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आयशा मुहम्मद साहब को रसूल नहीं मानती थीं : फ़रोग़ काज़मी

अहादीस, रवायत और तारीख़ के मजाज़ी परदों में लिपटी हुई उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा की तहदार और पुरअसरार शख़्सियत आलमें इस्लाम में तअर्रूफ़ की मोहताज नहीं। हर शख़्स जानता है कि आप ख़लीफ़ा ए अव्वल ( हजऱत अबू बक्र) की तलव्वुन मिज़ाज बेटी और पैग़म्बर इस्लाम हज़रत मोहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ग़ुस्ताख़ और नाफ़रमान बीवी थीं। आपकी निस्वानी सरिश्त में रश्क, हसद, जलन, नफ़रत, अदावत, ख़ुसूमत, शरारत, ग़ीबत, ऐबजुई, चुग़लख़ोरी, हठधर्मी, ख़ुदपरस्ती, कीनापरवरी और फ़ित्ना परदाज़ी का उनसुर बदर्जा ए अतम कारफ़रमा था।

रसूल (स.अ.व.व) की ज़ौजियत और ख़ुल्के अज़ीम की सोहबत से सरफ़राज़ होने के बावजूद आपका दिल इरफ़ाने नबूवत से ख़ाली और ना आशना था आपकी निगाहों में नबी और नबूवत की क़द्रो मन्ज़िलत यह थी कि जब आप पैग़म्बर से किसी बात पर नाराज़ हो जाती और आपका पारा चढ़ जाता तो पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.व) को नबी कहना छोड़ देती, बल्कि इब्राहीम का बाप कहकर मुख़ातिब किया करतीं थीं।(1)
जसारतों और ग़ुस्ताख़ियों का यह हाल था कि एक बार आपने झगड़े के दौरान पैग़म्बर (स.अ.व.व) से यह भी कह दिया किः-
आप ये गुमान करते हैं कि मैं अल्लाह का नबी हूं।(2) (मआज़ अल्लाह)

नबी को नबी न समझने वाली या नबी की नबूवत में शक करने वाली शख़्सियत क्या इस्लाम की नज़र में मुसलमान हैं? इसका फ़ैसला मोहतरम कारेईन ख़ुद फ़रमा लें, क्यों कि बात साफ़ और वाज़ेह है।

1. बुख़ारीः- जिल्द 6 पेज न. 158
2. अहयाउल उलूम ग़ेज़ालीः- जिल्द 2 पेज न. 29

حضرت ایشا کی تاریخی حیثیت فروگ کاظمی