प्रधानमन्त्री मोदी के प्रयासों से इक्कीस जून का दिन योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा हुई। कुछ लोगों को क्योंकि मोदी के नाम से ही चिड़ है, अतः मोदी का नाम आते ही उनका मुंह कड़वा हो जाता है। फिर योग दिवस का सबन्ध मोदी के नाम से जुड़ गया तो योग भी उनके लिए कड़वा हो गया और वे थूकने के लिये मजबूर हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि योग हिन्दुओं का है। योग साप्रदायिक है। सूर्य नमस्कार नहीं करेंगे क्योंकि मुसलमान खुदा के अतिरिक्त किसी के सामने सिर नहीं झुकाता। उनको …….. और स्पष्टीकरण देने वालों की भी कमी नहीं। लोग कहते हैं योग धार्मिक नहीं। सूर्य नमस्कार व्यायाम है, धर्म नहीं। ये बेचारे जानते नहीं कि हमारे सब किये जाने वाले काम धर्म ही होते हैं। जिस-जिस बात को हम धर्म मानते हैं, क्या ईसाई और मुसलमान उनको करना छोड़ देंगे या उनको मानना छोड़ देंगे? हम सत्य बोलना धर्म समझते हैं, आप सत्य बोलना-छोड़ना पसन्द करेंगे या झूठ बोलना स्वीकार करना चाहेंगे? हमारे यहाँ कौन-सा भला काम है जिसकी धर्म में गणना नहीं की गई। हमारे यहाँ माता-पिता की, गुरुजनों की, पीड़ितों की, असमर्थों की सेवा और रक्षा करना धर्म है। इनसे पूछो, ये क्या अपने बड़ों को, महापुरुषों को, देवी-देवताओं को, भगवानों को जूते मारने का विधान करेंगे। हमारे यहाँ जीवन की हर क्रिया श्रेष्ठ रूप में की जा सके, अतः धर्म के साथ जोड़ा गया है, फिर तो आपको हमारा धर्म स्वीकार करना पड़ेगा या मृत्यु को अपनाना पड़ेगा। इच्छा आपकी है, आप कौन सा विकल्प स्वीकार करेंगे? अतः यह तर्क कि योग, सूर्य नमस्कार, व्यायाम करना हिन्दू धर्म है, अतः हम ऐसा नहीं करेंगे। हमारे यहाँ जीना धर्म है, तो क्या आप मरोगे। यह सब आपकी अज्ञानता और राजनीतिक धूर्तता है।
सूर्य नमस्कार एक सर्वांगीण व्यायाम है। इससे न केवल शरीर स्वस्थ होता है अपितु मानसिक, बौद्धिक विकास भी होता है। पशु-पक्षी और प्राणी, जो वनों में स्वतन्त्रता से विचरते हैं, उन्हें भोजन और सुरक्षा के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है, अतः पृथक् से व्यायाम की आवश्यकता नहीं होती। मनुष्य बहुत कम परिश्रम से या बिना परिश्रम के ही भोजन सामग्री और सुविधायें प्राप्त कर लेता है। अतः उसका परिश्रम भी कम हो गया। परिश्रम कम होने से शरीर की क्रियायें प्रभावित होती हैं। इससे मनुष्य का जीवन चक्र प्रभावित होता है। उसका शरीर रोग, दुर्बलतादि से प्रभावित होने लगता है। जैसे व्यय और संचय में सन्तुलन बिगड़ जाये या प्राप्ति अधिक हो जाये तो संग्रह बढ़ता जाता है, उसकी प्रकार मनुष्य बिना श्रम के भोजन करता रहता है तो मनुष्य के शरीर में भोजन का संग्रह होने लगता है। शरीर में चर्बी जमा होने लगती है। अधिक खाने से पाचन तन्त्र पर अधिक भार पड़ने से वह बिगड़ने लगता है, मनुष्य रोगी हो जाता है, उसके अन्दर आलस्य, प्रमाद के कारण शिथिलता आती है। जीवन रोगयुक्त भार बन कर दुःख का कारण बन जाता है। जीवन व्यर्थ लगने लगता है। अतः आज की परिस्थिति में शुद्ध अन्न, जल, हवा की आवश्यकता है, उसी प्रकार व्यायाम के द्वारा शरीर सक्रिय व स्वस्थ रखने की आवश्यकता है।
