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शौर्य की ज्वाला “पद्मावती” :गौरव आर्य
गतांक से आगे
राजा रतनसिंह और रानी पद्मिनी को लेकर “मलिक मुह्हमद जायसी” ने एक काव्य “पद्मावत” लिखा था, आज विरोध का कारण वही काव्य है
इतिहास के अभाव में लोगों ने “पद्मावत” को एतिहासिक पुस्तक मान लिया, परन्तु वह आजकल के किसी काल्पनिक उपन्यासों के जैसी है
रानी पद्मिनी के जोहर के लगभग २५० वर्ष पश्चात एक मुगल कवि द्वारा राजपूतों की शान बताकर कोई काव्य लिखना और उसे प्रमाणिक मानना हमारे शोधकर्ताओं के उदासीन रवैये को प्रदर्शित करता है और आज पर्यन्त उसे प्रमाणिक मानकर उसका उपयोग लेना और फिल्मनिर्माता द्वारा उस पर फिल्म बनाना अत्यंत निराशाजनक है
जबकि उस काव्य में राजपूत मान मर्यादा, शान, रीतिरिवाज को नष्ट कर दिया गया हो
पद्मावत में क्या लिखा है –
जायसी ने काव्य “पद्मावत” तो बहुत विस्तृत लिखा है यहाँ सिमित दायरे में आपको बताते है:-
सिंहल देश के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री का नाम पद्मिनी था, इस राजपुत्री को पक्षी पालने का शौक था ! उसके पक्षियों में एक हिरामन नाम का तोता था जो मनुष्यों की भाषा समझने और उसी में बोलने की कला में निपुण था
एक दिन तोते को एक व्याध ने पकड़ लिया और रुपयों के लालच में एक ब्राह्मण को बेच दिया, ब्राह्मण ने तोते को चितोडगढ़ के रावल रतनसिंह को भेंट कर दिया
तत्पश्चात रतनसिंह की रानी अपनी प्रशंसा कर रही थी तो तोते ने पद्मिनी के सोंदर्य का बखान किया, जिसे सुन रतनसिंह उसे पाने के लिए अधीर हो गया और सिंहल देश (श्री लंका) पहुँच गया, अकेला होने की वजह से युद्ध का विचार त्यागकर १२ वर्ष साधू के वेश में रहकर उसे पाने का बहुत प्रयास किया, एक दिन तोता रतनसिंह के चंगुल से छुटकर पद्मिनी के पास चला गया और रतनसिंह के बारे में बताया जिससे राजकुमारी उस पर मोहित हो गई एक दिन दोनों की भेंट होती है जहाँ रतनसिंह पद्मिनी का सोंदर्य देखकर मुर्छित हो जाता है, राजकुमारी के प्रेम को देखकर राजा गन्धर्वसेन राजकुमारी की इच्छाओं का सम्मान करता है और अंततः दोनों का विवाह हुआ और रतनसिंह पद्मिनी को लेकर चितोड़गढ़ आ गया
अब कहानी को दिलचस्प बनाने और उसे खिलजी से जोड़ने के लिए एक किरदार और जोड़ा
जायसी ने लिखा एक दिन “राघव चेतन” नाम का व्यक्ति रावल के दरबार में आया और नौकरी पर रखने की प्रार्थना की जिसे राजा ने स्वीकार कर लिया, थोड़े समय पश्चात रावल को ज्ञात हुआ की राघव चेतन जादू टोना जानता है तो रावल ने उसे बाहर निकाल दिया, रानी पद्मिनी को उस पर तरस आता है तो वह स्वयं उसकी सहायता के लिए पेसे देती है, उस समय राघव रानी को देखता है और वह रानी के सोंदर्य का दीवाना हो जाता है, राघव ने रावल रतनसिंह से बदले की भावना से अल्लाउद्दीन के कान भरकर उसे युद्ध के लिए प्रेरित करने का विचार किया और दिल्ली जाकर उसे पद्मिनी के सोंदर्य के बारे में बताया और राजा को उकसाया की ऐसे सौन्दर्य की देवी को तो आपके राज दरबार का हिस्सा होना चाहिए
