज की दुर्घटना का दुखद दृश्य देखा तो अल्लाह के कादियाँ आने की घटना याद आ गई। इतने भोले-भाले हज यात्री स्त्रियाँ और वृद्ध मारे गये। दृश्य देाा नहीं गया। जैसे भारत में हिन्दू मन्दिरों व तीर्थों में भगदड़ मचने से आबाल वृद्ध मारे कुचले जाते हैं, वही कुछ वहाँ हुआ। परपरा से एक स्थान विशेष पर हाजी शैतान को पत्थर मारकर हज के कर्मकाण्ड को पूरा करते हैं। अंधविश्वास हिन्दू मुसलमान सब में फैले हुए हैं।

मक्का को मुसलमान ‘बैत अल्लाह’ (अल्लाह का घर) मानते हैं। अल्लाह के पास फरिश्तों की भारी सेना है-यह कुरान बताता है। न जाने फिर शैतान अल्लाह के घर में कैसे घुस जाता है? भगदड़ मचने का कारण क्या था? शैतानी वहाँ शैतान ने तो की नहीं। कहा जाता है कि किसी हाजी ने ही शैतानी की। अब वहाँ की सरकार यह जाँच करेगी कि शैतानी की किसने? शैतान को तो किसी ने वहाँ कभी देखा ही नहीं। जिसे अल्लाह इतने लबे समय से नहीं पकड़ पाया, उसका इन कंकरों से क्या बिगड़ेगा? हमारी हितकारी सीख बहुत कुछ तो मुसलमानों ने मान ली है, परन्तु जन-जन तक नहीं पहुँचाई। हम क्या कर सकते हैं?

शैतान विषयक हमारा न सही, सर सैयद की सीख ही सुन लेते तो इतने अभागे हाजी न मरते। सर सैयद ने लिखा है, ‘‘एक मौलाना ने सपने में शैतान को देख लिया। झट से कसकर एक हाथ से उसकी दाढ़ी पकड़कर खींची। दूसरे हाथ से शैतान के गाल पर पूरी शक्ति से थप्पड़ मारा। शैतान का गाल लाल-लाल हो गया। इतने में मौलाना की नींद टूट गई। देखा तो उसके हाथ में उसी की दाढ़ी थी और वह लाल-लाल गाल जिस पर थप्पड़ मारा गया था, वह भी मियाँ जी का अपना ही गाल था। सो पता चल गया कि शैतान कहीं बाहर नहीं है। आपके भीतर के आपके दुरित, दुर्गुण ही हैं।’’ आशा है इतनी बड़ी दुर्घटना से सब शिक्षा लेंगे।

हटावट का उदाहरण माँगा गया हैः- इतिहास में मिलावाट की तो बहुत चर्चा होती है। मैंने इतिहास प्रदूषण

इस्लाम और औरत को पीटने का अधिकार

इस्लाम के मानने वाले औरतों के बारे में  सम्मानजनक सोच और उसके सिलसिले में अधिकारों की कल्पना को  इस्लाम की देन बताते हैं. और इस बात का दंभ भरते हैं कि इस्लाम ने औरत को अपमान की गहरी खाई से निकाल कर सम्मान की बुलंदी पर पहुँचा दिया लेकिन इस्लामी किताबें और इतिहास इसके विपरीत ही कुछ प्रदर्शित करता है. औरतों के प्रति इस्लामी गलियारों में जो कुछ जुल्म होते हैं उनमें से एक पर यहाँ विचार करेगें और इस्लाम के जानने वालों से इस बारे में अपेक्षा रखेंगे की वो इस पर प्रकाश डालें कि क्या ऐसी मान्यतायें जो कुरान, जिसे मुसलमान आसमानी किताब का दर्ज़ा देते हैं, आदि से पुष्ट होती हैं को वो आज भी मानते हैं ?

कुरान सूरा निसा आयत ३४ ( ४ -३४)( मौलाना सैयद  अबुल आला मौदूदी)

मर्द औरतों के मामलों के जिम्मेदार हैं इस आधार पर कि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे के मुकाबले आगे रखा है और इस आधार पर कि पुरुष अपने माल खर्च करते हैं अतः जो भली औरतें हैं वे आज्ञाकारी होती हैं और मर्दों के पीछे अल्लाह की रक्षा और संरक्षण में उनके अधिकारों की रक्षा करती हैं और जिन औरतों से तुम्हें सरकशी का भय हो उन्हें समझाओं , सोने की जगहों (ख्वाह्गाहों ) में उनसे अलग रहो और मारो फिर अगर वे तुम्हारी बात मानने लगें तो अकारण उनपर हाथ चलाने के लिए बहाने तलाश न करो यकीन रखो कि ऊपर अल्लाह मौजूद है जो बढ़ा सर्वोच्च है .