इस तथ्य को ध्यान में रखकर विद्यालयों-महाविद्यालयों में छात्रों के लिये व्यायाम और खेलों की व्यवस्था की जाती है। ये व्यायाम और खेल बहुत साधन, स्थान और समय माँगते हैं। ये सब उपाय समाज में सबको सुलभ नहीं होते, अतः शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ऐसा विकल्प चाहिए जो सबको सदा सभी स्थानों पर सुलभ हो। सूर्य नमस्कार इस प्रकार का व्यायाम है, जो सबके लिए सब स्थानों पर सुलभ है। अन्य व्यायाम जैसे कोई खेल खेलने के लिए मैदान या खेल के स्थान की आवश्यकता होती है। कुश्ती के लिए साथी और अखाड़े की जरूरत होती है। तैरने के लिए तालाब, पानी की आवश्यकता होती है। दण्ड-बैठक करने के लिए एकान्त स्थान या व्यायामशाला की सुविधा अपेक्षित है। घूमने के लिए शुद्ध हवा का लबा-चौड़ा स्थान चाहिए। क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, कबड्डी आदि सभी खेलों की सुविधा सबको प्राप्त नहीं होती। ये सभी व्यायाम शरीर की मांसपेशियों को पुष्ट करते हैं, शरीर को बलवान बनाते हैं परन्तु आन्तरिक भाग पर बहुत प्रभावशाली नहीं होते।
सूर्य नमस्कार इन सब प्रश्नों का एक मात्र समाधान है। व्यायाम करने से शरीर के विशेष अंगों पर प्रभाव पड़ता है, वहाँ सूर्य नमस्कार करने से पाँच संस्थान पर पूरा प्रभाव पड़ता है, आँतें-यकृत-प्लीहा (जिगर, तिल्ली) आदि। इनसे अग्निमान्ध, अजीर्ण, मलावरोध आदि उदर रोग के निवारण में सहायता मिलती है। सूर्य नमस्कार में श्वास-प्रश्वास की विशेष क्रिया होती है जिससे हृदय तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है तथा खाँसी, दमा जैसे रोगों में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त नाड़ी संस्थान, कमर, रीड की हड्डी का भी व्यायाम सूर्य नमस्कार करने से ठीक हो जाता है। इस प्रकार सभी देशी-विदेशी व्यायामों में सूर्य नमस्कार सबसे श्रेष्ठ व्यायाम है। यह व्यायाम बालक-वृद्ध-युवा-स्त्री सभी वर्ग के व्यक्तियों को करना सभव है। सभी को इससे लाभ प्राप्त होता है। आयु और सामर्थ्य के अनुसार इसे कम अधिक कर सकते हैं। इसे कहीं भी, किसी भी आयु का व्यक्ति प्रारभ कर सकता है और आजीवन इसे करता रह सकता है।
सूर्य नमस्कार में नमस्कार शद का ग्रहण इसलिये किया गया है क्योंकि इस आसन को करते हुए साष्टांग नमस्कार की मुद्रा बनती है। अष्टांग नमस्कार में मस्तक, छाती, दो हाथ, दो घुटने, दो पैर, इनके साथ दृष्टि, वाणी, मन भी इसी क्रिया में लगे होते हैं। इस नमस्कार मुद्रा को सूर्योदय के समय किया जाता है, इसलिये इसे सूर्य नमस्कार कहते हैं। इस आसन को सूर्योदय के समय करने से इस व्यायाम का समय निश्चित होता है तथा सूर्य की रश्मियों का लाभ व्यायामकर्त्ता को मिलता है। आजकल की जीवन पद्धति में नगरों में कार्य करने वाले और भीड़ भरे मकानों में रहने वाले और वातानुकूलित कक्षों में दिन का अधिक समय बिताने वाले लोग सूर्य के प्रकाश से वञ्चित हो जाते हैं। सूर्य के प्रकाश के सेवन के अभाव से चिकित्सकों का मानना है कि मनुष्य के शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है, अतः प्रत्येक मनुष्य को प्रतिदिन सूर्य की धूप का सेवन करना चाहिए। सूर्य नमस्कार करने से उदय होते हुए सूर्य की किरणें सूर्य नमस्कार करने वाले को सहज मिलती हैं। जिससे अतिरिक्त स्वास्थ्य लाभ होता है। भारतीय जीवन शैली में जिन वस्तुओं का मनुष्य उपयोग करता है, उनके प्रति समान प्रकाशन के लिए देवता का भाव दिया जाता है। इसलिये सूर्य को देव कहकर सूर्य के बारह नामों का उपयोग करके बारह बार उसका उच्चारण करते हैं। वेद के सूर्य विषयक मन्त्र के छोटे-छोटे खण्ड कर, उनके प्रारभ में ओम तथा अन्त में नमः जोड़कर मन्त्र बनाया गया है। ऐसा करने से एक कार्य उपासना में बदल जाता है। व्यायाम उपासना बन जाती है। किसी को मन्त्र से चिड़ है तो वह यह व्यायाम बिना मन्त्र के कर सकता है। इसमें आग्रह-दुराग्रह की कोई बात नहीं है।
सूर्य नमस्कार करने की पद्धति है, व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व व्यक्ति को हल्के, ढ़ीले कपड़े पहनने चाहिए, खाली पेट, सामान्य दिनचर्या के कार्य करके सूर्य नमस्कार की क्रिया करनी चाहिए। इस सूर्य नमस्कार में पहली स्थिति अवस्थान है, इस पहली मुद्रा में पहली स्थिति बनती है। दूसरी स्थिति जानु आसन, जिसमें सिर घुटनों पर लगता है। तीसरे आसन में दोनों हाथ आगे रखकर दृष्टि ऊपर होती है, इसे ऊर्ध्वेक्षण कहते हैं। चौथी स्थिति में पूरे शरीर का हाथ पैर पर सन्तुलन बनाया जाता है, इसे तुलितवपु आसन कहते हैं। पाँचवी स्थिति साष्टांग दण्डवत् की स्थिति होती है। छठे आसन में हाथों पर सिर ऊपरकर कमर को मोड़कर पीछे की ओर देखने का प्रयत्न होता है। कशेरूका संकोच का आसन है। सातवां आसन हाथ पैर के आधार पर ऊपर उठने से और सामने झुकने से रीढ की हड्डी के जोड़ खुलते हैं।
आठवें आसन के रूप में दोनों हाथों के मध्य पैर को लाकर ऊपर की ओर देखना पुनः ऊर्ध्वेक्षण है। नौवें आसन के रूप में खड़े होकर फिर जानु आसन की स्थिति बनती है। इसमें हथेलियाँ भूमि पर और सिर घुटनों पर होता है। दसवीं स्थिति पुनः हाथ जोड़ कर अंगूठे, हृदय के साथ लगाते हुए नमस्कार की मुद्रा बनती है। इन आसनों का एक चक्र एक सूर्य नमस्कार होता है।
इस प्रकार इन आसनों के करने से गर्दन, छाती, कमर, पैर, पेट, जांघे, पिण्डलियाँ, स्नायु, पाचन तन्त्र, पीठ, गला, गर्दन, यकृत, तिल्ली, फेफड़े, पृष्ठवंश, आदि मजबूत होते हैं। सूर्य नमस्कार करने से इच्छा शक्ति दृढ़ होती है, मनोबल बढ़ता है। दृष्टि शक्ति बढ़ती है। मन्त्रपाठ से वाणी की शक्ति बढ़ती है। इस प्रकार सूर्य नमस्कार एक सर्वांगीण व्यायाम है। सूर्य नमस्कार श्वास-प्रश्वास के साथ किया जाता है, इस तरह व्यायाम के साथ इसमें प्राणायाम की क्रिया भी होती है। पहले आसन में श्वास के अन्दर लेने से पूरक, दूसरे में रोककर रखने से कुभक होता है। तीसरे आसन में पूरक, कुभक तथा चौथे आसन में कुभक, फिर पाँचवें आसन में कुभक और रेचक प्राणायाम होता है। छठे आसन में फिर पूरक कुभक, सातवें में कुभक, आठवें में कुभक, नवम में कुभक के साथ एक किया जाता है। इस प्रकार पूरे सूर्य नमस्कार आसनों के साथ प्राणायाम की क्रिया जुड़ी होने से इसका लाभ अनेक गुणा बढ़ जाता है। सूर्य नमस्कार से जितना लाभ होता है, उतना लाभ किसी अन्य व्यायाम से नहीं होता।
भारतीय परपरा में एक अद्भुत विशेषता है, सामान्य से लगने वाले कामों से महत्त्वपूर्ण बातों का स्मरण करना तथा बड़े-बड़े लाभ के कामों को सिद्ध करना। इसलिये सूर्य नमस्कार में आसनों को सूर्य से जोड़ा है, सूर्य संसार का सबसे प्रथम और विशाल ऊर्जा का समुद्र है। मानव एवं प्राणी जगत् वनस्पतियों से ऊर्जा प्राप्त करता है और आज का वैज्ञानिक जानता है, सभी वनस्पति जगत् सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करता है। सभी प्राणी वनस्पतियों को खाकर ऊर्जावान् बनते हैं। अतः मनुष्यों को भी सूर्य से ऊर्जा लेनी चाहिए। इसी उद्देश्य से सूर्य की रचना की गई है। वैदिक साहित्य में सूर्य को औषधियों का राजा कहा गया है। विदेशी लोगों को सूर्य का पर्याप्त प्रकाश नहीं मिलता, वे सूर्य स्नान की योजना करते हैं। सूर्य का प्रकाश न मिलने से वनस्पतियाँ पीली पड़कर नष्ट हो जाती है। मनुष्य भी सूर्य के प्रकाश के अभाव में निस्तेज होता है। सूर्य के प्रकाश और गर्मी के न मिलने से मनुष्य के शरीर से पसीना नहीं निकलता, शरीर के छिद्र न खुलने से शरीर को पर्याप्त प्राण वायु नहीं मिल सकता। इसलिए मनुष्य को अपने दैनिक जीवन में सूर्य के प्रकाश का सेवन करना चाहिए तथा व्यायाम करके शरीर की त्वचा को प्राणवायु प्राप्त करने में सक्षम बनाना चाहिए। जो पशु, गाय आदि सूर्य के प्रकाश में विचरण करते हैं, घास खाते हैं, उनके शरीर में सूर्य-किरणों के प्रभाव से उनके दूध में स्वर्ण का प्रभाव उत्पन्न होता है। मनुष्यों को भी प्रातः-सायं खुले शरीर से सूर्य के प्रकाश में भ्रमण करना चाहिए। सूर्य से लाभ प्राप्त करने के लिये ये पद्धति बनाई गई है, उसमें मूर्ति पूजा या जड़ पूजा की भावना करना नितान्त अज्ञान है। इस व्यायाम से स्वास्थ्य की वृद्धि होती है, रोगों का निवारण होता है और सब व्यायामों में बहुत धन व्यय होता है परन्तु सूर्य नमस्कार एक ऐसा व्यायाम है जिसमें एक पैसा भी खर्च नहीं होता। इसे धनी-निर्धन सभी स्वेच्छा पूर्वक कर सकते हैं। सूर्य नमस्कार करने वाला कभी रोगी नहीं हो सकता, जिन लोगों ने सूर्य नमस्कार का अयास किया है, उन लोगों का अनुभव है, इसके करने से पीठ और कमर के दर्द से छुटकारा मिलता है। पेट के कष्ट नहीं होते, महिलाओं को भी उनके रोगों में अत्यन्त लाभ मिलता है। बालक इस व्यायाम को करते हैं तो उनके बल, बुद्धि के साथ, उनके शरीर की लबाई भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती देखी गई है। सूर्य नमस्कार का विरोध धार्मिक स्तर पर अज्ञानमूलक है और राजनीतिक स्तर पर एक धूर्तता पूर्ण कार्य है। इसके विरोध से राष्ट्र की स्वास्थ्य रूपी सपत्ति का नाश होगा, अतः इसे बिलकुल मान्यता नहीं देनी चाहिए। शरीर के स्वस्थ रखने का मूलमन्त्र है- भोजन, विश्राम और संयम अर्थात् उचित मात्रा में सात्विक भोजन समय पर करना, यथा समय सोना, जागना और व्यायाम, संयम करना। अतः आचार्य चरक ने ठीक ही कहा है-
आहारो निद्रा ब्रह्मचर्यम् त्रय उपस्तभा शरीरस्य।
– धर्मवीर