इस्लाम में नारी की स्थिति – २ :- कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश

ws

 

 

कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश

कुरान में लिखा है की-

    “अगर तुम्हारा इरादा एक बीबी को बदल कर उसकी जगह दूसरी बीबी करने का हो तो जो तुमने पहिली बीबी को बहुत सामान दे दिया हो तो भी उसमे से कुछ भी न लेना |

   क्या किसी को तौहमत लगा कर जाहिर बेजा बात करके अपना दिया हुआ वापिस लेते हो ?”

(कुरान सुरह निसा आयत २०)

तलाक देकर या बिना तलाक दिए मर्दों को इच्छानुसार आपस में अपनी बीबियाँ बदल लेने का अधिकार कुरान ने इस शर्त पर दिया है की इसे दिया हुआ माल वापिस न लिया जावे |

इस शर्त का पालन करने वाले दो दोस्त आपस में अपनी बीबियाँ ऐसे ही बदल सकते हैं जैसे लोग अपनी बकरी या गाय, भेंस आदि बदल लेते हैं |

हिन्दू समाज में पति-पत्नी का रिश्ता जीवन भर के लिए अटूट होता है, पर इस्लाम में मर्द जब चाहे तब अपनी पुरानी बीबी को अपनी पुराणी जूती की तरह नई नवेली बीबी से बदल सकता है |

इस्लाम में कोई बीबी नहीं जानती की उसका शौहर कब उसे किसी दूसरी नई बीबी से बदल लेवे | इसके लिए तलाक का आसान तरीका इस्लाम में चालु जो है |

 

मर्द सिर्फ तीन बार तलाक ! तलाक !! तलाक !!! औरत को बोल दे और तलाक जायज हो जाता है |

     देखिये:- कुरान में सूरते बकर रुकू २८ में आयत २२८ से २३७ तक तलाक का विधान मौजूद है | उस पर श्री अहमद बशीर साहब ऍम.ए. कामिल, तथा दवीर कामिल मौलवी अपने कुरान के भाष्य में पृष्ठ ५५ पर लिखते हैं की:-

तलाक का यह दस्तूर है की जब कोई मुसलमान मर्द अपनी औरत को तलाक देता है तो कम से कम दो आदमियों के सामने तलाक देता है, और एक महीनें के बाद दूसरी तलाक भी उसी तरह देता है |

    यहाँ तक तो मियाँ बीबी में सुलहनामाँ हो सकता है, परन्तु इसके एक महीने बाद तीसरी तलाक दी जाती है | इस तीसरी तलाक देने के बाद फिर मर्द उस औरत के पास नहीं जा सकता | यह औरत तीन महीना दस दिन बाद दुसरा निकाह गैर आदमी से कर सकती है |

     दुसरे पति के साथ निकाह हो जाने पर अगर दुसरा पति तलाक दे दे तो सिर्फ इस हालत में की वह दुसरे पति के साथ सम्भोग कर चुकी हो अर्थात हमबिस्तर हो चुकी हो, तो तभी अपने पूर्व पति के साथ फिर निकाह कर सकती है |

    परन्तु जब तक किसी दुसरे आदमी के साथ निकाह करके विषयभोग न कर ले (यानी हमबिस्तर न हो ले ) तब तक कदापि अपने पहले खाविन्द अर्थात पति के साथ निकाह नहीं कर सकती |

इस तलाक के विधान में हम केवल यह बात नहीं समझ सके की तीसरी तलाक के बाद औरत को गैर आदमी से निकाह व् सम्भोग कराने के बाद ही उसे तलाक देकर आने के बाद ही पूर्व पति स्वीकार करेगा, बिना गैर आदमी से सम्भोग कराये नहीं करेगा ?

दुसरा शौहर करके उससे कुकर्म कराने पर औरत में ऐसा कौन सा जायका बढ़ जाता है ? मौलवी लोग इसका खुलासा करें तथा इस अजीबोगरीब फिलासफी को ज़रा सबकी भलाई के लिए विस्तार से समझाए |

हमारी निगाह में तो इस रिवाज के मुताबिक़ औरत और भी ज्यादा बेशर्म बनेगी |

कुरान की इस आयत के समर्थन में बुखारी शरीफ में एक कथा दी है, जो हदीस न० ६९२ पृष्ठ ३३१ व् ३३२ पर लिखी है, देखिये-

हजरत आयशा फरमाती हैं की-

        “रफाअकुरती की औरत रसूलल्लाह सलालेहु वलैहिअसल्लम (मुहम्मद साहब) की खिदमत में हाजिर हुई और अर्ज किया की में रफाअ के पास (यानी उसके निकाह में) थी |

   उसने मुझे तीन तलाक दे दी उसके बाद मैंने अब्दुल रहमान बिन जबीर से निकाह कर लिया | परन्तु उसके पास (उसका लिंग) कपडे के फुन्दने की तरह है ! यानी उअसका ऐजातमासुल ढीला और नरम है |

    तब आपने फरमाया ! “क्या तू रफाअ के पास फिर जाना चाहती है ? नहीं ( तू नहीं जा सकती ) जब तक तू अब्दुल रहमान बिन जबीर का शहद न चख ले और वह तेरा शहद न चख ले” |

तिरमिजी शरीफ में भी सफा २२५ हदीस ९८१ में यही कथा दी है बस! फर्क सिर्फ इतना है की –

वहां शहद की जगह “जायका” न चख ले और तेरा शहद वह न चख ले  ये शब्द लिखे है |

आश्चर्य है इस्लाम में ऐसी शर्नाक बात को बीबी आयशा के मुहँ से कहलवाया गया है जिसे कोई भी औरत अपने मुहँ से कहना अथवा बताना पसन्द नहीं कर सकती |

 

799 thoughts on “इस्लाम में नारी की स्थिति – २ :- कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश”

    1. मर्दों को इच्छानुसार आपस में अपनी बीबियाँ बदल लेने का अधिकार कुरान ने इस शर्त पर दिया है की इसे दिया हुआ माल वापिस न लिया जावे |

      ye admin ya writer ka likhna hi uski kutsit mansikta ko darsata hai is par kutsit mansikta vale khush bhi honge

      1. नुजहत नाजनीन खान जी क्या आपने हदीस कुरआन सही से पढ़ी हैं यह जानकारी देना जी | हदीस कुरआन सबसे चर्चा करना शुरू कर दू तो ना जाने आप क्या कर डालो | हदीश में इतनी अश्लीलता है उसके बारे में चर्चा करना सही नहीं लगता मगर आपको इतनी जानकारी दे दू की हदीस में यह लिखा है की यदि दोस्त की बीवी पसंद आ जाए और जिसमानी सम्बन्ध के लिए तलाक दे दो और आपस में बीवी को बदल लो फिर जब मन भर जाए तो तलाक दे दो और पहली वाली बीवी से निकाह कर लो | और बहुत सी बाते हैं जो आपको यहाँ नहीं बोल सकता | इस्लाम में भोजन शराब और सेक्स ये तीन ही बातो पर तो जोर दी जाती है | ४ बीवी रख सकते हो | एक बात बताना औरत ४ शौहर क्यों नहीं रख सकती ? क्या यह औरत के साथ अन्याय नहीं किया गया है इस्लाम में | इस्लाम में औरत को तो बस उपभोग की वस्तु समझी जाती है | हदीस सब से ऐसी ऐसी बात रख सकता हु जिसे यहाँ लिखना या बोलना में शर्म आती है | यहाँ रखना सही नहीं इस कारण अब तक यहाँ उसकी जानकारी नहीं दी | कुछ और बात बोलना हो तो जरुर बतलाना जी | धन्यवाद |

        1. Jo aap me pass hai o aap ke bibi me pass kyo nhi hak to do no ka brabar hair. hdish ka flat matlb my nikalo

            1. Rishwa arya ji aap ved dharm ka prchar kijiy. Lekin Hindu Muslim ya baki dharma ke bare me galat jankari dekar burai karne se ved mahan nahi hoga. Dusre dharma KO pahchanne ki ya samajne ki kshamata apme nahi hai. Kyoki dusro ki burai karne se usme apki pahchan samaj atti hai.

              1. mere bhai sabse pahle dharam kise bolte hain kya kya lakshan hote hain use samjho… sabhi kaa dharam ek hota hai….. aur jo galat ho use galat naa bola jaaye kya yah sahi hoga…. jaise 2+2=4 hota hai koi use 5 bole to kya aap use nahi batlaaoge ??? aao saty ki maarg me aa jaao. laut chalo vedic dharam ki aor…..

              2. Mulla bhadak gaya 🤣🤣🤣 kyuki mulla g key sach sunne key taqat nahi hoti woh bhokla jata hai sach sunega toh debate Karo gey toh bhi jhooth bolney key bimari hai unko 🤣🤣🤣

            2. A little knowledge is very dangerous thing aryamantavya. Jahilon se guftugu karna apni insult samjhta hun. Itna agar interested ho to aao mere pass mei tumhai gyan deta hun.Ye ulti sidhi tippani dekar aam logon ko gumrah mat kar..

          1. Yar ulti baat se baat sahi nahi ho jayegi jo galat hai woh galat hai use sweekar karne mai koi aapati nahi honi chaiye ………….ego khatam kar aur baat maan

            1. pehle sahi se khud study kero bhai bad me heme galat kehna……………or ager itni asani se apni bivi change kerne ki pratha islam me hoti to talak ki percentage islam me zaida hoti na ki hindus me…..

              1. इस्लाम में तलाक़ के नाम पर क्या अत्याचार होते हैं ये तो अब सबको पता है

                1. Achha agr atyachar ho ra hota h to aj 56 mulk me islam aese hi hukomat nai kr ra h ar phr duniya me sbse tezi ke sth phailne wala dharm b islam ja kr pta kr lo
                  Islam me aurto ko jo mukam diya gya h apko malom b h ki nai shayad nai kyuki apko apne man se burayi nikalna h na ki usme achhai dekhni h
                  Jo masla ap bta re h shayad apko knowledge hona chahye ki aurat koi khilona ni h jo asani se talaq ho jye shayad apke ilm me ye bt ho jana chahye ki talaq wala sara ka sara qanon aj india ki adalat follow kr ri h

        2. Bhai logo internet par islaam ke dusmano ne sab islaam ke khilaf likha he isme koi bhi baate quran se talluk nahi rakh ti.. or rahi baat net par koi bhi kuch to bhi kar sak taa he par quraan ki aayto ko nahi mota sak ta jo hafiz a qurasn ke dilo me he..ye sab islaam ke dusmano ki sajis he logo ka dhoyan bhat kane ke liye.. kiyo ki islaam puri duniya me bahut teji se fail raha he…

          1. @asim khan sahib

            aayaten to khud allah miyan mitata aur lata rahata hai
            baaki ki kasat bakari ne puri kar dee jo kuch kha gayee thee
            aur fir usman khaleefa ne jo alag alag tarh ke quran jala diye the

            Quran men ktinaee aayeten hein ye to kisee ko naheen pata Allama siyuti ko padh leejiye pata chal jayega

            usake bad Khomeni sahib ko padh leejiye wo kahte hein ki takreeban 17000 aayten thee ab batao ye kisne mitayeen

            baaki prof Rajendra ji ka ye lekh padh leejiye : allah ki registered DAK gum”

            http://aryamantavya.in/registered-post-of-allah-misplaced/

            1. Meri himmat nahi ho rahi phir bhi himmat karke likh raha hu .mere bhai badhi hi muhabbat or pyaar or izzat se aapse bata na chahta hu ki aapki jankari bilkul ghalat he .per shayad aap manenge nahi kyunki wo ghalat log jinhone islaam ko bigadne ki koshish me apni zindagi laga rakhi he or aap jese bhai bhi unki jhooti hadees ke jaal me padh gaye he .or rahi baat khumeni ya pro rajender sahab ki to me bhi kai hindu vidhwaan writer ki kitaabe aapko bata sakta hu jise padh kar aapki galatfehmi shayad door ho jaaye per aap padhenge nahi kyunki aapki aankho per nafrat ka chashma laga hua he .or rahi baat quraan ki aayaton ko mitane ki to ye bhi aapki jankaari ki kami he quraan ki aayat to door ek word bhi nahi jalaya umar farooque ne.per aap nahi manenge kyunki hum kisi ki ghalat fehmi to door kar sakte he per agar koi kisi ke dharam ko bura kehne ko hi apni aastha bana le to uska koi ilaaj nahi .per me aapse bahut impress hua hu yaqeen janiye . because aap agar islaam me burai nikaal rahe he to zaroor aapne study kiya hoga per afsos he mujhe apni Qom pe he ki aap tak sahi jankari nahi pahunchai .me tamam muslim ki taraf se aapse maafi chahta hu or allah se dua karta hu ki jese kuch ghalat logon ke bahkawe me aaker aap islaam ko bura samajh rahe he usi tarah allah kisi sahi aadmi ko aap tak pahuncha de jo aapko sahi jankari de .or aapka ye sab bolna mujhe ghalat nahi laga kyunki har insaan tak malik ka pegham pahunchana her achche insaan ki zimmedari he .or me apni zimmedari nahi nibha saka iske liye mujhe afsos he or me allah se maafi mangta hu .(apka bhai)

              1. Or ek baat me delhi se hu agar aap mujhse milna pasand kare to mujhe badhi khushi hogi me isliya ye keh raha hu ki shayad aaj ke baad is site pe aane ka moka milega ya nahi isliye mene apna no chor diya he aapka bhai aapke phone ka intezaar karega

              2. Jab aapke hisaab se allah ne hee hamen sahee rasta naheen dikhaya to isamne jimmedari to allah ki hai hamarei nahene

                allah hee doshee hua

          2. Sahi he bhai kisi par dhayan mat do ye sirf bahas kar sakte he aur karte rahenge.Sach kya he ye jankar bhi anjan banenge.Islam ka Rutwa hamesha uncha tha aur rahega InshahALLAH………

            1. इस्लाम का रूतबा अफगानिस्तान बंगलादेश सूडान लीबिया इरान ईराक में दीखता ही भाई 🙂

              1. यार रिशवा तुझे ये चार पांच मुस्लिम मुल्क ही दिखते है। इस्लामिक मुल्क 52 है कम से कम 40 मुल्क मे तो बहुत शांति है जैसे दुबई मलेशिया इंडोनेशिया बुर्नई और हिन्दुस्तानी मुस्लिम भी बहुत नरम है

                1. जनाब जो मुस्लिम बाहुल्य देश हैं वहाँ के यही हालत हैं
                  हिन्दुस्तान में भी जहाँ मुस्लिम बाहुल्य इलाके हैं कश्मीर वहाँ के हालात बयान कर ही रहे है कि आप कितने शांतिप्रिय हैं

                2. Or jitne v most dangerous country hai, itne khatarnak ki tourist ko v oha jane se roka jata hai. Ye sare muslim bahutayat des hai. Ap ise youtube par v dekh sakte hai

            2. bakwas karte ho galat afwah phela rahe ho jise theek se hindi padhna nahi aata wo arabi kya samjhega pichhe se baat karke dusron ko murkh banane waale darasal wo khudko hi murkh samjhe.dhatiya he🤗

          3. Sura 33 ayat 37 or 50 me jo likha h. Isko samjhaenge plz.
            Kya allah bahut meharban h apne nabio par ki un par dusre ki bibio ki koi tangi na rahe? Yaha nabi un striyo ko or msrdo ko 1 krna chahenge ya unki bibio se sadi?
            Hindu or bible me to ise vaybhichar kaha hai. Ap kya kahte h ise hmko samjhae plz.

            1. Pehle sahi se quran samje uske bad aakar discuss kijiye. Adhura knowledge hamesa khatarnak hota hai. Quran ek bemishal kitab hai jise padhkar bade bade scientis, astrologist and doctors ne islam accept kiya hai. Uske bad bhi aap agar bolna chahe kuch bhi to you can bad me aap par aur aapki bewakufi ki wajah se aapki family ki family par jo ajab aaye uske liye bhi ready rehna aur baki logo ko nasihat ke liye btana jarur. Aur aap log islam ke bare me discuss karenge jo un bhagvano ko pujte hai jo apni hawas puri karne ke liye hazaro sadiya karte the. Ek se puri hui to dusari dusari se puri hui to tusri and so on.. aap log aurato ki ijjat ke bare me btaoge wah kya din aa gaye 😁 Oh my goodness bhagvan tum logo ka sarjan har uski itni havas thi to aap logo ka to kya puchna.. openly kamsutra ke nam par aslil mandir bnakar logo ko rape ke liye upsana kya ye sikhata hai hindu dharam? India ma rape cases and rape karne walo ke dharam par ekbar research karo to sab pata chal jayega. Bad me yaha par aakar badi badi hakna. Bewakuf, anpad, gawar.. ek aur bat islam puri duniya me fela hai aese hi nai fela, alag alag kad alag alag color aur har tarike se alag log islam follow karte hai. Kabhi mecaa madina ka manjar dekhna tab pata chalega ke islam kya hai. Hindu dharam sirf india me hai aur india ke bahar bhi sirf indian log hi follow karte hai is religion ko. Islam ka knowlwdge batne se atchha hai ke vaid study karo aur logo ko vaid ka knolwdge do. It will better for you and others also.

              1. tanishaa ji….
                Quran ek bemishal kitab hai jise padhkar bade bade scientis, astrologist and doctors ne islam accept kiya hai. Uske bad bhi aap agar bolna chahe kuch bhi to you can ji aapne sahi bola… islaam beshak bemisaal kitaab hai tabhi to aurat ko kheti bola gaya hai…. kya aurat ko usi tarah bechaa jaa sakta hai jaise khet ko ??? magar haa islaam me bahut jagah aurat ko bech bhi di jaati hai… isis ne bhi aurat ko bechaa hai… khet ko rent par di jaati hai kya aapko yaa islaam ke aurat ko bhi rent par diyaa jaa sakta hai ??? khet ko bahut logo me share ki jaati hai kya aurat ko aapko share ki jaa sakti hai ??? aurat ko islaam me ijjajt hi kaha di gayi hai ??? ek mard == 2 auart kya ye nahi hai ??? ek mard== 4 aurat??? jab chaho talak talak bol do?? hadess bolta hai yadi koi aurat pyaar kare to aap usse jabardasti jismmani sambandh bana sakte ho??? jab chahe talak dekar apani biwi ko badal sakti ho …. fir dusari ki biwi se man bhar jaaye to talak dekar apani pahli biwi se nikaah kar lo… ek auart 4 nikaah kyu nahi kar sakti???ek mard 4 aurat se kyu nikaah kar sakta hai ??? aurat ko islaam me saman adhikaar kaha hai??? aap in sab baat ko batlana ji…. kshmaa chahta hu kuch bura bola ho to uske liye… in sabke jawab ke baad aur bhi sawal karunga… ye to bas shuru hai sawal karne ki… aur jo aap upar sawal kiye ho uska bhi jawab denge ham… magar pahle hame islaam ki jaankaari aap jaise gyaani logo se to ho jaaye… aapke jawab ki pratiksha me… dhanywaad

                1. Pehle App apna dimag thik Karo baad me kisi or ko family ki dhamki do. Islam matlab bakwas.
                  Jis dharm K log apne mulk me rehkar apne hi mulk me atankwadi ban jate ase dharm ko mane wale ya accept karne wale bewakuf hai .

                  1. kuch log atanki ho sakte hain
                    kuch logo par jhota iljam laga ho sakta hai
                    no problem…
                    but jitna aatank non muslim log bhi karte hain, usey tum dil & dimag se nahi dekhte

                    jis desh me rah kar, usi desh wasiyo pe jhoote iljam lagana & kannon ka ullanghan karna kya ye apradh-desh droh nahi? lol

                    1. jo bhi ho ji
                      sabse pahla apana naam likhe.. naam chhipane se kuch nahi ho jaata… isse lagta hai ki aapko mat majhab ko batlaane me sharm aati hai….
                      ab aap hame yah jaankaari dena jo bahut kam ko jaankaari hota hai yaha tak media neta vakil tak ko maalum nahi.. ve aise hi ho hangaama karte hain…
                      1) aatankwaad
                      2) ugrawaad
                      3) nakasal waad
                      ye kya hota hai jo upar maine sawal kiya… aur suno sabhi muslim aatankwaadi nahi hote isme koi sandeh nahi magar jo atankwaadi hote hain ve muslim hi kyu hote hain. shukra manao yaha ki dalal media aur gandi rajneta kaa jo votebank ke kaaran aatankwaad ko islam se nahi jodata.. america aur england me to kab kaa yah jaankaari de di gayi ki aatankwaad kaa majhab islam hoti hai. aur yah suno ji…. aur sab desh me kahi bhi yah aaryo aur hindu par iljaam nahi laga hai ki aatankwaad ka majhab hindu dharm hai sanatan dharm hai…
                      mere baato ko gaur se sochna aur jawab dena mere bandhu…

                  1. सनातन धरम में कोई गलत नहीं है | हां मत पंथ इत्यादि में जरुर है गलत

                2. Riswa aryaji…. ji apko quran ke bareme bahot pata hai achi bat hai…. lekin jo pata hai sab galat pata hai or ap islam ke bareme afwah faila rahe ho… yaha apko mai ek baat batana chahungi… islam me jina haram hai or isse hamare khuda ne hi manzoor nahi kiya hai na hamare nabi huzure akram sallalahu alaihi wassallam ne bhi mana kiya hai.. islam me ek se jada nikah karne ke liye isliye anumati di gayi hai taki koi besahara ko sahara mile or jina (vyabhichar) ko roka jaye…. ap ko mai batana chahungi ap jo islam ko galat or ganda dharm bata rhe ho kabhi apni bhagwano ko dekha b hai krishna ki priyasi koi or biwi koi or wo b 3. Shankar vishnu bramha kisi ne b ek hi shadi nae ki.eApke dharm me to khule aam rasleela manayi gayi gayi hai. Pandav paanch or unki ek hi biwi. Jisko b unhone daaw pr lagaya or haarne k baad puri mehfil me uska vastraharan. Indra ki sabha me apsaraye. Sadhu ko uksane wali menka… apke dharm me kaha koi aurat ko respect mili hai.. pati ke marne ke baad aurat ne sati jaane se to behtar hai shadi karke apna ghar basaye. Ap log k dharm me affair chahe jitne bhi karo shadi ek se karo .. ap logo ko islam hi mila hai badnam karne jab k islam ne hi aurat ki ijjat karna sikhaya hai…. kabhi acche or saaf dil se islam samzho galti kiski hai apko samaz ayegi.. or ek baat 14 saal vanwas agar raam ne kiya to seeta b uske saath gayi thi jab ke seeta ko nahi raam ko vanwaas hua tha or jab seeta ko raam ne waha se azaad kiya or laya to usse agni pariksha deni padi wo aisa q agar seeta paraye admi k yaha raam se alag rahi thi to raam b to seeta se alag Raha tha ye agni pariksha raam ne q nahi di…kya yaha aurat ko uska maan sanman mila…?? Muze bas itna kahna hai dusro par kichad mat uchalo cheeten apne hi upar udate hai…. ye jo yaha baatein hoti hai islam ke desho ki to waha jakr dekh lijiye jina (rape) karne walo ko sajaye maaut hoti hai na ke das saal k liye jail hoti hai jahatak dekha jaye muslim se jada non muslims country me jada rape hote hai q k yaha kanoon hi nahi hai agr hota to aj hamare desh ke mahan baba aj jail me nahi swarg seedhare hote ya fir pata nahi lekin islam me aise pakhandiyo ke liye jahannum hi hai…

                  1. Amrin ji,

                    Yadi adhik shadiyan karne se besaraharaon ko sahara mil jataa hai ye kahna theek naheen.
                    Sahara dene ke liye putri ya bahin bhee to banaya ja sakta hai chalo theek hai ho sakta hai aap apnee sanskriti ke anusar ise theek n samajhen.

                    Lekin ye bataiye ye ye 4 ki seema allah miyan ne achanak kyon laga dee .
                    aur jinhone aapne hisaab se 4 se adhik ko sahara de rakha tha unke sahare ko achanak kyon chhudwa diya gaya unko kyon alaga karawa diya gaya aur 4 se jyada ki permission Muhammad sahib ko hee kyon dee gayee.

                    Isake alawa islam men jo gulamon ko khareedane bechane ke jo legal riwaz hai uska kya ?
                    kya wo jayaz hai ?

                1. sahil ji
                  kya good tanisha ji…are unka jawab hamne diya uske baat ab tak jawab nahi aaya ..aur jo maine sawal puchha thaa…. hamare comment to parh liye hote ji aur jawab bhi… andhvishwaas aur purvaagrah ho chhodkar comment parhe…

              2. @Tanisha …chal hamare bhagwan ne kai shaidiya ki…but tere mohammad sahab ka kya….?
                Unhone to 6 saal ki aayesha se nikah kiya jab wo 60 k around the….apne bete ki biwi se nikah kiya….yahi character h tere prophet ka…
                jab islam ki foundation hi kisi characterless k uoar khadi hai…fir building to aisi hi hogi na…..
                aur rahi baat islam ki popularity ki wo isliye ki islam allow krta h ki tum aurto k sath jitni xhahe ayyashi kro..janwar ki tarah use kro n fek do….flexibility h..

              3. kia agar muslim aurat dusre se sambhog kartee hai to us ko tilak hota hai aur us ko tesre aadm se sambhog karna padta hai aur sab ko batana psdta hai saboot ke sath laikin hindu dharam mai aisa nahi ya to pati ko pata hi nahi chalta hai ya phir pati maf kar daita hai ya wo dusre ka sath bhagh jatee hai kise dusre mard se jabardasti nahi sambhogh karna padta hai aur aagmi ek se dusre aurat nahi rakh sakta char kaise yah to muslim hi rakh sakta hai chai wo ek ko bhi khush na kar sakee

              4. Jara kam Hanko……tum itni samajhdar aur padhi likhi ho tau narmai k rukh se safai do ya sahi explain karo…..bewakuf vagarah keh k auro ko babal k liye mat uksao……hum sab log shanti chahtey hai……..

              5. Rape karne walo me musalman sabse zyada aage h Hindustan me… check karlo…fake id bnane se kuch nai hoga…Saudi me kitni aurto ne islam chhoda h…hawas to tumhare pegmbar me thi… rasool to pura rangeela tha bachi budhi or bete ki wife sab halaal thi…Chachi ki qabar me letne Wala or burrak gadhi pe universe me Jake chaand ke tukde karne Wala chamatkari rasool tha tumhara

            2. Biswajit Roy Chachaa!!
              Ye lo jawaab

              [al-Ahzaab 33:37]

              Shaykh ‘Abd al-Rahmaan al-Sa’di (may Allaah have mercy on him) said:

              The reason for revelation of these verses was that Allaah wanted to a prescribe a law for all believers, that adopted sons did not come under the same rulings as real sons, in any way, and that there was nothing wrong with those who had adopted them marrying their wives (after divorce).

              This was one of the regular customs which could not be changed except by means of a major incident. So Allaah wanted this law to be introduced by the words and actions of His Messenger. When Allaah wills something, He creates a cause for it. Zayd ibn Haarithah was called Zayd ibn Muhammad. The Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) had adopted him and he was called by that name until the verse “Call them (adopted sons) by (the names of) their fathers” [al-Ahzaab 33:5] was revealed, then he became known as Zayd ibn Haarithah.

              He was married to Zaynab bint Jahsh, the daughter of the paternal aunt of the Messenger of Allaah (peace and blessings of Allaah be upon him). It had occurred to the Messenger that if Zayd divorced her, he might marry her, and Allaah decreed that there should happen between her and Zayd that which would cause Zayd ibn Haarithah to come and ask the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) for permission to divorce her.

              Allaah said “And (remember) when you said to him (Zayd bin Haarithah ÑÖì Çááå Úäå __ the freed‑slave of the Prophet Õáì Çááå Úáíå æÓáã) on whom Allaah has bestowed grace” i.e., by blessing him with Islam.

              “and you (O Muhammad Õáì Çááå Úáíå æÓáã too) have done favour” i.e., by manumitting him. When he came to you to consult you about leaving her, you told him, advising him despite what you felt in your heart towards her: “Keep your wife to yourself”, i.e., do not leave her, and bear whatever you face from her with patience. “and fear Allaah” in all your affairs in general, and with regard to your wife in particular, for fearing Allaah encourages one to be patient.

              “But you did hide in yourself that which Allaah will make manifest”. What he was hiding was that if Zayd divorced her, he (peace and blessings of Allaah be upon him) would marry her.

              “you did fear the people” when you did not disclose what you were thinking, “whereas Allaah had a better right that you should fear Him”, because fearing Him brings all goodness and wards off all evil.

              “So when Zayd had accomplished his desire from her” means, when he willingly turned away from her and separated from her, “We gave her to you in marriage” and We only did that for an important purpose, which is, “so that (in future) there may be no difficulty to the believers in respect of (the marriage of) the wives of their adopted sons” when they see that you married the (former) wife of Zayd ibn Haarithah, who had previously been named after you”

            1. marinakhaan ji
              sabse pahli baat yaha koi ladai nahi kar raha.. yaha ham charchaa karte hain… haa kuch muslim jarur fight karte hain kyunki ve gaali galauz karte hain… is kaaran laaanat to momin bandhu ko bole… raam krishn to hamare aadarsh hain…

            2. Give more….ur address no.
              Taaki dus dus launde teri g**nd maare aur mohammad bhi tujh par apne chhinte bheje

              1. कृपया इस तरह की बाते करना आप जैसे लोगो से उम्मीद नहीं की जाती | शालीनता से चर्चा करें |

                  1. in that case whats ur view on below verses of quran:

                    Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

                    Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

                    Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

                    Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

                    Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

                    Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

                    Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

                    Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

                    Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

                    Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

                    Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

                    Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

                    Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

                    Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

                    Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

                    Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

                    Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

                    Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

                    Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

                    [Note: The verse says to fight unbelievers “wherever you find them”. Even if the context is in a time of battle (which it was not) the reading appears to sanction attacks against those “unbelievers” who are not on the battlefield. In 2016, the Islamic State referred to this verse in urging the faithful to commit terror attacks: Allah did not only command the ‘fighting’ of disbelievers, as if to say He only wants us to conduct frontline operations against them. Rather, He has also ordered that they be slain wherever they may be – on or off the battlefield. (source)]

                    Quran (9:14) – “Fight against them so that Allah will punish them by your hands and disgrace them and give you victory over them and heal the breasts of a believing people.” Humiliating and hurting non-believers not only has the blessing of Allah, but it is ordered as a means of carrying out his punishment and even “healing” the hearts of Muslims.

                    Quran (9:20) – “Those who believe, and have left their homes and striven with their wealth and their lives in Allah’s way are of much greater worth in Allah’s sight. These are they who are triumphant.” The Arabic word interpreted as “striving” in this verse is the same root as “Jihad”. The context is obviously holy war.

                    Quran (9:29) – “Fight those who believe not in Allah nor the Last Day, nor hold that forbidden which hath been forbidden by Allah and His Messenger, nor acknowledge the religion of Truth, (even if they are) of the People of the Book, until they pay the Jizya with willing submission, and feel themselves subdued.” “People of the Book” refers to Christians and Jews. According to this verse, they are to be violently subjugated, with the sole justification being their religious status. Verse 9:33 tells Muslims that Allah has charted them to make Islam “superior over all religions.” This chapter was one of the final “revelations” from Allah and it set in motion the tenacious military expansion, in which Muhammad’s companions managed to conquer two-thirds of the Christian world in the next 100 years. Islam is intended to dominate all other people and faiths.

                    Quran (9:30) – “And the Jews say: Ezra is the son of Allah; and the Christians say: The Messiah is the son of Allah; these are the words of their mouths; they imitate the saying of those who disbelieved before; may Allah destroy them; how they are turned away!”

                    Quran (9:38-39) – “O ye who believe! what is the matter with you, that, when ye are asked to go forth in the cause of Allah, ye cling heavily to the earth? Do ye prefer the life of this world to the Hereafter? But little is the comfort of this life, as compared with the Hereafter. Unless ye go forth, He will punish you with a grievous penalty, and put others in your place.” This is a warning to those who refuse to fight, that they will be punished with Hell.

                    Quran (9:41) – “Go forth, light-armed and heavy-armed, and strive with your wealth and your lives in the way of Allah! That is best for you if ye but knew.” See also the verse that follows (9:42) – “If there had been immediate gain (in sight), and the journey easy, they would (all) without doubt have followed thee, but the distance was long, (and weighed) on them” This contradicts the myth that Muslims are to fight only in self-defense, since the wording implies that battle will be waged a long distance from home (in another country and on Christian soil, in this case, according to the historians).

                    Quran (9:73) – “O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites and be unyielding to them; and their abode is hell, and evil is the destination.” Dehumanizing those who reject Islam, by reminding Muslims that unbelievers are merely firewood for Hell, makes it easier to justify slaughter. It explains why today’s devout Muslims generally have little regard for those outside the faith. The inclusion of “hypocrites” within this verse also contradicts the apologist’s defense that the targets of hate and hostility are wartime foes, since there was never an opposing army made up of non-religious Muslims in Muhammad’s time. (See also Games Muslims Play: Terrorists Can’t Be Muslim Because They Kill Muslims for the role this verse plays in Islam’s perpetual internal conflicts).

                    Quran (9:88) – “But the Messenger, and those who believe with him, strive and fight with their wealth and their persons: for them are (all) good things: and it is they who will prosper.”

                    Quran (9:111) – “Allah hath purchased of the believers their persons and their goods; for theirs (in return) is the garden (of Paradise): they fight in His cause, and slay and are slain: a promise binding on Him in truth, through the Law, the Gospel, and the Quran: and who is more faithful to his covenant than Allah? then rejoice in the bargain which ye have concluded: that is the achievement supreme.” How does the Quran define a true believer?

                    Quran (9:123) – “O you who believe! fight those of the unbelievers who are near to you and let them find in you hardness.”

                    Quran (17:16) – “And when We wish to destroy a town, We send Our commandment to the people of it who lead easy lives, but they transgress therein; thus the word proves true against it, so We destroy it with utter destruction.” Note that the crime is moral transgression, and the punishment is “utter destruction.” (Before ordering the 9/11 attacks, Osama bin Laden first issued Americans an invitation to Islam).

                    Quran (18:65-81) – This parable lays the theological groundwork for honor killings, in which a family member is murdered because they brought shame to the family, either through apostasy or perceived moral indiscretion. The story (which is not found in any Jewish or Christian source) tells of Moses encountering a man with “special knowledge” who does things which don’t seem to make sense on the surface, but are then justified according to later explanation. One such action is to murder a youth for no apparent reason (74). However, the wise man later explains that it was feared that the boy would “grieve” his parents by “disobedience and ingratitude.” He was killed so that Allah could provide them a ‘better’ son. [Note: This parable along with verse 58:22 is a major reason that honor killing is sanctioned by Sharia. Reliance of the Traveler (Umdat al-Saliq) says that punishment for murder is not applicable when a parent or grandparent kills their offspring (o.1.12).]

                    Quran (21:44) – “We gave the good things of this life to these men and their fathers until the period grew long for them; See they not that We gradually reduce the land (in their control) from its outlying borders? Is it then they who will win?”

                    Quran (25:52) – “Therefore listen not to the Unbelievers, but strive against them with the utmost strenuousness with it.” – The root for Jihad is used twice in this verse, although it may not have been referring to Holy War when narrated, since it was prior to the hijra at Mecca. The “it” at the end is thought to mean the Quran. Thus the verse may have originally meant a non-violent resistance to the ‘unbelievers.’ Obviously, this changed with the hijra and ‘Jihad’ after this is almost exclusively within a violent context.

                    Quran (33:60-62) – “If the hypocrites, and those in whose hearts is a disease, and the alarmists in the city do not cease, We verily shall urge thee on against them, then they will be your neighbors in it but a little while. Accursed, they will be seized wherever found and slain with a (fierce) slaughter.” This passage sanctions the slaughter (rendered “merciless” and “horrible murder” in other translations) against three groups: Hypocrites (Muslims who refuse to “fight in the way of Allah” (3:167) and hence don’t act as Muslims should), those with “diseased hearts” (which include Jews and Christians 5:51-52), and “alarmists” or “agitators who include those who merely speak out against Islam, according to Muhammad’s biographers. It is worth noting that the victims are to be sought out by Muslims, which is what today’s terrorists do. If this passage is meant merely to apply to the city of Medina, then it is unclear why it is included in Allah’s eternal word to Muslim generations.

                    Quran (47:3-4) – “Those who disbelieve follow falsehood, while those who believe follow the truth from their Lord… So, when you meet (in fight Jihad in Allah’s Cause), those who disbelieve smite at their necks till when you have killed and wounded many of them, then bind a bond firmly (on them, i.e. take them as captives)… If it had been Allah’s Will, He Himself could certainly have punished them (without you). But (He lets you fight), in order to test you, some with others. But those who are killed in the Way of Allah, He will never let their deeds be lost.” Those who reject Allah are to be killed in Jihad. The wounded are to be held captive for ransom. The only reason Allah doesn’t do the dirty work himself is to to test the faithfulness of Muslims. Those who kill pass the test.

                    Quran (47:35) – “Be not weary and faint-hearted, crying for peace, when ye should be uppermost (Shakir: “have the upper hand”) for Allah is with you,”

                    Quran (48:17) – “There is no blame for the blind, nor is there blame for the lame, nor is there blame for the sick (that they go not forth to war). And whoso obeyeth Allah and His messenger, He will make him enter Gardens underneath which rivers flow; and whoso turneth back, him will He punish with a painful doom.” Contemporary apologists sometimes claim that Jihad means ‘spiritual struggle.’ If so, then why are the blind, lame and sick exempted? This verse also says that those who do not fight will suffer torment in hell.

                    Quran (48:29) – “Muhammad is the messenger of Allah. And those with him are hard (ruthless) against the disbelievers and merciful among themselves” Islam is not about treating everyone equally. This verse tells Muslims that there are two very distinct standards that are applied based on religious status. Also the word used for ‘hard’ or ‘ruthless’ in this verse shares the same root as the word translated as ‘painful’ or severe’ to describe Hell in over 25 other verses including 65:10, 40:46 and 50:26..

                    Quran (61:4) – “Surely Allah loves those who fight in His cause” Religion of Peace, indeed! The verse explicitly refers to “rows” or “battle array,” meaning that it is speaking of physical conflict. This is followed by (61:9), which defines the “cause”: “He it is who has sent His Messenger (Mohammed) with guidance and the religion of truth (Islam) to make it victorious over all religions even though the infidels may resist.” (See next verse, below). Infidels who resist Islamic rule are to be fought.

                    Quran (61:10-12) – “O You who believe! Shall I guide you to a commerce that will save you from a painful torment. That you believe in Allah and His Messenger (Muhammad), and that you strive hard and fight in the Cause of Allah with your wealth and your lives, that will be better for you, if you but know! (If you do so) He will forgive you your sins, and admit you into Gardens under which rivers flow, and pleasant dwelling in Gardens of’Adn- Eternity [‘Adn(Edn) Paradise], that is indeed the great success.” This verse refers to physical battle in order to make Islam victorious over other religions (see verse 9). It uses the Arabic root for the word Jihad.

                    Quran (66:9) – “O Prophet! Strive against the disbelievers and the hypocrites, and be stern with them. Hell will be their home, a hapless journey’s end.” The root word of “Jihad” is used again here. The context is clearly holy war, and the scope of violence is broadened to include “hypocrites” – those who call themselves Muslims but do not act as such. Other verses calling Muslims to Jihad can be found here at

                    1. are janab link nahi praman dein reference ke saath jiske baad ham uska jawab dene ki koshish karenge …

                    2. are janab link nahi praman dein reference ke saath jiske baad ham uska jawab dene ki koshish karenge …

          1. Abe chootiye 33 hajaar devataon ko hum nahi poojate hain..साला तुम मुसलमान लोग की ना अक्कल घुटने में होती है।। अबे संस्कृत में सनातन धर्म के 33 कोटि के देवता होते हैं।।
            और कोटि का मतलब होता है प्रकार यानी types 33 टाइप्स के देवता होते हैं जो पूज्यनीय होते हैं।।
            जैसे :-सूर्य, चंद्र,अग्नि,वायु,जल, ब्रह्मा ,विष्णु,महेश,
            इत्यादि 33 प्रकार के देवता होते हैं।। जिनकी पूजा तुम सभी को भी करना चाहिए।। और हाँ अगर हमारे देवताओं से इतनी ही नफरत है तो पानी पीना छोड़ दे, धुप लेना तथा सूर्य का फायदा लेना छोड़ दे,आग का उपयोग करना छोड़ दे, हवा लेना छोड़ दे, अरे हम सनातन हिन्दू धर्म से हैं जो इन देवताओं का एहसान मानते हैं और इनकी पूजा करते हैं।। तुम साले यहाँ भी काफ़िर ही हो की सब लेते हमारे देवताओं से हो और उन्ही को गाली देते हो।। आज साबित हुआ।।।।

          1. ji ham koi mat majhab sampraday ko nahi maante … ham to bas saty sanatan vedic dharam ko maante hain… aur dharam sabhi mat majhab ka ek hi hota hai ji….

        3. Bhai Sab Islam me a bhe khagya ke right hand se khyrat do to left hand ko pta na chale.Aap sochege are a Kya bat hai,to Jnab matlab a ke Allah ke rah me kharch Kro to apne aor apne Rab ke alawa kese aor ko pta na chale,ese tarha tlak dene ke bat karna to dur sochna bhe pap hai,Islam me Jo tlak ke shart par gor kre ke tlak de kar dubara use aorat se shade karna chahe to us aorat ke dusre shade ho kar o us mard ke sat rat betai aor tlak ke bad shade karsakta hai ,matlab a ke tlak de ne se pahle mard soche ga aor tlak he nadega,Jo tlak dega mere najar me o namard hai,kuo ke koi mard apne keep ko bhe kse ke sat rat gujarne nhe dega to apne aort ko tlak de ,o sochega bhe nhe.to Jnab a hai Islam aor us ka kanun,

          1. Abdul rashed bhaijaan
            jo hamne bataya ki apni biwi ko dost ki biwi se badalne ke liye talak de do sirf sex ke liye… is tarh ki baate aapke hadees me jaankaari di gayi hai… jab hamne parhaa hai tabhi jaankaari dii.. yadi nahi parha hota to aisa naa bolta.. are hadees me yaha tak bol diya gaya hai ki apane biwi kaa doodh bhi pi sakte ho stan se… bhaijaan thoda hadees parhe…. hadees me hi hai yadi koi aurat aapko pyaar karti ho to uske man se yaa jabardasti aap usse sambandh bana sakte ho…. kripya hadees parhe… aao ved ki aor laute… dhanywaad

        4. यह मर्द को एक तरह की सजा है.. कोई मर्द पसंद नहीं करता कि उसकी बीबी किसी और से सम्भोग करे तलाक को किसी ने पसंद नहीं किया.. तलाक जब कोई मजबूरी हो जब दे वर्ना औरतों से पीछा छुड़ाने के लिए लोग. मार देते.. जैसे बहुत से करते हैं।

          1. saeed bhai jaan
            यह मर्द को एक तरह की सजा है.. कोई मर्द पसंद नहीं करता कि उसकी बीबी किसी और से सम्भोग करे तलाक को किसी ने पसंद नहीं किया.. तलाक जब कोई मजबूरी हो जब दे वर्ना औरतों से पीछा छुड़ाने के लिए लोग. मार देते.. जैसे बहुत से करते हैं।”
            bhai jaan kis tarah ki saza hai.. hadees me likha hai dost ki biwi pasand aa jaaye talak de do aur nikah kar lo fir jab man bhar jaaye talak de do aur purani biwi se nikah kar lo… dusari baat yah ki aapne bola ki yah saza hai … kaisa saza hai ye toek mard ko saza nahiaurat ko saza hai…yadi piccha chhudane ke liye talak dete hai to fir kai baar us aurat se hi nikaah dobaara kyu kar lete hain.. tab wah aurat fir se priya ho jaata hai ? aimplb ki tarah baat kar rahe ho jo usane court me bola thaa….. yah mad ko saza nahi mard ko maza dene waala baat hai halala….

            1. क्या चीजे है वह बतलाना जी | और हां धर्म किसे बोलते हैं यह भी जानकारी देना |
              धन्यवाद

        5. Acha ap log shayd usi way ki bat kr rhe ho jisme chori krna badi bat nhi h ap kisi k ghar mai jak aram se kuch bhi chura k kha skte ho kyu k apk bhagvan shri Krishna bhi ye hi Krte the right wo hi bhagvan jink pta nhi kitni lakho karodo biwiya the wo hi na jo shadi se phle rash rachate the nd wo hi na jinhone bhaag k shadi ki thi acha isi liye India mai crime jayada h bahar se aane wale atankwadi to dikhte h pr apk apne ghar k atnkwadiyo ka kya unpe bhi kbhi bat kr k dekho atnkwadi to dikha diye Kashmir ki bat kr rhe ho na to jak waha k halat dekho waha ki ldkiyo or orto k sath jo hota h wo mhsoos kro aise mai koi bhi bagavt krega to sbse phle ye khna bnd kro k atnkwadi Muslim h or muslman India ko khtm krna chahte h tumhe aynkwadi to dikhte h pr Indian Army mai kitne Muslim h kabhi koi nhi bola mere khud k gav mai 800 hate jinme se 600 gharo mai se 2-3 fozi pakke h unk bare mai kyu bat nhi krte or nari ko maa bolne se kuch nhi hota kbhi utha k check kr lena sbse jyada old age home mai Hindu maa baap milenge phle unko to sambhalo phir cow ki Bat krna or apk shi Krishna wo itni sari biwiya kyu rkhte the same havs hamare Allah k bare mai to aisa kuch nhi h k unk koi wifi thi normal insano k bare mai hi to h or ha ye glt bat mt felao islam mai likha h k insan 6 shadiya tb kr skta h jb koi problem ho jese uski biwi ko bacha nhi ho rha ya kisi vidhva se like this pr apk dharm k hisab se to shadi se phle bhi kisi ko bachha ho skta h Karna to pta hi h apko or dropati ko to nhi bhule na usk to 5 pati the waah kyu ek se mn nhi bhara or apk dhrm mai to jue mai ap apna sab har jao to koi bat nhi biwi h na use laga do use bhi har jao or bhari sabha mai uski saree kholi jaye to chup chap beth k tamasha dekho phir usk 5 pati hi kyu na ho ek bhi use nhi bacha ska right waaw ab aate h sakuntla pe to koi bat nhi dusyant ne usko use kiya or chhod diya phir usk ek bachha ho gya waah ab bat mryada prushotam ram ji ki to unhone kya kiya apni wifi k sath agr ram ji se sitaji dur rhi thi to wo bhi to utne hi time k liye usse dur rhe the na to agni priksha sirf sita ji ki kyu, kyu k wo orat h usk bad bhi santushth nhi hue or unko ghar se nikal diya ye kesi mriyada jo apni wifi k liye stand bhi nhi le sake to ap log to rhne hi do kisi k dharm k bare mai bolna isse acha h apne dharm k bare mai padho kyu k kamiya sbme h to kyu na apni kamiyo pe dhyan diya jaye aj k India ki halat Pakistan se km nhi h kyu na hum sach mai ise anekta mai ekta ka desh banane pe soche na ek dusre k bare mai bol kr ekta mai anekta banaye m bolna nhi chahti thi but apko ye bhi batana chahti thi k kami sbme h nd koi apk dhrm k bare mai bole to bura lgta h to acha hoga k ap log bhi is chiz ko samjhe or aps mai ladna bnd kre kyu k hindu Muslim ye to koi mudda h hi nhi in muddo ki aad mai politician baki asli muddo ko chhupa rhe h desh mai or bhi problem h ldna h to usk bare mai ldo k garibi kyu h desh aage kyu nhi badh rha, aarkshn, bhrstachar, or rape kyu nhi inko mudda banate plz ek dusre se ld k kuch nhi hoga ink bare mai kon sochega agr hum youngsters dharm mai uljh gye to nd im sorry Hindus m bs chahti thi k apko pta chale k dusro k dhrm k bare mai nhi bolna chahiye or ho ske to niche jo mene likha h us pe jyada dhyan de i know iske bad ap mujhe bhi 4-5 bate phir suna denge m padhlungi bs kyu k apk bolne se na m hindu banungi na mere bolne se ap Muslim or Quran ka mazak na banaye jb tk ap isko sahi se samjh na le apse request h or na Muslim geeta ka udaye plZ

          1. pls let me know meaning of following verses of quran

            Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

            Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

            Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

            Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

            Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

            Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

            Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

            Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

            Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

            Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

            Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

            Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

            Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

            Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

            Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

            Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

            Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

            Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

            Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

            [Note: The verse says to fight unbelievers “wherever you find them”. Even if the context is in a time of battle (which it was not) the reading appears to sanction attacks against those “unbelievers” who are not on the battlefield. In 2016, the Islamic State referred to this verse in urging the faithful to commit terror attacks: Allah did not only command the ‘fighting’ of disbelievers, as if to say He only wants us to conduct frontline operations against them. Rather, He has also ordered that they be slain wherever they may be – on or off the battlefield. (source)]

            Quran (9:14) – “Fight against them so that Allah will punish them by your hands and disgrace them and give you victory over them and heal the breasts of a believing people.” Humiliating and hurting non-believers not only has the blessing of Allah, but it is ordered as a means of carrying out his punishment and even “healing” the hearts of Muslims.

            Quran (9:20) – “Those who believe, and have left their homes and striven with their wealth and their lives in Allah’s way are of much greater worth in Allah’s sight. These are they who are triumphant.” The Arabic word interpreted as “striving” in this verse is the same root as “Jihad”. The context is obviously holy war.

            Quran (9:29) – “Fight those who believe not in Allah nor the Last Day, nor hold that forbidden which hath been forbidden by Allah and His Messenger, nor acknowledge the religion of Truth, (even if they are) of the People of the Book, until they pay the Jizya with willing submission, and feel themselves subdued.” “People of the Book” refers to Christians and Jews. According to this verse, they are to be violently subjugated, with the sole justification being their religious status. Verse 9:33 tells Muslims that Allah has charted them to make Islam “superior over all religions.” This chapter was one of the final “revelations” from Allah and it set in motion the tenacious military expansion, in which Muhammad’s companions managed to conquer two-thirds of the Christian world in the next 100 years. Islam is intended to dominate all other people and faiths.

            Quran (9:30) – “And the Jews say: Ezra is the son of Allah; and the Christians say: The Messiah is the son of Allah; these are the words of their mouths; they imitate the saying of those who disbelieved before; may Allah destroy them; how they are turned away!”

            Quran (9:38-39) – “O ye who believe! what is the matter with you, that, when ye are asked to go forth in the cause of Allah, ye cling heavily to the earth? Do ye prefer the life of this world to the Hereafter? But little is the comfort of this life, as compared with the Hereafter. Unless ye go forth, He will punish you with a grievous penalty, and put others in your place.” This is a warning to those who refuse to fight, that they will be punished with Hell.

            Quran (9:41) – “Go forth, light-armed and heavy-armed, and strive with your wealth and your lives in the way of Allah! That is best for you if ye but knew.” See also the verse that follows (9:42) – “If there had been immediate gain (in sight), and the journey easy, they would (all) without doubt have followed thee, but the distance was long, (and weighed) on them” This contradicts the myth that Muslims are to fight only in self-defense, since the wording implies that battle will be waged a long distance from home (in another country and on Christian soil, in this case, according to the historians).

            Quran (9:73) – “O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites and be unyielding to them; and their abode is hell, and evil is the destination.” Dehumanizing those who reject Islam, by reminding Muslims that unbelievers are merely firewood for Hell, makes it easier to justify slaughter. It explains why today’s devout Muslims generally have little regard for those outside the faith. The inclusion of “hypocrites” within this verse also contradicts the apologist’s defense that the targets of hate and hostility are wartime foes, since there was never an opposing army made up of non-religious Muslims in Muhammad’s time. (See also Games Muslims Play: Terrorists Can’t Be Muslim Because They Kill Muslims for the role this verse plays in Islam’s perpetual internal conflicts).

            Quran (9:88) – “But the Messenger, and those who believe with him, strive and fight with their wealth and their persons: for them are (all) good things: and it is they who will prosper.”

            Quran (9:111) – “Allah hath purchased of the believers their persons and their goods; for theirs (in return) is the garden (of Paradise): they fight in His cause, and slay and are slain: a promise binding on Him in truth, through the Law, the Gospel, and the Quran: and who is more faithful to his covenant than Allah? then rejoice in the bargain which ye have concluded: that is the achievement supreme.” How does the Quran define a true believer?

            Quran (9:123) – “O you who believe! fight those of the unbelievers who are near to you and let them find in you hardness.”

            Quran (17:16) – “And when We wish to destroy a town, We send Our commandment to the people of it who lead easy lives, but they transgress therein; thus the word proves true against it, so We destroy it with utter destruction.” Note that the crime is moral transgression, and the punishment is “utter destruction.” (Before ordering the 9/11 attacks, Osama bin Laden first issued Americans an invitation to Islam).

            Quran (18:65-81) – This parable lays the theological groundwork for honor killings, in which a family member is murdered because they brought shame to the family, either through apostasy or perceived moral indiscretion. The story (which is not found in any Jewish or Christian source) tells of Moses encountering a man with “special knowledge” who does things which don’t seem to make sense on the surface, but are then justified according to later explanation. One such action is to murder a youth for no apparent reason (74). However, the wise man later explains that it was feared that the boy would “grieve” his parents by “disobedience and ingratitude.” He was killed so that Allah could provide them a ‘better’ son. [Note: This parable along with verse 58:22 is a major reason that honor killing is sanctioned by Sharia. Reliance of the Traveler (Umdat al-Saliq) says that punishment for murder is not applicable when a parent or grandparent kills their offspring (o.1.12).]

            Quran (21:44) – “We gave the good things of this life to these men and their fathers until the period grew long for them; See they not that We gradually reduce the land (in their control) from its outlying borders? Is it then they who will win?”

            Quran (25:52) – “Therefore listen not to the Unbelievers, but strive against them with the utmost strenuousness with it.” – The root for Jihad is used twice in this verse, although it may not have been referring to Holy War when narrated, since it was prior to the hijra at Mecca. The “it” at the end is thought to mean the Quran. Thus the verse may have originally meant a non-violent resistance to the ‘unbelievers.’ Obviously, this changed with the hijra and ‘Jihad’ after this is almost exclusively within a violent context.

            Quran (33:60-62) – “If the hypocrites, and those in whose hearts is a disease, and the alarmists in the city do not cease, We verily shall urge thee on against them, then they will be your neighbors in it but a little while. Accursed, they will be seized wherever found and slain with a (fierce) slaughter.” This passage sanctions the slaughter (rendered “merciless” and “horrible murder” in other translations) against three groups: Hypocrites (Muslims who refuse to “fight in the way of Allah” (3:167) and hence don’t act as Muslims should), those with “diseased hearts” (which include Jews and Christians 5:51-52), and “alarmists” or “agitators who include those who merely speak out against Islam, according to Muhammad’s biographers. It is worth noting that the victims are to be sought out by Muslims, which is what today’s terrorists do. If this passage is meant merely to apply to the city of Medina, then it is unclear why it is included in Allah’s eternal word to Muslim generations.

            Quran (47:3-4) – “Those who disbelieve follow falsehood, while those who believe follow the truth from their Lord… So, when you meet (in fight Jihad in Allah’s Cause), those who disbelieve smite at their necks till when you have killed and wounded many of them, then bind a bond firmly (on them, i.e. take them as captives)… If it had been Allah’s Will, He Himself could certainly have punished them (without you). But (He lets you fight), in order to test you, some with others. But those who are killed in the Way of Allah, He will never let their deeds be lost.” Those who reject Allah are to be killed in Jihad. The wounded are to be held captive for ransom. The only reason Allah doesn’t do the dirty work himself is to to test the faithfulness of Muslims. Those who kill pass the test.

            Quran (47:35) – “Be not weary and faint-hearted, crying for peace, when ye should be uppermost (Shakir: “have the upper hand”) for Allah is with you,”

            Quran (48:17) – “There is no blame for the blind, nor is there blame for the lame, nor is there blame for the sick (that they go not forth to war). And whoso obeyeth Allah and His messenger, He will make him enter Gardens underneath which rivers flow; and whoso turneth back, him will He punish with a painful doom.” Contemporary apologists sometimes claim that Jihad means ‘spiritual struggle.’ If so, then why are the blind, lame and sick exempted? This verse also says that those who do not fight will suffer torment in hell.

            Quran (48:29) – “Muhammad is the messenger of Allah. And those with him are hard (ruthless) against the disbelievers and merciful among themselves” Islam is not about treating everyone equally. This verse tells Muslims that there are two very distinct standards that are applied based on religious status. Also the word used for ‘hard’ or ‘ruthless’ in this verse shares the same root as the word translated as ‘painful’ or severe’ to describe Hell in over 25 other verses including 65:10, 40:46 and 50:26..

            Quran (61:4) – “Surely Allah loves those who fight in His cause” Religion of Peace, indeed! The verse explicitly refers to “rows” or “battle array,” meaning that it is speaking of physical conflict. This is followed by (61:9), which defines the “cause”: “He it is who has sent His Messenger (Mohammed) with guidance and the religion of truth (Islam) to make it victorious over all religions even though the infidels may resist.” (See next verse, below). Infidels who resist Islamic rule are to be fought.

            Quran (61:10-12) – “O You who believe! Shall I guide you to a commerce that will save you from a painful torment. That you believe in Allah and His Messenger (Muhammad), and that you strive hard and fight in the Cause of Allah with your wealth and your lives, that will be better for you, if you but know! (If you do so) He will forgive you your sins, and admit you into Gardens under which rivers flow, and pleasant dwelling in Gardens of’Adn- Eternity [‘Adn(Edn) Paradise], that is indeed the great success.” This verse refers to physical battle in order to make Islam victorious over other religions (see verse 9). It uses the Arabic root for the word Jihad.

            Quran (66:9) – “O Prophet! Strive against the disbelievers and the hypocrites, and be stern with them. Hell will be their home, a hapless journey’s end.” The root word of “Jihad” is used again here. The context is clearly holy war, and the scope of violence is broadened to include “hypocrites” – those who call themselves Muslims but do not act as such.

        6. Tujhe islaam ki jaankari nahi he pl.quraan ki galat vyakhya na Karen. Aur pahle Hindu Dharam ka Sahi se study kar Baad me dusre ke Dharam Ko dekhna.

          1. अरे भाई जान
            हम तो सभी मत मजहब के ग्रन्थ को पढ़ते हैं और उसी आधार पर चर्चा करते हैं | हमें यह बतलाना जो प्रमाण दिया है वह प्रमाण को गलत साबीत करे

        7. Aapne jitni batein ki hain sab jhooth hain,Pandit log aur Maulana log Ullu banate hain,aap koi bhi sawal karo islam ke bare me sahih jawab dunga wo bhi Quran se.

          1. ok pls let us know what’s your views on the below:
            Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

            Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

            Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

            Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

            Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

            Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

            Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

            Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

            Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

            Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

            Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

            Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

            Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

            Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

            Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

            Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

            Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

            Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

            Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

            [Note: The verse says to fight unbelievers “wherever you find them”. Even if the context is in a time of battle (which it was not) the reading appears to sanction attacks against those “unbelievers” who are not on the battlefield. In 2016, the Islamic State referred to this verse in urging the faithful to commit terror attacks: Allah did not only command the ‘fighting’ of disbelievers, as if to say He only wants us to conduct frontline operations against them. Rather, He has also ordered that they be slain wherever they may be – on or off the battlefield. (source)]

            Quran (9:14) – “Fight against them so that Allah will punish them by your hands and disgrace them and give you victory over them and heal the breasts of a believing people.” Humiliating and hurting non-believers not only has the blessing of Allah, but it is ordered as a means of carrying out his punishment and even “healing” the hearts of Muslims.

            Quran (9:20) – “Those who believe, and have left their homes and striven with their wealth and their lives in Allah’s way are of much greater worth in Allah’s sight. These are they who are triumphant.” The Arabic word interpreted as “striving” in this verse is the same root as “Jihad”. The context is obviously holy war.

            Quran (9:29) – “Fight those who believe not in Allah nor the Last Day, nor hold that forbidden which hath been forbidden by Allah and His Messenger, nor acknowledge the religion of Truth, (even if they are) of the People of the Book, until they pay the Jizya with willing submission, and feel themselves subdued.” “People of the Book” refers to Christians and Jews. According to this verse, they are to be violently subjugated, with the sole justification being their religious status. Verse 9:33 tells Muslims that Allah has charted them to make Islam “superior over all religions.” This chapter was one of the final “revelations” from Allah and it set in motion the tenacious military expansion, in which Muhammad’s companions managed to conquer two-thirds of the Christian world in the next 100 years. Islam is intended to dominate all other people and faiths.

            Quran (9:30) – “And the Jews say: Ezra is the son of Allah; and the Christians say: The Messiah is the son of Allah; these are the words of their mouths; they imitate the saying of those who disbelieved before; may Allah destroy them; how they are turned away!”

            Quran (9:38-39) – “O ye who believe! what is the matter with you, that, when ye are asked to go forth in the cause of Allah, ye cling heavily to the earth? Do ye prefer the life of this world to the Hereafter? But little is the comfort of this life, as compared with the Hereafter. Unless ye go forth, He will punish you with a grievous penalty, and put others in your place.” This is a warning to those who refuse to fight, that they will be punished with Hell.

            Quran (9:41) – “Go forth, light-armed and heavy-armed, and strive with your wealth and your lives in the way of Allah! That is best for you if ye but knew.” See also the verse that follows (9:42) – “If there had been immediate gain (in sight), and the journey easy, they would (all) without doubt have followed thee, but the distance was long, (and weighed) on them” This contradicts the myth that Muslims are to fight only in self-defense, since the wording implies that battle will be waged a long distance from home (in another country and on Christian soil, in this case, according to the historians).

            Quran (9:73) – “O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites and be unyielding to them; and their abode is hell, and evil is the destination.” Dehumanizing those who reject Islam, by reminding Muslims that unbelievers are merely firewood for Hell, makes it easier to justify slaughter. It explains why today’s devout Muslims generally have little regard for those outside the faith. The inclusion of “hypocrites” within this verse also contradicts the apologist’s defense that the targets of hate and hostility are wartime foes, since there was never an opposing army made up of non-religious Muslims in Muhammad’s time. (See also Games Muslims Play: Terrorists Can’t Be Muslim Because They Kill Muslims for the role this verse plays in Islam’s perpetual internal conflicts).

            Quran (9:88) – “But the Messenger, and those who believe with him, strive and fight with their wealth and their persons: for them are (all) good things: and it is they who will prosper.”

            Quran (9:111) – “Allah hath purchased of the believers their persons and their goods; for theirs (in return) is the garden (of Paradise): they fight in His cause, and slay and are slain: a promise binding on Him in truth, through the Law, the Gospel, and the Quran: and who is more faithful to his covenant than Allah? then rejoice in the bargain which ye have concluded: that is the achievement supreme.” How does the Quran define a true believer?

            Quran (9:123) – “O you who believe! fight those of the unbelievers who are near to you and let them find in you hardness.”

            Quran (17:16) – “And when We wish to destroy a town, We send Our commandment to the people of it who lead easy lives, but they transgress therein; thus the word proves true against it, so We destroy it with utter destruction.” Note that the crime is moral transgression, and the punishment is “utter destruction.” (Before ordering the 9/11 attacks, Osama bin Laden first issued Americans an invitation to Islam).

            Quran (18:65-81) – This parable lays the theological groundwork for honor killings, in which a family member is murdered because they brought shame to the family, either through apostasy or perceived moral indiscretion. The story (which is not found in any Jewish or Christian source) tells of Moses encountering a man with “special knowledge” who does things which don’t seem to make sense on the surface, but are then justified according to later explanation. One such action is to murder a youth for no apparent reason (74). However, the wise man later explains that it was feared that the boy would “grieve” his parents by “disobedience and ingratitude.” He was killed so that Allah could provide them a ‘better’ son. [Note: This parable along with verse 58:22 is a major reason that honor killing is sanctioned by Sharia. Reliance of the Traveler (Umdat al-Saliq) says that punishment for murder is not applicable when a parent or grandparent kills their offspring (o.1.12).]

            Quran (21:44) – “We gave the good things of this life to these men and their fathers until the period grew long for them; See they not that We gradually reduce the land (in their control) from its outlying borders? Is it then they who will win?”

            Quran (25:52) – “Therefore listen not to the Unbelievers, but strive against them with the utmost strenuousness with it.” – The root for Jihad is used twice in this verse, although it may not have been referring to Holy War when narrated, since it was prior to the hijra at Mecca. The “it” at the end is thought to mean the Quran. Thus the verse may have originally meant a non-violent resistance to the ‘unbelievers.’ Obviously, this changed with the hijra and ‘Jihad’ after this is almost exclusively within a violent context.

            Quran (33:60-62) – “If the hypocrites, and those in whose hearts is a disease, and the alarmists in the city do not cease, We verily shall urge thee on against them, then they will be your neighbors in it but a little while. Accursed, they will be seized wherever found and slain with a (fierce) slaughter.” This passage sanctions the slaughter (rendered “merciless” and “horrible murder” in other translations) against three groups: Hypocrites (Muslims who refuse to “fight in the way of Allah” (3:167) and hence don’t act as Muslims should), those with “diseased hearts” (which include Jews and Christians 5:51-52), and “alarmists” or “agitators who include those who merely speak out against Islam, according to Muhammad’s biographers. It is worth noting that the victims are to be sought out by Muslims, which is what today’s terrorists do. If this passage is meant merely to apply to the city of Medina, then it is unclear why it is included in Allah’s eternal word to Muslim generations.

            Quran (47:3-4) – “Those who disbelieve follow falsehood, while those who believe follow the truth from their Lord… So, when you meet (in fight Jihad in Allah’s Cause), those who disbelieve smite at their necks till when you have killed and wounded many of them, then bind a bond firmly (on them, i.e. take them as captives)… If it had been Allah’s Will, He Himself could certainly have punished them (without you). But (He lets you fight), in order to test you, some with others. But those who are killed in the Way of Allah, He will never let their deeds be lost.” Those who reject Allah are to be killed in Jihad. The wounded are to be held captive for ransom. The only reason Allah doesn’t do the dirty work himself is to to test the faithfulness of Muslims. Those who kill pass the test.

            Quran (47:35) – “Be not weary and faint-hearted, crying for peace, when ye should be uppermost (Shakir: “have the upper hand”) for Allah is with you,”

            Quran (48:17) – “There is no blame for the blind, nor is there blame for the lame, nor is there blame for the sick (that they go not forth to war). And whoso obeyeth Allah and His messenger, He will make him enter Gardens underneath which rivers flow; and whoso turneth back, him will He punish with a painful doom.” Contemporary apologists sometimes claim that Jihad means ‘spiritual struggle.’ If so, then why are the blind, lame and sick exempted? This verse also says that those who do not fight will suffer torment in hell.

            Quran (48:29) – “Muhammad is the messenger of Allah. And those with him are hard (ruthless) against the disbelievers and merciful among themselves” Islam is not about treating everyone equally. This verse tells Muslims that there are two very distinct standards that are applied based on religious status. Also the word used for ‘hard’ or ‘ruthless’ in this verse shares the same root as the word translated as ‘painful’ or severe’ to describe Hell in over 25 other verses including 65:10, 40:46 and 50:26..

            Quran (61:4) – “Surely Allah loves those who fight in His cause” Religion of Peace, indeed! The verse explicitly refers to “rows” or “battle array,” meaning that it is speaking of physical conflict. This is followed by (61:9), which defines the “cause”: “He it is who has sent His Messenger (Mohammed) with guidance and the religion of truth (Islam) to make it victorious over all religions even though the infidels may resist.” (See next verse, below). Infidels who resist Islamic rule are to be fought.

            Quran (61:10-12) – “O You who believe! Shall I guide you to a commerce that will save you from a painful torment. That you believe in Allah and His Messenger (Muhammad), and that you strive hard and fight in the Cause of Allah with your wealth and your lives, that will be better for you, if you but know! (If you do so) He will forgive you your sins, and admit you into Gardens under which rivers flow, and pleasant dwelling in Gardens of’Adn- Eternity [‘Adn(Edn) Paradise], that is indeed the great success.” This verse refers to physical battle in order to make Islam victorious over other religions (see verse 9). It uses the Arabic root for the word Jihad.

            Quran (66:9) – “O Prophet! Strive against the disbelievers and the hypocrites, and be stern with them. Hell will be their home, a hapless journey’s end.” The root word of “Jihad” is used again here. The context is clearly holy war, and the scope of violence is broadened to include “hypocrites” – those who call themselves Muslims but do not act as such.

        8. दोस्त हिन्दू धर्म मे भी तो औरते शिव लिंग का जब तक जायका न लेले तब तक उसका पति उसे नही छूता ये कैसा धर्म है माँ के कहने पर पांडवों ने एक ही लड़की से शादी की बारी बारी सम्भोग भी किया और कहा बार वो नई नवेली बन जाती वो भी शिव के वरदान से ये कैसे भगवान है राम पिता दसरत उनके पिता का कोई नाम ही नही जानता सीता को राम ने छोड़ा तो एक पुत्र था जब मिले तो दो थे संकर जी महा देव है पार्वती ने अपने मैल कुचैल से गरेश को जन्मा और शिव जी ने गर्दन उड़ा दी वो सर दुबारा मिला नही बेचारे हाथी की गर्दन को लगा दिया अब बताओ गिलास में कभी जग बैठाओ तो वो बैठेगा नही न चोरी इस्लाम ने नही सिखाया कृष्णा ने बताया माखन चुरा कर लड़की छेड़ना भी उन्ही का देन है हिन्दू धर्म न तो गीता में है न कुरान में जिसकी कोई हिस्ट्री न हो सिवाय दो किताब के हम इस्लाम का सबूत आज से बाबा आदम तक दे सकते है

          1. tum baba aadam se kya kaheen se bhee naheen de sakte
            allah hamesha apani kitabon ko bdalta rahta hai
            yaan tak ki quran men bhee kitanee hee aayton ko mansukh kar diya
            🙂
            aur ye puran to dushton ne likhe hein hamare dharm granth naheen

        9. बेटा जब वक़्ते जाहिलियत में औरतों जलाया जाता था बेटी होने पर पत्थर के बूत के लिए गाड़ा जाता था तब हमारे नबी s.a.w ने उन्हें उनका दर्जा दीया ये करता कौन था तुम लोग जो पत्थर पूजते थे औरतो को क्या हक़ दिया पहला निकाह बीबी खदीजा से किया जो दो आदमियो की बेवा थी उन्हें बेटे हुए पर अल्लाह के रह में दे दिया इस लिए की दुनिया बेटियों की अजमत समझे औरतो को बे पर्दा तुम रखते थे रखते हो सायद रखते रहो गए और इस्लाम ने उन्हें पर्दा दिया बेटा ये तलाक़ इस लिए तुम्हारे औरतो की तरह कुछ इस्लाम में भी बे पर्दा गैर मर्द को देखती है उनके लिये तिन तलाक है पहला वार्निंग की तौर पर की अपनी आदत छुड़ा लो नही दूसरा तलाक दूँगा फिर भी न सुधरे तो तिन तलाक दे कर छोड़ दिया जाता है अब तुम्हारी माँ को तुम्हारे पापा किसी और के शाथ देखें तो रख सकते है पर इस्लाम में इसे बहुत बड़ा गुनाह माना जाता है इस लिए तिन तलाक है और दूसरे मर्द से शादी इस लिए है क्योंकि मर्द भी उसी मिट्टी के बने है अपनी हवस के लिए किसी औरत को तलाक़ दे और बाद में पस्तावा हो की मैंने गलत किया भाई तुमने तो अपने हवस के लिए दो जिंदगी ख़राब कर दी अब सोचते हो फिर से वही जो मैंने जैसा छोड़ा था तो इसको इस्लाम बदला है गलती सुधारने के लिए की कोई किसी को तलाक देने से पहले सोचे इसी लिए उसकी भी दूसरी शादी होती है इद्दत के बाद वो मर्द और औरत चाहे तो एक शाथ रह सकते नही फिर उसी के शाथ रहना है तो रह सकते है इससे उसे अपने किया पस्तावा रहेगा मेरी बात का बुरा मत मानना मैंने सिर्फ आप को समझाया है लिखने में कोई गलती हुई तो माफ़ करना तुम इस्लाम को समझ नहीं सकते तो बुरा भी मत कहो क्योंकि मेरी नबी ने कहा काफिर के खुदा को गाली मत दो नही वो पलट कर तुम्हारे हकीकी खुदा को गाली देगा ये है इस्लाम

          1. १. बेटा जब वक़्ते जाहिलियत में औरतों जलाया जाता था बेटी होने पर पत्थर के बूत के लिए गाड़ा जाता था – ये आपके यहाँ होता था हमारे यहाँ नहेने
            २. उन्हें बेटे हुए पर अल्लाह के रह में दे दिया – कुनसे बेटे को अल्लाह कि रह में दे दिया जो खदीजा से हुए ?
            ३. पर्दा – ये तो खुद जहालियत कि निशानी है
            ४ तलाक हलाला तो एक निकृष्ट प्रथा है

            1. बेटा सामने मिलो या नंबर दो अपना फिर बात हो तेरे पास कितनी जानकारी है और मैंने तुम्हारे देवताओं के बारे में पूछा उसका जवाब दो

              1. देवता श्रेष्ठ पुरुष को कहते हैं श्रेष्ठता ही उनका आचरण है

                देवता ईश्वर का अवतार नहीं होते और पुराण हमें मान्य नहीं किसी धूर्त ने लिखे हैं शायद आपका कोई हम इल्मी रहा होगया 🙂

            2. bhai beva se shadi krna aap-ke dharm me kyu jayaz nhi hai.. beva ko aese treat krte hai jaise bahut badha gunah krdiya ho.. aap plese shariyat ko jane ki sharyat hai kya .. islaam bahut aasan hai agr aapki niyat saaaf hai islaam ki shuruwaat paak niyat se hai .. agr aapki niyat nahi saaaf aap ache insaan nhui to aap ache musalmaan bhi nhi aaj ka musalmaan duniya ki race me apni mazhabi taleem nhi le pata hai allah unhe hidayat de..jiski wjh se unhe aadhi knowldege hoti hai or wo usko smjh nhi pate hai islaam piece hai .. shanti hai .. apne nabi ne apni kamai ka 2.5% gareebo ko baatne ka hukm diya hai ya jo jaroorat mand ho unhe .. or ye harinaan pr farz hai mtlb hukm hai .. hamare nabi ne hi jang ldne ke rukes batae.. ki bacho budho or aurto ko na maare .. biwi se mohabbat kre jinha ko harama bataya yaah tkk doosre ki biwi ko agr bd nigah se dekha to usme bhi aapki pakad hai allah ake drbaar me .. bataiye jis islaam me garrebo ko madad krna farz baataya mtlb nhi kroghe gunah pdega.. wo islaam me aesi jahiliyat kaise ho skti hai .. baat rhi prde ki,.,..abhi thoda busy hu insha allah aapse jald mulaqaat hogi please mail me ..

        10. Bewakuf admin thoda sharm kr apne upar. Tere islam ko badnam krne se kuch nhi hone wala h RSS ke chamche. Tu jitna badnam krega Islam utna hi zada phailega. Aisi behuda bate Hindu dharm me h. Islam ne is sari burai ko khatm kya h.

          1. जनाब सत्य कड़वा होता है और इसे स्वीकार करना सबके बस की बात नहीं |हमने जो जानकारी दी है आपके हदीस कुरआन से ही दी है | कृपया रिफरेन्स देखे जो हदीस कुरान से दी गयी है फिर उस पर बात करेंगे हम | धन्यवाद

        11. bhai aap mujhse contact kre insha allah aapke sari shanka door krdunga aapko islaam ki poory knowledge nhi hai ..adhooryknowledge khatarnaak hoti hai.. please contact me agr aapko islaam me koi bhi ek kharabi dikhe to .. aap mujhe bataiye insha allaah mai doory klrunga aameen

          1. ji bilkul … aap yaha par sampark kar sakte hain… aur ham jo baat karte hain kuraan hadees se hi karte hain….. jab tak koi baat ki jaankaari nahi hota us mudde par baat nahi karte… jab jaankaari hota hai tabhi charchaa karte hain… kuraan aur hadeees me kya achha hai.. islaam me kya achha hai yah jaankaari hame dena ji….. hame to islaam me kuch achhi nahi lagi … dhanywaad

        12. NICE POINT AMIT SIR!!
          “islam me bhojan , sharab or sex ke baare me hi to zor diya jaat hai??”

          mujhe to pata hi nahi tha , bhai Reference bataye kahan likha hai Qura’n me?? ye teeno cheeze
          thodha Update kare knowledge ko!!

          Mard 4 shadi kar sakta hai , or Aurat kyon nahi
          => Kyoki Saahab ! Agar bachchha Hua to aap ladki se puchhte rahna , ki iska baap kaun hai
          thodha Update kare knowledge ko!!

          agr mard kare ??
          => Duniy me Aurato ki tadaad jyada hai india ko Chhodkar , thodha Update kare knowledge ko!!

          UK , US ki report nikaale jaakr
          agr mard naa kare 4 shadi to baaki aurato ka kya hoga , maine ye nahi kahan ki VIRGIN hi hona chahiye , Divorcy bhi ho sakti hai , ye point kahan chali gayi ??
          thodha Update kare knowledge ko!!

          Agr mard 4 shadi karen to Baaap or maa dono clear hai ?
          thodha Update kare knowledge ko!!

          Hadith padhne me sharam aati hai ??
          mat padho yaar , par
          thodha Update kare knowledge ko!!

          agar maine Baki religion ki poll kholi to Aap ki haalat kharaab ho jayegi.(IS maamle me mai khamoshi ikhtiyaar karna pasand karunga , par aapne Ungali uthayi ISLAM par to mera bhi man kar rha hai , Hindunims par ungali uthaao)

          Bhai ek baat batao , Shadi karke Sex karna jyada jaruri hai (1 ho ya 4 ), ya bina Shadi kiye ?
          Hope you will support 2nd , yhi to hai

          aapne kahan — sirf 3 taalaak , or kaam khatam
          thodha Update kare knowledge ko!!
          The concept of “triple Talaq in one sitting” or “Instant Talaq” is alien to the Quran.
          http://ummat-e-nabi.com/talaaq/

          thodha Update kare knowledge ko!!
          bas chale aaye muh uthaakar comment karne , meri to hansi hi nahi ruk rhi hai aapke comment padhkar

          Prophet S.A.W. to Hazrat Ali
          “Ae!! Ali bewajah ki talaaq se bacho , Allah ko Halaal cheezo me sabse jyada na-pasand Talaaaq hai , haalki de sakte hai , jab bahoot mushkill ho jaaye , link padh liziyega detail me aankhe khul jaayegi — process of talaaq as per Quraa’n”

          NICE POINT AMIT SIR!!
          “islam me bhojan , sharab or sex ke baare me hi to zor diya jaat hai??”

          mujhe to pata hi nahi tha , bhai Reference bataye kahan likha hai Qura’n me?? ye teeno cheeze
          thodha Update kare knowledge ko!!

          Mard 4 shadi kar sakta hai , or Aurat kyon nahi
          => Kyoki Saahab ! Agar bachchha Hua to aap ladki se puchhte rahna , ki iska baap kaun hai
          thodha Update kare knowledge ko!!

          agr mard kare ??
          => Duniy me Aurato ki tadaad jyada hai india ko Chhodkar , thodha Update kare knowledge ko!!

          UK , US ki report nikaale jaakr
          agr mard naa kare 4 shadi to baaki aurato ka kya hoga , maine ye nahi kahan ki VIRGIN hi hona chahiye , Divorcy bhi ho sakti hai , ye point kahan chali gayi ??
          thodha Update kare knowledge ko!!

          Agr mard 4 shadi karen to Baaap or maa dono clear hai ?
          thodha Update kare knowledge ko!!

          Hadith padhne me sharam aati hai ??
          mat padho yaar , par
          thodha Update kare knowledge ko!!

          agar maine Baki religion ki poll kholi to Aap ki haalat kharaab ho jayegi.(IS maamle me mai khamoshi ikhtiyaar karna pasand karunga , par aapne Ungali uthayi ISLAM par to mera bhi man kar rha hai , Hindunims par ungali uthaao)

          Bhai ek baat batao , Shadi karke Sex karna jyada jaruri hai (1 ho ya 4 ), ya bina Shadi kiye ?
          Hope you will support 2nd , yhi to hai

          aapne kahan — sirf 3 taalaak , or kaam khatam
          thodha Update kare knowledge ko!!
          The concept of “triple Talaq in one sitting” or “Instant Talaq” is alien to the Quran.
          http://ummat-e-nabi.com/talaaq/

          thodha Update kare knowledge ko!!

          or zara wo hadith batana jisme Wife Exchange karne ka offer hai
          Waiting for reply!!

          1. javed Khan Siddqui भाई जान
            हमने जो बोला है वह बिलकुल सही बोला है और आपको कुरान हदीस सब में मिल जाएगा |
            कुरआन में ही बोला गया है औरत खेत होती है | इसका मतलब क्या लिया जाए | दूसरा यह की किसी की बीवी पसंद आ जाए तो तलाक देकर अपनी बीवी को उससे निकाह करवा दो और उसकी बीवी से उसका निकाह कर लो और मन भर जाए तो फिर तलाक देकर अपनी बीवी को वापस लेते आओ यह हदीस में जानकारी दी गयी है तो इसे सेक्स के रूप ना देखा जाए क्या | कई तरह की बाते हैं हदीस और कुरान से जिसका वर्णन नहीं करना चाहता फिलहाल | भोजन और शराब के बारे में भी कुरान हदीस में लिखी है थोडा पढ़े फिर अपने दिल को समझाना की मैंने जो बोला गलत नहीं बोला था सही बोला था | हदीस कुरआन पढ़ो जनाब |बहुत बड़ा लिख दिया है मौका यदि मिलेगा तो आगे आपकी सारे जवाब के बारे में चर्चा की जायेगी | छोटे छोटे कमेंट करे तो सवाल जवाब देने में सही रहता है | बिलकुल आप वेद से पोल खोल करे आपका स्वागत है हम इन्तजार करेंगे |कृपया कमेंट छोटे छोटे कमेंट कर दे जिससे जवाब देने में आसानी होगी और पाठकगन को पढ़ने में भी सुविधा होगी | आपके जवाब की इन्तार में

          1. जनाब जरुर | हम धीरे धीरे सब की जानकारी देंगे | आप हमारा साईट विजिट करते रहे |

        13. Jb tk puri bat thkik k sath pta nhi ho jb tk nhi bolna chahie …..

          Or ek bat dhyan rakhana hadish bahut pyari hoti h aml krne se pta chalta h or jo tumne hadish k matlab nikale h esa kuch bhi nhi h kyu ki agr tum hadish ko jante to yah bhi jante ki islam m ger ( yani maa bahan biwi ya fufi ko chor kr) kisi ko aakh utha kr dekhna bhi pap h

          1. Acha inke alawa kisee ko aankh uthaa ke dekhnaa paap hai to wo auraten kya lagatee hein jinhen khareeda aur becha jaata hai wo to haram hai ☺️

        14. AMit pahele islam ko sikho quraan ko jano
          Or jo tum ye bat bolre ho to koi prof bhi do
          Hadis ka naam bolo ya quraan ki aayat batao
          Allha tum ko hidayat de

        15. Bhai sahab ap hame ek bt btaye ek glas me agr char admi a kr peshab kre to btaye usko kse malom pdhega ki wo kska bachha h ?
          Ar ek mard 4 aurat ke sth sex krega to un charo ko malom rhega ki ye kska bachha h
          Ar ri bt shadi krne ki talaq ka haq mard ko to aurat ko khula ka haq diya gya h lgta h ap bhut jan kar h to aye 2 ar 4 bt islam ke bare me ho jye dekho ki kitne pani me h ap
          Ek admi ko smbhal ni payegi to 4 ko kaha se smbhalegi
          Ek ko time degi to dosra naraz rhega ar aye din ldhai hoti rhegi nai yaqeen h to dekho na jane kitne case ho re h is duniya me ki aurat dosre mard ke sth time pas krti h usi ke chakkar me khoon qatal ho jata h ab iska zimmedar kon h ? Koi ar nai balki apki ghatiya soch

          1. Aajkal to DNA hai bhai

            Allah ke time men naheen tha
            Isliye kiska baccha hai pata chal jayega aap to anumati do ki islam men auraten 4 mard rakh len
            Baccha kiska ahi ye to pata karma mushkil naheen😂

        16. इस्लाम में मर्द चार बीवियां रख सकता है पर औरतें चार मर्द इसलिए नहीं रख सकती क्योंकि पांच मर्द रखने का रिवाज हिंदू धर्म में है द्रोपदी तो याद होगी ही की उसे भूल गए ।हमारे गाँव में एक कहावत है कि पकौडे छानने वाली छननी बोलती है आटा छानने वाली छननी को की तेरे नीचे छेद है,पर उसे अपने छेद दिखाई नहीं देते वो भी बड़े वाले ।हमने तुम्हें क्या समझाया ये तो तुम समझ ही गए होगे या विस्तार पुर्वक समझाएं।धन्यवाद

          1. शमीम
            द्रोपदी का रुओ एक ही पति था युदिष्ठर के आपको भ्रम हुआ है कि पांच पति थे।
            अतः अब इस बात का जवाब दो की 4 पति मुसलमान महिलाएं क्यों नहीं रख सकतीं?

        17. Are jahil ka awlad agr jankari nahi hai to bak bak mat kiya kar warna jahannam to Jana tera Tay hai.. kahin yahan par bhi bahot sari takleefo ka samna na karna pad jye.. sala tmko pata h ko hadis kya h.. bas muh utha kar bol diya behanchod

          1. यही इस्लाम की भाषा है जिसे सभी को देखकर समझना चाहिए की इस्लाम क्या है और उसमें नारी की क्या स्थिति हो सकती है

        18. Are Kya Chutiya jaisi comment dete Ho.. Jab 5 Pandav Milke 1 hi biwi draupdi ko sambhog karte he wo tum log chalta he.. Uspe post aur comment Karo..

          1. mr. imma

            आपने जो शंका द्रौपदी को लेकर दिखाई है उसका जवाब यहाँ दिया जा चूका है हवस का चश्मा उतार कर अवश्य देखे

        19. यहा पर कीसी भी धर्म के व्यक्ति का अपमान करने के लिए नही लीखा गया है और ना
          ही व्यक्ति का अपमान करने के लिए नही लीखा गया है

          क्या आप पसंद करेंगे के आपकी वाईफ कीसी 4 मर्द को भी आपके जीतना ही हक उन 4 मर्द को भी बराबर दे

          अब आप कहेगे की यह तो गलत बात बोल रहे हो

        20. Janab aapne taleem kis jagah se hasil ki kyuki aapki taleem shi nhi hai phle usko theek kre phir baat kre or jha tak sawal h quraan or uske hukm ka to wo hamesha shi h phle uko padho uske aage peeche ki aayate or tarjuma kisi jankaar se karaye aapki tarjumani bhi shi nhi h
          Doosro ko samjhane se phle aap apne mazhab ko samajh le phle uske hukmo ko pura kre apni khwateen ko apne mazhab ke hukmo ke sath chalne ko bole phir baat krna kisi or mazhab ke bare me

        21. Arrey bhai jab kuch malum nahi hai, aur concept pata nahi to nahi comment karna chaiye. Pehle aapka kaam hai ki uske peecge ka reason jaanna. Asal baat yeh hai ki hijrat ke baad jab makka chodkar aaye the muhajir, to Madine ke Ansar Sahabi ne apne ghar par rakha…Allah ke Rasool ne bhaichargi banadi thi Muhajir aur Ansar mein.
          Jis Ansar ke paas 2 biwi the woh jo hijrat karke aaye Mujahir ko agar woh pasand kare to apni ek biwi ko talaq de dunga aur tum iddat ke baat nikah karlena kaha…
          Aur sirf biwi nahi apna karobar aur apni kheti bhi…Hazrat Abdur Rehman Bin Auf jo mashur sahabi hai…Bade maldaro mein the…Jab hijrat karke Madina aaye tab bohat gareeb the…Unse ek Ansari Sahabi ne kaha ki meri 2 biwiya hai, tum in mei se jise pasand karo mei talaq de dunga aur mera karobar aada tumhara, par is par unhone kaha Allah tumhare ghar aur karobar mein barkat de, mujhe bazar ka raasta bata do…Samjhe bhai..

          Woh cheez koi ab kare to gunehgar hoga…Woh us waqt ke liye tha…

          Isliye Quran samajhte nahi ho aur gumrah hojaate ho…

          Ismein kuch baate dhyan dene ki hai…Apni biwi ko talaq dena sirf Allah ke waaste, kisi apni biwi se mohabbat nahi hoti hai…Iman kis darje ka hoga…Aur us zamane mei Arab mein ya puri duniya mein kahiye…har maldar aadmi ki 9 – 10 biwiya hoti thi…Islam ne usko 4 par laa doya..Ki 4 se zyada nahi kar sakte.

        22. Vats Tum hadees, quraan rahne do tumse gandagi ke siva koi aur matlab na gadha jayega.. kyuki tumne vedo aur purano me manav nirmit gandagi he padhi hui hai jise leela ka naam dete ho.. tum ved aur puran ramayan aur mahabharat me bhari hui gandagi ka vistar se adhyan karo…

        23. Talak muslims se ziyada dusre mazhab main hoti hain maloom karke dekhlo.Aur’ biwi badalte hain ‘ aur jo jo bhi batain likhkar Islam main behayai batane walo, kitna jhoot bologe kya yeh sikhata hai tumhara religion .’Main yahan nahi likhsakta’ O ho itni behayai hai, Kya ek aaorat ek hi waqt main paaaanch mardaon ki biwi bani, kis mazhab main hai yeh.
          Man bharjane se Divorce nahi hoti hai Ladai jhagde hone se Divorce hoti hai. Husband Wife jab ek dusre ke saat nahi rahsakte to Divorce to hota hi hai, Yahan Hadees yeh hai ke baaz log ghusse main ‘Talak Talak Talak’ boldete hain baad main pachtate hain (har koi nahi pachtata) jo log baad main pachtate aur apni ghalti ka ehsaas hota hai tab woh phir apni biwi ko chordna nahi chahte tab unhain ‘Halala’ Ka sahara lena padta hai ,aur Halala ek tarha se dono ko bhi ek punishment hai ,unki ghalti ki kyonke ‘Halala’ Ka matlab Aaorat ka Nikah kisi dusre Aadmi se hoga aur Woh Aadmi Agar Divorce dega to phir se Aaorat uska jo pahla husband tha usse Nikah karsakti hai.
          Hadees Insaan ko jine ka tarikha sikhane ke liye hai, Yeh islamic rules hain jo kisi par zabardasti thope nahi jaate hain aur Jo sachcha musalman hai woh dil se maanta hai.
          Gande log har baat main gandgi dhundte hain Kaon si burai hai jo insaan nahi karraha hai.Dusri shaadi karne ke liye muslim naam rakhkar shaadi karrahe hain.
          Had hai badtamizi ki kaon kahraha hai islam islam bolo, Kaon zabardasti karraha hai Hadees padho,Apna Apna mazhab sahi se padhlo usko maano usi par maro, kyon ke koi bhi mazhab dusre mazhab main buraiyan dhoondna nahi sikhata

        24. Islam aapke religion ki tarah pando ki bapoti nahi hai, balki way of life hai jisme practicality hai.
          Hinduism main ye ek saath jeene marne ke chakkar main jasodaben aur seeta ka kya haal raha wo sabko maloom hai.
          Aur ashleelta ki baat hi na karo to behtar hai. Puranas main jis tarah Rukmini ka description hai ya Brahma ne saraswati ke saath kya kara aur kab tak kara ka ullekh hai, wo sab pad liya to kahi tum unhe kaamuk literature ki upaadhi hi na de do isliye na poochna aur na padna.
          Agar thodi bhi aql aur sacchai ho tum me ya tumhaare religion main to pehle Ek Almighty pe baat karo phir koi aur baat.

        25. Apne padha Hadids ye log kuch bhi likhre hai ap usko manri ho glt h y aisa nhi hai hadis m likha hai agr pati or patni apas me shi na rehte ho ya unki ldai rehti ho apas me banti na ho ek dusre se to tab us surat m talak hai y nhi ki jbr dasti bndhe rho shadi m dil kush na ho ek dusre se jab bhi is liye hukam h smjhe ap y glt likha h kisi battamiz insan ne hadis ke bare m sirf nafrat felane ke liye islam se smjhe ap

      2. Jaisa dukano me likha hota hai bika hua maal wapis nahi hoga
        Tum log v likh lo apne darwze par
        Maal bina chude nhi jayegi

        1. दीपक मुखिया जी
          बहुत दुःख होता है जब आप जैसे लोग शालीनता से चर्चा नहीं करते | क्या इस तरह का भाषा का इस्तेमाल करना क्या आपके कोई ग्रन्थ में बतलाया गया है जानकारी देना मेरे भाई | हां यह बात सही है की इस्लाम में कई ऐसी अश्लील बात है | हमें अपनी मर्यादा में रहकर चर्चा करनी चाहिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल आप जैसे लोगो से उम्मीद नहीं की जा सकती | धन्यवाद

          1. Amit Mukhiya , My brother , should have manner way of talking because your expression show your way .So , please , have soft attitude during conversation .

            1. Neo Aryawarati ji
              badi dukh ki baat hai ki aapne naam sahi se nahi parhaa. unkaa naam deepak mukhiya hai …. maine unhe samjhaya hai aur aapane bhi unhe samjhaya uske liye aapko bahut aabhaar.

          2. Amit ji Islam.me koi galtiyan nahi,Islam Aman,Shanti, Insaniyat,Nyay ki baat karta hai,Galat translate ko lekar galat msg mat do.
            Agar Quraan padhoge aur samajhne ki koshish karoge to Musalmano se ladoge aur kahoge ye kitab to sabhi ke liye hai ispar hamara bhi utna hi haqq adhikar hai jitna aap logon ka hai.

            1. Islam shanti ki bat karta hai to fir islam men ye kalte aam kyon?

              shanti ki bat karta hai to khaleefaon ne khilafat ke liye itani mar kat kyon ki

              1. Kaun se khalifa ???
                zara mai bhi to jaanu??
                badha new comment hai ,
                HATS OOF to your knowledge

                1. kitnon ka murder naheen hua?
                  aapke Uthman ka murder naheen hua?

                  Karbala men huasin ko kisane mara

                  Ayesha aur ALi ke beech ke ladai kaun naheen janta aur wo kisko lekar thee ?

          3. Ye tamiz hai unko to ky kr sakta hai koi or apko bhi nhi maloom hai ki talak lena haq hai ek pati or patni ka apke yha bhi to hota hna divorce btaiye q hota h isliye na qki dono apas me kush nhi hote ya unko ldai jhagda rehta h to apas me Salah krke alg hote hna yhi hadis m h lkin jo y likha hna kisi ne galat likha h ap hadis ko khud padhe aise afwah m nhi aana chiye ap jesse samjhdar logo ko dekhiye hmare islam m talak hone ke bad biwi iddat krti h tab vo khk shadi krti h ager usko vha ye lge ki y admi to mere phle pti se bura h tab vo usse alg ho jati h iddat krti h 3 month ki or tb usi phle admi se shadi krti h or y her orat ke sath nhi hota h ok

        2. Mr amit Roy….aap kis trh ka sandesh duniya ko dena chahte h??? Dusro m kmi dhundhna sbsa as an kaam h…,aur ek bat koi v dhrm glat baat nhi sikhlata…glati hmari use samjhne m hoti h….,achha hota ki aap agr dhramo m similarity ki trf dhayan dete bjay differences ki, mai Muslim hu lekin Ram k adarso ko v manta hu aur paigame Islam ko v….agr aap btana hi chahte h to logon ko prem btaye…..nafrat bdha kr aapko kya milega???

          1. pirzada ji
            सन्देश वही देना चाहिए जो सच हो और लोग उस सन्देश को सही समझे और उस सन्देश से लोग सुधार कर सके और अपनी गलती को स्वीकार कर सके | चलो मैं आपको एक उदाहरन देता हु बहुत पहले पौराणिक बंधुओ में सती प्रथा होती थी जिसमे पति के मरने पर पत्नी या तो खुद अग्नि में समाहित होती थी चाहे उसे दवाब देकर अग्नि में समाहित कर दिया जाता था जिसका विरोध किया गया क्यूंकि यह गलत था और विरोध करने के कारण इस तरह की परम्परा बंद हुयी जो कमी है उसकी सुधार की गयी | इसी तरह हमारा भी उद्देश्य है की जिन जिन मत संप्रदाय में जो कमी हो उसकी जानकारी दी जा सके जिससे उसका विरोध हो सके और गलत परमपरा को समाप्त की जा सके | और हम वही गलत परमपरा को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं सभी मत मजहब से | क्या यह सन्देश देकर लोगो को जागरूक करना गलत है ? यदि इस तरह कमी नहीं दिखाई जाये तो क्या समाज का सुधार की जा सकती है ? फैसला आपकी सोच आपकी | और हां हमारे वैदिक सनातन धर्म में पूरा विश्व को ही कुटुंब समझा जाता है बोला जाता है मनुष्य बनो | सब मिलजुलकर रहो | मगर और सब पुराण कुरआन बाइबिल इत्यादि प्रेम नहीं सिखाती द्वेष सिखाती है जैसे एक उदाहरन दे रहा हु काफ़िरो को मारो कुरआन बोलता है | इस कारण आज isis और कई आतंकवादी संघटन है जो कुरआन का अनुसरण कर दुसरे मत मजहब का क़त्ल करते हैं ? क्यों ना उन आयत को कुरआन से हटा दिया जाए समाज की सुधार के लिए | हमारा मकसद है समाज की बुराई को मिटाना | अब आप हमारा उद्देश्य समझ गए होंगे क्यों हम कमी खोजते हैं ? इसकारण खोजते है जिससे वे अपने मत में सुधार कर सकें | आप अछे इंसान लग रहे हो तो आप भी कोशिश करें अपने मत से कमी को दूर करने की | धन्यवाद |

            1. Mr amit….andhviswaas k khilaf m v hu….aur agr aap kisi v dhrm k chal rhe adhviswas ko dhrm ki roshni m dekhnge to aap paynge, uska dhrm she koi Lena dena nhi, logon ne apne according dhrm ko bna rkha h,, aur jhaan tk ISIS ka Islam she taluk h, to unka Islam she koi taluk nhi h..Islam begunahon ko Marne ki ijajat nhi deta…mai khud ISIS ke khilaf h…kyunki ye Islam ko bdnaam kr rhe h…kuch kattar Muslim isko badhwa de rhe h…Jo ki srasr glat h….Islam m “jehad” sbd k mtlb ko glat trike se in ISIS ne liya h…..filhaal itna jaan lijiye., koi v dhrm manav se prem hi sikhlata h…..aur Jo ish sach ko jaan gya wohi Ram aur Rahim k raste pr hai

              1. Pirzada भाई जान
                मैंने पहले भी आपको बतलाया की आप मुस्लिमो में हटकर हो और इस कारण आपकी बहुत सम्मान करता हु | मगर जो सच हो उसे बतलाना हमारा मकसद है जिससे उन मत मजहब के लोगो को सत्य की जानकारी हो सके और वे अपने मजहब को सुधार कर सके | मैंने आपको एक उदाहरन दिया था सती प्रथा का इस कारण सती प्रथा का समाज से हटा दिया गया | क्या आप लोग हलाला खतना तलाक को समाज से हटा सकते हैं ?? आज मेल पर वात्सप्प पर तलाक दे दिया जाता है क्या यह प्रेम की शिक्षा देती है कुरआन ? मुशरिको को मारो क्या यह कुरआन शिक्षा नहीं देता ? ये गिलमा क्या होता है इसे बतलाने की कोशिश करेंगे ??? हमें इन बुराई को हटाना है समाज से | आज आप यह सोचो की जिसकी निकाह हुयी हो उसकी उम्र मात्र १७ साल की हो और उसे तलाक दे दिया जाना क्या यह सही होता है |आप isis ओसामा बिन लादेन के समर्थक नहीं हो मगर और सब जो है इन सब का समर्थन करते हैं आप जैसे बहुत कम ही मुस्लिम होते हैं इस कारण आप जैसे मुस्लिम का मैं सम्मान करता हु एक बात है जी आप सत्यार्थ प्रकश पढ़े और फिर वेद पढ़े इसके बाद कुरआन पढ़े हदीस पढ़े आपको खुद सत्य की जानकारी हो जायेगी | चलिए मैं कल से साईट पर नहीं आऊंगा तो कल से आपसे संवाद नहीं हो पाएगी कुछ दिनों तक | हां मेरा रोज पोस्ट साईट पर होते रहेगी | आपको जो सुझाब दिया है सत्यार्थ प्रकाश और वेद पढ़े | आप सभी मत मजहब को छोड़कर वैदिक सनातन धर्म को अपना लेंगे | आओ लौट चले वेद की ओर | धन्यवाद आपका |

                1. Amit ji Halala,Khatna,Mushrikon ko maro is jaisi koi aayat nahi hai ye mera challenge hai,sirf galat translate ki wajah se galat fahemiyan ho rahi hai.
                  Unke translate ko manna zaruri nahi ye galat hai.

                  1. ye kya hai fir

                    Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

                    Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

                    Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

                    Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

                    Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

                    Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

                    Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

                    Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

                    Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

                    Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

                    Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

                    Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

                    Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

                    Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

                    Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

                    Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

                    Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

                    Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

                    Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

              2. Sir salute ap mujhe bot ache insan lge scche lge mujhe musalmano se ya Islam se dikkat nhi mujhe hr dhrm ki glt chizo se dikkt h chahe wo mere dhrm ki hi Ku na ho wo ek din nasoor bn jati h unhe bdhne hi nhi Dena chahiye A buyGR possible ho to mai chahungi ki ap jaise ache aur shant log mere Frnd ho

            2. Amit bhai aap ye sahi kahe rahe hain laikin galti translater ki hai Maine quraan par study ki hai aur kar raha hoon usme kahin nahi hai ke dusron ko taklif do,agar aap log Ya koi bhi Quraan ko samajhne ki koshish karega to ye payega ki ye sirf aur sirf Insaniyat ke liye hai.

              1. If u have gone through the quran:
                let us know what does below verses stand for:
                Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

                Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

                Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

                Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

                Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

                Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

                Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

                Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

                Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

                Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

                Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

                Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

                Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

                Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

                Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

                Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

                Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

                Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

                Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

                [Note: The verse says to fight unbelievers “wherever you find them”. Even if the context is in a time of battle (which it was not) the reading appears to sanction attacks against those “unbelievers” who are not on the battlefield. In 2016, the Islamic State referred to this verse in urging the faithful to commit terror attacks: Allah did not only command the ‘fighting’ of disbelievers, as if to say He only wants us to conduct frontline operations against them. Rather, He has also ordered that they be slain wherever they may be – on or off the battlefield. (source)]

                Quran (9:14) – “Fight against them so that Allah will punish them by your hands and disgrace them and give you victory over them and heal the breasts of a believing people.” Humiliating and hurting non-believers not only has the blessing of Allah, but it is ordered as a means of carrying out his punishment and even “healing” the hearts of Muslims.

                Quran (9:20) – “Those who believe, and have left their homes and striven with their wealth and their lives in Allah’s way are of much greater worth in Allah’s sight. These are they who are triumphant.” The Arabic word interpreted as “striving” in this verse is the same root as “Jihad”. The context is obviously holy war.

                Quran (9:29) – “Fight those who believe not in Allah nor the Last Day, nor hold that forbidden which hath been forbidden by Allah and His Messenger, nor acknowledge the religion of Truth, (even if they are) of the People of the Book, until they pay the Jizya with willing submission, and feel themselves subdued.” “People of the Book” refers to Christians and Jews. According to this verse, they are to be violently subjugated, with the sole justification being their religious status. Verse 9:33 tells Muslims that Allah has charted them to make Islam “superior over all religions.” This chapter was one of the final “revelations” from Allah and it set in motion the tenacious military expansion, in which Muhammad’s companions managed to conquer two-thirds of the Christian world in the next 100 years. Islam is intended to dominate all other people and faiths.

                Quran (9:30) – “And the Jews say: Ezra is the son of Allah; and the Christians say: The Messiah is the son of Allah; these are the words of their mouths; they imitate the saying of those who disbelieved before; may Allah destroy them; how they are turned away!”

                Quran (9:38-39) – “O ye who believe! what is the matter with you, that, when ye are asked to go forth in the cause of Allah, ye cling heavily to the earth? Do ye prefer the life of this world to the Hereafter? But little is the comfort of this life, as compared with the Hereafter. Unless ye go forth, He will punish you with a grievous penalty, and put others in your place.” This is a warning to those who refuse to fight, that they will be punished with Hell.

                Quran (9:41) – “Go forth, light-armed and heavy-armed, and strive with your wealth and your lives in the way of Allah! That is best for you if ye but knew.” See also the verse that follows (9:42) – “If there had been immediate gain (in sight), and the journey easy, they would (all) without doubt have followed thee, but the distance was long, (and weighed) on them” This contradicts the myth that Muslims are to fight only in self-defense, since the wording implies that battle will be waged a long distance from home (in another country and on Christian soil, in this case, according to the historians).

                Quran (9:73) – “O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites and be unyielding to them; and their abode is hell, and evil is the destination.” Dehumanizing those who reject Islam, by reminding Muslims that unbelievers are merely firewood for Hell, makes it easier to justify slaughter. It explains why today’s devout Muslims generally have little regard for those outside the faith. The inclusion of “hypocrites” within this verse also contradicts the apologist’s defense that the targets of hate and hostility are wartime foes, since there was never an opposing army made up of non-religious Muslims in Muhammad’s time. (See also Games Muslims Play: Terrorists Can’t Be Muslim Because They Kill Muslims for the role this verse plays in Islam’s perpetual internal conflicts).

                Quran (9:88) – “But the Messenger, and those who believe with him, strive and fight with their wealth and their persons: for them are (all) good things: and it is they who will prosper.”

                Quran (9:111) – “Allah hath purchased of the believers their persons and their goods; for theirs (in return) is the garden (of Paradise): they fight in His cause, and slay and are slain: a promise binding on Him in truth, through the Law, the Gospel, and the Quran: and who is more faithful to his covenant than Allah? then rejoice in the bargain which ye have concluded: that is the achievement supreme.” How does the Quran define a true believer?

                Quran (9:123) – “O you who believe! fight those of the unbelievers who are near to you and let them find in you hardness.”

                Quran (17:16) – “And when We wish to destroy a town, We send Our commandment to the people of it who lead easy lives, but they transgress therein; thus the word proves true against it, so We destroy it with utter destruction.” Note that the crime is moral transgression, and the punishment is “utter destruction.” (Before ordering the 9/11 attacks, Osama bin Laden first issued Americans an invitation to Islam).

                Quran (18:65-81) – This parable lays the theological groundwork for honor killings, in which a family member is murdered because they brought shame to the family, either through apostasy or perceived moral indiscretion. The story (which is not found in any Jewish or Christian source) tells of Moses encountering a man with “special knowledge” who does things which don’t seem to make sense on the surface, but are then justified according to later explanation. One such action is to murder a youth for no apparent reason (74). However, the wise man later explains that it was feared that the boy would “grieve” his parents by “disobedience and ingratitude.” He was killed so that Allah could provide them a ‘better’ son. [Note: This parable along with verse 58:22 is a major reason that honor killing is sanctioned by Sharia. Reliance of the Traveler (Umdat al-Saliq) says that punishment for murder is not applicable when a parent or grandparent kills their offspring (o.1.12).]

                Quran (21:44) – “We gave the good things of this life to these men and their fathers until the period grew long for them; See they not that We gradually reduce the land (in their control) from its outlying borders? Is it then they who will win?”

                Quran (25:52) – “Therefore listen not to the Unbelievers, but strive against them with the utmost strenuousness with it.” – The root for Jihad is used twice in this verse, although it may not have been referring to Holy War when narrated, since it was prior to the hijra at Mecca. The “it” at the end is thought to mean the Quran. Thus the verse may have originally meant a non-violent resistance to the ‘unbelievers.’ Obviously, this changed with the hijra and ‘Jihad’ after this is almost exclusively within a violent context.

                Quran (33:60-62) – “If the hypocrites, and those in whose hearts is a disease, and the alarmists in the city do not cease, We verily shall urge thee on against them, then they will be your neighbors in it but a little while. Accursed, they will be seized wherever found and slain with a (fierce) slaughter.” This passage sanctions the slaughter (rendered “merciless” and “horrible murder” in other translations) against three groups: Hypocrites (Muslims who refuse to “fight in the way of Allah” (3:167) and hence don’t act as Muslims should), those with “diseased hearts” (which include Jews and Christians 5:51-52), and “alarmists” or “agitators who include those who merely speak out against Islam, according to Muhammad’s biographers. It is worth noting that the victims are to be sought out by Muslims, which is what today’s terrorists do. If this passage is meant merely to apply to the city of Medina, then it is unclear why it is included in Allah’s eternal word to Muslim generations.

                Quran (47:3-4) – “Those who disbelieve follow falsehood, while those who believe follow the truth from their Lord… So, when you meet (in fight Jihad in Allah’s Cause), those who disbelieve smite at their necks till when you have killed and wounded many of them, then bind a bond firmly (on them, i.e. take them as captives)… If it had been Allah’s Will, He Himself could certainly have punished them (without you). But (He lets you fight), in order to test you, some with others. But those who are killed in the Way of Allah, He will never let their deeds be lost.” Those who reject Allah are to be killed in Jihad. The wounded are to be held captive for ransom. The only reason Allah doesn’t do the dirty work himself is to to test the faithfulness of Muslims. Those who kill pass the test.

                Quran (47:35) – “Be not weary and faint-hearted, crying for peace, when ye should be uppermost (Shakir: “have the upper hand”) for Allah is with you,”

                Quran (48:17) – “There is no blame for the blind, nor is there blame for the lame, nor is there blame for the sick (that they go not forth to war). And whoso obeyeth Allah and His messenger, He will make him enter Gardens underneath which rivers flow; and whoso turneth back, him will He punish with a painful doom.” Contemporary apologists sometimes claim that Jihad means ‘spiritual struggle.’ If so, then why are the blind, lame and sick exempted? This verse also says that those who do not fight will suffer torment in hell.

                Quran (48:29) – “Muhammad is the messenger of Allah. And those with him are hard (ruthless) against the disbelievers and merciful among themselves” Islam is not about treating everyone equally. This verse tells Muslims that there are two very distinct standards that are applied based on religious status. Also the word used for ‘hard’ or ‘ruthless’ in this verse shares the same root as the word translated as ‘painful’ or severe’ to describe Hell in over 25 other verses including 65:10, 40:46 and 50:26..

                Quran (61:4) – “Surely Allah loves those who fight in His cause” Religion of Peace, indeed! The verse explicitly refers to “rows” or “battle array,” meaning that it is speaking of physical conflict. This is followed by (61:9), which defines the “cause”: “He it is who has sent His Messenger (Mohammed) with guidance and the religion of truth (Islam) to make it victorious over all religions even though the infidels may resist.” (See next verse, below). Infidels who resist Islamic rule are to be fought.

                Quran (61:10-12) – “O You who believe! Shall I guide you to a commerce that will save you from a painful torment. That you believe in Allah and His Messenger (Muhammad), and that you strive hard and fight in the Cause of Allah with your wealth and your lives, that will be better for you, if you but know! (If you do so) He will forgive you your sins, and admit you into Gardens under which rivers flow, and pleasant dwelling in Gardens of’Adn- Eternity [‘Adn(Edn) Paradise], that is indeed the great success.” This verse refers to physical battle in order to make Islam victorious over other religions (see verse 9). It uses the Arabic root for the word Jihad.

                Quran (66:9) – “O Prophet! Strive against the disbelievers and the hypocrites, and be stern with them. Hell will be their home, a hapless journey’s end.” The root word of “Jihad” is used again here. The context is clearly holy war, and the scope of violence is broadened to include “hypocrites” – those who call themselves Muslims but do not act as such.

            3. 🎄 *हज़रत अली की अनमोल बाते * 🎄
              ______________________

              अगर इन बातो पे आप चले तो दुनिया की कोई ताक़त आपको क़ामयाब होने से नही रोक सकती।।

              🔆इन्सान का अपने दुश्मन से इन्तकाम का सबसे अच्छा तरीका ये है कि वो अपनी खूबियों में इज़ाफा कर दे !!
              – *हज़रत अली*

              🔆”रिज्क के पीछे अपना इमान कभी खराब मत करो” क्योंकि नसीब का रीज़क इन्सान को ऐसे तलाश करता है जैसे मरने वाले को मौत”
              – *हज़रत अली*

              🔆गरीब वो है जिसका कोई दोस्त न हो। – *हज़रत अली*

              🔆कभी तुम दुसरों के लिए दिल से दुवा मांग कर देखो तुम्हें अपने लिए मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी ..
              – *हज़रत अली*

              🔆किसी की बेबसी पे मत हंसो ये वक़्त तुम पे भी आ सकता है.
              *- हज़रत अली*

              🔆किसी की आँख तुम्हारी वजह से नम न हो क्योंकि तुम्हे उसके हर इक आंसू का क़र्ज़ चुकाना होगा.
              – *हज़रत अली*

              🔆 “जिसको तुमसे सच्ची मोहब्बत होगी, वह तुमको बेकार और नाजायज़ कामों से रोकेगा”
              *हज़रत अली*

              🔆किसी का ऐब (बुराई) तलाश करने वाले मिसाल उस मक्खी के जैसी है जो सारा खूबसूरत जिस्म छोड सिर्फ़ ज़ख्म पर बैठती है .
              – *हज़रत अली*

              🔆राज्य का खजाना और सुविधाएं मेरे और मेरे परिवार के उपभोग के लिए नहीं हैं, मै बस इनका रखवाला हूँ
              – *हज़रत अली*

              🔆अगर किसी के बारे मे जानना चाहते हो तो पता करो के वह शख्स किसके साथ उठता बैठता है ..
              – *हज़रत अली*

              🔆इल्म की वजह से दोस्तों में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) होता है दौलत की वजह से दुशमनों में इज़ाफ़ा होता है ।
              – *हज़रत अली*

              🔆सब्र को ईमान से वो ही निस्बत है जो सिर को जिस्म से है.
              दौलत, हुक़ूमत और मुसीबत में आदमी के अक्ल का इम्तेहान होता है कि आदमी सब्र करता है या गलत क़दम उठता है.
              सब्र एक ऐसी सवारी है जो सवार को अभी गिरने नहीं देती।
              ऐसा बहुत कम होता है के जल्दबाज़ नुकसान न उठाये , और ऐसा हो ही नही सकता के सब्र करने वाला नाक़ाम हो.

              सब्र – इमान की बुनियाद, सखावत (दरियादिली) – इन्सान की खूबसूरती,
              सच्चाई – हक की ज़बान, नर्मी – कमियाबी की कुंजी, और मौत – एक बेखबर साथी है .
              – *हज़रत अली*

              🔆झूठ बोलकर जीतने से बेहतर है सच बोलकर हार जाओ।
              – *हज़रत अली*

              🔆खुबसुरत इंसान से मोहब्बत नहीं होती बल्कि जिस इंसान से मोहब्बत होती है वो खुबसुरत लगने लगता है.
              – *हज़रत अली*

              🔆हमेशा उस इंसान के करीब रहो जो तुम्हे खुश रखे लेकिन उस इंसान के और भी करीब रहो जो तुम्हारे बगैर खुश ना रह पाए
              – *हज़रत अली*

              🔆जिसकी अमीरी उसके लिबास में हो वो हमेशा फ़कीर रहेगा और जिसकी अमीरी उसके दिल में हो वो हमेशा सुखी रहेगा.
              – *हज़रत अली*

              🔆“जो तुम्हारी खामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाज़ा न कर सके उसके सामने ज़ुबान से इज़हार करना सिर्फ़ लफ्ज़ों को बरबाद करना है”
              – *हज़रत अली*

              🔆जहा तक हो सके लालच से बचो लालच में जिल्लत ही जिल्लत.
              – *हज़रत अली*

              🔆मुश्किलतरीन काम बेहतरीन लोगों के हिस्से में आते हैं. क्योंकि वो उसे हल करने की सलाहियत रखते हैं “
              – *हज़रत अली*

              🔆“कम खाने में सेहत है, कम बोलने में समझदारी है और कम सोना इबादत है”
              – *हज़रत अली*

              🔆“अक़्लमंद अपने आप को नीचा रखकर बुलंदी हासिल करता है और नादान अपने आप को बड़ा समझकर ज़िल्लत उठाता है।”
              – *हज़रत अली*

              🔆कभी भी अपनी जिस्मानी त़ाकत और दौलत पर भरोसा ना करना,
              कयुकि बीमारी ओर ग़रीबी आने मे देर नही लगती।
              – *हज़रत अली*

              1. आपके हज़रात अली का खुतबा नो ६०

                इसे भी पढो और बताओ क्या विचार है

                60- औरत एक बिच्छू के मानिन्द है जिसका डसना भी मज़ेदार होता है।

                1. वो अम्मा तुम्हारी बताये गी तुम नही जानोगे साले पत्थर पूजते हो तुम लोग उंगली हम पर उठाते हो अगर सेक्स के बारे में बताया न जाता तो तू पैदा भी न होता

                  1. पत्थर तो हम नहीं पूजते

                    लेकिन मजारों पर जियारत क्या है?
                    संगेअस्वद का बोसा लेना ये सब क्या है ये पत्थर पूजना ही तो है
                    और इस्लाम का अभिन्न अंग है

                    1. rishwa arya
                      aapko ye bhi pata nahi he ke bosha karna or पत्थर ko पूजना dono sem he
                      (ex. aap apne bacho ko बोसा karte ho to aap ke bache ki puja karte ho aysa hota he

                      ye sab pagal jyse swal kha se leke aato ho )

                    2. क्या आपका बच्चा जड़ है मूर्ति या काबा के संगे अस्वाद की तरह ?

            4. तूम अपने आप को समझती क्या हो तेरे लिए भी पांडव के पांच भाई चाहिए तभी तेरी गर्मी उतरेगी रिक्शा ओ साॅरी रिस्वा को रिक्शा लिख दिया सुनो रे सब लोग रिस्वा है रिक्शा नहीं रिक्शा समझ कर चढ़ मत जाना ।धन्यवाद

              1. आवेशित होने से अच्छा होता तुम जवाब देते परन्तु इस्लाम में सवाल करना भी गुनाह है तो तुम्हे जानकारी का अभाव होना लाजमी है

                1. निरर्थक टिप्पणी के उत्तर ही न दें। उपेक्षा करने में समझदारी है।

            5. Mr amit Roy ji ap jo bol rhe ho pehle admi ke marne per orto ko bhi uske sath jalaya jata tha or y prampra kisne roki hmare pegamber ne us smay me ek bewa se shadi krke qki usko uske PTi ke sath jala rhe the or tab hmare nbi ne unko roka or kha y q kar rhe ho is orat ke sath tb inhone kha y uski biwi h jo y murda h to iske mrne k bad iska bhi jina nhi rha to tab hmare nbi ne unse shadi ki ok amit Roy ap phle apne dharm me dekho hum khud y sab dekhege hmara dhrm h hme pata h ky shi h ky galat h ok

          2. Aap btao makka me kya hai shiv ling usme saaf saaf dikhta hai tum log choomto ho. Le lo tanisha g ko aur talak do. Aur islaam ko apni marzi se apnane wale un aurto ko swaad lena chahte hai khul k sex kr sake apni maa behan ki kuran ek shaitan ki gandi soch hai. Aur kuch nhi. Kuran dharm jb start hua tb 350 log hi isse dharm ko join kr k aagai badhay jaise ek party nanayi jati hai waise agar kuran ya islaam allah k hatho bnayi gayi to kyu ye registan me paida hue aur dushro k desh me jaake rehna pda. Ye log ek animal ki tarah rehtey thay waha koi rule nhi hota jo smjh me aya wahi rule bna liya.

              1. भाषा को सौम्य बनाये रखें
                विरोधाभास सिद्धांत का हो सकता है लेकिन असभ्यता नहीं होनी चाहिए

          3. Well said sir ap jaise log ho to insan ka jnm hi safal ho Jaye ,ek zindagi hai Jio aur mine do koi atankwadi na bane Mao b hr dhrm ki respect krti hu but glt AGR apna b hai to glt khti hu

            1. इस्लाम में क्या अच्छा है नेहा जी थोडा जानकारी देना जी |

              1. बेटा इस्लाम अच्छा है इसी लिए 313 से आज 1.5 अरब है एक भी मुस्लिम को बतादो जो मन्दिर पर जाता हो पर इस्लाम की तारीफ क्या लिखु की हर मजहब के लोग झुकते है हमारे मिर्जापुर में छोटे से गावँ जहा 70 घर ठाकुरो का था उसने कभी अपने भाई के बीबी को नही देखा मारने के बाद पुरे गांव ने जलते हुए बे पर्दा देखा सब ने इस्लाम कुबूल कर लिया पता कर लो 7 साल हो गया इस्लाम में मरने के बाद भी बा अदब प्यार से फूल माला के शाथ दफन करते है तुम लोग चिता से डारेक्ट जहन्नम में जाते हो ये है इस्लाम की अच्छाई

                1. भेड़ संख्या में ज्यादा हों तो वो उत्तम नहीं हो जाती
                  कीड़ों कि संख्या ज्यादा तो हो तो वो उतं नहीं हो जाते

        3. Ham logou ka kam he hai har kese ke maal ko chodne ka, ese tarha ham jahell log Islam ko badman karate hai,accha sa nam rakhlenese koe musalman nhe ho ta Amal bhe hona chahea.

          1. abdul rashed shahab
            kya jayra vasim ko rape dhamki muslimo ne nahi di thi??? suhana saiyad ko rape karne kaa dhamki nahi di gayi gayi thi??? naahid aafrin naam hai shayad aasam ke singer kaa unpar 46 fatwe dene ki baat galat thi… aisa muslim bandhu karte hain. abhi ek video hamne apane page par post ki thi jisme hindu ladki ko chhedchaad kar rahe the aur us ladki ke pita ne virodh kiya to us pita ko jaan se maar diya gayaa. islaam yahi sab to sikhata hai ji….kaafiro ko maaro… hathyaar ke bal par namaj parhao matlab muslim banao.. thoda quran hadees parhe bhai jaan.. dhanywaad…. ho sakta hai aapke hisaab se vo muslim naa ho magar khud ko ve muslim hi bolte hain….

            1. Amit Roy AP plzzz had me rhe plzz aise to gita me bhi to apne hi bhai se yudh kiya thana y ky hai ha to ky ldai apke dhrm me apko tohfe m mili h y bhi nhi dekhna samne wala bhai h y glt bate nhi bolni chiye ki y galat dhrm h kuch to hua hogana jo yudh hua tha hmm koi resoin hoga na but ap islam ke bare m jante hi ky h ap itna bol rhe ho ap Maine wali Quran pdhna hadis khud padhe y nhj ki kisi ki bato m aay jab ap itna Noliz rkhte h ki dusro ki fiker h dhrm ki to ap phle jano uske bre m ok vkil ki trha TBI kuch hal niklta hna amit roy ji

      3. Lack of knowledge
        Islaam ke khilaaf roz bahut sare log likhte he ye bhai unme se ek he
        women’s right 1400 saal se Islam me he
        Ye aj women right ki baat kar rahe he.
        JO NO.1 hota he sab usi ke pichche padte he. Aur use galat sabit karna chahte he.

        1. जनाब जो गलत होते हैं उसी पर बात की जाती है | औरत को खेत क्यों बोला जाता है | लौंडी क्यों बोला जाता है ? मर्द == २ औरत , मर्द == ४ औरत | फिर कैसा इन्साफ | हलाला क्या है ??? सवाल बहुत है | फिलहाल इतना का जानकारी देना| धन्यवाद

            1. हमारे यहाँ तो औरतों कि इज्जत कि जाती हिया

              उन्हें दोयम दर्जे का नहीं माना जाता
              न ही उन्हें खरीदा बेचा जाता है

          1. Ok ser me abhi 20 sal ki hun or me hadis ko pdh chuki hi mera bhi apke kesa qusoin tha fir mine dusro se nhi kisi likhi bat ya kisi vedio me nhi bleev liya khud smjhna caha ki y galat h ek ldki per halala or y log jo y word use krte hna ser y khi bhi jiker ni h hades me ok or mine padha to mko tav pata chala ki y ky h ha ager ek pati or patni ka apas me releshoin accha nhi h lakh kosish ke bad bhi vo ek dusre ko dekhna bhi psnd nhi krte dushman ki trha rehte h mazbori m lkin had ho gyi tab bi sath ni reh pye to ager pti ne ghusse me kha ki mujhe nhi rehna to ptani bhi bolti h ki thik h talak do mujhe to unki talak ho gyi ager or patni ne iddat puri krli soni 3 month ki or usko ahsas hua ki y usne ky kiya bacche h unki zindagi qki dusri ma dusri hoti h like you ap dekho ap dusre dhrm se ho isliye hi y puchre ho halala ky h agr muslim hote to na puchte ok to me khri thi dusri ma dusri hoti h to usko baccho ka der to vo sath rehna cahti h lkin jisse shadi kregi ky pata vo kesa h vo shi nikla to vo usko kush rkhega phle pti ta y nhi sochega usko uski yad bhi nhi ane dega ager vo usko dukhi rkhega to vo phle pti ko yad kregi na sab me kmi hoti h or koi ek khubi bi hoti hana to uski mrzi h vo usse khud apni mrzi se talak le sakti h or phle pti ki shadi nhi hui to uske pas jne ke liye talak le sakti h uska haq h uski zindagi h qki ghr ko sirf orat mukammal krti h Mard to sirf pesse Kamata h okh amit roy ji y halala kuchni h y aise hi badnam h name ok

            1. Accha fir itane case jo Halala ke ho rahe hein
              Police men complain ho rahee hai wo sab galta hai

              Saccchai ko samajho aur mano

      4. औरतें माल हैं जो सांस लेती हैं उस बकरे की तरह जो हरेक सुबह आकाश देखकर सोचता है आज तो बच गया ।इस्लाम कोई धर्म नहों अपराधियों के आपसी व्यवहार का कानून है

      1. hakim saahab
        sabse pahle hame yah batlana ki kyaa is tarah ki bhashaa bolne kaa aagya quraan hadees me hai kyaa??? kya gussa karna quran me sahi bolaa gaya hai??? kyaa aap quran aur islaam ko follow sahi se kar rahe ho ??? jab nahi kar rahe to sachhe muslim kaise ???? aur bhai jaan isme puri reference ke saath di gayi hai kaun saa hadees me aur kaha kaha aaya hai aisa….post parhe… refernce se check kare.. fir charchaa kare… dhanywaad…

    2. Ye galat translate kiya gaya hai,Islam wo hai jo Insaniyat aur Insaf sikhata hai chahe wo koi bhi ho.
      Koi bhi question ho to mailkar sakte ho.

      1. ok if it has been wrongly translated pls translate the below verses correctly:
        Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

        Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

        Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

        Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

        Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

        Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

        Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

        Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

        Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

        Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

        Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

        Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

        Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

        Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

        Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

        Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

        Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

        Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

        Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

        [Note: The verse says to fight unbelievers “wherever you find them”. Even if the context is in a time of battle (which it was not) the reading appears to sanction attacks against those “unbelievers” who are not on the battlefield. In 2016, the Islamic State referred to this verse in urging the faithful to commit terror attacks: Allah did not only command the ‘fighting’ of disbelievers, as if to say He only wants us to conduct frontline operations against them. Rather, He has also ordered that they be slain wherever they may be – on or off the battlefield. (source)]

        Quran (9:14) – “Fight against them so that Allah will punish them by your hands and disgrace them and give you victory over them and heal the breasts of a believing people.” Humiliating and hurting non-believers not only has the blessing of Allah, but it is ordered as a means of carrying out his punishment and even “healing” the hearts of Muslims.

        Quran (9:20) – “Those who believe, and have left their homes and striven with their wealth and their lives in Allah’s way are of much greater worth in Allah’s sight. These are they who are triumphant.” The Arabic word interpreted as “striving” in this verse is the same root as “Jihad”. The context is obviously holy war.

        Quran (9:29) – “Fight those who believe not in Allah nor the Last Day, nor hold that forbidden which hath been forbidden by Allah and His Messenger, nor acknowledge the religion of Truth, (even if they are) of the People of the Book, until they pay the Jizya with willing submission, and feel themselves subdued.” “People of the Book” refers to Christians and Jews. According to this verse, they are to be violently subjugated, with the sole justification being their religious status. Verse 9:33 tells Muslims that Allah has charted them to make Islam “superior over all religions.” This chapter was one of the final “revelations” from Allah and it set in motion the tenacious military expansion, in which Muhammad’s companions managed to conquer two-thirds of the Christian world in the next 100 years. Islam is intended to dominate all other people and faiths.

        Quran (9:30) – “And the Jews say: Ezra is the son of Allah; and the Christians say: The Messiah is the son of Allah; these are the words of their mouths; they imitate the saying of those who disbelieved before; may Allah destroy them; how they are turned away!”

        Quran (9:38-39) – “O ye who believe! what is the matter with you, that, when ye are asked to go forth in the cause of Allah, ye cling heavily to the earth? Do ye prefer the life of this world to the Hereafter? But little is the comfort of this life, as compared with the Hereafter. Unless ye go forth, He will punish you with a grievous penalty, and put others in your place.” This is a warning to those who refuse to fight, that they will be punished with Hell.

        Quran (9:41) – “Go forth, light-armed and heavy-armed, and strive with your wealth and your lives in the way of Allah! That is best for you if ye but knew.” See also the verse that follows (9:42) – “If there had been immediate gain (in sight), and the journey easy, they would (all) without doubt have followed thee, but the distance was long, (and weighed) on them” This contradicts the myth that Muslims are to fight only in self-defense, since the wording implies that battle will be waged a long distance from home (in another country and on Christian soil, in this case, according to the historians).

        Quran (9:73) – “O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites and be unyielding to them; and their abode is hell, and evil is the destination.” Dehumanizing those who reject Islam, by reminding Muslims that unbelievers are merely firewood for Hell, makes it easier to justify slaughter. It explains why today’s devout Muslims generally have little regard for those outside the faith. The inclusion of “hypocrites” within this verse also contradicts the apologist’s defense that the targets of hate and hostility are wartime foes, since there was never an opposing army made up of non-religious Muslims in Muhammad’s time. (See also Games Muslims Play: Terrorists Can’t Be Muslim Because They Kill Muslims for the role this verse plays in Islam’s perpetual internal conflicts).

        Quran (9:88) – “But the Messenger, and those who believe with him, strive and fight with their wealth and their persons: for them are (all) good things: and it is they who will prosper.”

        Quran (9:111) – “Allah hath purchased of the believers their persons and their goods; for theirs (in return) is the garden (of Paradise): they fight in His cause, and slay and are slain: a promise binding on Him in truth, through the Law, the Gospel, and the Quran: and who is more faithful to his covenant than Allah? then rejoice in the bargain which ye have concluded: that is the achievement supreme.” How does the Quran define a true believer?

        Quran (9:123) – “O you who believe! fight those of the unbelievers who are near to you and let them find in you hardness.”

        Quran (17:16) – “And when We wish to destroy a town, We send Our commandment to the people of it who lead easy lives, but they transgress therein; thus the word proves true against it, so We destroy it with utter destruction.” Note that the crime is moral transgression, and the punishment is “utter destruction.” (Before ordering the 9/11 attacks, Osama bin Laden first issued Americans an invitation to Islam).

        Quran (18:65-81) – This parable lays the theological groundwork for honor killings, in which a family member is murdered because they brought shame to the family, either through apostasy or perceived moral indiscretion. The story (which is not found in any Jewish or Christian source) tells of Moses encountering a man with “special knowledge” who does things which don’t seem to make sense on the surface, but are then justified according to later explanation. One such action is to murder a youth for no apparent reason (74). However, the wise man later explains that it was feared that the boy would “grieve” his parents by “disobedience and ingratitude.” He was killed so that Allah could provide them a ‘better’ son. [Note: This parable along with verse 58:22 is a major reason that honor killing is sanctioned by Sharia. Reliance of the Traveler (Umdat al-Saliq) says that punishment for murder is not applicable when a parent or grandparent kills their offspring (o.1.12).]

        Quran (21:44) – “We gave the good things of this life to these men and their fathers until the period grew long for them; See they not that We gradually reduce the land (in their control) from its outlying borders? Is it then they who will win?”

        Quran (25:52) – “Therefore listen not to the Unbelievers, but strive against them with the utmost strenuousness with it.” – The root for Jihad is used twice in this verse, although it may not have been referring to Holy War when narrated, since it was prior to the hijra at Mecca. The “it” at the end is thought to mean the Quran. Thus the verse may have originally meant a non-violent resistance to the ‘unbelievers.’ Obviously, this changed with the hijra and ‘Jihad’ after this is almost exclusively within a violent context.

        Quran (33:60-62) – “If the hypocrites, and those in whose hearts is a disease, and the alarmists in the city do not cease, We verily shall urge thee on against them, then they will be your neighbors in it but a little while. Accursed, they will be seized wherever found and slain with a (fierce) slaughter.” This passage sanctions the slaughter (rendered “merciless” and “horrible murder” in other translations) against three groups: Hypocrites (Muslims who refuse to “fight in the way of Allah” (3:167) and hence don’t act as Muslims should), those with “diseased hearts” (which include Jews and Christians 5:51-52), and “alarmists” or “agitators who include those who merely speak out against Islam, according to Muhammad’s biographers. It is worth noting that the victims are to be sought out by Muslims, which is what today’s terrorists do. If this passage is meant merely to apply to the city of Medina, then it is unclear why it is included in Allah’s eternal word to Muslim generations.

        Quran (47:3-4) – “Those who disbelieve follow falsehood, while those who believe follow the truth from their Lord… So, when you meet (in fight Jihad in Allah’s Cause), those who disbelieve smite at their necks till when you have killed and wounded many of them, then bind a bond firmly (on them, i.e. take them as captives)… If it had been Allah’s Will, He Himself could certainly have punished them (without you). But (He lets you fight), in order to test you, some with others. But those who are killed in the Way of Allah, He will never let their deeds be lost.” Those who reject Allah are to be killed in Jihad. The wounded are to be held captive for ransom. The only reason Allah doesn’t do the dirty work himself is to to test the faithfulness of Muslims. Those who kill pass the test.

        Quran (47:35) – “Be not weary and faint-hearted, crying for peace, when ye should be uppermost (Shakir: “have the upper hand”) for Allah is with you,”

        Quran (48:17) – “There is no blame for the blind, nor is there blame for the lame, nor is there blame for the sick (that they go not forth to war). And whoso obeyeth Allah and His messenger, He will make him enter Gardens underneath which rivers flow; and whoso turneth back, him will He punish with a painful doom.” Contemporary apologists sometimes claim that Jihad means ‘spiritual struggle.’ If so, then why are the blind, lame and sick exempted? This verse also says that those who do not fight will suffer torment in hell.

        Quran (48:29) – “Muhammad is the messenger of Allah. And those with him are hard (ruthless) against the disbelievers and merciful among themselves” Islam is not about treating everyone equally. This verse tells Muslims that there are two very distinct standards that are applied based on religious status. Also the word used for ‘hard’ or ‘ruthless’ in this verse shares the same root as the word translated as ‘painful’ or severe’ to describe Hell in over 25 other verses including 65:10, 40:46 and 50:26..

        Quran (61:4) – “Surely Allah loves those who fight in His cause” Religion of Peace, indeed! The verse explicitly refers to “rows” or “battle array,” meaning that it is speaking of physical conflict. This is followed by (61:9), which defines the “cause”: “He it is who has sent His Messenger (Mohammed) with guidance and the religion of truth (Islam) to make it victorious over all religions even though the infidels may resist.” (See next verse, below). Infidels who resist Islamic rule are to be fought.

        Quran (61:10-12) – “O You who believe! Shall I guide you to a commerce that will save you from a painful torment. That you believe in Allah and His Messenger (Muhammad), and that you strive hard and fight in the Cause of Allah with your wealth and your lives, that will be better for you, if you but know! (If you do so) He will forgive you your sins, and admit you into Gardens under which rivers flow, and pleasant dwelling in Gardens of’Adn- Eternity [‘Adn(Edn) Paradise], that is indeed the great success.” This verse refers to physical battle in order to make Islam victorious over other religions (see verse 9). It uses the Arabic root for the word Jihad.

        Quran (66:9) – “O Prophet! Strive against the disbelievers and the hypocrites, and be stern with them. Hell will be their home, a hapless journey’s end.” The root word of “Jihad” is used again here. The context is clearly holy war, and the scope of violence is broadened to include “hypocrites” – those who call themselves Muslims but do not act as such.

    3. kya aap ne Quran ko para hai?? kise ke bhi bekar post se andaza mat lagao. Aaj puray duniya mein Islam fel raha hai. yeh article likhne wala chutiya hai. Agar Islam mein aurat badalna itna asaan hota to Burkha ka system nahi hota, yeh jhooto se sawdhan raho

      1. PUri duniya men islam fail raha hai 🙂

        aur puri duniya se islam mit bhee raha hai

        allah ke manane wale kaisee maut mare ja rah hien

        Afganistan, Iraq, aadi desho men samne aa rah ahia

        lekin na to allah hee aataa hai n uske farishte

      2. जुबेर जी नमस्ते

        क़ुरान को पढा भी है और समझा भी है, जरूरत यह है कि प्रत्येक मुसलमान क़ुरान को मात्र समझ ले तो यह फैलता हुआ शांति का मजहब चंद दिनों में सिमट जाएगा

        हम मोहम्मद साहब के अनुयायी नही जो मात्र हीरा पहाड़ी की बाते सुन कर किसी झूठ पर भी यकीन कर ले

        हम सत्य के अनुयायी है जो प्रत्येक बात की जांच कर ही प्रस्तुत करते है

        इस्लाम में औरत बदलना तो बहुत आसान है और उसी पर अब सरकार रोक चाहती है जिसका विरोध तथाकथित मानवता प्रेमी शांति का मजहब कर रहा है

        बुरखा का सिस्टम से औरत बदलने का क्या सम्बन्ध मेरे हिसाब से तो यह सबसे शानदार तरीके में एक होना चाहिए औरत बदलने के किसी को बीवी बना लो बुरखा पहना लो पहचान छुप जाएगी

        खैर ये फालतू बहस से उचित तो यह है मियां की आप क़ुरान को मदरसे में गर्दन आगे पीछे कर करके पढ़ने से बेहतर है किसी स्वछंद वातावरण में इसे पढ़िए इसे समझिए शंका कीजिये फिर मौलवी से जवाब मांगिये

        आपको आपकी बात का जवाब अपने आप मिल जाएगा

        1. अबे जो खुद न जाने की मेरे अशली भगवान कौन है गीता कहता है भगवान निरंकार है सालो हजारों आकर तुम्हारे में है हमने खुद देखा है शिव रात्रि में इंसान को भगवान बनाया जाता है होली पर सब बाप बेटा पिता है दीपावली पर सब जुवा खेलते है गंदे गाने बजाते है चड्डी पहना लोटा लिया मंदिर का घंटा टन बज गया पूजा हो गया हम मुसलमान पाँच वक़्त की नमाज़ रोज़ा हज़ जकात रमजान में 11 बजे रात तक तराबी फिर रोज़ा तिलावते कुरान नमाज़ के दौरान कही भटका या कोई आयात गलत हो गया तो नमाज़ फिर से पड़ो फिर भी हम रोते है अल्लाह हमारी इबादत कुबूल करे भाई साहब भक्ति के गाने बजाकर घंटा बजाकर सोचते है भगवान ने सुन लिया जब अटकता है तो दरगाह पर भागते है

          1. दरगाह पर भागते है – ये कौनसा निराकार है मुसलमानों का ?

          1. ek se adhik shadiyan karna , laundiyan rakhna, gulam auraton ko bechana kya ye aapko prathayen theek lagtee hein ?

    4. Ye jis chiz ki baat ho ri h use haq maher kahte hain…

      Jo ladki tay karegi… Or ye haq sirf or sirf ladki ko diya gya h… Agar wo maher me husband ki saari property maang le to talaq dene se pahle use maher dena hi hoga..

      Islam me aurton ka kis qadr khayal rakha gya h…. Ye aap tab smjhenge jab aap khule dimag se sochenge…

      Dil me itni nafrat pahle se hi bhari ho to aap kuchh bhi smjhne se pahle hi faisla kr lenge..

      Ek baar hi sahi lekin ap tak Sach baat ko pohchana hmara farz h..

      1. Mehar ki baten karte ho janab
        Puri property ki bhee baten karte hein sunane men acche lagtee hein

        Lekin aapke rasool ke us kathan ko kyon bhul jate hein jisamen unhone kaha hai ki jo aurat jitna kam mehar rakhe wo hee use priya hai

  1. I am afraid that this view is completely distorted. The instruction to marry more than once was given when the ratio of women increased after most of the men died in wars. This was done in order to avoid the women from roaming about the streets without any support. So the men were instructed to marry them sio that their children might get some legal social status. But the men were strictly instructed not to ignore their previous wives for the sake of new ones. Because there is temptation in the new.

    1. The instruction to marry more than once was given when the ratio of women increased after most of the men died in wars”

      Dear Mona ji

      in that case do u wanna to say that this low of Allah should not be applicable now”

      🙂

      1. respeted arya g namste
        ye eak mauli si teachr hai muslim univesity m
        do char bat esne quran ki padh li to apne ko aalim fazil mankr aapse tark kar baithi enhe pta nhi hai aapke aur arya samj k vidvano k bare mai

        1. respeted arya g namste
          ye eak mamuli si teachr hai muslim univesity m
          do char bat esne quran ki padh li to apne ko aalim fazil mankr aapse tark kar baithi enhe pta nhi hai aapke aur arya samj k vidvano k bare mai,enko simple way mai samjha dijiye

          1. Abe arya ke handwe…9009898841 le ye mera no. He choot ke la kha ka vidhwan laa rha he ….agr islam ko galat sabit kr diya to 1 cror ka inam dunga …
            Khulla challange utha la tere vidvano ko….salo ek chutiye ke piche tum sare chutiye…..

            1. islam ko galat sabhit karne ki kya aawashyakta hai

              usaka hal to aise hee kharaab ho rakha hai

              afganishatan ,
              yaman
              Iraq
              somaniya
              leebiya
              kitane hee desh aise hein

            2. Ale le le le… mera nazayaz beta internet chala rha h
              Fikr mt kr beta tre 1 crore katwe bhaiyon ko kaat ke tre aur teri ma se milne jrur aunga…Teri ma ko mera pyar dena

              1. कृपया मर्यादा में रहे या फिर आगे से आपके कमेंट को शामिल नहीं की जाएगी | शालीनता से चर्चा करें

      2. No. This law is no longer needed now. It needs to be abolished. Truth is relative to time. And with time many a laws become archaic and redundant. This is one such law which should be done away with under present circumstances. Because people now distort its utility for their personal gain. I am never in favour of this practice as it causes a lot of pain to humanity now and does more harm than good.

        1. We completely agree with your comment that Halala concept has “archaic and redundant. This is one such law which should be done away with under present circumstances”

          We congratulate you and appreciate you that u have courage to say that Aaayat 213 of Sura AL Bakara is not required now.
          Knowledge of Allah has redundant

          🙂

          YOur wisdom has judged & u possess that courage what your Maulves doen’t

    2. मोना जी,
      क्या आप हमको ये बताएंगी की ये कानून क्यों आये,
      आखिर औरते के शौहर क्यों युद्ध में मारे जाते थे,

      ये नियम क्यों बना,
      हिन्दू धर्म में भी पुनः विवाह का चलन था,
      परंतु कोई औरत विधवा ही रहना चाहती है,तो उसका भार उसके पति के परिवार और उसके बच्चों पर आता है,

  2. another thing about the talaq. It is the most condemned word in islam, but it is seen as an evil necessity. When two people cannot live in harmony, islam enjoins them to separate so that they may avoid a constant torture for themselves and their children in an unhealty atmosphere of fights. There is no instruction about wife swaping. This is a totally distorted view. The enjoinment to remarry the wife is only after the case of halala, which is when the wife is given talaq, she also has as much right to remarry as the man has. Halal means that in case a man has given talaq to his wife, and realises his mistake and wants to take her back, he can only remarry her after she has been married again to someone else and that person is ready to leave his wife of his own free will. This is another way of saying that remarrying her is impossible. You cannot play with life and emotion of a woman so easily. So this is a kind of punishment to the man for giving her talaq in the first place. And this is also something to discourage such a practice, since it entails such a strict punishment of halala. Therefore men must think and think very carefully before they give talaq, of what would be in store for them if they start playing with this permission.

    1. Dear Mona ji

      You have mentioned that :
      -Halal means that in case a man has given talaq to his wife, and realities his mistake.
      -he can only remarry her after she has been married again to someone else and that person is ready to leave his wife of his own free will.

      As per your comments it was mistake of Husband and further you have quoted that HE has realized his mistake.
      so our point is that if it is mistake of husband why penalty should be imposed on wife.
      why wife has to remarry another person and has to be in physical relationship with third guy.
      why for the mistake of earlier husband he has to live this miserable life.
      and even after for the sake of mistake of earlier husband she has made relationship again she is on the mercy of current husband that until he gives talaq she cannt join
      husband
      .
      we are in consensus with your remark that ” You cannot play with life and emotion of a woman” but punishment should be given to the guilty not to the women,

      looking forward for your views

      You cannot play with life and emotion of a woman so easily. So this is a kind of punishment to the man for giving her talaq in the first place. And this is also something to discourage such a practice, since it entails such a strict punishment of halala. Therefore men must think and think very carefully before they give talaq, of what would be in store for them if they start playing with this

      1. Bhai AGR tm sacche Hindu vote
        …to dusre k dhrm kya yun majak na bnate….phle apna dhrm shi se follow kro….dusre k dhrm m kmi nikalne ki adat chutt jayegi

        1. pirzada जी

          मेरे एक सवाल का जवाब दोगे आप ? क्या २ + २ को जो ५ बतलाते हैं या ३ बतलाते हैं उसे सही जानकारी देना की २ + २ = ४ होते हैं क्या गलत है ?? नहीं ना ?? फिर जब कोई भटका हो उसे सही मार्ग की जानकारी देना गलत है क्या ??? और यह जो जानकारी दी गयी है कुरआन हदीस से ही दी गयी है और जो सही है वही बतलाया गया है और हम सभी मत की बुराई का जानकारी देते हैं जिसमे कोई कमी हो उसकी जानकारी देना गलत नहीं सही होता है वही हम कर रहे हैं |

          1. Mere Bhai…..bhut si chizen glat lgti h jb tk use thik se smjha nhi jay…agr mai aapke religion m fault dekhne lgu, aur aap mere religion m to fir him aapas m bat kr rh jaynge….itna yad rkhiye mahan wo no Jo fasad aur jhagde krwyae….mahan to wo h Jo prem aur aman(peace) ka sandesh de…Ram ne sbri k jhute Ber prem m hi khayye the…prem hi insaan ko prmatma se jodta h

            1. Pirzada भाई जान
              बहुत सी बात गलत लगती है तो उसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है यह बात समझ से बाहर है जी हम केवल इस्लाम की ही कमी को नहीं दिखलाते जबकि हम पौराणिक साईं मत कबीर मत मत ब्रह्मकुमारी मत इसाईं मत इत्यादि इत्यादि मत में जो गलत होता है उसे जानकारी देकर यह बतलाना चाहते हैं की आप अपनी गलती कमी को सुधारे और समाज को उन्नत करने में योगदान दें | चलिए जैसे आपने बतलाया राम ने शबरी के बेर खाए इस बात से हम भी सहमत है और इसे स्वीकार करते हैं मगर जब बात रामायण काल की हो रही है तो उसमे जो गलत लग्नेवाली बात है उसे हम अस्वीकार करते हैं जैसे हनुमान जी छलांग लगाया और सूरज को अपने मुख में बचपन में डाल लिया था जो कमी है उसे हम स्वीकार करते हैं और लोगो को बोलते हैं ऐसा नहीं हो सकता क्यूंकि सूर्य के पास कोई भी नहीं जा सकता जो जाएगा जल जाएगा | इसी तरह कुरआन की बात को देखें एक अंगुली चाँद की ओर की तो चाँद के दो टुकडे हो गए | चलो चाँद के दो तुकडे हो गए तो हमें नजर क्यों नहीं आता | भाई जान अंधविश्वास को छोडो और सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटो | वेद की ओर लौटो | पूर्वाग्रह छोडो | हमारा मकसद है समाज में फैली अंधविश्वास को मिटाना और समाज को उन्नत करना | आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य होगी की हम सत्य को बतलाने की कोशिश करते हैं और सत्य को बतलाने समय हमें केवल धमकी मिलती है फिर भी अच्छा वही होता है जो सत्य के मार्ग पर चले | अगर यही भगत सिंह चन्द्रसेखर आजाद जी सब धमकी से डर जाते तो आज आजादी नहीं मिलती | उसी तरह हम भी समाज को उन्नत करने के लिए प्रयासरत हैं | आप अच्छे इंसान लगते हो आप भी समाज को सुधारने में योगदान करें | धन्यवाद आपका

              1. Galti Pandit our Mauliyon ki hai,Koi dharm Insaniyat ke khilaf nahi ho sakta agar hai to wo galat dharm hai.
                Quraan is magical book.No writer no auther.

                1. what do u says abt following verses of quran

                  Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

                  Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

                  Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

                  Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

                  Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

                  Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

                  Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

                  Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

                  Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

                  Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

                  Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

                  Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

                  Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

                  Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

                  Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

                  Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

                  Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

                  Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

                  Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

                  [Note: The verse says to fight unbelievers “wherever you find them”. Even if the context is in a time of battle (which it was not) the reading appears to sanction attacks against those “unbelievers” who are not on the battlefield. In 2016, the Islamic State referred to this verse in urging the faithful to commit terror attacks: Allah did not only command the ‘fighting’ of disbelievers, as if to say He only wants us to conduct frontline operations against them. Rather, He has also ordered that they be slain wherever they may be – on or off the battlefield. (source)]

                  Quran (9:14) – “Fight against them so that Allah will punish them by your hands and disgrace them and give you victory over them and heal the breasts of a believing people.” Humiliating and hurting non-believers not only has the blessing of Allah, but it is ordered as a means of carrying out his punishment and even “healing” the hearts of Muslims.

                  Quran (9:20) – “Those who believe, and have left their homes and striven with their wealth and their lives in Allah’s way are of much greater worth in Allah’s sight. These are they who are triumphant.” The Arabic word interpreted as “striving” in this verse is the same root as “Jihad”. The context is obviously holy war.

                  Quran (9:29) – “Fight those who believe not in Allah nor the Last Day, nor hold that forbidden which hath been forbidden by Allah and His Messenger, nor acknowledge the religion of Truth, (even if they are) of the People of the Book, until they pay the Jizya with willing submission, and feel themselves subdued.” “People of the Book” refers to Christians and Jews. According to this verse, they are to be violently subjugated, with the sole justification being their religious status. Verse 9:33 tells Muslims that Allah has charted them to make Islam “superior over all religions.” This chapter was one of the final “revelations” from Allah and it set in motion the tenacious military expansion, in which Muhammad’s companions managed to conquer two-thirds of the Christian world in the next 100 years. Islam is intended to dominate all other people and faiths.

                  Quran (9:30) – “And the Jews say: Ezra is the son of Allah; and the Christians say: The Messiah is the son of Allah; these are the words of their mouths; they imitate the saying of those who disbelieved before; may Allah destroy them; how they are turned away!”

                  Quran (9:38-39) – “O ye who believe! what is the matter with you, that, when ye are asked to go forth in the cause of Allah, ye cling heavily to the earth? Do ye prefer the life of this world to the Hereafter? But little is the comfort of this life, as compared with the Hereafter. Unless ye go forth, He will punish you with a grievous penalty, and put others in your place.” This is a warning to those who refuse to fight, that they will be punished with Hell.

                  Quran (9:41) – “Go forth, light-armed and heavy-armed, and strive with your wealth and your lives in the way of Allah! That is best for you if ye but knew.” See also the verse that follows (9:42) – “If there had been immediate gain (in sight), and the journey easy, they would (all) without doubt have followed thee, but the distance was long, (and weighed) on them” This contradicts the myth that Muslims are to fight only in self-defense, since the wording implies that battle will be waged a long distance from home (in another country and on Christian soil, in this case, according to the historians).

                  Quran (9:73) – “O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites and be unyielding to them; and their abode is hell, and evil is the destination.” Dehumanizing those who reject Islam, by reminding Muslims that unbelievers are merely firewood for Hell, makes it easier to justify slaughter. It explains why today’s devout Muslims generally have little regard for those outside the faith. The inclusion of “hypocrites” within this verse also contradicts the apologist’s defense that the targets of hate and hostility are wartime foes, since there was never an opposing army made up of non-religious Muslims in Muhammad’s time. (See also Games Muslims Play: Terrorists Can’t Be Muslim Because They Kill Muslims for the role this verse plays in Islam’s perpetual internal conflicts).

                  Quran (9:88) – “But the Messenger, and those who believe with him, strive and fight with their wealth and their persons: for them are (all) good things: and it is they who will prosper.”

                  Quran (9:111) – “Allah hath purchased of the believers their persons and their goods; for theirs (in return) is the garden (of Paradise): they fight in His cause, and slay and are slain: a promise binding on Him in truth, through the Law, the Gospel, and the Quran: and who is more faithful to his covenant than Allah? then rejoice in the bargain which ye have concluded: that is the achievement supreme.” How does the Quran define a true believer?

                  Quran (9:123) – “O you who believe! fight those of the unbelievers who are near to you and let them find in you hardness.”

                  Quran (17:16) – “And when We wish to destroy a town, We send Our commandment to the people of it who lead easy lives, but they transgress therein; thus the word proves true against it, so We destroy it with utter destruction.” Note that the crime is moral transgression, and the punishment is “utter destruction.” (Before ordering the 9/11 attacks, Osama bin Laden first issued Americans an invitation to Islam).

                  Quran (18:65-81) – This parable lays the theological groundwork for honor killings, in which a family member is murdered because they brought shame to the family, either through apostasy or perceived moral indiscretion. The story (which is not found in any Jewish or Christian source) tells of Moses encountering a man with “special knowledge” who does things which don’t seem to make sense on the surface, but are then justified according to later explanation. One such action is to murder a youth for no apparent reason (74). However, the wise man later explains that it was feared that the boy would “grieve” his parents by “disobedience and ingratitude.” He was killed so that Allah could provide them a ‘better’ son. [Note: This parable along with verse 58:22 is a major reason that honor killing is sanctioned by Sharia. Reliance of the Traveler (Umdat al-Saliq) says that punishment for murder is not applicable when a parent or grandparent kills their offspring (o.1.12).]

                  Quran (21:44) – “We gave the good things of this life to these men and their fathers until the period grew long for them; See they not that We gradually reduce the land (in their control) from its outlying borders? Is it then they who will win?”

                  Quran (25:52) – “Therefore listen not to the Unbelievers, but strive against them with the utmost strenuousness with it.” – The root for Jihad is used twice in this verse, although it may not have been referring to Holy War when narrated, since it was prior to the hijra at Mecca. The “it” at the end is thought to mean the Quran. Thus the verse may have originally meant a non-violent resistance to the ‘unbelievers.’ Obviously, this changed with the hijra and ‘Jihad’ after this is almost exclusively within a violent context.

                  Quran (33:60-62) – “If the hypocrites, and those in whose hearts is a disease, and the alarmists in the city do not cease, We verily shall urge thee on against them, then they will be your neighbors in it but a little while. Accursed, they will be seized wherever found and slain with a (fierce) slaughter.” This passage sanctions the slaughter (rendered “merciless” and “horrible murder” in other translations) against three groups: Hypocrites (Muslims who refuse to “fight in the way of Allah” (3:167) and hence don’t act as Muslims should), those with “diseased hearts” (which include Jews and Christians 5:51-52), and “alarmists” or “agitators who include those who merely speak out against Islam, according to Muhammad’s biographers. It is worth noting that the victims are to be sought out by Muslims, which is what today’s terrorists do. If this passage is meant merely to apply to the city of Medina, then it is unclear why it is included in Allah’s eternal word to Muslim generations.

                  Quran (47:3-4) – “Those who disbelieve follow falsehood, while those who believe follow the truth from their Lord… So, when you meet (in fight Jihad in Allah’s Cause), those who disbelieve smite at their necks till when you have killed and wounded many of them, then bind a bond firmly (on them, i.e. take them as captives)… If it had been Allah’s Will, He Himself could certainly have punished them (without you). But (He lets you fight), in order to test you, some with others. But those who are killed in the Way of Allah, He will never let their deeds be lost.” Those who reject Allah are to be killed in Jihad. The wounded are to be held captive for ransom. The only reason Allah doesn’t do the dirty work himself is to to test the faithfulness of Muslims. Those who kill pass the test.

                  Quran (47:35) – “Be not weary and faint-hearted, crying for peace, when ye should be uppermost (Shakir: “have the upper hand”) for Allah is with you,”

                  Quran (48:17) – “There is no blame for the blind, nor is there blame for the lame, nor is there blame for the sick (that they go not forth to war). And whoso obeyeth Allah and His messenger, He will make him enter Gardens underneath which rivers flow; and whoso turneth back, him will He punish with a painful doom.” Contemporary apologists sometimes claim that Jihad means ‘spiritual struggle.’ If so, then why are the blind, lame and sick exempted? This verse also says that those who do not fight will suffer torment in hell.

                  Quran (48:29) – “Muhammad is the messenger of Allah. And those with him are hard (ruthless) against the disbelievers and merciful among themselves” Islam is not about treating everyone equally. This verse tells Muslims that there are two very distinct standards that are applied based on religious status. Also the word used for ‘hard’ or ‘ruthless’ in this verse shares the same root as the word translated as ‘painful’ or severe’ to describe Hell in over 25 other verses including 65:10, 40:46 and 50:26..

                  Quran (61:4) – “Surely Allah loves those who fight in His cause” Religion of Peace, indeed! The verse explicitly refers to “rows” or “battle array,” meaning that it is speaking of physical conflict. This is followed by (61:9), which defines the “cause”: “He it is who has sent His Messenger (Mohammed) with guidance and the religion of truth (Islam) to make it victorious over all religions even though the infidels may resist.” (See next verse, below). Infidels who resist Islamic rule are to be fought.

                  Quran (61:10-12) – “O You who believe! Shall I guide you to a commerce that will save you from a painful torment. That you believe in Allah and His Messenger (Muhammad), and that you strive hard and fight in the Cause of Allah with your wealth and your lives, that will be better for you, if you but know! (If you do so) He will forgive you your sins, and admit you into Gardens under which rivers flow, and pleasant dwelling in Gardens of’Adn- Eternity [‘Adn(Edn) Paradise], that is indeed the great success.” This verse refers to physical battle in order to make Islam victorious over other religions (see verse 9). It uses the Arabic root for the word Jihad.

                  Quran (66:9) – “O Prophet! Strive against the disbelievers and the hypocrites, and be stern with them. Hell will be their home, a hapless journey’s end.” The root word of “Jihad” is used again here. The context is clearly holy war, and the scope of violence is broadened to include “hypocrites” – those who call themselves Muslims but do not act as such.

          2. Aur m Muslim bhayiyon se v yehi kahunga,aap apna islaam mane PR dusre k dhrm ko bura kehne ka hakk apko kisne diya??. Islam word ka hi mtlb peace h…ye kis trh ka peace faila rhe aap log

            1. Pirzada भाई जान
              आप अच्छे इंसान हो | आपको यह बतला दू की इस्लाम शान्ति का मार्ग नहीं दिखाता है मुझे पूरी तरह याद नहीं आ रहा की यह सुप्रीम कोर्ट था या कोई हाई कोर्ट जिसमे यह स्वीकार किया गया था की इस्लाम की आयते शान्ति नहीं मार काट करने की इजाजत देती है और कुरआन की २५ आयत हैं जिसे कोर्ट ने भी आपतिजनक बताया था शान्ति के मार्ग के लिए | क्यों ना उन आयत को कुरआन से हटा दिया जाए | आप जैसे समाज को प्रेम के मार्ग दिखाने के लिए ऐसा करने में दिक्कत क्या है ??? आप तो प्रेम की बात करते हैं तो उन आयतों को हटाने का प्रयास करे | वैसे आपके भाई बंधू यहाँ गाली गलौज ही करते हैं क्या गाली गलौज करना इस्लाम में सिखाया जाता है जैसे ३ ४ दिन पहले शिबू ने गाली दिया था | हम सत्य की मार्ग पर चल रहे हैं इस कारण इन बातो को नहीं लेते और समाज में निरंतर सुधार का प्रयास करने में लगे हैं | धन्यवाद आपका

            2. आपके ख़्यालात बहुत बेहतरीन हैं।आपका शुक्रिया।

  3. Indeed u.r right. But from how i interpret it, once the woman remarries, it is highly impossible that she will want to leave the second husband who keeps her happy for the sake of one who left her. Which means that this time SHE will refuse to marry the first scoundrel. This time SHE will get the right to decide about her life. And also, it is not likely that another man who bails her out of such a horrible situation will allow the first husband to approach his present wife, who is now HIS ghar ki izzat. So in this way, all the paths to remarry the first wife are nearly closed, no matter how much the scoundrel regrets.

  4. And another thing. The wife does not HAVE TO MARRY any other guy if she does not want to. It is purely HER wish. Talaq is supposed to happen only if there are irreconciliable differences. This rule is only to discourage such a practice in favour of working things out together. I agree that the thought is repulsive. But it is deliberately made repulsive so that people would stop to think twice before giving talaq, knowing about the repulsive consequences. It is like killing poison with poison.

    1. Thanks for being agree with the truth and right approach.

      one this is still need to be think upon- check below line out of the comment:

      “made repulsive so that people would stop to think twice before giving talaq, knowing about the repulsive consequences”

      “Halala” concept in Quran, is against the principle of justice and not punishing the culprit but punishing the women”

  5. gelchodo kbhi tum logo ne quran pdha hai kya …madarchodo sirf likhne me dhyan dete hai jisne likha usse mujhe us madarchod ko me btata hu …sale chutiyo pehle quran pdo madarchodo ..5 aadmiyo pr ek biwi rakhte ho jb shrm nhi aati ..salo jhuto

    1. भाई जान लगता है आपने कुरान पढ़ा और हमने कुरआन नहीं पढ़ा है | आप जैसे ज्ञानी से हम जरुर कुरआन पढ़ना चाहेंगे जी और साथ में हदीस भी आप जैसे ज्ञानी से पढ़ना चाहता हु | भाई जान सबसे पहले मैं आपसे यह जानना चाहता हु की क्या कुरआन में कोई आयत और सुरा है जिसमे यह लिखा गया है की आप गुस्सा करो और मीठे मीठे सब्द(गाली) का इस्तेमाल करो | थोडा हमें कुरआन से सूरा संख्या और आयत संख्या से जानकारी देना भाई जान | क्या आप कुरआन का अनुसरण सही से करते हो क्या ? यदि हां तो हमें बतलाना की मीठे मीठे सब्द का इस्तेमाल करना कहाँ लिखा है बड़ी मेहरबानी होगी जनाब | यदि आप सच्चे मुस्लिम हो तो | आप जैसे ज्ञानी से जानना चाहता हु की कुरआन में कहाँ लिखा है मीठे मीठे सब्द का इस्तेमाल करो

      1. Ye sahab quran ki product hai. 5 baar namaz adaa kartaa hai aur inke zuban kitni gandi dirty hai aur dimaag to 1000 gunaa gandaa hogaa hi. Yeh sab saabit kartaa hai ki Quran padne se aadmi paak nahin hotaa. aur gande vichaar waalaa ho jaataa hai.

      2. Are bhaiya ji itna sareef zamana nahi hai ye sale apni bahan nahi chhodte hai dusre ko updesh dete hai aur mai in chuslamiyon se sirf itna janna hu ye sale chuslami 1400 se pahle kaha the

            1. शुरूआत तो बिजेन्दर कुमार ने की उसके हिन्दु धर्म को तो बुरा नही कहा आपने यही आपका दोगलपन है

            1. यदि शालीनता से चर्चा नहीं करनी तो आप कृपया साईट पर चर्चा ना करे | आपके कमेंट को या और भी जो गाली गलौज करेंगे सभी का कमेंट शामिल नहीं की जायेगी

        1. ye kya hai ?

          Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun(the polytheists, and wrong-doers, etc.)” (Translation is from the Noble Quran) The verse prior to this (190) refers to “fighting for the cause of Allah those who fight you” leading some to claim that the entire passage refers to a defensive war in which Muslims are defending their homes and families. The historical context of this passage is not defensive warfare, however, since Muhammad and his Muslims had just relocated to Medina and were not under attack by their Meccan adversaries. In fact, the verses urge offensive warfare, in that Muslims are to drive Meccans out of their own city (which they later did). Verse 190 thus means to fight those who offer resistance to Allah’s rule (ie. Muslim conquest). The use of the word “persecution” by some Muslim translators is disingenuous – the actual Arabic words for persecution (idtihad) – and oppression are not used instead of fitna. Fitna can mean disbelief, or the disorder that results from unbelief or temptation. A strict translation is ‘sedition,’ meaning rebellion against authority (the authority being Allah). This is certainly what is meant in this context since the violence is explicitly commissioned “until religion is for Allah” – ie. unbelievers desist in their unbelief. [Editor’s note: these notes have been modified slightly after a critic misinterpreted our language. Verse 193 plainly says that ‘fighting’ is sanctioned even if the fitna ‘ceases’. This is about religious order, not real persecution.]

          Quran (2:244) – “Then fight in the cause of Allah, and know that Allah Heareth and knoweth all things.”

          Quran (2:216) – “Fighting is prescribed for you, and ye dislike it. But it is possible that ye dislike a thing which is good for you, and that ye love a thing which is bad for you. But Allah knoweth, and ye know not.” Not only does this verse establish that violence can be virtuous, but it also contradicts the myth that fighting is intended only in self-defense, since the audience was obviously not under attack at the time. From the Hadith, we know that this verse was narrated at a time that Muhammad was actually trying to motivate his people into raiding merchant caravans for loot.

          Quran (3:56) – “As to those who reject faith, I will punish them with terrible agony in this world and in the Hereafter, nor will they have anyone to help.”

          Quran (3:151) – “Soon shall We cast terror into the hearts of the Unbelievers, for that they joined companions with Allah, for which He had sent no authority”. This speaks directly of polytheists, yet it also includes Christians, since they believe in the Trinity (ie. what Muhammad incorrectly believed to be ‘joining companions to Allah’).

          Quran (4:74) – “Let those fight in the way of Allah who sell the life of this world for the other. Whoso fighteth in the way of Allah, be he slain or be he victorious, on him We shall bestow a vast reward.” The martyrs of Islam are unlike the early Christians, who were led meekly to the slaughter. These Muslims are killed in battle as they attempt to inflict death and destruction for the cause of Allah. This is the theological basis for today’s suicide bombers.

          Quran (4:76) – “Those who believe fight in the cause of Allah…”

          Quran (4:89) – “They but wish that ye should reject Faith, as they do, and thus be on the same footing (as they): But take not friends from their ranks until they flee in the way of Allah (From what is forbidden). But if they turn renegades, seize them and slay them wherever ye find them; and (in any case) take no friends or helpers from their ranks.”

          Quran (4:95) – “Not equal are those of the believers who sit (at home), except those who are disabled (by injury or are blind or lame, etc.), and those who strive hard and fight in the Cause of Allah with their wealth and their lives. Allah has preferred in grades those who strive hard and fight with their wealth and their lives above those who sit (at home).Unto each, Allah has promised good (Paradise), but Allah has preferred those who strive hard and fight, above those who sit (at home) by a huge reward ” This passage criticizes “peaceful” Muslims who do not join in the violence, letting them know that they are less worthy in Allah’s eyes. It also demolishes the modern myth that “Jihad” doesn’t mean holy war in the Quran, but rather a spiritual struggle. Not only is this Arabic word (mujahiduna) used in this passage, but it is clearly not referring to anything spiritual, since the physically disabled are given exemption. (The Hadith reveals the context of the passage to be in response to a blind man’s protest that he is unable to engage in Jihad, which would not make sense if it meant an internal struggle).

          Quran (4:104) – “And be not weak hearted in pursuit of the enemy; if you suffer pain, then surely they (too) suffer pain as you suffer pain…” Is pursuing an injured and retreating enemy really an act of self-defense?

          Quran (5:33) – “The punishment of those who wage war against Allah and His messenger and strive to make mischief in the land is only this, that they should be murdered or crucified or their hands and their feet should be cut off on opposite sides or they should be imprisoned; this shall be as a disgrace for them in this world, and in the hereafter they shall have a grievous chastisement”

          Quran (8:12) – “I will cast terror into the hearts of those who disbelieve. Therefore strike off their heads and strike off every fingertip of them” No reasonable person would interpret this to mean a spiritual struggle. The targets of violence are “those who disbelieve” – further defined in the next verse (13) as “defy and disobey Allah.” Nothing is said about self-defense. In fact, the verses in sura 8 were narrated shortly after a battle provoked by Muhammad, who had been trying to attack a lightly-armed caravan to steal goods belonging to other people.

          Quran (8:15) – “O ye who believe! When ye meet those who disbelieve in battle, turn not your backs to them. (16)Whoso on that day turneth his back to them, unless maneuvering for battle or intent to join a company, he truly hath incurred wrath from Allah, and his habitation will be hell, a hapless journey’s end.”

          Quran (8:39) – “And fight with them until there is no more fitna (disorder, unbelief) and religion is all for Allah” Some translations interpret “fitna” as “persecution”, but the traditional understanding of this word is not supported by the historical context (See notes for 2:193). The Meccans were simply refusing Muhammad access to their city during Haj. Other Muslims were allowed to travel there – just not as an armed group, since Muhammad had declared war on Mecca prior to his eviction. The Meccans were also acting in defense of their religion, as it was Muhammad’s intention to destroy their idols and establish Islam by force (which he later did). Hence the critical part of this verse is to fight until “religion is only for Allah”, meaning that the true justification of violence was the unbelief of the opposition. According to the Sira (Ibn Ishaq/Hisham 324) Muhammad further explains that “Allah must have no rivals.”

          Quran (8:57) – “If thou comest on them in the war, deal with them so as to strike fear in those who are behind them, that haply they may remember.”

          Quran (8:67) – “It is not for a Prophet that he should have prisoners of war until he had made a great slaughter in the land…”

          Quran (8:59-60) – “And let not those who disbelieve suppose that they can outstrip (Allah’s Purpose). Lo! they cannot escape. Make ready for them all thou canst of (armed) force and of horses tethered, that thereby ye may dismay the enemy of Allah and your enemy.” As Ibn Kathir puts it in his tafsir on this passage, “Allah commands Muslims to prepare for war against disbelievers, as much as possible, according to affordability and availability.”

          Quran (8:65) – “O Prophet, exhort the believers to fight…”

          Quran (9:5) – “So when the sacred months have passed away, then slay the idolaters wherever you find them, and take them captive and besiege them and lie in wait for them in every ambush, then if they repent and keep up prayer and pay the poor-rate, leave their way free to them.” According to this verse, the best way of staying safe from Muslim violence at the time of Muhammad was to convert to Islam: prayer (salat) and the poor tax (zakat) are among the religion’s Five Pillars. The popular claim that the Quran only inspires violence within the context of self-defense is seriously challenged by this passage as well, since the Muslims to whom it was written were obviously not under attack. Had they been, then there would have been no waiting period (earlier verses make it a duty for Muslims to fight in self-defense, even during the sacred months). The historical context is Mecca after the idolaters were subjugated by Muhammad and posed no threat. Once the Muslims had power, they violently evicted those unbelievers who would not convert.

    2. भाई जान आप जैसे ज्ञानी लोग से यह जानना चाहता हु की क्या आप तौरेत इंजील जुबेर में मिलावट मानते हो या नहीं ? इस बात का हमें जवाब देना | यदि नहीं मिलावट की गयी तो कुरआन को नाजिल क्यों की गयी ? और यदि आपका जवाब होगा हाँ तो यह जान ले जब जुबेर इंजील तौरेत में मिलावट हो सकती है जो की आपके हिसाब से अल्लाह की वाणी थी या है जो आप बोलो तो फिर मानव लिखित महाभारत में मिलावट क्यों नहीं की जा सकती है और उसमे गलत जानकारी दी जा सकती है की ५ से विवाह करो यह महाभारत में मिलावट कर दी गयी है | दूसरी बात आप यह जानकारी देना की कितने औरत है जिसके 5 पति हैं इतिहास में खोजकर बतलाना या अभी भी कोई हो तो बतलाना | भाई जान हमें यह भी बतलाना की यदि इस्लाम शान्ति सिखाता है तो फिर मीठे मीठे सब्द का इस्तेमाल आप जैसे लोग कैसे कर सकते हैं थोडा हमें जानकारी देना जी || एक बात और बतलाना जैसे 1 पुरुष 4 औरत से निकाह कर सकता है तो कुरआन यह क्यों नहीं बोलता की एक औरत भी 4 पुरुष से निकाह कर सकती है | क्यूंकि औरत को इस्लाम में और कुरआन में बस उपभोग की वस्तु ही समझते हो और औरत की स्थिति जानवर से भी बद्दतर बनाकर रखा है आप लोगो ने | हम आप जैसे ज्ञानी से जरुर मार्गदर्शन की उम्मीद करते हैं |

    3. अब हमने पढ़ लिया क्या है क़ुरान में धन्यवाद भाई क़ुरानी प्रवचन के लिए

    4. Wo ek case tha aur apk cases hr 1 KO 4 biwi ajtk allowed hai aur ap dusro KO gali dete ho admi rkh skte h aurt ne rkhlia to glt pdh k aaiye Ku aisa hua tb boliye

    1. भाई जान आप अपनी असली औकात पर नज़र आ रहे हो जी | कुरआन में बोला ही गया है मार काट करो जेहाद करो वही कर रहे हो | क्या आप नबी को अनुसरण करते हो ? मुह्मद साहब को एक और रोज कूड़ा शरीर पर फेक देती थी मगर मुह्मद साहब कुछ नहीं बोलते थे कुछ दिन जब वह औरत उनके शरीर पर कूड़ा नहीं फेकी और नज़र नहीं आई तो वे खुद उसके पास गए पूछने की आपको बहुत दिन से देखा नहीं आप ठीक तो हो | मगर वहाँ देखा की वह बीमार थी तब मुहम्द साहब ने उस औरत का इलाज करवाया | ऐसा किसी मुस्लिम ने टीवी चैनल में जानकारी दी थी जिसे मैंने शेयर किया |आप तो खुद मुहम्द साहब और नबी को अनुसरण नहीं कर रहे हो तो सच्चे मुस्लिम कैसे हुए ? कुरआन बोलता है नबी का अनुसरण करो | फिर आप सच्चे मुस्लिम कैसे ? जानकारी देना जी ज्ञानी जी | आपसे मार्गदर्शन चाहूँगा जी | फिर आगे चर्चा करूँगा आपसे |

    2. भाई जान हम आप जैसे ग्यानी लोग से कुरआन जरुर पढ़ना चाहेंगे अच्छा होगा यहाँ पर हमें कुरआन पढ़ाए जिससे बहुत से लोग कुरआन के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे | भाई जान यह भी बतलाना कुरान में किस आयत और सूरा में लिखा गुस्सा करो | गाली दो | थोडा जानकारी देना आप जैसे शांति प्रिय लोग से यह जानकारी लेना चाहता हु | धन्यवाद

          1. रिशवा आर्य कुरान और मुहम्मद साहब के बारे मे इतना झूठ मत बोल नही तो मैने आज गाली नही दी है। तूझे मार तो नही सकती पर गाली जरूर दे सकता है। झूठ पे झूठ लिखकर क्या साबित करना चाहते हो तुम।
            अगर मै भी आपकी तरह झूठ लिख दू धर्म के बिरे मे तो क्या आपको गुस्सा नही आयेगा। मै लिखकर दिखाता हू
            ऋग्वेद मे लिखा है वो इंसान जब तक आर्य य सनातनी नही हो सकता जबतक अपनी मा को ना चोद ले। पृष्ट 56: मंत्र 310
            और अर्थवेद मे त ये भी लिखा है । एक सनातनी को अपनी सगी बहन को चोदना बहुत जरूरी है नही तो वो आर्य नही बन सकता।पृष्ट78:मंत्र 678 / श्लोक 71
            और भी बहुत लिख सकता हू झूठ आपकी तरह मगर आगे नही लिखूगा। क्योकि मेरा धर्म मुझे इजाजत नही देता कि किसी के धर्म को बुरा कहो। इजाजत तो आपका धर्म देता है किसी के धर्म को बुरा मत कहो मगर तुम उसका पालन नही करते।माफ करना

            1. “रिशवा आर्य कुरान और मुहम्मद साहब के बारे मे इतना झूठ मत बोल”

              क्या झूठ बोला है ये तो बताओ

              और आपका धर्म क्या इज़ाज़त देता है या नहीं ये तो आपके कमेंट से पता चल ही रहा है

        1. Nhi likha hai…?
          Lkin tere bhai log to khulle saand gadhe ki gaand jaise gussa krte h
          Ek Minute..
          .
          .
          .
          .
          Aur ha vo tere bhai hi hai na..??##!!!

          1. आप जैसे लोग से यह उम्मीद की जाती ही की शालीनता से चर्चा करें | गाली गलौज या अभद्र भाषा का प्रयोग ना करें | धन्यवाद

    3. Sare anpad hai Nasrullah g ye sab comments krne wale Hindu hmare dharm ke bare me aur hmare Mohammad shaheb k bare me kuchh nhi jante

      1. Islam men auraton ki stithee kya hai ye jag jahir hai
        kitanee bandishen hein
        ye bhee pratyaksh hai

        aapko sata ko sweekarna chahiye yadi hamen kuch galat likha hai wo ham manane ko taiyar hein praman sahit batayen

      2. Ha hum ye bi ni jante ki agar vo tujhe dekh leta to tera kya haal hota
        phir bhi shayad jyada nhi tu baby se begum ho jati

    4. Nasrullah…. chus mera lullah
      Aur ha apni auraton ko v marte ho na tum Khair ab kr hi kya skte ho
      Lund to hai nhi katwe hi rhna h
      Kuch kar nhi skte na isliye marte ho daba kar rkhte ho
      Saale NaMard katwa gaand ke Kattu

      1. अपनी मर्यादा से बाहर ना जाए | आपसे यही उम्मीद की जाती है | तर्क के आधार पर चर्चा करें

  6. अगर इस्लाम धर्म को समझना है तो हदीस और कुरान को सही तरीके से पढो ।
    गलत इल्जाम मत लगाओ ।
    अगर मैं हिंदू धर्म की हिंदी करने पे आ गया तो मनुस्मृति गीता वेद मे भरी हुई सारी गंदगी उजागर कर दूंगा ।
    मुहं छुपाते फिरोगे।

  7. जी भाई जान जरुर हम इस्लाम मजहब को हदीस से समझना चाहेंगे जी | इस्लाम में कैसे औरत को रखा गया जाता है इस बारे में कुरआन हदीस से जरुर सीखना चाहेंगे यदि आप सिखाना चाहोगे भाई जान | आप बेशक गीता वेद मनुस्मृति आदि से चर्चा करे हमें इन्तजार रहेगा जी | फिलहाल यह जानकारी दे दू की कुरआन ही है जहाँ औरत को खेती बोला गया गया है | कुरआन ही है जहाँ यह बोला गया है की औरत की पिटाई करो | कुरआन ही बोलता है 1 मर्द == 2 औरत की गवाही | 1 मर्द == ४ औरत की गवाही | ऐसा तो कई उदाहरन दे सकता हु जी कुरआन से | हदीस की बात यदि बोलना शुरू करू तो फिर आप हमें और फूलो से बारिश करना शुरू कर दोगे | हदीस बोलता है अपनी बीवी का दूध पि सकते हो (मुवत्ता हदीस ) हदीस बोलता है pubic hair साफ़ करो? क्या इस का तरह का बाते कोई भी धार्मिक ग्रन्थ में होनी चाहिए ? इसके अलावा हदीस में बताया गया है की यदि किसी मित्र की बीवी पसंद आ जाए तो तलाक देकर उससे निकाह कर लो फिर जब मन भर जाए तो तलाक देकर अपनी मित्र को उसका बीवी सौंप दो | भाई जान ऐसा कई उदाहरन दिया जा सकता है मगर यहाँ उतना जानकारी देना सही नहीं और ना हमारे पास इतना ही समय है |
    धन्यवाद

    1. अपनी खेती से इंसान बहुत प्यार करता है। इसलिए

      क्या झूठ बोलते हो आप दोस्त की बीवी पंसद कैसे आ सकती है गैर औरतो को देखना इस्लाम मे हराम है।

      भाई साहब आप अगर कुछ अक्ल रखते हो तो आपको मानने पडेगा एक औरत वो सब कुछ नही कर सकती जो एक मर्द कर सकता हो इसलिए।

      1. नफीस भाई जान
        मेरे को मजबूर ना करे वरना इस्लाम की पोल खोल कर दूंगा हदीस से | और वो भी लिंक के साथ | औरत का क्या स्थिति है इस्लाम में | फिर कमलेश तिवारी की तरह हमें भी गाली देना आरम्भ कर डोगे हम हदीस से ही प्रमाण देंगे मुहम्मद साहब सब की वो भी लिंक के साथ | पाकिस्तानी साईट के हदीस से |

        1. मै गलत हदीस को देखते ही बता सकता हू आप भेजोगे तो मेरा जवाब भी पाओगे।

          1. are mere nafees bhai jaan . galat hadees ham nahi dete hain. jise pura momin bandhu swikaar karte hain use aap aswikaar karte ho. yaha tak aapne naam yaha nahees nahi rahul likhaa hai. yahi to jhuth bolne ki shiksha islaam deta hai. al takaiya

    2. Galat baat Amit ji Quraan me ayesa nahi hai
      Islam me Aurat ko Mard ke barabar darja diya gaya hai
      Ye to transelater ki galtiyan hain,
      Aap Quran ki study karo na ke padhayi.

      1. ye dekhiye kitni samanta hai aurat aur aadmi ki

        Quran (4:11) – (Inheritance) “The male shall have the equal of the portion of two females” (see also verse 4:176). In Islam, sexism is mathematically established.
        Quran (2:282) – (Court testimony) “And call to witness, from among your men, two witnesses. And if two men be not found then a man and two women.” Muslim apologists offer creative explanations to explain why Allah felt that a man’s testimony in court should be valued twice as highly as a woman’s, but studies consistently show that women are actually less likely to tell lies than men, meaning that they make more reliable witnesses.

        Quran (2:228) – “and the men are a degree above them [women]”

        Quran (5:6) – “And if ye are unclean, purify yourselves. And if ye are sick or on a journey, or one of you cometh from the closet, or ye have had contact with women, and ye find not water, then go to clean, high ground and rub your faces and your hands with some of it” Men are to rub dirt on their hands, if there is no water to purify them, following casual contact with a woman (such as shaking hands).

        Quran (24:31) – Women are to lower their gaze around men, so they do not look them in the eye. (To be fair, men are told to do the same thing in the prior verse).

        Quran (2:223) – “Your wives are as a tilth unto you; so approach your tilth when or how ye will…” A man has dominion over his wives’ bodies as he does his land. This verse is overtly sexual. There is some dispute as to whether it is referring to the practice of anal intercourse. If this is what Muhammad meant, then it would appear to contradict what he said in Muslim (8:3365).

        Quran (4:3) – (Wife-to-husband ratio) “Marry women of your choice, Two or three or four” Inequality by numbers.

        Quran (53:27) – “Those who believe not in the Hereafter, name the angels with female names.” Angels are sublime beings, and would therefore be male.

        Quran (4:24) and Quran (33:50) – A man is permitted to take women as sex slaves outside of marriage. Note that the verse distinguishes wives from captives (those whom they right hand possesses).

  8. एक चोर को सब चोर ही नजर आते हैं।
    मेरे विचार से इंसान को पहले अपने अंदर झांक लेना चाहिए और उन दोषों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
    क्योंकि जिनके अपने घर शीशे के होते हैंं वे दूसरों के घरों में पत्थर नही मारा करते—

    बलात्कार का आविष्कार balatkar ka avishkar
    देवताओं के साथ साथ भगवान के अवतार भी अनैतिक आचरण करते थे। कई स्थलों पर तो उन का आचरण अनैतिकता की हद से भी आगे अपराधपूर्ण लगता है। इस तरह के कृत्य यदि कोई आज करे तो कानून में उसे दंड देने की व्यवस्था है। भविष्‍यपुराण में उल्लेख आता है कि ब्रह्म्रा, विष्‍णु और महेश ने क्रमशः अपनी पुत्री, माता और बहन को पत्नी बना कर श्रेष्‍ठ पद प्राप्त किया ।
    स्वकीयां च सुतां ब्रह्मा विश्णु देवो मातरम् !
    भगिनीं भगवा´छंभु गृहीत्वा श्रेश्ठतामगात् !!
    – प्रतिसर्ग खं. 4,18,27
    अर्थात ब्रह्मा अपनी लड़की को, विष्‍णु देव अपनी माता को और शंभु अपनी बहन को ग्रहण कर के श्रेष्‍ठ पद को प्राप्‍त हुए ।
    वेद में भी इस का उल्लेख हैः
    पिता दुहितुर्गर्भंमाधात्
    – अथर्व 9,10,12
    अर्थात पिता ने बेटी में गर्भ धारण किया?
    मातुर्दिधिषुमब्रवं स्वसुर्जारः
    श्रृणोतु नः भातेंद्रस्य सखा मम.
    – ऋग्वेद 6,55,5
    अर्थात मैं मां के उपपति को कहता हूं. वह बहन का जार हमारी प्रार्थना को सुने, जो इंद्र का भ्राता है और मेरे मित्र है ।
    ‘‘भागवत’’ के तीसरे स्कंध में ब्रह्मा द्वारा पुत्री को चाहने का स्पष्‍ट उल्लेख आया है इस प्रसंग का अंश इस प्रकार हैः
    वाचं दुहितरं तन्वीं स्वयंभूर्हरती मनः
    अकामा चकमे क्षत्रः सकाम इति नः
    श्रुतम् तमधरम्‍मे कृतमति विलोक्य पितरं सुताः
    मरीचि मुख्या ऋषयो विश्रंभात्प्रत्यबोधयन् नैतत्पूर्वेः
    कृतं त्पद्ये न करिष्‍यंति चापरे !
    – 3,12,28,30
    अर्थात काम से वशीभूत हो कर स्वंयभू ने वाक नाम पुत्री को चाहा, पिता की यह बुद्वि देख कर मरीचि आदि पुत्रों नें समझाया कि ऐसा कर्म न किसी ने किया है, न अब होगा न ही आगे करेंगे।
    अथर्ववेद में तो पिता द्वारा पुत्री में गर्भस्थापित करने का उल्लेख है।
    ‘पिता दुहितुर्गर्भसमाधात्’
    – 9,10,12,
    अर्थात पिता ने पुत्री में गर्भ स्थापित किया.
    धर्मग्रंथों में जिन पात्रों को आदर्श बताया गया है उन में कामुकता की पराकाष्‍ठा देखी जा सकती है। जहां भी सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसे प्राप्त करने और भोगने के तानेबाने बुने जाने लगे. ब्रहा्रा के संबंध मे शिवपुराण में उल्लेख आता है कि पार्वती के विवाह में ब्रह्मा पुरोहित बने थे। उन्होंने पार्वती का पांव देखा और इस कदर कामातुर हो उठे कि कर्मकांड करातेकराते ही स्खलित हो गए।

    भागवत में उल्लेख आता है कि शिव की रक्षा के लिए विष्‍णु ने मोहिनी रूप धारण किया तो शिव उसी रूप पर मुग्ध हो गए और उस के पीछे दीवाने होकर भागे।
    भविष्‍यपुराण में आई एक कथा के अनुसार अत्रि ऋशि की पत्नी अनुपम सुंदरी थी। ब्रह्मा , विष्‍णु, महेश तीनों उस के पास गए। ब्रह्मा ने निर्लज्ज हो कर अनुसूया से रतिसुख मांगा और तीनों देवता अश्‍लील हरकतें करने लगे।
    गौतम के वेश में इंद्र द्वारा अहल्या से व्यभिचार की कथा रामायण और ब्रहा वैवर्त पुराण में आती है। अनैतिकता की पराकाष्‍ठा देखिए कि इस का दंड बेचारी निर्दोष अहल्या को भोगना पड़ा था।
    भागवत (9.14) और देवी भागवत में चंद्रमा द्वारा गुरू की पत्नी को अपने पास रखने की कथा आती है गुरू ने अपनी पत्नी बार-बार वापस मांगी तो भी चन्द्रमा ने उसे वापस नहीं लैटाया। लंबे अरसे तक साथ रहने के कारण चंद्रमा से तारा को एक पुत्र भी हुआ जो चन्द्रमा को ही दे दिया गया ।
    देवताओं के गुरू बृहस्पति ने स्वयं अपने भाई की गर्भवती पत्नी से बलात्कार किया देवताओं ने ममता ( बृहस्पति की भावज ) को उस समय काफी बुराभला कहा जब उसने बृहस्पति की मनमानी का प्रतिरोध करना चाहा।
    इन प्रसंगों के सही गलत होने का विवेचन करने की आवशयकता नहीं है। इन का उल्लेख इसी दृष्टि से किया जा रहा है धर्म ग्रन्थों में उल्लेखित पात्रों को किनं मानदडों पर आदर्श सिद्ध किया गया है । उन का समय दूसरों की पत्नी छीनने व व्यभिचार करने में बीतता था तो वे लोगों को नैतिकता का पाठ कब सिखाते थे और कैसे सिखाते थे ।
    इंद्र का तो सारा समय ही स्त्रियों के साथ राग रंग में बीतता था वह जब असुरों से हार जाते तो ब्रह्मा, विष्‍णु, महेश की सहायता से षड्यंत्र रच कर अपना राज्य वापस प्राप्त करते और फिर उन्ही रागरंगों में रम जाते। अप्सराओं के नाच देखना, शराब पीना, और दूसरा कोई व्यक्ति अच्छे काम करता तो उस में विध्न पैदा करना यही इंद्र की जीवनचर्या थी । इस की पुष्ठि करने वाले ढेरों प्रसंग धर्मषास्त्रों में भरे पडे़ हैं।
    महाभारत के तो हर अघ्याय में झूठ, बेईमानी और धूर्तता की ढेरों कहानियां हैं। धर्मराज युधिष्ठिर, जिन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन में कभी पाप नही किया, जुआ खेल कर राजपाट हार गए और पत्नी को भी दाव पर लगा बैठे, युधिष्ठिर के इस कृत्य की द्रौपदी और धृतराष्‍ट के ही एक पुत्र विकर्ण ने भर्त्‍सना की थी। ‘‘महाभारत’’ की लड़ाई के लिए कोई एक घटना मूल कारण है तो वह युधिष्ठिर का जुआ खेलना और द्रौपदी को दांव पर लगाना है। इतने बड़े युद्व का कारण धार्मिक भले ही हो, पर नैतिक कहां रह जाता है ?
    दूसरे धर्मावतार भीष्‍म ने एक राजकुमारी अंबा का अपहरण किया तथा न खुद उससे विवाह किया और न ही दूसरी जगह होने दिया । अंबा को इस संताप के कारण आत्महत्या करनी पड़ी ।
    कुंती के चारों पुत्र कर्ण, युघिष्ठिर , भीम और अर्जुन परपुरूषों से उत्पन्न हुए थे । कर्ण तो विवाह से पहले ही जन्म ले चुका था.
    स्वयंवर में द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाला डाली थी। किन्तु पांचों भाइयों ने उसके साथ संयुक्त विवाह का निश्‍चय किया। पांचाल नरेश ने इसका विरोध किया तो युधिष्ठिर ने ही जिद की और अपनी बात मनवाई ।
    संपूर्ण धर्म वाड्.मय इस तरह की विसंगतियों से भरा हुआ है इसे कथित धार्मिक युग का प्रतिबिंब भी कह सकते हैं और धर्म का आदर्श भी कह सकते हैं । जिनमें नैतिक गुणों का कोई महत्व नहीं है ।
    इन प्रसंगों से यही सिद्व होता है कि अनैतिकता को तब धर्मगुरूओं की स्वीकृति मिली हुई थी। दानदक्षिणा, पूजापाठ, कर्मकांड, यज्ञ, हवन आदि धार्मिक क्रियाकृत्य करते हुए कैसा भी आचरण किया जाता तो वह सभ्य था । जरूरी इतना भर था कि ब्राह्मणों के स्वार्थ पुरे किये जाते रहें।

  9. अल्तमश जी
    एक चोर को सब चोर ही नजर आते हैं।
    मेरे विचार से इंसान को पहले अपने अंदर झांक लेना चाहिए और उन दोषों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
    क्योंकि जिनके अपने घर शीशे के होते हैंं वे दूसरों के घरों में पत्थर नही मारा करते—

    जी बिलकुल आपने सही कहा तभी तो आपने दुसरे को चोर समझ रहे हो क्यूंकि आप खुद चोर हो | भाई जान हमने जो अर्टिकल डाले हैं वह आपके हदस कुरआन सबसे प्रमाण के आधार पर दिए जबकि आपने उपर जो रखा है सब गलत जानकारी दी है जी | चलो आप कितने झूठ बोल रहे हो और दुसरे के मत मजहब को गलत बोल रहे हो उसका प्रमाण मैं आपको दे रहा हु | भाई जान हदीस में ही सिखाया गया है अल तकईया | सो आप वही अल तकईया क्र रहे हो | आपने जितने प्रमाण दिए उपर सब गलत है जिसका मैं कुछ सवाल का जवाब दे रहा हु | जवाब देने से पहले मैं यह जानना चाहता हु क्या आप कभी सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते ? अरे कितना झूठ बोलोगे जी ? कुरआन हदीस में यही लिखा है झूठ बोलो तभी तो झूठ ऊपर आपने बोला है | चलो आपके कुछ झूठ का पोल खोल करता हु जो आगे के कमेंट में आपको करके दिखाता हु जिससे आपको यह प्रमाणित कर दूंगा की आप कितने झूठे हो और इसकी शिक्षा कुरआन हदीस ही दे सकती है

    1. और आपने कितना बडा झूठ बोला कि कुरान हदीस मे लिखा है झूठ बोलो। कहा लिखा है मुझे बतलाना मगर अपनी तरफ से हदीसे आयत नम्बर मत डालना। हदीस तो ये कहते है वो इंसान काफिर से भी बडा काफिर हो जो झूठ बोलता है। मैने तो आपको झूठा साबित कर दिया।

      1. al takaiya क्या होता है हदीस में देखो भाई जान फिर बात करना | शायद यह बुखारी हदीस या मुस्लिम हदीस में है | यदि मजबूर करोगे तो लिंक शेयर कर दूंगा | फिलहाल मैं नहीं चाहता की लिंक शेयर करू और इस्लाम का हदीस का पोल खोल करू | एक काम करो जिससे आप इस्लाम सिख रहे हो उससे आप यहाँ चर्चा करवाओ | आप खुद चर्चा ना करे | यही अच्छा होगा आपके लिए

        1. लिंक भेजने की कोई जरूरत नही है मैने आपका अल तकिया बलोक पढा हुआ है । झूठ के अलावा एक भी सच्चाई नही है

  10. अल्तमश जी
    आप कितने झूठे हो और यह इस्लाम ही ऐसा सिखाता है जिसका खंडन आपको कर रहा हु | आपने यह लिखा है
    वेद में भी इस का उल्लेख हैः
    पिता दुहितुर्गर्भंमाधात्
    – अथर्व 9,10,12
    अर्थात पिता ने बेटी में गर्भ धारण किया?
    भाई जान अब इसका मैं वेद से अथर्ववेद से जिसका रिफरेन्स दिया उससे आपको कर रहा हु | मैं अथर्ववेद 9.10.12 का लिंक दे रहा हु जिससे यह प्रमाणित हो जाएगा की आप कितने झूठे हो और इसकी सिक्षा कुरआन हदीस ही दे सकती है | चलो जी अथर्ववेद से लिंक दे रहा हु और देखो कितने झूठ बोल रहे हो |
    http://www.onlineved.com/atharva-ved/?language=2&commentrator=5&kand=9&sukt=10&mantra=12

    कृपया लिंक पर जाए और इसका अर्थ को ठीक से पढ़े |
    चलिए दुसरे कमेंट में वेद से जो गलत अर्थ कर डाला है उसका प्रमाण देता हु |

    1. Bhai kya ye bhi galat h jo vedo me diya h

      हिन्दू धर्म नियोग और हिन्दू स्त्री
      नियोग :-
      वेद में नियोग के आधार पर एक स्त्री को ग्यारह तक पति रखने और उन से दस संतान पैदा करने की छूट दी गई है. नियोग किन-किन हालतों में किया जाना चाहिए, इसके बारे में मनु ने इस प्रकार कहा है :
      विवाहिता स्त्री का विवाहित पति यदि धर्म के अर्थ परदेश गया हो तो आठ वर्ष, विद्या और कीर्ति के लिए गया हो तो छ: और धनादि कामना के लिए गया हो तो तीन वर्ष तक बाट देखने के पश्चात् नियोग करके संत्तान उत्पत्ति कर ले. जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त छूट जावे.(१) वैसे ही पुरुष के लिए भी नियम है कि पत्नी बंध्या हो तो आठवें (विवाह से आठ वर्ष तक स्त्री को गर्भ न रहे), संतान हो कर मर जावे तो दसवें, कन्याएं ही पैदा करने वाली को ग्यारहवें वर्ष और अप्रिय बोलने वाली को तत्काल छोड़ कर दूसरी स्त्री से नियोग करके संतान पैदा करे. (मनु ९-७-८१)
      अब नियोग के बारे में आदेश देखिये :
      हे पति और देवर को दुःख न देने वाली स्त्री, तू इस गृह आश्रम में पशुओं के लिए शिव कल्याण करने हारी, अच्छे प्रकार धर्म नियम में चलने वाले रूप और सर्व शास्त्र विध्या युक्त उत्तम पुत्र-पौत्रादि से सहित शूरवीर पुत्रों को जनने देवर की कामना करने वाली और सुख देनेहारी पति व देवर को होके इस गृहस्थ-सम्बन्धी अग्निहोत्री को सेवन किया कर. (अथर्व वेद १४-२-१८)
      कुह…………सधसथ आ.(ऋग्वेद १०.१.४०). उदिश्वर…………बभूथ (ऋग्वेद १०.१८.८)हे स्त्री पुरुषो ! जैसे देवर को विधवा और विवाहित स्त्री अपने पति को समान स्थान शय्या में एकत्र हो कर संतान को सब प्रकार से उत्पन्न करती है वैसे तुम दोनों स्त्री पुरुष कहाँ रात्रि और कहाँ दिन में बसे थे कहाँ पदार्थों की प्राप्ति की ? और किस समय कहाँ वास करते थे ? तुम्हारा शयनस्थान कहाँ है ? तथा कौन व किस देश के रहने वाले हो ?इससे यह सिद्ध होता है देश-विदेश में स्त्री पुरुष संग ही में रहे और विवाहित पति के समान नियुक्त पति को ग्रहण करके विधवा स्त्री भी संतान उत्पत्ति कर ले. सोम:……………..मनुष्यज: (ऋग्वेद मं १०,सू.८५, मं ४०)अर्थात : हे स्त्री ! जो पहला विवाहित पति तुझको प्राप्त होता, उसका नाम सुकुमारादी गनयुक्त होने से सोम, जो दूसरा नियोग से प्राप्त होता वह एक स्त्री से सम्भोग करे से गन्धर्व, जो दो के पश्चात तीसरा पति होता है वह अत्युष्ण तायुक्त होने से अग्निसग्यक और जो तेरे चोथे से ले के ग्यारहवें तक नियोग से पति होते वे मनुष्य नाम से कहाते है. इमां……………………………. कृधि ( ऋग्वेद मं.१०,सू.८५ मं.४५) अर्थात : हे वीर्य सिंचन में समर्थ ऐश्वर्य युक्त पुरुष. तू इस विवाहित स्त्री व विधवा स्त्रियों को श्रेष्ठ पुत्र और सौभाग्युक्त कर. इस विवाहित स्त्री में दश पुत्र उतन्न कर और ग्यारहवीं स्त्री को मान. हे स्त्री ! तू भी विवाहित पुरुष से दस संतान उत्पन्न कर और ग्यारहवें पति को समझ.घी लेप कर नियोग करो :- मनु ने नियोग करने वाले के लिए यह नियम भी बनाया : विधवायां……….कथ्चन. (९-६०) अर्थात :- नियोग करने वाले पुरुष को चाहिए की सारे शरीर में घी लेपकर, रात में मौन धारण कर विधवा में एक ही पुत्र करे, दूसरा कभी न करें.
      नियोग में भी जाति-भेद : मनु ने इस सम्बन्ध में कहा है : द्विजों को चाहिए कि विधवा स्त्री का नियोग किसी अन्य जाति के पुरुष से न कराये. दूसरी जाति के पुरुष से नियोग कराने वाले उसके पतिव्रता स्वरूप को सनातन धर्म को नष्ट कर डालते है…!!!

      1. नियोग एक शाश्त्रीय विधि है
        ये किसी पैगम्बर कि पैदाइश जैसी नहीं जो फूंक मारने से अपनी माँ के गर्भ से पैदा हो गया हो

  11. अल्तमश जी
    आपकी शंका इस वेद मंत्र पर थी जिसका भाष्य को लिंक सहित दे रहा हु जिससे आप सत्य को जान सको | आपने यह बोला था जी

    मातुर्दिधिषुमब्रवं स्वसुर्जारः
    श्रृणोतु नः भातेंद्रस्य सखा मम.
    – ऋग्वेद 6,55,5
    अर्थात मैं मां के उपपति को कहता हूं. वह बहन का जार हमारी प्रार्थना को सुने, जो इंद्र का भ्राता है और मेरे मित्र है ।

    चलिए आपने जो गलत बोला है उसका प्रमाण ऋग्वेद से देता हु और देखो जी आपको कैसे इस्लाम झूठ बोलना सिखाता है इससे मैं आपको सिद्ध कर दे रहा हु जी | चलो लिंक पढ़ो जी और देखो ऋग्वेद का गलत भाष्य कैसे कर दिया ऐसा सिख इस्लाम ही दे सकता है ना की सनातन वैदिक धर्म झूठ बोलने को सिखाता है जी | देखो लिंक और सोचो कितना झूठ बोला है आपने |
    http://www.onlineved.com/rig-ved/?language=2&commentrator=5&mandal=6&sukt=55&mantra=5

    लिंक देखो जी और बोलो कितना झूठ बोलना हदीस और कुरआन सिखाता है जिसे आपने सही कर दिया जी |

    इसी तरह आपने उपर जो प्रमाण दिए है सभी गलत दिए हैं और गलत जानकारी दी है आपने | यदि थोडा सा भी शर्म हो तो उपर लिखे हुए बात के लिए माफ़ी मांग लेना जी मगर आप माफ़ी नहीं मांगोगे क्यूंकि आप सत्य स्वीकार नहीं कर सकते और ना इस्लाम अक्ल में दखल लगाने का आदेश देता है | इसका उदाहरन निचे देता हु अगले कमेंट में |

    1. Lekin Nirukta 3.16 ke anusar toh yeh bhai bahen ke sambhog ki baat hai, toh iska matlab tumlogo ka anuvaad ghalat hua. Kya Ved itni ashleel hai ki khud ke Ved ko hi itna badalna padh raha hai sirf uski ashleelta ko chupane ke liye?

      1. वेद में कोई अश्लीलता नहीं है
        वेद ज्ञान है जो मानवमात्र के लिए है
        इश्वर कि व्यवस्था है जो श्रृष्टि के आदि से चला आ रहा है उसमें कोई परिवर्तन नहीं है
        इश्वर बाकी आसमानी कही जाने वाली किताबों कि तरह नहीं है जिसके नियम मानव मात्र के लिए न होकर व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष के लिए हैं और जिनमें परिवर्तन होता रहता है
        वेद मानवता है

        1. क्या सही कहा ??? गलत को सही बोलना आप लोगो से ही कोई सिख सकता है | वेद में कोई भी मिलावट नहीं की जा सकती

  12. अल्तमश जी
    जैसे मैंने आपको बताया ऊपर में की कुरआन हदीस अक्ल में दखल देना नहीं सिखाता उसका प्रमाण आपको देता हु की कैसे कुरआन हदीस यह सिखाता है की अक्ल में दखल मत दो | चलो देखो जी

    कुरआन में ही लिखा है की एक अंगुली चाँद की ओर की तो चाँद के दो टुकडे हो गए | यदि दो चाँद हो गए तो हमें दिखाई क्यों नहीं देता जी ? क्या यह केवल इस्लाम वालो के लिए 2 चाँद दिखाई देता है ? या सिर्फ अरब वालो के लिए ऐसा चमत्कार है थोडा सोचना जी | अब दूसरा उदाहरन देता हु आपको चलो यह बतलाना जी की बिना स्पर्म और ओवुम मिले कोई औरत माँ बन सकती है ? बिना सेक्स किये बिना ओवुम स्पर्म मिले ? फिर मरयम कैसे माँ बन गयी जी ? चलो एक और उदाहरन देता हु कुरआन से आसमान को छत और जमीं को फर्श बनाया ? यदि छत और फर्श बनाया तो फिर घर बनाने और आदमी को छत को क्यों जरूरत पड़ती है ? चलो एक और उदाहरन देता हु कुरआन से एक डंडा पत्थर पर मारा और झरने निकल पड़े ? ये तो बस कुरआन की झलकी दिखाई जी हमने ? इसी तरह औरत को खेत बोला गया है कुरआन में ? भाई कुरआन और हदीस की पोल खोल करना शुरू कर दू वो भी सही प्रमाण देकर तो मालुम नहीं आप नज़र भी नहीं आओगे जी |

    इन सब को आँखे बंदकर मानते हो जिससे यह सिद्द होता है की इस्लाम में अक्ल में दखल देना मना है यह बतलाना की जो प्रमाण या बाते जानकारी दी वह सही है या नहीं ? फिर आगे उसपर चर्चा करेंगे

    आपके जवाब की प्रतीक्षा में |
    धन्यवाद जी

    1. कुरआन में ही लिखा है की एक अंगुली चाँद की ओर की तो चाँद के दो टुकडे हो गए | यदि दो चाँद हो गए तो हमें दिखाई क्यों नहीं देता जी

      Ved mein yeh likha hai ki Surya 7 ghode se prithvi ke chakkar lagata hai, ab yeh ghode kya sirf Aryo ko hi dikhai dete hai kya? kisi aur ko kyun nai dikhai dete?

      अब दूसरा उदाहरन देता हु आपको चलो यह बतलाना जी की बिना स्पर्म और ओवुम मिले कोई औरत माँ बन सकती है ? बिना सेक्स किये बिना ओवुम स्पर्म मिले ? फिर मरयम कैसे माँ बन गयी जी ?

      Theek waisi hi ji jaise Mitra Varuna se Agastya paida hua bina Maa 😀

      चलो एक और उदाहरन देता हु कुरआन से आसमान को छत और जमीं को फर्श बनाया ? यदि छत और फर्श बनाया तो फिर घर बनाने और आदमी को छत को क्यों जरूरत पड़ती है

      Ved mein yeh likha hai ki Prithvi ek khana pakane ki bartan ki tarah hai aur aasman ek dhakkan ki tarah. Agar aisa hai toh chhat ki zarurat kyun padthi hai ji 😀 Ved mein toh yeh bhi likha hai ki Skambh dvara aasman tika hua hai, agar aisa hai toh wo pillar kaha hai aur hume ghar ki chhat ki zarurat kyun padhti hai ji

      चलो एक और उदाहरन देता हु कुरआन से एक डंडा पत्थर पर मारा और झरने निकल पड़े ?

      Theek waise hi na jaise Ved mein Vishwamitra ke kehne par nadiya tham jati hai.

      इसी तरह औरत को खेत बोला गया है कुरआन में ?

      Lagta hai Satyarth Prakash nahi pada, jisme Dayanand ne aurat ko khet kaha hai aur Manu ne bhi.

      Pehle toh apne Ved, Satyarth Prakash vaghera theek se padh uske baad mein dusro ke granth sikhana.

      1. “Ved mein yeh likha hai ki Surya 7 ghode se prithvi ke chakkar lagata ha” – ये आपका निरर्थक अलाप है यदि वेद में ऐसा कुछ नहीं लिखा है . चाँद के टुकड़े आपके रसूल ने किये उसका जवाब न देकर ये झूठा प्रचार करना आपके हताशा को ही प्रदर्शित करता अहि

        “Mitra Varuna se Agastya paida hua bina Maa 😀” फिर झूठ ऐसा कहीं नहीं है . सृस्थी के नियमों के विरुद्ध कुछ नहीं हो सकता . आपका पुनः एक झूठ . मरियम के बिना बाप के माँ बनने के कुरान के दावे का झूठ आपके सामने है जवाब न दे पाने कि मज़बूरी में आप फिर अनर्गल आरोप लगा रहेइएन

        Ved mein yeh likha hai ki Prithvi ek khana pakane k– फिर झूठ वेद में ऐसा कहीं नहीं है आपकी मन घडन्त बाते हैं
        ed mein Vishwamitra ke kehne par nadiya tham jati hai: फिर झूठ वेद में ऐसा कहीं नहीं है आपकी मन घडन्त बाते हैं झरने फूटने कि बात का जवाब न बना तो फिर झूठ बोलना शुरू किया

        सत्य को अपनाओं

          1. प्रमोद जी
            लाहौल विलाकुवता भाई जान | आपने शायद लेख सही से नहीं पढ़ा | यदि यह लेख पढ़ा होता सही से तो इस तरह की बात ना करते |इस तरह की बातें इस्लाम में बताई गयी है जिसे जानकारी दी गयी है |

        1. बस तू ही सच बोलता है बाकी सब तू झूठ। वा रे वा रिशवा आर्य।

    2. हनुमान ने सूरज निगला उसके बारे मे क्या कहोगे।और रही बात गर्भवती बनने की तो उस अल्लाह मे इतनी शक्ति है वो कुछ भी कर सकता है मगर तुम्हारे और महेन्दर पाल जैसे बेवकूफ इस बात को नही मानते । आप के जैसे लोग तो भगवान की तुलना भी इंसान से करते हो। अरे भाई वो पूरी कायनात को बनाने वाला है। तो बिना बिना सेक्स के किसी औरत के पेट मे बच्चा पैदा करना उसके लिए छोटा सा काम । अब महेन्दर की तरह ये मत कहना कि अल्लाह तो दोषी हुआ। अक्ल मे दख्ल तो हिन्दु नही देते।

      1. नफीस भाई जान
        हम आपके इस कथन का भी खंडन करते हैं क्यूंकि हम खुद इस बात को अस्वीकार करते हैं की हनुमान ने सूरज निगला | हम पुराण सब का खुद खंडन करते हैं | और पौराणिक यह मानते हैं की हनुमान ने सूरज निगला क्यूंकि जब एक अंगुली करने से चाँद के दो तुकडे हो सकते हैं तो फिर हनुमान सूरज को क्यों नहीं निगल सकता है | जब बिना सेक्स किये कोई माँ बन सकती है तो पौराणिक हिसाब से हनुमान सूरज क्यों नहीं निगल सकता है | इसी कारण बोलता हु पुराण कुरआन छोडो और वेद की ओर लौट चलो |

  13. अल्तमश जी
    एक बात और बतला दू पुराण सब का हम खुद खंडन करते हैं क्यूंकि पुराण रामायण महाभारत सब में बहुत सी बात मिलावट कर दी गयी है | और जो मिलावट कर दी गयी है उसे हम खुद खंडन करते हैं | वैसे आपने जो पुराण सब का उदाहरन दिया वह भी गलत उदाहरन दिया जी | वैसा कुछ पुराण में भी नहीं लिखा जी जैसा आपने बताया है | वैसे पुराण की बातो का हम खुद खंडन करते हैं | एक बात और यह धयान देना जी आगे से कभी वेद पर गलत प्रमाण मत देना जी | और ना दुसरे मजहब का अपमान करना | यदि ईमान लाने वाले होगे जैसा बोला जाता है की कुरआन में की ईमान लाओ तो आगे से ईमान लाने पर आप इस तरह की गलत बात किसी को नहीं बतलाओगे |
    आ जाओ सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर | इस्लाम की तरह नहीं जिसमे अल तकैया की जाती हो | आओ लौट चलो वेद की ओर | और सत्य को स्वीकार कर लो |
    धन्यवाद जी

    1. अब गलती निकाल दी तो मिलावट हो गयी । होशियारी तो आपसे सीखी आर्य जी

      1. भाई जान क्या गलती निकाल दी | अरे वेद में कभी मिलावट नहीं हो सकता | पुराण कुरआन इत्यादि सब को हम नहीं मानते |

  14. DEAR ALL,

    hamne kahi jagah pada hai ki , bhagwan / allah kaha hai aaj ke din ke hisab se sirf ramayan & quran mein hi uske nishan milate hai,
    magar mein apko ek local area ka sach batata ho aur janana chahta ho ki meri is baat se kya app sehmat hai ,

    1.doctor agar hindu hai , uske pass muslim admi dawa ke liye jhatha hai , (kiya uska use dawa ne dene thik hai).
    2. muslim nai ( hair cutting ) ke pass ek hindu hair catbane jatha hai, (to kiya uske hair na kathna thik hai)
    3. school me hindu & muslim masoom bachon ko padhane ke liye hindu master class me aata hai aur muslim bachon ko bahar khada kar de ye na padhe to kya he thik hai,

    Bhagwan & Allah ko mandir yah masjid mein na dhoondo wo waha nahi milega inshan me dhoondo wahi milagha ,

    thanks & regards
    Kishan Rajput
    sorry for any default

    1. Ishwar ke liye sabhee saman hein

      ishwar ke nam par jo aapne mat ko dusare par thopane ka karya karte hein ya maryda manavata ke vipreet karya karte hein wo apradhee hein

  15. You proved that you are a true follower of Swami Dayanand who taught you to lie to propagate Vedic Dharma.

    तलाक देकर या बिना तलाक दिए मर्दों को इच्छानुसार आपस में अपनी बीबियाँ बदल लेने का अधिकार कुरान ने इस शर्त पर दिया है की इसे दिया हुआ माल वापिस न लिया जावे |

    Where does the verse says that men can exchange wives among themselves as you have stated? It says about changing wives which means divorcing wife and marrying another woman. Arya Samajis adds their own words in Vedas but since when did you guys star putting your own words in other scriptures also?

    (And if ye wish to exchange one wife for another) He says: If you wish to marry a woman and divorce one you are already married to, or marry a woman in addition to the one you are already married to (and ye have given unto one of them a sum of money (however great)) a dowry, (take nothing from it) from the dowry. (Would ye take it) the dowry (by the way of calumny) as an unlawful possession (and open wrong?) a clear transgression.

    So better luck next time

    1. Whether a believing women can marry a non believing man ?
      no she cannt untell she is in system of Islam.
      so where they will get marry? – simple within islam
      so whats wrong in the interpretation .
      Allah in his book has made women a trading commodity.
      which u can sale can transfer .
      pls go back and check ..

  16. काफीर का गंदा दिमाग होता है.और गंदे दिमाग से गंदी बाते निकलती है.

    1. ये तो पुस्तक को पढने से और आचरण से ही पता चलता है कि किसके दिमाग में गंदी बातें भरी हैं

    1. विजय जी

      सूर्य देव जी के ७ घोड़े हैं ऐसा पौराणिक ग्रंथो में लिखा है और उनके आधार पर उनका शरीर भी होता है मगर वेद के आधार पर ऐसी बात नहीं सूर्य देव का कोई शरीर नहीं होता |

    1. आप जो बोल रहे हो सूर्य देव के ७ घोड़े इन्द्रधनुष बन जाते हैं इसे आप ठीक से समझे | सात किरण को ७ घोड़े से तुलना की गयी इंग्लिश में |

  17. First off I would like to say terrific blog! I had a quick question in which I’d like to
    ask if you do not mind. I was curious to find out how you
    center yourself and clear your mind prior to writing.
    I have had a difficult time clearing my thoughts
    in getting my ideas out. I do take pleasure in writing however it just seems like the first 10 to 15 minutes are usually lost simply
    just trying to figure out how to begin. Any ideas or hints?
    Kudos!

    1. लेखक कई प्रकार के होते हैं और उनकी लिखने की शैली अलग अलग होती है फिर आप जिस शैली में लिखना चाहे उसमे लिखे शुरू में कुछ परेशानी आ सकती है आपको | कुछ लेख के बाद आप आप अपने लेख को आसानी से लिख सकेंगे और आपको उतना ज्यादा लेख लिखने में अनुभव होते जाएगा |

    1. प्रमोद जी
      लाहौल विलाकुवता भाई जान | आपने शायद लेख सही से नहीं पढ़ा | यदि यह लेख पढ़ा होता सही से तो इस तरह की बात ना करते |इस तरह की बातें इस्लाम में बताई गयी है जिसे जानकारी दी गयी है |

  18. इस्लाम को आंतकवादी बोलते हो। जापान मे तो अमेरिका ने परमाणु बम गिराया लाखो बेगुनाह मारे गये तो क्या अमेरिका आंतकवादी नही है। प्रथम विश्व युध्द मे करोडो लोग मारे गये इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या अब भी मुस्लिम आंतकवादी है। दूसरे विश्व युध्द मे भी लाखो करोडो निर्दोषो की जान गयी इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या मुस्लिम अब भी आंतकवादी हुए अगर नही तो फिर तुम इस्लाम को आंतकवादी बोलते कैसे हो। बेशक इस्लाम शान्ति का मज़हब है।और हाॅ कुछ हदीस ज़ईफ होती है।ज़ईफ हदीस उनको कहते है जो ईसाइ और यहूदियो ने गढी है। जैसे मुहम्मद साहब ने 9 साल की लडकी से निकाह किया ये ज़ईफ हदीस है। आयशा की उम्र 19 साल थी। ये उलमाओ ने साबित कर दिया है। क्योकि आयशा की बडी बहन आसमा आयशा से 10 साल बडी थी और आसमा का इंतकाल 100 वर्ष की आयु मे 73 हिज़री को हुआ। 100 मे से 73 घटाओ तो 27 साल हुए।आसमा से आयशा 10 साल छोटी थी तो 27-10=17 साल की हुई आयशा और आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम ने आयशा से 2 हिज़री को निकाह किया।अब 17+2=19 साल हुए। इस तरह शादी के वक्त आयशा की उम्र 19 आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम की 40 साल थी इन हिन्दुओ का इतिहास द्रोपती ने 5 पांडवो से शादी की क्या ये गलत नही है हम मुसलमान तो 11 औरते से शादी कर सकते है ऐसी औरते जो विधवा हो बेसहारा हो। लेकिन क्या द्रोपती सेक्स की भूखी थी। और शिव की पत्नी पार्वती ने एक लडके को जन्म दिया शिव की गैरमूजदगी मे। पार्वती ने फिर किसकी साथ सेक्स किया ।इसलिए शिव ने उस लडके की गर्दन काट दी क्या भगवान हत्या करता है ।श्री कृष्ण गोपियो नहाते हुए क्यो देखता था और उनके कपडे चुराता था जबकि कृष्ण तो भगवान था क्या भगवान ऐसा गंदा काम कर सकता है । महाभारत मे लिखा है कृष्ण की 16108 बीविया थी तो फिर हम मुस्लिमो एक से अधिक शादी करने पर बुरा कहा जाता । महाभारत युध्द मे जब अर्जुन हथियार डाल देता तो क्यो कृष्ण ये कहते है ऐ अर्जुन क्या तुम नपुंसक हो गये हो लडो अगर तुम लडते लडते मरे तो स्वर्ग को जाओगे और अगर जीत गये तो दुनिया का सुख मिलेगा। तो फिर हम मुस्लिमो को क्यो बुरा कहा जाता है हम जिहाद बुराई के खिलाफ लडते है अत्यचारियो और आक्रमणकारियो के विरूध वो अलग बात है कुछ मुस्लिम जिहाद के नाम पर बेगुनाहो को मारते है और जो ऐसा करते है वे मुस्लिम नही हैक्योकी आल्लाह पाक कुरान मे कहते है एक बेगुनाह का कत्ल सारी इंसानयत का कत्ल है। और सीता की बात करू तो राम तो भगवान थे क्या उनमे इतनी भी शक्ति नही कि वे सीता के अपहरण को रोक सके जब राम भगवान थे तो रावण की नाभि मे अमृत है ये उनको पहले से ही क्यो नही पता था रावण के भाई ने बताया तब पता चला। क्या तुम्हारे भगवान राम को कुछ पता ही नही कैसा भगवान है ये।और सीता को घर से बाहर निकाल दिया गया था तो लव कुश कहा से आये किससे सेक्स किया सीता ने बताओ।और इन्द्र देवता ने साधु का वेश धारण कर अपनी पुत्रवधु का बलात्कार किया फिर भी आप देवता क्यो मानते हो। खुजराहो के मन्दिर मे सेक्सी मानव मूर्तिया है क्या मन्दिर मे सेक्स की शिक्षा दी जाती है मन्दिरो मे नाच गाना डीजे आम है क्या ईश्वर की इबादत की जगह गाने हराम नही है ।राम ने हिरण का शिकार क्यो किया बहुत से हिन्दु कहते है हिरण मे राक्षस था तो क्या आपके राम भगवान मे हिरण और राक्षस को अलग करने की क्षमता नही थी ये कैसा भगवान है।हमे कहते हो जीव हत्या पाप है मै भी मानता हू कुत्ते के बेवजह मारना पाप है ।कीडी मकोडो को मारना पाप है पक्षियो को मारना पाप है। लेकिन ऐसे जानवर जिनका कुरान मे खाना का जिक्र है खा सकते है क्योकि मुर्गे कटडे बकरे नही खाऐगे तो इनकी जनसख्या इतनी हो जायेगी बाढ आ जायेगी इन जानवरो की। सारा जंगल का चारा ये खा जाया करेगे फिर इन्सान के लिए क्या बचेगा। हर घर मे कटडे बकरे होगे। बताओ अगर हर घर मे भैंसे मुर्गे होगे तो दुनिया कैसे चल पाऐगी। आए दिन सिर्फ हिन्दुस्तान मे लाखो मुर्गे और हजारो कटडे काटे जाते है । 70% लोग मांस खाकर पेट भरते है । सब को शाकाहारी भोजन दिया जाये तो महॅगाई कितनी हो जाएगी। समुद्री तट पर 90% लोग मछली खाकर पेट भरते है। समझ मे आया कुछ शाकाहारी भोजन खाने वालो मांस को गलत कहने वाले हिन्दुओ अक्ल का इस्तमाल करो

    1. Hazrat aapki jankari ke liye ” Hazrat aayesah ki Tareekhi Haisiyat”: jo aapke hee ham mazhab Farog kazmi sahab ne likhee hai neeche de raha hun
      shyad aapki Hazrat aayesh ki umra ke prati Ilm ko badhane men sahayat degi

      हज़रत अबू बकर से आप के हुज़्नों मलाल की ये कैफ़ियत देखी न गयी चुनान्चे वो अपनी पांच साला बच्ची आयशा को ले कर एक दिन आं हज़रत (स.अ.व.व) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह (स.अ.व.व) ये बच्ची हाज़िर है आप इस से दिल बहलायें ताकि आपका ग़म ग़लत हो। इस बच्ची में ख़दीजा की सलाहियत पाई जाती है। (2) अबू बकर की इस हैरत अंगेज़ तजवीज़ पर पैग़म्बर ने सुकूत इख़तियार किया यहां तक कि बच्ची को उन्होंने गोद में उठाया और वापस चले गये। उस के बाद बक़ौले मुअर्रिख़ पैग़म्बर अबू बकर के घर में आने जाने लगे। (3)

      1. हर धर्म की किताब मे लिखा हुआ है झूठ बोलना पाप है फिर भी तुम हिन्दु अपनी तरफ से हदीसे कुरआन की आयते सब झूठ क्यो लिखते है। आयत नम्बर हदीस नम्बर सब अपनी तरफ से झूठ लिख देते हो। शर्म नही आती तुम्हे। कयामत के दिन जब इंसाफ होगा तब तुम्हे झूठा इल्जाम लगाने का पता चल जायेगा । हद होती है हर चीज की। नबी पर झूठा इल्जाम लगाया आपने और आप जैसे लोगो ने काबे पर भी इल्जाम लगा दिया। वो अल्लाह का घर है। वहा पर नमाज पडी जाती है लिंग की पूजा नही होती। और क्या कहते हो तुम हमे काबे की सच्चाई सामने क्यो नही लाते हो। यूटयूब पर हजारो विडियो पडी हुयी है देख लो कोई लिंग विंग नही है वहा। बस जन्नत का एक गोल पत्थर है और हर पत्थर का मतलब लिंग नही होता। बाईचान्स मान लो वहा शिव लिंग है।तो क्या आपके शिव लिंग मे इतनी भी ताकत नही है जो वहा से आजाद हो सके। तुम्हारी गंदी नजरो मे सभी मुस्लिम अच्छे नही है इसलिए सारे मुस्लिमो को शिव मार सके। आप तो कहते हो शिव ने पूरी दुनिया बनाई तो क्या एक छोटा सा काम नही कर सकते।
        इसलिए तो इन लिंग विंग पत्थरो के बूतो मे कोई ताकत नही होती। बकवास है हिन्दु धर्म।

        1. नफीस माली भाई जान
          आप हदीस से हमें बतलाना ये al takaiya क्या होता है |हदीस ही झूठ बोलना सिखाता है भाई जान | कुरआन भी झूठ बोलना सिखाता है नहीं तो यह कैसे संभव है की सूरज दलदल में डूब जाता है | क्या बिना औरत में स्पर्म और ओवुम मिले हुए कोई औरत माँ बन सकती है ? फिर मरयम कैसे माँ बन गयी ? और रही बात आपकी तो यह जानकारी दे दू यहाँ बिना प्रमाण का हदीस कुरआन बाइबिल इत्यादि से नहीं दिया जाता | जब प्रमाण होता है तभी यहाँ लेख डाला जाता है | हमें २ चाँद क्यों नजर नहीं आते भाई जान | झूठ कौन बोल रहा है यह सबको मालुम है | आपको मालुम होना चाहिए हम वेद को मानने वाले हैं और वेद में कहीं मूर्ति पूजा नहीं है फिर शिव लिंग को हम कैसे मानेंगे भाई जान | और हां यह पौराणिक मानते हैं मगर चलो आपको पौराणिक हिसाब से जवाब देने का कोशिश करता हु जवाब देने से पहले आपके कमेंट से ही कुछ सवाल पुछ रहा हु यूटयूब पर हजारो विडियो पडी हुयी है देख लो कोई लिंग विंग नही है वहा। बस जन्नत का एक गोल पत्थर है और हर पत्थर का मतलब लिंग नही होता। जन्नत का पत्थर कैसे आया भाई जान ? जन्नत कहा पर है और अब तक विज्ञान ने या मनुष्य ने क्यों नहीं खोज पाया यह बतलाना मेरे बंधू ? जैसे चाँद मंगल इत्यादि की खोज हो गयी वैसे ही जन्नत की खोज क्यों नहीं हो पायी ? और चलो मान लिया की यह जन्नत का पत्थर है तो कुरआन में कहीं भी बुत पूजा करना नहीं लिखा है फिर आप लोग इस पत्थर को क्यों चुमते हो ? क्या यह एक तरह की बुत पूजा नहीं है जैसे पौराणिक मूर्ति पूजा करते हैं आप उसे चुमते हो वो भी एक तरह की पूजा है | शैतान को भी पत्थर से मारते हो वो भी एक प्रकार की पूजा है जिसे आप स्वीकार नहीं करते हो ? फिलहाल इन सब बात का जवाब देना जी फिर आपको पौराणिक हिसाब से जवाब देने की कोशिश करूँगा वैसे हम खुद पुराण को खंडन करते हैं | अंधविश्वास को छोडो | आपकी जवाब की प्रतीक्षा में | आओ सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटो | वेद की ओर लौटो | धन्यवाद|

          1. हदीस मे लिखा है इन्सान को सिर्फ वहा झूठ बोलना चाहिए जहा अगर दो इन्सानो मे दुश्मनी हो। उनके बीच मे ताकि वे दोस्त बन सके। और अल्लाह पाक कुरान मे कहते है आप सब इन्सान मिलकर भी कुरान के जैसी कोई एक
            आयत नही बना सकते । और सूरज के बारे मे ये नही लिखा कि डूब ही जाता है । दल दल मे डूब जाने का मतलब अंधेरा रात होने से। ये कुरान मे एक किस्सा(वाक्य) है। इसका मतलब ये नही कि ये आप इसे साइंस मे जोड देगे। आपने अधूरी तालीम की है और उसमे से छोटे छोटे शब्द उठा के बदनाम करना चाहते हो जबकि ये बेवकूफी है पूरा पढो समझो और सोचो तब कुछ कहो। मिसाल के तौर पर अगर कुरान या वेद या पुराण मे सेक्स शब्द आता है तो आप लोग क्या करते हो उसी शब्द को उठा लेते हो बदनाम कर देते हो । पूरा श्लोक या आयत नही पडते हो। मतलब ये नही सोचते कि ये कुरान कहना क्या चाह रही है। और रही बात जन्नत खोजनी की तो किसी भी इन्सान इतनी ताकत नही जो जन्नत को खोज निकाल सके।

            1. लगता है बंधू आपको कुरान की भी पूरी समझ नहीं शायद आप भूल गए की रसूल ने पहले कितनी आयतेन लाने को कहा और फिर कैसे बदल दिया

              और क्या कुरान में क्या शैतान का कलाम नहीं है ?
              फरिश्तों के कलाम नहीं हैं
              जब वो हिएँ तो वो भी तो उसके बराबर ही हुए

          1. sana ji

            kya Keep it up nafees each page aaone ??? jise kuch nahi jaankaari use aap bol rahe ho Keep it up nafees each page aaone. dhanya ho ji aap..

  19. हिन्दु धर्म मे शिव भगवान ही नसेडी है तो उसके कावडिया भी नसेडी। जितने त्योहार है हिन्दुओ के सब बकवास।होली को लेलो मानते है भाईचारे का त्योहार होली पर शराब पिलाकर एक दुसरे से दुश्मनी निकाली जाती है।होली से अगले दिन अखबार कम से कम 100 लोगो के मरने की पुष्टि करता है ।अब दीपावली को देखलो कितना प्रदुषण बुड्डे बीमार बुजुर्गो की मोत होती है। पटाखो के प्रदुषण से नयी नयी बीमारिया ऊतपन होती है। गणेशचतुर्थी के दिन पलास्टर ऑफ पेरिस नामक जहरीले मिट्टी से बनी करोडो मूर्तिया गंगा नदियो मे बह दी जाती है। पानी दूषित हो जाता है साथ ही साथ करोडो मछलिया मरती है तब कहा चली जाती है इनकी अक्ल जीव हत्या तो पाप हैहम मुस्लिमो को बोलते है चचेरी मुमेरी फुफेरी मुसेरी बहन से शादी कर लेते हो। इन चूतियाओ से पूछो बहन की परिभाषा क्या होती है मै बताता हू साइंस के अनुसार एक योनि से निकले इन्सान ही भाई बहन हो सकते है और कोई नही। तुम भाई बहन के चक्कर मे रह जाओ इसलिए हिन्दु लडको की शादिया भी नही होती अक्सर । हमारे बनत नाम के गाव मे 300 जाट के लडके रण्डवे है शादी नही होती फिर उनका सेक्स का मन करता है वे फिर लडकियो महिलाओ की साथ बलात्कार करते है ये है हिन्दु धर्म । और सबूत हिन्दुस्तान मे अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा रेप होते है । किसी मुस्लिम मुल्क का नाम दिखा दो या बता दो बता ही नही सकते। तुम्हारे हिन्दुओ लडकियो को कपडे पहनने की तमीज नही फिटिंग के कपडे छोटे कपडे जीन्स टीशर्ट आदि पहननती है ।भाई बाप के सामने भी शर्म नही आती तुमको ऐसे कपडो मे थू ऐसे कपडो मे को देखकर तो सभी इन्सानो की ऑटोमेटिकली नीयत खराब हो जाती है इसलिए हिन्दु और अंग्रेजी लडकियो की साथ बलात्कार होते हे इसके लिए ये लडकिया खुद जिम्मेदार है।।और हिन्दु लडकियो के हाथ मे सरे आम इंटरनेट वाला मोबाइल उसमे इतनी गंदी चीजे थू और लडकियो को पढाते इतने ज्यादा है जो उसकी शादी भी ना हो पढी लिखी को स्वीकार कौन करता है जल्दी से पढने का तो नाम है घरवालो के पैसे बरबाद करती है और लडको की साथ अय्याशी करती है उन बेचारो का टाइम वेस्ट। इन चूतियाओ से पूछो लडकि इतना ज्यादा पढकर क्या करेगी।मर्द उनके जनखे हो जो औरत कमाऐगी मर्द बैठकर खाऐगे।सही कहू तो मर्दो की नौकरिया खराब करती है जहा मर्द 20000 हजार रूपये महीने की माॅग करे वहा लडकिया 2000 मे ही तैय्यार हो जाती हैबहुत हिन्दु गर्व के साथ कहते है कि हमारी गीता मे लिखा है कि ईश्वर कण कण मे विध्मान है ।सब चीजे मे है इसलिए हम पत्थरो को पूजते है और भी बहुत सारी चीजो को पूजते है etc. लेकिन मै कहूगा इनकी ये सोच बिल्कुल गलत है क्योकि अगर कण कण मे भगवान है तो क्या गू गोबर मे भी है आपका भगवान। जबकि भगवान या खुदा तो पाक साफ है तो कण कण मे कहा से विध्मान हुआ भगवान। इसलिए मै आपसे कहना चाहता हू भगवान हर चीज मै नही है बल्कि हर चीज उसकी है और वो एक है इसलिए पूजा पाठ मूर्ति चित्र सब गलत है कुरान अल्लाह की किताब है इसके बताये गये रास्ते पर चलो। सबूत भी है क्योकि कुरान की आयते पढकर हम भूत प्रेत बुरी आत्माओ राक्षसो से छुटकारा पाते है।हमारी मस्जिद मे बहुत हिन्दु आते है ईलाज करवाने के लिए । और मौलवी कुरान की आयते पढकर ही सभी को ठीक करते है । इसलिए कुरान अल्लाह की किताब है । जबकि आप वेदो मंत्रो से दसरो को नुकसान पहुचा सकते है अच्छाई नही कर सकते किसी की और सभी भगत पंडित जादू टोना टोटके के अलावा करते ही क्या है। जबकि कुरान से अच्छाई के अलावा आप किसी के साथ बुरा कर ही नही सकते। इसलिए गैर मुस्लिमो कुरान पर ईमान लाओ।

    1. e sab kalpanik hai

      “सलिए पूजा पाठ मूर्ति चित्र सब गलत है ” ये आपकी बात सत्य है आर्यों का तो धर्म ही तौहीद है आपको भे इसे अपनाना चाहिए और जितनी भी मजारे हैं तोड़ देनी चाहिए .
      साथ ही साथ जो सबसे बड़ी मूर्ति पूजा तो मुहम्मद साहब करते थे ” काबा को चूमना ” वो भी बंद कर देना चाहिए
      और सत्य तौहीद को अपनाना चाहिए
      साथ ही साथ कलमे में से भी मुहम्मद साहब का नाम हटा दें क्योंकि अल्लाह किसी के साथ शरीक नहीं होता

      1. काबे को चूमना का मतलब ये नही कि हमने उसे खुदा समझ के उसी से मांगना शुरू कर दिया। जिस तरह तुम हिन्दु पत्थरो को भगवान समझकर उन्ही से मांगते हो। काबे को चूमना अल्लाह के साथ मुहम्मद साहब का नाम ये तो मोहब्बत का प्रतीक है। और रही बात मजारो की अल्लाह के रसूल ने कहा है कब्रो के पास इसलिए जाया करो ताकि तुम ये सोचो हमे भी एक दिन यहा आना है। इसलिए तुम गुनाह करने बचोगे।और मै मानता हू कुछ मुस्लिम चादर चढाते है। ऐसा करने से मुहम्मद साहब ने खुद मना किया है

        1. नफीस माली भाई जान
          काबे को चूमने का मतलब भी वही होता है भाई जान जो मूर्ति पूजा करने का होता है मगर फर्क इतना है की आप इसे स्वीकार नहीं करते हो की आप बुत पूजा करते हो |जिस तरह से आपको लगता है काबे को चूमना अल्लाह के साथ मुहम्मद साहब का नाम ये तो मोहब्बत का प्रतीक है। उसी प्रकार पौराणिक को भी लगता है की मूर्ति एक प्रतिक है आप जैसे मक्का की ओर नमाज पढ़ते हो उसी तरह वे मूर्ति को प्रतिक समझ कर पूजा करते हैं | फिर आप में और उनमे क्या अंतर है दोनों तो बुत की ही पूजा करते हो मगर आप सत्य को स्वीकार नहीं करोगे क्यूंकि इस्लाम यह नहीं बोलता की अपनी अकल का इस्तेमाल करो यदि अक्ल का इस्तेमाल करते तो कब का आप इस्लाम छोड़कर वैदिक धर्म को अपना लिए होते | आपका अब दूसरा कमेंट का जवाब और रही बात मजारो की अल्लाह के रसूल ने कहा है कब्रो के पास इसलिए जाया करो ताकि तुम ये सोचो हमे भी एक दिन यहा आना है। इसलिए तुम गुनाह करने बचोगे।और मै मानता हू कुछ मुस्लिम चादर चढाते है। ऐसा करने से मुहम्मद साहब ने खुद मना किया है | भाई कहा मुहमद साहब ने मना किया है? इसका प्रमाण देना आप | हां कुरआन में यह मना किया गया है बुत पूजा मत करो फिर भी जैसे मुस्लिम बुत पूजा करते हैं चादर चढ़ाते हैं उसी तरह वेद में मूर्ति पूजा मना है मगर भटके हुए लोग मूर्ति पूजा करते हैं जैसे मुस्लिम लोग चादर चढ़ाते हैं | आओ सत्य की मार्ग पर आओ | वेद की ओर लौटो | सत्य सनातन धर्म को अपनाओ | अंधविश्वास को छोडो | धन्यवाद |

      2. क्या बोलते हो तुम कि ये काल्पनिक है। बेटा ये बाते वर्तमान समय मे वास्तविक है हकीकत है और सच भी है।

        1. नफीस माली भाई जान
          अब आ गए अपनी सही में इस्लाम की रास्ते पर | यही तो इस्लाम सिखाता है | हम प्यार से जवाब देते हैं और आप गाली गलौज करने पर उतर जाते हो ? हमें यह बतलाना की कुरान के किस आयत और सुरा में यह लिखा है की बदतमीजी करो जो आप कर रहे हो ? जब आपको यह नहीं मालुम की आप बड़े हो या मैं फिर आप बेटा कैसे बोल सकते हो ? और यह बेटा दुसरे अर्थ में हैं जी | इस तरह की बदतमीजी करना इस्लाम ही सिखला सकता है | और क्या वर्तमान समय में वास्तविक है हकीकत है और सच है यह भी तो बताओ जिससे की चर्चा की जा सके उस बारे में | सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटो |

        2. कमाल है आप इस्लाम धर्म पर झूठे इल्जाम लगा सकते है । तो क्या मै आपको बेटा भी नही कह सकता। क्योकि हर धर्म की किताब मे लिखा है किसी के धर्म को बुरा ना कहो । मैने तो मजबूर होकर जब हिन्दुओ के गंदे कमेंट पढे तब हिन्दुओ के वर्तमान हालात पर कमेंट किये है। और आप जैसे सभी हिन्दुओ ने तो 1400 साल पहले इस्लाम मे बेबुनियाद कमी निकाली है । इसको बोलते है धर्म के बारे मे कुछ गलत कहना। अगर कुछ लिखने की हिम्मत है तो मुस्लिमो की वर्तमान स्थिति के बारे मे लिखो ताकि हम सुधरो। वैसे मुझे लगता नही इस्लाम मे फिलहाल कुछ भी गलत है। क्योकि इस्लाम तो शुरू से ही शान्ति अमन का सन्देश देता है। क्योकि इस्लाम का दूसरा नाम तो इन्सानियत है

          1. इस्लाम शांति का मज़हब है तो फिर गैर मुस्लिमों को मारने की बात क्यों कही जाती है
            मुहम्मद साहब के ये कार्य किस तरह शांति का सन्देश देते हैं :
            http://aryamantavya.in/islam-shanti-ka-mazhab/

    2. Ohh pls in bato me kuch nahi h ham dharm ke chakkar me ye hi bhul gaye hai ki ham pehle insaan hai jise bhagwan ne khud banaya hai taki ham duniya me pyar se rahe aur apne karmo ko achha rakhe bhagwan god allah kahi nahi hai sirf apne andar hai isliye khud achhe banna sikho aur fir bhagwan krishna ne bhi prem ko hi dharm jaat sab batya hai dwarika dheesh ke jo kapde hai na wo muslman vyakti hi silta hai wo to fark nahi karte fir ham kyu sabse pehle hame khud ki aatma ko saaf aur pavitra rakhna chahiye agar ham khud sahi hai to bhagwan hamare andar hai
      Radhey radhey jii

      1. मोनिका चौहान जी
        यदि आपको यह मालुम होता की धर्म किसे बोलते हैं तो यह आप नहीं बोलती की इंसान बनो | खुद वेद बोलता है मनुर्भव | मनुष्य बनो | और सब जो मत मजहब हैं वे यह बोलते हैं मुस्लिम बनो काफिर को मारो | इसाई बनो | बौध बनो इत्यादि | अरे सनातन धर्म तो यह बोलता है मोनिका जी की पूरा विश्व ही कुटुंब के सामान है फिर जब कुटुंब के समान है तो वे आपस में प्यार करेंगे ही | मगर मत मजहब संप्रदाय ऐसा शिक्षा नहीं देता | आपने बोला की इश्वर अल्लाह और god इत्यादि ये सभी आपको जानकारी दे दू सभी अलग अलग हैं |चलो आप पौराणिक हो तो आपको पौराणिक हिसाब से ही जवाब देने का कोशिश करता हु पुराण में मलेक्ष शब्द क्यों आया है ? मलेक्ष कौन हैं यह आप बतलाना जी | और आपको मालुम होना चाहिए जो पौराणिक हैं वे केवल द्वारकाधीश के कपडे केवल मुसलमानों से नहीं सिलवाते छठ पूजा होता है उसमे भी मुसलमान लोग की सहायता ले लेते हैं | चलो कुछ बात बतलाना जी आप आप पौराणिक हो इस कारण पौराणीक हिसाब से सवाल कर रहा हु आपने कई बार सूना होगा मंदिर में नमाज मुस्लिमो को पढ़ने दिया गया मगर क्या यही मस्जिद में वेद पढ़ने दिया जाता है ? अरे वेद छोड़ दो गीता रामायण इत्यादि पढ़ने दिया जाता है क्या ??? अरे आप पौराणिक हो तो भी सभी से प्रेम करती हो मत मजहब वालो से | मगर दुसरे मत मजहब वाले ऐसे नहीं करते | वेद के आधार पर सभी इश्वर के संतान है चाहे वह मुसलमान हो या इसाई हो या और मत संप्रदाय के हो | सनातन धर्म तो सभी को प्यार से जीना सिखाता है | वे तो सभी को पूरा विश्व को अपना कुटुंब समझते हैं | आपके लिए राधे राधे | धन्यवाद | ॐ |

    3. Inko samjhna ka koi matlb nhi hai .inke dil or dimag siyah kar diye gye hai.quraan ko or muhammed sahab ko kisi k respect ki zarurat nhi . Allah kareem hai quraan ki hifazat Allah khud karte hai .islam padhne or samjhne ki dawat deti hu.

      1. sana ji
        allah ko baar baar khud ki aayat kyu badlana padta hai?? kya allah agyani hai yaa bhulkar hai jo baar baar aayat badal deta hai. aur yah bhi badlana paigambar sahab ki maut kaise huyi ???

  20. अमिति राॅय जी आपने इस्लाम धर्म के नाम पर जो बाते कही है वो असल इस्लाम धर्म की है क्या नही ये देखिये आप जिन बातो को जोर दे कर बोल रहे है औरत के बारेमे इस्लाम क्या कहता है आगर आपको सच मुच समज ना है तो असल किताबोका हावाला दीजिये और एक बात तुम्हे लगता है वौसा मतलब मत निकालीये
    आप जो बात कर रहे है वो सिया लोगे की है सिया लोगो मे मुताबिक कि मुताबिक एक औरत और मर्द जितनी चाहिये लोगोसे हां बिस्तरों कर सकता है लेकिन इस बात को इस्लाम मना करता है
    तकिया कि बात इस्लाम को मजूर नही वो बात भी सिया लोगो की है और किरण कि आयतो को हादिस कि बातो को तोड मरोड कर लिखने कि साजिश आज कल की नही बहोत सालो से इस्लाम को बदनाम करणे के लिये इस्लाम जिहादी है इस्लाम औरतो का हाक नही देता औरतो को बदिस्त बनाकर रखता है चार चार शादियां करता है बच्चे जादा पैदा करता है औरतो को रखेल बनाता है लौडी बनाकर खरीदता है बेचता है यौसी बहुत सारी बाते गलत किताबोका हवाला दे कर बताई जाती है और एक कुराण कि असल रिवायत का हावाला दिया जाता है जो इस वक्त मे इस दौर मे कही गयी बाद के रिवायत का हवाला नही दिया जाता
    लोगो को गुमराह करनेके लिये कभी कभार बुखारी शरीफ सही मुस्लिम शरीफ का हावाला दिया जाता है आपने तरीकेसे तो अगर बहस करनी ही है तो एक एक बात बर बहस हो कभी इधर कभी उधर करने से कुछ समझने नही आता आगर लोगो को गुमराह करना ही मकसद है तो फिर कोइ बात नही लेकिन अगर इस्लाम के अंदर लिखी हुवी बाते यौसा क्यू लिखा है कहा गया है सचमुच समझना है तो एक एक बात पर बहस करे हो सकता है कुछ हमे नही समझा होगा और कुछ तुम्हे नही समझा होगा तो बहस करना है तो एक एक बात पर बहस करेगे फिरसे सुरवात कर सकते है मै आपसे बहस कर सकता हु जीस बात पर आपको येतराज है या शंक है उसे दुर करने की कोशिस करेगे मै कोई सलीम या मौलाना नही एक सोशलवर्कर हु अगर कुछ गलत है तो मै इस बात को मानने वाला हू तो आगर आप चाहते है तो बहस कर सकते है मुझे भी इस्लाम के बारे मे सब कुछ मालूम है या सब कुछ जानता हु यौसा नही पर आपके साथ बात करके मुझे जितनी जानकारी है उसने इजाफा जरूर होगा तो हां दोनो को इस्लाम के बाते मे साही समज मिले और हम इस्लाम को सही तरीकेसे समझे यौसी अल्ला से दीवार मागता हु अल्ला हां दोनो को सही समज सत्ता फरमा आमिन

    1. आसिफ बाबा भाई जान
      सबसे पहले हमें यह बतलाये की धर्म किसे बोलते हैं इस्लाम मजहब क्या है ? थोडा हमें बतलाना | इस्लाम में खुद और के बारे में वैसा बोला गया है जिस कारण हमने प्रमाण दिया है | इस्लाम बोलता है जात पात नहीं फिर ये सिया सुन्नी अहमदिया इत्यादि ये सब क्या है ? क्या सिया खुद को इस्लाम के नहीं मानते ? क्या सुन्नी खुद को इस्लाम के नहीं मानते ? ७२ फिरके क्या है ? फिर इस्लाम क्या है ? सच्चा इस्लाम कौन सा है ? यह हमें बतलाना जी | खुद कुरआन सब में इसकी जानकारी दी गयी है | आप जब चाहे चर्चा करें हम तैयार हैं चर्चा करने को | जब आप चाहे कुरआन हदीस सब से चर्चा करे | और हम तो चाहते हैं कोई ऐसा हो जो हमें इस्लाम के बारे में सही जानकारी दे सके | यहाँ तक आपके इस्लाम के प्रकांड विद्वान् जाकिर तक कुरआन हदीस को मानते हैं और मुस्लिम मौलाना तक कुरआन हदीस को सही मानते हैं | और जो हमने प्रमाण दिया है उन्ही सब से पढ़कर दिया है | आप बोलोगे तो उन साईट से लिंक भी पेश कर दूंगा मगर लिंक पेश करूँगा तो बहुत लोगो को लगेगा की हमने गलत पेश कर दी | अल तकैया कर दोगे आप | चलो आप जिस से चर्चा करना चाहो चर्चा करो हम तैयार है | मुझ जैसे अज्ञानी को इस्लाम के बारे में सही जानकारी देने की कृपा करे | आपके जवाब की प्रतीक्षा मे | धन्यवाद |

    2. आसिफ बाबा भाई जान
      सबसे पहले हमें यह बतलाये की धर्म किसे बोलते हैं इस्लाम मजहब क्या है ? थोडा हमें बतलाना | इस्लाम में खुद और के बारे में वैसा बोला गया है जिस कारण हमने प्रमाण दिया है | इस्लाम बोलता है जात पात नहीं फिर ये सिया सुन्नी अहमदिया इत्यादि ये सब क्या है ? क्या सिया खुद को इस्लाम के नहीं मानते ? क्या सुन्नी खुद को इस्लाम के नहीं मानते ? ७२ फिरके क्या है ? फिर इस्लाम क्या है ? सच्चा इस्लाम कौन सा है ? यह हमें बतलाना जी | खुद कुरआन सब में इसकी जानकारी दी गयी है | आप जब चाहे चर्चा करें हम तैयार हैं चर्चा करने को | जब आप चाहे कुरआन हदीस सब से चर्चा करे | और हम तो चाहते हैं कोई ऐसा हो जो हमें इस्लाम के बारे में सही जानकारी दे सके | यहाँ तक आपके इस्लाम के प्रकांड विद्वान् जाकिर तक कुरआन हदीस को मानते हैं और मुस्लिम मौलाना तक कुरआन हदीस को सही मानते हैं | और जो हमने प्रमाण दिया है उन्ही सब से पढ़कर दिया है | आप बोलोगे तो उन साईट से लिंक भी पेश कर दूंगा मगर लिंक पेश करूँगा तो बहुत लोगो को लगेगा की हमने गलत पेश कर दी | अल तकैया कर दोगे आप | चलो आप जिस से चर्चा करना चाहो चर्चा करो हम तैयार है | मुझ जैसे अज्ञानी को इस्लाम के बारे में सही जानकारी देने की कृपा करे | आपके जवाब की प्रतीक्षा मे |

  21. अमिति राॅय जी आपने इस्लाम धर्म के नाम पर जो बाते कही है वो असल इस्लाम धर्म की है क्या नही ये देखिये आप जिन बातो को जोर दे कर बोल रहे है औरत के बारेमे इस्लाम क्या कहता है आगर आपको सच मुच समज ना है तो असल किताबोका हावाला दीजिये और एक बात तुम्हे लगता है वौसा मतलब मत निकालीये
    आप जो बात कर रहे है वो सिया लोगे की है सिया लोगो मे मुताबिक कि मुताबिक एक औरत और मर्द जितनी चाहिये लोगोसे हां बिस्तरों कर सकता है लेकिन इस बात को इस्लाम मना करता है
    तकिया कि बात इस्लाम को मजूर नही वो बात भी सिया लोगो की है और किरण कि आयतो को हादिस कि बातो को तोड मरोड कर लिखने कि साजिश आज कल की नही बहोत सालो से इस्लाम को बदनाम करणे के लिये इस्लाम जिहादी है इस्लाम औरतो का हाक नही देता औरतो को बदिस्त बनाकर रखता है चार चार शादियां करता है बच्चे जादा पैदा करता है औरतो को रखेल बनाता है लौडी बनाकर खरीदता है बेचता है यौसी बहुत सारी बाते गलत किताबोका हवाला दे कर बताई जाती है और एक कुराण कि असल रिवायत का हावाला दिया जाता है जो इस वक्त मे इस दौर मे कही गयी बाद के रिवायत का हवाला नही दिया जाता
    लोगो को गुमराह करनेके लिये कभी कभार बुखारी शरीफ सही मुस्लिम शरीफ का हावाला दिया जाता है आपने तरीकेसे तो अगर बहस करनी ही है तो एक एक बात बर बहस हो कभी इधर कभी उधर करने से कुछ समझने नही आता आगर लोगो को गुमराह करना ही मकसद है तो फिर कोइ बात नही लेकिन अगर इस्लाम के अंदर लिखी हुवी बाते यौसा क्यू लिखा है कहा गया है सचमुच समझना है तो एक एक बात पर बहस करे हो सकता है कुछ हमे नही समझा होगा और कुछ तुम्हे नही समझा होगा तो बहस करना है तो एक एक बात पर बहस करेगे फिरसे सुरवात कर सकते है मै आपसे बहस कर सकता हु जीस बात पर आपको येतराज है या शंक है उसे दुर करने की कोशिस करेगे मै कोई आलीम या मौलाना नही एक सोशलवर्कर हु अगर कुछ गलत है तो मै इस बात को मानने वाला हू तो आगर आप चाहते है तो बहस कर सकते है मुझे भी इस्लाम के बारे मे सब कुछ मालूम है या सब कुछ जानता हु यौसा नही पर आपके साथ बात करके मुझे जितनी जानकारी है उसने इजाफा जरूर होगा तो हां दोनो को इस्लाम के बाते मे साही समज मिले और हम इस्लाम को सही तरीकेसे समझे यौसी अल्ला से दुवा मागता हु अल्ला हां दोनो को सही समज अत्ता फरमा आमिन

    1. आसिफ बाबा भाई जान
      सबसे पहले हमें यह बतलाये की धर्म किसे बोलते हैं इस्लाम मजहब क्या है ? थोडा हमें बतलाना | इस्लाम में खुद और के बारे में वैसा बोला गया है जिस कारण हमने प्रमाण दिया है | इस्लाम बोलता है जात पात नहीं फिर ये सिया सुन्नी अहमदिया इत्यादि ये सब क्या है ? क्या सिया खुद को इस्लाम के नहीं मानते ? क्या सुन्नी खुद को इस्लाम के नहीं मानते ? ७२ फिरके क्या है ? फिर इस्लाम क्या है ? सच्चा इस्लाम कौन सा है ? यह हमें बतलाना जी | खुद कुरआन सब में इसकी जानकारी दी गयी है | आप जब चाहे चर्चा करें हम तैयार हैं चर्चा करने को | जब आप चाहे कुरआन हदीस सब से चर्चा करे | और हम तो चाहते हैं कोई ऐसा हो जो हमें इस्लाम के बारे में सही जानकारी दे सके | यहाँ तक आपके इस्लाम के प्रकांड विद्वान् जाकिर तक कुरआन हदीस को मानते हैं और मुस्लिम मौलाना तक कुरआन हदीस को सही मानते हैं | और जो हमने प्रमाण दिया है उन्ही सब से पढ़कर दिया है | आप बोलोगे तो उन साईट से लिंक भी पेश कर दूंगा मगर लिंक पेश करूँगा तो बहुत लोगो को लगेगा की हमने गलत पेश कर दी | अल तकैया कर दोगे आप | चलो आप जिस से चर्चा करना चाहो चर्चा करो हम तैयार है | मुझ जैसे अज्ञानी को इस्लाम के बारे में सही जानकारी देने की कृपा करे | आपके जवाब की प्रतीक्षा मे | धन्यवाद |

      1. Amit ji jis tarah aap puran,ramayan se palla jhad rahe ho usi tarah mai hadis se ajr Translater se palla jhadra hoon aur Aasmani kitab Quraan par I.aan lane ko dawat deta hoon.
        Allah ek hi Khuda hai kisne na ke musalman balke Sabhi ko banaya hai jab usne fark nahi kiya to hum kaiae karein?
        Aur Prophet sorf Quraan ko follow karte the kuchh haramkhoron ne unke character par ungli uthakar apni haowaniyat ka saboot diya hai.

        1. बहुत सही बात है कि आप सत्य को सही मानते हो

          क्या आप संगे अवसद के चूमने को गलत मानते हैं या सही ?

  22. राम या हनुमान ने राम सेतु पुल बनाया था सीता को बचा के लाने के लीए । जब भगवान थे तो पुल बनाने की क्या जरुरत थी उड की नही जा सकते थे। ये एक किस्म की चूतियापंती है और हिन्दु क्या बोलते है कि सारे भगवान मनुष्य के रुप मे थे इसलिए उड के जाने की ताकत नही थी। ये हिन्दु अपनी ही चट करते है और अपनी ही पट। जब मनुष्य के रुप मे भगवान थे। इसका मतलब ये हुआ वे मनुष्य ही भगवान थे । और भगवान उसे कहते है जो कुछ भी कर सकते है तो फिर वे मनुष्य उड क्यो नही सकते थे क्योकि आप लोग तो उनको एक तरीके से भगवान ही मानते है और ब्रहम्मा ने अपनी पुत्री से सेक्स किया था इसलिए हिन्दु ब्रहम्मा को भगवान मानते हो । ब्रहम्मा भी तो आपके भगवान थे भगवान बल्तकार करता है क्या। ये सब आपकी किताबो मे लिखा है। और राम ने अपनी पत्नी सीता को घर से बाहर निकाला था। तो क्या औरत को यूही कही भी धक्के दिये जा सकते है। कहने को राम भगवान थे औरत की इज्जत आती नही थी। एक बात और फिर ये लव कुस कहा से आये

    1. नफीस माली भाई जान
      कितना झूठ बोलते हो भाई जान कोई भी पौराणिक भी सुनेगा तो बोलेगा की आप कितने झूठे हो और झूठ बोलना शायद इस्लाम ही सिखाता हो | चलो पहले पौराणिक हिसाब से आपको जवाब देने की कोशिश करता हु पौराणिक हिसाब से जावब यह है की राम ने या हनुमान ने सेतु पुल का निर्माण नहीं किया बल्कि नल नील ने सेतु पुल का निर्माण किया | और दूसरी बात राम मनुष्य रूप में थे तो वे इस कारण वह उड़ नहीं सकते थे | उन्हें मनुष्य के रूप में समाज में मानव को मर्यादा के रूप में रहने का जो समाज में आदर्श स्थापित करना जो था | अब आपका दूसरा कमेंट आपने बताया की ब्रह्मा ने अपनी पुत्री से सेक्स किया यह कौन से पुराण में है पौराणिक के ग्रन्थ में यह प्रमाण भी देना | कितना झूठ बोलोगे मेरे भाई जान | इस तरह की झूठ बोलना तो केवल इस्लाम ही सिखलाता है आपके सारे सवाल का जवाब आपको फेसबुक पर हमारे पेज पर राहुल झा आपको जानकारी देंगे आप प्रमाण बताना वे आपको सभी से प्रमाण के साथ जवाब देंगे या फिर और दुसरे सदस्य आपको जवाब देंगे | जिस तरह से कुरआन में एक अंगुली से चाँद के दो तुकडे हो सकते हैं एक डंडा पत्थर पर मारने पर झरने निकल सकते हैं तो यह पौराणिक हिसाब से ऐसा क्यों नहीं हो सकता जी | वैसे हम खुद पुराण इत्यादि का खंडन करते हैं क्यूंकि उसमे बहुत मिलावट कर दी गयी है | जैसे कुरआन में अंधविश्वास है उसी तरह पुराण सब में भी है | आओ अंधविश्वास को त्यागो और वेड की ओर लौटो | सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटो | धन्यवाद |

      1. एक बात बताऊ अमित भाई मैने ये राम के पुल वाली बात अपने हिन्दु दोस्तो से ही सुनी है। मैने आपकी तरह कुछ भी अपनी तरफ से झूठ नही लिखा है। और आपने क्या लिखा कि इस्लाम झूठ बोलना सिखाता है। मै बताता हू इस्लाम क्या सिखाता है।अल्लाह के रसूल ने फरमाया जिस शख्स के अन्दर ये चार चीजे होगी वो मुनाफिक है। मुनाफिक एक तरह से काफिर को बोलते है। नम्बर 1 झूठ बोलने वाला। 2 गाली देना वाला 3 वादा खिलाफी करने वाला 4 अमानत मे खयानत करने वाला। तो फिर अमित जी तुमने ये कैसे कह दिया कि इस्लाम झूठ सिखाता है। लगता है आपने इस्लाम की स्टीडीज अधूरी पडी है। आप इस्लाम की तालीम नफरतो को मजहबी दुश्मनी को पीछे छोडकर तब पडो इन्सानियत की दृष्टि से। और प्लीज request ये है आधे अधूरी आयते( श्लोक) पड कर बाकी हिन्दुओ की तरह गलत मतलब ना निकाले। और अब आप अपनी सफाई मे अपनी बात बडी करने के लिए हक और सही चीज को ना देखते हुए लिखेगे कि मुस्लमान ही झूठ बोलते है गाली देते है। मगर मेरे भाई बेबुनियाद इल्जाम लगाने से कुछ नही होता।

        1. और रही बात चांद के दो टुकडे करने की इसके बारे मुझे मालूम नही पूछ कर बतलाऊगा।
          हनुमान ने सूरज निगला था। अगर मै भी कहू कि हनुमान क्या सूरज निगल सकता है। क्योकि आप तो सभी भगवाने को मनुष्य का रूप कहते हो। मतलब आदमी। तो बताओ आदमी कैसे सूरज निगल सकता है। अब ये मत कहना उन्होने भगवान का रूप धारण कर लिया था। और अगर ऐसा कहोगे तो फिर इस सवाल का भी जवाब चाहिए सीता को लाने के लिए पुल बनाने की क्या जरूरत थी। उड के नही ला सकते थे। हिम्मत है तो जवाब दो।

          1. बंधुवर आपको लगता है वैदक धर्म की समझ नहीं है आपके निम्नलिखत वाक्य इसे प्रदर्शित करंता है :
            “आप तो सभी भगवाने को मनुष्य का रूप कहते हो। मतलब आदमी। तो बताओ आदमी कैसे सूरज निगल सकता है। ”

            वैदिक धर्म न तो अवतारवाद में विश्वास रखता है न ही चमक्त्कारों में
            प्रकृति के नियम अटल हैं उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता

            वैदिक धर्म तौहीद को मानता है

        2. बंधू इस्लाम शांति का मजहब है या नहीं ये इतिहास से ही सिध्ध होता है मुहम्मद साहब और उनके अनुयायिओं के व्यवहार इसको प्रदर्शित करते हैं
          उदहारण के लिए :
          नास से रिवायत है कि मुहम्मद साहब ने एक अभियान खैबर की तरफ रवाना किया. हमने सुबह की नमाज अदा की . मुहम्मद साहब और अबु ताल्हा घोड़े पर सवार हो गए. मैं ( अनास ) अबू ताल्हा के पीछे बैठा था. हम खैबर की तंग गलियों में घुस गए .जैसे ही वो निवास स्थान पर पहुंचे जो अल्लाह हु अबकर जोर बोला. खैबर तबाह हो चूका था .हम लोगों के मध्य में थे जिनको पहले सचेत किया जा चूका था. लोग जब दैनिक कर्म के लिए बाहर निकले तो पता चला कि मुहम्मद साहब ने अपनी सेना के साथ कब्ज़ा कर लिया है .मुहम्मद साहब ने कहा की खैबर की भूमि अब हमारे स्वामित्व में है हमने बलपूर्वक इसे ले लिया है . लोग अब युद्ध बंदी थे . हदीस आगे कहती है कि दिह्या मुहम्मद साहब के पास आकर बोला कि अल्लाह के रसूल मुझे बंदियों की लड़कियों में से एक लड़की दे दीजिये. मुहम्मद साहब ने कहा कि जाओ और किसी को भी ले लो . उसने हुयायाय की लड़की साफिया को पसंद किया . एक व्यक्ति ने मुहम्मद साहब के पास आकर कहा की आपने दिह्या को दे दिया वो केवल आपके लिए है . मुहम्मद साहब ने कहा की साफिया को दिह्या के साथ बुलाया जाए . मुहम्मद साहब के साफिया को देखकर कहा कि दिह्या कोई दूसरी लड़की ले लो और मुहम्मद साहब ने साफिया को मुक्त कर उससे निकाह कर कर लिया .

          Read more at Aryamantavya: इस्लाम शान्ति का मज़हब! http://wp.me/p6VtLM-24I

          अब इसे क्या कहा जाये

  23. OUM..
    NAMASTE…
    NAFEES CHAACHAA, SABSE PAHALE TO AAP EK MANUSHYA BANO…MANUSHYA KE MAANE KYAA HOTI HAI THODI PADH LENAA JI… AUR ACHHE BHAARATIYA BANO, BHAARAT KO PYAAR KARO NAAKI MAKKAA-MADINE KI…APNAA NAAM BHI BHAARATIYA JAISAA RAKHO…APNI POSHAAK BHI BHAARATIYA JAISI PAHNAA KARO…
    PAIDAA HUE BHARAT ME, PALE BADHE PADHE BHARAT ME KHAATE HO BHARAT KI ROTI AUR GUNGAAN KARTE HO ARAB KI ?!!! AAP KO PATAA BHI HAI KI ARAB KI MAANE KYAA HAI? ISLAAM KI SHABD BHI SANSKRIT SE BANAA HAI…
    AAJAAO APNI MOOL VAIDIK RAASTE ME…AAP KI PURKHON KO KIS TARAHA MUSALMAAN BANAAYAA GAYAA JARAA SAMJHO….ACHCHHAA…JI…
    MNAMASTE…

    1. @ इस्लामिक बंधुओं से निवेदन है कि कृपया भाषा का संयम बनाये रखें
      स्वस्थ चर्चा के लिए यह आवश्यक है

        1. जिन्होंने अपशब्दों का प्रयोग किया उनके लिए ही लिखा

        1. किसी एक गलत इंसान की वजह से आप इस्लाम को गलत नही कह सकते । अगर आप ऐसा कहेगे तो आप दुनिया के सबसे बडे बेवकूफ हो

          1. अफगानिस्तान, लीबिया सीरीय , इराक इरान में जो हो रहा है वो प्रत्यक्ष उदारहण हैं जो हो रहा है उसका

          1. sana ji
            hamare liye pura vishwa hi pariwaar ke saman hai. aur ham apane bhatke huye pariwaar ko saty ki aor le jaana chahte hain. example 2+2=5 aisa bahut bolte hain aur ham jaankaari dete hain 2+2=4 hote hain. fir bhi koi ise swikaar kare yaa naa kare. ham apana kartavya kaa paaln kar rahe hain jaankaari dekar. ab jise saty lage ve apanye apani maarg ko nahi to ve soch aapki vichaar aapki.. dhanywaad

  24. आप सभी गैर मुस्लिमो से निवेदन है कि आप (गैर मुस्लिमो मे गलतफैमिया) ये लिंक पढे

      1. अमित जी मैने आपसे पहले भी कहा है और अब भी कहूगा कि अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है। ये आपकी काट छाट के ली गयी अधूरी आयते है। जो अपने आप मे बेवकूफी का प्रमाण है। मै बताता हू जिस तरीके से कुरान मे लिखा है कि (नमाज मत पढो ,जब तुम नशे की हालत मे हो।) अब अगर तुम इसमे से सिर्फ ये लाइन उठा लो (नमाज मत पढो) और मुस्लिमो को बदनाम करो। तो इसका मतलब कुरान मे कमी नही आप मे कमी है। और मेरे भाई आप बहुत गलत कर रहे हो कुरान पर आधी अधूरी बाते पढकर इल्जाम लगाये ही जा रहे हो। आप मुस्लिमो को कुछ भी कह सकते हो। मगर कुरान को नही। इसमे आपका ही फायदा है। नही तो अल्लाह के घर मे देर है अंधेर नही। फिर वो दिन भी दूर नही जब तुम पर बहुत सख्त अजाब आयेगा। तुम सोच भी नही सकते। भाई तौबा करो अल्लाह पाक से अभी भी वक्त है। बेसक अल्लाह माफ करने वाले है।

        1. जनाब लगता है यहाँ भी आपका ज्ञान अधुरा है
          कुरान कि आयतें किस तरह शराब बंदी को लेके नाजिल हुयी हैं वो अल्लाह कि कम समझ को ही दर्शाती हैं
          शायद आपको इसका पता नहीं है

            1. में आपसे वही कह रहा हूँ समयानुसार और परिस्तिथि अनुसार अल्लाह मियां/रसूल अपने नियम और कायदे बदलते रहे
              पहले शराब पूरी तरह बंद नहीं थी , फिर नमाज़ के समय बंद हुयी उसके बाद शराब कि कुछ किस्म को बंद करने का पैगाम रसूल ने दिया कि ये अल्लाह ने कहा है
              यदि शराब गलत थी तो पहले ही आदेश दे देना चाहिये था कि पूरी तरह बंद है
              🙂

  25. इस्लाम आ चुका है आपके जीवन में
    एक हिंदू भाई ने घोषित कर दिया कि इस्लाम हिंदू धर्म की छाया प्रति है।
    आज कहना सबके लिए आसान हो गया है। इसीलिए कोई कुछ भी कह सकता है।
    अगर कुछ साधारण सी बातों पर भी विचार कर लिया जाए तो उन्हें अपनी ग़लती आसानी से समझ में आ सकती है और अगर वे न समझें तब भी कम से कम दूसरों की समझ में तो आ ही जाएगी।
    1. हिंदू धर्म की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा आज तक तय नहीं है जबकि इस्लाम की परिभाषा तय है।
    2. हिंदू भाई बहनों के लिए कर्तव्य और अकर्तव्य कुछ भी निश्चित नहीं है। एक आदमी अंडा तक नहीं छूता और अघोरी इंसान की लाश खाते हैं जबकि दोनों ही हिंदू हैं।
    जबकि एक मुसलमान के लिए भोजन में हलाल हराम निश्चित है।3. हिंदू मर्द औरत के लिए यह निश्चित नहीं है कि वे अपने शरीर को कितना ढकें ?, एक अपना शरीर ढकता है और दूसरा पूरा नंगा ही घूमता है।
    जबकि मुस्लिम मर्द औरत के लिए यह निश्चित है कि वे अपने शरीर का कितना अंग ढकें ?
    4. हिंदू के लिए उपासना करना अनिवार्य नहीं है बल्कि ईश्वर के अस्तित्व को नकारने के बाद भी लोग हिंदू कहलाते हैं।
    जबकि मुसलमान के लिए इबादत करना अनिवार्य है और ईश्वर का इन्कार करने के बाद उसे वह मुस्लिम नहीं रह जाता।
    5. केरल के हिंदू मंदिरों में आज भी देवदासियां रखी जाती हैं और औरतों द्वारा नाच गाना तो ख़ैर देश भर के हिंदू मंदिरों में होता है। इसे ईश्वर का समीप पहुंचने का माध्यम माना जाता है।
    जबकि मस्जिदों में औरतों का तो क्या मर्दों का भी नाचना गाना गुनाह और हराम है और इसे ईश्वर से दूर करने वाला माना जाता है।6. हिंदू धर्म ब्याज लेने से नहीं रोकता जिसकी वजह से आज ग़रीब किसान मज़दूर लाखों की तादाद में मर रहे हैं।
    जबकि इस्लाम में ब्याज लेना हराम है।
    7. हिंदू धर्म में दान देना अनिवार्य नहीं है। जो देना चाहे, दे और जो न देना चाहे तो वह न दे और कोई चाहे तो दान में विश्वास ही न रखे।
    जबकि इस्लाम में धनवान पर अनिवार्य है कि वह हर साल ज़रूरतमंद ग़रीबों को अपने माल में से 2.5 प्रतिशत ज़कात अनिवार्य रूप से दे। इसके अलावा फ़ितरा आदि देने के लिए भी इस्लाम में व्यवस्था की गई है।
    8. हिंदू धर्म में ‘ब्राह्मणों को दान‘ देने की ज़बर्दस्त प्रेरणा दी गई है।
    जबकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह व्यवस्था दी है कि हमारी नस्ल में से किसी को भी सदक़ा-ज़कात मत देना। दूसरे ग़रीबों को देना। हमारे लिए सदक़ा-ज़कात लेना हराम है।9. सनातनी हिंदू हों या आर्य समाजी, दोनों ही मानते हैं कि वेद के अनुसार पति की मौत के बाद विधवा अपना दूसरा विवाह नहीं कर सकती।
    जबकि इस्लाम में विधवा को अपना दूसरा विवाह करने का अधिकार है बल्कि इसे अच्छा समझा गया है कि वह दोबारा विवाह कर ले।
    10. सनातनी हिंदू हों या आर्य समाजी, दोनों ही यज्ञ करने को बहुत बड़ा पुण्य मानते हैं।
    जबकि इस्लाम में यह पाप माना गया है कि आग में खाने पीने की चीज़ें जला दी जाएं। खाने पीने की चीज़ें या तो ख़ुद खाओ या फिर दूसरे ज़रूरतमंदों को दे दो। ऐसा कहा गया है।
    11. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों ही वर्ण व्यवस्था को मानते हैं और वर्णों की ऊंच नीच और छूत छात को भी मानते हैं।
    जबकि इस्लाम में न वर्ण व्यवस्था है और न ही छूत छात। इस्लाम सब इंसानों को बराबर मानता है और आजकल हिंदुस्तानी क़ानून भी यही कहता है और हिंदू भाई भी इसी इस्लामी विचार को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।12. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों ही वैदिक धर्म की परंपरा का पालन करते हुए चोटी रखते हैं और जनेऊ पहनते हैं।
    जबकि इस्लाम में न तो चोटी है और न ही जनेऊ
    13. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों ही वेद के अनुसार 16 संस्कार को मानते हैं, जिनमें एक विवाह भी है। इस संस्कार के अनुसार पत्नी अपने पति के मरने के बाद भी उसी की पत्नी रहती है और उससे बंधी रहती है। पति तो पत्नी का परित्याग कर सकता है लेकिन पत्नी उसे त्याग नहीं सकती।
    जबकि इस्लाम में निकाह एक क़रार है जो पति की मौत से या तलाक़ से टूट जाता है और इसके बाद औरत उस मर्द की पत्नी नहीं रह जाती। वह अपनी मर्ज़ी से अपना विवाह फिर से कर सकती है। इस्लाम में पति तलाक़ दे सकता है तो पत्नी के लिए भी पति से मुक्ति के लिए ख़ुलअ की व्यवस्था की गई है।
    अब हो यह रहा है कि सनातनी और आर्य समाजी, दोनों ही ख़ुद वेद की व्यवस्था से हटकर इस्लामी व्यवस्था को फ़ोलो कर रहे हैं। विधवाओं के पुनर्विवाह वे धड़ल्ले से कर रहे हैं। जब मुसलमानों ने अपने निकाह को विवाह की तरह संस्कार नहीं बनाया तो फिर हिंदू भाई अपने संस्कार को इस्लामी निकाह की तरह क़रार क्यों और किस आधार पर बना रहे हैं ?
    जिस व्यवस्था पर विश्वास है, उस पर चलने के बजाय वे इस्लामी व्यवस्था का अनुकरण क्यों कर रहे हैं ?14. विवाह को संस्कार मानने का नतीजा यह हुआ कि विधवा औरतों को हज़ारों साल तक बड़ी बेरहमी से जलाया जाता रहा। यहां तक कि इस देश में मुसलमान और ईसाई आए और उनके प्रभाव और हस्तक्षेप से हिंदुओं की चेतना जागी कि सती प्रथा के नाम पर विधवा को जलाना धर्म नहीं बल्कि अधर्म है और तब उन्होंने अपने धर्म को उनकी छाया प्रति बना लिया और लगातार बनाते जा रहे हैं।
    15. विवाह की तरह ही गर्भाधान भी एक हिंदू संस्कार है। जब किसी पति को गर्भाधान करना होता है या अपनी पत्नि से किसी अन्य पुरूष का नियोग करवाना होता है तो वह 4 पंडितों को बुलवाता है और वे चारों पंडित पूरे दिन बैठकर वेदमंत्र पढ़ते हैं। उसके घर में खाते पीते हैं। उसके घर में यज्ञ करते हैं। उस यज्ञ से बचे हुए घी को मलकर औरत नहाती है और फिर पूरी बस्ती में घूम घूम कर बड़े बूढ़ों को बताती है कि आज उसके साथ क्या होने वाला है ?
    बड़े बूढ़े अपनी अनुमति और आशीर्वाद देते हैं, तब जाकर पति महाशय या कोई अन्य पुरूष उस औरत के साथ वेद के अनुसार सहवास करता है।

  26. जबकि इस्लाम में गर्भाधान संस्कार ही नहीं है और पत्नि को किसी ग़ैर मर्द के साथ सोने के लिए बाध्य करना बहुत बड़ा जुर्म और गुनाह है।
    मुसलमान पति पत्नी जब चाहे सहवास कर सकते हैं। शोर पुकार मचाकर लोगों को इसकी इत्तिला देना इस्लाम में असभ्यता और पाप है।
    आजकल हिंदू भाई भी इसी रीति से अपनी पत्नियों को गर्भवती कर रहे हैं क्योंकि यही रीति नेचुरल और आसान है।
    धर्म सदा ही नेचुरल और आसान होता है।
    मुश्किल में डालने वाली चीज़ें ख़ुद ही फ़ेल हो जाती हैं। लोग उनका पालन करना चाहें तो भी नहीं कर पाते। शायद ही आजकल कोई गर्भाधान संस्कार करता हो। इस्लामी रीति से पैदा होने के बावजूद इस्लाम पर नुक्ताचीनी करना केवल अहसानफ़रामोशी है। जिसका कारण अज्ञानता है।
    16. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों के नज़्दीक धर्म यह है कि पत्नि से संभोग तब किया जाए जबकि उससे संतान पैदा करने की इच्छा हो। इसके बिना संभोग करने वाला वासनाजीवी और पतित-पापी माना जाता है।जबकि इस्लाम में इस तरह की कोई पाबंदी नहीं है। इस्लामी व्यवस्था यही है कि पति पत्नी जब चाहें तब आनंद मनाएं। उन्हें आनंदित देखकर ईश्वर प्रसन्न होता है। आजकल हिंदू भाई भी इसी इस्लामी व्यवस्था पर चल रहे हैं।
    18. शंकराचार्य जी के अनुसार हरेक वर्ण और लिंग के लिए वेद को पढ़ने और पढ़ाने की आज़ादी नहीं है।
    जबकि क़ुरआन सबके लिए है। किसी भी रंगो-नस्ल के नर नारी इसे जब चाहें तब पढ़ सकते हैं।
    19. आर्यसमाजी और सनातनी महिलाओं को मासिक धर्म में शास्तों के अनुसार अपवित्र समझते थे,,, इस्‍लाम की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उन्‍हें अब उतना अपवित्र नहीं मानते, बल्कि आगे बढकर उनके साथ स्‍कूल आफिस आदि में साथ खाना पीना हाथ मिलाने में कोई बुराई नहीं समझते
    इस्‍लामकि व्‍यवस्‍था में आदम की ब‍ेटियों को इन दिनों सेक्‍स की तकलीफ से बचाने के साथ ही नमाज एवं रोजे में छूट भी मिली है,,, हमें मार्ग दर्शन के लिए उनके साथ उठने बैठने चुमने की हदीसें मौजूद हैं20. इसी के साथ हिंदू धर्म अर्थात वैदिक धर्म में चार आश्रम भी पाए जाते हैं।
    ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम
    अति संक्षेप में 8वें वर्ष बच्चे का उपनयन संस्कार करके उसे वेद पढ़ने के लिए गुरूकुल भेज दिया जाए और बच्चा 25 वर्ष तक वीर्य की रक्षा करे। इसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहते हैं। लेकिन हमारे शहर का संस्कृत महाविद्यालय ख़ाली पड़ा है। शहर के हिंदू उसमें अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते ही नहीं जबकि शहर के कॉन्वेंट स्कूल हिंदू बच्चों से भरे हुए हैं। जहां सह शिक्षा होती है और जहां वीर्य रक्षा संभव ही नहीं है, जहां वेद पढ़ाए ही नहीं जाते,
    जहां धर्म नष्ट होता है, हिंदू भाई अपने बच्चों को वहां क्यों भेजते हैं ?
    ख़ैर हमारा कहना यह है कि आजकल हिंदू भाई ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन नहीं करते और न ही वे 50 वर्ष का होने पर वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल जाते हैं और सन्यास आश्रम भी नष्ट हो चुका है।आज हिंदू धर्म के चारों आश्रम नष्ट हो चुके हैं और हिंदू भाई अब अपने घरों में आश्रम विहीन वैसे ही रहते हैं जैसे कि मुसलमान रहते हैं क्योंकि इस्लाम में तो ये चारों आश्रम होते ही नहीं।
    ज़रा सोचिए कि अगर इस्लाम हिंदू धर्म की छाया प्रति होता तो उसमें भी वही सब होता जो कि हिंदू धर्म में हज़ारों साल से चला आ रहा है और उन बातों से आज तक हिंदू जनमानस पूरी तरह मुक्ति न पा सका।
    चार आश्रम, 16 संस्कार, विधवा विवाह निषेध, नियोग, वर्ण-व्यवस्था, छूत छात, ब्याज, शूद्र तिरस्कार, देवदासी प्रथा, ईश्वर के मंदिर में नाच गाना, चोटी, जनेऊ और ब्राह्मण को दान आदि जैसी बातें जो कि हिंदू धर्म अर्थात वैदिक धर्म में पाई जाती हैं, उन सबसे इस्लाम आखि़र कैसे बच गया ?
    इन बातों के बिना इस्लाम को हिंदू धर्म की छाया प्रति कैसे कहा जा सकता है ?हक़ीक़त यह है कि इस्लाम किसी अन्य धर्म की छाया प्रति नहीं है बल्कि ख़ुद ही मूल धर्म है और पहले से मौजूद ग्रंथों में धर्म के नाम पर जो भी अच्छी बातें मिलती हैं वे उसके अवषेश और यादगार हैं, जिन्हें देखकर लोग यह पहचान सकते हैं कि इस्लाम सनातन काल है, हमेशा से यही मानव जाति का धर्म है।
    ईश्वर के बहुत से नाम हैं। हरेक ज़बान में उसके नाम बहुत से हैं। उसके बहुत से नामों में से एक नाम ‘अल्लाह‘ है। यह नाम क़ुरआन में भी है और बाइबिल में भी और संस्कृत ग्रंथों में भी।ईश्वर का निज नाम यही है लेकिन उसके निज नाम को ही भुला दिया गया। ईष्वर के नाम को ही नहीं बल्कि यह भी भुला दिया गया कि सब एक ही पिता की संतान हैं। सब बराबर हैं। जन्म से कोई नीच और अछूत है ही नहीं। ऐसा तब हुआ जब आदम और नूह (अ.) को भुला दिया गया जिनका नाम संस्कृत ग्रंथों में जगह जगह आया है। इन्हें यहूदी, ईसाई और मुसलमान सभी पहचानते हैं। हिंदू भाई इन्हें ऋषि कहते हैं और मुसलमान इन्हें नबी कहते हैं। इनके अलावा भी हज़ारों ऋषि-नबी आए और हर ज़माने में आए और हर क़ौम में आए। सबने लोगों को यही बताया कि जिसने तुम्हें पैदा किया है तुम्हारा भला बुरा बस उसी एक के हाथ में है, तुम सब उसी की आज्ञा का पालन करो। ऋषियों और नबियों ने मानव जाति को हरेक काल में एक ही धर्म की शिक्षा दी। । वे सिखाते रहे और लोग भूलते रहे। आखि़रकार पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस दुनिया में आए और फिर उसी भूले हुए धर्म को याद दिलाया और ऐसे याद दिलाया कि अब किसी के लिए भूलना मुमकिन ही न रहा।
    जब दबंग लोगों ने कमज़ोरों का शोषण करने के लिए धर्म में बहुत सी अन्यायपूर्ण बातें निकाल लीं, तब ईश्वर ने क़ुरआन के रूप में अपनी वाणी का अवतरण पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अन्तःकरण पर किया और पैग़म्बर साहब ने धर्म को उसके वास्तविक रूप में स्थापित कर दिया। जिसे देखकर लोगों ने ऊंच नीच, छूतछात और सती प्रथा जैसी रूढ़ियों को छोड़ दिया। बहुतों ने इस्लाम कहकर इस्लाम का पालन करना आरंभ कर दिया और उनसे भी ज़्यादा वे लोग हैं जिन्होंने इस्लाम के रीति रिवाज तो अपना लिए लेकिन इस्लाम का नाम लिए बग़ैर। इन्होंने इस्लामी उसूलों को अपनाने का एक और तरीक़ा निकाला। इन्होंने यह किया कि इस्लामी उसूलों को इन्होंने अपने ग्रंथों में ढूंढना शुरू किया जो कि मिलने ही थे। अब इन्होंने उन्हें मानना शुरू कर दिया और दिल को समझाया कि हम तो अपने ही धर्म पर चल रहे हैं।
    ये लोग हिंदू धर्म के प्रवक्ता बनकर घूमते हैं। ऐसे लोगों को आप आराम से पहचान सकते हैं। ये वे लोग हैं जिनके सिरों पर आपको न तो चोटी नज़र आएगी और न ही इनके बदन पर जनेऊ और धोती। न तो ये बचपन में ये गुरूकुल गए थे और न ही 50 वर्ष का होने पर ये जंगल जाते हैं। हरेक जाति के आदमी से ये हाथ मिलाते हैं। फिर भी ये ख़ुद को वैदिक धर्म का पालनकर्ता बताते हैं।
    ख़ुद मुसलमान की छाया प्रति बनने की कोशिश कर रहे हैं और कोई इनकी चालाकी को न भांप ले, इसके लिए ये एक इल्ज़ाम इस्लाम पर ही लगा देते हैं कि ‘इस्लाम तो हिंदू धर्म की छायाप्रति है‘
    ये लोग समय के साथ अपने संस्कार और अपने सिद्धांत बदलने लगातार बदलते जा रहे हैं और वह समय अब क़रीब ही है जब ये लोग इस्लाम को मानेंगे और तब उसे इस्लाम कहकर ही मानेंगे।
    तब तक ये लोग यह भी जान चुके होंगे कि ईश्वर का धर्म सदा से एक ही रहा है। ‘
    एक ईश्वर की आज्ञा का पालन करना‘ ही मनुष्य का सनातन धर्म है। अरबी में इसी को इस्लाम कहते हैं। इस्लाम का अर्थ है ‘ईश्वर का आज्ञापालन।‘
    इसके अलावा मनुष्य का धर्म कुछ और हो भी कैसे सकता है ?
    वर्ण व्यवस्था जा चुकी है और इस्लाम आ चुका है।
    जिसे जानना हो, वह जान ले !

  27. बेशक इस्लाम औरत को हुक्म देता है कि वह पर्दे में रहे। दुनिया के सामने अपने जिस्म और खूबसूरती की नुमाइश (प्रदर्शन) न करें सिवाय उसके शौहर (पति) के। क्यों इस्लाम ने सिर्फ औरतों को ही पर्दे में रहने का हुक्म दिया? क्यों सारी पाबंदियां सिर्फ औरतों के लिए ही हैं? क्यों मर्दों के लिए इस्लाम पर्दे का हुक्म नहीं देता? क्यों इस्लाम में मर्दों पर किसी भी तरह की पाबंदी नहीं हैं? लगता हैं इस्लाम एक पुराना और रूढ़िवादी धर्म हैं।कुछ अज्ञानी लोग बिना इस्लाम को पढ़े और समझें इस्लाम पर इस तरह के बेहूदा इल्जाम लगाने से नहीं चूकते। हालांकि इससे इस्लाम को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस्लाम का प्रत्येक कानून प्रत्येक कसौटी (criterion) पर खरा उतरता हैं चाहे वो सामाजिक कसौटी (Social criterion) हो, तार्किक कसौटी (logical criterion) हो या फिर वैज्ञानिक कसौटी (Scientific criterion) हो। फिर भी इन बेतुके सवालों के जवाब देने जरूरी हैं ताकि सच्चाई सबके सामने आ सकें।इस्लाम में पर्दे का हुक्म सिर्फ औरतों के लिए ही नहीं बल्कि मर्दों के लिए भी हैं। जैसा कि कुरान ए पाक में लिखा है; “ऐ नबी (मुहम्मद साहब स.अ.व.) कह दो मोमिन (मुसलमान) मर्दों से की अपनी नजरें नीची रखे और अपनी शर्मगाहो (शरीर के खास अंगों) की हिफाजत करें, ये उनके लिए बेहतर हैं” कुरान (24 :30)कुरान की इस आयत के जरिये अल्लाह (ईश्वर) मुसलमान मर्दों को यह हुक्म दे रहा है कि वे अपनी नजरें नीची रखे और अपनी शर्मगाहो (शरीर के खास अंगों) की हिफाजत करें क्योंकि इसी में उनकी भलाई हैं। यहाँ नजरें नीची रखने का सम्बन्ध पर्दे से ही हैं पर कुछ लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता हैं कि नजरें नीची रखने से पर्दा कैसे हुआ? तो आइये इस सवाल का जवाब हम विज्ञान से ही पूछ लेते हैं क्योंकि हो सकता हैं कि इस्लाम के तर्क (logics) को कुछ लोग कुबुल ना करे।अमेरिका की एक मशहूर Anthropologist (मानव विज्ञानी) जिसका नाम Helen Fisher हैं पिछले 30 सालों से Rutger University, America में Anthropology (मानव विज्ञान) की professor हैं और Human Behaviour (मानव व्यवहार) पर रिसर्च कर रही हैं और इसी विषय पर कई किताबें भी लिख चुकी हैं। उसने अपने रिसर्च से बताया कि इन्सान के शरीर में कुछ हार्मोन (hormones) होते हैं जैसे Testosterone और Estrogens और दिमाग में कुछ neurotransmitters (रसायन) होते हैं जैसे Dopamine और Serotonin और ये औरतों

    और वह कहती हैं कि जब भी किसी मर्द की नजर किसी औरत पर पड़ती हैं तो ये हार्मोन और रसायन active (सक्रिय) हो जाते हैं और फिर मर्द उस औरत को देखकर उत्तेजित हो जाता हैं। और ऐसा तब होता हैं जब या तो औरत बहुत खूबसूरत (Charming) हो या उसका जिस्म का उभार (Figure) दिखाई देता हो। और ऐसा सिर्फ इन्सानो में ही नहीं बल्कि पक्षियों और जानवरों में भी होता हैं। आपने सुना भी होगा और देखा भी होगा कि जब कोई हाथी पागल हो जाता है तो वह तबाही मचाने लग जाता हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि वह हाथी पागल नहीं होता है वह तो ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसमें Testosterone की मात्रा बहुत बढ़ जाती हैं। (Kohraam.com)

    इसी तरह एक शेर दूसरे शेरों के बच्चों को मार देता है ताकि शेरनी उसकी तरफ (Mating) के लिए आकर्षित हो जाए। और सभी प्रकार के नर जानवर मादा को पाने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। John Hopkins University के वैज्ञानिकों ने पक्षियों के व्यवहार पर रिसर्च किया और मालूम किया कि नर पक्षी गाना गाते हैं मतलब अलग अलग तरह की आवाजें निकालते हैं ताकि वे मादा पक्षियों को आकर्षित कर सकें।
    तो विज्ञान के मुताबिक औरतों (मादाओं) के जिस्म और खूबसूरती को देखकर मर्द (नर) उत्तेजित हो जाते हैं। अगर मर्दों को औरतों की तरफ आकर्षित होने से रोकना है तो औरतें अपनी खूबसूरती व जिस्म को पर्दे में रखें और मर्द भी औरतों को न घुरे तो समाज बहुत सी बुराइयों से बच जाएगा। सामाज के मान मरयादा की रक्षा और उसे बिखरने से बचाने के लिए इस्लाम ने हुक्म दिया है कि महिलाएं अपने आप को पर्दे में रखे और मर्द अपनी नजरें नीची रखे मतलब औरतों को न घुरें। तो यह साबित हो गया कि इस्लाम ने सिर्फ औरतों को ही नहीं बल्कि मर्दों को भी पर्दा करने का हुक्म दिया हैं और इसी में इन्सानो और समाज की भलाई हैं।

  28. इस्लाम की तीन बुनियादी आस्थाएं हैं-
    १. एकेश्वरवाद ( तौहिद )
    इस्लाम की बुनियादी आस्थाओ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है एक ईश्वर में आस्था ।
    २. ईशदूत वाद ( रिसालत )
    इन्सानो के व्यवहारिक मार्गदर्शन के लिए ईश्वर हर युग में आवश्यकतानुसार संदेशवाहक भेजता रहा जो ईश्वर प्रदत्त ज्ञान की ज्योति द्वारा अपने कार्यक्षेत्र मे मनुष्यो का मार्गदर्शन करते रहे ।
    ३. परलोकवाद ( आख़िरत )
    संसार में मनुष्य अनुत्तरदायी बनाकर नहीं छोड़ा गया है । वह ईश्वर के सामने जवाबदेह है । एक दिन होगा जब मनुष्य के कर्मो की जाँच पड़ताल होगी ।’इस्लाम’ अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है आज्ञापालन, शांति और सुव्यवस्था । पारिभाषिक रूप से इस्लाम एक ईश्वर के आज्ञापालन को कहते है, जिससे शांति और सुव्यवस्था उत्तपन्न होती है
    इस्लाम, कुरआन और हज़रत मुहम्मद ( सल्ल.) के बारे में हमारे समाज में तरह-तरह की गलतफहियां पाई जाती है । कहा जाता है कि इस्लाम की शुरुआत मुहम्मद (सल्ल.) से हुई और कुरआन आपकी वाणी है। सत्य ये है कि इस्लाम ईश्वरीय धर्म है, जो आदम ( मनु ) से पर्ारंभ हुआ ।यह सभी धर्मगुरूओ का धर्म रहा है। मुहम्मद (सल्ल.) पर तो आकर यह धर्म पूर्ण हुआ और हर देश, हर जाति, हर वर्ग और हर समय और हर समाज के लिए यही अंतिम और सम्पूर्ण विधि-व्यवस्था और जीवन-व्यवस्था और जीवन-व्यवस्था हैइस्लाम देश में हिंसा (फसाद) करने की इजाज़त नहीं देता । देखिये अल्लाह का यह आदेश :
    “लोगो को उनकी चीजें कम न दिया करो और मुल्क में फ़साद न करते फिरो ।”
    (क़ुरआन, सूरह -26, आयत -183)”दीने-इस्लाम (इस्लाम धर्म) में ज़बरदस्ती नहीं है ।”
    (क़ुरआन, सूरह -2, आयत – 256)”तुम मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि एक दूसरे पर दया न करो” । सहबियों ने कहा कि हममें से प्रत्येक दयाशील है । नबी (सल्ल.) ने कहा, “मेरा आशय यह नहीं है कि तुममे से कोई अपने साथी पर दया करे बल्कि मेरा अभिप्राय सार्वजनिक दयालुता से है।”
    कथन हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) हदीस : तबरानी

    हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) का कथन है कि “सम्पूर्ण सृष्टि अल्लाह का परिवार है, और अल्लाह को सबसे अधिक प्रिय वह व्यक्ति है जो उसके परिवार के साथ अच्छा व्यवहार करे”

  29. Assalamu a’laikum

    ☆ इस्लाम आतंक या आदर्श –
    स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य
    » NonMuslim View About Islam:
    स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य
    #_इस्लाम_आतंक_या_आदर्श –
    यह पुस्तक कानपुर के स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने लिखी है।
    – इस पुस्तक में स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है। स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य के साथ दिलचस्प वाकिया जुड़ा हुआ है।
    * वे अपनी इस पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं- मेरे मन में यह गलत धारणा बन गई थी कि इतिहास में हिन्दु राजाओं और मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मारकाट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम है। मेरा दिमाग भ्रमित हो चुका था।* इस भ्रमित दिमाग से हर आतंकवादी घटना मुझे इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी। इस्लाम, इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैंने एक पुस्तक लिख डाली-‘इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास’ जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ।
    *पुस्तक में स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य आगे लिखते हैं –
    जब दुबारा से मैंने सबसे पहले मुहम्मद (सल्ललाहु आलैही वसल्लम) की जीवनी पढ़ी।
    – जीवनी पढऩे के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अंत तक पढ़ी, तो मुझे कुरआन मजीद के आयतों का सही मतलब और मकसद समझने में आने लगा।
    – सत्य सामने आने के बाद मुझ अपनी भूल का अहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इस कारण ही मैंने अपनी उक्त किताब-‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा है जिसका मुझे खेद है# लक्ष्मी शंकराचार्य अपनी पुस्तक की भूमिका के अंत में लिखते हैं –
    मैं अल्लाह से,पैगम्बर मुहम्मद (सल्ललल्लाहु अलेह वसल्लम) से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं तथा अज्ञानता में लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूं। सभी जनता से मेरी अपील है कि ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ पुस्तक में जो लिखा है उसे शून्य समझे।
    – एक सौ दस पेजों की इस पुस्तक-इस्लाम आतंक? या आदर्श में शंकराचार्य ने खास तौर पर कुरआन की उन चौबीस आयतों का जिक्र किया है जिनके गलत मायने निकालकर इन्हें आतंकवाद से जोड़ा जाता है।
    – उन्होंने इन चौबीस आयतों का अच्छा खुलासा करके यह साबित किया है कि किस साजिश के तहत इन आयतों को हिंसा के रूप में दुष्प्रचारित किया जा रहा है।*स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक में मौलाना को लेकर इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं:
    – इस्लाम को नजदीक से ना जानने वाले भ्रमित लोगों को लगता है कि मुस्लिम मौलाना, गैर मुस्लिमों से घृणा करने वाले अत्यन्त कठोर लोग होते हैं। लेकिन बाद में जैसा कि मैंने देखा, जाना और उनके बारे में सुना, उससे मुझे इस सच्चाई का पता चला कि मौलाना कहे जाने वाले मुसलमान व्यवहार में सदाचारी होते हैं, अन्य धर्मों के धर्माचार्यों के लिए अपने मन में सम्मान रखते हैं।
    – साथ ही वह मानवता के प्रति दयालु और सवेंदनशील होते हैं। उनमें सन्तों के सभी गुण मैंने देखे। इस्लाम के यह पण्डित आदर के योग्य हैं जो इस्लाम के सिद्धान्तों और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं, गुणों का सम्मान करते हैं। वे अति सभ्य और मृदुभाषी होते हैं।ऐसे मुस्लिम धर्माचार्यों के लिए भ्रमवश मैंने भी गलत धारणा बना रखी थी।
    – उन्होंने किताब में ना केवल इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियों दूर करने की बेहतर कोशिश की है बल्कि इस्लाम को अच्छे अंदाज में पेश किया है।
    – अब तो स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य देश भर में घूम रहे हैं और लोगों की इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियां दूर कर इस्लाम की सही तस्वीर लोगों के सामने पेश कर रहे हैं।
    # स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी की विडियो के लिए इन लिंक्स पर जाये –Khurram
    Talib e dua’a

  30. मुस्लमान क़ाबा की पूजा करते है।
    सवाल : —– ज़ब इस्लाम मूर्ती पूजा के विरुद्ध है, तो फिर इसका क्या कारण है, कि मुसलमान अपनी नमाज़ में क़ाबा की और झुकते है, और क़ाबा की पूजा करते है ?
    जवाब : —– ” काबा ” क़िबला है, अर्थात वह दिशा जिधर मुसलमान नमाज़ के समय अपने चेहरे का रुख करते है। यह बात सामने रहनी चाहिए कि यधपि मुसलमान अपनी नमाजो में क़ाबा की और अपना रुख करते है, लेकिन काबा की पूजा नही करते है। मुसलमान एक अल्लाह के सिवा किसी की पूजा (इबादत) नही करते और न ही किसी के सामने झुकते है।
    पवित्र कुरआन में कहा गया है —
    ” हम तुम्हारे चेहरो को आसमान की और उलटते – पलटते देखते है, तो क्या हम तुम्हारे चेहरो को एक क़िब्ले की तरफ न मोड़ दे, जो तुम्हे प्रसन्न कर दे। तुम्हे चाहिए कि तुम जहां कही भी रहो अपने चेहरो को उस पवित्र मस्जिद की तरफ मोड़ लिया करो। ” ( कुरआन 2 : 144 )1 : —– इस्लाम एकता क़ी बुनियादों को मजबूत करने में विश्वास करता है।
    उदहारण के रूप में यदि मुसलमान चाहते है, कि वे नमाज़ पढ़े तो उनके लिए यह भी सम्भव था की उत्तर की और अपना रुख करे और कुछ दक्षिण की ओर। एक मात्र वास्तविक स्वामी की इबादत में मुसलमानो को संघठित करने के लिए यह आदेश दिया की चाहे वे जहा कही भी हो, वे अपने चेहरे एक ही दिशा की और करे अर्थात काबा की और। यदि कुछ मुसलमान काबा के पश्चिम में रहते है, तो उन्हें पूर्व की और रुख करना होगा। इसी प्रकार अगर वे क़ाबा के पूर्व में रह रहे हो तो उन्हें पश्चिम की दिशा में अपने चेहरे का रुख करना होगा।2 : —– ” काबा ” विश्व मानचित्र के ठीक बीच में है।
    सबसे पहले मुसलमानो ने ही दुनिया का भौगोलिक मानचित्र बनाया था। उन्होंने मानचित्र इस प्रकार बनाया कि दक्षिण ऊपर की ओर था और उत्तर नीचे की ओर। ‘काबा’ बीच में था। आगे चलकर पाश्चात्य के मानचित्र रचयिताओं ने दुनिया का जो मानचित्र तैयार किया वह इस प्रकार था कि पहले मानचित्र के मुकाबले में इसका ऊपरी हिस्सा बिलकुल नीचे कि ओर था, अर्थात उत्तर की दिशा ऊपर की ओर, और दक्षिण कि दिशा नीचे कि ओर। इसके बावजूद अल्लाह का शुक्र है, कि क़ाबा दुनिया के मानचित्र में केंद्रीय स्थान में ही रहा।3 : —– ” काबा ” का तवाफ़ ( परिक्रमा ) ईश्वर के एकत्व का प्रतीक है।
    मुसलमान जब मक्का में स्थित मस्जिद – हरम ( प्रतिष्टित मस्जिद ) जाते है, तो वे काबा का तवाफ़ करते है। यह कार्य एक ईश्वर में विश्वास रखने और एक ही ईश्वर की उपासना, इबादत करने का प्रतीकात्मक प्रदर्शन है। क्यूकि जिस तरह हर गोल दायरे का एक केंद्रीय बिंदु होता है, उसी तरह ईश्वर एक ही है, जो पूजनीय है।
    4 : —– हजरत उमर (रजि०) का बयान।
    काबा में लगे हुए ‘ हजरे-अस्वद ‘ (काले पत्थर) से सम्बंधित दूसरे इस्लामी शासक हजरत उमर (रजि०) का एक कथन उल्लेखित है, हदीस की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सही बुखारी’ भाग दो, अध्याय हज, पाठ-56, हदीस संख्या – 675 के अनुसार हज़रत उमर (रजि०) ने फ़रमाया —— मुझे मालूम है, कि (हजरे-अस्वद) तुम एक पत्थर हो। न तुम किसी को फायदा पंहुचा सकते हो और न ही नुकसान और मैंने अल्लाह के पैगम्बर ( सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम ) को तुम्हे छूते, और चूमते न देखा होता तो में कभी न तो तुम्हे छूता न और न ही चूमता। ”
    5 : —– लोग ‘ काबा ‘ पर चढ़कर अज़ान देते थे।
    अल्लाह के पैगम्बर के ज़माने में तो लोग ‘ काबा ‘ पर चढ़कर अज़ान देते थे। यह बात इतिहास में प्रसिद्ध। अब जो लोग यह आरोप लगते है, कि मुसलमान काबा की उपासना (इबादत) करते है, उनसे पूछना चाहिए की भला बताइये तो सही कि कोन मूर्ती पूजा करने वाला मूर्ती पर चढ़कर खड़ा होता है।

  31. और हमने इसराईलियों को समुद्र पार करा दिया। फिर फ़िरऔन और उसकी सेनाओं ने सरकशी और ज़्यादती के साथ उनका पीछा किया, यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा तो पुकार उठा, “मैं ईमान ले आया कि उसके सिव कोई पूज्य-प्रभु नही, जिस पर इसराईल की सन्तान ईमान लाई। अब मैं आज्ञाकारी हूँ।” (90)
    “क्या अब? हालाँकि इससे पहले तुने अवज्ञा की और बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था (91)
    “अतः आज हम तेरे शरीर को बचा लेगें, ताकि तू अपने बादवालों के लिए एक निशानी हो जाए। निश्चय ही, बहुत-से लोग हमारी निशानियों के प्रति असावधान ही रहते है।” (92)
    Quran Surah Yunus [10:90-92]
    http://www.quranandscience.com/index.php/quran-science/historical/333-the-preservation-of-pharaoh-s-body
    http://www.arabnews.com/news/443500
    http://en.wikipedia.org/wiki/Maurice_Bucaille

    डॉ मौरिस बुकाय फ्रांस के सबसे बड़े डाक्टर थे, और उनका धर्म ईसाई था ॥
    1898 मे जब मिस्र मे लाल सागर के पास एक कब्रगाह मे एक अति प्राचीन मानव शरीर मिला जो आश्चर्यजनक रूप से हज़ारों साल गुजर जाने के बाद भी सुरक्षित था, सभी को इस मृत शरीर का रहस्य जानने की उत्सुकता रहती थी इसीलिए इस शरीर को 1981 मे चिकित्सकीय खोज के लिए फ्रांस मंगवाया गया और इस शरीर पर डाक्टर मौरिस ने परीक्षण किए
    परीक्षणों से डाक्टर मौरिस ने निष्कर्ष निकाले कि जिस व्यक्ति की ये मृत देह है उसकी मौत समुद्र मे डूबने के कारण हुई थी क्योंकि डाक्टर मौरिस को उस मृत शरीर मे समुद्री नमक का कुछ भाग मिला था, साथ ही ये भी पता चला कि इस व्यक्ति को डूबने के कुछ ही समय बाद पानी से बाहर निकाल लिया गया था …. लेकिन ये बात डाक्टर मौरिस के समक्ष अब भी एक पहेली थी कि आखिर ये शरीर अपनी मौत के हजारो साल बाद भी सड़ गल कर नष्ट क्यों नहीं हुआ ….
    तभी उन्हें अपने एक सहकर्मी से पता चला कि मुस्लिम लोग बिना जांच रिपोर्ट के सामने आए ही ये कह रहे हैं कि ये व्यक्ति समुद्र मे डूब कर मरा था, और ये मृत देह उस फिरऔन की है जिसने अल्लाह के नबी हजरत मूसा अ.स. और उनके अनुयायियों का कत्ले आम कराना चाहा था, क्योंकि फिरऔन की लाश के सदा सुरक्षित रहने और उसके समुद्र मे डूब कर मरने की बात उनकी पवित्र पुस्तक कुरान मे लिखी है जिसपर वो विश्वास करते हैं
    मौरिस को ये सोचकर बहुत हैरत हुई कि इस मृत देह के समुद्र मे डूब कर मरने की जिस बात का पता मैंने बड़ी बड़ी अत्याधुनिक मशीनों की सहायता से लगाया।वो बात मुस्लिमों को पहले से कैसे मालूम चल गई ? और जबकि इस लाश के अपनी मृत्यु के हजारों साल बाद भी नष्ट न होने का पता 1981से महज़ 83 साल पहले चला है, तो उनकी कुरान मे ये बात 1400 साल पहले कैसे लिख ली गई ??
    इस शरीर की मौत के हजारों साल बाद भी इस शरीर के बचे रह जाने का कोई वैज्ञानिक कारण डाक्टर मौरिस या अन्य वैज्ञानिक जब पता न लगा सके तो इसे ईश्वर के चमत्कार के अतिरिक्त और क्या माना जा सकता था ??
    बाइबल के आधार पर भी मृत देह के मिलने की लोकेशन और चिकित्सकीय परीक्षण के आधार पर उस मृत शरीर की लगभग 3000 वर्ष की उम्र होने के कारण मौरिस को ये विश्वास तो हो रहा था कि ये शरीर फिरऔन का ही है, अत: डाक्टर ने फिरऔन के विषय मे अधिक जानने के लिए तौरात शरीफ (बाइबल : ओल्ड टेस्टामेण्ट) का अध्ययन करने का निर्णय किया, इस आयत का डाक्टर मौरिस बुकाय पर कुछ ऐसा असर पड़ा कि उसी वक्त खड़े होकर उन्होने ये ऐलान कर दिया कि- “मैने आज से इस्लाम कुबूल कर लिया, और इस पवित्र कुरान पर विश्वास कर लिया ”
    इसके बाद अपने वतन फ्रान्स वापस जाकर कई साल तक डाक्टर मौरिस कुरान और साइंस पर रिसर्च करते रहे, और फिर उसके बाद कुरआन के साइंसी चमत्कारों के विषय मे ऐसी ऐसी किताबें लिखी जिन्होंने दुनियाभर मे धूम मचा दी थी

  32. अपने आप को एक मुसलमान होने पर गर्व कीजिये.
    बहुत सारे गैर मुस्लिम भाइयो के मुंह से सुनता हु की…ये दिन भर में 5 बार जोर जोर लाऊड स्पीकर में अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर क्यों चिल्लाते हो,क्या अल्लाह को सुनाई नही देता?
    नौजबिल्लाह,अस्तग़फिरुल्लाह…अल्लाह इनकी कमअक्ली के लिए माफ़ करे और हमे भी माफ़ करे क्योंकि हमने ही इन्हें सच बताने की जहमत नही की।
    मेरे प्यारे हिन्दू भाइयो,अज़ान अल्लाह के लिए नही बल्कि अल्लाह के बन्दों के लिए होती है,ताकि बन्दे अज़ान की पुकार सुन के मस्जिदों में आकर नमाज पढ़ सके।
    अल्लाह सुब्हान व तआला तो वो भी जानता है जो तुम्हारे दिलो में है।और रही बात लाऊड स्पीकर की…तो भाइयो पुराने ज़माने में जब लाऊड स्पीकर नही था तो अज़ान ऐसे ही बिना लाऊड स्पीकर से दी जाती थी तो दूर दूर तक अजान की आवाज पहुँच जाती थी कयुकी उस ज़माने में ट्रैफिक की इतनी शोर गुल नही थी,आज अगर बिना लाऊड स्पीकर के अज़ान दी जाये तो अज़ान की आवाज मस्जिद के बाहर भी सुनाई नही देगी…….।
    उम्मीद है आप समझ गए होंगे।
    अब मेरे मुस्लमान भाइयो से दरख्वास्त है की वो ईस पोस्ट को चाहे कॉपी करके,शेयर करके ज्यादा से जयाद हिन्दू भाइयो तक पंहुचा दे ताकि वो इस बड़ी गलतफहमी से निकल सके…..ये हमारी जिम्मेदारी है।
    आपका अपना Tiger Khan /अफज़ल खान
    लाइक &शेयर अपने आप को एक मुसलमान होने पर गर्व कीजिये.
    अपने आप को एक मुसलमान होने पर गर्व कीजिये

  33. कुछ लोग बेकार का एक भ्रम फैलाते रहते हैं कि भारत पर जब मुस्लिमों का शासन था, तो उन्होंने गैर मुस्लिम जनता को बड़े कष्ट दिए, उन की धर्म और संस्क्रति को नष्ट किया, निर्दोष लोगों के कत्ल किए, स्त्रियों की मर्यादा भंग की और भी जाने क्या क्या…..
    लेकिन सच्चाई इसके उलट है ॥ …… एक उदाहरण से समझाता हूँ ॥

    1857 की क्रांति मे एक बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि ये क्रांति भारत की किसान, मजदूर पेशा और आम जनता के अंग्रेजो के प्रति असंतोष से जन्मी , ये जनता अधिकांश हिन्दू थीलेकिन इस हिन्दू जनता के सामने जब स्वतंत्रता संग्राम मे अपना नेता चुनने का प्रश्न आया तो इस जनता ने किसी हिंदू नायक को नही चुना बल्कि मुगल बादशाह को ही अपना नायक बनने के लिए मनाया । इसका सीधा सा अर्थ निकलता है कि वो हिन्दू जनता ब्रिटिश सरकार को हटाकर उसके स्थान पर अपने शासक के रूप मे मुगल राजा को पसंद करती थी

    अगर इस हिन्दू जनता ने मुगलो को हिन्दुओं पर अत्याचार करते देखा होता, या अपने दादा परदादा के मुंह से मुगलो के अत्याचार की कहानी सुनी होती तो ये जनता मुगल बादशाह की बजाय किसी हिन्दू को ही अपना नायक बनाती ।
    अवध के नवाब वाजिद अली शाह से तो उनकी जनता इतना प्यार करती थी, कि जब अंग्रेजो ने नवाब को अपदस्थ कर के कलकत्ता भेजा तो अवध की बहुत सारी हिन्दू मुसलमान जनता कानपुर तक रोते रोते उनके पीछे गई थी1857 की क्रांति मे शामिल अन्य नायको यथा मराठा सरदार नाना साहब और रुहेला सरदार खान बहादुर ने भी मुगल बादशाह को अपना नायक मानते हुए अंग्रेजो से युद्ध लड़े थे

    तो ये मुसलमान शासक जनता पर जुल्म नही करते थे बल्कि जनता के हमदर्द थे, और जनता की हमदर्दी मे इन्होंने अंग्रेजो से लोहा भी लिया था । अब जरा ये भी देख लेते हैं कि अपनी जनता से हमदर्दी और वतन से मुहब्बत का उन मुस्लिम शासकों को क्या ईनाम मिला है

    1857 की क्रांति मे अंग्रेजो के खिलाफ कई मुस्लिम राजाओ और नवाबो ने भारत की जनता के अनुरोध पर बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था, जबकि इसके बरअक्स कई बड़े गैर मुस्लिम शासकों जैसे ग्वालियर, पटियाला और जिन्द आदि के शासकों ने इस क्रांति को कुचलने मे अंग्रेजो का साथ दिया और अपने ही देशवासियो पर गोलियाँ चलवाई थीं

    इससे खुश होकर अंग्रेजो ने गैर मुस्लिम शासकों को बड़ा ईनाम इकराम और ओहदे दिए ….. जबकि मुस्लिम शासकों से सज़ा के तौर पर उनकी सारी जायदाद छीन कर उन को कत्ल कर के उन को दर ब दर कर दिया …….

    आज वतन परस्त बादशाह बहादुर शाह जफर का वन्शज कोलकाता मे चाय बेच करतो रुहेला सरदार खान बहादुर का वन्शज बरेली मे साएकिल के पन्चर जोड़ कर अपना पेट पाल रहा है और अवध नवाब के वन्शज दिल्ली के एक खण्डहर मे सदमाग्रस्त जीवन काट रहे हैं
    जबकि अंग्रेजो की जी हुजूरी करने वालो, और अपने ही वतन की गरीब जनता पर गोलियाँ चलवाने वालों मे से अधिकांश के वन्शज आज भी राजा कहलाते है, ठाठ बाठ की जिन्दगी बिता रहे हैं ।

  34. भारत मे गौ हत्या का कारण :—–

    1 >>> मुस्लिमो द्वारा गयो मॉस खाना ! जो कि सही नही है, क्यूकी भारत मे मुस्लिम भैस का मॉस खाते है. दुनिया मे सब से ज्यादा गायो का मॉस अमेरिकन. यूरोपियन लोग खाते है. क्यूकी वहा भैस नही होती और उनका मुख्य भोजन गायो का मास है.

    2 >>> भारत मे मॉस का निर्यात होता है. जो की गौ हत्या का मुख्य कारण है.

    3 >>> गाये के चमड़े से कई वस्तुए बनती है, इस कारण भी गौ हत्या होती है. और इस चमड़े और हड्डियों के व्यापार मे अधिकतर गैर मुस्लिम लोग है.4 >>> पर गौ हत्या के लिए केवल मुस्लिमो को ही दोष दिया जाता है. क्यूकी कुछ राजनेता लोगो मे नफरत फ़ैलाने के लिए और वोट बैंक के लिए लोगो को आपस मे लड़वाते है.

    गौ हत्या रोकने के उपाए ( निवारण ) …………

    1 >>> भारत मे 99% गाये गैर मुस्लिम लोग पालते है. यह लोग जब गाये बूढी हो जाती है दूध देना बंद कर देती है तो गायो को मॉस कारोबारियों को बेच देते है. इनको ऐसा नही करना चाहिए अगर यह गैर मुस्लिम लोग गायो को कसाइयो, मॉस कारोबारियों को ना बेचे तो गौ हत्या 100% बंद हो जाएगी.2 >>> भारत इस समय एशिया का सबसे बड़ा मॉस निर्यातक देश हो रहा है, सरकार को मॉस निर्यात बंद कर देना चाहिए. इस उपाए से गौ हत्या 100% बंद हो जाएगी.

    3 >>> सरकार को गौ हत्या करने वाले को ही नही बल्कि गायो को कसाइयो, मॉस कारोबारियों को बेचने वालो को दुगनी सजा देनी चाहिए. क्योकि पैसो के लालच मे गैर मुस्लिम लोग गायो को कसाइयो, मॉस कारोबारियों को बेच देते है. और पैसो के लालच मे मुस्लिम और गैर मुस्लिम लोग गायो को मारकर उनके मॉस, हड्डियों, चमड़े का व्यापार करते है. निर्यात करते है. 4 >>> केवल उस गाए को ही मॉस कारोबारियो को बेचा जाता है, जो बूढी हो जाती है, दूध देना बंद कर देती है। और बैलो तथा बछड़ो को मॉस कारोबारियो को बेचा जाता है। गो पालने वाले हिन्दू भाइयो को ऐसा नही करना चाहिए। जब तक गाए दूध देती है तब तक तो वो माता होती है पर दूध देना बंद करते ही वो बोझ बन जाती है, गो पालने वाले हिन्दू भाइयो को ऐसा नही करना चाहिए। और गौ माता की सेवा करनी चाहिए।

    5 >>> हर मुस्लिम गौ रक्षा के लिए हिन्दू भाइयो के साथ है, आप गौ हत्या करने वाले को फासी दो लेकिन गौ माता को चंद पैसो की खातिर कसाइयो, मॉस कारोबारियों को बेचने वालो को भी फासी दो, चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम

  35. प्रश्न : इस्लाम को शान्ति का धर्म कैसे कहा जा सकता है, जबकि यह तलवार से फैला है?

    उत्तर : कुछ गै़र-मुस्लिम भाइयों की यह आम शिकायत है कि संसार भर में इस्लाम के मानने वालों की संख्या लाखों में भी नहीं होती यदि इस धर्म को बलपूर्वक नहीं फैलाया गया होता। निम्न बिन्दु इस तथ्य को स्पष्ट कर देंगे कि इस्लाम की सत्यता, दर्शन और तर्क ही है जिसके कारण वह पूरे विश्व में तीव्र गति से फैला, न कि तलवार से।

    1. इस्लाम का अर्थ शान्ति है
    इस्लाम मूल शब्द ‘सलाम’ से निकला है जिसका अर्थ है ‘शान्ति’। इसका दूसरा अर्थ है अपनी इच्छाओं को अपने पालनहार ख़ुदा के हवाले कर देना। अतः इस्लाम शान्ति का धर्म है जो सर्वोच्च स्रष्टा अल्लाह के सामने अपनी इच्छाओं को हवाले करने से प्राप्त होती है।2. शान्ति को स्थापित करने के लिए कभी-कभी बल-प्रयोग किया जाता है
    इस संसार का हर इंसान शान्ति एवं सद्भाव के पक्ष में नहीं है। बहुत से इंसान अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए शान्ति को भंग करने का प्रयास करते हैं। शान्ति बनाए रखने के लिए कभी-कभी बल-प्रयोग किया जाता है। इसी कारण हम पुलिस रखते हैं जो अपराधियों और असामाजिक तत्वों के विरुद्ध बल का प्रयोग करती है ताकि समाज में शान्ति स्थापित हो सके। इस्लाम शान्ति को बढ़ावा देता है और साथ ही जहाँ कहीं भी अत्याचार और जु़ल्म होते हैं, वह अपने अनुयायियों को इसके विरुद्ध संघर्ष हेतु प्रोत्साहित करता है। अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष में कभी-कभी बल-प्रयोग आवश्यक हो जाता है। इस्लाम में बल का प्रयोग केवल शान्ति और न्याय की स्थापना के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है। धर्म-परिवर्तन के लिए तो बल का प्रयोग इस्लाम में निषिद्ध है और कई-कई सदियों के मुस्लिम-शासन का इतिहास कुछ संभावित नगण्य अपवादों (Exceptions) को छोड़कर, बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन कराने से ख़ाली है।3. इतिहासकार डीलेसी ओ-लेरी (Delacy O’Leary) के विचार
    इस्लाम तलवार से फैला इस ग़लत विचार का सबसे अच्छा उत्तर प्रसिद्ध इतिहासकार डीलेसी ओ-लेरी के द्वारा दिया गया जिसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इस्लाम ऐट दी क्रोस रोड’ (Islam at the cross road) में किया है—
    ‘‘यह कहना कि कुछ जुनूनी मुसलमानों ने विश्व में फैलकर तलवार द्वारा पराजित क़ौम को मुसलमान बनाया, इतिहास इसे स्पष्ट कर देता है कि यह कोरी बकवास है और उन काल्पनिक कथाओं में से है जिसे इतिहासकारों ने कभी दोहराया है।’’(पृष्ठ-8)4. मुसलमानों ने स्पेन पर 800 वर्ष शासन किया
    मुसलमानों ने स्पेन पर लगभग 800 वर्ष शासन किया और वहाँ उन्होंने कभी किसी को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मज़बूर नहीं किया। बाद में ईसाई धार्मिक योद्धा स्पेन आए और उन्होंने मुसलमानों का सफाया कर दिया (सिर्फ़ उन्हें जीवित रहने दिया जो बलपूर्वक ईसाई बनाए जाने पर राज़ी हो गए, यद्यपि ऐसे विधर्मी कम ही हुए।

    5. एक करोड़ चालीस लाख अरब आबादी नसली ईसाई (Coptic Christian) हैं
    अरब में कुछ वर्षों तक ब्रिटिश राज्य रहा और कुछ वर्षों तक फ्रांसीसियों ने शासन किया। बाक़ी लगभग 1300 वर्ष तक मुसलमानों ने शासन किया। आज भी वहाँ एक करोड़ चालीस लाख अरब नसली ईसाई हैं। यदि मुसलमानों ने तलवार का प्रयोग किया होता तो वहाँ एक भी अरब मूल का ईसाई बाक़ी नहीं रहता।6. भारत में 80 प्रतिशत से अधिक गै़र-मुस्लिम
    मुसलमानों ने भारत पर लगभग 1000 वर्ष शासन किया। यदि वे चाहते तो भारत के एक-एक ग़ैर-मुस्लिम को इस्लाम स्वीकार करने पर मज़बूर कर देते क्योंकि इसके लिए उनके पास शक्ति थी। आज 80 प्रतिशत ग़ैर-मुस्लिम भारत में हैं जो इस तथ्य के गवाह हैं कि इस्लाम तलवार से नहीं फैलाया गया।

    7. इन्डोनेशिया और मलेशिया
    इन्डोनेशिया (Indonesia) एक ऐसा देश है जहाँ संसार में सबसे अधिक मुसलमान हैं। मलेशिया (Malaysia) में मुसलमान बहुसंख्यक हैं। यहाँ प्रश्न उठता है कि आखि़र कौन-सी मुसलमान सेना इन्डोनेशिया और मलेशिया र्गईं। इन दोनों देशों में, मध्यवर्तीकाल में मुस्लिम-शासन रहा ही नहीं।8. अफ्ऱीक़ा का पूर्वी तट
    इसी प्रकार इस्लाम तीव्र गति से अफ्रीक़ा के पूर्वी तट पर फैला। फिर कोई यह प्रश्न कर सकता है कि यदि इस्लाम तलवार से फैला तो कौन-सी मुस्लिम सेना अफ्रीक़ा के पूर्वी तट की ओर गई थी?

    9. थॉमस कारलायल
    प्रसिद्ध इतिहासकार ‘थॉमस कारलायल’ (Thomas Carlyle) ने अपनी पुस्तक Heroes and Hero Worship (हीरोज़ एंड हीरो वरशिप) में इस्लाम के प्रसार से संबंधित ग़लत विचार की तरफ़ संकेत करते हुए कहा है—
    ‘‘तलवार!! और ऐसी तलवार तुम कहाँ पाओगे? 3. अमेरिका और यूरोप में इस्लाम सबसे अधिक फैल रहा है
    आज अमेरिका में तीव्र गति से फैलने वाला धर्म इस्लाम है और यूरोप में भी यही धर्म सबसे तेज़ी से फैल रहा है। कौन-सी तलवार पश्चिम को इतनी बड़ी संख्या में इस्लाम स्वीकार करने पर मज़बूर कर रही है?वास्तविकता यह है कि हर नया विचार अपनी प्रारम्भिक स्थिति में सिर्फ़ एक की अल्पसंख्या में होता है अर्थात् केवल एक व्यक्ति के मस्तिष्क में। जहाँ यह अब तक है। पूरे संसार का मात्र एक व्यक्ति इस विचार पर विश्वास करता है अर्थात् केवल एक मनुष्य सारे मनुष्यों के मुक़ाबले में होता है। वह व्यक्ति तलवार लेता है और उसके साथ प्रचार करने का प्रयास करता है, यह उसके लिए कुछ भी प्रभावशाली साबित नहीं होगा। सारे लोगों के विरुद्ध आप अपनी तलवार उठाकर देख लीजिए। कोई वस्तु स्वयं फैलती है जितनी वह फैलने की क्षमता रखती है।’’

    10. ‘धर्म में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं’
    किस तलवार से इस्लाम फैला? यदि यह तलवार मुसलमान के पास होती तब भी वे इसका प्रयोग इस्लाम के प्रचार के लिए नहीं कर सकते थे। क्योंकि पवित्र क़ुरआन में कहा गया है—
    ‘‘धर्म में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है, सत्य, असत्य से साफ़ भिन्न करके प्रस्तुत हो चुका है।’’ (क़ुरआन, 2:256)11. बुद्धि की ‘‘तलवार’’
    यह बुद्धि और मस्तिष्क की तलवार है। यह वह तलवार है जो हृदयों और मस्तिष्कों पर विजय प्राप्त करती है। पवित्र क़ुरआन में है—
    ‘‘लोगों को अल्लाह के मार्ग की तरफ़ बुलाओ, बुद्धिमत्ता और सदुपदेश के साथ, और उनसे वाद-विवाद करो उस तरीके़ से जो सबसे अच्छा और निर्मल हो।’’
    (क़ुरआन, 16:125)

    12. 1934 से 1984 ई॰ तक में संसार के धर्मों में वृद्धि
    रीडर्स डाइजेस्ट के एक लेख अलमेनेक, वार्षिक पुस्तक 1986 ई॰ में संसार के सभी बड़े धर्मों में लगभग पचास वर्षों 1934 से 1984 ई॰ की अवधि में हुई प्रतिशत वृद्धि का आंकलन किया गया था। यह लेख ‘प्लेन ट्रुथ’(Plain Truth) नाम की पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ था जिसमें इस्लाम को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया जिसकी वृद्धि 235 प्रतिशत थी और ईसाइयत में मात्र 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। यहाँ प्रश्न उठता है कि इस सदी में कौन-सा युद्ध हुआ जिसने, या कौन-कौन से क्रूर मुस्लिम शासक थे जिन्होंने लाखों लोगों का धर्म परिवर्तन करके उन्हें ज़बरदस्ती इस्लाम में दाखि़ल किया।3. अमेरिका और यूरोप में इस्लाम सबसे अधिक फैल रहा है
    आज अमेरिका में तीव्र गति से फैलने वाला धर्म इस्लाम है और यूरोप में भी यही धर्म सबसे तेज़ी से फैल रहा है। कौन-सी तलवार पश्चिम को इतनी बड़ी संख्या में इस्लाम स्वीकार करने पर मज़बूर कर रही है?

  36. इस्लामी धर्मग्रंथों की वे अवधारणाएं जिनकी सबसे ज्यादा गलत व्याख्या की गई.

    किसी भी विचार की व्याख्या देश-काल और परिस्थिति के तहत भिन्न-भिन्न तरीकों से की जा सकती है. धर्म से जुड़े प्रावधानों की व्याख्या तो शायद अनगिनत तरीकों से मनुष्य ने अपने आरंभिक काल से ही की है.

    इस्लामी धर्मग्रंथों में कुछ ऐसी अवधारणाएं हैं जिनकी गलत व्याख्याओं ने इस्लाम के मूल स्वरूप को विकृत किया है. गैरमुसलमानों ने यह काम अपने निहित स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए किया तो कुछ मुसलमानों ने अपने गलत कामों को सही ठहराने के लिए इनका सहारा लिया. परिणामस्वरूप इस्लाम को एक हिंसक और कट्टर धर्म के रूप में जाना जाने लगा. इन गलत व्याख्याओं पर विचार करने से पहले इस्लाम शब्द की उत्पत्ति पर एक नजर डालते हैं.इस्लाम शब्द अरबी भाषा के ‘स’ ‘ल’ ‘म’ धातु से बना है और जिसका अकेला और सीधा अर्थ है शांति. ‘स’ ‘ल’ ‘म’ धातु से जिन अन्य शब्दों का निर्माण हुआ है वे हैं इस्लाम, मुस्लिम, सलाम और इसी तरह के और कई शब्द. इस्लाम वह धर्म, वह पद्धति है जो शांति सिखाए, जो तस्लीम (समर्पित) होना सिखाए. शांति के धर्म को मानने वाला यानी मुसलमान. मुसलमान जब भी आपसे मिलेगा तो कहेगा सलामुनअलैकुम यानी ईश्वर आपको शांति प्रदान करे. तो इस्लाम के बारे में एक कुप्रचार तो यहीं खत्म हो जाता है कि इस्लाम तलवार का धर्म है, खूनरेजी है. क्या कोई धर्म जो इस तरह से शांति और सुलह की वकालत करे वह खूनरेजी को जायज ठहरा सकता है? तार्किक तौर पर तो यह परस्परिक विरोधी ही प्रतीत होता है.समस्त धर्मों का मूल एक ही है, यह हर धर्म मानता है. सब धर्म उस मूल की ही आराधना करते हैं. मुसलमान उस मूल स्रोत को अल्लाह या रब्बेल आलमीन के नाम से पूजते हैं. रब्बेल आलमीन के मानी हैं समस्त ब्रह्मांडों और लोकों का स्वामी.

    जब भी इस्लाम की मान्यताओं पर सवाल उठाए जाते हैं तो उनके केंद्र में दो चीजें हुआ करती हैं. एक है जेहाद और दूसरा काफिर, जिनकी गलत व्याख्याओं के परिणामस्वरूप इस्लाम को एक ऐसे धर्म के रूप में चित्रित किया जाता है जो अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु न हो. कुरान पर एक निगाह डालने पर हम यह पाते हैं कि जेहाद का मूल विचार इसके प्रचलित स्वरूप से बहुत भिन्न है. जेहाद: अरबी भाषा का शब्द जेहाद ‘जुह्द’ धातु से बना है जिसका अकेला अर्थ ‘संघर्ष करना’ है. इस धातु से जो शब्द बने हैं वे हैं जेहाद यानी संघर्ष और मुजाहिद यानी संघर्ष करने वाला. माना कि किसी व्यक्ति को तंबाकू, पान मसाला या शराब पीने की आदत है तो उसे समझाने वाला व्यक्ति मुजाहिद यानी संघर्ष करने वाला हुआ. कोई बच्चा यदि कुत्ते, बिल्ली या किसी अन्य प्राणी को अकारण ही मार रहा है और कोई आकर उसे ऐसा करने से रोकता है तो उस व्यक्ति का यह कार्य जेहाद हुआ.दुर्भाग्यवश मीडिया एवं पश्चिमी देशों के इतिहासकारों की अनभिज्ञता या शायद अपने निहित स्वार्थों के तहत जेहाद का अर्थ धर्मयुद्ध बताया गया है. कुरान में युद्ध शुरू करना या युद्ध भड़काना – धर्म नहीं, बल्कि अधर्म है. इसलिए कोई भी युद्ध यदि शुरू किया जाए तो वह धर्मयुद्ध नहीं बल्कि अधार्मिक कार्य है. लेकिन क्या कुरान में युद्ध करने की संपूर्ण मनाही है? ऐसा नहीं है.

    कुरान मात्र इन संदर्भों में ही युद्ध की इजाज़त देता है :
    1. जब मनुष्यों पर अत्याचार हो रहे हों
    2. न्याय के लिए
    3. आत्मरक्षा के लिए
    4. जब शत्रु की ओर से शांति समझौता भंग कर दिया जाएउदाहरणार्थ कुरान के अध्याय 4, आयत 74-75 में उद्धृत है- …क्यों नहीं तुम युद्ध करते जब असहाय पुरुष, महिलाएं और बच्चे ईश्वर से याचना करते हुए कह रहे हों ‘ हे ईश्वर, हमें समाज के अत्याचारियों से निजात दिला. हे ईश्वर, तू ही हमारा स्वामी है.’

    कुरान की इस आयत पर ध्यान देने पर पता चलता है कि अत्याचार चाहे किसी पर भी हो रहा हो, चाहे वे किसी भी धर्म एवं संप्रदाय के हों, यह बात बिल्कुल भी मायने नहीं रखती, बस इंसान होना काफी है. चाहे वे दलित हों या गरीब, असहाय, कमजोर, पुरुष, महिलाएं या बच्चे. वे हिंदू हों, मुसलमान हों, सिख हों, ईसाई हों या यहूदी या बौद्ध. वह बोस्निया का मुसलमान हो या अमेरिका की ढहती हुई इमारत का ईसाई. हिटलर के जहरीले गैस कक्ष में यहूदी हो या कश्मीर का निर्दोष हिंदू या मुसलमान. गुजरात में आठ महीने की गर्भवती मुस्लिम मां हो जिसके अजन्मे बच्चे को आग में भूना जा रहा हो या साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 और एस-7 डिब्बे में कोई हिंदू बिटिया या बेटा. दंगों में जलता हुआ एक सिख बूढ़ा या उड़ीसा में जीप के अंदर जलता हुआ मसीही पादरी क्यों न हो – इनका आर्तनाद सुनकर इनके न्याय के लिए पवित्र कुरान संघर्ष करने की इजाजत देती है. लेकिन युद्ध मात्र आततायी से, किसी अन्य से नहीं. कुरान के अध्याय 2, आयत 190 में कहा गया है :
    तुम सिर्फ ईश्वर की राह पर युद्ध कर सकते हो और सिर्फ उनके खिलाफ जिन्होंने तुम पर आक्रमण किया हो लेकिन मानवीय सीमाओं के भीतर. ईश्वर आततायियों को अप्रिय मानता है.

  37. इस आयत से स्पष्ट है कि युद्ध सिर्फ उनसे किया जाए जिन्होंने तुम पर आक्रमण किया है. उदाहरण के लिए, यदि ‘अ’ ने तुम पर आक्रमण किया है तो ‘अ’ से ही युद्ध किया जाए, न कि उसकी पत्नी, बेटी, बेटा या माता-पिता से. युद्ध सिर्फ़ आक्रमणकारी से.

    जिहाद के ही संदर्भ में कुरान की कुछ आयतें जो कि दुष्प्रचार का माध्यम बनी हैं उनमें कुरान के नौवें अध्याय ‘तौबा’ की 5वीं आयत है जिसे बगैर किसी संदर्भ के प्रस्तुत किया जाता है.

    यह आयत है: जब हराम (वर्जित) महीने बीत जाएं तो मुशरिकों (एक ईश्वर की सत्ता में अन्य को हिस्सेदार बताने वाला) के साथ युद्ध करो, उन्हें पकड़ो, घेरो और उनका वध करो.कुरान में युद्ध शुरू करना या युद्ध भड़काना – धर्म नहीं, बल्कि अधर्म है. इसलिए कोई भी युद्ध यदि शुरू किया जाए तो वह धर्मयुद्ध नहीं बल्कि अधार्मिक कार्य है

    इस आयत को पढ़कर तो सचमुच ऐसा आभास होता है कि कुरान मुसलमानों को युद्ध के लिए उकसाती है. इस आयत पर टिप्पणी करने से पहले यदि कहा जाए कि हिंदुओं के सर्वमान्य ग्रंथ गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने ही गुरुओं, सगे संबंधियों और चचेरे भाइयों का वध करने के लिए प्रेरित करते हैं, तो क्या हमारे मन में इस तरह की शंका नहीं उठेगी कि भगवान का यह वचन जायज नहीं है क्योंकि यह श्लोक हिंसा को प्रोत्साहित करता हुआ प्रतीत होता है. बिना संदर्भों के किसी विचार को बढ़ावा देने वाला अर्ध सत्य किसी भी बड़े झूठ से खतरनाक होता है.इस आयत को उसके संपूर्ण संदर्भ में समझने से पहले हमें इसी अध्याय की चौथी आयत को समझना होगा.

    अध्याय 9 की चौथी आयत उस संदर्भ में कही गई है जब मुस्लिमों के साथ गैरमुस्लिमों का शांति समझौता था. लेकिन गैर मुस्लिमों ने वह समझौता तोड़ दिया और मुस्लिमों के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया.

    अध्याय 9 आयत 4:
    इल्लालज़ीना आहत्तुम मिनल मुशरिकीन सुम्मा लम यन क़ुसूकुम शैयं व लम यु ज़ाहिरू अलैकुम अहदन् फअतिमू इलैहिम आ़हदाहुम इला मुद्दतिहिम पददं संसीं यु हिब्बुल मुत्तक़ीन.
    इस आयत में पैगंबर को सख्त हिदायत दी गई है कि उन मुशरिकों के साथ शांति से रहना जो तुम्हारे साथ शांति से रहते हैं. और अपने बचाव के लिए उन्हीं के साथ युद्ध करना जिन्होंने तुम्हारे साथ शांति समझौता तोड़ दिया है और अब युद्ध पर आमादा हैं. फिर भी 5वीं आयत में कुछ संयम बरतने के लिए इशारा है, जब वह युद्ध का जवाब वर्जित महीनों के बीत जाने के बाद ही देने की बात करती है. हो सकता है इस दौरान युद्ध पर आमादा शत्रु शायद सदबुद्धि प्राप्त कर लें और शांति फिर से स्थापित हो जाए. लेकिन यदि वह तुम पर फिर भी आक्रमण करे तो तुम अपने बचाव में उस आक्रमण का प्रत्युत्तर दो. यह तो हर धर्म में कहा गया है कि आक्रमणकारी, आततायी के आगे हथियार डाल देना कायरता की निशानी है.श्रीकृष्ण जब अर्जुन को युद्ध पर आमादा कौरवों की सेना दिखाते हैं तो अर्जुन करुणा से वशीभूत होकर हथियार डालने की बात कहता है. जिस पर श्रीकृष्ण उन्हें उपदेश देते हैं कि हे अर्जुन, आततायियों के आगे, आक्रमणकारियों के समक्ष घुटने टेक देने पर इस लोक में तुम्हे अपयश और पाप लगेगा एवं तुम्हें मोक्ष नहीं मिलेगा. (गीता: अध्याय 2 श्लोक 33-34)

    अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करने के अनेकों श्लोक गीता में. यदि महाभारत युद्ध के दौरान भी कौरव दल पांडवों के अधिकार उन्हें लौटा देते और शांति स्थापित कर लेते एवं पश्चाताप कर लेते तब कृष्ण अर्जुन को शांति का ही मार्ग चुनने के लिए कहते. कुरान की आयत 5 अध्याय 9 में भी यही कहा गया है कि यदि वे तौबा कर लें, ईश्वर भक्ति करें, दान (जकात) दें तो उनका मार्ग छोड़ दें यानी युद्ध न करें.इस्लाम की एक और संकल्पना जिसे संदर्भहीन तरीके से व्यक्त किया जाता है वह है काफिर. इस शब्द के बारे में इतना कुप्रचार हुआ कि यकायक काफिर और गैरमुस्लिम समानार्थी लगने लगे हैं. काफिर शब्द का मूल अर्थ समझने से पहले इसका शाब्दिक अर्थ समझना जरूरी है.

    काफिर: यह ‘शब्द अरबी के ‘क’ ‘फ’ ‘र’ शब्दों से बना है जिसका सीधे-सीधे अर्थ है, ‘सत्य को छिपाना’. उदाहरणार्थ, यदि मैं अपने हाथ में एक सिक्का लूं और मुट्ठी बंद कर लूं और कहूं कि सिक्का नहीं है तो उस समय मैं सिक्के की सत्यता को छिपाने के लिए ‘काफिर’ हुआ.

    एक उदाहरण कुरान से- ईश्वर के समक्ष मनुष्यों के लिए सबसे अच्छा पेशा किसानी यानी खेतीबाड़ी का है और एक सच्चा किसान उसे बहुत प्यारा है. कुरान में ईश्वर ने कहा कि किसान बीज को धरती में छुपा देता है तो इस संदर्भ में ईश्वर ने किसान को काफिर कहा . क्या ईश्वर अपने ‘प्रिय’ किसान को ‘काफिर’ कहकर दुत्कारेगा! नहीं. किसान ने बीज को धरती में छिपाया इसलिए वह बीज की सत्यता को छिपाने के कारण काफिर कहा गया. इस तरह काफिर का सीधा-सीधा अर्थ हुआ ‘सत्य को छिपाने वाला’ या असत्य को सत्य कहने वाला .

    यह हर हिंदू तथा हिंदू धर्म के जिज्ञासु को अच्छी तरह से मालूम है कि पांडव सत्य के साथ थे और कौरव असत्य के. श्रीकृष्ण सारथी के रूप में सत्य के योद्धा अर्जुन को महाभारत युद्ध में उपदेश देते हैं कि अपने तयेरे (ताऊ का लड़का) भाई दुर्योधन की सेना जो कि असत्य मार्ग पर है उसे नष्ट कर दो. असत्य को सत्य बतलाने वाले यानी ‘काफिर’ – कौरव और उनका साथ देने वाले तुम्हारे दुश्मन हैं.तो कुरान में यदि यह आयत है कि निस्संदेह ‘काफिर’(सत्य को असत्य घोषित करने वाले) तुम्हारे खुले दुश्मन हैं तो यह बुरी बात कैसे है !

    इस्लाम पर एक और लांछन यह लगाया जाता है कि वह दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु नहीं है. जबकि यह वही धर्म है जो अन्य सभी धर्मों के प्रति समभाव रखने की हिदायत देता है.

    क्या इस्लाम अन्य धर्मों के प्रति असहिष्णु है: कुरान के दूसरे अध्याय की 213वीं आयत कहती है कि ईश्वर ने हर समाज और कौम को पैगंबर व ईश्वरीय किताब दी है. कुरान ईसाइयों और यहूदियों को ‘ अहले किताब’ का खिताब देती है. यानी वे धर्म जिनकी ईश्वरीय किताब है.कुरान के 60 वें अध्याय की 8-9 वीं आयत कहती है कि मुसलमानों को यह आदेश दिया जाता है कि उन गैरमुसलमानों के साथ सज्जनता के साथ और न्यायोचित बर्ताव करें जो उनके साथ मात्र मान्यताओं और आस्थाओं की खातिर बैर न रखते हों. लेकिन जो लोग मुसलमानों की आस्था की खातिर उनसे बैर रखते हों वे मित्रता के काबिल नहीं हैं.
    इस्लाम का मूल संदेश कुरान की इन दो आयतों से अभिव्यक्त होता है:

    1. ला इकराह फिद्दीन (धर्म पर किसी भी तरह जोर जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए)

    2. लकुम दीनकुम वली दीन ( तेरा धर्म तेरे लिए सही, मेरा धर्म मेरे लिए सही. और हम आपस में शांतिपूर्ण बर्ताव करें)

    1. अल्लाह को ईश्वर कहना बंद करें।

      और यदि बहस ही करनी है तो काॅपी पेस्ट न करें।

      1. Mujhe pta lag gaya ki tum such me bewkof ho.kyunki dunya ke 99% log allah iswar khuda god permatma ko ek hi khte hai. Baki ke 1% aapki trah kam dimag ke hai.

        1. mere bhai allah ishwar god yahova me bahut kaa antar hai ji. aur yah koi galat nahi kaha abhishek ji ne. aap yadi sahi se parhoge kuraan bible ved to sab ka arth aapko maalum ho jaayega.

    2. nafees mali -इस्लामी जन्नत v/s औरतेँ
      इस्लाम मेँ जहाँ एक आदमी को मरने के बाद 72
      हूर्रे मिलेगी वहीँ औरतो को क्या मिलेगा ??
      (A)
      “इब्ने उम्र ने कहा कि रसूल ने कहा कि औरतें
      दुनिया की सबसे
      घटिया मखलूक हैं .और्हर तरह से जहन्नम में जाने के
      योग्य हैं “
      बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस31
      बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस6
      (B)
      सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने
      कहा कि सारी औरतें एक बार
      नहीं तीन तीन बार जहन्नम में भेजने के योग्य हैं.
      सही मुस्लिम-किताब3 हदीस826 ,
      सुंनं मसाई-जिल्द2 हदीस1578 पेज342
      (C)
      “इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि औरतें
      तो जहन्नम
      का ईंधन हैं ,जिन से जहन्नम की आग को तेज
      किया जाएगा .”
      बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस124
      मुस्लिम-किताब36 हदीस6596
      (D)
      “इमरान बिन हुसैन ने कहा कि रसूल ने
      कहा कि ,जहन्नम को औरतों से
      भर दिया जाएगा .यहां तक कि दूसरों के लिए
      कोई जगह नहीं रहेगी “
      बुखारी-जिल्द4 किताब54 हदीस464
      (E)
      “अब्दुला इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने
      कहा कि ,अल्लाह
      बिना किसी भेदभाव के
      सारी औरतों को जहन्नम में दाखिल कर
      देगा .जाहे वे कितनी ही नमाजी और परहेजदार
      क्यों न हों “
      बुखारी-जिल्द1 किताब2 हदीस28
      बुखारी-जिल्द2 किताब2 हदीस161
      (F)
      “इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि मैं
      जहन्नम को औरतों से
      ठसाठस भरवा दूंगा .और देखूंगा कि कोई
      खाली जगह न रहे “
      बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस125,
      बुखारी-जिल्द6 किताब1 हदीस301,
      मिश्कात-जिल्द4 किताब42 हदीस24
      (G)
      “सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने
      कहा कि ,अल्लाह ने यह पाहिले से
      ही तय कर लिया है कि ,वह जितनी भी औरतें है
      उन सबको जहन्नम
      की आग में झोंक देगा .ओर इस में किसी भी तरह
      कि शंका नहीं है .”
      बुखारी–जिल्द7 किताब62 हदीस124,
      तिरमिजी-हदीस568 1,
      मिश्कात-जिल्द4 किताब42 हदीस24
      (H)
      “सैईदुल खुदरी ने कहाकि ,रसूल ने कहा कि ,जहन्नम
      में अधिकाँश औरतें
      ही होंगी .और उनको दर्दनाक सजाएं
      दी जायेंगी .सबसे पाहिले छोटे
      छोटे पत्थरों को गर्म किया जाएगा .फिर उन
      पत्थरों को औरतों की छातियों पर रख
      दिया जाएगा .जिस से
      उनकी छातियाँ जल जायेगी .फिर उन गर्म
      पत्थरों को औरतों के आगे
      और पीछे के छेदों (vagina और anus )में
      घुसा दिया जाएगा ,जिस
      से उनको दर्द होगा ,और यह सब मेरे सामने होगा ।
      बुखारी-जिल्द1 किताब22 हदीस28
      (I)
      “रसूल ने कहा कि जहन्नम के चौकीदार होंगे ,और
      अगर कोई औरर
      बाहर निकलनेकी कोशिश करेगी तो उसे वापिस
      जहन्नम में डाल
      दिया जाएगा“
      इब्ने माजा-किताब१ हदीस113
      –अब तो सारी औरतो और लडकियों को इस्लाम छोड़ देना चाहिए-

      1. nafees mali -इस्लामी जन्नत v/s औरतेँ
        इस्लाम मेँ जहाँ एक आदमी को मरने के बाद 72
        हूर्रे मिलेगी वहीँ औरतो को क्या मिलेगा ??
        (A)
        “इब्ने उम्र ने कहा कि रसूल ने कहा कि औरतें
        दुनिया की सबसे
        घटिया मखलूक हैं .और्हर तरह से जहन्नम में जाने के
        योग्य हैं “
        बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस31
        बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस6
        (B)
        सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने
        कहा कि सारी औरतें एक बार
        नहीं तीन तीन बार जहन्नम में भेजने के योग्य हैं.
        सही मुस्लिम-किताब3 हदीस826 ,
        सुंनं मसाई-जिल्द2 हदीस1578 पेज342
        (C)
        “इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि औरतें
        तो जहन्नम
        का ईंधन हैं ,जिन से जहन्नम की आग को तेज
        किया जाएगा .”
        बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस124
        मुस्लिम-किताब36 हदीस6596
        (D)
        “इमरान बिन हुसैन ने कहा कि रसूल ने
        कहा कि ,जहन्नम को औरतों से
        भर दिया जाएगा .यहां तक कि दूसरों के लिए
        कोई जगह नहीं रहेगी “
        बुखारी-जिल्द4 किताब54 हदीस464
        (E)
        “अब्दुला इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने
        कहा कि ,अल्लाह
        बिना किसी भेदभाव के
        सारी औरतों को जहन्नम में दाखिल कर
        देगा .जाहे वे कितनी ही नमाजी और परहेजदार
        क्यों न हों “
        बुखारी-जिल्द1 किताब2 हदीस28
        बुखारी-जिल्द2 किताब2 हदीस161
        (F)
        “इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि मैं
        जहन्नम को औरतों से
        ठसाठस भरवा दूंगा .और देखूंगा कि कोई
        खाली जगह न रहे “
        बुखारी-जिल्द7 किताब62 हदीस125,
        बुखारी-जिल्द6 किताब1 हदीस301,
        मिश्कात-जिल्द4 किताब42 हदीस24
        (G)
        “सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने
        कहा कि ,अल्लाह ने यह पाहिले से
        ही तय कर लिया है कि ,वह जितनी भी औरतें है
        उन सबको जहन्नम
        की आग में झोंक देगा .ओर इस में किसी भी तरह
        कि शंका नहीं है .”
        बुखारी–जिल्द7 किताब62 हदीस124,
        तिरमिजी-हदीस568 1,
        मिश्कात-जिल्द4 किताब42 हदीस24
        (H)
        “सैईदुल खुदरी ने कहाकि ,रसूल ने कहा कि ,जहन्नम
        में अधिकाँश औरतें
        ही होंगी .और उनको दर्दनाक सजाएं
        दी जायेंगी .सबसे पाहिले छोटे
        छोटे पत्थरों को गर्म किया जाएगा .फिर उन
        पत्थरों को औरतों की छातियों पर रख
        दिया जाएगा .जिस से
        उनकी छातियाँ जल जायेगी .फिर उन गर्म
        पत्थरों को औरतों के आगे
        और पीछे के छेदों (vagina और anus )में
        घुसा दिया जाएगा ,जिस
        से उनको दर्द होगा ,और यह सब मेरे सामने होगा ।
        बुखारी-जिल्द1 किताब22 हदीस28
        (I)
        “रसूल ने कहा कि जहन्नम के चौकीदार होंगे ,और
        अगर कोई औरर
        बाहर निकलनेकी कोशिश करेगी तो उसे वापिस
        जहन्नम में डाल
        दिया जाएगा“
        इब्ने माजा-किताब१ हदीस113
        –अब तो सारी औरतो और लडकियों को इस्लाम छोड़ देना चाहिए-
        ——-
        हदीस का कामसूत्र
        १ औरत संभोग के पहले अपने नीचे के बाल साफ करें
        बुखारी जिल्द ७ कि ६२हदीस १७५
        २ सदा संभोग के लिये औरत तैयार रहे.जेहादी उनसे कभी भी संभोग कर सकता है.सही मुसलिम किताब ८ ह ३२४०
        ३संभोग जरूरी है .औरत चाहे या नहीं…..सही मु*८हदीस ३२४०
        ४ पत्नी की छाती से दूध चूसना हलाल है….मुवत्ता किताब ३०हदीस२१४
        ५ कुंवारियां संभोग के लिये उत्तम है….बुखारी ७कि६२हदीस ५०४
        ६तुम मासिक के समय भी संभोग करसकते हो..अबू दाऊद किताब१हदीस २७०
        ७रसूल ने कहा कि कुंवारी से मैथुन में खूब आनंद आता है. .मुस*८हदीस ३४५९
        ८आयशा ने कहा कि रसूल मुझसे संभोग के बाद बिन नहाये सो जाते और नमाज पढ़ने चले जाते.अबू दाऊद हदीस ४२
        ९उम्म सलेम ने कहा कि नारी का योनी स्राव पीला और चाटने में तल्ख व तीखा होता है.अबू किताब ३ हदीस ६१०
        १० जेहादी एक रात की शादी कर सकता हा….सही मुसलिम ८हदीस ३२५३
        ये है हदीस जिसके आगे कामसूत्र फेल है.कोई व्यक्ति कृपया आहत न हो.मैं ठेस पहुंचाने को नहीं बल्कि सच बताने को लिख रहा हूं.रृपया तर्क ले खंडन करें.गाली गलौज न करें शंका समाधान करें
        वंदेमातरम

  38. ला इकराह फिद्दीन का सोनूनुजल (सही उच्चारण स्मरण में नहीं आ रहा) बताएँ?

  39. मस्जिद में औरतों पर पाबन्दी क्यों ?

    विश्व के जितने भी बड़े धर्म है , सभी में उनके उपासना ग्रहों में पुरुषों के साथ स्त्रियों प्रवेश करने की अनुमति दी गयी है . जसे मंदिरों में अक्सर हिन्दू पुरुष अपनी पत्नियों और माता बहिनों के साथ पूजा और दर्शन के लिए जाते है . गुरुद्वारों में भी पुरुष -स्त्री साथ ही अरदास करते है . और चर्च में भी ऐसा ही होता है ,लेकिन कभी किसी ने इस बात पर गौर किया है कि पुरषों के साथ औरतें दरगाहों में तो जा सकती हैं ,लेकिन मस्जिदों में उनके प्रवेश पर पाबन्दी क्यों है .जबकि इस्लाम पुरुष और स्त्री की समानता का दावा करता है ‘इस प्रश्न का उत्तर हमें खुद कुरान और हदीसों से मिल जाता है .जिस पर संक्षिप्त में जानकारी दी जारही है .

    1-मस्जिदें आतंकियों का अड्डा हैं
    यदि हम विश्व दुसरे देशों के साथ होने वाली इस्लामी जिहादी आतंकी घटनाओं का विश्लेषण करें तो हमें पता चलेगा की जैसे जैसे आतंकवादी अपनी नयी नयी रणनीति बदलते जाते है ,वैसे वैसे ही मस्जिदों की निर्माण शैली में भी परिवर्तन होता रहता है , यदि आप सौ दो साल पहिले की किसी मस्जिद को देखें पाएंगे कि उसमे चारों तरफ ऊंची दीवार , मीनारें , गुम्बद और बीच में पानी का एक हौज होगा , और एक तरफ मिम्बर होगा जिस पर से इमाम खुतबा देता है .
    लेकिन आजकल जो मस्जिदें बन रही हैं , उनके साथ दुकानें , रहने के लिए सर्व सुविधा युक्त कमरे और तहखानों के साथ भूमिगत सुरंगे भी बनायीं जाती है . जिस से गुप्त रूप से निकल भागने से आसानी हो .ऐसी ही मस्जिदों के तहखानों में हथियार छुपाये जाते हैं , जो दंगों के समय निकालकर प्रयोग किये जाते है . यही नहीं इन्हीं गुप्त सुरंगोंसे आतंकी आसानी से भाग जाते हैं .जबलपुर दंगों में ऐसी मस्जिदों से हथियार बरामद हुए थे. चूँकि मुसलमान जो भी आतंकी कार्यवाही करते हैं उसकी प्रेरणा कुरान से लेते हैं .और उसी की प्रेरणा से मस्जिदों में हथियार भी छुपाते रहते हैं , जैसे कुरान में कहा है ,

    “और लोगों ने मस्जिदें इसलिए बना रखी हैं , कि वहां से लोगों को हानि पहुंचाएं ,और आपस में फूट डालें .और अपने विरोधियों पर घात लगाने की योजनायें बनाने का स्थल बनायें ” सूरा – तौबा 9 :107

  40. 2-औरतें घर में नमाज क्यों पढ़ें
    इसके सिर्फ दो ही कारण हो सकते हैं , एक तो यह की मुहम्मद एक चालाक व्यक्ति था , उसे पता था कि मस्जिदें फसाद जी जड़ होती हैं . और दंगों में अक्सर औरतें ही निशाना बनायीं जाती है . और बलात्कार करना जिहाद का एक प्रमुख हथियार है . मुहम्मद को दर था कि यदि औरतें मस्जिद जाएँगी तो वापसी में खुद मुस्लमान ही उनके साथ बलात्कार कर सकते है , इस लिए उसने यह हदीस सुना दी थी .
    “अब्दल्लाह बिन मसूद ने कहा कि रसूल का आदेश है ,औरतों के यही उचित है कि वह यातो अपने घर के आँगन में नमाज पढ़ें , या घर के इसी एकांत कमरे में नमाज पढ़ा करें ” सुन्नन अबू दाउद-जिल्द 1 किताब 204 हदीस 570

    3-औरतों की बुद्धि अधूरी होती है
    दूसरा कारण यह है कि मुहम्मद की सभी औरतें मुर्ख और अनपढ़ थीं , उसी कि नक़ल करके मुसलमान औरतों को शिक्षा देने के घोर विरोधी है , उनको डर लगा रहता है कि अगर औरतें पढ़ जाएँगी तो इस्लाम कि पोल खुल जाएगी .अक्सर जब औरतें पकड़ी जाती है तो वह जल्दी से राज उगल देती है .इसलिए अक्सर मुसलमान गैर मुस्लिम लड़की को फसाते है
    ” सईदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने कहा है औरतों दर्जा पुरुषों से आधा होता है ,क्योंकि उनकी बुद्धि पुरुषों से आधी होती है “बुखारी -जिल्द 3 किताब 48 हदीस 826

  41. 4-औरतें चुगलखोर होती हैं

    दुनिया के सारे मुसलमान किसी न किसी अपराध में संलग्न रहते हैं . और मस्जिदों के इमाम बुखारी जैसे मुल्ले उनको उकसाते रहते हैं . सब जानते है कि अक्सर औरतें अपने दिल कि बातों को देर तक नहीं छुपा सकती है ,जिस से मुसलमानों को पकडे जाने का खतरा बना रहता है .इसलिए वह औरतों को मस्जिदों में नहीं जाने देते हैं
    “सईदुल खुदरी ने कहा कि एक बार जब रसूल नमाज पढ़ चुके और मुसल्ला उठा कर एक खुतबा ( व्याख्यान ) सुनाया और कहा मैंने आज तक औरतों से अधिक बुद्धि में कमजोर किसी को नहीं देखा . क्योंकि उनके पेटों में कोई बात नहीं पचती है .यानि वह गुप्त बातें उगल देती हैं “बुखारी -जिल्द 2 किताब 24 हदीस 54
    इसी विषय में जकारिया नायक ने बड़ी मक्कारी से कहा है कि केवल भारत में औरतों को मस्जिद में जाने पर पाबन्दी है . और दुसरे इस्लामी देशों में ऐसा नहीं है . लेकिन वास्तविकता तो यह्हाई कि जहाँ मुस्लिम औरतें जिहाद करती हैं उन देशों में औरतें मस्जिद में जा सकती है , और जब भारत में भी मुस्लिम आतंकी औरतों की संख्या अधिक हो जाएगी , यहाँ भी औरतें मस्जिदों में जाने लगेंगी . क्योंकि फिर छुपाने की कोई बात नहीं रहेगी . देखिये विडियो
    Why ain’t Women allowed in Mosques in India? Dr Zakir Naik

    http://www.youtube.com/watch?v=XyyJ7iYh3fw

    कुछ दिन पूर्व हमारे प्रबुद्ध मित्र ने पूछा था कि औरतों को मस्जिदों में प्रवेश करने पर पाबन्दी क्यों है . इसलिए जल्दी में कुरान और हदीस के आधार पर उनके प्रश्न का उत्तर दिया जा रहा है . मुझे पूरा विश्वास है कि इस लेख को पढ़कर सभी लोग स्वीकार करेंगे कि मस्जिदें ही आतंकवादियों की शरणस्थल हैं . और वहीं से जिहाद की शिक्षा दी जाती है .

  42. “Women are crooked like ribs. When you attempt to straighten them out, they crack
    Muhammad has said that women are crooked. One assumes he meant that they are using trickery to get what they want: see Hadith of Bukhari 7.62.113 and 7.62.114:
    Abu Huraira has handed down to us: Allah’s Apostle said , “Woman is like a rib; if you attempt to straighten her out, she cracks. Thus, if you wish to profit from her, do it while she is still crooked.”A man has the right to divorce without giving a reason, whereas a woman can only get a divorce via the courts and provided she can present a dossier with good arguments
    In principle, a man declares three times that he wants to divorce his wife and his wish is fulfilled. The rules for divorce are written in the Quran verses 2.227 to 2.241.
    That a woman cannot get a divorce at her own initiative is evidenced by a Hadith such as 7.63.197 of Bukhari:
    Narrated Ibn ‘Abbas: The wife of Thabit bin Qais came to the Prophet and said, “O Allah’s Apostle! I do not blame Thabit for defects in his character or his religion, but I, being a Muslim, dislike to behave in un-Islamic manner (if I remain with him).” On that Allah’s Apostle said (to her), “Will you give back the garden which your husband has given you (as Mahr)?” She said, “Yes.” Then the Prophet said to Thabit, “O Thabit! Accept your garden, and divorce her once.”
    The following points are striking in the above citation:
    – A woman wanting a divorce must present a reason (a man not), in this case un-Islamic conduct

  43. – When the woman takes the initiative towards divorce, she needs to buy or negotiate her freedom. This proposition is also supported by Quran verse 2.229 that talks of “becoming free”. “…If you are in doubt that they will be able to abide by Allah’s dictates, neither of them shall be culpable of sin in what she gives back in order thereby to be set free…”. The Quran here implicitly holds that marriage for woman means a kind of confinement.
    – In his role of judge, Muhammad orders the man to divorce his wife. Hence, Muhammad himself does not dissolve the marriage. It is rather the husband who does it. In Saudi-Arabia, men that refuse divorce simply don’t show up for the divorce proceedings; as a result, the woman does not “become free”.How many times have you heared the following lie ?
    Women have high status and privileged position in Islam
    Lets have a short look at womens right in Islam and you be the judge if they are priviliges and they put women in high status :
    1-To be declared in the holy books that women are deficient in intelligence and that most of them will go to hell for being ungrateful to their husbands; and that they will make the big majority of the hell’s population? Is that a privilige ?
    2-To share the husband with three other wives and many concubines, sex slaves and captive women which his right hand posses? (you need all the help you can get to compete with the other wives and concubines). Maybe this one is a privilige , No ? How about the next one ?
    3-To be divorced by the husband at the drop of a hat by just his proclaiming 3 times “I divorce you” and women not having the same right to divorce him?
    4- To be disciplined by the husband, by being beaten up by him with scourge (lash) and green sticks? (Unless you are into the kinky stuff and actually enjoy the beatings)..
    5- Being raped and then be stoned to death for reporting it because you need 4 male witnesses to prove your innocence otherwise you yourself get accused of adultery?
    Your only chance of finding 4 male witnesses is that if the attacker was of very low IQ , attacked you in the broad daylight in front of a bunch of degenerate horny men who watched and cheered without trying to stop the rape and are later willing to testify.
    6- Being wrongly accused of adultery by a conniving husband and be stoned for it because he does not need 4 male witnesses if he swears 4 times himself?
    7- Being married at the age of 9 years to a much older man because it is sunna? To submit to him every time he desires you even if he wants it on the back of a camel, if he gets an untimely urge? (Not recommended, you both may fall down from camel’s back during the action and sustain injuries).
    8- To be declared half a person as witness in court or inheriting property?
    9- Being cursed all night by thousands of angels if you refuse him even for a genuine reason? (What a boring job for angels who are assigned to watch your bedroom, always waiting for the action, unless of course they enjoy watching; in that case they have a reason to be disappointed and pissed by your refusal).
    10-To be asked to stay at home by scriptures and only leave home if husband permits; that too fully covered by a tent like garment even if it is scorching hot .
    Have you heared any of above priviliges from muslim appologists ? Nest time when you hear any of the saying that men and women are equal in Islam or better yet , women are in higher status , ask them about a few of the above priviliges.
    And finally ask them : If we ( men and women ) are equal , then lets change our privileges for a few days or years or forever.”

  44. वेद में बड़ी ही शिक्षाप्रद बात कही है , जो उन लोगों पर लागू होती है , जो किसी न किसी कारण से मुसलमान बन गए हैं , वेद मन्त्र है ,
    “अन्धं तमः प्रविशन्ति ये अविद्यामुपासते “यजुर्वेद -40:9 अर्थात ,जो लोग अविद्या (अज्ञान ) की उपासना करते हैं , वह अज्ञान के ऐसे अँधेरे कुएं में गिर जाते हैं ,जिस से निकलना कठिन है .
    यह बात इस्लाम की धर्म परिवर्तन की नीति और तरीके पर बिलकुल लागु होती है , जिसे जानने के बाद हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि सचमुच इस्लाम धर्म नहीं बल्कि अज्ञान का एक ऐसा अँधेरा कुंआ है , जिस में गिर जाने पर बाहर निकलने के लिए निडरता और इस्लाम की असलियत को समझना बहुत जरुरी है .क्योंकि आज भारत में जितने भी मुसलमान हैं , उनके पूर्वज इस्लाम के गुणों से प्रभावित होकर नहीं बल्कि मजबूरी में मुसलमान बने थे . या आजकल वह भोली भाली हिन्दू लड़कियां मुस्लमान बन जाती हैं , मक्कार मुस्लिम लड़कों के फरेबी प्रेम जाल में फस जाती है .
    यही नहीं यह भी पता चला है कि सेकुलरिज्म और भाईचारा की आड़ में कुछ ब्लॉगर , लेखक ,और धूर्त इस्लाम के प्रचारक हिंदुओं गुमराह करने में लगे हुए हैं , और वह धर्म परिवर्तन के लिए ऐसे लोग चुनते हैं जिन्हें न तो हिदू गर्न्थों का ज्ञान है और न इस्लाम की दोगली निति का पता है , ऐसे ही लोगों की आँखें खोलने के लिए ही यह लेख दिया जा रहा है
    2-कुरान का पाखण्ड
    जिस तरह से ढोंगी , पाखंडी , धोखेबाज और मक्कार लोगों के अज्ञान का फायदा उठाकर अपनी लुभावनी बातों के जाल में फसा कर ठग लेते हैं , उसी तरह कुरान में कुछ ऎसी आयतें भी देदी गयीं हैं , जिन से इस्लाम का असली खूंखार रूप ढक जाये और अज्ञानी लोग इस्लाम के प्रति आकर्षित हो जाएँ , जिस से उन लोगों का धर्म परिवर्तन करने में आसानी हो जाये , अक्सर चालाक मुल्ले इस्लाम की तारीफ करने के लिए इन्ही आयतों का सहारा लेते हैं ,
    “तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म और हमारे लिए हमारा धर्म ” सूरा -काफिरून 109 :6
    ” कह दो यह ( इस्लाम ) अल्लाह की तरफ से एक सत्य है , अब जो चाहे इसे कबूल कर ले , और जो चाहे इस से इंकार कर दे ”
    सूरा – अल कहफ़ 18 :29
    “धर्म के बारे में किसी पर जबरदस्ती नहीं है ” सूरा – बकरा 2 :256
    कुरान ऎसी आयतें पढ़ कर जो लोग इस्लाम को भी धर्म समझ लेते हैं , वह नहीं जानते कि हाथी की तरह इस्लाम के खाने के और दिखने के दांत अलग है ,और कोई इस्लाम के अंध कूप में में गिर जाये तो बाहर निकलना सरल नहीं है ,क्योंकि इस्लाम ने धर्म परिवर्तन के बारे में दोगली नीति अपना रखी है ,
    3-इस्लाम परित्याग या इरतिदाद
    शरीयत के कानून में इस्लाम का परित्याग करने के लिए अरबी का पारिभाषिक ” इरतिदाद – ارتداد ” इस्तेमाल किया जाता है. जिसका अर्थ अंगरेजी में “Apostasy ” होता है . यह शब्द अरबी की मूल शब्द “रिद्दाह – ردة ” से बना है , जिनके अर्थ ” पलट जाना (relapse ) और वापसी (regress) भी होते हैं . और जो भी मुसलमान इस्लाम छोड़ता है ,और वापस अपने पुराने धर्म में या किसी और धर्म में जाता है , उसे ” मुरतिद -مرتد ” कहा जाता है। और जिस देश में इस्लामी हुकूमत होती है वहाँ मूरतिद को मौत की सजा दी जाती है , और जहाँ इस्लामी कानून नहीं चलता है वहाँ के मुल्ले उस मूर्तिद की हत्या करावा देते है .क्योंकि मुहम्मद ने हदीसों में मुरतिद की हत्या करने का आदेश दिया गया है , जिसका पालन करना हर मुस्लिम का फर्ज माना गया है .
    http://www.thereligionofpeace.com/Quran/012-apostasy.htm
    4-इरतिदाद के चार प्रकार
    इस्लाम को त्यागने यानी ‘इर्तिदाद’ के चार प्रकार बताये गए हैं , जिनके लिए शरीयत में मौत की सजा का विधान है ,
    1.ईमान में इरतिदाद -“रिदाह फिल अक़ायद -الردة في الاعتقاد “( Apostasy in beliefs)
    जैसे किसी को अल्लाह का पुत्र या अवतार मानना और अल्लाह के समान उसकी इबादत करना

  45. .2.शब्दों में इरतिदाद “रिदाह फ़िल कलिमात – الردة في الكلمات ” (Apostasy in words )
    अल्लाह के रसूल की बुराई करना या मजाक उड़ाना .
    3.कामों से इरतिदाद “रिदाह फिल अमल – الردة في العمل ” (Apostasy in action )
    जैसे कुरान को नीचे पटक देना , जलाना या फाड़ना ,रसूल की तस्वीर बनाना मूर्ति पूजा करना ,किसी देवी देवता को प्रणाम करना इत्यादि
    4.विधि में चूक से इर्तिदाद “रिदाह अन तरीक अल सहू – الردة عن طريق السهو ” (Apostasy by omission)
    इसमे चूक से स्वधर्म त्याग करना भी शामिल है , जैसे नमाज छोड़ देना इस्लाम में बताये गए कानून और नियमों का पूरी तरह से पालन नहीं करना . इन सभी बातों के आधार पर मुल्ले मौलवी तय करते हैं कि किसी मुस्लिम ने इर्तिदाद किया है अथवा नहीं ,और उसे ” मुर्तिद ” घोषित करके मौत की सजा देना चाहिए या नहीं . मुस्लिम देशों में वहाँ की अदालतें खुद मूर्तिद को मौत की सजा दे देती हैं . लेकिन भारत में यहाँ के मुफ़्ती और मुल्ले ” मूर्तिद ” की हत्या करने वाले को इनाम देने की घोषणा कर देते हैं ,जिस से इस्लाम के विरुद्ध लिखने और बोलने वाले विदेशों में जाकर बस गए है . जैसे “सलमान रश्दी “और ” तस्लीमा नसरीन “आदि .
    5-इस्लाम की असहिष्णुता
    ” जो लोग चाहते है कि जैसे वह काफिर हैं , तुम भी काफिर हो जाओ , तो तुम ऐसे लोगों को अपना मित्र नहीं बनाना , बल्कि उनको जहाँ पाओ पकड़ो और उनको क़त्ल कर दो ” सूरा -निसा 4 :89
    “और जो लोग तुम्हारे धर्म में बुराई निकालें तो उन से लड़ाई करते रहो ,इस से वह ऐसा करने से बाज आयेंगे “सूरा -तौबा 9 :12
    “और तुम में से जो भी अपना धर्म (इस्लाम ) छोड़ कर फिर से काफिर हो जाये तो समझो उसका किया गया सब कुछ बेकार हो गया , और वह सदा के लिए जहन्नम में रहेगा “सूरा -बकरा 2 :217
    “जिन लोगों ने इस्लाम के बाद फिर से कुफ्र अपनाया तो उनको कुछ नहीं मिलेगा , और अगर वह तौबा कर लें तो उनके लिए अच्छा होगा , फिर भी यदि वह तौबा से मोड़ लें ,तो उनकी कोई मदद नहीं होना चाहिए ” सूरा-तौबा 9 :74
    ” तुम इस्लाम के विरोधी इन गुटों से पूछो ,कि क्या तुम अल्लाह की आयतों और उसके रसूल का मजाक उड़ा रहे हो ? यानि तुमने इस्लाम अपनाने के बाद कुफ्र किया है . इसलिए हैम एक गिरोह को माफ़ भी कर देंगे ,तो दूसरे को यातना देकर ही रहेंगे . क्योंकि ऐसा करना अपराध है ” सूरा -तौबा 9 :66
    6- इस्लाम का अंधा कानून
    इस्लामी देशों में इस्लाम छोड़ कर कोई अन्य धर्म स्वीकार करने पर हमेशा मौत की सजा दी जाती है , या हत्या कर दी जाती है , क्योंकि ,
    शरीयत के कानून के अनुसार यदि कोई स्वस्थ चित्त वाला वयस्क पुरुष या स्त्री अपनी इच्छा से इस्लाम छोड़ कर कोई अन्य धर्म अपना लेता है , तो इस अपराध के लिए उसका खून बहा देना चाहिए, और यदि वहाँ इस्लामी हुकूमत हो तो जज या काजी ,और काबिले का मुखिया उसकी सजा को पूरा करे . क्योंकि रसूल का हुक्म है इस्लाम त्यागने और मुसलमानों की जमात छोड़ने वालों को मौत की सजा देना चाहिए , जैसा इन हादिसों में कहा गया है ,
    (See al-Mawsooâah al-Fiqhiyyah, 22/180. )
    1.”अनस ने कहा कि इब्ने अब्बास ने बताया ,रसूल ने कहा है जो भी व्यक्ति अपना धर्म ( इस्लाम ) बदलेगा उसे मार डालो ”
    ” مَنْ بَدَّلَ دِينَهُ فَاقْتُلُوهُ ”
    ‘Whoever changes his religion, kill him.'”
    सुन्नन नसाई – जिल्द 5 किताब 37 हदीस 4069
    2.अब्दुल्लाह बिन मसूद ने कहा कि रसूल का आदेश है ,जो भी इस्लाम और जमात को छोड़ दे तो उसको क़त्ल कर दो ”
    وَالتَّارِكُ لِدِينِهِ الْمُفَارِقُ لِلْجَمَاعَةِ ” . ”
    “one who leaves his religion and splits from the Jama`ah.should be killed”
    इब्ने माजा – जिल्द 3 किताब 20 हदीस 2534

  46. 7-इस्लाम छोङने की सजा
    सही बुखारी को हदीस की सबसे प्रमाणिक हदीस की किताब माना जाता है , क्योंकि इस्लामी देशों में उसी के आधार पर शरीयत के कानून बनाये गए हैं , इसी किताब में इस्लाम छोड़ कर अन्य धर्म अपनाने वाले को क़त्ल करने का आदेश दिया गया है , नमूने के लिए चार हदीसें दी जा रही हैं ,
    1-इकिरिमा ने बताया कि रसूल का हुक्म है ,यदि कोई मुस्लिम इस्लाम छोड़ देता है ,तो बिना किसी शक के उसको क़त्ल कर दो , और यदिकोई इस्लाम अपनाता है तो उस से कोई सवाल नहीं करो ”
    सही बुखारी – जिल्द 4 किताब 52 हदीस 260
    2-इकिरिमा ने कहा कि रसूल ने कहा है ,जोभी इस्लाम का त्याग करता है , उसे क़त्ल कर दिया करो ”
    सही बुखारी – जिल्द 9 किताब 84 हदीस 57
    3-अबू मूसा ने मुआज को बताया कि एक मुस्लिम ने यहूदी धर्म अपना लिया है . यह सुनते ही मुआज बोला , मैं तब तक शांत नहीं बैठूँगा जब तक उसको क़त्ल नहीं कर देता , क्योंकि रसूल का यही आदेश है ”
    सही बुखारी – जिल्द 9 किताब 89 हदीस 271
    4-रसूल ने कहा कि कुछ ऐसे मुर्ख है , कि इस्लाम उनके गले नीचे नहीं उतरता , और ऐसे ही लोग इस्लाम छोड़ देते है , इसलिए तुम्हें जहाँ भी ऐसे लोग मिलें उनको खोज खोज कर क़त्ल कर दिया करो , क़ियामत के दिन तुम्हे इसका उत्तम इनाम मिलेगा ”
    सही बुखारी – जिल्द 9 किताब 84 हदीस 64
    8-इस्लाम त्यागने पर फतवा
    इस्लाम की पक्षपाती नीति और दादागीरी इस बात से पता चलती है ,कि यदि कोई अपना धर्म त्याग कर इस्लाम काबुल करता है तो कोई आपत्ति नहीं करता ,लेकिन अगर कोई मुस्लिम इस्लाम को त्याग कर अन्य धर्म अपना लेता है ,तो मुल्ले उसे ” मुरतिद ” घोषित करके क़त्ल के योग्य ठहरा देते है . इसके प्रमाण के लिए मिस्र के काहिरा की इस्लामी यूनिवर्सिटी “जामअ तुल अज़हर शरीफ – جامعة الأزهر (الشريف) “के मुफ्ती “अब्दुल्लाह मिशदाद – عبد الله المشد ” ने 23 नवम्बर सन 1978 में उस समय जारी किया था ,जब एक मुस्लिम ने इस्लाम को छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया था . और कुछ लोगों ने मुफ़्ती से इस्लाम त्यागने की सजा के बारेमे प्रश्न किया था , उसी फतवे के मुख्य अंशों का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है ,
    सवाल – इस व्यक्ति के बारे में शरीयत का कानून क्या कहता है ? और क्या उसके बच्चे मुसलमान माने जायेगे ? या ईसाई ?
    जवाब -शरीयत के अनुसार इस व्यक्ति ने “इरतिदाद ” किया है . और अगर वह तौबा ( repent ) नहीं करता तो शरई कानून के मुताबिक उसको क़त्ल कर देना चाहिए . जहां तक बच्चों का सवाल है ,तो अभी वह नाबालिग हैं . और यदि बालिग हो जाने पर वह भी तौबा नहीं करते और मुसलमान नहीं बनते तो उनको भी क़त्ल कर देना चाहिए . यही कानून है .
    प्रमाण के लिए उस फतवा की लिंक और इमेज दी जा रही है .
    http://www.councilofexmuslims.com/index.php?topic=24511.0
    http://en.wikipedia.org/…/File:Rechtsgutachten_betr_Apostas…
    9-इस्लाम छोङने वाले
    चूँकि इस्लाम तर्कहीन , निराधार और कपोल कल्पित मान्यताओं पर ही टिका हुआ है , जिसे ईमान के नाम पर मुस्लिम बच्चों पर थोप दिया जाता है , जिस से उनकी सोचने समझने की बुद्धि कुंद हो जाती है और बड़े होकर वह कट्टर जिहादी बन जाते हैं , लेकिन जब भी किसी बुद्धिमान को इस्लाम के भयानक और मानव विरोधी असली रूप का पता चल जाता है ,वह तुरंत इस्लाम के अंधे कुएं से बाहर निकल जाता है . आयुसे ही कुछ सौभाग्य शाली प्रसिद्ध लेखकों ,मानवता वादी का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है ,
    1-इब्ने वर्राक (ابن وراق )-इनका जन्म पाकिस्तान में हुआ था . यह उनका असली नाम नहीं है , इनके नाम का अर्थ है ” कागज बनाने वाले का बेटा ” क्योंकि उनके पिता कागज बनाते थे . इन्होने इस्लाम की पोल खोलने के लिए कई किताबें और लेख प्रकाशित किये हैं ,इनको दूसरा सलमान रश्दी भी कहा जाता है . इनकी साईट है SecularIslam.org
    2-तस्लीमा नसरीन( তসলিমা নাসরিন ) -इनका जन्म बंगला देश में 25 अगस्त सन 1962 में हुआ था . यह इस्लाम छोड़कर नास्तिक ( Atheist) बन गयी , इनकी किताब “लज्जा “पर मुल्लों ने इनकी हत्या करवाने का फतवा दिया था ,इनकी साईट का पता है ,
    TaslimaNasrin.com

    1. आपने सभी आयते काट छाट के लिखी है। और कुछ आयते अपनी तरफ से लिखी है। जो बिल्कुल गलत है और इस्लाम मे नही है।

      1. ये बताओ आदम हव्वा को आप लोग क्या मानते हो उसी से बात आपको समझ में आ जाएगा

  47. 3-अली सीना ( علي سينا )-इनका जन्म ईरान में हुआ था , यह भी इस्लाम से आजाद होकर नास्तिक (Atheist) बन गए और इस्लाम के महान आलोचक और लेखक हैं ,इनकी किताबों और लेखों के कारन इनको कई बार गिरफ्तार भी किया गया था . लेकिन इनके तर्कों और प्रमाणों के सामने मुल्ले निरुत्तर हो गए ,इन की साईट का नाम है , FaithFreedom.org
    4-डॉ ,परवीन दारबी (پروین دارابی )-इनका जन्म ईरान की राजधानी तेहरान में सन 1941 में हुआ था , यह भी इस्लाम को ठुकरा कर नास्तिक बन गई और अमेरिका में बस वहाँगयी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयास रत हैं . इन्होने भी कई किताबें और लेख प्रकाशित किये जिन में इस्लाम को बेनकाब किया गया है इनकी साईट है .Homa.org
    I5-नौनी दरवेश ( نوني درويش )-इनका जन्म सन 1949 में मध्य एशिया में हुआ था . इन्होने मिस्र में अमेरिका और मिस्र की तरफ से एक मानव अधिकार रक्षक की तरह काम किया था , इन्होने भी इस्लाम छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया है . इनकी प्रसिद्ध किताब ” Now They Call Me Infidel ” पर भी फतवा जारी हुआ है ,)-NonieDarwish.com
    6-अनवर शेख -इनका जन्म एक कश्मीरी पंडित के घर हुआ था , जिसे बल पूर्वक मुसलमान बना दिया था इन्होने अरबी फ़ारसी के साथ इस्लाम का अध्यन किया था . लेकिन इस्लाम की हकीकत पता होजाने पर यह हिन्दू बन गए और अपना नाम अनिरुद्ध ज्ञान शिखा रख लिया . इनकी साईट का नाम है
    http://www.islam-watch.org
    इसके आलावा इनके लेख इस साईट http://islamreview.org/anwarshaikh/author.html में और यू ट्यूब में भी हैं जिनका शीर्षक है ,Islam can’t co-exist with other religions” Anwar Shaikh. Part 1/3 ..
    http://www.youtube.com/watch?v=_HNNgKiGyWE
    10-इस्लाम सवालों से डरता है
    जिस तरह से हरेक बड़े से बड़ा अपराधी और भ्रष्ट नेता भी खुद को निर्दोष और साफ सुथरे चरित्र वाला व्यक्ति होने का दावा किया करता है , लेकिन जब निष्पक्ष जाँच की जाती है तो पूछे गए सवालों से घबरा जाता है , क्योंकि सवालों से उसके निर्दोष होने के दावे का भंडा फुट जाने का डर लगता है , इसी तरह इस्लाम भी लोगों से सिर्फ ईमान लाने पर जोर देता है , क्योंकि इस्लाम में अल्लाह ,रसूल और कुरान की सत्यता के बारे में सवाल करना और वाद विवाद करने को गुनाह माना जाता है . इसी लिए मुल्ले मुस्लिम बच्चों को कुरान का व्याकरण सम्मत अर्थ सिखाने की जगह कुरान को तोते की तरह रटने पर बल देते हैं ,क्योंकि मुल्लों को डर लगता है कि कुरान के सही अर्थ जानकर लोग सवाल करेंगे ,और इस्लाम की असलियत पता होने पर इस्लाम छोड़ देंगे , जैसा कि खुद कुरान में लिखा है
    “तुम से पहले भी एक गिरोह ने ऐसे ही सवाल किये थे ,और जब तुम उनके सवालों का जवाब न दे पाए ,तो वह इस्लाम से इंकार वाले हो गए ”
    सूरा -मायदा 5 :102
    और यही कारण है कि जब भी कोई इस्लाम की बेतुकी ,तर्कहीन , अमानवीय ,और अवैज्ञानिक बातों के बारे में सवाल करता है ,या उंगली उठाता है ,तो मुसलमान उत्तर देने या खंडन करने की बजाय लड़ने और दंगे करने पर उतारू हो जाते हैं ,इसलिए सवाल करने वालों से निपटने के लिए कुरान में पहले से ही यह आदेश दे दिया गया है ,कि ,
    “और जब भी तुम्हारा कुफ्र वालों से किसी तरह का सामना हो जाये ,तो तुम उनकी गर्दनें मारना शुरू कर देना ,और इस तरह उनको कुचल देना ”
    सूरा -मुहम्मद 47 :4
    इसीलिए दुनिया भर के सभी मुस्लिम नेता , गुंडे , दादा ,स्मगलर ,डॉन और आतंकवादी कुरान की इसी नीति का पालन करते हैं,जिसे रसूल की सुन्नत माना जाता है . जो देश और हिन्दू धर्म के लिए खतरा है ,हम सिर्फ तर्क से ही इनका मुकाबला करें तो बहुत होगा .जैसे महर्षि दयानंद ने अपनी विश्व प्रसिद्द पुस्तक ” सत्यार्थ प्रकाश ” में इस्लाम का तर्क पूर्ण खंडन करके मुल्ले मौलवियों को निरुत्तर करके सिद्ध कर दिया है कि दुनिया को डराने वाला इस्लाम खुद सबसे बड़ा डरपोक है , जिसमे सत्य का सामना करने की हिम्मत नहीं है . इसलिए यदि सभी हिन्दू सेकुलरिज्म का चक्कर छोड़ कर निडरता से इसलाम की विस्तारवादी और अमानवीय नीतियों का भंडाफोड़ करते रहें तो कोई शंका नहीं कि इस देश से इस्लामी आतंक का सफाया नहीं हो जाये , केवल साहस की जरुरत है ,लोगों को इस्लाम की असलियत के बारेमें सप्रमाण जानकारी देते रहिये यही समय की मांग है ,सिर्फ पाकिस्तान को कोसने से कुछ नहीं होगा , जैसे रात दिन शक्कर -शक्कर जपने से मुंह मीठा नहीं हो सकता .
    (200/166)

  48. nafees mali–हदीसों में मुहम्मद की इच्छा
    सुन्नी मुसलमानों की हदीसों की छः किताबें है . लेकिन मुल्ले इतने चालाक हैं कि जो हदीसें लोगों को दिखने के लिए होती हैं उनका अंगरेजी या दूसरी भाषामे अनुवाद प्रकाशित कर देते है .और जो हदीसें सिर्फ जिहादियों के लिए होती हैं उनको सिर्फ अरबी में रहने देते हैं .यही नहीं एकही हदीस का अरबी में अलग और दूसरी भाषामे अलग नंबर देते हैं , ताकि मूल हदीस का पता नहीं चल सके .ऐसी एक हदीस की किताब का नाम ” सुन्नन अन नसाई سنن النسائي” है जिसके ” किताब अल जिहाद كتاب الجهاد”के अध्याय में ” गजवतुल हिंद غزوة الهند”के सम्बन्ध में जो हदीसें दी गयी हैं , उन मेसे कुछ यहाँ दी जा रही हैं
    1.अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने हमसे वादा किया कि हम हिंदुस्तान पर चढ़ाई करेंगे . और उसे पायमाल कर देंगे .ऐसा अल्लाह ने मुझे निर्देश दिया है .और अगर अल्लाह मुझे वह दिन देखने का समय देगा .तो हम हिंदुस्तान पर हमला जरुर करेंगे .और इस काम के लिए हम अपनी जिंदगी भी कुर्बान कर देंगे .और अगर हम मर जायेंगे तो हमें शहीदों में सबसे ऊँचा दर्जा मिलेगा .और अगर कामयाब हो जायेंगे हिंद की सारी दौलत लेकर वापिस आएंगे . फिर रसूल ने कहा तुम लोग इस बात के गवाह हो .
    الأحاديث عن غزو الهند سنن النسائي

    أَخْبَرَنَا أَحْمَدُ بْنُ عُثْمَانَ بْنِ حَكِيمٍ، قَالَ: حَدَّثَنَا زَكَرِيَّا بْنُ عَدِيٍّ، قَالَ: حَدَّثَنَا عُبَيْدُ اللَّهِ بْنُ عَمْرٍو، عَنْ زَيْدِ بْنِ أَبِي أُنَيْسَةَ، عَنْ سَيَّارٍ، ح قَالَ: وَأَنْبَأَنَا هُشَيْمٌ، عَنْ سَيَّارٍ، عَنْ جَبْرِ بْنِ عَبِيدَةَ، وَقَالَ عُبَيْدُ اللَّهِ: عَنْ جُبَيْرٍ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: «وَعَدَنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ غَزْوَةَ الْهِنْدِ، فَإِنْ أَدْرَكْتُهَا أُنْفِقْ فِيهَا نَفْسِي وَمَالِي، فَإِنْ أُقْتَلْ كُنْتُ مِنْ أَفْضَلِ الشُّهَدَاءِ، وَإِنْ أَرْجِعْ فَأَنَا أَبُو هُرَيْرَةَ الْمُحَرَّرُ

    Sunan An-Nasa’i Book #25 – The Book of Jihad.Chapter 41. Invading India -3175.

  49. 2-रसूल के आजाद किये गए गुलाम . सुबान ने कहा कि रसूल ने कहा एक समय मेरी उम्मत के लोग ( मुसलमान )दो गिरोहों में बंट जायेंगे और हिंदुस्तान पर दौनों तरफ से हमला करेंगे .अल्लाह उनको जहन्नम की आग से बचा लेगा .फिर एग गिरोह हिंदुस्तान को लूटेगा और दूसरा गिरोह दौलत यहाँ पहुंचा देगा ”
    यह हदीस जिन इमामों की किताबों में है उनके नाम इसप्रकार हैं इमाम हम्बल की मुसनद ,इमाम नसाई की सुंनं अल मुजतबा ,इब्ने अबी असीम की किताब अल जिहाद ,इमाम तिबरानी की अल मोजम अल ———ऑस्त्त.इत्यादि—nafees mali–
    3-अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा है हमारा दल बेशक हिंदुस्तान पर हमला करेगा , और अल्लाह उसे फतह हासिल करेगा . फिर वह दल हिंदुस्तान के हुक्मरानों के गले में जंजीर डाल घसीटेंगे . इस से अल्लाह खुश होगा ”
    यह हदीस नुईम बिन हम्माद ने अपनी हदीस किताब अल फितन ,में और इशक बिन रहूया ने अपनी मुसनद में दर्ज की है
    यहाँ पर दी गयी हदीसें और ऐसी ही दूसरी हदीसें पाकिस्तान में खुले आम और भारत के मदरसों में छुप कर पढाई जाती है .और मुसलमानों को जिहाद के लिए तय्यार किया जाता है .जिस से भारत के प्रति नफ़रत का माहौल पैदा होता है .जैसा कि इस विडियो में दिया है .
    (Annual IJTIMA 2011 Karachi Pakistan on 8th October 2011)

    Pakistan K Baare Mai BASHARAT.wmv

    http://www.youtube.com/watch?v=FrEEn9Aoi9s&feature=related

    भारत में होनेवाली सभी आतंकवादी घटनाओं के पीछे इस्लाम की वह नफ़रत सिखाने वाली हदीसें है , जिनका सभी मुसलमान पालन कर रहे है .हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि बिना यहाँ के स्थानीय गद्दारों की मदद के बाहर के आतंकवादी कभी सफल नहीं हो सकते .
    (200/57)

    1. आपने सभी आयते काट छाट के लिखी है। और कुछ आयते अपनी तरफ से लिखी है। जो बिल्कुल गलत है और इस्लाम मे नही है।

  50. nafees mali–बलात्कार :जिहाद का हथियार
    जिहाद दुनिया का सबसे घृणित कार्य और सबसे निंदनीय विचार है .लेकिन इस्लाम में इसे परम पुण्य का काम बताया गया है .जिहाद इस्लाम का अनिवार्य अंग है .मुहम्मद जिहाद से दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाना चाहता था .मुहलामानों ने जिहाद के नाम पर देश के देश बर्बाद कर दिए .हमेशा जिहादियों के निशाने पर औरतें ही रही हैं .क्योंकि औरतें अल्लाह नी नजर में भोग की वस्तु हैं .और बलात्कार जिहाद का प्रमुख हथियार है .मुसलमानों ने औरतों से बलात्कार करके ही अपनी संख्या बढाई थी .मुहम्मद भी बलात्कारी था .मुसलमान यही परम्परा आज भी निभा रहे है .यह रसूल की सुन्नत है ,कुरान के अनुसार मुसलमानों को वही काम करना चाहिए जो मुहम्मद ने किये थे .कुरान में लिख है-

    “जो रसूल की रीति चली आ रही है और तुम उस रीति(सुन्नत )में कोई परवर्तन नहीं पाओगे “सूरा -अल फतह 48 :23

    “यह अल्लाह की रीति है यह तुम्हारे गुजर जाने के बाद भी चलती रहेगी .तुम इसमे कोई बदलाव नहीं पाओगे .सूरा -अहजाब 33 :62
    “तुम यह नहीं पाओगे कि कभी अल्लाह की रीति को बदल दिया हो ,या टाल दिया गया हो .सूरा -फातिर 33 :62

    यही कारण है कि मुसलमान अपनी दुष्टता नही छोड़ना चाहते .जिसे लोग पाप और अपराध मानते हैं ,मुसलमान उसे रसूल की सुन्नत औ अपना धर्म मानते है .और उनको हर तरह के कुकर्म करने पर शर्म की जगह गर्व होता है .बलात्कार भी एक ऐसा काम है .जो जिहादी करते है –

    1 -बलात्कार जिहादी का अधिकार है

    “उकावा ने कहा की रसूल ने कहा कि जिहाद में पकड़ी गई औरतों से बलात्कार करना जिहादिओं का अधिकार है .

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हदीस 282

    “रसूल ने कहा कि अगर मुसलमान किसी गैर मुस्लिम औरत के साथ बलात्कार करते हैं ,तो इसमे उनका कोई गुनाह नहीं है .यह तो अल्लाह ने उनको अधिकार दिया है ,औ बलात्कार के समय औरत को मार मी सकते हैं”

    बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 132

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 52 हदीस 220

  51. nafees mali–2 -जिहाद में बलात्कार जरूरी है

    सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि सामूहिक बलात्कार करने से लोगों में इस्लाम की धाक बैठ जाती है .इसलिए जिहाद में बलात्कार करना बहुत जरूरी है .बुखारी जिल्द 6 किताब 60 हदीस 139

    3 -बलात्कार से इस्लाम मजबूत होता है

    “इब्ने औंन ने कहा कि,रसूल ने कहा कि किसी मुसलमान को परेशां करना गुनाह है ,और गैर मुस्लिमों को क़त्ल करना और उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इस्लाम को आगे बढ़ाना है.बुखारी -जिल्द 8 किताब 73 हदीस 70

    “रसूल ने कहा कि मैंने दहशत और बलात्कार से लोगों को डराया ,और इस्लाम को मजबूत किया .बुखारी -जिल्द 4 किताब 85 हदीस 220

    “रसूल ने कहा कि ,अगर काफ़िर इस्लाम कबूल नहीं करते ,तो उनको क़त्ल करो ,लूटो ,और उनकी औरतों से बलात्कार करो .और इस तरह इस्लाम को आगे बढ़ाओ और इस्लाम को मजबूत करो.बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 464

    4 -माल के बदले बलात्कार

    “रसूल ने कहा कि जो भी माले गनीमत मिले ,उस पर तुम्हारा अधिकार होगा .चाहे वह खाने का सामान हो या कुछ और .अगर कुछ नहीं मिले तो दुश्मनों कीऔरतों से बलात्कार करो ,औए दुश्मन को परास्त करो .बुखारी -जिल्द 7 किताब 65 हदीस 286 .

    (नोट -इसी हदीस के अनुसार बंगलादेश के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने बलात्कार किया था )

    5 -बलात्कार का आदेश ‘

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने अपने लोगों (जिहादियों )से कहा ,जाओ मुशरिकों पर हमला करो .और उनकी जितनी औरतें मिलें पकड़ लो ,और उनसे बलात्कार करो .इस से मुशरिकों के हौसले पस्त हो जायेंगे .बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 432

    6 -माँ बेटी से एक साथ बलात्कार

    “आयशा ने कहा कि .रसूल अपने लोगों के साथ मिलकर पकड़ी गई औरतों से सामूहिक बलात्कार करते थे .और उन औरतीं के साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे .बुहारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 67

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने 61 औरतों से बलात्कार किया था .जिसमे सभी शामिल थे .औरतों में कई ऎसी थीं जो माँ और बेटी थीं हमने माँ के सामने बेटी से औए बेटी के सामने माँ से बलात्कार किया .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3371 और बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 288

    7 -बलात्कार में जल्दी नहीं करो

    “अ ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,पकड़ी गयी औरतो से बलात्कार में जल्दी नहीं करो .और बलात्कार ने जितना लगे पूरा समय लगाओ ”

    बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 446 .

    अब जो लोग मुसलमानों और मुहम्मद को चरित्रवान और सज्जन बताने का दवा करते हैं ,वे एक बार फिर से विचार करे, इस्लाम में अच्छाई खोजना मल-मूत्र में सुगंध खोजने कि तरह है .आप एक बार मुस्लिम ब्लोगरो द्वारा इस्लाम और मुहम्मद के बारे में लिखी हुई झूठी बातों को पढ़िए फिर दिए तथ्यों पर विचार करके फैसला कीजिये
    अधिक जानकारी के लिए यह अंगेजी ब्लॉग देखें

  52. nafees mali–—-बलात्कार :जिहाद का हथियार
    जिहाद दुनिया का सबसे घृणित कार्य और सबसे निंदनीय विचार है .लेकिन इस्लाम में इसे परम पुण्य का काम बताया गया है .जिहाद इस्लाम का अनिवार्य अंग है .मुहम्मद जिहाद से दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाना चाहता था .मुहलामानों ने जिहाद के नाम पर देश के देश बर्बाद कर दिए .हमेशा जिहादियों के निशाने पर औरतें ही रही हैं .क्योंकि औरतें अल्लाह नी नजर में भोग की वस्तु हैं .और बलात्कार जिहाद का प्रमुख हथियार है .मुसलमानों ने औरतों से बलात्कार करके ही अपनी संख्या बढाई थी .मुहम्मद भी बलात्कारी था .मुसलमान यही परम्परा आज भी निभा रहे है .यह रसूल की सुन्नत है ,कुरान के अनुसार मुसलमानों को वही काम करना चाहिए जो मुहम्मद ने किये थे .कुरान में लिख है-

    “जो रसूल की रीति चली आ रही है और तुम उस रीति(सुन्नत )में कोई परवर्तन नहीं पाओगे “सूरा -अल फतह 48 :23

    “यह अल्लाह की रीति है यह तुम्हारे गुजर जाने के बाद भी चलती रहेगी .तुम इसमे कोई बदलाव नहीं पाओगे .सूरा -अहजाब 33 :62
    “तुम यह नहीं पाओगे कि कभी अल्लाह की रीति को बदल दिया हो ,या टाल दिया गया हो .सूरा -फातिर 33 :62

    यही कारण है कि मुसलमान अपनी दुष्टता नही छोड़ना चाहते .जिसे लोग पाप और अपराध मानते हैं ,मुसलमान उसे रसूल की सुन्नत औ अपना धर्म मानते है .और उनको हर तरह के कुकर्म करने पर शर्म की जगह गर्व होता है .बलात्कार भी एक ऐसा काम है .जो जिहादी करते है –

    1 -बलात्कार जिहादी का अधिकार है

    “उकावा ने कहा की रसूल ने कहा कि जिहाद में पकड़ी गई औरतों से बलात्कार करना जिहादिओं का अधिकार है .

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हदीस 282

    “रसूल ने कहा कि अगर मुसलमान किसी गैर मुस्लिम औरत के साथ बलात्कार करते हैं ,तो इसमे उनका कोई गुनाह नहीं है .यह तो अल्लाह ने उनको अधिकार दिया है ,औ बलात्कार के समय औरत को मार मी सकते हैं”

    बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 132

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 52 हदीस 220

    2 -जिहाद में बलात्कार जरूरी है

    सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि सामूहिक बलात्कार करने से लोगों में इस्लाम की धाक बैठ जाती है .इसलिए जिहाद में बलात्कार करना बहुत जरूरी है .

    बुखारी जिल्द 6 किताब 60 हदीस 139

    3 -बलात्कार से इस्लाम मजबूत होता है

    “इब्ने औंन ने कहा कि,रसूल ने कहा कि किसी मुसलमान को परेशां करना गुनाह है ,और गैर मुस्लिमों को क़त्ल करना और उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इस्लाम को आगे बढ़ाना है.बुखारी -जिल्द 8 किताब 73 हदीस 70

    “रसूल ने कहा कि मैंने दहशत और बलात्कार से लोगों को डराया ,और इस्लाम को मजबूत किया .बुखारी -जिल्द 4 किताब 85 हदीस 220

    “रसूल ने कहा कि ,अगर काफ़िर इस्लाम कबूल नहीं करते ,तो उनको क़त्ल करो ,लूटो ,और उनकी औरतों से बलात्कार करो .और इस तरह इस्लाम को आगे बढ़ाओ और इस्लाम को मजबूत करो.बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 464

    4 -माल के बदले बलात्कार

    “रसूल ने कहा कि जो भी माले गनीमत मिले ,उस पर तुम्हारा अधिकार होगा .चाहे वह खाने का सामान हो या कुछ और .अगर कुछ नहीं मिले तो दुश्मनों कीऔरतों से बलात्कार करो ,औए दुश्मन को परास्त करो .बुखारी -जिल्द 7 किताब 65 हदीस 286 .

    (नोट -इसी हदीस के अनुसार बंगलादेश के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने बलात्कार किया था )

    5 -बलात्कार का आदेश ‘

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने अपने लोगों (जिहादियों )से कहा ,जाओ मुशरिकों पर हमला करो .और उनकी जितनी औरतें मिलें पकड़ लो ,और उनसे बलात्कार करो .इस से मुशरिकों के हौसले पस्त हो जायेंगे .बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 432

    6 -माँ बेटी से एक साथ बलात्कार

    “आयशा ने कहा कि .रसूल अपने लोगों के साथ मिलकर पकड़ी गई औरतों से सामूहिक बलात्कार करते थे .और उन औरतीं के साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे .बुहारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 67

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने 61 औरतों से बलात्कार किया था .जिसमे सभी शामिल थे .औरतों में कई ऎसी थीं जो माँ और बेटी थीं हमने माँ के सामने बेटी से औए बेटी के सामने माँ से बलात्कार किया .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3371 और बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 288

    7 -बलात्कार में जल्दी नहीं करो

    “अ ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,पकड़ी गयी औरतो से बलात्कार में जल्दी नहीं करो .और बलात्कार ने जितना लगे पूरा समय लगाओ ”

    बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 446 .

    अब जो लोग मुसलमानों और मुहम्मद को चरित्रवान और सज्जन बताने का दवा करते हैं ,वे एक बार फिर से विचार करे, इस्लाम में अच्छाई खोजना मल-मूत्र में सुगंध खोजने कि तरह है .आप एक बार मुस्लिम ब्लोगरो द्वारा इस्लाम और मुहम्मद के बारे में लिखी हुई झूठी बातों को पढ़िए फिर दिए तथ्यों पर विचार करके फैसला कीजिये

  53. nafees mali–सम्भोग जिहाद !
    इस्लाम और जिहाद एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते . यदि इस्लाम शरीर है ,तो जिहाद इसकी आत्मा है . और जिस दिन इस्लाम से जिहाद निकल जायेगा उसी दिन इस्लाम मर जायेगा . इसीलिए इस्लाम को जीवित रखने के लिए मुसलमान किसी न किसी बहाने और किसी न किसी देश में जिहाद करते रहते हैं . इमका एकमात्र उद्देश्य विश्व के सभी धर्मों , संसकृतियों को नष्ट करके इस्लामी हुकूमत कायम करना है . अभी तक तो मुसलमान आतंकवाद का सहरा लेकर जिहाद करते आये थे ,लेकिन इसी साल के अगस्त महीने में जिहाद का एक नया और अविश्वसनीय स्वरूप प्रकट हुआ है ,जो कुरान से प्रेरित होकर बनाया गया है . लोगों ने इसे “सेक्स जिहाद ( Sex Jihad ) का नाम दिया है .चूंकि जिहादियों की मदद करना भी जिहाद माना जाता है ,इसलिए सीरिया में चल रहे युद्ध ( जिहाद ) में जिहादियों की वासना शांत करने के लिए औरतों की जरुरत थी . जिसके लिए अगस्त में बाकायदा एक फ़तवा जारी किया गया था . और उसे पढ़ कर ट्यूनीसिया की औरतें सीरिया पहुँच गयी थी .और जिहादियों के साथ सम्भोग करने के लिए तैयार हो गयीं ,और मुल्लों ने कुरान का हवाला देकर इस निंदनीय कुकर्म को जायज कैसे ठहरा दिया इस लेख में इसी बात को स्पष्ट किया जा रहा है . ताकि लोग इस्लाम् के इस घिनावने असली रूप को देख सकें ,
    1-जिहाद अल्लाह को प्रिय है
    अल्लाह चाहता है कि मुसलमान जिहाद के लिए अपने बाप ,भाई और पत्नियों को भी छोड़ दें ,तभी अल्लाह खुश होगा , जैसा की कुरान में कहा है
    “अल्लाह तो उन्हीं लोगों को अधिक पसंद करता है ,जो अल्लाह की ख़ुशी के लिए पंक्ति बना कर जिहाद करते हैं ” सूरा -अस सफ 61 :4
    ” हे नबी कहदो ,तुम्हें अपने बाप ,भाई , पत्नियाँ और जो माल तुमने कमाया है ,जिन से तुम जितना प्रेम करते हो , और उनके छूट जाने का डर लगा रहता है .लेकिन उसकी तुलना में अल्लाह के रसूल को जिहाद अधिक प्रिय है ” सूरा -तौबा 9 :24

    2-जिहाद में औरतों से सम्भोग
    मुसलमान जितने भी अपराध और कुकर्म करते हैं , सब कुरान से प्रेरित होते हैं , क्योंकि कुरान हरेक कुकर्म को जायज ठहरता है .जिस से अपराधियों की हिम्मत बढ़ जाती है , और “सेक्स जिहाद ” कुरान की इस आयत के आधार पर किया जा रहा है ,

    ” اللَّاتِي هَاجَرْنَ مَعَكَ وَامْرَأَةً مُؤْمِنَةً إِنْ وَهَبَتْ نَفْسَهَا لِلنَّبِيِّ إِنْ أَرَادَ النَّبِيُّ ”
    ” हे नबी हमने तुम्हारे लिए वह सभी ईमान वाली ( मुस्लिम ) औरतें हलाल कर दी हैं ,जो रसूल के उपयोग के लिए खुद को ” हिबा- هِبة ” ( समर्पित ) कर दें ” सूरा -अहजाब 33: 50
    ” and believing woman who offers herself freely use to the Prophet -Sura-ahzab33:50
    नोट -अरबी शब्द हिबा का अर्थ अपनी किसी चीज दूसरों को उपयोग के लिए सौंप देना , हिबा कुछ समय के लिए और हमेशा के लिए भी हो सकता है . हिबा में मिली गयी चीज का जैसे चाहें उपयोग किया जा सकता है . चाहे वह औरत हो या कोई वस्तू

    3-जिहाद्के लिए औरतों का समर्पण
    सामान्यतः एक चरित्रवान ,और शादीशुदा औरत किसी भी दशा में खुद को दूसरे मर्द के हवाले नहीं करेगी , जबकि उस को यह भी पता हो कि उसके साथ सहवास किया जायेगा .लेकिन मुहम्मद साहब ने कुरान में ऐसे नीच काम को भी धार्मिक कार्य बना दिया . जिसका पालन आज भी पालन कर रहे है , इसके पीछे यह कारण है , कि इस्लाम औरत को भोगने की व चीज है .मुहम्मद साहब जब भी जिहाद के लिए जाते थे ,तो अपनी औरतों को घर में बंद कर देते थे , और जिहादियों के साथ नयी औरतें पड़ते रहते थे . और जिहादी नयी औरतों के लालच में अपनी औरतें रसूल के हवाले कर देते थे .खुद को रसूल के हिबा करने के पीछे यह ऐतिहासिक घटना है , हिजरी सन 5 के शव्वाल महीने में मुहम्मद साहब को जब यह पता चला कि मदीना के सभी कबीले के लोग उनके विरुद्ध युद्ध की तयारी कर रहे हैं .और उन्होंने खुद के बचाव के लिये खन्दक भी खोद रखी है . तब मुहम्मद साहब ने खुद आगे बढ़ कर उन पर हमला करने के कूच का हुक्म दे दिया . इसके लिए 1500 तलवारें 300 कवच , 2000 भाले 1500 ढालें जमा कर लीं थी .इस जिहादी लस्कर में जिहादियों की औरतें भी थी . जिहादी तो युद्ध में नयी औरतों के लालच में गए थे . और अपनी औरतें रसूल को हिबा कर गए थे . और रसूल ने उन औरतों के साथ सम्भोग को जायज बना दिया , तभी कुरान की यह आयत नाजिल हुई थी .जिस के अनुसार खुद को जिहाद के लिए अर्पित करने वाली औरतों से सम्भोग करना जायज है .

    4-जिहाद अल निकाह
    अंगरेजी अखबार डेली न्यूज (DailyNews ) दिनांक 20 सितम्बर 2013 में प्रकाशित खबर के अनुसार सीरिया में होने वाले युद्ध ( जिहाद ) में जिहादियों लिए ऐसी औरतों की जरुरत थी , जो जिहादियों के साथ सम्भोग करके उनकी वासना शांत कर सकें , ताकि वह बिना थके जिहाद करते रहे, इसके लिए अगस्त के अंत में एक सुन्नी मुफ़्ती ने फतवा भी जारी कर दिया था . जो ” फारस न्यूज ( FarsNews ) छपा था .इस फतवे की खबर पढ़ते ही ” ट्यूनीसिया ( Tunisia ) की हजारों विवाहित और कुंवारी औरतें सीरिया रवाना हो गईं .और जिहाद के नाम पर जिहादियों के साथ सम्भोग करने के लिए राजी हो गयीं . ट्यूनिसिया के ” आतंरिक मामले के के मंत्री ( Interior Minister )”लत्फी बिन जद्दू – لطفي بن جدو ” ने ट्यूनिसिया की National Constituent Assembly में बड़े गर्व से बताया कि जो औरतें सीरिया गयी है ,उनमे अक्सर ऐसी औरतें हैं ,जो एक दिन में 20 -30 और यहांतक 100 जिहादियों के साथ सम्भोग कर सकती हैं .और जो औरतें गर्भवती हो जाती हैं , उन्हें वापिस भेज दिया जाता है , जिस मुफ़्ती ने इस प्रकार के जिहाद कफतावा दिया था ,उसने इस का नाम ” जिहाद अल निकाह – الجهاد النِّكاح ” का नाम दिया है .सुन्नी उल्रमा के अनुसार यह एक ऐसा पवित्र और वैध काम है ,जिसमे एक औरत कई कई जिहादियों के साथ सम्भोग करके उनकी वासना शांत कराती है .लत्फी बिन जददू ने यह भी बताया कि मार्च से लेकर अब तक छह हजार ( 6000 )औरतें सीरिया जा चुकी हैं ,और कुछ की आयु तो केवल 14 साल ही है .
    http://www.hurriyetdailynews.com/tunisian-women-waging-sex-jihad-in-syria-minister.aspx?pageID=238&nID=54822&NewsCatID=352

    5-सेक्स का फ़तवा
    किसी भी विषय या समस्या के बारे में कुरान के आधार पर जोभी धार्मिक निर्णय किया जाता है ,उसे फतवा कहा जाता है , और मुसलामनों के लिए ऐसे फतवा का पालन करना अनिवार्य हो जाता है . चूँकि इन दिनों सीरिया में जिहाद हो रहा है , जिसमें हजारों जिहादी लगे हुए हैं .और उनकी वासना शांत करने के लिए औरतों की जरुरत थी , इस लिए एक सुन्नी मुफ़्ती ” शेख मुहम्मद अल आरिफी – شيخ محمّد العارفي ” ने इसी साल अगस्त में एक फतवा जारी कर दिया था ,इस फतवा में कहा है कि सीरिया के जिहादियों की कामेच्छा ( sexual desires ) पूरी करने के लिए और शत्रु को मारने उनके निश्चय में मजबूती ( sexual desires and boost their determiation in killing Syrians.
    प्रदान करने के लिए ” सम्भोग विवाह” यानी “अजवाज अल जमाअ -الزواج الجماع ” जरूरी (intercourse marriages )है .फतवा में कहा है ,जो भी औरत इस प्रकार के सेक्स से जिहादियों की मदद करेगी उसे जन्नत का वादा किया जाता है ( He also promised “paradise” for those who marry the militants )

    ” ووعد أيضا “الجنة” بالنسبة لأولئك الذين يتزوجون من المسلحين ”
    यह फतवा कुरान की इस आयत के आधार पर जारी किया गया है ,
    ” जिन लोगों ने अपने मन और शरीर से जिहाद किया तो ऐसे लोगों का दर्जा सबसे ऊंचा माना जाएगा ” सूरा -तौबा 9 :29

    6-जिहाद के लिए योनि संकोचन
    मुसलमान जानते हैं कि भारत में अभी प्रजातंत्र है , और इसमे जनसंख्या का महत्त्व होता है .इसलिए वह लगातार बच्चे पैदा करने में लगे रहते हैं .और लगतार बच्चे पैदा करने से उनकी औरतों योनि इतनी ढीली हो जाती है ,कि उसमे उनका पति अपना सिर घुसा कर अन्दर देख सकता है .और अपनी औरतों की योनि को संकोचित ( Vaginal Shrink ) करवाने के लिए धनवान मुसलमान ” हिम्नोप्लास्टी -hymenoplasty ” नामक ओपरेशन करवा लेते थे .चूंकि सीरिया में सेक्स जिहाद में एक एक औरत दिन में सौ सौ जिहादियों के साथ सम्भोग करा रही है , जिस से उनकी योनि ढीली हो जाती है . और युद्ध के समय ओपरेशन करवाना संभव नहीं था .इसलिए पाकिस्तान की एक दवा कंपनी( Pakistan’s pharmacies ) ने एक क्रीम तैयार की है .जो कराची से सीरिया भेजी जा रही है .पाकिस्तान के अखबार “एक्सप्रेस ट्रिब्यून ( Express Tribune ) में दिनांक20 अगस्त 2013 की खबर के अनुसार कराची में इन दिनों ” योनि संकोचन ( Vaginal Shrink Cream,” ) ले लिए एक क्रीम बिक रही है . जिसे लोग वर्जिन क्रीम ( Virgin Cream” ) भी कह रहे हैं .इसमे उत्पादक ने दावाकिया है कि कितनी भी ढीली योनि हो , इस क्रीम के प्रयोग से 18 साल की कुंवारी लड़की की योनि जैसी सिकुड़ी और सकरी बन जाएगी .इसी अखबार की सह संपादक “हलीमाँ मंसूर “खुद इस क्रीम को देखा , जिसके डिब्बे पर एक हंसती हुई लड़की की तस्वीर है .यह क्रीम दो नामों से बिक रही है 1. B-Virgin’, (the package displaying a youthful girl smiling at white flowers).2 . और दूसरी का नाम 18 Again (Vaginal Shrink Cream,) है . जो शीशी में मिल रही है .इस पर लिखा है ” promise to restore a woman’s virginity. “यह क्रीम बड़ी मात्रा में पाकिस्तान से सीरिया भेजी जा रही है , ताकि संकुचित योनि पाकर जिहादी दिल से जिहाद करते रहें .
    ‘Re-virginising’ in a tube: ‘Purity’ for sale at Pakistani pharmacies

    http://blogs.tribune.com.pk/story/18175/re-virginising-in-a-tube-purity-for-sale-at-pakistani-pharmacies/

    7-सेक्स जिहाद विडिओ
    शेख मुहम्मद अल आरिफी ने टी वी पर जो सेक्स जिहाद का फतवा दिया था , वह यू ट्यूब पर मौजूद है ,इस विडिओ का नाम है , जिहाद अल निकाह -jihad al nikah- جهاد النكاح … فتوى حقيقة او بدعة ”

    http://www.youtube.com/watch?v=2ftO8Zkvl18

    यह लेख पढनेके बावजूद जो लोग इस्लाम को धर्म मानते हैं और मुसलमानों से सदाचारी होने की उम्मीद रखते हैं ,उन्हें अपने दिमाग का इलाज करवा . वास्तव में देश में जितने भी बलात्कार हो रहे हैं , सबके पीछे इसलाम की तालीम है .जिसका भंडाफ़ोड़ करना हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है .समझ लीजिये इस्लाम का अर्थ शांति नहीं समर्पण ( surrendar ) है . जिहाद का अर्थ परिश्रम करना नहीं आतंक ( terror ) है , कुरबानी का अर्थ त्याग नहीं जीव हत्या ( slaughter ) है .और रहमान का अर्थ दयालु नहीं हत्यारा ( killer ) है .यदि इतना भी समझ लोगे तो इस्लाम को समझ लोगे .

  54. nafees mali–—–2-आतंकवाद की जड़ कुरान ही है ?

    जकारिया नायक जैसे मक्कार कितना भी झूठा प्रचार करें कि कुरान आपसी प्रेम औए शांति का सन्देश देती है . लेकिन कुरान की सभी आयतों विश्लेषण करने पर पता चलता है कि आतंकवाद की जड़ कुरान ही है . कुरान शांति की नहीं अशांति ,शिक्षा देती है .कुरान की नजर में औरतें जहन्नम की ईंधन हैं .और सभी गैर मुस्लिम क़त्ल के योग्य हैं .कुरान शिक्षा , विज्ञानं और तकनीकी को पसंद नहीं करती .संक्षिप्त में इसका विश्लेषण दिया जा रहा है .

    -कुरान की आयतों का विश्लेषण
    1 .काफिरों के विरुद्ध – 52 .9 %
    2 – अल्लाह के बारे में -17 .61 %
    3 .ईमान के बारे में -14 .7 %
    4 .आखिरत के बारे में -11 .8
    5 .छोटे अपराधों के बारे में -3 .4 %
    6.औरतों के अधिकार -3 .0 %

    http://www.amberpawlik.com/RandomStudy1.html

    जैसे लोग जब चावल पकाते हैं ,तो बर्तन से कुछ चावल निकाल कर समझ लेते हैं कि वह पक गए हैं कि नहीं .इसी तरह कुरान की इन कुछ आयातों को पढ़कर लोग कुरान के बारे में सब समझ जायेंगे .इस से बड़ा और क्या झूठ हो सकता है कि मुसलमान ऐसे अल्लाह को रहमान और रहीम कहते हैं .जबकि कुरान में 164 ऐसी आयतें मौजूद हैं जिन में आतंक , हत्या , गैर मुस्लिमों पर अत्याचार , जबरन धर्म परिवर्तन महिलाओं निकृष्ट प्राणी बताने और गुलाम बनाकर खरीदने बेचने की शिक्षा दी गयी है .दी गयी साईट में ऐसी आयातों की पूरी लिस्ट दी गयी है ,

    http://www.answering-islam.org/Quran/Themes/jihad_passages.html#horizontal

    3-जिहादी लक्ष्य सन 2030 ई .
    आज जो जिहादी विचार वाले लोग भारत को इस्लामी देश बनाने की योजना बना रहे हैं , वह भली भांति समझ गए है कि प्रजातंत्र में केवल संख्याबल का महत्व होता है . इसमे घोड़ा और गधा के गुण नहीं संख्या गिनी जाती है , इसलिए एक तरफ तो मुसलमान अपनी संख्या बढ़ाने में लगे रहते हैं ,और दूसरी तरफ खुद को अल्पसंख्यक बता कर रोज नयी नयी सुविधाओं की मांग करते रहते हैं .और सत्ता की लोभी सरकार वोटों की खातिर मुस्लिमों के तुष्टिकरण में लगी रहती है .हद तो जब हो जाती है कि बड़े से बड़े जघन्य अपराधी को या तो माफ़ कर दिया जाता है ,या कम सजा देकर रिहा कर दिया जाता है . और उस अपराधी को फिर से अपराध करने का अवसर दे दिया जाता है . दब्बू और बिकाऊ मीडिया भी उन अपराधियों के नाम नहीं देते .उन्हें डर होता है कि नाम देने से सरकार उन पर सम्प्रदायवादी होने का आरोप लगा दगी .इसीलिए अपराधियों के हौसले बढे हुए हैं . वास्तव में यह अपराध भी जिहाद का एक नया रूप है .
    अब अपराध ( जिहाद ) करने के लिए 18 साल की कम आयु के लड़कों का प्रयोग किया जा रहा है . ताकि कम से कम सजा मिले ,और जल्दी रिहाई हो सके .भारत को इस्लामी देश बनाने की योजना सफल करने के लिए इन जिहादियों ने नयी तरकीब निकाली है कि पहले तो देश में इतने अपराध करो कि देश में अशांति ,अव्यवस्था और अफरातफरी का वातावरण पैदा हो जाये .फिर सीमा पार से उनके भाई जिहादी देश में घुस जाएँ , और उनके साथ सेकुलर भी मिल जायेगे .जिहादियों ने इसके लिए सन 2030 का टारगेट तय किया है ,और अगर यही मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति चलती रही ,और हिन्दू सेकुलर बन कर नामर्द बनते रहे तो ,भारत को सन 2050 तक मुस्लिम देश बनने से कोई नहीं बचा सकेगा .!

  55. nafees mali–—–अय्याशी से मरे जिहादी शहीद हैं !!

    आजकल मुस्लिम नौजवान जिहादियों का अंजाम देखकर भी लव जिहाद कर रहे हैं .और इसे एक धार्मिक कार्य मान रहे हैं .और सोच रहे हैं कि ऐसा करने से उनको मरने के बाद शहीद का दर्जा मिल जायेगा .और वे जन्नत में अय्याशी कर सकेंगे .
    आपने यह प्रसिद्ध कहावत जरुर सुनी होगी “हर्र लगे न फिटकरी ,रंग पक्का हो जाये “यह कहावत इस्लाम में जिहाद सम्बन्धी मान्यताओं पर सटीक उतरती है .इस बात को स्पष्ट करने के लिए हमें कुरान और कुछ प्रमुख हदीसों का हवाला होगा ,जिसे बिन्दुवार दिया गया है .
    1-जिहाद अल्लाह को प्रिय है
    इस्लाम में जिहाद को अनिवार्य ,और अल्लाह की नजर में सबसे प्रिय कार्य बताया गया है .कुरान में कहा है कि,
    “अल्लाह उन लोगों लो प्यार करता है ,जो पंक्ति बनाकर जिहाद करते है “सूरा-अस सफ्फ 61 :4
    “जिहाद करना अल्लाह कि नजर में सबसे प्रिय कार्य है “सूरा -तौबा 9 :24
    आजकल जकारिया नायक जैसे इस्लामी प्रचारक यह कहते हुए नहीं थकते कि ,जिहाद असल में एक संघर्ष (struggle ) है जो धर्म की रक्षा करने ,अपना बचाव करने ,पीड़ितों को उनका अधिकार दिलवाने और शांति स्थापना के लिए किया जाता है .लेकिन जिहाद का असली मकसद कुछ और ही है ,जो यहाँ दिया जा रहा है .
    2-जिहादियों के लिए प्रलोभन
    लोग देश ,धर्म और न्याय की रक्षा के लिए बिना किसी प्रतिफल की इच्छा के अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते है ,यहाँतक अपने प्राणों का बलिदान कर देते है .अगर जिहाद का यही मकसद है तो ,अल्लाह जिहादियों को लालच क्यों देता है .जैसा कुरान और इन हदीसों में है –
    “जितने भी लोग अपनी जान लगाकर जिहाद करेंगे उनके लिए फायदा ही फायदा होगा “सूरा -तौबा 9 :88
    “हे रसूल कहो जो व्यक्ति जिहाद के लिए हथियार खरीदने के लिए एक दिरहम देगा ,तो जीत के बाद उसे एक दिरहम के बदले 70 हजार दीनार दिए जायेंगे ”
    इब्न माजा -किताब 4 हदीस 2761
    “रसूल ने कहा कि जो व्यक्ति जिहाद के लिए बाहर जायेगा तो ,अल्लाह उसके घर कि रक्षा करेगा .और जब वह वापस आयेगा तो उसे लूट का माल और साथ में औरतें भी मिलेंगीं “मुस्लिम -किताब 3 हदीस 4626
    “रसूल ने कहा मैं तुम्हें एक खुशखबरी देता हूँ ,जब मुजाहिद वापिस आएंगे तो उनके लिए बगीचे तैयार मिलेंगे ”
    बुखारी -जिल्द 1 किताब 52 हदीस 48
    “इसी प्रकार ”सर्वोत्तम जिहाद वह है जिसमें घोड़ा और सवार दोनों ही घायल हो जायें।” इब्न माजाह, खं. 4 हदीस 2794,
    3-अय्याशी के लिए जिहाद
    इस्लाम में औरतों को माल (property -booty ) माना जाता है .जिहादी सबसे पहले औरतें ही पकड़ते हैं .ऐसी पकड़ी गयी औरतों को लौंडी कहा जाता है ,या रखैल कहते हैं .इन से सहवास करना कुरान में जायज कहा है .और जब औरत से मन भर जाता था तो उनको बेच देते है ,कुरान की तरह, हदीसों में भी विजित गैर-मुसलमानों के धन, सम्पत्ति व स्त्रियों पर विजेता मुसलमानों का अधिकार होगा.चूंकि जिहादियों को असीमित अय्याशी करने की सुविधा शहीद हो जाने पर जन्नत में ही मिल सकती थी .इसलिए मुसलमानों ने यहीं पर भोग विलास की तरकीब निकाल ली .और पकड़ी गयी औरतों से सहवास जो जायज बना दिया ,यह बार मिर्जा ग़ालिब ने फारसी में लिखा है ,
    “सुखने सादा दिलम रा न फरेबदअय ग़ालिब ,बोसये चंद नकद गंज दिहाने बिमन आर “यानि मेरा दिल उधार बातों से नहीं फिसलता ,मुझे तो किसी सुंदरी का नकद चुम्बन चाहिए “कुरान ने जिहादियों को यही देनेका वादा किया है .इसीलिए जिहाद हो रहा है .सबूत देखिये ,
    “हमने तुम्हें युद्ध में पकड़ी हुई औरतें (लौंडियाँ ) हलाल कर दी हैं ,और अगर ( इस्तेमाल के बाद ) तुम्हें वह पसंद नहीं आयें ,तो तुम दूसरी औरतें बदल सकते हो ”
    सूरा -अहजाब 33 :52
    “अपनी पत्नियों के साथ जो औरतें तुम्हारे कब्जे में हों ,उनके साथ सहवास करने में कोई निंदनीय काम नहीं है “सूरा -मआरिज 70 :30
    इस तरह सिर्फ जिहादी ही अय्याशी नहीं करते हैं ,उनके नाबालिग लडके भी यही करते हैं ,जो इन हदीसों से पता चलता है ,
    “रसूल ने कहा कि क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह ने पकड़ी गयी औरतें काफिरों को अपमानित करने के लिए ही तुम्हारी सेवा में दी है ”
    बुखारी -जिल्द 1 किताब 3 हदीस 803
    “रसूल ने कहा कि तुम्हारा अवयस्क लड़का भी बिस्तर (Bed ) का मालिक है .और वह भी पकड़ी गयी औरतों से अवैध सहवास कर सकता है ”
    बुखारी -जिल्द 1 किताब 8 हदीस 808
    The Prophet said, “The boy is for the owner of the bed and the for the person who commits illegal sexual intercourse.”Hadith-vol bk8. hadith no808 Al-Bukhari
    इसी शिक्षा के कारण छोटे बड़े सभी अय्याशी करने में व्यस्त हो गए .और जन्नत को भूल गए .
    4-जिहाद से अरुचि
    कहावत है कि “जहाँ भोग वहां रोग ” जब जिहादी असीमित अय्याशी करने लगे तो भिभिन्न रोगों में ग्रस्त हो गए .और उचित इलाज न मिलाने से बीमार होगर जिहाद से विमुख हो गए .उसी समय एक सहाबी “अबू उबैदा अम्मार बिन इब्नल जर्राह (583-638)” यौन रोग से ग्रस्त हो गया .जो बाद में मर भी गया था .तो जिहादियों में भय व्याप्त हो गया ,वह अगले जन्म कि इच्छा करने लगे .तब मुहम्मद ने उन लोगों से यह कहा कि ,
    “जो इस दुनिया में मर कर दूसरी दुनिया में फिर से आने कि कमाना रखता है ,उसे अल्लाह रह में जिहाद करते हुए कम से कम दस बार मरना पड़ेगा ”
    बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 72
    “रसूल ने कहा कोई व्यक्ति मर कर दोबारा इस दुनिया में फिर से तब तक नहीं असकता ,जब तक वह अल्लाह कि रह में मर कर जिहादियों में वरीयता प्राप्त नहीं कर लेता “बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 53
    5 -जिहादियों की पाठ्यपुस्तक
    मुहम्मद हर हालत में जिहाद चालू रखना चाहता था .और जब लोग काफी अशक्त हो गए तो मुहमद ने उन लोगों से कहा कि ,
    “जो जिहादी पेट के रोग ,प्लेग ,या यौन रोगों के कारण मर जायेगा ,उसे भी शहीद माना जायेगा और वह भी जन्नत का अधिकारी होगा ,जहाँ उसे सारी सुविधाएँ मिलेंगी “बुखारी -जिल्द 1 किताब 7 हदीस 629
    उस समय मुहम्मद ने जिहादियों का हौसला बढ़ने के लिए कई ऐसी ही हदीसें कही थीं .जिसे बाद में “(ابو زكريا يحي بن يوسف انووي ادّمشقي )इमाम अबू जकारिया याहया बिन यूसुफ अन नववी दमिश्की (1234 -1278 ) ने हिजरी 676 में सीरिया में संकलित किया था .इस हदीस के संकलन का नाम ” रियाज उस्सालिहीनRiyadh as-Saaliheen رياض الصالحين” है .इसीको जिहादियों की पाठ्य पुस्तक (The Gardens of the Righteous ) कहा जाता है .इसमे कुल 19 अध्याय है .और 11 अध्याय के भाग 235 में हदीस संख्या 1353 से लेकर 1357 तक अनेकों रोग से मरने वाले जिहादियोंको शहीद बताया गया है .विषय संख्या 235 की 5 हदीसों का शीर्षक है “martyrdom without fight ” उसी का सारांश हिंदी में दिया जा रहा है (अंगरेजी में पूरी किताब की लिंक दी गयी है )देखिये कुकर्म करके मरने वाले भी शहीद कैसे बन जाते हैं ,और जानत में कैसे घुस जाते हैं
    “अबू हुरैरा नेकहा किरसूल ने कहा कि शहीद पांच कारणों से हो सकते है ,प्लेग से , पेट के रोगों के कारण,अति सहवास के कारण ,मकान बनाते समय मलबे से दब कर और अल्लाह के लिए लड़ते हुए मरने वाले “हदीस -1353
    “अबू हुरैरा ने रसूल से पूछा कि आप हम लोगों में किसको शहीद गिनोगे ,तो रसूल ने कहा ऐसे बहुत ही कम लोग होंगे जो अल्लाह की राह में लड़ कर मर कर शहीद होंगे .कुछ बीमारियों के कारण भी शहीद हो जाते हैं ,जैसे प्लेग से ,तपेदिक से ,यौन रोगों के कारण और पानी में डूब कर मरने वाले भी शहीद माने जायेंगे ”
    हदीस -1354
    बाकी तीन हदीसों ,1355 ,1356 और 1357 में अपनी सम्पति ,अपने परिवार कि रक्षा में मरने वाले को और दुश्मन से लड़ते हुए मर जाने वालों को भी शहीद का दर्जा देकर जन्नत का अधिकारी बताया गया है .इसलिए यह हदीसें अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं .इन सभी प्रमाणों से सिद्ध होता है कि यह बात झूठ है कि जिहादी अल्लाह की राह में बिना किसी लोभ और स्वार्थ के जिहाद करते हैं .और मर जाने पर शहीद कहलाते हैं .जबकि अधिकांश जिहादी अय्याशी करके अनेकों रोग होने से भी मर जाते थे .चूँकि उस समय एड (AIDS ) के बारे में पता नहीं था ,इसलिए यौन रोगों को तपेदिक ,प्लेग या गुर्दे का रोग कहा दिया होगा .आज भी मुस्लिम देशों में ऐसे रोगियों से अस्पताल भरे पड़े हैं .फिर भी इन्हीं हदीसों के कारण मुसलमान अय्याशी को ही जिहाद का रूप समझते हैं .इसका परिणाम सद्दाम हुसैन ,कर्नल गदाफी ,ओसामा बिन लादेन के रूप में दुनिया जानती है .औरतबाजी का बुरा नतीजा होता है .और इसमे शक नहीं कि लवजिहाद कभी यही अंजाम होगा !
    जो व्यक्ति अय्याशी को जिहाद और एड्स से मरने वालों को शहीद मानता है उसका दिमाग ख़राब होगा .

  56. nafees mali–—-बलात्कार :जिहाद का हथियार
    जिहाद दुनिया का सबसे घृणित कार्य और सबसे निंदनीय विचार है .लेकिन इस्लाम में इसे परम पुण्य का काम बताया गया है .जिहाद इस्लाम का अनिवार्य अंग है .मुहम्मद जिहाद से दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाना चाहता था .मुहलामानों ने जिहाद के नाम पर देश के देश बर्बाद कर दिए .हमेशा जिहादियों के निशाने पर औरतें ही रही हैं .क्योंकि औरतें अल्लाह नी नजर में भोग की वस्तु हैं .और बलात्कार जिहाद का प्रमुख हथियार है .मुसलमानों ने औरतों से बलात्कार करके ही अपनी संख्या बढाई थी .मुहम्मद भी बलात्कारी था .मुसलमान यही परम्परा आज भी निभा रहे है .यह रसूल की सुन्नत है ,कुरान के अनुसार मुसलमानों को वही काम करना चाहिए जो मुहम्मद ने किये थे .कुरान में लिख है-

    “जो रसूल की रीति चली आ रही है और तुम उस रीति(सुन्नत )में कोई परवर्तन नहीं पाओगे “सूरा -अल फतह 48 :23

    “यह अल्लाह की रीति है यह तुम्हारे गुजर जाने के बाद भी चलती रहेगी .तुम इसमे कोई बदलाव नहीं पाओगे .सूरा -अहजाब 33 :62
    “तुम यह नहीं पाओगे कि कभी अल्लाह की रीति को बदल दिया हो ,या टाल दिया गया हो .सूरा -फातिर 33 :62

    यही कारण है कि मुसलमान अपनी दुष्टता नही छोड़ना चाहते .जिसे लोग पाप और अपराध मानते हैं ,मुसलमान उसे रसूल की सुन्नत औ अपना धर्म मानते है .और उनको हर तरह के कुकर्म करने पर शर्म की जगह गर्व होता है .बलात्कार भी एक ऐसा काम है .जो जिहादी करते है –

    1 -बलात्कार जिहादी का अधिकार है

    “उकावा ने कहा की रसूल ने कहा कि जिहाद में पकड़ी गई औरतों से बलात्कार करना जिहादिओं का अधिकार है .

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हदीस 282

    “रसूल ने कहा कि अगर मुसलमान किसी गैर मुस्लिम औरत के साथ बलात्कार करते हैं ,तो इसमे उनका कोई गुनाह नहीं है .यह तो अल्लाह ने उनको अधिकार दिया है ,औ बलात्कार के समय औरत को मार मी सकते हैं”

    बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 132

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 52 हदीस 220

    2 -जिहाद में बलात्कार जरूरी है

    सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि सामूहिक बलात्कार करने से लोगों में इस्लाम की धाक बैठ जाती है .इसलिए जिहाद में बलात्कार करना बहुत जरूरी है .बुखारी जिल्द 6 किताब 60 हदीस 139

    3 -बलात्कार से इस्लाम मजबूत होता है

    “इब्ने औंन ने कहा कि,रसूल ने कहा कि किसी मुसलमान को परेशां करना गुनाह है ,और गैर मुस्लिमों को क़त्ल करना और उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इस्लाम को आगे बढ़ाना है.बुखारी -जिल्द 8 किताब 73 हदीस 70

    “रसूल ने कहा कि मैंने दहशत और बलात्कार से लोगों को डराया ,और इस्लाम को मजबूत किया .बुखारी -जिल्द 4 किताब 85 हदीस 220

    “रसूल ने कहा कि ,अगर काफ़िर इस्लाम कबूल नहीं करते ,तो उनको क़त्ल करो ,लूटो ,और उनकी औरतों से बलात्कार करो .और इस तरह इस्लाम को आगे बढ़ाओ और इस्लाम को मजबूत करो.बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 464

    4 -माल के बदले बलात्कार

    “रसूल ने कहा कि जो भी माले गनीमत मिले ,उस पर तुम्हारा अधिकार होगा .चाहे वह खाने का सामान हो या कुछ और .अगर कुछ नहीं मिले तो दुश्मनों कीऔरतों से बलात्कार करो ,औए दुश्मन को परास्त करो .बुखारी -जिल्द 7 किताब 65 हदीस 286 .

    (नोट -इसी हदीस के अनुसार बंगलादेश के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने बलात्कार किया था )

    5 -बलात्कार का आदेश ‘

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने अपने लोगों (जिहादियों )से कहा ,जाओ मुशरिकों पर हमला करो .और उनकी जितनी औरतें मिलें पकड़ लो ,और उनसे बलात्कार करो .इस से मुशरिकों के हौसले पस्त हो जायेंगे .बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 432

    6 -माँ बेटी से एक साथ बलात्कार

    “आयशा ने कहा कि .रसूल अपने लोगों के साथ मिलकर पकड़ी गई औरतों से सामूहिक बलात्कार करते थे .और उन औरतीं के साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे .बुहारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 67

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने 61 औरतों से बलात्कार किया था .जिसमे सभी शामिल थे .औरतों में कई ऎसी थीं जो माँ और बेटी थीं हमने माँ के सामने बेटी से औए बेटी के सामने माँ से बलात्कार किया .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3371 और बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 288

    7 -बलात्कार में जल्दी नहीं करो

    “अ ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,पकड़ी गयी औरतो से बलात्कार में जल्दी नहीं करो .और बलात्कार ने जितना लगे पूरा समय लगाओ ”

    बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 446 .

    अब जो लोग मुसलमानों और मुहम्मद को चरित्रवान और सज्जन बताने का दवा करते हैं ,वे एक बार फिर से विचार करे, इस्लाम में अच्छाई खोजना मल-मूत्र में सुगंध खोजने कि तरह है .आप एक बार मुस्लिम ब्लोगरो द्वारा इस्लाम और मुहम्मद के बारे में लिखी हुई झूठी बातों को पढ़िए फिर दिए तथ्यों पर विचार करके फैसला कीजिये

    1. आपने सभी आयते काट छाट के लिखी है। और कुछ आयते अपनी तरफ से लिखी है। जो बिल्कुल गलत है और इस्लाम मे नही है।

  57. nafees mali—-मुहम्मद ने हत्या करके इस्लाम को फैलाया—
    काबा एक मंदिर था जिसमे अलग अलग देवी देवताओं की पूजा हुआ करती थी और सभी अरब वासी सनातन धर्मं को मानते थे जिनको डरा धमका कर धर्म परिवर्तन कराया गया
    1-सल्लम इब्न अबुल हुकैक ( अबू रफ़ी एक विद्वान् और कवि था . इसने अपनी शायरी में कहा था ऐसा अत्याचारी रसूल नहीं हो सकता .इसलिए मुहम्मद ने इसे मार डाला .(सीरतुल रसूल अल्लाह -पेज 714 -715 )
    2-अल नद्र बिन अल हरीसयह अरब का एक शायर था. जब सन 622 से मुहम्मद ने कुरान की आयतें सुना कर अल्लाह की सजा से डराना शुरू किया तो इसने लोगों से कहा यह मुहम्मद की कल्पना है .बाद में गुस्से होकर मुहम्मद ने उसे 3 मार्च सन 624 को क़त्ल करा दिया .(सीरतुल रसूल अल्लाह -पेज 133 -134 )
    3-इब्ने सुनैना यह एक धनवान व्यापारी और कवि था . और कविता में अपने देवताओं कि तारीफ़ कर के लोगों से अपना धर्म नहीं छोड़ने को कहता था . इसलिए मुहम्मद ने उसकी 8 सितम्बर सन 624 को हत्या कर दी .(सुन्नन अबू दाउद- किताब 19 हदीस 2996 )
    4-अब्द अल्लाह इब्ने साद इब्ने अबी सरह यह अरब का कवि था ,जब वह अपनी दो लड़कयों के साथ काबा देवताओं की स्तुति कर रहा था . तभी मुहम्मद ने हमला कर दिया . वह जब जान बचाने के लिए काबा के परदे के पीछे छुप गया तो भी मुहमद ने उसकी लड़कियों के साथ 9 जनवरी सन 630 को हत्या कर दी .( सीरत रसूल अल्लाह पेज 550 )
    5-अबू आफाक यह अरब के एक कबीले का सरदार और मनात देवी का उपासक था . अरबी का विद्वान् था , इसने कहा था कि मैं कुरान से बढ़िया शायरी कर सकता हूँ .इस लिए मुहम्मद ने 4 अप्रेल सन 624 को इसकी हत्या कर दी (इब्न हिशाम -पेज 675 )
    6-असमा बिन्त मरवानयह एक महिला कवियित्री थी .इसके पति का नाम यजीद बिन जैद था .इसके पांच बच्चे थे .इसने मुहमद के बारे में कविता लिखी थी .उसके कारण लोग मुहमद के विरोधी बन गए .नाराज होकर मुहम्मद ने रात में सोते समय उसे बच्चों सहित 30 मार्च सन 624 को हत्या कर दी .(सीरत रसूल अल्लाह पेज -675 -676

    1. आपने सभी आयते काट छाट के लिखी है। और कुछ आयते अपनी तरफ से लिखी है। जो बिल्कुल गलत है और इस्लाम मे नही है।

  58. कुरआन की 24 आयतें जिनके बारे मैं गलतफहमी फेलाई जाती रही है! के कुरआन गैर मुस्लिमों को मारने या जड-मूल से खत्म कर देने का हुक्म देता है! “आइए देखें सच्चाई क्या है?
    इस्लाम, आतंक हैं या आदर्श? यह जानने के लिए मैं कुरआन मजीद की कुछ आयते दे रहा हूं जिन्हे मैने मौलाना फतह मुहम्मद खां जालन्धरी द्वारा अनुवादित और महमूद एण्ड कम्पनी मरोल, पार्इप लाइन, मुम्बर्इ-59 से प्रकाशित कुरआन मजीद से लिया हैं।

    पाठक इस बात को ध्यान में रखें कि कुरआन मजीद के अनुवाद में यदा-कदा (बड़े ब्रेकिट) शब्दों की व्याख्या के लिए लगाए गए हैं। ये ब्रेकिट लेखक की ओर से हैं।यह बात ध्यान देने योग्य हैं कि कुरआन मजीद का अनुवाद करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं कि किसी भी आयत का भावार्थ जरा भी बदलने न पाए, क्योंकि किसी भी कीमत पर यह बदला नही जा सकता। इसी लिए अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग अनुवादकों द्वारा कुरआन मजीद के किए अनुवाद का भाव एक ही रहता हैं। गैर-मुस्लिम भार्इ यदि इस अनुवाद के कठिन शब्दों को न समझ पाएं तो वे मधुर सन्देश संगम, र्इ-20, अबुल-फ़ज्ल इंक्लेव, जामिया नगर, नर्इ दिल्ली-25 द्वारा प्रकाशित और मौलाना मुहम्मद खां द्वारा अनुवादित पवित्र कुरआन का भी सहारा ले सकते हैं।

    कुरआन की शुरूआत ‘बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ से होती हैं, जिसका अर्थ हैं-’शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु अत्यन्त दयालु हैं।
    ध्यान दें। ऐसा अल्लाह, जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयालु हैं वह ऐसे फ़रमान कैसे जारी कर सकता हैं, जो किसी को कष्ट पहुंचाने वाले हों अथवा हिंसा या आतंक फैलाने वाले हों? अल्लाह की इसी कृपालुता और दयालुता का पूर्ण प्रभाव अल्लाह के पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) के व्यवहारिक जीवन में देखने को मिलता हैं। कुरआन की आयतों से व पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी से पता चलता हैं कि मुसलमानों को उन काफिरों से लड़ने का आदेश दिया गया जो आक्रमणकारी थे,
    अत्याचारी थे। यह लड़ार्इ अपने बचाव के लिए थी। देखें कुरआन मजीद में अल्लाह के आदेश:-“और (ऐ मुहम्मद उस वक्त को याद करो) जब काफिर लोग तुम्हारे बारे में चाल चल रहे थे कि तुमको कैद कर दें या जान से मार डालें या (वतन से) निकाल दे तो (इधर से) वे चाल चल रहे थे और (उधर) खुदा चाल रहा था और खुदा सबसे बेहतर चाल चलने वाला हैं।” (कुरआन, सूरा-8, आयत -30)

    “ये वे लोग है कि अपने घरो से ना-हक निकाल दिए गए, (उन्होने कुछ कुसूर नही किया)। हां, ये कहते हैं कि हमारा परवरदिगार खुदा हैं और अगर खुदा लोगो को एक-दूसरो से न हटाता रहता तो (राहिबो के) पूजा-घर और (र्इसाइयों के) गिरजे और (यहूदियों की) और (मुसलमान की) मस्जिदें, जिनमें खुदा का बहुत-सा जिक्र किया जाता हैं, गिरार्इ जा चुकी होती। और जो शख्स खुदा की मदद करता करता हैं, खुदा उसकी जरूर मदद करता हैं। बेशक खुदा ताकतवाला और गालिब यानी प्रभुत्वशाली हैं।’’ (कुरआन, सूरा-22, आयत-40
    ‘‘ये क्या कहते हैं कि इसने कुरआन खुद से बना लिया हैं? कह दो कि अगर सच्चे हो तो तुम भी ऐसी दस सूरतें बना लाओं और खुदा के सिवा जिस-जिस को बुला सकते हो, बुला भी लो।’’ (कुरआन, सूरा-11, आयत-13)

    ‘‘(ऐ पैगम्बर !) काफिरों का शहरों मे (शानों-शौकत के साथ) चलना-फिरना तुम्हे धोखा न दें।’’ (कुरआन, सूरा-3, आयत-196)

    ‘‘जिन मुसलमानों से (खामखाह) लड़ार्इ की जाती है, उनको इजाजत हैं (कि वे भी लड़े), क्योकि उन पर जुल्म हो रहा हैं और खुदा (उन की मदद करेगा, वह) यकीनन उनकी मदद पर कुदरत रखता है।’’ (कुरआन, सूरा-22, आयत-39)
    •इस्लाम के बारे में झूठा प्रचार किया जाता है कि कुरआन में अल्लाह के आदेशों के कारण ही मुसलमान लोग गैर-मुसलमानों का जीना हराम कर देते है, जबकि इस्लाम मे कही भी निर्दोषों से लड़ने की इजाजत नही हैं, भले ही वे काफिर या मुशरिक या दुश्मन ही क्यो न हों। विशेष रूप से देखिए अल्लाह के ये आदेश:-

    ‘‘जिन लोगों ने तुमसे दीन (धर्म) के बारे में जंग नही की और न तुम को तुम्हारे घरो से निकाला, उनके साथ भलार्इ और इंसाफ का सुलूक करने से खुदा तुमको मना नही करता। खुदा तो इंसाफ करने वालों को दोस्त रखता हैं। ‘‘ (कुरआन, सूरा-60, आयत-8)
    खुदा उन्ही लोगो के साथ तुमको दोस्ती करने से मना करता हैं, जिन्होने तुम से दीन के बारे मे लड़ार्इ की और तुमको तुम्हारे घरो से निकाला और तुम्हारे निकालने मे औरो की मदद की, तो जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे, वही जालिम हैं।’’ (कुरआन, सूरा-60, आयत-9)

    •इस्लाम मे दुश्मन के साथ भी ज्यादती करना मना है, देखिए:-
    ‘‘और जो लोग तुमसे लड़ते हैं, तुम भी खुदा की राह मे उनसे लड़ो, मगर ज्यादती (अत्याचार) न करना कि खुदा ज्यादती करने वालो को दोस्त नही रखता।’’(कुरआन, सूरा-2, आयत-190)

    ‘‘ये खुदा की आयते है, जो हम तुमको सेहत के साथ (यानी ठीक-ठीक) पढ़कर सुनाते हैं और अल्लाह अहले-आलम (अर्थात् लोगो) पर जुल्म नही करना चाहता।’’ (कुरआन,सूरा-3, आयत-108)
    •इस्लाम का प्रथम उद्देश्य दुनिया में शान्ति की स्थापना हैं, लड़ार्इ तो अन्तिम विकल्प हैं और यही तो आदर्श धर्म हैं, जो कुरआन की नीचे दी गर्इ इस आयत मे दिखार्इ देता हैं:-
    ‘‘(ऐ पैग़म्बर)! कुफ्फार से कह दो कि अगर वे अपने फेलों (कर्मो) से बाज आ जाएं, तो जो हो चुका, वह उन्हे माफ कर दिया जाएगा और अगर फिर (वही हरकते) करने लगेंगे तो अगले लोगो का (जो) तरीका जारी हो चुका है (वही उनके हक में बरता जाएगा)।’’ (कुरआन, सूरा-8, आयत-38)

    •इस्लाम मे दुश्मनों के साथ भी सच्चा न्याय करने का आदेश, इस्लाम न्याय का सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत करता हैं। इसे नीचे दी गर्इ आयत मे देखिए:- “ऐ र्इमानवालो! खुदा के लिए इंसाफ की गवाही देने के लिए खड़े हो जाया करो और लोगो की दुश्मनी तुमकों इस बात पर तैयार न करे कि इंसाफ छोड़ दो। इंसाफ किया करो कि यही परहेजगारी की बात हैं और खुदा से डरते रहो। कुछ शक नही कि खुदा तुम्हारे तमाम कामों से खबरदार हैं।’’ (कुरआन, सूरा-5, आयत-8)

    •इस्लाम मे किसी निर्दोष की हत्या की इजाजत नही हैं। ऐसा करने वाले की एक ही सजा है, खून के बदले खून। लेकिन यह सजा केवल कातिल को ही मिलनी चाहिए और इसमें ज्यादती मना हैं। इसे ही तो कहते है सच्चा इंसाफ। देखिए नीचे दिया गया अल्लाह का यह आदेश:-‘‘और जिस जानदार का मारना खुदा ने हराम किया हैं, उसे कत्ल न करना मगर जायज तौर पर (यानी शरीअत के फतवे (ओदश) के मुताबिक) और जो शख्स जुल्म से कत्ल किया जाए हमने उसके वारिस को इख्तियार दिया है (कि जालिम कातिल से बदला ले) तो उसको चाहिए कि कत्ल(के किसास) में ज्यादती न करे कि वह मंसूर व फतहयाब हैं।’’ (कुरआन,सूरा-17, आयत-33)

    •इस्लाम देश में हिंसा (फसाद) करने की इजाजत नही देता। देखिए अल्लाह का यह आदेश:-
    ‘‘लोगो को उनकी चीजें कम न दिया करो और मुल्क में फसाद न करते फिरों।’’(कुरआन,सूरा-26, आयत-183)
    •जालिमों को अल्लाह की चेतावनी:-
    “जो लोग खुदा की आयतों (आदेशो) को नही मानते और नबियों (पैगम्बरों) को ना-हक कत्ल करते रहे हैं और जो इंसाफ करने का हुक्म देते हैं, उन्हे भी मार डालते हैं, उनको दु:ख देने वाले अजाब की खुशखबरी सुना दों।’’ (कुरआन, सूरा-3, आयत-21)

    •सत्य के लिए कष्ट सहने वाले, लड़ने-मरने वाले र्इश्वर की कृपा के पात्र होंगे, उसके प्रिय होंगें:- “तो उनके परवरदिगार ने उनकी दुआ कबूल कर ली। (और फरमाया कि) मैं किसी अमल करने वाले के अमल को, मर्द हो या औरत, जाया नही करता। तुम एक दूसरे की जिन्स हो, तो जो लोग मेरे लिए वतन छोड़ गए और अपने घरो से निकाले गए और सताए गए और लड़े और कत्ल किए गए मैं उनके गुनाह दूर कर दूंगा और उनको बहिश्तों में दाखिल करूंगा, जिनके नीचे नहरे बह रही हैं। (यह) खुदा के यहां से बदला हैं और खुदा के यहां अच्छा बदला हैं।’’(कुरआन,सूरा-3,आयत-195)
    •इस्लाम को बदनाम करने के लिए लिख-लिखकर प्रचारित किया गया कि इस्लाम तलवार के बल पर प्रचारित व प्रसारित मजहब है।मक्का सहित सम्पूर्ण अरब व दुनिया के अधिकांश मुसलमान, तलवार, के जोर पर ही मुसलमान बनाए गए थे, इस तरह इस्लाम का प्रसार जोर-जबरदस्ती से हुआ। जबकि इस्लाम में किसी को जोर-जबरदस्ती से मुसलमान बनाने की सख्त मनाही हैं। देखिए कुरआन मजीद में अल्लाह के ये आदेश:-
    “और अगर तुम्हारा परवरदिगार (यानी अल्लाह) चाहता तो जितने लोग जमीन पर हैं, सबके सब र्इमान ले आते । तो क्या तुम लोगो पर जबरदस्ती करना चाहते हो कि वे मोमिन (यानी मुसलमान) हो जाएं।’’(कुरआन,सूरा-10,आयत-99)
    ‘‘(ऐ पैगम्बर! इस्लाम के इन मुंकिरों (काफिरों) से कह दो कि ऐ काफिरों! जिन (बुतों) को तुम पूजते हो, उनको मैं नही पूजता और जिस (खुदा) की मैं इबादत करता हूं, उसकी तुम इबादत नही करते, और (मैं फिर कहता हूं कि) जिनकी तुम पूजा करते हो, उनकी मैं पूजा करने वाला नही हूं। और न तुम उसकी बन्दगी करने वाले (मालूम होते) हो, जिसकी मैं बन्दगी करता हूं। तुम अपने दीन (धर्म) पर, मैं अपने दीन पर।’’ (कुरआन, सूरा-109,आयत-1-6)
    ‘‘ऐ पैगम्बर!अगर ये लोग तुमसे झगड़ने लगे, तो कहना कि मैं और मेरी पैरवी करने वाले तो खुदा के फरमाबरदार (अर्थात आज्ञाकारी) हो चुके और अहले-किताब और अनपढ़ लोगो से कहो कि क्या तुम भी (खुदा के फरमाबरदार बनते और) इस्लाम लाते हो? अगर ये लोग इस्लाम ले आएं तो बेशक हिदायत पा ले और अगर (तुम्हारा कहा) न माने, तो तुम्हारा काम सिर्फ खुदा का पैगाम पहुंचा देना हैं। और खुदा (अपने) बन्दो को देख रहा हैं। (कुरआन, सूरा-3, आयत-20)

    1. वाह ये हुयी ना बात इसको कहते हैं असली कुरआन और असली गीता जिसमे सिर्फ दया और धर्म की बात हो जिसमें इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म हो।। भाई हमे ख़ुशी हुई की कोई मुसलमान सच खुल के और इतने अच्छे से बोला है।। कोई भी पवित्र ग्रंथ गलत नहीं होती है चाहे वो बाइबिल हो कुरआन हो या गीता पवित्र ग्रंथ हमारे आदर्श होते हैं और हमे जीने का सही मार्ग दिखाते हैं।। बस इसका प्रचार गलत ना किया जाए।।
      नफीस जी समझाइये अपने धर्म को जो आपके धर्म को मैला कर रहे हैं।।। आप तो जानते ही होंगे की इस्लाम के नाम पर आज क्या चल रहा है।। नफीस जी गलत मतलब हम नहीं निकालते हैं।। गलत मतलब तो आप के ही लोग निकाल के आपको गुमराह करके आतंकवादी बनाते हैं।। आयतें हमे बताने से ज्यादा उन्हें बताना जरूरी है जो गलत हैं।। और रही बात गीता की तो वो इतनी गूढ़ ग्रन्थ है जिसे इंसान समझ ले तो भगवान बन जाए।।। आपके कुरआन तो अक्सर दुनिया में ही उलझी नजर आती है।। हम तो फिर भी योग और साधना और गीता को मानने वाले लोग हैं।।
      वैसे ये जानकर ख़ुशी हुई की कोई तो कुरान को जानता है।।
      ।।।।।समझाइये अपने धर्म को

  59. कुरआन की 24 आयतें जिनके बारे मैं गलतफहमी फेलाई जाती रही है! के कुरआन गैर मुस्लिमों को मारने या जड-मूल से खत्म कर देने का हुक्म देता है! “आइए देखें सच्चाई क्या है?
    इस्लाम, आतंक हैं या आदर्श? यह जानने के लिए मैं कुरआन मजीद की कुछ आयते दे रहा हूं जिन्हे मैने मौलाना फतह मुहम्मद खां जालन्धरी द्वारा अनुवादित और महमूद एण्ड कम्पनी मरोल, पार्इप लाइन, मुम्बर्इ-59 से प्रकाशित कुरआन मजीद से लिया हैं।

    पाठक इस बात को ध्यान में रखें कि कुरआन मजीद के अनुवाद में यदा-कदा (बड़े ब्रेकिट) शब्दों की व्याख्या के लिए लगाए गए हैं। ये ब्रेकिट लेखक की ओर से हैं।यह बात ध्यान देने योग्य हैं कि कुरआन मजीद का अनुवाद करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं कि किसी भी आयत का भावार्थ जरा भी बदलने न पाए, क्योंकि किसी भी कीमत पर यह बदला नही जा सकता। इसी लिए अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग अनुवादकों द्वारा कुरआन मजीद के किए अनुवाद का भाव एक ही रहता हैं। गैर-मुस्लिम भार्इ यदि इस अनुवाद के कठिन शब्दों को न समझ पाएं तो वे मधुर सन्देश संगम, र्इ-20, अबुल-फ़ज्ल इंक्लेव, जामिया नगर, नर्इ दिल्ली-25 द्वारा प्रकाशित और मौलाना मुहम्मद खां द्वारा अनुवादित पवित्र कुरआन का भी सहारा ले सकते हैं।

    कुरआन की शुरूआत ‘बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ से होती हैं, जिसका अर्थ हैं-’शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु अत्यन्त दयालु हैं।
    ध्यान दें। ऐसा अल्लाह, जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयालु हैं वह ऐसे फ़रमान कैसे जारी कर सकता हैं, जो किसी को कष्ट पहुंचाने वाले हों अथवा हिंसा या आतंक फैलाने वाले हों? अल्लाह की इसी कृपालुता और दयालुता का पूर्ण प्रभाव अल्लाह के पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) के व्यवहारिक जीवन में देखने को मिलता हैं। कुरआन की आयतों से व पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी से पता चलता हैं कि मुसलमानों को उन काफिरों से लड़ने का आदेश दिया गया जो आक्रमणकारी थे,
    अत्याचारी थे। यह लड़ार्इ अपने बचाव के लिए थी। देखें कुरआन मजीद में अल्लाह के आदेश:-“और (ऐ मुहम्मद उस वक्त को याद करो) जब काफिर लोग तुम्हारे बारे में चाल चल रहे थे कि तुमको कैद कर दें या जान से मार डालें या (वतन से) निकाल दे तो (इधर से) वे चाल चल रहे थे और (उधर) खुदा चाल रहा था और खुदा सबसे बेहतर चाल चलने वाला हैं।” (कुरआन, सूरा-8, आयत -30)

    “ये वे लोग है कि अपने घरो से ना-हक निकाल दिए गए, (उन्होने कुछ कुसूर नही किया)। हां, ये कहते हैं कि हमारा परवरदिगार खुदा हैं और अगर खुदा लोगो को एक-दूसरो से न हटाता रहता तो (राहिबो के) पूजा-घर और (र्इसाइयों के) गिरजे और (यहूदियों की) और (मुसलमान की) मस्जिदें, जिनमें खुदा का बहुत-सा जिक्र किया जाता हैं, गिरार्इ जा चुकी होती। और जो शख्स खुदा की मदद करता करता हैं, खुदा उसकी जरूर मदद करता हैं। बेशक खुदा ताकतवाला और गालिब यानी प्रभुत्वशाली हैं।’’ (कुरआन, सूरा-22, आयत-40
    ‘‘ये क्या कहते हैं कि इसने कुरआन खुद से बना लिया हैं? कह दो कि अगर सच्चे हो तो तुम भी ऐसी दस सूरतें बना लाओं और खुदा के सिवा जिस-जिस को बुला सकते हो, बुला भी लो।’’ (कुरआन, सूरा-11, आयत-13)

    ‘‘(ऐ पैगम्बर !) काफिरों का शहरों मे (शानों-शौकत के साथ) चलना-फिरना तुम्हे धोखा न दें।’’ (कुरआन, सूरा-3, आयत-196)

    ‘‘जिन मुसलमानों से (खामखाह) लड़ार्इ की जाती है, उनको इजाजत हैं (कि वे भी लड़े), क्योकि उन पर जुल्म हो रहा हैं और खुदा (उन की मदद करेगा, वह) यकीनन उनकी मदद पर कुदरत रखता है।’’ (कुरआन, सूरा-22, आयत-39)
    •इस्लाम के बारे में झूठा प्रचार किया जाता है कि कुरआन में अल्लाह के आदेशों के कारण ही मुसलमान लोग गैर-मुसलमानों का जीना हराम कर देते है, जबकि इस्लाम मे कही भी निर्दोषों से लड़ने की इजाजत नही हैं, भले ही वे काफिर या मुशरिक या दुश्मन ही क्यो न हों। विशेष रूप से देखिए अल्लाह के ये आदेश:-

    ‘‘जिन लोगों ने तुमसे दीन (धर्म) के बारे में जंग नही की और न तुम को तुम्हारे घरो से निकाला, उनके साथ भलार्इ और इंसाफ का सुलूक करने से खुदा तुमको मना नही करता। खुदा तो इंसाफ करने वालों को दोस्त रखता हैं। ‘‘ (कुरआन, सूरा-60, आयत-8)
    खुदा उन्ही लोगो के साथ तुमको दोस्ती करने से मना करता हैं, जिन्होने तुम से दीन के बारे मे लड़ार्इ की और तुमको तुम्हारे घरो से निकाला और तुम्हारे निकालने मे औरो की मदद की, तो जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे, वही जालिम हैं।’’ (कुरआन, सूरा-60, आयत-9)

    •इस्लाम मे दुश्मन के साथ भी ज्यादती करना मना है, देखिए:-
    ‘‘और जो लोग तुमसे लड़ते हैं, तुम भी खुदा की राह मे उनसे लड़ो, मगर ज्यादती (अत्याचार) न करना कि खुदा ज्यादती करने वालो को दोस्त नही रखता।’’(कुरआन, सूरा-2, आयत-190)

    ‘‘ये खुदा की आयते है, जो हम तुमको सेहत के साथ (यानी ठीक-ठीक) पढ़कर सुनाते हैं और अल्लाह अहले-आलम (अर्थात् लोगो) पर जुल्म नही करना चाहता।’’ (कुरआन,सूरा-3, आयत-108)
    •इस्लाम का प्रथम उद्देश्य दुनिया में शान्ति की स्थापना हैं, लड़ार्इ तो अन्तिम विकल्प हैं और यही तो आदर्श धर्म हैं, जो कुरआन की नीचे दी गर्इ इस आयत मे दिखार्इ देता हैं:-
    ‘‘(ऐ पैग़म्बर)! कुफ्फार से कह दो कि अगर वे अपने फेलों (कर्मो) से बाज आ जाएं, तो जो हो चुका, वह उन्हे माफ कर दिया जाएगा और अगर फिर (वही हरकते) करने लगेंगे तो अगले लोगो का (जो) तरीका जारी हो चुका है (वही उनके हक में बरता जाएगा)।’’ (कुरआन, सूरा-8, आयत-38)

    •इस्लाम मे दुश्मनों के साथ भी सच्चा न्याय करने का आदेश, इस्लाम न्याय का सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत करता हैं। इसे नीचे दी गर्इ आयत मे देखिए:- “ऐ र्इमानवालो! खुदा के लिए इंसाफ की गवाही देने के लिए खड़े हो जाया करो और लोगो की दुश्मनी तुमकों इस बात पर तैयार न करे कि इंसाफ छोड़ दो। इंसाफ किया करो कि यही परहेजगारी की बात हैं और खुदा से डरते रहो। कुछ शक नही कि खुदा तुम्हारे तमाम कामों से खबरदार हैं।’’ (कुरआन, सूरा-5, आयत-8)

    •इस्लाम मे किसी निर्दोष की हत्या की इजाजत नही हैं। ऐसा करने वाले की एक ही सजा है, खून के बदले खून। लेकिन यह सजा केवल कातिल को ही मिलनी चाहिए और इसमें ज्यादती मना हैं। इसे ही तो कहते है सच्चा इंसाफ। देखिए नीचे दिया गया अल्लाह का यह आदेश:-‘‘और जिस जानदार का मारना खुदा ने हराम किया हैं, उसे कत्ल न करना मगर जायज तौर पर (यानी शरीअत के फतवे (ओदश) के मुताबिक) और जो शख्स जुल्म से कत्ल किया जाए हमने उसके वारिस को इख्तियार दिया है (कि जालिम कातिल से बदला ले) तो उसको चाहिए कि कत्ल(के किसास) में ज्यादती न करे कि वह मंसूर व फतहयाब हैं।’’ (कुरआन,सूरा-17, आयत-33)

    •इस्लाम देश में हिंसा (फसाद) करने की इजाजत नही देता। देखिए अल्लाह का यह आदेश:-
    ‘‘लोगो को उनकी चीजें कम न दिया करो और मुल्क में फसाद न करते फिरों।’’(कुरआन,सूरा-26, आयत-183)
    •जालिमों को अल्लाह की चेतावनी:-
    “जो लोग खुदा की आयतों (आदेशो) को नही मानते और नबियों (पैगम्बरों) को ना-हक कत्ल करते रहे हैं और जो इंसाफ करने का हुक्म देते हैं, उन्हे भी मार डालते हैं, उनको दु:ख देने वाले अजाब की खुशखबरी सुना दों।’’ (कुरआन, सूरा-3, आयत-21)

    •सत्य के लिए कष्ट सहने वाले, लड़ने-मरने वाले र्इश्वर की कृपा के पात्र होंगे, उसके प्रिय होंगें:- “तो उनके परवरदिगार ने उनकी दुआ कबूल कर ली। (और फरमाया कि) मैं किसी अमल करने वाले के अमल को, मर्द हो या औरत, जाया नही करता। तुम एक दूसरे की जिन्स हो, तो जो लोग मेरे लिए वतन छोड़ गए और अपने घरो से निकाले गए और सताए गए और लड़े और कत्ल किए गए मैं उनके गुनाह दूर कर दूंगा और उनको बहिश्तों में दाखिल करूंगा, जिनके नीचे नहरे बह रही हैं। (यह) खुदा के यहां से बदला हैं और खुदा के यहां अच्छा बदला हैं।’’(कुरआन,सूरा-3,आयत-195)
    •इस्लाम को बदनाम करने के लिए लिख-लिखकर प्रचारित किया गया कि इस्लाम तलवार के बल पर प्रचारित व प्रसारित मजहब है।मक्का सहित सम्पूर्ण अरब व दुनिया के अधिकांश मुसलमान, तलवार, के जोर पर ही मुसलमान बनाए गए थे, इस तरह इस्लाम का प्रसार जोर-जबरदस्ती से हुआ। जबकि इस्लाम में किसी को जोर-जबरदस्ती से मुसलमान बनाने की सख्त मनाही हैं। देखिए कुरआन मजीद में अल्लाह के ये आदेश:-
    “और अगर तुम्हारा परवरदिगार (यानी अल्लाह) चाहता तो जितने लोग जमीन पर हैं, सबके सब र्इमान ले आते । तो क्या तुम लोगो पर जबरदस्ती करना चाहते हो कि वे मोमिन (यानी मुसलमान) हो जाएं।’’(कुरआन,सूरा-10,आयत-99)

    1. कुरआन की शुरूआत ‘बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ से होती हैं, जिसका अर्थ हैं-’शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु अत्यन्त दयालु हैं।
      ध्यान दें। ऐसा अल्लाह, जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयालु हैं वह ऐसे फ़रमान कैसे जारी कर सकता हैं, जो किसी को कष्ट पहुंचाने वाले हों अथवा हिंसा या आतंक फैलाने वाले हों? अल्लाह की इसी कृपालुता और दयालुता का पूर्ण प्रभाव अल्लाह के पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) के व्यवहारिक जीवन में देखने को मिलता हैं। कुरआन की आयतों से व पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी से पता चलता हैं कि मुसलमानों को उन काफिरों से लड़ने का आदेश दिया गया जो आक्रमणकारी थे,

      यहाँ कौन आक्रमणकारी है

      मुस्लिम विद्वानो और प्रचारकों के अनुसार इस्लाम शान्ति का सन्देश देता है और इस्लाम का शाब्दिक अर्थ भी शांती ही है . मुहम्मद साहब इस्लाम के आखिरी नबी ( हालांकि नबी होने का दावा मुहम्मद साहब के बाद भी कई लोगों ने किया है ) हैं . और मुहम्मद साहब अल्लाह द्वारा दिए गए शांति के सन्देश के प्रचारक थे . लेकिन इस्लाम की यह शाब्दिक शान्ति व्यावहारिक रूप में कितनी परिवर्तित हो पाई है या केवल एक छलावा है यह एक विचारणीय विषय है .

      किसी भी मत की मान्यताएं उसके इतिहास से प्रदर्शित होती हैं . इस्लाम का मूल मुहम्मद साहब और उनका आचरण है. आइये इस्लामिक इतिहास के इस तथ्य पर नज़र डालते हैं कि क्या वास्तव में मुहम्मद साहब का आचरण शान्ति के प्रचार प्रसार को फलीभूत करने वाला था ?

      सुरा अल सफ्फात ३३ की आयात १७७ :

      Picture3

      “फिर जब अजाब उनके आँगन में उतरेगा तो उन लोगों को की सजा बड़ी होगी जिन्हें डराया गया था “

      सहीह मुल्सिम की व्याख्या में अब्दुल हामिद सिद्दकी साहब ने कुरान की इस आयत को नीचे दी हुयी हदीस के साथ जोड़ा है :

      Picture4

      Picture5

      Picture6

      अनास से रिवायत है कि मुहम्मद साहब ने एक अभियान खैबर की तरफ रवाना किया. हमने सुबह की नमाज अदा की . मुहम्मद साहब और अबु ताल्हा घोड़े पर सवार हो गए. मैं ( अनास ) अबू ताल्हा के पीछे बैठा था. हम खैबर की तंग गलियों में घुस गए .जैसे ही वो निवास स्थान पर पहुंचे जो अल्लाह हु अबकर जोर बोला. खैबर तबाह हो चूका था .हम लोगों के मध्य में थे जिनको पहले सचेत किया जा चूका था. लोग जब दैनिक कर्म के लिए बाहर निकले तो पता चला कि मुहम्मद साहब ने अपनी सेना के साथ कब्ज़ा कर लिया है .मुहम्मद साहब ने कहा की खैबर की भूमि अब हमारे स्वामित्व में है हमने बलपूर्वक इसे ले लिया है . लोग अब युद्ध बंदी थे .

      हदीस आगे कहती है कि दिह्या मुहम्मद साहब के पास आकर बोला कि अल्लाह के रसूल मुझे बंदियों की लड़कियों में से एक लड़की दे दीजिये. मुहम्मद साहब ने कहा कि जाओ और किसी को भी ले लो . उसने हुयायाय की लड़की साफिया को पसंद किया .

      एक व्यक्ति ने मुहम्मद साहब के पास आकर कहा की आपने दिह्या को दे दिया वो केवल आपके लिए है . मुहम्मद साहब ने कहा की साफिया को दिह्या के साथ बुलाया जाए . मुहम्मद साहब के साफिया को देखकर कहा कि दिह्या कोई दूसरी लड़की ले लो और मुहम्मद साहब ने साफिया को मुक्त कर उससे निकाह कर कर लिया .

      सहीह मुल्सिम की व्याख्या में अब्दुल हामिद सिद्दकी साहब लिखते हैं कि इस्लाम में युद्ध बंदियों को गुलाम बना के रखा जा सकता है. इन लोगों को फिरोती लेकर मुक्त किया जा सकता है.

      घटना इस प्रकार है कि खैबर के लोगों को मुहम्मद साहब ने उनके द्वारा पोषित दीन अर्थात इस्लाम कबूल करने की राय दी थी और जब उन लोगों ने इस्लाम नहीं कबूला मुहम्मद साहब को आखिरी नबी मानने से इनकार कर दिया तो मुहम्मद साहब अपनी सेना लेकर उनके घरों में घुस गए और खैबर पर कब्ज़ा कर लिया . यह है इस्लाम के संस्थापक का शान्ति का पैगाम.

      उपर्युक्त घटना के निम्न मुख्य पहलू हैं:
      •मुहम्मद साहब ने खैबर के jews को इस्लाम कबूल करने के लिए परामर्श दिया और एक अवधि निर्धारित कर दी .
      •निर्धारित अवधी में इस्लाम न कबूलने पर ये आयात उतार दी गयी की इस्लाम न कबूलने पर अज़ाब उतारा जायेगा (“फिर जब अजाब उनके आँगन में उतरेगा तो उन लोगों को की सजा बड़ी होगी जिन्हें डराया गया था “सुरा अल सफ्फात ३३ की आयात १७७
      •जब खैबर के लोगों ने इस्लाम नहीं कबूला तो उन पर अचानक आक्रमण कर दिया गया और उन्हें संभलने का मौक़ा तक नहीं दिया गया
      •औरतों को बंदी बना लिया गया और लुट के माल के तरह उनको भी बाँट लिया गया .
      •खैबर की सम्पदा लूट ली गयी

      इस्लाम के इतिहास की ये केवल एक घटना है. इतिहास में अनेकों ऐसी घटनायें हैं.

      अपने मत से सहमत न होने पर किसी व्यक्ति या समूह या देश पर आक्रमण कर उसे तबाह कर देना सम्पदा को लूट लेना औरतों को लूट के माल की तरह बाँट लेना और इसको शान्ति का सन्देश करार देना कहाँ तक तर्कसंगत है ?

      पाठक गण विचार करें !

  60. ‘‘कह दो कि ऐ अहले-किताब! जो बात हमारे और तुम्हारे दर्मियान एक ही (मान ली गर्इ) हैं, उसकी तरफ आओं, वह यह कि खुदा के सिवा हम किसी की इबादत (पूजा) न करे और उसके साथ किसी चीज को शरीक (यानी साझी) न बनाएं और हममे से कोर्इ किसी को खुदा के सिवा अपना कारसाज न समझे। अगर ये लोग (इस बात को) न माने तो (उनसे) कह दो कि तुम गवाह रहो कि हम (खुदाके) फरमांबरदार हैं।” (कुरआन,सूरा-3,आयत 64)

    •इस्लाम मे जोर-जबरदस्ती से धर्म-परिवर्तन की मनाही के साथ-साथ इससे भी आगे बढ़कर किसी भी प्रकार की जोर-जबरदस्ती की इजाजत नही है। देखिए अल्लाह का यह आदेश:-
    ‘‘दीने-इस्लाम (इस्लाम धर्म) में जबरदस्ती नही हैं।’’ (कुरआन,सूरा-2,आयत-256)
    •जो बुरे काम करेगा और असत्य नीति अपनाएगा मरने के बाद आने वाले जीवन (आखिरत) मे उसका फल भोगेगा:-
    ‘‘हां, जो बुरे काम करे और उसके गुनाह (हर तरफ से) उसको घेर लें तो ऐसे लोग दोजख (में जाने) वाले हैं। (और) वे हमेशा उसमें (जलते) रहेंगे।’’(कुरआन, सूरा-2,आयत-81)

    •निष्कर्ष:-
    पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी व कुरआन मजीद की इन आयतों को देखने के बाद स्पष्ट हैं कि हजरत मुहम्मद (सल्ल0) की करनी और कुरआन की कथनी मे कही भी आतंकवाद नही हैं। इससे सिद्ध होता हैं कि इस्लाम की अधूरी जानकारी रखने वाली ही अज्ञानता के कारण इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ते हैं।

    •इस्लाम ओर कुरआन को बदनाम किए जाने की नीयत से आर्य समाजी छल-कपटियों द्वारा छपवाई गई पैम्फलेट मे लिखी पहले क्रम की आयत हैं:-‘‘फिर, जब हराम के महीने बीत जाएं, तो ‘मुशरिकों’ को जहां कही पाओ कत्ल करो, और पकड़ो, और उन्हे घेरो, और हर घात की जगह उनकी ताक मे बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर ले, नमाज कायम करें और जकात दे, तो उनका मार्ग छोड़ दो। नि:सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला हैं। (कुरआन,सूरा-9,आयत-5)
    *खुलासा:-
    इस आयत के संदर्भ में-जैसा कि हजरत मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी से स्पष्ट हैं कि मक्का में और मदीना जाने के बाद भी मुशरिक काफिर कुरैश, अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के पीछे पड़े हुए थे। वे मुहम्मद (सल्ल0) को और सत्य धर्म इस्लाम को समाप्त करने के लिए हर सम्भव कोशिश करते रहते। काफिर कुरैश ने अल्लाह के रसूल को कभी चैन से बैठने नही दिया। वे उनको सदैव सताते ही रहे। इसके लिए वे सदैव लड़ार्इ की साजिश रचते रहते। अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के हिजरत के छठवें साल जीकादा महीने में आप (सल्ल0) सैकड़ो मुसलमानों के साथ हज के लिए मदीना से मक्का रवाना हुए। लेकिन मुनाफिकों (यानी कपटाचारियों) ने इसकी खबर कुरैश को दे दी। कुरैश पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) को घेरने का कोर्इ मौका हाथ से जाने न देते इस बार भी वे घात लगाकर रास्ते मे बैेठ गए। इसकी खबर मुहम्मद (सल्ल0) को लग गर्इ। आपने रास्ता बदल दिया और मक्का के पास हुदैबिया कुएं के पास पड़ाव डाला। कुए के नाम पर ही इस जगह का नाम हुदैबिया था। जब कुरैश को पता चला कि मुहम्मद अपने अनुयायी मुसलमानों के साथ मक्का के पास पहुंच चुके हैं और हुदैबिया पर पड़ाव डाले हुए हैं, तो काफिरो ने कुछ लोगो को आपकी हत्या के लिए हुदैबिया भेजा, लेकिन वे सब हमले से पहले ही मुसलमानों के द्वारा पकड़ लिए गए और अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के सामने लाए गए। लेकिन आपने उन्हे गलती का एहसास कराकर माफ कर दिया। इसके बाद हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने लड़ार्इ-झगड़ा, खून-खराबा टालने के लिए हज़रत उस्मान (रजि0) का कुरैश से बात करने के लिए भेजा। लेकिन कुरैश ने हज़रत उस्मान (रजि0) को कैद कर लिया। इधर हुदैबिया में पड़ाव डाले अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को खबर लगी कि हज़रत उस्मान (रजि0) कत्ल कर दिए गए। यह सुनते ही मुसलमान हज़रत उस्मान (रजि0) के कत्ल का बदला लेने के लिए तैयारी करने लगे। जब कुरैश को पता चला कि मुसलमान अब मरने-मारने को तैयार हैं और अब युद्ध निश्चित हैं तो उनसे बातचीत के लिए सुहैल-बिन-अम्र को हजरत मुहम्मद(सल्ल0) के पास हुदैबिया भेजा। सुहैल से मालूम हुआ कि उस्मान (रजि0) का कत्ल नही हुआ है, वे कुरैश की कैद मे हैं। सुहैल ने हज़रत उस्मान (रजि0) का कैद से आजाद करने व युद्ध टालने के लिए कुछ शर्ते पेश की। जो निम्नलिखित हैं:-

    •पहली शर्त थी-इस साल आप सब बिना उमरा (काबा-दर्शन) किए लौट जाएं। अगले साल आएं ,लेकिन तीन दिन बाद चले जाएं।
    •दूसरी शर्त थी-हम कुरैश का कोर्इ आदमी मुसलमान बनकर यदि मदीना आए तो उसे हमे वापस किया जाए। लेकिन यदि कोर्इ मुसलमान मदीना छोड़कर मक्का मे आ जाए, तो हम वापस नही करेंगे।•तीसरी शर्त थी-कोर्इ भी कबीला अपनी मर्जी से कुरैश के साथ या मुसलमानों के साथ शामिल हो सकता हैं।
    •समझौते मे चौथी शर्त थी कि-इन शर्तो को मानने के बाद कुरैश और मुसलमान न एक-दूसरे पर हमला करेंगे और न ही एक-दूसरे के सहयोगी कबीलो पर हमला करेंगे। यह समझौता 10 साल के लिए हुआ, जो हुदैबिया समझौते के नाम से जाना जाता हैं।हालांकि ये शर्ते एक तरफा और अन्यायपूर्ण थी, फिर भी शान्ति और सब्र के दूत मुहम्मद (सल्ल0) ने इन्हे स्वीकार कर लिया, ताकि शान्ति स्थापित हो सके। लेकिन समझौता होने के दो ही साल बाद बनू-बक्र नामक कबीले ने जो मक्का के कुरैश का सहयोगी था, मुसलमानों के सहयोगी कबीलो खुजाआ पर हमला कर दिया। इस हमले मे कुरैश ने बनू-बक्र कबीले का साथ दिया । खुजाआ कबीले के लोग भागकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के पास पहुंचे और इस हमले की खबर दी। पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) ने शान्ति के लिए इनता झुककर समझौता किया था, इसके बाद भी कुरैश ने धोखा देकर समझौता तोड़ डाला।
    अब युद्ध एक आवश्यकता थी, धोखा देने वालो को दण्डित करना शान्ति स्थापना के लिए जरूरी था। इसी जरूरत को देखते हुए अल्लाह की ओर से सूरा-9 की आयते अवतरित हुर्इ। इनके अवतरित होने पर नबी सल्ल0 ने सूरा-9 की आयतें सुनाने के लिए हजरत अली (रजि0) को मुशरिकों के पास भेजा। हजरत अली (रजि0) ने जाकर मुशरिकों से यह कहते हुए कि मुसलमानों के लिए अल्लाह का फरमान आ चुका हैं, उनको सूरा-9 की ये आयते सुना दी:-
    ‘‘(ऐ मुसलमानों! अब) खुदा और उसके रसूल की तरफ से मुशरिकों से, जिनसे तुमने अहद (समझौता) कर रखा था, बेजारी (और जंग की तैयारी) हैं।
    तो (मुशरिको! तुम) जमीन मे चार महीने चल फिर लो और जान रखो कि तुम खुदा को आजिज़ न कर सकोगे और यह भी कि खुदा काफिरों को रूसवा करने वाला हैं।
    और हज्जे-अक्बर के दिन खुदा और उसके रसूल की तरफ से लोगो को आगाह किया जाता है कि खुदा मुशरिकों से बेजार है और उसका रसूल भी (उनसे दस्तबरदार हैं)। पस अगर तुम तौबा कर लो, तो तुम्हारे हक में बेहतर हैं और न मानों (और खुदा से मुकाबला करो) तो जान रखो कि तुम खुदा को हरा नही सकोगे और (ऐ पैगम्बर!) काफिरो को दु:ख देने वाले अजाब की खबर सुना दो।’’ (कुरआन,सूरा-9,आयतें-1-3)
    अली (रजि0) ने मुशरिकों से कह दिया कि ‘‘यह अल्लाह का फरमान हैं, अब समझौता टूट चुका हैं और यह तुम्हारे द्वारा तोड़ा गया हैं इसलिए अब इज्जत के चार महीने बीतने के बाद तुमसे जंग (यानी युद्ध) हैं।’’

    •समझौता तोड़कर हमला करने वालों पर जवाबी हमला कर उन्हें कुचल देना मुसलमानों का हक बनता था, वह भी मक्का के उन मुशरिकों के विरूद्ध जो मुसलमानों के लिए सदैव से अत्याचारी व आक्रमणकारी थें। इसी लिए सर्वोच्च न्यायकर्ता अल्लाह ने पांचवीं आयत का फरमान भेजा। इस पांचवी आयत से पहले वाली चौथी आयत हैं:-
    ‘‘अलबत्ता, जिन मुशरिकों के साथ तुमने अहद किया हो, और उन्होने तुम्हारा किसी तरह का कुसूर न किया हो और न तुम्हारे मुकाबले मे किसी की मदद की हो, तो जिस मुद्दत तक उनके साथ अहद किया हो, उसे पूरा करो (कि) खुदा परहेजगारों को दोस्त रखता हैं।’’ (कुरआन,सूरा-9,आयत-4)
    इससे स्पष्ट हैं कि जंग का यह एलान उन मुशरिको के विरूद्ध था जिन्होने युद्ध के लिए उकसाया, मजबूर किया, उन मुशरिकों के विरूद्ध नहीं जिन्होने ऐसा नही किया। युद्ध का यह एलान आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए था।
    अत: अन्यायियों, अत्याचारियों द्वारा जबरदस्ती थोपे गए युद्ध से अपने बचाव के लिए किए जाने वाले किसी भी प्रकार के प्रयास को किसी भी तरह झगड़ा कराने वाला नहीं कहा जा सकता। अत्याचारीयों और अन्यायियों से अपनी व अपने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना और युद्ध के लिए सैनिकों को उत्साहित करना धर्मसम्मत हैं।

    •इस पर्चे छापने और बॉटने वाले लोग क्या नही जानते कि अत्याचारियों और अन्यायियों के विनाश के लिए ही कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। क्या यह उपदेश लड़ार्इ-झगड़ा कराने वाला या घृणा फैलाने वाला है? यदि नही, तो फिर कुरआन के लिए ऐसा क्यो कहा जाता हैं?फिर यह पूरी सूरा उस समय मक्का के अत्याचारी मुशरिकों के विरूद्ध उतारी गर्इ, जो अल्लाह के रसूल के ही भार्इ-बन्धु कुरैश थे। फिर इसे आज के सन्दर्भ मे और हिन्दुओं के लिए क्यों लिया जा रहा हैं? क्या यह हिन्दुओं व अन्य गैर-मुस्लिमों को उकसाने और उनके मन में मुसलमानों के लिए घृणा भरने तथा इस्लाम का बदनाम करने की घृणित साजिश नही हैं?

    •पैम्फलेट मे लिखी दूसरे क्रम की आयत है:
    ‘‘हे ‘र्इमान’ लानेवालो! ‘मुशरिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक है।’’ (कुरआन,सूरा-9, आयत-28)
    *खुलासा:-
    लगातार झगड़ा-फसाद, अन्याय-अत्याचार करने वाले अन्यायी, अत्याचारी अपवित्र नही हैं तो और क्या है?

    •पैम्फलेट में लिखी तीसरे क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘नि:सन्देह ‘काफिर’ तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।’’ (कुरआन, सूरा-4, आयत-101)

    1. •इस्लाम मे जोर-जबरदस्ती से धर्म-परिवर्तन की मनाही के साथ-साथ इससे भी आगे बढ़कर किसी भी प्रकार की जोर-जबरदस्ती की इजाजत नही है। देखिए अल्लाह का यह आदेश:-
      ‘‘दीने-इस्लाम (इस्लाम धर्म) में जबरदस्ती नही हैं।’’ (कुरआन,सूरा-2,आयत-256)
      •जो बुरे काम करेगा और असत्य नीति अपनाएगा मरने के बाद आने वाले जीवन (आखिरत) मे उसका फल भोगेगा:-
      ‘‘हां, जो बुरे काम करे और उसके गुनाह (हर तरफ से) उसको घेर लें तो ऐसे लोग दोजख (में जाने) वाले हैं। (और) वे हमेशा उसमें (जलते) रहेंगे।’’(कुरआन, सूरा-2,आयत-81)

      •निष्कर्ष:-
      पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी व कुरआन मजीद की इन आयतों को देखने के बाद स्पष्ट हैं कि हजरत मुहम्मद (सल्ल0) की करनी और कुरआन की कथनी मे कही भी आतंकवाद नही हैं।

      यदि आपके हिसाब से जबरदस्ती इस्लाम में नहीं है तो ये क्या है

      किसी भी मत की मान्यताएं उसके इतिहास से प्रदर्शित होती हैं . इस्लाम का मूल मुहम्मद साहब और उनका आचरण है. आइये इस्लामिक इतिहास के इस तथ्य पर नज़र डालते हैं कि क्या वास्तव में मुहम्मद साहब का आचरण शान्ति के प्रचार प्रसार को फलीभूत करने वाला था ?

      सुरा अल सफ्फात ३३ की आयात १७७ :

      Picture3

      “फिर जब अजाब उनके आँगन में उतरेगा तो उन लोगों को की सजा बड़ी होगी जिन्हें डराया गया था “

      सहीह मुल्सिम की व्याख्या में अब्दुल हामिद सिद्दकी साहब ने कुरान की इस आयत को नीचे दी हुयी हदीस के साथ जोड़ा है :

      Picture4

      Picture5

      Picture6

      अनास से रिवायत है कि मुहम्मद साहब ने एक अभियान खैबर की तरफ रवाना किया. हमने सुबह की नमाज अदा की . मुहम्मद साहब और अबु ताल्हा घोड़े पर सवार हो गए. मैं ( अनास ) अबू ताल्हा के पीछे बैठा था. हम खैबर की तंग गलियों में घुस गए .जैसे ही वो निवास स्थान पर पहुंचे जो अल्लाह हु अबकर जोर बोला. खैबर तबाह हो चूका था .हम लोगों के मध्य में थे जिनको पहले सचेत किया जा चूका था. लोग जब दैनिक कर्म के लिए बाहर निकले तो पता चला कि मुहम्मद साहब ने अपनी सेना के साथ कब्ज़ा कर लिया है .मुहम्मद साहब ने कहा की खैबर की भूमि अब हमारे स्वामित्व में है हमने बलपूर्वक इसे ले लिया है . लोग अब युद्ध बंदी थे .

      हदीस आगे कहती है कि दिह्या मुहम्मद साहब के पास आकर बोला कि अल्लाह के रसूल मुझे बंदियों की लड़कियों में से एक लड़की दे दीजिये. मुहम्मद साहब ने कहा कि जाओ और किसी को भी ले लो . उसने हुयायाय की लड़की साफिया को पसंद किया .

      एक व्यक्ति ने मुहम्मद साहब के पास आकर कहा की आपने दिह्या को दे दिया वो केवल आपके लिए है . मुहम्मद साहब ने कहा की साफिया को दिह्या के साथ बुलाया जाए . मुहम्मद साहब के साफिया को देखकर कहा कि दिह्या कोई दूसरी लड़की ले लो और मुहम्मद साहब ने साफिया को मुक्त कर उससे निकाह कर कर लिया .

      सहीह मुल्सिम की व्याख्या में अब्दुल हामिद सिद्दकी साहब लिखते हैं कि इस्लाम में युद्ध बंदियों को गुलाम बना के रखा जा सकता है. इन लोगों को फिरोती लेकर मुक्त किया जा सकता है.

      घटना इस प्रकार है कि खैबर के लोगों को मुहम्मद साहब ने उनके द्वारा पोषित दीन अर्थात इस्लाम कबूल करने की राय दी थी और जब उन लोगों ने इस्लाम नहीं कबूला मुहम्मद साहब को आखिरी नबी मानने से इनकार कर दिया तो मुहम्मद साहब अपनी सेना लेकर उनके घरों में घुस गए और खैबर पर कब्ज़ा कर लिया . यह है इस्लाम के संस्थापक का शान्ति का पैगाम.

      उपर्युक्त घटना के निम्न मुख्य पहलू हैं:
      •मुहम्मद साहब ने खैबर के jews को इस्लाम कबूल करने के लिए परामर्श दिया और एक अवधि निर्धारित कर दी .
      •निर्धारित अवधी में इस्लाम न कबूलने पर ये आयात उतार दी गयी की इस्लाम न कबूलने पर अज़ाब उतारा जायेगा (“फिर जब अजाब उनके आँगन में उतरेगा तो उन लोगों को की सजा बड़ी होगी जिन्हें डराया गया था “सुरा अल सफ्फात ३३ की आयात १७७
      •जब खैबर के लोगों ने इस्लाम नहीं कबूला तो उन पर अचानक आक्रमण कर दिया गया और उन्हें संभलने का मौक़ा तक नहीं दिया गया
      •औरतों को बंदी बना लिया गया और लुट के माल के तरह उनको भी बाँट लिया गया .
      •खैबर की सम्पदा लूट ली गयी

      इस्लाम के इतिहास की ये केवल एक घटना है. इतिहास में अनेकों ऐसी घटनायें हैं.

  61. इस पूरी आयत से स्पष्ट है कि मक्का व आस-पास के काफिर जो मुसलमानों को सदैव नुकसान पहुंचाना चाहते थे (देखिए हजरत मुहम्मद सल्ल0 की जीवनी), ऐसे दुश्मन काफिरों से सावधान रहने के लिए ही इस 101वीं आयत मे कहा गया हैं ‘‘कि नि:सन्देह ‘काफिर’ तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।’’

    इससे अगली 102वीं आयत से यह और स्पष्ट हो जाता हैं जिसमें अल्लाह ने और सावधान रहने का फरमान दिया हैं कि:-
    ‘‘और (ऐ पैगम्बर!) जब तुम उन (मुजाहिदों के लश्कर) में हो और उनको नमाज पढ़ाने लगो, तो चाहिए कि एक जमाअत तुम्हारे साथ हथियारों से लैस होकर खड़ी रहे, जब वे सज्दा कर चुके तो पूरे हो जाएं फिर दूसरी जमाअत, जिसने नमाज नही पड़ी (उनकी जगह आए और होशियार और हथियारों से लैस होकर) तुम्हारे साथ नमाज अदा करें। काफिर इस धात मे हैं कि तुम जरा अपने हथियारों और सामानों से गाफिल हो जाओं तो तुम पर एकबारगी हमला कर देंगे।(कुरआन,सूरा-4, आयत-102)

    पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी व ऊपर लिखे तथ्यों से स्पष्ट है कि मुसलमानों के लिए काफिरों से अपनी व अपने धर्म की रक्षा करने के लिए ऐसा करना आवश्यक था। अत: इस आयत मे झगड़ा कराने, धृणा फैलाने या कपट करने जैसी कोर्इ बात नही हैं, जैसा कि पैम्फलेट मे लिखा गया हैं। जबकि जान-बूझकर कपटपूर्ण ढंग से आयत का मतलब बदलने के लिए आयत के केवल एक अंश को लिखकर और शेष को छिपाकर जनता को बरगलाने, घृणा फैलाने व झगड़ा कराने का कार्य तो वे लोग कर रहे हैं, इसे छापने व पूरे देश मे बांटने का कार्य कर रहे हैं। जनता ऐसे लोगो से सावधान रहे।

    •पैम्फलेट मे लिखी चौथे क्रम की आयत हैं:-
    “हे ‘र्इमान’ लाने वालो! (मुसलमानो!) उन ‘काफिरो’ से लड़ो जो तुम्हारे आस-पास है, और चाहिए कि वे तुममे सख्ती पाएं।’’ (कुरआन,सूरा-9, आयत-123)

    *खुलासा:-
    पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी व ऊपर लिखे जा चुके तथ्यों से स्पष्ट है कि मुसलमानों को काफिरो से अपनी व अपने धर्म की रक्षा करने के लिए ऐसा करना आवश्यक था। इसलिए इस आत्मरक्षा वाली आयत को झगड़ा कराने वाली नही कहा जा सकता।

    •पैम्फलेट में लिखी पांचवे क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘जिन लोगो ने हमारी ‘आयतों’ का इन्कार किया, उन्हे हम जल्द अग्नि मे झोंक देंगे। जब उनकी खाले पक जाएंगी तो हम उन्हे दूसरी खालो से बदल देंगे, ताकि वे यातना का रसास्वादन कर ले। नि:सन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदश्राी है।’’ (कुरआन, सूरा-4, आयत-56)

    *खुलासा:-
    यह तो धर्म-विरूद्ध जाने पर दोजख (यानी नरक) में दिया जाने वाला दण्ड हैं। सभी धर्मो मे उस धर्म की मान्यताओं के अनुसार चलने पर स्वर्ग का अकल्पनीय सुख और विरूद्ध जाने पर नरक का भयानक दण्ड हैं । फिर कुरआन में बताए गए नरक (यानी दोजख) के दण्ड के लिए एतराज क्यों? इस मामले में इन पर्चा छापने व बॉंटने वालो को हस्पक्षेप करने का क्या अधिकार हैं?
    या फिर क्या इन महामूर्ख लोगो को नरक मे मानवाधिकारों की चिन्ता सताने लगी हैं?

    •पैम्फलेट मे लिखी छठे क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘हे ‘र्इमान’ लाने वालो! (मुसलमानों!) अपने बापो और भार्इयों को अपना मित्र मत बनाओं, यदि वे ‘र्इमान’ की अपेक्षा ‘कुफ्र’ को पसन्द करें। और तुममें से जो कोर्इ उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे।’’ (कुरआन, सूरा-9,आयत-23)

    *खुलासा:-
    पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) जब एकेश्वरवाद का सन्देश दे रहे थे, तब कोर्इ व्यक्ति अल्लाह के रसूल (सल्ल0) द्वारा दिए जा रहे तौहीद (यानी एकेश्वरवाद) के पैगाम पर र्इमान (यानीविश्वास) लाकर मुसलमान बनता और फिर अपने मां-बाप, बहन-भार्इ के पास जाता, तो वे एकेश्वरवाद से उसका विश्वास खत्म कराके फिर से बहुर्इश्वरवादी बना देते। इस कारण एकेश्वरवाद की रक्षा के लिए अल्लाह ने यह आयत उतारी, जिससे एकेश्वरवाद के सत्य को दबाया न जा सके। अत: सत्य की रक्षा के लिए आर्इ इस आयत को झगड़ा कराने वाली या घृणा फैलाने वाली आयत कैसे कहा जा सकता हैं? जो ऐसा कहते हैं, वे अज्ञानी हैं।

    1. “मुसलमानों के लिए काफिरों से अपनी व अपने धर्म की रक्षा करने के लिए ऐसा करना आवश्यक था।”
      तो फिर आज के दिन में कुरान कि इन आयतों का कोई मतलब नहीं रह जाता

      ‘‘हे ‘र्इमान’ लाने वालो! (मुसलमानों!) अपने बापो और भार्इयों को अपना मित्र मत बनाओं, यदि वे ‘र्इमान’ की अपेक्षा ‘कुफ्र’ को पसन्द करें। और तुममें से जो कोर्इ उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे।’’ (कुरआन, सूरा-9,आयत-23)

      *खुलासा:-
      पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) जब एकेश्वरवाद का सन्देश दे रहे थे, तब कोर्इ व्यक्ति अल्लाह के रसूल (सल्ल0) द्वारा दिए जा रहे तौहीद (यानी एकेश्वरवाद) के पैगाम पर र्इमान (यानीविश्वास) लाकर मुसलमान बनता और फिर अपने मां-बाप, बहन-भार्इ के पास जाता, तो वे एकेश्वरवाद से उसका विश्वास खत्म कराके फिर से बहुर्इश्वरवादी बना देते। इस कारण एकेश्वरवाद की रक्षा के लिए अल्लाह ने यह आयत उतारी, जिससे एकेश्वरवाद के सत्य को दबाया न जा सके। अत: सत्य की रक्षा के लिए आर्इ इस आयत को झगड़ा कराने वाली या घृणा फैलाने वाली आयत कैसे कहा जा सकता हैं? जो ऐसा कहते हैं, वे अज्ञानी हैं।

      तो क्या वह अपने पत्नी को भी इस लिए छोड़ दे कि वो आपकी सनक भरी बातों में विश्वास नहीं रखती

      🙂
      आपकी मानी जाये तो ठीक नहीं तो गलत

  62. पैम्फलेट में लिखी सातवे क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘अल्लाह ‘काफिर’ लोगो को मार्ग नही दिखाता।’’ (कुरआन,सूरा-9,आयत-37)

    *खुलासा:-
    आयत का मतलब बदलने के लिए इस आयत को भी जान-बूझकर पूरा नही दिया गया, इसलिए इसका सही मकसद समझ में नही आता। इसे समझने के लिए हम आयत को पूरा दे रहे हैं:-
    ‘‘अम्न के किसी महीने को हटाकर आगे-पीछे कर देना कुफ्र में बढ़ोत्तरी करता हैं। इससे काफिर गुमराही मे पड़े रहते है। एक साल तो उसको हलाल समझ लेते हैं और दूसरे साल हराम, ताकि अदब के महीनों की, जो खुदा ने मुकर्रर किये हैं, गिनती पूरी कर लें और जो खुदा ने मना किया हैं, उसको जायज कर लें। उनके बुरे अमल उनको भले दिखार्इ देते हैं और खुदा काफिर लोगो को हिदायत नही दिया करता।’’ (कुरआन,सूरा-9,आयत-37)

    अदब या अम्न (यानी शान्ति) के चार महीने होते हैं, वे हैं- जीकादा, जिलहिज्जा, मुहर्रम और रजब । इन चार महीनों में लड़ार्इ-झगड़ा नही किया जाता। काफिर कुरैश इन महीनो में से किसी महीने को अपनी जरूरत के हिसाब से जान -बूझकर आगे-पीछे कर लड़ार्इ-झगड़ा करने के लिए मान्यता का उल्लंघन किया करते थे। अनजाने मे भटके हुए को मार्ग दिखाया जा सकता हैं, लेकिन जान-बूझकर भटके हुए को मार्ग र्इश्वर भी नही दिखाता। इसी सन्दर्भ में यह आयत उतरी। इस आयत का लड़ार्इ-झगड़ा कराने या घृणा फैलाने से कोर्इ सम्बन्ध ही नही है।

    •पैम्फलेट मे लिखी आठवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘हे ‘र्इमान’ लानेवालों! और ‘काफिरों’ को अपना मित्र मत बनाओं। अल्लाह से डरते रहो यदि तुम र्इमानवालों हो।” (कुरआन,सूरा-5,आयत-57)

    *खुलासा:-
    यह आयत भी अधूरी दी गर्इ हैं। आयत के बीच का अंश जान-बूझकर छिपाने की शरारत की गर्इ हैं पूरी आयत ये हैं:-
    ‘‘ऐ र्इमान लाने वालो! जिन लोगो को तुमसे पहले किताबे दी गर्इ थी, उनको और काफिरो को जिन्होने तुम्हारे दीन (धर्म) को हंसी और खेल बना रखा हैं, दोस्त न बनाओं और मोमिन हो तो खुदा से डरते रहो।’’ (कुरआन, सूरा-5, आयत-57)

    आयत को पढ़ने से साफ हैं कि काफिर कुरैश तथा उनके सहयोगी यहूदी और र्इसार्इ जो मुसलमानों के धर्म की हंसी उड़ाया करते थे, उनको दोस्त न बनाने के लिए यह आयत आर्इ। यह लड़ार्इ-झगड़ा के लिए उकसाने वाली या घृणा फैलाने वाली कहां से हैं? इसके विपरीत पाठक स्वंय देखें कि पैम्फलेट में ‘जिन्होने तुम्हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा हैं’ को जान-बूझकर छिपाकर उसका मतलब पूरी तरह बदल देने की साजिश करने वाले क्या चाहते है?

    •पैम्फलेट में लिखी नौवें क्रम की आयत है:-
    ‘‘फिटकारे हुए (गैर-मुस्लिम) जहां कही पाए जाएंगे, पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।’’(कुरआन,सूरा-33,आयत-61)

    *खुलासा:-
    इस आयत का सही मतलब तभी पता चलता है जब इसे इसके पहले वाली 60वीं आयत से जोड़ा जाए।
    ‘‘अगर मुनाफिक (यानी कपटाचारी) और वे लोग जिनके दिलों में मर्ज हैं और जो मदीना (के शहर) मे बुरी-बुरी खबरें उड़ाया करते हैं, (अपने किरदार से) रूकेंगे नही, तो हम तुमको उनके पीछे लगा देंगे, फिर वह तुम्हारे पड़ोस में न रह सकेंगे, मगर थोड़े दिन। (वे भी फिटकारे हुए) जहॉ पाए गए, पकड़े गए और जान से मार डाले गए। (कुरआन, सूरा-33, आयते-60,61)

    उस समय मदीना शहर जहां अल्लाह के रसूल (सल्ल0) का निवास था, कुरैश के हमले का सदैव अन्देशा रहता था। कुछ मुनाफिक (कपटाचारी) और यहूदी तथा र्इसार्इ जो मुसलमानों के पास भी आते और काफिर कुरैश से भी मिले रहते और अफवाहे उड़ाया करते थे। युद्ध जैसे माहौल में जहां हमले का सदैव अन्देशा हो, अफवाह उड़ाने वाले जासूस कितने खतरनाक हो सकते हैं, इसका अन्दाजा किया जा सकता हैं । आज के कानून मे भी ऐसे लोगो की सजा मौत हो सकती हैं। वास्तव मे शान्ति की स्थापना के लिए उनको यही दण्ड उचित हैं। यह न्यायसंगत हैं। अत: इस आयत को झगड़ा कराने वाली कहना दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

    •पैम्फलेट में लिखी दसवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘(कहा जाएगा:) निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का र्इंधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे। (कुरआन, सूरा-21, आयत-98)

    *खुलासा:-
    इस्लाम एकेश्वरवादी मजहब हैं, जिसके अनुसार एक र्इश्वर ‘अल्लाह’ के अलावा किसी दूसरे को पूजना सबसे बड़ा पाप हैं। इस आयत मे इसी पाप के लिए अल्लाह मरने के बाद जहन्नम (यानी नरक) का दण्ड देगा।
    पैम्फलेट मे लिखी पांचवे क्रम की आयत में हम इस विषय मे लिख चुके है। अत: इस आयत को भी झगड़ा कराने वाली आयत कहना न्यायसंगत नही हैं।

    •पैम्फलेट मे लिखि ग्यारहवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘और उससे बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की ‘आयतों’ के द्वारा चेताया जाए, और फिर वह उनसे मुंह फेर ले। निश्चय ही हमे ऐसे अपराधियों से बदला

    1. “आयत को पढ़ने से साफ हैं कि काफिर कुरैश तथा उनके सहयोगी यहूदी और र्इसार्इ जो मुसलमानों के धर्म की हंसी उड़ाया करते थे,”
      जब लोग कहते थे कि मुहम्मद कि कवितायेँ कहीं घटिया स्टार कि हैं
      उनकी कवितायें ज्यादा अछसे हैं तो के मुहम्मद ने उन सबको नहीं मरवा दिया
      ये कहाँ का आदर्श आचरण था
      🙂

    2. Janab Amit ji aur Arya ji kya urdu Arabic Persian likhna perhna seekh lene se faqha tafseer mein mahir ho jate hain to agar yeh sahih hai to vidduan ji phir aap ko kalki awtar zarur perhni chahiye jo Banaras ke pandit duara likhi gai hai angrezon ne Banaras ke pandit ki likhi Kitab per ben lagaya tha woh Kitab bhi agar mil jae to zarur addhiyan ker lein shayad aap ko is pandit ka dusra name pata ho hi gaya hoga? Maheelaon ki baat kerne se pahle zara cheer haran per pirkash daal dete maan se vivah kis ka hua tha mama ne kis se sambhog kiya tha ullekh ker dete to sab ka giyan berh jaata batein aur bhi hain lakin mazhab kahta hai tumhein tumhara deen mubarak unhein unka jitna likha hai aap ne majbur kiya ke islam mein dost se biwi badal ne ki baat sureh nisaa mein batladi kamal ka giyan hai aap ka aur waqai bare giyani pahunche hue maharthi log hain aap islam kya janoge abhi geeta puran ka earth nahin jaante agar apna dhirm hi shant man se perhliya hota to ANNAY dhirm per ungli na uthate(2)islam mein Zina yani balatkar mafi yogay nahin rasul samuhik balatkar ki ijazat de rahe hain kahan garh li hain yeh kahaniyan? (3)aurtein masjid mein ja sakti hain unko mana nahin lakin perde ki wajah se aur ibaadat ke tareeqe ki wajah se nahin jatein ALLAH BHAGWAN GOD ISHWAR DAATA KHUDA PERWERDIGar alag brands hain koi pirman?

      1. masoodanakhat bhai jaan
        janab sabse pahle yah samjhe ki ham puraan ko nahi maante…jab puraan ko nahi maante to kalki puraan bhi maanya nahi hai hame… hame kalki pauranik hisaab se bhavishya me avtaar hogaa…. aapke hisaab se yadi kalki ko maante ho to fir islaam ko chhod dena hoga …..aur pauranik ban jaana hoga…
        aapne bolaa Maheelaon ki baat kerne se pahle zara cheer haran per pirkash daal dete maan se vivah kis ka hua tha mama ne kis se sambhog kiya tha ullekh ker dete to sab ka giyan berh bhai jaan ye kaha par hai ki sambhog kiya thoda ullekh kare… thoda jaankaari dein ..ham to reference ke saath jawab dete hain aap bhi waisa hi jawab diya kare refernce ke saath… warna hawa hawai baat naa kare… waise pauranik granth me bahut milawat aa gayi hai…janab ham jo bolte hain pure tathy se bolte hain…
        aapne bola aap islam kya janoge abhi geeta puran ka earth nahin jaante agar apna dhirm hi shant man se perhliya hota to ANNAY dhirm per ungli na uthate(2)islam mein Zina yani balatkar mafi yogay nahin rasul samuhik balatkar ki ijazat de rahe hain kahan garh li hain yeh kahaniyan? (3)aurtein masjid mein ja sakti hain unko mana nahin lakin perde ki wajah se aur ibaadat ke tareeqe ki wajah se nahin jatein
        janab dharm kya hota hia ye batlana… aur aapke islaam me aisa kaha likhaa hai quraan me ho to reference dein… hadees me ho to vo bhi reference dein… praman ke saath charchaa kare to achha hoga… warna bina praman ke yah bhi bol sakta hu ki main hi pichhle janam me paigambar sahab thaa… to kyaa aap use swikaar karoge ???/ aao praman se charchaa kare hawa hawai me baat naa kare…dhanywaad

    3. भाई एक काम करो तुम्हारी कुरआन मुझे पढ़नी है।। और जो मार्किट में कुरान है मेने उसे भी पढ़ी।। क्यों बदल रहे हैं तुम्हारे लोग तुम्हारे पवित्र ग्रंथ को।। तुम्हारे पास जो कुरआन है वो शायद असली हो।। पर अफ़सोस मार्किट में इसके नकली बहुत हैं जो मुसलमानो को गलत संदेश दे रहे हैं।।।
      इसका क्या ??? में फिर कहता हूं गीता तो फिर भी गीता है पर कुरआन को भी जानना चाहूंगा ।। जिससे गलत मत फैलाने वाले उन मुसलमानो को जवाब दे सकू।। क्या मुझे आप असली कुरआन दे सकते हो।। पर अफ़सोस कुरआन को इतना बदल दिया गया है कि वो 70 फ़ीसदी नकली है।।
      एक काहावत है कि अधूरा ज्ञान उस दो धारी तलवार की तरह होती है जो ज्ञान देने और लेने वालों दोनों को काटती है।।
      जो की दुनिया के सामने है।।
      उसी तरह आप की कुरआन ही आपको काट रही है।।
      और समाज में आपको आतंकवादी बना रही है।।।

  63. •पैम्फलेट मे लिखि ग्यारहवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘और उससे बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की ‘आयतों’ के द्वारा चेताया जाए, और फिर वह उनसे मुंह फेर ले। निश्चय ही हमे ऐसे अपराधियों से बदला लेना हैं।’’ (कुरआन, सूरा-32, आयत-22)

    *खुलासा:-
    इस आयत में भी इसके पहले लिखी आयत की ही तरह अल्लाह उन लोगो को नरक का दण्ड देगा जो अल्लाह की आयतों को नही मानते। ये परलोक की बाते हैं, अत: इस आयत का सम्बन्ध इस लोक मे लड़ार्इ-झगड़ा कराने या घृणा फैलाने से जोड़ना शरारत पूर्ण हरकत हैं।

    •पैम्फलेट में लिखी बारहवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी ‘गनीमतों’ का वादा किया हैं जो तुम्हारे हाथ आएंगी।’’ (कुरआन, सूरा-48, आयत-20)

    *खुलासा:-
    पहले मैं यह बता दूं कि गनीमत का अर्थ लूट नही बल्कि शत्रु की कब्जा की गर्इ सम्पत्ति होता हैं। उस समय मुसलमानों के अस्तित्व को मिटाने के लिए हमले होते यह हमले की तैयारी हो रही होती। काफिर और उनके सहयोगी यहूदी व र्इसार्इ धन से शक्तिशाली थे। ऐसे शक्तिशाली दुश्मनों से बचाव के लिए उनके विरूद्ध मुसलमानों का हौसला बढ़ाए रखने के लिए अल्लाह की ओर से वायदा हुआ।
    यह युद्ध के नियमों के अनुसार जायज हैं। आज भी शत्रु की कब्जा की गर्इ सम्पत्ति, जो युद्ध के दौरान कब्जे में आती हैं, विजेता की होती हैं।
    अत: इसे झगड़ा कराने वाली या लूट की शिक्षा देने वाली आयत कहना दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

    •पैम्फलेट में लिखी तेरहवें क्रम की आयत हैं:-
    “तो जो कुछ ‘गनीमत’ का माल तुमने हासिल किया हैं, उसे ‘हलाल’ व पाक समझकर खाओं।’’ (कुरआन,सूरा-8, आयत-69)

    *खुलासा:-
    बारहवें क्रम की आयत में दिए हुए तर्क के अनुसार इस आयत का भी सम्बन्ध आत्मरक्षा के लिए किए जाने वाले युद्ध में मिली चल सम्पत्ति से हैं और युद्ध में हौसला बनाए रखने से हैं। इसे भी झगड़ा बढ़ाने वाली या लूट की शिक्षा देने वाली आयत कहना दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

    •पैम्फलेट में लिखी चौदवें क्रम की आयत है:-
    ‘‘हे नबी! ‘काफिरों’ और ‘मुनाफिको’ के साथ जिहाद करो, और उनपर सख्ती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ हैं, और बुरी जगह हैं जहां पहुंचे।’’ (कुरआन,सूरा-66, आयत-9)

    *खुलासा:-
    जैसा कि हम ऊपर बता चुके है कि काफिर कुरैश अन्यायी व अत्याचारी थें और मुनाफिक (यानी कपट करने वाले कपटाचारी) मुसलमानों के हमदर्द बनकर आते, उनकी जासूसी करते हैं और काफिर कुरैश को सारी सूचना पहुंचाते तथा काफिरों के साथ मिलकर अल्लाह के रसूल (सल्ल0) की खिल्ली उड़ाते और मुसलमानों के खिलाफ साजिश रचते। ऐसे अधर्मियों की विरूद्ध लड़ना अधर्म को समाप्त कर धर्म की स्थापना करना हैं। ऐसे ही अत्याचारी कौरवों के लिए कृष्णा ने कहा था:-
    अथ चेत् त्वमिमं धम्र्य संग्रामं न करिष्यसि।
    तत: स्वधर्म कीर्ति च हित्वा पापमपाप्स्यसि।। (गीता:अध्याय 2, श्लोक-33)
    भावार्थ:- ‘‘हे अर्जुन! किन्तु यदि तू इस धर्मयुक्त युद्ध को न करेगा तो अपने धर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा।’’

    तस्मात्वमुतिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुड्क्ष्व राज्यं समृद्धम्। (गीता: अध्याय 11, श्लोक-33)
    ‘‘इसलिए तू उठ! शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर, यश प्राप्त कर, धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोग।’’

    पोस्टर या पैम्फलेट छापने व बॉटने वाले श्रीमद्भगवद्गीता के इस आदेश को क्या झगड़ा-लड़ार्इ कराने वाला कहेंगे? यदि नही, तो इन्ही परिस्थितियों में आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए अत्याचारियों के विरूद्ध जिहाद (यानी आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए युद्ध) करने का फरमान देने वाली आयत को झगड़ा कराने वाली कैसे कह सकते हैं? क्या यह अन्यायपूर्ण नीति नही हैं? आखिर किस उद्देश्य से यह सब किया जा रहा हैं?

    •पैम्फलेट मे लिखी पंद्रहवें क्रम की आयत हैं:-
    “तो अवश्य हम ‘कुफ्र’ करने वालों को यातना का मजा चखाएंगे, और अवश्य ही हम उन्हे सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।’’ (कुरआन, सूरा-41, आयत-27)

    1. इस आयत में भी इसके पहले लिखी आयत की ही तरह अल्लाह उन लोगो को नरक का दण्ड देगा जो अल्लाह की आयतों को नही मानते।
      जबरदस्ती है क्या अल्लाह कि उसकी बात न मानने पर ये देगा

      और आप साबित करो कि नरक कहाँ है 🙂 और जन्नत कहाँ है

      आपके एक मुसलमान शायर ने ही लिखा है

      ऐसी जन्नत का क्या करे कोई
      जहाँ सदियों पुरानी हरें हो

      🙂

    2. “पहले मैं यह बता दूं कि गनीमत का अर्थ लूट नही बल्कि शत्रु की कब्जा की गर्इ सम्पत्ति होता हैं। उस समय मुसलमानों के अस्तित्व को मिटाने के लिए हमले होते यह हमले की तैयारी हो रही होती। काफिर और उनके सहयोगी यहूदी व र्इसार्इ धन से शक्तिशाली थे। ऐसे शक्तिशाली दुश्मनों से बचाव के लिए उनके विरूद्ध मुसलमानों का हौसला बढ़ाए रखने के लिए अल्लाह की ओर से वायदा हुआ।”

      लूटपाट तो अरब के वाशिंदों का एक रोजगार का साधन था
      और मुहम्मद साहब ने इसे धार्मिक रंग में रंग दिया
      और उसमें अपना और अल्लाह का ५ % हिसा तय कर लिया

      हमें तो मुस्लमान ही किया करते थे

      और कहीं क्यों जाओ आर्यावर्त पर ही अरब से लुटेरे हमले करते ही रहे
      ये तो उनका पेशा था

      🙂

  64. *खुलासा:-
    उस आयत को तो लिखा जिसमें अल्लाह काफिरों को दण्डित करेगा, लेकिन यह दण्ड क्यों मिलेगा? इसकी वजह इस आयत के ठीक पहले वाली आयत (जिसकी यह पूरक आयत हैं) में हैं, उसे ये छिपा गए। अब इन दोनो आयतों को हम एक साथ दे रहे हैं। पाठक स्वयं देखे कि इस्लाम को बदनाम करने की साजिश कैसे रची गर्इ हैं:-
    ‘‘और काफिर कहने लगे कि इस कुरआन को सुना ही न करो और (जब पढ़ने लगे तो) शोर मचा दिया करो, ताकि तुम गालिब रहों। सोे हम भी काफिरों को सख्त अजाब के मजे चखाएंगे, और बुरे अमल की जो वे करते थे, सजा देंगे। (कुरआन, सूरा-41, आयते-26, 27)

    अब यदि कोर्इ अपनी धार्मिक पुस्तक का पाठ करने लगे या नमाज पढ़ने लगे, तो उस समय बाधा पहुचाने के लिए शोर मचा देना क्या दुष्टतापूर्ण कर्म नही हैं? इस बुरे कर्म की सजा देने के लिए र्इश्वर कहता हैं, तो क्या वह झगड़ा कराता हैं?
    मेरी समझ मे नही आ रहा कि पाप कर्मो का फल देने वाली इस आयत में झगड़ा कराना कैसे दिखार्इ दिया?

    •पैम्फलेट में लिखी सौलहवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (’जहन्नम’ की) आग। इसी मे उनका सदा घर हैं, इसके बदले कि हमारी ‘आयतों’ का इन्कार करते थे।’’(कुरआन,सूरा-41, आयत-28)

    *खुलासा:-
    यह आयत ऊपर पन्द्रवे क्रम की आयत की पूरक हैं जिसमें काफिरों को मरने के बाद नरक का दण्ड हैं, जो परलोक की बात है। इसका इस लोक में लड़ार्इ-झगड़ा कराने या घृणा फैलाने से कोर्इ सम्बन्ध नही हैं।

    •पैम्फलेट मे लिखी सतरहवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘नि:सन्देह अल्लाह ने ‘र्इमान’वालों (मुसलमानों) से उनके प्राणों और मालों को इसके बदले में खरीद लिया हैं कि उनके लिए ‘जन्नत’ हैं; वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते है तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।’’(कुरआन,सूरा-9,आयत-111)

    *खुलासा:-
    गीता में हैं-
    हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
    तस्मादुत्तिष्ठ् कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:।।
    (गीता: अध्याय-2, श्लोक-37)
    भावार्थ:- ‘‘या (तो तू युद्ध में) मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा (संग्राम में) जीतकर, पृथ्वी का राज्य भोगेगा। इसलिए हे अर्जुन! (तू) युद्ध के लिए निश्चय करके खड़ा हो जा।’’

    गीता का यह आदेश लड़ार्इ-झगड़ा बढ़ाने वाला नही हैं। यह अधर्म को बढ़ाने वाला भी नही हैं, क्योकि यह तो अन्याचारियों का विनाश कर धर्म की स्थापना के लिए किए जाने वाले युद्ध के लिए हैं।
    इन्ही परिस्थितियों में अन्यायी, अत्याचारी मुशरिक-काफिरों को समाप्त करने के लिए ठीक वैसा ही अल्लाह (यानी ईश्वर) का फरमान भी सत्य-धर्म की स्थापना के लिए हैं, आत्मरक्षा के लिए हैं। फिर इसे ही झगड़ा कराने वाला क्यो कहा गया? ऐसा कहने वाले क्या अन्यायपूर्ण नीति नहीं रखतें? जनता को ऐसे लोगो से सावधान हो जाना चाहिए।

    •पैम्फलेट मे लिखी अठ्ठारहवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘अल्लाह ने इन मुनाफिक (अर्ध मुस्लिम) पुरूषों और मुनाफिक स्त्रियों और ‘काफिरों’ से ‘जहन्नम’ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हे बस हैं। अल्लाह ने उन्हे लानत की और उनके लिए स्थायी यातना हैं।’’(कुरआन, सूरा-9,आयत-68)

    *खुलासा:-
    सूरा-9 की इस 68वीं आयत के पहले वाली 67वीं आयत को पढ़ने के बाद इस आयत को पढ़े; पहले वाली 67वीं आयत ये हैं:-
    ‘‘मुनाफिक मर्द और मुनाफिक औरतें एक दूसरे के हमजिन्स (यानी एक ही तरह के) हैं, कि बुरे काम करने को कहते और नेक कामों से मना करते और (खर्च करने से) हाथ बन्द किए रहते हैं, उन्होने खुदा को भुला दिया, तो खुदा ने भी उनको भुला दिया। बेशक मुनाफिक ना-फरमान हैं।’’ (कुरआन,सूरा-9,आयत-67)

    स्पष्ट है। मुनाफिक (कपटाचारी) मर्द और औरतें लोगो को अच्छे कामों से रोकते और बुरे काम करने को कहते हैं। अच्छे काम के लिए खोटा सिक्का भी न देते। खुदा (यानी ईश्वर) को कभी याद न करते, उसकी अवज्ञा करते और खुराफात मे लगे रहते। ऐसे पापियों को मरने के बाद कियामत के दिन जहन्नम (यानी नरक) की सजा की चेतावनी देने वाली अल्लाह की यह आयत बुरार्इ पर अच्छार्इ की जीत के लिए उतरी, न कि लड़ार्इ-झगड़ा कराने के लिए।

    1. “अब यदि कोर्इ अपनी धार्मिक पुस्तक का पाठ करने लगे या नमाज पढ़ने लगे, तो उस समय बाधा पहुचाने के लिए शोर मचा देना क्या दुष्टतापूर्ण कर्म नही हैं? ”

      आपके इसी सिद्धांत के ऊपर यदि चला जाये तो क्या किसी को जबरदस्ती आपकी बात न मानने पर हमला करना उनके जवानों को मरना और औरतों को अपनी रखेलों कि तरह रखना क्या कहा जायेगा

      जो मुहम्मद साहब ने किया खैबर के युद्ध में
      🙂

  65. *खुलासा:-
    मक्का के अत्याचारी कुरैश व अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के बीच होने वाले युद्ध में कुरैश की संख्या अधिक होती और सत्य के रक्षक मुसलमानों की कम। ऐसी हालत में मुसलमानों का हौसला बढ़ाने व उन्हे युद्ध मे जमाए रखने के लिए अल्लाह की ओर से यह आयत उतरी। यह युद्ध अत्याचारी व आक्रमणकारी काफिरो से था, न कि सभी काफिरों या गैर-मुसलमानों से। अत: यह आयत अन्य धर्मावलत्बियों से झगड़ा कराने का आदेश नही देती। इसके प्रमाण में हम एक आयत दे रहे हैं;-
    ‘‘जिन लोगों (यानी काफिरों) ने तुमसे दीन के बारे में जंग नही की और न तुमको तुम्हारे घरो से निकाला, उनके साथ भलार्इ और इंसाफ का सुलूक करने से खुदा तुमको मना नही करता। खुदा तो इंसाफ करने वालो को दोस्त रखता हैं।’’ (कुरआन,सूरा-60, आयत-8)

    •पैम्फलेट में लिखी बीसवें क्रम की आयत है:-
    ‘‘हे र्इमान लाने वालों (मुसलमानों) तुम ‘यहूदियों’ और र्इसार्इयों’ को मित्र न बनाओं। ये आपस मे एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोर्इ तुममें से उनको मित्र बनाएगा, वह उन्ही मे से होगा। नि:सन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नही दिखाता।’’ (कुरआन, सूरा-5, आयत-51)

    *खुलासा:-
    यहूदी और र्इसार्इ ऊपरी तौर पर मुसलमानों से दोस्ती की बात करते थे लेकिन पीठ पीछे कुरैश की मदद करते और कहते, मुहम्मद से लड़ो, हम तुम्हारे साथ हैं। उनकी इस चाल को नाकाम करने के लिए ही यह आयत उतरी जिसका उद्देश्य मुसलमानों को सावधान करना था, न कि झगड़ा कराना। इसके प्रमाण मे कुरआन मजीद की यह आयत देखें:-
    ‘‘खुदा उन्ही लोगों के साथ तुमको दोस्ती करने से मना करता हैं, जिन्होने तुमसे दीन के बारे मे लड़ार्इ की और तुमको तुम्हारे घरो से निकाला और तुम्हारे निकालने मे औरों की मदद की, तो जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे, वही जालिम हैं।” (कुरआन, सूरा-60, आयत-9)

    •पैम्फलेट मे लिखी इक्किसवें क्रम की आयत हैं:-
    ‘‘किताबवाले जो न अल्लाह पर ‘र्इमान’ लाते हैं, न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके ‘रसूल’ ने हराम ठहराया है, और न सच्चे ‘दीन’ को अपना ‘दीन’ बनाते हैं, उनसे लड़ो यहां तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया’ देने लगें।’’ (कुरआन,सूरा-9,आयत-29)

    *खुलासा:-
    इस्लाम के अनुसार तौरात, जूबूर (Old Testament), इंजील (NewTestament)
    और कुरआन मजीद अल्लाह की भेजी हुर्इ किताबे हैं, इसलिए इन किताबों पर अलग-अलग र्इमान लाने वाले क्रमश: यहूदी, र्इसार्इ और मुसलमान ‘किताब वाले’ या ‘अहले-किताब’ कहलाए। यहां इस आयत मे किताब वाले से मतलब यहूदियों और र्इसाइयों से हैं।
    र्इश्वरीय पुस्तके रहस्यमयी होती हैं इसलिए इस आयत को पढ़ने के बाद ऐसा लगता हैं कि इसमें यहूदियों और र्इसार्इयों को जबरदस्ती मुसलमान बनाने के लिए लड़ार्इ का आदेश हैं। लेकिन वास्तव मे ऐसा नही हैं, क्योकि इस्लाम में किसी भी प्रकार की जबरदस्ती की इजाजत नही हैं।
    कुरआन में अल्लाह मना करता है कि किसी को जबरदस्ती मुसलमान बनाया जाए। देखिए:-
    ‘‘ऐ पैगम्बर! अगर ये लोग तुमसे झगड़ने लगे, तो कहना कि मैं और मेरी पैरवी करने वाले तो खुदा के फरमाबरदार हो चुके और ‘अहले-किताब’ और अनपढ़ लोगो से कहो कि क्या तुम भी (खुदा के फरमाबरदार बनते और) इस्लाम लाते हो? अगर ये लोग इस्लाम ले आये तो बेशक हिदायत पा लें और अगर (तुम्हारा कहा) न माने, तो तुम्हारा काम सिर्फ खुदा का पैगाम पहुंचा देना हैं। और खुदा (अपने) बन्दो को देख रहा हैं।’’ (कुरआन, सूरा-3, आयत-20)

    “और अगर तुम्हारा परवरदिगार (यानी अल्लाह) चाहता, तो जितने लोग जमीन पर हैं, सबके सब र्इमान ले आते, तो क्या तुम लोगो पर जबरदस्ती करना चाहते हो कि वे मोमिन (यानी मुसलमान) हो जाएं।’’ (कुरआन, सूरा-10, आयत-99)

    इस्लाम के प्रचार-प्रसार मे किसी तरह की जोर-जबरदस्ती न करने की इन आयतों के बावजूद इस आयत में ‘‘किताब वालों’ से लड़ने का फरमान आने के कारण वही हैं, जो पैम्फलेट मे लिखी 8वें, 9वें, व 20 वें क्रम की आयतों के लिए मैने दिए हैं। आयत में जिज़्या नाम का टैक्स गैर-मुसलमानों से उनकी जान-माल की रक्षा के बदले लिया जाता था। इसके अलावा उन्हें कोर्इ टैक्स नही देना पड़ता था। जबकि मुसलमानों के लिए भी जकात देना जरूरी था। आज तो सरकार ने बात-बात पर टैक्स लगा रखा हैं।

    1. ‘‘हे र्इमान लाने वालों (मुसलमानों) तुम ‘यहूदियों’ और र्इसार्इयों’ को मित्र न बनाओं। ये आपस मे एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोर्इ तुममें से उनको मित्र बनाएगा, वह उन्ही मे से होगा। नि:सन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नही दिखाता।’’ (कुरआन, सूरा-5, आयत-51)

      आपने इसका जवाब दिया है कि वो इसाई यहूदी ऐसा करते थे इसलिए ये कहा गया

      आपकी बात बड़ी करते हैं आप ये बताइए तो क्या ये आयत का कानून अब लागू नहीं है

      🙂

    2. आगे तो खैबर पर मुहम्मद साहब कि चढ़ाई करने का क्या कारण था

      मुहम्मद साहब ने उन्हें एक अवधी दी थी इस्लाम काबुल करने के लिए
      और उसके बीत जाने से पहले ही उन पर चढ़ी कर दी

      अनास से रिवायत है कि मुहम्मद साहब ने एक अभियान खैबर की तरफ रवाना किया. हमने सुबह की नमाज अदा की . मुहम्मद साहब और अबु ताल्हा घोड़े पर सवार हो गए. मैं ( अनास ) अबू ताल्हा के पीछे बैठा था. हम खैबर की तंग गलियों में घुस गए .जैसे ही वो निवास स्थान पर पहुंचे जो अल्लाह हु अबकर जोर बोला. खैबर तबाह हो चूका था .हम लोगों के मध्य में थे जिनको पहले सचेत किया जा चूका था. लोग जब दैनिक कर्म के लिए बाहर निकले तो पता चला कि मुहम्मद साहब ने अपनी सेना के साथ कब्ज़ा कर लिया है .मुहम्मद साहब ने कहा की खैबर की भूमि अब हमारे स्वामित्व में है हमने बलपूर्वक इसे ले लिया है . लोग अब युद्ध बंदी थे .

      हदीस आगे कहती है कि दिह्या मुहम्मद साहब के पास आकर बोला कि अल्लाह के रसूल मुझे बंदियों की लड़कियों में से एक लड़की दे दीजिये. मुहम्मद साहब ने कहा कि जाओ और किसी को भी ले लो . उसने हुयायाय की लड़की साफिया को पसंद किया .

      एक व्यक्ति ने मुहम्मद साहब के पास आकर कहा की आपने दिह्या को दे दिया वो केवल आपके लिए है . मुहम्मद साहब ने कहा की साफिया को दिह्या के साथ बुलाया जाए . मुहम्मद साहब के साफिया को देखकर कहा कि दिह्या कोई दूसरी लड़की ले लो और मुहम्मद साहब ने साफिया को मुक्त कर उससे निकाह कर कर लिया .

      ये क्या था जबरदस्ती इस्लाम यदि मुस्लमान बनने से मना करता है आपने आयत दी है

      लेकिन वास्तव मे ऐसा नही हैं, क्योकि इस्लाम में किसी भी प्रकार की जबरदस्ती की इजाजत नही हैं।
      कुरआन में अल्लाह मना करता है कि किसी को जबरदस्ती मुसलमान बनाया जाए। देखिए:-
      ‘‘ऐ पैगम्बर! अगर ये लोग तुमसे झगड़ने लगे, तो कहना कि मैं और मेरी पैरवी करने वाले तो खुदा के फरमाबरदार हो चुके और ‘अहले-किताब’ और अनपढ़ लोगो से कहो कि क्या तुम भी (खुदा के फरमाबरदार बनते और) इस्लाम लाते हो? अगर ये लोग इस्लाम ले आये तो बेशक हिदायत पा लें और अगर (तुम्हारा कहा) न माने, तो तुम्हारा काम सिर्फ खुदा का पैगाम पहुंचा देना हैं। और खुदा (अपने) बन्दो को देख रहा हैं।’’ (कुरआन, सूरा-3, आयत-20)

      “और अगर तुम्हारा परवरदिगार (यानी अल्लाह) चाहता, तो जितने लोग जमीन पर हैं, सबके सब र्इमान ले आते, तो क्या तुम लोगो पर जबरदस्ती करना चाहते हो कि वे मोमिन (यानी मुसलमान) हो जाएं।’’ (कुरआन, सूरा-10, आयत-99)

      अब बताइए ये आयत सही है या रसूल कि सुन्नत

      रसूल सही या रसूल द्वारा रची गयी आयत

      🙂

  66. •पैम्फलेट मे लिखी बाइसवे क्रम की आयत हैं:-
    “फिर हमने उनके बीच ‘कियामत’ के दिन तक के लिए वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (कुरआन,सूरा-5,आयत-14)

    *खुलासा:-
    कपटपूर्ण उद्देश्य के लिए पैम्फलेट मे यह आयत भी जान-बूझकर अधूरी दी गर्इ हैं। पूरी आयत ये हैं;-
    ‘‘और जो लोग (अपने को) कहते है कि हम नसारा (यानी र्इसार्इ) हैं, हमने उनसे भी अहद (यानी वचन) लिया था, मगर उन्होने भी उस नसीहत का, जो उनको की गर्इ थी एक हिस्सा भुला दिया, तो हमने उनके आपस में ‘कियामत’ तक के लिए दुश्मनी और कीना (द्वेष) डाल दिया, और जो कुछ वे करते रहे खुदा बहुत जल्द उनको उससे आगाह करेगा।’’ (कुरआन, सूरा-5, आयत-14)

    पूरी आयत पढ़ने से स्पष्ट हैं कि वादा खिलाफी, चलाकी और फरेब के विरूद्ध यह आयत उतरी, न कि झगड़ा कराने के लिए।

    •पैम्फलेट में लिखी तेर्इसवें क्रम की आयत हैं;-
    ‘‘वे चाहते है कि जिस तरह से वे ‘काफिर’ हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर’ हो जाओं, फिर तुम एक जैसे हो जाओं, तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावे तो उन्हे जहां कही पाओं पकड़ो और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।’’ (कुरआन, सूरा-4, आयत-89)

    *खुलासा:-
    इस आयत को इसके पहले वाली 88वीं आयत के साथ मिलाकर पढ़ें, जो निम्न हैं:-
    ‘‘तो क्या वजह हैं कि तुम मुनाफिकों के बारे में दो गिरोह (यानी दो भाग) हो रहे हो? हाल यह है कि खुदा ने उनके करतूतों की वजह से औंधा कर दिया हैं। क्या तुम चाहते हो कि जिस शख्स को खुदा ने गुमराह कर दिया हैं, उसको रास्ते पर ले आओ?’’ (कुरआन,सूरा-4,आयत-88)

    स्पष्ट है कि इससे आगे वाली 89वीं आयत, जो पर्चे मे दी हैं, उन मुनाफिकों (यानी कपटाचारियो) के सन्दर्भ मे हैं, जो मुसलमानों के पास आकर कहते है कि हम ‘र्इमान’ ले आए और मुसलमान बन गए और मक्का में काफिरों के पास जाकर कहते कि हम अपने बाप-दादा के धर्म में ही हैं, बुतों को पूजने वाले। ओर कहते हैं हम तो मुसलमानों के बीच भेद लेने जाते हैं, जिसे हम आप को बताते हैं। ये मुसलमानों के बीच बैठकर उन्हें अपने बाप-दादा के धर्म ‘बुत-पूजा’ पर वापस लौटने को भी कहते।
    इसी लिए यह आयत उतरी कि इन कपटाचारियों को दोस्त न बनाना क्योकि ये दोस्त हैं ही नही, तथा इनकी सच्चार्इ की परीक्षा लेने के लिए इनसे कहो कि तुम भी मेरी तरह वतन छोड़कर हिजरत करो, अगर सच्चे हो तो। यदि न करें तो समझों कि ये नुकसान पहुंचाने वाले कपटाचारी जासूस हैं, जो काफिर दुश्मनों से अधिक खतरनाक हैं। उस समय युद्ध का माहौल था, युद्ध के दिनों में सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे जासूस बहुत ही खतरनाक हो सकते थे, जिनकी एक ही सजा हो सकती थी; मौत। उनकी सन्दिग्ध गतिविधियों के कारण ही मना किया गया हैं कि उन्हे न तों अपना साथी बनाओं और न ही मददगार, क्योकि ऐसा करने पर धोखा ही धोखा हैं।
    यह आयत मुसलमानों की आत्मरक्षा के लिए उतरी, न कि झगड़ा कराने या घृणा फैलाने के लिए।

    1. यदि आपकी इस गलत बात को एक बार के लिए नजर अनदाज भी कर दिया जाये तो क्या आप बताएँगे कि मुहम्मद साहब ने जो साफिया के साथ किया वो कहाँ तक ठीक था

      अनास से रिवायत है कि मुहम्मद साहब ने एक अभियान खैबर की तरफ रवाना किया. हमने सुबह की नमाज अदा की . मुहम्मद साहब और अबु ताल्हा घोड़े पर सवार हो गए. मैं ( अनास ) अबू ताल्हा के पीछे बैठा था. हम खैबर की तंग गलियों में घुस गए .जैसे ही वो निवास स्थान पर पहुंचे जो अल्लाह हु अबकर जोर बोला. खैबर तबाह हो चूका था .हम लोगों के मध्य में थे जिनको पहले सचेत किया जा चूका था. लोग जब दैनिक कर्म के लिए बाहर निकले तो पता चला कि मुहम्मद साहब ने अपनी सेना के साथ कब्ज़ा कर लिया है .मुहम्मद साहब ने कहा की खैबर की भूमि अब हमारे स्वामित्व में है हमने बलपूर्वक इसे ले लिया है . लोग अब युद्ध बंदी थे .

      हदीस आगे कहती है कि दिह्या मुहम्मद साहब के पास आकर बोला कि अल्लाह के रसूल मुझे बंदियों की लड़कियों में से एक लड़की दे दीजिये. मुहम्मद साहब ने कहा कि जाओ और किसी को भी ले लो . उसने हुयायाय की लड़की साफिया को पसंद किया .

      एक व्यक्ति ने मुहम्मद साहब के पास आकर कहा की आपने दिह्या को दे दिया वो केवल आपके लिए है . मुहम्मद साहब ने कहा की साफिया को दिह्या के साथ बुलाया जाए . मुहम्मद साहब के साफिया को देखकर कहा कि दिह्या कोई दूसरी लड़की ले लो और मुहम्मद साहब ने साफिया को मुक्त कर उससे निकाह कर कर लिया .

  67. •पैम्फलेट मे लिखी चौबीसवें क्रम की आयत है:-
    ‘‘उन (काफिरों) से लड़ो! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रूसवा करेगा और उनके मुकाबले मे तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘र्इमान’ वालों के दिल ठंडे करेगा।’’ (कुरआन, सूरा-9, आयत-14)

    *खुलासा:-
    पैम्फलेट मे लिखी पहले क्रम की आयत में हम विस्तार से बता चुके हैं कि कैसे शान्ति का समझौता तोड़कर हमला करने वालों के विरूद्ध सूरा-9की ये आयतें उतरी। पैम्फलेट में 24 वें क्रम मे लिखी आयत इसी सूरा की हैं जिसमे समझौता तोड़ हमला करने वाले अत्याचारियों से लड़ने और उन्हें दण्डित करने का अल्लाह का आदेश है जिससे झगड़ा-फसाद करने वालों के हौसले पस्त हों और शान्ति की स्थापना हों। इसे और स्पष्ट करने के लिए कुरआन मजीद की सूरा-9 की इस 14वीं आयत के पहले वाली दो आयते देखे:-
    ‘‘और अगर अहद (यानी समझौता) करने के बाद अपनी कसमों को तोड़ डाले और तुम्हारे दीन में ताने करने लगें, तो उन कुफ्र के पेशवाओं से जंग करो, (ये बे-र्इमान लोग हैं और) इनकी कसमों का कुछ एतिबार नही है। अजब नही कि (अपनी हरकतों से) बाज आ जाएं।’’ (कुरआन, सूरा-9, आयत-12)

    ‘‘भला तुम ऐसे लोगो से क्यों न लड़ो, जिन्होने अपनी कसमों को तोड़ डाला और (खुदा के ) पैगम्बर के निकालने का पक्का इरादा कर लिया और उन्होने तुमसे (किया गया अहद तोड़ना) शुरू किया। क्या तुम ऐसे लोगो से डरते हो, हालांकि डरने के लायक खुदा हैं, बशर्ते कि र्इमान रखते हो।’’(कुरआन, सूरा-9, आयत-13)

    अत: शान्ति स्थापना के उद्देश्य से उतरी सूरा-9 की इन आयतों को शान्ति भंग करने वाली या झगड़ा-फसाद कराने वाली कहने वाले या तो धूर्त (झूटे) हैं अथवा अज्ञानी।

    निष्कर्ष:-
    40 वर्ष की उम्र मे हजरत (सल्ल0) को अल्लाह से सत्य का सन्देश मिलने के बाद से अन्तिम समय (यानी 23वर्षो) तक अत्याचारी काफिरों ने मुहम्मद (सल्ल0) को चैन से बैठने नही दिया। इस बीच लगातार युद्ध और साजिशों का माहौल रहा। ऐसी परिस्थितियों में आत्मरक्षा के लिए दुश्मनों से सावधान रहना, माहौल गन्दा करने वाले मुनाफिकों (यानी कपटाचारियों) और अत्याचारियों का दमन करना या उन पर सख्ती करना या उन्हें दण्डित करना एक आवश्यकता ही नही, कर्तव्य था। ऐसे दुष्टों, अत्याचारियों और कपटाचारियों के लिए ऋग्वेद में परमेश्वर का आदेश है:

    मयाभिरिन्द्र मायिनं त्वं शुष्णमवातिर:।
    विदुष्टे तस्य मेधिरास्तेषां श्रवांस्युत्तिर।। (ऋग्वेद:मण्डल 1, सूक्त 11, मंत्र 7)

    भावार्थ: बुद्धिमान मनुष्यों को र्इश्वर आज्ञा देता है कि साम, दाम, दण्ड और भेद की युक्ति से दृष्ट और शत्रु जनों की निवृत्ति करके विद्या और चक्रवती राज्य की यथावत् उन्नति करनी चाहिए तथा जैसे इस संसार मे कपटी, छली और दुष्ट पुरूष वृद्धि को प्राप्त न हों, वैसा उपाय निरन्तर करना चाहिए। (हिन्दी भाष्य महर्षि दयानन्द)

    नोट:-
    जिन मूर्खों ने इन आयात पर बेबुनियाद इल्जाम लगाए उनको चाहिए आइन्दा समझ बूझ से काम लें अन्यथा मूर्खता का प्रमाण ना देकर अपनी आबरू बनाए रखें!

    1. ” कैसे शान्ति का समझौता तोड़कर हमला करने वालों के विरूद्ध सूरा-9की ये आयतें उतरी।”

      वादा का तोड़ना तो इस्लाम के व्यवहार में रहा है बंधू
      खैबर कि लड़ाई भी इसका उदहारण है
      मुहम्मद साहब ने जब एक अवधी निर्धारित कि थी इस्लाम कबुर्ल करने के लिए तो फिर उससे पहले हमला किस वजह से किया गया
      और औरतों कि जो लुट फरोख्त हुयी
      साफिया के साथ जो हुआ वह इस्लाम कि जीती जागती प्रतिमूर्ति है
      🙂

      यह निर्धारित करता है कि शांति तोड़ने वाला इस्लाम है

      1. Jhuta iljam lga rhe ho aap. Aapse meri request hai aap apne dram ki aachai ke bate likhe taki mujhe pta lag sake hindu dram kaisa hai

        1. nafees malik ji
          rishwa arya ji islaam ke bade jaankaar hain ve galat iljaam nahi lagate. aur ham hindu dharam aur vedik dharm ke baare me bhi site par daalte hain article unhe aap parhe. aapko saare shanka ka samadhan ho jaayega. dhanywaad.

          1. एक बात कहे अमित जी ये आपके रिशवा आर्य जी इस्लाम की आधी अधूरी आयतो के ही जानकार है। जो अपने आप मे मूर्खता का प्रमाण है। इस्लाम से अच्छा कोई मजहब है ही नही । अगर आप इस्लाम को सही सही भेदभाव को पीछे छोडकर इन्सानियत की दृष्टि से सच्चे दिल से मुताला करोगे तो आप 100% मुस्लिम बन जाओगे

            1. आपको तो इस्लाम के बार एमें ये भी नहीं पता कि मुहम्मद साहब ने चाँद के टुकड़े कर दिए थे
              इस्लान के जानकार बने फिरते हो

              पहले इन गप्पों का जवाब दो
              कुरान कि इस्नानियत कि कई नमूने दिए हिएँ खैबर के युद्ध का आपने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया

  68. इस्लाम को आंतकवादी बोलते हो। जापान मे तो अमेरिका ने परमाणु बम गिराया लाखो बेगुनाह मारे गये तो क्या अमेरिका आंतकवादी नही है। प्रथम विश्व युध्द मे करोडो लोग मारे गये इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या अब भी मुस्लिम आंतकवादी है। दूसरे विश्व युध्द मे भी लाखो करोडो निर्दोषो की जान गयी इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या मुस्लिम अब भी आंतकवादी हुए अगर नही तो फिर तुम इस्लाम को आंतकवादी बोलते कैसे हो। बेशक इस्लाम शान्ति का मज़हब है।और हाॅ कुछ हदीस ज़ईफ होती है।ज़ईफ हदीस उनको कहते है जो ईसाइ और यहूदियो ने गढी है। जैसे मुहम्मद साहब ने 9 साल की लडकी से निकाह किया ये ज़ईफ हदीस है। आयशा की उम्र 19 साल थी। ये उलमाओ ने साबित कर दिया है। क्योकि आयशा की बडी बहन आसमा आयशा से 10 साल बडी थी और आसमा का इंतकाल 100 वर्ष की आयु मे 73 हिज़री को हुआ। 100 मे से 73 घटाओ तो 27 साल हुए।आसमा से आयशा 10 साल छोटी थी तो 27-10=17 साल की हुई आयशा और आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम ने आयशा से 2 हिज़री को निकाह किया।अब 17+2=19 साल हुए। इस तरह शादी के वक्त आयशा की उम्र 19 आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम की 40 साल थी।

    हिन्दुओ का इतिहास द्रोपती ने 5 पांडवो से शादी की तो क्या ये गलत नही है हम मुसलमान तो 4 औरते से शादी कर सकते है ऐसी औरते जो विधवा हो बेसहारा हो। लेकिन क्या द्रोपती सेक्स की भूखी थी। और शिव की पत्नी पार्वती ने गणेश को जन्म दिया शिव की पीछे। पार्वती ने फिर किस के साथ सेक्स किया ।इसलिए शिव ने उस लडके की गर्दन काट दी क्या भगवान हत्या करता है ।श्री कृष्ण गोपियो को नहाते हुए क्यो देखता था और उनके कपडे चुराता था जबकि कृष्ण तो भगवान था क्या भगवान ऐसा गंदा काम कर सकता है । महाभारत मे लिखा है कृष्ण की 16108 बीविया थी तो फिर हम मुस्लिमो को एक से अधिक शादी करने पर बुरा कहा जाता । महाभारत युध्द मे जब अर्जुन हथियार डाल देता तो क्यो कृष्ण ये कहते है ऐ अर्जुन क्या तुम नपुंसक हो गये हो लडो अगर तुम लडते लडते मरे तो स्वर्ग को जाओगे और अगर जीत गये तो दुनिया का सुख मिलेगा। तो फिर हम मुस्लिमो को क्यो बुरा कहा जाता है हम जिहाद बुराई के खिलाफ लडते है अत्यचारियो और आक्रमणकारियो के विरूध वो अलग बात है कुछ लोग जिहाद के नाम पर बेगुनाहो को मारते है और जो ऐसा करते है वे ना मुस्लिम है और ना ही इन्सान जानवर है। राम और कृष्ण के तो मा बाप थे क्या कोई इन्सान भगवान को जन्म दे सकता है। वेद मे तो लिखा है ईश्वर अजन्मा है और सीता की बात करू तो राम तो भगवान थे क्या उनमे इतनी भी शक्ति नही थी कि वे सीता के अपहरण को रोक सके। राम जब भगवान थे तो रावण की नाभि मे अमृत है ये उनको पहले से ही क्यो नही पता था रावण के भाई ने बताया तब पता चला। क्या तुम्हारे भगवान राम को कुछ पता ही नही कैसा भगवान है ये। और इन्द्र देवता ने साधु का वेश धारण कर अपनी पुत्रवधु का बलात्कार किया फिर भी आप देवता क्यो मानते हो। खुजराहो के मन्दिर मे सेक्सी मानव मूर्तिया है क्या मन्दिर मे सेक्स की शिक्षा दी जाती है मन्दिरो मे नाच गाना डीजे आम है क्या ईश्वर की इबादत की जगह गाने हराम नही है ।राम ने हिरण का शिकार क्यो किया बहुत से हिन्दु कहते है हिरण मे राक्षस था तो क्या आपके राम भगवान मे हिरण और राक्षस को अलग करने की क्षमता नही थी ये कैसा भगवान है।हमे कहते हो जीव हत्या पाप है मै भी मानता हू कुत्ते के बेवजह मारना पाप है । कीडी मकोडो को मारना पाप है पक्षियो को मारना पाप है। और राम या हनुमान ने राम सेतु पुल बनाया था सीता को बचा के लाने के लीए । जब भगवान थे तो पुल बनाने की क्या जरुरत थी उड की नही जा सकते थे। ये एक किस्म की चूतियापंती है और हिन्दु क्या बोलते है कि सारे भगवान मनुष्य के रुप मे थे इसलिए उड के जाने की ताकत नही थी। ये हिन्दु अपनी ही चट करते है और अपनी ही पट। जब मनुष्य के रुप मे भगवान थे। इसका मतलब ये हुआ वे मनुष्य ही भगवान थे । और भगवान उसे कहते है जो कुछ भी कर सकते है तो फिर वे मनुष्य उड क्यो नही सकते थे क्योकि आप लोग तो उनको एक तरीके से भगवान ही मानते हैऔर ब्रहम्मा ने अपनी पुत्री से सेक्स किया था इसलिए हिन्दु ब्रहम्मा की पूजा नही करते है। ब्रहम्मा भी तो आपके भगवान थे भगवान बल्तकार करता है क्या। ये सब आपकी किताबो मे लिखा है। और राम ने अपनी पत्नी सीता की व्रजिन की परीक्षा लेने के लिए घर से बाहर निकाला था। तो क्या औरत को यूही कही भी धक्के दिये जा सकते है। कहने को राम भगवान थे औरत की इज्जत आती नही थी।

    1. आसपास के काफिरों से लड़ने का आदेश

      यदि ऐसा उपदेश काफिरों को भी देवे और वे भी लड़ने पर कमर कस लेवें तो क्या इस्लाम का दुनियां में नामों निशान न मिट जावेगा? ऐसे लड़ाने भिड़ाने वाले उपदेश जिस किताब में हों वह संसार के लिए दुखदाई होगी या सुखदायी होगी? क्या खुदा भी फिसादी व फसाद पसन्द था?

      देखिये कुरान में कहा गया है कि-

      या अय्युहल्लजी-न आमनू…………..।।

      (कुरान मजीद पारा ११ सूरा तोबा रूकू १६ आयज १२३)

      अय मुसलमानों! अपने आसपास के काफिरों से लड़ो और चाहिए कि वह तुमसे सख्ती महसूस करें और जाने रहो कि अल्लाह उन लोगों का साक्षी है जो बचते हैं।

      समीक्षा

      जब दुनिया में सभी मुसलमान अपने पड़ोसी गैर मुस्लिमों से लड़ते रहेंगे तो किसी भी मुल्क में शान्ति कैसे रह सकती है? कुरान ने संसार में मार काट मचाने की शिक्षा देकर मुसलमानों के जहन को हमेशा खराब किया है। यदि गैर मजहब वाले भी ऐसी ही बात मुसलमानों के बारे में सोचनें लगें तो क्या इस्लाम का नामों निशान भी दुनियां में बाकी रह सकेगा? क्रिया की प्रतिक्रिया असम्भव नहीं है।
      http://aryamantavya.in/aas-paas-ke-kafir-le-ladne-ka-aadesh/

  69. हमे कहते हो मांस क्यो खाते हो लेकिन ऐसे जानवर जिनका कुरान मे खाना का जिक्र है खा सकते है क्योकि मुर्गे बकरे नही खाऐगे तो इनकी जनसख्या इतनी हो जायेगी बाढ आ जायेगी इन जानवरो की। सारा जंगल का चारा ये खा जाया करेगे फिर इन्सान के लिए क्या बचेगा। हर घर मे बकरे होगे। बताओ अगर हर घर मे भैंसे मुर्गे होगे तो दुनिया कैसे चल पाऐगी। आए दिन सिर्फ हिन्दुस्तान मे लाखो मुर्गे और हजारो कटडे काटे जाते है । 70% लोग मांस खाकर पेट भरते है । सब को शाकाहारी भोजन दिया जाये तो महॅगाई कितनी हो जाएगी। समुद्री तट पर 90% लोग मछली खाकर पेट भरते है। समझ मे आया कुछ शाकाहारी भोजन खाने वालो मांस को गलत कहने वाले हिन्दुओ अक्ल का इस्तमाल करो ।खैर हिन्दु धर्म मे शिव भगवान ही नशा करते है तो उसके मानने वाले भी शराबी हुए इसलिए हिन्दुओ मे शराब आम है ।डाक कावड मे ऊधम मचाते है ना जाने कितनो की मौत होती है रास्ते मे कोई मुसाफिर आये तो गाली देते है । जितने त्योहार है हिन्दुओ के सब बकवास। होली को देखलो कहते है भाईचारे का त्योहार है। पर शराब पिलाकर एक दुसरे से दुश्मनी निकाली जाती है।होली से अगले दिन अखबार कम से कम 100 लोगो के मरने की पुष्टि करता है ।अब दीपावली को देखलो कितना प्रदुषण बुड्डे बीमार बुजुर्गो की मोत होती है। पटाखो के प्रदुषण से नयी नयी बीमारिया ऊतपन होती है। गणेशचतुर्थी के दिन पलास्टर ऑफ पेरिस नामक जहरीले मिट्टी से बनी करोडो मूर्तिया गंगा नदियो मे बह दी जाती है। पानी दूषित हो जाता है साथ ही साथ करोडो मछलिया मरती है तब कहा चली जाती है इनकी अक्ल जीव हत्या तो पाप है।हम मुस्लिमो को बोलते है चचेरी मुमेरी फुफेरी मुसेरी बहन से शादी कर लेते हो। इन चूतियाओ से पूछो बहन की परिभाषा क्या होती है मै बताता हू साइंस के अनुसार एक योनि से निकले इन्सान ही भाई बहन हो सकते है और कोई नही। तुम भाई बहन के चक्कर मे रह जाओ इसलिए हिन्दु लडको की शादिया भी नही होती अक्सर । हमारे गाव मे 300 हिन्दु लडके रण्डवे है। शादी नही होती उनकी गोत जात पात ऊॅच नीच की वजह से फिर उनका सेक्स का मन करता है वे फिर लडकियो महिलाओ की साथ बलात्कार करते है ये है हिन्दु धर्म । और सबूत हिन्दुस्तान मे अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा रेप होते है । किसी मुस्लिम मुल्क का नाम दिखा दो या बता दो बता ही नही सकते। तुम्हारे हिन्दुओ लडकियो को कपडे पहनने की तमीज नही फिटिंग के कपडे छोटे कपडे जीन्स टीशर्ट आदि पहननती है ।भाई बाप के सामने भी शर्म नही आती तुमको ऐसे कपडो मे थू ऐसे कपडो मे लडकी को देखकर तो सभी इन्सानो की ऑटोमेटिकली नीयत खराब हो जाती है इसलिए हिन्दु और अंग्रेजी लडकियो की साथ बलात्कार होते हे इसके लिए ये लडकिया खुद जिम्मेदार है।।और हिन्दु लडकियो के हाथ मे सरे आम इंटरनेट वाला मोबाइल उसमे इतनी गंदी चीजे।
    तुम हिन्दु अपनी लडकियो को पढाते इतने ज्यादा हो जो उसकी शादी भी ना हो सके पढी लिखी लडकी को स्वीकार कौन करता है जल्दी से। पढने का तो नाम है घरवालो के पैसे बरबाद करती है और अय्याशी करती है। इन चूतियाओ से पूछो लडकी इतना ज्यादा पढकर क्या करेगी। मर्द उनके जनखे है जो औरत से कमवाऐगे और खुद बैठकर खाऐगे।सही कहू तो मर्दो की नौकरिया खराब करती है जहा मर्द 20 हजार रूपये महीने की मांग करे वहा लडकिया 2 हजार मे ही तैय्यार हो जाती है। सही कहू बेरोजगारी लडकियो को नौकरी देनी की वजह से है।
    और सालो तुम्हारा धार्मिक पहनावा क्या है साडी। जिसमे औरत का आधा पेट दिखता है। पेट छुपाने की चीज है या सबको दिखाने की बताओ । औरत की ईज्जत से खिलवाड खुद करते हो । और मर्दो क धार्मिक पहनावा क्या है धोती। जरा से हवा चलती है तो धोती एकदम उडती है। सारी शर्मगाह दिखाई देती है। शर्म नही आती तुम हिन्दुओ को। क्या ये तुम हिन्दुओ की असलियत नही है। और तुम्हारे सभी भगवान भी धोती के अलावा कुछ नही पहनते थे। बाकी सारा शरीर खुला रहता है
    ये कैसे भगवान है जिन्हे कपडे पहनने की भी तमीज नही है।

    हर धर्म की किताब मे लिखा हुआ है झूठ बोलना पाप है फिर भी तुम हिन्दु अपनी तरफ से हदीसे कुरआन की आयते सब झूठ क्यो लिखते है। आयत नम्बर हदीस नम्बर सब अपनी तरफ से झूठ लिख देते हो। शर्म नही आती तुम्हे। कयामत के दिन जब इंसाफ होगा तब तुम्हे झूठा इल्जाम लगाने का पता चल जायेगा । हद होती है हर चीज की। आपने काबे पर भी इल्जाम लगा दिया। वो अल्लाह का घर है। वहा पर नमाज पडी जाती है लिंग की पूजा नही होती। और क्या कहते हो तुम हमे काबे की सच्चाई सामने क्यो नही लाते हो। यूटयूब पर हजारो विडियो पडी हुयी है देख लो कोई लिंग विंग नही है वहा। बस जन्नत का एक गोल पत्थर है और हर पत्थर का मतलब लिंग नही होता। बाईचान्स मान लो वहा शिव लिंग है।तो क्या आपके शिव लिंग मे इतनी भी ताकत नही है जो वहा से आजाद हो सके। तुम्हारी गंदी नजरो मे सभी मुस्लिम अच्छे नही है इसलिए सारे मुस्लिमो को शिव मार सके। आप तो कहते हो शिव ने पूरी दुनिया बनाई तो क्या एक छोटा सा काम नही कर सकते।
    इसलिए तो इन लिंग विंग पत्थरो के बूतो मे कोई ताकत नही होती। बकवास है हिन्दु धर्म। हिन्दु गर्व के साथ कहते है कि हमारी गीता मे लिखा है कि ईश्वर हर चीज मे मौजूद है ।सब चीजे मे है इसलिए हम पत्थरो को पूजते है और भी बहुत सारी चीजो को पूजते है etc. लेकिन मै कहूगा इनकी ये सोच बिल्कुल गलत है क्योकि अगर हर चीज मे भगवान है तो क्या गू गोबर मे भी है आपका भगवान। जबकि भगवान या खुदा तो पाक साफ है तो दुनिया की हर चीज मे कहा से हुआ भगवान। इसलिए मै आपसे कहना चाहता हू भगवान हर चीज मै नही है बल्कि हर चीज उसकी है और वो एक है इसलिए पूजा पाठ मूर्ति चित्र सब गलत है।कुरान अल्लाह की किताब है इसके बताये गये रास्ते पर चलो। सबूत भी है क्योकि कुरान की आयते पढकर हम भूत प्रेत बुरी आत्माओ राक्षसो से छुटकारा पाते है।हमारी मस्जिद मे बहुत हिन्दु आते है ईलाज करवाने के लिए । और मौलवी कुरान की आयते पढकर ही सभी को ठीक करते है । इसलिए कुरान अल्लाह की किताब है । जबकि आप वेदो मंत्रो से दसरो को नुकसान पहुचा सकते है अच्छाई नही कर सकते किसी की और सभी भगत पंडित जादू टोना टोटके के अलावा करते ही क्या है। जबकि कुरान से अच्छाई के अलावा आप किसी के साथ बुरा कर ही नही सकते। इसलिए गैर मुस्लिमो एक अल्लाह पर ईमान लाओ

    1. हमे कहते हो मांस क्यो खाते हो लेकिन ऐसे जानवर जिनका कुरान मे खाना का जिक्र है खा सकते है

      अच्चा ये बातों सूअर कि आबादी नहीं बढ़ेगी क्या :

      🙂

      आपको वो भी खाना चाहिए वो क्यों नहीं खाते ?

      1. इनको तो हम किसी इस्लामिक देश मे पालते भी नही।नस्ल ही खत्म कर रखी है इनकी। तो फिर आबादी कहा से बढी सुअरो की।

            1. भाई जान जब सत्य को अस्वीकार करोगे तभी आप What nonsence जैसे सब्द का इस्तेमाल कर सकते हो और वही आप कर रहे हो |

                1. भाई जान आर्य जो बोलते हैं खासकर रिश्वा आर्य या मैं तो हमारे पास प्रमाण होते हैं | हम गलत नहीं बोलते कभी | हम उसी से प्रमाण देते हैं जो सत्य होता है |
                  धन्यवाद

  70. nafees maali bhai jaan
    aapko jawab mil rahe hain is kaaran main jawab nahi de raha . waise ek baat batla du yaha jo bhi lekh daale jaate hain ve praman se hi daale jaate hain. aur rahi baat aap hamare facebook page par aaye waha par aapko rahul jhaa ji aapko screenshot ke saath hadess kuraan ya fir jinse charcha karna chahte hain jaise pauranik ramayan geeta etc…… bible etc…. ved etc… in sabse screenshot ke saath charchaa karenge.
    https://www.facebook.com/Aryamantavya/
    in page par praman ke saath charcha karna chahe to ve karenge. unhe is site par screenshot rakhne me dikat hoti hai karan ve charcha nahi karte yaha par praman ke saath. dhanywaad.

  71. शायद आप यह बात जानकर हैरत करें लेकिन सच्चाई यही है कि वेदों और पुराणों में पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के आगमन से बरसों पहले उनके आने की भविष्यवाणी की गई है।
    मुहम्मद सल्ल0 अरब में छठी शताब्दी में पैदा हुए, मगर इससे बहुत पहले उनके आगमन की भविष्यवाणी वेदों में की गई हैं। महाऋषि व्यास के अठारह पुराणों में से एक पुराण ‘भविष्य पुराण’ हैं। उसका एक श्लोक यह हैं:
    ‘‘एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रो के साथ आयेंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तान क्षेत्र में आयेंगे। (भविष्य पुराण अ0 323 सू0 5 से 8)
    स्पष्ट रूप से इस श्लोक और सूत्र मे नाम और स्थान के संकेत हैं। आने वाले महान पुरूष की अन्य निशानियॉ यह बयान हुई हैं।
    ‘ पैदाइशी तौर पर उनका खतना किया हुआ होगा। उनके जटा नही होगी। वह दाढ़ी रखे हुए होंगे। गोश्त खायेंगे। अपना संदेश स्पष्ट शब्दो मे जोरदार तरीके से प्रसारित करेंगे। अपने संदेश के मानने वालों को मुसलाई नाम से पुकारेंगे। (अध्याय 3 श्लोक 25, सूत्र )
    इस श्लोक को ध्यान पूर्वक देखिए। खतने का रिवाज हिंदुओं में नही था। जटा यहॉ धार्मिक निशान था। आने वाले महान पुरूष अर्थात मुहम्मद सल्ल0 के अन्दर ये सभी बाते स्पष्ट रूप से पाई जाती हैं । फिर इस संदेश के मानने वालो के लिए मुसलाई का नाम हैं। यह शब्द मुस्लिम और मुसलमान की ओर संकेत करता है।
    अथर्व वेद अध्याय 20 में हम निम्नलिखित श्लोक देख सकते हैं•
    हे भक्तो! इसको ध्यान से सुनो। प्रशंसा किया गया, प्रशंसा किया जाने वाला वह महामहे ऋषि साठ हजार नब्बे लोगो के बीच आयेगा।
    मुहम्मद के मायने हैं जिसकी प्रशंसा की गई हो। आप स0 की पैदाइश के समय मक्का की आबादी साठ हजार थी।
    वे बीस नर और मादा ऊटो पर सवारी करेंगे। उनकी प्रशंसा और बड़ाई स्वर्ग तक होगी। उस महा ऋषि के सौ सोने के आभूषण होंगे।
    ऊट पर सवारी करने वाले महा ऋषि को हम भारत में नही पाते।
    अत: यह संकेत मुहम्मद स0 ही की ओर हैं। सौ सोने के आभूषण से अभिप्रेत हबशा की हिजरत में जाने वाले आप सल्ल0 के सौ प्राणोत्सगी मित्र हैं।
    दस मोतियों के हार, तीन सौ अरबी घोड़े , दस हजार गाये उनके यहॉ होगी।
    दस मोतियों के हार से संकेत आप स0 के उन दस मित्रों की ओर हैं जिन्हे दुनिया ही मे जन्नत की खुशखबरी दी गई।
    बद्र की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले 313 सहाबा को तीन सौ अरबी घोड़ो की उपमा दी गई हैं। दस हजार गायों से अभिप्रेत यह हैं कि आप सल्ल0 के अनुयायियों की संख्या बहुत अधिक होगी।

    कुरआन मजीद नबी सल्ल0 को ‘जगत के लिए रहमत’ के नाम से याद करता हैं।
    ऋग्वेद मे भी हैं:
    रहमत का नाम पाने वाला, प्रशंसा किया हुआ दस हजार साथियों के साथ आएगा।
    (मंत्र 5 सूत्र 28)
    इसी तरह वेद में महामहे और महामद के नाम से भी आप स0 के आगमन का उल्लेख हैं.

    पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के बारे में कई भारतीय धर्मग्रंथों में भविष्यवाणी की गई है। इसके लिए आप डॉ. एम.ए. श्रीवास्तव की पुस्तक ‘हजरत मुहम्मद और भारतीय धर्मग्रंथ’ जरूर पढें।

    1. ये मुसलमानों कि मुर्खता और धुर्धता ही है कि वो मुहम्मद को वेदों में खोजते रहते हैं
      और उसी का एक प्रमाण आपके द्वारा भी दिया गया है

      “अथर्व वेद अध्याय 20 में हम निम्नलिखित श्लोक देख सकते हैं•”

      बातों वेद के कौनसे अध्याय में ऐसा लिखा गया है

      “)

      भोली जनता तो बहकाना बंद करो

      1. इसी में एक और मुर्खता जो अथर्ववेद के अध्याय का प्रमाण दिया है
        अरे मुर्ख बनाने चले कभी अथर्ववेद कि शक्ल भी देखी है . अधर्ववेद में अध्याय नहीं मंडल सूक्त और कांड होते हैं
        ये नीचे लिखी बकवास किसी और को बतानाअथर्व वेद अध्याय 20 में हम निम्नलिखित श्लोक देख सकते हैं•
        हे भक्तो! इसको ध्यान से सुनो। प्रशंसा किया गया, प्रशंसा किया जाने वाला वह महामहे ऋषि साठ हजार नब्बे लोगो के बीच आयेगा।
        मुहम्मद के मायने हैं जिसकी प्रशंसा की गई हो। आप स0 की पैदाइश के समय मक्का की आबादी साठ हजार थी।
        वे बीस नर और मादा ऊटो पर सवारी करेंगे। उनकी प्रशंसा और बड़ाई स्वर्ग तक होगी। उस महा ऋषि के सौ सोने के आभूषण होंगे।
        ऊट पर सवारी करने वाले महा ऋषि को हम भारत में नही पाते।
        अत: यह संकेत मुहम्मद स0 ही की ओर हैं। सौ सोने के आभूषण से अभिप्रेत हबशा की हिजरत में जाने वाले आप सल्ल0 के सौ प्राणोत्सगी मित्र हैं।
        दस मोतियों के हार, तीन सौ अरबी घोड़े , दस हजार गाये उनके यहॉ होगी।
        दस मोतियों के हार से संकेत आप स0 के उन दस मित्रों की ओर हैं जिन्हे दुनिया ही मे जन्नत की खुशखबरी दी गई।
        बद्र की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले 313 सहाबा को तीन सौ अरबी घोड़ो की उपमा दी गई हैं। दस हजार गायों से अभिप्रेत यह हैं कि आप सल्ल0 के अनुयायियों की संख्या बहुत अधिक होगी।

        मियां जी झूठ बोलने के गुण आपको विरासत में मिले दीखते हैं

  72. 1. इस्लाम की एक खूबी यह है कि इस ने अकेले अल्लाह की उपासना करने का आदेश दिया है जिस का कोर्इ साझी नहीं, पस अल्लाह तआला अकेला है जिस का कोर्इ साझी नहीं, न उस ने किसी को जना है और न ही वह किसी से जना गया है। तथा कोर्इ भी उस का साझी नहीं।

    2. इस्लाम की एक विशेषता यह है कि इस ने तमाम रसूलों पर विश्वास रखने का आदेश दिया, पस सभी रसूलों पर र्इमान लाये बिना कोर्इ मुसलमान नहीं हो सकता तथा उन रसूलों में मूसा, र्इसा और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी हैं।

    3. तथा इस्लाम धर्म की खूबी यह भी है कि उस ने उन सभी आसमानी किताबों पर विश्वास रखने का आदेश दिया जो अल्लाह की ओर से उतरीं जैसे तौरात, इन्जील, ज़बूर तथा क़ुरआन, परन्तु यह सूचना भी दे दी है कि क़ुरआन से पहले की किताबों में परिवर्तन तथा गड़बड़ी पैदा हो चुकी है।

    4. तथा इस्लाम की एक विशेषता यह है कि इस ने फरिश्तों के ऊपर र्इमान लाने का आदेश दिया है तथा उन के कार्यों को स्पष्ट किया तथा बतलाया कि यह फरिश्ते अललाह के आदेश का पालन करते हैं और कभी भी उस की अवज्ञा नहीं करते।

    5. तथा इस्लाम की एक खूबी यह है कि इस ने क़ज़ा व क़द्र (र्इश्वरीय निर्णय) पर र्इमान लाने का आदेश दिया। इस र्इमान का बड़ा लाभ यह है कि इस से दिल को संतोष, सुकून तथा अन्दरूनी शानित प्राप्त होती है; क्योंकि मोमिनों को पता होता है कि इस संसार में जो कुछ भी होता है वह अल्लाह की मशीयत (चाहत) से होता है, तो अल्लाह ने जो चाहा वह हुआ जो नहीं चाहा वह नहीं हुआ, पस अल्लाह तआला हो चुकी और होने वाली चीज़ों को जानता है, तथा उन चीज़ों को भी जानता है जो प्रकट नहीं हुर्इ यदि प्रकट होती तो कैसी होती और यही ज्ञान का अंत है।

    6. इस्लाम की एक खूबी यह भी है कि इस ने नमाज़, रोज़ा, ज़कात, तथा हज्ज का आदेश दिया तथा इन में से हर उपासना के बहुत सारे लाभ हैं जिन को इन पन्नों में बयान नहीं किया जा सकता।

    7. तथा इस्लाम की विशेषत यह भी है कि इस ने वैध तथा अवैध को लोगों के सामने स्पष्ट कर दिया और चीज़ों में जवाज़ (वैधता) को मूल ठहराया और क़ुरआन तथा हदीस के तर्क के बिना कोर्इ चीज़ वर्जित नहीं हो सकती।

    8. तथा इस्लाम की एक विशेषता यह है कि यह लोगों के ऊपर दया तथा कृपा करने वाला धर्म है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि:

    ”अल्लाह रफीक़ (नम्र) है, नरमी को पसंद करता है तथा नरमी बरतने पर वह जो कुछ देता है सखती बरतने पर नहीं देता। (मुसिलम)

    9. और इस्लाम की खूबियों में से यह भी है कि इस ने लोगों के लिए तौबा का दरवाज़ा खोल रखा है कि कहीं वह मायूस तथा निराश न हो जायें, अल्लाह ने फरमाया:

    قُلْ يَاعِبَادِي الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لاَ تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (الزمر: 53).

    ”(मेरी ओर से) कह दो कि ऐ मेरे बन्दो! जिन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया है तुम अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद न हो जाओ, नि:सन्देह अल्लाह सारे गुनाहों को माफ कर देने वाला है, वास्तव में वह बड़ी बखिशश और बड़ी रहमत वाला है।

    (ज़ुमर: 53)

    पस आदमी कितने ही पाप एंव हराम कार्य कर बैठे उसके लिए संभव है कि इसे छोड़ कर उस पर लजिजत हो और उस पाप से अल्लाह तआला से तौबा कर ले और यदि उसकी तौबा सच्ची है तो अल्लाह तआला उसे स्वीकार फरमाता है तथा उस पर उसे पुण्य देता है और कभी कभी उन गुनाहों को नेकियों में बदल देता है तथा यह इन्सान के र्इमान की मज़बूती और उसकी तौबा की सच्चार्इ के हिसाब से होती है।

    10. तथा इस्लाम की एक खूबी यह है कि उस ने मर्दों को अपनी बीवियों के साथ हुसने मुआशरत (अच्छे रहन सहन, बरताव) का आदेश दिया, अल्लाह तआला ने फरमाया:

    وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ (النساء: 19).

    ”उन के साथ अच्छे तरीक़े से बूद व बाश रखो। (सूरतुन निसा:19)

    1. फिर वही झूठ पर झूठ

      “इस्लाम की एक खूबी यह है कि इस ने अकेले अल्लाह की उपासना करने का आदेश दिया है जिस का कोर्इ साझी नहीं, पस अल्लाह तआला अकेला है जिस का कोर्इ साझी नहीं, न उस ने किसी को जना है और न ही वह किसी से जना गया है। तथा कोर्इ भी उस का साझी नहीं।”

      यदि ऐसा है तो मुहम्मद को कलमें में क्यों शामिल किया गे है

      किसी और को बेवकूफ बनाना

      1. कलमे मे अल्लाह का नाम नही है बेवकूफ। कलमा मे गवही है।कि अल्लाह की सिवा को माबूद नही और मुहम्मद मुस्तफा अल्लाह के रसूल है। मुझे लगता है तुम भी महेन्दर पाल की तरह बेवकूफ हो

        1. कलमा कितने होते हैं जी यब भी बतलाना जी | क्यूंकि आपने बस ये बताया है कलमा मे गवही है।कि अल्लाह की सिवा को माबूद नही और मुहम्मद मुस्तफा अल्लाह के रसूल है।

    2. फिर झूठ
      . तथा इस्लाम की एक खूबी यह है कि उस ने मर्दों को अपनी बीवियों के साथ हुसने मुआशरत (अच्छे रहन सहन, बरताव) का आदेश दिया, अल्लाह तआला ने फरमाया:

      हलाला ( दुसरे आदमी के साथ बीवी को सोने पर मजबूर करना ) करना मुत्ता ( थोड़े समय के लिए किसी से शादी कर लेना ) करना भी इस्लाम केही औरतों के प्रति खूबी का ही उदहारण है

      🙂

  73. तथा उनके ऊपर अत्याचार करने और उन से नफरत करने से रोका, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि कोर्इ मोमिन मर्द किसी मोमिना औरत से द्धेष (बुग़्ज़ व नफरत) न रखे, यदि उसे उसकी एक आदत ना पसंद है तो उसकी कोर्इ दूसरी आदत से वह प्रसन्न हो सकता है।

    11. इस्लाम की खूबियों में से यह है कि इस ने मर्द के ऊपर अपनी बीवी के खर्च को अनिवार्य ठहराया, अगरचे उस (बीवी) के पास माल हो तथा उसे अपना माल खर्च करने की पूरी स्वतंत्रता दी। अत: मर्द को बीवी की इच्छा के बिना उस के माल में से कुछ भी लेने का अधिकार नहीं है।

    12. इस्लाम की एक खूबी यह है कि इस ने ऊँचे अखलाक़ की ओर आमंत्रित किया जैसे न्याय, सच्चार्इ, अमानत दारी, मुसावात, कृपा, सखावत, वीरता, वफादारी, नम्रता, तथा बुरे अखलाक़ से रोका जैसे अत्याचार, झूठ, कठोरता, कंजूसी, बहाने बनाना, खयानत तथा घमण्ड करना। और अल्लाह ने अपने सन्देष्टा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अच्छे अखलाक़ की प्रशंसा की है, चुनांचे अल्लाह ने फरमाया:

    وَإِنَّكَ لَعَلى خُلُقٍ عَظِيمٍ (القلم: 4).

    ”नि:सन्देह आप बड़े उत्तम स्वभाव पर हैं। (सूरतुल क़लम:4)

    13. तथा इस्लाम की खूबियों में से यह भी है कि इस ने हर चीज़ यहाँ तक कि जानवरों के साथ तक भी एहसान करने का आदेश दिया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि:

    ”एक नारी को एक बिल्ली के विषय में यातना से दो चार होना पड़ा, उस ने उसे क़ैद में डाल दिया यहाँ तक कि वह मर गर्इ तो उस ने इसके परिणाम में नरक में प्रवेश किया, न तो उस ने उस को खिलाया पिलाया और न ही उस को छोड़ा कि वह ज़मीन (खेती) के कीड़े-मकूड़े खा सके।

    आज से चौदह शताब्दी पूर्व इस्लाम का जानवरों के साथ दया का यह एक उदाहरण है तो लोगों के साथ इसका क्या हाल होगा।

    14. इस्लाम की एक खूबी यह है कि इस ने मामले (व्यापार आदि) में धोखा धड़ी करने से रोका है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि: ”जिस ने धोखा दिया वह हम में से नहीं।

    15. तथा इस्लाम की एक विशेषता यह है कि यह कार्य करने और जीविका ढूँढने पर उभारता है तथा सुस्ती और लोगों के सामने भीक मांगने से रोका परन्तु जब कोर्इ सख्त आवश्यकता में हो तो उसे पूरा करने के लिए भीक मांग सकते हैं।

    तो इस्लाम प्रयत्न करने, कार्य करने तथा मेहनत करने का धर्म है, सुस्ती तथा आलस्य और शिथिलता का धर्म नहीं, अल्लाह तआला ने फरमाया:

    فَإِذَا قُضِيَتْ الصَّلاَةُ فَانتَشِرُوا فِي الأَرْضِ وَابْتَغُوا مِنْ فَضْلِ اللَّهِ (الجمعة: 10).

    ”फिर जब नमाज़ हो चुके तो धर्ती पर फैल जाओ और अल्लाह का फज़ल तलाश करो और ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह का वर्णन करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ। (सूरतुल जुमुआ:10)

    इस्लाम धर्म की विशेषताओं तथा खूबियों के विषय में यह चंद बातें हैं और इस पुसितका के अन्दर उन खूबियों को विस्तार और विवरण के साथ नहीं लिखा जा सकता।

    1. फिर झूठ
      . तथा इस्लाम की एक खूबी यह है कि उस ने मर्दों को अपनी बीवियों के साथ हुसने मुआशरत (अच्छे रहन सहन, बरताव) का आदेश दिया, अल्लाह तआला ने फरमाया:

      हलाला ( दुसरे आदमी के साथ बीवी को सोने पर मजबूर करना ) करना मुत्ता ( थोड़े समय के लिए किसी से शादी कर लेना ) करना भी इस्लाम केही औरतों के प्रति खूबी का ही उदहारण है

      🙂

  74. आज मै आपके सामने मुस्लमान की खूबियाँ बयां करुँगा यानि यह बताउंगा की मुस्लमान होने के लिए कम से कम क्या शर्ते है । और इन्सान को कम से कम क्या होना चाहिए की वह मुस्लमान कहलाने के काबिल हो ।
    इस्लाम को समझने के लिए सब से पहले हमे ये जानना चाहिए की कुफ्र क्या है ? और इस्लाम क्या है ? कुफ्र यह है की इन्सान अल्लाह की फरमा बरदारी से इनकार कर दे यानि अल्लाह ने जो हुकुम दिए है उन्हें मानने से इनकार कर दे और इस्लाम यह है की इन्सान सिर्फ अल्लाह का फरमा बरदार हो ।
    इस्लाम इसके सिवा कुछ नही है की आदमी सिर्फ खुदा का बन्दा है । न नफ्स का, न बाप दादा न खानदान न किसी कबीला न किसी मोलवी का । इन्सान सिर्फ और सिर्फ अल्लाह का बन्दा है और उसका हर काम सिर्फ अल्लाह की खिशी हासिल करने के लिए हो ।
    आज मुसलमानों में सयेद मुग़ल पठान और बोहत सी कौमें है । इस्लाम में सब को एक कौम बनने को कहा है आज भी हम पुराने जाहिल ख्याल लिए बैठे है । ज़बान से एक दुसरे को मुस्लमान भाई कहते है मगर हकीकत में कौम का बिरादरी का भेदभाव रखते है जैसे पहले था ।
    भेदभाव की वजह से आप एक कौम नही बनते जब सब अल्लाह के बन्दे और रसूल (सलल्ल्लाहु अलय्ही वसल्लम ) की उम्मत से है तो सब बात यहीं ख़त्म हो जाती है ।
    अल्लाह ने हम को हुक्म दिया है की तुम्हारी विरासत में लड़का और लड़की दोनों का हक है । तो क्या हम ने अल्लाह का हुक्म माना ? हम ये कहते है की बाप दादा के ज़माने से लड़का ही विरासत का शरीक है । हम से कहा जाता है की तोड़ दो इन रिवाजों को तो हम कहते है जब सब तोड़ेंगे तो मै भी तोड़ दूंगा वरना दुसरे ने लड़की का हिस्सा नही दिया और मैंने दे दिया तो मेरे घर की दौलत दुसरे के घर चली जाएगी लेकिन मेरे घर नही आयेगी । क्या अल्लाह का कानून हम अपनी शर्तों पर मानेंगे ? यानि दूसरा चोरी करेगा तो मै भी करूँगा दूसरा जिना करेगा तो मै भी करूँगा मतलब दूसरा गुनाह करना नही छोड़ेगा उस वक़्त तक मै भी गुनाह करता रहूँगा ।
    मुसलमान की असली पहचान यह है की वह अल्लाह और उस के रसूल (सलल्लहु अलय्ही वसल्लम) की तालीम पर यकीन करता हो और उस पर अमल करे । फिर चाहे खानदान और दुनिया वाले कितनी ही मुखालिफत करे वह किसी की परवाह न करे क्यूँ की उस का सब से एक ही जवाब होगा की मै अल्लाह का बाँदा हूँ आप का नही ।
    अरब में जितने पुराने रस्म-रिवाज थे इस्लाम ने करीब-करीब सब को तोड़ डाला । शराब जीना जुआ चोरी डाका और कन्या हत्या यह सब मामूली बातें थी । इस्लाम ने कहा इन सब को छोड़ दो । सेंकडो साल से जो खानदानी रस्मे चली आ रही थी उन सब को उन्होंने मिटा कर रख दिया । कुफ्र के जिन तरीको में फायदे के सामान थे अल्लाह का हुक्म पते ही उनको छोड़ दिया गया और इस्लाम क जिन हुक्मो की पाबन्दी इन्सान पर मुश्किल गुज़रती है उसको ख़ुशी खुशु कुबूल कर लिया । इस का नाम है ईमान ।
    अगर अरब के लोग उस वक़्त ये कहते की फलां बात हम इस लिए नही मानते क्यूँ की इस में हमारा नुकसान है, फलां काम नही छोड़ सकते क्यूँ की इसमें हमारा फायदा है और फलां काम हम ज़रूर करेंगे यह तो हमारे बाप दादा के ज़माने से होता चला आया है, तो आप समझ सकते हो के दुनिया में कोई मुस्लमान न होता ।
    आज मैंने जो इस्लाम को ले कर बयां किया है मै चाहती हूँ की हम सब अपने आप को इस बयान पर परख कर देखे और इस्लाम की रौशनी में अपने आप को जांचे ।
    अगर आप कहते है हम मुसलमान है और ईमान वाले है तो क्या सच में आप का जिना और मरना अल्लाह के लिए है ? इस मोहब्बत और नफरत में आप की नफ्स का कोई हिस्सा नही ? आप जो भी कर रहे है अल्लाह की ख़ुशी हासिल करने के लिए कर रहे हो ? आप हक पसंद हो ? जिस का जो हक है वो देते हो ? क्या आप ने जाती-वाद मानाने से इनकार कर दिया ? अगर आप ये सब कैफियत अपने अन्दर पते हो तो अल्लाह का शुकर अदा कीजिये की उस ने आप पर ईमान की नेअमत पूरी कर दी और अपने अन्दर कमी महसूस करते हो तो सारी फ़िक्र छोड़ कर इसी कमी को पूरा करने की फ़िक्र कीजिये । क्यूँ की इसी कमी को पूरा करने पर दुनिया में आप की भलाई और आखिरत में आप की निजत है ।
    मैंने ये बयान इस गरज से नही लिखा की इस बयान के आधार पर आप दूसरों को परखे और उनके मोमिन या मुनाफ़िक, मुस्लिम या काफ़िर होने का फैसला करे । बल्कि यह बयान इस लिए है की आप खुद अपने आप को परखे और आखिरत की अदालत में जाने से पहले अपना खोह मालूम कर के यहीं इसे दूर करने की फ़िक्र करे ।
    आप को फ़िक्र इस बात की नही होनी चाहिए की दुनिया में मुफ़्ती और काजी आप को क्या करार देंगे बल्कि इसकी होनी चाहिए की अल्लाह आप को क्या करार देगा ।
    आप इस पर मुतमईन न हो की यहाँ आप का नाम मुसलमानो के रजिस्टर में लिखा है, फ़िक्र इस बात की कीजिये की अल्लाह के दफ्तर में आप क्या लिखे जाते है ।
    सारी दुनिया भी आप को इस्लाम और ईमान की सनद दे दे तो कुछ हासिल नही,

    1. फिर झूठ

      आपने जो नीचे लिखा है वो फिर झूठ है

      ” कुफ्र यह है की इन्सान अल्लाह की फरमा बरदारी से इनकार कर दे यानि अल्लाह ने जो हुकुम दिए है उन्हें मानने से इनकार कर दे और इस्लाम यह है की इन्सान सिर्फ अल्लाह का फरमा बरदार हो ।”

      यहाँ अल्लाह नहीं है मुहम्मद में है बिना मुहम्मद के इस्लाम नहीं अहि

      में अल्लाह/इश्वर को मनाता हूँ तो क्या में मुसलमान हो सकता हूँ ?

  75. इस्लाम धर्म व्यापक शांति का धर्म है जितना कि यह शब्द अपने अन्दर अर्थ रखता है, चाहे उसका संबंध मुसिलम समाज के घरेलू स्तर से हो, जैसाकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ”क्या मैं तुम्हें मोमिन के बारे में सूचना न दूँ? जिस से लोग अपने मालों और जानों पर सुरक्षित हों, और मुसलमान वह जिस की ज़ुबान और हाथ से लोग सुरक्षित हों, और मुजाहिद वह है जो अल्लाह की फरमांबरदारी में अपने नफ्स से जिहाद (संघर्ष) करे, और मुहाजिर वह है जो गुनाहों को छोड़ दे। ” (सहीह इब्ने हिब्बान 11203 हदीस नं.:4862)

    या उसका संबंध वैशिवक स्तर से हो जो मुसिलम समाज और अन्य समुदायों, विशेषकर वो समाज जो धर्म के साथ खिलवाड़ नहीं करते या उसके प्रकाशन में रूकावट नहीं बनते हैं, के बीच सुरक्षा, सिथरता और अनाक्रमण पर आधारित मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने पर आधारित हो, अल्लाह तआला का फरमान है : ”ऐ र्इमान वालों! तुम सबके सब इस्लाम में पूरी तरह दाखि़ल हो जाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो, वह तुम्हारा बेशक खुला दुश्मन है। ” (सूरतुल बक़रा :208)

    तथा इस्लाम ने शांति को बनाए रखने और उसकी सिथरता को जारी रखने के लिए अपने मानने वालों को आक्रमण का जवाब देने और अन्याया का विरोध करने का आदेश दिया है, अल्लाह तआला का फरमान है : ”पस जो शख़्स तुम पर ज़्यादती करे तो जैसी ज़्यादती उसने तुम पर की है वैसी ही ज़्यादती तुम भी उस पर करो। ” (सूरतुल बक़रा :194)

    तथा इस्लाम ने शांति को प्रिय रखने के कारण, अपने मानने वालों को युद्ध की अवस्था में, यदि शत्रु संधि की मांग करे, तो उसे स्वीकार कर लेने और लड़ार्इ बंद कर देने का आदेश दिया है, अल्लाह तआला का फरमान है : ”और अगर ये कुफ्फार सुलह की तरफ मायल हों तो तुम भी उसकी तरफ मायल हो और अल्लाह पर भरोसा रखो (क्योंकि) वह बेषक (सब कुछ) सुनता जानता है। ” (सूरतुल अनफाल :61)

    इस्लाम अपनी शांति प्रियता के साथ साथ अपने मानने वालों से यह नहीं चाहता है कि वो शांति के रास्ते में अपमानता उठायें या उनकी मर्यादा क्षीण हो, बलिक उन्हें इस बात का आदेश देता है कि वह अपनी इज़्ज़त और मर्यादा को सुरक्षित रखने के साथ-साथ शांति को बनाये रखें, अल्लाह तआला का फरमान है : ”तो तुम हिम्मत न हारो और (दुश्मनों को) सुलह की दावत न दो, तुम ग़ालिब हो ही और अल्लाह तो तुम्हारे साथ है और हरगिज़ तुम्हारे आमाल को बरबाद न करेगा। ” (सूरत मुहम्मद :35)

     इस्लाम धर्म में इस्लाम स्वीकार करने की बाबत किसी पर कोर्इ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है, बलिक उसका इस्लाम स्वीकारना उसके दृढ़ विश्वास और सन्तुषिट पर आधारित होना चाहिए। क्योंकि जब्र करना और दबाव बनाना इस्लाम की शिक्षाओं को फैलाने का तरीक़ा नहीं है, अल्लाह तआला का फरमान है : ”धर्म में किसी तरह की जबरदस्ती (दबाव) नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी है। ” (सूरतुल बक़रा :256)

    जब लोगों तक इस्लाम का निमन्त्रण पहुँच जाए और उसे उनके सामने स्पष्ट कर दिया जाए , तो इसके बाद उन्हें उसके स्वीकार करने या न करने की आज़ादी है, क्योंकि इस्लाम का मानना यह है कि मनुष्य उसके निमन्त्रण को क़बूल करने या रद्द कर देने के लिए आज़ाद है। अल्लाह तआला का फरमान है : ”बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने। ” (सूरतुल कहफ :29)

    1. फिर झूठ

      “जब लोगों तक इस्लाम का निमन्त्रण पहुँच जाए और उसे उनके सामने स्पष्ट कर दिया जाए , तो इसके बाद उन्हें उसके स्वीकार करने या न करने की आज़ादी है, क्योंकि इस्लाम का मानना यह है कि मनुष्य उसके निमन्त्रण को क़बूल करने या रद्द कर देने के लिए आज़ाद है। अल्लाह तआला का फरमान है : ”बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने। ” (सूरतुल कहफ :29)”

      यदि आज़ादी थी तो खैबर के के लोगों पर मुहम्मद ने आक्रमण क्यों किया

      🙂

  76. क्यों कि र्इमान और हिदायत अल्लाह के हाथ में है, अल्लाह तआला का फरमान है: ”और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग ज़मीन पर हैं सबके सब र्इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब मोमिन हो जाएँ। ” (सूरत यूनुस :99)

    तथा इस्लाम की अच्छार्इयों में से यह भी है कि उसने अपने विरोधी अह्ले किताब (यानी यहूदी व र्इसार्इ ) को अपने धार्मिक संस्कार को करने की आज़ादी दी है, अबू बक्र रजि़यल्लाहु अन्हु फरमाते हैं : ”…तुम्हारा गुज़र ऐसे लोगों से होगा जिन्हों ने अपने आप को कुटियों में तपस्या के लिए अलग-थलग कर लिया होगा, तो तुम उनको और जिस काम में वे लगे हुए होंगे, उसे छोड़ देना। ” (तबरी 3226)

    तथा उनके धर्म ने उनके लिए जिन चीज़ों का खाना पीना वैध ठहराया है, उन्हें उन चीज़ों के खाने पीने की आज़ादी दी गर्इ है, इसलिए उनके सुवरों को नहीं मारा जाए गा, उनके शराबों को नहीं उंडेला जाए गा, और जहाँ तक नागरिक मामलों का संबंध है जैसे शादी-विवाह, तलाक़, वित्तीय लेनदेन, तो उनके लिए उस चीज़ को अपनाने और लागू करने की आज़ादी है जिसका पर वो विश्वास रखते हैं, और इसके लिए कुछ शर्तें और नियम हैं जिसे इस्लाम ने बयान किया है, जिन के उल्लेख करने का यह अवसर नहीं है।

     इस्लाम धर्म ने ग़ुलामों (दासों) को आज़ाद कराया है, उनके आज़ाद करने को पुण्य का कार्य घोषित किया है और आज़ाद करने वाले के लिए अज्र व सवाब का वादा किया है, और उसे जन्नत में जाने के कारणों में से क़रार दिया है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”जिस आदमी ने किसी ग़ुलाम को आज़ाद किया तो अल्लाह तआला उसके हर अंग के बदले उसके एक अंग को जहन्नम से मुक्त कर देगा यहाँ तक कि उसकी शरमगाह के बदले उसकी शरमगाह को आज़ाद कर देगा। ” (सहीह मुसिलम 21147 हदीस नं.:1509)

    इस्लाम दासता के सभी तरीक़ों को हराम घोषित करता है, और केवल एक तरीक़ा वैध किया है और वह है युद्ध के अन्दर बंदी बनाने के द्वारा दास बनाना, लेकिन इस शर्त के साथ कि मुसलमानों का खलीफा उन पर दासता का आदेश लगा दे, क्योंकि इस्लाम में बंदियों की कर्इ सिथतियाँ है जिन्हें अल्लाह तआला ने अपने इस कथन के द्वारा बयान किया है : ”तो जब तुम काफिरों से भिड़ो तो (उनकी) गर्दनें मारो यहाँ तक कि जब तुम उन्हें ज़ख़्मों से चूर कर डालो तो उनकी मुष्कें कस लो फिर उसके बाद या तो एहसान रख कर या अर्थदण्ड (मुआवज़ा) लेकर छोड़ दो, यहाँ तक कि लड़ार्इ अपने हथियार रख दे (यानी बंद हो जाए )। (सूरत मुहम्मद :4)

    जहाँ एक तरफ इस्लाम ने दासता के रास्ते तंग कर दिये और उसका केवल एक ही रास्ता बाक़ी छोड़ा, वहीं दूसरी तरफ ग़ुलाम आज़ाद करने के रास्तों में विस्तार किया है, इस प्रकार कि ग़ुलाम को आज़ाद करना मुसलमान से होने वाले कुछ गुनाहों का कफफारा बना दिया है, उदाहरण के तौर पर :

     ग़लती से किसी को क़त्ल कर देना, अल्लाह तआला का फरमान है : ”और जो आदमी किसी मुसलमान का क़त्ल चूक से कर दे तो उस पर एक मुसलमान ग़ुलाम (स्त्री या पूरूष) आज़ाद करना और मक़तूल के रिश्तेदारों को खून की क़ीमत देना है। लेकिन यह और बात है कि वह माफ कर दे, और अगर वह मक़तूल तुम्हारे दुश्मन क़ौम से हो और मुसलमान हो तो एक मुसलमान ग़ुलाम आज़ाद करना ज़रूरी है, और अगर मक़तूल उस क़ौम का है जिसके और तुम्हारे (मुसलमानों के) बीच सुलह है तो खून की क़ीमत उसके रिश्तेदारों को अदा करना है, और एक मुसलमान ग़ुलाम आज़ाद करना भी है। ” (सूरतुनिनसा :92)

     क़सम तोड़ने में, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : ”अल्लाह तुम्हारे बेकार क़समों (के खाने) पर तो खैर पकड़ न करेगा मगर पक्की क़सम खाने और उसके खि़ालाफ करने पर तो ज़रुर तुम्हारी पकड़ करेगा उसका कफफारा (जुर्माना) जैसा तुम ख़ुद अपने अह्ल व अयाल को खिलाते हो उसी कि़स्म का औसत दर्जे का दस मोहताजों को खाना खिलाना या उनको कपड़े पहनाना या एक गु़लाम आज़ाद करना है। ” (सूरतुल मार्इदा :89)

     जि़हार (जि़हार का मतलब है आदमी का अपनी बीवी से कहना :तू मुझ पर मेरी माँ की पीठ की तरह है। ), अल्लाह तआला का फरमान है : ”जो लोग अपनी पतिनयों से जि़हार करें फिर अपनी कही हुर्इ बात को वापस ले लें तो उनके जि़म्मे आपस में एक दूसरे को हाथ लगाने से पहले एक गर्दन आजाद करना है। ” (सूरतुल मुजादिला :3)

    1.  रमज़ान में बीवी से सम्भोग करना, अबू हुरैरा रजि़यल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक आदमी ने रमज़ान में अपनी पत्नी से सहवास कर लिया, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इसका आदेश पूछा तो आप ने फरमाया :”क्या तुम एक ग़ुलाम आज़ाद करने की ताक़त रखते हो? उसने कहा: नहीं, आप ने पूछा : क्या तुम दो महीना लगातार रोज़ा रख सकते हो? उसने कहा नहीं, आप ने फरमाया : ”तो साठ मिसकीनों को खाना खिलाओ। ” (सहीह मुसिलम 2782 हदीस नं.:1111)

       ग़ुलामों पर जि़यादती करने का उसे कफ्फारा बनाया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”जिस ने अपने किसी ग़ुलाम को थप्पड़ मारा, या उसकी पिटार्इ की, तो उसका कफ्फारा यह है कि उसे आज़ाद कर दे। ” (सहीह मुसिलम 21278 हदीस नं.:1657)

      इस्लाम के दासों की मुकित का कड़ा समर्थक होने का दृढ़ प्रामाण निम्नलिखित तत्व भी हैं :

      1. इस्लाम ने मुकातबा का आदेश दिया है, यह ग़ुलाम और उसके स्वामी के बीच एक इत्तिफाक़ होता है जिस में उसे कुछ धन के बदले आज़ाद करने पर समझौता किया जाता है, कुछ फुक़हा ने इसे अगर ग़ुलाम इसकी मांग कर रहा है तो अनिवार्य क़रार दिया है, उनका प्रमाण अल्लाह ताआला का फरमान है : ”और तुम्हारी लौन्डी और ग़ुलामों में से जो मुकातब होने (कुछ रुपए की शर्त पर आज़ादी) की इच्छा करें तो तुम अगर उनमें कुछ सलाहियत देखो तो उनको मुकातब कर दो और अल्लाह के माल से जो उसने तुम्हें अता किया है उनको भी दो। ” (सूरतुन्नूर :33)

      2. ग़ुलाम आज़ाद करने को उन संसाधनों में से क़रार दिया है जिनमें ज़कात का माल ख़र्च किया जाता है, और वह ग़ुलामों को ग़ुलामी से और बंदियों को क़ैद से आज़ाद कराना है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है : ”ख़ैरात (ज़कात) तो बस फकीरों का हक़ है और मिसकीनों का और उस (ज़कात) के कर्मचारियों का और जिनके दिल परचाये जा रहे हों और ग़ुलाम के आज़ाद करने में और क़र्ज़दारों के लिए और अल्लाह की राह (जिहाद) में और मुसाफिरों के लिए, ये हुकूक़ अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और अल्लाह तआला बड़ा जानकार हिकमत वाला है।” (सूरतुत्तौबा :60)

       इस्लाम धर्म अपनी व्यापकता से जीवन के सभी पहलुओं को घेरे हुए है, इसलिए मामलात, युद्ध, विवाह, अर्थ व्यवस्था, राजनीति, और इबादात… के क्षेत्र में ऐसे नियम और कानून प्रस्तुत किए हैं जिस से एक उत्तम आदर्श समाज स्थापित हो सकता है जिसके समान उदाहरण पेश करने से पूरी मानवता भी असमर्थ है, और इन नियमों और क़ानूनों से दूरी के एतिबार से गिरावट आती है, अल्लाह तआला का फरमान है : ”और हमने आप पर किताब (क़ुरआन) नाजि़ल की जिसमें हर चीज़ का (षाफी) बयान है और मुसलमानों के लिए (सरापा) हिदायत और रहमत और खुषख़बरी है।” (सूरतुन नह्ल :89)

      1. इसमें खुदा ने हुक्म दिया है की-

        “अगर कोई गुंडा किसी भले आदमी की औरत से जीना बिलजब्र (बलात्कार) कर डाले तो उस शरीफ आदमी को भी चाहिए की वह भी उस गुंडे की शरीफ औरत से बलात्कार करे”|

        क्या यही खुदाई इन्साफ है ? की बुराई करने वाले को दंड न देकर उसकी निर्दोष बीबी पर वैसा गुण्डापन करे ? क्या बुराई का बदला बुराई दुनिया में कोई शराफत का कानून है ?

        औरतो की गुंडों से रक्षा क्या ऐसे ही इस्लाम में होती है ? क्या शरीफ औरतों की यही इज्जत अर्थात अस्मत इस्लाम में कायम है ?

        कुरान का एक आदेश और भी देखने योग्य है देखिये कुरान में खुदा का आदेश है की-

        “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं अपनी खेती में जिस तरह चाहो जाओ और अपने लिए आइन्दा का भी बन्दोबस्त रखो |

        और अल्लाह से डरो और जाने रहो की (तुम्हे) उसके सामने हाजिर होना है | ऐ पैगम्बर ! सभी ईमान वालों को यह खुशखबरी सूना दो” |

        (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २८ आयत २२३)

        इसमें औरत से चाहे जिस तरह चाहे जिस और से चित या पट्ट वाली स्थिति में सम्भोग करने को खुशखबरी बताया गया है |

        इस आयत पर कुरान के मशहूर तजुर्माकार शाहअब्दुल कादरी साहब देहलवी ने हाशिये पर हदीस दी है की यह आयत क्यों बनी है ? (देखो दिल्ली का छपा कुरान) वहां लिखा है की-

        “यहूदी लोग कहते थे की यदि कोई शख्स औरत से इस तरह जमाव (सम्भोग) करे की औरत की पुष्ट (पीठ) मर्द के मुहँ की जानिब (तरफ) हो तो बच्चा जौल यानी भेंगा पैदा होता है | एक बार हजरत ऊमर राजी उल्लाह अन्स से ऐसा हुआ तो उन्होंने हजरत सलाल्लेहू वलैही असल्लम (मौहम्मद साहब) से अर्ज किया तो यह आयत नाजिल हुई की-“यानी अपनी बीबी से हर तरह जमाअ (सम्भोग) दुरुस्त है”|

        कुरान की इस आयत के सम्बन्ध में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हफवातुल मुसलमीन” में मौलाना शहजादा मिर्जा अहमद सुलतान साहब मुस्वफवी चिश्ती “खाबर गुडगांवा निवासी” ने सफा ४० व् ४१ पर निम्न प्रकार लिखा है-

        एक दिन जनाब उमर फारुख रसुलल्लाह के पास हाजिर हुवे, और अर्ज किया की- या रसूलअल्लाह ! में हलाक हो गया |

        हुजुर ने फरमाया की- तुम्हे किस चीज ने हलाक किया ?

        उसने (मुहम्मद साहब से) अर्ज किया की- “रात मेने अपनी सवारी को औंधा कर लिया था”|

        इब्नअब्बास कहते है की-

        रसूलअल्लाह यह सुन कर चुप रह गए | बस ! अल्लाह ताला ने “वही” भेज दी रसूलअल्लाह की तरफ |

        नोट:- यहाँ वही अर्थात- उसी आयत का जिकर है जो ऊपर कुरान पारा २ सूरते बकर की आयत न० २२३ पर लिखी है की-

        “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं वास्ते तुम्हारे जाओ अपने खेत में और जिधर से चाहो और नफस का चाहना करो | बस! अल्लाह से डरो और उसकी सुनो”|

        इसमें औरत से गुदा मैथुन की बात बिलकुल स्पष्ट रूप से खरी साबित हो गई जो कोई भी औरत अपने मुह से ऐसी बात कह नहीं सकती है |

        आगे देखिये कुरान का फरमान-

        “तुम्हारे लिए रोजों की रात में भी अपनी औरत से हम बिस्तरी (सम्भोग) करना हलाल है”|

        (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २३ आयत १८७)

        एक रवायत में हजरत इब्नअब्बास फरमाते हैं की—

        ……………………………………………..“चौपाये के साथ बुरा फ़ैल (कर्म) करे तो उस पर अहद (जुर्म) लागू नहीं होता”|

        (तिरमिजी शरीफ सफा २९० हिस्सा १ हदीस १२९४)

        हमारे विचार से यह रवायत कुछ ज्यादा ही सही हैं क्योंकि इसमें कुछ जुर्रत से ज्यादा ही हिम्मत से काम लिया गया है |

        आगे देखिये-

        “हजरत आयशा रजीउल्लाह अंस से रवायत है की नबीसलालेहु वलैही अस्लम (हजरत मौहम्मद साहब) ने मुझसे उस वक्त निकाह किया की जब मेरी उम्र सिर्फ ६ साल की थी”|

        (बुखारी शरीफ हिस्सा दूसरा सफा १७८ हदीस ४११)

        आगे देखिये कुरान के आदेश-

        …………………………………………………………………..और वह लोग जो अपनी शर्मगाहो की हिफाजत करते हैं ||५||

        ……………………………………………………………….मगर अपनी बीबियों और बंदियों के बारे में इल्जाम नहीं है ||६||

        (कुरान पारा २ सुरह मोमिनून आयत ५ व् ६)

        इससे प्रकट है की-

        “इस्लाम में नारी जाती को माता-पुत्री के रूप में नहीं वरन केवल विषयभोग के लिए पत्नी के ही रूप में (मर्दों की अय्याशी के साधन के रूप में) देखा व् व्यवहार में लाया जाता है |

        इस्लाम में उसकी इसके आलावा अन्य कोई स्थिति नहीं है | मर्द जब भी चाहे उसे तलाक दे देवे या बदल ले अथवा उससे जैसा चाहे वैसा व्यवहार करे, इस्लामी कानून या मान्यताएं औरत को कोई हक़ प्रदान नहीं करती, सिवाय इसके की वह जिन्दगी भर मर्द की गुलामी करती रहे | और उसे खुश रखे”

        भाइयो ! यह तो इस दुनियां का हाल रहा, अब जरा खुदा के घर “जन्नत” में भी औरतों की दशा को देख लेवें- कुरान में जन्न्र का हाल बयान करते हुए जन्नती मुसलमानों के लिए लिखा है की-

        “उसके पास नीची नजर वाली हरें होंगी और हमउम्र होंगी”| (कुरान पारा २३, सुरह साद, आयत ५२)

        …………………………………………………………उनके पास नीची नजर वाली बड़ी-बड़ी आँखों वाली औरतें होंगी ||४८||

        ……………………………………………………………………………………………………..गोया वहां छिपे अंडे रखे हैं ||४९||

        (कुरान सुरह साफ़फात आयत ४८ व् ४९)

        …………………………………………………….“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरो से हम उनका विवाह कर देंगे” |

        (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

        इनमे पाक हूरें होंगी जो आँख उठा कर भी नहीं देखेंगी और जन्नतवासियों से पहिले न तो किसी आदमी ने उन पर हाथ डाला होगा और न जिन्न ने” ||५६||

        “………………………………………………………………………………वह हूरें पेश की जायेंगी जो खीमें में बन्द हैं” ||७२||

        (कुरान सुरह रहमाना)

        ………………………………………………………………जन्न्तियों के लिए हमने हूरों की एक ख़ास सृष्टि बनाई है ||३५||

        …………………………………………………………………………………………………….फिर इनकी क्वारी बनाया है ||३६||

        (कुरान सुरह वाकिया)

        …………………………………………………………………………………………………………..नौजवान औरतें हमउम्र ||३३||

        ……………………………………………………………………………………………अछूती हूरें और छलकते हुए प्याले ||३४||

        (कुरान सुरह नहल आयत ३५,३६,३७,३३,३४)

        कुरानी खुदा के उक्त वर्णन के समर्थन में “मिर्जा हैरत देहलवी” ने अपनी किताब मुकद्द्माये तफसीरुल्कुरान में पृष्ठ ८३ पर इस्लामी बहिश्त का हाल लिखा है (जिसे शायद वे वहां जाकर देख भी आये हैं) वे लिखते हैं की हजरत अब्दुल्ला बिन उमर ने फरमाया है की-

        “जन्नत अर्थात स्वर्ग में रहने वालों में सबसे छोटे दर्जे का वह आदमी होगा की उसके पास ६०,००० सेवक होंगे और हर सेवक का काम अलग-अलग होगा | हजरत ने फरमाया की हर व्यक्ति (मुसलमान) ५०० हूरों, ४,००० क्वारी औरतों और ८,००० शादीशुदा औरतों से ब्याह करेगा”|

        नोट- जब छोटे दर्जे के लोगों का यह हाल है तो फिर हम जानना चाहेंगे की बड़े दर्जे के लोगों का भी खुलासा कर देते तो अच्छा रहता |

        (इतनी अय्याशी के अलावा भी) स्वर्ग में एक बाजार है जहाँ पुरुषों और औरतों के हुश्न का व्यापार होता है | बस! जब कोई व्यक्ति किसी सुन्दर स्त्री की ख्वाहिश करेगा तो वह उस बाजार में आवेगा जहाँ बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जमा है और वे हूरें व्यक्ति से कहेंगी की-

        “मुबारक है वह शख्स जो हमारा हो और हम उसकी हों |

        इसी मजमून पर हजरत अंस ने फरमाया की-

        “हूरें कहती हैं की हम सुन्दर दासियाँ हैं, हम प्रतिष्ठित पुरुषों के लिए ही सुरक्षित हैं” |

        इससे तो यहीं मालुम होता है की-

        “जन्नत में भी रंडियों के चकले चलते है”

        यह यहाँ पर इन उपरोक्त वाक्यों से बिलकुल स्पष्ट है |

        भाइयों ! ये है जन्नत के नज़ारे ! इस लोक में भी औरतों से ब्याभिचार और मरने के बाद अल्लाह मियाँ के पास बहिश्त में भी हजारो औरतों से जिना (सम्भोग) होगा |

        क्या इससे यह साबित नहीं हैं की इस्लाम में जिनाखोरी ही जीवन का मुख्य व अंतिम उद्देश्य है ? यहाँ भी और अरबी खुदा के घर जन्नत में भी | कुरानी जन्नत में औलाद चाहने पर कुरान हमल रह जावेगा और फ़ौरन औलाद होकर जवान बन जावेगी | यह सब कुछ सिर्फ एक घंटे में ही हो जावेगा |

        खुदा की जादूगरी का यह करिश्मा सिर्फ वहीँ जन्नत में देखने को मिलेगा | न औरतों को नौ महीनों तक तकलीफ भोगनी पड़ेगी न वहाँ पैदा शुदा औलाद को पालना पड़ेगा |

        (तिरमिजी शरीफ, हदीस ७२९ जिल्द दोयम)

        इस्लामी जन्नत में सिवाय औरतों से अय्याशी करने और शराब… पीने के अलावा मुसलामानों को और कोई काम धंधा नहीं होगा, कुरान में जन्नत का हाल ब्यान करते हुए लिखा गया है की –

        “यही लोग है जिनके रहने के लिए (जन्नत में) बाग़ हैं | इनके मकानों के नीचे नहरें बह रही होंगी | वहां सोने के कंकन पहिनाए जायेंगे और वह महीन और मोटे रेशमी हरे कपडे पहिनेंगे, वह तख्तों पर तकिया लगाए हुए बैठेंगे | अच्छा बदला है क्या खूब आराम है खुदाई जन्नत में ?”

        (कुरान पारा १६ सुरह कहफ़ ४ आयत ३१)

        ………………………………………….यहाँ तुमको (जन्नत में) ऐसा आराम है की न तो तुम भूखे रहोगे न नंगे ||११८||

        …………………………………………………………….और यहाँ न तुम प्यासे ही होवोगे और न ही धुप में रहोगे ||११९||

        (कुरान पारा १६ सुरह ताहाल आयत ११८-११९)

        ……….……………………………………………………………………..……सफ़ेद रंग (शराब) पीने वालों को मजा देगी ||46||

        ……………………………………………………………………………………………न उससे सर घूमते हैं और न उससे बकते हैं ||४७||

        ………………………………………………………उनके पास नीची निगाह वाली बड़ी आँखों वाली औरतें (हुरें) होंगी ||४८||

        (कुरान पारा २३ सुरह साफ़फात रुकू २)

        …………………………………………………………….वहां जन्नत में नौकरों से बहुत से मेवे और शराब मंगवाएंगे ||५१||

        ………………………………………………..इनके पास नीची नजर वाली हूरें (बीबियाँ) होंगी और जो हमउम्र होंगी ||५२||

        (कुरान पारा १८ सुरह साद)

        आगे देखिये कुरान में खुदा ने कहा है की-

        ………………………………………………..“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरों से हम उनका ब्याह कर देंगे” ||४७||

        (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

        ……………………………………………………………………………उनके पास लौंडे हैं जो हमेशा लौंडे ही बने रहेंगे ||१८||

        (कुरान पारा २७ सुरह वाकिया)

        ……………………………..उन पर चांदी के गिलास और बर्तनों का दौर चलता होगा की वह शीशे की तरह होंगे ||१५||

        ………………………………………………………….और वहां उनको प्याले पिलाए जायेंगे जिनमें सौंठ मिली होगी ||१७||

        (कुरान पारा २९ सुरह दहर)

        ……………………………………………………………………………………..उनके नजदीक नौजवान लड़के फिरते हैं ||१९||

        ………………………………………………………………………………उनका परवरदिगार उन्हें पाक शराब पिलावेगा ||२१||

        (कुरान पारा ३० सुरह ततफीफ)

        ……………………………………………………………………………………………………उनमें कपूर की मिलावट होगी ||५||

        (कुरान सुरह दहर आयत ५)

        …………………………………………………………………………………….”जन्नत में इगलामबाजी लौंडे बाजी होगी” ||६||

        (दरमुख्तार जिल्द ३ सफा १७१)

        …………………………………………क्या खुबसूरत गिलमों (लौंडों) का जन्नत में इसी प्रकार इस्तेमाल किया जाएगा ?

        “लाइलाहइल्लिल्लाह……..”- कहने वाला चोरी और जिना (व्यभिचार) भी करे तो भी जन्नत में ही दाखिल होगा” |

        (मिश्कात किताबुलईमान जिल्द १ सफा १२,१३ हदीस न० २४)

        हजरत तलक बिन अली फरमाते हैं की नबी करीम सलेअल्लाहु वलैहि असल्लम ने फरमाया की-

        “जब मर्द अपनी बीबी को अपनी हाजत (सम्भोग) के लिए बुलाये तो औरत उसके पास चली जावे ख्वाह्तनूर पर ही क्यों न हो” |

        (तिरमिजी शरीफ हिस्सा १ सफा २३२ (१०२२ हदीस))

        मतलब तो यह है की ख्वाह वह किसी भी काम में मशगुल हो उसका छोड़ कर चली आये और उसकी ख्वाहिश को पामाल न करे अर्थात ठुकरावे नहीं |

        http://aryamantavya.in/women-in-islam/

    2. क्यों कि र्इमान और हिदायत अल्लाह के हाथ में है, अल्लाह तआला का फरमान है: ”और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग ज़मीन पर हैं सबके सब र्इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब मोमिन हो जाएँ। ” (सूरत यूनुस :99)

      ये भी झूठ है कई दिन से आपसे पुच रहे हैं खैबर पर मुहमम्द ने आक्रमण क्यों किया यदि वो ये आयत ठीक है तो या फिर ये आयत गलत है

      क्यों कि र्इमान और हिदायत अल्लाह के हाथ में है, अल्लाह तआला का फरमान है: ”और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग ज़मीन पर हैं सबके सब र्इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब मोमिन हो जाएँ। ” (सूरत यूनुस :99)

  77. इस्लाम ने मुसलमान के संबंध को उसके रब, उसके समाज और उसके आस-पास के संसार, चाहे वह मानव संसार हो या पर्यावरण संसार, के साथ व्यवसिथत किया है। इस्लाम की शिक्षाओं में कोर्इ ऐसी चीज़ नहीं है जिसे शुद्ध फितरत और स्वस्थ बुद्धि नकारती हो, इस सर्वव्यापकता का प्रमाण इस्लाम का उन व्यवहारों और आंशिक चीज़ों का ध्यान रखना है जिन का संबंध लोगों के जीवन से है, जैसे क़ज़ा-ए-हाजत (शौच) के आदाब और मुसलमान को उस से पहले, उसके बीच और उसके बाद क्या करना चाहिए, अब्दुर्रहमान बिन ज़ैद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं : सलमान फारसी से कहा गया : तुम्हारे नबी तुम्हें हर चीज़ सिखलाते हैं, यहाँ तक कि पेशाब-पाखाना के आदाब भी, सलमान ने जवाब दिया : जी हाँ, आप ने हमें पेशाब या पाखाने के लिए किब्ला की ओर मुँह करने, या दाहिने हाथ से इसितंजा करने, या तीन से कम पत्थरों से इसितंजा करने, या गोबर (लीद) या हडडी से इसितंजा करने से रोका है।” (सहीह मुसिलम 1223 हदीस नं.:262)

     इस्लाम धर्म ने महिला के स्थान को ऊँचा किया है और उसे सम्मान प्रदान किया है, और उसका सम्मान करने को संपूर्ण, श्रेष्ठ और विशुद्ध व्यकितत्व की पहचान ठहराया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ”सब से अधिक संपूर्ण र्इमान वाला आदमी वह है जिसके अख्लाक़ सब से अच्छे हों, और तुम में से सर्व श्रेष्ठ आदमी वह है जो अपनी औरतों के लिए सब से अच्छा हो।” (सहीह इब्ने हिब्बान 9483 हदीस नं.:4176)

     इस्लाम ने महिला की मानवता की सुरक्षा की है, अत: वह ग़लती (पाप) का स्रोत नहीं है, न ही वह आदम अलैहिस्सलाम के जन्नत से निकलने का कारण है जैसाकि पिछले धर्मों के गुरू कहते हैं, अल्लाह तआला का फरमान है : ”ऐ लोगो! अपने उस पालनहार से डरो जिस ने तुम को एक जान से पैदा किया और उसी से उसकी बीवी को पैदा किया और दोनों से बहुत से मर्द-औरत फैला दिए और उस अल्लाह से डरो जिस के नाम पर एक-दूसरे से माँगते हो और रिश्ता तोड़ने से (भी बचो)। ” (सूरतुन-निसा :1)

    तथा इस्लाम ने महिलाओं के विषय में जो अन्यायिक क़ानून प्रचलित थे, उन्हें निरस्त कर दिया, विशेष कर जो महिला को पुरूष से कमतर समझा जाता था, जिस के परिणाम स्वरूप उसे बहुत सारे मानवाधिकारों से वंचित होना पड़ता था, अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं :”महिलाएं, पुरूषों के समान हैं।” (सुनन अबू दाऊद 161 हदीस नं.:236)

    तथा उसके सतीत्व की सुरक्षा की है और उसके सम्मान की हिफाज़त की है, इसलिए उस पर आरोप लगाने और उसकी सतीत्व को छति पहुंचाने पर आरोप का दण्ड लगाने का आदेश दिया है, अल्लाह तआला ने फरमाया : ”और जो लोग पाक दामन औरतों पर (व्यभिचार का) आरोप लगाएँ फिर (अपने दावे पर) चार गवाह पेष न करें तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो और फिर कभी उनकी गवाही क़बूल न करो और (याद रखो कि) ये लोग ख़ुद बदकार हैं।” (सूरतुन्नूर :4)

    तथा वरासत में उसके अधिकार की ज़मानत दी है जिस प्रकार कि मर्दों का हक़ है, जबकि इस से पहले वह वरासत से वंचित थी, अल्लाह ताअल का फरमान है: ”माँ बाप और क़राबतदारों के तर्के में कुछ हिस्सा ख़ास मर्दों का है और उसी तरह माँ बाप और क़राबतदारों के तरके में कुछ हिस्सा ख़ास औरतों का भी है ख़्वाह तर्का कम हो या ज़्यादा (हर शख़्स का) हिस्सा (हमारी तरफ़ से) मुक़र्रर किया हुआ है। ” (सूरतुनिनसा :7)

    तथा उसे पूर्ण योग्यता, आर्थिक मामलों जैसे किसी चीज़ का मालिक बनना, क्रय-विक्रय और इसके समान अन्य मामलों में बिना किसी के निरीक्षण या उसके तसर्रुफात को सीमित किए बिना, उसे तसर्रुफ करने की आज़ादी दी है, सिवाय उस चीज़ के जिस में शरीअत का विरोध हो, अल्लाह तआला का फरमान है: ”ऐ र्इमान वालों अपनी पाक कमार्इ में से ख़र्च करो। ” (सूरतुल बक़रा :267)

    1. इसमें खुदा ने हुक्म दिया है की-

      “अगर कोई गुंडा किसी भले आदमी की औरत से जीना बिलजब्र (बलात्कार) कर डाले तो उस शरीफ आदमी को भी चाहिए की वह भी उस गुंडे की शरीफ औरत से बलात्कार करे”|

      क्या यही खुदाई इन्साफ है ? की बुराई करने वाले को दंड न देकर उसकी निर्दोष बीबी पर वैसा गुण्डापन करे ? क्या बुराई का बदला बुराई दुनिया में कोई शराफत का कानून है ?

      औरतो की गुंडों से रक्षा क्या ऐसे ही इस्लाम में होती है ? क्या शरीफ औरतों की यही इज्जत अर्थात अस्मत इस्लाम में कायम है ?

      कुरान का एक आदेश और भी देखने योग्य है देखिये कुरान में खुदा का आदेश है की-

      “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं अपनी खेती में जिस तरह चाहो जाओ और अपने लिए आइन्दा का भी बन्दोबस्त रखो |

      और अल्लाह से डरो और जाने रहो की (तुम्हे) उसके सामने हाजिर होना है | ऐ पैगम्बर ! सभी ईमान वालों को यह खुशखबरी सूना दो” |

      (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २८ आयत २२३)

      इसमें औरत से चाहे जिस तरह चाहे जिस और से चित या पट्ट वाली स्थिति में सम्भोग करने को खुशखबरी बताया गया है |

      इस आयत पर कुरान के मशहूर तजुर्माकार शाहअब्दुल कादरी साहब देहलवी ने हाशिये पर हदीस दी है की यह आयत क्यों बनी है ? (देखो दिल्ली का छपा कुरान) वहां लिखा है की-

      “यहूदी लोग कहते थे की यदि कोई शख्स औरत से इस तरह जमाव (सम्भोग) करे की औरत की पुष्ट (पीठ) मर्द के मुहँ की जानिब (तरफ) हो तो बच्चा जौल यानी भेंगा पैदा होता है | एक बार हजरत ऊमर राजी उल्लाह अन्स से ऐसा हुआ तो उन्होंने हजरत सलाल्लेहू वलैही असल्लम (मौहम्मद साहब) से अर्ज किया तो यह आयत नाजिल हुई की-“यानी अपनी बीबी से हर तरह जमाअ (सम्भोग) दुरुस्त है”|

      कुरान की इस आयत के सम्बन्ध में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हफवातुल मुसलमीन” में मौलाना शहजादा मिर्जा अहमद सुलतान साहब मुस्वफवी चिश्ती “खाबर गुडगांवा निवासी” ने सफा ४० व् ४१ पर निम्न प्रकार लिखा है-

      एक दिन जनाब उमर फारुख रसुलल्लाह के पास हाजिर हुवे, और अर्ज किया की- या रसूलअल्लाह ! में हलाक हो गया |

      हुजुर ने फरमाया की- तुम्हे किस चीज ने हलाक किया ?

      उसने (मुहम्मद साहब से) अर्ज किया की- “रात मेने अपनी सवारी को औंधा कर लिया था”|

      इब्नअब्बास कहते है की-

      रसूलअल्लाह यह सुन कर चुप रह गए | बस ! अल्लाह ताला ने “वही” भेज दी रसूलअल्लाह की तरफ |

      नोट:- यहाँ वही अर्थात- उसी आयत का जिकर है जो ऊपर कुरान पारा २ सूरते बकर की आयत न० २२३ पर लिखी है की-

      “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं वास्ते तुम्हारे जाओ अपने खेत में और जिधर से चाहो और नफस का चाहना करो | बस! अल्लाह से डरो और उसकी सुनो”|

      इसमें औरत से गुदा मैथुन की बात बिलकुल स्पष्ट रूप से खरी साबित हो गई जो कोई भी औरत अपने मुह से ऐसी बात कह नहीं सकती है |

      आगे देखिये कुरान का फरमान-

      “तुम्हारे लिए रोजों की रात में भी अपनी औरत से हम बिस्तरी (सम्भोग) करना हलाल है”|

      (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २३ आयत १८७)

      एक रवायत में हजरत इब्नअब्बास फरमाते हैं की—

      ……………………………………………..“चौपाये के साथ बुरा फ़ैल (कर्म) करे तो उस पर अहद (जुर्म) लागू नहीं होता”|

      (तिरमिजी शरीफ सफा २९० हिस्सा १ हदीस १२९४)

      हमारे विचार से यह रवायत कुछ ज्यादा ही सही हैं क्योंकि इसमें कुछ जुर्रत से ज्यादा ही हिम्मत से काम लिया गया है |

      आगे देखिये-

      “हजरत आयशा रजीउल्लाह अंस से रवायत है की नबीसलालेहु वलैही अस्लम (हजरत मौहम्मद साहब) ने मुझसे उस वक्त निकाह किया की जब मेरी उम्र सिर्फ ६ साल की थी”|

      (बुखारी शरीफ हिस्सा दूसरा सफा १७८ हदीस ४११)

      आगे देखिये कुरान के आदेश-

      …………………………………………………………………..और वह लोग जो अपनी शर्मगाहो की हिफाजत करते हैं ||५||

      ……………………………………………………………….मगर अपनी बीबियों और बंदियों के बारे में इल्जाम नहीं है ||६||

      (कुरान पारा २ सुरह मोमिनून आयत ५ व् ६)

      इससे प्रकट है की-

      “इस्लाम में नारी जाती को माता-पुत्री के रूप में नहीं वरन केवल विषयभोग के लिए पत्नी के ही रूप में (मर्दों की अय्याशी के साधन के रूप में) देखा व् व्यवहार में लाया जाता है |

      इस्लाम में उसकी इसके आलावा अन्य कोई स्थिति नहीं है | मर्द जब भी चाहे उसे तलाक दे देवे या बदल ले अथवा उससे जैसा चाहे वैसा व्यवहार करे, इस्लामी कानून या मान्यताएं औरत को कोई हक़ प्रदान नहीं करती, सिवाय इसके की वह जिन्दगी भर मर्द की गुलामी करती रहे | और उसे खुश रखे”

      भाइयो ! यह तो इस दुनियां का हाल रहा, अब जरा खुदा के घर “जन्नत” में भी औरतों की दशा को देख लेवें- कुरान में जन्न्र का हाल बयान करते हुए जन्नती मुसलमानों के लिए लिखा है की-

      “उसके पास नीची नजर वाली हरें होंगी और हमउम्र होंगी”| (कुरान पारा २३, सुरह साद, आयत ५२)

      …………………………………………………………उनके पास नीची नजर वाली बड़ी-बड़ी आँखों वाली औरतें होंगी ||४८||

      ……………………………………………………………………………………………………..गोया वहां छिपे अंडे रखे हैं ||४९||

      (कुरान सुरह साफ़फात आयत ४८ व् ४९)

      …………………………………………………….“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरो से हम उनका विवाह कर देंगे” |

      (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

      इनमे पाक हूरें होंगी जो आँख उठा कर भी नहीं देखेंगी और जन्नतवासियों से पहिले न तो किसी आदमी ने उन पर हाथ डाला होगा और न जिन्न ने” ||५६||

      “………………………………………………………………………………वह हूरें पेश की जायेंगी जो खीमें में बन्द हैं” ||७२||

      (कुरान सुरह रहमाना)

      ………………………………………………………………जन्न्तियों के लिए हमने हूरों की एक ख़ास सृष्टि बनाई है ||३५||

      …………………………………………………………………………………………………….फिर इनकी क्वारी बनाया है ||३६||

      (कुरान सुरह वाकिया)

      …………………………………………………………………………………………………………..नौजवान औरतें हमउम्र ||३३||

      ……………………………………………………………………………………………अछूती हूरें और छलकते हुए प्याले ||३४||

      (कुरान सुरह नहल आयत ३५,३६,३७,३३,३४)

      कुरानी खुदा के उक्त वर्णन के समर्थन में “मिर्जा हैरत देहलवी” ने अपनी किताब मुकद्द्माये तफसीरुल्कुरान में पृष्ठ ८३ पर इस्लामी बहिश्त का हाल लिखा है (जिसे शायद वे वहां जाकर देख भी आये हैं) वे लिखते हैं की हजरत अब्दुल्ला बिन उमर ने फरमाया है की-

      “जन्नत अर्थात स्वर्ग में रहने वालों में सबसे छोटे दर्जे का वह आदमी होगा की उसके पास ६०,००० सेवक होंगे और हर सेवक का काम अलग-अलग होगा | हजरत ने फरमाया की हर व्यक्ति (मुसलमान) ५०० हूरों, ४,००० क्वारी औरतों और ८,००० शादीशुदा औरतों से ब्याह करेगा”|

      नोट- जब छोटे दर्जे के लोगों का यह हाल है तो फिर हम जानना चाहेंगे की बड़े दर्जे के लोगों का भी खुलासा कर देते तो अच्छा रहता |

      (इतनी अय्याशी के अलावा भी) स्वर्ग में एक बाजार है जहाँ पुरुषों और औरतों के हुश्न का व्यापार होता है | बस! जब कोई व्यक्ति किसी सुन्दर स्त्री की ख्वाहिश करेगा तो वह उस बाजार में आवेगा जहाँ बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जमा है और वे हूरें व्यक्ति से कहेंगी की-

      “मुबारक है वह शख्स जो हमारा हो और हम उसकी हों |

      इसी मजमून पर हजरत अंस ने फरमाया की-

      “हूरें कहती हैं की हम सुन्दर दासियाँ हैं, हम प्रतिष्ठित पुरुषों के लिए ही सुरक्षित हैं” |

      इससे तो यहीं मालुम होता है की-

      “जन्नत में भी रंडियों के चकले चलते है”

      यह यहाँ पर इन उपरोक्त वाक्यों से बिलकुल स्पष्ट है |

      भाइयों ! ये है जन्नत के नज़ारे ! इस लोक में भी औरतों से ब्याभिचार और मरने के बाद अल्लाह मियाँ के पास बहिश्त में भी हजारो औरतों से जिना (सम्भोग) होगा |

      क्या इससे यह साबित नहीं हैं की इस्लाम में जिनाखोरी ही जीवन का मुख्य व अंतिम उद्देश्य है ? यहाँ भी और अरबी खुदा के घर जन्नत में भी | कुरानी जन्नत में औलाद चाहने पर कुरान हमल रह जावेगा और फ़ौरन औलाद होकर जवान बन जावेगी | यह सब कुछ सिर्फ एक घंटे में ही हो जावेगा |

      खुदा की जादूगरी का यह करिश्मा सिर्फ वहीँ जन्नत में देखने को मिलेगा | न औरतों को नौ महीनों तक तकलीफ भोगनी पड़ेगी न वहाँ पैदा शुदा औलाद को पालना पड़ेगा |

      (तिरमिजी शरीफ, हदीस ७२९ जिल्द दोयम)

      इस्लामी जन्नत में सिवाय औरतों से अय्याशी करने और शराब… पीने के अलावा मुसलामानों को और कोई काम धंधा नहीं होगा, कुरान में जन्नत का हाल ब्यान करते हुए लिखा गया है की –

      “यही लोग है जिनके रहने के लिए (जन्नत में) बाग़ हैं | इनके मकानों के नीचे नहरें बह रही होंगी | वहां सोने के कंकन पहिनाए जायेंगे और वह महीन और मोटे रेशमी हरे कपडे पहिनेंगे, वह तख्तों पर तकिया लगाए हुए बैठेंगे | अच्छा बदला है क्या खूब आराम है खुदाई जन्नत में ?”

      (कुरान पारा १६ सुरह कहफ़ ४ आयत ३१)

      ………………………………………….यहाँ तुमको (जन्नत में) ऐसा आराम है की न तो तुम भूखे रहोगे न नंगे ||११८||

      …………………………………………………………….और यहाँ न तुम प्यासे ही होवोगे और न ही धुप में रहोगे ||११९||

      (कुरान पारा १६ सुरह ताहाल आयत ११८-११९)

      ……….……………………………………………………………………..……सफ़ेद रंग (शराब) पीने वालों को मजा देगी ||46||

      ……………………………………………………………………………………………न उससे सर घूमते हैं और न उससे बकते हैं ||४७||

      ………………………………………………………उनके पास नीची निगाह वाली बड़ी आँखों वाली औरतें (हुरें) होंगी ||४८||

      (कुरान पारा २३ सुरह साफ़फात रुकू २)

      …………………………………………………………….वहां जन्नत में नौकरों से बहुत से मेवे और शराब मंगवाएंगे ||५१||

      ………………………………………………..इनके पास नीची नजर वाली हूरें (बीबियाँ) होंगी और जो हमउम्र होंगी ||५२||

      (कुरान पारा १८ सुरह साद)

      आगे देखिये कुरान में खुदा ने कहा है की-

      ………………………………………………..“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरों से हम उनका ब्याह कर देंगे” ||४७||

      (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

      ……………………………………………………………………………उनके पास लौंडे हैं जो हमेशा लौंडे ही बने रहेंगे ||१८||

      (कुरान पारा २७ सुरह वाकिया)

      ……………………………..उन पर चांदी के गिलास और बर्तनों का दौर चलता होगा की वह शीशे की तरह होंगे ||१५||

      ………………………………………………………….और वहां उनको प्याले पिलाए जायेंगे जिनमें सौंठ मिली होगी ||१७||

      (कुरान पारा २९ सुरह दहर)

      ……………………………………………………………………………………..उनके नजदीक नौजवान लड़के फिरते हैं ||१९||

      ………………………………………………………………………………उनका परवरदिगार उन्हें पाक शराब पिलावेगा ||२१||

      (कुरान पारा ३० सुरह ततफीफ)

      ……………………………………………………………………………………………………उनमें कपूर की मिलावट होगी ||५||

      (कुरान सुरह दहर आयत ५)

      …………………………………………………………………………………….”जन्नत में इगलामबाजी लौंडे बाजी होगी” ||६||

      (दरमुख्तार जिल्द ३ सफा १७१)

      …………………………………………क्या खुबसूरत गिलमों (लौंडों) का जन्नत में इसी प्रकार इस्तेमाल किया जाएगा ?

      “लाइलाहइल्लिल्लाह……..”- कहने वाला चोरी और जिना (व्यभिचार) भी करे तो भी जन्नत में ही दाखिल होगा” |

      (मिश्कात किताबुलईमान जिल्द १ सफा १२,१३ हदीस न० २४)

      हजरत तलक बिन अली फरमाते हैं की नबी करीम सलेअल्लाहु वलैहि असल्लम ने फरमाया की-

      “जब मर्द अपनी बीबी को अपनी हाजत (सम्भोग) के लिए बुलाये तो औरत उसके पास चली जावे ख्वाह्तनूर पर ही क्यों न हो” |

      (तिरमिजी शरीफ हिस्सा १ सफा २३२ (१०२२ हदीस))

      मतलब तो यह है की ख्वाह वह किसी भी काम में मशगुल हो उसका छोड़ कर चली आये और उसकी ख्वाहिश को पामाल न करे अर्थात ठुकरावे नहीं |

      http://aryamantavya.in/women-in-islam/

  78. तथा उसे शिक्षा देने को अनिवार्य किया है, पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”इल्म को प्राप्त करना हर मुसलमान पर अनिवार्य है। ” (सुनन इब्ने माजा 181 हदीस नं.:224)

    इसी प्रकार उसकी अच्छी तरबियत (प्रशिक्षण) का आदेश दिया है और उसे जन्नत में जाने का कारण बताया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”जिसने तीन लड़कियों की किफालत की, फिर उनको प्रशिक्षित किया, उनकी शादियाँ कर दी और उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो उसके लिए जन्नत है। ” (सुनन अबू दाऊद 3338 हदीस नं.: 5147)

     इस्लाम धर्म पवित्रता और सफार्इ-सुथरार्इ का धर्म है:

    1- हिस्सी पवित्रता जैसे कि शिर्क से पवित्रता, अल्लाह ताअला का फरमान है: ”शिर्क महा पाप है।

     रियाकारी से पवित्रता, अल्लाह तआला का फरमान है : ” उन नमाजियों के लिए अफसोस (और वैल नामी जहन्नम की जगह) है। जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल हैं। जो दिखावे का कार्य करते हैं। और प्रयोग में आने वाली चीजे़ं रोकते हैं। ” (सूरतुल माऊन)

     खुद पसन्दी, अल्लाह ताआला का फरमान है : ”और लोगों के सामने (गु़रुर से) अपना मुँह न फुलाना और ज़मीन पर अकड़ कर न चलना क्योंकि अल्लाह किसी अकड़ने वाले और इतराने वाले को दोस्त नहीं रखता, और अपनी चाल-ढाल में मियाना रवी अपनाओ और दूसरों से बोलने में अपनी आवाज़ धीमी रखो क्योंकि आवाज़ों में तो सब से बुरी आवाज़ गधों की है। ” (सूरत लुक़मान :18)

     गर्व से पवित्रता, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”जिसने गर्व के कारण अपने कपड़े को घसीटा, अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उसकी ओर नहीं देखेगा। ” (सहीह बुख़ारी 31340 हदीस नं.:3465)

     घमण्ड से पवित्रता, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”जिस आदमी के दिल में एक कण के बराबर भी घमण्ड होगा वह जन्नत में नहीं जाए गा। एक आदमी ने पूछा : ऐ अल्लाह के पैगम्बर! आदमी पसन्द करता है कि उसके कपड़े अच्छे हों, उसके जूते अच्छे हों, आप ने फरमाया :”अल्लाह तआला जमील (खूबसूरत) है और जमाल (खूबसूरती) को पसन्द करता है, घमण्ड हक़ को अस्वीकार करने और लेागों को तुच्छ समझने को कहते हैं। ” (सहीह मुसिलम 193 हदीस नं.:91)

     हसद (डाह, र्इष्र्या) से पवित्रता, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : ”लोगो हसद से बचो, क्यों कि हसद नेकियों को ऐसे ही खा जाती है, जैसे आग लकड़ी को खा जाती है, या आप ने फरमाया : घास-फूस को खा जाती है।

    2- मानवी (आंतरिक) तहारत, अल्लाह तआला का फरमान है : ”ऐ र्इमानदारो! जब तुम नमाज़ के लिये खड़े हो तो अपने मुँह और कोहनियों तक हाथ धो लिया करो और अपने सिर का मसह कर लिया करो और टखनों तक अपने पाँवों को धो लिया करो और अगर तुम हालते जनाबत में हो तो तुम तहारत (ग़ुस्ल) कर लो (हाँ) और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुम में से कोर्इ पाख़ाना करके आएया औरतों से हमबिस्तरी की हो और तुमको पानी न मिल सके तो पाक मिटटी से तयम्मुम कर लो यानी (दोनों हाथ धरती पर मारकर) उससे अपने मुँह और अपने हाथों का मसह कर लो, अल्लाह तो ये चाहता ही नहीं कि तुम पर किसी तरह की तंगी करे बलिक वह यह चाहता है कि तुम्हें पाक व पाकीज़ा कर दे और तुम पर अपनी नेमतें पूरी कर दे ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ। ” (सूरतुल मार्इदा :6)

    अबू हुरैरा रजि़यल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : यह आयत क़ुबा वालों के बारे में उतरी : ”उस में ऐसे लोग हैं जो अधिक पवित्रता को पसंद करते हैं और अल्लाह तआला भी पवित्रता हासलि करने वालों को पसंद करता है। ” (सूरतुत्तौबा :108) आप ने फरमाया : वो लोग पानी से इसितंजा करते थे तो उनके बारे में यह आयत उतरी। ” (सुनन तिर्मिज़ी :5280 हदीस नं.:3100)

     इस्लाम धर्म आन्तरिक शक्ति वाला धर्म है जो उसे इस बात का सामर्थी बनाता है कि वह दिलों में घर कर जाता है और बुद्धियों पर छा जात है, यही कारण है कि उसे तेज़ी से फैलते हुए और उसे स्वीकार करने वालों की बहुतायत देखने में आती है, जबकि इस मैदान में मुसलमानों की तरफ से ख़र्च किया जाने वाला भौतिक और आध्यातिमक सहायता कमज़ोर है, इसके विपरीत इस्लाम के दुश्मन और द्वेषी उसका विरोध करने, उसे बदनाम करने और लोगों को उस से रोकने के लिए भौतिक और मानव संसाधन का प्रयोग कर रहे हैं, किन्तु इन सब के बावजूद लोग इस्लाम में गुट के गुट प्रवेश कर रहे हैं, यदा कदा ही इस्लाम में प्रवेश करने वाला उस से बाहर निकलता है, इस शक्ति का, बहुत से मुसतशरेक़ीन के इस्लाम में प्रवेश करने का बड़ा प्रभाव रहा है, जिन्हों ने दरअसल इस्लाम का अध्ययन इस लिए किया था कि उसमें कमज़ोर तत्व खोजें, लेकिन इस्लाम की खूबसूरती, उसके सिद्धांतों की सत्यता और उनका शुद्ध फितरत और स्वस्थ बुद्धि के अनुकूल होने का————-

    1. तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे .- डॉ गुलाम जेलानी

      May 18, 2015 Rishwa Arya 10 Comments Edit

      जो लोग दूर दराज मुल्कों में सफर करने के आदी हैं वो इस हकीकत से आगाज़ हैं कि सूरज गुरूब नहीं होता . जब पाकिस्तान में सूरज डूब जाता है तो मिश्र में लोग शाम की चाय पी रहे होते हैं. वहीं इंगलिश्तान में दोपहर का खाना खा रहे होते हैं और अमरीका के बाज हिस्सों में सूरज निकल रहा होता है . अगर आप बीस काबिल एहातिमाद घड़ियाँ साथ रखकर एक तियारे में विलायत चले जाएँ तो वहां जा कर आप हैरान हो जायेंगे की जब यह तमाम घड़ियाँ शाम के आठ बजा रही होंगी वहां दिन का डेढ़ बज रहा होगा अगर आप एक तेज रफ़्तार रोकेट में बैठ कर अमरीका चले जाएँ तो यह देख कर आपकी हैरत और बढ़ जायेगी कि इन घड़ियों के मुताबिक सूरज तुलुह हो जाना चाहिए था लेकिन वहां डूब रहा होगा अगर इन्ही घड़ियों के साथ आप जापान की तरफ रवाना हो जाएँ तो पाकिस्तानी वकत के मुताबिक वहां एनितीन दोपहर सूरज डूब रहा होगा . खुलासा यह की रात के ठीक बारह बजे इंगलिस्तान में शाम के शाम के साढ़े पांच बज रहे होंगे और हवाई में सुबह के साढ़े पांच .

      आज घर घर रेडियो मौजूद है रात के नौ बजे रडियो के पास बैठ के पहले इंगलिस्तान लगायें फिर टोकियो और इस के बाद अमरीका आपको मन में यकीन हो जाएगा की जमीन का साया (रात ) नसब (आधा ) दुनिया पर है और नसब (आधा ) पर आफताब पूरी आबोताब . के साथ चमक रहा है .

      इस हकीकत की वजाहत के बाद आप ज़रा यह हदीस पढ़ें –

      अबुदर फरमाते हैं की एक मर्तबा गुरूब आफताब के बाद रसूल आलः ने मुझ से पूछा क्या तुम जानते हो कि ग़ुरबत के बाद आफताब कहाँ चला जाता है . मैने कहा अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं आपने फ़रमाया की सूरज खुदाई तख़्त ने नीचे सजदे में गिर जाता है और दुबारा तालोह होने की इजाजत मांगता है और उसे मुशरफ से दोबारा निकलने की इजाजत मिल जाती है लेकिन एक वकत ऐसा भी आयेगा की उसे इजाजत नहीं मिलेगी . और हुकुम होगा की लौट जाओ जिस तरफ से आये हो ……… वह मगरब की तरफ से निकलना शुरू करेगा और.तफसीर यही है .

      अगर हम रात के दस बचे पाकिस्तान रेडियो से दुनिया को या हदीस सुना दें और कहें की इस वकत सूरज अर्श के नीचे सजदे में पड़ा हुआ है तो सारी मगरबी दुनिया खिलखिला कर हंस देगी और वहाँ के तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे

      http://aryamantavya.in/when-people-will-leave-islam/

  79. उनके मुसलमान हो जाने में प्रभावकारी रहा। इस्लाम के दुश्मनों ने भी इस बात की शहादत दी है कि वह सत्य धर्म है, उन्हीं में से (डंतहवसपवनजी) है जो इस्लाम की दुश्मनी में कुख्यात है, किन्तु क़ुरआन की महानता ने उसे सच्चार्इ को कहने पर विवश कर दिया : ”रिसर्च करने वालों (अन्वेषकों) का इस बात पर इत्तिफाक़ है कि महान धार्मिक ग्रन्थों में क़ुरआन एक स्पष्ट श्रेष्ठ पद रखता है, जबकि वह उन तारीखसाज़ (इतिहास रचनाकार) ग्रन्थों में सब से अन्त में उतरने वाला है, लेकिन मनुष्य पर आश्चर्यजनक प्रभाव छोड़ने में वह सब से आगे है, उसने एक नवीन मानव विचार को असितत्व दिया है, और एक उत्Ñष्ट नैतिक पाठशाला की नीव रखी है।

     इस्लाम धर्म सामाजिक समतावाद का धर्म है जिसने मुसलमान पर अनिवार्य कर दिया है कि वह अपने मुसलमान भार्इयों की सिथतियों का चाहे वे कहीं भी रहते बसते हों, ध्यान रखे, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ”मोमिनों का उदाहरण आपस में एक दूसरे से महब्बत करने, एक दूसरे पर दया करने, और एक दूसरे के साथ हमदर्दी और मेहरबानी करने में, शरीर के समान है कि जब उसका कोर्इ अंग बीमार हो जाता है तो सारा शरीर जागने और बुखार के द्वारा उसके साथ होता है। ” (बुख़ारी व मुसिलम )

    तथा मुसीबतों और संकटों में उनके साथ खड़ा हो और उनका सहयोग करे, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ”एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिए एक दीवार के समान है जिसका एक हिस्सा दूसरे हिस्सा को शक्ति पहुँचाता है। और आप ने अपने एक हाथ की अंगुलियों को दूसरे हाथ की अंगुलियों में दाखिल किया। ” (सहीह बुख़ारी 1863 हदीस नं.:2314)

    तथा आवश्यकता पड़ने पर उनकी सहायता करने का आदेश दिया है : ”और अगर वो धर्म के मामले में तुम से मदद मांगें तो तुम पर उनकी मदद करना लाजि़म व वाजिब है मगर उन लोगों के मुक़ाबले में (नहीं) जिनमें और तुम में बाहम (सुलह का) अह्द व पैमान है और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह (सबको) देख रहा है। ” (सूरतुल अनफाल :72)

    तथा उन्हें असहाय छोड़ देने से रोका है, अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

    ”जो अदमी भी किसी मुसलमान की ऐसी जगह में सहायत और मदद करना छोड़ देता है जहाँ उसकी हुर्मत को पामाल किया जाता है और उसकी बे-इज़्ज़ती की जाती है, तो अल्लाह तआला ऐसे आदमी को ऐसी जगह पर असहाय छोड़ देगा जहाँ वह उसकी सहायता और सहयोग को पसंद करता है। तथा जो आदमी किसी मुसलमान की ऐसी जगह में सहायता और सहयोग करता है जहाँ उसकी हुर्मत को पामाल किया जाता है और उसकी बे-इज़्ज़ती की जाती है, तो अल्लाह तआला ऐसे आदमी की ऐसी जगह पर सहायता और मदद करेगा जहाँ वह उसकी सहायता को पसंद करता है। ” (सुनन अबू दाऊद 4271 हदीस नं.:4884)

    1. इसमें खुदा ने हुक्म दिया है की-

      “अगर कोई गुंडा किसी भले आदमी की औरत से जीना बिलजब्र (बलात्कार) कर डाले तो उस शरीफ आदमी को भी चाहिए की वह भी उस गुंडे की शरीफ औरत से बलात्कार करे”|

      क्या यही खुदाई इन्साफ है ? की बुराई करने वाले को दंड न देकर उसकी निर्दोष बीबी पर वैसा गुण्डापन करे ? क्या बुराई का बदला बुराई दुनिया में कोई शराफत का कानून है ?

      औरतो की गुंडों से रक्षा क्या ऐसे ही इस्लाम में होती है ? क्या शरीफ औरतों की यही इज्जत अर्थात अस्मत इस्लाम में कायम है ?

      कुरान का एक आदेश और भी देखने योग्य है देखिये कुरान में खुदा का आदेश है की-

      “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं अपनी खेती में जिस तरह चाहो जाओ और अपने लिए आइन्दा का भी बन्दोबस्त रखो |

      और अल्लाह से डरो और जाने रहो की (तुम्हे) उसके सामने हाजिर होना है | ऐ पैगम्बर ! सभी ईमान वालों को यह खुशखबरी सूना दो” |

      (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २८ आयत २२३)

      इसमें औरत से चाहे जिस तरह चाहे जिस और से चित या पट्ट वाली स्थिति में सम्भोग करने को खुशखबरी बताया गया है |

      इस आयत पर कुरान के मशहूर तजुर्माकार शाहअब्दुल कादरी साहब देहलवी ने हाशिये पर हदीस दी है की यह आयत क्यों बनी है ? (देखो दिल्ली का छपा कुरान) वहां लिखा है की-

      “यहूदी लोग कहते थे की यदि कोई शख्स औरत से इस तरह जमाव (सम्भोग) करे की औरत की पुष्ट (पीठ) मर्द के मुहँ की जानिब (तरफ) हो तो बच्चा जौल यानी भेंगा पैदा होता है | एक बार हजरत ऊमर राजी उल्लाह अन्स से ऐसा हुआ तो उन्होंने हजरत सलाल्लेहू वलैही असल्लम (मौहम्मद साहब) से अर्ज किया तो यह आयत नाजिल हुई की-“यानी अपनी बीबी से हर तरह जमाअ (सम्भोग) दुरुस्त है”|

      कुरान की इस आयत के सम्बन्ध में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हफवातुल मुसलमीन” में मौलाना शहजादा मिर्जा अहमद सुलतान साहब मुस्वफवी चिश्ती “खाबर गुडगांवा निवासी” ने सफा ४० व् ४१ पर निम्न प्रकार लिखा है-

      एक दिन जनाब उमर फारुख रसुलल्लाह के पास हाजिर हुवे, और अर्ज किया की- या रसूलअल्लाह ! में हलाक हो गया |

      हुजुर ने फरमाया की- तुम्हे किस चीज ने हलाक किया ?

      उसने (मुहम्मद साहब से) अर्ज किया की- “रात मेने अपनी सवारी को औंधा कर लिया था”|

      इब्नअब्बास कहते है की-

      रसूलअल्लाह यह सुन कर चुप रह गए | बस ! अल्लाह ताला ने “वही” भेज दी रसूलअल्लाह की तरफ |

      नोट:- यहाँ वही अर्थात- उसी आयत का जिकर है जो ऊपर कुरान पारा २ सूरते बकर की आयत न० २२३ पर लिखी है की-

      “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं वास्ते तुम्हारे जाओ अपने खेत में और जिधर से चाहो और नफस का चाहना करो | बस! अल्लाह से डरो और उसकी सुनो”|

      इसमें औरत से गुदा मैथुन की बात बिलकुल स्पष्ट रूप से खरी साबित हो गई जो कोई भी औरत अपने मुह से ऐसी बात कह नहीं सकती है |

      आगे देखिये कुरान का फरमान-

      “तुम्हारे लिए रोजों की रात में भी अपनी औरत से हम बिस्तरी (सम्भोग) करना हलाल है”|

      (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २३ आयत १८७)

      एक रवायत में हजरत इब्नअब्बास फरमाते हैं की—

      ……………………………………………..“चौपाये के साथ बुरा फ़ैल (कर्म) करे तो उस पर अहद (जुर्म) लागू नहीं होता”|

      (तिरमिजी शरीफ सफा २९० हिस्सा १ हदीस १२९४)

      हमारे विचार से यह रवायत कुछ ज्यादा ही सही हैं क्योंकि इसमें कुछ जुर्रत से ज्यादा ही हिम्मत से काम लिया गया है |

      आगे देखिये-

      “हजरत आयशा रजीउल्लाह अंस से रवायत है की नबीसलालेहु वलैही अस्लम (हजरत मौहम्मद साहब) ने मुझसे उस वक्त निकाह किया की जब मेरी उम्र सिर्फ ६ साल की थी”|

      (बुखारी शरीफ हिस्सा दूसरा सफा १७८ हदीस ४११)

      आगे देखिये कुरान के आदेश-

      …………………………………………………………………..और वह लोग जो अपनी शर्मगाहो की हिफाजत करते हैं ||५||

      ……………………………………………………………….मगर अपनी बीबियों और बंदियों के बारे में इल्जाम नहीं है ||६||

      (कुरान पारा २ सुरह मोमिनून आयत ५ व् ६)

      इससे प्रकट है की-

      “इस्लाम में नारी जाती को माता-पुत्री के रूप में नहीं वरन केवल विषयभोग के लिए पत्नी के ही रूप में (मर्दों की अय्याशी के साधन के रूप में) देखा व् व्यवहार में लाया जाता है |

      इस्लाम में उसकी इसके आलावा अन्य कोई स्थिति नहीं है | मर्द जब भी चाहे उसे तलाक दे देवे या बदल ले अथवा उससे जैसा चाहे वैसा व्यवहार करे, इस्लामी कानून या मान्यताएं औरत को कोई हक़ प्रदान नहीं करती, सिवाय इसके की वह जिन्दगी भर मर्द की गुलामी करती रहे | और उसे खुश रखे”

      भाइयो ! यह तो इस दुनियां का हाल रहा, अब जरा खुदा के घर “जन्नत” में भी औरतों की दशा को देख लेवें- कुरान में जन्न्र का हाल बयान करते हुए जन्नती मुसलमानों के लिए लिखा है की-

      “उसके पास नीची नजर वाली हरें होंगी और हमउम्र होंगी”| (कुरान पारा २३, सुरह साद, आयत ५२)

      …………………………………………………………उनके पास नीची नजर वाली बड़ी-बड़ी आँखों वाली औरतें होंगी ||४८||

      ……………………………………………………………………………………………………..गोया वहां छिपे अंडे रखे हैं ||४९||

      (कुरान सुरह साफ़फात आयत ४८ व् ४९)

      …………………………………………………….“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरो से हम उनका विवाह कर देंगे” |

      (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

      इनमे पाक हूरें होंगी जो आँख उठा कर भी नहीं देखेंगी और जन्नतवासियों से पहिले न तो किसी आदमी ने उन पर हाथ डाला होगा और न जिन्न ने” ||५६||

      “………………………………………………………………………………वह हूरें पेश की जायेंगी जो खीमें में बन्द हैं” ||७२||

      (कुरान सुरह रहमाना)

      ………………………………………………………………जन्न्तियों के लिए हमने हूरों की एक ख़ास सृष्टि बनाई है ||३५||

      …………………………………………………………………………………………………….फिर इनकी क्वारी बनाया है ||३६||

      (कुरान सुरह वाकिया)

      …………………………………………………………………………………………………………..नौजवान औरतें हमउम्र ||३३||

      ……………………………………………………………………………………………अछूती हूरें और छलकते हुए प्याले ||३४||

      (कुरान सुरह नहल आयत ३५,३६,३७,३३,३४)

      कुरानी खुदा के उक्त वर्णन के समर्थन में “मिर्जा हैरत देहलवी” ने अपनी किताब मुकद्द्माये तफसीरुल्कुरान में पृष्ठ ८३ पर इस्लामी बहिश्त का हाल लिखा है (जिसे शायद वे वहां जाकर देख भी आये हैं) वे लिखते हैं की हजरत अब्दुल्ला बिन उमर ने फरमाया है की-

      “जन्नत अर्थात स्वर्ग में रहने वालों में सबसे छोटे दर्जे का वह आदमी होगा की उसके पास ६०,००० सेवक होंगे और हर सेवक का काम अलग-अलग होगा | हजरत ने फरमाया की हर व्यक्ति (मुसलमान) ५०० हूरों, ४,००० क्वारी औरतों और ८,००० शादीशुदा औरतों से ब्याह करेगा”|

      नोट- जब छोटे दर्जे के लोगों का यह हाल है तो फिर हम जानना चाहेंगे की बड़े दर्जे के लोगों का भी खुलासा कर देते तो अच्छा रहता |

      (इतनी अय्याशी के अलावा भी) स्वर्ग में एक बाजार है जहाँ पुरुषों और औरतों के हुश्न का व्यापार होता है | बस! जब कोई व्यक्ति किसी सुन्दर स्त्री की ख्वाहिश करेगा तो वह उस बाजार में आवेगा जहाँ बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जमा है और वे हूरें व्यक्ति से कहेंगी की-

      “मुबारक है वह शख्स जो हमारा हो और हम उसकी हों |

      इसी मजमून पर हजरत अंस ने फरमाया की-

      “हूरें कहती हैं की हम सुन्दर दासियाँ हैं, हम प्रतिष्ठित पुरुषों के लिए ही सुरक्षित हैं” |

      इससे तो यहीं मालुम होता है की-

      “जन्नत में भी रंडियों के चकले चलते है”

      यह यहाँ पर इन उपरोक्त वाक्यों से बिलकुल स्पष्ट है |

      भाइयों ! ये है जन्नत के नज़ारे ! इस लोक में भी औरतों से ब्याभिचार और मरने के बाद अल्लाह मियाँ के पास बहिश्त में भी हजारो औरतों से जिना (सम्भोग) होगा |

      क्या इससे यह साबित नहीं हैं की इस्लाम में जिनाखोरी ही जीवन का मुख्य व अंतिम उद्देश्य है ? यहाँ भी और अरबी खुदा के घर जन्नत में भी | कुरानी जन्नत में औलाद चाहने पर कुरान हमल रह जावेगा और फ़ौरन औलाद होकर जवान बन जावेगी | यह सब कुछ सिर्फ एक घंटे में ही हो जावेगा |

      खुदा की जादूगरी का यह करिश्मा सिर्फ वहीँ जन्नत में देखने को मिलेगा | न औरतों को नौ महीनों तक तकलीफ भोगनी पड़ेगी न वहाँ पैदा शुदा औलाद को पालना पड़ेगा |

      (तिरमिजी शरीफ, हदीस ७२९ जिल्द दोयम)

      इस्लामी जन्नत में सिवाय औरतों से अय्याशी करने और शराब… पीने के अलावा मुसलामानों को और कोई काम धंधा नहीं होगा, कुरान में जन्नत का हाल ब्यान करते हुए लिखा गया है की –

      “यही लोग है जिनके रहने के लिए (जन्नत में) बाग़ हैं | इनके मकानों के नीचे नहरें बह रही होंगी | वहां सोने के कंकन पहिनाए जायेंगे और वह महीन और मोटे रेशमी हरे कपडे पहिनेंगे, वह तख्तों पर तकिया लगाए हुए बैठेंगे | अच्छा बदला है क्या खूब आराम है खुदाई जन्नत में ?”

      (कुरान पारा १६ सुरह कहफ़ ४ आयत ३१)

      ………………………………………….यहाँ तुमको (जन्नत में) ऐसा आराम है की न तो तुम भूखे रहोगे न नंगे ||११८||

      …………………………………………………………….और यहाँ न तुम प्यासे ही होवोगे और न ही धुप में रहोगे ||११९||

      (कुरान पारा १६ सुरह ताहाल आयत ११८-११९)

      ……….……………………………………………………………………..……सफ़ेद रंग (शराब) पीने वालों को मजा देगी ||46||

      ……………………………………………………………………………………………न उससे सर घूमते हैं और न उससे बकते हैं ||४७||

      ………………………………………………………उनके पास नीची निगाह वाली बड़ी आँखों वाली औरतें (हुरें) होंगी ||४८||

      (कुरान पारा २३ सुरह साफ़फात रुकू २)

      …………………………………………………………….वहां जन्नत में नौकरों से बहुत से मेवे और शराब मंगवाएंगे ||५१||

      ………………………………………………..इनके पास नीची नजर वाली हूरें (बीबियाँ) होंगी और जो हमउम्र होंगी ||५२||

      (कुरान पारा १८ सुरह साद)

      आगे देखिये कुरान में खुदा ने कहा है की-

      ………………………………………………..“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरों से हम उनका ब्याह कर देंगे” ||४७||

      (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

      ……………………………………………………………………………उनके पास लौंडे हैं जो हमेशा लौंडे ही बने रहेंगे ||१८||

      (कुरान पारा २७ सुरह वाकिया)

      ……………………………..उन पर चांदी के गिलास और बर्तनों का दौर चलता होगा की वह शीशे की तरह होंगे ||१५||

      ………………………………………………………….और वहां उनको प्याले पिलाए जायेंगे जिनमें सौंठ मिली होगी ||१७||

      (कुरान पारा २९ सुरह दहर)

      ……………………………………………………………………………………..उनके नजदीक नौजवान लड़के फिरते हैं ||१९||

      ………………………………………………………………………………उनका परवरदिगार उन्हें पाक शराब पिलावेगा ||२१||

      (कुरान पारा ३० सुरह ततफीफ)

      ……………………………………………………………………………………………………उनमें कपूर की मिलावट होगी ||५||

      (कुरान सुरह दहर आयत ५)

      …………………………………………………………………………………….”जन्नत में इगलामबाजी लौंडे बाजी होगी” ||६||

      (दरमुख्तार जिल्द ३ सफा १७१)

      …………………………………………क्या खुबसूरत गिलमों (लौंडों) का जन्नत में इसी प्रकार इस्तेमाल किया जाएगा ?

      “लाइलाहइल्लिल्लाह……..”- कहने वाला चोरी और जिना (व्यभिचार) भी करे तो भी जन्नत में ही दाखिल होगा” |

      (मिश्कात किताबुलईमान जिल्द १ सफा १२,१३ हदीस न० २४)

      हजरत तलक बिन अली फरमाते हैं की नबी करीम सलेअल्लाहु वलैहि असल्लम ने फरमाया की-

      “जब मर्द अपनी बीबी को अपनी हाजत (सम्भोग) के लिए बुलाये तो औरत उसके पास चली जावे ख्वाह्तनूर पर ही क्यों न हो” |

      (तिरमिजी शरीफ हिस्सा १ सफा २३२ (१०२२ हदीस))

      मतलब तो यह है की ख्वाह वह किसी भी काम में मशगुल हो उसका छोड़ कर चली आये और उसकी ख्वाहिश को पामाल न करे अर्थात ठुकरावे नहीं |

      http://aryamantavya.in/women-in-islam/

  80. क्या आपने भी सुना था कि खाड़ी युद्ध के दौरान तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने इस्लाम अपना लिया था। यह सच है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बदलाव के पीछे कौन हैं? जिन लोगों ने इस्लाम की यह दावत इन अमेरिकी सैनिकों तक पहुंचाई उनमें से एक अहम शख्सियत हैं डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्स। अबू अमीना फीलिप्स जमैका में जन्मे और पढ़ाई कनाड़ा में की । फिलहाल वे दुबई अमेरिकन यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं। अबू अमीना पहले ईसाई थे लेकिन 1972 में इस्लाम अपनाकर वे मुस्लिम बन गए।

    बिलाल बताते हैं-‘पहले खाड़ी युद्ध के दौरान मैंने नौसेना के धार्मिक विभाग में सऊदी रेगिस्तान में काम किया। अमेरिकी सैनिक इस्लाम के बारे में बहुत सी गलतफहमियां रखते थे। अमेरिका में उन्हें आदेश दिए गए थे कि वे मस्जिदों के करीब ना जाएं। हम उन्हें मस्जिदों में ले गए। मस्जिदों के अंदर की सादगी और माहौल को देखकर वे बेहद प्रभावित हुए। दरअसल जब उन्होंने पहली बार सऊदिया की जमीन पर कदम रखा था तो उन्हें यह एक अजीब जगह लगी थी जहां महिलाएं काला हिजाब पहने नजर आती थीं। लेकिन सऊदी अरब में रहने पर उन सैनिकों को एक खास अनुभव हुआ और ये उनके लिए आंखें खोल देने वाला अनेपक्षित अनुभव था। अमेरिकी सैनिक वहां के लोगों की मेहमाननवाजी देखकर आश्चर्यचकित रह गए। लोग उनके लिए ताजा खजूर और दूध लाते थे और उनका बेहद सम्मान किया जाता था। अमेरिकी सैनिकों ने ऐसी मेहमाननवाजी और आत्मीय व्यवहार कोरिया और जापान में नहीं देखा था जहां उनका बरसों तक पड़ाव रहा था।’

    बिलाल बताते हैं-मैं वापस अमेरिका लौट आया और मैंने अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट में इस्लामिक चैप्टर्स की स्थापना की। मेरे सऊदी में रहने के दौरान तकरीबन तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने इस्लाम अपनाया। शायद आप मेरी इस बात पर भरोसा ना करें कि दुनिया में सिर्फ सऊदी अरब ही ऐसा देश है जहां अमेरिकी सैनिक अपने पीछे वार बेबीज(युद्ध के कारण अनाथ हुए बालक) नहीं छोड़ के आए। ये अमेरिकी सैनिक अपने तंबुओं में इस्लामिक सिद्धांतों और व्यवहार पर खुलकर चर्चा करते थे। ये मुस्लिम सैनिक अमेरिकी सेना में इस्लाम के दूत हैं। सऊदी अरब ने पश्चिमी देशों पर इस्लामी की अच्छी छाप छोड़ी है। मैंने देखा कि सऊदी अरब अपने नागरिकों की देखभाल अमेरिकी नागरिकों से बेहद अच्छे ढ़ंग से करता है। जहां बीस लाख अमेरिकी नागरिक आज भी गलियों और फुटपाथ पर सोते हैं, वहीं सऊदी अरब का एक भी नागरिक फुटपाथ पर नहीं सोता।

    यू आए इस्लाम की आगोश में
    अबू अमीना पहले ईसाई थे। उनका जन्म 1947 में जमैका में हुआ। वे अच्छे पढ़े लिखे परिवार से हैं। इनके माता-पिता दोनों टीचर थे। उनके दादा जी के भाइयों में से एक चर्च के मिनिस्टर और बाइबिल के विद्वान थे। इनका परिवार खुले विचारों वाला था। वे हर सण्डे अपनी मां के साथ चर्च जाते थे। जब वे ग्यारह साल के थे तो इनका परिवार कनाड़ा पलायन कर गया। पहले इनका नाम इनाके था। जब वे बायो केमेस्ट्री से ग्रेजुएशन कर रहे थे,उसी दौरान वे साम्यवादी विचारधारा के लोगों के सम्पर्क में आए। साम्यवाद का आकषर्ण उन्हें चीन भी ले गया। चीन से लौटकर वे कनाड़ा की साम्यवादी पार्टी में शामिल हो गए। साम्यवादी पार्टी में रहकर उन्होंने इसमें कई तरह की कमियां और दोष देखे। उन्हें उस पार्टी के नेताओं में अनुशासन की कमी नजर आती थी। उसका जवाब उन्हें यह मिलता था कि क्रांति के बाद सब ठीक हो जाएगा। पार्टी के फंड में से गबन का मामला भी उनके सामने आया। वे शहरी गुरिल्ला लड़ाई सीखने के लिए चीन जाना चाहते थे। लेकिन जो आदमी इनक ा इसके लिए चयन करने आया था वह नशेड़ी था। इन सब बातों ने अबू अमीना का साम्यवाद के प्रति मोह कम कर दिया।
    अमीना बिलाल कैलीफोर्निया भी गए और वहां वे काले लोगों को इंसाफ दिलाने के मकसद से ब्लैक पेंथर्स गुट में शामिल हो गए। लेकिन उन्होंने वहां देखा कि उनमें से ज्यादातर लोग ड्रग्स लेते थे। सुरक्षा कमेटियों के नाम पर वे चंदा इकट करते थे और फिर उन पैसों को ड्रग्स और पार्टियों पर खर्च कर देते थे। अबू अमीना ने अमेरिका में मैल्कल एक्स, अलीजा मुहम्मद और उनके बेटे वरीथ दीन मुहम्मद क ो इस्लाम की ओर बढ़ते देखा। उन्होंने मुस्लिम बने मैल्कल एक्स की जीवनी पढ़ी। उन्होंने एलीजा मुहम्मद का कुछ साहित्य पढ़ा,पर उसका उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि एलीजा मुहम्मद के साहित्य में गोरे लोगों से जातीय घृणा जबरदस्त थी और एलीजा मुहम्मद का नेशन ऑफ इस्लाम भी इस्लाम की विचारधारा के अनुरूप नहीं था। उनका कहना है-मैं सब गोरे लोगों को शैतान के रूप में नहीं देखना चाहता था। अमीना फिलिप्स को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली किताब सैयद कुतुब की ‘इस्लाम: द मिस अंडरस्टूड रिलीजन’ थी। इस पुस्तक में इस्लाम समाजवाद, साम्यवाद, पूंजीवाद, अर्थव्यवस्था और आध्यात्मि________

    1. तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे .- डॉ गुलाम जेलानी

      May 18, 2015 Rishwa Arya 10 Comments Edit

      जो लोग दूर दराज मुल्कों में सफर करने के आदी हैं वो इस हकीकत से आगाज़ हैं कि सूरज गुरूब नहीं होता . जब पाकिस्तान में सूरज डूब जाता है तो मिश्र में लोग शाम की चाय पी रहे होते हैं. वहीं इंगलिश्तान में दोपहर का खाना खा रहे होते हैं और अमरीका के बाज हिस्सों में सूरज निकल रहा होता है . अगर आप बीस काबिल एहातिमाद घड़ियाँ साथ रखकर एक तियारे में विलायत चले जाएँ तो वहां जा कर आप हैरान हो जायेंगे की जब यह तमाम घड़ियाँ शाम के आठ बजा रही होंगी वहां दिन का डेढ़ बज रहा होगा अगर आप एक तेज रफ़्तार रोकेट में बैठ कर अमरीका चले जाएँ तो यह देख कर आपकी हैरत और बढ़ जायेगी कि इन घड़ियों के मुताबिक सूरज तुलुह हो जाना चाहिए था लेकिन वहां डूब रहा होगा अगर इन्ही घड़ियों के साथ आप जापान की तरफ रवाना हो जाएँ तो पाकिस्तानी वकत के मुताबिक वहां एनितीन दोपहर सूरज डूब रहा होगा . खुलासा यह की रात के ठीक बारह बजे इंगलिस्तान में शाम के शाम के साढ़े पांच बज रहे होंगे और हवाई में सुबह के साढ़े पांच .

      आज घर घर रेडियो मौजूद है रात के नौ बजे रडियो के पास बैठ के पहले इंगलिस्तान लगायें फिर टोकियो और इस के बाद अमरीका आपको मन में यकीन हो जाएगा की जमीन का साया (रात ) नसब (आधा ) दुनिया पर है और नसब (आधा ) पर आफताब पूरी आबोताब . के साथ चमक रहा है .

      इस हकीकत की वजाहत के बाद आप ज़रा यह हदीस पढ़ें –

      अबुदर फरमाते हैं की एक मर्तबा गुरूब आफताब के बाद रसूल आलः ने मुझ से पूछा क्या तुम जानते हो कि ग़ुरबत के बाद आफताब कहाँ चला जाता है . मैने कहा अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं आपने फ़रमाया की सूरज खुदाई तख़्त ने नीचे सजदे में गिर जाता है और दुबारा तालोह होने की इजाजत मांगता है और उसे मुशरफ से दोबारा निकलने की इजाजत मिल जाती है लेकिन एक वकत ऐसा भी आयेगा की उसे इजाजत नहीं मिलेगी . और हुकुम होगा की लौट जाओ जिस तरफ से आये हो ……… वह मगरब की तरफ से निकलना शुरू करेगा और.तफसीर यही है .

      अगर हम रात के दस बचे पाकिस्तान रेडियो से दुनिया को या हदीस सुना दें और कहें की इस वकत सूरज अर्श के नीचे सजदे में पड़ा हुआ है तो सारी मगरबी दुनिया खिलखिला कर हंस देगी और वहाँ के तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे

      http://aryamantavya.in/when-people-will-leave-islam/

  81. अमेरिका की पूर्व मॉडल, फिल्म एक्टे्रस, फिटनेस इंस्ट्रेक्टर सारा बॉकर ने अपनी ऐशो आराम और विलासितापूर्ण जिंदगी को छोड़कर इस्लाम अपना लिया। बिकनी पहनकर खुद को पूरी तरह आजाद कहने वाली सारा अब खुद इस्लामी परिधान ‘हिजाब’ पहनती हैं और कहती है कि महिला की सच्ची आजादी पर्दा करने (हिजाब) में है ना कि आधे -अधूरे कपड़े पहनकर अपना जिस्म दिखाने में।
    पढि़ए सारा बॉकर की जुबानी कि कैसे वो अपने ठाट-बाठ वाली जिंदगी को छोड़कर इस्लाम की शरण में आई।
    मैं अमेरिका के हार्टलैंड में जन्मी। अपने आसपास मैंने ईसाई धर्म के विभिन्न पंथों को पाया। मैं अपने परिवार के साथ कई मौकों पर लूथेरियन चर्च जाती थी। मेरी मां ने मुझे चर्च जाने के लिए काफी प्रोत्साहित किया और मैं इस तरह लूथेरियन चर्च की पक्की अनुयायी बन गई। मैं ईश्वर में पूरा यकीन करती थी लेकिन चर्च से जुड़े कई रिवाज मुझे अटपटे लगते थे और मेरा इन बातों पर भरोसा नहीं था जैसे कि चर्च में गाना, ईसा मसीह और क्रॉस की तस्वीरों की पूजा और ‘ईसा की बॉडी और खून’ को खाने की परंपरा।
    धीरे-धीरे मैं अमेरिकी जीवनशैली में ढलती गई और और आम अमेरिकी लड़कियों की तरह बड़े शहर में रहने, ग्लेमरस लाइफ-स्टाइल, ऐशो आरामपूर्ण जिंदगी पाने की तलब मुझमें बढ़ती गई। भव्य जीवनशैली की चाहत के चलते ही मैं मियामी के साउथ बीच में चली गई जो कि फैशन का गढ़ था। मैंने वहां समुद्र के किनारे घर ले लिया। अपना ध्यान खुद को खूबसूरत दिखाने पर केन्द्रित करने लगी। मैं अपने सौदंर्य को बहुत महत्व देती थी और ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान खुद की ओर चाहती थी। मेरी ख्वाहिश रहती थी कि लोग मेरी तरफ आकर्षित रहे। खुद को दिखाने के लिए मैं रोज समुद्र किनारे जाती। इस तरह मैं हाई फाई लाइफ स्टाइल और फैशनेबल जीवन जीने लगी। धीरे-धीरे वक्त गुजरता गया लेकिन मुझे एहसास होने लगा कि जैसे-जैसे मैं अपने स्त्रीत्व को चमकाने और दिखाने के मामले में आगे बढ़ती गई, वैसे-वैसे मेरी खुशी और सुख-चैन का ग्राफ नीचे आता गया। मैं फैशन का गुलाम बनकर रह गई थी। मैं अपने खूबसूरत चेहरे का गुलाम बनकर रह गई थी। मेरी जीवनशैली और खुशी के बीच गैप बढ़ता ही गया। मुझे अपनी जिंदगी में खालीपन सा महसूस होने लगा। लगता था बहुत कुछ छूट रहा है। मानो मेरे दिल में सुराख हो। खालीपन की यह चुभन मेरे अंग-अंग को हताश, निराश और दुखी बनाए रखती थी। किसी भी चीज से मेरा यह खालीपन और अकेलापन दूर होता नजर नहीं आता था। इसी निराशा और चुभन के चलते मैंने शराब पीना शुरू कर दिया। नशे की लत के चलते मेरा यह खालीपन और निराशा ज्यादा ही बढ़ते गए। मेरी इन सब आदतों के चलते मेरे माता-पिता ने मुझसे दूरी बना ली। अब तो मैं खुद अपने आप से भागने लगी।
    फिटनेस इन्सट्रक्टर आदि के काम में मुझे जो कुछ पैसा मिलता वह यंू ही खर्च हो जाता। मैंने क/ई के्रडिट कार्ड ले लिए, नतीजा यह निकला कि मैं कर्ज में डूब गई। दरअसल खुद को सुंदर दिखाने पर मैं खूब खर्च करती थी। बाल बनाने, नाखून सजाने, शॉपिंग माल जाने और जिम जाने आदि में सब कुछ खर्च हो गया। उस वक्त मेरी सोच थी कि अगर मैं लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनूंगी तो मुझे खुशी मिलेगी। लोगों के देखने पर मुझे अच्छा लगेगा। लेकिन इस सबका नतीजा उल्टा निकला। इस सबके चलते मेरे दुख, निराशा और बेचैनी का ग्राफ बढ़ता ही गया।
    इन सब हालात से उबरने और इसका इलाज तलाशने के लिए मैंने सालों लगा दिए। मैंने सुकून हासिल करने के लिए मनोविज्ञान, किताबों और एक्सरसाइज आदि का भी सहारा लिया। मुझे इनसे अपने जीवन को सही तरीके से शुरू करने की शक्ति मिली। सुख चैन हासिल करने के लिए मैंने विभिन्न धर्मों का अध्ययन करना शुरू किया। अध्यात्म में दिलचस्पी लेने लगी। मैंने ध्यान और योग को भी समझने की कोशिश की। मैं इस तरफ ज्यादा ही जुट गई, मैं चाहती थी कि मुझे यह स्पष्ट हो जाए कि मुझे क्या करना चाहिए और किस तरह करना चाहिए। मैं अपनी जिंदगी के लिए एक तरीका और नियम चाहती थी लेकिन मैं इस तथाकथित उदारवादी और स्वच्छंदतावादी माहौल में यह हासिल नहीं कर पाई। इसी दौरान अमेरिका में 9/11 वाला आतंकवादी हमला हुआ। इस घटना के बाद इस्लाम पर चौतरफा हमले होने लगे। इस्लामी मूल्यों और संस्कृति पर सवाल उठाए जाने लगे। हालांकि उस वक्त इस्लाम से मेरा दूर-दूर तक का वास्ता भी ना था। इस्लाम को लेकर उस वक्त मेरी सोच थी कि जहां स्त्रियों को कैद रखा जाता है, पीटा जाता है तथा यह दुनियाभर में आतंक का कारण है। इस बीच मैं अंतरराष्ट्रीय संबंधों का भी अध्ययन करने लगी। अमेरिकी इतिहास और इसकी विदेश नीति का बदसूरत सत्य को भी जाना। जातीय भेदभाव और जुल्म को देखकर मैं कांप गई। मेरा दिल टूट गया। दुनिया के दुखों ने मुझे दुखी बना दिया।

    1. इसमें खुदा ने हुक्म दिया है की-

      “अगर कोई गुंडा किसी भले आदमी की औरत से जीना बिलजब्र (बलात्कार) कर डाले तो उस शरीफ आदमी को भी चाहिए की वह भी उस गुंडे की शरीफ औरत से बलात्कार करे”|

      क्या यही खुदाई इन्साफ है ? की बुराई करने वाले को दंड न देकर उसकी निर्दोष बीबी पर वैसा गुण्डापन करे ? क्या बुराई का बदला बुराई दुनिया में कोई शराफत का कानून है ?

      औरतो की गुंडों से रक्षा क्या ऐसे ही इस्लाम में होती है ? क्या शरीफ औरतों की यही इज्जत अर्थात अस्मत इस्लाम में कायम है ?

      कुरान का एक आदेश और भी देखने योग्य है देखिये कुरान में खुदा का आदेश है की-

      “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं अपनी खेती में जिस तरह चाहो जाओ और अपने लिए आइन्दा का भी बन्दोबस्त रखो |

      और अल्लाह से डरो और जाने रहो की (तुम्हे) उसके सामने हाजिर होना है | ऐ पैगम्बर ! सभी ईमान वालों को यह खुशखबरी सूना दो” |

      (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २८ आयत २२३)

      इसमें औरत से चाहे जिस तरह चाहे जिस और से चित या पट्ट वाली स्थिति में सम्भोग करने को खुशखबरी बताया गया है |

      इस आयत पर कुरान के मशहूर तजुर्माकार शाहअब्दुल कादरी साहब देहलवी ने हाशिये पर हदीस दी है की यह आयत क्यों बनी है ? (देखो दिल्ली का छपा कुरान) वहां लिखा है की-

      “यहूदी लोग कहते थे की यदि कोई शख्स औरत से इस तरह जमाव (सम्भोग) करे की औरत की पुष्ट (पीठ) मर्द के मुहँ की जानिब (तरफ) हो तो बच्चा जौल यानी भेंगा पैदा होता है | एक बार हजरत ऊमर राजी उल्लाह अन्स से ऐसा हुआ तो उन्होंने हजरत सलाल्लेहू वलैही असल्लम (मौहम्मद साहब) से अर्ज किया तो यह आयत नाजिल हुई की-“यानी अपनी बीबी से हर तरह जमाअ (सम्भोग) दुरुस्त है”|

      कुरान की इस आयत के सम्बन्ध में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हफवातुल मुसलमीन” में मौलाना शहजादा मिर्जा अहमद सुलतान साहब मुस्वफवी चिश्ती “खाबर गुडगांवा निवासी” ने सफा ४० व् ४१ पर निम्न प्रकार लिखा है-

      एक दिन जनाब उमर फारुख रसुलल्लाह के पास हाजिर हुवे, और अर्ज किया की- या रसूलअल्लाह ! में हलाक हो गया |

      हुजुर ने फरमाया की- तुम्हे किस चीज ने हलाक किया ?

      उसने (मुहम्मद साहब से) अर्ज किया की- “रात मेने अपनी सवारी को औंधा कर लिया था”|

      इब्नअब्बास कहते है की-

      रसूलअल्लाह यह सुन कर चुप रह गए | बस ! अल्लाह ताला ने “वही” भेज दी रसूलअल्लाह की तरफ |

      नोट:- यहाँ वही अर्थात- उसी आयत का जिकर है जो ऊपर कुरान पारा २ सूरते बकर की आयत न० २२३ पर लिखी है की-

      “तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ हैं वास्ते तुम्हारे जाओ अपने खेत में और जिधर से चाहो और नफस का चाहना करो | बस! अल्लाह से डरो और उसकी सुनो”|

      इसमें औरत से गुदा मैथुन की बात बिलकुल स्पष्ट रूप से खरी साबित हो गई जो कोई भी औरत अपने मुह से ऐसी बात कह नहीं सकती है |

      आगे देखिये कुरान का फरमान-

      “तुम्हारे लिए रोजों की रात में भी अपनी औरत से हम बिस्तरी (सम्भोग) करना हलाल है”|

      (कुरान पारा २ सुरह बकर रुकू २३ आयत १८७)

      एक रवायत में हजरत इब्नअब्बास फरमाते हैं की—

      ……………………………………………..“चौपाये के साथ बुरा फ़ैल (कर्म) करे तो उस पर अहद (जुर्म) लागू नहीं होता”|

      (तिरमिजी शरीफ सफा २९० हिस्सा १ हदीस १२९४)

      हमारे विचार से यह रवायत कुछ ज्यादा ही सही हैं क्योंकि इसमें कुछ जुर्रत से ज्यादा ही हिम्मत से काम लिया गया है |

      आगे देखिये-

      “हजरत आयशा रजीउल्लाह अंस से रवायत है की नबीसलालेहु वलैही अस्लम (हजरत मौहम्मद साहब) ने मुझसे उस वक्त निकाह किया की जब मेरी उम्र सिर्फ ६ साल की थी”|

      (बुखारी शरीफ हिस्सा दूसरा सफा १७८ हदीस ४११)

      आगे देखिये कुरान के आदेश-

      …………………………………………………………………..और वह लोग जो अपनी शर्मगाहो की हिफाजत करते हैं ||५||

      ……………………………………………………………….मगर अपनी बीबियों और बंदियों के बारे में इल्जाम नहीं है ||६||

      (कुरान पारा २ सुरह मोमिनून आयत ५ व् ६)

      इससे प्रकट है की-

      “इस्लाम में नारी जाती को माता-पुत्री के रूप में नहीं वरन केवल विषयभोग के लिए पत्नी के ही रूप में (मर्दों की अय्याशी के साधन के रूप में) देखा व् व्यवहार में लाया जाता है |

      इस्लाम में उसकी इसके आलावा अन्य कोई स्थिति नहीं है | मर्द जब भी चाहे उसे तलाक दे देवे या बदल ले अथवा उससे जैसा चाहे वैसा व्यवहार करे, इस्लामी कानून या मान्यताएं औरत को कोई हक़ प्रदान नहीं करती, सिवाय इसके की वह जिन्दगी भर मर्द की गुलामी करती रहे | और उसे खुश रखे”

      भाइयो ! यह तो इस दुनियां का हाल रहा, अब जरा खुदा के घर “जन्नत” में भी औरतों की दशा को देख लेवें- कुरान में जन्न्र का हाल बयान करते हुए जन्नती मुसलमानों के लिए लिखा है की-

      “उसके पास नीची नजर वाली हरें होंगी और हमउम्र होंगी”| (कुरान पारा २३, सुरह साद, आयत ५२)

      …………………………………………………………उनके पास नीची नजर वाली बड़ी-बड़ी आँखों वाली औरतें होंगी ||४८||

      ……………………………………………………………………………………………………..गोया वहां छिपे अंडे रखे हैं ||४९||

      (कुरान सुरह साफ़फात आयत ४८ व् ४९)

      …………………………………………………….“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरो से हम उनका विवाह कर देंगे” |

      (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

      इनमे पाक हूरें होंगी जो आँख उठा कर भी नहीं देखेंगी और जन्नतवासियों से पहिले न तो किसी आदमी ने उन पर हाथ डाला होगा और न जिन्न ने” ||५६||

      “………………………………………………………………………………वह हूरें पेश की जायेंगी जो खीमें में बन्द हैं” ||७२||

      (कुरान सुरह रहमाना)

      ………………………………………………………………जन्न्तियों के लिए हमने हूरों की एक ख़ास सृष्टि बनाई है ||३५||

      …………………………………………………………………………………………………….फिर इनकी क्वारी बनाया है ||३६||

      (कुरान सुरह वाकिया)

      …………………………………………………………………………………………………………..नौजवान औरतें हमउम्र ||३३||

      ……………………………………………………………………………………………अछूती हूरें और छलकते हुए प्याले ||३४||

      (कुरान सुरह नहल आयत ३५,३६,३७,३३,३४)

      कुरानी खुदा के उक्त वर्णन के समर्थन में “मिर्जा हैरत देहलवी” ने अपनी किताब मुकद्द्माये तफसीरुल्कुरान में पृष्ठ ८३ पर इस्लामी बहिश्त का हाल लिखा है (जिसे शायद वे वहां जाकर देख भी आये हैं) वे लिखते हैं की हजरत अब्दुल्ला बिन उमर ने फरमाया है की-

      “जन्नत अर्थात स्वर्ग में रहने वालों में सबसे छोटे दर्जे का वह आदमी होगा की उसके पास ६०,००० सेवक होंगे और हर सेवक का काम अलग-अलग होगा | हजरत ने फरमाया की हर व्यक्ति (मुसलमान) ५०० हूरों, ४,००० क्वारी औरतों और ८,००० शादीशुदा औरतों से ब्याह करेगा”|

      नोट- जब छोटे दर्जे के लोगों का यह हाल है तो फिर हम जानना चाहेंगे की बड़े दर्जे के लोगों का भी खुलासा कर देते तो अच्छा रहता |

      (इतनी अय्याशी के अलावा भी) स्वर्ग में एक बाजार है जहाँ पुरुषों और औरतों के हुश्न का व्यापार होता है | बस! जब कोई व्यक्ति किसी सुन्दर स्त्री की ख्वाहिश करेगा तो वह उस बाजार में आवेगा जहाँ बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जमा है और वे हूरें व्यक्ति से कहेंगी की-

      “मुबारक है वह शख्स जो हमारा हो और हम उसकी हों |

      इसी मजमून पर हजरत अंस ने फरमाया की-

      “हूरें कहती हैं की हम सुन्दर दासियाँ हैं, हम प्रतिष्ठित पुरुषों के लिए ही सुरक्षित हैं” |

      इससे तो यहीं मालुम होता है की-

      “जन्नत में भी रंडियों के चकले चलते है”

      यह यहाँ पर इन उपरोक्त वाक्यों से बिलकुल स्पष्ट है |

      भाइयों ! ये है जन्नत के नज़ारे ! इस लोक में भी औरतों से ब्याभिचार और मरने के बाद अल्लाह मियाँ के पास बहिश्त में भी हजारो औरतों से जिना (सम्भोग) होगा |

      क्या इससे यह साबित नहीं हैं की इस्लाम में जिनाखोरी ही जीवन का मुख्य व अंतिम उद्देश्य है ? यहाँ भी और अरबी खुदा के घर जन्नत में भी | कुरानी जन्नत में औलाद चाहने पर कुरान हमल रह जावेगा और फ़ौरन औलाद होकर जवान बन जावेगी | यह सब कुछ सिर्फ एक घंटे में ही हो जावेगा |

      खुदा की जादूगरी का यह करिश्मा सिर्फ वहीँ जन्नत में देखने को मिलेगा | न औरतों को नौ महीनों तक तकलीफ भोगनी पड़ेगी न वहाँ पैदा शुदा औलाद को पालना पड़ेगा |

      (तिरमिजी शरीफ, हदीस ७२९ जिल्द दोयम)

      इस्लामी जन्नत में सिवाय औरतों से अय्याशी करने और शराब… पीने के अलावा मुसलामानों को और कोई काम धंधा नहीं होगा, कुरान में जन्नत का हाल ब्यान करते हुए लिखा गया है की –

      “यही लोग है जिनके रहने के लिए (जन्नत में) बाग़ हैं | इनके मकानों के नीचे नहरें बह रही होंगी | वहां सोने के कंकन पहिनाए जायेंगे और वह महीन और मोटे रेशमी हरे कपडे पहिनेंगे, वह तख्तों पर तकिया लगाए हुए बैठेंगे | अच्छा बदला है क्या खूब आराम है खुदाई जन्नत में ?”

      (कुरान पारा १६ सुरह कहफ़ ४ आयत ३१)

      ………………………………………….यहाँ तुमको (जन्नत में) ऐसा आराम है की न तो तुम भूखे रहोगे न नंगे ||११८||

      …………………………………………………………….और यहाँ न तुम प्यासे ही होवोगे और न ही धुप में रहोगे ||११९||

      (कुरान पारा १६ सुरह ताहाल आयत ११८-११९)

      ……….……………………………………………………………………..……सफ़ेद रंग (शराब) पीने वालों को मजा देगी ||46||

      ……………………………………………………………………………………………न उससे सर घूमते हैं और न उससे बकते हैं ||४७||

      ………………………………………………………उनके पास नीची निगाह वाली बड़ी आँखों वाली औरतें (हुरें) होंगी ||४८||

      (कुरान पारा २३ सुरह साफ़फात रुकू २)

      …………………………………………………………….वहां जन्नत में नौकरों से बहुत से मेवे और शराब मंगवाएंगे ||५१||

      ………………………………………………..इनके पास नीची नजर वाली हूरें (बीबियाँ) होंगी और जो हमउम्र होंगी ||५२||

      (कुरान पारा १८ सुरह साद)

      आगे देखिये कुरान में खुदा ने कहा है की-

      ………………………………………………..“ऐसा ही होगा बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरों से हम उनका ब्याह कर देंगे” ||४७||

      (कुरान सुरह दुखान आयत ५४)

      ……………………………………………………………………………उनके पास लौंडे हैं जो हमेशा लौंडे ही बने रहेंगे ||१८||

      (कुरान पारा २७ सुरह वाकिया)

      ……………………………..उन पर चांदी के गिलास और बर्तनों का दौर चलता होगा की वह शीशे की तरह होंगे ||१५||

      ………………………………………………………….और वहां उनको प्याले पिलाए जायेंगे जिनमें सौंठ मिली होगी ||१७||

      (कुरान पारा २९ सुरह दहर)

      ……………………………………………………………………………………..उनके नजदीक नौजवान लड़के फिरते हैं ||१९||

      ………………………………………………………………………………उनका परवरदिगार उन्हें पाक शराब पिलावेगा ||२१||

      (कुरान पारा ३० सुरह ततफीफ)

      ……………………………………………………………………………………………………उनमें कपूर की मिलावट होगी ||५||

      (कुरान सुरह दहर आयत ५)

      …………………………………………………………………………………….”जन्नत में इगलामबाजी लौंडे बाजी होगी” ||६||

      (दरमुख्तार जिल्द ३ सफा १७१)

      …………………………………………क्या खुबसूरत गिलमों (लौंडों) का जन्नत में इसी प्रकार इस्तेमाल किया जाएगा ?

      “लाइलाहइल्लिल्लाह……..”- कहने वाला चोरी और जिना (व्यभिचार) भी करे तो भी जन्नत में ही दाखिल होगा” |

      (मिश्कात किताबुलईमान जिल्द १ सफा १२,१३ हदीस न० २४)

      हजरत तलक बिन अली फरमाते हैं की नबी करीम सलेअल्लाहु वलैहि असल्लम ने फरमाया की-

      “जब मर्द अपनी बीबी को अपनी हाजत (सम्भोग) के लिए बुलाये तो औरत उसके पास चली जावे ख्वाह्तनूर पर ही क्यों न हो” |

      (तिरमिजी शरीफ हिस्सा १ सफा २३२ (१०२२ हदीस))

      मतलब तो यह है की ख्वाह वह किसी भी काम में मशगुल हो उसका छोड़ कर चली आये और उसकी ख्वाहिश को पामाल न करे अर्थात ठुकरावे नहीं |

      http://aryamantavya.in/women-in-islam/

      1. Apne sub kuch galat likha hai

        Aap ki jankari ke liye bta do un muslimo ko hure di jayengi jinhone darti par kisi aurat ko galat nigah se nhi denkha

        1. 🙂
          Muhammad sahib ne to saafiya ko hee naheen kitanon ko galat nazar se dekho 🙂

          unko kya milega

          aur auraton ko kya milega isaka bhee jawab do

  82. जातीय भेदभाव और जुल्म को देखकर मैं कांप गई। मेरा दिल टूट गया। दुनिया के दुखों ने मुझे दुखी बना दिया। मैंने तय किया कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ मुझो भी कुछ करना चाहिए। मैं इंटरनेट के जरिए हाई स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट्स को मध्यपूर्व के लोगों के साथ की जा रही अमेरिकी नाइंसाफी और अत्याचार के बारे में जानकारी देने लगी। यही नहीं मैं स्थानीय कार्यकत्र्ताओं को साथ लेकर इराक के खिलाफ होने जा रहे अमरीकी युद्ध के विरुद्ध प्रदर्शन में जुट गई। अपने इसी मिशन के दौरान में एक अद्भुत शख्स से मिली, जो मुसलमान था। वह भी इराक युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन में लगा हुआ था। इससे पहले मैंने ऐसे किसी शख्स को नहीं देखा जो अपने मिशन के प्रति इस तरह जी जान से जुटा हो। वह इंसाफ और इंसानी हकों के लिए कार्यरत था। उस व्यक्ति ने इस मिशन के लिए अपनी एक संस्था बना रखी थी। मैं भी उसकी संस्था से जुड़ गई। उसके साथ काम करने के दौरान मैंने उससे इस्लामी सभ्यता, पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. और उनके साथियों के कई किस्से सुने। इससे पहले मैंने इनके बारे में ऐसा कुछ नहीं सुना था। यह सुनकर मैं दंग रह गई। मैं इन बातों से बेहद प्रभावित हुई। मैं इस्लाम से प्रभावित होकर इसका अध्ययन करने लगी और मैंने कुरआन भी पढ़ी। कुरआन की शैली और अंदाज ने मुझो अपनी तरफ खींचा। मैंने महसूस किया कि कुरआन इंसान के दिल और दिमाग पर गहराई से असर छोड़ता है। दरअसल जिस सच्चाई की मुझे तलाश थी वह मुझो इस्लाम में मिली। बावजूद इसके शुरू में इस्लाम को लेकर मेरे दिल में कुछ गलतफहमियां थीं जैसे मैं समझ नहीं पाई थी कि आखिर मुस्लिम औरतें पूरा बदन ढकने वाली यह अलग तरह की पोशाक क्यों पहनती हैं? मैं सोचती थी कि मैं कभी इस तरह की पोशाक नहीं अपनाऊंगंी। उस वक्त मेरी सोच बनी हुई थी कि मैं वह हूं जो सबको दिखती हूं, अगर दूसरे लोग मुझे देख ही नहीं सकेंगे तो आखिर मेरा अस्तित्व ही कहां बचा? मुझे लगता था खुद को दिखाना ही मेरी पहचान और अस्तित्व है। अगर दूसरे लोग मुझे देख ही नहीं सकते तो फिर मेरा अस्तित्व ही कहां रहा? मैं सोचती थी आखिर वे कैसी स्त्रियां हैं जो सिर्फ घर में रहे, बच्चों की ही देखभाल करे और अपने पति की सुने। ऐसी औरतों का आखिर क्या अस्तित्व है? अगर वह घर के बाहर जाकर खुद की पहचान ना बनाए तो आखिर क्या जिंदगी हुई ऐसी औरतों की? पति की स्वामीभक्त बने रहने से आखिर क्या मतलब?
    मैंने महिलाओं से जुड़े अपने इन सभी सवालों के जवाब इस्लाम में पाए। ये जवाब तर्कसंगत, समझ में आने वाले और महत्वपूर्ण थे। मैंने पाया कि इस्लाम एक धर्म ही नहीं जिंदगी जीने का तरीका है। इसमें सब तरह के इंसानों के लिए हर मामले में गाइड लाइन है। जिंदगी से जुड़े हर एक पहलू पर रोशनी डाली गई है। छोटी-छोटी बातों में भी दिशा निर्देश है जैसेे-खाना कैसे खाना चाहिए? सोना कै से चाहिए? आदि आदि। मुझे यह सब कुछ अद्भुत लगा। यह सब कुछ जानने के बावजूद मैंने खुद को इस्लाम को समर्पित नहीं किया। दरअसल इस्लाम के मुताबिक चल पाना मुझे मुश्किल लग रहा था। इसमें जिम्मेदारी बहुत थी। मैं स्वभाव से एक जिद्दी किस्म की लड़की थी और ऐसे में ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पण मेरे लिए मुश्किल था।
    जनवरी 2003 की बात है। सर्द रात थी। मैं वाशिंगटन डीसी से प्रदर्शन करके बस से लौट रही थी। मैं सोचने लगी-मैं जिंदगी के कैसे चौराहे पर खड़ी हूं। मैं अपने काम से नफरत करती हूं, पति को छोड़कर मैं अलग हो गई हूं, जंग के खिलाफ लोगों को एकत्र करते-करते मैं ऊब गई हूं,। मेरी उम्र 29 साल थी लेकिन मेरे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मैं करूं तो क्या करूं? मैं पूरी तरह टूट चुक ी थी। मैं रोने लगी और अपने आप से सवाल करने लगी-मैं एक अच्छी इंसान बनना चाहती हूं और इस दुनिया को भी अच्छा बनाने की कोशिश करना चाहती हूं लेकिन सोचती थी आखिर कैसे हो यह सब कुछ? आखिर मुझे करना क्या चाहिए? मुझे अपने अंदर से ही इसका जवाब मिला-मुसलमान बन जाओ। यही है कामयाबी का रास्ता। मेरे दिल में यह जवाब आते ही मुझे एक अलग ही तरह के सुकून और चैन का एहसास हुआ। मैं खुशी और उत्साह से भर गई। मानो मेरे ऊपर शांति की चादर छा गई हो। मुझे लगा मुझे अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया और जिंदगी जीने का कारण भी। जिंदगी तो जिंदगी ही है, यह इतनी आसान भी नहीं है लेकिन मेरे पास तो जीने के लिए अब मार्गदर्शक पुस्तक कुरआन है। एक सप्ताह बाद एक मस्जिद की नींव लगाने के लिए इकट्ठा हुए लोगों के सामने मैंने कलमा ए शहादत पढ़कर इस्लाम अपना लिया। मैंने स्वीकार किया कि अल्लाह एक ही है, उसके अलावा कोई इबादत करने लायक नहीं है और मुहम्मद (उन पर शांति हो) अल्लाह के बंदे व रसूल हैं। वहां सभी मुस्लिम बहनों ने मुझे गले लगाया। मेरी आंखों में खुशी

    1. तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे .- डॉ गुलाम जेलानी

      May 18, 2015 Rishwa Arya 10 Comments Edit

      जो लोग दूर दराज मुल्कों में सफर करने के आदी हैं वो इस हकीकत से आगाज़ हैं कि सूरज गुरूब नहीं होता . जब पाकिस्तान में सूरज डूब जाता है तो मिश्र में लोग शाम की चाय पी रहे होते हैं. वहीं इंगलिश्तान में दोपहर का खाना खा रहे होते हैं और अमरीका के बाज हिस्सों में सूरज निकल रहा होता है . अगर आप बीस काबिल एहातिमाद घड़ियाँ साथ रखकर एक तियारे में विलायत चले जाएँ तो वहां जा कर आप हैरान हो जायेंगे की जब यह तमाम घड़ियाँ शाम के आठ बजा रही होंगी वहां दिन का डेढ़ बज रहा होगा अगर आप एक तेज रफ़्तार रोकेट में बैठ कर अमरीका चले जाएँ तो यह देख कर आपकी हैरत और बढ़ जायेगी कि इन घड़ियों के मुताबिक सूरज तुलुह हो जाना चाहिए था लेकिन वहां डूब रहा होगा अगर इन्ही घड़ियों के साथ आप जापान की तरफ रवाना हो जाएँ तो पाकिस्तानी वकत के मुताबिक वहां एनितीन दोपहर सूरज डूब रहा होगा . खुलासा यह की रात के ठीक बारह बजे इंगलिस्तान में शाम के शाम के साढ़े पांच बज रहे होंगे और हवाई में सुबह के साढ़े पांच .

      आज घर घर रेडियो मौजूद है रात के नौ बजे रडियो के पास बैठ के पहले इंगलिस्तान लगायें फिर टोकियो और इस के बाद अमरीका आपको मन में यकीन हो जाएगा की जमीन का साया (रात ) नसब (आधा ) दुनिया पर है और नसब (आधा ) पर आफताब पूरी आबोताब . के साथ चमक रहा है .

      इस हकीकत की वजाहत के बाद आप ज़रा यह हदीस पढ़ें –

      अबुदर फरमाते हैं की एक मर्तबा गुरूब आफताब के बाद रसूल आलः ने मुझ से पूछा क्या तुम जानते हो कि ग़ुरबत के बाद आफताब कहाँ चला जाता है . मैने कहा अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं आपने फ़रमाया की सूरज खुदाई तख़्त ने नीचे सजदे में गिर जाता है और दुबारा तालोह होने की इजाजत मांगता है और उसे मुशरफ से दोबारा निकलने की इजाजत मिल जाती है लेकिन एक वकत ऐसा भी आयेगा की उसे इजाजत नहीं मिलेगी . और हुकुम होगा की लौट जाओ जिस तरफ से आये हो ……… वह मगरब की तरफ से निकलना शुरू करेगा और.तफसीर यही है .

      अगर हम रात के दस बचे पाकिस्तान रेडियो से दुनिया को या हदीस सुना दें और कहें की इस वकत सूरज अर्श के नीचे सजदे में पड़ा हुआ है तो सारी मगरबी दुनिया खिलखिला कर हंस देगी और वहाँ के तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे

  83. मेरी आंखों में खुशी के आंसू थे।
    मैं दूसरे दिन बाजार से इस्लामी परिधान हिजाब खरीद लाई और उसी दिन से मैंने इस्लामी पोशाक पहनना शुरू कर दिया। इस्लामी परिधान में मैं उसी रास्ते से गुजरती थी जिस पर कुछ दिन पहले मैं शॉटर्स और बिकनी पहनकर गुजरा करती थी। हालांकि उस रास्ते में लोग, शॉप्स, चेहरे वही थेेेे लेकिन एक चीज जुदा थी और वह थी मुझे मिलने वाली इज्जत और सुकून। उस गली में जो चेहरे मेरे जिस्म को शिकार के रूप में देखते थे, वे अब मुझे नए नजरिए और सम्मान के साथ देखने लगे। मैंने फैशनेबल सोसायटी के ऊपरी दिखावे के फैशन की जंजीरों को तोड़ दिया जो मुझे गुलाम बनाए हुए थी। सच्ची बात तो यह है कि मुझे एहसास हुआ कि मानो मेरे कंधों से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। मेरे ऊपर दूसरों के सामने अच्छा दिखने का दबाव और सोच मेरे जेहन से निकल चुकी थी। कई लोग मुझे आश्चर्य से देखते, कुछ दया की दृष्टि से और कुछ जिज्ञासा से। सच्चाई यह है कि इस्लामी पोशाक पहनने के बाद मुझे लोगों के बीच इतना आदर और सम्मान मिला जो मुझे आज से पहले कभी नहीं मिला था। यह तो अल्लाह ही का करम था। जिस करिश्माई मुस्लिम शख्स ने मेरा इस्लाम से परिचय कराया था बाद में मैंने उसी से शादी कर ली।
    मेरे इस्लामी जिंदगी अपनाने के थोड़े ही दिनों बाद खबरें आने लगीं कि कुछ राजनेता और कथित मानवाधिकार कार्यकत्र्ता बुर्के का विरोध कर इस्लामी परिधान को महिलाओं के दमन और उन पर जुल्म का कारण बताने लगे। मिस्र के एक अधिकारी ने तो बुर्के को मुस्लिम औरतों के पिछड़ेपन का प्रतीक तक बता डाला। मुझे यह सब पाखंड नजर आने लगा। मेरे समझ में नहीं आता आखिर पश्चिमी देशों की सरकारें और मानवाधिकार संगठन जब औरतों के संरक्षण के लिए आगे आते हैं तो उन पर एक ड्रेस कोड क्यों थोप देते हैं? मोरक्को, ट्यूनिसिया, मिश्र जैसे देशों में ही नहीं बल्कि पश्चिमी लोकतांत्रिक कहे जाने वाले देश ब्रिटेन, फ्रं ास, हॉलेंड आदि में हिजाब और नकाब पहनने वाली औरतों को शिक्षा और काम करने से रोक दिया जाता है। मैं खुद महिला अधिकारों की हिमायती हूं। मैं मुस्लिम महिलाओं से कहती हूं कि वे अपने पतियों को अच्छे मुसलमान बनाने की जिम्मेदारी निभाएं। वे अपने बच्चों की परवरिश इस तरह करें कि बच्चे पूरी इंसानियत के लिए रोशनी की मीनारें बन जाए। हर भलाई से जुड़कर भलाई फैलाएं और बुराई से रोकें। सदा सच बोलें। हक के साथ आवाज उठाएं और बुराई के सामने आवाज उठाएं। मैं मुस्लिम औरतों से कहती हूं कि वे मुस्लिम परिधान हिजाब और नकाब पहनने का अपना अनुभव दूसरी औरतों तक पहुंचाएं। जिन महिलाओं को हिजाब और नकाब पहनने का मौका कभी ना मिला हो उनको बताएं कि इसकी हमारी जिंदगी में क्या अहमियत है और हम दिल से इसे क्यों पहनती हैं। हम मुस्लिम महिलाएं अपनी मर्जी से पर्दा करती हैं और हम इसे कत्तई छोडऩे के लिए तैयार नहीं है।
    पहले मैं मुसलमान नहीं थी, इस वजह से मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगी कि पर्दा करके हर औरतों को इससे खुशी और इज्जत पाने का अधिकार है, जैसा कि मैंने यह हासिल किया। पहले बिकनी मेरी आजादी का प्रतीक थी, जबकि सच्चाई यह है कि बिकनी ने मुझे आध्यात्मिकता, सच्चे मानव मूल्यों और इज्जत से दूर कर दिया था। मुझे साउथ बीच की पश्चिमी भव्य जीवनशैली और बिकनी छोडऩे में जरा भी संकोच महसूस नहीं हुआ क्योंकि उस सबको छोड़कर अपने रब की छांव में सुकून और चैनपूर्ण जिंदगी जी रही हूं। मैं पर्दे को बेहद पसंद करती हूं और मेरे पर्दा करने के अधिकार के लिए मैं मरने को भी तैयार हूं। आज पर्दा औरतों की आजादी का प्रतीक है। वे महिलाएं जो हया और हिजाब के खिलाफ बेहूदा और भोंडा पहनावा पहनती हैं, उन्हें मैं कहना चाहूंगी कि आपको एहसास नहीं है कि आप किस महत्वपूर्ण चीज से वंचित है।
    मैंने मध्य पूर्व देशों की यात्रा की और अपने पति के साथ अमेरिका से मिस्र शिफ्ट हो गई। मैं अपनी सास के साथ यहां इस्लामी माहौल में जिंदगी गुजारती हूं। मुझे एक सुंदर परिवार मिल गया। इस परिवार से भी बड़े परिवार-मुस्लिम सोसायटी के परिवार की मैं सदस्य बन गई। यह मुझ पर अल्लाह का बहुत बड़ा अहसान है कि मुझे ऐसी जिंदगी हासिल हुई। अब मेरा दुख, निराशा, अकेलापन गायब है। मैं अब एक सामाजिक ढांचे के तहत जिंदगी गुजार रही हूं। मेरे पथ प्रर्दशन के लिए कुरआन के रूप में किताब है। मैं महसूस करती हूं कि मैं किसी की हूं। मेरा अस्तित्व है। मेरा एक घर है। मेरा खालीपन दूर हो गया है और दिल को पूर्णता का एहसास है। मुझे अल्लाह से उम्मीद है कि वह इस जिंदगी के बाद दूसरी जिंदगी (मौत के बाद की जिंदगी) में भी कामयाबी अता करेगा।
    सारा बॉकर अभी ‘द मार्च ऑफ जस्टिस’ की कम्यूनिकेशन डायरेक्टर हैं और ग्लोबल सिस्टर नेटवर्क की संस्थापक है। उनसे srae@marchforjustice.com पर सम्पर्क

    1. तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे .- डॉ गुलाम जेलानी

      May 18, 2015 Rishwa Arya 10 Comments Edit

      जो लोग दूर दराज मुल्कों में सफर करने के आदी हैं वो इस हकीकत से आगाज़ हैं कि सूरज गुरूब नहीं होता . जब पाकिस्तान में सूरज डूब जाता है तो मिश्र में लोग शाम की चाय पी रहे होते हैं. वहीं इंगलिश्तान में दोपहर का खाना खा रहे होते हैं और अमरीका के बाज हिस्सों में सूरज निकल रहा होता है . अगर आप बीस काबिल एहातिमाद घड़ियाँ साथ रखकर एक तियारे में विलायत चले जाएँ तो वहां जा कर आप हैरान हो जायेंगे की जब यह तमाम घड़ियाँ शाम के आठ बजा रही होंगी वहां दिन का डेढ़ बज रहा होगा अगर आप एक तेज रफ़्तार रोकेट में बैठ कर अमरीका चले जाएँ तो यह देख कर आपकी हैरत और बढ़ जायेगी कि इन घड़ियों के मुताबिक सूरज तुलुह हो जाना चाहिए था लेकिन वहां डूब रहा होगा अगर इन्ही घड़ियों के साथ आप जापान की तरफ रवाना हो जाएँ तो पाकिस्तानी वकत के मुताबिक वहां एनितीन दोपहर सूरज डूब रहा होगा . खुलासा यह की रात के ठीक बारह बजे इंगलिस्तान में शाम के शाम के साढ़े पांच बज रहे होंगे और हवाई में सुबह के साढ़े पांच .

      आज घर घर रेडियो मौजूद है रात के नौ बजे रडियो के पास बैठ के पहले इंगलिस्तान लगायें फिर टोकियो और इस के बाद अमरीका आपको मन में यकीन हो जाएगा की जमीन का साया (रात ) नसब (आधा ) दुनिया पर है और नसब (आधा ) पर आफताब पूरी आबोताब . के साथ चमक रहा है .

      इस हकीकत की वजाहत के बाद आप ज़रा यह हदीस पढ़ें –

      अबुदर फरमाते हैं की एक मर्तबा गुरूब आफताब के बाद रसूल आलः ने मुझ से पूछा क्या तुम जानते हो कि ग़ुरबत के बाद आफताब कहाँ चला जाता है . मैने कहा अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं आपने फ़रमाया की सूरज खुदाई तख़्त ने नीचे सजदे में गिर जाता है और दुबारा तालोह होने की इजाजत मांगता है और उसे मुशरफ से दोबारा निकलने की इजाजत मिल जाती है लेकिन एक वकत ऐसा भी आयेगा की उसे इजाजत नहीं मिलेगी . और हुकुम होगा की लौट जाओ जिस तरफ से आये हो ……… वह मगरब की तरफ से निकलना शुरू करेगा और.तफसीर यही है .

      अगर हम रात के दस बचे पाकिस्तान रेडियो से दुनिया को या हदीस सुना दें और कहें की इस वकत सूरज अर्श के नीचे सजदे में पड़ा हुआ है तो सारी मगरबी दुनिया खिलखिला कर हंस देगी और वहाँ के तमाम मुसलमान इस्लाम छोड़ जायेंगे

      1. जरा ये भी तो बतलाये आपके भगवान हनुमान ने सूरज निगला था। ये कोई बेवकूफी नही है आपकी नजर मे।और कृष्ण जी के मुह के अन्दर तो पूरा ब्रहमाण्ड था। मुझे तो ये भी बेवकूफी लगती है। जबकी वे खुद ब्रहमाण्ड के अन्दर खडे हुए थे

        1. हनुमान ने सूरज निगला था।
          कृष्ण जी के मुह के अन्दर तो पूरा ब्रहमाण्ड था।

          ham to naheen manate aisa kuch tha

          🙂

          1. आप सब से बडे झूठे हो। आप के सामने बहस करना है ऐसा है जैसे भैस के आगे बीन बजाना

            1. आप कहते हो वेद में मुहम्मद है
              मंत्र मांगों तो कुछ और कहानी लिखते हो

              तो झूठा कौन हुआ
              🙂

          2. केवल आपके ना मानने से क्या होता है। सभी हिन्दु मानते है

            1. बात आप हमसे कर रहे हो

              वैसे तो अंतिम नबी मुहम्मद भी नहीं
              अंतिम नबी तो मिर्ज़ा ग़ुलाम अह्मंद काद्यानी हुआ

              सबसे बढ़ता मत है इस्लाम में
              बोलो मानते हो उसे अपना नबी?

  84. चूँकि इस्लाम धर्म समस्त आसमानी धर्मों में सब से अन्त में उतरने वाला धर्म है इसलिए आवश्यक था कि वह ऐसी विशेषताओं और खूबियों पर आधारित हो जिनके द्वारा वह पिछले धर्मों से श्रेष्ठ और उत्तम हो और इन विशेषताओं के कारणवश वह क़ियामतआने तक हर समय और स्थान के लिए योग्य हो, तथा इन खूबियों और विशेषताअें के द्वारा मानवता के लिए दोनों संसार में सौभाग्य को साकार कर सके।

    इन्हीं विशेषताओं और अच्छार्इयों में से निम्नलिखित बातें हैं :
    इस्लाम के नुसूस इस तत्व को बयान करने में स्पष्ट हैं कि अल्लाह के निकट धर्म केवल एक है और अल्लाह तआला ने नूह अलैहिस्सलाम से लेकर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक सभी पैग़म्बरों को एक दूसरे का पूरक बनाकर भेजा, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ”मेरी मिसाल और मुझ से पहले पैग़म्बरों की मिसाल उस आदमी के समान है जिस ने एक घर बनाया और उसे संवारा और संपूर्ण किया, किन्तु उस के एक कोने में एक र्इंट की जगह छोड़ दी। इसलिए लोग उस का तवाफ -परिक्रमा- करने लगे और उस भवन पर आश्चर्य चकित होते और कहते: तुम ने एक र्इट यहाँ क्यों न रख दी कि तेरा भवन संपूर्ण हो जाता? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: तो वह र्इंट मैं ही हूँ, और मैं खातमुन्नबीर्इन (अनितम नबी) हूँ।” (सहीह बुख़ारी 31300 हदीस नं.:3342)

    1. “चूँकि इस्लाम धर्म समस्त आसमानी धर्मों में सब से अन्त में उतरने वाला धर्म है”

      ye to aapke allah ki kam akli ko sabit karta hai jo aapke liye kitaben utarata rahta hai aur cancel karta rahta hai
      yahan tak ki quran ki hee kai aayanten usane utar ke cancel kar dee

      kitanee hee ayaten aaj ki quran men mansukh hein

      1. तुमने अल्लाह को भला बुरा कहा ये तुम्हारी बेअक्ली का सबूत है। क्योकि तुम्हे आज तक ये ही नही पता चला अल्लाह भगवान ईश्वर परमात्मा गोड एक ही है बस नाम अलग है पूरी दुनिया मानती है और आप कितने बडे बेवकूफ हो

        1. ऐसा आपको लगता है की अल्लाह गोड और भगवान् एक है
          ऐसा है नहीं आपका अल्लाह जन्नत की गारंटी देता है
          लुट के माल में से पैसे लेता है
          ऐसा भगवान् के साथ नहीं है

  85. किन्तु अनितम काल में र्इसा अलैहिस्सलाम उतरें गे और धरती को न्याय से भर देंगे जिस प्रकार कि यह अन्याय और अत्याचार से भरी हुर्इ है, परन्तु वह किसी नये धर्म के साथ नहीं आएं गे बलिक उसी इस्लाम धर्म के अनुसार लोगों में फैसला (शासन) करें गे जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतरा है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ”क़ियामतक़ायम नहीं होगी यहाँ तक कि तुम्हारे बीच इब्ने मरयम न्यायपूर्ण न्यायाधीश बन कर उतरें गे, और सलीब को तोड़ें गे, सुवर को क़त्ल करें गे, जिज़्या को समाप्त करें गे, और माल की बाहुल्यता हो जाए गी यहाँ तक कि कोर्इ उसे स्वीकार नहीं करे गा।” (सहीह बुख़ारी 2875 हदीस नं.:2344)

    इसलिए सभी पैग़म्बरों की दावत अल्लाह सुब्हानहु व तआला की वह्दानियत (एकेश्वरवाद) और किसी भी साझीदार, समकक्ष और समांतर से उसे पवित्र समझने की ओर दावत देने पर एकमत है, तथा अल्लाह और उसके बन्दों के बीच बिना किसी माध्यम के सीधे उसकी उपासना करना, और मानव आत्मा को सभ्य बनाने और उसके सुधार और लोक-परलोक में उसके सौभाग्य की ओर रहनुमार्इ करना, अल्लाह तआला का फरमान है :

    ”उस ने तुम्हारे लिए धर्म का वही रास्ता निर्धारित किया है जिस को अपनाने का नूह को आदेश दिया था और जिसकी (ऐ मुहम्मद!) हम ने तुम्हारी ओर वह्य भेजी है और जिसका इब्राहीम, मूसा और र्इसा को आदेश दिया था (वह यह) कि धर्म को क़ायम रखना और उस में फूट न डालना।” (सूरतुश्शूरा :13)

    अल्लाह तआला ने इस्लाम के द्वारा पिछले सभी धर्मों को निरस्त कर दिया, अत: वह सब से अनितम धर्म और सब धर्मों का समापित कर्ता है, अल्लाह तआला इस बात को स्वीकार नहीं करे गा कि उसके सिवाय किसी अन्य धर्म के द्वारा उसकी उपासना की जाए , अल्लाह तआला का फरमान है :

    1. ye to aapke allah ki kam akli ko sabit karta hai jo aapke liye kitaben utarata rahta hai aur cancel karta rahta hai
      yahan tak ki quran ki hee kai aayanten usane utar ke cancel kar dee

      kitanee hee ayaten aaj ki quran men mansukh hein

  86. और हम ने आप की ओर सच्चार्इ से भरी यह किताब उतारी है, जो अपने से पहले किताबों की पुषिट करती है और उनकी मुहाफिज़ है।” (सूरतुल मायदा :48)

    चूँकि इस्लाम सबसे अनितम आसमानी धर्म है, इसलिए अल्लाह तआला ने क़ियामत के दिन तक इसकी सुरक्षा की जि़म्मेदारी उठार्इ, जबकि इस से पूर्व धर्मों का मामला इसके विपरीत था जिनकी सुरक्षा की जि़म्मेदारी अल्लाह तआला ने नहीं उठार्इ थी; क्योंकि वे एक विशिष्ट समय और विशिष्ट समुदाय के लिए अवतरित किए गये थे, अल्लाह तआला का फरमान है :

    ”नि:सन्देह हम ने ही इस क़ुरआन को उतारा है और हम ही इसकी सुरक्षा करने वाले हैं।” (सूरतुल हिज्र :9)

    इस आयत का तक़ाज़ा यह है कि इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अनितम पैग़म्बर हों जिनके बाद कोर्इ अन्य नबी व हज़रत पैग़म्बर न भेजा जाए , जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :

    ”मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं हैं, किन्तु आप अल्लाह के सन्देष्टा और खातमुल-अंबिया -अनितम र्इश्दूत- हैं।” (सूरतुल अहज़ाब:40)

    इस का यह अर्थ नहीं है कि पिछले पैग़म्बरों और और किताबों की पुषिट न की जाए और उन पर र्इमान न रखा जाए । बलिक र्इसा अलैहिस्सलाम मूसा अलैहिस्सलाम के धर्म के पूरक हैं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम र्इसा अलैहिस्सलाम के धर्म के पूरक हैं, और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नबियों और रसूलों की कड़ी समाप्त हो गर्इ, और मुसलमान को आप से पहले के सभी पैग़म्बरों और किताबों पर र्इमान रखने का आदेश दिया गया है, अत: जो व्यकित उन पर या उन में से किसी एक पर र्इमान न रखे तो उसने कुफ्र किया और इस्लाम धर्म से बाहर निकल गया, अल्लाह तआला का फरमान है :

    ”जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर र्इमान नहीं रखते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूलों के बीच अलगाव करें और कहते हैं कि हम कुछ को मानते हैं और कुछ को नहीं मानते और इस के बीच रास्ता बनाना चाहते हैं। यक़ीन करो कि यह सभी लोग असली काफिर हैं।” (सूरतुनिनसा :150-151)

    इस्लाम धर्म ने अपने से पूर्व शरीअतों (धर्म-शस्त्रों) को सम्पूर्ण और संपन्न कर दिया है, इस से पूर्व की शरीअतें आतिमक सिद्धान्तों पर आधारित थीं जो नफ्स को सम्बोधित करती थीं और उसके सुधार और पवित्रता की आग्रह करती थीं और सांसारिक और आर्थिक मामलों की सुधार करने वाली समस्त चीज़ों पर कोर्इ रहनुमार्इ नकीं करती थीं, इसके विपरीत इस्लाम ने जीवन के समस्त छेत्रों को संगठित और सम्पूर्ण कर दिया है और धर्म व दुनिया के सभी मामलों को समिमलित है, अल्लाह तआला का फरमान है :

    1. ye to aapke allah ki kam akli ko sabit karta hai jo aapke liye kitaben utarata rahta hai aur cancel karta rahta hai
      yahan tak ki quran ki hee kai aayanten usane utar ke cancel kar dee

      kitanee hee ayaten aaj ki quran men mansukh hein

  87. ”आज मैं ने तुम्हारे लिये तुम्हारे धर्म को पूरा कर दिया, और तुम पर अपनी नेमतें पूरी कर दी और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसन्द कर लिया।” (सूरतुल मायदा :3)

    इसीलिए इस्लाम सर्वश्रेष्ठ और सब से अफज़ल धर्म है, अल्लाह तआला का फरमान है :

    ”तुम सब से अच्छी उम्मत हो जो लोगों के लिए पैदा की गर्इ है कि तुम नेक कामों का आदेश देते हो और बुरे कामों से रोकते हो, और अल्लाह पर र्इमान रखते हो। अगर अहले किताब र्इमान लाते तो उनके लिए बेहतर होता, उन में र्इमान वाले भी हैं, लेकिन अधिकतर लोग फ़ासिक़ हैं।” (सूरत आल-इमरान :110)

    इस्लाम धर्म एक विश्व व्यापी धर्म है जो बिना किसी अपवाद के प्रत्येक समय और स्थान में सर्व मानव के लिए है, किसी विशिष्ट जाति, या सम्प्रदाय, या समुदाय या समय काल के लिए नहीं उतरा है। इस्लाम एक ऐसा धर्म है जिस में सभी लोग संयुक्त हैं, किन्तु रंग, या भाषा, या वंश, या छेत्र, या समय, या स्थान के आधार पर नहीं, बलिक एक सुनिशिचत आस्था (अक़ीदा) के आधार पर जो सब को एक साथ मिलाए हुए है। अत: जो भी व्यकित अल्लाह को अपना रब (पालनहार) मानते हुए, इस्लाम को अपना धर्म और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपना पैग़म्बर मानते हुए र्इमान लाया तो वह इस्लाम के झण्डे के नीचे आ गया, चाहे वह किसी भी समय काल या किसी भी स्थान पर हो, अल्लाह तआला का फरमान है :
    ”हम ने आप को समस्त मानव जाति के लिए शुभ सूचना देने वाला तथा डराने वाला बनाकर भेजा है।” (सुरत सबा :28)

    अल्बत्ता इस से पूर्व जो संदेश्वाहक गुज़रे हैं, वे विशिष्ट रूप से अपने समुदायों की ओर भेजे जाते थे, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :

    ”हम ने नूह को उनकी क़ौम की ओर भेजा।” (सूरतुल आराफ :59)

    तथा अल्लाह तआल ने फरमाया :

    ”तथा हम ने आद की ओर उनके भार्इ हूद को भेजा, तो उन्हों ने कहा : ऐ मेरी क़ौम अल्लाह की उपासना करो, उसके सिवाय तुम्हारा कोर्इ सच्च माबूद (पूज्य) नहीं।” (सूरतुल आराफ :60)

    तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : ”तथा समूद की ओर उनके भार्इ सालेह को भेजा, तो उन्हों ने कहा : ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह की उपासना करो, उसके सिवाय तुम्हारा कोर्इ सच्चा माबूद नहीं।” (सूरतुल आराफ :73)

    तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

    ”और लूत को (याद करो) जब उन्हों ने अपनी क़ौम से कहा।” (सूरतुल आराफ :80)

    तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

    ”और मदयन की ओर उनके भार्इ शुऐब को (भेजा)। ” (सूरतुल आराफ :85)

    तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

    ”फिर हम ने उनके बाद मूसा को अपनी आयतों के साथ फिरऔन और उसकी क़ौम की ओर भेजा।” (सूरतुल आराफ :102)

    तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

    “और उस समय को याद करो- जब र्इसा बिन मरयम ने कहा: ऐ इस्रार्इल के बेटो! मैु तुम्हारी ओर अल्लाह का पैग़म्बर हूँ, अपने से पूर्व तौरात की पुषिट करने वाला हूँ..। ”

    इस्लाम के विश्व व्यापी धर्म होने और उसकी दावत के हर समय और स्थान पर समस्त मानव जाति की ओर सम्बोधित होने के कारण मुसलमानों को इस संदेश का प्रसार करने और उसे लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है, अल्लाह तआला ने फरमाया :

    ”और हम ने इसी तरह तुम्हें बीच की (संतुलित) उम्मत बनाया है, ताकि तुम लोगों पर गवाह हो जाओ और हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तुम पर गवाह हो जाएं।” (सूरतुल बक़्रा :143)

    इस्लाम धर्म के नियम (शास्त्र) और उसकी शिक्षाएं रब्बानी (र्इश्वरीय) और सिथर (अटल) हैं उनमें परिवर्तन और बदलाव का समावेश नहीं है, वे किसी मानव की बनार्इ हुर्इ नहीं हैं जिन में कमी और ग़लती, तथा उस से घिरी हुए प्रभाविक चीज़ों; सभ्यता, वरासत, वातावरण से प्रभावित होने की सम्भावाना रहती है। और इसका हम दैनिक जीवन में मुशाहदा करते हैं, इसलिए हम देखते हैं कि मानव संविधानों और नियमों में सिथरता नहीं पार्इ जाती है और उनमें से जो एक समाज के लिए उपयुक्त हैं वही दूसरे समाज में अनुप्युक्त साबति होते हैं, तथा जो एक समय काल के लिए उप्युक्त हैं वही दूसरे समय काल में अनुप्युक्त होते हैं। उदाहरण के तौर पर पूँजीवाद समाज के नियम और संविधान, साम्यवादी समाज के अनुकूल नहीं होते, और इसी प्रकार इसका विप्रीत क्रम भी है। क्योंकि हर संविधान रचयिता अपनी प्रवृतित्तयों और झुकाव के अनुरूप क़ानून बनाता है, जिनकी असिथरता के अतिरिक्त, उस से बढ़कर और अधिकतर ज्ञान और सभ्यता वाला व्यकित आता है और उसका विरोध करता, या उसमें कमी करता, या उसमे बढ़ोतरी करता है। परन्तु इस्लामी धर्म-शास्त्र जैसाकि हम ने उल्लेख किया कि वह र्इश्वरीय है जिसका रचयिता सर्व सृषिट का सृष्टा और रचयिता है जो अपनी सृषिट के अनुरूप चीज़ों और उनके मामलों को संवारने और स्थापित करने वाली चीज़ों को जानता है, किसी भी मनुष्य को, चाहे उसका पद कितना ही सर्वोच्च क्यों न हो

    1. ye to aapke allah ki kam akli ko sabit karta hai jo aapke liye kitaben utarata rahta hai aur cancel karta rahta hai
      yahan tak ki quran ki hee kai aayanten usane utar ke cancel kar dee

      kitanee hee ayaten aaj ki quran men mansukh hein

      1. तुमने अल्लाह को भला बुरा कहा ये तुम्हारी बेअक्ली का सबूत है। क्योकि तुम्हे आज तक ये ही नही पता चला अल्लाह भगवान ईश्वर परमात्मा गोड एक ही है बस नाम अलग है पूरी दुनिया मानती है और आप कितने बडे बेवकूफ हो

        1. आपने कहा की मुहम्मद का नाम वेद में है
          अब प्रमाण दो की वेद में मुहम्मद का नाम है

  88. यह अधिकार नहीं है कि अल्लाह के किसी नियम का विरोध कर सके या उसमें कुछ भी घटा या बढ़ा कर परिवर्तन कर सके, क्योंकि यह सब के लिए अधिकारों की सुरक्षा करता है, अल्लाह तआला का फरमान है : ”क्या यह लोग फिर से जाहिलियत का फैसला चाहते हैं? और यक़ीन रखने वालों के लिए अल्लाह से बेहतर फैसला करने वाला और आदेश करने वाला कौन हो सकता है।” (सुरतुल मायदा :50)
    इस्लाम धर्म एक विकासशील धर्म है जो उसे हर समय एंव स्थान के लिए उप्युक्त बना देता है, इस्लाम धर्म अक़ीदा व इबादात जैसे र्इमान, नमाज़ और उसकी रकअतों की संख्या और समय, ज़कात और उसकी मात्रा और जिन चीज़ों में ज़कात अनिवार्य है, रोज़ा और उसका समय, हज्ज और उसका तरीक़ा और समय, हुदूद (धर्म-दण्ड)…इत्यादि के विषय में ऐसे सिद्धान्त, सामान्य नियमों, व्यापक और अटल मूल बातों को लेकर आया है जिन में समय या स्थान के बदलाव से कोर्इ बदलाव नहीं आता है, इसलिए जो भी घटनाएं घटती हैं और नयी आवश्यकताएं पेश आती हैं उन्हें क़ुरआन करीम पर पेश किया जाए गा, उसमें जो चीज़ें मिलें गीं उनके अनुसार कार्य किया जाए गा और उसके अतिरिक्त को छोड़ दिया जाए गा, और अगर उसमें न मिले तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सहीह हदीसों में तलाश किया जाए गा, उसमें जो मिलेगा उसके अनुसार कार्य किया जाए गा और उसके अतिरिक्त को छोड़ दिया जाए गा, और अगर उसमें भी न मिले तो हर समय और स्थान पर मौजूद रब्बानी उलमा (धर्म ज्ञानी) उसके विषय में विचार और खोज के लिए इजितहाद करें गे, जिस में सार्वजनिक हित पाया जाता हो और उनके समय की आवश्यकताओं और समाज के मामलों के उप्युक्त हो, और वह इस प्राकर कि क़ुरआन और हदीस की संभावित बातों में गौर करके और नये पेश आने वाले मामलों को कु़रआन और हदीस से बनाए गये क़ानून साज़ी के सामान्य नियमों पर पेश करके, उदाहरण के तौर पर यह नियम (चीज़ों में असल उनका जार्इज़ होना है) तथा (हितों की सुरक्षा) का और (आसानी करने तथा तंगी को समाप्त करने) का नियम, तथा (हानि को मिटाने) का नियम, तथा (फसाद -भ्रष्टाचार- की जड़ को काटने) का नियम, तथा यह नियम कि (आवश्यकता पड़ने पर निषिद्ध चीज़ें वैध हो जाती हैं ) तथा यह नियम कि (आवश्यकता का ऐतबार आवश्यकता की मात्रा भर ही किया जाए गा), तथा यह नियम कि (लाभ उठाने पर हानि को दूर करने को प्राथमिकता प्राप्त है), तथा यह नियम कि (दो हानिकारक चीज़ों में से कम हानिकारक चीज़ को अपनाया जाए गा) तथा यह नियम कि (हानि को हानि के द्वारा नहीं दूर किया जाए गा।) तथा यह नियम कि (सामान्य हानि को रोकने के लिए विशिष्ट हानि को सहन किया जाए गा।)… इनके अतिरिक्त अन्य नियम भी हैं। इजितहाद से अभिप्राय मन की चाहत और इच्छाओं का पालन नहीं है, बलिक उसका मक़सद उस चीज़ तक पहुँचना है जिस से मानव का हित और कल्याण हो और साथ ही साथ क़ुरआन या हदीस से उसका टकराव या विरोध न होता हो। और यह इस कारण है ताकि इस्लाम हर काल के साथ साथ क़दम रखे और हर समाज की आवश्यकतओं के साथ चले।
    इस्लाम धर्म में उसके नियमों और क़ानूनों के आवेदन में कोर्इ भेदभाव और असमानता नहीं है, सब के सब बराबर हैं, धनी या निर्धन, शरीफ या नीच, राजा या प्रजा, काले या गोरे के बीच कोर्इ अन्तर नहीं, इस शरीअत के लागू करने में सभी एक हैं, इसलिए क़ुरैश का ही उदाहरण ले लीजिए जिनके लिए बनू मख्ज़ूम की एक शरीफ महिला का मामला महत्वपूर्ण बन गया, जिसने चोरी की थी, उन्हों ने चाहा कि उस के ऊपर अनिवार्य धार्मिक दण्ड -चोरी के हद- को समाप्त करने के लिए पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास किसी को मध्यस्थ बनाएं। उन्हों ने आपस में कहा कि इस विषय में अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कौन बात करे गा? उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चहेते उसामा बिन ज़ैद के अतिरिक्त कौन इस की हिम्मत कर सकता है। चुनांचे उन्हें लेकर अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आएऔर उसामा बिन ज़ैद ने इस विषय में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बात किया। इस पर अल्लाह के पैग़्म्बर का चेहरा बदल गया और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”क्या तुम अल्लाह के एक हद -धार्मिक दण्ड- के विषय में सिफारिश कर रहे हो? ”
    फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भाषण देने के लिए खड़े हुए। आप ने फरमाया : ”ऐ लोगो ! तुम से पहले जो लोग थे वे इस कारण नष्ट कर दिए गए कि जब उन में कोर्इ शरीफ चोरी करता तो उसे छोड़ देते, और जब उन में कोर्इ कमज़ोर चोरी कर लेता तो उस पर दण्ड लागु करत थे। उस हस्ती की सौगन्ध! जिस के हाथ में मेरी जान है, यदि मुहम्मद की बेटी फातिमा भी चोरी कर ले, तो मैं उस का हाथ अवश्य काट दूँगा।” (सहीह मुसिलम 31315 हदीस नं.:1688

    1. allah khud hee apnee aayaton ka virodh kata hai

      aaayat utar ke fir badalata rahta hai
      aisa lagta hai ki koi mansik vikshipt vyakti ho

  89. इस्लाम धर्म के स्रोत असली और उसके नुसूस (ग्रंथ) कमी व बेशी और परिवर्तन व बदलाव और विरूपण से पवित्र हैं, इस्लामी शरीअत के मूल्य स्रोत यह हैं :
    1. क़ुरआन करीम 2. नबी की सुन्नत (हदीस)

    1- क़ुरआन करीम जब से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म पर उतरा है, उसी समय से लेकर आज हमारे समय तक अपने अक्षरों, आयतों और सूरतों के साथ मौजूद है, उसमें किसी प्रकार की कोर्इ परिवर्तन, विरूपण, कमी और बेशी नहीं हुर्इ है, अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अली, मुआविया, उबै बिन कअब और जै़द बिन साबित जैसे बड़े-बड़े सहाबा किराम रजि़यल्लाहु अन्हुम को वह्य के लिखने के लिए नियुक्त कर रखा था, और जब भी कोर्इ आयत उतरती तो इन्हें उस को लिखने का आदेश देते और सूरत में किस स्थान पर लिखी जानी है, उसे भी बता देते थे। इसलिए क़ुरआन को किताबों में सुरक्षित कर दिया गया और लोगों के सीनों में भी सुरक्षित कर दिया गया। मुसलमान अल्लाह की किताब के बहुत सख्त हरीस (लालसी और इच्छुक) रहे हैं, इसलिए वे उस भलार्इ और अच्छार्इ को प्राप्त करने के लिए जिसकी सूचना पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने निम्न कथन के द्वारा दी है, उसके सीखने और सिखाने की ओर जल्दी करते थे, आप का फरमान है : ”तुम में सब से श्रेष्ठ वह है जो क़ुरआन सीखे और सिखाए।” (सहीह बुख़ारी 41919 हदीस नं.:4739)

    क़ुरआन की सेवा करने, उसकी देख-रेख करने और उसकी सुरक्षा करने के मार्ग में वे अपने जान व माल की बाज़ी लगा देते थे, इस प्रकार मुसलमान एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी को उसे पहुँचाते रहे, क्योंकि उसको याद करना और उसकी तिलावत करना अल्लाह की इबादत है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म का फरमान है : ”जिसने अल्लाह की किताब का एक अक्षर पढ़ा, उसके लिए उसके बदले एक नेकी है, और नेकी को (कम से कम) उसके दस गुना बढ़ा दिया जाता है, मैं नहीं कहता कि ( الم ) अलिफ-लाम्मीम एक अक्षर है बलिक अलिफ एक अक्षर है, मीम एक अक्षर है और लाम एक अक्षर है।” (सुनन तिर्मिज़ी 5175 हदीस नं.:2910)

    2- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म की सुन्नत अर्थात हदीस शरीफ जो कि इस्लामी क़ानून साज़ी का दूसरा स्रोत, तथा क़ुरआन को स्पष्ट करने वाली और क़ुरआन करीम के बहुत से अहकाम की व्याख्या करने वाली है, यह भी छेड़छाड़, गढ़ने, और उसमें ऐसी बातें भरने से जो उसमें से नहीं है, सुरक्षित है क्यों कि अल्लाह तआला ने विश्वसनीय और भरोसेमंद आदमियों के द्वारा इस की सुरक्षा की है जिन्हों ने अपने आप को और अपने जीवन को हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म की हदीसों के अध्ययन और उनकी सनदों और मतनों और उनके सहीह या ज़र्इफ होने, उनके रावियों (बयान करने वालों) के हालात और जरह व तादील (भरोसेमंद और विश्वसनीय या अविश्वसनीय होने ) में उनकी श्रेणियों का अध्ययन करने में समर्पित कर दिया था। उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म से वर्णित सभी हदीसों को छान डाला और उन्हीं हदीसों को साबित रखा जो प्रमाणित रूप से वर्णित हैं, और वह हमारे पास झूठी हदीसों से खाली और पवित्र होकर पहुँची हैं। जो व्यकित उस तरीक़े की जानकारी चाहता है जिस के द्वारा हदीस की सुरक्षा की गर्इ है वह मुस्तलहुल-हदीस (हदीस के सिद्धांतों का विज्ञान) की किताबों को देखे जो विज्ञान हदीस की सेवा के लिए विशिष्ट है; ताकि उसके लिए यह स्पष्ट हो जाए कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जो हदीसें हमारे पास पहुँची हैं उनमें शक करना असम्भव (नामुमकिन) है, तथा उसे हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म की हदीस की सेवा में की जाने वाली प्रयासों की मात्रा का भी पता चल जाए ।

    1. quran ke vigyan ki ek jhalk

      फरिश्तों के पंख भी हैं

      फरिश्तों की शक्ल कबूतर, ऊंट या कुत्ते जैसी है या आदमी जैसी है? स्पष्ट करें कि ये विलक्षण जीव कहां रहते है। तथा उनके होने में सबूत क्या है। उन्हें काल्पनिक क्यों न माना जावे?

      देखिये कुरान में कहा गया है कि-

      अल-हम्दु लिल्लाहि फाति…………।।

      (कुरान मजीद पारा २२ सूरा फातिर रूकू १ आयत १)

      उसी ने फरिश्तों को दूत बनाया जिनके दो-दो, तीन-तीन और चार-चार पर अर्थात् पंख हैं।

      समीक्षा

      पर यह नहीं बताया गया कि उनकी शक्ल गधे-सुअर बकरी या कौए की जैसी है या सर्प जैसी है?

      अगर एक फरिश्ता कभी पकड़ में आ जावे तो किसी अजायब घर में देखने को दुनियाँ को मिल सकेगा। कुरान की फरिश्तों वाली कल्पना भी बड़ी ही मनोरंजक है।

      http://aryamantavya.in/farishton-ke-pankh-bhi-hain/

      🙂

  90. हजरे अस्वद (काला पत्थर) कि हक़ीक़त
    चूँकि मेरा यह ब्लॉग केवल अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के जीवन के सत्य तथ्यों के बयान पर आधारित है अतः मैं किसी भी अतिरिक्त लेख से परहेज़ करता हूँ एवं कोशिश यह होती है कि आप के जीवन के उन्हीं तथ्वों को बयान करूँ जो सही रवायतों पर आधारित हैं लेकिन कुछ समय पूर्व मैंने हजरे अस्वद एवं काबा के बारे में कुछ नकारात्मक विचार वाले व्यतियों जिनका ज्ञान सरल तथा गलत विचारों एवं सोंच से भरपूर है के लेख तथा उनपर कमेंट्स पढ़ा इन आलेखों में ख़ास तौर से हजरे अस्वद के बारे में जो बकवास कि गई है वोह लेखक के मानसिक बिमारी का उदहारण है काबा तथा हजरे अस्वद का तअल्लुक़ किसी सनातन धर्म अथवा शिव या शिव लिंग से क्या हो सकता है ?दर असल लेखक ने झूटे इतिहास कारों की झूटी बातों पर भरोसा करके जिनका कोई अस्तित्व नहीं है एक अफसाना तराश कर लेख का रूप दे दिया है . ऐसे लोग जिन का ज्ञान सरल तथा कमज़ोर होता है जो सत्य असत्य में अंतर नहीं कर सकते और न ही करने की कोशिश करते हैं झूटी बातों को इतिहास का रूप देनें वाले इतिहासकारो की हर सच्ची झूटी बातों को सत्य समझ कर उसपर ईमान ले आते हैं, ठीक उस अबोध बच्चे की तरह जो दादी माँ की परियों तथा देवों की कथाओं को सच समझ बैठता है और दिनों रात उन्हीं के सपने देखा करता है
    चूँकि हमारे इस्लाम धर्म में किसी भी धर्म का ठठा तथा उस से सम्बंधित किसी चीज़ का मजाक उड़ाना निषेध है इसलिए मैं सनातन अथवा शिव एवं शिवलिंग की सत्यता अथवा असत्यता के बारे में कुछ नहीं कहूंगा हाँ इतना ज़रूर है कि हमारे धर्म के बारे में जो असत्य तथा अन्याय पूर्ण बातें कही जाती हैं उनका उत्तर अवश्य दिया जाए! काबा कि हकीकत के बारे में मैं इस से पूर्व लिख चूका हूँ तथा मौक़ा मिला और अल्लाह ने चाहा तो मक्का फतह करने के बयान के समय लिखूंगा
    अब निम्न में हजरे अस्वद के बारे में जो सत्यता है उसे बयान कर रहा हूँ इस यकीन के साथ कि जितना ब्यान कर रहा हूँ केवल उतना ही सत्य तथा कुरआन (इश्वर के बयान) एवं हदीस (नबी की बातों तथा कार्यों) से साबित है जिन्हें आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के प्यारे साथियों रज़ीअल्लाहोअन्हुम ने देखा , सुना ,समझा तथा ब्यान किया है बाक़ी सब बे सर पैर की बातें एवं अफ़साना है , अल्लाह हमें सही सोंच दे
    हजरे अस्वद क्या है ? : हजरे अस्वद काबा के दक्षनी कोने में मौजूद लाली मिला हुआ एक काला पत्थर है जो ज़मीन से डेढ़ मीटर की उंचाई पर काबा की दिवार में लगा हुआ है. यहाँ यह बताते चलें कि शुरू में हजरे अस्वद का आकार तीस सेंटी मीटर के करीब था लेकिन अनेक घटनाओं की वजह से उस में परिवर्तन आता गया तथा अब अनेक साईज़ के केवल आठ छोटे छोटे टुकड़े बचे हैं जिन में सब से बड़ा छोहारे के आकार का है , यह तमाम टुकड़े करीब ढाई फिट के कुतर में जड़े हुए हैं जिनके किनारे चांदी के गोल चक्कर घेरे हुए है. इस की हिफाज़त के लिए सब से पहले जिसने उसे चांदी से गच दिया वो अब्दुल्लाह बिन जुबैर रज़ियल्लाहो अन्हो हैं फिर बाद के राजाओं महाराजाओं ने भी उस में सोने तथा चांदी मढ़वाये सब से अंत में सउदी अरब के राजा शाह सऊद ने इसे खालिस चांदी से मढ़वाया.
    इस्लामी ईतिहास में हजरे अस्वद से एक नेहायत ही दुखद घटना जुडी हुई है, अबू ताहिर क़र्मोती (जिस का सम्बन्ध क्रामेता नामी शीई धर्म से था ) नाम के एक आक्रमणकारी ने सन ३१७ हिजरी में मक्का पर आक्रमण करके मक्का की पवित्रता को भंग कर दिया एवं काबा की बेहुरमती की एवं हाजियों को मार कर ज़मज़म के कुंवे में डाल दिया,तथा ज़मज़म के कुब्बे को गिरा दिया एवं काबा की दिवार को गिरा दिया तथा काबा की चादर को फाड़ कर अपने साथिओं में बाँट दिया एवं हजरे अस्वद को निकाल कर अपने साथ ले गया . बाईस वर्ष बाद सन 339 हिजरी में फिर दोबारा उसको उसके स्थान पर लौटा दिया गया। कृपया आगे अगले लेख मे पढे

    1. “इस्लामी ईतिहास में हजरे अस्वद से एक नेहायत ही दुखद घटना जुडी हुई है, अबू ताहिर क़र्मोती (जिस का सम्बन्ध क्रामेता नामी शीई धर्म से था ) नाम के एक आक्रमणकारी ने सन ३१७ हिजरी में मक्का पर आक्रमण करके मक्का की पवित्रता को भंग कर दिया एवं काबा की बेहुरमती की एवं हाजियों को मार कर ज़मज़म के कुंवे में डाल दिया,तथा ज़मज़म के कुब्बे को गिरा दिया एवं काबा की दिवार को गिरा दिया तथा काबा की चादर को फाड़ कर अपने साथिओं में बाँट दिया एवं हजरे अस्वद को निकाल कर अपने साथ ले गया . बाईस वर्ष बाद सन 339 हिजरी में फिर दोबारा उसको उसके स्थान पर लौटा दिया गया। ”

      क्या हालत कर दी उस पत्थर कि जो आपके हिसाब से अल्लाह कि तरफ से आया और

      मुहमद उसे चुमते थे

      न अल्लाह आया न उसके फर्सिश्ते

      और ये भी झूठ है “बाईस वर्ष बाद सन 339 हिजरी में फिर दोबारा उसको उसके स्थान पर लौटा दिया गया। ”
      मुस्लमान जब तक अबू तर्हिर था उसे वापस लेने कि कोशिश करते रहे लेकिन उसने दिया नहीं
      जब वो मर गया तभी वापस आये
      रेफेर तो “History of Khalifas”

      🙂

  91. हजरे अस्वद कहाँ से आया ? : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया (१) ” हजरे अस्वद अल्लाह तआला ने ज़मीन पर स्वर्ग से उतारा है यह दूध से अधिक सफ़ेद था बनू आदम (मनुष्य ) के पापों ने इसे काला कर दिया है ” (तिरमिज़ी एवं सहिहुलजामे /क्रमांक : ६७५६) (२) ” रुक्न (हजरे अस्वद ) तथा मक़ाम जन्नत के नीलमों में से एक नीलम है अल्लाह तआला ने इस के प्रकाश को समाप्त कर दिया है अगर इसके प्रकाश को ख़तम नहीं करता तो यह पूरब और पश्चिम को रौशन कर देते ” (मुस्नद अहमद , तिरमिज़ी एवं सहिहुलजामे /क्रमांक : १६३३) (३) हजरे अस्वद जन्नत से उतरा है जो बर्फ से ज्यादा सफ़ेद था जिसे आदमी के पापों ने काला कर दिया है ” (सिलसिला सहीहा)

    हजरे अस्वद किस युग में लगा ? : हजरे अस्वद अल्लाह तआला ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास जिब्रील अलैहिसलाम के हाथो भेजा ताकि वोह तवाफ़ करने वालों (काबा का चक्कर लगाने वालों) के लिए काबा के दक्षिणी किनारे में लगा दें ,जो काबा का तवाफ़ करने वालों के लिए एक निशानी हो और वोह यहीं से अपना तवाफ़ आरम्भ करें तथा यहीं पर समाप्त करें
    हुआ यूँ कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम जब काबा का निर्माण कर रहे थे तथा पत्थर जोड़ते जोड़ते उस जगह तक पहुंचे जहां पत्थर लगाना था तो अपने पुत्र इस्माइल अलैहिस्सलाम जो निर्माण में उनकी सहायता कर रहे थे एवं पत्थर ढो कर ला रहे थे से कहा कि एक ऐसा पत्थर लाओ जिसे मैं इस स्थान पर लगा दूँ ताकि तवाफ़ करने वाले यहीं से अपने तवाफ़ का आरम्भ करें अतः इस्माइल अलैहिस्सलाम पत्थर लाने गए जब वापस आये तो देखा कि एक पत्थर मौजूद है , पूछा : पिताजी यह पत्थर कहाँ से आया ? तो उन्हों ने कहा कि जिब्रील अलैहिस्सलाम ने लाकर दिया है

    हजरे अस्वद के फायदे तथा उसकी महत्ता : निम्न में हम हजरे अस्वद के कुछ फायदे एवं महत्ता के बारे में सहीह हदीसों की रोशनी में चंद बातें बयान करते हैं :(१) “यह स्वर्ग से उतरा हुआ पत्थर है”(सहीहुलजामे : क्रमांक /३१७५) (२) काबा में तवाफ़ जैसे महत्वपूर्ण अरकान को अदा करने के लिए अलामत और निशानी है (३) उसको चूमने से मोमिन के पाप झड़ जाते हैं (४) ” अल्लाह तआला हजरे अस्वद को क़यामत के दिन लाएगा तो उसकी दो आँखें होंगी जिनसे देखेगा और ज़बान होगी जिससे बोलेगा और हर उस शख्स की गवाही देगा जिस ने उसका हक़ीक़ी इस्तेलाम किया (छुआ ) होगा ” ( इब्नेमाजा एवं सहीहुलजामे क्रमांक /५३४६) (५) ” अगर हजरे अस्वद को जाहिलियत की गंदगियाँ नहीं लगी होती तो उसे कोई भी बीमार छूता तो वोह ठीक हो जाता और धरती पर इसके अतिरिक्त स्वर्ग कि कोई चीज़ नहीं है” (सहीहुलजामे क्रमांक /5334) (6) उसके चूमने अथवा छूने में रसूलुल्लाह सल्लल्लहोअलैहेवसल्लम की सुन्नत का पालन है जो हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है तथा इसके बगैर कोई मुसलमान मुसलमान नहीं रहता और इसके बगैर किसी भी मुसलमान की कोई इबादत एवं पूजा इश्वर के यहाँ अस्वीकार्य है

    क्या मुसलमान हजरे अस्वद की पूजा करते हैं ? : हजरे अस्वद से सम्बंधित जो भी अमल मुसलमान करते हैं उनका सीधा सम्बन्ध अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से है कोई भी कार्य जो सुन्नत से साबित नहीं उनका करना मना है इसीलिए उमर रज़ियल्लाहो अन्हो ने जब हजरे अस्वद को चूमा तो कहा :” मैं जानता हूँ कि तू केवल एक पत्थर है न तू नफा पहुंचा सकता है और न ही हानि अगर मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को तुझे चुमते हुए न देखा होता तो तुझे नहीं चूमता ” इमाम तबरी फरमाते हैं कि : ” उमर रज़ियल्लाहो अन्हों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि लोगों ने कुछ ही दिनों पहले बुतों कि पूजा को छोड़ा था तथा आप को डर हुआ कि कहीं यह लोग ये न समझने लगें कि पत्थर को चूमना उसकी ताजीम करना है जैसा कि इस्लाम से पूर्व अरब के लोग किया करते थे अतः उन्हों ने लोगों को यह बताना चाहा कि हजरे अस्वद का चूमना केवल अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कार्यों का अनुसरण है इसलिए नहीं कि उसके अन्दर कोई नफा तथा हानि की कोई शक्ति है ” यहाँ पता चला कि हजरे अस्वद को चूमना कोई पूजा या शर्द्दा नहीं है बल्कि ऐसी मुहब्बत और प्यार है जो अल्लाह के रसूल की सुन्नत के मुताबिक है , उदहारण के तौर पर : कोई आदमी जब अपनी पत्नी या संतान को चूमता है तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि वोह उनकी पूजा करता है अर्थात यह एक प्रेम है जो खून के रिश्ते के लिए उमड़ता है , इसी तरह हजरे अस्वद को चूमना या छूना एक प्रेम है जिसको करने का आदेश अल्लाह और उसके रसूल ने दिया है यह पद तथा यह स्थान दुनिया के किसी दुसरे पत्थर को बिलकुल प्राप्त नहीं चाहे उसका मूल्य कितना ही उंचा क्यों न हो , और लोग उसे कितना ही ऊँचा दर्जा क्यों न दे दें

    1. “इस्लामी ईतिहास में हजरे अस्वद से एक नेहायत ही दुखद घटना जुडी हुई है, अबू ताहिर क़र्मोती (जिस का सम्बन्ध क्रामेता नामी शीई धर्म से था ) नाम के एक आक्रमणकारी ने सन ३१७ हिजरी में मक्का पर आक्रमण करके मक्का की पवित्रता को भंग कर दिया एवं काबा की बेहुरमती की एवं हाजियों को मार कर ज़मज़म के कुंवे में डाल दिया,तथा ज़मज़म के कुब्बे को गिरा दिया एवं काबा की दिवार को गिरा दिया तथा काबा की चादर को फाड़ कर अपने साथिओं में बाँट दिया एवं हजरे अस्वद को निकाल कर अपने साथ ले गया . बाईस वर्ष बाद सन 339 हिजरी में फिर दोबारा उसको उसके स्थान पर लौटा दिया गया। ”

      क्या हालत कर दी उस पत्थर कि जो आपके हिसाब से अल्लाह कि तरफ से आया और

      मुहमद उसे चुमते थे

      न अल्लाह आया न उसके फर्सिश्ते

      और ये भी झूठ है “बाईस वर्ष बाद सन 339 हिजरी में फिर दोबारा उसको उसके स्थान पर लौटा दिया गया। ”
      मुस्लमान जब तक अबू तर्हिर था उसे वापस लेने कि कोशिश करते रहे लेकिन उसने दिया नहीं
      जब वो मर गया तभी वापस आये
      रेफेर तो “History of Khalifas”

      🙂

  92. आप सब से बडे झूठे हो। आप के सामने बहस करना है ऐसा है जैसे भैस के आगे बीन बजाना

    1. वेद में मुहम्मद के होने कि बात कहते हो
      प्रमाण देते नहीं

      अथर्व वेद में अध्याय दिखाते हो

      तो बताओं किसकी उम्मत झूठी सिद्ध हुयी
      मुहम्मद कि ही न
      🙂

  93. सबूत मैने दिए है और वेदो मे पुराणो मे लिखा है।और मुझे लगता है आपने वेद सही से पढे ही नही है

    1. वेदों में लिखा है तो प्रमाण दो?
      आप कहते हो कि अथर्ववेद के अध्याय में लिखा है लेकिन अथर्ववेद में अध्याय है ही नहीं
      अब क्या बोलें आपको

      1. भविष्य पुराण भी पढ लिया करो कभी कभी उसमे भी लिखा है।

        1. अभी वेद से पुराण पर आ गए

          वेद मान्य है उसका प्रमाण दो झूट के व्यापारी

          1. आप नेट पर सर्च करो वेदो मे मुहम्मद साहब के आना का उल्लेख।आपको सब कुछ मिलेगा

            1. मुझे तो पता है की मुहम्मद नाम के किसी व्यक्ति का जिक्र वेद में नहीं है

              दावा आपने किया की वेद में है तो आप साबित करिये की ऐसा है

              1. मैने पिछले उल्लेखो मे कर दिया है मानना ना मानना आपका काम है। क्योकि हमे इस्लाम सिखाता है किसी के दीन मे कोई जबरदस्ती नही । तुमको तुम्हारा दीन हमको हमारा दीन। अल्लाह आपको हिदायत दे। आमीन

                1. अरे इस्लाम के प्रचारक

                  ये तो बताओ की जो आप कह रहे हो वो झूठ नहीं है

                  1. जो आपने दिए हैं वो गलत हैं
                    ऐसा लगता है वेद का नाम ही नहीं सूना आपने कभी

                    1. हाँ सही है

                      जब अर्थार्वेद में अध्याय बताते हो तो ऐसा ही होगा

                    2. आपने गलत पढा है वहा श्लोक लिखा है। बात बात पर झूठ बोलते हो

                    3. नफीस मलिक भाई जान
                      केवल आप सत्य बोलते हैं और सब झूठ बोलते हैं | धन्य हो प्रभु आप | आपकी सब बात सत्य और हमारी हर बात असत्य | कुवें के मेढक की तरह सोच ना रखें मेरे बंधू | सत्य की खोज करो बंधू | और दुसरे की कॉपी पेस्ट करना छोडो जिनसे आप कॉपी करते हो आर्टिकल उन्हें भी कुछ ज्ञान नहीं | हमने आपको बोला हमारे fb पेज पर आये वहां आपको प्रमाण के साथ सारे सवाल का जवाब राहुल झा जी स्क्रीनशॉट के साथ देंगे मगर आप आते ही नहीं चर्चा करने | उन्हें यहाँ स्क्रीनशॉट रखने में बहुत परेशानी होती है इस कारण वे यहाँ जवाब नहीं देते | धन्यवाद |

                  2. अरे मेरे भाई आपने जो दिया है वो गलत है
                    अथर्ववेद में अध्याय होता ही नहीं है
                    जब नहीं पता तो झूठ क्यों लिखते और बोलते हो

                  3. अरे इस्लाम के प्रचारक

                    ये तो बताओ की जो आप कह रहे हो वो झूठ नहीं है

  94. अगर इस्लाम आतंकवाद
    की शिक्षा देता है तो फिर क्यूँ नासा के कई
    वैज्ञानिको ने
    इस्लाम कुबूल किया?
    क्यूँ यूसुफ योहाना व अफ्रीकन क्रिकेटर और
    वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा मुस्लिम बन गऐ
    क्यूँ ए एस दिलीप मुसलमान
    होकर एआर रहमान हो गए?
    क्यूँ शक्ति कपूर, ममता कुलकर्णी ,सरोज खान,
    बालिका वधू स्टार ,और कई दक्षिण के अभिनेताओं ने इस्लाम
    कुबूल किया?
    क्यूँ टोनी ब्लेयर की बहन ने इस्लाम
    कुबूल कर लिया?
    क्यूं मुहम्मद अली मुसलमान हो गए?
    क्यूँ यू एस ए में 9/11 के बाद 25.67 लाख से
    भी ज्यादा लोगों ने इस्लाम कुबूल किया?
    क्यूँ अब्राहम विलिंग्टन यूएस आर्मी में
    भर्ती होकर मुसलमानों को मारने का इरादा छोड़कर
    मस्जिद जाकर मुसलमान हो गए?
    क्यूँ गैरी मिलर जो कि कुरान के विरोधी थे
    कुरान पढ़कर मुसलमान हो गए?
    क्यूँ कामेडी स्टार मिस्टर बीन मुसलमान
    हो गए?
    क्यूँ माइक टायसन और माइकल जैकसन मुसलमान बन गए?
    क्यूँ हिजाब की विरोधी ब्रिटेन
    की पुलिस अफसर जेने कैम्प
    इस्लामी शिक्षाएँ पढ़कर मुसलमान हो गईं?
    फ्राँस में क्या ओसामा आया था कि फ्राँस 60% मुसलिम
    आबादी वाला देश बन गया?
    1929 में यू एस ए में एक मस्जिद थी आज 2500
    से भी ज्यादा है
    और
    सन् 2003 तक रूस में 250 मस्जिदें थीं आज
    3000 ज्यादा हैं से;
    क्यूँ रूस 30% मुसलिम आबादी वाला देश बन गया?
    क्यूँ यूके की संसद मे ईसाइयो के इस्लाम कुबूलने
    की बढ़ती हुई तादाद के बाबत
    आपातकालीन चर्चा हुई? और अगर
    क्वीन
    डायना ना मारी जाती तो अब तक पूरा यूके
    मुसलिम राष्ट्र घोषित हो जाता!
    इंडोनेशिया और मलेशिया में 100 साल पहले बौद्ध देश थे आज
    85% मुसलिम आबादी वाले देश हैं
    कोई
    दुनिया की किसी भी इतिहास
    की किताब में यह दिखा दे कि मुसलमानों ने वहाँ कब
    और कौनसी जंग की?
    राये है क्या आपके.
    इस बात को सभी को शेयर
    करो ताकि सभी को पता चल जाये
    की इस्लाम आतंकवाद
    की शिक्षा नही देता है वो तो एक दुसरे
    को मिलाने की, भाई चारे की, प्यार मोहब्बत

    अगर हम मुसलमान इतने बुरे है तो क्यो इस्लामिक देशो से निकले तेल से अपनी गाडी चलाते हो ।

    1. आतंकवादी संगठन इस्लाम के वाहक हैं
      प्रतिमूर्ति हैं
      Isis इत्यादि संगठन इस्लाम से ही तो हैं
      औरतो की मंडियां लगाना
      लोगों को ज़िंदा जलाना के इस्लाम का शांतिप्रिय सन्देश ही तो है ☺

      1. क्या बकवास है सती प्रथा देवदासी प्रथा लडकियो को पेट मे ही मारना विधवा औरतो को जिन्दा जलाना ये सब हिन्दु धर्म मे था। और इन सब को इस्लाम ने खत्म किया है। याद करो औरंगजेब बादशाह को उसने ही इन प्रथाओ को खत्म किया था हिन्दुस्तान के अन्दर से।और रही बात आंतकवाद की इसकी इस्लाम हमेशा से ही निन्दा करता है। क्योकि अल्लाह पाक कुरान मे कहते है एक बेगुनाह का कत्ल तमाम इन्सानियत का कत्ल है।और आईएस बेकसूरो को मारता है। ये इस्लाम के हमदर्द नही है दुश्मन है।

        और अब बस मुझे आपसे बहस नही करनी है। आप मुझसे मिले या फोन पर बात करे। मै कोशिश करूगा आपकी सारी गलत फहमी दूर करने की। मेरा पता UP Shamli. Barkhandi gli no2. Mobile no.7906442122 plz ek bar miscall de phone me khud krunga.

        1. झूठ के पुलिन्दे हैं आपके तर्क

          औरतों को बाज़ार में बेचना मारना आपके वर्तमान और ,itihas इसका आयना चाहे वो जाहिल अरब के निवासी हों या फिर isis sab isee ke udaharan hein

          1. अपने आप को सही समझते हो एक बार मिसकाल क्यो नही करते है

              1. आप से मेरा निवेदन है नेट पर इस्लाम से सम्बन्धित सभी आरटिकल पढे। ध्यान रहे उनके लेखक मुस्लिम ही हो ।उसके बाद आपकी सारी गलतफहमी दूर हो जायेगी। आपको इस्लाम की इतनी अच्छाई नजर आयेगी। इन्शाअल्लाह आप हिदायत पाओगे। लेकिन अगर आप इस्लाम से सम्बन्धित हिन्दुओ के आरटिकल पढोगे तो वे सब इस्लाम को गाली गलोच ही देगे। आधी अधूरी काट छाट के आयते हदीसे कुछ अपनी तरफ से झूठे आयते लिखेगे और इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश करेगे। कृप्या इन से सावधान रहे।

                1. नफीस भाई जान
                  यदि कोई मुस्लिम लेखक की बात बोल रहे हो तो आप महेंद्र पाल आर्य से चर्चा कर सकते हो जो मुस्लिम से आर्य बने हैं | और वह मुस्लिम के मोलवी थे बागपत के | थोडा उनसे ही चर्चा कर लेना जी | उनकी पुस्तक को पढ़ लेना |

                  1. झूठ बोलने से क्या फायदा। एक सच्चा पढा लिखा मुसलमान अपनी जान दे सकता है पर अपना ईमान नही छोड सकता। मैने यूटयूब पर देखा है वे तो पहले से ही हिंदु है। तुम सब का धंधा ही झूठ बोलना है

                    1. नफीस मलिक भाई जान
                      केवल आप सत्य बोलते हैं और सब झूठ बोलते हैं | धन्य हो प्रभु आप | आपकी सब बात सत्य और हमारी हर बात असत्य | कुवें के मेढक की तरह सोच ना रखें मेरे बंधू | सत्य की खोज करो बंधू | और दुसरे की कॉपी पेस्ट करना छोडो जिनसे आप कॉपी करते हो आर्टिकल उन्हें भी कुछ ज्ञान नहीं | हमने आपको बोला हमारे fb पेज पर आये वहां आपको प्रमाण के साथ सारे सवाल का जवाब राहुल झा जी स्क्रीनशॉट के साथ देंगे मगर आप आते ही नहीं चर्चा करने | उन्हें यहाँ स्क्रीनशॉट रखने में बहुत परेशानी होती है इस कारण वे यहाँ जवाब नहीं देते | धन्यवाद |

                    2. Quran Surah An-Nisa Ayah 20
                      यहाँ पर तलाक़ देकर और निकाह करके बीवी बदलने की बात की गई है।
                      𝙉𝙤𝙩𝙚:- नबी (स० अ० व०) का फरमान है कि हलाल चीजों में अल्लाह को सबसे ज्यादा नापसंद तलाक है।

                      Narrated Ibn `Umar:

                      When the earliest emigrants came to Al-`Usba [??] a place in Quba’, before the arrival of the Prophet- Salim, the slave of Abu Hudhaifa, who knew the Qur’an more than the others used to lead them in prayer.
                      बुखारी शरीफ ६९२

                      𝙉𝙤𝙩𝙚:- इस बन्दे ने झूठ लिखा है। इस्लाम के बारे में झूठ के अलावा और लिख भी क्या सकता है।

                      Anas bin Malik narrated that: The Messenger of Allah said: There is nothing that the two Guardian Angels raise to Allah that they have preserved in a day or night, and Allah finds good in the beginning of the scroll and in the end of the scroll, except that Allah Most High says: ‘Bear witness that I have forgiven my servant for what is included in the scroll.’
                      तिर्मिज़ी शरीफ हदीस ९८१

                      𝙉𝙤𝙩𝙚:- यहाँ भी इस कमीने ने झूठ लिखा है।

        2. औरतों को बेचने रखैल बनाने गुलाम बनाकर रखने जैसे काम तो इस्लाम मेंहोते आये हैं प्रारम्भ से एयर आज भी हो रहे हैं isis आज भी औरतों को बेचरहा है
          यही तो इस्लाम है

    2. बहुत खूब इस्लाम मैं लिखा और सिखया जाता हैं आबादी बढ़ाओ और राज करो

      1. ji saty bola aapne बहुत खूब इस्लाम मैं लिखा और सिखया जाता हैं आबादी बढ़ाओ और राज करो

        1. Yaar meri smaj me to ye bilkul nhi aata mene jitne bhi muslim dekhe sabke 3 ya 4 hi bacche mile hai. To fir ye kuch hindu pandit arye log jhut kyu bolte hai ki muslim 15 bacche peda karte hai

          1. आपकी जानकारी के दायरे को बढ़ाएं

            और आज के युग में भी ४ बच्चे और ४ बीवियों के बारे में सोचने वाले को क्या कहेंगे

            🙂

            1. मैने तो आज तक किसी मुस्लिम की चार बीवी नही देखी दो भी नही

              1. मेरे बंधू आपने नहीं देखा इसका मतलब यह नहीं की ऐसा नहीं होता | और मान लो चलो ४ बीवी आपने नहीं देखा फिर सरकार अभी सिविल लॉ लाने को है उसका विरोध क्यों मुस्लिम कर रहे हैं

              2. अनुभव नहीं है आपको
                आपके मुहम्मद साहब ने ही कितनी कि थी १३ और लौंडियाँ जो राखी वो अलग

          2. bhai thik se jankari kro muslim ke hi sabse jyada bacche hote h aur aapko ye jhut lagta h to proof diye h unhe galat sabit kre

  95. अन्तिम संदेष्टा का वर्णन वेदों की दुनिया में:
    अन्तिम संदेष्टा का वर्णन वेदों में नराशंस के नाम से 31 स्थान पर हुआ है और पुराणों में कल्कि अवतार के नाम से उनका वर्णन मिलता है।
    नराशंस की खोजः नराशंस शब्द “नर” और “आशंस” दो शब्दों से मिल कर बना है। नर का अर्थ होता है मनुष्य और आशंस का अर्थ होता है ” प्रशंसित” अर्थात् मनुष्यों द्वारा प्रशंसित। ज्ञात यह हुआ कि वह व्यक्ति मनुष्यों द्वारा प्रशंसित होगा और मनुष्य की जाति से होगा, देवताओं की जातियों से नहीं। और मुहम्मद का अर्थ भी “प्रशंसित मनुष्य” होता है जो मनुष्य ही थे और आज जब मुसलमान उन्हें एक मनुष्य के रूप में ही देखता है।
    नराशंस की विशेषताएं
    हम वेदों द्वारा नराशंस की कुछ प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करते हैं:
    (1) वाणी की मधुरताः ऋग्वेद में नराशंस को “मधुजिह्वं” (ऋग्वेद संहिता 1/13/3) कहा गया है। अर्थात् उन में वाणी की मधुरता होगी। और सभी जानते हैं कि मुहम्मद सल्ल0 की वाणी में काफी मिठास थी।
    (2) सुन्दर कान्ति के धनीः इस विशेषता का उल्लेख करते हुए ऋग्वेद संहिता (2/3/2) में “स्वर्चि” शब्द आया है। इस शब्द का अर्थ है “सुन्दर दिप्ति या कान्ति से यु्क्त” और मुहम्मद सल्ल0 इतने सुन्दर थे कि लोग स्वतः आपकी ओर खींच आते थे अपितु आपकी सुंद्रता चाँद के समान थी।
    (3) पापों का निवारकः ऋग्वेद(1/106/4) में नराशंस को पापों से लोगों को हटाने वाला बताया गया है। और यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मुहम्मद सल्ल0 की समस्त शिक्षायें लोगों को पापों से निकालती हैं। इस्लाम जुआ, शराब, अवैध कमाई, ब्याज आदि से रोकता है और अत्याचार, दमन और शौषण से मुक्त समाज की स्थापना करता है।
    (4) पत्नियों की साम्यताः अथर्ववेद कुन्ताप सूक्त (20/127/2) में आया है कि नराशंस के पास 12 पत्नियाँ होंगी। और वास्तव में मुहम्मद सल्ल0 के पास 12 पत्नियाँ थीं। “उल्लेखनीय है कि और किसी भी धार्मिक व्यक्ति की बारह पत्नियाँ नहीं थीं” ( देखिए हज़रत मुहम्मद सल्ल0 और भारतीय धर्म ग्रन्थ, लेखकः डा0 एम ए श्रीवास्तव पृष्ठ 12)
    अन्य विशेषताएं:
    (1) नराशंस की प्रशंसा की जाएगी तथा सबको प्रिय होगा(ऋग्वेद संहिता 1/13/3) संसार में जितनी प्रशंसा मुहम्मद सल्ल0 की की गई तथा आज तक की जा रही है वह किसी व्यक्ति के भाग में नहीं आया। हर मुस्लिम उन्हें केवल ईश्-दुत मानता है तथा यह आस्था रखता है कि वह लाभ अथवा हानि के अधिकारी नहीं फिर भी उनके लिए अपनी जान भी देने में संकोच नहीं करता क्योंकि उन्हीं के द्वारा अन्तिम ईश्वरीय संदेश मिला।
    (2) नराशंस सवारी के रूप में ऊँटों का प्रयोग करेगा( अथर्ववेद 20/127/2) मुहम्मद सल्ल0 ऊँट की सवारी ही करते थे क्योंकि आपके समय में ऊँटों की ही सवारी होती थी।
    (3) नराशंस को परोक्ष का ज्ञान दिया जाएगा (ऋग्वेद संहिता 1/3/2) मुहम्मद सल्ल0 ने परोक्ष से सम्बन्धित विभिन्न बातें बताईं जो सत्य सिद्ध हुईं।
    (4) नराशंस अत्यधिक सुन्दर एवं ज्ञान के प्रसारक होंगे।(ऋग्वेद संहिता 2/3/2) मुहम्मद सल्ल0 का मुख-मण्डल चंद्रमा के समान था जिस पर प्रत्येक इतिहारकार सहमत हैं। उसी प्रकार आपने ईश्वरीय ज्ञान को घर घर प्रकाशित किया और आज यह ज्ञान पूरे संसार में फैला हुआ है।
    (5) नराशंस लोगों को पापों से निकालेगा (ऋग्वेद संहिता 1/106/4) हमने पिछले पन्नों में सिद्ध किया है कि मुहम्मद सल्ल0 जिस समाज में पैदा हुए वह समाज हर प्रकार के पापों में ग्रस्त था परन्तु आपने उनके आचरण की सुधार की।
    (6) नराशंस को सौ निष्क प्रदान किए जाएंगे (अथर्ववेद 20/127/6)
    (7) नसाशंस दस मालाओं वाला होगा। (अथर्ववेद 20/127/6)
    (8) नराशंस दस हज़ार गौयों से युक्त होगा। (अथर्ववेद 20/127/6)
    डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय लिखते हैं कि सौ निष्क से अभिप्राय चबूतरा में रहने वाले साथी हैं जो आप से धार्मिक शिक्षा लिया करते थे। उनकी संख्या भी 100 थी। दस मोतियों के हार से संकेत आप सल्ल0 के उन मित्रों की ओर है जिन्हें संसार ही में स्वर्ग की शुभ-सूचना दी गई थी। दस हज़ार गौयों से अभिप्राय वह सहयोगी हैं जिनकी सहायता से मक्का पर विजय प्राप्त किया था उनकी संख्या भी दस हज़ार थी।
    यह था मुहम्मद सल्ल0 का संक्षिप्त वर्णन वेदों की दुनिया में, रहा यह कि पुराणों ने आपके सम्बन्ध में क्या भविष्यवाणी की है तो इसका वर्णन हम अगले पोस्ट में करेंगे——कृपया कुछ लिखने से पहले मेरा अगला लेख भी पढे वो इसे का बचा हुआ हिस्सा। पूरी बात पढकर तब कमेंट करना

    1. लगता है ये आपके किसी मित्र ने लिखा है

      और वेदों के अर्थ भी गलत हैं
      लगता है आपको भी इह्लाम आने लगा है
      मुहम्मद साहब और मिर्ज़ा गुलाम अहमद की तरह

  96. पुराणों के प्रमाण:
    भविष्य पुराण में इस प्रकार आया हैः” हमारे लोगों का खतना होगा, वे शीखाहीन होंगें, वे दाढ़ी रखेंगे, ऊँचे स्वर में आलाप करेंगे यानी अज़ान देंगे, शाकाबारी मांसाहारी (दोनों) होंगे, किन्तु उनके लिए बिना कौल अर्थात् मंत्र से पवित्र किए बिना कोई पशु भक्ष्य (खाने) योग्य नहीं होगा (वह हलाल मास खाएंगे) , इस प्रकार हमारे मत के अनुसार हमारे अनुवाइयों का मुस्लिम संस्कार होगा। उन्हीं से मुसलवन्त अर्थात् निष्ठावानों का धर्म फैलेगा और ऐसा मेरे कहने से पैशीत धर्न का अंत होगा।” [भविष्य पुराण पर्व3 खण्ड3 अध्याय1 श्लोक 25, 26, 27 ]
    भविष्य-पुराण के अनुसार ”शालिवाहन (सात वाहन) वंशी राजा भोज दिग्विजय करता हुआ समुद्रपार (अरब) पहुंचे तथा (उच्च कोटि के) आचार्य शिष्यों से घिरे हुए महामद (मुहम्मद सल्ल0) नाम के विख्यात आचार्य को देखा।” [ प्रतिसर्ग पर्व 3, अध्याय 3, खंड 3 कलियुगीतिहास समुच्चय] संग्राम-पुराण में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं:
    तब तक सुन्दर मद्दिकोया।
    बिना महामद पार न होया।
    अर्थात् ” जब तक सुन्दर वाणी (क़ुरआन) धरती पर रहेगी उसके और महामद ( मुहम्मद सल्ल0) के बिना मुक्ति न मिलेगी।”
    संग्राम-पुराण, स्कन्द 12, कांड 6 पद्दानुवाद: गोस्वामी तुलसी दास)
    कल्की अवतार का स्थानः
    अन्तिम संदेष्टा की आगमण के सम्बन्ध में पुराणों में बताया गया है कि जिस युग के युद्ध में तलवार तथा सवारी में घोड़ा का प्रयोग होगा ऐसे ही ऐसे ही युग में अन्तिम संदेष्टा की आगमण होगी। बल्कि कल्कि पुराण में अन्तिम संदेष्टा के जन्म-तिथि का भी उल्लेख किया गया है:
    ” जिसके जन्म लेने से मानवता का कल्यान होगा, उसका जन्म मधुमास के शुम्भल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथी को होगा।“[ कल्कि पुराण 2:15 ]
    मुहम्मद सल्ल0 का जन्म भी 12 रबीउल अव्वल को हुआ, रबीउल-अव्वल का अर्थ हाता है मधवमास का हर्षोल्लास का महीना।
    श्रीमद भगवद महापुराण में कल्कि अवतार के माता पिता का वर्णन करते हुए कहा गया है:
    शम्भले विष्णु पशसो ग्रहे प्रादुर्भवाम्यहम।
    सुमत्यांमार्तार विभो पत्नियाँ न्नर्दशतः।।
    अनुवाद: “ सुनो! शम्भल शहर में विष्णु-यश के यहाँ उनकी पत्नी सुमत्री के गर्भ से पैदा होगा।” [ कल्कि अवतार अध्याय2 श्लोक1]
    इस श्लोक में अवतार का जन्म स्थान शम्भल बताया गया है, शम्भल का शाब्दिक अर्थ है ” शान्ति का स्थान” और मक्का जहाँ मुहम्मद सल्ल0 पैदा हुए उसे अरबी में “दारुल-अम्न” कहा जाता है। जिसका अर्थ ” शान्ति का घर” होता है। विष्णुयश कल्कि के पिता का नाम बताया गया है और मुहम्मद सल्ल0 के पिता का नाम अब्दुल्लाह था और जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अर्थ अब्दुल्लाह का होता है। विष्णु अर्थात् अल्लाह और यश अर्थात् बन्दा, यानी “अल्लाह का बन्दा।” (अब्दुल्लाह) ।
    उसी प्रकार कल्कि की माता का नाम “सुमति” ( सोमवती) आया है जिसका अर्थ होता है: ” शान्ति एवं मननशील स्वभाव वाली” और मुहम्मद सल्ल0 की माता का नाम भी “आमना” था जिसका अर्थ है: ” शान्ति वाली।”
    कल्कि अवतार की प्रमुख विशेषताएं
    (1) जगत्पतिः अर्थात् संसार की रक्षा करने वाला। भगवत पुराण द्वादश स्कंध,द्वीतीय अध्याय,19वें श्लोक में कल्कि अवतार को जगत्पति कहा गया है। और वास्तव में मुहम्मद सल्ल0 जगत्पति हैं। क़ुरआन ने मुहम्मद सल्ल0 को “सम्पूर्ण संसार हेतु दयालुता” (सूरःअल-अम्बिया107) की उपाधि दी है। एक दूसरे स्थान पर क़ुरआन कहता है “हमने तुमको सभी इंसानों के लिए शुभसूचना सुनाने वाला और सचेत करने वाला बना कर भेजा है। ” (सूरः सबा आयत 28)
    (2) चार भाइयों के सहयोग से युक्त
    कल्कि पुराण (2/5) के अनुसार चार भाईयों के साथ कल्कि कलि ( शैतान) का निवारण करेंगे। मुहम्मद सल्ल0 ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। यह चार साथी थे अबू बक्र रज़ि0, उमर रज़ि0, उस्मान रज़ि0 और अली रज़ि0।
    (3) शरीर से सुगन्ध का निकलना
    कल्कि पूराण (द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 21वाँ श्लोक) में भविष्यवाणी की गई है कि कल्कि के शरीर से ऐसी सुगन्ध निकलेगी जिस से लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। और मुहम्मद सल्ल0 के शरीर की खूशबू बहुत प्रसिद्ध है, आप जिस से हाथ मिलाते थे उसके हाथ से दिन भर सुगन्ध आती रहती थी।
    हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में मुहम्मद तथा अहमद का उल्लेख
    आज के इस पोस्ट में हम आपकी सेवा में कुछ ऐसे प्रमाण पेश कर रहे हैं जिन से सिद्ध होता है कि “कल्कि अवतार” अथवा “नराशंस” जिनके सम्बन्ध में हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों ने भविष्यवाणी की है वह मुहम्मद सल्ल0 ही हैं। क्योंकि कुछ स्थानों पर स्पष्ट रूप में “मुहम्मद” और “अहमद” का वर्णन भी आया है।
    देखिए भविष्य पुराण ( 323:5:8)
    ” एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आएगा उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएगा

    1. लगता है ये पुराण किसी आपके मित्र ने लिखा है
      ये कोई हिन्दू धर्म का ग्रन्ध नहीं है

  97. श्रीमदभग्वत पुराण : उसी प्रकार श्रीमदभग्वत पुराण (72-2) में शब्द “मुहम्मद” इस प्रकार आया है:
    अज्ञान हेतु कृतमोहमदान्धकार नाशं विधायं हित हो दयते विवेक
    “मुहम्मद के द्वारा अंधकार दूर होगा और ज्ञान तथा आध्यात्मिकता का प्रचनल होगा।”
    यजुर्वेद (18-31) में है:
    वेदाहमेत पुरुष महान्तमादित्तयवर्ण तमसः प्रस्तावयनाय
    ” वेद अहमद महान व्यक्ति हैं, यूर्य के समान अंधेरे को समाप्त करने वाले, उन्हीं को जान कर प्रलोक में सफल हुआ जा सकता है। उसके अतिरिक्त सफलता तक पहंचने रा कोई दूसरा मार्ग नहीं।”
    इति अल्लोपनिषद में अल्लाह और मुहम्मद का वर्णन:
    आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांतजलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।इति अल्लोपनिषद
    अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’
    इस श्लोक का वर्णन करने के पश्चात डा0 एम. श्रीवास्त व अपनी पुस्तक “हज़रत मुहम्म,द (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्थन” मे लिखते हैं:
    (बहुत थोड़े से विद्वान, जिनका संबंध विशेष रूप से आर्यसमाज से बताया जाता है, अल्लोपनिषद् की गणना उपनिषदों में नहीं करते और इस प्रकार इसका इनकार करते हैं, हालांकि उनके तर्कों में दम नहीं है। इस कारण से भी हिन्दू धर्म के अधिकतर विद्वान और मनीषी अपवादियों के आग्रह पर ध्यान नहीं देते। गीता प्रेस (गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के प्रमाणिक प्रकाशन केंद्र के रूप में अग्रगण्य है। यहां से प्रकाशित ‘‘कल्याण’’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं। इसकी विशेष प्रस्तुति ‘‘उपनिषद अंक’’ में 220 उपनिषदों की सूची दी गई है, जिसमें अल्लोपनिषद् का उल्लेख 15वें नंबर पर किया गया है। 14वें नंबर पर अमत बिन्दूपनिषद् और 16वें नंबर पर अवधूतोपनिषद् (पद्य) उल्लिखित है। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी अल्लोपनिषद को प्रामाणिक उपनिषद् माना है। ‘देखिए: वैदिक साहित्य: एक विवेचन, प्रदीप प्रकाशन, पृ. 101, संस्करण 1989।)
    हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और बौद्ध धर्म ग्रन्थ
    डा. एम. ए. श्रीवास्तकव नें एक पुस्तक लिखा है (हज़रत मुहम्म द (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्थ ) अपनी इस पुस्तक की भूमिका में वह लिखते हैं-
    (हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना हमें बाइबिल, तौरेत और अन्य धर्मग्रन्थों में मिलती है, यहाँ तक कि भारतीय धर्मग्रन्थों में भी आप (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियाँ मिलती हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों में इस प्रकार की पूर्व-सूचनाएं मिलती हैं। इस पुस्तिका में सबको एकत्र करके पेश करने का प्रयास किया गया है।) इस पुस्तक से एक भाग हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं आशा है कि इस से लाभांवित होंगे।
    अंतिम बुद्ध-मैत्रेय और मुहम्मद (सल्ल.) बौद्ध ग्रन्थों में जिस अंतिम बुद्धि मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही सिद्ध होते हैं। ‘बुद्ध’ बौद्ध धर्म की भाषा में ऋषि होते हैं।
    गौतम बुद्ध ने अपने मृत्यु के समय अपने प्रिय शिष्य आनन्दा से कहा था कि-
    ‘‘नन्दा! इस संसार में मैं न तो प्रथम बुद्ध हूं और न तो अंतिम बुद्ध हूं। इस जगत् में सत्य और परोपकार की शिक्षा देने के लिए अपने समय पर एक और ‘बुद्ध’ आएगा। यह पवित्र अन्तःकरणवाला होगा। उसका हृदय शुद्ध होगा। ज्ञान और बुद्धि से सम्पन्न तथा समस्त लोगों का नायक होगा। जिस प्रकार मैंने संसार को अनश्वर सत्य की शिक्षा प्रदान की, उसी प्रकार वह भी विश्व को सत्य की शिक्षा देगा। विश्व को वह ऐसा जीवन-मार्ग दिखाएगा जो शुद्ध तथा पूर्ण भी होगा। नन्दा! उसका नाम मैत्रेय होगा। (Gospel of Buddha, by Carus, P-217)
    बुद्ध का अर्थ ‘बुद्धि से युक्त’ होता है। बुद्ध मनुष्य ही होते हैं, देवता आदि नहीं। (It is only a human being tha can be a Buddha, a deity can not. ‘Mohammad in the Buddist Scriputures P.1′)मैत्रेय का अर्थ ‘दया से युक्तa’ होता है।————-

    1. नफीस माली भाई जान
      कितना कॉपी पेस्ट करोगे जी | और कॉपी पेस्ट भी वैसा लोगो का करते हो जिन्हें केवल असत्य बोलना आता है | आपकी बात को या उनकी बात को वे आसानी से सही समझ लेते हैं क्यूंकि उन्हें उन्हें उस विषय पर कोई जानकारी नहीं जी | चलो उदाहरन देने से पहले आपकी बात को खुद समझाना चाहता हु आपने बोला की कोई मुस्लिम हो जिसने सत्य को बतलाया हो तो मैंने जानकारी दी महेंद्र पाल आर्य जी का जो मुस्लिम थे और सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर इस्लाम को छोड़कर वैदिक धर्म की ओर अग्रसर हुए मगर आप शुरू से उन्हें आर्य मानते हो बोलते हो की वे हिन्दू थे | अब आये एक अंधे को आप दिन को रात बोलेगे तो वह सहर्स स्वीकार कर लेगा वैसे ही धर्म ज्ञान से अंधे को आप कुछ भी बतलाओगे उसे सत्य मान लेगा और लोग ऐसे ही करते हैं | आये अब आपको आपके इस पोस्ट का जवाब देता हु पुराण वेद इत्यादि से |

      श्रीमदभग्वत पुराण : उसी प्रकार श्रीमदभग्वत पुराण (72-2) में शब्द “मुहम्मद” इस प्रकार आया है:
      अज्ञान हेतु कृतमोहमदान्धकार नाशं विधायं हित हो दयते विवेक
      “मुहम्मद के द्वारा अंधकार दूर होगा और ज्ञान तथा आध्यात्मिकता का प्रचनल होगा।”

      मेरे बंधू पुराण में स्कंध होते हैं और अध्याय होते हैं मगर आपने जिससे कॉपी पेस्ट किया है उसे यह भी मालुम नहीं तभी तो (72-2) लिखा है | आये आपके अज्ञान को दूर किया जाए जहा से आपने कॉपी पेस्ट किया है और जिसने लिखा उसे भी | मोहमदान्धकार आप इस बात की ओर इंगित कर रहे हो की मुहमद साहब का नाम आया है भगवत पुराण में आप बोल रहे हो उनका नाम आया है मुहमद साहब का नाम आया है भाई जान इसे अच्छे से समझे मोह = माया , मद = घमंड , और अंधकार का अर्थ आप समझते हो | फिर मुहमद का नाम कहा से आ गया जनाब | आपको सत्य समझने की जरूरत है | अरे शब्द में अ इ इत्यादि लग जाते हैं तो सब्द का अर्थ बदल जाता है जैसे आपको कुछ उदाहरन देता हु कुछ शब्द हैं अमृत इसमें आ जुड़ जाए तो अमृता हो जाता है जिसका अर्थ ही बदल जाता है और पुरुष से स्त्री हो जाता है | कृष्ण इसमें आ लग जाए कृष्णा हो जाता है जिसका अर्थ ही बदल जाता है और पुरुष से स्त्री हो जाता है |रोशन में इ लग जाए तो रौशनी हो जाता है मोहन में इ लग जाए मोहनी हो जाता है | भाई जान यहाँ तो आप मोहमदान्धकार से मुहमद समझ रहे हो जो की बिलकुल गलत है आपको मुहमद और मोहमद का में कोई अर्थ समझ नहीं आता दोनों एक तरह की लगता है | धन्य हो महा प्रभु आप लोगो की सोच पर | सब्द के अर्थ को नहीं समझते हो और खुद बोलते हो की मैं बहुत ग्यानी हु | और दूसरी बात आपको पुराण से ही चर्चा करनी है तो हम आपको स्क्रीनशॉट से जवाब देंगे हमारे फेसबुक पेज पर आये वहा चर्चा करे आपको राहुल झा जी प्रमाण के साथ जवाब देंगे |
      आगे कमेंट में आपको वेद से जानकारी दूंगा जी जिसके बारे में आपने सवाल किया है या जिन्होंने यह लेख लिखा है | भाई झूठ बोलना बंद करो सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटो |

      1. यजुर्वेद (18-31) में है:
        वेदाहमेत पुरुष महान्तमादित्तयवर्ण तमसः प्रस्तावयनाय
        ” वेद अहमद महान व्यक्ति हैं, यूर्य के समान अंधेरे को समाप्त करने वाले, उन्हीं को जान कर प्रलोक में सफल हुआ जा सकता है। उसके अतिरिक्त सफलता तक पहंचने रा कोई दूसरा मार्ग नहीं।”

        इसका सही अर्थ आपको इस लिंक से देता हु मगर आप इसे भी अस्वीकार करोगे |
        http://www.onlineved.com/yajur-ved/?language=2&commentrator=6&adhyay=18&mantra=31

        लिंक पर जाओ आपको सत्य की जानकारी हो जायेगी |

        अब आपके आगे कमेंट का जवाब
        इति अल्लोपनिषद में अल्लाह और मुहम्मद का वर्णन:
        आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांतजलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।इति अल्लोपनिषद
        अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’

        अरे भाई साहब आर्य समाज केवल ११ उपनिषद को मानता है और पौराणिक १०८ उपनिषद को मानते हैं उनमे अल्लोप्निश्द नहीं आता जी | केवल लेखक झूठ बोल रहा है जहा से आपने कॉपी पेस्ट किया है | आप फेसबुक पर आये आपको स्क्रीनशॉट के साथ जानकारी दे दी जायेगी कौन से ११ उपनिषद हैं या १०८ उपनिषद हैं पौराणिक हिसाब से | और आपकी यह भी जानकारी गलत है की २२० प्रकार का उपनिषद है अभी २२५ प्रकार का उपनिषद बाजार में है जैसे अभी गांधी पुराण भी आ गयी है कुछ दिन में साईं पुराण भी आ जायेगी | भाई मिलावटी ग्रन्थ से बचो और सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटो | धन्यवाद | आपका लेख इतना बड़ा है जिसका जवाब देना संभव नहीं जी | हमारे पास इतना समय नहीं की आप कहीं से कॉपी पेस्ट करके गलत बात को रखो और हम उनका खंडन करते रहे सत्य की जानकारी देते रहे | कोई हमें इस कार्य के लिए पैसा नहीं देता अरे हम तो बिना पैसा के सत्य सनातन वैदिक धर्म का प्रचार करते हैं |
        आपकी ऊपर की और भी बात है जो गलत है जिसका खंडन नहीं कर रहा क्यूंकि कुछ जवाब दे दिया सब का खंडन करता रहू तो पूरा समय इसी में देना होगा |
        आओ सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौट जाओ | और झूठा पोस्ट को कॉपी पेस्ट करना बंद करो | धन्यवाद |

  98. मैत्रेय की मुहम्मद (सल्ल.) से समानताअंतिम बुद्ध मैत्रेय में बुद्ध की सभी विशेषताओं का पाया जाना स्वाभाविक है।
    बुद्ध की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
    1. वह ऐश्वर्यवान् एवं धनवान होता है।
    2. वह सन्तान से युक्त होता है।
    3. वह स्त्री और शासन से युक्त रहता है।
    4. वह अपनी पूर्ण आयु तक जीता है। (Warren,P. 79)
    5. वह अपना काम खुद करता है। ( The Dhammapada, S.B.E Vol. X.P.P. 67)
    6. बुद्ध केवल धर्म प्रचारक होते हैं। (The Tathgatas are only preaches, ‘The Dhammapada S.B.E. Vol X. P.67)
    7. जिस समय बुद्ध एकान्त में रहता है, उस समय ईश्वर उसके साथियों के रूप में देवताओं और राक्षसों को भेजता है। (Saddharma-Pundrika, S.B.E. Vol XXI., P. 225)
    8. संसार में एक समय में केवल एक ही बुद्ध रहता है। (The life and teachings of Buddha, Anagarika Dhammapada P. 84)
    9. बुद्ध के अनुयायी पक्के अनुयायी होते हैं, जिन्हें कोई भी उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। (Dhammapada, S.B.E. Vol. X. P. 67)
    10. उसका कोई व्यक्ति गुरु न होगा। (Romantic History of Buddha, by Beal, P.241)
    11. प्रत्येक बुद्ध अपने पूर्णवर्ती बुद्ध का स्मरण कराता है और अपने अनुयायियों को ‘मार’ से बचने की चेतावनी देता है। (Dhammapada, S.B.E. Vol. X1, P. 64) मार का अर्थ बुराई और विनाश को फैलनेवाला होता है। इसे शैतान कहते हैं।
    12. सामान्य पुरुषों की अपेक्षा बुद्धों की गर्दन की हड्डी अत्यधिक दृढ़ हाती थी, जिससे वे गर्दन मोड़ते समय अपने पूरे शरीर को हाथी की तरह घुमा लेते थे।
    अंतिम बुद्ध मैत्रेय की इनके अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं। मैत्रेय के दयावान होने और बोधि वृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करनेवाला भी बताया गया है। इस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने यह सिद्ध किया है ये सभी विशेषताएँ मुहम्मद (सल्ल.) के जीवन में मिलती है। तथा अंतिम बुद्ध मैत्रेय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं।
    मुहम्मद सल्ल0 सन्तों की दृष्टि में
    (1) बाबा गुरू नानक जीः हज़रत मुहम्मद सल्ल0 के सम्बन्ध में कहते हैं
    पहला नाम खुदा का दूजा नाम रसूल।
    तीजा कलमा पढ़ नानका दरगे पावें क़बूल।
    डेहता नूरे मुहम्मदी डेगता नबी रसूल।
    नानक कुदरत देख कर दुखी गई सब भूल
    ऊपर की पंक्तियों को गौर से पढ़िए फिर सोचिए कि स्पष्ट रूप में गुरू नानक जी ने अल्लाह और मुहम्मद सल्ल0 का परिचय कराया है। और इस्लाम में प्रवेश करने के लिए यही एक शब्द बोलना पड़ता है कि मैं इस बात का वचन देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। औऱ मैं इस बात का वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 अल्लाह के अन्तिम संदेष्टा और दूत हैं।
    न इस्लाम में प्रवेश करने के लिए खतना कराने की आवशेकता है और न ही गोश्त खाने की जैसा कि कुछ लोगों में यह भ्रम पाया जाता है। यही बात गरू नानक जी ने कही है और मुहम्मद सल्ल0 को मानने की दावत दी है। परन्तु किन्हीं कारणवश खुल कर सामने न आ सके और दिल में पूरी श्रृद्धा होने ते साथ मुहम्मद सल्ल0 के संदेष्टा होने को स्वीकार करते थे।
    (2) संत प्राणनाथ जीः ( मारफत सागर क़यामतनामा ) में कहते हैं-
    आयतें हदीसें सब कहे, खुदा एक मुहंमद बरहक।
    और न कोई आगे पीछे, बिना मुहंमद बुजरक ।
    अर्थात् क़ुरआन हदीस यही कहती है कि अल्लाह मात्र एक है और मुहम्मद सल्ल0 का संदेश सत्य है इन्हीं के बताए हुए नियम का पालन करके सफलता प्राप्त की जा सकती है। मुहम्मद सल्ल0 को माने बिना सफलता का कोई पथ नहीं।
    (3) तुलसी दास जीः
    श्री वेद व्यास जी ने 18 पुराणों में से एक पुराण में काक मशुण्ड जी और गरूड जी की बात चीत को संस्कृत में लेख बद्ध किया है जिसे श्री तुलसी दास जी इस बात चीत को हिन्दी में अनुवाद किया है। इसी अनुवाद के 12वें स्कन्द्ध 6 काण्ड में कहा गया है कि गरुड़ जी सुनो-
    यहाँ न पक्ष बातें कुछ राखों। वेद पुराण संत मत भाखों।।
    देश अरब भरत लता सो होई। सोधल भूमि गत सुनो धधराई।।
    अनुवादः इस अवसर पर मैं किसी का पक्ष न लूंगा। वेद पुराण और मनीषियों का जो धर्म है वही बयान करूंगा। अरब भू-भाग जो भरत लता अर्थात् शुक्र ग्रह की भांति चमक रहा है उसी सोथल भूमि में वह उत्पन्न होंगे।
    इस प्रकार हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की विशेषताओं का उल्लेख करने के बाद अन्तिम पंक्ति में कहते हैं-
    तब तक जो सुन्दरम चहे कोई।
    बिना मुहम्मद पार न कोई।।
    यदि कोई सफलता प्राप्त करना चाहता है तो मुहम्मद सल्ल0 को स्वीकार ले। अन्यथा कोई बेड़ा उनके बिना पार न होगा।







    इस विषय से सम्बन्धित उल्लेख:
    1. आदर्श जीवन ( मुहम्मद सल्ल0)
    2. मुहम्मद सल्ल0 के मदीना हिजरत से प्राप्त होने वाले पाठ
    3. मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) एसे थे।
    4. क़ुरआन में परिवर्तन क्यों सम्भव नहीं ?

    1. ये जी चीजें कवियों ने कहीं हैं ये मुहम्मद के बारे में ये कैसे प्रमाणित होता है

      ये तो लगता है कि माह्पुरुशों के लिए कही गयीं होंगी
      मुहमम्द साहब से इनका क्या संबध
      वो तो आपके हिसाब से पढ़ा लिखा भी नहीं थे
      भूखा रहते थे
      भागते रहे मक्का से मदीना
      गुफाओं में छिपे रहे

      इत्यादि इत्यादि
      ये बातें उनके बार एमें हो ही नहीं सकती

      1. Bhai shab hamare muhammad shab ne jab logo ko andkar se nikalna chaya to bhut staya gaya magar allah ke rasul ne jyada se jyada sabko maf kiya kerte rhe. Logo ne unhe isliye staya ki log jaldi se burai chodna nahi chate.

  99. भाई जान!हम आपके साथ हैं कि हिन्दू ध्रम बहुत पुराना धर्म है। परन्तु उसी धर्म ने कल्कि अवतार के आने की सूचना दी जिनको माने बिना मुक्ति नहीं मिल सकती और आज कल्कि अवतार की सारी विशेषताएं मुहम्मद साहब में पाई जाती हैं जिसका वर्णन डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय और डा0 एम ए श्री वास्तव ने अपनी अपनी पुस्तकों में किया है।
    इस प्रकार वेदों की शिक्षाओं के आधार पर सारे हिन्दु भाइयों को चाहिए कि यदि वह मुक्ति चाहते हैं तो मुहम्मद साहब की शिक्षाओं को ग्रहण कर लें।

    आप इनकी पुस्तक पढे नेट पर मौजूद है

    1. ये तो और बड़ी झूठ है वैदिक धर्म तो अवतार को मानता ही नहीं

      नफीस मालिक लगता है कुछ पढ़ा ही नहीं

    2. bhai thik se jankari kro muslim ke hi sabse jyada bacche hote h aur aapko ye jhut lagta h to proof diye h unhe galat sabit kre

  100. मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे antimawtar.blogspot.com
    हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना हमें बाइबिल, तौरेत और अन्य धर्मग्रन्थों में मिलती है, यहाँ तक कि भारतीय धर्मग्रन्थों में भी आप (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियाँ मिलती हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों में इस प्रकार की पूर्व-सूचनाएं मिलती हैं। इस पुस्तिका में सबको एकत्र करके पेश करने का प्रयास किया गया है।—–डा. एम. श्रीवास्‍तव
    Read 3 books : antimawtar.blogspot.com (Urdu, Hindi & English)
    —–
    हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्‍थ) pdf book

    लेखकः डा. एम. श्रीवास्‍तव
    e-book hazrat muhammed pbuh aur bhartiye dharam granth
    —–
    मधुर संदेश संगम, इ-20, अबुल फज्‍ल इन्‍कलेव, जामिया नगर, नई दिल्‍ली ञ 110025
    ——
    विषय
    1. हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) और भारतीय धर्म-ग्रन्‍थ

    2. मुहम्‍मद (सल्ल.) और वेद
    नराशंस की चारित्रिक विशेषताओं की हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) से साम्‍यता-
    (1‍) वाणी की मधुरता (2‍) अप्रत्‍क्ष ज्ञज्ञन रखने वाला (3‍) सुन्‍दर कान्ति के धनी (4‍) पापों का निवारक (5‍) पत्नियों की साम्‍यता (6‍) स्‍थानगत साम्‍यता (7‍) अन्‍य साम्‍यताएँ।

    3. पुरणणों के प्रमाण
    भविष्‍य पुराण और हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) * संग्राम पुराण की पूर्वृ-सूचना

    4. कल्कि अवतार और हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.)
    * अवतार का तात्‍पर्य * अ‍ंतिम अवतार के आने का लक्षण, * कल्कि का अवतार-स्‍थान *जन्‍मतिथि * अंतिम अवतार की विशेषताएँ–
    (1‍) अश्‍वारोही और खड्गधारी (2). दुष्‍टों का दमन‍ (3‍) जगत्‍पति (4‍) चार भाइयों के सहयोग से युक्‍त (5) अंतिम अवतार (6‍) उपदेश और उत्‍त्‍र दिशा की ओर जाना (7) आठ सिद्धियों और गुणों से युक्‍त (8) शरीर से सुगन्‍ध का निकलना (9‍) अनुपम कान्ति से युक्‍त (1‍0) ईश्‍वरीय वाणी का उपदेष्‍टा

    5. उपनिषद् में भी मुहम्‍मद (सल्ल.) की चर्चा
    6. प्राणना‍थी (प्रणामी) सम्‍प्रदाय की शिक्षा
    7. हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) और बोद्ध धर्म ग्रन्‍थ
    अंतिम बुद्ध-मैत्रेय मुहम्‍मद (सल्ल.) *मैत्रेय की मुहम्‍मद (सल्ल.) से समानता
    8. जैन धर्म और हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.)

    आमुख
    अल्लाह अत्यंत कृपाशील और दयावान है। वही दृष्टि का निर्माता है। उसने अपने सर्जित जीवों में इनसान को श्रेष्ठ और महिष्ठ बनाया है। अल्लाह के सभी उदार अनुग्रहों और उसकी अनुकंपाओं की गणना करनी कठिन है, जो उसने इनसानों पर की है। उसकी इनसानों पर विशेष कृपा यह रही कि उनके मार्गदर्शक का प्रबंध किया और उन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए अपने पैग़म्बरों, रसूलों और अवतारों को प्रत्येक क़ौम और समुदाय में भेजा। क़ुरआन में हैः ‘‘कोई क़ौम ऐसी नहीं गुजरी, जिसमें कोई सचेत करने वाला न आया हो।’’ (35: 24)
    ‘‘अवतार’’ का अर्थ यह कदापि सही नहीं है कि ईश्वर स्वयं धरती पर सशरीर आता है, बल्कि सच्चाई यह है कि वह अपने पैग़म्बर और अवतार भेजता है। उसने इनसानों के उद्धार, कल्याण और मार्गदर्शन के लिए अपने अवतार पैग़म्बर और रसूल भेजे। यह सिलसिला हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर समाप्त कर दिया गया। स्वामी विवेकानन्द और गुरुनानक सरीखे महानुभावों ने भी पैग़म्बरी और ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया है। वरिष्ठ विद्वानों में पं. सुन्दर लाल, श्री बलराम सिंह परिहार, डा. वेद प्रकाश उपाध्याय, डा. पी.एच. चैबे, डा. रमेश प्रसाद गर्ग, पं. दुर्गा शंकर सत्यार्थी आदि ने ‘‘अवतार’’ का अर्थ ईश्वर द्वारा मानव-कल्याण के लिए अपने पैग़म्बर और दूत भेजा जाना बताया है। प्राणनाथी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध चिंतक श्री कश्मीरी लाल भगत ने भी इस तथ्य का स्पष्ट समर्थन किया है।
    हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना हमें बाइबिल, तौरेत और अन्य धर्मग्रन्थों में मिलती है, यहाँ तक कि भारतीय धर्मग्रन्थों में भी आप (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियाँ मिलती हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों में इस प्रकार की पूर्व-सूचनाएं मिलती हैं। इस पुस्तिका में सबको एकत्र करके पेश करने का प्रयास किया गया है।
    पैग़म्बरों और अवतारों के भेजे जाने का विशिष्ट औचित्य होता है। लोगों में अधर्म की प्रवृत्ति पैदा हो जाने, धर्म के वास्तविक स्वरूप से हट जाने और मूल धर्म में मिलावट हो जाने के कारण पैग़म्बर एवं अवतार भेजे गए, जिन्होंने धर्म को फिर से मौलिक रूप में पेश किया और एक ईश्वर की ओर लोगों को बुलाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) उस समय भेजे गए, जब हज़रत ईसा मसीह (अलैहि.) को आए हुए पाँच सौ से अधिक वर्ष बीत चुके थे। नबियों (अलैहि.) की शिक्षाएँ नष्ट अथवा विकृत हो चुकी थीं, सनातन धर्म पर अधार्मिकता छा गई थी, ईशभय और ईशपरायणता समाप्त हो चुकी थी। इनसान अपने पैदा करनेवाले को भूला हुआ था।

    मै इसको और नही पेस्ट कर सकता बहुत बडी है लिंक देकर पढ ले

    1. मेरे भाई

      प्रमाण तो दो कहाँ लिखा है
      कुछ ही लिख रहे हो

      झूठ पर झूठ
      मंत्र का प्रमाण दो वेद के किस मंत्र में लिखा है

  101. यार तुम कुछ बेवकूफ हो क्या । इस लेख से ऊपर 8 वे लेख मे और उससे नीचे के कई लेखो मे मैने प्रमाण दिये है और आप झूठ पर झूठ बोलते रहते हो शर्म नही आती तुमको। मुझे ऐसा लगता है तुम भी झूठ मूठ बात को गोल गोल ऐसे ही घुमाते हो जैसा आपका महेन्दर पाल।

    1. क्या नफीस भाई जान आपकी बात ही निराला है | सत्य को असत्य और असत्य को सत्य करना तो आपसे सीखे | जो प्रमाण दिया गया है वह पूरा गलत है | मगर आप उसे सत्य साबित करने पर तुले हुए हो | एक काम करे आप हमारे फेसबुक पेज पर उन लेखको को बुलाये जिससे आप कॉपी पेस्ट करते हैं | हिन्दू पौराणिक गीता प्रेस से प्रकाशित पुराण रामायण महाभारत इत्यादि को प्रमाणित मानते हैं और उनमे इस तरह का कोई प्रमाण नहीं है | मेरे पास भी सभी तरह की पुस्तके उपलब्ध हैं | आप फेसबुक पेज पर आये आपको प्रमाण सहित जवाब राहुल झा जी देंगे | आओ सत्य की मार्ग की ओर लौट चले वेद की ओर लौट चले |धन्यवाद |

      1. Tumhari hakikat puri dunya ko pta hai pattaro ko pujte ho ab ye mat khne hum to arye hai kyunki mene to sbhi hindu. Pattaro ko pujte hi dekha hai. Aur sun me ek succha muslman hu sachha muslim kbhi jhut nahi bol sakta apke mahendar pal trah. Agar aap suchhe aarye ho ya hindu ho jo bhi ho to plz ya to aap mujse phone per baat kre ya apne mahandar pal arye ka number de plz.mera no. 7906442122. Me ek 18 saal ladka hu 12 class me pdta hu. Per bhir bhi mujhe islam ki itni taleem maloom ha ki insaallah jrur mahandarpal arye ke sare bewaof wale sawal ka jwab me dunga. Kyunki mene akssar sbi video mahendar pal ki dekhi hai. Aur me zakir ko sunta hu . Zakir naik ke samne jane ki himmat nahi hai aur kitna jhut bolta hai ki mene use 2004 se niuttar kiya hua hai. Are muslimo ka to kam hi tumhe deen dram ki dawat dena hai. Zakir to har pal khta hai kio aajo.

        1. “Tumhari hakikat puri dunya ko pta hai pattaro ko pujte ho”

          सबसे बाधा पत्थर तो काबा है जिसे आपके मुहम्मद साहब चूमा करते थे
          भूल गए क्या उनका अनुसरण करके आप सभी भी यही करते हो

          अबू बकर का कहा भूल गए क्या की यदि मुहम्मद ने नहीं चूमा होता तो में इस काले पत्थर को नहीं चूमता

          🙂
          ये मूर्ति पूजा नहीं तो क्या है

          और ये जो मजारे हैं वो क्या है
          अजमेर शरीफ क्या है
          पाकिस्तान से जो भी प्रधानमंत्री आता है वहीं जाता है वो क्या है

          वो मूर्ति पूजा तुम्हें नज़र नहीं आती

  102. वेद और उपनिषद के श्लोक और मन्त्रों को रखें यहाँ।

  103. भाई साहब लगता है आपको पूजने और चूमने मे अंतर नही मालूम है। किसी चीज पत्थर अगैरा वगैरा को पूजने का मतलब उस वस्तु या चीज को ईश्वर मानके उसी से मांगना होता है । जबकि हमे ईश्वर अल्लाह से अलावा किसे से नही कुछ भी मांगना चाहिए। उस पत्थर को चूमने का मतलब वहा मोहब्बत से मुराद है। हम उसे चूमकर या हाथ जोडकर ये नही कहते ये पत्थर देवता मुझे सुख चाहिए। इन सब की फरमाइश तो हम अल्लाह से ही करते है दिल और मन से मानकर। और रही बात कब्र पूजा की या कब्रो से मांगना। इसे मुहम्मद साहब ने बिल्कुल मना किया है। अल्लाह के रसूल ने कहा है कब्र की तो बहुत दूर की बात मुझसे भी मांगना हराम है। पीरो पर चादर चढाना भी इस्लाम मे हराम है। लेकिन भाई साहब मै मानता हू 50% मुस्लिम मजारो पर चादर चढाते है । ये वो लोग है जो इस्लाम की गहराईयो से परिचित नही है । अंधकार मे है मै ऐसे लोगो को रोकता हू। और प्रधानमंत्री तो पढा लिखा कोई भी शख्स बन सकता है । गुजरात के बेगुनाह मुस्लिम का कातिल आज देश का प्रधानमंत्री है और इसमे कोई शक नही है सभी हिन्दुओ ने उन्हे वोट भी इसलिए दिया है। अच्छा होता कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को दीन ईमान का भी ईल्म होता तो वो ऐसा चादर चढाने का काम हरगिज नही करते । उससे किसी गरीब के शरीर को ढक दिया होता। उनकी ही क्या गलती है आजकल के कुछ मुल्लाह मौलवी ही आधा ईल्म रखते है।

    1. नफीस भाई जान
      वेद में कहीं भी मूर्ति पूजा करना नहीं है और ना ही बोला गया है इश्वर का अवतार होता है यह तो पौराणिक लोग मानते हैं जैसे की आप लोग मानते हो कब्र से मजार से मांग लो | खैर यह बात समझ से परे है | दूसरी बात आप अभी बच्चे हो मगर क्या आप जिन्हें ज्ञानी समझाते हो जैसे इमरान प्रतापगढ़ी इत्यादि सबको जो शायर लोग है वे सब भी इस्लाम को नहीं मानते और कानून को नहीं मानते देश को नहीं मानते | क्यूंकि यदि मानते तो देश के सुप्रीम कोर्ट की फैसला को मानते जिसमे यह फैसला दिया गया था की मोदी जी बेकसूर हैं उनमे उनका हाथ नहीं | वैसे यह संवेदन शील मामला है इस पर चर्चा करना सही नहीं होगा | आरम्भ तो मुस्लिमो ने ही की थी गोधरा में | खैर इस बारे में हमें चर्चा नहीं करना चाहिए | और ना कोई इस बारे में कुछ बोलूँगा | देश का pm को सम्मान करो |

      1. Amit ji sare muslmano ke ek hi nazar se dekhna ye samjdari ki baat nhi hoti. Tum kbro aur majaro se mangne ki bat kar rahe ho. To me apko btao 50% muslim to kbar aur majar to kya nbi se bhi nhi mangete hai. Toheed ke pakke hai. Hmare nbi ne khud mna kiya hai allah ke alawa kisi aur se na maango. Ye bhi kha mujse bhi dua na maango. Sirf mujper salam bejo

        1. तौहीद कि बातें कारणव वाले मालिक साहब कलमें में फिर मुहम्मद साहब का नाम क्यों लेते हो

          ये कैसी तौहीद है

          1. कलमे मे ये तो नही लिखा है कि जैसे अल्लाह है वैसे मुहम्मद। कलमे का अरथ पढो तो आपको मालूम पढेगा। मुहम्मद अल्लाह के रसूल है सिरफ ये लिखा है

            1. नफीस भाई जान
              इस्लाम में अल्लाह से भी ज्यादा महत्व मुहम्मद साहब को दिया गया है . कलमा में भी मुहम्मद साहब का नाम आया है | एक बात बतलाना यदि हम बिना मुम्मद साहब को माने अल्लाह को माने तो क्या हम इस्लाम को अपना सकते हैं ? यदि नहीं तो अल्लाह से भी बड़ा मुम्मद साहब हुए इस्लाम के हिसाब से | आओ सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौट चलो

              1. वो इसलिए कुरान की साथ हदीसे टच है। सिरफ कुरान पढने से ही मुसलमान नही बना जाता हदीसे भी सीखनी होगी। अगर मै ये कहू सिर्फ मुहम्मद साहब को मानो और मुसलमान हो जाओ तो आप हरगिज मुस्लिम नही हो सकते। आपको सबसे पहले अल्लाह को मानना जरुरी है। तो इसलिए पहले सिर्फ और सिर्फ अल्लाह है बाद मे मुहम्मद साहब।

                1. फिर कलमा में मुहमद साहब का नाम क्यों लिया जाता है ? उनका नाम नहीं लेना चाहिए | बिना रसूल माने क्या कलमा पढ़ा जा सकता है ?? धन्यवाद

  104. माफी चाहूगा लिखने मे मिस्टेक हो गई । ऊपर के लेख मे शुरू से नीचे की तरफ पांचवी लाइन मे मांगना चाहिए के बजाए मांगना नही चाहिए है। sorry

    1. माफी की कोई बात नहीं अल्लाह की तरह आप भी अपनी आयत बदल सकते हो
      जब अल्लाह बदल सकता है बार बार तो आप कोई ये आजादकी क्यों नहीं आखिर उसी अल्लाह के मानने वाले हो न
      🙂

        1. क्या कुरान कि आयतें अल्लाह के फरमान समय और मुहम्मद साहब और उनके सहाबा के अनुसार नहीं बदलते और नाजिल होते रहे

          1. इसमे बदलाव की बात तो है ही नही। कुरान अल्लाह के रसूल पर उतरता रहा ।

                1. जनाब कुरआन ठीक से पढ़े सब मालुम हो जायेगा | अल्लाह को कई बार आयत बदलनी पड़ी है | मगर आप तो कुरआन भी नहीं पढ़े हो और आप केवल कॉपी पेस्ट करते हो ? कॉपी पेस्ट भी उन्ही का करते हो जिसे कुछ जानकारी नहीं होता और झूठ बोलने वाले होते हैं

                    1. भाई जान
                      कितना हक़ और सचाई की बात करते हो यह मालुम है | जिसका आप कॉपी पेस्ट करते हो उसे भी सही ज्ञान नहीं वह तो बस झुठ लिखता है जिसे आप यहाँ कॉपी पेस्ट कर देते हो और सच मान लेते हो | मैं पुराण का समर्थन नहीं करता मगर जो पुराण से कॉपी पेस्ट करते हो वह गलत कॉपी पेस्ट करते हो | वेद से भी गलत अर्थ को कॉपी पेस्ट करते हो | आप अभी बच्चे हो अपने ग्यानी मोलवी सब को बोलो चर्चा करने | अभी आप इस्लाम की ही सिक्षा लें | और हो सके वेद को हमारे साईट से पढ़े फिर आपको इस्लाम और वैदिक धर्म में अंतर नजर आएगा | धन्यवाद

  105. अच्छा आप से मेरी रिक्वेस्ट है आप नेट पर विडियो देखे। जिसेमै नासा वैज्ञानिको ने चांद के दो टुकडे होने के पक्के सबूत दिये है । और मै आपको बता दू चांद के दो टुकडे मुहम्मद साहब ने नही कये थे। अल्लाह ने किये थे। मुहम्मद साहब ने तो सिर्फ इशारा करके लोगो को दिखाया था। और आप लोग कहते हो किसने जोड फिर चांद को। जिस अल्लाह ने टुकडे किये उसी ने जोड भी दिया।। और काबे बे जो पत्थर है ज्न्नत का। उसी भी वैज्ञानिको ने सर्च कर रखा हे कि इसके जैसा दुनिया मे कोई दूसरा पत्थर नही है । प्लीज आप यू टयूब पर भी विडीय देख सकते है। जरा सा कष्ट करे।

    1. कौन सा साबुत मिले हैं जी यह जानकारी देना जी | अच्छा होता आप जहा रहते हो वह के मोलवी को बोलो चर्चा करने को | आप तो कुरआन भी नहीं पढ़ी है | और दूसरी बात अल्लाह को २ चाँद के तुकडे क्यों करने पड़े और फिर एक क्यों कर दिया दोनों चाँद के तुकडे को | थोडा जानकारी देना जी | आप जिनसे इस्लाम सिख रहे हो उन्हें बोलो की वे आये साईट पर और चर्चा करें | आप से चर्चा होने से तो रहा जी | काबे का पत्थर को चुमते क्यों हो क्यों उसे मानते हो यह क्या बुत पूजा नहीं हुवा जनाब | आओ वेद की ओर लौटो | सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौटो

      1. Me kise se islam nhi sikh raha hu. me khud kitabe pad raha hu.
        Aur jab hamare nbi ne ye btaya arab ke logo ko ki me aalah ka pegambar hu. To logo ne mannese inkar kar diya aur sabut magne lage. Fir hamare nbi ne allah se dua ki Aur allah ne chand ki do dukde kiye sbut ke tor per aur fir nbi ne isara kar logo ko chand ke do tukde dikhaye.

        Aur ab plz ye mat khna ki chand ke tukde karne jruri the kya kuch aur chamtkar bhi to dikha sakte the allah

        1. Fir hamare nbi ne allah se dua ki Aur allah ne chand ki do dukde kiye

          ये तो किसी को पता ही नहीं चला

          यदि मुहम्मद इतना ताकतवर था तो बदर के युद्ध में उसका दांत क्यों टूट गया

          वहां तो वह कुछ नहीं कर सके

          1. हमने कब कहा बहादुर थे हमारे नबी। वे तो इंसान थे। 40 साल के बाद उन्हे पैगम्बर बनाया गया अल्लाह की तरफ से। हा अक्ल मे सबसे ज्यादा बहादुर थे।

            1. भाई जान
              हमने कब कहा बहादुर थे हमारे नबी। वे तो इंसान थे। 40 साल के बाद उन्हे पैगम्बर बनाया गया अल्लाह की तरफ से। हा अक्ल मे सबसे ज्यादा बहादुर थे।

              हमें यह बतलाना की अल्लाह किसे आकर यह जानकारी दी मुहम्मद साहब नबी होंगे और कितने लोगो के बिच में प्रकट होकर लोगो को यह बतलाया | और अल्लाह निराकार है लोगो को कैसे अपनी तरफ से बतला दिया ? यह बात समझ से बाहर है | कभी कुरआन में बोला जाता है अल्लाह निराकार है कभी यह बोला गया है अल्लाह के कान हाथ इत्यादि हैं | खुद कुरआन में परस्पर विरोधी बाते क्यों हैं

              1. कुरान मे जानकारी दी है अल्लाह ने मुहम्मद साहब के बारे मे।और आप कहते हो कि कुरान मे कही लिखा है ईश्वर निराकार है और कही हाथ कान होने का जिक्र है। भाई साहब मै आपकी जानकारी के लिए बता दू। ईश्वर को थरती पर हमारी आंखे नही देख सकती है। इसलिए हम इंसानो के लिए ईश्वर निराकार ही हुआ। वो अलग बात ईश्वर मे इतनी शक्ति है। वो इंसानो का रूप भी धारण कर सकता ह।

                1. नफीस भाई जान
                  इश्वर और अल्लाह में बहुत अंतर है भाई जान | जिसका शारीर हो और उसे ना देख पाए क्या ऐसा लिखा है कुरआन में ? कौन से सूरा और आयत में हैं यह बात बतलाना जी | कृपया कोई मोलवी से चर्चा करवाओ जी | आप अभी बहुत छोटे हो बच्चे हो | आपसे चर्चा करना सही नहीं | जो आपको इस्लाम की शिक्षा दे रहा है उनसे चर्चा करवाए | आप फिलहाल इस्लाम की पढ़ाई करें | धन्यवाद |

          2. आप मुझे ये बताऐ ताकतवर इंसान का लडाई मे दात नही टूट सकता क्या

            1. टूट सकता है जबकि वह सामान्य हो
              आपके रसूल सामान्य कैसे हो सकते हैं
              वो अल्लाह की इस क़यामत के आखिरी रसूल थे और उनकी सहायता के लिए अल्लाह ने फरिश्तों की फ़ौज लड़ने के लिए जो भेजी थी

  106. amit roy…

    ye kahi ki eent khi ka roda bhanwati ne kunba joda wali baat mat kar

    ham bhi aisa krne lg gye n a.
    har gandi cheez ved se dikha denge.

    lekin hum tumhari trh aur tere dayanand ki trah beimaan nhi hai
    jo kuch line kat kr thoda sa hisaa dikha kar
    tod mrod kr …
    galat chize sabit kr rhe ho

    tum kaam hi yhi hai jo tumhare baap d.sw ka tha..

    arya samajiyo niyogiyo(niyog se paide huye log)

    had hoti hai besharmi ki

    tumhari satyanash parkash dikhayi na

    kya gand likha hai
    aur ved dikhaye na

    terte pani bhi ni milne ka..

    o niyogi sun hum quran ko nabi ki hadees se samjhte hai
    aur hadees jiski sansad(chain)

    mazboot ho whi lete hai
    aur hadees ka matlab sahaba se smjhte hai

    ye quran hai ved nhi
    ke jo marzi aaye apni mrzi chlaye.

    aur sun himmat hai to mere sath debate apna address de.
    sabit to kar

    dayanand ki policy na chla..

    ek to jhoothi hadeese likhta hai
    aur niche sahi kitabo ke jhuthe reference deta hai
    taki log ye samjhe ke sahi hai

    o niyogi.
    beimaan mene kyi arya samajiyo ke sath deba te kiya hai.

    tu bhi aaja
    niyogi.

    1. “ham bhi aisa krne lg gye n a.
      har gandi cheez ved se dikha denge.”

      दिखाएँ हमें भी तो पता चले

      1. मैने नीचे सब लिख दिया है। 15 उत्तर ध्यान से पढना

  107. मै हिन्दु भाईयो के जानकारी के लिए बताना चाहता हू बहुत से हिन्दु पूछते है कि मर्दो को तो हुरे मिलेगी तो औरत को क्या मिलेगा। तो ये आपका अधूरा ज्ञान है। अगर आपने इस्लाम को पाक मन से पढा होता तो आपको मालूम पडता। यहा कि औरते ही वहा कि हूरे होगी बस उनकी खूबसूरती बढा दि जायेगी

    1. इसका जरा रिफरेन्स देना मेरे ज्ञानी आदमी

      अगर आपने इस्लाम को पाक मन से पढा होता तो आपको मालूम पडता। यहा कि औरते ही वहा कि हूरे होगी बस उनकी खूबसूरती बढा दि जायेगी

      🙂
      ये आपके पास इलाह्म आया होगा

  108. महेनदर पाल आरय को सुना। हमेशा दूसरो की आलोचना करते है। और जाकिर नायक साहब का नाम यो इतना दफा लेते है कि ईश्वर का नाम भी इतनी बार नही लेते होगे। और बात बात मे फेमस होने के लिए बोलते है मैने जाकिर को 2004 से निरत्तर किया हुआ है। जाकिर तो अब यहा नही है। अगर आपको जाकिर से डीबेट करनी है।तो मीडिया मे रोजाना हल्ला मचायो। इतनी टेक्नोलोजी है दुनिया मे मीडिया वाला लाइव डीबेट करा देगे जाकिर से आपकी । लेकिन आप मे हिम्मत कहा है। आप मे तो बस इतनी हिम्मत है छोटे मोटे मोलवी जिन्हे जाकिर जितना इल्म नही है उनसे डीबेट करते है। खैर वे भी आपकी बातो को झूठ साबित करते है।

    1. 🙂

      ये बात तो आप पण्डित जी से ही कहें

      और खुदा से कहें कि आपको इल्हाम भेज दें उनका एड्रेस के साथ
      🙂

  109. पंडित महेन्द्रपाल आर्य के प्रश्नों के उत्तर

    بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
    अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील और अत्यन्त दयावान हैं
    प्रिय मित्रो, कुछ समय से इन्टरनेट पर पंडित महेंद्रपाल आर्य के 15 प्रश्नों की अधिक चर्चा थी। आर्य समाज की विचारधारा के लोग इस प्रश्नपत्र को प्रचारित कर रहे हैं, और इस प्रश्नपत्र के उत्तर की मांग कर रहे हैं। जब हमने इन प्रश्नों का अध्यन किया तो पता चला कि अधिकतर प्रश्न स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के समुल्लास 14 और बाबू धर्मपाल आर्य की पुस्तक ‘तरके इस्लाम’ की ही नक़ल हैं। बाबु धर्मपाल ने भी पंडित जी की तरह इस्लाम को छोड़ कर आर्य समाज को अपनाया था। लेकिन बाद में मुस्लिम विद्वानों के उत्तर से संतुष्ट हो कर उन्हों ने फिर से इस्लाम स्वीकार कर लिया और अपना नाम गाजी महमूद रखा। प्रश्नपत्र के आरम्भ में पंडित महेंद्रपाल ने लिखा है-
    इस्लाम जगत के विद्वानों से कतिपय प्रश्न
    सही जवाब मिलने पर इस्लाम स्वीकार
    हालांकि, सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास 14 का इस्लाम के विद्वानों ने पहले ही विस्तृत उत्तर दे दिया है, और हम भी अपनी वेबसाइट पर नए तथ्यों के साथ उसका उत्तर दे रहे हैं [क्लिक करें]। इस के बावजूद हम पंडित जी के प्रश्नों के उत्तर देने जा रहे हैं ताकि वह यह न कहें कि मुसलमान इनके उत्तर नहीं दे सकते। इसके अतिरिक्त पंडित जी की घोषणा में हमें विरोध दिख रहा है। प्रश्नपत्र के आरम्भ में वह स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि यदि उनके प्रश्नों के सही उत्तर मिलें गे तो वह इस्लाम स्वीकार करें गे। लेकिन प्रश्नपत्र के अंत में वह कहते हैं, “सभी प्रश्नों का सही जवाब मिलने पर इस्लाम को स्वीकार करने को विचार किया जा सकता है.”
    यदि सही उत्तर मिल जाएँ तो फिर विचार क्या करना है? सीधे स्वीकार ही करलें। मैं आशा करता हूँ कि महेन्द्रपाल जी इस उत्तर से संतुष्ट हो कर इस्लाम स्वीकार करें गे.

    प्रश्न 1

    उत्तर
    जिस आयत पर आपने आक्षेप किया है उसका सही अनुवाद यह है।
    “ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों के विरुद्ध काफिरों को अपना संरक्षक मित्र न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं…” [सूरह आले इमरान, आयत 28]
    इस आयत में जो अरबी शब्द “अवलिया” आया है। उसका मूल “वली” है, जिसका अर्थ संरक्षक है, ना कि साधारण मित्र। अंग्रेजी में इसको “ally” कहा जाता है। जिन काफिरों के बारे में यह कहा जा रहा है उनका हाल तो इसी सूरह में अल्लाह ने स्वयं बताया है। सुनिए।
    يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا بِطَانَةً مِنْ دُونِكُمْ لَا يَأْلُونَكُمْ خَبَالًا وَدُّوا مَا عَنِتُّمْ قَدْ بَدَتِ الْبَغْضَاءُ مِنْ أَفْوَاهِهِمْ وَمَا تُخْفِي صُدُورُهُمْ أَكْبَرُ ۚ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الْآيَاتِ ۖ إِنْ كُنْتُمْ تَعْقِلُونَ
    “ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं।” [सूरह आले इमरान, आयत 118]
    पंडित जी, आप ही कहिए, ऐसे काफिरों से किस प्रकार मित्रता हो सकती है? यह तो एक स्वाभाविक बात है कि जो लोग हमसे हमारे धर्म के कारण द्वेष करें और हमें हर प्रकार से नुकसान पहुंचाना चाहें उन से कोई भी मित्रता नहीं हो सकती | कुरआन में गैर धर्म के भले लोगों से दोस्ती हरगिज़ मना नहीं है। सुनिए, कुरआन तो खुले शब्दों में कहता है।
    لَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ لَمْ يُقَاتِلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَلَمْ يُخْرِجُوكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ أَنْ تَبَرُّوهُمْ وَتُقْسِطُوا إِلَيْهِمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ ﴿٨﴾ إِنَّمَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ قَاتَلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَأَخْرَجُوكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ وَظَاهَرُوا عَلَىٰ إِخْرَاجِكُمْ أَنْ تَوَلَّوْهُمْ ۚ وَمَنْ يَتَوَلَّهُمْ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ ﴿٩
    “अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता कि तुम उन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और न तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला। निस्संदेह अल्लाह न्याय करनेवालों को पसन्द करता है अल्लाह तो तुम्हें केवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की। जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम है।” [सूरह मुम्ताहना; 60, आयत 8-9]

    कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी का लेख आगे पढे

    1. आप अल्लाह से कहते क्यों नहीं कि काफ्रिओं को उसने इतना ताकतवर क्यों बनाया
      इस्लाम जिन्हें सबसे बादः दुशमन मान रहा है उन्होंने इस्लाम के कई देशों को कब्रगाह बना दिया
      अफगानिस्तान इराक सीरिया
      कैसे कीटों कि तरह अल्लाह के बन्दों को मारा हिया
      पता नहीं आपका अल्लाह कुछ करता क्यों नहीं

  110. और सुनिए
    يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُونُوا قَوَّامِينَ لِلَّهِ شُهَدَاءَ بِالْقِسْطِ ۖ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلَىٰ أَلَّا تَعْدِلُوا ۚ اعْدِلُوا هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَىٰ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
    “ऐ ईमानवालो! अल्लाह के लिए खूब उठनेवाले, इनसाफ़ की निगरानी करनेवाले बनो और ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर हैं।” [सूरह माइदह 5, आयत 8]
    अल्लाह कभी लोगों को नहीं बाँटते। सब अल्लाह के बन्दे हैं। लोग अपनी मूर्खता और हठ से बट जाते हैं। जो लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते वह स्वयं अलग हो जाते हैं। इसमें अल्लाह का क्या दोष?
    इन आयात से स्पष्ट होता है कि कुरआन सभी गैर मुस्लिमों से मित्रता करने से नहीं रोकता। तो यह है इस्लाम की शिक्षा जो सुलह, अमन और इन्साफ की शिक्षा है।

    वेदों की शिक्षा

    ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः
    “हम लोग जिस से अप्रीति करें और जो हम को दुःख दे उसको इन वायुओं की बीडाल के मुख में मूषे के सामान पीड़ा में डालें |” [यजुर्वेद 16:65 दयानन्द भाष्य]
    वृश्च प्र वृश्च सं वृश्च दह प्र दह सं दह |
    “तू वेद निन्दक को, काट डाल, चीर डाल, फाड़ डाल, जला दे, फूँक दे, भस्म कर दे।” भावार्थ: धर्मात्मा लोग अधर्मियों के नाश में सदा उद्यत रहें [अथर्ववेद काण्ड12: सूक्त 5: मंत्र 62 पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी भाष्य]
    वेद निन्दक कोन है? कहीं आपको कोई आर्यसमाजी किसी शब्द जाल में न उलझाए, इस लिए में शास्त्रों के आधार पर ही व्याख्या कर देता हूँ| सुनिए आप के गुरु स्वामी दयानन्द क्या कहते हैं,
    “परमेश्वर की बात अवश्य माननीय है| इतने पर भी जो कोई इस को न मानेगा, वह नास्तिक कहावेगा, क्योंकि “नास्तिको वेदनिन्दकः”| वेद का निन्दक और न मानने वाला नास्तिक कहाता है|” [सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास 3, पृष्ट 74, प्रकाशक: श्रीमद दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास, उदयपुर, जुलाई 2010]
    इस परिभाषा में वे सारे लोग आते हैं जिन की वेदों में आस्था नहीं है जैसे मुस्लिम, ईसाई, जैनी, बोद्ध आदि। इस से यह स्पष्ट होता है कि वेद अन्य धर्मों के लोगों को नष्ट करने की शिक्षा देता है.
    और सुनिए
    स्वामी दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में ब्रह्मोसमाज और प्रर्थ्नासमाज की आलोचना करते हुए लिखते हैं,
    “जिन्होंने अँगरेज़, यवन, अन्त्याजादी से भी खाने पीने का अंतर नहीं रखा। उन्होंने यही समझा कि खाने और जात पात का भेद भाव तोड़ने से हम और हमारा देश सुधर जाएगा लेकिन ऐसी बातों से सुधार कहाँ उल्टा बिगाड़ होता हे।” [सत्यार्थ प्रकाश, समुलास 11, पृष्ट 375 प्रकाशक: श्रीमद दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास, उदयपुर, जुलाई 2010]
    यवन का अर्थ मुसलमान और अन्त्यज का अर्थ चंडाल होता है।
    पंडित जी, मुसलमान और ईसाई कितने ही सदाचारी हों, स्वामी जी के अनुसार उनके साथ खाना उचित नहीं। यह पक्षपात नहीं तो और क्या है? क्या आप अब भी ऐसे ‘आर्य समाज’ में रहना पसंद करेंगे?
    पंडित जी ने लिखा है कि गैर मुस्लिमों को हैवान कहना चाहिए| हम भला उनको हैवान क्यों कहें? यह तो आपके धर्म और गुरु की शिक्षा है कि आर्यावर्त की सीमाओं के बाहर रहने वाले सारे मनुष्य म्लेच्छ, असुर और राक्षस हैं| सुनिए ज़रा, दयानन्द जी मनुस्मृति के आधार पर क्या कह रहे हैं,
    आर्य्यवाचो मलेच्छवाचः सर्वे ते दस्यवः स्मृताः| [मनुस्मृति 10/45]
    मलेच्छ देशस्त्वतः परः| [मनुस्मृति 2/23]
    “जो अर्य्यावर्त्त देश से भिन्न देश हैं, वे दस्यु और म्लेच्छ देश कहाते हैं| इस से भी यह सिद्ध होता है कि अर्य्यावार्त्त से भिन्न पूर्व देश से लेकर ईशान, उत्तर, वायव और पश्चिम देशों में रहने वालों का नाम दस्यु और म्लेच्छ तथा असुर है| और नैऋत्य, दक्षिण तथा आग्नेय दिशाओं में आर्य्यावर्त्त से भिन्न रहने वाले मनुष्यों का नाम राक्षस है| अब भी देख लो हब्शी लोगों का स्वरुप भयंकर जैसे राक्षसों का वर्णन किया है, वैसा ही दिख पड़ता है|” [सत्यार्थ प्रकाश, समुलास 8, पृष्ट 225-226 प्रकाशक: श्रीमद दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास, उदयपुर, जुलाई 2010]
    जिस ईश्वर ने वेदों में गैर लोगों से ऐसे भयंकर व्यव्हार की शिक्षा दी है और उनको दस्यु, राक्षस, और असुर के ख़िताब दिए हैं, वह ईश्वर पक्षपाती अवश्य है।

    कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी का लेख आगे पढे

    1. “अल्लाह कभी लोगों को नहीं बाँटते। सब अल्लाह के बन्दे हैं। लोग अपनी मूर्खता और हठ से बट जाते हैं। जो लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते वह स्वयं अलग हो जाते हैं। इसमें अल्लाह का क्या दोष?”

      आपका अल्लाह ही तो कहता है जिसे चाहता हूँ राह दिखाता हूँ जिसे चाहता हूँ भटकाता हूँ

      तो अलाल्ह ही तो दोषी हुआ और कौन हुआ

      1. भाई साहब जब अल्लाह ने साफ कह दिया
        “अल्लाह कभी लोगों को नहीं बाँटते। सब अल्लाह के बन्दे हैं। लोग अपनी मूर्खता और हठ से बट जाते हैं। जो लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते वह स्वयं अलग हो जाते हैं। इसमें अल्लाह का क्या दोष?”

        तो फिर आप अल्लाह को क्यो दोष दे रहे हो

        1. क्योंकि अल्लाह ही कहता है की जिसे चाहता हूँ रास्ता दिखता हूँ
          अर्थात गुमराहों को तो दिखाता नहीं
          यही अल्लाह की कमजोरी है

          1. नही भाई साहब जिन्होने इस्लाम कबूल किया जो गुमराह थे अल्लाह ने उन्हे सच्ची राह दिखाई

            1. TO BAAKEE TO BHEE DIKHA DETA
              AUR FIR ISLAM KABUL KARNE SE PAHLE GUMHRAH KYON RAKHA
              KYA PAHLE WO NAHENE JANTA THA KI YE GUMRAH HEIN
              AUR AAYESHA MUHAMMAD SAHAB KO RASUL KYON NAHEEN MANTEE THEE ISKA BHEE JAWAB DEN

              1. भाई साहब आप झूठ क्यो बोलते है आयशा मुहम्मद साहब को रसूल मानती थी। मुझे लगता है तुमने हदीस कुरान कुछ भी नही पढा। सिरफ पण्डितो के झूठे बेबुनियाद इल्जाम पढे है। ऐसे तो आप इस्लाम की सच्चाई कभी नही जान पायेगै

                1. भाई साहब हदीस कुरआन सब से प्रमाण देने लगा तो या तो आप साईट से भाग जाओगे या बोलोगे की हदीस हमें स्वीकार नहीं है कुरआन स्वीकार नहीं है | लिंक यदि देने लग जाऊँगा तो हो सकत है कमलेश तिवारी जी की तरह हमारे ऊपर भी जान से मारने तक की धमकी मिलने लगे | यही कारण है की हदीस कुरआन इत्यादि से लिंक मैं नहीं दे रहा | यह बतलाना मुहम्मद साहब की मौत कैसे हुयी | धन्यवाद |

                  1. झूठी लिंक झूठी हदीस देने से कोई फायदा नही होता । सच तो सच ही रहता है
                    लिकं देना से अच्छा आप मुझे किताब का नाम बताये। नेट पर तो तुम्हारे जैसे लोग कुछ भी लिख देतै है।

                    1. नफीस भाई जान
                      हम जो लिंक दे रहे हैं वह पाकिस्तान की साईट के हदीस से प्रमाण दे रहे हैं चलो उसका डिटेल आपको देता हु लिंक में country पकिस्तान है फिर ये मत बोल देना की ये हमने दिया है या फिर भारत का है
                      http://www.siteleaks.com/www.sunnah.com
                      अब भारत की साईट का भी डिटेल देता हु हदीस की लिंक का
                      http://www.siteleaks.com/www.searchtruth.com
                      अब आपके गुरुदेव जाकिर नायक के पीस टीवी का ब्लॉग से देता जहा से आप हदीस डाउनलोड कर सकते हो और फिर ये मत बोलना की ये हमने अपने मन से लिंक दिया आपके हिसाब से जाकिर नायक और पाकिस्तानी साईट तो गलत नहीं होनी चाहिए
                      http://peacetvpage.blogspot.in/2014/04/download-complete-all-top-six-hadith.html

                      अब इतना आपको लिंक दे रहा हु और सभी में एक ही बात लिखी है फिर ये सब कैसे गलत हो सकते हैं या फिर आप इस्लाम को गलत साबित कर रहे हो इन्हें नहीं स्वीकार करके | आखिर इस्लाम में ही तो सिखाया गया है अल takaiya
                      हम खुद की साईट से प्रमाण नहीं देते मुस्लिमो के प्रमाणित साईट से ही प्रमाण देते हैं |
                      आपके जाकिर नायक की ही साईट से चर्चा करें या पकिस्तान की साईट से हदीस सब से मर्जी आपकी जिससे आप चर्चा करना चाहे ३ साईट कैसे गलत हो जायेंगे | मुस्लिम लोग खुद हदीस को गलत क्यों लिखेंगे वो भी पाकिस्तानी साईट | जिनसे चर्चा करना हो करना हम तैयार हैं हदीस से चर्चा करने को |
                      धन्यवाद

  111. प्रश्न 2

    उत्तर
    पंडित जी के दुसरे प्रश्न में भी काफी गलतियाँ हैं|
    गलती 1। फरिश्तों ने मिटटी लाने से मना किया। इस का कोई प्रमाण कुरआन से दीजिए। यदि पंडित के पास इसका प्रमाण नहीं दिखाएँ गे तो पंडित जी झूटे साबित हो जाएँ गे।
    गलती 2। यह ‘अजाजील’ नाम आप कहाँ से ले आए? कुरआन में इब्लीस का वर्णन है। और यह भी आपने गलत कहा है कि वह फ़रिश्ता था। कुरआन तो स्पष्ट कहता हे कि इब्लीस जिन था [देखो सूरह 18: आयत 50]
    गलती 3। ‘अजाजील ने कहा की अल्लाह आपने तो आपको छोड़ दुसरे को सिजदा करने को मना किया था’ यह भी गलत है’। इब्लीस ने ऐसा कभी नहीं कहा। पंडित जी कृपया कुरआन से अपने दावों का प्रमाण भी दिया करें। सजदा यहाँ सम्मान का प्रतीक है न कि इबादत का सजदा। वेदों में भी शब्द नमन (झुकना/सजदा) को ईश्वर के अलावा अन्य के लिए प्रयोग किया गया है। उदाहरण के लिए देखियह ऋग्वेद 10/30/6
    एवेद यूने युवतयो नमन्त
    “जिस प्रकार युवतियें युवा पुरुष के प्रति नमती हैं..”
    लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि यजुर्वेद में चोरों, तस्करों और डाकुओं को भी नमन किया गया है । उदाहरण के लिए देखिए यजुर्वेद अध्याय 16, मंत्र 21
    नमो॒ वञ्च॑ते परि॒वञ्च॑ते अर्थात, छल से दूसरों के पदार्थों का हरण करने वाले और सब प्रकार से कपट के साथ व्यवहार करने वाले को प्रणाम
    स्तायू॒नां पत॑ये॒ नमो॒ चोरों के अधिपति को प्रणाम
    तस्क॑राणां॒ पत॑ये॒ नमो॒ तस्करी/डकैती करने वाले के अधिपति को प्रणाम
    आशा है कि पंडित जी वेद की इन शिक्षाओं पर भी टिपण्णी करेंगे ।
    गलती 4। यह आप ने ठीक कहा कि अल्लाह ने आदम को सारी वस्तुओं के नाम बताए। लेकिन आपत्ति करने से पहले इसका अर्थ तो समझ लेते। ‘वस्तुओं के नाम सिखाना’ प्रतीक है ज्ञान का। अर्थात आदम (मानवता) की विशेषता ज्ञान होगा। फरिश्तों ने एक शंका व्यक्त की थी कि क्या मनुष्य पृथ्वी पर बिगाड़ पैदा करे गा? उस शंका को दूर करने के लिए अल्लाह ने आदम को ज्ञान प्रदान किया। यही ज्ञान है जिसके कारण मनुष्य ने क्या क्या कारनामे नहीं किए हैं यहाँ तक कि इंसान चाँद पर भी पहुँच गया है। इस ज्ञान से इंसान ने हर वस्तु को अपने काबू में कर लिया।
    हर वस्तु की अपनी विशेषता होती है और अल्लाह ने इंसान को ज्ञान प्राप्त कर तरक्की करने की विशेषता दी है। इसी ज्ञान से वह अल्लाह को भी पहचानता है। इस घटना से अल्लाह ने हमें यह समझाया है कि फ़रिश्ते, जिन और इंसान उतना ही जान सकते हैं जितना अल्लाह ने उन्हें ज्ञान दिया है।
    गलती 5। आप कहते हैं कि ‘अज़ाजील (इब्लीस) को गुस्सा आना स्वाभाविक था’। यह तो सरासर गलत है। इब्लीस ने आदम के सामने केवल घमंड के कारण सजदा (सम्मान) नहीं किया। कृपया कुरआन को ध्यान से पढ़िए । कुरआन कहता हे
    قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَنْ تَسْجُدَ لِمَا خَلَقْتُ بِيَدَيَّ ۖ أَسْتَكْبَرْتَ أَمْ كُنْتَ مِنَ الْعَالِينَ
    (अल्लाह ने) कहा, “ऐ इबलीस! तूझे किस चीज़ ने उसको सजदा करने से रोका जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया? क्या तूने घमंड किया, या तू कोई ऊँची हस्ती है?”
    قَالَ أَنَا خَيْرٌ مِنْهُ ۖ خَلَقْتَنِي مِنْ نَارٍ وَخَلَقْتَهُ مِنْ طِينٍ
    उसने कहा, “मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से पैदा किया।”[सुरह साद 38: आयत 75-76]
    तो इससे सिद्ध होता है कि इब्लीस ने केवल घमंड के कारण अल्लाह की आज्ञा को नहीं माना। उसने अपने आप को दुसरे (आदम) से उच्च समझ लिया। इस लिए अल्लाह ने कोई पक्षपात नहीं किया| आपकी समझ का फेर है।
    गलती 6। आप कहते हैं कि “अज़ाजील को नाम बताए बिना पुछा जाना कि अगर तुम सत्यवादी हो तो सभी चीज़ों के नाम बताओ”
    आपक कृपया यह कुरआन से प्रमाण दीजिए कि इब्लीस (आपका अज़ाजील) को कहाँ पुछा नाम बताओ? नाम तो फरिश्तों से पूछे गए इब्लीस से नहीं। लगता हे आपने कुरआन ठीक से पढ़ा ही नहीं। आपने तो सारी घटना ही उलट पुलट बयान की है।
    अब में आपकी कोन कोन सी गलती निकालूँ? इस प्रश्न से यह सारी गलतियाँ निकलने पर तो आपके प्रश्न में कुछ नहीं बचता।
    प्रश्न 3

    उत्तर
    अल्लाह के मार्ग पर रहने का अर्थ समझ लीजियह। जब इंसान अल्लाह के उपदेश का पालन करे गा वह गुमराह नहीं होगा। और जब अल्लाह के उपदेशों से मुंह मोड़ लेगा तो गुमराह होगा। यदि वह पश्चाताप करके अपनी भूल को सुधारना चाहे तो वह फिर से सीधे मार्ग पर लोट आएगा। यदि सीधे मार्ग पर जल्दी से न लोटे तो गुमराही बढ जायह गी।
    आदम अल्लाह के रास्ते पर थे लेकिन क्षण भर के लिए इब्लीस के बहकावे में आगए। उन्हों ने उस क्षण में अल्लाह की चेतावनी को भुला दिया। लेकिन फिर अपनी गलती का एहसास हुआ और अल्लाह से क्षमा चाही।
    قَالَا رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنْفُسَنَا وَإِنْ لَمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ
    अर्थात दोनों (आदम और उनकी पत्नी) बोले, “हमारे …………..कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी लेख आगे पढे

    1. “उदाहरण के लिए देखिए यजुर्वेद अध्याय 16, मंत्र 21
      नमो॒ वञ्च॑ते परि॒वञ्च॑ते अर्थात, छल से दूसरों के पदार्थों का हरण करने वाले और सब प्रकार से कपट के साथ व्यवहार करने वाले को प्रणाम
      स्तायू॒नां पत॑ये॒ नमो॒ चोरों के अधिपति को प्रणाम
      तस्क॑राणां॒ पत॑ये॒ नमो॒ तस्करी/डकैती करने वाले के अधिपति को प्रणाम”
      झूठे आदमी असली मंत्र का अर्थ नीचे दी हुयी लिंक पर देख लें
      उदाहरण के लिए देखिए यजुर्वेद अध्याय 16, मंत्र 21
      नमो॒ वञ्च॑ते परि॒वञ्च॑ते अर्थात, छल से दूसरों के पदार्थों का हरण करने वाले और सब प्रकार से कपट के साथ व्यवहार करने वाले को प्रणाम
      स्तायू॒नां पत॑ये॒ नमो॒ चोरों के अधिपति को प्रणाम
      तस्क॑राणां॒ पत॑ये॒ नमो॒ तस्करी/डकैती करने वाले के अधिपति को प्रणाम

  112. अर्थात दोनों (आदम और उनकी पत्नी) बोले, “हमारे रब! हमने अपने आप पर अत्याचार किया। अब यदि तूने हमें क्षमा न किया और हम पर दया न दर्शाई, फिर तो हम घाटा उठानेवालों में से होंगे।” [सूरह आराफ 7:आयत 23]
    आप पूछते हैं कि “अल्लाह ने चोर को चोरी करने व गृहस्ती को सतर्क रहने को कहा, क्या यह काम अल्लाह की धोकेबाज़ी का नहीं रहा?”
    पंडित जी आप अल्लाह की सृष्टि निर्माण योजना को समझे ही नहीं हैं। इबलीस की चोर से तुलना करना मूर्खता है। चोर तो आज कल भी दुनिया में मिलते हैं, तो आप का ईश्वर उनका कुछ क्यों नहीं बिगाड़ लेता? क्या वह इस पाप को मिटाना नहीं चाहता? या मिटाने की क्षमता नहीं रखता? या पाप को फिलहाल न मिटाने में कोई विशेष नीति है? जो आप इस प्रश्न का उत्तर देंगे वही हमारी तरफ से उत्तर समझ लीजिए गा। फिलहाल संक्षेप में बता दूँ कि शैतान को मोहलत, नेकी और पुण्य की कीमत बढ़ाने के लिए दी गई।
    कुरआन हमें यह बताता हे की हम इस दुनिया में परीक्षा से गुज़र रहे हैं।
    الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا
    “जिसने पैदा किया मृत्यु और जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है।” [सूरह मुल्क 67; आयत 2]
    इस प्रसंग में इब्लीस के प्रभाव का क्षेत्र केवल इतना है कि वह मनुष्य को पाप की और निमंत्रण देता है। उस निमंत्रण को स्वीकार या अस्वीकार करना हम पर निर्भर है। कुरआन हमें क़यामत के दिन इब्लीस के शब्दों की सुचना देता है। सुनिए
    وَقَالَ الشَّيْطَانُ لَمَّا قُضِيَ الْأَمْرُ إِنَّ اللَّهَ وَعَدَكُمْ وَعْدَ الْحَقِّ وَوَعَدْتُكُمْ فَأَخْلَفْتُكُمْ ۖ وَمَا كَانَ لِيَ عَلَيْكُمْ مِنْ سُلْطَانٍ إِلَّا أَنْ دَعَوْتُكُمْ فَاسْتَجَبْتُمْ لِي ۖ فَلَا تَلُومُونِي وَلُومُوا أَنْفُسَكُمْ ۖ مَا أَنَا بِمُصْرِخِكُمْ وَمَا أَنْتُمْ بِمُصْرِخِيَّ ۖ إِنِّي كَفَرْتُ بِمَا أَشْرَكْتُمُونِ مِنْ قَبْلُ ۗ إِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
    “जब मामले का फ़ैसला हो चुकेगा तब शैतान कहेगा, “अल्लाह ने तो तुमसे सच्चा वादा किया था और मैंने भी तुमसे वादा किया था, फिर मैंने तो तुमसे सत्य के प्रतिकूल कहा था। और मेरा तो तुमपर कोई अधिकार नहीं था, सिवाय इसके कि मैंने तुम को (बुरे कामों की तरफ) बुलाया और तुमने मेरा कहा मान लिया; बल्कि अपने आप ही को मलामत करो, न मैं तुम्हारी फ़रियाद सुन सकता हूँ और न तुम मेरी फ़रियाद सुन सकते हो। पहले जो तुमने सहभागी ठहराया था, मैं उससे विरक्त हूँ। निश्चय ही अत्याचारियों के लिए दुखदायिनी यातना है” [सुरह इब्राहीम 14; आयत 22]
    कैसा होगा वह समय जब कयामत के दिन शैतान आपसे भी यही कहेगा कि पंडित जी मैं ने आपकी कुछ झूठी बातों को सुनकर सोचा कि आपको पक्का झूटा बन जाने का निमंत्रण ही दे दूँ और आपने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया। तभी तो प्रश्न 2 में आपने दुनिया वालों को अपने पक्के झूटे होने का सबूत दे दिया।
    यदि आपको यह समझ में नहीं आए तो आपको इसी दुनिया से कुछ उदाहरण आपके सामने रखता हूँ। multiple choice question paper के बारे में शायद आपने सुना हो। यह अधिकतर परीक्षाओं में अपनाया जाता है, जिन से एक विद्यार्थी की वास्तविक योग्यता की जांच की जाती है। इस तरह की परीक्षा की विशेषता यह होती है कि विद्यार्थी को 4 विकाल्प दिए जाते हैं, जिन में से तीन गलत और एक सही होता है। जो विद्यार्थी इन में से अपने अध्ययन के आधार पर गलत जवाब से बच कर सही उत्तर दे, वह ही चयन के योग्य है। प्रश्न पत्र में नकारात्मक अंक (negative marking) भी होता है। हर गलत उत्तर के लिए 0.25 अंक काटे जाते हैं। यदि आपने multiple choice questions नहीं देखे हैं, तो में एक उदाहरण आपके समक्ष रखता हूँ।
    प्रश्न: किसने यह आह्वान किया की “पुनः वेदों को अपनाएं”?
    (A) रामकृष्ण परमहंस
    (B) विवेकानंद
    (C) ज्योतिबा फूले
    (D) दयानन्द सरस्वती
    अब इसका उत्तर तो आपको मालूम ही होगा। लेकिन सही उत्तर के साथ इसमें 3 गलत उत्तर भी रख दिए गए हैं। अब इस में सोचने की बात यह है की चयन करता ने जानते बूझते 3 गलत विकल्प उत्तर में क्यों डाले? और गलत विकल्प चुनने पर 0.25 अंक क्यों काटे? आप भी थोड़ा सा सोचिए। आपको स्वयं उत्तर मिल जाए गा।
    अच्छा यह भी बताइए कि आप के ईश्वर ने ज़हर को क्यों पैदा किया? आपका उत्तर क्या होगा? क्या आपका ईश्वर धोकेबाज़ है?

    1. अल्लाह तो शैतान के आगे बेबस है उसकी कुछ चलती है नहीं
      देखो जहाँ आदम और हव्वा को रखा वहां कि सुरक्षा भी न कर सका और शैतान ने आपके पहले पैगम्बर को ऐसा बहकाया है जमीन पर लाके छोड़ा
      और आपके अनुसार आपके अंतिम पैगम्बर को भी कई बार बहकाया

      🙂

  113. वैदिक ईश्वर के कारनामे

    यजुर्वेद अध्याय 30, मंत्र 5 में लिखा है कि लोगों को विभिन्न धर्मों और व्यवसायों में ईश्वर ने पैदा किया। जहां ईश्वर ने अच्छे व्यवसाय पैदा किए वहीं बुरे व्यवसाय भी पैदा किए। उसने जहां ब्रह्म॑णे ब्राह्म॒णं (वेद के लिए ब्रह्मण को पैदा किया), वहीं कामा॑य पुँश्च॒लूम(समागम के लिए वेश्या को पैदा किया)। जिस प्रकार ब्रह्मण का धर्म वेद है, क्षत्र्य का धर्म नीति की रक्षा, वैश्य का धर्म व्यापार, शूद्र का धर्म सेवा है, उसी प्रकार एक वेश्या का धर्म व्यभिचार है। दुनिया में जिस प्रकार हर कोई व्यक्ति अपना अपना धर्म फेला रहा है, इसी प्रकार, वह भी अपना धर्म फेला रही है, और अन्य लोगों के गुमराह होने का कारण बन रही है।
    पंडित जी अब आप वैदिक ईश्वर को धोकेबाज़ कहें गे?
    आप कहते हैं

    “अवश्य कुरआन का तथा मुसलमानों का अल्लाह तो धोकेबाज़ हे ही। इसका प्रमाण कुरआन में ही मोजूद हे, देखें –
    وَمَكَرُوا وَمَكَرَ اللَّهُ ۖ وَاللَّهُ خَيْرُ الْمَاكِرِينَ
    अर्थ- मकर करते हैं वह, मकर करता हूँ में और में अच्छा मकर करने वाला हूँ.
    मकर माने धोका। जो अल्लाह इंसान के साथ धोका करता हे, वह अल्लाह कोई अच्छा अल्लाह नहीं होसकता.”
    पंडित जी आपने तो कुरआन की इस आयत का अनुवाद ही बड़ा धोकेवाला किया है।
    किसी वाक्य का अर्थ उसके प्रसंग के अनुसार करना चाहिए। क्या इतना भी आप को नहीं मालूम? कुरआन 3:54 के प्रसंग में शब्द ‘मकर’ का अर्थ है ‘योजना’ या ‘तदबीर’। इसी कारण कुरआन के सारे अनुवादकों ने (गैर मुस्लिम अनुवादकों ने भी) इसके यही अर्थ किए हैं। अंग्रेजी अनुवादकों ने भी इसके अर्थ ‘plan’ या ‘plot’ के किए हैं। आयत का अर्थ यह हुआ की यहूदियों ने हज़रत ईसा को कष्ट पहुँचाने की खुफिया योजना बनाई और अल्लाह ने उनको बचाने की योजना बनाई और निसंदेह अल्लाह की योजना सब पर भारी है।
    असल में आपके इस अरबी शब्द ‘मकर’ को हिन्दी का शब्द ‘मकर’ समझ लिया। यदि दो भाषाओं में समान उच्चारण (pronunciation) के दो शब्द हों, तो यह ज़रूरी नहीं कि उनका अर्थ भी समान हो। उदाहरण के लिए शब्द ‘गलीज़’ को लीजिए। उर्दू भाषा में इसका अर्थ है ‘नापाक’ या ‘गंदा’। लेकिन अरबी भाषा में ‘गलीज’ غلیظ का अर्थ होता है ‘दृढ़’। इसी प्रकार संस्कृत में ‘गो’ का अर्थ है ‘गाय’ लेकिन अङ्ग्रेज़ी में ‘गो’ (go) का अर्थ होता है ‘जाना’।
    इसके अतिरिक्त पवित्र कुरआन के एक महत्वपूर्ण शब्दकोश, ‘मुफ़रदात अलकुरआन’ में ‘मकर’ (योजना) को दो प्रकार का बताया गया है।
    1. मकरे महमूद (अच्छी योजना)
    2. मकरे मज़मूम (बुरी योजना)
    मुफ़रदात के रचेता (इमाम रागिब) ने मकरे महमूद (अच्छी योजना) की मिसाल यही सूरह आले इमरान की आयत 54 दी है। इसके अतिरिक्त सूरह 35 आयत 43 में ‘मकर’ शब्द के साथ ‘सय्यि` مَكْرَ السَّيِّئِ शब्द आया है, जिसके अर्थ होते हैं, बुरी तदबीर/योजना। यदि ‘मकर’ अपने आप में बुरा शब्द होता तो इसके साथ ‘सय्यि’ लगाना व्यर्थ होता। इस से साफ साबित होता है कि ‘मकर’ का अर्थ केवल योजना है और धोका, फरीब नहीं।
    अरबी में यह शब्द कोई बुरा अर्थ नहीं रखता लेकिन हिंदी में बड़े घृणित अर्थों में बोला जाता हे जिसके कारण आपने आपत्ति की है.
    वेद का धोकेबाज़ ईश्वर अपने शायद वेदों का अध्यन नहीं किया है। ऋग्वेद में अनेक जगह इन्द्र को मायी (धोकेबाज़) कहा गया हे। उदाहरण के तोर पर देखियह ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 11, मंत्र 7
    मायाभिरिन्द्र मायिनं तवं शुष्णमवातिरः |
    विदुष टे तस्य मेधिरास्तेषां शरवांस्युत तिर ||
    “हे इन्द्रदेव! अपनी माया द्वारा आपने ‘शुषण’ को पराजित किया। जो बुद्धिमान आपकी इस माया को जानते हैं, उन्हें यश और बल देकर वृद्धि प्रदान करें.”
    इस मंत्र का भावार्थ स्वामी दयानंद जी इस प्रकार करते हैं।
    “बुद्धिमान मनुष्यों को ईश्वर आगया देता है कि- साम, दाम, दंड और भेद की युक्ति से दुष्ट और शत्रु जनों क़ी निवृत्ति करके चक्रवर्ति राज्य क़ी यथावत उन्नति करनी चाहिए”
    पंडित जी, साम, दाम, दंड और भेद को तो आप जानते ही होंगे.
    साम : बहलाना फुसलाना
    दाम : धन देकर चुप कराना
    दंड : यदि बहलाने फुसलाने से न माने तो ताड़ना करना
    भेद : फूट डालना
    इसके अतिरिक्त ऋग्वेद 4/16/9 में दयानन्द जी नें भी अपने भाष्य में ‘मायावान’ का अनुवाद ‘निकृष्ट बुद्धियुक्त’ किया है। पंडित जयदेव शर्मा (आर्य समाजी) ने अपने ऋग्वेद भाष्य में ‘मायावान’ का अनुवाद ‘कुटिल मायावी’ किया है। तो सिद्ध हो गया कि वैदिक ईश्वर मायी अर्थात धोकेबाज़ है।
    पंडित जी आपके शब्दों में कहना चाहिए, “जो ईश्वर इंसान के साथ धोका करता है या इंसानों को धोके का उपदेश करता है, वह ईश्वर कोई अच्छा ईश्वर नहीं होसकता।”
    कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी लेख आगे पढे

      1. अब्दुल्ला तारीक और महेनदर पाल का विडीयो सुनना उसमे उन्होने बताया है कि जो मकर शब्द कुरान मे लिखा है उसका मतलब धोखा नही कुछ और है वो अरबी का शब्द है जिसका अर्थ अलग है। जिस तरीके से go शब्द को अंग्रजो मे जाना कहते है। और हिन्दु मे गाय कहते है। मै ही बता देता लेकिन माफ करना मुझे याद नही आ रहा है।

        1. mere bhai jaan aapki baat hi alag hai. saty ko jhuth aur jhuth ko satya bolna aap jaise gyani logo se sikhna chahiye. waise aap apane aalimo se charcha karwaaye jinse aap sikh rahe ho. aap se charchaa karnaa samay barbaad kara hai mere bhai. kshmaprarthi hu

  114. प्रश्न 4

    उत्तर
    हज़रत नूह ने अल्लाह से दुआ मांगी की दुनिया वालों को मेरे दीन में करदे, अल्लाह ने कुबूल नहीं की। जब नाश होने की दुआ मांगी तो अल्लाह ने कुबूल की। इसका प्रमाण कृपया कुरआन से दीजियह कि ऐसी दुआ कहाँ मांगी?
    أَفَلَمْ يَاْيْئَسِ الَّذِينَ آَمَنُوا أَنْ لَوْ يَشَاءُ اللَّهُ لَهَدَى النَّاسَ جَمِيعًا
    यदि अल्लाह चाहता तो सारे ही मनुष्यों को सीधे मार्ग पर लगा देता? [सूरह राद 13; आयत 31]
    यह सही अनुवाद है। इसका अर्थ आपने गलत किया है। अल्लाह ने सारे लोगों को मोहलत दी है एक निर्धारित समय तक। यह हम सब की परीक्षा है जिसमें हमें सत्य स्वीकार या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता है। जो व्यक्ती चाहे तो माने और जो चाहे न माने। अब अल्लाह के चाहने को आप मनुष्य के चाहने के सामान मत समझिए। यहाँ तो अल्लाह एक सिद्धांत बता रहे हैं कि यदि अल्लाह चाहते तो सारे इंसान आस्तिक बनजाते। उदाहरण के लिए यह धरती देखिए जो अल्लाह के निर्धारित नियमों के अनुसार अपना चक्कर लगा रही है। क्या धरती को यह स्वतंत्रता है कि वह अपने ग्रहपथ से बाहर निकले? नहीं। क्योंकि धरती में हमारी तरह स्वतंत्र इच्छा (free will) नहीं है। तो यही बात हमें अल्लाह समझा रहे हैं। अल्लाह को हिन्दू मुस्लिम् लड़ाई देखना पसंद नहीं, लेकिन यह तो हमारी मूर्खता है कि हम लड़ते हैं, या आप जैसे लोग लड़वाते हैं। क्या आपके वैदिक ईश्वर को लड़ाई पसंद है जो वेदों के हर प्रष्ट पर लड़ाई का कोई न कोई मंत्र है?
    अब सूरह नूह 71; आयत 26-28 पर आते हैं जिसका मैं सही अनुवाद आपके सामने कर दूं क्योंकि आपको गलत तर्जुमा करने की आदत है
    وَقَالَ نُوحٌ رَبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا
    और नूह ने कहा, “ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसने वाले को न छोड़
    إِنَّكَ إِنْ تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا
    यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे
    رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَنْ دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا تَبَارًا
    ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मेरे माँ-बाप को भी और हर उस व्यक्ति को भी जो मेरे घर में ईमानवाला बन कर दाख़िल हुआ और (सामान्य) ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को भी (क्षमा कर दे), और ज़ालिमों के विनाश को ही बढ़ा।”
    पंडित जी, यह प्रार्थना तो उन पापियों को नष्ट करने के लिए थी जिन का पाप हद से बढ़ गया था और ईमानवालों (अर्थात जो भले लोग हों) को बचाने की प्रार्थना है। इसमें आपको स्वार्थ कैसे नज़र आया? यदि अल्लाह उन पापी काफिरों (अल्लाह के भले मार्ग पर न चलने वाले) को नष्ट नहीं करता तो वे दुनिया में पाप को फैलाते जैसा कि आयत 27 से ज़ाहिर है। दुराचारियों को नष्ट करने और सदाचारियों की रक्षा करने की प्राथना करना कोनसी स्वार्थपरता है?
    वेदों की स्वार्थी प्रार्थनाएं
    किं ते कर्ण्वन्ति कीकटेषु गावह नाशिरं दुह्रे न तपन्तिघर्मम |
    आ नो भर परमगन्दस्य वेदो नैचाशाखं मघवन्रन्धया नः ||
    हे इन्द्र, अनार्य देशों के कीकट वासियों की गौओं का तुम्हे क्या लाभ है? उनका दूध सोम में मिला कर तुम पी नहीं सकते। उन गौओं को यहाँ लाओ। परमगन्द (उनके राजा), की संपत्ति हमारे पास आजाए। नीच वंश वालों का धन हमें दो। [ऋग्वेद 3/53/14]
    पंडित जी, यह अनार्यों के धन और संपत्ति को लूटने की कैसी प्राथना वेदों में की गई है?
    ‘कीकट’ शब्द की व्याख्या करते हुए यास्क आचार्य ने ‘निरुक्त’ में लिखा है,
    कीकटा नाम देशो अनार्यनिवासः [निरुक्त 6/32]
    अर्थात कीकट वह देश है जहां अनार्यों का निवास है। इस पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध आर्यसमाजी विद्वान पं. राजाराम शास्त्री ने लिखा है- “कीकट अनार्य जाती थी, जो बिहार में कभी रहती थी, जिस के नाम पर बिहार का नाम कीकट है.” (निरुक्त, पृ। 321, 1914 ई.)।
    स्वामी दयानंद ने ‘कीकटाः’ का अर्थ करते हुए लिखा है-
    “अनार्य के देश में रहने वाले मलेच्छ ”
    तो पंडित जी अब आप ही फेसला कीजिए कि यह दूसरों का धन लूटने की स्वार्थी प्रार्थना है या नहीं। मैंने केवल एक उदाहरण दिया अन्यथा ऐसी स्वार्थी प्रार्थनाओं के अतिरिक्त वेदों में कुछ और है भी नहीं।

    कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी लेख आगे पढे

    1. “अल्लाह ने सारे लोगों को मोहलत दी है एक निर्धारित समय तक। यह हम सब की परीक्षा है जिसमें हमें सत्य स्वीकार या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता है। जो व्यक्ती चाहे तो माने और जो चाहे न माने। अब अल्लाह के चाहने को आप मनुष्य के चाहने के सामान मत समझिए। ”

      स्वतंत्रा कहाँ दी, जबरदस्ती है जो मुहम्मद के समय से चली आ रही है

  115. प्रश्न 5

    उत्तर
    पंडित जी, आपके इस प्रश्न का न तो सर है न पैर। जिस आयत पर आप प्रश्न कर रहे हैं ऐसी पवित्र शिक्षा आपको सारे वैदिक शास्त्रों में नहीं मिले गी। आयत तो आपने कुछ ठीक लिखी है लेकिन इस से गलत बात साबित करने की कोशिश की है। सुनिए आयत का सही अनुवाद-
    وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُمْ مِنْ أَنْفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُمْ مَوَدَّةً وَرَحْمَةً
    “और यह भी अल्लाह की निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही सहजाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उसके पास शान्ति प्राप्त करो। और उसने तुम्हारे बीच प्रेंम और दयालुता पैदा की” [सूरह रूम 30; आयत 21]
    निश्चय, पति पत्नी के बीच में प्रेम और दयालुता अल्लाह ने ही डाली हैं। लेकिन उस प्रेम और हमदर्दी की क़दर करना हम पर निर्भर है। अल्लाह ने मां और बच्चे के बीच में भी अपार प्रेम डाला है, लेकिन किसी समय मां को अपने बच्चे के साथ दृढ़ता से पेश आना पड़ता है जब बच्चा गलती करता है। मां और बच्चे का रिश्ता एक प्राकृतिक रिश्ता है, लेकिन पति-पत्नी का रिश्ता बनाया जाता है। आप अपनी ही मिसाल लीजिए। आज आप आर्य समाज के सदस्य हैं। हो सकता है कल आप इस्लाम के अनुयायी बन जाएं।
    तो निश्चय ही पति-पत्नी के रिश्ते में अल्लाह ने प्रेम और हमदर्दी डाली होती है, परन्तु केवल वही इस प्रेम और हमदर्दी का अनुभव कर सकते हैं जो एक दुसरे से संतुष्ट हों और एक दुसरे के स्वभाव को समझते हों। इस आयत का तलाक़ के विधान के साथ कोई सम्बन्ध नहीं.
    तलाक़ का विधान अवश्य कुरआन में है और कुरआन से ही प्रभावित हो कर हिन्दू समाज ने भी अपना लिया है। कुरआन में तो एक पूरा अध्याय तलाक़ के विधान पर है जिसको सूरह तलाक़ (सूरह 65) कहा जाता है। तलाक़ का विधान बिलकुल प्राकृतिक है। यदि पति-पत्नी के बीच में अन्य कारण प्रेम और हमदर्दी पर हावी होजाएं तो तलाक़ बिलकुल प्राकृतिक है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि किसी भी कारण के बगैर पति अपनी पत्नी को तलाक़ दे। कुरआन के अनुसार तलाक़ एक गंभीर मामला है जो गंभीर स्थितिओं में पेश आता है। मगर इस अत्यंत भावुक मामले में भी शालीनता और सद्व्यवहार पर कायम रहने का हुक्म दिया गया है।
    जिस आयत को आपने अधूरा पेश किया है और उसका अनुवाद भी सरासर गलत किया है, पहले में वह पाठकों के सामने रख दूं-
    الطَّلَاقُ مَرَّتَانِ ۖ فَإِمْسَاكٌ بِمَعْرُوفٍ أَوْ تَسْرِيحٌ بِإِحْسَانٍ ۗ وَلَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَأْخُذُوا مِمَّا آتَيْتُمُوهُنَّ شَيْئًا إِلَّا أَنْ يَخَافَا أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ ۖ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا فِيمَا افْتَدَتْ بِهِ ۗ تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَعْتَدُوهَا ۚ وَمَنْ يَتَعَدَّ حُدُودَ اللَّهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ [٢:٢٢٩
    “तलाक़ दो बार है। फिर सामान्य नियम के अनुसार (स्त्री को) रोक लिया जाए या भले तरीक़े से विदा कर दिया जाए। और तुम्हारे लिए वैध नहीं है कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो, उसमें से कुछ ले लो, सिवाय इस स्थिति के कि दोनों को डर हो कि अल्लाह की (निर्धारित) सीमाओं पर क़ायम न रह सकेंगे तो यदि तुमको यह डर हो कि वे अल्लाह की सीमाओ पर क़ायम न रहेंगे तो स्त्री जो कुछ देकर छुटकारा प्राप्त करना चाहे उसमें उन दोनो के लिए कोई गुनाह नहीं। यह अल्लाह की सीमाएँ है। अतः इनका उल्लंघन न करो। और जो कोई अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो ऐसे लोग अत्याचारी है” [सूरह बक़रह; आयत 229]
    पंडित जी, आपने जो प्रश्न इस आयत पर किया है वैसा कुछ भी इस आयत में है ही नहीं। उल्टा इस आयत में तलाक़ देने का सही ढंग सिखाया गया है और वह यह है कि पत्नी की पवित्रता की अवस्था में पति एक तलाक़ दे। इसके बाद तीन मासिक धर्म (three menstrual cycles ), जो इद्दत का समय है, बीतने पर पति-पत्नी का सम्बन्ध टूट जाएगा और वही स्त्री किसी दुसरे से विवाह कर सकेगी। तीन महीने के अंतराल में यदि ये फिर से वापस आना चाहें तो आ सकते हैं।
    यह एक वापस ली जाने वाई तलाक़ है। ऐसी तलाक़ केवल दो बार हो सकती है, जिस का ढंग यह है-
    १। यदि पति तलाक़ दे तो इद्दत (तीन मासिक धर्म अर्थात तीन महीने) के अन्दर रुजूअ हो सकता है। यदि इद्दत बीत जाए और रुजू न करे तो नए महर के साथ ही नया निकाह संभव है। यदि इस निकाह के बाद फिर किसी कारण से तलाक़ होजाए तो निश्चित इद्दत के अन्दर वे रुजूअ कर सकते हैं। यदि यह इद्दत भी बीत जाए तथा रुजू न करें तो नए महर के साथ ही नया विवाह हो सकता है।
    २। परन्तु यदि फिर तीसरी बार तलाक़ दे तो यह तलाक़ अंतिम होगी। अब वे इद्दत के अन्दर रुजूअ नहीं कर सकते और ना ही इद्दत के बाद नए महर के साथ नया विवाह हो सकता है। हाँ, यदि वह स्त्री किसी अन्य पुरुष से विवाह करले और वह पति ……..कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी लेख आगे पढे

    1. हलाला और मुत्ता कौनसे भावुक मुद्दे हैं इस्लाम में
      🙂

  116. वह पति स्वयं मर जाए या उसे तलाक़ दे, तो ही पहले पति से फिर विवाह संभव है और वह भी ज़बरदस्ती नहीं। लेकिन यहाँ एक बात का ध्यान दें कि दूसरा पति किसी निर्धारित योजना के अधीन स्त्री को तलाक़ दे ताकी वह स्त्री पहले पति से विवाह कर सके, यह इस्लाम में हराम है और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फरमाया है कि ऐसे पुरुष पर अल्लाह का अभिशाप (लानत) है। जिस हलाला की आप बात कर रहे हैं वह इस्लाम में जायज़ है ही नहीं।
    यहाँ प्रश्न यह है कि जो पति अपनी पत्नी को परेशान करने के लिए तीन बार तलाक दे चूका ऐसे पुरुष से वह स्त्री फिर से विवाह क्यों करे गी? कुरआन तो पहले ही बता चूका है कि पति-पत्नी का रिश्ता पवित्र रिश्ता होता है जिस में प्रेम और हमदर्दी हो। अगर पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती तो पहले मामला बात चीत से हल करना चाहिए। यदि समस्या हल हो जाए तो ठीक और यदि लगे कि तलाक़ के सिवा कोई और रास्ता नहीं तब ही उसका उपयोग करना चाहिए। लिहाज़ा हलाला जैसी बुरी चीज़ की कोई अवधारणा इस्लाम में नहीं। यह केवल इंडिया, पाकिस्तान और बंगलादेश में मुसलमानों की अज्ञानता की समस्या है। इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं।
    ३। इस आयत ने स्पष्ट कर दिया कि तलाक़ हमेशा अहसन (भले तरीक़े से) हो। स्त्री को जो महर दिया हो उसको वापस नहीं लेना चाहिए क्योंकि उस पर स्त्री का अधिकार है। यदि पति अपनी पत्नी को परेशान करने के लिए तलाक़ के हरबे इस्तेमाल कर रहा हो तो पत्नी को चाहिए कि वह न्यायाले के पास जाए और सामान्य नियम के अनुसार उस पति से अलग हो जाए.

    हिन्दू धर्म और तलाक़
    हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 के अनुसार विशेष स्थितियों में, यथा दुष्ट स्वभाव, मूर्ख, व्यभिचारी, नामर्द होने पर स्त्री अपने पति को तलाक़ दे सकती है। लेकिन हिन्दू धर्म में तलाक़ का कोई प्रावधान नहीं है। इस्लाम से ही प्रभावित होकर हिन्दू समाज ने भी तलाक केपरवधान को अपना लिया। पति चाहे दुष्ट स्वभाव वाला, मूर्ख, और रोगी हो तब भी हिन्दू धर्म के अनुसार स्त्री उसे नहीं छोड़ सकती। उसे अपने ही पति के साथ जीना और मरना है।
    नियोग प्रथा
    पंडित जी आप ने हलाला की गैर इस्लामी अवधारणा पर तो प्रश्न किया लेकिन अपने वैदिक धर्म की मूल शिक्षा ‘नियोग’ को भूल गए। नियोग के नाम पर अपनी पत्नी को अन्य पुरुषों से बे आबरू कराना, यह आपकी वैदिक सभ्यता है जिसे आप इस्लाम पर लादने का प्रयास कर रहे हैं। नियोग प्रथा के अनुसार नारी को न केवल निम्न और भोग की वस्तु और नाश्ते की प्लेट समझा गया है बल्कि बच्चे पैदा करने की मशीन बनाया गया है। और ‘नियोग’ का कारण भी क्या निराला है! केवल एक पुरुष के संतान उत्पन्न करने के लिए ‘नियोग’ का घटिया प्रावधान वैदिक धर्म में है। नियोग पर मेरी टिपण्णी के लिए देखियह प्रश्न 15 का उत्तर.
    प्रश्न 6

    उत्तर
    यहाँ आप काफिरों को क़त्ल करने पर आपत्ति कर रहे हैं, लेकिन आपने तो उन आयातों का ऐतिहासिक संदर्भ समझा ही नहीं। जो आयत आप पेश कर रहे हैं उसका आपने अनुवाद गलत किया है और हवाला भी गलत है। सही हवाला सूरह बक़रह की आयत 193 है जिसका सही अनुवाद यह है,
    وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ ۖ فَإِنِ انْتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ
    अर्थात तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं [सूरह बक़रह; आयत 193 और सूरह अन्फाल; आयत 31]
    पंडित जी, उस व्यक्ति को क्या कहें जो एक वाक्य को उसके प्रसंग में न देखे? इस आयत का सही अर्थ जानने के लिए आयत 191 से पढ़िए
    وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ الَّذِينَ يُقَاتِلُونَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ
    और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता
    وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُمْ مِنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ فَإِنْ قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗ كَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ
    और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो – ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है
    فَإِنِ انْتَهَوْا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
    फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला,

    1. हलाला जैसा उत्तम समझे जाने वाला कर्म है आपके पास
      अच्छा इस्लामी ज्ञान है आपके पास
      🙂

  117. फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, अत्यन्त दयावान है
    وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ ۖ فَإِنِ انْتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ
    तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं
    इन आयतों से पता चलता हे कि यह युद्ध धार्मिक अत्याचार का अंत करने के लिए लड़ा जारहा था। क्योंकि आयत 191 और 192 में स्पष्ट लिखा है कि यह लड़ाई केवल उनसे थी जो मुसलमानों पर उनके धर्म के कारण अत्याचार कर रहे थे। मक्का में 13 वर्ष तक मुसलमान मूर्ति पूजकों का अत्याचार सहते रहे और उसके बाद उन्हें वहाँ से निकल कर मदीना जाना पड़ा। मदीना में आने के बाद भी मूर्ति पूजकों ने उन्हें शान्ति से बेठने नहीं दिया, और युद्ध के लिए मजबूर किया। इसी प्रसंग में आयत 193 को देखना चाहिए। इस आयत में अरबी शब्द ‘फ़ितना’ का अर्थ ‘धार्मिक अत्याचार’ है जिसका अंत इस्लाम ने किया। ‘अल्लाह के लिए दीन होजाने’ का अर्थ यह है कि मज़हबी आज़ादी (धार्मिक स्वतंत्रता) होजाए। तो इस आयत पर आपके आक्षेप का कोई आधार नहीं है.
    इसके अतिरिक्त कुरआन में जो भी आयतें काफिरों को मारने के लिए आई हैं वे सब युद्ध की स्थितियों से सम्बंधित आयतें हैं। इसकी व्याख्या मैंने प्रश्न 1 के उत्तर में करदी है.
    वेदों की निर्दयी शिक्षा
    वेदों के वचन भी सुनिए
    “धर्म के द्वेषी शत्रुओं को निरन्तर जलाइए।… नीची दशा में करके सूखे काठ के समान जलाइए.” [यजुर्वेद 13/12 दयानन्द भाष्य]
    “हे, तेजस्वी विद्वान पुरुष।… धर्म के अनुकूल होके दुष्ट शत्रुओं को ताड़ना दीजिए…शत्रुओं के भोजन के और अन्य व्यवहार के स्थान को अच्छे प्रकार प्रकार विस्तारपूर्वक नष्ट कीजिये और शत्रुओं को बल के साथ मारिए…” [यजुर्वेद मंत्र 13] इसके विपरीत इस्लाम हमें यह शिक्षा देता है कि युद्ध में भी खाद्य पदार्थों को नष्ट नहीं करना चाहिए और वृक्षों को नहीं जलाना चाहिए।
    “हे वीर पुरुष। जैसे हम लोग जो शस्त्र-अस्त्र वैरी की कामनाओं को नष्ट करता है, उस धनुष आदि शस्त्र-अस्त्र विशेष से प्रथिवियों को और उक्त शस्त्र विशेष से संग्राम को जीते…” [यजुर्वेद अध्याय 29, मंत्र 39] यहाँ तो वैदिक धर्मी सारी प्रथिवि को शास्त्रों से जीतने का सपना देख रहे हैं।
    इस्लाम ने हमें युद्ध का यह सिद्धांत सिखाया है कि युद्ध में कभी भी स्त्रियॉं, बच्चों और बूढ़ों की हत्या नहीं करनी चाहिए। लेकिन इसके विपरीत वेद यह शिक्षा देते हैं कि अपने शत्रुओं के गोत्रों और परिवार की बेदर्दी से हत्या करो। सुनिए,
    “तुम लोग अपने शरीर और बुद्धि वा बल वा सेनजनों से जो कि शत्रुओं के गोत्रों अर्थात समुदायों को चिन्न-भिन्न करता, उनकी जड़ काटता, शत्रुओं की भूमि को ले लेता, अपनी भुजाओं में शास्त्रों को रखता, अच्छे प्रकार शत्रुओं को मारता, जिससे वा जिसमें शत्रुओं को पटकते हैं, उस संग्राम में वैरियों को जीत लेता और उनको विदीर्ण करता, इस सेनापति को प्रोत्साहित करो और अच्छे प्रकार युद्ध का आरम्भ करो।” [यजुवेद 17/38, दयानन्द भाष्य]
    स्वामी दयानन्द सरस्वती ऋग्वेद 1/7/4 के भावार्थ में लिखते हैं
    “परमेश्वर का यह स्वभाव है कि युद्ध करने वाले धर्मात्मा पुरुषों पर अपनी कृपा करता है और आलसियों पर नहीं। जो मनुष्य जितेन्द्रिय विद्वान आलस्य को छोड़े हुए बड़े बड़े युद्धों को जीत के प्रजा को निरंतर पालन करते हैं, वह ही महाभाग्य को प्राप्त होके सुखी रहते हैं.”
    क्या आपके ईश्वर के जिम्मे यही काम रह गया है कि लोगों को एक दुसरे से लड़ने का आदेश देता रहे? तो उस ईश्वर का भक्त कैसा होगा? प्रमाण है बोद्धों, जैनियों और अन्य नास्तिक समुदायों पर हिन्दुओं के अत्याचार जो इतिहास से साबित होते हैं। इन अत्याचारों के बारे में स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में आदि शंकराचार्य के सन्दर्भ में संक्षेप में लिखा है.
    “दस वर्ष के भीतर सर्वत्र आर्यावर्त में शंकराचार्य ने घूम कर जैनियों का खंडन और वेदों का मण्डन किया। परन्तु शंकराचार्य के समय में जैन विध्वंस अर्थात जितनी मूर्तियाँ जैनियों की निकलती हैं। वे शंकराचार्य के समय में टूटी थीं और जो बिना टूटी निकलती हैं वे जैनियों ने भूमि में गाड दी थीं की तोड़ी न जाएँ। वे अब तक कहीं भूमि में से निकलती है।” [सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास 11]
    पंडित जी देखिए जैनियों पर कितना अत्याचार किया था हिन्दुओं ने। उनकी मूर्तियाँ भी तोड़ डाली थीं।
    प्रश्न 7

    उत्तर
    إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ
    निस्संदेह नमाज़ अश्लीलता और बुराई से रोकती है। [सूरह अन्कबूत 29; आयत 45]

    1. तो क्या ये मान लिया जाए कि कुरान कि इन आयातों कि अब कोई आवश्यकता नहीं
      इन आयतों से पता चलता हे कि यह युद्ध धार्मिक अत्याचार का अंत करने के लिए लड़ा जारहा था।

      🙂

  118. निस्संदेह नमाज़ अश्लीलता और बुराई से रोकती है। [सूरह अन्कबूत 29; आयत 45]
    आप यह प्रश्न कर रहे हैं कि यदि नमाज़ बुराई से रोकती है तो नमाज़ पढने वाले ही बुराई क्यों कर रहे हैं? नमाज़ से यहाँ केवल उसका प्रकट रूप तात्पर्य नहीं है। बल्कि नमाज़ की आंतरिक भावना तात्पर्य है। जो व्यक्ति हकीकी नमाज़ पढ़ रहा हो, जिस में वह पूरे ध्यान के साथ अपने आप को अल्लाह के सामने महसूस कर रहा हो, वही वास्तविक नमाज़ होगी। जो व्यक्ति नमाज़ ध्यान से नहीं पढ़ते उनके बारे में तो कुरआन स्पष्ट कहता है कि वह नमाज़ अल्लाह स्वीकार नहीं करते। सुनिए-
    فَوَيْلٌ لِلْمُصَلِّينَ
    अतः तबाही है उन नमाज़ियों के लिए,
    الَّذِينَ هُمْ عَنْ صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ
    जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं, [सूरह माऊन 107; आयत 4-5]
    इस से सिद्ध होता है कि जो व्यक्ति नमाज़ पढ़ के भी बुराई करे वह वास्तव में केवल प्रकट रूप से नमाज़ पढता है, आतंरिक भावना से नहीं.
    प्रश्न 8

    उत्तर
    यह एक आपका निराला प्रश्न है। मुझे तो इसका उत्तर देते हुए भी शर्मिंदगी हो रही है। कुरआन में नरक से मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति के 4 सिद्धांत बतायह गए हैं। जो व्यक्ति इस मापदंड पर पूरा उतरे गा, वही नरक से बच जाए गा। कुरआन में आता है-
    وَالْعَصْرِ
    गवाह है गुज़रता समय
    إِنَّ الْإِنْسَانَ لَفِي خُسْرٍ
    कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है,
    إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَتَوَاصَوْا بِالْحَقِّ وَتَوَاصَوْا بِالصَّبْرِ
    सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और एक-दूसरे को सत्य की ताकीद की, और एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की। [सूरह अल-असर 103; आयत 1-4]
    जो व्यक्ति भी इस कसौटी पर पूरा उतरे गा वह नरक से बच्च कर स्वर्ग प्राप्त करेगा। आपको अरब वालों की खुशहाली से क्यों जलन हो रही है? इस खुशहाली को ऐश कहना आपकी मूर्खता है। यदि कोई अरबी हकीकत में ऐश और विलासिता में अल्लाह से गाफिल होगया हो तो वह निश्चित रूप से उसका दण्ड भोगे गा। मगर सारी अरबी जनता को एक ही लाठी से हांकना आपकी नस्लवादी मानसिकता को व्यक्त करता है। वास्तव में एष करने की आदत आपके वैदिक ऋषियों को थी। तभी तो हमेशा ईश्वर से दुनियावी सुख और एष की प्रार्थनाएँ करते थे। खुद शब्द ‘वेद’ के अर्थ धन और संपत्ति के भी हैं जैसा कि ऊपर उत्तर 4 में ऋग्वेद 3/53/4 में आए शब्द परमगन्दस्य वेदो (परमगन्द की धन संपत्ति) से साबित है। वेद के लेखकों का उद्देश ही मंत्र जप के धनद दौलत पाना और एष करना था। जहां पवित्र कुरआन अल्लाह की स्तुति और हिदायत की प्रार्थना से शुरू होता है, वहीं ऋग्वेद अग्नि की स्तुति कर धन और रत्न प्राप्त करने से शुरू होता है। इसी लिए वहाँ लिखा हैरत्नधातमम अर्थात ‘रत्नों से विभूषित करने वाला’।
    इसके अतिरिक्त आपका यह कहना कि कुरआन में अल्लाह ने कहा कि मुसलमानों पर जहन्नुम की आग हराम है, इसका प्रमाण दिखाइए? कुरआन में केवल नाम के मुसलमान को जहन्नुम से मुक्ति नहीं दी गयी है, बल्कि एक सच्चे मुसलमान को, जो अच्छे कर्म करता हो और दूसरों को सत्य की ताकीद करता हो, और दूसरों को धैर्य की ताकीद करता हो। इन बातों में कोई विरोध नहीं।

    1. “आपको अरब वालों की खुशहाली से क्यों जलन हो रही है? ”

      हमें क्यों जलन हो हाँ दुःख अवश्य होता है मुसलमान जिस तरह आतंकवादी बन कर मर रहे हैं

      निस्संदेह दुःख का विषय है

  119. प्रश्न 9

    उत्तर
    पंडित जी, यदि आप ऋग्वेद के प्रथम मन्त्र को देख लेते तो यह बेजा आपत्ति नहीं करते। ध्यान से सुनिए-
    अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवं रत्वीजम |
    होतारं रत्नधातमम ||
    “हम लोग उस अग्नि की प्रशंसा करते हैं जो पुरोहित है, यज्ञ का देवता, समस्त तत्वों का पैदा करने वाला, और याजकों को रत्नों से विभूषित करने वाला है”
    बताइए, यदि अग्नि से, आपके के अनुसार, ईश्वर ही तात्पर्य है और वेद भी ईश्वर की वाणी है, तो इस वाक्य का बोलने वाला कोन है?
    आप असल में ईश्वरीय पुस्तकों कि जुबान/भाषा से अपरिचित हैं। ईश्वरीय किताबों का मुहावरा और कलाम (भाषा) कि शैली कई प्रकार की होती है। कभी तो ईश्वर स्वयं बात कहने के रूप में अपना आदेश स्पष्ट करता है (संस्कृत का उत्तम पुरुष/first person) और कभी गायब से (संस्कृत का प्रथम पुरुष/third person)। कभी कोई ऐसे वाक्य जो दुआ, स्तुति या प्राथना के रूप में बन्दों को सिखाना अपेक्षित हो उसे बन्दे की जुबान से व्यक्त कराया जाता है।
    सूरह फातिहा या बिस्मिल्लाह भी इसी प्रकार है। अर्थात यह ऐसे शब्द हैं जो ईश्वर बन्दों को सिखातें हैं। तो कुरआन कलामुल्लाह ही है। आप कलाम कि शैली को न समझने के कारण ऐसी आपत्ति कर रहे हैं। इस प्रश्न का निर्णायक उत्तर मैं पंडित जी के गुरु के घर से ही दिखा देता हूँ ताकि सारी दुनिया इनके दोहरे मापदंड देख लें। स्वामी दयानन्द के शास्त्रार्थ और विभिन व्याख्यानों पर आधारित एक पुस्तक है जिसका नाम है ‘दयानन्द शास्त्रार्थ संग्रह तथा विशेष शंका समाधान’। यह पुस्तक आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट देहली ने प्रकाशित की है। इस पुस्तक केअध्याय 38 में पंडित ब्रिजलाल साहब के स्वामी दयानन्द जी से किए गए प्रश्न मिलते हैं। पंडित ब्रिजलाल के स्वामी जी से किए गए कई प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है।
    प्रश्न 21: वेद में परमेश्वर की स्तुति है तो क्या उसने अपनी प्रशंसा लिखी?
    उत्तर- जैसे माता पिता अपने पुत्र को सिखाते हैं कि माता, पिता और गुरु की सेवा करो, उनका कहना मानो। उसी प्रकार भगवान ने सिखाने के लिए वेद में लिखा। [दयानन्द शास्त्रार्थ संग्रह तथा विशेष शंका समाधान’, आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट देहली, पृष्ट 79, जून 2010 प्रकाशन]
    यह देखिए कैसे स्वामी दयानन्द जी स्वयं पंडित महेंद्रपाल आर्य के प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं। जब यह लोग वेद पढ़ते हैं तो समाधान की ऐनक लगाते हैं, लेकिन कुरआन पढ़ते समय शंका की ऐनक लगाते हैं। ऐसे हठधर्मी लोगों को इनही उदाहरणों से समझाना पढ़ता है।

    क्या वेद ईश्वर् की वाणी है?

    आर्य समाज का यह दावा कि वेद ईश्वर् की वाणी है, या एक इल्हामी ग्रन्थ है, पूरी तरह से गलत है। वेदों का अध्यन करने से पता चलता है कि वे ऋषियों द्वारा बनायह गए हैं। इस विषय का पूरा विवरण करना यहाँ संभव नहीं है, लेकिन में कुछ प्रमाण आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ-
    तैतीरीय ब्रह्मण 2/8/8/5 में लिखा है
    ऋषयो मंत्रकृतो मनीषिण:
    अर्थात “बुद्धिमान ऋषि मन्त्रों के बनाने वाले हैं.”
    इसके अतिरिक्त इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं समय समय पर वेदों के नए नए मंत्र बनते रहे हैं और वे पहले बने संग्रहों (संहिताओं अथवा वेदों) में मिलाये जाते रहे हैं। खुद वेदों में ही इस बात के प्रमाण मिलते हैं-
    ऋग्वेद 1/109/2
    अथा सोमस्य परयती युवभ्यामिन्द्राग्नी सतोमं जनयामि नव्यम ||
    अर्थात “हे इन्द्र और अग्नि, तुम्हारे सोम्प्रदानकाल में पठनीय एक नया स्तोत्र रचता हूँ.”
    ऋग्वेद 4/16/21
    अकारि ते हरिवह बरह्म नव्यं धिया
    अर्थात “हे हरि विशिष्ठ इन्द्र, हम तुम्हारे लिए नए स्तोत्र बनाते हैं.
    ऋग्वेद 9/9/8
    नू नव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः |
    परत्नवद रोचया रुचः ||
    सोम तुम नए और स्तुत्य सूक्त के लिए शीघ्र ही यज्ञ-पथ से आओ और पहले की तरह दीप्ति का प्रकाश करो।
    ऋग्वेद 7/22/9
    ये च पूर्व ऋषयो ये च नूत्ना इन्द्र बरह्माणि जनयन्त विप्राः |
    अर्थात “हे इन्द्रदेव, प्राचीन एवं नवीन ऋषियों द्वारा रचे गए स्तोत्रों से स्तुत्य होकर आपने जिस प्रकार उनका कल्याण किया, वैसे ही हम स्तोताओं का मित्रवत कल्याण करें.”
    स्पष्ट है कि इन नए स्तोत्रों व मन्त्रों व सूक्त के रचेता साधारण मानव थे, जिन्होंने पूर्वजों द्वारा रचे मन्त्रों के खो जाने पर या उनके अप्रभावकारी सिद्ध होने पर या उन्हें परिष्कृत करने या अपनी नयी रचना रचने के उद्देश से समय समय पर नए मंत्र रचे।
    इसलिए वेद सर्वज्ञ परमात्मा की रचना सिद्ध नहीं होते।
    प्रश्न 10

    उत्तर
    आपने जो हदीस पेश की है उसमें तो लड़ाई की कोई बात ही नहीं कही गयी है। आपने इस बड़ी स्पष्ट हदीस पर अनावश्यक आपत्ति की है। शायद इसमें ‘जिहाद’ का शब्द देखकर आपने यह समझ् लिया कि यहाँ दुसरे लोगों से लड़ाई को सब से बड़ा काम कहा गया है। यह केवल आपकी अज्ञानता है कि आप जिहाद के सही अर्थ को नहीं समझा…….कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी लेख आगे पढे

    1. वेदों में कोई मिलावट नहीं है
      हाँ कुरान में अवश्य है
      उसमान ने इसी कारण तो अलग अलग तरह कि कुरानों को जलवाया था

      बाकी आयातों में से कुछ को बकरी भी खा गयी थी आपको पता ही होगा

  120. जिहाद का शाब्दिक अर्थ ‘संघर्ष’ है। इस अर्थ को यदि आपकी दी हुई हदीस में अपनाएं तो हदीस का अर्थ यह हुआ कि अल्लाह की राह में ‘संघर्ष’ करना सबसे बड़ा काम है। इस पर आपको क्या आपत्ति है? क्या आप अपने धर्म के प्रचार में संघर्ष नहीं करते? क्या आप अपनी सोच के अनुसार ईश्वर के मार्ग में संघर्ष नहीं करते? अल्लाह का मार्ग तो एक पवित्र मार्ग है। इस मार्ग के प्रचार में और बुरे मार्ग की निंदा में तो हर ज़माने में संघर्ष करना पड़ता है। क्या आपको यह भी मालूम नहीं, जो आपने इसकी तुलना लड़ाई से की? इसकी तुलना आप श्री कृष्ण के उस उपदेश से कीजियह जब उन्होंने अर्जुन से कहा-
    “हे पार्थ, भाग्यवान क्षत्रियगण ही स्वर्ग के खुले द्वार के सामने ऐसे युद्ध के अवसरको अनायास प्राप्त करते हैं। दूसरी और, यदि तुम धर्मयुद्ध नहीं करोगे, तो स्वधर्म एवं कीर्ति को खोकर पाप का अर्जन करोगे.” [श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २; श्लोक ३२-३३]
    कहिए पंडित जी, क्या कृष्ण लड़ाकू है, जो दुनिया वालों को लड़ाना चाहते हैं? आदरणीय पाठको, नीचे मेने महेंद्रपाल जी का एक विडियो लिंक रखा है, जिस में वे हिन्दुओं को श्री कृष्ण के यही वाक्य सुना कर लड़ने पर उकसा रहे हैं। आप ही फेसला कीजिए कि कोन लड़ाकू है।
    प्रश्न 11

    उत्तर
    ऐसी कोई हदीस नही जिसमें यह कहा गया हो कि गैर मुस्लिम की अर्थी देखने के समय उसे हमेशा के लिए जहन्नुम की आग में दाल देने की प्रार्थना की जाए। यह कोरा झूठ है। आपने हदीस का सही हवाला भी नहीं दिया है। इस कारण आपका प्रश्न ही निराधार है। यदि आपने हदीसों का अध्यन किया होता तो आपको ज्ञान होता कि एक गैर मुस्लिम की अर्थी (जनाज़ा) देखते समय पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने क्या किया था। सुनिए-
    النبي صلى الله عليه وسلم مرت به جنازة فقام فقيل له إنها جنازة يهودي‏.‏ فقال ‏” أليست نفسا؟” …إذا رأيتم الجنازة فقوموا
    “एक बार पैगम्बर (सल्ल.) के सामने से एक अर्थी पारित हुई तो आप (सल्ल.) खड़े होगए। आपसे कहा गया कि यह तो एक यहूदी की अर्थी है। पैगम्बर (सल्ल.) ने फरमाया, “क्या यह इंसान नहीं? …जब भी तुम लोग जनाज़े को देखा करो तो खड़े हो जाया करो.” [सही बुखारी; किताबुल जनाइज़; हदीस 389 और 390]
    अब बताइए, कि नबी (सल्ल.) के इस पवित्र आचरण के बाद भी आपको कोई शंका है? अल्लाह ने कोई भेद-भाव पैदा नहीं किया। कुरआन तो स्पष्ट कहता है।
    يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُمْ مِنْ ذَكَرٍ وَأُنْثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا ۚ إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِنْدَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ
    “ऐ लोगो! हमने तुम्हें पुरुष और स्त्री से पैदा किया और तुम्हें कई दलों तथा वंशों में विभाजित कर दिया है, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको। वास्तव में तुममें से अल्लाह के निकट सत्कार के अधिक योग्य वही है, जो सबसे बढकर संयमी है। निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला ह.” [सूरह हुजुरात 49; आयत 13]
    इस आयत से यह सिद्ध होता है कि जातियां एवं संतति केवल परिचय के लिए हैं। जो व्यक्ति उन्हें गर्व तथा स्वाभिमान का साधन बनाता है, वह इस्लाम के विरुद्ध आचरण करता है.
    वैदिक ईश्वर का भेद-भाव
    विश्व के धर्मों में हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिस में सामाजिक भेद-भाव के बीज शुरू से ही विद्यमान रहे हैं। हिन्दू धर्म सामाजिक भेद भाव को न केवल धर्म द्वारा अनुमोदित करता है, बल्कि इस धर्म का प्रारंभ ही भेद भाव के पाठ से होता है। हिन्दू धर्म ने शुरू से ही मानव मानव के बीच भेद किया। ऋग्वेद के पुरुषसूक्त ने स्पष्ट कहा कि “ब्राह्मण परमात्मा के मुख से, क्षत्रिय उस कि भुजाओं से, वैश्य उस के उरू से तथा शूद्र उस के पैरों से पैदा हुए.”
    बराह्मणो.अस्य मुखमासीद बाहू राजन्यः कर्तः |
    ऊरूतदस्य यद वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ||
    [ऋग्वेद 10/90/12]
    हिन्दू बच्चे के जन्म के साथ ही भेद-भाव का दूषित जीवाणु उस से जुड़ जाता है जो उस के मरने के बाद भी उस का पिंड नहीं छोड़ता। जन्म के दुसरे सप्ताह बच्चे के नामकरण का आदेश है। नाम रखते ही उसे भेद-भाव कि घुट्टी पिला दी जाती है। सुनिए-
    “ब्रह्मण का नाम मंगलसूचक शब्द से युक्त हो, क्षत्रिय का बल्सूचक शब्द से युक्त हो, वैश्य का धव्वाचक शब्द से युक्त हो और शूद्र का निंदित शब्द से युक्त हो.”
    “ब्राह्मण के नाम के साथ ‘शर्मा’, क्षत्रिय के साथ रक्शायुक्त शब्द ‘वर्मा’ आदि,वैश्य के नाम के साथ पुष्टि शब्द से युक्त ‘गुप्त’ आदि तथा शूद्र के नाम के साथ ‘दास’ शब्द लगाना चाहिए.” [मनुस्मृति 2/31-32]
    यदि में भेद-भाव के विषय पर सारे हिन्दू धर्मशास्त्रों की शिक्षा यहाँ लिख दूं तो एक बड़ी पुस्तक बन जाए गी। इसी कारण इस निम्नलिखित वचन पर ही उत्तर समाप्त करता हूँ। सुनिए-
    “सजातियों के रहित शूद्र से, ब्राह्मण शव का वाहन………….कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी लेख आगे पढे

    1. जिहाद क्या है ISIS जैसे संगठनों के माध्यम से पता चल ही रहा है

      🙂
      शांतिप्रिय इस्लाम कि झलक हिएँ ये

  121. “सजातियों के रहित शूद्र से, ब्राह्मण शव का वाहन कभी न करना। क्योंकि शुदा स्पर्श से दूषित शव की आहूति, उसको स्वर्ग्दायक नहीं होती.” [मनुस्मृति 5/104]
    पंडित जी, यदि आपके शव को कभी शूद्र का स्पर्श लग गया तो आपको अपने धर्म से हाथ धोना पड़े गा।
    प्रश्न 12

    उत्तर
    पंडित जी, जिस घटना पर आप इतना आश्चर्य कर रहे हैं, वह केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के माध्यम से अल्लाह का एक चमत्कार था। हमने यह दावा कभी नहीं किया कि किसी मनुष्य के लिए चाँद के दो टुकड़े करना संभव था। यदि आप ईश्वर को सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ मानते हैं तो ईश्वर अपनी रचित सृष्टि का हमसे कहीं अधिक ज्ञान रखते हैं। अल्लाह के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं कि चाँद के दो टुकड़े करदे और दुनिया में उथल पुथल भी न हो। यह चमत्कार मक्का के मूर्ति पूजकों के आग्रह पर दिखाया गया। उन्हों ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से अनुरोध किया कि यदि वह अल्लाह के सच्चे ईशदूत हैं तो चाँद के दो टुकड़े करें, और यदि वह ऐसा करदें तो सारे मूर्तिपूजक उनके सच्चे ईशदूत होने पर विशवास करें गे। लेकिन यह चमत्कार देखने के बाद भी उन्हों ने विशवास नहीं किया.
    आप पूछते हैं कि चाँद को फिर जोड़ा किसने? जिसने तोडा उसी सर्वशक्तिमान अल्लाह ने जोड़ भी दिया।
    हनुमान जी के बारे में उत्तर पढ़ने से पहले यह समझ लीजियह कि वर्त्तमान रामयाण की ऐतिहासिकता की पुष्टि कुरआन नहीं करता। हमारी यह मान्यता है कि एक अल्लाह के ईशदूत (पैगम्बर) के बगैर कोई ऐसे विशाल चमत्कार नहीं दिखा सकता। हनुमान जी के जिस चमत्कार के बारे में आप पूछ रहे हैं वह जिस सन्दर्भ में हमें मिलता है, उसमें उस का विशवास नहीं किया जा सकता। हनुमान जी ने सूर्य को फल समझ के निगल दिया था। अब हम ऐसे चमत्कारों में विश्वास नहीं रखते जो व्यर्थ हों या जिन से कोई लाभ नहीं। चाँद के दो टुकड़े करने में और हनुमान जी का सूर्य को फल समझ के निगलने में कोई तुलना ही नहीं।
    पंडित जी, कृपया आप लोगों को समझाने का कष्ट करें गे कि सृष्टि के आरम्भ में मनुष्य जवान जवान कैसे पैदा हुए थे जैसा कि आपके गुरु स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास 8 में लिखा है? इस बात को आप किस विज्ञान के आधार पर सिद्ध करें गे?

    वेदों में चमत्कारिक घटनाएं

    सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों के जवान जवान टपक जाने के अतिरिक्त कई और चमतारिक घटनाओं का विवरण वेदों में मिलता है। उदाहरण के लिए देखियह-
    1. ऋग्वेद 3/33/5 में विश्वामित्र जी ने मंत्र पढ़ कर सतलुज और ब्यास नदियों को खड़ा कर दिया था। सुनिए-
    रमध्वं मे वचसे सोम्याय रतावरीरुप मुहूर्तमेवैः |
    पर सिन्धुमछा बर्हती मनीषावस्युरह्वे कुशिकस्य सूनुः ||
    अर्थात “हे जलवती नदियों, आप हमारे नम्र और मधुर वचनों को सुन कर अपनी गति को एक क्षण के लिए विराम दे दें। हम कुशक पुत्र अपनी रक्षा के लिए महती स्तुतियों द्वारा आप नदियों का भली प्रकार सम्मान करते हैं.”
    निरुक्त अध्याय 2, खण्ड 24 से 26 में इस मंत्र का स्पष्ट अर्थ बताया गया है। अब ऋग्वेद के इस मंत्र में आपके लिए दो प्रश्न हैं। यहाँ, ऋषि विश्वामित्र सीधे सीधे नदियों से बातें कर रहे हैं। इस को आप क्या कहें गे? और केवल ऋषि विश्वामित्र के मंत्र जपने से ही वे नदियाँ कैसे ठहर गयीं?
    2. ऋग्वेद 4/19/9 के अनुसार दीमक द्वारा खाए गए कुँवारी के बेटे को इन्द्र ने फिर से जीवित किया और सारे अंगों को इकट्ठे करदिया.
    वम्रीभिः पुत्रम अग्रुवह अदानं निवेशनाद धरिव आ जभर्थ |
    वय अन्धो अख्यद अहिम आददानो निर भूद उखछित सम अरन्त पर्व ||
    अर्थात “हे इन्द्रदेव, आपने दीमकों द्वारा भक्ष्यमान ‘अग्रु’ के पुत्र को उनके स्थान (बिल) से बाहर निकाला। बाहर निकाले जाते समय अंधे ‘अग्रु’-पुत्र ने आहि (सर्प) को भली प्रकार देखा। उसके बाद चींटियों द्वारा काटे गए अंगों को आपने (इन्द्रदेव ने) संयुक्त किया (जोड़ा).”
    3. ऋग्वेद 4/18/2 में वामदेव ऋषि ने मां के पेट में से इन्द्रदेव से बात की-
    नाहम अतो निर अया दुर्गहैतत तिरश्चता पार्श्वान निर गमाणि |
    बहूनि मे अक्र्ता कर्त्वानि युध्यै तवेन सं तवेन पर्छै ||
    अर्थात वामदेव कहते हैं, “हम इस योनिमार्ग द्वारा नहीं निर्गत होंगे। यह मार्ग अत्यंत दुर्गम है। हम बगल के मार्ग से निकलेंगे। अन्यों के द्वारा करने योग्य अनेकों कार्य हमें करने हैं। हमें एक साथ युद्ध करना है, तथा एक के साथ वाद-विवाद करना है.”
    4. अथर्ववेद 4/5/6-7 चोर के लिए ऐसे मंत्र हैं जिनको जपने से घर के सारे सदस्य सो जाते हैं और चोर बड़े आराम से चोरी कर सकता है।
    स्वप्तु माता स्वप्तु पिता स्वप्तु क्ष्वा स्वप्तु विश्पतिः |
    स्वपन्त्वस्यै ज्ञातयः स्वपत्वयमभितो जनः ||
    स्वप्न स्वप्नाभिकरणेन सर्वं नि ष्वापया जनम |
    ओत्सूर्यमन्यान्त्स्वापयाव्युषं जागृतादहमिन्द्र इवारिष्टो अक्षितः ||
    अर्थात “माँ सो जाए, …………..कृप्या कुछ कहने से पहले इस का बाकी लेख आगे पढे

    1. हमारे यहाँ शुद्र अछूत नहीं खाना बनाने का काम करते हैं

      पंडित जी, यदि आपके शव को कभी शूद्र का स्पर्श लग गया तो आपको अपने धर्म से हाथ धोना पड़े गा।
      प्रश्न 12

      झूठ बोलने के आदि मंत्रों के सही अर्थ नीचे देख लें

      http://www.onlineved.com/atharva-ved/?language=2&commentrator=5&kand=4&sukt=5&mantra=6

  122. अर्थात “माँ सो जाए, पिता सो जाए, कुत्ता सो जाए, घर का स्वामी सो जाए, सभी बांधव एवं परिकर के सब लोग सो जाएं। हे स्वप्न के अधिष्ठाता देव, स्वप्न के साधनों द्वारा आप समस्त लोगों को सुला दें तथा अन्य लोगों को सूर्योदय तक निद्रित रखें। इस प्रकार सबके सो जाने पर हम इन्द्र के सामान, अहिंसित तथा क्षयरहित होकर प्रातःकाल तक जागते रहे.”
    कहिए पंडित जी, यह कैसी विद्या है?
    प्रश्न 13

    उत्तर
    कुरआन मानता है कि पहले ईश्वरीय पुस्तकें आई हैं मगर इसी के साथ यह भी कहता है कि बेईमान लोगों ने उन में कई परिवर्तन कर दिए हैं। इसलिए अब उनमें जिन बातों की पुष्टि कुरआन करता है, वे सत्य हैं और जो बातें कुरआन के विरुद्ध हैं वे किसी ने मिला दी हैं। अल्लाह फरमाते हैं-
    وَأَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ
    “हम (अल्लाह) ने आपकी ओर (ऐ नबी) कुरआन उतारा है जो अपने से पहली पुस्तकों की पुष्टि करता है और उनका संरक्षक है (अर्थात गलत को सही से अलग करता है).” [सूरह माइदा 5; आयात 48]
    तो पिछली किताबों में जो गलत शिक्षाएं मिला दी गयी थीं, उनका खंडन कुरआन ने किया। उदाहरण के लिए देवता पूजा, अवतार पूजा, हजरत ईसा की पूजा, पुनर्जनम, स्त्री का अपमान, सती प्रथा, मनुष्य बलि, सन्यास, वर्णाश्रम, आदि.
    इस प्रमाण से आपके प्रश्न का कोई आधार नहीं है, अल्लाह का ज्ञान अधूरा नहीं और ना ही पिछली किताबों में कोई कमी थी।
    इसके अतिरिक्त यह भी सुन लीजिए कि यदि अग्नि ऋषि को, आप के अनुसार, ईश्वर ने ऋग्वेद दिया तो आदित्य ऋषि को सामवेद क्यों दिया? क्या ऋग्वेद में कोई कमी रह गयी थी जो सामवेद देना पड़ा? सामवेद तो ऋग्वेद मण्डल 9 की पूरी नक़ल है। सिवाय 75 मन्त्रों के जो नए हैं, सामवेद के 1800 मंत्र ऋग्वेद में पहले से हैं। यह 75 मंत्र भी अग्नि को क्यों नहीं दिए? यदि यह कहा जाए कि सामवेद के मंत्र गाने के लिए अलग किए गए हैं तो ऋग्वेद में लिखा जा सकता था कि मंडल 9 को गा लिया करो। इसके अतिरिक्त यजुर्वेद और अथर्ववेद भी व्यर्थ हैं जिन में एक बड़ा हिस्सा ऋग्वेद से लिया गया है। क्या अग्नि ऋषि को ऋग्वेद देते समय आपके ईश्वर भूल गए थे कि उसे सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद भी देना है?
    प्रश्न 14

    उत्तर
    ‘विज्ञान विरुद्ध’ आपत्ति का उत्तर प्रश्न 12 में दे दिया। हज़रत मरयम से बिन पति के संतान का पैदा होना सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ ईश्वर के लिए कोई बड़ी बात नहीं। आप विज्ञान को वहाँ लागू कर रहे हैं जहां उसका ज्ञानक्षेत्र नहीं है। आप पहले इस प्रश्न का उत्तर दीजियह कि सृष्टि के आरम्भ में कई मनुष्यों का जवान जवान प्रकट होना किस विज्ञानं के आधार पर सिद्ध करोगे (सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास 8)? अल्लाह ने हज़रत मरयम की शर्म गाह (योनी) में फूँक नहीं मारा, यह आपका खुला झूठ है। इस आयत का सही अनुवाद करने से पहले में आपको आयत का सन्दर्भ बता लेता हूँ.
    हज़रत मरयम पर जिस समय लोग व्यभिचार का आरोप लगा रहे थे उस का उत्तर देते हुए अल्लाह ने फरमाया-
    وَالَّتِي أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيهَا مِنْ رُوحِنَا وَجَعَلْنَاهَا وَابْنَهَا آيَةً لِلْعَالَمِينَ
    और वह नारी जिसने अपनी पवित्रता की रक्षा की थी, हमने “उसके भीतर अपनी रूह फूँकी और उसे और उसके बेटे को सारे संसार के लिए एक निशानी बना दिया” [सूरह अंबिया 21; आयत 91]
    यहाँ पर अरबी शब्द ‘अह्सनत फर्जहा’ का अर्थ होता है अपनी पवित्रता (अर्थात इज्ज़त) की सुरक्षा। हज़रत मरयम की एक खूबी यहाँ यह बतायी गयी कि उन्हों ने अपनी शेह्वत (वासना) को काबू में रखा।
    ‘आत्मा (रूह) फूंकने’ का अर्थ है आत्मा का शरीर में प्रवेश कराना। इस प्रकार का जनम हज़रत मरयम और हजरत ईसा के साथ एक विशेष मामला था जिसके विशेष कारण थे। इस बात को सारे मनुष्यों पर लागू नहीं कर सकते।
    हज़रत मरयम का बिना पति के संतान पैदा करना आधुनिक विज्ञान के अनुसार संभव था
    आधुनिक विज्ञान ने एक नयी खोज कर ली है जिसमें बिना बाप के पुरुष संतान पैदा हो सकती है। इसको वैज्ञानिक भाषा में पार्थीनोजेनेसिस (parthenogenesis) कहा जाता है। पहले पहले यह केवल निचले कीड़े मकोड़ों में देखा जाता था, लेकिन 2 अगस्त 2007 को यह पता चल गया कि दक्षिण कोरया के वैज्ञानिक Hwang Woo-Suk ने parthenogenesis के माध्यम से पहला मनुष्य भ्रूण (embryo) पैदा किया। अधिक जानकारी के लिए देखिए यह वेबसाइट
    http://www.scientificamerican.com/article.cfm?id=korean-cloned-human-cells
    तो पंडित जी, अफ़सोस कि विज्ञान ने आपका साथ नहीं दिया बल्कि कुरआन की पुष्टि करदी। निश्चित रूप से कुरआन अल्लाह की कित्ताब है जिस पर अब आपको विशवास करना चाहिए।

    1. इसमें रूह नहीं फूंकी तो और क्या है

      आपने खुद ही दिया ही

      और वह नारी जिसने अपनी पवित्रता की रक्षा की थी, हमने “उसके भीतर अपनी रूह फूँकी और उसे और उसके बेटे को सारे संसार के लिए एक निशानी बना दिया” [सूरह अंबिया 21; आयत 91]

  123. गड़े से अगस्त्य और वसिष्ठ
    ऋग्वेद में आता है कि मित्र और वरुण देवता उर्वशी नामक अप्सरा को देख कर कामपीडित हुए। उन का वीर्य स्खलित हो गया, जिसे उन्होंने यज्ञ कलश में दाल दिया। उसी कलश से अगस्त्य और वसिष्ठ उत्पन्न हुए:
    उतासि मैत्रावरुणो वसिष्ठोर्वश्या बरह्मन मनसो.अधि जातः |
    दरप्सं सकन्नं बरह्मणा दैव्येन विश्वे देवाः पुष्करे तवाददन्त ||
    स परकेत उभयस्य परविद्वान सहस्रदान उत वा सदानः |
    यमेन ततं परिधिं वयिष्यन्नप्सरसः परि जज्ञे वसिष्ठः ||
    सत्रे ह जाताविषिता नमोभिः कुम्भे रेतः सिषिचतुः समानम |
    ततो ह मान उदियाय मध्यात ततो जातं रषिमाहुर्वसिष्ठम ||
    – ऋग्वेद 7/33/11-13
    अर्थात “हे वसिष्ठ, तुम मित्र और वरुण के पुत्र हो। हे ब्रह्मण, तुम उर्वशी के मन से उत्पन्न हो। उस समय मित्र और वरुण का वीर्य स्खलन हुआ था। विश्वादेवगन ने दैव्य स्तोत्र द्वारा पुष्कर के बीच तुम्हें धारण किया था। यज्ञ में दीक्षित मित्र और वरुण ने स्तुति द्वारा प्रार्थित हो कर कुंभ के बीच एकसाथ ही रेत (वीर्य) स्खलन किया था। अनंतर मान (अगस्त्य)उत्पन्न हुए। लोग कहते हंस कि ऋषि वसिष्ठ उसी कुंभ से जन्मे थे.”
    आप बोलिए यह कैसे संभव है? आपके तो देवता भी अप्सराओं को देख कर आपे से बाहर हो जाते हैं।
    प्रश्न 15

    उत्तर
    पंडित जी, आपका अंतिम प्रश्न तो झूठ का भंडारघर है। पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने हज़रत जैनब से इस्लामी नियम के अनुसार निकाह किया। पंडित जी ने अपने दावे का कोई प्रामाणिक हवाला नहीं दिया जो की उनकी बुरी आदत है। लेकिन फिर भी मैं उत्तर दे रहा हू। आसमान में निकाह हुआ, यह एक गलत फहमी है। कुछ अहादीस में आता है कि हज़रत जैनब गर्व किया करती थीं कि मेरा निकाह आसमान पर हुआ। बात करने की यह विशेष शैली उन्होने इस कारण अपनाई, क्योंकि कुरआन में अल्लाह ने विशेषतः इस निकाह का वर्णन इन शब्दों में किया है।
    فَلَمَّا قَضَىٰ زَيْدٌ مِّنْهَا وَطَرًا زَوَّجْنَاكَهَا
    अतः जब ज़ैद उससे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका (अर्थात तलाक दे दिया) तो हमने उसका तुमसे विवाह कर दिया [सूरह अहज़ाब 33; आयत 37]
    इस में जो शब्द زَوَّجْنَاكَهَا आया है जिस से कई लोगों ने गलत समझ लिया है कि यह निकाह वास्तव में आसमान में हुआ। हालांकि यह शब्द केवल इतना व्यक्त करता है कि जैनब से निकाह अल्लाह के आदेश से हुआ। कई विश्वसनीय पुस्तकों में निकाह का स्पष्ट वर्णन है। जैनब के भाई अबू अहमद उनकी तरफ से वली थे। सीरत इबने हिशाम में इस निकाह के बारे इस प्रकार है,
    تزوج رسول الله صلى الله عليه و سلم زينب بنت جحش و زوجه إياها أخوها أبو أحمد بن جحش ، و أصدقها رسول الله صلى الله عليه و سلم أربع مائة درهم
    अर्थात, रसूलल्लाह (सल्ल.) ने जैनब बिंते जहश के साथ निकाह किया और उस के भाई अबू अहमद ने वकालत की। रसूलल्लाह (सल्ल.) ने जैनब को 400 दिरहम महर दिया। [सीरत इबने हिशाम, जिल्द 4, बाब अज़्वाज नबी]
    यह रिवायत आपको तबकाते इबने साद, मुस्तद्रक हाकिम, और उसदुल गाब्बह में भी मिले गी। इसके अतिरिक्त सही बुखारी में भी इस निकाह पर दिए गए वलीमे का वर्णन कुछ इस प्रकार है।
    عن أنس قال :أولم النبي بزينب فأوسع المسلمين خيرا فخرج كما يصنع إذا تزوج
    अर्थात, अनस ने फरमाया: नबी (सल्ल.) ने जैनब से निकाह के अवसर पर वलीमा दिया और मुसलमानों के लिए अच्छा भोजन प्रदान किया। [सही बुखारी; कितबे निकाह, बाब 56]

    वैदिक शिक्षा के नमूने
    1. नियोग के नाम पर व्यभिचार
    व्यभिचार का अर्थ है पति या पत्नी के जीवित व मित्र होने की स्तिथि में किसी अन्य स्त्री या पुरुष से अवैध रूप में यौनसंबंध स्थापित करना। हिन्दू धर्मशास्त्रों में इस व्यभिचार को ‘नियोग’ के नाम पर वैध करार दिया गया है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश (चतुर्थ समुल्लास) में इस प्रथा का विस्तार पूर्वक पूर्ण समर्थन किया है। उन्होंने वेदों और मनुस्मृति के प्रमाण उपस्थित कर के इसकी वैधता प्रतिपादित की है.
    ऋग्वेद 10/40/2 में ‘विधवेव देवरम’ आता है। इसका अर्थ करते हुए स्वामी दयानन्द ने लिखा है- “जैसे विधवा स्त्री देवर के साथ संतानोत्पत्ति करती है, वैसे ही तुम भी करो.” फिर उन्होंने निरुक्तकार यास्क के अनुसार ‘देवर’ शब्द का अर्थ बताते हुए लिखा है-
    “विधवा का जो दूसरा पति होता है, उसको देवर कहते हैं.” (देखें, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, नियोग प्रकरण)
    इसी प्रकार कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में कानून बनाए। उस का कहना है कि बूढ़े एवं असाध्य रोग से पीड़ित राजा को चाहिए कि वह अपनी रानी का किसी मातृबंधु (मां की तरफ से जो रिश्तेदार हो यथा मामा आदि) या अपने किसी सामंत से नियोग करवा कर पुत्र उत्पन्न करा ले।(अर्थशास्त्र 1/17)
    नियोग कि यह धार्मिक रस्म इंसानी गरिमा के सिद्धांत का हनन करती है

  124. 2. देवदासी प्रथा
    दासता का एक रूप सदियों से चला आया है। वह है -देवदासियां। मंदिरों विशेषतः दक्षिण भारत के मंदिरों में देवदासियां रहती हैं। यह वे लडकियां हैं जिन्हें उनके माता पिता बचपन में ही मंदिरों में चढ़ा देते हैं। वहीँ यह जवान होती हैं। इन का देवता के साथ विवाह कर दिया जाता है। इन में से कुछ सुन्दर स्त्रियाँ पन्देपुजारोयों के भोगविलास की सामग्री बनती हैं। शेष देवदर्शन को आए हुए यात्रियों आदि व अन्य लोगों की कामवासना को शांत कर के जीवननिर्वाह करती हैं.
    14 अगस्त, 1953 से देवदासी प्रथा कानूनन अवैध घोषित कर दी गयी है। फिर भी यह प्रथा किसी न किसी रूप में हिन्दू मंदिरों में मौजूद है।
    ________________________________________

    इसी के साथ पंडित महेंद्रपाल आर्य के 15 प्रश्नों के इस्लाम और हिन्दू धर्मशास्त्रों की रौशनी में विस्तृत व सही उत्तर समाप्त हुए। हम आशा करते हैं कि पंडित महेंद्रपाल सत्य को स्वीकार करें गे और इस्लाम की पवित्र छाया में लोट आएं गे। मैंने इस उत्तर में वेदों के भी स्पष्ट उदाहरण देकर यह बता दिया है की वैदिक धर्मी बनने का निमंत्रण मुझे क्यों स्वीकार नहीं है।

    1. देवदासी प्रथा तो समाप्त हो गयी
      बाकी आपकी तो मुहम्मद साहब कि पत्नी ही उन्हें पैगम्बर नहीं मानती थी

      फ़िरोग काजमी साहब खुद लिखते हैं

      अहादीस, रवायत और तारीख़ के मजाज़ी परदों में लिपटी हुई उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा की तहदार और पुरअसरार शख़्सियत आलमें इस्लाम में तअर्रूफ़ की मोहताज नहीं। हर शख़्स जानता है कि आप ख़लीफ़ा ए अव्वल ( हजऱत अबू बक्र) की तलव्वुन मिज़ाज बेटी और पैग़म्बर इस्लाम हज़रत मोहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ग़ुस्ताख़ और नाफ़रमान बीवी थीं। आपकी निस्वानी सरिश्त में रश्क, हसद, जलन, नफ़रत, अदावत, ख़ुसूमत, शरारत, ग़ीबत, ऐबजुई, चुग़लख़ोरी, हठधर्मी, ख़ुदपरस्ती, कीनापरवरी और फ़ित्ना परदाज़ी का उनसुर बदर्जा ए अतम कारफ़रमा था।

      रसूल (स.अ.व.व) की ज़ौजियत और ख़ुल्के अज़ीम की सोहबत से सरफ़राज़ होने के बावजूद आपका दिल इरफ़ाने नबूवत से ख़ाली और ना आशना था आपकी निगाहों में नबी और नबूवत की क़द्रो मन्ज़िलत यह थी कि जब आप पैग़म्बर से किसी बात पर नाराज़ हो जाती और आपका पारा चढ़ जाता तो पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.व) को नबी कहना छोड़ देती, बल्कि इब्राहीम का बाप कहकर मुख़ातिब किया करतीं थीं।(1)
      जसारतों और ग़ुस्ताख़ियों का यह हाल था कि एक बार आपने झगड़े के दौरान पैग़म्बर (स.अ.व.व) से यह भी कह दिया किः-
      आप ये गुमान करते हैं कि मैं अल्लाह का नबी हूं।(2) (मआज़ अल्लाह)

      नबी को नबी न समझने वाली या नबी की नबूवत में शक करने वाली शख़्सियत क्या इस्लाम की नज़र में मुसलमान हैं? इसका फ़ैसला मोहतरम कारेईन ख़ुद फ़रमा लें, क्यों कि बात साफ़ और वाज़ेह है।

      1. बुख़ारीः- जिल्द 6 पेज न. 158
      2. अहयाउल उलूम ग़ेज़ालीः- जिल्द 2 पेज न. 29

      حضرت ایشا کی تاریخی حیثیت فروگ کاظمی

      http://aryamantavya.in/hazrat-aayesha-muhammad-sahab-ko-rasul-naheen-manatee-theen/

  125. महेन्दर आर्य का नम्बर यूटयूब पर किधर है प्लीज बताये।

    1. हमें तो पता नहीं है
      अल्लाह मियां से पूछें इल्हाम आ जायेगा
      🙂

  126. सभी हिन्दु भाईयो से मेरी रिक्वेस्ट है कि प्लीज आप इस्लाम पर आलोचना और बुराई करनी छोड दे। क्योकि हर धर्म की किताब मे लिखा है किसी के धर्म को बुरा मत कहो। सिर्फ अपने धर्म मे जो अच्छाई है उन्हे लिखे ताकि हम वैदिक धर्म को स्वीकार कर सके।

    1. इस्लाम धर्म कब से हो गया बंधू
      धर्म कभी किसी को मारने की आज्ञा नहीं देता

      1. दुष्कर्मियो पापयो राक्षसो को मारने की इजाजत देता है। वेदो मे भी लिखा है। सभी प्रमाण मैने ऊपर के लेखो मे दिये है

        1. नफीस भाई जान
          नियम कानून होते हैं जैसे आज भी देश में नियम कानून हैं जिसके तहत सजा दी जाती है | दुष्कर्मियो पापयो राक्षसो को मारने की इजाजत देता है। वेदो मे भी लिखा है। ऐसा आपने बोला है बिलकुल मगर यह आदेश राजा को दी गयी है की जो गलत कार्य करे उसे दंड करें | इसमें याजा को आदेश दिया गया है ना की सभी को की सब दुष्कर्मियो पापयो राक्षसो को मारने की इजाजत देता है। थोडा अपनी अकल लगाओ | पूर्वाग्रह को छोडो मेरे भाई जान | सत्य सनातन वैदिक धरम की ओर लौटो |

          1. हसी आती है जब आप वैदिक धर्म को सत्य धर्म बतलाते हो। अल्लाह तअला कुरान मे कहते धर्म तो बस एक है वो है इस्लाम। बाकी सब अधर्म है।
            और भाई साहब धर्म का मतलब होता है सच्चाई को धारण करना। और इस्लाम मे सच्चाई के अलावा कुछ नही है। मै आपको भी इस्लाम की दावत देता हू। स्वागत है आपका।।।

            1. सूरज दलदल में डूबता है ? मरयम फूंक से गर्भवती हो गयी ? ऐसी बहुत सी बाते एक कुरआन में ही दी जा सकती है | धन्यवाद |

              1. अमित जी मैने ऊपर के लेखो मे सब बता दिया है। सूरज दलदल मे डूबने का मतलब रात होने से या अंधेरा होने से है। ये कुरान मे एक किस्सा है ना कि वैज्ञानिक तथ्य। और आपने भी महेन्दर पाल की तरह झूठ बोला है। अल्लाह ने फूक नही मारी है। रूह फूकी है। रूह का मतलब आत्मा।

                1. “सूरज दलदल मे डूबने का मतलब रात होने से या अंधेरा होने से है। ”
                  ये अर्थ कहा से लिया जनाब
                  🙂
                  आपके मुस्लिम लेखक तो न ले पाए आपको अच्चा सुझा

                  1. भाई ऐसा ही लिखा है आप पढो तो सही कुरान को। अपनी तरफ से कुछ नही लिखा।

                    1. कितना झूठ बोलोगे भाई जान |
                      “सूरज दलदल मे डूबने का मतलब रात होने से या अंधेरा होने से है। ”
                      ये कहा लिखा है कुरआन में | इस्लाम ही झूठ बोलना सिखाता है | इसी कारण झूठ बोल रहे हो

  127. OUM…
    ARYAVAR, NAMASTE…
    ISLAAM ME TO AKAL PE DAKHAL NAHIN HOTAA, FIR IN LOGON SE VYARTH ULAJHNAA KYAA SAHI HOGAA?
    IN SE KOI PUCHHE KI
    ‘MUSALMAAN’ SHABD KAHAAN SE AAYAA?
    45 SAAL KE MARAD NE KYUN 6 SAAL KI BACHCHI SE SAADI KIYAA ? KYAA YEH YAUN PIPAASAA [JISMAANI BHOOKH] NAHIN HAI…?!!!!! AISE BHI PAIGAMBAR HOTE HAI KYAA?!!! ISI KI NAKAL KARKE YEMAN JAISE KUCHH ISLAMIK DESHON ME 6/7 SAAL KI BACHCHI SE SAADI HORAHI HAI….LAJJAA AATI HAI MUJHE…!!! CHHI…! CHULLU BHAR PAANI ME DUB MARO…
    AUR KAABAA KO KYUN KAALAA KAPADAA SE DHAKAA HAI? USKE ANDAR KYAA HAI JO MUSALMAAN BHI DARSHAN NAHIN KAR PAATE?
    AGAR ISLAAM EK DHARM HAI TO MUHAMMED SAAB NE APNI JIVAN KI 40 SAAL KAUN SAA DHARM MAAN KE GUJAARAA? AUR UN KE BAABAA-DAADAA-PARDAADAA KYAA DHARAM MAANTETHE?
    VIJYAAN KO BAHOOT JODTE HO KURAAN SE FIR KURAAN KE HAWAALE SE BATAANAA NAFEES BHAI, YEH SHRISHTI-UTPATTI KITNI SAAL PAHALE HUI THI??
    MAI ANJAA HOON, MUJHE KUCHH KUCHH BATAAO TO SAHI..THIK HE…
    OUM…
    NAMASTE…

    1. प्रेम आर्य जी
      जी आपकी बात से बिलकुल सहमत हु की ISLAAM ME TO AKAL PE DAKHAL NAHIN HOTAA, FIR IN LOGON SE VYARTH ULAJHNAA KYAA SAHI HOGAA? व्यर्थ चर्चा करना है मगर यदि हम इनके दिए गए सवाल का जवाब नहीं नहीं देंगे तो ये बोलेंगे देखो हमारा मजहब सही है | इसी कारण इनके सारे शंका का समाधान करना जरुरी है |लोगो को सत्य की जानकारी देने के लिए चर्चा करना पड़ता है हमें | धन्यवाद |

      1. ओउम
        अमित भाइ, नमस्ते..
        आप ने सहि बात कहा …

    2. मुस्लिम शब्द हदीसो मे हजारो बार आया है। कुरान मे ना जाने कितनी बार आया है। और मुस्लिम शब्द का अर्थ होता है फरमाबरदार यानी कहना मानने वाला।

      आपको मुझे बार बार क्यो लिखना पडता है। मैने अपने ऊपर के लेखो मे सब तफसीर से बताया है। आप उन्हे क्यो नही पडते है। आयशा कि उम्र 19 साल थी और मुहम्मद साहब की 40। कृपया उन्हे पढे मैने उनमे एक एक चीज को समझाया है।

      अगर इस्लाम के मानने वाले अक्ल मे दख्ल ना देते तो फिर हजारो वैज्ञनिक इस्लाम मे क्यो हुए। और 3 मुस्लिमो ने तो science मे नोबेल पुरस्कार भी हासिल किया है-
      1- अहमद जवाइल ( chemistry)
      2- अजीज सैंकर(chemistry)
      3- अब्दुस सलाम (physis)
      नेट पर सर्च करना प्लीज
      नोबेल तो और भी बहुत सारे मुस्लिमो ने हासिल किये है क्या ये सब बिना अक्ल के थे बताओ।

      और काबे की बात मै फिर से कह रहा हू यूटयूब पर विडियो पडी हुए है उनमे काबे का गेट भी खुलता हुआ दिखाया है आपसे मेरी रिकवेस्ट है जरूर देखे। वहा पर कोई लिंग नही है।
      और रही बात मुझे बच्चा कहने की जिसमे हिम्मत है मुझसे बात करे।9536350102। पता लगा जायेगा।

      1. हज़रत आयशा कि उम्र क्या थी आपके हममज़हब कि जवाब से हे एसुनिये
        लेखम : हजरत फ़िरोग काज़मी
        हज़रत अबू बकर से आप के हुज़्नों मलाल की ये कैफ़ियत देखी न गयी चुनान्चे वो अपनी पांच साला बच्ची आयशा को ले कर एक दिन आं हज़रत (स.अ.व.व) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह (स.अ.व.व) ये बच्ची हाज़िर है आप इस से दिल बहलायें ताकि आपका ग़म ग़लत हो। इस बच्ची में ख़दीजा की सलाहियत पाई जाती है। (2) अबू बकर की इस हैरत अंगेज़ तजवीज़ पर पैग़म्बर ने सुकूत इख़तियार किया यहां तक कि बच्ची को उन्होंने गोद में उठाया और वापस चले गये। उस के बाद बक़ौले मुअर्रिख़ पैग़म्बर अबू बकर के घर में आने जाने लगे। (3)

        1. भाई साहब जिस वक्त आयशा की उम्र 5 साल थी उस वक्त हमारी नबी की उम्र 26 साल थी। और 25 साल की उम्र मे हमारे नबी ने पहला विवाह हजरत खदीजा से किया था। निकाह तो मुहम्मद साहब और आयशा का तब हुआ जब आयशा कि उम्र 19 साल थी। भाई साहब कुछ हदीस ज़ईफ होती है।ज़ईफ हदीस उनको कहते है जो ईसाइ और यहूदियो ने गढी है। जैसे मुहम्मद साहब ने 9 साल की लडकी से निकाह किया ये ज़ईफ हदीस है। आयशा की उम्र 19 साल थी। ये उलमाओ ने साबित कर दिया है। क्योकि आयशा की बडी बहन आसमा आयशा से 10 साल बडी थी और आसमा का इंतकाल 100 वर्ष की आयु मे 73 हिज़री को हुआ। 100 मे से 73 घटाओ तो 27 साल हुए।आसमा से आयशा 10 साल छोटी थी तो 27-10=17 साल की हुई आयशा और आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम ने आयशा से 2 हिज़री को निकाह किया।अब 17+2=19 साल हुए। इस तरह शादी के वक्त आयशा की उम्र 19 आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम की 40 साल थी

          1. भाई जान
            केवल आप ही सत्य बोल रहे हो और सब आपके इस्लामिक विद्वान् गलत बोल रहे हैं | आयशा की निकाह ९ साल में हुयी थी | केवल आप सत्य बोलते हो | और यदि यह जैफ हदीस में है ऐसा तो अब तक सही हदीस की साईट इस्लामिक समाज की तरफ से क्यों नहीं आया ? यदि आपके पास सही हदीस हो तो चर्चा करो | आप जाकिर को गुरु मानते हो और उसी का पीस टीवी का ब्लॉग से लिंक दिया हदीस का उसे डाउनलोड करो और पढ़ो और हदीस | फिर चर्चा करना | लगातार झूठ बोलना आप ही कर सकते हो | वैसे प्रमाण के साथ चर्चा करनी हो तो हमारे fb पेज पर करें स्क्रीनशॉट के साथ वहा जवाब दी जायेगी | धन्यवाद

            1. मुझसे लिंक भेजना तो नही आता मगर तुम जाकिर की विडीयो देखो आयशा के बारे मे उन्होने सही सही बताया है

              1. jakir se bada jhuthaa koi nahi bhai jaan. ham kai video dekh chuke hain. uska sahi me pol khol ki jaankaari chahiye to sudarshan news ka bindas bol dekho kaise uska pol khol kiya hai. youtube par diya gaya hai.

      2. NAFEES BHAAI,
        ‘MUSALMAAN’ SHABD AASMAAN SE TAPKAA YAA KHAJUR ME LATAK PADAA THAA AUR kuraan ke andar GIR PADAA??? KURAAN ME KAHAAN SE AAYAA JI? AAP MAHABHARAT KI ‘MUSAL PARVA’ DHYAAN SE PADHO PATAA LAG JAAEGAA…
        KYAA ALLAH KE KITAAB KURAAN ME KOI KAMI HAI KI AAP HADISON KO PADHNE LAG GAYE? FIR TO KURAAN BHI ADHURAA HAI!!!
        VUJYAAN KI BAATEN TO KURAAN KI BAHUT HAI- ISI KE EK NAMUNE DEKHLO: SURAJ KAHAAN DUBTAA HAI, AUR SUBAH KAHAAN SE AATAA HAI, ISKO BAHUT VAIJYAANIK DHANG SE DIYAA HAI!!!
        SATYA KI OR LAUTO…
        OUM…
        NAMASTE…

  128. ओउम …
    नमस्ते.
    मैंने यहाँ किसी और की लेख को कॉपी पेस्ट करने की अनुमति माँगता हूँ ..मुझे सान्धर्भिक लगा ..
    .गलत है तो क्षमा ..

    मुस्लिम की असलियत

    क्यों ये लोग राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने की कोशिस करते है
    आपने देखा होगा मुसलमान भाई और उनके धर्म गुरु… राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने की कोशिस करते रहते है ..इनमे ईसाई और सकुलर लोग भी पीछे नहीं है …
    क्यों आखिर इनलोगों को क्या परेशनी है कभी आपने सोचा है है क्यों ये एक सोची समझी रणनीति के तहत कभी राम और कभी कृष्ण जी को बदनाम करते रहते है … कभी उनके चरित्र और कभी जन्म को लेकर ..
    कारण येही है की राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित कर सत्य को छिपाना ….
    मक्का शहर से कुछ मील दूर एक साइनबोर्ड पर स्पष्ट उल्लेख है कि “इस इलाके में गैर-मुस्लिमों का आना प्रतिबन्धित है…”। यह काबा के उन दिनों की याद ताज़ा करता है, जब नये-नये आये इस्लाम ने इस इलाके पर अपना कब्जा कर लिया था। इस इलाके में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश इसीलिये प्रतिबन्धित किया गया है, ताकि इस कब्जे के निशानों को छिपाया जा सके।”
    ये हुक्म कुरआन में दिया गया कि गैर-मुस्लिमों को काबे से दुर कर दो….उन्हे मस्जिदे-हराम के पास भी नही आने देना
    ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे…
    १- मुसलमान कहते हैं कि कुरान ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु ये बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं . . .
    # किसी भी सीधांत को रद्द करने के लिए उसको पहले सही तरीक़े से समझ लें. इसलाम धर्म का दावा है की दुनिया में शुरू में एक ही धर्म था और वो इस्लाम था. उस वक़्त उसकी भाषा और ,नाम अलग होगा. फिर लोगों ने धर्म परिवर्तन किए और असली धर्म की छबि बदल गयी. फिर अल्लाह ने धर्म को पुनः स्थापित किया. फिर ये होता रहा और अल्लाह अपने पैगंबरों से वापस धर्म को उसकी असली शक्ल में स्थापित करता रहा. इस सिलसिले में मोहम्मद पैगंबर अल्लाह के आखरी पैगंबर हैं, और ये इस्लाम की आखरी शक्ल है, इसके बाद बदलाओ या बिगाड़ होने पर प्रलय होगा.
    ये उसी तरह है जैसे हम अपने संवीधन बदलते हैं. मौजूदा इस्लाम , इस्लाम धर्म का आखरी revision है. आप खुद समझ लें के आप हज़ारों साल पुराना संविधान follow कर रहे हैं.
    2. – आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं|
    भाई, क़ुरान को मुसलमान कब आदि ग्रंथ कहते हैं. अगर आप ने क़ुरान पढ़ा तो आप देखोगे के उस में क़ुरान से पहले के ग्रंथों पर भी बात की गयी है. एक जगह किसी ग्रंथ को आदि ग्रंथ कहा गया है जिस के बारे में हम लोग खुद कहते हैं के शायद ये वेदों के बारे में है
    #बहुत सी भाषाओं में बहुत से शब्द मिलते जुलते हैं, किसी भाषा में
    अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है|
    जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में “या” शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे “या देवी सर्वभूतेषु….”, “या वीणा वर ….” वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं “या अल्लाह”..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया|
    एक मुस्लिम भाई ने कहा जनाब आपसे किसने कहा कि इसलाम सातवी-आठवीं सदी में हुआ…जब से दुनिया बनी है तब से इस्लाम है…
    अल्लाह ने दुनिया में 1,24,000 नबी और रसुल भेजे और सब पर किताबे नाज़िल की…
    कुरआन में नाम से 25 नबी और 4 किताबों का ज़िक्र है…. कुरआन में बताये गये २५ नबी व रसुलों के नाम बता रहा हूं…उनके नामों के इंग्लिश में वो नाम दिये है जिन नामों से इन नबीयों का ज़िक्र “बाईबिल” में है….
    1. आदम अलैहि सलाम (Adam)
    2. इदरीस अलैहि सलाम (Enoch)
    3. नुह अलैहि सलाम (Noah)
    4. हुद अलैहि सलाम (Eber)
    5. सालेह अलैहि सलाम (Saleh)
    6. ईब्राहिम अलैहि सलाम (Abraham)
    7. लुत अलैहि सलाम (Lot)
    8. इस्माईल अलैहि सलाम (Ishmael)
    9. इशाक अलैहि सलाम (Isaac)
    10. याकुब अलैहि सलाम (Jacob)
    11. युसुफ़ अलैहि सलाम (Joseph)
    12. अय्युब अलैहि सलाम (Job)
    13. शुऎब अलैहि सलाम (Jethro)
    14. मुसा अलैहि सलाम (Moses)
    15. हारुन अलैहि सलाम (Aaron)
    16. दाऊद अलैहि सलाम (David)
    17. सुलेमान अलैहि सलाम (Solomon)
    18. इलियास अलैहि सलाम (Elijah)
    19. अल-यासा अलैहि सलाम (Elisha)
    20. युनुस अलैहि सलाम (Jonah)
    21. धुल-किफ़्ल अलैहि सलाम (Ezekiel)
    22. ज़करिया अलैहि सलाम (Zechariah)
    23. याहया अलैहि सलाम (John the Baptist)
    24. ईसा अलैहि सलाम (Jesus)
    25. आखिरी रसुल सल्लाहो अलैहि वस्सलम (Ahmed)

  129. इन नबीयों में से छ्ठें नबी “ईब्राहिम अलैहि सलाम” जिन्होने “काबा” को तामिल किया था उनका जन्म 1900 ईसा पूर्व हुआ था….
    # तो भाई केबल २५ नवी की जानकारी के दम पर ये इस्लाम को पुराना धर्म बोल रहे है भाई बाकि 1,24,000 नबी और रसुल का क्या होगा ?????????
    ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है … जब की सब जानते है की इला एक देवी थी जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह कोन था आज हम इस को भी समझेगे की सत्य क्या था ….?
    और बहुत कुछ ये भी पढ़ा ….
    अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और भारत।।।।।
    अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगित का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था। आदित्यों का आवास स्थान-देवलोक भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित हिमालयी क्षेत्रों में रहा था। बेबीलोन की प्राचीन गुफाओं में पुरातात्त्विक खोज में जो भित्ति चित्र मिले है, उनमें विष्णु को हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष से युद्ध करते हुए उत्कीर्ण किया गया है।
    उस युग में अरब एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र रहा था, इसी कारण देवों, दानवों और दैत्यों में इलावर्त के विभाजन को लेकर 12 बार युद्ध ‘देवासुर संग्राम’ हुए। देवताओं के राजा इन्द्र ने अपनी पुत्री ज्यन्ती का विवाह शुक्र के साथ इसी विचार से किया था कि शुक्र उनके (देवों के) पक्षधर बन जायें, किन्तु शुक्र दैत्यों के ही गुरू बने रहे। यहाँ तक कि जब दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य का कहना न माना, तो वे उसे त्याग कर अपने पौत्र और्व के पास अरब में आ गये और वहाँ 10 वर्ष रहे। साइक्स ने अपने इतिहास ग्रन्थ “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” में लिखा है कि ‘शुक्राचार्य लिव्ड टेन इयर्स इन अरब’। अरब में शुक्राचार्य का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे ‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है। कालांतर में ‘काव्य’ नाम विकृत होकर ‘काबा’ प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ ‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण किया गया और इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
    “बृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्, उशना काव्योऽसुराणाम्”-जैमिनिय ब्रा.(01-125)
    अर्थात बृहस्पति देवों के पुरोहित थे और उशना काव्य (शुक्राचार्य) असुरों के।
    प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’ के 257वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह इस प्रकार है-
    “अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।
    व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।1।
    वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे अतुन जिकरा।
    वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंदतुन।2।
    यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन फुल्लहुम।
    फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन।3।
    वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे तनजीलन।
    फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन योवसीरीयोनजातुन।4।
    जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन।
    व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन।5।”
    अर्थात- (1) हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ। (3) और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनके अनुसार आचरण करो। (4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते है। (5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता।
    इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
    जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था। ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है,वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
    प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है। इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800 ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
    अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के नाम भी हिंद पर रखे ।
    अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ सेअरूल-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया है । ‘उमर-बिन-ए-हश्शाम’ की कविता नयी दिल्ली स्थित मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर (बिड़ला मन्दिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर काली स्याही से लिखी हुई है, जो इस प्रकार है –
    ” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक ।
    कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ।1।
    न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा ।
    वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ।2।
    व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ ।
    मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू ।3।
    व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे यौमन ।
    व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू ।4।
    मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम ।
    नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ।5।
    अर्थात् – (1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो। (2) अदि अन्त में उसको पश्चाताप हो और भलाई की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण हो सकता है ? (3) एक बार भी सच्चे हृदय से वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग में उच्च से उच्च पद को पा सकता है। (4) हे प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत (हिंद) के निवास का दे दो, क्योंकि वहाँ पहुँचकर मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता है। (5) वहाँ की यात्रा से सारे शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्श गुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है
    मुसलमानों के पूर्वज कोन?(जाकिर नाइक के चेलों को समर्पित लेख)

  130. स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू,फारसी व अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे। अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने निशंकोच स्वीकार किया है कि,”कुरआन” की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं।
    मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ लिखा है । उनका कहना है कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से लापता उन २४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से बच गए थे।
    अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार” व “कुरुछेत्र” कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध करता है।
    कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर “अल्लुज़ा” अर्ताथ शुक्र तारे का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू “शुक्राचार्य “का प्रतीक ही है। भारत के कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से छुपा नहीं है।
    इसी प्रकार कुरआन में “आद “जाती का वर्णन है,वास्तव में द्वारिका के जलमग्न होने पर जो यादव वंशी अरब में बस गए थे,वे ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।
    अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान् प्रो० फिलिप के अनुसार २४वी सदी ईसा पूर्व में “हिजाज़” (मक्का-मदीना) पर जग्गिसा(जगदीश) का शासन था।२३५० ईसा पूर्व में शर्स्किन ने जग्गीसी को हराकर अंगेद नाम से राजधानी बनाई। शर्स्किन वास्तव में नारामसिन अर्थार्त नरसिंह का ही बिगड़ा रूप है। १००० ईसा पूर्व अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य था। ६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस अथवा हरीस का शासन था। १४वी सदी के विख्यात अरब इतिहासकार “अब्दुर्रहमान इब्ने खलदून ” की ४० से अधिक भाषा में अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में लिखा है कि ६६० इ० से १२५८ इ० तक “दमिश्क” व “बग़दाद” की हजारों मस्जिदों के निर्माण में मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने सहयोग किया था। परम्परागत सपाट छत वाली मस्जिदों के स्थान पर शिव पिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल कमल कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम को भारतीय वास्तुविदों की देन है।इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने “बैतूल हिक्मा” जैसे ग्रन्थाकार का निर्माण भी किया था।
    अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं को खोजना पड़ेगा……………………………..
    भाइयो एक सत्य में आपको बताना चाहुगा की मुहम्मद को लेकर मुसलमानों में जो गलतफैमी है की मुहम्मद ने अरब से अत्याचारों को दूर किया … केबल अत्याचारियो को मारा , समाज की बुरयियो को दूर किया अरब में भाई भाई का दुश्मन था , स्त्रियो की दशा सुधारी … मुहमद एक अनपढ़ (उम्मी ) था …. आदि ..सत्य क्या है आप उस समय की जानकारियों से पता लगा सकते है … जब की उस समय अरब में सनातन धर्म ही था ..इसके कई प्रमाण है
    १- जब मुहम्मद का जन्म हुआ तो पिता की म्रत्यु हो चुकी थी .. मा भी कुछ सालो बाद चल बसी .. मुहम्मद की देखभाल उनके चाचा ने की … यदि समाज में लालच , लोभ होता तो क्या उनके चाचा उनको पलते ?
    २- खालिदा नामक पढ़ी लिखी स्त्री का खुद का व्यापर होना सनातन धर्म में स्त्रियो की आजादी का सबुत है… मुहमम्द वहा पर नोकरी करते थे ?
    ३- ३ बार शादी के बाद भी विधवा स्त्री का खुद मुहम्मद से शादी का प्रस्ताब ? स्त्रियो को खुद अपने लिए जीवन साथी चुने और विधवा स्त्री होने पर भी शादी और व्यापर की आजादी … सनातन धर्म के अंदर ..
    ४- खालिदा का खुद शिक्षित होना सनातन धर्म में स्त्रियो को शिक्षा का सबुत है
    ५- मुहम्मद का २५ साल का होकर ४० साल की स्त्री से विवाह ..किन्तु किसी ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया ..सनातन धर्म में हर एक को आजादी ..कोई बंधन नहीं
    ६- मुहम्मद का धार्मिक प्रबचन देना किसी का कोई विरोध ना होना जब तक सनातन धर्म के अंदर नये धर्म का प्रचार
    ७- मुहम्मद यदि अनपढ़ होते तो क्या व्यापर कर सकते थे ? नहीं ..मुहम्मद पहले अनपढ़ थे लेकिन बाद में उनकी पत्नी और साले ने उनको पढ़ना लिखना सीखा दिया था … सबूत मरते समय मुहम्मद का कोई वसीयत ना बनाने पर कलम और कागज का ना मिलना ..और कुछ लोगो का उनपर वसीयत ना बनाने पर रोष करना …
    मुहम्मद को उनकी पत्नी ने सारे धार्मिक पुस्तकों जैसे रामायण , गीता , महाभारत , वेद, वाईविल, और यहूदी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ कर सुनाया था और पढ़ना लिखना सीखा दिया था , आप किसी को लिखना पढ़ना सीखा सकते हो लेकिन बुद्धि का क्या ?…जो आज तक उसके मानने बालो की बुद्धि पर असर है .. जो कुरान और हदीश में मुहम्मद में लिखा या उनके कहानुसार लिखा गया बाद में , लेकिन किसी को कितना ही कुछ भी सुना दो लेकिन व्यक्ति की सोच को कोन बदल सकता है मुझे तुलसीदास जी की चोपाई याद आ रही है जो मुहम्मद पर सटीक बैठती है
    ढोल , गवाँर ,शूद्र, पसु , नारी , सकल ताडना के अधिकारी …..
    आप किसी कितना ज्ञान देदो बो बेकार हो जाता है जब कोई किसी चीज का गलत अर्थ लगा कर समझता है गवाँर बुद्धि में क्या आया और उसने क्या समझा ये आप कुरान में जान सकते है …. कुरान में वेदों , रामायण , गीता , पुराणों का ज्ञान मिलेगा लेकिन उसका अर्थ गलत मिलेगा ………
    चलिए आपको कुछ रामायण जी से इस्लाम की जानकारी लेते है ………
    ये उस समय की बात है जन राम और लक्ष्मण जी और भरत आपस में सत्य कथाओ को उन रहे थे .. तब प्रभु श्री राम ने राजा इल की कथा सुनायी जो वाल्मीकि रामायण में उत्तरकांड में आती है .. मै श्लोको के अनुसार ना ले कर सारांश में बता रहा हू ……
    उत्तरकांड का ८७ बा सर्ग :=
    प्रजापति कर्दम के पुत्र राजा इल बहिकदेश (अरब ईरान क्षेत्र के जो इलावर्त क्षेत्र कहलाता था ) के राजा थे , बो धर्म और न्याय से राज्य करते थे .. सपूर्ण संसार के जीव , राक्षस , यक्ष , जानबर आदि उनसे भय खाते थे .एक बार राजा अपने सैनिको के साथ शिकार पर गए उन्होंने कई हजार हिसक पशुओ का वध किया था शिकार में ,राजा उस निर्जन प्रदेश में गए जहा महासेन (स्वामी कार्तीय) का जन्म हुआ था बहा भगवन शिव अपने को स्त्री रूप में प्रकट करके देवी पार्वती का प्रिय पात्र बनने करने की इच्छा से वह पर्वतीय झरने के पास उनसे विहार कर रहे थे .. वह जो कुछ भी चराचर प्राणी थे वे सब स्त्री रूप में हो गए थे , राजा इल भी सेवको के साथ स्त्रीलिंग में परिणत हो गए …. शिव की शरण में गए लेकिन शिवजी ने पुरुषत्व को छोड़ कर कुछ और मानने को कहा , राजा दुखी हुए फिर बो माँ पार्वती जी के पास गए और माँ की वंदना की .. फिर माँ पार्वती ने राजा से बोली में आधा भाग आपको दे सकती हू आधा भगवन शिव ही जाने … राजा इल को हर्ष हुआ .. माँ पार्वती ने राजा की इच्छानुसार वर दी की १ माह पुरुष राजा इल , और एक माह नारी इला रहोगे जीवन भर .. लेकिन दोनों ही रूपों में तुम अपने एक रूप का स्मरण नहीं रहेगा ..इस प्रकार राजा इल और इला बन कर रहने लगे

  131. ८८ बा सर्ग := चंद्रमा के पुत्र पुत्र बुध ( चंद्रमा और गुरु ब्रस्पति की पत्नी के पुत्र ) जो की सरोवर में ताप कर रहे थे इला ने उनको और उन्होंने इला को देखा …मन में आसक्त हो गया उन्होंने इला की सेविका से जानकारी पूछी ..बाद में बुध ने पुण्यमयी आवर्तनी विधा का आवर्तन (स्मरण ) किया और राजा के विषय में सम्पुण जानकारी प्राप्त करली , बुध ने सेविकाओ को किंपुरुषी (किन्नरी) हो कर पर्वत के किनारे रहने और निवास करने को बोला .. आगे चल कर तुम सभी स्त्रियों को किंपुरुष प्राप्त होगे .. बुध की बात सुन किंपुरुषी नाम से प्रसिद्ध हुयी सेविकाए जो संख्या में बहुत थी पर्वत पर रहने लगी ( इस प्रकार किंपुरुष जाति का जन्म हुआ )
    ८९ सर्ग := बुध का इला को अपना परिचय देना और इला का उनके साथ मे में रमण करना… एक माह राजा इल के रूप में एक माह रूपमती इला के रूप में रहना … इला और बुध का पुत्र पुरुरवा हुए
    ९० सर्ग;= राजा इल को अश्वमेध के अनुष्ठन से पुरुत्व की प्राप्ति बुध के द्वारा रूद्र( शिव ) की आराधना करना और यज्ञ करना मुनियों के द्वारा ..महादेव को दरशन देकर राजा इल को पूर्ण पुरुषत्व देना … राजा इल का बाहिक देश छोड़ कर मध्य प्रदेश (गंगा यमुना संगम के निकट ) प्रतिष्ठानपुर बसाया बाद में राजा इल के ब्रहम लोक जाने के बाद पुरुरवा का राज्य के राजा हुए
    – इति समाप्त
    आज के लेख से आपके प्रश्न और उसके जबाब …..
    1. इस्लाम में बोलते है की इस्लाम सनातन धर्म है और बहुत पुराना है ? और अल्लाह कोन था ? कलमा में क्या है ?
    # भाई आसान सबाल का आसान उत्तर है की सनातन धर्म सम्पूर्ण संसार में था और लोगो का विश्वास धर्म पर बहुत गहरा था , मुहम्मद ने जब सनातन धर्म के अंदर ही अपने धर्म का प्रचार किया था तो लोगो ने विरोध नहीं किया था ..लेकिन जब उसने सनातन धर्म का विरोध किया तो उसको मक्का छोडना पड़ा था … मुहम्मद कैसा भी था लेकिन देश भक्त था बो चाहता था जैसे पूरब का देश (भारत) का धर्म सम्पूर्ण संसार में है और सब उसको सम्मान देते है वैसे ही बो अरब के लिए चाहता था …. लेकिन जब उसको अपने ही शहर से निकला गया तो बो समझ गया की सनातन धर्म को कोई खतम नहीं कर सकता है लेकिन बो इसका रूप बदल सकता है …जिससे लोगो में विद्रोह का डर भी नहीं रहेगा … जब उसने काबा को जीता और उसकी सारी ३६० मुर्तिया और शिवलिंग तोडा … उसको कुछ याद आया और उसने कुछ नीचे के भाग(शक्ति) को चांदी में करके काबा की दीवार से लगा दिया और अपनी गलती के लिए पत्थर को चूमा (क्युकि उसका परिबार कई पीडीयो से इसकी रक्षा और पूजा करता आ रहा था ) और बोला तो केबल पत्थर है और कुछ और नहीं …….
    इस्लाम के बारे में 1372 साल पहले अस्तित्व में आया था. यह सर्वविदित है कि 7500 साल पहले से अधिक, महाभारत युद्ध के समय में, कुरूस दुनिया शासन. कि परिवार के घरानों के वारिस के विभिन्न क्षेत्रों दिलाई. पैगंबर मोहम्मद खुद को और अपने परिवार के वैदिक संस्कृति के अनुयायियों थे. विश्वकोश इस्लामिया के रूप में बहुत मानते हैं, जब यह कहते हैं: “के मोहम्मद दादा और चाचा जो 360 मूर्तियों स्थित काबा मंदिर के वंशानुगत याजक थे!”
    (ये मेरे एक मुस्लिम मित्र ने बताया था ….. की …
    “काबा” में जो ३६० बुत रखे थे वो किसी तुफ़ान में नही टुटे थे बल्कि उनको “मक्का फ़तह” के वक्त हुज़ुर सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपनी छ्डी से तोडा था…हर बुत को तोड्ते जा रहे थे और कुरआन की आयत पढते जा रहे थे सुरह बनी इसराईल सु.१७ : आ. ८१ “और तु कह कि अल्लाह की तरफ़ से हक आ चुका है और झुठ नाबूद हो चुका है क्यौंकि झुठ बर्बाद होने वाला है….. )
    तो उसने ये बोलना शुरू किया की अल्लाह का कोई आकार नहीं है बो निराकार है …जो की सनातन धर्म का ही एक भाग है (वेद से) …
    • अल्लाह कोन था ?
    मोहम्मद का जन्म हुआ Qurayshi जनजाति विशेष रूप से अल्लाह (पार्वती ) और चंद्रमा भगवान (शिव)की तीन बच्चों (त्रिदेवी – काली(७) , गोरी (दुर्गा ८) , सरस्वती (ज्ञान की देवी) या कात्यानी (सिद्धि की देवी) को समर्पित किया गया था. इसलिए जब मुहम्मद अपने ही देवी धर्म बनाने का फैसला किया, और ७८६ (जिससे ओम भी बनता है)
    चुकी मुहम्मद एक लुटेरा था इस कारण बो अल्लाह को मानता था केबल (जैसे डाकू माँ काली की पूजा करते है ) कारण था की उसने ये रामायण की कथा सुन ली थी जिस कारण बो भगवान शिव की पूजा से बच कर शक्ति की पूजा करता था …. क्युकि माँ पार्वती ने ही राजा इल को वरदान दिया था और शिव के कारण ही समस्या हुयी टी ऐसा शयद बो सोचता था … इस लिए बो अल्लाह (पार्वती) के निर्गुण मानता था … मुहम्मद से भारत का नाम धर्म से हटाने के लिए हिन्दू देवी देवताओ को इस्लाम के नवी और पैगम्बर बोलना शुरु कर दिया और सनातन धर्म से उल्टा काम करना … जैसे काबा के ७ चक्कर (उलटे ), आदि जिससे उसको जनता से कोई परेशनी नहीं हुयी जिससे हुयी उसको उसने खत्म कर दिया …
    • दिन की जगह रात में पूजा .?..
    क्युकि भगवान शिव और शक्ति की पूजा रात्रि में ही होती है और सनातन धर्म का नाम इस्लाम रख दिया कुछ समय बाद जब बहुत कुछ उसके हाथो में आ गया ….
    • कलमा में क्या है ?
    ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है … अब जब की सब जानते है की इला और इल एक थे , जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह (पार्वती शक्ति ) थी ..और मुहम्मद शक्ति मत को मानने और फ़ैलाने वाले ,
    2. इस्लाम के आदम और ईव कोन कोन थे ?
    # इस कथा के अनुसार राजा इल की आदम था और बो ही ईव … क्युकि आदम से ही ईव पैदा हुयी ऐसा इस्लाम और ईसाई मत है …और बाद में आदम और ईव (राजा इल ) को अपना देश छोडना देना ..इस मत को सिद्ध करता है
    3. इस्लाम में हरा रंग क्यों ? चाँद और तारा क्यों ?
    # इस्लाम में अपने पूर्वजो को पूजता है ये जग जाहिर है … हिन्दुओ में सब जानते है की नव ग्रह ने बुध एक ग्रह है और बो स्याम वर्ण और हरा रंग पहनते है ज्ञान के देवता कहलाते है .. लकिन उनके जन्म पर कुछ अजीब किस्सा है जिससे कुछ मुस्लिम हिन्दू धर्म को बदनाम करते है जब की ये इसके ही पूर्वजो की कहानी है … चंदमा के द्वारा देवताओ के गुरु ब्रस्पति की पत्नी तारा के संयोग से उत्पन्न हुए थे जिसके कारण आज भी मुसलमान चाँद तारा को देख कर अपना रोजा खोते है और ईद मानते है .. साथ ही अपने झंडो और धार्मिक स्थान में प्रयोग करते है
    4. क्यों शेख लोग ओरत और मर्द दोनों को पसंद करते है ? क्यों शेख स्त्री जैसे बोलते और रहते है ?
    # जैसा की इस कथा से जाहिर है की भगवान शिव ने उस क्षेत्र को स्त्री लिंग में बदल दिया था … ये बाद मे शुक्राचार्य(दत्यो के गुरु) जी के आने के बाद सब सही हुआ था अन्यथा तो सब स्त्री में था जिस कारण सभी में स्त्री अंश रह गया है
    5. क्यों किन्नर अधिकतर मुस्लमान होते है ?
    # कथा के अनुसार किन्नर की उत्पत्ति राजा इल के सेवको का स्त्री में हो जाने के कारण हुयी ..जिनको बुध ने उसी क्षेत्र (पर्वत के पास ) रहने को बोला था
    भाइयो ये सत्य मैंने किसी धर्म का मजाक उड़ने के लिए नहीं बताया है .. मैंने केबल सत्य को सामने लाना चाहता हू ..आज हमारे हिन्दू समाज में ही बहुत से लोग राम और कृष्ण के साथ साथ सम्पूर्ण सनातन धर्म को बदनाम करने की सोचते है … इस कारण इस ग्रंथो को और राम , कृष्ण को कल्पनिक बता कर या कभी .. सत्य का मजाक उड़ा कर सत्य को छिपाने की कोशिस करते है लेकिन जो सत्य है तो सूरज की तरह है जो बदलो से कुछ समय के लिए कुछ लोगो से छिप सकता है सब से नहीं और नहीं ज्यादा देर तक … संतान धर्म तो उस गंगा , यमुना की तरह है जो निरंतर बहता रहत है ..और लोगो को सही राह दिखता है ..जो निर्मल और पवित्र है … जिसमे सादा ही परिवर्तन ..समय के अनुसार होते रहे है … जो वैज्ञानिक और अधात्मिक दोनों रूपों ने सिद्ध है … यहाँ मैंने एक कथा बुध के जन्म की सुनायी है जो पुराणों से है लेकिन इसका अर्थ भी कुछ और है,

    धन्यवाद

  132. मुहम्मद पैगम्बर खुद जन्मजात हिंदु थे और काबा हिंदु मंदिर
    मुसलमान कहते हैं कि कुराण ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतुइनकी एक-एक बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं-सबसे पहले तो ये पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति काजो सिद्धान्त देते हैं वो हिंदु धर्म-सिद्धान्त का ही छाया प्रति है.हमारे ग्रंथ के अनुसार ईश्वर ने मनुतथा सतरूपा को पृथ्वी पर सर्व-प्रथम भेजा था..इसी सिद्धान्त के अनुसार ये भी कहते हैं किअल्लाह ने सबसे पहले आदम और हौआ को भेजा.ठीक है…पर आदम शब्द संस्कृत शब्द “आदि” से बना है जिसका अर्थ होता है-सबसे पहले.यनि पृथ्वी पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा अस्तित्व में थी..सबभाषाओं की जननी संस्कृत है ये बात तो कट्टर मुस्लिम भी स्वीकार करते हैं..इस प्रकार आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं.
    इनका अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है.एक उपनिषद भीहै “अल्लोपनिषद”. चण्डी,भवानी,दुर्गा,अम्बा,पार्वती आदि देवी को आल्ला से सम्बोधित किया जाताहै.जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में “या” शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे “या देवीसर्वभूतेषु….”, “या वीणा वर ….” वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं “या अल्लाह”..इससे सिद्ध होता हैकि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया.
    चूँकि सर्वप्रथम विश्व में सिर्फ संस्कृत ही बोली जाती थी इसलिए धर्म भी एक ही था-वैदिक धर्म.बाद मेंलोगों ने अपना अलग मत और पंथ बनाना शुरु कर दिया और अपने धर्म(जो वास्तव में सिर्फ मत हैं) को आदि धर्म सिद्ध करने के लिए अपने सिद्धान्त को वैदिक सिद्धान्तों से बिल्कुल भिन्न कर लियाताकि लोगों को ये शक ना हो कि ये वैदिक धर्म से ही निकला नया धर्म है और लोग वैदिक धर्म केबजाय उस नए धर्म को ही अदि धर्म मान ले..चूँकि मुस्लिम धर्म के प्रवर्त्तक बहुत ज्यादा गम्भीर थेअपने धर्म को फैलाने के लिए और ज्यादा डरे हुए थे इसलिए उसने हरेक हरेक सिद्धान्त को ही हिंदु धर्मसे अलग कर लिया ताकि सब यही समझें कि मुसलमान धर्म ही आदि धर्म है,हिंदु धर्म नहीं..पर एकपुत्र कितना भी अपनेआप को अपने पिता से अलग करना चाहे वो अलग नहीं कर सकता..अगरउसका डी.एन.ए. टेस्ट किया जाएगा तो पकड़ा ही जाएगा..इतने ज्यादा दिनों तक अरबियों कावैदिक संस्कृति के प्रभाव में रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी वे सारे प्रमाण नहीं मिटापाए और मिटा भी नही सकते….

  133. भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिकसंस्कृति के प्रभाव में थे.जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना,मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना हैजिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्ययज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बनाहै..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर “प्र-गत-अम्बर” का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश सेचल पड़ा व्यक्ति..
    चलिए अब शब्दों को छोड़कर इनके कुछ रीति-रिवाजों पर ध्यान देते हैं जो वैदिक संस्कृति के हैं–
    ये बकरीद(बकर+ईद) मनाते हैं..बकर को अरबी में गाय कहते हैं यनि बकरीद गाय-पूजा का दिनहै.भले ही मुसलमान इसे गाय को काटकर और खाकर मनाने लगे..
    जिस तरह हिंदु अपने पितरों को श्रद्धा-पूर्वक उन्हें अन्न-जल चढ़ाते हैं वो परम्परा अब तकमुसलमानों में है जिसे वो ईद-उल-फितर कहते हैं..फितर शब्द पितर से बना है.वैदिक समाजएकादशी को शुभ दिन मानते हैं तथा बहुत से लोग उस दिन उपवास भी रखते हैं,ये प्रथा अब भी हैइनलोगों में.ये इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ(पवित्र ग्यारहवाँ दिन) कहते हैं,शिव-व्रत जो आगेचलकर शेबे-बरात बन गया,रामध्यान जो रमझान बन गया…इस तरह से अनेक प्रमाण मिलजाएँगे..आइए अब कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर डालते हैं…
    अरब हमेशा से रेगिस्तानी भूमि नहीं रहा है..कभी वहाँ भी हरे-भरे पेड़-
    पौधे लहलाते थे,लेकिनइस्लाम की ऐसी आँधी चली कि इसने हरे-भरे रेगिस्तान को मरुस्थल में बदल दिया.इस बात कासबूत ये है कि अरबी घोड़े प्राचीन काल में बहुत प्रसिद्ध थे..भारतीय इसी देश से घोड़े खरीद करभारत लाया करते थे और भारतीयों का इतना प्रभाव था इस देश पर कि उन्होंने इसका नामकरणभी कर दिया था-अर्ब-स्थान अर्थात घोड़े का देश.

  134. अर्ब संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ घोड़ा होता है. {वैसे ज्यादातर देशों का नामकरण भारतीयों ने ही किया है जैसेसिंगापुर,क्वालालामपुर,मलेशिया,ईरान,ईराक,कजाकिस्थान,तजाकिस्थान,आदि..} घोड़े हरे-भरेस्थानों पर ही पल-बढ़कर हृष्ट-पुष्ट हो सकते हैं बालू वाले जगहों पर नहीं..
    इस्लाम की आँधी चलनी शुरु हुई और मुहम्मद के अनुयायियों ने धर्म परिवर्त्तन ना करने वाले हिंदुओंका निर्दयता-पूर्वक काटना शुरु कर दिया..पर उन हिंदुओं की परोपकारिता और अपनों के प्रतिप्यार तो देखिए कि मरने के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों में रुपांतरित होकर इनका अबतक भरण-पोषण कर रहे हैं वर्ना ना जाने क्या होता इनका..!अल्लाह जाने..!
    चूँकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदु संस्कृति ही थी इसलिए पूरा अरब मंदिरों से भरा पड़ा था जिसे बाद मेंलूट-लूट कर मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है.इस बात का ये एक प्रमाण है किदुनिया में जितने भी मस्जिद हैं उन सबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर ऐसा नहीं है.येइस बात का सबूत है कि सारे मंदिर लूटे हुए हैं..इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर काबा का हैक्योंकि ये बहुत बड़ा मंदिर था.ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु का एक पग पड़ा था तीन पगजमीन नापते समय..चूँकि ये मंदिर बहुत बड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत से भी काफी मात्रा मेंलोग जाया करते थे..इसलिए इसमें मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान शिव काप्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तकविराजमान है वहाँ..यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिनासिलाई किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के प्रांगण में प्रवेश करते हैं औरइसकी सात परिक्रमा करते हैं.यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक संस्कृति केविपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टीदिशा में..पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये सब नियम-कानून सिर्फ इसीमस्जिद में क्यों?ना तो सर का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना सिलाई केकपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के अनिवार्य नियम जरुर हैं.
    चूँकि ये मस्जिद हिंदुओं से लूटकर बनाई गई है इसलिए इनके मन में हमेशा ये डर बना रहता है किकहीं ये सच्चाई प्रकट ना हो जाय और ये मंदिर उनके हाथ से निकल ना जाय इस कारणआवश्यकता से अधिक गुप्तता रखी जाती है इस मस्जिद को लेकर..अगर देखा जाय तो मुसलमानहर जगह हमेशा डर-डर कर ही जीते हैं और ये स्वभाविक भी है क्योंकि इतने ज्यादा गलत कामकरने के बाद डर तो मन में आएगा ही…अगर देखा जाय तो मुसलमान धर्म का अधार ही डर परटिका होता है.हमेशा इन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक नर्क की यातनाओं से डराया जाताहै..अगर कुरान की बातों को ईश्वरीय बातें ना माने तो नरक,अगर तर्क-वितर्क किए तो नर्क अगरश्रद्धा और आदरपूर्वक किसी के सामने सर झुका दिए तो नर्क.पल-पल इन्हें डरा कर रखा जाता हैक्योंकि इस धर्म को बनाने वाला खुद डरा हुआ था कि लोग इसे अपनायेंगे या नहीं और अपना भीलेंगे तो टिकेंगे या नहीं इसलिए लोगों को डरा-डरा कर इस धर्म में लाया जाता है और डरा-डरा करटिकाकर रखा जाता है..

  135. ..जैसे अगर आप मुसलमान नहीं हो तो नर्क जाओगे,अगर मूर्त्ति-पूजा करलिया तो नर्क चल जाओगे,मुहम्मद को पैगम्बर ना माने तो नर्क;इन सब बातों से डराकर ये लोगों कोअपने धर्म में खींचने का प्रयत्न करते हैं.पहली बार मैंने जब कुरान के सिद्धान्तों को और स्वर्ग-नरककी बातों को सुना था तो मेरी आत्मा काँप गई थी..उस समय मैं दसवीं कक्षा में था और अपनीस्वेच्छा से ही अपने एक विज्यान के शिक्षक से कुरान के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी..उसदिन तक मैं इस धर्म को हिंदु धर्म के समान या थोड़ा उपर ही समझता था पर वो सब सुनने के बादमेरी सारी भ्रांति दूर हुई और भगवान को लाख-लाख धन्यवाद दिया कि मुझे उन्होंने हिंदु परिवार मेंजन्म दिया है नहीं पता नहीं मेरे जैसे हरेक बात पर तर्क-वितर्क करने वालों की क्या गति होती…!
    एक तो इस मंदिर को बाहर से एक गिलाफ से पूरी तरह ढककर रखा जाता है ही(बालू की आँधी सेबचाने के लिए) दूसरा अंदर में भी पर्दा लगा दिया गया है.मुसलमान में पर्दा प्रथा किस हद तकहावी है ये देख लिजिए.औरतों को तो पर्दे में रखते ही हैं एकमात्र प्रमुख और विशाल मस्जिद को भीपर्दे में रखते हैं.क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर ये मस्जिद मंदिर के रुप में इस जगह परहोता जहाँ हिंदु पूजा करते तो उसे इस तरह से काले-बुर्के में ढक कर रखा जाता रेत की आँधी सेबचाने के लिए..!! अंदर के दीवार तो ढके हैं ही उपर छत भी कीमती वस्त्रों से ढके हुए हैं.स्पष्ट हैसारे गलत कार्य पर्दे के आढ़ में ही होते हैं क्योंकि खुले में नहीं हो सकते..अब इनके डरने की सीमादेखिए कि काबा के ३५ मील के घेरे में गैर-मुसलमान को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है,हरेक हजयात्री को ये सौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हज यात्रा में देखी गई बातों का किसी से उल्लेख नहींकरेगा.वैसे तो सारे यात्रियों को चारदीवारी के बाहर से ही शिवलिंग को छूना तथा चूमना पड़ता है परअगर किसी कारणवश कुछ गिने-चुने मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिल भी जाती है तोउसे सौगन्ध दिलवाई जाती है कि अंदर वो जो कुछ भी देखेंगे उसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..
    कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी प्रकार अंदर चले गए हैं,उनके अनुसारकाबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता केश्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है जिसेवे ईसा और उसकी माता समझते हैं…

  136. अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है.येदोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य(चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं..एक अष्टधातु सेबना दिया का चित्र में यहाँ लगा रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरबसे प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है.इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है
    ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतनाडरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य कोजानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूरमुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच करलौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहींकर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिलजाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकीरहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर काबना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहेहैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भीकेसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देनेवाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत मेंपत्थर के बने हुए प्राचीन-
    कालीन हजारों मंदिर मिलजाएँगे…
    ये तो सिर्फ मस्जिद की बात है पर मुहम्मद साहब खुद एकजन्मजात हिंदु थे ये किसी भी तरह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा है कि अगर वो पैगम्बर अर्थात अल्लाह केभेजे हुए दूत थे तो किसी मुसलमान परिवार में जन्म लेते एक काफिर हिंदु परिवार में क्यों जन्मेवो..?जो अल्लाह मूर्त्ति-पूजक हिंदुओं को अपना दुश्मन समझकर खुले आम कत्ल करने की धमकीदेता है वो अपने सबसे प्यारे पुत्र को किसी मुसलमान घर में जन्म देने के बजाय एक बड़े शिवभक्तके परिवार में कैसे भेज दिए..? …

  137. इस काबा मंदिर के पुजारी के घर में ही मुहम्मद का जन्म हुआथा..इसी थोड़े से जन्मजात अधिकार और शक्ति का प्रयोग कर इन्होंने इतना बड़ा काम करदिया.मुहम्मद के माता-पिता तो इसे जन्म देते ही चल बसे थे(इतना बड़ा पाप कर लेने के बाद वोजीवित भी कैसे रहते)..मुहम्मद के चाचा ने उसे पाल-पोषकर बड़ा किया परंतु उस चाचा को मारदिया इन्होंने अपना धर्म-परिवर्त्तन ना करने के कारण..अगर इनके माता-पिता जिंदा होते तो उनकाभी यही हश्र हुआ होता..मुहम्मद के चाचा का नाम उमर-बिन-ए-ह्ज्जाम था.ये एक विद्वान कवि तो थेही साथ ही साथ बहुत बड़े शिवभक्त भी थे.इनकी कविता सैर-उल-ओकुल ग्रंथ में है.इस ग्रंथ मेंइस्लाम पूर्व कवियों की महत्त्वपूर्ण तथा पुरस्कृत रचनाएँ संकलित हैं.ये कविता दिल्ली में दिल्ली मार्गपर बने विशाल लक्ष्मी-नारायण मंदिर की पिछली उद्यानवाटिका में यज्यशाला की दीवारों परउत्त्कीर्ण हैं.ये कविता मूलतः अरबी में है.इस कविता से कवि का भारत के प्रति श्रद्धा तथा शिव केप्रति भक्ति का पता चलता है.इस कविता में वे कहते हैं कोई व्यक्ति कितना भी पापी हो अगर वोअपना प्रायश्चित कर ले और शिवभक्ति में तल्लीन हो जाय तो उसका उद्धार हो जाएगा औरभगवान शिव से वो अपने सारे जीवन के बदले सिर्फ एक दिन भारत में निवास करने का अवसर माँगरहे हैं जिससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो सके क्योंकि भारत ही एकमात्र जगह है जहाँ की यात्रा करने सेपुण्य की प्राप्ति होती है तथा संतों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है..
    देखिए प्राचीन काल में कितनी श्रद्धा थी विदेशियों के मन में भारत के प्रति और आज भारत केमुसलमान भारत से नफरत करते हैं.उन्हें तो ये बात सुनकर भी चिढ़ हो जाएगी कि आदम स्वर्ग सेभारत में ही उतरा था और यहीं पर उसे परमात्मा का दिव्य संदेश मिला था तथा आदम का ज्येष्ठ पुत्र “शिथ” भी भारत में अयोध्या में दफनाया हुआ है.ये सब बातें मुसलमानों के द्वारा ही कही गई है,मैंनहीं कह रहा हूँ..
    और ये “लबी बिन-ए-अख्तब-बिन-ए-तुर्फा” इस तरह का लम्बा-लम्बा नाम भी वैदिक संस्कृति ही हैजो दक्षिणी भारत में अभी भी प्रचलित है जिसमें अपने पिता और पितामह का नाम जोड़ा जाता है..
    कुछ और प्राचीन-कालीन वैदिक अवशेष देखिए… ये हंसवाहिनी सरस्वती माँ की मूर्त्ति है जो अभीलंदन संग्रहालय में है.यह सऊदी अर्बस्थान से ही प्राप्त हुआ था
    प्रमाण तो और भी हैं बस लेख को बड़ा होने से बचानेके लिए और सब का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ..पर क्याइतने सारे प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं यह सिद्ध करने केलिए कि अभी जो भी मुसलमान हैं वो सब हिंदु ही थे जोजबरन या स्वार्थवश मुसलमान बन गए..कुरान में इसबात का वर्णन होना कि “मूर्त्तिपूजक काफिर हैं उनकाकत्ल करो” ये ही सिद्ध करता है कि हिंदु धर्म मुसलमानसे पहले अस्तित्व में थे..हिंदु धर्म में आध्यात्मिक उन्नतिके लिए पूजा का कोई महत्त्व नहीं है,ईश्वर के सामनेझुकना तो बहुत छोटी सी बात है..प्रभु-भक्ति कीशुरुआत भर है ये..पर मुसलमान धर्म में अल्लाह केसामने झुक जाना ही ईश्वर की अराधना का अंत है..यहीसबसे बड़ी बात है.इसलिए ये लोग अल्लाह के अलावेकिसी और के आगे झुकते ही नहीं,अगर झुक गए तोनरक जाना पड़ेगा..क्या इतनी निम्न स्तर की बातेंईश्वरीय वाणी हो सकती है..!.? …

  138. पढ़ना भी नहीं आताथा..अगर अल्लाह ने इन्हें धर्म की स्थापना के लिए भेजा था तो इसे इतनी कम शक्ति के साथ क्योंभेजा जिसे लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..या अगर भेज भी दिए थे तो समय आने पर रातों-रातज्यानी बना देते जैसे हमारे काली दास जी रातों-रात विद्वान बन गए थे(यहाँ तो सिद्ध हो गया किहमारी काली माँ इनके अल्लाह से ज्यादा शक्तिशाली हैं)..एक बात और कि अल्लाह और इनकेबीच भी जिब्राइल नाम का फरिश्ता सम्पर्क-सूत्र के रुप में था.इतने शर्मीले हैं इनके अल्लाह या फिरइनकी तरह ही डरे हुए.!.? वो कोई ईश्वर थे या भूत-पिशाच.?? सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि अगरअल्लाह को मानव के हित के लिए कोई पैगाम देना ही था तो सीधे एक ग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइलके हाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!ये रुक-रुक कर सोच-सोच कर एक-एक आयत भेजनेका क्या अर्थ है..!.? अल्लाह को पता है कि उनके इस मंदबुद्धि के कारण कितना घोटाला हो गया..! आने वाले कट्टर मुस्लिम शासक अपने स्वार्थ के लिए एक-से-एक कट्टर बात डालते चले गए कुरानमें..एक समानता देखिए हमारे चार वेद की तरह ही इनके भी कुरान में चार धर्म-ग्रंथों का वर्णन हैजो अल्लाह ने इनके रसूलों को दिए हैं..कभी ये कहते हैं कि धर्म अपरिवर्तनीय है वो बदल ही नहींसकता तो फिर ये समय-समय पर धर्मग्रंथ भेजने का क्या मतलब है??अगर उन सब में एक जैसीही बातें लिखी हैं तो वे धर्मग्रंथ हो ही नहीं सकते…जरा विचार करिए कि पहले मनुष्यों की आयुहजारों साल हुआ करती थी वो वर्त्तमान मनुष्य से हर चीज में बढ़कर थे,युग बदलता गया और लोगोंके विचार,परिस्थिति,शक्ति-सामर्थ्य सब कुछ बदलता गया तो ऐसे में भक्ति का तरीका भी बदलनास्वभाविक ही है..राम के युग में लोग राम को जपना शुरु कर दिए,द्वापर युग में
    कृष्ण जी के आने के बाद कृष्ण-भक्ति भी शुरु हो गई.अब कलयुग में चूँकि लोगों की आयु तथाशक्ति कम है तो ईश्वर भी जो पहले हजारों वर्ष की तपस्या से खुश होते थे अब कुछ वर्षों की तपस्यामें ही दर्शन देने लगे..
    धर्म में बदलाव संभव है अगर कोई ये कहे कि ये संभव नहीं है तो वो धर्म हो ही नहीं सकता..
    यहाँ मैं यही कहूँगा कि अगर हिंदु धर्म सजीव है जो हर परिस्थिति में सामंजस्य स्थापित कर सकताहै(पलंग पर पाँव फैलाकर लेट भी सकता है और जमीन पर पाल्थी मारकर बैठ भी सकता है) तोमुस्लिम धर्म उस अकड़े हुए मुर्दे की तरह जिसका शरीर हिल-डुल भी नहीं सकता…हिंदु धर्मसंस्कृति में छोटी से छोटी पूजा में भी विश्व-शांति की कमना की जाती है तो दूसरी तरफ मुसलमान येकामना करते हैं कि पूरी दुनिया में मार-काट मचाकर अशांति फैलानी है और पूरी दुनिया कोमुसलमान बनाना है…
    हिंदु अगर विष में भी अमृत निकालकर उसका उपयोग कर लेते हैं तो मुसलमान अमृत को भी विषबना देते हैं..
    मैं लेख का अंत कर रहा हूँ और इन सब बातों को पढ़ने के बाद बताइए कि क्या कुरान ईश्वरीयवाणी हो सकती है और क्या इस्लाम धर्म आदि धर्म हो सकता है…?? ये अफसोस की बात है किकट्टर मुसलमान भी इस बात को जानते तथा मानते हैं कि मुहम्मद के चाचा हिंदु थे फिर भी वो बाँकीबातों से इन्कार करते हैं….

    1. ये सब बकवास है सच्चाई इसकी उल्टी है। आपको इस्लाम का सही इल्म तभी होगा जब आप इस्लामिक किताबो को पढेगे। आपकी आंखे खुल जायेगी। इनमे सभी लाइने गलत है मै इनका जवाब लिख सकता हू मगर टाइम बहुत ज्यादा लगेगा। किस किस का जवाब दू। मगर फिर भी इसका एक इलाज है आप मुझे मिसकाल करे काॅल मै खुद कर लूगा और आपकी सभी बातो का उत्तर दूगा ।आप बेझिझक कोई भी सवाल मुझसे पूछ सकते है। 9536350102

      1. Nafees Miyan aapko jo jawab mene diye hein wo to musalman lekhakon ki kitabon men se hee hein
        “aayesah Muhammad ko paigamber naheen mantee tehe ” ye bhee firog kazmi ki kitabon se hee diya hai

        abhee tak koi jawab naheen aaya aapka

  139. मै आपको इस्लाम की दावत देना चाहता हू
    1- अल्लाह ईश्वर मे एक माने। वो एक ही है । हमारे आंखे उसे देख नही सकती है। इसलिए हम इंसानो के लिए ईश्वर अल्लाह निराकार है। वो अलग बात है जब अल्लाह मे इतनी ताकत है तो वो साकार भी बन सकता है। मगर फिर भी हमारी आंखे उस ईश्वर को नही देख सकती है।
    बेसक अल्लाह ईश्वर एक ही है अगर दो होते तो दुनिया का निजाम चल नही पाता एक कहता आज बारिश होगी दूसरा कहता नही आज धूप ही निकलेगी। इस तरह दुनिया बरबाद हो जाती है। जिस तरीके से एक देश के दो प्रधानमंत्री नही हो सकते। उसी तरीके से दुनिया के दो ईश्वर भी नही हो सकते।इसलिए अल्लाह ईश्वर भगवान खुदा गाॅड एक है बस नाम अलग है।

    2- पैगम्बर मुहम्मद सल्ललाहु अलैही वसल्लम इस दुनिया के आखिरी और सच्चे ऋषि या नबी है। तमाम धर्मो की किताबो मे मुहम्मद साहब के आने का जिक्र है। वो अलग बात है कुछ लोग सच्चाई को जानते हुए भी अपनी जिद और हठ से झूठ बोलते है और कहते है मुहम्मद साहब का जिक्र किसी भी किताब मे नही है। मगर सच्चाई तो सच्चाई ही रहती है।मेरी अल्लाह पाक से दुआ है ऐसे झूठ बोलने वालो लोगो को अल्लाह हिदायत दे।

    3- कुरान इस दुनिया की सबसे अच्छी धार्मिक किताब है। ये किसी इंसान ने नही लिखी है। ये अल्लाह का कलाम है। कुरान तो अपने आप मे चमत्कार है। एक आध चम्तकार मै आपको बता देना चाहता हू । अगर बाइचान्स किसी घर आग लग जाये तो घर की तमाम चीजे जल सकती है मगर कुरान नही जल सकती है। ये हकीकत है दोस्तो।
    और मै आपको अमेरिका का एक वाकया बताना चाहता हू। अमेरिका के अंदर एक शख्श ने कुरान की बेदबी की और उसी जलाने की कोशिस की तो अल्लाह तअला ने उस पर आसमानी बिजली गिराई वही खाक कर दिया। आप यूटूब और गूगल पर ये विडियो देख सकते आपसे मेरी रिक्वसट है जरूर देखे।
    और अरब के अन्दर एक लडकी हर वक्त टीवी देखती रहती थी उसकी मां उसे हर रोज कुरान शरीफ पढने को कहते थी। मगर रोज लडकी कुरान को कुछ गलत ही कहती थी । एक दिन तो उस लडकी न गुस्से मे आकर कुरान शरीफ को नाआऊजबिल्लाह लात मार दी तभी अल्लाह ने उसका आधा शरीर जानवर का बना दिया । आप यूटूब पर विडियो देख सकते है।
    इसलिए दोस्तो कुरान की इज्जत करो। और जिस मुहम्मद साहब को आप भला बुरा कहते हो उनकी भी इज्जत करो क्योकि मुहम्मद नाम कुरान मे बार बार आया है।

    1. whah se islam

      “वो अलग बात है जब अल्लाह मे इतनी ताकत है तो वो साकार भी बन सकता है। ”

      yadi aisa hai to wo hazir nazir kaise hua

      1. Sakaar usko khte jiska aakar ho. Akaar nirakaar dono hazir hosakte hai kyunki usme bhut takat hai. Hme iswar per bina dekhe iman lana chaye

    2. OUM…
      NAMASTE…
      NAFEES BHAAI, AAP KAA ALLAH ITNAA SAB KUCHH KAR SAKTAA HAI ACHCHHI BAAT HAI…LEKIN JIS ARAB ME MUHAMMED KI JANAM HUI…JAHAAN SE ISLAAM [JAISE BHI HO] FAILAA …US SAARE ARAB MUBAALIK EK HOKAR BHI CHHOTAA SAA DESH -ISRAEL KO KUCHH NAHIN KAR SAKE…KYUN ???!! US BAKHT ALLAH MAST SO PADE THE KYAA?!!!
      AB KOI BAD DIMAAG WAALAA BHI YEH BAAT NAHI BELIEVE KARTAA KI EK KAAGAJ AAG SE NAHIN JALTI? !!!! AGAR NAHIN JALI TO ISME BHI ALLAH KI BEIJJATI HI HUI….KYUN KI AAG KI PRAKRITI HOTI HAI JALAANAA….OH TAAKAT KISNE DI AAG KO ? SACH TO YAH HAI KI KISI NE BHI APNI PRAKRITI KE VIRUDDH KUCHH NAHIN KAR SAKTAA…AAP TO KURAAN KI VIJYAAN PE BADE BADE DINGE MARTE THE…YEH KAUNSAA VIJYAAN HAI KI AAG KAAGAJ KO NAHIN JALAATAA? KOI FIRE PROOF CHEMICAL LAGAA HOGAA….YAA ANTI FIRE MATERIAL SE BANI HOGI NAHIN ??? AUR KAUN SAA SCIENCE MAANTE HAI AAP, KAHAAN KI UNIVERSITY ME VIDHYAA HAASIL KIYAA KI JITE HI KOI INSAAN KI SHARIR AADHAA JAANVAR BAN GAYI ???!!! YEH NHI EESHWR KI NIYAM VIPARIT BAAT HAI…AAP KI ALLAH KI TO HO SAKTI HAI…AAP KI ALLAH TO PATHTHAR ME EK CHHADI KO BHI SAAP BANAA SAKTAA HAI…PATHTAR PE CHHADI MAARE TO PAANI BHI NIKLAA SAKTAA HAI….WAAH…RE BHULAA-BHATKAA JYAAN…!!!!
      AAO…AAO…BHAAI, VAIDIK MAARG ME LAUTO…KALYAAN HOGAA…
      OUM…
      NAMASTE…

  140. LAST YEAR PAKISTAN ME KURAAN KO JALAANE KI JULM ME EK SHAKHS KO MRITYU DAND KI SAJAA MILITHI…OH KAUN SAA KURAAN THAA JO JAL GAYAA??? ALLAH BHUL GAYE THE KYAA US KURAAN ME FIRE PROOFING KARNE ??!!!

  141. HAMAARE NEPAL KE DANG JILE KI TULSIPUR SHAR ME 18/20 SAAL PAHALE EK MASJID ME TOD FOD AUR AAGJANI HUI THI…USME SAB KUCHH JALKE KEVAL RAAKH HI BACHAA THAA….KYAA AAP KAA ALLAH OHAAN NAHIN PAHUNCH SAKE?!! AISI BE TUKI BAATON SE AAP KI HI BADNAAMI HOGI …ISI LIE BOLAA GAYAA HAI “ISLAAM ME AKAL PE DAKHAL NAHIN HOTI”
    AAP KI BAATON SE PUSTI HO GAYI…AUR KYAA KAHEN…
    OUM..

  142. NAFEES BHAI.
    AAP YOUTUBE KI FILMON ME KAHAAN KHO GAYE JI….EK CHHOTI SI UDAAHARAN LELO: –
    MAINE EKBAAR SHRIDEVI KI FILM DEKHAATHAA ‘NAAGIN’ USME SHRIDEVI NAAGIN BANTI HAI USNE KYAA KOI PAAP KITHI? AAP KI MAANE TO SAAYAD KURAAN YAA ALLAH KI INSULT KI HOGI…NAHIN..?

  143. INSAAN SE JAANVAR BANNAA YA AUR KOI SHARIR DHAARAN KRANAA YEH HAMAARE SHUBHAASHUBH KRMON KI PARINAAM HAI, LEKIN EK SHARIR CHHODNE KE VAAD EESHWR KE NIYAMANUSAAR HOTI HAI…AUR KARM FAL SIDDHAANT KO TO AAP LOG MAANTE NAHIN HO…YEH DARSHAN AAP KI KURAAN NAHIN SIKHAATAA SAAYAD…PAAP BHOG KARNE KE LIYE DUSARAA SHARIR DHARAAN KARNE KI BAAT KAHAAN SE LIYAA AAP NE ? OH BHI ISI JANAM ME ?!! VAIDIK DARSHAN ME TO AISI BAAT EESHWR KI NYAAYA VYAVASHTHAA BIPARIT HAI…AAP KE BHULE-BHATKE JYAAN ME SAAYAD HO…!

  144. प्रेम आर्य तुम्हारी अक्ल भी महेन्दरपाल की तरह है। मैने ये कब कहा है अगर कुरान को जान बूझ के आग लगाओ तो जलती नही है। मैने ये कहा अगर बाइचान्स अंजाने मे कीट पतंगे से आग लग जाये तो कुरान नही जलती है।ये तो आपकी कम अक्ली को साबित करती है कि मेरे सही लिखने के बावजूद भी आपने मेरी बात को गलत तरीके से लिया ।अब मुझे आप बिल्कुल भी झूठ मूठ कोई कहानी मत बताना कि वहा फला जगह तो आग लगी थी
    तुमने एक बात और कही कि कुरान तो सिखाता नही है जैसा कर्म वैसा फल। मै आपकी जानकारी के लिए बता देना चाहता हू। कुरान मे ऐसा कहा गया है अल्लाह पाक कहते है “इंसान जैसी मेहनत करता है जद्दोजहद करता है हम उसे कामयाब कर देते है”और हमारे जितने नबी दुनिया मे आये सबने महनत से कमाया तब खाया
    और आपके जितने भगवान आये सबने मौजमस्ती ही की।

    1. प्रेम आर्य जी जवाब देंगे आपको | उनकी जगह मैं जवाब देना नहीं चाहता |

  145. कोई नही आप जवाब लिखे।तब तक मै साईट से कुछ महीनो की छुट्टी ले लेता हू। ये मत कहना डरकर भाग गया। क्योकि तुम्हारी सोच निगेटिव है

  146. ओउम् …
    नफीस भाई, नमस्ते…
    लगता है आपको इस्लामी बुखार की गर्मी चढ़गई (आपको मालुम होगा इस्लामी बिज्ञान के किताबों में बुखार की गर्मी कैसे और कहाँ से आती है ?), आप अपनी शालीनता भंग कररहेहो….आप का जो नाम है-‘नफीस’ इसका माने होता है: “जो उत्तम होने के सिवा देखने में भी बहुत प्रिय या मनोहरहो।” लेकिन आप का व्यवहार उल्टा है..
    धीरे धीरे आप अपनी असली औकात देखा रहे हो ..
    खैर , छोडो इन बातों को…अब आते है आसली मुद्दे पे..जैसे भी हो जिसकी जैसी हो मेरा अकल अभी तक बहुत ठिकाने पे है,,आप का जैसा [इस्लाम अन्दर भेजा बाहर ] अकल और किसीका नहीं हो सकता जी…!
    आपकी अकल की तो दाग देनी पड़ेगी क्यूँ की पहले कहते हो की कुरआन को आग जला नहीं सकती..फिर कहते हो की आग भी फरक होती है …आग तो आग ही है , जहां और जैसे भी लगे या लगाईं जाए ..यह आपकी गलती नहि है जी, यह तो इस्लामी तालीम की दोष है…ओही -इस्लाम अन्दर, दिमाग बहार वाला !…अकल पे दखल …..वाला..
    झूठ बोलना और कोई झूठ मुठ के कहानी बनाना हमारी फितरत में नहीं है ..यह सब पे तो आप लोगों का पेटेन्ट है …विश्वाश नहीं तो पता करलो जो मैंने ऊपर एक घटना बताया था सच है..क्यूँ की मेरा घर वहीँ है..
    आप ने जो कर्म फल वाला फिलासफी कुरआन में भी है लिखा, ओह एकदम सफ़ेद झूठ साबित होती है..क्यूँ की आप लोग पूर्व जन्म और पुनर्जन्म मानते ही नहीं हो तो जिव को कैसे न्याय करेगा आप का अल्लाह ?!!!
    यदि यह कुरआन में होता और आप लोग इसको मानते तो किसीको ऐसे ही क़यामत तक कबर में पड़े रहने नहीं देते ..!
    हम ईश्वर को सर्व व्यापक सर्वशक्तिमान ..आदि गुण वाले मानते है और ओह कण कण में व्याप्त हो करके इस जगत को गति दे रहा है इसको आज का बिज्ञान भी मानता है…तो उसके लिए निचे उतरना और कोई पैगाम वाला बना करके निचे भेजना हम विश्वाश नहीं करते…यः अज्ञानता आप को मुबारक..!
    विज्ञान की बात तो आप करना ही नहीं क्यूँ की आपका कौम विज्ञान विरोधी पुष्टि कुरआन से ही हो जायगी…जैसे-श्रृष्टि रचना कब और कैसे हुई ? इस संसार को किस पदार्थ से रचा गया ? आपके आसपास जो पत्थर है , उसकी उम्र कितनी होगी? कुरआन के हवाले से बताना जी…’कून’ बोलने से सबकुछ नहीं बन जाता और ओह भी किसको बोला किसने सूना ?!! ऐसे बेतुकी फिलासफी आपको मुबारक हो…
    रही बात मौजमस्ती की, किसने कैसे कैसे मौज मस्ती की है मै आपको आज बताउंगा ओह भी आप की इस्लामी किताबों से….मेरे अगले पोस्ट ध्यान से ठंडा दिमाग बनाके अध्ययन करना जी..और गुस्सा आया या गर्मी ज्यादा चढ़ी तो ओह भी आपके नबी ने बताया है क्या करना हे ….

  147. बेशर्म औरत की नंगी हदीस !

    इस्लामी धर्म ग्रंथों में कुरान के बाद हदीसों को ही प्रमाण माना जाता है . और इन्हीं के आधार पर ही इस्लामी कानून ” शरियत ” के नियम भी बनाए गए हैं . यहाँ तक मुसलमानों के रीति रिवाज , आचार विचार , खान पान के नियम भी अधिकाँश हदीसों के आधार पर ही होते हैं .क्योंकि मुसलमानों का दावा है कि जिस तरह कुरान में अल्लाह के वचन हैं , उसी तरह अल्लाह कि प्रेरणा से रसूल ने हदीसें भी बयान की थीं .बस अंतर इतना है कि कुरान का संकलन रसूल जीवन काल में ही हो गया था , और हदीसों का संकलन रसूल के इंतकाल के बाद हुआ था .इस से जो लोग इस्लाम के बारे में ठीक से नहीं जानते , उनको ऐसा भ्रम हो जाता है . कि शायद हदीसों में सदाचार , नैतिकता , या समाज को सुधारने के लिए निर्देश दिए गए होंगे .जिसकी प्रेरणा अल्लाह ने रसूल को दी होगी .परन्तु ऐसा नहीं है .मुहम्मद साहब को हदीसें कहाँ से सूझती थी ,और उनका क्या विषय था . यही इस लेख में दिया गया है ,
    1-हदीस की प्रेरणा औरतों की फूहड़ बातें
    चूँकि इस्लाम में औरतों के लिए पढ़ना , गाना बजाना , बाहर जाना , और किसी प्रकार के मनोरंजन पर पाबन्दी है . इसलिए वह अपना दिल बहलाने के लिए घर में ही कोई रास्ता निकाल लेती थी. ऐसा ही मुहम्मद साहब की सबसे छोटी पत्नी आयशा भी करती थी . वह अडौस पडौस की फालतू औरतों को घर में बुला लेती थी .और सब मिल कर हर तरह की बातें करते थे . कई बार औरतें बेशर्म होकर अश्लील और फूहड़ बातें भी करती थी . वैसे तो मुहम्मद साहब औरतों पर पाबन्दी लगाने की बात करते थे , लेकिन जब आयशा के साथ उनकी पत्नियाँ और पडौस की औरतें निर्लज्ज होकर उन्ही के सामने अश्लील बातें करती थीं ,तो मुहम्मद साहब आनंद विभोर हो जाते थे .और उनकी अश्लील बातों प्रभावित हो कर जो भी कह देते थे .उसको भी हदीस समझ लिया जाता था .,ऐसी ही एक बेशर्म औरत की हदीस देखिये –
    2-उम्मे जारा की नंगी हदीस
    अरबी में फूहड़ को Slutty ,وقحة और निर्लज्ज को صفيق ,shameless कहा जाता है .इस हदीस को उम्मे जरा की हदीस कहा जाता है .और यह हदीस इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस हदीस में द्विअर्थी ( Double Meanings ) शब्दों का प्रयोग किया गया है . और इस से मुहम्मद साहब चारित्रिक स्तर का सही पता चलता है .पूरी हदीस इस प्रकार है ,
    ” आयशा ने कहा कि अक्सर मुझ से मिलने के लिए पडौस की औरतें आया करती थी . एक बार मी अपने घर ग्यारह औरतों को बुलवाया , और उन से कहा कि वह अपने पतियों के बारे में और उनके साथ दाम्पत्य संबंधों की सभी बातें बिना शर्म के खुल कर बताएं .जिस को सुन कर रसूल थोड़े में ही सारी बात समझ जाएँ .और अपना निर्णय सबको बता सकें .
    1 . पहली औरत – बोली मेरा पति एक ऐसे ऊंट कि तरह है , लगता है उस पर मांस का थैला लदा हो . जो देखने में तो अच्छा लगता है , लेकिन ऊपर नहीं चढ़ सकता .
    2 . दूसरी औरत – बोली मेरा पति इतना ख़राब है कि उसका वर्णन नहीं कर सकती , उसके आगे और पीछे की सभी चीजें किसी भी तरह नहीं छुप सकती है .
    3 .तीसरी औरत – ने कहा , मेरा पति भोंदू है ,वह मुझे ठीक से संतुष्ट नहीं कर पाता,यदि मैं टोकती हूँ तो तलाक की बात करता है . और चुप रहती हूँ तो मेरे चरित्र पर शक करता है .क्योंकि उसे अपनी औरत को खुश करना नहीं आता है .
    4 . चौथी औरत -बोली , मेरा पति मक्का की सर्द रात की तरह ठंडा है .इसलिए न तो मुझे उस से कोई डर है और न मैं उसकी परवाह करती हूँ .
    5 .पांचवीं औरत – ने बताया , मेरा पति बाहर तो चीता बना रहता है , और घर आते ही मुझ पर शेर की तरह हमला कर देता है . लेकिन जरा सी देर में ठंडा हो जाता है .और जैसे ही मैं उसको जाने को कहती हूँ फ़ौरन भाग जाता है .
    6 . छठवीं औरत – बोली , मेरा पति भुक्खड़ है . उसे सिर्फ खाने से मतलब रहता है . वह खाने की कोई चीज नहीं छोड़ता . और खाते ही चादर ओढ़ कर सो जाता है .लेकिन मेरे शरीर को हाथ भी नहीं लगाता. यही मेरी परेशानी है .
    7 . सातवीं औरत . ने बताया , देखने में तो मेरा पति काफी उत्साही लगाता है , लेकिन वह नामर्द है . फिर भी मुझे गर्भवती करने के लिए असभ्य तरीके अपना कर मुझे दौनों तरफ से इस्तेमाल करता है . जिस से मेरा शरीर घायल हो जाता है .
    8 .आठवीं औरत -बोली मेरा पति एक फल की तरह है . जिसकी सिर्फ सुगंध ही अच्छी लगती है . लेकिन उसे जहाँ से भी टटोल कर दबाओ वह नर्म और पिलपिला प्रतीत होता है .
    9 . नौवीं औरत . ने कहा . मेरा पति ऐसी बुलंद ईमारत की तरह है , जिसके अन्दर राख भरी हो .और मेरा छोटा सा घर अन्दर से मजबूत है . फिर भी मेरा पति घर के सामने ही बैठ जाता है . कभी अन्दर नहीं घुसता .
    10 .दसवीं औरत – ने बताया ,मेरे पति का नाम ” मालिक ” है , और वह सचमुच का मालिक है . वह मुझे सजा कर उस ऊंट की तरह तारीफ करता है . जिसे चराने के लिए छोड़ दिया जाता है .फिर गले में घंटियाँ बांध कर हलाल करने की जगह भेज दिया जाता है .
    11 . ग्यारहवीं औरत – उम्मे जारा ने कहा , मेरा पति अबू जरा , खूब खाता है और मुझे भी खिलाता है . उसने मुझे जेवर भी पहिनाए है . लेकिन खाने में बाद अनाज की बोरी की तरह पडा रहता है . एक दिन उसे रस्ते में एक सुन्दर गुलाम औरत दिखी , जो दूध दुह रही थी .साथ में ही दो बच्चे भी खेल रहे थे. और मेरे पति ने उस औरत से शादी कर ली .मेरे घर में जगह की तंगी है , और जब मेरा पति उस औरत को घर में लाया तो मैंने विरोध किया . इस पर मेरे पति ने मुझे खजूर की टहनी से खूब मारा .और मुझे तलाक दे दी . बाद मैं मैंने एक दूसरे आदमी से शादी कर ली , जो एक घुड सवार और तीरंदाज है .अब मुझे डर है कि कहीं यह व्यक्ति भी मुझे तलाक न दे दे .
    आयशा ने कहा कि रसूल ने उम्मे जारा और सभी औरतों की सभी बातों को ध्यान से सुना .और उनका असली अर्थ भी समझ लिया .फिर उन से कहा
    ” आज से मेरे लिए आयशा और तुम में कोई अंतर नहीं है ,यानि तुम मेरे लिए आयशा की तरह और आयशा मेरे लिए तुम्हारी तरह है ”

    इसी हदीस को ” हिशाम बिन उर्वा” ने भी दूसरे शब्दों में बयान किया है . लेकिन रसूल का निर्णय दौनों जगह एक ही है .

    3 -हदीस की प्रमाणिकता
    यह हदीस सहीह मुस्लिम की किताब 31 में हदीस नंबर 5998 पर मौजूद है .जिसे इमाम मुस्लिम ने अपनी किताब में जमा किया था. इमाम मुस्लिम का जन्म हि० 202 यानि सन 821 में ईरान के शहर निशापुर में हुआ था .और मृत्यु हि ० 261 यानी सन 875 में हुई थी .इमाम मुस्लिम ने सारे अरब , सीरिया , इराक और मिस्र में घूम घूम कर लोगों से सहबियों के वंशजों का पता किया . और उन से पूछ पूछ कर तीन लाख हदीसें इकट्ठी कर लीं . और उन में से करीब 4 हदीसों को सही मन कर अपनी किताब में शामिल कर लिया . इमाम मुस्लिम का पूरा नाम “أبو الحسين مسلم بن الحجاج القشيري النيسابوري‎अबुल हुसैन इब्न हज्जाज इब्न मुस्लिम इब्न वरात अल कुशैरी निशापुरी ” है इसलिए मुसलमान इस हदीस को सही मानते हैं .और ऐसी फूहड़ बातों में भी अध्यात्म यानि रूहानियत की बात साबित करने को कोशिश करते रहते हैं .

  148. बलात्कार :जिहाद का हथियार
    जिहाद दुनिया का सबसे घृणित कार्य और सबसे निंदनीय विचार है .लेकिन इस्लाम में इसे परम पुण्य का काम बताया गया है .जिहाद इस्लाम का अनिवार्य अंग है .मुहम्मद जिहाद से दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाना चाहता था .मुहलामानों ने जिहाद के नाम पर देश के देश बर्बाद कर दिए .हमेशा जिहादियों के निशाने पर औरतें ही रही हैं .क्योंकि औरतें अल्लाह नी नजर में भोग की वस्तु हैं .और बलात्कार जिहाद का प्रमुख हथियार है .मुसलमानों ने औरतों से बलात्कार करके ही अपनी संख्या बढाई थी .मुहम्मद भी बलात्कारी था .मुसलमान यही परम्परा आज भी निभा रहे है .यह रसूल की सुन्नत है ,कुरान के अनुसार मुसलमानों को वही काम करना चाहिए जो मुहम्मद ने किये थे .कुरान में लिख है-

    “जो रसूल की रीति चली आ रही है और तुम उस रीति(सुन्नत )में कोई परवर्तन नहीं पाओगे “सूरा -अल फतह 48 :23

    “यह अल्लाह की रीति है यह तुम्हारे गुजर जाने के बाद भी चलती रहेगी .तुम इसमे कोई बदलाव नहीं पाओगे .सूरा -अहजाब 33 :62
    “तुम यह नहीं पाओगे कि कभी अल्लाह की रीति को बदल दिया हो ,या टाल दिया गया हो .सूरा -फातिर 33 :62

    यही कारण है कि मुसलमान अपनी दुष्टता नही छोड़ना चाहते .जिसे लोग पाप और अपराध मानते हैं ,मुसलमान उसे रसूल की सुन्नत औ अपना धर्म मानते है .और उनको हर तरह के कुकर्म करने पर शर्म की जगह गर्व होता है .बलात्कार भी एक ऐसा काम है .जो जिहादी करते है –

    1 -बलात्कार जिहादी का अधिकार है

    “उकावा ने कहा की रसूल ने कहा कि जिहाद में पकड़ी गई औरतों से बलात्कार करना जिहादिओं का अधिकार है .

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हदीस 282

    “रसूल ने कहा कि अगर मुसलमान किसी गैर मुस्लिम औरत के साथ बलात्कार करते हैं ,तो इसमे उनका कोई गुनाह नहीं है .यह तो अल्लाह ने उनको अधिकार दिया है ,औ बलात्कार के समय औरत को मार मी सकते हैं”

    बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 132

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 52 हदीस 220

    2 -जिहाद में बलात्कार जरूरी है

    सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि सामूहिक बलात्कार करने से लोगों में इस्लाम की धाक बैठ जाती है .इसलिए जिहाद में बलात्कार करना बहुत जरूरी है .बुखारी जिल्द 6 किताब 60 हदीस 139

    3 -बलात्कार से इस्लाम मजबूत होता है

    “इब्ने औंन ने कहा कि,रसूल ने कहा कि किसी मुसलमान को परेशां करना गुनाह है ,और गैर मुस्लिमों को क़त्ल करना और उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इस्लाम को आगे बढ़ाना है.बुखारी -जिल्द 8 किताब 73 हदीस 70

    “रसूल ने कहा कि मैंने दहशत और बलात्कार से लोगों को डराया ,और इस्लाम को मजबूत किया .बुखारी -जिल्द 4 किताब 85 हदीस 220

    “रसूल ने कहा कि ,अगर काफ़िर इस्लाम कबूल नहीं करते ,तो उनको क़त्ल करो ,लूटो ,और उनकी औरतों से बलात्कार करो .और इस तरह इस्लाम को आगे बढ़ाओ और इस्लाम को मजबूत करो.बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 464

    4 -माल के बदले बलात्कार

    “रसूल ने कहा कि जो भी माले गनीमत मिले ,उस पर तुम्हारा अधिकार होगा .चाहे वह खाने का सामान हो या कुछ और .अगर कुछ नहीं मिले तो दुश्मनों कीऔरतों से बलात्कार करो ,औए दुश्मन को परास्त करो .बुखारी -जिल्द 7 किताब 65 हदीस 286 .

    (नोट -इसी हदीस के अनुसार बंगलादेश के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने बलात्कार किया था )

    5 -बलात्कार का आदेश ‘

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने अपने लोगों (जिहादियों )से कहा ,जाओ मुशरिकों पर हमला करो .और उनकी जितनी औरतें मिलें पकड़ लो ,और उनसे बलात्कार करो .इस से मुशरिकों के हौसले पस्त हो जायेंगे .बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 432

    6 -माँ बेटी से एक साथ बलात्कार

    “आयशा ने कहा कि .रसूल अपने लोगों के साथ मिलकर पकड़ी गई औरतों से सामूहिक बलात्कार करते थे .और उन औरतीं के साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे .बुहारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 67

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने 61 औरतों से बलात्कार किया था .जिसमे सभी शामिल थे .औरतों में कई ऎसी थीं जो माँ और बेटी थीं हमने माँ के सामने बेटी से औए बेटी के सामने माँ से बलात्कार किया .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3371 और बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 288

    7 -बलात्कार में जल्दी नहीं करो

    “अ ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,पकड़ी गयी औरतो से बलात्कार में जल्दी नहीं करो .और बलात्कार ने जितना लगे पूरा समय लगाओ ”

    बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 446 .

    अब जो लोग मुसलमानों और मुहम्मद को चरित्रवान और सज्जन बताने का दवा करते हैं ,वे एक बार फिर से विचार करे, इस्लाम में अच्छाई खोजना मल-मूत्र में सुगंध खोजने कि तरह है .आप एक बार मुस्लिम ब्लोगरो द्वारा इस्लाम और मुहम्मद के बारे में लिखी हुई झूठी बातों को पढ़िए फिर दिए तथ्यों पर विचार करके फैसला कीजिये
    अधिक जानकारी के लिए यह अंगेजी ब्लॉग देखें

    .अधिक जानकारी के लिए यह अंगेजी ब्लॉग देखें

    नारा ए बलात्कार !अल्लाहु अकबर !!

    विश्व के जितने भी प्रमुख धर्म हैं , उनके धार्मिक ग्रंथों , में दिए गए आदेशों के अनुसार ,और उन धर्मों की मान्यताओं में दो ऐसी समानताएं पाई जाती हैं .जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि यह धर्म सच्चे हैं .पहली बात यह है कि यह धर्म अपने जिस भी महापुरुष , अवतार , या नबी को अपना आदर्श मानते हैं ,उसकेद्वारा किये गए सभी सभी अच्छे कामों का अनुसरण करते हैं . और दूसरी समानता यह है कि इन सभी धर्मों के अनुयायी किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ करते समय ईश्वर का नाम जरुर लेते हैं . या ईश्वर की जयकार करते हैं .
    और इन्हीं दो बातों के आधार पर ही कहा जा सकता है कि इस्लाम धर्म नहीं है . बल्कि यदि कोई इस्लाम को सच्चा धर्म कहता , या मानता है . तो उस से बड़ा मूर्ख कोई दूसरा नहीं होगा , क्योंकि मुसलमान चुन चुन कर मुहम्मद सभी दुर्गुणों का अनुसरण करते हैं . इसी तरह मुसलमान हर बुरा काम लेते समय अल्लाह का नाम लेते हैं .यह तो सब जानते हैं कि जानवरों के गलों पर छुरी फिराते समय मुसलमान अल्लाह का नाम लेते है . लोग यह भी जानते हैं कि जिहादी , क़त्ल करते समय , बम विस्फोट करते समय ,या मुसलमान लूट करते या चोरी करते समय भी अल्लाह और रसूल का नाम लेते है . लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि मुसलमान सार्वजनिक रूप से सामूहिक बलात्कार करते समय भी” अल्लाहु अकबर ” का नारा लगाते हैं .क्योंकि वह मुहम्मद को अपना आदर्श मानते हैं .चूंकि कुरान की सूरतें (अध्याय ) का संकलन घटनाक्रम (chronological Order ) के अनुसार नहीं किया गया है .इसलिए हदीसों से पता चलता है कि मुहम्मद साहब ने कौनसी आयत किस समय , किस परिथिति में , और किसको संबोधित कर के कही थी . और यह भी पता चलता है कि मुहम्मद साहब का असली उद्देश्य क्या था .
    इस लेख में प्रमाणों के साथ यही सिद्ध किया जा रहा है कि इस्लाम सच्चा धर्म तो छोडिये , धर्म कहने के योग्य भी नहीं है .इसलिए इस लेख को ध्यान से पढ़िए ,

  149. बलात्कार :जिहाद का हथियार
    जिहाद दुनिया का सबसे घृणित कार्य और सबसे निंदनीय विचार है .लेकिन इस्लाम में इसे परम पुण्य का काम बताया गया है .जिहाद इस्लाम का अनिवार्य अंग है .मुहम्मद जिहाद से दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाना चाहता था .मुहलामानों ने जिहाद के नाम पर देश के देश बर्बाद कर दिए .हमेशा जिहादियों के निशाने पर औरतें ही रही हैं .क्योंकि औरतें अल्लाह नी नजर में भोग की वस्तु हैं .और बलात्कार जिहाद का प्रमुख हथियार है .मुसलमानों ने औरतों से बलात्कार करके ही अपनी संख्या बढाई थी .मुहम्मद भी बलात्कारी था .मुसलमान यही परम्परा आज भी निभा रहे है .यह रसूल की सुन्नत है ,कुरान के अनुसार मुसलमानों को वही काम करना चाहिए जो मुहम्मद ने किये थे .कुरान में लिख है-

    “जो रसूल की रीति चली आ रही है और तुम उस रीति(सुन्नत )में कोई परवर्तन नहीं पाओगे “सूरा -अल फतह 48 :23

    “यह अल्लाह की रीति है यह तुम्हारे गुजर जाने के बाद भी चलती रहेगी .तुम इसमे कोई बदलाव नहीं पाओगे .सूरा -अहजाब 33 :62
    “तुम यह नहीं पाओगे कि कभी अल्लाह की रीति को बदल दिया हो ,या टाल दिया गया हो .सूरा -फातिर 33 :62

    यही कारण है कि मुसलमान अपनी दुष्टता नही छोड़ना चाहते .जिसे लोग पाप और अपराध मानते हैं ,मुसलमान उसे रसूल की सुन्नत औ अपना धर्म मानते है .और उनको हर तरह के कुकर्म करने पर शर्म की जगह गर्व होता है .बलात्कार भी एक ऐसा काम है .जो जिहादी करते है –

    1 -बलात्कार जिहादी का अधिकार है

    “उकावा ने कहा की रसूल ने कहा कि जिहाद में पकड़ी गई औरतों से बलात्कार करना जिहादिओं का अधिकार है .

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हदीस 282

    “रसूल ने कहा कि अगर मुसलमान किसी गैर मुस्लिम औरत के साथ बलात्कार करते हैं ,तो इसमे उनका कोई गुनाह नहीं है .यह तो अल्लाह ने उनको अधिकार दिया है ,औ बलात्कार के समय औरत को मार मी सकते हैं”

    बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 132

    बुखारी -जिल्द 1 किताब 52 हदीस 220

    2 -जिहाद में बलात्कार जरूरी है

    सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि सामूहिक बलात्कार करने से लोगों में इस्लाम की धाक बैठ जाती है .इसलिए जिहाद में बलात्कार करना बहुत जरूरी है .बुखारी जिल्द 6 किताब 60 हदीस 139

    3 -बलात्कार से इस्लाम मजबूत होता है

    “इब्ने औंन ने कहा कि,रसूल ने कहा कि किसी मुसलमान को परेशां करना गुनाह है ,और गैर मुस्लिमों को क़त्ल करना और उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इस्लाम को आगे बढ़ाना है.बुखारी -जिल्द 8 किताब 73 हदीस 70

    “रसूल ने कहा कि मैंने दहशत और बलात्कार से लोगों को डराया ,और इस्लाम को मजबूत किया .बुखारी -जिल्द 4 किताब 85 हदीस 220

    “रसूल ने कहा कि ,अगर काफ़िर इस्लाम कबूल नहीं करते ,तो उनको क़त्ल करो ,लूटो ,और उनकी औरतों से बलात्कार करो .और इस तरह इस्लाम को आगे बढ़ाओ और इस्लाम को मजबूत करो.बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 464

    4 -माल के बदले बलात्कार

    “रसूल ने कहा कि जो भी माले गनीमत मिले ,उस पर तुम्हारा अधिकार होगा .चाहे वह खाने का सामान हो या कुछ और .अगर कुछ नहीं मिले तो दुश्मनों कीऔरतों से बलात्कार करो ,औए दुश्मन को परास्त करो .बुखारी -जिल्द 7 किताब 65 हदीस 286 .

    (नोट -इसी हदीस के अनुसार बंगलादेश के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने बलात्कार किया था )

    5 -बलात्कार का आदेश ‘

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने अपने लोगों (जिहादियों )से कहा ,जाओ मुशरिकों पर हमला करो .और उनकी जितनी औरतें मिलें पकड़ लो ,और उनसे बलात्कार करो .इस से मुशरिकों के हौसले पस्त हो जायेंगे .बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 432

  150. 6 -माँ बेटी से एक साथ बलात्कार

    “आयशा ने कहा कि .रसूल अपने लोगों के साथ मिलकर पकड़ी गई औरतों से सामूहिक बलात्कार करते थे .और उन औरतीं के साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे .बुहारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 67

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने 61 औरतों से बलात्कार किया था .जिसमे सभी शामिल थे .औरतों में कई ऎसी थीं जो माँ और बेटी थीं हमने माँ के सामने बेटी से औए बेटी के सामने माँ से बलात्कार किया .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3371 और बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 288

    7 -बलात्कार में जल्दी नहीं करो

    “अ ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,पकड़ी गयी औरतो से बलात्कार में जल्दी नहीं करो .और बलात्कार ने जितना लगे पूरा समय लगाओ ”

    बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 446 .

    अब जो लोग मुसलमानों और मुहम्मद को चरित्रवान और सज्जन बताने का दवा करते हैं ,वे एक बार फिर से विचार करे, इस्लाम में अच्छाई खोजना मल-मूत्र में सुगंध खोजने कि तरह है .आप एक बार मुस्लिम ब्लोगरो द्वारा इस्लाम और मुहम्मद के बारे में लिखी हुई झूठी बातों को पढ़िए फिर दिए तथ्यों पर विचार करके फैसला कीजिये
    अधिक जानकारी के लिए यह अंगेजी ब्लॉग देखें

    .अधिक जानकारी के लिए यह अंगेजी ब्लॉग देखें

    नारा ए बलात्कार !अल्लाहु अकबर !!

    विश्व के जितने भी प्रमुख धर्म हैं , उनके धार्मिक ग्रंथों , में दिए गए आदेशों के अनुसार ,और उन धर्मों की मान्यताओं में दो ऐसी समानताएं पाई जाती हैं .जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि यह धर्म सच्चे हैं .पहली बात यह है कि यह धर्म अपने जिस भी महापुरुष , अवतार , या नबी को अपना आदर्श मानते हैं ,उसकेद्वारा किये गए सभी सभी अच्छे कामों का अनुसरण करते हैं . और दूसरी समानता यह है कि इन सभी धर्मों के अनुयायी किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ करते समय ईश्वर का नाम जरुर लेते हैं . या ईश्वर की जयकार करते हैं .
    और इन्हीं दो बातों के आधार पर ही कहा जा सकता है कि इस्लाम धर्म नहीं है . बल्कि यदि कोई इस्लाम को सच्चा धर्म कहता , या मानता है . तो उस से बड़ा मूर्ख कोई दूसरा नहीं होगा , क्योंकि मुसलमान चुन चुन कर मुहम्मद सभी दुर्गुणों का अनुसरण करते हैं . इसी तरह मुसलमान हर बुरा काम लेते समय अल्लाह का नाम लेते हैं .यह तो सब जानते हैं कि जानवरों के गलों पर छुरी फिराते समय मुसलमान अल्लाह का नाम लेते है . लोग यह भी जानते हैं कि जिहादी , क़त्ल करते समय , बम विस्फोट करते समय ,या मुसलमान लूट करते या चोरी करते समय भी अल्लाह और रसूल का नाम लेते है . लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि मुसलमान सार्वजनिक रूप से सामूहिक बलात्कार करते समय भी” अल्लाहु अकबर ” का नारा लगाते हैं .क्योंकि वह मुहम्मद को अपना आदर्श मानते हैं .चूंकि कुरान की सूरतें (अध्याय ) का संकलन घटनाक्रम (chronological Order ) के अनुसार नहीं किया गया है .इसलिए हदीसों से पता चलता है कि मुहम्मद साहब ने कौनसी आयत किस समय , किस परिथिति में , और किसको संबोधित कर के कही थी . और यह भी पता चलता है कि मुहम्मद साहब का असली उद्देश्य क्या था .
    इस लेख में प्रमाणों के साथ यही सिद्ध किया जा रहा है कि इस्लाम सच्चा धर्म तो छोडिये , धर्म कहने के योग्य भी नहीं है .इसलिए इस लेख को ध्यान से पढ़िए ,
    1-अल्लाह से प्रेम की शर्त
    मुहम्मद साहब की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह को कुछ भी करते थे वही काम अपने लोगों से करने को कहते थे . और उनका अनुसरण करने को ही अल्लाह से प्रेम का प्रमाण मान लिया जाता था , जैसा कि कुरान में लिखा है ,
    “यदि तुम अल्लाह से प्रेम करना चाहते हो तो ,मेरा अनुसरण करो .ऐसा करने से अल्लाह भी तुम से प्रेम करेगा , और तुम्हारे सभी गुनाह माफ़ कर देगा ”
    सूरा -आले इमरान 3 :3 1

    2-वासना पिशाच
    मुस्लिम विद्वान् अपने रसूल मुहम्मद को दूसरों के नबियों , अवतारों और महापुरुषों से बड़ा साबित करने में लगे रहते हैं , यहाँ तक सेक्स के मामले में भी मुसम्मद साहब को ” सुपर मेन ऑफ़ सेक्स-superman of Sex ” तक कह देते हैं . लेकिन यूरोप के विद्वान् मुहम्मद साहब की अदम्य और असीमित वासना के कारण उनको “सेक्स डेमोन\Sex Demon ” यानी “वासना पिशाच “कहते हैं . यह बात इन हदीसों से प्रमाणित होती है
    “अनस बिन मलिक ने बताया कि रसूल बारी बारी से अपनी औरतों के साथ लगातार सम्भोग करने में लगे रहते थे .सिर्फ नमाज के लिए घर से निकलते थे . उनको अल्लाह तीस या चालीस मर्दों के बराबर सम्भोग शक्ति प्रदान की थी”
    सही बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 6
    यही बात दूसरी हदीस में भी कही गयी है ,
    “अनस बिन मलिक ने कहा कि रसूल लगातार रात दिन अपनी औरतों के के साथ सम्भोग करते रहते थे . जब कटदा ने अनस से पूछा कि क्या रसूल में इतनी शक्ति है . तो अनस ने कहा कि रसूल में 30 मर्दों के बराबर सम्भोग शक्ति है ,और उनकी 9 नहीं 11 औरतें थीं .”

    حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ بَشَّارٍ، قَالَ حَدَّثَنَا مُعَاذُ بْنُ هِشَامٍ، قَالَ حَدَّثَنِي أَبِي، عَنْ قَتَادَةَ، قَالَ حَدَّثَنَا أَنَسُ بْنُ مَالِكٍ، قَالَ كَانَ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم يَدُورُ عَلَى نِسَائِهِ فِي السَّاعَةِ الْوَاحِدَةِ مِنَ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ، وَهُنَّ إِحْدَى عَشْرَةَ‏.‏ قَالَ قُلْتُ لأَنَسٍ أَوَكَانَ يُطِيقُهُ قَالَ كُنَّا نَتَحَدَّثُ أَنَّهُ أُعْطِيَ قُوَّةَ ثَلاَثِينَ‏.‏
    وَقَالَ سَعِيدٌ عَنْ قَتَادَةَ إِنَّ أَنَسًا حَدَّثَهُمْ تِسْعُ نِسْوَةٍ‏.‏

    Bukhari, Volume 1, Book 5, Number 268
    बुखारी की इस हदीस की व्याख्या करते हुए सुन्नी विद्वान् “इमाम इब्ने हंजर सकलानी ” ने अपनी किताब ” फतह अल बारी – فتح الباري‎) ” में बताया है कि जब रसूल जिन्दा थे तो रसूल में 4 0 जन्नती व्यक्तियों के बराबर सम्भोग शक्ति थी . और जन्नत के एक व्यक्ति की सम्भोग शक्ति दुनिया के एक हजार व्यक्तिओं के बराबर होती है , अर्थात रसूल में 40 हजार मर्दों के बराबर सम्भोग करने की शक्ति थी , इसी लिए वह हमेशा सम्भोग करने की इच्छा रखते थे . इस बात की पुष्टि इस्लाम के प्रचारक “शेख मुहम्मद मिसरी ” ने भी की है .देखिये विडिओ
    الرسول ينكح 6 نسوان بساعة واحدة

    http://www.youtube.com/watch?v=Vgir-rMRY2g
    यही कारण था कि मुहम्मद साहब के साथी भी मुहम्मद साहब की नक़ल करके रात दिन औरतों के साथ सम्भोग में लगे रहते थे . और स्वाभाविक है कि लगातार सहवास करने से मुहमद साहब और उनके साथियों की औरतें . शिथिल , थुलथुली हो गयी होंगी और उनके स्तन लटक गए होंगे .इस लिए मुहम्मद साहब अपने साथियों को ऐसी अरतों का लालच देते रहते थे , जिनके स्तन कठोर और उभरे हुए हों ,कुरान में यही लालच दिया गया है
    3-कठोर स्तन वाली स्त्रियाँ
    मुहम्मद साहब के दिल में जो बात होती थी , वह कुरान में जरुर शामिल कर देते थे . ताकि वह बात अल्लाह का वचन समझा जाये .मुहम्मद साहब शिथिल स्तनोंवाली अपनी औरतों से ऊब गए होंगे ,और उनको कठोर स्तन वाली औरतों की तलाश थी . इसलिए कुरान में यह आयत जोड़ दी . ताकि जिहादी लालच में आ जाएँ , कुरान में कहा है .
    “बेशक डर रखने वालों के लिए फायदा है ,बाग़ और अंगूर ,और नवयुवतियां समान आयु वाली “सूरा अन नबा 7 8 :3 1 से 3 3 तक
    नोट-इस आयत में अरबी में नव युवतियों के लिए अरबी में “कवायिबكَواعِبَ– “शब्द आया है . लेकिन मुल्लों नेइसका अर्थ “शानदार -splendid”कर दिया है .जबकि इस शब्द का असली अर्थ “गोल स्तन -This means round breasts ” होता है .तात्पर्य यह है कि ईमान वालों को अल्लाह ऐसी औरतें देगा जिनके स्तन गोल , उभरे और कठोर होंगे .और जिनकी आयु ईमान वाले मुसलमानों की आयु के बराबर होगी ( This means round breasts. They meant by this that the breasts of these girls will be fully rounded and not sagging, because they will be virgins, equal in age. This means that they will only have one age. The explanation of this has already been mentioned in Surat Al-Waqi`ah. 56:35 -Concerning Allah’s statement,)
    . यह बात सूरा -वाकिया से स्पष्ट हो जाती है , जिसमे कहा है ,
    “हमने उन स्त्रियों के विशेष उभार को उठान पर उठाया (raised है “सूरा -अल वाकिया 56:35

  151. 4-हुनैन का बलात्कार कांड
    मक्का और तायफ के बीच में एक घाटी थी , किसमे ” हवाजीन “नामका एक बद्दू कबीला रहता था .जो कुरैश का ही हिस्सा था .इस कबीले की औरतें भी मेहनती होने के कारण स्वस्थ थी . और उन औरतों के स्तन उभरे हुए थे .मुहम्मद ने उन पर हमला करने के लिए बहाना निकाला कि यह लोग काफ़िर थे . लेकिन मुहम्मद और उनके अय्याश साथियों की नजर हवाजिन कबीले की औरतों पर थी .इसी लिए रात में ही हमला कर दिया .चूँकि यह कांड हुनैन नामकी सकरी घाटी में हुआ था ,.जिस से बहार निकलना कठिन था ,इसलिए बददु लोग हार गए
    इतिहासकार इब्ने इशाक के अनुसार इस्लाम में हुनैन की जंग का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है , क्योंकि इस लड़ाई के बाद ही मुसलमानों को युद्ध में या कहीं से भी पकड़ी गयी औरतों के साथ सम्भोग करने का अधिकार प्राप्त हो गया .हालांकि मुसलमान हुनैन की इस लड़ाई को युद्ध कहते है . लेकिन इसे युद्ध कहना ठीक नहीं होगा , क्योंकि एक तरफ मुहम्मद के 12 हजार प्रशिक्षित हथियारधारी लुटेरे थे तो दूसरी तरफ 6 हजार साधारण बद्दू थे ,जिनमे औरतें , बूढ़े ,बीमार और बच्चे भी थे .यह घटना इस्लामी महीने शव्वाल की 10 तारीख हिजरी सन 8 में हुई थी ,यानी ईसवी सन 630 की बात है .इब्ने इशक के अनुसार इस युद्ध में कोई धन नहीं मिला था लेकिन 6000 औरतें पकड़ी गयी थी .मुहम्मद की तरफ से जिन लोगों ने इस लड़ाई में हिस्सा लिया था ,उनमे 13 साल से लेकर 54 साल के लोग थे . और कई ऐसे थे जो रिश्ते में बाप बेटा ,चाचा भतीजे थे .मक्का और तायफ के बीच में एक घाटी थी , किसमे ” हवाजीन “नामका एक बद्दू कबीला रहता था .जो कुरैश का ही हिस्सा था .इस कबीले की औरतें भी मेहनती होने के कारण स्वस्थ थी . और उन औरतों के स्तन उभरे हुए थे .मुहम्मद ने उन पर हमला करने के लिए बहाना निकाला कि यह लोग काफ़िर थे . लेकिन मुहम्मद और उनके अय्याश साथियों की नजर हवाजिन कबीले की औरतों पर थी .इसी लिए रात में ही हमला कर दिया .इस घटना का विवरण इन हदीसों में मिलता है , जिसमे मुहम्मद और उनके साथियों किस तरह इंसानियत को कलंकित किया था .
    5-पति के सामने बलात्कार
    “सईद अल खुदरी ने कहा कि जब रसूल ने हुनैन के औतास कबीले पर हमला करके वहां के लोगों को पराजित करके उनकी औरतों को बंधक बना लिया . तब रसूल ने अपने साथियों को आदेश दिया कि तुम इस युद्ध में पकड़ी गयी औरतों के साथ बलात्कार करो , लेकिन कुछ लोग उन औरतों के पतियों के सामने ही ऐसा करने से झिझक रहे थे .तब रसूल ने उसी समय सूरा -निसा 4 :2 4 की आयत सुना दी , जिसमे कहा है कि तुम पकड़ी गयी औरतों से तभी साथ सम्भोग नहीं कर सकते हो , यदि वह मासिक धर्म से (रजस्वला “हो .
    अबू दाऊद किताब 2 हदीस 215 0

    5-समआयु की औरतें
    मुहम्मद साहब बहुत होश्यार थे , उन्हों कुरान में पहले ही लिखा दिया था कि ईमान वालों को पुरस्कार के रूप में समान आयु वाली और कठोर स्तन वाली औरतें मिलेंगे , और जब हुनैन के हमले में मुसलमानों ने छह हजार औरतें पकड़ लीं ,तो छांट छांट कर अपनी आयु की औरतों के साथ बलात्कार किया था . जो इस हदीस से पता चलता है ,
    “सईदुल खुदरी ने कहा कि जब रसूल के सैनिकों ने हुनैन में औताफ के लोगों पर हमला करके हरा दिया तो उनकी औरतों को बंधक बना लिया , फिर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वह पकड़ी गयी औरतों में से अपने बराबर की आयु वाली औरतों के साथ सम्भोग कर सकते हैं , सिवाय उन औरतों के जिनकी इद्दत पूरी नहीं हो (यानी मासिक धर्म पूरा नहीं हो ) .रसूल ने उसी समय सूरा निसा 4 :24 की यह आयत लोगों को सुनायी थी .”
    “وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ النِّسَاءِ إِلاَّ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ‏}‏ أَىْ فَهُنَّ لَكُمْ حَلاَلٌ إِذَا انْقَضَتْ عِدَّتُهُنَّ ‏.‏ ”
    सही मुस्लिम – किताब 8 हदीस 3432

    कुरान की इस आयत में जो लिखा था वही मुसलमानों ने किया था , कुरान में लिखा है ,
    “हमने प्रेयसी सम आयु वाली पसंद की ” सूरा -अल वाकिया56:37
    मुसलमान हुनैन की लड़ाई का कारण कुछ भी बताते रहें , लेकिन वास्तव में औरतें पकड उनसे सामूहिक बलात्कार की मुहम्मद की एक कुत्सित योजना थी .अब तक आपने पढ़ा है ,मुहम्मद की वासना राक्षसी थी , और लगातार सम्भोग करते रहने से उसकी औरतों के स्तन शिथिल हो गए होंगे ,इसलिए मुहम्मद ने कुरान में भी अपने साथियों को कठोर स्तन वाली औरतें देने का लालच दिया था .चूँकि हवाजिन कबिले की औरतें मेहनती थी . और इसीलिए उनके स्तन उभरे और कठोर थे . जो मुहमद की पसंद थी .आपने यह भी पढ़ा कि मुहम्मद साहब जो भी कुकर्म करते थे उसे जायज ठहराने के लिए कुरान कोई न कोई आयत रच देते थे , ताकि आगे भी मुस्लमान ऐसा ही करते रहें .
    6–रसूल का उत्तम आदर्श
    मुहम्मद साहब ने अपने इसी चरित्र को खुद ही आदर्श घोषित करते हुए कुरान में भी लिखवा दिया
    ” निश्चय ही तुम लोगों के लिए अल्लाह के रसूल का चरित्र उत्तम आदर्श है ” सूरा -अहजाब 33:21
    आज भी मुसलमान जितने भी बलात्कार करते है , सब मुहम्मद साहब के इसी आदर्श चरित्र का पालन करते हैं .और हर गैर मुस्लिम लड़की या महिला से बलात्कार को अल्लाह की जीत समझते हैं ,ऐसी ही एक सत्य घटना दी जा रही है ,
    7-अल्लाह के नाम से बलात्कार

    मुहम्मद साहब को अपना आदर्श मानकर और उनका अनुसरण करते हुए कुरान की मानवविरोधी शिक्षा पर अमल करने से मुसलमान इतने अपराधी ,क्रूर और बलात्कारी हो गए कि बलात्कार जैसे जघन्य कुकर्म को भी अल्लाह के प्रति अपना प्रेम समझने लगे हैं . इसी कारण बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही है .इस बात को सिद्ध करने के लिए मिस्र देश की यह एक ही सच्ची घटना काफी है ,
    मिस्र को इजिप्ट ( Egypt) भी कहा जाता है . यह इस्लामी देश है , लेकिन यहाँ कुछ ऐसे ईसाई भी रहते हैं ,जो इस्लाम के पूर्व से ही यहाँ रहते आये हैं .इनको ” कोप्टिक ईसाई – Coptic Christian “कहा जाता है . अरबी में इनको” नसारा ” कहते हैं .मुस्लमान अक्सर इनकी लड़कियों का अपहरण करके बलात्कार करते रहते है .
    यह सन 2009 की घटना है . कुछ मुस्लिम युवकों ने एक ईसाई लड़की को बीच रस्ते से पकड़ लिया , और सबके सामने उसकी जींस उतार कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया .जब लड़की ने भागने का प्रयत्न किया तो दर्शक मुसलमान चिल्लाये पकड़ो , नसारा को पकड़ो .और जब उस लाचार लड़की से बलात्कार हो रहा था , तो वहां कुछ मुल्ले भी मौजूद थे , जो कलमा पढ़ रहे थे ” ला इलाहा इल्लालाह , मुहम्मदुर रसूल अल्लाह “यही नहीं लड़की दर्द के कारण जितनी जोर से चिल्लाती थी . मुसलमान उतनी ही जोर से “अल्लाहु अकबर ” का नारा लगाते थे . यही नहीं इन दुष्ट मुसलमानों में इस घटना का विडियो भी बना लिया था . जो किसी तरह से 11/4/2013 को लोगों के सामने आ सका है .यह विडियो इस साईट में उपलब्ध है ,
    Video:Christian Girls Gang Raped to Screams of “Allahu Akbar” in Egypt

    http://www.raymondibrahim.com/from-the-arab-world/video-christian-girls-gang-raped-to-screams-of-allahu-akbar-in-egypt/

    इसके बावजूद मुस्लिम प्रचारक बड़ी बेशर्मी से मुहम्मद की तारीफ में कहते हैं

    “हे मुहम्मद हमने तुम्हें भेज कर सारे संसार पर मेहरबानी की है ‘सूरा -अल अम्बिया 21:107

    इन सबूतों को देखने के बाद किसी को भी शंका नहीं होना चाहिए कि मुहम्मद साहब को अपना आदर्श मानने से ही बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही हैं .और जो सिद्धांत अल्लाह के नाम से बलात्कार करने की शिक्षा देता है , वह धर्म कहने के योग्य नहीं ,बल्कि धिक्कार के योग्य है .सोचिये यदि अल्लाह ने नूह की तरह मुहम्मद साहब को नौ सौ साल की आयु दे दी होती ,तो मुहम्मद साहब कितने बलात्कार करते ?

  152. कुत्ते मारने वाला रसूल !!

    इस्लाम में कुरान के बाद हदीसों को ही प्रमाण माना जाता है , क्योंकि उनमे मुहम्मद साहब के कथन संग्रहित हैं . अधिकांश इस्लामी देशों में उन्हीं के आधार पर कानून भी बनाये गए हैं . लेकिन कुरान की तरह हदीसों में भी परस्पर विरोधी बातों भरमार है . जहाँ एक हदीस किसी काम को गुण , या अच्छा काम बताती है , तो ऐसी कई हदीसें मिल जाती हैं , जो उस से उलटा काम करने का हुक्म देती हैं .
    उदाहरण के लिए पिछले महीने एक इस्लामी ब्लॉग पढ़ा , जिसमे यह साबित करने की कोशिश की गयी थी ,कि इस्लाम भी सभी प्राणियों पर दया करने की शिक्षा देता है , और अल्लाह जानवरों पर दया करने वालों के सभी गुनाह माफ़ कर देता है ,और इसी बात को साबित करने के लिए एक हदीस भी दी गयी थी ,परन्तु उसी विषय पर और हदीसें पढ़ने से दी गयी हदीस के दावों का भंडा फ़ूट गया .
    इस बात को और स्पष्ट करने के लिए पहले वह हदीस दी जा रही है ,जिसमे जानवरों पर दया करने की बात की गयी है , फिर ऐसी हदीसें दी जाएगी , जो जानवरों की हत्या करने और उनपर क्रूरता करने का हुक्म देती है , और आखिर में उन बेतुकी हदीसों के आधार बने हुए इस्लामी कानून की प्रष्ठभूमि दी जा रही है ,

    1-कुत्ते की सेवा से जन्नत

    “अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा है , एकबार बनी इजराइल के कबीले की एक वेश्या ने देखा कि एक कुत्ता कुएं के आसपास मंडरा रहा है . गर्मी के दिन थे , इसलिए कुत्ता प्यास के मारे अपनी जीभ निकाल कर हांफ रहा था . यह देख कर उस वेश्या ने अपनी जूती से पानी भर कर उस कुत्ते को पिला दिया .और उसके इस काम के लिए अल्लाह ने उस वेश्या के सभी गुनाह माफ़ कर दिए ”

    عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّ امْرَأَةً بَغِيًّا رَأَتْ كَلْبًا فِي يَوْمٍ حَارٍّ يُطِيفُ بِبِئْرٍ قَدْ أَدْلَعَ لِسَانَهُ مِنْ الْعَطَشِ فَنَزَعَتْ لَهُ بِمُوقِهَا فَغُفِرَ لَهَا

    قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بَيْنَمَا كَلْبٌ يُطِيفُ بِرَكِيَّةٍ قَدْ كَادَ يَقْتُلُهُ الْعَطَشُ إِذْ رَأَتْهُ بَغِيٌّ مِنْ بَغَايَا بَنِي إِسْرَائِيلَ فَنَزَعَتْ مُوقَهَا فَاسْتَقَتْ لَهُ بِهِ فَسَقَتْهُ إِيَّاهُ فَغُفِرَ لَهَا بِهِ

    सही मुस्लिम -किताब 26 हदीस 5578
    ( 2245 صحيح مسلم كتاب السلام باب فضل سقي البهائم المحترمة وإطعامها )

    2–कुत्ता मार हदीसें
    1.”अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा ,कि रसूल का आदेश है , कि सभी कुत्तों को मार दिया करो ” बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 540

    2-“अब्दुल्लाह बिन मुगाफ्फल ने कहा कि हमें रसूल ने आदेश दिया कि मदीना में और उसके आसपास के गाँव में जितने भी कुत्ते मिलें उनको मार डालो ”
    अबू दाऊद – किताब 10 हदीस 3814
    3-.” इब्न मुगफ्फल ने कहा कि रसूल का आदेश है ,कि तुम्हें जहाँ भी कुत्ते दिखाई दें , उनको फ़ौरन मार डाला करो ” सही मुस्लिम -किताब 2 हदीस 551
    4-.”अबू जुबैर को अब्दुल्लाह ने बताया कि जब रसूल में हम लोगों को कुत्ते मारने के लिए भेजा , तो हमने देखा कि रेगितान में एक बद्दू औरत ने एक कुत्ते का पिल्ला पाला हुआ जो उस औरत के पास ही खेल रहा था . हमने वह पिल्ला औरत से छीन कर वहीँ पर पटक कर मार दिया ” सही मुस्लिम -किताब 10 हदीस 3813

    3-कुत्ताशत्रु होने का कारण
    जो मुहम्मद साहब एक वेश्या द्वारा प्यासे कुत्ते को पानी पिलाने पर की गयी दया के कारण उसके सभी गुनाह माफ़ होने की हदीस कह चुके थे , वही मुहम्मद कुत्तों के प्रति इतने निर्दयी क्यों बन गए कि उन्होंने मुसलमानों को सभी कुत्तों को मारने का आदेश दे दिया , इस रहस्य का भेद कुरान की इस आयत में छुपा हुआ है , जो इस प्रकार है ,
    “वे पूछते हैं कि उनके लिए वैध क्या है , तो कह दो ,कि जानवरों को तुमने प्रशिक्षित किया है , वे शिकार को पकडे रहें ,और तुम उसे खा जाओ , अल्लाह जल्द हिसाब करने वाला है ”
    { يَسْأَلُونَكَ مَاذَآ أُحِلَّ لَهُمْ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ ٱلطَّيِّبَاتُ وَمَا عَلَّمْتُمْ مِّنَ ٱلْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ ٱللَّهُ فَكُلُواْ مِمَّآ أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَٱذْكُرُواْ ٱسْمَ ٱللَّهِ عَلَيْهِ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلْحِسَابِ } ”
    सूरा -मायदा 5:4
    कुरान की इसी आयत की व्याख्या और उसके उतरने का कारण ( Reasons for the descent) समझाते हुए ” अली इब्न अहमद अल वाहिदी “علي ابن احمد الواحدي ” (d. 468/1075), अपनी किताब ” असबाबे नुजूल- أسباب نزول” में लिखा है ,कि अल हकीम अब्दुल्लाह ने कहा है कि इस आयत के बाद कुरान की नयी आयतें अचानक बंद हो गयी थीं ,जब अबू रफ़ी ने रसूल से पूछा कि कुरान की नयी आयतें आना क्यों बंद हो गयी , तो रसूल ने कहा जिब्रइल ने मुझसे मिलने का वादा किया था . वह कुरान की आयतें देने वाला था . परन्तु उसने कहा फ़रिश्ते कुत्तों से इतना डरते है कि अगर किसी के घर में कुत्ते की तस्वीर भी हो तो फ़रिश्ते उस घर में नहीं घुसते , इसी लिए मैं दो बार आपके घर के दरवाजे से ही लौट गया .अबू रफ़ी ने कहा कि रसूल ने कहा जिब्रईल की यह बात सुनते ही मैंने अपने घर की ठीक से तलाशी ली , तो देखा कि एक अँधेरे कोने में छोटा सा कुत्ते का पिल्ला सो रहा था . और मैंने तुरंत उस पिल्ले को मार डाला .इसके बाद मैंने शहर के सभी कुत्तों को मारने का आदेश दे दिया . और सभी कुत्ते मारे गए तो अल्लाह का भेजा हुआ फ़रिश्ता जिब्रईल निडर होकर कुरान की आयतें भेजने लगा .

    http://www.altafsir.com/AsbabAlnuzol.asp?SoraName=5&Ayah=4&search=yes&img=A

    4-कुत्तामार पुलिस
    सब लोग जानते हैं कि मुहम्मद साहब का जन्म सऊदी अरब के मक्का में हुआ था . और आजकल सऊदी अरब में इस्लामी बादशाही (Islamic Monarchy ) चल रही है , लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि सऊदी अरब में धार्मिक पुलिस (Religious Police ) भी है .जिसे “मुतवईअह ” mutawwiyyah(مطوعية‎ )कहा जाता है , और इसका बहुवचन “मुतवईन ” mutaween (Arabic: المطوعين، “होता है .और सऊदी अरब की इस धार्मिक पुलिस का काम कुत्ते मारना भी है .और सऊदी अरब के बादशाह ने पलिस को एक अध्यादेश जारी कर रखा है ,कि लाल समुद्र की सीमा से आगे मक्का मदीना सहित पूरे अरब में जहाँ भी कुत्ते मिलें उनको पटक पटक कर वहीँ मार दिया जाए .
    http://www.ynetnews.com/articles/0,7340,L-3301505,00.html

    मुसलमान कुत्तों से इतनी नफ़रत क्यों करते है , यह इस विडियो में दिया गया है , देखिये विडिओ
    Why muslims hate dogs.

    http://www.youtube.com/watch?v=Bu-c3kIE_u8

    5-गीता में कुत्तों का उल्लेख
    एक तरफ भगवान कृष्ण का गीता में मनुष्य सहित प्राणीमात्र समान दृष्टि से देखने का उपदेश देता है , जैसा इस श्लोक में कहा है ,तो दूसरी तरफ मुहम्मद का राक्षसी आदेश है , जिसके कारण हजारों कुत्ते मारे जाते, जबकि अब न तो मुहम्मद जिन्दा हैं , और न फ़रिश्ता कुरान की आयतें लेकर आने वाला है ,

    विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
    शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥5:18

    जो ज्ञानी है ,यकसां नजर उसको आय ,वो हाथी हो कुत्ता हो या कोई गाय ,
    या हो ब्राहमण आलिमो बुर्दबार ,कि चांडाल ,नापाक मुरदारखार .

    6–इस्लामी पाखंड ,
    हदीसों में कितना पाखंड और दोगलापन भरा हुआ है , यह इस बात से सिद्ध होता है , जहाँ जानवरों ( कुत्तों ) पर दया करने सम्बंधित एक ही हदीस मिलती तो दूसरी तरफ कुत्तों को मारने का आदेश देने वाली हदीस की सबी किताबों से लेकर कुल 98 हदीसें मौजूद है , जिनका विवरण इस प्रकार है , बुखारी -79 , मुस्लिम 11, दाऊद 2 और मुवत्ता 6.इन तथ्यों से प्रमाणित होता है , जिस तरह इस्लाम में जीवदया की बातें केवल पाखंड और धोखा है , उसी तरह शांति और भाईचारे की बातें झूठ और पाखंड के सिवा कुछ नहीं हैं ,
    इसलिए मुसलमानों और उनके इस्लाम पर विश्वास करना मुर्खता होगी .

  153. रसूल का घरेलू व्यभिचार !
    विश्व में हमारे वैदिक संस्कृति और परम्परा को महान माना जाता है .क्योंकि इस में स्त्रियों को देवी की तरह सम्मान दिया जाता है .यहाँ तक मौसी , बुआ चचेरी बहिन और पुत्र वधु पर सपने में भी बुरी दृष्टि रखने को महापाप और अपराध माना गया है . लेकिन इन्हीं कारणों से कोई भी समझदार व्यक्ति इसलाम को धर्म कभी नहीं मानेगा , क्योंकि मुहम्मद साहब अपनी वासना पूर्ति के लिए कुरान का सहारा लेकर ऎसी ही स्त्रियों से सहवास करने को वैध बना देते थे , जिसका पालन मुसलमान आज भी कर रहे हैं .इस विषय को स्पष्ट करने के लिये कुरान की उन आयतों , हदीसों और उनकी ऐतिहासिक प्रष्ट भूमि को देखना होगा , कि मुहम्मद साहब ने अपनी सगी मौसी , चचेरी बहिन और अपने दत्तक पुत्र की पत्नी से सहवास कैसे किया था . और इस पाप को कुरान की आयत बना कर कैसे जायज बना दिया .

    इस्लामी परिभाषा में अपने शहर को छोड़ कर पलायन करने को हिजरत (Migration ) कहा जाता है . लगभग सन 622 में मुहम्मद साहब को मक्का छोड़ कर मदीना जाना पडा था .उनके साथ कुछ पुरुष और महिलायें भी थी . साथ में उनकी प्रिय पत्नी आयशा भी थी . इसी घटना की प्रष्ट भूमि में कुरआन की सूरा अहजाब की वह आयतें दीगयी हैं जिनमे मौसी, चचेरी बहिन , और पुत्रवधु से शादी करना या उनसे सम्भोग करने को जायज ठहरा दिया गया है .ऐसी तीन औरतों के बारे में इस लेख में जानकारी दी जा रही है , जिन से मुहम्मद साहब ने कुरान की आड़ में अपनी हवस पूरी की थी .

    1–मौसी के साथ कुकर्म
    मुहम्मद साहब की हवस की शिकार होने वाली पहली औरत का नाम ” खौला बिन्त हकीम अल सलमिया – خولة بنت حكيم السلمية ” था . और उसके पति का नाम “उसमान बिन मजऊम – عثمان بن مظعون‎ ” था . खौला मुहम्मद साहब की माँ की बहिन यानि उनकी सगी मौसी ( maternal aunt ) थी . इसको मुहम्मद साहब ने अपना सहाबी बना दिया था . मदीना की हिजरत में मुहम्मद आयशा के साथ खौला को भी ले गए थे .यह घटना उसी समय की है इस औरत ने अय्याशी के लिए खुद को मुहम्मद के हवाले कर दिया था .यह बात मुसनद अहमद में इस प्रकार दी गयी है .
    “खौला बिन्त हकीम ने रसूल से पूछा कि जिस औरत को सपने में ही स्खलन होने की बीमारी हो , तो वह औरत क्या करे , रसूल ने कहा उसे मेरे पास लेटना चाहिए ”
    “Khaula Bint Hakim al-Salmiya,asked the prophet about the woman having a wet dream, he said she should lay with me ”

    محمد بن جعفر قال حدثنا شعبة وحجاج قال حدثني شعبة قال سمعت عطاء الخراساني يحدث عن‫حدثنا “””‬ ‫سعيد بن المسيب أن خولة بنت حكيم السلمية وهي إحدى خال ت النبي صلى ال عليه وسلم سألت النبي صلى ال‬ ‫عليه وسلم عن المرأة تحتلم فقال رسول ال صلى ال عليه وسلم لتغتسل‬Translation:26768 –

    Musnad Ahmad (‫مسند أدحمد‬ )hadith-26768

    तब खौला मुहम्मद साहब के पास सो गयी , और मुहम्मद साहब ने उसके साथ सम्भोग किया .

    2-आयशा ने खौला को धिक्कारा
    जब आयशा को पता चला कि रसूल चुपचाप खौला के साथ सम्भोग कर रहे हैं तो उसने खौला को धिक्कारा और उसकी बेशर्मी के लिए फटकारा यह बात इस हदीस में दी गयी है ,
    “हिशाम के पिता ने कहा कि खौला एक ऎसी औरत थी जिसने सम्भोग के लिए खुद को रसूल के सामने प्रस्तुत कर दिया था .इसलिए आयशा ने उस से पूछा ,क्या तुझे एक पराये मर्द के सामने खुद को पेश करने में शर्म नही आयी ? तब रसूल ने कुरान की सूरा अहजाब 33:50 की यह आयत सुना दी , जिसमे कहा था ” हे नबी तुम सम्भोग के लिए अपनी पत्नियों की बारी ( Turn ) को टाल सकते हो .इस पर आयशा बोली लगता है तुम्हारा अल्लाह तुम्हें और अधिक मजे करने की इजाजत दे रहा है .”( I see, but, that your Lord hurries in pleasing you)
    “حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ سَلاَمٍ، حَدَّثَنَا ابْنُ فُضَيْلٍ، حَدَّثَنَا هِشَامٌ، عَنْ أَبِيهِ، قَالَ كَانَتْ خَوْلَةُ بِنْتُ حَكِيمٍ مِنَ اللاَّئِي وَهَبْنَ أَنْفُسَهُنَّ لِلنَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم فَقَالَتْ عَائِشَةُ أَمَا تَسْتَحِي الْمَرْأَةُ أَنْ تَهَبَ نَفْسَهَا لِلرَّجُلِ فَلَمَّا نَزَلَتْ ‏{‏تُرْجِئُ مَنْ تَشَاءُ مِنْهُنَّ‏}‏ قُلْتُ يَا رَسُولَ اللَّهِ مَا أَرَى رَبَّكَ إِلاَّ يُسَارِعُ فِي هَوَاكَ‏.‏ رَوَاهُ أَبُو سَعِيدٍ الْمُؤَدِّبُ وَمُحَمَّدُ بْنُ بِشْرٍ وَعَبْدَةُ عَنْ هِشَامٍ عَنْ أَبِيهِ عَنْ عَائِشَةَ يَزِيدُ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ‏.‏

    बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 48

    3-आयशा को ईर्ष्या हुई

    कोई भी महिला अपने पति की दूसरी महिला से अय्याशी को सहन नहीं करेगी . आयशा ने रसूल से कहा कि मुझे इस औरत से ईर्ष्या हो रही है . यह बात इस हदीस में इस प्रकार दी गयी है
    “आयशा ने कहा कि मैं रसूल से कहा मुझे उस औरत से जलन हो रही है जिसने सम्भोग के लिए खुद को तुम्हारे हवाले कर दिया . क्या एसा करना गुनाह नहीं है . तब रसूल ने सूरा अहजाब की 33:50 आयत सुना कर कहा इसमे कोई पाप नहीं है ,क्योंकि यह अल्लाह का आदेश है . तब आयशा ने कहा लगता है , तुम्हारे अल्लाह को तुम्हें खुश करने की बड़ी जल्दी है “(It seems to me that your Lord hastens to satisfy your desire. )

    सही मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3453

    4-चचेरी बहिन से सहवास
    मुहम्मद साहब के चाचा अबू तालिब की बड़ी लड़की का नाम “उम्मे हानी बिन्त अबू तालिब – أُمِّ هَانِئٍ بِنْتِ أَبِي طَالِبٍ ” था .जिसे लोग “फकीतः और ” हिन्दा ” भी कहते थे .यह सन 630 ईसवी यानि 8 हिजरी की बात है . जब मुहम्मद साहब तायफ़ की लड़ाई में हार कर साथियों के साथ जान बचाने के लिए काबा में छुपे थे .लकिन मुहम्मद साहब चुपचाप सबकी नजरें चुरा कर उम्मे हानी के घर में घुस गए ,लोगों ने उनको काबा में बहुत खोजा .और आखिर वह उम्मे हानी के घर में पकडे गए .इस बात को छुपाने के लिए मुहम्मद साहब ने एक कहानी गढ़ दी और लोगों से कहा कि मैं यरुशलेम और जन्नत की सैर करने गया था .मुझे अल्लाह ने बुलवाया था .उस समय उनकी पहली पत्नी खदीजा की मौत हो चुकी थी वास्तव में .मुहम्मद साहब उम्मे हानी के साथ व्यभिचार करने गए थे .उन्होंने कुरान की सुरा अहजाब की आयत 33:50 सुना कर सहवास के लिए पटा लिया था .यह बात हदीस की किताब तिरमिजी में मौजूद है . जिसे प्रमाणिक माना जाता है . पूरी हदीस इस प्रकार है ,

    “उम्मे हानी ने बताया उस रात रसूल ने मुझ से अपने साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा , लेकिन मैं इसके लिये उन से माफी मागी . तब उन्होंने कहा कि अभी अभी अल्लाह की तरफ से मुझे एक आदेश मिला है “.हे नबी हमने तुम्हारे लिए वह पत्नियां वैध कर दी हैं ,जिनके मेहर तुमने दे दिये .और लौंडियाँ जो युद्ध में प्राप्त हो ,और चाचा की बेटीयाँ , फ़ूफ़ियों की बेटियाँ ,मामू की बेटियाँ,खालाओं की बेटियाँ और जिस औरत ने तुम्हारे साथ हिजरत की है ,और वह ईमान वाली औरत जो खुद को तुम्हारे लिए समर्पित हो जाये ” यह सुन कर मैं राजी हो गयी और मुसलमान बन गयी ”

    ” عَنْ أُمِّ هَانِئٍ بِنْتِ أَبِي طَالِبٍ، قَالَتْ خَطَبَنِي رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فَاعْتَذَرْتُ إِلَيْهِ فَعَذَرَنِي ثُمَّ أَنْزَلَ اللَّهُ تَعَالَى ‏:‏ ‏(‏إنَّا أَحْلَلْنَا لَكَ أَزْوَاجَكَ اللاَّتِي آتَيْتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ مِمَّا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَيْكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّاتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَالاَتِكَ اللاَّتِي هَاجَرْنَ مَعَكَ وَامْرَأَةً مُؤْمِنَةً إِنْ وَهَبَتْ نَفْسَهَا لِلنَّبِيِّ ‏)‏ الآيَةَ قَالَتْ فَلَمْ أَكُنْ أَحِلُّ لَهُ لأَنِّي لَمْ أُهَاجِرْ كُنْتُ مِنَ الطُّلَقَاءِ ‏.‏ قَالَ أَبُو عِيسَى لاَ نَعْرِفُهُ إِلاَّ مِنْ هَذَا الْوَجْهِ مِنْ حَدِيثِ السُّدِّيِّ ‏.‏ “-هَذَا حَدِيثٌ حَسَنٌ صَحِيحٌ –

    तिरमिजी -जिल्द 1किताब 44 हदीस 3214 पे.522

  154. 5-पुत्रवधु से सहवास

    मुहम्मद साहब के समय अरब में दासप्रथा प्रचलित थी .लोग युद्ध में पुरुषों , औरतों , और बच्चों को पकड़ लेते थे .और उनको बेच देते थे .ऐसा ही एक लड़का मुहम्मद साहब ने खरीदा था . जिसका नाम ” जैद बिन हारिस – زيد بن حارثة‎ ” था .(c. 581-629 CE) मुहम्मद साहब ने उसे आजाद करके अपना दत्तक पुत्र बना लिया था अरबी में . दत्तक पुत्र (adopt son ) को ” मुतबन्ना ” कहा जाता है . यह एक मात्र व्यक्ति है जिसका नाम कुरान सूरा अह्जाब 33:37 में मौजूद है .इसी लिए लोग जैद को ” जैद मौला “या ” जैद बिन मुहम्मद भी कहते थे .यह बात इस हदीस से साबित होती है ,

    “”حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ، حَدَّثَنَا يَعْقُوبُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ، عَنْ مُوسَى بْنِ عُقْبَةَ، عَنْ سَالِمِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ، عَنْ أَبِيهِ، قَالَ مَا كُنَّا نَدْعُو زَيْدَ بْنَ حَارِثَةَ إِلاَّ زَيْدَ بْنَ مُحَمَّدٍ حَتَّى نَزَلَتْ ‏:‏ ‏(‏ ادعُوهُمْ لآبَائِهِمْ هُوَ أَقْسَطُ عِنْدَ اللَّهِ ‏)‏ ‏.‏ قَالَ هَذَا حَدِيثٌ صَحِيحٌ ‏.‏ ”

    तिरमिजी -जिल्द 1 किताब 46 हदीस 3814

    कुछ समय के बाद् जैद की शादी हो गयी उसकी पत्नी का नाम “जैनब बिन्त जहश – زينب بنت جحش‎ ” था वह काफी सुन्दर और गोरी थी . इसलिये मुहम्मद साहब की नजर खराब हो गयी .उन्होंने घोषित कर दिया कि आज से मेरे दत्तक पुत्र को मेरे नाम से नहीं उसके असली बाप के नाम से पुकारा जाय .और इसकी पुष्टि के लिये कुरान की सूरा 33:5 भी ठोक दी .यह बात इस हदीस से सबित होती है ,

    6-रसूल की नीयत में पाप

    जैनब को हासिल करने के लिए मुहम्मद साहब ने फिर कुरान का दुरुपयोग किया .और लोगों से जैद को मुहम्मद का बेटा कहने से मना कर दिया , ताकि लोग जैनब को उनके लडके की पत्नी नहीं मानें .
    ” जैनब कुरैश कबीले की सब से सुंदर लड़की थी .और जब अल्लाह ने अपनी किताब में जैद के बार में सूरा 33 की आयत 5 नाजिल कर दी , जिसमे कहा था कि आज से तुम लोग जैद को उसके असली बाप के नाम से पुकारा करो .,क्योंकि अल्लाह की नजर में यह बात तर्कसंगत प्रतीत लगती है .और यदि तुम्हें किसी के बाप का नाम नहीं पता हो ,तो उस व्यक्ति को भाई कह कर पुकारा करो ,

    मलिक मुवत्ता -किताब 30 हदीस 212

    7-कुरान की सूरा 33:5 की व्याख्या

    कुरान की सूरा अहजाब की आयत 5 के अनुसार दत्तक पुत्र जैद को असली पुत्र का दर्जा नहीं दिया गया , इस आयत की व्याख्या यानी तफ़सीर “जलालुद्दीन सुयूती – جلال الدين السيوطي‎ ” ने की है . इनका काल c. 1445–1505 AD है .इन्होने कुरान की जो तफ़सीर की है ,उसका नाम ” तफ़सीर जलालैन -تفسير الجلالين ” है .इसमे बताया गया है कि रसूल ने जैद को अपने पुत्र का दर्जा नहीं देने के लिए यह तर्क दिए थे ,1 .दत्तक पुत्र रखने की परंपरा अज्ञान काल है , अब इसकी कोई जरुरत नहीं है .2 . मैंने जिस समय जैद को खरीदा था ,उस समय अल्लाह ने मुझे रसूल नही बनाया था .3. लोग जैद को मेरा सगा बेटा मान लेते थे . जिस से मेरी बदनामी होती थी .4. जैद ने मुझ से जैनब को तलाक देने का वादा कर रखा है .

    { وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِيۤ أَنعَمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ أَمْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَٱتَّقِ ٱللَّهَ وَتُخْفِي فِي نَفْسِكَ مَا ٱللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى ٱلنَّاسَ وَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَاهُ فَلَمَّا قَضَىٰ زَيْدٌ مِّنْهَا وَطَراً زَوَّجْنَاكَهَا لِكَيْ لاَ يَكُونَ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌ فِيۤ أَزْوَاجِ أَدْعِيَآئِهِمْ إِذَا قَضَوْاْ مِنْهُنَّ وَطَراً وَكَانَ أَمْرُ ٱللَّهِ مَفْعُولاً }

    Tafsir al-Jalalayn – (تفسير الجلالين )Sura -ahzab 33:5

    इन्हीं कुतर्कों के आधार पर लगभग सन625 ईसवी में मुहम्मद साहब ने अपने दत्तक पुत्र जैद की पत्नी से शादी कर डाली .यानी जैनब के साथ व्यभिचार किया .
    देखिये विडिओ -Prophet Muhammad lusts after & steals his adopted son’s wife Pt. 2

    http://www.youtube.com/watch?v=wp3pMgmGuVo

    अपने निकट सम्बन्ध की स्त्रियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने को इनसेस्ट (incest ) कहा जाता है , विश्व के सभी धर्मों और हर देश के कानून में इसे पाप और अपराध माना गया है . लेकिन मुहम्मद साहब अपनी वासना पूर्ति के लिए तुरंत कुरान की आयत सूना देते थे . और इस निंदनीय काम को जायज बना देते थे .कुरान की इसी तालीम के कारण हर जगह व्यभिचार और बलात्कार हो रहे हैं .क्योंकि मुसलमान इन नीच कर्मों को गुनाह नहीं मानते ,बल्कि रसूल की सुन्नत मानते हैं .‬‬‬‬

    1. Prem Ji aapka nam to aapke maa baap ne bhut achha rakha h….pr afssos iss bat ka hai ki aap prem nhi nafrat k prachark h……yadi aap sachhe Hindu hain to Ram ke btaye raste pe chaliye, geeta k uddeshyo ko apna jeewan adhaar bnaye……aur besak, aap ye janenge ki manav prem hi ishwar prem h

      1. pirzada ji
        आपने प्रेम आर्य जी से सवाल किया है इस कारण जवाब वही देंगे इस बारे में आपको मैं कोई उत्तर नहीं दूंगा |

        1. OM.
          PIRZADA BHAI, NAMASTE..
          MAI ARYAON KO PYAAR KARTAA HOON AUR JO JAAN BUJH KAR ANJAAN BANTE HAI, JHUTI BAATEN FAILAATE HAI, UN KO TO KABHI NAHIN,,,
          MAI HINDU NAHIN HOON..RAM AUR KRISHNA KE BATAAE RAASTE ME HI CHALNE KI KOSISH KAR RAHAAHUN..JAISE RAAM NE RAVAN KE SANG AUR KRISHNA NE KANS KE SANG KIYAA MAI BHI AISE DUSHTON AUR DURAACHAARION KO TO KABHI BHI MAAF NAHIN KAR SAKTAA, AAP JO BHI KAHO..MAINE JO BAATEN UPAR POST KIYAA HAI, OH AAP KE ISLAMIK GRANTH SE HI PRAMAAN HAI, FIR YEH AAP KI AROP NIRARTHAK HAI…
          AB BHI SAMAYA HAI, LAUT JAAO VED KI RAAHON PAR…YAHI HAI MUKTI KE DWAAR…QURAAN AUR ANYA KOI KITAAB SE AAP KI MUKTI SAMBHAV NAHIN HAI…
          DHANYAWAAD…

      2. OM.
        PIRZADA BHAI, NAMASTE..
        MAI ARYAON KO PYAAR KARTAA HOON AUR JO JAAN BUJH KAR ANJAAN BANTE HAI, JHUTI BAATEN FAILAATE HAI, UN KO TO KABHI NAHIN,,,
        MAI HINDU NAHIN HOON..RAM AUR KRISHNA KE BATAAE RAASTE ME HI CHALNE KI KOSISH KAR RAHAAHUN..JAISE RAAM NE RAVAN KE SANG AUR KRISHNA NE KANS KE SANG KIYAA MAI BHI AUSE TUSHTON AUR DURAACHAARION KO MAAF NAHIN KAR SAKTAA…
        MAINE JO BAATEN UPAR POST KIYAA HAI, OH AAP KE ISLAMIK GRANTH SE HI PRAMAAN HAI, FIR YEH AAP KI AROP NIRARTHAK HAI…
        AB BHI SAMAYA HAI, LAUT JAAO VED KI RAAHON PAR…YAHI HAI MUKTI KE DWAAR…QURAAN AUR ANYA KOI KITAAB SE AAP KI MUKTI SAMBHAV NAHIN HAI…
        DHANYAWAAD…

  155. नाफीस बंधुवर, ज़रा ध्यान देना तो यह सब मौज मस्ती और ऐयाशी है या कोई महान मेहनत वाला कर्म ?!!!!!
    मरने के वाद भी जन्नत में असंख्य हूरें…जवान लड़के किस लिए ?!!! खेती किसानी करने के लिए ?!! सराब तो यहाँ हराम बनादिया लेकिन जन्नत में खुला क्यूँ ?!!! फिर भी चिल्लाते नहीं थकते कुरआन और हदीसें अच्छे कर्म सिखाते…कर्म फल और विज्ञान की बातें भरी पड़ी है …यही है विज्ञान ?!!
    फिर भी निवेदन है लौटो वेद की और…
    मानव की जनम लेकर जनम सफल करो…मोक्ष प्राप्त करो …ओउम…

    1. Mr prem….Ravan v bht bda gyani tha, mgr uske jhute ahankar ne use khin kya na chodda….isley gyan ka istemal jag kalyan m kren…yehi geeta ka v uddesya h

      1. OM..
        PIRZADA BHAI, NAMASTE…
        ISI LIYE MAINE BATAAYAA KI RAVAN KE RAAH PAR MAT CHALO, AAO VED KI RAAH PAR….HAM APNI JO BHI JYAAN HAI, JAG KALYAAN ME HI KHARCH KAR RAHE HAIN…KOI SAQ?
        KAAS! AAP NE GEETA ACHCHHI TARAH PADHAA HOTAA TO AISI BAATEN KARTE NAHIN THE…KYAA KAREN, ISLAAMI GHURUUR JO AADE AATAA…!
        MERI EK NIVEDAN HAI, SABSE PAHALE TO AAP EK ACHCHHAA MANUSHYA BANO….DIMAAG KI KHATANAA MAT KARO…
        DHANYAVAAD..

  156. Is bakwas post ko aadah adhura post kr ke pagal banaya ja raha hai hahahaha or chutiye log iska majak bana rahe jb koi bhi banda apni wife se pyar karega to use talak q dega…or islam me jitne acche se wife ki care krte hai izaat krte hain uski parwah family bhi beti samajhte hai ghar ki kisi Islamic ghar me jakr dekhna bewakuf log….
    Or hindus ki ghar me jakr dekhna wife ka kya darza hota hai ek naukar, uper se dahej lena, bahu ki izaat to zara sa bhi nhi or husband se liye sex krne ki machine jakr rular areas me jakr dekho kya hota hai khud shram me dub kr marr jaoge islam ki barabri kr rahe ho baklol log……

    Wife ki islam me kya mukam hai tum jahilo ko pata hi kya hai ek baar pura hadiss padh kr dekho boka jaisa thodi thodi topic ko padh kr post kr diye or jahan se tmne post ki hai wo talaq ke masle pr hai ek bar islam me bibi ki ahmiyat dekho host ud jayegi tmlogo ki

    1. OM..
      SAD (SAD NAHIN, HAPPY RAHO) BHAI, NAMASTE..
      1-) इस्लाम के मुताबिक यदि 3 दिन/माह का बच्चा मर जाये तो उसको कयामत के दिन क्या मिलेगा.-जन्नत या जहन्नुम ? और किस आधार पर ??

      2-) मुसलमानों का दावा है कि कुरान अल्लाह की किताब है ,लेकिन कुरान में बच्चों की खतना करने का हुक्म नहीं है, फिर भी मुसलमान खतना क्यों कराते है ? क्या अल्लाह में इतनी भी शक्ति नहीं है कि मुसलमानों के खतना वाले बच्चे ही पैदा कर सके ?और कुरान के विरद्ध काम करने से मुसलमानों को काफ़िर क्यों नहीं माना जाए ?

      1. Prem Arya Tune Bhagwat gita Padhi nhi kya Jisme Shiv ling ke bare me ved me likha he Ki shiv Ka long Sadhu logo ne Kat diya tha Hum to sirf khtna karte he Aur Apne Majhab ki Ladki se puch jyada majha kisme ata he Wo Tujhe B bolegi khtna kar Kyounki Dalne ke bad bahut maja ata he Aise Teri b Biwi Tujhe bol Sakti he

        1. Altaf jhuth ke pair naheen hote

          yadi tum satya kahte ho to praman do kahan likha hia ved men

          naheen to mange mango

          kya islam men jhuth bolna hee sikhlaya jata hai

        2. OM
          ALTAF, ‘JAMADAR…?! YAA JAANVAR”
          NAMASTE JI..
          AAPNE YEH BADTAMEEJI KAHAAN SIKHAA?SAAYAD ISLAAMI SHIKSHAA KI DEN HO..!?
          AAP KAA VEDA YAA GEETA PADHNAA TO AISE HI HAI JAISE KABHI SUVAR NE AASHMAAN DEKHLI HO..!
          KHAIR CHHODO ISVISHAYA KO,
          KHATANAA KARNAA KURAAN ME KAHAAN LIKHAA HAI? NAHIN BATAAYAA JI..
          AUR JO AAPNE MAJHE KI BAAT KI, OH JAANVARON AUR AAP LOGON ME KOI ANTAR NAHIN AATAA..
          AAPNE KABHI APNI ABBAA AUR AMMAA SE PUCHHAA THAA KYAA MAJHAA KITNAA AATAA HAI BOLKE? SAAYAD ISI MAJHE KE LIYE HI MUHAMMED NE 26 SADIYAAN KIYA HOGAA AUR 6 SAAL KI BACHCHI KE SAATH BHI ISI MAJHE KE LIYE HI NIKAAH KIYAA HOGAA…NAHIN TO RISTAA AUR BHI BANAA SAKTAA THAA..
          (AARYAVAR, KSHEMAA CHAAHTAA HUN AISI BHAASHAA KE LIYE..DUSHT KO DUSHT KE HI BHAASHAA ME JAWAAF DENAA HOTAA HAI USKO ISI SHAILI SAMAJH ME AATAA HAI..)
          ALTAF BHAI, SATYA KO APNAAO AUR ASATYA KO TYAAGNAA BHI SIKHO..
          DUNIYAA KO BEVKUF BANAANAA CHHOD DO..
          TUMHAARI JAAHILIYAT KI JAMAANAA NAHIN RAHAA AB…
          JAMAANE KI HISAAB SE APNE AAP KO DHAALO…NAHIN TO TUT JAAOGE..

      2. Uss bacche ko jannat milegi…uss bacche ki maut darasal bacche ka imtehaan nhi tha balki uske maa baap ka tha .. Allah dekhna chahta h k agar me inke bacche ko apne pass bul lu to kya ye phir bhi meri ibadat karenge…aur akhir sb ko ek din marna hi h …Allah ne Quran me kha h k hum tumko aulad aur maal de kar test krenge ..tumko bimari de kar test krenge gareebi de kar test krenge ….Allah ne sb phele bata diya phir test kiya h iss badhkar aur kya rehmat ho sakti h …ab jo insan Allah par yakeen rakhta h aur janta h k test h to vo sabr karega aur jiska yakeen nhi h vo chillaega shor karega ho sakta h gam me marr hi jaye par vo apni aulaad zinda nhi kr sakta iss kiye kha gya h Quran padho vaha tumko pata chalega k ku duniya tumhare hisab se ku nhi chalti h …jis trha exam k questions hamari marzi k nhi aate h usi trha duniya me conditions hamari marzi se nhi aati h …Agar tum log sach me us banane wale k khilaaf ho to sans lena band kardo ku k ye bhi usi ki hi dein h

        1. वेदों की सच्चाई
          वेद यह ऋषि मुनीयों द्वारा अपनी इच्छा पुर्ती के लिए देवताओं को कि गयी प्रार्थना है। और कुछ नही। जैसे कि-

          1. हे वायुदेव, तु सुंदर है। हमने आपके लिए सोमरस और अन्य मसालेदार पदार्थ तैयार किये है। आप आये, और सोमरसपान (मद्य) ग्रहन करें। हमारी प्रार्थना सुने। (ऋग्वेद 1:1.2.1)

          2. हे इंद्रदेव हमारे संरक्षणके लिए आप अपनी सम्पत्ती ले आए। आपकी संपत्ती से ही हमारा सुख हमे मिले। हमे शाश्वत सुख का लाभ मिले। शत्रू का नाश करने के लिए हमे मदत कर। (ऋग्वेद 1:1.8.1)

          3. यज्ञ के समय इंद्र और अग्नी कि प्रार्थना करने ना भुले। गायत्री मंत्र के रूप मे उनका स्तवन करें।(ऋग्वेद 1:21.2)

          4. हे अग्ने तुझसे निर्माण हुए और देवपत्नी इन्हे तू लेकर आ और सोमरसपान कर।(ऋग्वेद 1:22.9)

          5. हम ऐसी प्रार्थना करते है कि सभी देवस्त्रियोंने सभी सामर्थ्य से व सभी सुखों के साथ हमारे पास आये और सोमरसपान करें।(ऋग्वेद 1:22.11)

          6. इंद्र, वरूण, अग्नी इनकी स्त्रियोंसे मै प्रार्थना करता हूॅ कि वह मेरे पास आए और सोमरस ग्रहण करें।

          7. हे वरूण तेरा क्रोध तु शान्त कर ऐसी हम प्रार्थना करते है। हे असुर तु तेज है। हमे पाप मुक्त कर।(ऋग्वेद 1:24.14)

          8. स्त्रियोंने मंथन करके सोमरस बनाया है। हे इंद्र हम प्रार्थना करते है कि आप आकर सोमरस ग्रहण करें।(ऋग्वेद 1:28.3)

          9. तुझे कुछ भी अर्पन न करने वाले तेरे शत्रुओं का तु नाश कर और अपने भक्तों का भला कर। हे इंद्र, हमे सर्वोत्कृष्ठ गाय और घोडे दे, और इस दुनिया मे हमे प्रख्यात कर।(ऋग्वेद 1:29.4)

          10. हे अग्ने, राक्षसों से मेरी रक्षा कर। धोकेबाज शत्रुओं से मेरी रक्षा कर। हमे मारने कि इच्छा रखने वालों हमारा मत्सर करने वालों से हमारी रक्षा कर।(ऋग्वेद 1:36.15)

          11. हे इंद्र, तु शुर है, आ, सोमरसपान कर और हमे संपत्ती दे। जो तुझे कुछ भी अर्पन नही करता उनकी संपत्ती हरण कर, और वह संपत्ती हमें दे।(ऋग्वेद 1:81.8-9)

          12. हे इंद्र, उत्तम नशा आने वाले और अमरत्व देने वाले सोमरस का सेवन कर।(1:84.4)

          13. हे आदित्या, हमे आशिर्वाद देने आ। हमारी युध्द मे विजय प्राप्त कर। तु सम्पन्न है। तु उदार है। तु हमे संकट से बाहर निकाल।(1:106.22)

          14. हे मरूत, तेरे मरूदगन तेरा स्तवन गा रहे है। आ, दर्भासनपर बैठ और सोमरसपान के लिए तैयार हो।(7:57.1.2)

          15. हे मित्र वरूण, हमने तेरी यज्ञ द्वारा पुजा कि है। पुजा स्विकार कर और हमारे सारे संकट दुर कर।(ऋ 7:60.12)

          ऋग्वेद के असंख्य ऋचाओं मे से यह कुछ ऋचायें है। लेकिन इन ऋचाओं के आधार पर पुरे वेदों का स्वरूप केसा होगा इसका पता चलता है। ऋग्वेद मे अश्लीलता भी है। जिन्हे पढने कि उत्सुकता है वह सुर्य और पूषन का संवाद(ऋ. मंडल 10:85.37) या इंद्र इंद्राणी संवाद(ऋ. 10:86.6) देखें। यजुर्वेद के अश्वमेघ मे भी अश्लिलता मिलती है। अर्थर्वेद जादुटोणा, मंत्रतंत्र औषधोपचार इनका संग्रह है।
          (ज्यादा जानकारी के लिए डाॅ बाबासाहब आंबेडकर लिखित RIDDLES IN HINDUISM बुक padiye

          Ved kuch nhi h bs insano ki prarthana ka tareeka h

          1. http://www.onlineved.com

            is link par jaaye aap jo mantra sukt adhyaay aur jis ved ki jaankaari di hai use parhe fir aaapko satya ki jaankaari ho jaayegi…… sahi kya hai aur aapne galat kya bola hai. waise ambedkar sahab koi ved ke jaankaar nahi . yah jaan lo mere bandhu… aao saty sanatan vedik dharam ki aor lauto. aur ved ki aor lauto. yah bhi jaankaari dena ambedkar sahab ne kis bhashykaar kaa ved parha tha????

          2. OM..KHAN BHAI, NAMASTE..
            बाबासाहब आंबेडकर KO HI APNAA PARVARDHIGAR/ ALLAH/NAVI SAB KUCHH MAANLO NA AUR JIS KITAAB KI AAP VISHWAASH NAHIN KARTE AUR SANSKRIT KI AAPKO KOI KNOWLEDGE NAHIN, USKI IS TAHARA GALAT TARIKE SE PRAYOG KARNAA HARAAM HAI,
            CHALO AAPKI ILM WAALE KITAAB “SAHIH MUSLIM” KI KUCHH HADITH PADHLO AUR GAUR KARO KAUN SI JAMEEN PE KHADAA HAI AAP KAA MAJHAB:
            Chapter 17: IT IS NOT PERMISSIBLE TO MARRY A WOMAN WHO IS DIVORCED BY THREE PRONOUNCEMENTS UNTIL SHE IS MARRIED TO
            ANOTHER MAN AND HE HAS A SEXUAL INTERCOURSE WITH HER, AND THEN
            HE ABANDONS HER AND SHE COMPLETES HER ‘IDDA
            Bk 8, Number 3354:
            ‘A’isha (Allah he pleased with her) reported: There came the wife of Rifa’a to Allah’s Apostle (may peace be upon him) and said: I was married to Rifa’a but he divorced me, making may
            divorce irrevocable. Afterwards I married Abd al−Rahman b. al−Zubair, but all he possesses is like the fringe of a garment (i. e. he is sexually weak). Thereupon Allah’s Messenger (may peace be upon him) smiled, and said: Do you wish to return to Rifa’a. (You) cannot (do it) until you have tasted his sweetness and he (‘Abd al−Rahman) has tasted your sweetness. Abu Bakr was at that time near him (the Holy Prophet) and Khalid (b. Sa’id) was at the door waiting for the permission to be granted to him to enter), He (Khalid) said; Abu Bakr, do you hear what she is saying loudly in the presence of Allah’s Messenger (may peace be upon him)?
            JO AADMI SAR SE PAAU TAK KACHARE ME DUBAA HO, AUR NANGAA HO, USNE DUSRON KO BADBU DAAR AUR BESARM KAHNAA MOORKHTAA NAHIN TO AUR KYAA?

        2. khaan sahab
          us bachhe ko kyu maut di allah ne ? yah batlana uske maa baap kaa gunaah kaa saza us bachhe ko mile yah kaisa allah kaa nyaay hai. bhai quran me kya achha hai yah to batlana. maaro kaato. ityaadi. aurat mard me bhi bhedbhav ki gayi hai ? fir allah kaise nyay wala ho gaya???

        3. MUHAMMAD SE PAHALE AAPKAA KURAAN AUR ALLAH KIDHAR THAA? US SAMAYA DUNIYAAKI DHARM KYAA THAA? DHARM/RELIGION AUR MAJHAB ME KYAA FARK HAI?
          THODAA APNI AKAL BHI ISTEMAAL KIYAAKARO..!
          OM..
          NAMASTE..

  157. Aise net pe maja nhi ata Himmat he to amne samne ki ladhayi ho jaye 7447869282 ye mera number he Kisi make Jane me himmat he to call Karo Mera Nam Altaf Jamadar he Maharashtra se hoon

    1. OM..
      ALTAF BHAI, NAMASTE..
      MAHARASHTRA SE MATLAB KYAA HAI AAPKAA?
      NAAM TO AAP KAA ARABI HAI!! ARAB KI NAKAL KARNE ME SHARAM NAHIN AATAA?

  158. SATYARTH PRAKASH EXPOSED सत्यार्थ प्रकाश का सच
    प्रश्न सं0 149 में लिखा है कि अगर स्त्री गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए और पुरुष दीर्घरोगी हो और स्त्री से न रहा जाए तो ऐसी स्थिति में दोनों किसी से नियोग कर पुत्रोत्पत्ति कर ले, परन्तु वेश्यागमन अथवा व्यभिचार कभी न करें। (4-149)
    लिखा है कि नियोग अपने वर्ण में अथवा उत्तम वर्ण और जाति में होना चाहिए। एक स्त्री 10 पुरुषों तक और एक पुरुष 10 स्त्रियों तक से नियोग कर सकता है। अगर कोई स्त्री अथवा पुरुष 10वें गर्भ से अधिक समागम करे तो कामी और निंदित होते हैं। (4-142) विवाहित पुरुष कुंवारी कन्या से और विवाहित स्त्री कुंवारे पुरुष से नियोग नहीं कर सकती।
    पुनर्विवाह और नियोग से संबंधित कुछ नियम, कानून, ‘शर्ते और सिद्धांत आपने पढ़े जिनका प्रतिपादन स्वामी दयानंद ने किया है और जिनको कथित लेखक ने वेद, मनुस्मृति आदि ग्रंथों से सत्य, प्रमाणित और न्यायोचित भी साबित किया है। व्यावहारिक पुष्टि हेतु कुछ ऐतिहासिक प्रमाण भी कथित लेखक ने प्रस्तुत किए हैं और साथ-साथ नियोग की खूबियां भी बयान की हैं। इस कुप्रथा को धर्मानुकूल और न्यायोचित साबित करने के लिए लेखक ने बौद्धिकता और तार्किकता का भी सहारा लिया है। कथित सुधारक ने आज के वातावरण में भी पुनर्विवाह को दोषपूर्ण और नियोग को तर्कसंगत और उचित ठहराया है। आइए उक्त धारणा का तथ्यपरक विश्लेषण करते हैं।

    ऊपर (4-134) में पुनर्विवाह के जो दोष स्वामी दयानंद ने गिनवाए हैं वे सभी हास्यास्पद, बचकाने और मूर्खतापूर्ण हैं। विद्वान लेखक ने जैसा लिखा है कि दूसरा विवाह करने से स्त्री का पतिव्रत धर्म और पुरुष का स्त्रीव्रत धर्म नष्ट हो जाता है परन्तु नियोग करने से दोनों का उक्त धर्म ‘ाुद्ध और सुरक्षित रहता है। क्या यह तर्क मूर्खतापूर्ण नहीं है ? आख़िर वह कैसा पतिव्रत धर्म है जो पुनर्विवाह करने से तो नष्ट और भ्रष्ट हो जाएगा और 10 गैर पुरुषों से यौन संबंध बनाने से सुरक्षित और निर्दोष रहेगा ?
    अगर किसी पुरुष की पत्नी जीवित है और किसी कारण पुरुष संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है तो इसका मतलब यह तो हरगिज़ नहीं है कि उस पुरुष में काम इच्छा ;ैमगनंस कमेपतम) नहीं है। अगर पुरुष के अन्दर काम इच्छा तो है मगर संतान उत्पन्न नहीं हो रही है और उसकी पत्नी संतान के लिए किसी अन्य पुरुष से नियोग करती है तो ऐसी स्थिति में पुरुष अपनी काम तृप्ति कहाँ और कैसे करेगा ? यहाँ यह भी विचारणीय है कि नियोग प्रथा में हर जगह पुत्रोत्पत्ति की बात कही गई है, जबकि जीव विज्ञान के अनुसार 50 प्रतिशत संभावना कन्या जन्म की होती है। कन्या उत्पन्न होने की स्थिति में नियोग के क्या नियम, कानून और ‘शर्ते होंगी, यह स्पष्ट नहीं किया गया है ?

    जैसा कि स्वामी जी ने कहा है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो भी पुरुष नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न कर सकता है। यहाँ यह तथ्य विचारणीय है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो इसके लिए स्त्री नहीं, पुरुष जिम्मेदार है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव जाति में लिंग का निर्धारण नर द्वारा होता है न कि मादा द्वारा।
    यह भी एक तथ्य है कि पुनर्विवाह के दोष और हानियाँ तथा नियोग के गुण और लाभ का उल्लेख केवल द्विज वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के लिए किया गया है। चैथे वर्ण ‘शूद्र को छोड़ दिया गया है। क्या ‘शुद्रों के लिए नियोग की अनुमति नहीं है ? क्या ‘शूद्रों के लिए नियोग की व्यवस्था दोषपूर्ण और पाप है ?

    1. नियोग एक शाश्त्रीय विधि है
      ये किसी पैगम्बर कि पैदाइश जैसी नहीं जो फूंक मारने से अपनी माँ के गर्भ से पैदा हो गया हो

  159. स्वर्ग की अप्सराएं और हूरें महाभारत मे—

    “वराप्सरः सहस्राणि शूरम आयॊधने हतम
    तवरमाणा हि धावन्ति मम भर्ता भवेद इति”
    अथार्त्: युद्ध स्थल में मारे गए शूरवीर के लिए हज़ारों सुन्दर अप्सराएं ये आशा लेकर बड़ी उतवाली के साथ दौड़ी जाती हैं की ये मेरा पति हो जाए…!!!
    [ महाभारत, शांतिपर्व, मंडल 12, अध्याय 98, श्लोक 46]
    अब समझ में आया ये हिन्दू इतने मार-काट क्यों करते हैं क्यों ये मासूम निर्दोष मुसलमान, ईसाई, जैन, बुद्ध, सिख को मारते हैं और ये हिन्दू इसीलिए “हिन्दू राष्ट्र” बनाना चाहते हैं.. ताकि ये अप्सराओं के संग भोग (SEX) करने का लुत्फ़ उठायें…!!!

    1. अप्सराओं के संग भोग (SEX) करने का लुत्फ़ उठायें…!!!
      ये तो इस्लाम में है

      वैदिक सभ्यता में ये नहीं
      विशुद्ध महाभारत पढ़ें

      इस्लाम में हरें को बारे में जानों नीचे दी लियी लिक से

      http://aryamantavya.in/jannat-ki-huren/

    2. OM..
      NAMASTE….JI..
      O..KHAAN SAAB, KYAA ANAAP SANAAP LIKHRAHE HO? SHARM KARO…AUR PAHALE KHUD KAA CHEHRAA AINE ME DEKHO..KYAA KABHI KURAAN AUR HADITH KI EK BHI PANNE PALAT KAR DEKHAA HAI? SAMAJH KAR PADHAA HAI? YAA POPAT KI TARAH PADHAA HAI? THODAA KUCHH AAP KI HADITH AUR KURAAN SE:-
      बलात्कार :जिहाद का हथियार
      जिहाद दुनिया का सबसे घृणित कार्य और सबसे निंदनीय विचार है .लेकिन इस्लाम में इसे परम पुण्य का काम बताया गया है .जिहाद इस्लाम का अनिवार्य अंग है .मुहम्मद जिहाद से दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाना चाहता था .मुहलामानों ने जिहाद के नाम पर देश के देश बर्बाद कर दिए .हमेशा जिहादियों के निशाने पर औरतें ही रही हैं .क्योंकि औरतें अल्लाह नी नजर में भोग की वस्तु हैं .और बलात्कार जिहाद का प्रमुख हथियार है .मुसलमानों ने औरतों से बलात्कार करके ही अपनी संख्या बढाई थी .मुहम्मद भी बलात्कारी था .मुसलमान यही परम्परा आज भी निभा रहे है .यह रसूल की सुन्नत है ,कुरान के अनुसार मुसलमानों को वही काम करना चाहिए जो मुहम्मद ने किये थे .कुरान में लिख है-

      “जो रसूल की रीति चली आ रही है और तुम उस रीति(सुन्नत )में कोई परवर्तन नहीं पाओगे “सूरा -अल फतह 48 :23

      “यह अल्लाह की रीति है यह तुम्हारे गुजर जाने के बाद भी चलती रहेगी .तुम इसमे कोई बदलाव नहीं पाओगे .सूरा -अहजाब 33 :62
      “तुम यह नहीं पाओगे कि कभी अल्लाह की रीति को बदल दिया हो ,या टाल दिया गया हो .सूरा -फातिर 33 :62

      यही कारण है कि मुसलमान अपनी दुष्टता नही छोड़ना चाहते .जिसे लोग पाप और अपराध मानते हैं ,मुसलमान उसे रसूल की सुन्नत औ अपना धर्म मानते है .और उनको हर तरह के कुकर्म करने पर शर्म की जगह गर्व होता है .बलात्कार भी एक ऐसा काम है .जो जिहादी करते है –

      1 -बलात्कार जिहादी का अधिकार है
      “उकावा ने कहा की रसूल ने कहा कि जिहाद में पकड़ी गई औरतों से बलात्कार करना जिहादिओं का अधिकार है .
      बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हदीस 282
      “रसूल ने कहा कि अगर मुसलमान किसी गैर मुस्लिम औरत के साथ बलात्कार करते हैं ,तो इसमे उनका कोई गुनाह नहीं है .यह तो अल्लाह ने उनको अधिकार दिया है ,औ बलात्कार के समय औरत को मार मी सकते हैं”
      बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 132
      बुखारी -जिल्द 1 किताब 52 हदीस 220

      2 -जिहाद में बलात्कार जरूरी है
      सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि सामूहिक बलात्कार करने से लोगों में इस्लाम की धाक बैठ जाती है .इसलिए जिहाद में बलात्कार करना बहुत जरूरी है .बुखारी जिल्द 6 किताब 60 हदीस 139

      3 -बलात्कार से इस्लाम मजबूत होता है
      “इब्ने औंन ने कहा कि,रसूल ने कहा कि किसी मुसलमान को परेशां करना गुनाह है ,और गैर मुस्लिमों को क़त्ल करना और उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इस्लाम को आगे बढ़ाना है.बुखारी -जिल्द 8 किताब 73 हदीस 70
      “रसूल ने कहा कि मैंने दहशत और बलात्कार से लोगों को डराया ,और इस्लाम को मजबूत किया .बुखारी -जिल्द 4 किताब 85 हदीस 220
      “रसूल ने कहा कि ,अगर काफ़िर इस्लाम कबूल नहीं करते ,तो उनको क़त्ल करो ,लूटो ,और उनकी औरतों से बलात्कार करो .और इस तरह इस्लाम को आगे बढ़ाओ और इस्लाम को मजबूत करो.बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 464

  160. 4 -माल के बदले बलात्कार

    “रसूल ने कहा कि जो भी माले गनीमत मिले ,उस पर तुम्हारा अधिकार होगा .चाहे वह खाने का सामान हो या कुछ और .अगर कुछ नहीं मिले तो दुश्मनों कीऔरतों से बलात्कार करो ,औए दुश्मन को परास्त करो .बुखारी -जिल्द 7 किताब 65 हदीस 286 .

    (नोट -इसी हदीस के अनुसार बंगलादेश के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने बलात्कार किया था )

    5 -बलात्कार का आदेश ‘

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने अपने लोगों (जिहादियों )से कहा ,जाओ मुशरिकों पर हमला करो .और उनकी जितनी औरतें मिलें पकड़ लो ,और उनसे बलात्कार करो .इस से मुशरिकों के हौसले पस्त हो जायेंगे .बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 432

    6 -माँ बेटी से एक साथ बलात्कार

    “आयशा ने कहा कि .रसूल अपने लोगों के साथ मिलकर पकड़ी गई औरतों से सामूहिक बलात्कार करते थे .और उन औरतीं के साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे .बुहारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 67

    “सैदुल खुदरी ने कहा कि रसूल ने 61 औरतों से बलात्कार किया था .जिसमे सभी शामिल थे .औरतों में कई ऎसी थीं जो माँ और बेटी थीं हमने माँ के सामने बेटी से औए बेटी के सामने माँ से बलात्कार किया .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3371 और बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 288

    7 -बलात्कार में जल्दी नहीं करो

    “अ ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,पकड़ी गयी औरतो से बलात्कार में जल्दी नहीं करो .और बलात्कार ने जितना लगे पूरा समय लगाओ ”

    बुखारी -जिल्द 2 किताब 23 हदीस 446 .

    अब जो लोग मुसलमानों और मुहम्मद को चरित्रवान और सज्जन बताने का दवा करते हैं ,वे एक बार फिर से विचार करे, इस्लाम में अच्छाई खोजना मल-मूत्र में सुगंध खोजने कि तरह है .आप एक बार मुस्लिम ब्लोगरो द्वारा इस्लाम और मुहम्मद के बारे में लिखी हुई झूठी बातों को पढ़िए फिर दिए तथ्यों पर विचार करके फैसला कीजिये

  161. नारा ए बलात्कार !अल्लाहु अकबर !!

    विश्व के जितने भी प्रमुख धर्म हैं , उनके धार्मिक ग्रंथों , में दिए गए आदेशों के अनुसार ,और उन धर्मों की मान्यताओं में दो ऐसी समानताएं पाई जाती हैं .जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि यह धर्म सच्चे हैं .पहली बात यह है कि यह धर्म अपने जिस भी महापुरुष , अवतार , या नबी को अपना आदर्श मानते हैं ,उसकेद्वारा किये गए सभी सभी अच्छे कामों का अनुसरण करते हैं . और दूसरी समानता यह है कि इन सभी धर्मों के अनुयायी किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ करते समय ईश्वर का नाम जरुर लेते हैं . या ईश्वर की जयकार करते हैं .
    और इन्हीं दो बातों के आधार पर ही कहा जा सकता है कि इस्लाम धर्म नहीं है . बल्कि यदि कोई इस्लाम को सच्चा धर्म कहता , या मानता है . तो उस से बड़ा मूर्ख कोई दूसरा नहीं होगा , क्योंकि मुसलमान चुन चुन कर मुहम्मद सभी दुर्गुणों का अनुसरण करते हैं . इसी तरह मुसलमान हर बुरा काम लेते समय अल्लाह का नाम लेते हैं .यह तो सब जानते हैं कि जानवरों के गलों पर छुरी फिराते समय मुसलमान अल्लाह का नाम लेते है . लोग यह भी जानते हैं कि जिहादी , क़त्ल करते समय , बम विस्फोट करते समय ,या मुसलमान लूट करते या चोरी करते समय भी अल्लाह और रसूल का नाम लेते है . लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि मुसलमान सार्वजनिक रूप से सामूहिक बलात्कार करते समय भी” अल्लाहु अकबर ” का नारा लगाते हैं .क्योंकि वह मुहम्मद को अपना आदर्श मानते हैं .चूंकि कुरान की सूरतें (अध्याय ) का संकलन घटनाक्रम (chronological Order ) के अनुसार नहीं किया गया है .इसलिए हदीसों से पता चलता है कि मुहम्मद साहब ने कौनसी आयत किस समय , किस परिथिति में , और किसको संबोधित कर के कही थी . और यह भी पता चलता है कि मुहम्मद साहब का असली उद्देश्य क्या था .
    इस लेख में प्रमाणों के साथ यही सिद्ध किया जा रहा है कि इस्लाम सच्चा धर्म तो छोडिये , धर्म कहने के योग्य भी नहीं है .इसलिए इस लेख को ध्यान से पढ़िए ,
    1-अल्लाह से प्रेम की शर्त
    मुहम्मद साहब की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह को कुछ भी करते थे वही काम अपने लोगों से करने को कहते थे . और उनका अनुसरण करने को ही अल्लाह से प्रेम का प्रमाण मान लिया जाता था , जैसा कि कुरान में लिखा है ,
    “यदि तुम अल्लाह से प्रेम करना चाहते हो तो ,मेरा अनुसरण करो .ऐसा करने से अल्लाह भी तुम से प्रेम करेगा , और तुम्हारे सभी गुनाह माफ़ कर देगा ”
    सूरा -आले इमरान 3 :3 1

    2-वासना पिशाच
    मुस्लिम विद्वान् अपने रसूल मुहम्मद को दूसरों के नबियों , अवतारों और महापुरुषों से बड़ा साबित करने में लगे रहते हैं , यहाँ तक सेक्स के मामले में भी मुसम्मद साहब को ” सुपर मेन ऑफ़ सेक्स-superman of Sex ” तक कह देते हैं . लेकिन यूरोप के विद्वान् मुहम्मद साहब की अदम्य और असीमित वासना के कारण उनको “सेक्स डेमोन\Sex Demon ” यानी “वासना पिशाच “कहते हैं . यह बात इन हदीसों से प्रमाणित होती है
    “अनस बिन मलिक ने बताया कि रसूल बारी बारी से अपनी औरतों के साथ लगातार सम्भोग करने में लगे रहते थे .सिर्फ नमाज के लिए घर से निकलते थे . उनको अल्लाह तीस या चालीस मर्दों के बराबर सम्भोग शक्ति प्रदान की थी”
    सही बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 6
    यही बात दूसरी हदीस में भी कही गयी है ,
    “अनस बिन मलिक ने कहा कि रसूल लगातार रात दिन अपनी औरतों के के साथ सम्भोग करते रहते थे . जब कटदा ने अनस से पूछा कि क्या रसूल में इतनी शक्ति है . तो अनस ने कहा कि रसूल में 30 मर्दों के बराबर सम्भोग शक्ति है ,और उनकी 9 नहीं 11 औरतें थीं .”

    حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ بَشَّارٍ، قَالَ حَدَّثَنَا مُعَاذُ بْنُ هِشَامٍ، قَالَ حَدَّثَنِي أَبِي، عَنْ قَتَادَةَ، قَالَ حَدَّثَنَا أَنَسُ بْنُ مَالِكٍ، قَالَ كَانَ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم يَدُورُ عَلَى نِسَائِهِ فِي السَّاعَةِ الْوَاحِدَةِ مِنَ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ، وَهُنَّ إِحْدَى عَشْرَةَ‏.‏ قَالَ قُلْتُ لأَنَسٍ أَوَكَانَ يُطِيقُهُ قَالَ كُنَّا نَتَحَدَّثُ أَنَّهُ أُعْطِيَ قُوَّةَ ثَلاَثِينَ‏.‏
    وَقَالَ سَعِيدٌ عَنْ قَتَادَةَ إِنَّ أَنَسًا حَدَّثَهُمْ تِسْعُ نِسْوَةٍ‏.‏

    Bukhari, Volume 1, Book 5, Number 268
    बुखारी की इस हदीस की व्याख्या करते हुए सुन्नी विद्वान् “इमाम इब्ने हंजर सकलानी ” ने अपनी किताब ” फतह अल बारी – فتح الباري‎) ” में बताया है कि जब रसूल जिन्दा थे तो रसूल में 4 0 जन्नती व्यक्तियों के बराबर सम्भोग शक्ति थी . और जन्नत के एक व्यक्ति की सम्भोग शक्ति दुनिया के एक हजार व्यक्तिओं के बराबर होती है , अर्थात रसूल में 40 हजार मर्दों के बराबर सम्भोग करने की शक्ति थी , इसी लिए वह हमेशा सम्भोग करने की इच्छा रखते थे . इस बात की पुष्टि इस्लाम के प्रचारक “शेख मुहम्मद मिसरी ” ने भी की है .देखिये विडिओ
    الرسول ينكح 6 نسوان بساعة واحدة

    http://www.youtube.com/watch?v=Vgir-rMRY2g
    यही कारण था कि मुहम्मद साहब के साथी भी मुहम्मद साहब की नक़ल करके रात दिन औरतों के साथ सम्भोग में लगे रहते थे . और स्वाभाविक है कि लगातार सहवास करने से मुहमद साहब और उनके साथियों की औरतें . शिथिल , थुलथुली हो गयी होंगी और उनके स्तन लटक गए होंगे .इस लिए मुहम्मद साहब अपने साथियों को ऐसी अरतों का लालच देते रहते थे , जिनके स्तन कठोर और उभरे हुए हों ,कुरान में यही लालच दिया गया है
    3-कठोर स्तन वाली स्त्रियाँ
    मुहम्मद साहब के दिल में जो बात होती थी , वह कुरान में जरुर शामिल कर देते थे . ताकि वह बात अल्लाह का वचन समझा जाये .मुहम्मद साहब शिथिल स्तनोंवाली अपनी औरतों से ऊब गए होंगे ,और उनको कठोर स्तन वाली औरतों की तलाश थी . इसलिए कुरान में यह आयत जोड़ दी . ताकि जिहादी लालच में आ जाएँ , कुरान में कहा है .
    “बेशक डर रखने वालों के लिए फायदा है ,बाग़ और अंगूर ,और नवयुवतियां समान आयु वाली “सूरा अन नबा 7 8 :3 1 से 3 3 तक
    नोट-इस आयत में अरबी में नव युवतियों के लिए अरबी में “कवायिबكَواعِبَ– “शब्द आया है . लेकिन मुल्लों नेइसका अर्थ “शानदार -splendid”कर दिया है .जबकि इस शब्द का असली अर्थ “गोल स्तन -This means round breasts ” होता है .तात्पर्य यह है कि ईमान वालों को अल्लाह ऐसी औरतें देगा जिनके स्तन गोल , उभरे और कठोर होंगे .और जिनकी आयु ईमान वाले मुसलमानों की आयु के बराबर होगी ( This means round breasts. They meant by this that the breasts of these girls will be fully rounded and not sagging, because they will be virgins, equal in age. This means that they will only have one age. The explanation of this has already been mentioned in Surat Al-Waqi`ah. 56:35 -Concerning Allah’s statement,)
    . यह बात सूरा -वाकिया से स्पष्ट हो जाती है , जिसमे कहा है ,
    “हमने उन स्त्रियों के विशेष उभार को उठान पर उठाया (raised है “सूरा -अल वाकिया 56:35

  162. 4-हुनैन का बलात्कार कांड
    मक्का और तायफ के बीच में एक घाटी थी , किसमे ” हवाजीन “नामका एक बद्दू कबीला रहता था .जो कुरैश का ही हिस्सा था .इस कबीले की औरतें भी मेहनती होने के कारण स्वस्थ थी . और उन औरतों के स्तन उभरे हुए थे .मुहम्मद ने उन पर हमला करने के लिए बहाना निकाला कि यह लोग काफ़िर थे . लेकिन मुहम्मद और उनके अय्याश साथियों की नजर हवाजिन कबीले की औरतों पर थी .इसी लिए रात में ही हमला कर दिया .चूँकि यह कांड हुनैन नामकी सकरी घाटी में हुआ था ,.जिस से बहार निकलना कठिन था ,इसलिए बददु लोग हार गए
    इतिहासकार इब्ने इशाक के अनुसार इस्लाम में हुनैन की जंग का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है , क्योंकि इस लड़ाई के बाद ही मुसलमानों को युद्ध में या कहीं से भी पकड़ी गयी औरतों के साथ सम्भोग करने का अधिकार प्राप्त हो गया .हालांकि मुसलमान हुनैन की इस लड़ाई को युद्ध कहते है . लेकिन इसे युद्ध कहना ठीक नहीं होगा , क्योंकि एक तरफ मुहम्मद के 12 हजार प्रशिक्षित हथियारधारी लुटेरे थे तो दूसरी तरफ 6 हजार साधारण बद्दू थे ,जिनमे औरतें , बूढ़े ,बीमार और बच्चे भी थे .यह घटना इस्लामी महीने शव्वाल की 10 तारीख हिजरी सन 8 में हुई थी ,यानी ईसवी सन 630 की बात है .इब्ने इशक के अनुसार इस युद्ध में कोई धन नहीं मिला था लेकिन 6000 औरतें पकड़ी गयी थी .मुहम्मद की तरफ से जिन लोगों ने इस लड़ाई में हिस्सा लिया था ,उनमे 13 साल से लेकर 54 साल के लोग थे . और कई ऐसे थे जो रिश्ते में बाप बेटा ,चाचा भतीजे थे .मक्का और तायफ के बीच में एक घाटी थी , किसमे ” हवाजीन “नामका एक बद्दू कबीला रहता था .जो कुरैश का ही हिस्सा था .इस कबीले की औरतें भी मेहनती होने के कारण स्वस्थ थी . और उन औरतों के स्तन उभरे हुए थे .मुहम्मद ने उन पर हमला करने के लिए बहाना निकाला कि यह लोग काफ़िर थे . लेकिन मुहम्मद और उनके अय्याश साथियों की नजर हवाजिन कबीले की औरतों पर थी .इसी लिए रात में ही हमला कर दिया .इस घटना का विवरण इन हदीसों में मिलता है , जिसमे मुहम्मद और उनके साथियों किस तरह इंसानियत को कलंकित किया था .
    5-पति के सामने बलात्कार
    “सईद अल खुदरी ने कहा कि जब रसूल ने हुनैन के औतास कबीले पर हमला करके वहां के लोगों को पराजित करके उनकी औरतों को बंधक बना लिया . तब रसूल ने अपने साथियों को आदेश दिया कि तुम इस युद्ध में पकड़ी गयी औरतों के साथ बलात्कार करो , लेकिन कुछ लोग उन औरतों के पतियों के सामने ही ऐसा करने से झिझक रहे थे .तब रसूल ने उसी समय सूरा -निसा 4 :2 4 की आयत सुना दी , जिसमे कहा है कि तुम पकड़ी गयी औरतों से तभी साथ सम्भोग नहीं कर सकते हो , यदि वह मासिक धर्म से (रजस्वला “हो .
    अबू दाऊद किताब 2 हदीस 215 0

    5-समआयु की औरतें
    मुहम्मद साहब बहुत होश्यार थे , उन्हों कुरान में पहले ही लिखा दिया था कि ईमान वालों को पुरस्कार के रूप में समान आयु वाली और कठोर स्तन वाली औरतें मिलेंगे , और जब हुनैन के हमले में मुसलमानों ने छह हजार औरतें पकड़ लीं ,तो छांट छांट कर अपनी आयु की औरतों के साथ बलात्कार किया था . जो इस हदीस से पता चलता है ,
    “सईदुल खुदरी ने कहा कि जब रसूल के सैनिकों ने हुनैन में औताफ के लोगों पर हमला करके हरा दिया तो उनकी औरतों को बंधक बना लिया , फिर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वह पकड़ी गयी औरतों में से अपने बराबर की आयु वाली औरतों के साथ सम्भोग कर सकते हैं , सिवाय उन औरतों के जिनकी इद्दत पूरी नहीं हो (यानी मासिक धर्म पूरा नहीं हो ) .रसूल ने उसी समय सूरा निसा 4 :24 की यह आयत लोगों को सुनायी थी .”
    “وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ النِّسَاءِ إِلاَّ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ‏}‏ أَىْ فَهُنَّ لَكُمْ حَلاَلٌ إِذَا انْقَضَتْ عِدَّتُهُنَّ ‏.‏ ”
    सही मुस्लिम – किताब 8 हदीस 3432

    कुरान की इस आयत में जो लिखा था वही मुसलमानों ने किया था , कुरान में लिखा है ,
    “हमने प्रेयसी सम आयु वाली पसंद की ” सूरा -अल वाकिया56:37
    मुसलमान हुनैन की लड़ाई का कारण कुछ भी बताते रहें , लेकिन वास्तव में औरतें पकड उनसे सामूहिक बलात्कार की मुहम्मद की एक कुत्सित योजना थी .अब तक आपने पढ़ा है ,मुहम्मद की वासना राक्षसी थी , और लगातार सम्भोग करते रहने से उसकी औरतों के स्तन शिथिल हो गए होंगे ,इसलिए मुहम्मद ने कुरान में भी अपने साथियों को कठोर स्तन वाली औरतें देने का लालच दिया था .चूँकि हवाजिन कबिले की औरतें मेहनती थी . और इसीलिए उनके स्तन उभरे और कठोर थे . जो मुहमद की पसंद थी .आपने यह भी पढ़ा कि मुहम्मद साहब जो भी कुकर्म करते थे उसे जायज ठहराने के लिए कुरान कोई न कोई आयत रच देते थे , ताकि आगे भी मुस्लमान ऐसा ही करते रहें .

  163. 6–रसूल का उत्तम आदर्श
    मुहम्मद साहब ने अपने इसी चरित्र को खुद ही आदर्श घोषित करते हुए कुरान में भी लिखवा दिया
    ” निश्चय ही तुम लोगों के लिए अल्लाह के रसूल का चरित्र उत्तम आदर्श है ” सूरा -अहजाब 33:21
    आज भी मुसलमान जितने भी बलात्कार करते है , सब मुहम्मद साहब के इसी आदर्श चरित्र का पालन करते हैं .और हर गैर मुस्लिम लड़की या महिला से बलात्कार को अल्लाह की जीत समझते हैं ,ऐसी ही एक सत्य घटना दी जा रही है ,
    7-अल्लाह के नाम से बलात्कार

    मुहम्मद साहब को अपना आदर्श मानकर और उनका अनुसरण करते हुए कुरान की मानवविरोधी शिक्षा पर अमल करने से मुसलमान इतने अपराधी ,क्रूर और बलात्कारी हो गए कि बलात्कार जैसे जघन्य कुकर्म को भी अल्लाह के प्रति अपना प्रेम समझने लगे हैं . इसी कारण बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही है .इस बात को सिद्ध करने के लिए मिस्र देश की यह एक ही सच्ची घटना काफी है ,
    मिस्र को इजिप्ट ( Egypt) भी कहा जाता है . यह इस्लामी देश है , लेकिन यहाँ कुछ ऐसे ईसाई भी रहते हैं ,जो इस्लाम के पूर्व से ही यहाँ रहते आये हैं .इनको ” कोप्टिक ईसाई – Coptic Christian “कहा जाता है . अरबी में इनको” नसारा ” कहते हैं .मुस्लमान अक्सर इनकी लड़कियों का अपहरण करके बलात्कार करते रहते है .
    यह सन 2009 की घटना है . कुछ मुस्लिम युवकों ने एक ईसाई लड़की को बीच रस्ते से पकड़ लिया , और सबके सामने उसकी जींस उतार कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया .जब लड़की ने भागने का प्रयत्न किया तो दर्शक मुसलमान चिल्लाये पकड़ो , नसारा को पकड़ो .और जब उस लाचार लड़की से बलात्कार हो रहा था , तो वहां कुछ मुल्ले भी मौजूद थे , जो कलमा पढ़ रहे थे ” ला इलाहा इल्लालाह , मुहम्मदुर रसूल अल्लाह “यही नहीं लड़की दर्द के कारण जितनी जोर से चिल्लाती थी . मुसलमान उतनी ही जोर से “अल्लाहु अकबर ” का नारा लगाते थे . यही नहीं इन दुष्ट मुसलमानों में इस घटना का विडियो भी बना लिया था . जो किसी तरह से 11/4/2013 को लोगों के सामने आ सका है .यह विडियो इस साईट में उपलब्ध है ,
    Video:Christian Girls Gang Raped to Screams of “Allahu Akbar” in Egypt

    http://www.raymondibrahim.com/from-the-arab-world/video-christian-girls-gang-raped-to-screams-of-allahu-akbar-in-egypt/

    इसके बावजूद मुस्लिम प्रचारक बड़ी बेशर्मी से मुहम्मद की तारीफ में कहते हैं

    “हे मुहम्मद हमने तुम्हें भेज कर सारे संसार पर मेहरबानी की है ‘सूरा -अल अम्बिया 21:107

    इन सबूतों को देखने के बाद किसी को भी शंका नहीं होना चाहिए कि मुहम्मद साहब को अपना आदर्श मानने से ही बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही हैं .और जो सिद्धांत अल्लाह के नाम से बलात्कार करने की शिक्षा देता है , वह धर्म कहने के योग्य नहीं ,बल्कि धिक्कार के योग्य है .सोचिये यदि अल्लाह ने नूह की तरह मुहम्मद साहब को नौ सौ साल की आयु दे दी होती ,तो मुहम्मद साहब कितने बलात्कार करते ?

    1. apko shayad pta nhi ke islam me kisi gair orat ko dekhna bhi balatkar ke samaan mana gya hai. ye jo ap bkwas kr rhe ho iska nata kisi dharam se nhi hai or agr rap ko dharam se jodna hai to. yaad hoga nirbhya kand. khair me apko batata hu quraan kia kehta hai rap ke bare me. quran kehata hai ae musalmano tum zina ke kareeb bhi na jana kiuki wo khuli be hayayi hai. muhammad sahab kehte hai ke. kisi gair orat ko dekhna bhi zina ke barabar hai. islam me mardo se kaha gya hai ke ae musalmano apni nigahe nichi rkh kr chala kro. or orato se kaha gya hai. ke tum be parda na rha kro. khair agr islam me rap itna hi aam hota to islam me rap ki saza mout na hoti. ek desh btao jaha rapist ko saza e mout ka kaanoon ho. ap ki bekar ki baat ka khandan to arab desh ke kanoon ne hi kr dia. ab koi ilzaam lgana hai ya nhi. kitne besharm ho tum . kese hinduo ke mann me islam ke lie nafrat bharte ho. lekin yaad rkhna tumhari ye nakaam koshishe sb bekar hai.

      1. quran hadees parho sab maalum chal jaayega …. kitni buri halat hai muslim ke aurat ki…jo quran hadees sahi se parh le use maalum chal jaayega kaun saty bol raha hai… yadi praman dene laga to aapki pol khol ho jaayegi… kitne aartcle hain uska praman aur tark ke aadhar par khandan karo janab yadi galat ho to… saty hame hamesha swikaar rahega… dhanywaad

  164. OM..
    NAMASTE..
    Sunan Abi Dawud
    سنن أبي داود

    (112) Chapter: What Breaks The Prayerَ 112 ) باب مَا يقَْطَعُ الصَّلاةَ )

    Hafs reported that the Messenger of Allah( صلى الله عليه وسلم) as saying, and the other version of this tradition
    transmitted through a different chain has:
    Abu Dharr said (and not the Prophet): If there is not anything like the back of a saddle in front of a man who is
    praying, then a donkey, a black dog, and a woman cut off his prayer. I asked him: Why has the black dog been
    specified, distinguishing it from a red, a yellow and a white dog? He replied: My nephew, I also asked the Messenger
    of Allah( صلى الله عليه وسلم) the same question as you asked me. He said: The black dog is a devil.
    حَدَّثَنَ ا حَفْصُ بْنُ عُمَرَ، حَدَّثَنَ ا شُعْبَةُ ، ح وَحَدَّثَنَا عَبْدُ السَّلاَمِ بْنُ مُطَهَّرٍ، وَابْنُ، كَثِيرٍ – المْعَنْىَ – أنََّ سُليَمَْانَ بنَْ المُْغِيرَة،ِ
    أخَْبرََهمُْ عَنْ حُمَيدِْ بنِْ هِ لاَلٍ، عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ الصَّامِتِ، عَنْ أَبِي ذَرٍّ، – قاَلَ حَفْصٌ – قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه
    وسلم وَقاَلا عَنْ سُليَْمَانَ قاَلَ أبَوُ ذَرٍّ ” يقَطْعَُ صَلاةَ الرَّجُلِ – إِذَا لَمْ يَكُنْ بَيْنَ يَدَيْهِ قِيدُ آخِرَةِ الرَّ حْلِ الْحِمَارُ وَالْكَلْبُ الأَسْوَدُ
    واَلمْرَأْةَ ” . فَقُلْتُ مَا بَالُ الأَسْوَدِ مِنَ الأَحْمَرِ مِنَ الأَصْفَرِ مِنَ الأَبْيَضِ فَقَالَ يَا ابْنَ أَخِي سَأَلْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه
    وسلم كَمَا سَألَْتنَيِ فقَاَلَ ” الكْلَبْ الأسَوْدَ شُيَطْاَن ” .
    how shame on it..!
    what kind of thought is this?!! a women is comparing with a dog and donkey?!!
    please leave this dark way and return to the way of light (Vedic way)..

  165. जिस घर में रोज़ मिया बीवी लड़ते हो वो घर जहन्नम बन जाता है उन घरो में मुहब्बत के लिए इस अमल को इस्तेमाल करे

  166. शौहर ने मुफ़्ती से पूछा “दुबारा निकाह करना है क्या करूँ”, मुफ़्ती बोला “बीवी मुझे 2-3 दिन के लिए दे दो, करा दूंगा फिर निकाह
    https://www.facebook.com/Aryamantavya/videos/1899084020329279/
    यह शुद्ध रूप इस्लामिक वेश्या वृत्ति है । मजहब के आड़ मे यह गोरख धंधा है । इस्लाम को शान्ति का प्रतीक कहते है परंतु सभी अनैतिक कार्यों का समर्थन करते है । मतलब साफ है कथनी अलग और करनी अलग

    1. aap halala or talak ke baare me islam me kia likha hai ussey pdo. fir kehna. wese apke dharm me bhi ek pratha hai. NIYOG ap uss bare me kuchh btayenge

  167. EVERY DHARM IS VERY USELESS AND FALSE
    HUMINITY IS BEST DHARM
    AUR SANATAN DHARM IS IS VERY WRONG DHARM
    PHIR ISKAKE BAAD ISLAM DHARM WRONG HOTA HAI
    DUSRO KI BURAI KARANE SE PAHALE APANE DHARAM
    ANDAR DEKHO UNDERSTAN DOGS

    1. भाई जान धर्म क्या होता है किसे बोलते हैं यह बतलाना जी ? मनुष्य बनो यही तो सनातन धर्म सिखाता है जबकि सभी बोलते हैं पुराण बोलता है हिन्दू बनो कुरान बोलता है मुस्लिम बनो बाइबिल बोलता है इसाई बनो और वेद बोलता है मनुष्य बनो | सत्य की मार्ग पर आओ भाई जान |

    2. Dear RK,

      koi seedha sadha admi apki trha baate kr skta hai. lekin apko ek baat bolu. aap bekar me ye mt bolo ke sare dharm wrong hai. khas kr islam. aap islam ko smjho pdo fr bolo. nhi to bekar me aap ko meri baate galat lgengi mujhe apki. koi insaniyat ki kitab ho to mujhe btao me pdta hu. fr dekhte hai. islam wrong hai ya nhi.

      ok thanx

      1. islaam me kya achha hai yah to batao bhai jaan…. satyarth prakash aur ved parho…. fir saari baat malum ho jaayega……

  168. नफीस मालिक जैसे तुम्हे पत्थर में भगवान नजर नही आता कण कण में ईश्वर नजर नही आता वैसे ही हमे भी क़ुरान ईश्वर की किताब नज़र नही आती । इसमे ऐसी गलतिया है जो ईश्वर कभी नही कर सकता। इसमे ऐसे तथ्य है जो स्पष्ट करते हैं कि यह किसी इंसान ने लिखी है। इसने लिखी चीजे पूरे विश्व पर लागू नही हो सकती।
    मैं यहां मात्रा एक उदाहरण दूंगा और एक सवाल पूछूँगा उसका जवाब दुनिया का कोई मुस्लिम नही दे सकता।

    मेरा ज़वाल रोजे से संबंधित है।

    रोजे के यह नियम है।

    रोजे में सहरी का बड़ा महत्व है। रोजेदार को जो खान है सूर्यौदय से पहले खाना है। और उसके पश्चात सूर्य अस्त के पश्चात अफ्तार है।

    और यह आदेश खुदा ने सम्पूर्ण विश्व के लिए दिया है।

    अब मेरा सवाल।

    क्या ईश्वर यह नही जानता था के उसकी इस दुनिया मे बहुत बड़ा क्षेत्र उत्तरी ध्रुव दक्षणी ध्रुव के रूप में भी है जहां 6 महीने दिन कि6 महीने रात होती है।

    क्या ईश्वर ऐसी गलती कर सकता है? क्या इस्लाम उतरी दक्षिणी ध्रुव के लिए नही है? वहां के लोगों को रोजे का क्या नियम है क्या उनको रोजे रखने का अधिकार नही है?

    हमारा धर्म तो लचीला है। गलती सुधार भी लेगा। दावा भी नही करता के ईश्वरीय है के कुछ सुधार नही हो सकता।

    आवश्यकता तो आपको ही है। आसमानी किताब के फरेबी जाल से निकलने की ।

    मेरे उदाहरण से स्पष्ट है। कि कुरान ना तो आसमानी है। ना पूरे विश्व के लिए है। और वैज्ञानिक गलतियां और कमिया इसमे ढेरों है। यह तो मात्र एक उदाहरण है।

    1. tabhi to kehte hai bhai sawal man me mt rkho poochha kro taki samjh aye ke islam kia cheese hai. islam me har sawal ka jawab hai.
      ans 1. islam me esi jagaho ka zikr hai jaha suraj nhi niklta. waha ke logo pr roza frz nhi hai. or nahi kafiro pr frz hai. jb tk wo imaan na laye. lekin ab chahe to wo rkh skte hai kiuki ab sbko time ka pta rehta hai.

      or btaiye gyani saab hum agyani logo se or koi sawal hai to btaiye

      1. suraj to daldal me dubata hai quraan ke aadhaar par … kya science ke aadhaar par suraj daldal me dubata hai ? is ka jawab dena

      2. 2-मुसलमान मानते हैं कि अल्लाह ने फ़रिश्ते के हाथो कुरआन की पहली सूरा लिखित रूप में मुहम्मद को दी थी , लेकिन अनपढ़ होने से वह उसे नहीं पढ़ सके , तो मुसलमान कुरान की वह सूरा पेश क्यों नहीं कर देते जो अल्लाह ने लिख कर भेजी थी , इस से तुरंत पता हो जायेगा कि वह कागज कहाँ बना था ?? ? और अल्लाह की राईटिंग कैसी थी ????वर्ना हम क्यों नहीं माने कि जैसे अल्लाह फर्जी है वैसे ही कुरान भी फर्जी है
        मुसलमान दावा करते हैं कि विश्व में कुरान एकमात्र ऐसी किताब है जो पूर्णतयः सुरक्षित है 1400 साल से अब तक खुछ भी बदलाव नही हुआ है, तो मुस्लमान 1400 साल पुराना कागज़ पत्थर चमड़ा पेश क्यू नही करदेते जिसपे पहली बार क़ुरान की आयते लिखी गयी थी उसको आजकी क़ुरान से मिलाके देखने पे तुरंत पता चल जाएगा क़ुरान में मिलावट हुयी है या नही हुई है और कार्बन डेटिंग से ये भी पता चल जाएगा की वो पत्थर चमड़ा कागज़ कितने साल पुराना है वर्ना हम क्यू नही माने की क़ुरान में मिलावट हो चुकी है.
        यदि मोहोमद साहब पड़ना लिखना नही जानते थे तो क़ुरान की आयते पहली बार कागज़ पत्तर चमड़े पे किसने लिखा??? सही लिखा है या गलत इसका क्या प्रमाण है क्योंकि क़ुरान पड़के महूमद साहब बता ही नही सकते थे की वो सही है या गलत।
        मुस्लमान बोलते हैं अल्लाह सबसे ऊपर है उसके ऊपर कोई नहीं है वो जो चाहे कर सकता है कुछ भी कर सकता है सारे कानून उसी के बनाये हैं इससे वो जो चाहे जब चाहे तब कर सकता है यदि अल्लाह जो चाहे कर सकता है तो दुनिया मे बहुत बड़ा क्षेत्र उत्तरी ध्रुव -दक्षणी ध्रुव के रूप में भी है जहां 6 महीने दिन और 6 महीने रात होती है वहा 12 घंटे दिन और 12 घंटे रात करवा दे क्या अल्लाह ये कर सकता है ????अगर नही तो हम क्यू नही माने की क़ुरान में असत्य लिखा है।
        3. इस्लाम के मुताबिक यदि 3 दिन/माह का बच्चा मर जाये तो उसको कयामत के दिन क्या मिलेगा.-जन्नत या जहन्नुम ? और किस आधार पर ??
        4. मरने के बाद जन्नत में पुरुष को 72 हूरी (अप्सराए) मिलेगी…तो स्त्री को क्या मिलेगा…… 72 हूरा (पुरुष वेश्या) .??और अगर कोई बच्चा पैदा होते ही मर जाये तो क्या उसे भी हूरें मिलेंगी ? और वह हूरों का क्या करेगा ?

        5.- यदि मुसलमानों की तरह ईसाई , यहूदी और हिन्दू मिलकर मुसलमानों के विरुद्ध जिहाद करें , तो क्या मुसलमान इसे धार्मिक कार्य मानेंगे या अपराध ? और क्यों ?
        इस्लामी देशों में इस्लाम छोड़ कर कोई अन्य धर्म स्वीकार करने पर हमेशा मौत की सजा क्यू दी जाती है???? और क्या कोई अपने मनपसंद धर्म को नही अपना सकता?????
        6-.यदि कोई गैर मुस्लिम (काफ़िर) यदि अच्छे गुणों वाला हो तो भी. क्या अल्लाह उसको जहन्नुम की आग में झोक देगा….? और क्यों ?और, अगर ऐसा करेगा तो…. क्या ये अन्याय नहीं हुआ ??
        मुसलमान कहते है कि इस्लाम पहले से था..सवा लाख नबी अल्लाह ने भेजा था जब इस्लाम पहले से ही था..तब मुहम्मद ने अरब के काबा की मूर्तियों को क्यों तोडा??तब मूर्तिया क्यों बनी थी…??कौन नबी अल्लाह से गद्दारी करके मंदिर और मूर्तिया बनवाया था??? जब मूर्ति थी तो हम क्यू माने इस्लाम पहलेसे था.
        7.कुरान के अनुसार मुहम्मद सशरीर जन्नत गए थे , और वहां अल्लाह से बात भी की थी , लेकिन जब अल्लाह निराकार है , और उसकी कोई इमेज (छवि) नहीं है तो..मुहम्मद ने अल्लाह को कैसे देखा ??और कैसे पहिचाना कि यह अल्लाह है , या शैतान है ?
        क़ुरान के अनुसार अल्लाह ने आदम को अपने दोनों हाथों से बनाया, लेकिन जब अल्लाह निराकार है उसका कोई शारीर नही है तो अल्लाह ने अपने हातो से आदम को कैसे बनाया????और क्या अल्लाह 2 हातो वाला शरीरधारी है????? और अल्लाह ने जानवरो को कैसे बनाया????
        मुस्लमान दावा करते है की बाइबिल में मिलावट हो गयी थी इसलिए अल्लाह ने क़ुरान को उतारा है, तो क्या जिसदिन क़ुरान नाज़िल हुयी उस दिन ही बाइबिल में मिलावट हो गयी उससे पहले सही थी?????
        8- मुसलमानों का दावा है कि जन्नत जाते समय मुहम्मद ने येरूसलम की बैतूल मुक़द्दस नामकी मस्जिद में नमाज पढ़ी थी ,लेकिन वह मुहम्मद के जन्म से पहले ही रोमन लोगों ने नष्ट कर दी थी . मुहम्मद के समय उसका नामो निशान नहीं था , तो मुहम्मद ने उसमे नमाज कैसे पढ़ी थी ? हम मुहम्मद को झूठा क्यों नहीं कहें ?
        9-मुस्लमान दावा करते है की हम एक ईश्वर वादी है एक अल्लाह के अलावा किसीको नही मानते , अगर ऐसा है तो,कोई बोले में अल्लाह को मानता हु उसकी इबादत करता हु लेकिन मुहम्मद को नही मानता तो उसे क्या मना जाएगा काफिर या मुस्लमान ???? और क्या बिना , महुम्मद के अल्लाह की इबादत की जा सकती है ?????
        मुस्लमान बोलते है हम आतंकवाद के विरुद्ध है तो मुल्ले आतंकवादियों को काफ़िर घोषित क्यों नहीं करदेते ???? और आतंकवादियों पे फतवे जरी क्यू नही करते ,और उनको दफ़नाना बंद करके जलाने का आदेश क्यू नही देते???और ऐसा नही करते है तो क्या इस से साबित नहीं होता कि आतंकवाद इस्लाम में जायज़ है????
        10- मुस्लमान कहते है अल्लाह ने ये दुनिया 6 दिन में बनाया और 7वे दिन आराम किया अगर ये सच है तो अल्लाह अब क्या कर रहा है? तब से लेके अब तक आराम ही कर रहा है?? और दुनिया बनाने से पहले अल्लाह क्या कर रहा था????
        12-मुस्लमान दावा करते है आखिरी दिन(क़यामत के दिन) अल्लाह काफिरो को जहनुम की आग में झोक देगा , अगर ऐसा है तो बाकि दिन अल्लाह क्या करेगा?? निकम्बा बैठा रहेगा? और जबसे अल्लाह ने दुनिया बनाई तबसे लेके क़यामत तक अल्लाह क्या करेगा???
        यदि अल्लाह सभी स्थानों पर है तो हज जाने की क्या आवश्यकता है??????और क्या अल्लाह केवल काबा में ही है ?तो सातवे आसमान पे कोनहै????? और क्या आसमान ही में अल्लाह का घर है; पृथिवी में नहीं? तो काबा को अल्लाह का घर क्यों लिखा गया?????
        मुस्लमान दावा करते है की पुनर्जन्म नहीं होता, तो जो लोग अभी सुख दुःख प्राप्त कर रहे वो किस कर्मो के आधार पर ? ???जबकि इंसाफ तो केवल क़यामत के दिन होगा। तो अभी कोनसा इंसाफ हो रहा है जो लोग सुख दुःख प्राप्त कर रहे है??? क्या ये तर्कसम्मत है ????
        13-अल्लाह ने अनपढ़ मुहम्मद में ऐसी कौनसी विशेषता देखी . जो उनको अपना रसूल नियुक्त कर दिया ,क्या उस समय पूरे अरब में एकभी ऐसा पढ़ालिखा व्यक्ति नहीं था , जिसे अल्लाह रसूल बना देता , और जब अल्लाह सचमुच सर्वशक्तिमान है , तो अल्लाह मुहम्मद को 63 साल में भी अरबी लिखने या पढने की बुद्धि क्यों नहीं दे पाया ??
        14-.जो व्यक्ति अपने जिहादियों की गैंग बना कर जगह जगह लूट करवाता हो , और लूट के माल से बाकायदा अपने लिए पाँचवाँ हिस्सा (20 % ) रख लेता हो , उसे अल्लाह का रसूल कहने की जगह लुटरों का सरदार क्यों न कहें ?
        मौहम्मद साहब व उनके बाद के इस्लामी शासकों ने अन्य देशों पर इस्लाम स्वीकार करने जजिया देने या युद्ध का विकल्प रखने के लिए क्यों संदेश भेजा था????

  169. apka pryas achcha tha islam ko bdnam krne ka. lekin ek baat bta du apse pehle bhi kai log aye bdnam krne ke lie or marr khap gye apke baad bhi ayenge or qayamat tk ate rahenge. lekin tum log islam ko rok nhi skte. bewkufo jitna tum islam me galat bekar ki baate banate ho or logo tk pahunchate ho. utna kbhi apne dharm ki baate bhi logo tk pahuchao to logo tumhare paas bhi aye. zindagi guzare di islam ko barbad krne ki nakaam koshisho me lekin kuchh na ukhad paye. lekin shayad tum ye baat bhi jante ho ke jo insan quran ko pdle wo islam laye bina nhi reh skta. tum islam ko bdnam krte ho. or hamare dusre hindu bhai islam me galtia dekhne ke lie pdte hai. to pta chalta hai khud hi galat hai. or islam lia te hai. me apka bhi thanx krunga islam ki publicity krne ke lie

    1. saty hamesha kadwa hota hai jise sab sahan nahi kar sakte… kaafiro ko maaro…. dusare majhab ke logo se dosti mat rakho … aisa kyu janab….. quran me kya kya achha hai hame to maalum nahi chala….thoda jaankaari dena

  170. Khan sahab…..1)..Uss bacche ko jannat milegi…uss bacche ki maut darasal bacche ka imtehaan nhi tha balki uske maa baap ka tha..
    .
    उत्तर…बच्चे को जन्नत किस आधार पर दिया जाएगा?? क्या बच्चे का intehann अल्लाह नही लेगा ??और क्यू?? और जो माँ बाप थे ?वो पैदा होते ही क्यू नही मारे क्यू की माँ बाप के भी माँ बाप होते है । तो उनका intehan अल्लाह क्यू नही लिए और जब नही लिए तो भी वो लोग इबादत किये तो फिर बाचा मारने की क्या जरुरत हे?
    और जब जन्नत जाना ही उदेश है तो हर बच्चे को मर देंगे तो बिना किसी intehan और मुश्किल के जन्नत मिल जाएगी इतनी झांजत भी नही होंगी ।।
    एक व्यक्ति के intehan के लिए दूसरे को बिना इमान लाये बिना इबादत के और बिना फ़र्ज़ पूरा करे जन्नत देना किस हद तक सही है??।।
    क्या ये अन्याय नही है??? एक को बिना intehan के जन्नत और दूसरे को intehan पे intehan??


    2)..Allah ne Quran me kha h k hum tumko aulad aur maal de kar test krenge ..tumko bimari de kar test krenge gareebi de kar test krenge ….Allah ne sb phele bata diya phir test kiya h iss …
    .
    उत्तर.. अल्लाह ज्ञान नही देता क्या?? अगर ज्ञान देंगे तो कोई गलत नही करेगा। और क़ुरान के अनुसार अल्लाह तल्हा ने आदम को अपने सामान बनाया जब इंसान को अपने सामान बनाया तो टेस्ट क्यू लेता है अल्लाह को अपने बनाये इंसानो पे भरोसा नही है???।।

    और जिन लोगो को अमीरी दिया। औलाद दिया। बिविया दिया। माल दिया। उनका क्या ?? किस कर्म के आधार पर मिला?? क्या अल्लाह उनकी टेस्ट नही लेता ??।

    और कोई काफिर जो अल्लाह की इबादत नही करता है उनको माल बिविया औलाद अमीरी कौन देता है??।

    क्यू की जो अल्लाह की इबादत ना करे उससे अल्लाह ने खुछ नही देना चाहिए। लेकिन काफिरो मिल रहा है तो वो क्या है????

    3)..।Allah ne sb phele bata diya phir test kiya h iss badhkar aur kya rehmat ho sakti h

    उत्तर…अल्लाह पे यकीन कोई इंसान अपनी मर्ज़ी के करते है या अल्लाह की मर्ज़ी से। क्यू की मुस्लिम के अनुसार सब अल्लाह की इच्छा से होता है । इसलिए जो अल्लाह को नही मानते ईमान नही लाते क्या ये भी अल्लाह की मर्ज़ी है???।

    और क्या अल्लाह ये जनता था की लोग उससे नही मानेगे ?? और कोन उसका सच्चा बाँदा है इसलिए टेस्ट करना पड़ेगा और बिना कर्म के आधार पे लिसिको भी कोई भी सजा देना पड़ेगा जो अन्नाय है खुद को मनवाने के लिए???? अगर अल्लाह तल्हा महान है तो लोग उसकी महानता को समाज कर ही मानते है दुःख तकलीफ देके खुद को मनवाना ये स्वार्थी(खुदगर्ज़) लोगो के काम है।। इतियास में ऐसे कही रजा हुए हे जो लोगो से जबरदस्ती खुद को मनवाते थे और तकलीफ देते थे ।।। खुद को मनवाने के लिए। लेकिन जो महान होता है उसको तकलीफ नही देना पड़ता लोग उसकी महान ता को देख के मानते है उसको सदा याद रकते है।(नोट ..ishwar kisi ko bina ache bure karm ke koi faal nhi deta jo jaisa karta hai usko waisa hi faal milta hai))।


    4)……ab jo insan Allah par yakeen rakhta h aur janta h k test h to vo sabr karega aur jiska yakeen nhi h vo chillaega shor karega ho sakta h gam me marr hi jaye par vo apni aulaad zinda nhi kr sakta i…

    ।उत्तर….और जो शोर करके मर जाएगा उसको क्या मिलेगा जन्नत या जहांनुम???।

    क्यू की उनको बी बचपन में मर दिया होता तो उनको भी जन्नत मिलती तो ऐसा नाइंसाफी क्यू और किसए ??खुद को मनवाने के लिए????

  171. Hello admin, i must say you have very interesting posts here.

    Your website should go viral. You need initial traffic boost only.
    How to get it? Search for; Mertiso’s tips go viral

  172. Hi blogger, i must say you have hi quality articles here.
    Your website should go viral. You need initial traffic only.
    How to get it? Search for: Mertiso’s tips go viral

  173. I wаs wondering if you ever thought of changing the layoᥙt of your site?

    Its very well written; I love what youve got to ѕay.
    But maybe you coᥙld a ⅼittle more in the way of content so people could connect with it Ƅetter.
    Youve got an aᴡful lot of text for only having one or two pictures.
    Maybe yߋu could ѕpace it out better?

  174. Na mey HINDU hu na mey MUSALMAN hu ek baat janta hu duniya mey orat or mard dono ko jab roti mil jati hai to unko sex karney ka man karta hai kya koi ek sabzi jindagi bhar kha sakta hai ? kya maza aayega jab duniya mey tarah tarah ki sabzi milti ho usi tarah duniya mey alag alag naslo key orat hai mard hai jinki apni apni pasand na pasand hai kisi ney apni bibi ko talak diya kyo diya? kyoki orat usko pasand nahi aa rahi hai (manokul man key anusaar nahi hai ) jahir hai orat ko bhi mard pasand nahi hoga pasand hota to pati/sohar ko khus rakhti jindagi ka jawani ka mazaaa leti to talak hi thik hai apney liye naya partner dhund lo jo man key anukul ho ismey kya burai hai nahi to aadmi pagal ho jayega
    dusra patni ki adla badli karney ki baat to bhai patni bhi to dusrey mard ka mazaa legi baat barabar ho gayee patniya kya sex ka mazaa nahi leti hai ???
    asliyat yah hai ki hum ved puran quraan key chakkar mey jyada hi pad jatey hai pyas lagegi to aadmi pani hi piyega na pyaj to khyaga nahi hum aadmiyo ko sex ka mazaa lena nahi aata hai khud to mar ghiley hai hi dusrey ko bhi mazaa nahi leney detey kon kahta hai ki yon sosan ho raha hai orto ka? pata nahi 2-4 pagal log ney kya kya kanoon bana diye nature sey badey ho gaye kya 2-4 kitab padhkar bhutni walo jab shaadi mard orat ney ki hai to apna faisla bhi khud karegey ki sath rahey ya nahi court ka juj karega waha bhai wah juj kon hota hai faisla karney wala orto ko yah shikha chahiye ki ki pati/shohar key manokul bankar duniya ka mazaa karo hum sikha rahey hai court sey faisla karwa salary aadhi aadhi karwa jindagi bhar ka harjana ley tu khanna kyo banayegi soti rah raat din haramjado suraj chand ko bhi time par nikla padta hai orat jab kaam ki nahi hogi to bhai aisa sohar dhund jo tujhey sajda karey sohar manokul nahi hai mazaaa nahi dey pa raha hai to bhai talak ley naya humsafar dhund
    ha bura kisi ka nahi karna chahiye jhuta ilzam bhi nahi lagana chahiye koi galat hai to samjhana chahiye lekin kanoon ki aad lekar dusrey ko paresaan karo na khud jiyo na dusrey ko jiney do to bhai sadtey raho log jhatka halal par ladtey rahey hum sab khuch pet mey daltey gaye abey ladna band karo roti khao or sex karo kanoon ki kitab mat adho sunny leone ki jeewani padho sada khush raho
    om732@rediffmail.com

    1. OM PRAKASH जी
      क्षमा चाहता हु मगर आपके कमेंट के कारण हम यहाँ पर आपसे कुछ सवाल पूछ रहे हैं आपके आधार पर एक ही प्रकार की सब्जी नहीं खा सकते एक से ही मन नहीं भरता है चलो क्या आप सड़क पर नंगे सेक्स कर सकते हो ? क्या आप चोहोगे की आपके बीवी आपके सामने किसी और से सेक्स करे आपकी माँ किसी और से सेक्स करे बहन किसी और से सेक्स करे ?? जब यह नहीं चाहोगे तो यहाँ पर सनी लियॉन की बात ना करे और ना इस तरह की बात वैदिक धरम ही सिखलाता है हाँ ऐसा इस्लाम और इसाई मत में हो सकता है | कृपया सही मार्ग पर आ जाओ | धन्यवाद |

  175. बहुत ही सही बातें बताई हैं आपने। मैं भी एक बात बोलना चाहता हूँ। ऊपर एक डॉ. एम् श्रीवास्तव की किताब का जिक्र है। गौर से देखने पर पता चला कि इनकी किताब अबुल फजल इन्कलेव, जामिया नगर दिल्ली की किसी press से छपी है। जो कि साफ समझ आता है कि हिन्दू लेखक का नाम ले कर झूठ ही छापी गयी है। ये छल कपट करने का इन लोगों का पुराना इतिहास रहा है।

    1. इस्लाम फैला ही छल कपट से है इसके अतिरिक्त इस्लाम के पास कोई विकल्प ही नहीं है

  176. Aap sabhi ne 3 tallak samajh liya ok @ ab mudde pe aate hai halala ek saza h mard ke liye agar tum 3 tallak doge to tumhari aurat ko kisi aur ki nikaah mein jana hoga jo mard ko ek zillat ka aehsaas dilaye k maine 3 tallak diya koi apni aurat ko 3 tallak na de isliye halala ko zayez qaraar diya gaya hai YEH MARD KO SAZA H 3 TALLAK BOLNE KE KIYE

    1. क्या मुर्खता की बात करते हो जब यह सजा 3 तलाक के लिए है तो ऐसा मूर्खतापूर्ण तरीका बनाया क्यों जिसमें बिना की समझाइश के प्रयास से तलाक दे दिया जाता है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *