मनु के मत में शूद्र अछूत नहीं: डॉ सुरेन्द्र कुमार

मनु ने शूद्रों को निन या अछूत नहीं माना है। उनका शूद्रों के प्रति महान् मानवीय दृष्टिकोण है। ये आरोप वे लोग लगाते हैं जिन्होंने मनुस्मृति को ध्यान से नहीं पढ़ा, या जो केवल ‘विरोध के लिए विरोध करना’ चाहते हैं। कुछ प्रमाण देखें-

(अ) मनु के मत में शूद्र अछूत नहीं

मनुस्मृति में शूद्रों को कहीं अछूत नहीं कहा है। मनु की शूद्रों के प्रति समान व्यवहार और न्याय की भावना है। मनुस्मृति में वर्णित व्यवस्थाओं से मनु का यह दृष्टिकोण स्पष्ट और पुष्ट होता है कि शूद्र आर्य परिवारों में रहते थे और उनके घरेलू कार्यों को करते थे-

(क) शूद्र को अस्पृश्य (=अछूत), निन्दित मानना मनु के सिद्धान्त के विरुद्ध है। महर्षि मनु ने शूद्र वर्ण के व्यक्तियों के लिए ‘‘शुचि’’ = पवित्र, ‘‘ब्राह्मणाद्याश्रयः’’ = ‘ब्राह्मण आदि के साथ रहने वाला’ जैसे विशेषणों का उल्लेख किया है। ऐसे विशेषणों वाला और द्विजों के मध्य रहने वाला व्यक्ति कभी अछूत, निन्दित या घृणित नहीं माना जा सकता। निनलिखित श्लोक देखिए-

       शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुः   मृदुवाक्-अनहंकृतः।

       ब्राह्मणाद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते॥     (9.335)

    अर्थ-‘शुचिः= स्वच्छ-पवित्र और उत्तमजनों के संग में रहने वाला, मृदुभाषी, अहंकाररहित, ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्यों के आश्रय में रहने वाला शूद्र अपने से उत्तम जाति=वर्ण को प्राप्त कर लेता है।’ तीनों वर्णों के सान्निध्य में रहने वाला और उनके घरों में सेवा=नौकरी करने वाला कभी अछूत, घृणित या निन्दित नहीं हो सकता।

    (ख) डॉ0 अम्बेडकर र द्वारा समर्थन- इस श्लोक का अर्थ डॉ0 अम्बेडकर र ने भी उद्धृत किया है अर्थात् वे इसे प्रमाण मानते हैं-

‘‘प्रत्येक शूद्र जो शुचिपूर्ण है, जो अपने से उत्कृष्टों का सेवक है, मृदुभाषी है, अहंकाररहित है, और सदा ब्राह्मणों के आश्रित रहता है, वह उच्चतर जाति प्राप्त करता है। (मनु0 9.335)’’ (अम्बेडकर र वाङ्मय, खंड 9, पृ0 117)

मनु के वर्णनानुसार शूद्र शुद्ध-पवित्र थे, वे ब्राह्मणादि द्विजों के सेवक थे और उनके साथ रहते थे। इस प्रकार वे अस्पृश्य नहीं थे। जैसा कि पहले कहा जा चुका है शूद्र आर्य परिवारों के अंग थे क्योंकि वे आर्य वर्णों के समुदाय में थे। इस श्लोकार्थ के उद्धरण से यह संकेत मिलता है कि डॉ0 अम्बेडकर र यह स्वीकार करते हैं कि मनुमतानुसार शूद्र अस्पृश्य नहीं है। अस्पृश्य होते तो मनु उनको आर्य परिवारों का सेवक या साथ रहने वाला वर्णित नहीं करते।

(ग) शूद्रवर्णस्थ व्यक्ति अशिक्षित होने के कारण ब्राह्मणों सहित सभी द्विजवर्णों के घरों में सेवा या श्रम कार्य करते थे। घर में रहने वाला कभी अछूत नहीं होता। मनु ने कहा है-

