महर्षि दयानन्द और अपमान

प्रत्येक व्यक्ति सोचने समझने के लिए स्वतंत्र हैं . वह अपनी बुद्धिमत्ता के अनुसार परिस्थिति के आंकलन के अनुसार निर्णय लेकर कार्य करता है . एक वर्ग ऐसा  भी होता  जो किसी अन्य के विचारों को  बिना सोचे समझे अनुपालन करना आरम्भ कर देते हैं वहीं  कुछ किसी न किसी कारणवश उनकी बातों से सहमत नहीं होते  . यह मानव जाती का स्वभाव और व्यवहार में प्रदर्शित होता  है . यही कारण है की महापुरुषों के जहाँ अनुगामी लोगों की पचुरता होती है वहीं ऐसे लोगों का समूह भी होता है जो उनकी बातों से सहमत नहीं होते.  महापुरुष विरोधियों की बातों को सुनने और उनकी कटाक्षों को सहने की सामर्थ्य रखते हैं और इनसे विचलित नहीं होते उनका यही … Continue reading महर्षि दयानन्द और अपमान

ऐसे थे पण्डित लेखराम : प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

  मास्टर गोविन्दसहाय आर्य समाज अनारकली लाहौर के लगनशील सभासद थे श्री मास्टर जी पर पण्डित जी का गहरा प्रभाव था . आप पण्डित लेखराम की शूरता की एक घटना सुनाया करते थे एक दिन किसी ने पण्डित जी को सुचना दी कि लाहौर की बादशाही मस्जिद में एक हिन्दू लड़की को शुक्रवार के दिन बलात मुसलमान बनाया जायेगा लड़की को कुछ दुष्ट पहले ही अपहरण करके ले जा चुके थे . यह सुचना पाकर पण्डित जी बहुत दुखी ही . देवियों का अपहरण व बलात्कार उनके लिए असह्य था . वे इसे मानवता के विरुद्ध एक जघन्य अपराध मानते थे . पण्डित जी की आँखों में खून उतर आया .. पण्डित जी ने मास्टर गोविन्दसहाय जी से कहा “चलिए … Continue reading ऐसे थे पण्डित लेखराम : प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

पं० लेखराम की विजय: स्वामी श्रद्धानन्द जी

श्री मिर्जा गुलाम अहमद कादयानी ने अप्रेल १८८५ ईस्वी में एक विज्ञापन के द्वारा भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के विशिष्ट व्यक्तियों को सूचित किया कि दीने इसलाम की सच्चाई परखने के लिए यदि कोई प्रतिष्ठत व्यक्ति एक वर्ष के काल तक मेरे पास क़ादयान में आ कर निवास करे तो मैं उसे आसमानी चमत्कारों का उसकी आँखों से साक्षात् करा सकता हूं । अन्यथा दो सौ रुपए मासिक को गणना से हरजाना या जुर्माना दूँगा । इस पर पं० लेखराम जी ने चौबीस सौ रुपए सरकार में जमा करा देने की शर्त के साथ स्वीकृति दी । उस समय वह आर्यसमाज पेशावर के प्रधान थे । मिर्ज़ा जी ने इस पर टालमटोल से कार्य करते हुए क़ादयान, लाहौर, लुध्याना, अमृतसर और … Continue reading पं० लेखराम की विजय: स्वामी श्रद्धानन्द जी

‘विश्व में वेद-ज्ञान-भाषा की उत्पत्ति और आर्यो का आदि देश’ -मनमोहन कुमार आर्य

“आर्य” शब्द की उत्पत्ति का इतिहास वेदों पर जाकर रूकता है। वेदों में अनेको स्थानों पर अनेकों बार आर्य शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ है कि आर्यों की उत्पत्ति में वेद की मान्यतायें व सिद्धान्त सर्वमान्य हैं। वेद कोई 500,  1500 या 2000 वर्ष पुराना ज्ञान या ग्रन्थ नहीं है अपितु विश्व का सबसे पुरातन ग्रन्थ है। इसे सृष्टि के प्रथम ज्ञान व ग्रन्थ की संज्ञा दी जा सकती है क्योंकि इससे पूर्व व पुरातन ज्ञान व ग्रन्थ अन्य कोई नहीं है। वेदों के बारे में महर्षि दयानन्द की तर्क व युक्तिसंगत मान्यता है कि वेद वह ज्ञान है जो अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को सृष्टिकर्ता, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, निराकार व सर्वान्तर्यामी … Continue reading ‘विश्व में वेद-ज्ञान-भाषा की उत्पत्ति और आर्यो का आदि देश’ -मनमोहन कुमार आर्य

Pakistanis are basically Hindus, Pakistani lady scholar admits

A brave Pakistani lady scholar boldly states what many Indians won’t. In a landmark confession of truth, an enlightened Muslim intellectual, Fauzia Syed, declared during a discussion on a television channel that all Pakistani and Bangladeshi Muslims are essentially Hindus, and that in rare cases, they might be Buddhists. The lady activist lamented that a lot of Muslims, mainly Pakistani and Bangladeshi, have a hard time accepting the fact that their ancestors were Hindus who were converted by force of sword to Islam. The gutsy lady said this in a live television show while responding to the argument of radical Pakistani Muslim preacher Zaid Hamid. Syed’s bold assertion of the truth is a clarion call to Hindus to wake up from … Continue reading Pakistanis are basically Hindus, Pakistani lady scholar admits

श्रीमद्भगवद्गीता व सत्यार्थप्रकाश के अनुसार जीवात्मा का यथार्थ स्वरूप’ -मनमोहन कुमार आर्य

जीवात्मा के विषय में वैदिक सिद्धान्त है कि यह अनादि, अनुत्पन्न, अजर, अमर, नित्य, चेतन तत्व वा पदार्थ है। जीवात्मा जन्ममरण धर्मा है, इस कारण यह अपने पूर्व जन्मों के कर्मानुसार जन्म लेता है, नये कर्म करता व पूर्व कर्मों सहित नये कर्मों के फलों को भोक्ता है और आयु पूरी होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है। संसार में हम जितनी भी प्राणी योनियां देखते हैं, इनमें से प्रायः सभी योनियों में हमारा जन्म हो चुका है। आज यद्यपि हम मनुष्य हैं परन्तु इससे पूर्व अनेकानेक बार इन सभी पशु व कीट-पतंगों आदि योनियों में भी रहकर हमने अपने पापों को भोगा है। मनुष्य योनि ही कर्म व फल भोग अर्थात् उभय योनि है जिसमें मनुष्य अपने प्रारब्ध के … Continue reading श्रीमद्भगवद्गीता व सत्यार्थप्रकाश के अनुसार जीवात्मा का यथार्थ स्वरूप’ -मनमोहन कुमार आर्य

“अमर शहीद भगत सिंह को श्रद्धाजंली” -मनमोहन कुमार आर्य।

देश को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराने तथा गुलामी दूर कर देशवासियों को स्वतन्त्र कराने के स्वप्नद्रष्टा शहीद भगत सिंह जी का २८ सितम्बर को 109 वां जन्म  दिवस था। शहीद भगद सिंह ने देश को स्वतन्त्र कराने के लिए जो देशभक्ति के साहसिक कार्य किये और जेल में यातनायें सहन कीं, उन्हें देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह देशभक्त, वीर, साहसी, बलिदानी भावना वाले भारत माता के ऐसे पुत्र थे जिन पर भारतमाता व देश को गर्व है। हमें यह पंक्तियां लिखते हुए उनके जीवन की वह घटना याद आ रही है जब कोर्ट में हसंने पर अंग्रेज न्यायाधीश ने उनसे कहा था कि यह कोर्ट का अपमान है। इस पर वह बोले थे कि जज महोदय, … Continue reading “अमर शहीद भगत सिंह को श्रद्धाजंली” -मनमोहन कुमार आर्य।