तो खिलजी चितोड़गढ़ पर चढाई कर देता है रावल रतनसिंह और खिलजी के बीच करीब ६ महीने युद्ध चलता है और मुगल सेना निराश होने लगती है तो खिलजी राजा के पास प्रस्ताव लेकर जाता है की तुम अपनी पत्नी को केवल कांच में दिखा दो तो भी हम यहाँ से चले जायेंगे और राजा यह शर्त स्वीकार कर लेता है और योजना बनती है की महल में काच लगाया जाए जहाँ से खिलजी दूर से रानी को देखे, रानी को देखकर खिलजी मोहित हो जाता है, चितोड़ से प्रस्थान का कार्यक्रम बनता है रतनसिंह द्वार पर छोड़ने आता है, जहाँ से धोखे से उसे बंदी बनाकर दिल्ली ले जाया जाता है
दिल्ली ले जाकर खिलजी सुचना भेजता है की यदि रानी पद्मिनी को हमें दे दिया जाए तो हम रतनसिंह को छोड़ देंगे तो रानी एक योजना बनाती है जिसमें ७०० पालकियों में सैनिकों को दासियों के वेश में लेकर जाती है और खिलजी को कहाँ जाता है की वह आ रही है और युक्ति लगाकर राजा को वहां से भगाकर पुनः चितोड़ ले आते है
जिससे खिलजी क्रोधित होकर पुनः चितोड़ पर आक्रमण करता है जहाँ रतनसिंह शहीद हो जाते है और रानी पद्मिनी कई रानियों दासियों के साथ जोहर कर लेती है
जिसकी सुचना पाकर खिलजी को आत्मग्लानि होती है और वह निराश होकर दिल्ली लोट जाता है
(“चितोड की ज्वाला रानी पद्मिनी : दामोदरलाल गर्ग” से कुछ भाग)
यह बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में कहानी को यहाँ बताया है
जायसी ने तो इस काव्य में प्रेम प्रसंग का इतना पुट दिया है की कही से राजपूती शान, मर्यादा, रीतिरिवाज, वीरता के दर्शन नहीं होते |
“पद्मावत कथा की समाप्ति में जायसी ने इस सारी कथा को एक रूपक बतलाया है”
(उदयपुर राज्य का इतिहास पृष्ठ १७४)
बाद के लेखकों ने भी इसे प्रमाणिक मानकर अपनी लेखनी को गति दी है और उस पर कुछ कुछ घालमेल कर अपने अपने काव्य लिख दिए है
पाठकों को इस काव्य को राजपूती मान मर्यादा उनके जीवन को ध्यान में रखकर इसे पढ़कर निर्णय लेना चाहिए की इस कवि ने रानी पद्मिनी के जोहर राजपूती शान के साथ कितना खिलवाड़ किया
राजपूती शान क्या रही है इस पद्य को पढ़कर समझा जा सकता है
“चितोड़ चम्पक ही रहा यद्यपि यवन अली हो गये,
धर्मार्थ हल्दीघाट में कितने सुभट बली हो गये !
“कुल मान जब तक प्राण तब तक, यह नहीं तो वह नहीं”,
मेवाड़ भर में वक्तृताए गुँजती ऐसी रही ||
राजस्थान की मिटटी में जन्में रक्त की ज्वाला देखो
“विख्यात वे जौहर यहाँ के आज भी है लोक में,
हम मग्न है उन पद्मिनी-सी देवियों के शोक में !
आर्य-स्त्रियाँ निज धर्म पर मरती हुई डरती नहीं,
साद्यंत सर्व सतीत्व-शिक्षा विश्व में मिलती नहीं ||”
“पद्मावत” काव्य को पढ़कर और रतनसिंह के कार्यकाल के समय को देखा जाए तो यह पूरा काव्य झूठा और बेबुनियाद लगता है
जो प्रमाण मिलते है जो शिलालेख मिले है उसके अनुसार रतनसिंह का कार्यकाल १ साल के करीब रहा है
(उदयपुर राज्य का इतिहास भाग १, पृष्ठ संख्या १८७)
अब यह विचारणीय है की इस १ वर्ष में उक्त काव्य की घटनाए कैसे घटित हुई होगी
१. जैसे रतनसिंह का राजतिलक हुआ होगा, राजकाज सम्भाला फिर कुछ समय बाद तोते का मिलना, फिर सिंहल देश जाने की योजना बनाना, सिंहलदेश जाने का समय और वहां जाकर १२ वर्ष साधू के वेश में रहना, फिर पुनः चितोड़ आना, फिर राघव का आना, उसे निकाला जाना और उसका दिल्ली जाकर कई महीनों बाद खिलजी से मिलना, खिलजी का चितोड़ पर ६ महीने तक आक्रमण करना फिर रावल को बंदी बनाकर दिल्ली ले जाना जहाँ से पुनः छुड़ाकर लाना उसके बाद पुनः युद्ध होना फिर जोहर होना
इतने सारे कार्य में कितने वर्ष लगे होंगे और उन सबके पश्चात रतनसिंह का केवल १ वर्ष का कार्यकाल सिद्ध होना प्रमाण के लिए पर्याप्त है की जायसी का काव्य कपोल कल्पित है
२. यदि मान लिया जाए की रावल का कार्यकाल अधिक रहा होगा तो एक राजा का १२ वर्ष तक साधू के वेश में रहना अमान्य है और राजपुताना तो विश्व प्रसिद्ध रहा है फिर यदि रावल स्वयं जाकर राजा गन्धर्वसेन से उनकी पुत्री का हाथ मांगते तो उन्हें स्वीकार अवश्य होता इसमें कोई संशय नहीं
३. जो कार्यकाल रावल रतनसिंह का पाया जाता है उस समय सिंहल देश में गन्धर्वसेन नाम का कोई राजा नहीं था एक अन्य जगह पद्मिनी के पिता का नाम हम्मीर शंख बताया है इस नाम का राजा भी उस समय सिंहल देश में नहीं था उस समय राजा कीर्तिनिश्शंकदेव पराक्रमबाहू (चतुर्थ) था |
(उदयपुर राज्य का इतिहास भाग १, पृष्ठ संख्या १८७)
४. उसके बाद राघव की सहायता स्वयं रानी के हाथों से होना भी संदेह उत्पन्न करता है क्यूंकि राजपूती मर्यादा इस बात की आज्ञा नहीं देती की घर की बहन बेटियां किसी गैर मर्द को मिले बात करें या किसी प्रकार का कोई दान या भिक्षा दे, राजपूती क्या जन समान्य में भी जो अच्छे घराने के लोग है वे भी इसकी आज्ञा नहीं देते
५. अपनी पत्नी के प्रदर्शन की शर्त स्वीकार करना किसी भी राजपूत की मर्यादा के विपरीत है जहाँ एक और राजपूती इतिहास वीरता से भरा पड़ा है, सब प्रकार से साधन सम्पन्न शक्तिशाली राजा के होते ऐसी बात को स्वीकार करना बिलकुल राजपूती मान मर्यादा के विपरीत है, एक सामान्य मनुष्य भी अपनी पत्नी को लेकर ऐसी शर्त स्वीकार नहीं करेगा
६. सिंहल देश में रावल रतनसिंह का पद्मिनी को देखकर मूर्छित हो जाना भी गलत लगता है, यह तो उस काल की बात है जब राजपूती रक्त वीरता का पर्याय था उस समय राजा का मूर्छित होना हास्यास्पद है जबकि आजकल के लड़के तो किसी सुन्दरी को देखकर भी मूर्छित न हो |
७. चूँकि राजा रतनसिंह का कार्यकाल १ वर्ष का ही रहा और इतने से कार्यकाल में उसका विवाह होना और ६ से ८ माह का युद्ध होना उसके अनुसार रानी पद्मिनी का दिल्ली जाकर राजा को छुड़ाना भी कल्पना मात्र ही है, अनुमान है की इस कार्यकाल में अलाउद्दीन ने चितोड़ पर आक्रमण किया युद्ध ६ माह के लगभग चला और इस युद्ध में राजा रतनसिंह इस लड़ाई में लक्ष्मणसिंह सहित कई सामंतों के साथ मारा गया, उसकी रानी पद्मिनी ने कई रानियों के साथ जौहर किया
(उदयपुर राज्य का इतिहास भाग १ पृष्ठ १९१)
८. रानी पद्मिनी को लेखक सिंहल देश का बताते है और उस काल में जिस राजा का नाम लिया जाता है उस समय में उस नाम के किसी भी राजा का कोई इतिहास नहीं मिलता और राजा रतनसिंह के इतने से छोटे से कार्यकाल में उसका सिंहलदेश जाना वहां साधू का वेश धारण करना यह सब कल्पना ही है इसमें सच्चाई लेशमात्र भी नहीं |
वस्तुतः रानी पद्मिनी पंगल, पिंगल अथवा पूंगलगढ़ की रहने वाली थी जो वर्तमान में बीकानेर के अंतर्गत आता है | ढोला-मारू लोक गाथा की नायिका भी इसी गढ़ की रहने वाली थी | राजस्थानी लोकगीतों से भी प्रमाणित होता है की रानी पद्मिनी पंगल (पूंगलगढ़) की रहने वाली थी- देखे:-
“पगि पगि पांगी पन्थ सिर ऊपरि अम्बर छांह |
पावस प्रगटऊ पद्मिनी, कह उत पंगल जाहं ||”
इसी प्रकार इसके पिता और पति के नामों में भ्रम का संचार हुआ है जबकि पिता का नाम रावल पूण्यपाल एवं माता का नाम जामकंवर था | पति का नाम रावल रतनसिंह था |
(चितोड़ की ज्वाला “रानी पद्मिनी” {रानी पद्मिनी की एतिहासिकता और ख्यातिप्राप्त जौहर} पृष्ठ ५१)
सार यही है की रानी पद्मिनी को लेकर जो इतिहास “पद्मावत” उपलब्ध है वह सर्वदा अमान्य है क्यूंकि उसमें लिखी कई बातों के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, उसमें जो समय गणना है, जो जो भौगौलिक स्थिति दर्शाई गई है, जो जो घटनाए दर्शाई गई है वे मूल इतिहास से बिलकुल नहीं जुडती/विपरीत है
रानी पद्मिनी के इतिहास और भौगौलिक स्थितियों को देखकर, उदयपुर राज्य के इतिहास को समझकर, राजाओं के काल को देखकर यही प्रतीत होता है की
रानी पद्मिनी रावल रतनसिंह की पत्नी थी, रावल का कार्यकाल १ वर्ष रहा उसी समय अलाउद्दीन खिलजी ने चितोड़ पर आक्रमण किया यह एक बार ही किया गया था और ६ माह के युद्ध में रावल रतनसिंह मारे गये और रानी पद्मिनी ने अपने सतीत्व की रक्षा में कई रानियों और दासियों के साथ जौहर कर लिया
इसके अतिरिक्त जो घटनाए जैसे
७०० डोलियाँ लेकर जाना
राघव चेतन द्वारा मुखबरी करना
रावल द्वारा रानी पद्मिनी का चेहरा दिखाना
धोखे से रावल को कैद कर दिल्ली ले जाना
सिंहल देश जाकर १२ वर्ष साधू के वेश में रावल का रहना
और इसके अतिरिक्त कई तथ्य केवल कल्पना मात्र है इनका कोई प्रमाण आज तक नही मिलता
इन सब तथ्यों को पढ़कर मेरा भंसाली से विरोध यही है की जिस इतिहास को प्रमाणिक नहीं माना गया है उसे उपयोग में लेकर फिल्म बनाकर उसे प्रदर्शित करना इतिहास प्रदुषण है जो मान्य नहीं है,
ऐसी अभिनेत्रियों को रानी पद्मिनी के किरदार में प्रदर्शित करना जिनका स्वयं का चरित्र निम्न स्तर का हो
जिस वर्ग पर फिल्म बनाई जा रही है उससे चर्चा न करना, उनसे विचार विमर्श किये बिना उनके इतिहास से छेड़छाड़ करना
उनके विरोध के पश्चात उसमें बदलाव न करना और उसे प्रदर्शित करने पर अड़े रहना
यह सब विरोध के प्रमुख कारण है परन्तु एक तथ्य यह भी है की फिल्म के मुफ्त प्रमोशन के लिए भी हो सकता है यह भंसाली का कोई एजेंडा हो
यह सब गर्त में छुपा है इस पर पूरी प्रतिक्रिया फिल्म की कहानी पता चलने के बाद ही दी जा सकती है इससे आगे यह कहना की यह फिल्म न देखने जाए या जाए यह पाठकों की बुद्धि पर छोड़ दिया जाना ज्यादा उचित है
इति शम
नमस्ते