‘‘माँ’’ – देवेन्द्र कुमार मिश्रा

बस माँ ही है धरती की भगवान बेटों के लिए वरदान। जिसके कारण जीवन में सुगन्ध रहती है। वरना दुर्गन्ध आने लगी रिश्तों से। माँ न होती तो तो पता नहीं दुनियाँ का क्या होता। जब सारे रिश्ते बाजार लगते हैं जब मोह भंग हो जाता है जीने से ही तब वो माँ है जिसे देखकर जीने की इच्छा होती है और भगवान पर भरोसा होता है। क्योंकि उसनें माँ दी है। माँ देकर उसने मरने से बचा लिया। कलयुग के इस चरण में जब भगवान, भक्ति ध्यान-ज्ञान भी बिकता है ऐसे में बस एक ही अनमोल चीज है बच्चों के पास वो है माँ जो जन्म से मरण तक सिर्फ  माँ होती है घने वृक्ष की छाँव शीतल जल … Continue reading ‘‘माँ’’ – देवेन्द्र कुमार मिश्रा

अमर हुतात्मा श्रद्धेय भक्त फूल सिंह के 74 वें बलिदान दिवस पर – चन्दराम आर्य

जीविते यस्य जीवन्ति विप्राः मित्राणि बान्धवाः। सफलं जीवनं तस्य आत्मार्थे को न जीवति।। अर्थात् जिस व्यक्ति के जीवन से ब्राह्मण, मित्र गण एवं बान्धव जीवित रहते हैं उसका जीवन सफल माना जाता है। अपने लिए तो कौन नहीं जीता। अमर हुतात्मा श्रद्धेय भक्त फूल सिंह का जीवन भी ठीक उसी प्रकार का था। जन्म व स्थानः- 24 फरवरी सन् 1885 को हरियाणा प्रान्त के अन्तर्गत वर्तमान में सोनीपत जिले के माहरा ग्राम में चौधरी बाबर सिंह के घर माता तारावती की कोख से एक होनहार एवं तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। तत्कालीन रीति-रिवाज अनुसार नामकरण सस्ंकार करवाकर बालक का नाम हरफू ल रखा गया। बालक का मस्तक बड़ा प्रभावशाली एवं आकृति आकर्षक रही जिससे पण्डितों ने उसको बड़ा भाग्यशाली बताया। … Continue reading अमर हुतात्मा श्रद्धेय भक्त फूल सिंह के 74 वें बलिदान दिवस पर – चन्दराम आर्य

  सूर्य नमस्कार- एक विवेचन -विद्यासागर वर्मा, पूर्व राजदूत

सूर्य नमस्कार आसन के विषय में सपूर्ण भारत में एक विवाद खड़ा हो गया है, जिसका देश के हित में समाधान ढूंढना आवश्यक है। अन्तरिम् रूप से भारत सरकार ने सूर्य नमस्कार आसन को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर भव्य सामूहिक कार्यक्रम से हटा दिया है। सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि केवल योग-आसन, योग नहीं। योग एक विस्तृत आध्यात्मिक पद्धति है जिसका ध्येय आत्मा और परमात्मा का मिलन है। पतंजलि ऋषि के योगदर्शन में आसन सबन्धी केवल चार (4) सूत्र हैं। आसन की परिभाषा है ‘स्थिरसुखमासनम्’ अर्थात् सुख पूर्वक स्थिरता से, बिना हिले-डुले, एक स्थिति में बैठना आसन है ताकि अधिक समय तक ध्यान की अवस्था में  बैठा जा सके। प्रचलित योग-आसन हठयोग की क्रियाएँ हैं। … Continue reading   सूर्य नमस्कार- एक विवेचन -विद्यासागर वर्मा, पूर्व राजदूत