तर्जुमा : मौलाना सैयद  अबुल आला मौदूदी, पृष्ट १३०-१३१ , संस्करण दिसम्बर २०१३ ई

कुरान सूरा निसा आयत ३४ ( ४ -३४)( अल्लामा शब्बीर अहमद उस्मानी )

Men are made lord over women for that Allah gave greatness to one over the other and for that they expended of their wealth, then those women who are virtuous they are obedient and guard at back with God’s guarding and those women you fear their misconduct admonish them and sleep away from their couches and beat them, if then they obey you, look not for any way of blame against them surely god is the highest of all, the great

कुरान सूरा निसा आयत ३४ ( ४ -३४)( अत्यातुल्लाह आघा )

Men have authority over women on account of the qualities with which God hath caused the one of them to excel the other and for what they spend of their property therefore the righteous women are obedient guarding the unseen that which God hath guarded and as to those whose perverseness ye fear admonish them and avoid them in beds and beat them and if  they obey you them seek not a way against them verily God is ever high ever great.
The Holy Quran – Page – 383

कुरान की इस आयत के अलग अलग तर्जुमे उसी बात को दोहरा रहे हैं कि पुरुष का स्त्री के ऊपर अधिकार है और पुरुष की बात न मानने के कारण पुरुष स्त्री को पीटने उसे प्रताड़ित करने का अधिकार रखता है.

 

अत्यातुल्लाह आघा साहब अपनी तफसीर में लिखते हैं:

The remedy  prescribed against any such disobedience on the part of the wife is pointed out three fold. In the first stage she is to be admonished and if she desists the evil is mended, but f she persists in the wrong course the second stage is her bed to be separated If the woman still persists then the third stage is to chastise her.

The Holy Quran – Page – 374
भावार्थ यह है कि पति के पास पत्नी के बात न मानने की स्तिथी में तीन विकल्प में पहले उसे समझाया जाये, उससे बिस्तर अलग कर लिया जाये और तीसरी विकल्प में उसे पीटा जाये

अल्लामा शब्बीर अहमद उस्मानी अपनी तफसीर में लिखते हैं:

If she is not redeemed then the third stage is beating. This is the last stage. Beating should not be serious short of bone fracture. Every fault has its own degree. Beating should not be taken up at first stage. there are three stages of amelioration. beating is the last remedy Beating should not be undertaken on small faults. If there is any big fault on the part of woman then there is no sin or fault in beating but that too in the final stage. The beating should not be so serious that the bone is fractured not the blow should be so hard that it may smite a wound leaving a scar after healing.
The Nobel Quran, Vol-1 Page -335

भावार्थ यह है कि पत्नी यदि समझाने के बाद न माने तो तीसरा तरीका उसे पीटना है . पीटना ऐसा नहीं हो की हड्डियाँ टूट जाएँ . मौलाना साहब कहते हैं कि पीटना अंतिम तरीका है और छोटे अपराध पर नहीं होना चाहिए  लेकिन यदि अपराध बड़ा है तो पीटने में कोई पाप नहीं है .

हाँ मौलाना साहब इतनी छुट देते हैं की पीटना ऐसा न हो की हड्डियाँ टूट जाएँ या फिर घाव बन जाये जो बाद में निशान छोड़ दे.

मौलाना सैयद  अबुल आला मौदूदी अपनी तफसीर में लिखते हैं:

This does not mean that a man should resort to these three measures all at once but that they may be employed if wife adopts an attitude of obstinate defiance. so far as the actual application of these measures is concerned, there should, naturally be some correspondence between the fault and the punishment that is administered. Moreover it is obvious that wherever a light touch can prove effective one should not resort to sterner measures.

Towards understanding the Quran b Sayyid Abul Ala Maududi. Vol 2, Page 36

भावार्थ यह है कि तीनों कम एक साथ कर डाले जाएँ यह अर्थ नहीं है बल्कि अर्थ यह है की सरकशी की हालत में इन तीनों उपायों को अपनाया जा सकता है . अब रहा इनको व्यव्हार में लाना तो हर हाल में इसमें अपराध और सजा के बीच अनुकूलता होनी चाहिए और हलके उपाय से बात बन सकती हो वहां कड़े उपाय से काम न लेना चाहिए.

तीनों तफसीरों को देखने से साफ़ जाहिर होता है कि कुरान स्त्रियों को पीटने की आज्ञा देती है . अलग अलग कुरान के व्याख्याकारों की भाषा देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इस आयत की व्याख्या में स्त्रियों को पीटने के मुद्दे को स्पष्ट करने में दिक्कतों को सामना किया होगा. व्याख्याकारों ने पिटाई के अलग अलग स्तर बना दिए की पिटाई ऐसी न हो की हड्डियाँ टूट जाएँ पिटाई ऐसी न हो की घाव भरने पर निशान रह जाये .

लेकिन कोई भी भाष्यकार ये हिम्मत न कर सका की पिटाई करना गलत है . आखिरकार कुरान की आयत जो कह रही है लेकिन उनकी व्याख्या की भाषा से यह प्रदर्शित हो रहा है की पिटाई करना वो गलत मानते हैं लेकिन शायद कुरान की आयत में लिखा होने की वजह से खुल कर न लिख सके और यही कहते रहे की पिटाई ऐसी न हो कि हड्डियाँ तोड़ दे .