‘धर्म प्रवतर्कों व प्रचारकों के लिए वेद-ज्ञानी होना अपरिहार्य’

ओ३म् ‘धर्म प्रवतर्कों व प्रचारकों के लिए वेद–ज्ञानी होना अपरिहार्य’ देश व विदेशों में नाना मत मतान्तर, जो स्वयं को धर्म कहते हैं, सम्प्रति प्रचलित हैं। इनमें से कोई भी वेदों को या तो जानता ही नहीं है और यदि वेदों का नाम आदि जानता भी है तो वेदों के यथार्थ महत्व से वह सर्वथा अपरिचित होने के कारण वेदों का उपयोग नहीं कर सकता। क्या बिना वेदों का ज्ञान प्राप्त किए किसी सत्य मत की स्थापना की जा सकती है? हमारा अध्ययन कहता है कि बिना वेदों के यथार्थ ज्ञान के धर्म की स्थापना नहीं की जा सकती। यदि की गई है व की जायेगी तो वह धर्म न होकर मत व मजहब होगा और वह पूर्ण सत्य मान्यताओं … Continue reading ‘धर्म प्रवतर्कों व प्रचारकों के लिए वेद-ज्ञानी होना अपरिहार्य’

क्या आर्य विदेशी थे ?

आजकल एक दलित वर्ग विशेष (अम्बेडकरवादी ) अपने राजनेतिक स्वार्थ के लिए आर्यों के विदेशी होने की कल्पित मान्यता जो कि अंग्रेजी और विदेशी इसाई इतिहासकारों द्वारा दी गयी जिसका उद्देश्य भारत की अखंडता ओर एकता का नाश कर फुट डालो राज करो की नीति था उसी मान्यता को आंबेडकरवादी बढ़ावा दे रहे है | जबकि स्वयम अम्बेडकर जी ने “शुद्र कौन थे” नाम की अपनी पुस्तक में आर्यों के विदेशी होने का प्रबल खंडन किया है | आश्चर्य की बात है कि अम्बेद्कर्वादियो के आलावा तिलक महोदय जेसे अदलितवादी लेखक ने भी आर्यों को विदेशी वाली मान्यता को बढ़ावा दिया है | पहले इस मान्यता द्वारा द्रविड़ (दक्षिण भारतीय ) और उत्तर भारतीयों में फुट ढल वाई गयी जबकि … Continue reading क्या आर्य विदेशी थे ?

‘जीवात्मा ईश्वर नहीं, ईश्वर का मित्र बन सकता है’

ओ३म् ‘जीवात्मा ईश्वर नहीं, ईश्वर का मित्र बन सकता है’ मनुष्य जीवन का उद्देश्य है उन्नति करना। संसार में ईश्वर सबसे बड़ी सत्ता है। जीवात्माओं की ईश्वर से पृथक स्वतन्त्र सत्ता है। जीवात्मा को अपनी उन्नति के लिए सर्वोत्तम या बड़ा लक्ष्य बनाना है। सबसे बड़ा लक्ष्य तो यही हो सकता है कि वह ईश्वर व ईश्वर के समान बनने का प्रयास करे। प्रश्न यह है कि मनुष्य यदि प्रयास करे तो क्या वह ईश्वर बन सकता है? इसका उत्तर विचार पूर्वक दिया जाना समीचीन है। इसके लिए ईश्वर तथा जीवात्मा, दोनों के स्वरूप को जानना होगा। ईश्वर क्या है? ईश्वर वह है जिससे यह संसार अस्तित्व में आता है अर्थात् ईश्वर इस सृष्टि या जगत का निमित्त कारण हैं। … Continue reading ‘जीवात्मा ईश्वर नहीं, ईश्वर का मित्र बन सकता है’

‘ईश्वर को क्यों जानें, जानें या न जानें?’