ईसा (यीशु) एक झूठा मसीहा है – पार्ट 1

सभी आर्य व ईसाई मित्रो को नमस्ते। प्रिय मित्रो, जैसे की हम सब जानते हैं – हमारे ईसाई मित्र – ईसा मसीह को परम उद्धारक और पापो का नाशक मानते हैं – इसी आधार पर वो अपने पापो के नाश के लिए ईसा को मसीह – यानी उद्धारक – खुदा का बेटा – मनुष्य का पुत्र – स्वर्ग का दाता – शांति दूत – अमन का राजकुमार – आदि आदि अनेक नामो से पुकारते हैं – इसी आधार ईसा को पापो से मुक्त करने वाला और – स्वर्ग देने हारा – समझकर – अनेक हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करवाकर – उन्हें स्वर्ग की भेड़े बनने पर विवश करते हैं – ईसा का पिछलग्गू बना देते हैं – नतीजा – हिन्दू … Continue reading ईसा (यीशु) एक झूठा मसीहा है – पार्ट 1

~पं.मनसाराम जी वैदिक तोप~राजेंद्र जी जिज्ञासु

लौह लेखनी चलाई, धूम धर्म की मचाई। जयोति वेद की जगाई, सत्य कीर्ति कमाई।। तेरे सामने जो आये, मतवादी घबराये। कीनी पोप से लड़ाई, ध्वजा वेद की झुलाई।। वैदिक तोप नाम पाया, दुर्ग ढोंग का गिराया, विजय दुंदुभि बजाई।। रूढ़िवादी को लताड़ा, मिथ्या मतों को पछाड़ा।। काँपे अष्टादश पुराण, पोल खोलकर दिखाई।। लेखराम के समान, ज्ञानी गुणी मतिमान। जान जोखिम में डाल, धर्म भावना जगाई।। जिसकी वाणी में विराजे, युक्ति, तर्क व प्रमाण। धाक ऋषि की जमाई, फैली वेद की सच्चाई।। मनसाराम जी बेजोड़, कष्ठसहे कई कठोर। धुन देश की समाई, लड़ी गोरोंसे लड़ाई।। बड़ा साहसी सुधीर, मनसाराम प्रणवीर, सफल हुआ जन्म जीवन, तार गई तरुणाई।। धर्म धौंकनी चलाई, राख तमकी हटाई। जीवन समिधा बनाके, ज्ञानाग्नि जलाई।। ~राजेंद्र जी जिज्ञासु~

जीव फल भोगने में परतन्त्र क्यों? – इन्द्रजित् देव

प्रत्येक जीव कर्म करने में स्वतन्त्र है। वह चाहे जैसा कर्म करे, यह उसकी स्वतन्त्रता है। अपने विवेक, ज्ञान, बल, साधन, इच्छा व स्थिति के अनुसार ही कर्म करता है परन्तु अपनी इच्छानुसार वह फल भी प्राप्त कर ले, यह निश्चित नहीं। इसे ही दर्शनान्दु सार फल भोगने में परतन्त्रता कहते हैं। कर्म का कर्त्ता व इसका फल भोक्ता जीव है परन्तु वह फलदाता नहीं। यही न्याय की माँग है। फलदाता स्वयं बन जाता तो पक्षपात व अन्यय सर्वत्र व्याप्त हो जाएगा। हम लोग-समाज में देखते हैं कि हम कर्म किए बिना फल चाहते हैं। फल भी ऐसा चाहते हैं जो सुखदायक हो। यदि हम चाहते-न-चाहते हुए पाप कर्म कर लेते हैं तो भी फल तो पुण्यकर्म का चाहते हैं- … Continue reading जीव फल भोगने में परतन्त्र क्यों? – इन्द्रजित् देव

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)