Leaving Islam…..Aditya Nandiwardhana

‘No matter how many good things you have done before you kick the bucket, if you are not a Muslim, then bad news for you. Even back then, I had a problem accepting that part of the religious teaching’ “In the afterlife, only Muslims get to enter paradise.” That was what my Quran tutor told me when I was in fourth grade. The moment she told me that, I was really, really, surprised. I was raised as a Muslim, and like any other Muslim kid in Indonesia, I had to learn how to recite the Quran. My father hired a Quran tutor for me and I spent a couple of hours 3 days a week with her. I did not … Continue reading Leaving Islam…..Aditya Nandiwardhana

ओ३म् ‘क्या देश ने महर्षि दयानन्द को उनके योगदान के अनुरूप स्थान दिया?’ -मनमोहन कुमार आर्य

महर्षि दयानन्द (1825-1883) ने भारत से अज्ञान, अन्धविश्वास आदि दूर कर इनसे पूर्णतया रहित सत्य सनातन वैदिक धर्म की पुनस्र्थापना की थी और इसे मूर्तरूप देने के लिए आर्यसमाज स्थापित किया था। वैदिक धर्म की यह पुनस्र्थापना इस प्रकार से है कि सत्य, सनातन, ज्ञान व विज्ञान सम्मत वैदिक धर्म महाभारत काल के बाद विलुप्त होकर उसके स्थान पर नाना प्रकार के अन्धविश्वास, कुरीतियां, सामाजिक असमानतायें व पाखण्डों से युक्त पौराणिक मत ही प्रायः देश में प्रचलित था जिससे देश का प्रत्येक नागरिक दुःख पा रहा था। अज्ञान व अन्धविश्वास ऐसी चीजें हैं कि यदि परिवार में एक दो सदस्य भी इनके अनुगामी हों, तो पूरा परिवार अशान्ति व तनाव का अनुभव करता है। देश की जब बहुत बड़ी जनता … Continue reading ओ३म् ‘क्या देश ने महर्षि दयानन्द को उनके योगदान के अनुरूप स्थान दिया?’ -मनमोहन कुमार आर्य

1965 के भारत-पाक युद्ध की पृष्ठ भूमि तथा मेरे संस्मरण -मेजर रतनसिंह यादव

1. युद्ध की पृष्ठभूमि-विशाल भारत का विखण्डन आरभ हुआ तो बर्मा, श्रीलंका आदि स्वतन्त्र राष्ट्र बनते चले गये। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति, भारत विभाजन का दुर्भाग्य पूर्ण तथा रक्त रंजित अध्याय भी 1947 के आते-आते लिख दिया गया। इसकेपश्चात् कई नवोदित राष्ट्रों में प्रजातन्त्रीय व्यवस्था से चुनी गयी सरकारों का सैनिक तानाशाहों ने तता पलट दिया। बर्मा, श्री लंका तथा विशेषकर पाकिस्तान में तो प्रधानमन्त्री की हत्या तक कर दी गयी। ऐसे में प्रधानमन्त्री पद के लालच में भारत विभाजन तक का पाप करने वाले, महात्मा गाँधी के प्रिय जवाहरलाल नेहरु को लगा कि यह चारों ओर के पड़ोसियों के घर में लगी आग कहीं मेरी कुर्सी तक न आ पहुँचे। इससे भयभीत नेहरु जी ने भारतीय सेना को वर्ष … Continue reading 1965 के भारत-पाक युद्ध की पृष्ठ भूमि तथा मेरे संस्मरण -मेजर रतनसिंह यादव

शिक्षा – योगेन्द्र दमाणी

जब से मैंने क, ख, ग, घ, सीखा है तब से मैं यह सुनता आया हूँ कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यह शायद ठीक ही  है। शायद शब्द का व्यवहार इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मेरा यह सौभाग्य कम हो पाया कि उस प्रधानता को मैं देख सकूँ। इतने बड़े देश में सब तरह के कार्य होते हैं और किसी एक को कम या अधिक रूप में देखना उचित भी नहीं। हर एक से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है। जैसे कृषि को ही लें। खेतालिहानों में हम पाते हैं कि बच्चे अपने माता-पिता के साथ कृषि का कार्य करते हुए बड़े होते हैं उन्हें कृषि सिखाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। बहुत कम अक्षरी शिक्षा में … Continue reading शिक्षा – योगेन्द्र दमाणी