ओ३म् ‘ईश्वर को क्यों जानें, जानें या न जानें?’  हमारे एक लेख ‘ईश्वर सर्वज्ञ है तथा जीवात्मा अल्पज्ञ है’ को गुरूकुल में शिक्षारत एक ओजस्वी युवक व हमारे मित्र ने पसन्द किया और अपनी प्रतिक्रया में कहा कि लोग ईश्वर को मानते नहीं है अतः एक लेख इस शीर्षक से लिखें कि हम ईश्वर को क्यों मानें? हमें यह सुझाव पसन्द आया और हमने इस विषय पर लिखने का उन्हें आश्वासन दिया। ईश्वर को हम मानें या न मानें, परन्तु पहले उसे जानना आवश्यक हैं। जानना क्यों है? इसलिये कि यदि हमें उससे कुछ लाभ होता या हो सकता है तो हम उससे वंचित न रहें। यदि उससे कुछ लाभ नहीं भी होता है तो फिर उसे जानकर उसको मानना … Continue reading ‘ईश्वर को क्यों जानें, जानें या न जानें?’

द्वन्द्वों के सहन से परमपद की ओर….. शिवदेव आर्य, गुरुकुल पौन्धा, देहरादून

प्राचीन काल से ही द्वन्द्वों के सहन करने का विशेष महत्त्व रहा है। प्रत्येक प्राणी के लिए द्वन्द्वों का सहन करना अत्यावश्यक है। द्वन्द्व-सहन से मनुष्य किसी भी प्रकार की देश-काल-परिस्थिति में विना किसी की सहायता लिये सहन कर सकता है। प्रथम विचारणीय है द्वन्द्व किसे कहते है? इसके उत्तर के लिए हम गीता की ओर अपनी दृष्टि दौड़ते हैं तब हमें ज्ञात होता है कि – जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।                         शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।। (गीता-6/7) अर्थात् जिसने अपने आपको इन्द्रियों की दासता से छुड़ा दिया है, उसका चित्त प्रशान्त रहता है और जिसप्रकार स्थिरदर्पण में सूर्य का प्रतिबिम्ब भी स्थिर और स्पष्ट दीखता रहता है, इसीप्रकार प्रशान्त चित्त में शीतोष्ण, सुख-दुःख, मानापमान आदि सब द्वन्द्वों के बीच एकरस … Continue reading द्वन्द्वों के सहन से परमपद की ओर….. शिवदेव आर्य, गुरुकुल पौन्धा, देहरादून

दान का स्वरूप : शिवदेव आर्य

  हमारी वैदिक संस्कृति में त्याग, सेवा, सहायता, दान तथा परोपकार को सर्वोपरि धर्म के रूप में निरुपित किया गया है, क्योकि वेद में कहा गया है – ‘शतहस्त समाहर सहस्त्र हस्त सं किर१ अर्थात् सैकड़ों हाथों से धन अर्जित करो और हजारों हाथों से दान करो। गृहस्थों, शासकों तथा सम्पूर्ण प्राणी मात्र को वैदिक वाङ्मय में दान करने का विधान किया गया है।  ‘दक्षिणावन्तो अमृतं भजन्ते२ , ‘न स सखा यो न ददाति सख्ये३ , पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि४, शुद्धाः पूता भवत यज्ञियासः५  इत्यादि अनेक मन्त्रों में दान की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है। दान लेना ब्राह्मणों का शास्त्रसम्मत   अधिकार है परन्तु वहीं यह भी निरुपित किया गया है कि दान सुपात्र को दिया जाए, जिससे कोई … Continue reading दान का स्वरूप : शिवदेव आर्य

क्या यही हुतात्माओं का भारतवर्ष है? शिवदेव आर्य

  आज हमारे भारतवर्ष को गणतन्त्र के सूत्र में बन्धे हुए 66 वर्ष हो चुकें हैं। इन वर्षों में हमने बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ खोया है। गणतन्त्रता का अर्थ है – हमारा संविधान, हमारी सरकार, हमारे कर्तव्य और हमारा अधिकार।                 भारत का प्रत्येक नागरिक जब गणतन्त्र दिवस का नाम सुनता है तो हर्ष से आप्लावित हो उठता है परन्तु जब वही नागरिक इस बात पर विचार करता है कि यह गणतन्त्रता तथा स्वतन्ता हमें कैसे मिली? तो उसकी आंखों से अश्रुधारा वह उठती है और कहने  लग जाता है कि – दासता गुलामी की बयां जो करेंगे, मुर्दे भी जीवित से होने लगेंग। सही है असह्य यातनायें वो हमने, जो सुनकर कानों के पर्दे हिलेंगे।। 26 जनवरी … Continue reading क्या यही हुतात्माओं का भारतवर्ष है? शिवदेव आर्य

