रामपाल का पतनः – राजेन्द्र जिज्ञासु

रामपाल देव बना बैठा था। उसको देश ने दानव के रूप में जान लिया, देख लिया। आर्यसमाज और ऋषि दयानन्द के विरुद्ध विष वमन करते हुए उसने असीम धन विज्ञापनों पर फूँ का। उसके पीछे कौन-कौन सी बाहरी शक्तियाँ थीं, यह भी पता लगना चाहिये। देश विरोधी शक्तियों ने ही हिन्दू समाज के नाश के लिए आर्य समाज के विरोध में उसे खड़ा किया।

कबीर जी के नाम की आड़ में उसने आर्यसमाज के विरुद्ध अभियान छेड़ा। उसने यह प्रचार किया कि कुरान की एक आयत में कबीर जी का नाम आता है। परोपकारी में मैंने उसे हिसार में शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी थी। कुरान में ‘कबीर’ शद तो है, परन्तु वहाँ ‘अजीम’ शद कबीर का विशेषण है, जिसका अर्थ दारुण दुःख है। कुरान की प्रत्येक तफसीर में यही अर्थ मिलेगा। कबीर शद अरबी साहित्य में भी मिलता है। रामपाल को कौन बतावे कि कबीरः शद का अर्थ भयङ्कर अथवा बड़ा पाप है।

रामपाल को मनुष्य रूप में झज्जर के निकट भगवान मिल गया था। वह किसी और को न दिखा। बाइबिल कीाी आड़ इसने ली थी। यह हिन्दुओं को धर्मच्युत करने का षड्यन्त्र था।

कबीर पंथियों ने इस्लाम व ईसाई प्रचारकों से टक्कर लेने के लिए ऋषि दयानन्द की शरण ली। एक कबीर पंथी विद्वान् श्री शिवव्रत लाल वर्मन के शदों में पादरी व मौलवी चाँदापुर में ऋषि का सिंहनाद सुनकर भाग खड़े हुए। आर्यसमाज का यह उपकार रामपाल भूल गया। ऋण तो क्या चुकाना था, गालियाँ देता फिरता था। डॉ. सुरेन्द्र कुमार जी तथा डॉ. धर्मवीर जी ने रामपाल के प्रहार का अपनी लौह लेखनी से उत्तर दिया। धर्मवीर जी प्रेस कौंसिल तक भी पहुँचे। इन्द्रजित देव जी या डॉ. धर्मवीर जी यदि टी.वी. पर बुलाये जाते तो आर्यसमाज का दृष्टिकोण देश के सामने आता, परन्तु टी.वी. पर आर्यसमाज की बात रखने वाला कोई कुशल विद्वान् था ही नहीं।

महात्मा कबीर ने मांसाहार का खण्डन करते हुए प्राणियों पर दया की शिक्षा दी। रामपाल ने तो हरियाणा में गो-वध पर कभी दो शब्द  भी न कहे। रामपाल महात्मा कबीर के नाम पर ठगी करता रहा। देश के विरुद्ध युद्ध लड़ने वाले इस पाजी सन्त ने हूडा सरकार की परोक्ष सहायता से शस्त्र तो एकत्र किये ही, सैकड़ों कमाण्डो भी प्रशिक्षित कर लिये। हूडा ने रामपाल को धर दबोचने में नई सरकार को विफल बताया, परन्तु आश्रमों के नाम पर अपार धन इकट्ठा करके बंकर आदि जो रामपाल ने निर्मित किये, यह सब कुछ हूडा के कांग्रेस राज में ही हो पाया। इसका सबसे बड़ा श्रेय हूडा के एक आर्यसमाज द्वेषी सहयोगी को प्राप्त है। देश को ललकारने वाले दैत्य रामपाल की जेल में अच्छी सेवा हो रही है। अन्त भला सो भला।

कभी सी.वाई. चिन्तामणि ने लिखा था कि प्रत्येक देशद्रोही, राष्ट्रद्वेषी की आँखों में आर्यसमाज काँटा बन कर खटकता है। रामपाल काण्ड उसी का एक नया प्रमाण है। आचार्य बलदेव जी तथा उनके सहयोगी युवक हम सबके धन्यवाद व बधाई के अधिकारी हैं।

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