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ब्रह्मा : इब्राहीम : कुरान : बाइबिल: – पं. शान्तिप्रकाश

विधर्मियों की ओर से आर्य हिन्दू जाति को भ्रमित करने के लिये नया-नया साहित्य छप रहा है। पुस्तक मेला दिल्ली में भी एक पुस्तिका के प्रचार की सभा को सूचना मिली है। सभा से उत्तर देने की माँग हो रही है। ‘ज्ञान घोटाला’ पुस्तक के साथ ही श्रद्धेय पं. शान्तिप्रकाश जी का यह विचारोत्तेजक लेख भी प्रकाशित कर दिया जायेगा। पाठक प्रतिक्षा करें। पण्डित जी के इस लेख को प्रकाशित करते हुए सभा गौरवान्वित हो रही है। – राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’

हमारे शास्त्र ब्रह्मा को संसार का प्रथम गुरु मानते हैं। जैसा कि उपनिषदों में लिखा है कि

यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै।

परमात्मा ब्रह्मा को पूर्ण बनाता और उसके लिये (चार ऋषियों द्वारा) वेदों का ज्ञान देता है। अन्यत्र शतपथादि में भी अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा पर ऋग्यजु: साम और अथर्व का आना लिखा है। सायण ने अपने ‘ऋग्वेदोपोद्घात’ में इन चार ऋषियों पर उन्हीं चार वेदों का आना स्वीकार किया है। वेदों में वेदों को किसी एक व्यक्ति पर प्रकट होना स्वीकार नहीं किया। देखिये-

यज्ञेन वाच: पदवीयमायन्तामन्वविन्दनृषिषु प्रविष्टाम्।

– ऋ. मण्डल १०

इस मन्त्र में ‘वाच:’ वेदवाणियों के लिये बहुवचन है तथा ‘ऋषिषु प्रविष्टाम्’ ऋषियों के लिये भी बहुवचन आया है।

चार वेद और चार ऋषि- ‘चत्वारि वाक् परिमिता पदानि’ चार वेद वाणियाँ हंै, जिनके अक्षर पदादि नपे-तुले हैं। अत: उनमें परिवर्तन हो सकना असम्भव है, क्योंकि यह ईश्वर की रचना है।

देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति।

– अथर्व. १०

परमेश्वर देव के काव्य को देख, जो न मरता है और पुराना होता है। सनातन ईश्वर का ज्ञान भी सनातन है। शाश्वत है।

अपूर्वेणेषिता वाचस्ता वदन्ति यथायथम्।

– अथर्व. १०-७-१४

संसार में प्रथम उत्पन्न हुए ऋषि लोग ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा पृथ्वी के वैज्ञानिक रहस्यों को प्रकट करने में समर्थ अथर्ववेद का प्रकाश ईश प्रेरणा से करते हैं।

प्रेणा तदेषां निहितं गुहावि:।। – ऋ. १०-७१-१

इन ऋषियों की आत्म बुद्धि रूपी गुहा में निहित वेद-ज्ञान-राशि ईश प्रेरणा से प्रकट होती है। इस प्रसिद्ध मन्त्र में भी ऋषियों के लिए ‘एषां’ का प्रयोग बहुवचनान्त है।

अत: उपनिषद् के प्रथम प्रमाण का अभिप्राय यह हुआ कि ब्रह्मा के लिये वेदों का ज्ञान ऋषियों द्वारा प्राप्त हुआ, वह स्पष्ट है।

अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ने चारों वेदों का पूर्ण ज्ञान जिन ऋषियों को दिया, उसमें ब्रह्मा ने सबसे प्रथम मनुष्यों में वेद-धर्म का प्रचार किया और धर्म की व्यवस्था तथा यज्ञों का प्रचलन किया। अत: ब्रह्माजी संसार के सबसे पहले संस्थापक गुरु माने जाने लगे। क्योंकि वेद में ही लिखा है कि-

ब्रह्मा देवानां पदवी:। – ऋग्वेद ९-९६-६

-ब्रह्मा विद्वानों की पदवी है। बड़े-बड़े यज्ञों में चार विद्वान् मन्त्र-प्रसारण का कार्य करते हैं। उनमें होता, उद्गाता, अध्वर्यु और ब्रह्मा अपने-अपने वेदों का पाठ करते हुए ब्रह्मा की व्यवस्था में ही कार्य करते हैं, यह प्राचीन आर्य मर्यादा इस मन्त्र के आधार पर है-

ऋचां त्व: पोषमास्ते पुपुष्वान्

गायत्रं त्वो गायति शक्वरीषु।

ब्रह्मा त्वो वदति जातिवद्यां

यज्ञस्य मात्रां विमिमीत उत्व:। – ऋग्. १०-७१-११

ऋग्वेद की ऋचाओं की पुष्टि होता, सामकी, शक्तिदात्री ऋचाओं की स्तुति उद्गाता, यजु मन्त्रों द्वारा यज्ञमात्रा का अवधारण अध्वर्यु द्वारा होता है और यज्ञ की सारी व्यवस्था तथा यज्ञ कराने वाले होतादि पर नियन्त्रण ब्रह्मा करता है।

मनु-धर्मशास्त्र में तो स्पष्ट वर्णन है-

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्।

दुदोह यज्ञ सिद्धयर्थमृग्यजु: सामलक्षणम्।

-मनु. १/२३

-ब्रह्माजी ने अग्नि, वायु, आदित्य ऋषियों से यज्ञ सिद्धि के लिये ऋग्यजु:साम का दोहन किया।

मनु के इस प्रमाण में अथर्ववेद का उल्लेख इसलिये नहीं किया गया कि यज्ञ सिद्धि में अथर्ववेद तो ब्रह्मा जी का अपना वेद है।

वेदत्रयी क्यों- जहाँ-जहाँ यज्ञ का वर्णन होगा, वहाँ-वहाँ तीन वेदों का वर्णन होगा तथा चारों वेदों का विभाजन छन्दों की दृष्टि से भी ऋग्यजुसाम के नाम से पद्यात्मक, गद्यात्मक और गीतात्मक किया गया है। अत: ज्ञानकर्मोपासना-विज्ञान की दृष्टि से वेद चार और छन्दों की दृष्टि से वेद-त्रयी का दो प्रकार का विभाजन है। कुछ भी हो वेद, शास्त्र, उपनिषद् तथा इतिहास के ग्रन्थों में ब्रह्मा को प्रथम वेद-प्रचारक, संसार का अगुवा या पेशवा के नाम से प्रख्यात माना गया है।

यहूदी, ईसाई और मुसलमान संस्कार-वशात् मानते चले आए हैं, जैसा कि उनकी पुस्तकों से प्रकट है।

कुर्बानी का अर्थ- ब्रह्मा यज्ञ का नेता अगुआ या पेशवा है। यज्ञ सबका महोपकारक होने से देवपूजा, संगतिकरण दानार्थक प्रसिद्ध है। इसी को सबसे बड़ा त्याग और कुर्बानी माना गया है। किन्तु वाममार्ग प्रचलित होने पर महाभारत युद्ध के पश्चात् पशु-यज्ञों का प्रचलन भी अधिक-से-अधिक होता चला गया। इससे पूर्व न कोई मांस खाता और न यज्ञों के नाम से कुर्बानी होती थी।

बाईबल के अनुसार भी हजरत नूह से पूर्व मांस खाने का प्रचलन नहीं था, जैसा कि वाचटावर बाईबल एण्ड टे्रक्स सोसायटी ऑफ न्यूयार्क की पुस्तक ‘दी ट्रुथ वेट सीड्स ईटनैल लाईक’ में लिखा है।

यहूदियों और ईसाईयों के अनुसार मांस की कुर्बानी खूदा के नाम से नूह के तूफान के साथ शुरु हुई है। तब इसको हजरत इब्राहीम के नाम से शुरू किया गया कि इब्राहीम ने खुदा के लिये अपने लडक़े की कुर्बानी की, किन्तु खुदा ने लडक़े के स्थान पर स्वर्ग से दुम्बा भेजा, जिसकी कुर्बानी दी गई। स्वर्ग से दुम्बा लाने की बात कमसुलम्बिया में लिखी है।

यहूदी कहते हैं कि हजरत इब्राहीम ने इसहाक की कुर्बानी की थी, जो मुसलमानों के विचार से हजरत इब्राहीम की पत्नी एरा से उत्पन्न हुआ था। किन्तु मुसलमानों का विश्वास है कि हजरत इब्राहीम की दासी हाजरा से उत्पन्न हुए हजरत इस्माईल की कुर्बानी दी गयी थी, जिसके बदले में जिब्राइल ने बहिश्त से दुम्बा लाकर कुर्बानी की रस्म पूरी कराई।

इसलिये मुसलमान भी हजरत इब्राहीम की स्मृति में पशुओं की कुर्बानी देना अपना धार्मिक कत्र्तव्य समझते हैं। परन्तु भूमि के पशुओं की कुर्बानी की आवश्यकता खुदा को होती तो बहिश्त से दुम्बा भेजने की आवश्यकता न पड़ती। दुम्बा तो यहीं धरती पर मिल जाता।

बाईबल के अनुसार तो पशुबलि की प्रथा हजरत इब्राहीम के बहुत पहले नूह के युग में आरम्भ हुई है। जैसा कि पीछे ‘वाच एण्ट टावर’ का प्रमाण दिया जा चुका है। किन्तु वास्तव में ब्रह्मा मनु से पूर्व हुए हैं। मनु को ही नूह माना जाता है।

ब्रह्मा ही इब्राहीम- हाफिज अताउल्ला साहब बरेलवी अनुसार हजरत इब्राहीम तो ब्रह्मा जी का ही नाम है, क्योंकि वेदों में ब्रह्मा और सरस्वती, बाईबिल में इब्राहम हैं और सर: तथा इस्लाम में इब्राहीम सर: यह वैयक्तिक नाम हैं, जो समय पाकर रूपान्तरित हो गये। सर: सरस्वती का संक्षेप है। आर्य-जाति में वती बोलना, न बोलना अपनी इच्छा पर निर्भर है जैसा कि पद्मावती की पद्मा और सरस्वती को सर: (य सरस) बोला जाता है, जो शुद्ध में संस्कृत का शब्द है। सरस्वती शब्द वेदों में कई बार आया है। जैसे-

चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनां।

यज्ञं दधे सरस्वती। – ऋ. १-३-११

सत्य-वक्ता, धर्मात्मा-द्विज, ज्ञानयुक्त लोगों को धर्म की प्रेरणा करती हुई, परोक्ष पर विश्वास रखने वाले सुमतिमान् लोगों को शुभ मार्ग बताती हुई, सरस्वती-वेद वाणी यज्ञो (पंच महायज्ञादि) प्रस्थापना करती है।

अत: स्पष्ट है कि सरस्वती वेद-वाणी को कहते हैं और ब्रह्मा चार वेद का वक्ता होने से ही पौराणिकों में चतुर्मुख प्रसिद्ध हो गया है।

चत्वारो वेदा मुखे यस्येति चतुर्मुख:।

लुप्त बहुब्रीहि समास का यह एक अच्छा उदाहरण है। चारों वेद जिसके मुख में अर्थात् कण्ठस्थ हंै। चारों वेदों में निपुण विद्वान् का नाम ही ब्रह्मा है। ब्रह्मा विद्वानों की एक उच्च पदवी है जो सृष्टि के आरम्भ से अब तक चली आ रही है और जब तक संसार है, यह पदवी मानी जाती रहेगी। अनेकानेक ब्रह्मा संसार में हुए हैं और होंगे।

