वर्ण-व्यवस्था के सम्बन्ध में स्वामी दयानन्दजी का दृष्टिकोण

वर्ण-व्यवस्था के सम्बन्ध में स्वामी दयानन्दजी का दृष्टिकोण

प्रश्न: क्या जिसके माता ब्राह्मणी, पिता ब्राह्मण हों, वह ब्राह्मण होता है ? और जिसके माता-पिता अन्य वर्णस्थ हों, उनका सन्तान कभी ब्राह्मण हो सकता है ?

उत्तर: हाँ बहुत से हो गये, होते हैं और होंगे भी। जैसे छान्दोग्य उपनिषद् में जाबाल ऋषि अज्ञातकुल, महाभारत में विश्वामित्र क्षत्रिय वर्ण और मातंग ऋषि चाण्डाल कुल से ब्राह्मण हो गये थे। अब भी जो उत्तम विद्या स्वभाववाला है, वही ब्राह्मण के योग्य और मूर्ख शूद्र के योग्य होता है और वैसा ही आगे भी होगा।

प्रश्न: हमारी उलटी और तुम्हारी सूधी समझ है, इसमें क्या प्रमाण है ?

उत्तर: यही प्रमाण है कि जो तुम पाँच-सात पीढ़ियों के वर्तमान को सनातन व्यवहार मानते हो और हम वेद तथा सृष्टि के आरम्भ से आज पर्यन्त की परम्परा मानते हैं। देखो, जिसका पिता श्रेष्ठ उसका पुत्र दुष्ट और जिसका पुत्र श्रेष्ठ उसका पिता दुष्ट तथा कहीं दोनों श्रेष्ठ वा दुष्ट देखने में आते हैं। इसलिए तुम लोग भ्रम में पड़े हो।

…….जो कोई रज-वीर्य के योग से (जन्मना) वर्ण-व्यवस्था मानें और गुण कर्मों के योग से न मानें तो उससे पूछना चाहिए कि-जो कोई अपने वर्ण को छोड़ अन्त्यज अथवा क्रिश्चियन-मुसलमान हो गया हो, उसको भी ब्राह्मण क्यों नहीं मानते ? यहाँ यही कहोगे कि उसने ब्राह्मण के कर्म छोड़ दिये, इसलिए वह ब्राह्मण नहीं है। इससे यह भी सिद्ध होता है, जो ब्राह्मणादि उत्तम कर्म करते हैं, वे ही ब्राह्मणादि और जो नीच भी उत्तम वर्ण के गुण कर्म स्वभाववाला होवे, तो उसको भी उत्तम वर्ण में और जो उत्तम वर्णस्थ होके नीच काम करे तो उसको नीच वर्ण में गिनना अवश्य चाहिए।

– सत्यार्थप्रकाश: चतुर्थ समुल्लास

2 thoughts on “वर्ण-व्यवस्था के सम्बन्ध में स्वामी दयानन्दजी का दृष्टिकोण”

Leave a Reply to Shyam Kumar ariya Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *