क्या आँखें खुल गईं ? ✍🏻 स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती

[भारत-चीन युद्ध के समय देश की परिस्थितियों का वर्णन करता एक लेख]       पिछले दिनों प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने एक भाषण में घोषणा की कि “चीन ने हमारी आँखें खोल दीं।” ऐसे भावगर्भ वाक्य महान पुरुषों के मुख से कभी-कभी अचानक निकला करते हैं। सारे राष्ट्र का अपमान हुआ, हजारों जवान बलिदान हुए, करोड़ों का सामान नष्ट हुआ, पर आपकी आँखें खुल गईं।       कुर्बान जाइए इस अदा पर, किसी की जान गई आपकी अदा ठहरी। यहाँ तो किसी की नहीं हजारों की जान गई। पर साथ ही हम यह नहीं भूल सकते कि आप हजार झुंझलाइये, पर इस अदा में एक शान, एक भोलापन जरूर है। आखिर जहाँ इस भूल की भयंकरता को नहीं भुलाया जा सकता, वहाँ अपनी … Continue reading क्या आँखें खुल गईं ? ✍🏻 स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती

‘आर्य-द्रविड़ विवाद’ के जन्मदाता कौन ? ✍🏻 स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती

      भारत में फूट के लिए सबसे अधिक उत्तरदाता विदेशी शासन था, यद्यपि यह भी एक गोरखधन्धा है कि एकता के लिए भी सबसे अधिक उत्तरदाता विदेशी शासन था।        हमारी फूट के कारण विदेशी शासन हम पर आ धमका। देश के जागरूक नेताओं की बुद्धिमत्ता से एकता की आग प्रज्ज्वलित हुई। विदेशी शासक आग में ईधन, विदेशी अत्याचार घी का काम देते रहे। अन्त में विदेशी शासकों को भस्म होने से पूर्व ही भागना पड़ा। परन्तु अब विदेशी फूट डालने वालों का स्थान स्वदेशी स्वार्थियों ने ले लिया।        हिन्दी के परम समर्थक तथा कम्युनिस्टों के परम शत्रु राज गोपालाचारी, अंग्रेजी के गिरते हुए दासतामय भवन के सबसे बड़े स्तम्भ बन गये।        जो प्रोफेसर अंग्रेजी इतिहासकारों के आसनों पर आसीन हुये वही … Continue reading ‘आर्य-द्रविड़ विवाद’ के जन्मदाता कौन ? ✍🏻 स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती

क्या माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी ? 🤔 ✍🏻 शास्त्रार्थ महारथी पण्डित मनसारामजी

[२ वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश के उप-मुख्यमंत्री डॉ॰ दिनेश शर्मा ने अजीबो-गरीब बयान दिया था। उन्होंने कहा की- ‘सीता माता का जन्म जमीन के अंदर किसी घड़े में हुआ था। इसका मतलब है कि रामायण काल में टेस्ट ट्यूब बेबी का कॉन्सेप्ट था।’ (दैनिक भास्कर, दिनांक २ जून २०१८) इस भ्रांति का निवारण के लिए हम शास्त्रार्थ महारथी पण्डित मनसारामजी का एक लेख प्रस्तुत कर रहे है। उर्दू में लिखें इस लेख का हिंदी अनुवाद श्री राजेंद्र जिज्ञासु जी ने किया है। पाठक स्वयं पढ़ कर स्वविवेक से निर्णय लेवें। – 🌺 ‘अवत्सार’]       प्रिय पाठकवृन्द ! आज हम आपकी सेवा में महारानी सीताजी की उत्पत्ति के विषय में कुछ बताना चाहते हैं। महाभारत के युद्ध में अच्छे-अच्छे विद्वानों के मारे जाने … Continue reading क्या माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी ? 🤔 ✍🏻 शास्त्रार्थ महारथी पण्डित मनसारामजी

अमृतसर में पौराणिक विद्वानों तथा श्रीशंकराचार्य के साथ नौ घण्टे तक महान् शास्त्रार्थ ✍🏻 पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक

[पौराणिक विद्वानों तथा श्री गोवर्धनपीठाधीश शंकराचार्य वा श्री स्वामी करपात्रीजी के साथ अमृतसर में मेरा १६, १७ नवम्बर को ६.५ घण्टे संस्कृत में और २.५ घण्टे हिन्दी में शास्त्रार्थ हुआ। यद्यपि यह शास्त्रार्थ मेरा व्यक्तिगत था, पुनरपि यतः मैं ऋषि दयानन्द प्रदर्शित वैदिक सिद्धान्तों में पूर्ण आस्था रखता हूँ अतः यह शास्त्रार्थ आर्यसमाज के साथ हुआ, ऐसा ही माना गया। इस शास्त्रार्थ का उल्लेख भी मुझे ही करना पड़ रहा है और यह मेरे स्वभाव के विपरीत है। पुनरपि इस शास्त्रार्थ में ऐसे कई आज तक अछूते प्रमाण, उनके गम्भीर अर्थ तथा युक्तियाँ दी गई जो आर्य जनता तथा आर्य विद्वानों के लिए भविष्य में कभी लाभप्रद हो सकते हैं। (विशेषकर १७ ता० के मध्याह्नोत्तर के शास्त्रार्थ के समय की)। … Continue reading अमृतसर में पौराणिक विद्वानों तथा श्रीशंकराचार्य के साथ नौ घण्टे तक महान् शास्त्रार्थ ✍🏻 पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक

यज्ञ में मन्त्रों से आहुति क्यों? – शिवदेव आर्य

‘यज्ञ’ शब्द यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु धातु से नङ्प्रत्यय करने से निष्पन्न हुआ है। जिस कर्म में परमेश्वर का पूजन, विद्वानों का सत्कार, संगतिकरण अर्थात् मेल और हवि आदि का दान किया जाता है, उसे यज्ञ कहते हैं। यज्ञ शब्द के कहने से नानाविध अर्थों का ग्रहण किया जाता है किन्तु यहाँ पर यज्ञ से अग्निहोत्र का तात्पर्य है।  अग्नेः होत्रम् अग्निहोत्रम्, अग्नि और होत्र इन दोनों शब्दों के योग से अग्निहोत्र शब्द निष्पन्न हुआ है। जिसका अर्थ होगा कि जिस कर्म में अत्यन्त श्रद्धापूर्वक निर्धारित विधिविधान के अनुसार मन्त्रपाठसहित अग्नि में जो ओषधयुक्त हव्य आहुत करने की क्रिया की जाये, उसे अग्निहोत्र कहते हैं।                 महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने सत्यार्थप्रकाश के तृतीय समुल्लास में अग्निहोत्र के लाभ बताते हुए कहा … Continue reading यज्ञ में मन्त्रों से आहुति क्यों? – शिवदेव आर्य

वेदों का विभाग ✍🏻 पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु

      ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान भेद से वेद के चार विभाग ऋग्, यजुः, साम और अथर्व नाम से सृष्टि के आदि में प्रसिद्ध हुए। 🔥ऋचन्ति[१] स्तुवन्ति पदार्थानां गुणकर्मस्वभावमनया सा ऋक’ – पदार्थों के गुण कर्म स्वभाव बताने वाला ऋग्वेद है। 🔥’यजन्ति येन मनुष्या ईश्वरं धार्मिकान् विदुषश्च पूजयन्ति, शिल्पविद्यासङ्गतिकरणं च कुर्वन्ति शुभविद्यागुणदानं च कुर्वन्ति तद् यजुः’ – अर्थात् जिससे मनुष्य ईश्वर से लेकर पृथिवीपर्यन्त पदार्थों के ज्ञान से धार्मिक विद्वानों का सङ्ग, शिल्पक्रियासहित विद्याओं की सिद्धि, श्रेष्ठ विद्या, श्रेष्ठ गुणों का दान करें वह यजुर्वेद है। 🔥’स्यति कर्माणाति सामवेदः’ – जिससे कर्मों की समाप्ति द्वारा कर्म बन्धन छूटें, वह सामवेद है। ‘थर्वतिश्चरतिकर्मा तत्-प्रतिषेधः’ (निरु॰ ११।१८), 🔥चर संशये (चुरादिः), संशयराहित्यं सम्पाद्यते येनेत्यर्थकथनम् – अर्थात् जिस के द्वारा संशयों की निवृत्ति हो उसे … Continue reading वेदों का विभाग ✍🏻 पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु

आर्यावर्त क्या है ? ✍🏻 प्रो॰ उमाकान्त उपाध्याय

      जब कभी भ्रान्त विचार चल पड़ते हैं तो उनके अवश्यम्भावी अनिष्टकारी परिणामों से बचना दुष्कर हो जाता है। इसी प्रकार का एक अशुद्ध भ्रान्त विचार यह है कि आर्यावर्त की सीमा उत्तर भारत तक ही है और आर्यावर्त की दक्षिणी सीमा उत्तर प्रदेश के दक्षिण और मध्यप्रदेश के उत्तर में स्थित तथाकथित विन्ध्य पर्वत तक है।       इस भ्रान्त धारणा ने एक महा अनिष्टकारी कुफल की सृष्टि कर दी कि विन्ध्य के उत्तर अर्थात् उत्तरी भारत में आर्य बसते हैं और दक्षिणी भारत में द्रविड़ बसते हैं। फलस्वरूप राजनीतिक समस्याएँ उठती रहती हैं। आज जो उत्तर और दक्षिण भारत में आर्य और द्रविड़ समस्याएँ खड़ी हो गई हैं, उनके मूल में भी यही भ्रान्त विचार है कि आर्यावर्त उत्तर भारत को … Continue reading आर्यावर्त क्या है ? ✍🏻 प्रो॰ उमाकान्त उपाध्याय

स्वामी दयानन्द सरस्वती के वेदभाष्य का विद्वानों पर प्रभाव ✍🏻 पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक

      स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा किये गये वेदभाष्य का प्रभाव अनेक देशी-विदेशी विद्वानों पर पड़ा है। किसी ने उसे स्पष्ट रूप से स्वीकार न करते हुए भी उनके विचारों में जो विशेष परिवर्तन हुआ, उससे आँका है।        इसके लिये हम एक भारतीय विद्वान् योगिराज अरविन्द घोष और विदेशी प्रतिप्रसिद्ध विद्वान् मैक्समूलर के विचार उद्धृत करते हैं।        श्री अरविन्द घोष ‘युजन’ ( =योगी) व्यक्ति थे। अतः उन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के पारमार्थिक अर्थ के विषय में ही लिखा। योगिराज अरविन्द घोष ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के वेदभाष्य के विषय में वैदिक मैगजीन १९१६ में लिखा था[१] – [📎पाद टिप्पणी १. आगे उद्धृत श्री अरविन्द का मूल अंग्रेजी लेख और उसका हिन्दी भावांश पं. भगवदत्तजी कृत-वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग २, ‘वेदों के … Continue reading स्वामी दयानन्द सरस्वती के वेदभाष्य का विद्वानों पर प्रभाव ✍🏻 पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक

पण्डित चमूपति जी की कुरआन-विषयक एक भविष्यवाणी

      “हम भविष्यवाणी करते हैं कि कुरान की जो नई व्याख्या लिखी जायेगी उसके ठीक (दुरुस्त) होने की कसौटी ऋषि दयानन्द की समीक्षा होगी। कुछ अहले इस्लाम अपनी कम फ़हमी (भूल भ्रान्तियों) के कारण सत्यार्थप्रकाश के चौदहवें समुल्लास: का विरोध कर तो बैठते हैं, परन्तु उन्हें ज्ञान ही नहीं कि सत्यार्थप्रकाश का चौदहवाँ समुल्लास: यात्रियों का वह मार्गदर्शक शंखनाद है, जो इस्लाम के काफिले को ठीक मान्यताओं की ओर तेज पग उठाने की प्रेरणा दे रहा है।       काफ़िले वालो ! शंखनाद की ध्वनि को सुनो तथा ध्येयधाम की ओर पग उठाओ।” [द्रष्टव्य, चौदहवीं का चाँद (उर्दू पुस्तक) लेखक पण्डित चमूपति, पृष्ठ १८७] ✍🏻 लेखक – पण्डित चमूपति एम॰ए॰ [📖 साभार ग्रन्थ – कवीर्मनीषी पण्डित चमूपति – राजेंद्र जिज्ञासु] प्रस्तुति –  🌺 … Continue reading पण्डित चमूपति जी की कुरआन-विषयक एक भविष्यवाणी

हम हिन्दू है वा आर्य ? । ✍🏻 पण्डित चमूपति एम॰ए॰

[यह “आर्य” का सम्पादकीय लेख का अंश है जो की आषाढ़ सम्वत् १९८२ (जुलाई सन् १९२५) अंक में छपा था]       आर्यसमाज की स्थापना हुए ५० साल से ऊपर हो चुके हैं और तभी से उसका यह दावा रहा है कि हमारे प्राचीन साहित्य में सर्वत्र स्थान-स्थान पर इस देश के रहने वाले लोगों के लिये ‘आर्य’ शब्द ही का प्रयोग होता रहा है और ‘हिन्दू’ शब्द हमारे विरोधी यवन लोगों का ही चलाया हुआ है। इस पर समय-समय पर हिन्दू (सनातनी) लोगों की ओर से यह कहा जाता रहा कि यह सब कार्यवाही इने गिने कुछेक आर्यसमाजियों की है और इसका उद्देश्य गुप्त रूप से आर्यसमाज का प्रचार करना है। अब भी कुछेक ऐसे व्यक्ति हैं जो निष्काम भाव से … Continue reading हम हिन्दू है वा आर्य ? । ✍🏻 पण्डित चमूपति एम॰ए॰

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)