अरब का मूल मजहब (भाग ७)

अरब का मूल मजहब
भाग ७
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी

अब तक के भागों मे हमने देखा कि जब भारत मे  धार्मिक और समाजिक जीवन मे वैदिक मान्यताएँ थी तो वहां पर भी वैदिक मान्यताएँ प्रचलित थी . जब भारत मे वैदिक व्यवस्था का ह्रास हुआ और पौरानिक मान्यताएँ प्रचलन मे आई तो वहां पर भी पौरानिक विचार अपनाये गये .अर्थात् अभी तक के प्रमाण से स्पष्ट है कि अरब मे कोई अन्य नही बल्कि भारतीय संस्कृति के अनुयायी ही मौजूद था जो बाद मे भारतीयों के प्रमाद की वजह से इस सनातन संस्कृति से दूर हो गया . इसका बहुत सारा कारण है जो इस शीर्षक से संबंधित नही है .

जब भारत मे पौरानिकों का बोलबाला था तो उसी समय भारत मे अन्य मतावलम्बी जैसे जैन , बौद्ध आदि का भी प्रचार – प्रसार जोरों पर था . जितने भी नये – नये मत व पंथ वाले थे वे सभी सनातन धर्म मे आये विकृति की वजह से टूट कर अलग स्वतंत्र रुप से अपना नया मत खड़ा किया था . यहां तक की पौरानिक मे भी कई विभाग बन चुके थे शैव, वैष्णव आदि जो एक दूसरे का विरोधी था . ऐसी परिस्थिति मे सनातन धर्मावलम्बी जो खुद कई भागों मे विभक्त होकर टूट चुका था वह दुसरे देशों मे धर्म प्रचार का काम बंद कर दिया , फिर भी अवशेष के रुप मे अरब आदि देशों मे कुछ कुछ उस समय की मान्यताओं का प्रचार प्रसार हुआ और वहां पर शैव , चार्वाक आदि मत का बोलबाला हो गया . ठीक मुहम्मद साहब के समय मे वहां पर महादेव को मानने वालों की संख्या बहुत थी , साथ मे मूर्तिपूजा , मांस ,शराब आदि का भी प्रचलन बहुत था .
आपको मोहम्मद साहब के समकालीन कवि की रचनाओं को दिखाता हूं जो उस समय मे प्रचलित वहां की मान्यताओं को स्पष्ट कर देगा .

कवि  :- उमरबिन हशाम कुन्नियात अबुलहकम .

योग्यता और विद्वता के कारण अरबवासी इन्हे अबुलहकम अर्थात् ज्ञान का पिता कहा करते थे जो रिस्ते मे मोहम्मद साहब के चाचा थे और उनके समायु था .

# क़फ़ा बनक जिक्रु अम्न अलूमु तब अशिरु ।
कुलूबन् अमातत उल् – हवा वतज़क्करु ।।
अर्थ :- जिसने विषय और आसक्ति में पड़कर अपने मन दर्पण को इतना मैला कर लिया है कि उसके अन्दर कोई भी भावना शेष न रह गई है .

# व तज़्क्रिहु बाऊदन इलिल बदए लिलवरा ।
वलकियाने ज़ातल्लाहे यौमा तब अशिरु ।।
अर्थ :- आयु भर इस प्रकार से बीत जाने पर भी यदि अन्त समय मे धर्म की ओर लौटना चाहे तो क्या वह खुदा को पा सकता है ? हाँ अवश्य पा सकता है .

# व अहल नहा उज़हू अरीमन महादेवहु ।
व मनाज़िले इल्मुद्दीन मिन हुमवव सियस्तरु ।।
अर्थ :- यदि आपने और अपनी सन्तान के लिए एक बार भी सच्चे मन से महादेव जी की पूजा करें तो धर्म के पथ पर सबसे उत्तम स्थान प्राप्त कर सकता है .

# मअस्सैरु अख़्लाकन हसन: कुल्लुहुम वय अख़ीयु ।
नुज़ूमुन अज़यतु सुम्मा कफ्अबल हिन्दू ।।
अर्थ :- हे ईश्वर वह समय कब आयेगा जब मैं हिन्दुस्तान की यात्रा करुंगा जो सदाचार का खजाना है और पथप्रदर्शक की तरह धर्म का गुरु है .

प्रमाण :- ‘अल-हिलाल’ , १९२३ ई. काहिरा से प्रकाशित मासिक पत्रिका का प्रथम पृष्ठ .

इन शेरों से प्रमाणित होता है कि जिस समय मे मोहम्मद साहब का उदभव हुआ उस समय अरब वासी वैदिक संस्कृति से बहुत दूर निकल चुका था और मूर्तिपूजा आदि मे पुरी तरह से व्यस्त था .लोग शैव थे और मांस मदिरा आदि का खुब प्रचलन था . लोग एकेश्वरवाद और वैदिक सिद्धांतो से बिलकुल अनभिज्ञ हो चुका था . मोहम्मद साहब और उनके चाचा मे धर्म संबंधी विषयों बहुत मतभेद था .