अब भी यज्ञ का प्रबन्धक ब्रह्मा कहलाता है। ब्रह्मा का वेदपाठ और यज्ञ के साथ विशेष सम्बन्ध है। वेदवाणी को सरस्वती कहा गया है।

यहूदी, ईसाई और मुसलिम मतों में सरस्वती का सर: और ब्रह्मा का इब्राम बन इब्राहीम हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है।

काबा-यज्ञस्थली- ब्रह्मा यज्ञ का आदि प्रवर्तक है। वेद, कुरान और बाईबल इसमें एक मत है। यज्ञशाला चौकोर बनाई जाती है। इसीलिये मक्का में काबा भी चौकोर है, जो इब्राहीम ने बनवाया था। यह यज्ञीय स्थान है। यज्ञ में एक वस्त्र जो सिला न हो, पहनने की प्राचीन प्रथा है। मुसलमानों ने मक्का के हज्ज में इस प्रथा को स्थिर रखा हुआ है। यज्ञ को वेद में अध्वर कहा गया है।

ध्वरति हिंसाकर्म तत्प्रतिषेध:।

अध्वर का अर्थ है, जिसमें हिंसा न की जाय। इसलिये मुसलमान हाजी हज्ज के लिये एहराम बांध लेने के पश्चात् हिंसा करना महापाप मानते हैं।

वैदिक धर्मियों में वाममार्ग युग में हिंसा का प्रचलन हुआ। वाममार्ग के पश्चात् ही वैदिक-धर्म का ह्रास होकर बौद्ध, जैन, यहूदी, ईसाई, इस्लाम आदि मतों का प्रचलन हुआ है। यज्ञों में पशु हत्या और कुर्बानी में पशु बलि की प्रथा भी वाममार्ग=उल्टा मार्ग- ही माना गया है, जो वास्तव में सच्चे यज्ञों अथवा सच्ची कुर्बानी का मार्ग नहीं है।

नमस्=नमाज- आर्यों के पाँच यज्ञों में नमस्कार का प्रयोग हुआ, नमाज नमस् का रूपान्तर है। पाँच नमाज तथा पाँच इस्लाम के अकान पंचयज्ञों के स्थानापन्न हंै:-

कुरान में पंचयज्ञ- १. ब्रह्म यज्ञ- दो समय सन्ध्या- नमाज तथा रोजा कुरान के हाशिया पर लिखा है कि पहिले दो समय नमाज का प्रचलन था। देखो फुर्कान आयत ५

२. देव यज्ञ- हज्ज तथा जकात या दान पुण्य।

३. बलिवैश्वदेवयज्ञ- कुर्बानी पशुओं की नहीं, किन्तु पशु-पक्षी, दरिद्रादि को बलि अर्थात् भेंट देना ही सच्ची कुर्बानी है। धर्म के लिये जीवन दान महाबलिदान है।

४-५. पितृ यज्ञ तथा अतिथि यज्ञ- इस प्रकार आर्यों के पंच यज्ञ और इस्लाम के पाँच अरकानों का कुछ तो मेल है ही। इस्लाम के पाँच अरकार नमाज, जकात, रोजा, हज्ज और कुर्बानी हैं।

कुर्बानी शब्द कुर्व से निकला, जिसके अर्थ समीप होना अर्थात् ईश्वरीय गुणों को धारण कर ईश्वर का सान्निध्य प्राप्त करना है, इन अर्थों में पशु हत्या तो हिन्दुओं के पशुयज्ञ की भाँति विकृति का परिणाम मात्र है। वेदों में यज्ञ को अध्वर कहा है, जिसका अर्थ है- हिंसारहित शुभकर्म इसी प्रकार कुर्बानी शब्द में भी हिंसा की भावना विद्यमान नहीं।

ब्रह्मा ने वेदों के आधार पर यज्ञों का प्रचलन किया तथा यज्ञों में सबसे बड़े विद्वान् को आर्यों में ब्रह्मा की पदवी से विभूषित किया जाता है। अत: ब्रह्मा शब्द रूढि़वादी नहीं। अनेक ब्रह्मा हुए हैं और होंगे भी। किसी समय फिलस्तीन में ब्रह्मा को इब्राम और अरब देशों में इब्राम का इब्राहीम शब्द रूढ़ हो गया।

वैदिक-ज्ञान को वेद में सरस्वती कहा है, लोक में पद्मावती को केवल पद्मा सरस्वती को केवल सर: कहने की प्रथा का उल्लेख कर चुके हैं। अत: पुराणों में ब्रह्मा और सरस्वती तथा सर: एवं इस्लाम में भी इब्राहीम और सर: शब्दों का प्रचलन होने से सिद्ध होता है कि दोनों शब्द वेदों के अपभ्रंश मात्र होकर इन मतों में विद्यमान हैं।

कुरान शरीफ में लिखा है कि हजरत साहिब फरमाते हैं-

१. लोग कहते हैं कि यहूदी या ईसाई हो जाओ, किन्तु में तो इब्राहीम के धर्म को मानता हूँ, जो एक तरफ का था और मूर्ति-पूजक न था। परमात्मा का सच्चा उपासक था। -सूरा: वकर आयत १३५

२. ईश्वर ने ब्रह्माहीम संसार का इमाम= [धर्म का नेता] बनाया। सूरा बर, आयत १२४

३. ऐ लोगो! इब्राहीम के सम्बन्ध में क्यों झगड़ते हो और इब्राहीम पर तौरेत व इन्जील नहीं उतरी, किन्तु यह तौरेत व इन्जील तो उनके बहुत पीछे की हैं। पर तुम समझदारी क्यों नहीं करते।

इबराहीम न यहूदी था, न ईसाई, किन्तु एक ओर का मुस्लिम था वा मुशरिक मूर्ति-पूजक न था अनेक-ईश्वरवादी भी न था- अल इमरान, आयत ६४.६६

उस इब्राहीम के धर्म को मानो जो एक निराकार का उपासक था और मूर्ति-पूजक न था। -अल, इमरान, आयत ९४

कुरान शरीफ में हिजरत इब्राहीम के यज्ञ मण्डप का नाम काबा शरीफ रखा है। काबा चौकाने यज्ञशाला की भाँति होने से भी प्रमाणित है कि किसी युग में यह अरब के लोगों का यज्ञीय स्थान था, जहाँ हिंसा करना निषिद्ध था, जिसकी परिक्रमा भी होती थी और उपासना करने वालों के लिये उसे हर समय पवित्र रखा जाता था। इसकी आधारशिला इब्राहीम और इस्माईल ने रखी थी। देखो- सूरा बकर, आयत १२५ से १२७

कुरान शरीफ में स्पष्ट लिखा है कि कुर्बानी आग से होती थी। अल इमरान आयत १, २, खूदा की सुन्नत कभी तबदील नहीं होती। सूरा फतह, आयत २४

मूसा को पैगम्बरी आग से मिली। जहाँ जूती पहन के नहीं जाया जाता। सूरा त्वाह, आयत ११-१३

खुदा को कुर्बानी में पशु मांस और रक्त स्वीकार्य नहीं। खुदा तो मनुष्यों से तकवा अर्थात् पशु-जगत् पर दया-परहेजगारी-शुभाचार-सदाचार स्व्ीकारता है। सूरा हज्ज, आयत १७

‘‘हज्ज और अमरा आवश्यक कर लेना एहराम हैं। एहराम यह कि नीयत करे आरम्भ करने की और वाणी से कहे लव्वैक। पुन: जब एहराम में प्रविष्ट हुआ तो स्त्री-पुरुष समागम से पृथक् रहें। पापों और पारस्परिक झगड़ों से पृथक् रहें। बाल उतरवाने, नाखून कटवाने, सुगन्ध लेप तथा शिकार करने से पृथक् रहें। पुरुष शरीर पर सिले वस्त्र न पहिने, सिर न ढके। स्त्री वस्त्र पहिने, सिर ढके, किन्तु मुख पर वस्त्र न डाले। -मौजुहुल्कुरान, सूरा बकर, आयत १९७’’

इस समस्त प्रमाण भाग का ही यही एक अभिप्राय है कि हज्ज में हिंसा की गुंजाइश नहीं। कुर्बानी – कुर्वे खुदा अर्थात् ईश्वरीय सन्निध्य प्राप्ति का नाम हुआ। अत: कुरान-शरीफ में पशुओं की कुर्बानी की मुख्यता नहीं है। ऐसा कहीं नहीं लिखा कि जो पशुहत्या न करे, वह पापी है। हाँ, यह तो लिखा है कि खुदा को पशुओं पर दया करना ही पसन्द है, क्योंकि वह खून का प्यासा नहीं और मांस का भूखा नहीं। -सूरा जारितात, आयत ५६-५८

कुछ स्थानों पर मांस खाने का वर्णन है, किन्तु वह मोहकमात=पक्की आयतें न होकर मुतशावियात=संदिग्ध हैं अथवा उनकी व्याख्या यह है कि आपत्ति काल में केवल जीवन धारण के लिये अत्यन्त अल्प-मात्रा में प्रयुक्त करने का विधान है। देखो-सूरा बकर, आयत १७३

अत: मुस्लिम संसार से प्रार्थना है कि कुरान शरीफ में मांस न खाना पाप नहीं है। खाना सन्दिग्ध कर्म और त्याज्य होने से निरामिष होने में ही भलाई है, यही दीने- इब्राहीम और ब्रह्मा का धर्म है, जिस पर चलने के लिये कुरान शरीफ में बल दिया है।

इसी आधार पर आर्य मुस्लिम एकता तो होगी ही, किन्तु राष्ट्र में हिन्दू मुसलमानों के एक कौम होने का मार्ग भी प्रशस्त हो जायेगा। परमात्मा करे कि ऐसा ही हो।

उत्तर दिया जायः- राजेन्द्र जिज्ञासु

उत्तर दिया जायः-

मिर्जाइयों द्वारा नेट का उपयोग करके पं. लेखराम जी तथा आर्यसमाज के विरुद्ध किये जा रहे दुष्प्रचार का उत्तर देना मैंने उ.प्र. के कुछ आर्य युवकों की प्रबल प्रेरणा से स्वीकार कर लिया। मेज-कुर्सी सजा कर घरों में बैठकर लबे-लबे लेख लिखने वाले तो बहुत हैं, परन्तु जान जोखिम में डालकर विरोधियों के प्रत्येक प्रहार का प्रतिकार करना प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं। वास्तव में इस बारे में नया तो कुछाी नहीं। वही घिसी-पिटी पुरानी कहानियाँ, जिनका उत्तर पूज्य पं. देवप्रकाश जी के ‘दाफआ ओहाम’ खोजपूर्ण पुस्तक तथा मेरे ग्रन्थ ‘रक्तसाक्षी पं. लेखराम’ तथा मेरी अन्य पुस्तकों में भी समय-समय पर दिया जा चुका है।

अब की बार परोपकारी व किसी अन्य पत्रिका में इस विषैले प्रचार का निराकरण नहीं करूँगा। ‘रक्तसाक्षी पं. लेखराम’ ग्रन्थ का संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण प्रेस में दिया जा चुका है। मैं जानता हूँ कि विधर्मियों से टकराना जान जोखिम में डालने जैसा काम है। गत 61 वर्ष से इस कार्य को करता चला आ रहा हूँ। अब भी पीछे नहीं हटूँगा। पं. धर्मभिक्षु जी, पं. विष्णुदत्त जी, पं. सन्तरामजी, पं. शान्तिप्रकाश जी, पं. निरञ्जनदेव जी से लेकर इस लेखक तक मिर्जाइयों की कुचालों व अभियोगों का स्वाद चखते रहे हैं। श्री रबे कादियाँ जी (पं. इन्द्रजित्देव के कुल के एक धर्मवीर) पर तो मिर्जाइयों ने इतने अभियोग चलाये कि हमें उनकी ठीक-ठीक गिनती का भी ज्ञान नहीं।

सन् 1996 में स्वामी सपूर्णानन्द जी के आदेश से कादियाँ में दिये गये व्यायान पर जब गिरतारी की तलवार लटकी तो मैंने श्री रोशनलाल जी को कादियाँ लिखा था कि श्री सेठ हरबंसलाल या पंजाब सभा मेरी जमानत दे-यह मुझे कतई स्वीकार नहीं। स्वामी सर्वानन्द जी महाराज या श्री रमेश जीवन जी मेरी जमानत दे सकते हैं। तब श्री स्वामी सपूर्णानन्द जी मेरे साथ जेल जाने को एकदम कमर कसकर तैयार थे। यह सारी कहानी वह बता सकते हैं। हमें फँसाया जाता तो दो-दो वर्ष का कारावास होता। मेरा व्यायान प्रमाणों से परिपूर्ण था सो मिर्जाइयों की दाल न गली।

सिखों में एक सिंध सभा आन्दोलन चला था। सिंध सभा नाम की एक पत्रिका भी खूब चली थी। इसका सपादक पं. लेखराम जी का बड़ा भक्त था। उस निडर सपादक ने मिर्जाई नबी पर खूब लेखनी चलाई। उसका कुछ लुप्त हो चुका साहित्य मैंने खोज लिया है। रक्तसाक्षी पं. लेखराम ग्रन्थ के नये संस्करण में इस निर्भीक सपादक के साहित्य के हृदय स्पर्शी प्रमाण देकर मिर्जाइयत के छक्के छुड़ाऊँगा। जिन्हें मिशन का दर्द है, जाति की पीड़ा है, वे आगे आकर इस ग्रन्थ के प्रसार में प्रकाशक संस्था को सक्रिय सहयोग करें। श्री महेन्द्रसिंह आर्य और अनिल जी ने उत्तर प्रकाशित करने का साहसिक पग उठाया है। श्री प्रेमशंकर जी मौर्य लखनऊ व उनके सब सहयोगी इस कार्य में सब प्रकार की भागदौड़ करने में अनिल जी के साथ हैं।

एक जानकारी देना रुचिकर व आवश्यक होगा कि जब प्राणवीर पं. लेखराम मिर्जा के इल्हामी कोठे पर गये थे, तब सिंध सभा का सपादक भी उनके साथ था। नबी के साथ वहाँ पण्डित जी की संक्षिप्त बातचीत-उस ऐतिहासिक शास्त्रार्थ के प्रत्यक्ष दर्शी साक्षी ने नबी को तब कैसे पिटते व पराजित होते देखा-यह सब वृत्तान्त प्रथम बार इस ग्रन्थ में छपेगा। न जाने पं. लेखराम जी ने तब अपने इस भक्त का अपने ग्रन्थ व लेखों में क्यों उल्लेख नहीं किया? औराी कई नाम छूट गये। पूज्य स्वामी सर्वानन्द जी महाराज की उपस्थिति में सन् 1996 के अपने व्यायान में सपादक जी के साहित्य के आवश्यक अंश मैंने कादियाँ में सुना दिये थे। सभवतः उन्हीं से मिर्जाइयों में हड़कप मचा था।

नारी का नर्क इस्लाम

नारी किसी भी परिवार या वृहद् रूप में कहें तो समाज कि धुरी है . नारी शक्ति के विचार, संस्कार उनकी संतति को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं उनके निर्माण में गुणों या अवगुणों कि नींव डालते हैं और यही संतति आगे जाके समाज का निर्माण करती है. लेकिन यदि नारी के अधिकारों का हनन कर दिया जाये तो एक सभ्य समाज बनने कि आशंका धूमिल हो जाती है. अरब भूखण्ड में इसके भयंकर प्रभाव सदियों से प्रदर्शित हो रहे हैं जो अत्यंत ही चिंता जनक हैं . इसका प्रमुख कारण नारी जाती पर अत्याचार उनको प्रगति के अवसर न देना और केवल जनन करने के यन्त्र के रूप में देखना ही प्रमुख है.
इस्लाम के पैरोगार इस्लाम को नारी के लिए स्वर्ग बताते रहे हैं चाहे उसमे पाकिस्तान के जनक होने कि भूमिका अदा करने वाले मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी हों या वर्तमान युग में इस्लामिक युवकों के लिए आतंकवादी बनने का प्रेरणा स्त्रोत जाकिर नायक हों . लेकिन वास्तविकता इसके कहीं विपरीत है और विश्व उसका साक्षी है इसके लिए कहने के लिए कुछ शेष ही नहीं है किस तरह इस्लामिक स्टेट्स (ISIS) वर्तमान युग में भी औरतों को मंडियां लगा के बेच रहा है इसके अधिक भयानक क्या हो सकता है जिस सभ्यता में औरत केवल एक हवस पूर्ती का साधन और बच्चे पैदा करने का यन्त्र बन कर रह जाये . ऐसी सभ्यता से मानवता की उम्मीद लगाना ही बेमानी है
औरत की प्रगति से मानवता के गिरने का सिलसिला शुरू होता है:-
मौलाना मौदूदी साहब लिखते हैं कि स्त्री को शैतान का एजेंट बना कर रख दिया है . और उसके उभरने से मानवता के गिरने का सिलसिला शुरू हो जाता है .
औरतों के मेल जोल खतरनाक
औरतों और मर्दों के मेल से बेहयाई कि बाढ़ आ जाती है कामुकता और ऐश परस्ती पूरी कौम के चरित्र को तबाह कर देती है और चरित्र कि गिरावट के साथ बौद्धिक शारीरिक और भौतिक शक्तियों का पतन भी अवश्य होता है . जिसका आखिरी अंजाम हलाकत व बर्बादी के कुछ नहीं है .
औरत जहन्नम का दरवाजा है
“ऐसे लोगों ने समाज में यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि औरत गुनाह कि जननी है . पाप के विकास का स्त्रोत और जहन्नम का दरवाजा है सारी इंसानी मुसीबतों कि शुरुआत इसी से हुयी है.”
मौलाना ने ईसाईयों धर्म गुरुओं के हवाले से लिखा है कि औरत ”
शैतान के आने का दरवाजा है
वह वर्जित वृक्ष कि और ले जाने वाली
खुदा के कानून को तोड़ने वाली
खुदा कि तस्वीर मर्द को गारत करने वाली है
भले ही मौलाना साहब ने ये विचार इसाई लोगों के अपने पुस्तक में दिए हैं लेकिन उनके पूर्वलिखित व्याख्यानों और अरब में जो घटित हो रहा है वो इसी कि पुश्टी करता है.
औरत कभी उच्च कोटि की विद्वान् नहीं हो सकती :
मौलाना साहब और इस्लाम जिसकी वो नुमाइंदगी करते हैं महिलाओं के घर से बाहर और काम करने के कितने खिलाफ हैं ये जानने के लिए काफी है कि वो इसे इंसानी नस्ल के खात्मे की तरह देखते हैं .
मौलाना लिखते हैं :” अतः जो लोग औरतों से मर्दाना काम लेना चाहते हैं , उनका मतलब शायद यही है कि या तो सब औरतों को औरत विहीन बनाकर इंसानी नस्ल का खात्मा कर दिया जाये”
” औरत को मर्दाना कामों के लिए तैयार करना बिलकुल ही प्रकृति के तकाजों और प्रकृति के उसूलों के खिलाफ है और यह चीज न इंसानियत के फायदेमंद और न खुद औरत के लिए ही ”
औरत केवल बच्चे पैदा करने कि मशीन:
मौलाना लिखते हैं कि ” चूँकि जीव विज्ञानं (BIOLOGY) के मुताबिक़ औरत को बच्चे कि पैदाइश और परवरिश के लिए ही बनाया गया है और प्रकृति और भावनाओं के दायरे में भी उसके अन्दर वही क्षमताएं भर दी गयी हैं जो उसकी प्राकृतिक जिम्मेदारी के लिए मुनासिब हैं
जिन्दगी के एक पहलू में औरतें कमजोर हैं और मर्द बढे हुए हैं आप बेचारी औरत को उस पहलू में मर्द के मुकाबले पर लाते हैं जिसमें वो कमजोर हैं इसका अनिवार्य परिणाम यही निकलेगा कि औरतें मर्दों से हमेशा से कमतर रहेंगी
संभव नहीं कि औरत जाती से अरस्तू, कान्त , इब्ने सीना , हेगल , सेक्सपियर , सिकन्दर ,नेपोलियन बिस्मार्क कि टक्कर का एक भी व्यक्ति पैदा हो सके.

औरत शौहर कि गुलाम
मौलाना लिखते हैं कि दाम्पत्य एक इबादत बन जाती है लेकिन तुरंत आगे कि पंक्तियों में उनकी वही सोच प्रदर्शित होती है वो लिखते हैं कि ” अगर औरत अपने शौहर कि जायज इच्छा से बचने के लिए नफ्ल रोजा रख के या नमाज व तिलावत में व्यस्त हो जाये तो वह गुनाह्ग्गर होगी .
इस कथन कि पुष्टि में वह मुहम्मद साहब से हवाले से लिखते हैं कि :
” औरतें अपने शौहर कि मौजूदगी में उसकी इजाजत के बिना नफ्ल रोजा न रखे” ( हदीस : बुखारी )
” जो औरत अपने शौहर से बचकर उससे अलग रात गुजारे उस पर फ़रिश्ते लानत भेजते हैं , जब तक कि वह पलट न आये ” ( हदीश : बुखारी )
“….. रातों को सोता भी हूँ , और औरतों से विवाह भी करता हूँ. यह मेरा तरीका है और जो मेरे तरीके से हेट उसका मुझसे कोई वास्ता नहीं ” ( हदीस बुखारी )
ऊपर दिए मौलाना मौदूदी के कथन और हदीसों से साफ़ जाहिर है कि औरत इस्लाम में केवल अपने शौहर के मर्जी पर जीने वाली है . शौहर कि मर्जी के बगैर या औरत के लिए शौहर कि इच्छा पूर्ति ही सर्वोपरि है उसके न करने पर उसके लिए फरिश्तों की लानत आदि से डराया धमकाया गया है . और मुहमम्द साहब ने यह कह कर कि विवाह करना ही सर्वोपरि है और अन्यथा मुझसे अर्थात इस्लाम्स से कोई वास्ता नहीं सब कुछ स्पस्ट ही कर दिया कि औरत केवल और केवल मर्दकी इच्छा पूर्ति का साधन है .

मर्द औरत का शाषक है :
मौलाना मौदूदी लिखते हैं कि इस्लाम बराबरी का कायल नहीं है जो प्राकृतिक कानून के खिलाफ हो . कर्ता पक्ष होने कि हैसियत से वैयक्तिक श्रेष्ठता मर्द को हासिल है वह उसने ( खुदा ने ) इन्साफ के साथ मर्द को दे रखी है . और इसके लिए वह कुरान कि अति विवादित आयत जो मर्द को औरत से श्रेष्ठ बताती है का हवाला देते हैं :-
” और मर्दों के लिए उन पर एक दर्जा ज्यादा है ( कुरान २: २२८ )
“मर्द अपनी बीवी बच्चों पर हुक्मरां ( शाषक ) है और पाने अधीनों के प्रति अपने अमल पर वह खुदा के सामने जवाबदेह है ( हदीस : बुखारी )
औरत को घर से निकलने के लिए शौहर की इजाजत
“खुदा के पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने फरमाया – जब औरत अपने शौहर कि मर्जी के खिलाफ घर से निकलती है तो आसमान का हर फ़रिश्ता उस पर लानत भेजता है और जिन्नों और इंसानों के सिवा हर वह चीज जिस पर से वह गुजरती है फिटकार भेजती है उस वक्त तक कि वह वापस न हो ( हदीस : कश्फुल – गुम्मा )

पति कि बात न मारने पर पिटाई :
हदीस कि किताब इब्ने माजा में है कि नबी ने बीवियों पर जुल्म करने कि आम मनाही कर दी थी . एक बार हजरत उमर ने शिकायत कि कि औरतें बहुत शोख (सरकश ) हो गयी हैं उनको काबू में करने के लिए मारने कि इजाज़त होनी चाहिए और आपने इजाजत दे दी ( पृष्ठ २०२)
” और जिन बीवियों से तुमको सरकशी और नाफ़रमानी का डर हो उनको नसीहत करो ( न मानें ) तो शयन कक्ष (खाब्गाह ) में उनसे ताल्लुक तोड़ लो ( फिर भी न मानें तो ) मारो , फिर भी वे अगर तुम्हारी बात नमान लें तो उन पर ज्यादती करने के लिए कोई बहना न धुन्ड़ो ) (कुरान ४ : ३४ )

औरत का कार्यक्षेत्र केवल घर की चारदीवारी :
इस्लाम में औरतों कोई केवल घर कि चार दीवारी में ही कैद कर दिया गया है , उसके घर से बाहर निकलने पर तरह तरह कि पाबंदियां लगा दी गयी यहीं , शौहर कि आज्ञा लेना अकेले न निकलना इत्यादी इत्यादी और ऐसा न करने पर तरह तरह से डराया गया है पति को मारने के अधिकार , फरिश्तों का डर और न जाने क्या क्या यहाँ तक कि मस्जिद तक में आने को पसंद नहीं किया गया
– उसको महरम ( ऐसा रिश्तेदार जिससे विहाह हराम हो ) के बिना सफर करने कि इजाजत नहीं दी गयी ( हदीस तिर्मजी , अबू दाउद )
– हाँ , कुछ पाबंदियों के साथ मस्जिद में आने कि इजाजत जरुर दी गयी अहि लेकिन इसको पसंद नहीं किया गया
अर्थात हर तरीके से औरत के घर से निकलने को न पसंद किया गया है , इसके लिए पसंदीदा शक्ल यही है कि वह घर में रहे जैसा कि आयत ” अपने घरों में टिककर रहो (कुरान ( ३३:३३) की साफ़ मंशा है .
घर से निकलने पर पाबंदियों :
मर्द अपने इख्तियार से जहाँ चाहे जा सकता अहि लेकिन औरत, चाहे कुंवारी हो या शादी शुदा या विधवा हर हाल में सफ़र में उसके साथ एक मरहम (ऐसा रिश्तेदार जिससे विहाह हराम हो ) जरुर हो
– किसी औरत के लिए , जो अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखती हो , यह हलाल (वैध ) नहीं कि वह तीनदिन या इससे ज्यादा का सफ़र करे बिना इसके कि उसके साथ उसका बाप या भाई या शौहर या बेटा या कोई मरहम (ऐसा रिश्तेदार जिससे विहाह हराम हो मर्द हो ( हदीस)
– और अबू हुरैरह कि रवायत नबी से यह है कि नबी ने फरमाया :”औरत एक दिन रात का सफर न करे जब तक कि उसके साथ कोई मरहम मर्द न हो ( हदीस : तिर्माजी )
और हजरत अबू हुरैरह से यह भी रिवायत है कि नबी ने फरमाया ” किसी मुसलमान औरत के लिए हलाल नहीं है कि एक रात का सफ़र करे उस वक्त तक जब तक उसके साथ एक मरहम मर्द न हो ( हदीस : अबू दाउद )

औरत को अपनी मर्जी से शादी कि इजाजत नहीं:
मौलाना मौदूदी लिखते हैं मर्द को अपने विवाह के मामले में पूरी आजादी हासिल है . मुसलमान या इसाई यहूदी औरतों में से जिसके साथ विवाह कर सकता है लेकिन औरत इस मामले में बिलकुल आजाद नहीं है वह किसी गैर मुस्लिम से विवाह नहीं कर सकती
“न ये उनके लिए हलाल हैं और न वे इनके लिए हलाल ” ( कुरान ६०”१०)
आजाद मुसलमानों में से औरत अपने शौहर का चुनाव कर सकती है लेकिन यहाँ भी उसके लिए बाप दादा भाई और दुसरे सरपरस्तों कि राय का लिहाज रखना मौलाना ने जरुरी फरमाया ही अर्थात पूरी तरह से औरत को विवाह करने के लिए दूसरों कि मर्जी के अधीन कर दिया गया है .
सन्दर्भ : पर्दा लेखक मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी

हदीस: औरत का दोजक्ख में होना क्यूंकि वह अपने शौहर का नाफ़रमानी करती है |

औरत का  दोजक्ख में होना क्यूंकि वह अपने शौहर का नाफ़रमानी करती है |

इस्लाम में यह बोला जाता है की औरत और पुरुष को एक समान अधिकार है | वह  उपभोग की वस्तु नहीं है | खैर यह हमें दिलासा के लिए बोला जाता है की औरत को एक समान अधिकार है | आज हम कुछ पहलु इस्लाम से जाहिर करते हैं जिससे यह मालुम हो जाएगा की औरत को इस्लाम में एक समान अधिकार नहीं बल्कि एक उपभोग की वस्तु है | कुरआन में भी यह बोला गया है की औरत को खेती समझो | चलिए ज्यादा बाते न बनाते हुए औरत की बारे में सहीह बुखारी हदीस से हम प्रमाण रख रहे हैं |

Saheeh bukhaari hadees  volume 1 book 2 : belief  hadees  number 28

Narrated Ibn Abbas :  The Prophet said : “ I was shown the hell-fire and that the majority of its dwellers were woman who were ungrateful.” It was asked. “do they  disbelieve in allah ? “ (or are they  ungrateful to allah ? ) he replied , “ They are ungrateful to their husbands and are ungrateful for the favors  and good (charitable deeds)  done to them . if you have always been good (benevolent)   to one of them and then she sees something  in you (not of her liking), she will say, ‘ I have never received any good from you.”

मुख़्तसर सहीह बुखारी हदीस जिल्द  1 बुक  2 इमान का बयान   हदीस संख्या  27

इब्ने अब्बास रजि. से रिवायत है, उन्होंने कहा , नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : मैंने दोजक्ख  में ज्यादातर औरतो को देखा (क्यूंकि) वह कुफ्र करती है | लोगो ने कहा : क्या वह अल्लाह का कुफ्र करती है ? आपने फरमाया : “ नहीं बल्कि वह अपने शौहर की नाफ़रमानी करती है  और एहसान फरामोश है , वह यूँ की अगर तू सारी उम्र औरत से अच्छा सलूक करे फिर वह (मामूली सी ना पसंद ) बात  तुझमे देखे तो कहने लगती है की  मुझे तुझ से कभी आराम नहीं मिला | “

 

ऊपर हमने हदीस से इंग्लिश और हिंदी में प्रमाण दिया है |

समीक्षा :  यह बात समझ में  नहीं आई की यदि कोई शौहर गलत काम करे  तो भी  उस औरत को उसकी  शौहर की बात को मानना पड़े  यदि वह  ना माने  तो  वह दोजख  जायेगी | यह कैसा इस्लाम में औरत  को समानता दी गयी है यह बात समझ से परे है | शौहर गलत ही क्यों ना हो उसका विरोध ना करो | शौहर का सब  बात को सही समझो | सभी बात को स्वीकार करो | क्या औरत खिलौना है ? क्या औरत के पास कोई अक्ल  नहीं है ? सब अक्ल पुरुष के पास है ?  यदि शौहर अपनी बीवी की बात ना माने तो वह कहाँ जाएगा ? वह शौहर दोजख क्यों नहीं जाएगा ? यह कैसा समानता औरत पुरुष में ?

 

यदि लेख में किसी तरह की त्रुटी हुयी हो तो आपके सुझाब सादर आमंत्रित हैं  |

धन्यवाद  |

 

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ये पिंजरे की नारी

islam men nari

“इस्लाम में नारी” यह शब्द सुनते ही चेहरे पर चिंता की लकीर खींच जाती है और नरक के विचार आने लगते है, “पिंजरे में कैद पंछी” और “इस्लाम में नारी” लगता है ये दोनों वाक्य एक दूजे के पर्याय है

महिला आयोग हो या मानवाधिकार आयोग या so called समाजसुधारक आमिर खान हो इन्हें कभी भी इस्लाम की कुरीतियों पर मुहं खोलना याद नहीं आता है परन्तु देखा जाए तो विश्व में यदि कोई मत सम्प्रदाय है जिस पर इन लोगों को वास्तव में मुहं खोलना चाहिए तो वो है “इस्लाम”

खैर इस विषय पर जितना लिखते जायेंगे उतना कम लगेगा क्यूंकि इस्लाम में नारी केवल और केवल भोग विलास का साधन है

जिस प्रकार हम सनातनी कर्म की प्रधानता को मानते है इस्लाम को मानने वाले काम-वासना को प्रधान मानते है तभी तो बच्चे का खतना करते है ताकि उसकी सेक्स क्षमता को बढाया जा सके (ये इस्लाम को मानने वालो का तर्क है) वैसे अपने इस तर्क को छुपाने के लिए कई बार नमाज के समय शरीर के पाक साफ़ होने का वास्ता देकर उचित बताते है हां यह बात अलग है की मुहम्मद के समय तो अरब निवासी जुम्मे के जुम्मे नहाते थे

चलिए जैसे हमने इस लेख की प्रधानता नारी को दी है तो आइये इस्लाम में नारी की स्थिति और इस्लाम के विद्वानों की नारी के प्रति क्या सोच है कुरान क्या कहती है इसका विश्लेषण कर लिया जाये

अभी आपको याद होगा हाजी अली में महिलाओं के जाने पर रोक थी पर अदालत ने इस रोक को हटा दिया है और महिलाओं के हाजी अली में प्रवेश को प्रारम्भ कर दिया है

यह प्रभाव है हमारे सनातन धर्म का उसी के प्रभाव और सनातन धर्म में नारी के स्थान से प्रभावित होकर ही आज महिलाओं को हाजी अली में जाने अधिकार प्राप्त हुआ है वरना जैसे अरब देशों में महिलाओं की शरीयत से दयनीय स्थिति ही वैसी भारत में भी इस्लामिक महिलाओं की स्थिति बन चुकी है

महिलाओं का मस्जिदों में जाने पर प्रतिबन्ध कुरान का लगाया है यह तर्क इस्लामिक विद्वान देते आये है

“इस्लामिक कानून में पसंदीदा शक्ल यही है की वह (नारी) घर में रहे जैसा की आयत “अपने घरों में टिककर रहो” (कुरान ३३:३३)

“हाँ कुछ पाबंदियों के साथ मस्जिदों में आने की इजाजत जरुर दी गई है, लेकिन इसको पसंद नहीं किया गया !”
“उसको महरम (ऐसा रिश्तेदार जिससे विवाह हराम हो) के बिना सफ़र करने की भी इजाजत नहीं दी गई”
इसी तरह एक हदीस में फरमाया है की

“औरतों के लिए वह नमाज श्रेष्ठ है जो घर के एकांत हालत में पढ़ी जाए”
“नबी ने हिदायत फरमाई की छिपकर अकेले कोने में नमाज पढ़ा करो”

जहाँ एक तरह सम्पूर्ण विश्व इस बात पर जोर दे रहा है जो सनातन धर्म की देन है की महिला और पुरुष को समान दर्जा दिया जाए
वहीँ इस्लाम में नारी को आज तक केवल भोग का साधन मात्र रखा हुआ है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हाजी अली की घटना है जहाँ किसी इस्लामिक संस्था ने नहीं बल्कि अदालत को मस्जिद में जाने का अधिकार दिलाने के लिए आगे आना पड़ा

ये एक घटना नहीं है ऐसी कई घटना है जिससे ये प्रमाणित हो जाता है की इस्लाम आज तक उस द्कियानुकिश सोच से आगे नहीं बढ़ पाया कभी कभी ये मजाक भी सही लगता है और सही भी है की सम्पूर्ण विश्व (इस्लाम को छोड़कर) आज चाँद पर पहुँच गया है पर इस्लाम अभी तक बुर्के में ही अटका हुआ है

इस्लाम के पैरोकार इस्लाम में महिला की स्थिति सनातन धर्म से बेहतर बताने के कई झूठे दावे करते है परन्तु उनके दावों की पोल उनके इमामों के फतवे ही खोल देते है तो कोई और क्या कहे

कुरान में एक आयत है जहाँ औरतों को पीटने तक की इजाजत दी गई है उसे प्रमाणित यह व्रतांत करता है

“हदीस की किताब इब्ने माजा में है की एक बार हजरत उमर ने शिकायत की कि औरते बहुत सरकश हो गई है, उनको काबू में करने के लिए मारने की इजाजत होनी चाहिए और आपने इजाजत दे दी ! और लोग ना जाने कब से भरे बैठे थे, जिस दिन इजाजत मिली, उसी दिन सतर औरते अपने घरों में पिटी गई”

यहाँ तर्क देने को कुछ बचता नहीं है इस्लामिक विद्वानों के पास क्यूंकि यह तो कुरान ही सिखाती है और मोहम्मद साहब ने इसे और पुख्ता कर दिया

अब यदि किसी को विचार करना है तो इस्लाम को मान रही महिलाओं, औरतों, बहु, बेटियों को करना है की वे कब तक इस जहन्नुम में रहेगी और कब अपनी आवाज को इन अत्याचारों के विरुद्ध बुलंद करेगी या क़यामत तक का इन्तजार करते रहेगी

और सतर्क होना है तो गैर इस्लामिक महिलाओं को की इस मत से जुड़े लड़कों के जाल में फसकर अपने परिजनों को जीते जी चिता में मत जलाना

इसके साथ ही में अपने शब्दों को विराम देता हूँ और वही निवेदन पुनः करता हूँ की बेहतर भविष्य और आमजन में जानकारी पहुंचाने हेतु www.aryamantavya.in के सभी लेखों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाए

धन्यवाद

औरतों का खतना: एक दर्दनाक इस्लामिक मान्यता

khatna

मोमिन कहते है कि इस्लाम में नारी को जो सम्मान मिला है वो किसी मत मतान्तर में नहीं मिला,

मत मतान्तर मेने प्रयोग किया है और उपयुक्त भी है परंतु धर्म की परिभाषा से अनभिज्ञ लोग इस्लाम ईसाइयत आदि मत मतान्तरों को भी धर्म कहते है, यह लम्बा विषय है जिस पर कभी भी लिखा जा सकता है परंतु हम आज जिस बात पर चर्चा कर रहे है वो मुद्दा इस सृष्टि के रचनाकार के माध्यम यानी नारी शक्ति को लेकर है तो मोमिनों की भांति विषयांतर ना करके हम विषय को आगे बढ़ाते है

इस्लाम में नारी की स्थिति इस्लामिक नरक में काफिरों के जैसी है
जहाँ पर्दा प्रथा यानी काला बुरका पहनने की पाबंदी चाहे कितनी ही झुलसा देने वाली गर्मी हो पर उस काले हीटर को धारण करना अतिआवश्यक है
फिर बच्चों की पूरी फ़ौज पैदा करना
प्रसव पीड़ा को एक नारी ही समझ सकती है और इस पीड़ा से इस्लाम में बार बार गुजरना पड़ता है

और तलाक के तीन शब्द कहने मात्र से यहाँ नारी की जिंदगी जो पहले से नरक थी और बदतर हो जाती है

विवाह जैसे रिश्ते यहाँ मकड़ी के जाल से भी कच्चे होते है

{हा जिसे बचपन से ऐसे ही संस्कार मिले हो उनके लिए तो यही जन्नत है परन्तु उन्हें भी चाहिए की इस इस्लामिक कुए से बाहर निकलकर सनातन वैदिक धर्म के स्वर्ग से रूबरू हो}

ये ऐसे नर्क वाले तथ्य तो लगभग सभी जानते है परंतु आज आपको एक नए तथ्य से अवगत कराते है

इसे पढ़ने मात्र से आपका रोम रोम खड़ा हो जाएगा तो सोचिये उस नारी की स्थिति क्या होगी जो इसे सहन करती है

इस्लाम में लड़कों का खतना तो हमने सुना ही है

आज आपको लड़कियों के खतने के बारे में बताते है

हवस से भरे इस मजहब में जहाँ कुछ इस्लामिक विद्वान खतने को शरीर की सफाई से जोड़ते है वही कुछ विद्वान इसे सेक्स का समय और आनन्द बढाने का माध्यम बताते है

अब लड़कियों के बारे में विचार किया जाए तो यहाँ कौनसी शारीरिक सफाई उससे होती है समझ से बाहर दिखेगी

हदीस मे लेखक कहता है कि

“लड़कियों का खतना भी वाजिब है और मुस्तहिब यह है कि फजूल खाल कम कम काटे और ज्यादा न काटे”

इस्लामिक विद्वान/नबी अपने आप को अल्लाह/ईश्वर से बढ़कर स्वयं को समझते है जो उसकी बनाई मानवीय कृति में भी छेड़छाड़ कर उसे ईश्वरीय बताते है

लड़कों के लिंग की खाल और लड़कियों के शर्मगाह की चमड़ी क्या अल्लाह/ईश्वर ने बेवजह बनाई है?

क्या अल्लाह अल्पज्ञ है ?

क्या अल्लाह को इतना भी ज्ञान नहीं की वो मनुष्यों में कुछ फ़ालतू अंग या चमड़ी आदि दे रहा है ?

क्या अल्लाह को अब इस्लामिक विद्वानों से सीखने की जरुरत है ?

इन विद्वानों को देखकर इन सब का जवाब “हां” ही लगता है

आगे लेखक लिखता है

“जिसका खतना न हुआ हो जमीन उसके पेशाब से कराहत करती है”

इस हास्यास्पद ब्यान पर में अपने शब्द लिखने की जगह पाठकों पर ये जिम्मेदारी देता हूं कि आप इसे ब्यान पर दो शब्द कहें

आगे लेखक ने हजरत मोहम्मद की बात रखते हुए इस हास्यास्पद ब्यान को पुख्ता करने का प्रयत्न किया है

“रसूल फरमाते है कि जिसका खतना न हुआ हो उसके पेशाब से जमीन चालीस दिन नजिस (परेशान) रहती है”

दूसरी हदीस में फरमाते है की

“जमीन उसके पेशाब से खुदाए तआला के सामने फ़रियाद करती है”

“खतना करने से औरत अपने शौहर की नजर में इज्जत पाती है फिर औरत को क्या चाहिए”

ये एक पंक्ति ही बता देती है की इस्लाम में औरत के लिए केवल एक ही कार्य है वह है उसके पति के सामने अपनी इज्जत बनाये रखने के लिए अपने शरीर तक को पीड़ा पहुचाती रहे

ये कैसा मजहब है और विचार कीजिये वो पति कितना सख्त दिल होगा जो अपनी अर्धांगनी को ऐसी शारीरिक पीड़ा से गुजरने देगा और जो गुजरने दे तो उससे भविष्य में क्या अपेक्षा की जा सकती है ?? यह विचार तो इस्लाम में घुट घुट कर जी रही महिलाओं को करना चाहिए

“औरतों का खतना सात बरस बाद करे”

सात वर्ष का होने के बाद से अत्याचार की शुरुआत हो जाती है

जो इस्लाम पग पग पर कुरान के अनुसार जीने को प्रेरित करता रहा है वही इस्लाम कुरान से इतर भी कर्म करता है उसी का उदाहरण है ये महिलाओं का खतना

दूसरी हदीस में लिखा है की
“पहली औरत जिसकी खतना की गई वह हजरते हाजरा हजरते इस्माइल अलैहिस्सलाम की वालिदा थी की हजरते सारा वालिदा-ए-हजरते इस्हाक अलैहिस्सलाम ने गुस्से से उनकी खतना कर दी थी मगर वह और हजरते हाजरा की खूबी की ज्यादती का बाएस हुई और उसी दिन से औरतों की खतना करने की सुन्नत जारी हुई”

और एक जगह देखिये हजरत क्या कहते है

एक बार लड़कियों के खतना करने वाली महिला “उम्मे-हबीबा” से हजरत ने फरमाया की

“ऐ उम्मे-हबीबा! जो काम तू पहले करती थी अब भी करती है ??

तो उसने कहा “रसुल्लाह अब तक तो करती हूँ मगर अब आप मना फरमाएंगे तो छोड़ दूंगी !

तो हजरत ने कहा

“नहीं छोड़ नहीं ! यह तो हलाल काम है बल्कि आ ! में तुझे समझा दूँ की क्या करना चाहिए, जब तू औरतो का खतना करे तो ज्यादा मत काटा कर बल्कि थोड़ा थोड़ा की उससे चेहरा ज्यादा नुरानी हो जाता है और रंग ज्यादा साफ़, और शौहर की नजर में इज्जत ज्यादा हो जाती है”

ये कोई इस्लामिक अविज्ञान होगा जिसका पल्लू अभी मुसलमान पकडे बैठे है

हिन्दू मत में अंधविश्वास की बाते करने वाले मत सम्प्रदायों को अपने मतों में फैले ऐसे अंधविश्वासों पर भी आँखे और मुह खोलने चाहिए

इस्लाम को औरतों के लिए जन्नत कहने वालों को इस्लाम का वास्तविक चेहरा एक बार स्वयं देख लेना चाहिए ऐसी बात कहना भी बैमानी लगता है

हां यह सही है की औरतों को चाहे वे इस्लाम में है या इस्लाम की और आकर्षित है या किसी मुस्लमान के प्यार में फसी हुई है उन सभी को ये वास्तविकता को देखना चाहिए पढना चाहिए

पाठकगण से आग्रह है की इसे लोगों में फैलाए जागरूकता बढाये और अपनी बहन बेटियों को इस्लाम के इस नरक से रूबरू कराए

इसी नरक को छुपाने को ये मुसलमान झूठे जन्नत के फलसफे सुनाते है

सन्दर्भ : तहजीब उल इस्लाम, अल्लामा मजलिसी

जाकिर नाईक – देशद्रोही क्यों? डॉ. धर्मवीर

जाकिर नाईक – देशद्रोही क्यों?

इस समाज की समस्या है कि यहाँ सत्य से सामना करने का किसी में साहस नहीं है। जो लोग कुछ जानते नहीं उनको हम दोषी नहीं मान सकते, उनके सामने तो जो भी कोई अपनी बात को अच्छे प्रकार से रखेगा, वे उसी को स्वीकार कर लेते हैं। जिनके पास अच्छा-बुरा पहचानने की क्षमता है, वे स्वार्थ के वशीभूत सत्य कहने से बचते हैं। इसी अज्ञान के वातावरण में इस्लाम का जन्म हुआ है। इस्लाम के जन्म के समय जो लोग थे, वे मूर्त्ति पूजक थे। पैगबर मोहमद ने मूर्ति-पूजा का विरोध किया। मन्दिर तोड़े, लोगों को मूर्ति-पूजा से दूर रहने के लिये कहा। पैगबर मोहमद का यह प्रयास पहले से अधिक घातक और अज्ञानता को बढ़ाने वाला रहा। पहले लोग मूर्ति-पूजा के अज्ञान में अनुचित कार्यों को करते थे। अब इसमें और अधिक अज्ञानता और उसके प्रति दुराग्रह उत्पन्न हो गया।
इस्लाम में जो सबसे अमानवीय बात है, वह मनुष्य को स्वविवेक से वञ्चित करना है। प्रायः सभी गुरु, नेता, पण्डित इस उपाय का आश्रय लेते हैं, परन्तु इस्लाम में दूसरे के विचार की उपस्थिति ही स्वीकार नहीं की गई। पैगबर ने शिष्यों, अनुयायियों को निर्देश दिया कि मेरे अतिरिक्त किसी की बात सुननी ही नहीं। विरोधी की बात सुनना भी पाप है, मानना तो दूर की बात है। दूसरे का विचार सुनने को पाप (कुफ्र) माना गया। जो कुछ मोहमद साहब ने किया और कहा, वही आदर्श है, जो कुछ कुरान में लिखा गया, वह अल्लाह का अन्तिम आदेश है।
इस विषय में इस्लाम पर शोध करने वाले विद्वान् अनवर शेख लिखते हैं- कुरान अल्लाह का वचन नहीं हैं, बल्कि (पैगबर) मुहमद की रचना है, जिसके लिये उसने अपनी पैगबरता बनाये रखने के लिये अल्लाह को श्रेय दिया है। इसके अनेकों प्रमाण हैं- (सम आस्पेक्ट्स ऑफ कुरान, पृ. 17, 18, 21)
दूसरी सपूर्ण मानव समाज के प्रति हानि पहुँचाने वाली बात- दुनिया में एक ही दीन है और वह है इस्लाम और इसके अतिरिक्त संसार में किसी भी विचार का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं है। वह विचार दूसरा नहीं है बल्कि विरोधी और शत्रु है। इस संसार में रहना हो तो उसे मुसलमान बनकर ही रहना चाहिए। सोचने की बात है कि क्या किसी अन्य पर किसी का इतना अधिकार हो सकता है कि वह उसके जीने के और स्वतन्त्रता के अधिकार को ही समाप्त कर दे? इस्लाम या मोहमद साहेब को यह अधिकार किसने दिया? किसी ने भी नहीं दिया। यह अधिकार उनका स्वयं का उपार्जित है। परन्तु संसार बड़ा विचित्र है, उस अधिकार को ऐसे बताया जा रहा है, जैसे भगवान ने उन्हें ही यह अधिकार देकर भेजा है।
इस्लाम के संस्थापक ने जहाँ इस्लाम को एक मात्र संसार का वास्तविक धर्म घोषित किया, वहाँ इस विचार के लिये, इसको मानने वाले को यह भी अधिकार दिया कि किसी भी उपाय से वे इस धर्म का प्रचार-प्रसार करें। इसके लिये लोभ, लालच, धोखा, हिंसा, बलात्कार, किसी भी उपाय का सहारा क्यों न लेना पड़े। पैगबर ने अपने धर्म को बढ़ाने-फैलाने के लिये सत्ता का सहारा लिया और तलवार के बल पर अपने देश में और दूसरे देशों में उसको फैलाया। इसको जिहाद कहा गया। मुसलमानों के लिये जिहाद एक प्रेरणा और आवश्यक कर्त्तव्य होने के कारण इस्लाम अहिंसक नहीं हो सकता। एक मुसलमान के लिये किसी गैर-मुसलमान के विरुद्ध जिहाद से मुकर जाना एक महापाप है। जो ऐसा करेंगे वे जहन्नुम की आग में पकेंगे। डॉ. के.एस. लाल (थ्योरी एण्ड प्रेक्टिस ऑफ मुस्लिम स्टेट इन इण्डिया, पृ. 286)
इस धर्म को सुरक्षित और बलवान बनाने के लिये एक और सिद्धान्त प्रतिपादित किया- ‘‘संसार में राज्य करने का अधिकार केवल मुसलमान को है।’’ पैगबर की मान्यता के अनुसार मुसलमान और अन्य धर्मावलबी में राज्य करने का अधिकार इस्लाम के मानने वाले का है। यदि दो व्यक्ति मुसलमान हैं तो राज्य का अधिकार अरब के मुसलमान का है, अरब से बाहर के मुसलमान को नहीं। यदि सत्ता का विभाजन अरब के दो मुसलमानों के बीच होना है, तो यह अधिकार मक्का के मुसलमान को ही मिलना चाहिये। यदि दोनों मुसलमान मक्का के ही हों, तो यह अधिकार कुरैश को मिलना चाहिए। अपने आपको ही ठीक और श्रेष्ठ मानने के इस विचार को कुछ भी करके प्राप्त करने की स्वतन्त्रता ने इस्लाम के अनुयायी को अपराध की ओर प्रेरित किया।
इस्लाम को धर्म की श्रेणी में रखने की आवश्यकता खुदा और जन्नत के कारण है। ये दोनों वस्तुएँ तो इस संसार में मिलती नहीं है, अन्यथा इस्लाम का धर्म से कोई सबन्ध नहीं है। सभी धर्म अंहिसा और संयम के बिना नहीं चलते, क्योंकि धर्म के यात्रा-रथ के ये दोनों पहिये हैं। इनके बिना धर्म का रथ चलेगा कैसे? परन्तु इस्लाम ने इन दोनों को ही समाप्त कर दिया है। इसलिये सारे मुस्लिम इतिहास में हिंसा और महिलाओं के प्रति अत्याचार को बढ़ावा मिला है।
इस विचार ने मनुष्य को अपराध करने का अधिकार दे दिया। यह व्यक्ति नहीं, विचार का परिणाम है। इस्लाम की मान्यता को सत्य सिद्ध करने के प्रयास को जाकिर नाईक के कथन में देखा जा सकता है। एक संवाद में जाकिर नाईक से प्रश्न किया गया है कि इस्लामी देशों में मन्दिर चर्च आदि क्यों नहीं बनाने दिया जाता, जबकि गैर मुस्लिम देशों में मस्जिद बनाने और उनकी परपरा का पालन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। इस पर नाइक का उत्तर है- यदि तीन व्यक्तियों को अध्यापक बनाने के लिये बुलाया गया हो और उनसे प्रश्न पूछा जाये कि चार और तीन कितने होते हैं? एक का उत्तर हो- चार-दो सात होते हैं, दूसरे का उत्तर हो, चार और चार सात होते हैं और तीसरे का उत्तर हो चार और तीन सात होते हैं। जिसका उत्तर ठीक होगा, उसे ही अध्यापक बनाया जायेगा, वैसे ही जो धर्म शत-प्रतिशत ठीक है, उसी को हमारे देश में स्थान दिया जाता है, दूसरे को नहीं। धर्म इनका, निर्णय भी इनका, परीक्षा की आवश्यकता नहीं। जब बिना परीक्षा के ही निर्णय करना है तो शेष लोगों का धर्म ठीक क्यों नहीं? आप कहते हैं- मेरा धर्म ही ठीक है, कहने से तो कोई ठीक नहीं होता, परन्तु इस्लाम में यही सिखाया जाता है। एक ही दीन ठीक है और उसे ही रहना चाहिये। दूसरे को संसार में रहने का अधिकार नहीं है।
जाकिर नाईक को आर्य समाज ने सदा ही चुनौती दी है। लिखित भी, मौािक भी। वह ‘आप और हम दोनों मूर्ति पूजक नहीं हैं’ कहकर पीछे हट जाता है। जाकिर नाईक दूसरों की मान्यता पर तर्क करता है, प्रश्न उठाता है, परन्तु इस्लाम पर प्रश्न उठाने को अनुचित कहता है। वह हिन्दू धर्म पर चोट करते हुये कहता है- ‘जो शिव अपने बेटे गणेश को नहीं पहचानता, वह मुझे कैसे पहचानेगा।’ परन्तु पैगबर द्वारा अंगुली से चाँद के दो टुकड़े करने को ठीक मानता है।
वह धर्म की रक्षा के लिये मानव बम बनकर शत्रु को नष्ट करने को उचित ठहराता है। जब कोई आतंकवादी देशद्रोही सेना के हाथों मारा जाता है, तो उससे पीछा छुड़ाने के लिये कहा जाता है- आतंकी का कोई धर्म नहीं होता। फिर उसकी अन्तिम यात्रा धार्मिक रूप से क्यों निकाली जाती है? हजारों लोग उसे श्रद्धाञ्जलि क्यों देते हैं? उसके लिये जन्नत की कामना क्यों करते हैं?
इस्लाम में दोजख का भय और जन्नत का आकर्षण इतना अधिक है कि सामान्य व्यक्ति भी अपराध के लिये प्रेरित हो जाता है। जन्नत में हूरें, शराब, दूध की नदियाँ, वह सब जो इस दुनिया में नहीं मिल सका, जन्नत में मिलेगा। केवल उसे पैगबर का हुकुम मानना है। उसे पता है- जीवन चाहे जैसा हो, यदि वह एक काफिर को मार डालता है, तो उसे जन्नत बशी जायेगी। कुछ जो उस मनुष्य ने संसार में चाहा, परन्तु उसके भाग्य में नहीं था, फिर वह सब कुछ जन्नत में इतनी सरलता से पा सकता है, तो वह क्यों नहीं प्राप्त करना चाहेगा।
इसी प्रकार दोजख का भय भी एक मुसलमान को कोई दूसरी बात सोचने से भी डराता है। उसे सिखाया जाता है- जो कुरान को न माने, पैगबर को न माने, वह काफिर है, उसकी सहायता करना गुनाह है, अपराध है और अपराध का दण्ड दोजख है। कुरान में लिखा है- ‘जो लोग ईमान लाते हैं, अल्लाह उनका रक्षक और सहायक है। वह उन्हें अन्धेरे से निकाल कर प्रकाश की ओर ले जाता है। रहे वे लोग, जिन्होंने इन्कार किया, तो उनके संरक्षक बढ़े हुये सरकश हैं, वे उन्हें प्रकाश से निकाल कर अन्धेरे की ओर ले जाते हैं। वे ही आग (जहन्नुम) में पड़ने वाले हैं।’ (2.257, पृ. 40)
जिसे अल्लाह मार्ग दिखाये, वह ही मार्ग पाने वाला है और वह जिसे पथ-भ्रष्ट होने दे, तो ऐसे लोगों के लिये उससे इतर तुम सहायक नहीं हो पाओगे। कयामत के दिन हम उन्हें औंधे मुँह इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि वे अन्धे, गूंगे और बहरे होंगे। उनका ठिकाना जहन्नुम है। जब भी उसकी आग धीमी पड़ने लगेगी, तो हम उसे उनके लिये और भड़का देंगे। (17.97, पृ. 247)
यदि कोई मुसलमान अपने धर्म का त्याग करे, तो उसके लिये कहा गया है-
और तुम में से जो कोई अपने दीन से फिर जाय और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया और आखिर में नष्ट हो गये और वही आग (जहन्नुम) में पड़ने वाले हैं। वे उसी में सदैव रहेंगे। (2:217, पृ. 33)
जहन्नुम जिसमें वे प्रवेश करेंगे, तो वह बहुत ही बुरा विश्राम-स्थल है। यह है, उन्हें अब इसे चखना है- खौलता हुआ पानी और रक्त-युक्त पीप और इसी प्रकार की दूसरी चीजें, यह एक भीड़ है, जो तुहारे साथ घुसी चली आ रही है। कोई आरामगाह उनके लिये नहीं, वे तो आग में पड़ने वाले हैं। (38:56-58, पृ. 405)
भला इस परिस्थिति में इस्लाम के मानने वाले में कहाँ से इतना साहस आयेगा कि वह गैर-मुस्लिम की सहायता करने की सोचे।
इस प्रकार के इन धार्मिक आदेशों के कारण इस्लाम जहाँ अन्य सप्रदायों के साथ समन्वय नहीं कर पाता, वहीं इस्लाम में जो सत्तर से अधिक प्रशाखायें हैं, उनमें भी परस्पर इसी प्रकार का संघर्ष देखने में आता है।
मुसलमान किसी भी देश में वहाँ के संविधान का पालन करने में समर्थ नहीं है। यदि वे किसी गैर-मुस्लिम देश में हैं, तो वह ‘दारुल हरब’ है। उसमें रहकर उन्हें उस देश को ‘दारुल इस्लाम’ बनाना है, यह उसका धार्मिक कर्त्तव्य है। और एक मुसलमान के लिए देश, समाज, परिवार से ऊपर धर्म है, अल्लाहताला का हुक्म है। फिर वह कैसे किसी संविधान का आदर करेगा? कैसे उसको मान्यता देगा? यह वैचारिक संघर्ष उसे कभी शान्ति से बैठने नहीं देता, यही देश की अशान्ति का मूल कारण है। भारतीय संस्कृति कहती है- मनुष्य मनुष्य का रक्षक होना चाहिए, प्राणिमात्र की रक्षा की जानी चाहिये। वेद मनुष्य मात्र को परमेश्वर का पुत्र कहता है, रक्षा करने का उपदेश देता हैं।
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः
पुमान् पुमान्सं परिपातु विश्वतः।।
– धर्मवीर