‘पुनर्जन्म व त्रैतवाद के सिद्धांत पर एक आर्य विद्वान के नए तर्क व युक्तियाँ ‘

ओ३म् ‘पुनर्जन्म व त्रैतवाद के सिद्धांत पर एक आर्य विद्वान के नए तर्क व युक्तियाँ ‘ वैदिक सनातन धर्म पुनर्जन्म के सिद्धान्त को सृष्टि के आरम्भ से ही मानता चला आ रहा है। इसका प्रमाण है कि सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने प्रथम चार ऋषियों और स्त्री-पुरूषों को उत्पन्न किया। अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नाम के चार ऋषियों को परमात्मा ने चार वेदों का ज्ञान दिया। वेदों में पुनर्जन्म का सिद्धान्त ईश्वर द्वारा बताया गया है। इसलिए इस सिद्धान्त पर शंका करने का कोई कारण नहीं है। तथापि अनेक तर्कों से इस सिद्धान्त को सिद्ध भी किया जा सकता है। वैसे सिद्धान्त कहते ही उसे हैं जो स्वयं सिद्ध हो व जिसे तर्क व युक्तियों से सिद्ध किया … Continue reading ‘पुनर्जन्म व त्रैतवाद के सिद्धांत पर एक आर्य विद्वान के नए तर्क व युक्तियाँ ‘

‘एक ऐतिहासिक स्थल की खोज जहां रोचक शास्त्रार्थ हुआ था’

ओ३म् ‘एक ऐतिहासिक स्थल की खोज जहां रोचक शास्त्रार्थ हुआ था’  समय समय पर अनेक ऐतिहासिक घटनायें घटित होती रहती हैं परन्तु कई बार उनमें से कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का महत्व न जानकर उस काल के लोग उसकी सुरक्षा का ध्यान नहीं करते। बाद के लोगों को उसके लिए काफी पुरूषार्थ करना पड़ता है। कई बार सफलता मिल जाती है और कई बार नहीं मिलती। डा. कुशल देव शास्त्री आर्य जगत के प्रतिष्ठित विद्वान, अथक गवेषक, तपस्वी सेवक, खोजी लेखक व पत्रकार थे। जून सन् 1997 में कादियां में आयोजित पं. लेखराम बलिदान शताब्दी समारोह में वह पधारे थे। हम भी इस कार्यक्रम में अपने मित्रों के साथ पहुचें थे। कादियां में ही आर्य समाज के इतिहास प्रसिद्ध विद्वान और … Continue reading ‘एक ऐतिहासिक स्थल की खोज जहां रोचक शास्त्रार्थ हुआ था’

‘क्या हमारा अब तक का जीवन व्यर्थ चला गया है?’

ओ३म् प्रेरकप्रसंग ‘क्या हमारा अब तक का जीवन व्यर्थ चला गया है?’ हम अपने सारे जीवन भर यह भूले रहते हैं कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है। हम संसार में क्यों आये हैं? न हमें इसके बारे में माता-पिता से कोई विशेष ज्ञान मिलता है और न हि हमारे आचार्य व अध्यापक ही विद्यालयों में इस विषय के बारे में पढ़ाते या बताते हैं। माता, पिता व आचार्य का उद्देश्य यही होता है कि हम खा-पी कर स्वस्थ बने और शिक्षा पाकर अच्छा रोजगार प्राप्त कर लें और विवाह, सन्तान, धन, सम्पत्ति, सुविधापूर्ण आवास, कार आदि खरीद कर सुखी जीवन व्यतीत करें। यही आम मनुष्य के जीवन का उद्देश्य उसकी जीवन शैली को देखकर विदित होता है। कभी कोई … Continue reading ‘क्या हमारा अब तक का जीवन व्यर्थ चला गया है?’

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)