यह बहुदेववाद , मूर्तिपूजा आदि का चर्मोत्कर्ष परिस्थिति थी जिसने मोहम्मद को ऐकेश्वरवाद के सिद्धांत के साथ जन्म दिया परन्तु मोहम्मद साहब भी वेद विद्या और ज्ञान के अभाव मे कुछ अपनी मान्यताएँ और कुछ उसम मे वहां प्रचलित मान्यताओं के साथ एक नये मजहब की स्थापना कर खुद को पैगम्बर कह के लोगों पर जबरदस्ती थोप कर पुन: अरबवासी को अवैज्ञानिकता और अवैदिक सिद्धातों की गहरी अँधकार मे धकेल दिया  जिसमे तर्क और बुद्धि का प्रयोग करना मना ही है क्योंकि उसने कहा कि मेरी बातों पर शक मत करना ,,, यहि बाद मे इसलाम के नाम से प्रचलित हुआ जो आज भी नित्य नये नये कारनामे कर रहे हैं .

आज भी सनातन संस्कृति का चिह्न जिसे मोहम्मद साहब ने ज्यों का त्यों मान लिया , इसलाम और अरब मे दिखाई देता है , जो अरब मे प्रचलित सनातन संस्कृति का प्रमाण है . परन्तु मोहम्मद साहब के समर्थक बहुत ही खुंखार और तनाशाह प्रवृति के लोग थे जिन्होने उनलोगों को अपने रास्ते से हटा दिया जो उनकी बातों को न मानने की काफीराना हरकत की . फिर तलवार के बल पर कई देशों पर आक्रमण कर बलात् इसलाम की मान्यताएँ लोगों पर थोप दी जिसमे भारत भी था . मोहम्मद का मुख्य निशाना भारत था जो उस समय मूर्तिपूजा जैसी अवैदिक कार्यों मे लिप्त था और वही हुआ यहां पर भी बलात् हिन्दूओं को मुसलमान बनाया गया. भारत के सभी मुसलिम हिन्दू है उन्हे जबरदस्ती इसलाम बनाया गया था लेकिन लंबा समय बीतने की वजह से उनका स्वाभिमान खत्म हो चुका है, इसलाम कबूलवाने हेतु मोहम्मद के अनुयायियों द्वारा किये गये अत्याचारों को भूल चुका है , यहि वजह है कि वह आज इसलाम की साये मे जीना स्वाकार कर चुका है और भारत मूर्दाबाद की नारे लगाने से भी नही चुकते है , भारत माता की जय करने से भी घबरा जाते है , गौमाता की गर्दन पर छुरी चलाने से भी नही रुकते है . जिस मोहम्मद के चाचा  हिन्दुस्तान को पथप्रदर्शक मानता था उसी मोहम्मद के भारतीय अनुयायी आज जन्नत की चाहत मे मक्का की सैर पर निकलता है . क्या मूर्खता है ? कुछ तो अक्ल से काम लो . अपनी मूल संस्कृति को पहचानों ! क्या मिला है इन इसलामी मान्यता से , कभी इसलामी देश सीरीया , इराक, अफागानिस्तान , पाकिस्तान , बंग्लादेश आदि को तो देखो , सब शांतिदूतों की शांतिकार्य की आग मे जल रहे हैं .

तो मित्रों हमने कई भागों के माध्यम से देखा की अरब का मूल मजहब वैदिक ही था और है लेकिन अब उनसे दूर हो चुका है . परन्तु गलत राह से चलते हुए बहुत ही दूर भी चलें जाय तो बुद्धिमान उसी को कहा जाएगा जो इतनी दूर चलने के बाद भी वापस आकर सही रास्ते को पकड़ लें ! तो अपने जड़ों की ओर लौटो जिसकी बदौलत आपके पुर्वज कितने खुश और महान थे नही तो ऐसे ही लश्कर और आइसीस के द्वारा हर वक्त नये नये तरिके से दिल को शांति देने वाले कार्य आपको तोहफे के रुप मे मिलते रहेंगे !!

इस लेख की श्रृखंला को लिखने मे जिन पुस्तको. की सहायता ली गई वह इस प्रकार है ….
१. इसलाम संदेहों के घेरे में .
२. वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास .
३. अरब का क़दीमी मजहब.
४. सत्यार्थ प्रकाश.
५. अरब मे इसलाम .
६. वेदों का यथार्थ स्वरुप .
७. भारत के पतन के सात कारण.
और साथ मे कुछ विद्वान मित्र का भी सहयोग लिया गया .

जय आर्य , जय आर्यावर्त्त !

आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब

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