अरब का मूल मजहब (भाग ५)

अरब का मूल मजहब
भाग ५
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि महाभारत के पश्चात् भी अरब जगत वैदिक संस्कृति के रंगों मे रंगा हुआ था . लोग वेद वाणी को ही ईश्वरीय वाणी मानता था और उसी अनुरुप अपना जीवन जीया करता था , परन्तु ऐसी क्या परिस्थिति बनी की लोग इस ज्ञान से दूर होकर अवैदिक रिति-रिवाजों को अपने घर कर लिया .
जैसा की सभी जानते हैं कि है भारतवर्ष सृष्टि के आदि से ही ज्ञान – विज्ञान का जननी रहा है . विश्व का प्रत्येक देश इस भूमि को अपना गुरु मानता था और यहीं से विद्या ग्रहण करता था . इसी की वजह से भारत मे प्रचलित वैदिक धर्म अन्य देशों मे भी मौजूद था . स्वाभाविक सी बात है गुरु देश मे जो मान्यताएँ होगी वही शिष्य देश भी ग्रहण करेगा . जब महाभारत हुआ तो करोड़ों वर्षों से संरक्षित भारतीय ज्ञान – विज्ञान का क्षय का हो गया . इस ज्ञान को संरक्षित रखन हेतु योग्यत्तम व्यक्तियों का अभाव हो गया .लोग धीरे – धीरे वैदिक मान्यताओं को त्यागने लगे और अवैदिक मान्यताओं को अपनाने लगे . जब ज्ञान विज्ञान की जननी देश मे ही यह स्थिति हो गई तो स्पष्ट है अन्य देश मे भी यहां की अवैदिक मान्यताएँ अपनायी जायेगी  और वही हुआ . भारत मे लोग पाखंड, अंधविश्वास, बलि प्रथा आदि का प्रचलन शुरु हो गया . यज्ञ मे हजारों की संख्या मे पशुबलि होने लगी , लोग मांसाहारी हो गया . सब तरफ हिंसा का बोलबाला हो गया . तब हिंसा की इस चर्मोत्कर्ष परिस्थिति ने भारत मे अहिंसावादी मानव ‘बुद्ध’ और ‘महावीर’ का जन्म हुआ जिसने अहिंसा का प्रचार-प्रसार किया और पुन: विश्व के देशों ने भारत से इस संदेश को ग्रहण किया. परन्तु लोगों ने बाद मे उसी बुद्ध और महावीर का मुर्ति बनाकर पूजने लगा. तब वैदिक धर्मावलम्बी जो की अवैदिक मान्यताओं मे फंस चुका था , अपनी अस्तित्व को बचाने हेतु विभिन्न प्रकार के पुरानों की रचना करके विभिन्न प्रकार के देवी- देवताओं की कल्पना किया और उसका मूर्ति बना कर लोगों के बीच प्रस्तुत किया. इस प्रकार वेद की पावन उक्ति – ” एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति ” को भूलकर ऐकेश्वरवाद से बहुदेववाद की ओर लोग बढ़ गया और अवतारवाद की नई अवैदिक मान्यता की कल्पना की गई . जब भारत मे अवतारवाद, मूर्तिपूजा आदि प्रचलित हो गई . इसको देखकर अरब मे भी यह अवतारवाद और मूर्तिपूजा का सिद्धांत प्रचलन मे आ गया . जिसको उस समय के अरब के प्रख्यता कवियों ने अपनी कविताओं मे बहुत ही स्पष्ट वर्णन किया है .जैसा की मै पिछले भागों मे वह शेर पेश कर चुका हूं जिसमे वेद का वर्णन किया गया है और जो की लगभग ३८-३९०० वर्ष पुराना शेर है .उस से स्पष्ट हो गया था कि जिस समय भारत मे वैदिक मान्यताएँ प्रचलित थी उस समय तक अरब मे भी वैदिक व्यवस्था थी . अब मै प्रमाण के रुप मे उन कवि का वह शेर पेश करुंगा , जिसमें भगवान कृष्ण और उनकी गीता और अवतारवाद का वर्णन है. अर्थात् भारत मे जब वैदिक मान्यताओं का ह्रास हो गया और अवैदिक मान्यताएं , अवतारवाद आदि प्रचलित हुआ तो वहां भी वही मान्यताएं प्रचलित हो गई. लेख लंबी हो चुकी है , शेर को अगले भाग मे पेश करुंगा . अगला भाग जरुर पढ़ें , भारत मे प्रचलित भगवान कृष्ण की पुरानोक्त लीला का वर्णन अरब के ही कवि के शब्दों मे !

पढ़ते रहें , पढ़ाते रहें !

क्रमश :

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब

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