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~पं.मनसाराम जी वैदिक तोप~राजेंद्र जी जिज्ञासु

लौह लेखनी चलाई, धूम धर्म की मचाई।

जयोति वेद की जगाई, सत्य कीर्ति कमाई।।

तेरे सामने जो आये, मतवादी घबराये।

कीनी पोप से लड़ाई, ध्वजा वेद की झुलाई।।

वैदिक तोप नाम पाया, दुर्ग ढोंग का गिराया,

विजय दुंदुभि बजाई।।

रूढ़िवादी को लताड़ा, मिथ्या मतों को पछाड़ा।।

काँपे अष्टादश पुराण, पोल खोलकर दिखाई।।

लेखराम के समान, ज्ञानी गुणी मतिमान।

जान जोखिम में डाल, धर्म भावना जगाई।।

जिसकी वाणी में विराजे, युक्ति, तर्क व प्रमाण।

धाक ऋषि की जमाई, फैली वेद की सच्चाई।।

मनसाराम जी बेजोड़, कष्ठसहे कई कठोर।

धुन देश की समाई, लड़ी गोरोंसे लड़ाई।।

बड़ा साहसी सुधीर, मनसाराम प्रणवीर,

सफल हुआ जन्म जीवन, तार गई तरुणाई।।

धर्म धौंकनी चलाई, राख तमकी हटाई।

जीवन समिधा बनाके, ज्ञानाग्नि जलाई।।

~राजेंद्र जी जिज्ञासु~