    विप्राणां वेदविदुषां गूहस्थानां यशस्विनाम्

    शुश्रूषैव तु शूद्रस्य धर्मो नैःश्रेयसः परः॥ (9.334)

    अर्थ-वेदों के विद्वान् द्विजों, तीनों वर्णों के प्रतिष्ठित गृहस्थों के यहां सेवाकार्य (नौकरी) करना ही शूद्र का हितकारी कर्त्तव्य है।

6 thoughts on “मनु के मत में शूद्र अछूत नहीं: डॉ सुरेन्द्र कुमार”

  1. Dr.Surender Kumar ji hum Aapke es Manu mahraj ki smrti ko anuwadit Kar samjhane ki kosise ko bahut srahneye kadam samajh rahe hai bas ab jarurat hai ki samaj Jo bhatke huye log hai unhe Sahi Marg darshan dene Ka parntu hame ye lag rha hai ki yah bat ko koi Sudra (MATLAB Jo Galt fahmi sikar hai )unhi me se koi yah beeda uthaye to jayada asar Hoga.
    Hamara samaj fir se aage badh Sakta hai

  2. Yes. The Shudras are not untouchables but people of mixed castes like Chandals, Dhigvanas, Venas are untouchables according to Manu Smriti. These are the progeny of a Brahmin woman and Shudra men who go on marrying the Shudras from one generation to another.

  3. बुद्ध ने कोनसा घ्यान दिया सिवाय नफ़रत और झुठ चालाकी से बुद्धजीवी बनाओं।
    धर्म का प्रचार करो। सबको बुद्ध में कन्वर्ट कराओ अगर बनाना है तो इंसान बनाओं जो धर्म से प्रचार करके बनता है वह जल्द ही उजागर हो जाता है सिरिया में बोध को खत्म कर दिया गया मुर्तियां तोड़ दी गई इस्लामिक राष्ट्र बना दिया। लेकिन उसके खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि हमारी तरह थोड़ी है। जो चुपचाप सुनते रहेंगे।

    वेदों का ग़लत अर्थ बताकर लाखों हिंदुओं में जहर घोल दिया भाई भाई में टकरार पैदा कर दी। सही अर्थ भी जान लो
    यजुर्वेद 18.48: रुचं नो धेहि ब्राह्मणेषु रुचं राजसु नस्कृधि।
    रुचं विश्येषु शूद्रेषु मयि देहि रुचा रुचम्॥
    प्रार्थना है कि हे परमात्मन! आप हमारी रुचि ब्राह्मणों के प्रति उत्पन्न कीजिए, क्षत्रियों के प्रति उत्पन्न कीजिए, विषयों के प्रति उत्पन्न कीजिए और शूद्रों के प्रति उत्पन्न कीजिए।

    (अथर्ववेद 19.32.8)”प्रियं मा दर्भ कृणु ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च।”
    ‘मुझे ब्राह्मण, क्षत्रिय, शुद्र और वैश्य सबका प्रिय बनाइये, मैं सबसे प्रेम करने वाला और सबका प्रेम पाने वाला बनूं।

    (अथर्ववेद 19.62.1) प्रियं मा कृणु देवेषु प्रियं राजसु मा कृणु। प्रियं सर्वस्य पश्यत उत शूद्रे।”
    प्रार्थना है कि हे परमात्मा! आप मुझे ब्राह्मणों का, क्षत्रियों का, शूद्रों का और वैश्यों का प्यारा बना दें। इस मंत्र का भावार्थ यह है कि हे परमात्मा! आप मेरा स्वभाव और आचरण ऐसा बना दें जिसके कारण ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य सभी मुझे प्यार करें। अब यहां समझने वाली बात यह है कि यह मंत्रकर्ता कौन था?