आयशा मुहम्मद साहब को रसूल नहीं मानती थीं : फ़रोग़ काज़मी

अहादीस, रवायत और तारीख़ के मजाज़ी परदों में लिपटी हुई उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा की तहदार और पुरअसरार शख़्सियत आलमें इस्लाम में तअर्रूफ़ की मोहताज नहीं। हर शख़्स जानता है कि आप ख़लीफ़ा ए अव्वल ( हजऱत अबू बक्र) की तलव्वुन मिज़ाज बेटी और पैग़म्बर इस्लाम हज़रत मोहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ग़ुस्ताख़ और नाफ़रमान बीवी थीं। आपकी निस्वानी सरिश्त में रश्क, हसद, जलन, नफ़रत, अदावत, ख़ुसूमत, शरारत, ग़ीबत, ऐबजुई, चुग़लख़ोरी, हठधर्मी, ख़ुदपरस्ती, कीनापरवरी और फ़ित्ना परदाज़ी का उनसुर बदर्जा ए अतम कारफ़रमा था।

रसूल (स.अ.व.व) की ज़ौजियत और ख़ुल्के अज़ीम की सोहबत से सरफ़राज़ होने के बावजूद आपका दिल इरफ़ाने नबूवत से ख़ाली और ना आशना था आपकी निगाहों में नबी और नबूवत की क़द्रो मन्ज़िलत यह थी कि जब आप पैग़म्बर से किसी बात पर नाराज़ हो जाती और आपका पारा चढ़ जाता तो पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.व) को नबी कहना छोड़ देती, बल्कि इब्राहीम का बाप कहकर मुख़ातिब किया करतीं थीं।(1)
जसारतों और ग़ुस्ताख़ियों का यह हाल था कि एक बार आपने झगड़े के दौरान पैग़म्बर (स.अ.व.व) से यह भी कह दिया किः-
आप ये गुमान करते हैं कि मैं अल्लाह का नबी हूं।(2) (मआज़ अल्लाह)

नबी को नबी न समझने वाली या नबी की नबूवत में शक करने वाली शख़्सियत क्या इस्लाम की नज़र में मुसलमान हैं? इसका फ़ैसला मोहतरम कारेईन ख़ुद फ़रमा लें, क्यों कि बात साफ़ और वाज़ेह है।

1. बुख़ारीः- जिल्द 6 पेज न. 158
2. अहयाउल उलूम ग़ेज़ालीः- जिल्द 2 पेज न. 29

حضرت ایشا کی تاریخی حیثیت فروگ کاظمی

हूरें : जन्नत का माल

72 huren Ibn Kathir

इस्लाम में हूरों पर बहुत कुछ लिखा गया यह वह माल है जो अल्लाह जन्नत में मुसलमानों को अदा करेगा. इकबाल ने हूरों लिखा है :

उमीदे-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है, वायज़ को,
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं

इसी तरह एक और शेर इकबाल का है :

न कर दें मुझ को मजबूर-ए-नवाँ फ़िर्दौस में हूरें
मेरा सोज़-ए-दुरूँ फिर गर्मी-ए-महफ़िल न बन जाए

इस्लामिक मान्यता के अनुसार जन्नत के मुसलमान हमेशा के लिए कयामत के बाद जन्नत में दाखिल हो जायेंगे और वहां उन्हें हूरें अता की जायेंगी जो उनसे मन बहला सकेंगे.इन हूरों से जन्नतियों के विवाह कर दिए जायेंगे .

” और हम गोरी गोरी मृगनयनी स्त्रियों से उनका विवाह कर देंगे ” कुरान सूरा अद दुखान आयत ५४ (३३:५४ )

इस्लाम में हूरों की महत्ता का पता गाजी अली के की दी हुयी इस घटना से लगता है कि किस तरह मौमीनों को हूरों के खोने का डर सताता है :

The sage Malek-b-Dinar said: One night I forgot my duty and began to sleep. I found in dream a beautiful young girl with a letter in her hand saying to me: Can you read this letter? I said Yes. She handed over to me the letter which contained:-

What! joy and hope have destroyed you!
Has youf mind forgot the hope of Hurs?
You will stay in paradise without death.
You will make enjoyment then with Hurs.
So rise up from sleep, it is best for you.
Ihya Ulum Al Din Vol – 1 Page 260
जन्नत में कितनी हूरें मुसलामानों को नसीब होंगी इसके बारे में कुरान खामोश है केवल हूर के लिए बहुवचन का प्रयोग किया है.

पण्डित देव प्रकाश जी ( भूतपूर्व आचार्य अरबी संस्कृत महाविद्यालय अमृतसर ) ने अपनी पुस्तक में एक हदीस का हवाला दिया है :

” एक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद से प्रश्न किया – कि स्वर्ग में जमा (स्त्री सम्भोग ) भी करेंगे ? आपने फ़रमाया :- कि व्यक्ति को अहले जन्नत में इतनी शक्ती मिलेगी कि तुम में से सत्तर पुरुषों से अधिक होगी .
हजरत ने फरमाया कि एक व्यक्ति ५०० हूर चार हजार बाकर (क्वारी) स्त्रियों आठ हजार विवाहिता स्त्रियों से विवाह करेगा और उनमें से प्रत्येक के साथ इतना सम्बन्ध करगा जितना संसार में जीवित रहा होगा .
स्वर्ग में बाजार :
हज़रत ने फरमाया :- कि स्वर्ग में एक बाज़ार है जहाँ पुरुषों और स्त्रिओं के हुस्न के अतिरिक्त और किसी वस्तु का क्रय विक्रय नहीं होता पास जब कोई व्यक्ति किसी हसीन स्त्री कि ख्वाइश करेगा तो वह उस बाजार में जायेगा जहाँ बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जमा हैं …………………..

यही गाजी अली ने अपनी पुस्तक में भी दिया है :
A man asked the Prophet : O Prophet of God, will the inmates of Paradise have sexual intercourse ? He said: Anybody among them will be given sexual strength of seven persons among you. The Prophet said : An inmate of Paradise will have five hundred hurs, four thousand unmarried women and eight thousand widowed women. Each of them will keep embracing him for the duration of his whole worldly life time. He also said : There will be markets in Paradise in which there will be no buy and sale, but there will be men and women. If any man will wish to have sexual intercourse with a woman, he will do at once. The Hurs will sing in Paradise on divine purity and praise—we are most beautiful Hurs and we are for the honored husbands.
Ihya Ulum Al Din Vol – 4 Page 726.
The Prophet said to a man: O servant of God, if you enter Paradise, you will get what you will desire, what your eyes will be pleased with. The Prophet said : If an inmate of Paradise will wish to have a son born to him, he will get it. Its stay in womb, its weaning away from milk and its youth will come to pass at the same time. He also said : The inmantes of Paradise will be beardless and hairless. Their colour will be white and their eyes painted with collyrium. They will be youths of 33 years of age. They will be sixty cubits long and seven cubits broad. He also said : The lowest rank of an inmate of Paradise will have eighty thousand servants and seventy two wives. In short there will be such bliss in Paradise which no eye has seen, no ear has heard and no heart has conceived.
Ihya Ulum Al Din Vol – 4 Page 726 -727
गाजी अली अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि हजरत ने एक व्यक्ति से कहा ओ अल्लाह के सेवक यदि तुम जन्नत में जाते हो तो तुम्हें वह सब मिल्त्गा जिसकी तुम्हें इच्छा है और जिससे तुम्हारी आखें प्रसन्न हों यदि स्वर्ग के निवासी को पुत्र कि चाहत है तो उसे पुत्र हो जायेगा ……………………… सबसे निचले दर्जे के निवासी के पास अस्सी हजार नौकर और बहत्तर पत्नियाँ होंगी
In a reply to the question of Abu Bakar , Muhammad said: In that palace, he will have three lac Hurs who will look with askance eye : Whenever any Hur who will look at a person he will say : Do you remember such and such a day when you enjoined good and forbade evil ?
Ihya Ulum Al Din Vol – 2 Page 183.
गाजी अली अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि हजरत ने अबू बकर को एक प्रश्न के जवाब में कहा कि वहां तीन लाख हूरें होंगी .

