ओ३म्.. –वैदिक ईश्वर-अन्तिम भाग.. प्रश्न:- यसको मतलब राम, कृष्ण, दुर्गा र लक्ष्मीको मंदिरमा जानु र यिनको पूजा गर्नु सब गलत हो? उत्तर:- यसलाई सम्झनाको लागि एक उदहारणको रुपमा कुनै दुर्गम गाउँमा बस्ने एक आमालाई हेर जसको पुत्रलाई सापले डसेको छ। उनले आफ्नो बालकको जीवन बचाउनको लागि झार-फूक गर्ने कुनै ओझा या लामा तान्त्रिक कहाँ लिएर जान्छिन भने तिमि उसलाई सही भन्छौ या गलत? आजभोलि धेरैजसो ईश्वर भक्तहरु चाहे त्यो हिन्दू होस्, मुस्लिम होस् , ईसाई होस् या अन्य कुनै होस्, यस्तै प्रकारका हुन्। उनको भावना सच्चा र सम्मान गर्न योग्य छ तर अज्ञानतावश तिनीहरुले ईश्वर भक्तिको गलत मार्ग चुनेका छन्। यसैबाट यस बिषयको स्पष्ट रुपमा अवगत हुन्छ। जहाँ सम्म वेदको बारेमा जान्ने सुन्नेको कुरो छ त्यस्ता व्यक्ति बिरलै छन् । … Continue reading –वैदिक ईश्वर-अन्तिम भाग→
लव जिहाद या रोमियो जिहाद यह जिहाद का ही एक अंग है मुसलमानों की तरफ से कई तरह के जिहाद किये जाते है जिनके परिणाम अल्प समय में भी दिख जाते है तो कई परिणाम दूरगामी होते है लव जिहाद शब्द पढ़कर जिन्हें यह लगता है की यह भारत की राजनीतिक रोटी सेकने के लिए पैदा किया गया शब्द है तो सच मानिए आपको स्वयम आपकी बुद्धि पर तरस आना चाहिए मेने आजकल की पढीलिखी युवा पीढ़ी को इस शब्द के कानों में पड़ते ही मुह सिकुड़ते हुए देखा है इसीलिए इतना विस्तृत लिखने की इच्छा होती है की यह शब्द किसी राजनितिक लाभ के लिए नहीं बनाया गया है इसका इतिहास पुराना ही है बस आज इसके बुरे परिणाम … Continue reading लव जिहाद में फंसती लड़कियां→
पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय के सुपुत्र स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती आर्यसमाज के विद्वान् नेता एवं प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे। उनकी वैज्ञानिक योग्यता का एक उदाहरण यह है कि वे ‘वल्र्ड साइन्स कॉन्फ्रैन्स’ के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी लेखनी बड़ी बेबाक, मौलिक एवं सुलझी हुई थी। उनके द्वारा दिये गये विचार हमारे लिये आत्मचिन्तन के प्रेरक हैं। उनकी प्रत्येक बात पर सहमति हो- ये अनिवार्य नहीं है, परन्तु उनके विचार आर्यसमाज की वर्तमान व भावी पीढ़ी को झकझोरने वाले हैं। -सम्पादक १. आप सम्भवतया मेरे विचारों से सहमत न होंगे, यदि मैं कहँू कि ऋषि दयानन्द के सपनों का आर्यसमाज उस दिन मर गया, जिस दिन किन्हीं कारणों से स्वामी श्रद्धानन्द महात्मा गाँधी और काँग्रेस को छोडक़र महामना मालवीय-वादी हिन्दू महासभा के सक्रिय अंग … Continue reading आर्यसमाज का वेद-सम्बन्धी उत्तरदायित्व: स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती→
परमात्मा का गौणिक नाम ब्रह्मा क्यों है? क्योंकि ब्रह्म शब्द बहुवाचक है, जबकि ईश्वर एक है और ऋषि का नाम भी ब्रह्मा आया है, वह भी एक ही मनुष्य था। अग्रि, वायु, आदित्य और अंगिरा ऋषियों को ब्रह्मा नाम देने में क्या दोष है, क्योंकि वे सबसे महान् भी थे और यथार्थ में एक से अधिक भी थे।? आपकी यह दूसरी जिज्ञासा भाषा को न जानने के कारण है। यदि संस्कृत भाषा को ठीक जान रहे होते तो ऐसी जिज्ञासा न करते। ‘ब्रह्मा’ शब्द एक वचन में ही है, बहुवचन में नहीं। ब्रह्म शब्द नपुंसक व पुलिंग दोनों में होता है। नपुंसक लिंग में ब्रह्म और पुलिंग में ब्रह्मा शब्द है। यह ब्रह्मा प्रथमा विभक्ति एक वचन का है। मूल … Continue reading जिज्ञासा समाधान: – आचार्य सोमदेव→
…वैदिक ईश्वर-५ प्रश्न- त्यसो भए यसको अर्थ यो लगाउँ कि ईश्वरले मेरो पापहरु कहिल्यै क्षमा गर्दैन ? यो भन्दा त बरु इस्लाम र ईसाइहरु राम्रा छन्। किनकि त्यहाँ यदि मैले आफ्नो अपराध स्वीकार गरेर क्षमा मागें भने मेरा पूर्वका समस्त दुष्कर्महरुका दस्तावेज नष्ट गरेर मलाई नयाँ तरिकाले जीवन जिउने अवसर प्राप्त हुन्छ। उत्तर: (१) ईश्वरले तिम्रो पाप वास्तवमा क्षमा त गर्दछ। तर ईश्वरको क्षमा तिम्रो कर्महरुको न्यायपूर्वक फल दिनमा मात्रै निहित छ, पूर्व-कृत कर्महरुको दस्तावेज नै नष्ट गर्नमा हैन। (२) यदि उसले तिम्रा दुष्कर्महरुको दस्तावेज नष्ट गर्दियो भने त यो उसको तिमि प्रति घोर अन्याय र क्रूरता हुनेछ। यो त्यस्तै हुनेछ जस्तो तिमीलाई तिम्रो वर्तमान कक्षाको योग्यता प्राप्त नगरेर नै अर्को कक्षाको लागि प्रोन्नत गरिदिनु । यस्तो गरेर उसले तिमीसंग … Continue reading …वैदिक ईश्वर-५→
जिज्ञासा १- ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका में लिखा है कि सृष्टि के प्रारम्भ में हजारों-लाखों मनुष्य परमात्मा ने अमैथुन से पैदा किये थे। यही सत्यार्थ प्रकाश में भी माना है। उन लाखों मनुष्यों में चार ऋषि भी पैदा हुये जो अग्रि, वायु, आदित्य और अंगिरा थे। उनको परमात्मा ने एक-एक वेद का ज्ञान दिया था। उस काल में स्त्रियाँ भी पैदा हुई होंगी, परन्तु परमात्मा ने एक या दो स्त्रियों को भी वेद का ज्ञान क्यों नहीं दिया? क्या परमात्मा के घर से भी स्त्रियों के साथ पक्षपात हुआ? इसका समाधान करें। समाधान-(क) वेद परमात्मा का पवित्र ज्ञान है। यह वेदरूपी पवित्र ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए है। वेद मनुष्य मात्र का धर्मग्रन्थ है। सृष्टि के आदि में परमेश्वर ने सभी मनुष्यों … Continue reading जिज्ञासा समाधान :- आचार्य सोमदेव→
महाराष्ट्र से किसी सुपठित युवक की एक शंका का उत्तर माँगा गया है। पहली बार ही किसी ने यह प्रश्र उठाया है। गीता में श्री महात्मा कृष्ण जी के मुख से कहा गया एक वचन है कि मैं वेदों में सामवेद हँू। इस श्लोक को ठीक-ठीक न समझकर यह कहा गया है कि इससे तो यह सिद्ध हुआ कि शेष तीन वेदों में आस्तिक्य विचार अथवा ईश्वर का कोई महत्त्व नहीं। अन्य तीन वेदों को गौण माना गया है। वेदों का ऐसा अवमूल्यन करना दुर्भाग्यपूर्ण है। हिन्दू समाज का यह दोष है कि यह वेद पर श्रम करने से भागता है। इसी श्लोक में तो यह भी कहा गया है कि मैं इन्द्रियों में मन हँू तो क्या आँख, कान, … Continue reading गीता को समझो तो: राजेन्द्र जिज्ञासु→
…वैदिक ईश्वर-४ प्रश्न- यसको अर्थ यो भयो कि ईश्वर अपवित्र वस्तुहरु जस्तै मदिरा तथा मल-मूत्र आदिमा पनि रहन्छ त? उत्तर- (१) यो सारा जगत ईश्वरमा छ। किनकि ईश्वर यी सबको बाहिर पनि छ तर ईश्वरको बाहिर केहि पनि छैन। त्यसैले यो जगत ईश्वरले अभिव्याप्त छ। सामान्य रुपमा यदि यसको समानता हेर्नेहो भने हामि सबै ईश्वर भित्र त्यसै गरि छौं जसरि जल भरिएको भाँडोमा कपास। त्यस कपासको भित्र-बाहिर जहाँ पनि जल नै जल छ। त्यस कपासको कुनै पनि भाग यस्तो छैन जुन जलले नभिजेको होस्। (२) कुनै पनि वस्तु हाम्रो लागि स्वच्छ या अस्वच्छ छ भन्ने कुरा त्यस वस्तुको हाम्रा लागि के उपयोगिता छ भन्ने कुरामा निर्भर गर्दछ। जस्तो- जुन आँपको स्वाद हामीलाई यति प्रिय हुन्छ, त्यो जुन परमाणुहरुले बन्दछ, त्यहि … Continue reading …वैदिक ईश्वर-४→
सृष्टिकर्ता एक है। वह कण-कण में है। वह हर मन में है। वह जन-जन में है। वह प्रभु जगत् के भीतर-बाहर व्यापक है। वह अखण्ड एकरस है-यह वेद, उपनिषद् सब शास्त्र बताते हैं। सब मत-पंथ कहने को यही कहते हैं कि परमात्मा एक है और कण-कण में है। ब्रह्माकुमारी जैसे कई मत इसका अपवाद हो सकते हैं। ब्रह्माकुमारी मत परमात्मा को सर्वत्र नहीं मानता। आश्चर्य है कि फिर भी संसार में विशेष रूप से भारत में भगवानों की संख्या बढ़ रही है। मुर्दों की और मर्दों की पूजा भी बढ़ रही है। परमात्मा भोग देता है। कर्मफल का देने वाला वही तो है, फिर भी अज्ञानी मूर्ख यह मानकर अंधविश्वास फैला रहे हैं कि नदियों में स्नान से, तीर्थ यात्रा … Continue reading दीनानगर की जगदंबा: राजेन्द्र जिज्ञासु→
‘धीरत्व’ कर्म का आभूषण जिस क्षण बनने को आतुर हो, वह कर्म सफलता की चोटी को तत्क्षण ही पा जाता है। ‘वीरत्व’ धर्म की वेदी पर जिस क्षण बढऩे को आतुर हो, फिर धर्म-कर्म बन जाता है और कर्म-धर्म बन जाता है।। संसार समरभूमि है और है युद्धक्षेत्र रणवीरों का, है कुछ रण के रणधीरों का और कुछ है धर्म के वीरों का। यहाँ कुरुक्षेत्र है धर्मक्षेत्र और कर्मक्षेत्र भी धर्मक्षेत्र, ———————— है कर्मक्षेत्र यहाँ धीरों का और धर्मक्षेत्र यहाँ वीरों का।। वो बात ही क्या जिस बात में कोई बात न हो और बात हो वो, हर बात महज एक बात ही है गर बात में कोई बात हो तो। इन धर्म-कर्म की बातों में एक बात छिपी है … Continue reading वो बात ही क्या?- – सोमेश पाठक→