    जन्मना जायते शूद्रः कर्मणा द्विज उच्यते।
    अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं।

    वर्ण व्यवस्था होनी क्या है

    क्षत्रीय (security officer) सुरक्षा अधिकारी
    ब्राह्मण (priest) ब्राह्मण का अर्थ है “ईश्वर का ज्ञाता”।
    वैश्य (businessman) व्यापार करने वाला व्यापारी
    शुद्र (workers’) कर्मी

    वर्ण व्यवस्था और जाती व्यवस्था में बहुत अन्तर है।
    वर्ण व्यवस्था
    क्षत्रीय _आर्मी आफिसर, कमांडिंग ऑफिसर, पुलिस कर्मी, चोकिदार, बोड़ी गार्ड जो रक्षा व निगरानी करते हैं वह क्षत्रिय (सिक्योरिटी आफिसर) हैं।

    ब्राह्मण_ वह जो ईश्वर का घ्यान देता है जो पुजारी, भक्त, साधु सन्तों,
    अंग्रेजी में पादरी फादर, उर्दू अरबी में मोलाना इत्यादि।

    वैश्य_वह व्यापारी होता है जो समान बेचकर पैसा कमाता है। मुकेश अंबानी,अडानी, बिरला,टाटा, यह सब व्यापार करने वाले व्यापारी को वैश्य (बिजनेस) मैन कहते हैं।

    शुद्र_ वह काम करने वाला व्यक्ति होता है जो खुद के लिए या दुसरे के लिए करता हो । स्वर्णकार, मुर्तिकार, चित्रकार, शिल्पकार, खेत पर काम करने वाला किसान, रिक्शा वाला, टेक्सी चालक, कुम्हार,भवन निर्माण करने वाला कारीगर, मजदूर, मेनेजर, आफिस या फेक्ट्री में काम करने वाले, डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, यह सब किसी ना किसी के यहां काम करते हैं। इत्यादि इत्यादि।

    और वर्ण व्यवस्था और जाती व्यवस्था में अन्तर है। वर्ण व्यवस्था में भेदभाव नहीं किया जाता है। कर्म के आधार पर बनता है। देखा जाए तो वर्ण व्यवस्था आज भी है नाम बदल गये
    क्षत्रीय (security officer) सुरक्षा अधिकारी
    ब्राह्मण (priest) ब्राह्मण का अर्थ है “ईश्वर का ज्ञाता”।
    वैश्य (businessman) व्यापार करने वाला व्यापारी
    शुद्र (workers’) कर्मी

    और जरा सिया सुनी देवबंदी एलेहदिश बरेली मुस्लिम जातियों को भिडाओ जो एक दुसरे की मस्जिद में जा नहीं सकते। एक दुसरे के आगे पीछे नमाज नहीं पढ सकते । एक दुसरे के कट्टर विरोधी है। लेकिन उनसे तो डर लगता है हिन्दुओं को भिडाओ धर्म परिवर्तन कराओ।

    जरा कुरान की हदिशो आयतों पर बात करो 26 आयतें गुगल कर लो उस पर तो सबके साथ अन्याय है आवाज उठाओ लेकिन नहीं करेंगे वह हमारी तरह थोड़ी है।

  4. i am totally dissatisfied with this explanation of Manu perception on shudras . it is totally opposite and contradictory to Hindu varna system. i am unable to understate that one side they treated as untouchable , by which shadows upper caste people polluted , how they had living with shudras. How could they accept services of shudras at their in home. Shudras are not utilized the well which village had generally used . The upper caste people who is polluted merely their shadows and to recover as sacred they used ganga jal then how it is possible that these so called upper caste brahimins take services at their home and also how can they have give preservation to these untouchable. so many time in manusmriti , manu has mentioned wrong perception about shudar and women then how this contradictory thought developed in manu’s mind the these shudra are sacred and deserve to living with three upper caste. i do not find any instances or historical evidence where any lower caste / shudra have gotten the posotion or varne of upper catsec like brahmin by their work and karma except mythologies.

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