ईश्वर को प्राप्त करने की सरल विधि क्या है’ -मनमोहन कुमार आर्य

प्रत्येक व्यक्ति सरलतम रूप में ईश्वर को जानना व  उसे प्राप्त करना चाहता है। हिन्दू समाज में अनेकों को मूर्ति पूजा सरलतम लगती है क्योंकि यहां स्वाध्याय, ज्ञान व जटिल अनुष्ठानों आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती। अन्य मतों की भी कुछ कुछ यही स्थिति है। अनेक मत वालों ने तो यहां तक कह दिया कि बस आप हमारे मत पर विश्वास ले आओ, तो आपको ईश्वर व अन्य सब कुछ प्राप्त हो जायेगा। बहुत से भोले-भाले लोग ऐसे मायाजाल में फंस जाते हैं परन्तु विवेकी पुरूष जानते हैं कि यह सब मृगमरीचिका के समान है। जब रेगिस्तान की भूमि में जल है ही नहीं तो वह वहां प्राप्त नहीं हो सकता। अतः धार्मिक लोगों द्वारा अपने भोले-भाले अनुयायियों को बहकाना … Continue reading ईश्वर को प्राप्त करने की सरल विधि क्या है’ -मनमोहन कुमार आर्य

यह दोहरा मापदण्ड क्यों?– – राजेन्द्र जिज्ञासु

‘आर्य सन्देश’ दिल्ली के 13 जुलाई के अंक में श्रीमान् भावेश मेरजा जी ने मेरी नई पुस्तक ‘इतिहास प्रदूषण’ की समीक्षा में अपने मनोभाव व्यक्त किये हैं। मैंने अनेक बार लिखा है कि मैं अपने पाठक के असहमति के अधिकार को स्वीकार करता हूँ। आवश्यक नहीं कि पाठक मुझसे हर बात में सहमत हो। समीक्षक जी ने डॉ. अशोक आर्य जी के एक लेख में मुंशी कन्हैयालाल आर्य विषयक एक चूक पर आपत्ति करते हुए उन्हें जो कहना था कहा और मुझे भी उनके लेख के बारे में लिखा। मैंने भावेश जी को लिखा मैं लेख देखकर उनसे बात करूँगा। अशोक जी को उनकी चूक सुझाई। उन्होंने कहा , मैंने पं. देवप्रकाश जी की पुस्तक में ऐसा पढ़कर लिख दिया। … Continue reading यह दोहरा मापदण्ड क्यों?– – राजेन्द्र जिज्ञासु

इससे हमने क्या सीखा?ः- राजेन्द्र जिज्ञासु

पूर्वजों के तर्क व युक्तियाँ सुरक्षित की जायेंः– आज हम लोग एक बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। हम कुछ हल्के दृष्टान्त, हंसाने वाले चुटकले सुनाकर अपने व्यायानों को रोचक बनाने की होड़ में लगे रहते हैं। इससे हमारा स्तर गिरता जा रहा है। यह चिन्ता का विषय है। पं. रामचन्द्र जी देहलवी हैदराबाद गये तो आपने हिन्दुओं के लिए मुसलमानों के लिए व्यायान के पश्चात् शंका करने के दिन निश्चित कर रखे थे। निजाम ने प्रतिबन्ध लगा दिया कि मुसलमान पण्डित जी से शंका समाधन कर ही नहीं सकता। वह जानता था कि पण्डित रामचन्द्र जी का उत्तर सुनकर मुसलमान का ईमान डोल जायेगा। उसके भीतर वैदिक धर्म घुस जायेगा। देहलवी जी से प्रश्न करने पर लगाई गई यह … Continue reading इससे हमने क्या सीखा?ः- राजेन्द्र जिज्ञासु

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)