Chapter 23. What Has Been Related About What Bounties There Are For The Lowest Inhabitants Of Paradise

2562. Abu Sa’eed Al-Khudri narrated that the Messenger of Allah said: “The least of the people of Paradise in position is the one with eighty thousand servants and seventy-two wives. He shall have a tent of pearl, peridot, and corundum set up for him, (the size of which is) like that which is between Al-Jabiyyah 11 and San’a’.” And with this chain, it is narrated from the Prophet it that he said: “Whoever of the people of (destined to enter) Paradise dies, young or old, they shall be brought back in Paradise thirty years old, they will not increase in that ever, and likewise the people of the Fire.” And with this chain, it is narrated
— Al-Tirmidhi, Vol 4 page no 548

इसी प्रकार तिर्मधी में आता है कि हजरत ने फरमाया कि कम से कम हरेक व्यक्ति को अस्सी हजार नौकर और बहत्तर पत्नियाँ होंगी ……………….

इसी को इनबे कसीर ने अपनी तफसीर में भी लिखा है कि : हजरत को कहते सूना गया कि जन्नत के निवासी को कम से कम अस्सी हज़ार नौकर और बहत्तर पत्नियां दी जायेंगी

सहीह अल बुखारी में अबू हुरैरा से रिवायत है कि हज़रत ने फरमाया कि जन्नत में जाने वाला प्रथम समूह पूर्ण चाँद कि तरह चमक रहा होगा और दूसरा समूह आसमान में श्रेष्ट तारे कि भांति चमक रहा होगा उनमें आपस में कोई मन मुटाव नहीं होगा वो एक ही ह्रदय कि तरह होंगे और उनमें से प्रत्येक के दो हूरों से निकाह होंगे .
सहीह अल बुखारी , भाग – ४ , हदीस संख्या ४७६ पृष्ठ -३१०

पण्डित देवप्रकाश जी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि अब देखिये कि प्रत्येक स्वर्ग निवासी को न जाने कितनी हूरें गिल्मान और पत्नियाँ प्राप्त होंगी इस पर भी खुदा को स्वर्ग वालों के लिए हूरों के बाजार खोलने कि आवश्यकता अनुभव हुयी इन हदीस ने तो मानों इस्लाम के चरित्र का दिवाला ही निकाल दिया है . क्या मुसलमान इस सम्बन्ध में सोचने को तत्पर होंगे .

अरब का मूल मजहब (भाग ७)

अरब का मूल मजहब
भाग ७
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

अब तक के भागों मे हमने देखा कि जब भारत मे  धार्मिक और समाजिक जीवन मे वैदिक मान्यताएँ थी तो वहां पर भी वैदिक मान्यताएँ प्रचलित थी . जब भारत मे वैदिक व्यवस्था का ह्रास हुआ और पौरानिक मान्यताएँ प्रचलन मे आई तो वहां पर भी पौरानिक विचार अपनाये गये .अर्थात् अभी तक के प्रमाण से स्पष्ट है कि अरब मे कोई अन्य नही बल्कि भारतीय संस्कृति के अनुयायी ही मौजूद था जो बाद मे भारतीयों के प्रमाद की वजह से इस सनातन संस्कृति से दूर हो गया . इसका बहुत सारा कारण है जो इस शीर्षक से संबंधित नही है .

जब भारत मे पौरानिकों का बोलबाला था तो उसी समय भारत मे अन्य मतावलम्बी जैसे जैन , बौद्ध आदि का भी प्रचार – प्रसार जोरों पर था . जितने भी नये – नये मत व पंथ वाले थे वे सभी सनातन धर्म मे आये विकृति की वजह से टूट कर अलग स्वतंत्र रुप से अपना नया मत खड़ा किया था . यहां तक की पौरानिक मे भी कई विभाग बन चुके थे शैव, वैष्णव आदि जो एक दूसरे का विरोधी था . ऐसी परिस्थिति मे सनातन धर्मावलम्बी जो खुद कई भागों मे विभक्त होकर टूट चुका था वह दुसरे देशों मे धर्म प्रचार का काम बंद कर दिया , फिर भी अवशेष के रुप मे अरब आदि देशों मे कुछ कुछ उस समय की मान्यताओं का प्रचार प्रसार हुआ और वहां पर शैव , चार्वाक आदि मत का बोलबाला हो गया . ठीक मुहम्मद साहब के समय मे वहां पर महादेव को मानने वालों की संख्या बहुत थी , साथ मे मूर्तिपूजा , मांस ,शराब आदि का भी प्रचलन बहुत था .
आपको मोहम्मद साहब के समकालीन कवि की रचनाओं को दिखाता हूं जो उस समय मे प्रचलित वहां की मान्यताओं को स्पष्ट कर देगा .

कवि  :- उमरबिन हशाम कुन्नियात अबुलहकम .

योग्यता और विद्वता के कारण अरबवासी इन्हे अबुलहकम अर्थात् ज्ञान का पिता कहा करते थे जो रिस्ते मे मोहम्मद साहब के चाचा थे और उनके समायु था .

# क़फ़ा बनक जिक्रु अम्न अलूमु तब अशिरु ।
कुलूबन् अमातत उल् – हवा वतज़क्करु ।।
अर्थ :- जिसने विषय और आसक्ति में पड़कर अपने मन दर्पण को इतना मैला कर लिया है कि उसके अन्दर कोई भी भावना शेष न रह गई है .

# व तज़्क्रिहु बाऊदन इलिल बदए लिलवरा ।
वलकियाने ज़ातल्लाहे यौमा तब अशिरु ।।
अर्थ :- आयु भर इस प्रकार से बीत जाने पर भी यदि अन्त समय मे धर्म की ओर लौटना चाहे तो क्या वह खुदा को पा सकता है ? हाँ अवश्य पा सकता है .

# व अहल नहा उज़हू अरीमन महादेवहु ।
व मनाज़िले इल्मुद्दीन मिन हुमवव सियस्तरु ।।
अर्थ :- यदि आपने और अपनी सन्तान के लिए एक बार भी सच्चे मन से महादेव जी की पूजा करें तो धर्म के पथ पर सबसे उत्तम स्थान प्राप्त कर सकता है .

# मअस्सैरु अख़्लाकन हसन: कुल्लुहुम वय अख़ीयु ।
नुज़ूमुन अज़यतु सुम्मा कफ्अबल हिन्दू ।।
अर्थ :- हे ईश्वर वह समय कब आयेगा जब मैं हिन्दुस्तान की यात्रा करुंगा जो सदाचार का खजाना है और पथप्रदर्शक की तरह धर्म का गुरु है .

प्रमाण :- ‘अल-हिलाल’ , १९२३ ई. काहिरा से प्रकाशित मासिक पत्रिका का प्रथम पृष्ठ .

इन शेरों से प्रमाणित होता है कि जिस समय मे मोहम्मद साहब का उदभव हुआ उस समय अरब वासी वैदिक संस्कृति से बहुत दूर निकल चुका था और मूर्तिपूजा आदि मे पुरी तरह से व्यस्त था .लोग शैव थे और मांस मदिरा आदि का खुब प्रचलन था . लोग एकेश्वरवाद और वैदिक सिद्धांतो से बिलकुल अनभिज्ञ हो चुका था . मोहम्मद साहब और उनके चाचा मे धर्म संबंधी विषयों बहुत मतभेद था .

यह बहुदेववाद , मूर्तिपूजा आदि का चर्मोत्कर्ष परिस्थिति थी जिसने मोहम्मद को ऐकेश्वरवाद के सिद्धांत के साथ जन्म दिया परन्तु मोहम्मद साहब भी वेद विद्या और ज्ञान के अभाव मे कुछ अपनी मान्यताएँ और कुछ उसम मे वहां प्रचलित मान्यताओं के साथ एक नये मजहब की स्थापना कर खुद को पैगम्बर कह के लोगों पर जबरदस्ती थोप कर पुन: अरबवासी को अवैज्ञानिकता और अवैदिक सिद्धातों की गहरी अँधकार मे धकेल दिया  जिसमे तर्क और बुद्धि का प्रयोग करना मना ही है क्योंकि उसने कहा कि मेरी बातों पर शक मत करना ,,, यहि बाद मे इसलाम के नाम से प्रचलित हुआ जो आज भी नित्य नये नये कारनामे कर रहे हैं .

आज भी सनातन संस्कृति का चिह्न जिसे मोहम्मद साहब ने ज्यों का त्यों मान लिया , इसलाम और अरब मे दिखाई देता है , जो अरब मे प्रचलित सनातन संस्कृति का प्रमाण है . परन्तु मोहम्मद साहब के समर्थक बहुत ही खुंखार और तनाशाह प्रवृति के लोग थे जिन्होने उनलोगों को अपने रास्ते से हटा दिया जो उनकी बातों को न मानने की काफीराना हरकत की . फिर तलवार के बल पर कई देशों पर आक्रमण कर बलात् इसलाम की मान्यताएँ लोगों पर थोप दी जिसमे भारत भी था . मोहम्मद का मुख्य निशाना भारत था जो उस समय मूर्तिपूजा जैसी अवैदिक कार्यों मे लिप्त था और वही हुआ यहां पर भी बलात् हिन्दूओं को मुसलमान बनाया गया. भारत के सभी मुसलिम हिन्दू है उन्हे जबरदस्ती इसलाम बनाया गया था लेकिन लंबा समय बीतने की वजह से उनका स्वाभिमान खत्म हो चुका है, इसलाम कबूलवाने हेतु मोहम्मद के अनुयायियों द्वारा किये गये अत्याचारों को भूल चुका है , यहि वजह है कि वह आज इसलाम की साये मे जीना स्वाकार कर चुका है और भारत मूर्दाबाद की नारे लगाने से भी नही चुकते है , भारत माता की जय करने से भी घबरा जाते है , गौमाता की गर्दन पर छुरी चलाने से भी नही रुकते है . जिस मोहम्मद के चाचा  हिन्दुस्तान को पथप्रदर्शक मानता था उसी मोहम्मद के भारतीय अनुयायी आज जन्नत की चाहत मे मक्का की सैर पर निकलता है . क्या मूर्खता है ? कुछ तो अक्ल से काम लो . अपनी मूल संस्कृति को पहचानों ! क्या मिला है इन इसलामी मान्यता से , कभी इसलामी देश सीरीया , इराक, अफागानिस्तान , पाकिस्तान , बंग्लादेश आदि को तो देखो , सब शांतिदूतों की शांतिकार्य की आग मे जल रहे हैं .

तो मित्रों हमने कई भागों के माध्यम से देखा की अरब का मूल मजहब वैदिक ही था और है लेकिन अब उनसे दूर हो चुका है . परन्तु गलत राह से चलते हुए बहुत ही दूर भी चलें जाय तो बुद्धिमान उसी को कहा जाएगा जो इतनी दूर चलने के बाद भी वापस आकर सही रास्ते को पकड़ लें ! तो अपने जड़ों की ओर लौटो जिसकी बदौलत आपके पुर्वज कितने खुश और महान थे नही तो ऐसे ही लश्कर और आइसीस के द्वारा हर वक्त नये नये तरिके से दिल को शांति देने वाले कार्य आपको तोहफे के रुप मे मिलते रहेंगे !!

इस लेख की श्रृखंला को लिखने मे जिन पुस्तको. की सहायता ली गई वह इस प्रकार है ….
१. इसलाम संदेहों के घेरे में .
२. वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास .
३. अरब का क़दीमी मजहब.
४. सत्यार्थ प्रकाश.
५. अरब मे इसलाम .
६. वेदों का यथार्थ स्वरुप .
७. भारत के पतन के सात कारण.
और साथ मे कुछ विद्वान मित्र का भी सहयोग लिया गया .

जय आर्य , जय आर्यावर्त्त !

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब