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प्रारम्भ ही मिथ्या से – पंडित चमूपति जी

  प्रारम्भ ही मिथ्या से
वर्तमान कुरआन का प्रारम्भ बिस्मिल्लाह से होता है I सूरते  तौबा  के अतिरिक्त और सभी  सूरतों का प्रारम्भ में यह मंगलाचरण  के रूप में पाया जाता है ई यही नहीं इस पवित्र वाक्य का पाठ मुसलामानों के अन्य कार्यों के प्रारम्भ करना अनिवार्य माना गया है ई
ऋषि दयानंद  को इस कलमे ( वाक्य ) पर दो आपत्तियां है I प्रथम यह कुरआन के प्रारम्भ में यह कलमा परमात्मा की ओर से प्रेषित ( इल्हाम ) नहीं हुआ है I दूसरा यह की मुसलमान लोग कुछ ऐसे कार्यों में भी इसका पाठ करते है जो इस पवित्र वाक्य के गौरव के अधिकार क्षेत्र नहीं I
पहेली शंका कुरआन की वररण शैली के ओर ईश्वरी सन्देश के उतरने से सम्बन्ध रखती है I हदीसों ( इस्लाम की प्रामाणिक शुर्ति ग्रन्थ  ) में वरनन है कि सर्वप्रथम सूरत ” अलक” कि प्रथम पांच आयतें परमात्मा कि ओर से उतरी है I हज़रात जिब्रील ( ईश्वरीय दूत ) ने हज़रात मुहम्मद से कहा
” इकरअ बिइसमे रब्बिका अल्लज़ी खलका “
 पद ! अपने परमात्मा के नाम सहित जिसने उत्पन्न किया I इन आयतो के पश्चात सूरते मुजम्मिल के उतरने की साक्षी है I  इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ
                       ” या अय्युहल मुजम्मिलो ‘
                          ये वस्त्रों में लिपटे हुए !
 ये दोनों आयतें हज़रात मुहम्मद को सम्बोधित की गयी है I  मुसलमान ऐसे सम्बोधन को या हज़रात मुहम्मद के लिए विशेष भक्तो के लिए सामान्यतया नियत करते हैं I  जब किसी आयत का मुसलामानों से पाठ ( किरयात ) करना हो तो वह इकरअ ( पद / रीड ) या कुन ( कह ) भूमिका इस आयत के प्रारम्भ में ईश्वरीय सन्देश के इक भाग के रूप में वररन किया जाता है I यह है इल्हाम ईश्वरीय
सन्देश कुरआन की वररणशैली जिस से इल्हाम प्रारम्भ हुआ था I
अब यदि अल्लाह
को कुरआन के इल्हाम का प्रारम्भ बिस्मिल्लह से करना होता तो सूरते अलक के प्रारम्भ में हज़रात जिब्रील ने बिस्मिल्लाह पढ़ीं होती या इकरअ के पश्चात बीस्मेरब्बिका
के स्थान पर बिस्मिल्लाहिर्रहमनिर्हिम  कहा होता I
मुजिहुल कुरआन में सूरत फातिहा की टिप्पणी पर जो वर्तमान कुरआन की पहली सूरत है लिखा है –
 यह सूरत अल्लाह साहब ने भक्तो की वाणी से कहलवाई है की इस प्रकार कहा करें I
यदि यह सूरत होती तो इसके पूर्व कुल ( कह ) या इकरअ ( पढ़ ) जरूर पड़ा जाता I
 कुरआन की कई सूरतों का प्रारम्भ स्वयं कुरआन की विशेषता से हुआ है I  अतएव सूरते बकर के प्रारम्भ में जो कुरआन की दूसरी सूरत प्रारम्भ में ही कहा –
 ‘ जालिकल किटबोला रेबाफ़ीहे , हुडान लिलमुक्तकिन “
 यह पुस्तक है इसमें कुछ संदेह ( की सम्भावना ) नहीं ! आदेश करती परेहजगारों ( बुरियो से बचने वालों ) को I  तफ़सीरे इक्तकिन ( कुरआन भाष्य ) में वर्णन है की इब्ने मसूद अपने कुरआन में सूरते फातिहा को सम्मिलित नहीं करते थे I  उनकी कुरआन के प्रति का प्रारम्भ सूरते बकर से होता था I वे हज़रात मुहम्मद के विश्वस्त मित्रोँ ( सहाबा  ) में से थे I कुरआन की भूमिका के रूप में यह आयत आयत जिसका हमने ऊपर उल्लेख किया है ! समुचित है l  ऋषि दयानंद ने कुरआन के प्रारम्भ के लिए यदि इसे इल्हामी ( ईश्वरीय रचना ) माना जाए यह वाक्य प्रस्तावित किये है l यह प्रस्ताव कुरआन की अपनी वर्णन शैली  के सर्वथा अनुकूल है ओर अब्ने मसूद इस शैली को स्वीकार करते थे l मौलाना मुहम्मद अली अपने अंग्रेजी कुरआन अनुवाद में पृष्ठ ८२ पर लिखते हैं –
कुछ लोगो का विचार था की बिस्मिल्लाह जिससे कुरआन की प्रत्येक सूरत प्रारम्भ हुई हैं , प्रारम्भिक वाक्य ( कलमा ) के रूप में बढ़ाया गया हैं यह इस सूरत का भाग नहीं l
इक ओर बात जो बिस्मिल्ला के कुरआन शरीफ में बहार से बढ़ाने का समर्थन करती हैं वह हैं , प्रारंभिक वाक्य ( कलमा ) के रूप में बढ़ाया गया यह इस सूरत का भाग नहीं l
 इक ओर बात जो बिस्मिल्ला के कुरआन शरीफ में बहार से बढ़ाने का समर्थन करती हैं वह हैं सूरते तौबा  के प्रारम्भ में कालमाए तसीमआ ( बिस्मिल्ला ) का वर्णन
 ना करना I  वहां लिखने से छूट गया हैं I यह ना लिखा जाना पढ्ने वालों  ( कारियों ) में इस विवाद का भी विषय बना हैं की सूरते इंफाल ओर सूरते तौबा जिनके मध्य बिस्मिल्ला  निरस्त हैं दो पृथक सूरते हैं या इक ही सूरत के दो भाग – अनुमान यह होता हैं की बिस्मिल्ला कुरआन का भाग नहीं हैं I लेखको की ओर से पुण्य के रूप ( शुभ वचन ) भूमिका के रूप जोड़ दिया गया हैं और बाद में उसे भी ईश्वरीय सन्देश ( इल्हाम ) का ही भाग ही समझ लिया गया हैं I
यही दशा सूरते फातिहा की हैं यह हैं तो मुसलमानों के पाठ के लिए , परन्तु इसके प्रारम्भ में कुन  ( कह ) इकरअ ( पड़ ) अंकित नहीं हैं I और इसे भी इब्ने मसूद ने अपनी पाण्डुलिपि में निरस्त कर दिया था I
महर्षि दयानंद की शंका इक ऐतिहासिक शंका हैं यदि बिस्मिल्ला और सूरते फातिहा पीछे से जोड़े गए हैं तो शेष पुस्तक की शुद्धता का क्या विश्वास ? यदि बिस्मिल्ला ही अशुद्ध तो इंशा व इम्ला ( अन्य लिखने पढ़ने ) का तो फिर विश्वास ही कैसे किया जाए ?
कुछ उत्तर देने वालों ने इस शंका का इल्जामी ( प्रतिपक्षी ) उत्तर वेद की शैली से दिया हैं की वहां भी मंत्रो के मंत्र और सूक्तों के सूक्त परमात्मा की स्तुति में आये हैं ,और उनके प्रारम्भ में कोई भूमिका रूप में ईश्वरीय सन्देश नहीं आया I
वेद ज्ञान मौखिक नहीं – वेद का ईश्वरीय सन्देश आध्यत्मिक , मानसिक हैं मौखिक नही I ऋषियों के ह्रदय की दशा उस ईश्वरीय ज्ञान के समय प्रार्थी की दशा थी I उन्हें कुल ( कह ) कहने की क्या आवश्यकता थी I वेद में तो सर्वत्र यही शैली बरती गयी हैं I बाद के वेदपाठी वर्णनशैली से भूमिकागत भाव ग्रहण करते हैं | यही नहीं इस शैली के परिपालन में संस्कृत साहित्य में अब तक यह नियम बरता जाता हैं की बोलने वाले व सुननेवाले का नाम लिखते नहीं | पाठक भाषा के अर्थों से अनुमान लगता हैं | कुरआन में भूमिका रूप में ऐसे शब्द स्पष्टतया लिखे गए हैं क्योंकी कुरआन कुरआन का ईश्वरीय सन्देश मौखिक हैं जिबरालपाठ करतै हैं और हज़रात मुहम्मद करते हैं इसमें ” कह ” कहना होता हैं | संभव हैं कोई मौलाना ( इस्लामी विद्वान ) इस बाहा प्रवेश को उदाहरण निश्चिय करके यह कहे की अन्य स्थानों पर इस उदाहरण   की भांति ऐसी ही भूमिका स्वयं कल्पित करनी चाहिए | निवेदन यह हैं की उदहारण पुस्तक के प्रारम्भ में देना चाहिए था ना की आगे चलकर उदाहरण और वह बाद में लिखा जाए यह पुस्तक लेखन के नियमों के विपरीत हैं | महर्षि दयानंद  की दूसरी शंका बिस्मिल्ला
के सामान्य प्रयोग पर हैं | महर्षि ने ऐसे तीन कामों का नाम लिया हैं जो प्रत्येक जाती व प्रत्येकमत में निंदनीय हैं | कुरआन में मांसादि का विधान हैं और बलि का आदेश हैं |  इस पर हम अपनी सम्मति
ना देकर शेख खुदा बक्श M . A . प्रोफ़ेसर कलकत्ता विश्वविद्यालय के इक लेख से जो उन्होंने इद्ज्जुहा के अवसर पर कलकत्ता स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित करायी थी | निनलिखित हैं उदाहरण प्रस्तुत किये हैं देते हैं –
खुदा बक्श जी का मत – ” सचमुच – सचमुच बड़ा खुदा व दयालु व दया करने वाला हैं वह खुदा आज खून की नदियों का चीखते हुए जानवरों की असहा व अवर्णनीय पीड़ा का इच्छुक नहीं प्रायश्चित ….? वास्तविक प्रायश्चित वह हैं जो मनुष्य के अपने ह्रदय में होता हैं | सभी प्राणियों की और अपनी भावना परवर्तित कर दी जाए | भविष्य के काल का धर्म प्रायश्चित के इस कठोर व निर्दयी प्रकार को त्याग देगा | ताकि वह इन तीनों पर भी भी दयापूर्ण घृणा से दृष्टिपात करें | जब बलि का अर्थ अपने मन के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु अन्य सत्ता  का बलिदान हैं  ”  माडर्न रिव्यु  से अनुवादित ,
दयालु व दया करने वाले परमात्मा का नाम लेने का स्वाभाविक परिणाम यह होना चाहिए था की हम वाणी हैं जीवों पर दया का व्यवहार करते परन्तु किया हमने इसके सर्वथा विरोधी कार्य…..  |
मुजिहूल कुरआन में लिखा हैं –
जब किसी जानवर का वध करें उस पर बिस्मिल्ला व अल्लाहो अकबर पढ़ लिया करें कुरआन में जहाँ कहीं हलाल ( वैध )  व हराम ( अवैध ) का वर्णन आया हैं वहां हलाल ( वैध )  उस वध को निश्चित किया हैं जिस पर अल्लाह का नाम पढ़ा गया हो  |कलमा पवित्र हैं दयापूर्ण हैं परन्तु उसका प्रयोग उसके आशय के सर्वथा विपरीत हैं |
( २ ) इस्लाम में बहु विवाह की आज्ञा तो हैं ही पत्नियों के अतिरिक्त रखैलों की भी परम्परा हैं लिखा हैं – वल्लज़ीन लिफारुजिहिम हफीजुन इल्ला अललजुहुम औ मामलकात ईमानु हुम | सूरतुल
मोमिनन आयत ऐन और जो  रक्षा करते हैं अपने गुप्त अंगों की , परन्तु नहीं अपनी पत्नियों व रखैलों से | तफ़सीरे जलालेन सूरते बकर आयत २२३ निसाउक्कम हर सुल्ल्कुम फयातु हरसकम
अन्ना शीअतुम तुम्हारी पत्नियां तुम्हारी खेतिया हैं जाओ जिस प्रकार अपनी खेती की और जिस प्रकार चाहो | तफ़सीरे जलालेन  में इसकी व्याख्या करते हुए लिखा हैं – जिस बिस्मिल्ला कहकर – सम्भोग करो जिस प्रकार चाहो उठकर बैठकर लेटकर उलटे सीधे जिस प्रकार चाहो सम्भोग के समय बिस्मिल्ला कहलिया करो |                                                                                          बिस्मिल्ला का सम्बन्ध बहु विवाह से हो रखैलों की वैधता से हो | इस प्रकार के सम्भोग से यह स्वामी दयानंद को बुरा लगता हैं
( ३ ) सूरते आल इमरान आयत २७ ल यक्तखिजुमोमिंउनकफ़ीरिणा ओलियाया मिन्दुनिल मोमिना इल्ला अं तख़्तकु मीनहुम तुकतुन
ना बनायें मुसलमान काफिरों को अपना मित्र केवल मुसलमानोंको ही अपना मित्र बनाये |
 इसकी व्याख्या किसी भय के कारण सहूलियत के रूप में ( काफिरों के साथ ) वाणी से मित्रता का वचन कर लिया जाए और ह्रदय में उनसे ईर्ष्या
व वैरभाव रहे तो इसमें कोई हानि नहीं ….. जिस स्थान पर इस्लाम पूरा शक्तिशाली नहीं बना हैं वह अब भी यही आदेश प्रचिलत हैं | स्वामी दयानंद इस मिथ्यावाद की आज्ञा भी ईश्वरीय पुस्तक में नहीं दे सकते ऐसे आदेश या कामों का प्रारम्भ दयालु व दायकर्ता पवित्र और सच्चे परमात्मा के नाम से हो यह स्वामी दयानंद को स्वीकार नहीं |

 

शैतान कहाँ है?- प्रो राजेंद्र जिज्ञासु (कुछ तड़प-कुछ झड़प फरवरी द्वितीय २०१५)

ईसाई तथा इस्लामी दर्शन का आधार शैतान के अस्तित्व पर है। शैतान सृष्टि की उत्पत्ति  के समय से शैतानी करता व शैतानी सिखलाता चला आ रहा है। उसी का सामना करने व सन्मार्ग दर्शन के लिए अल्लाह नबी भेजता चला आ रहा है। मनुष्यों से पाप शैतान करवाता है। मनुष्य स्वयं ऐसा नहीं सोचता। पूरे विश्व में आज पर्यन्त किसी भी कोर्ट में किसी ईसाई मुसलमान जज के सामने किसी भी अभियुक्त ईसाई व मुसलमान बन्धु ने यह गुहार नहीं लगाई कि मैंने पाप नहीं किया। मुझ से अपराध करवाया गया है। पाप के लिए उकसाने वाला तो शैतान है।

किसी न्यायाधीश ने भी कहीं यह टिप्पणी नहीं की कि तुम शैतान के बहकावे में क्यों आये? दण्ड कर्ता को ही मिलता है। कर्ता की पूरे विश्व के कानूनविद् यही परिभाषा करते हैं जो सत्यार्थप्रकाश में लिखी है अर्थात् ‘स्वतन्त्रकर्ता’ कहिये शैतान कहाँ खो गया? फांसी पर तो इल्मुद्दीन तथा अ    दुल रशीद चढ़ाये गये। क्या यह महर्षि दयानन्द दर्शन की विजय नहीं है? अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इरान, पाकिस्तान व मिश्र में इसी नियम के अनुसार अपराधी फांसी पर लटकाये जाते हैं और कारागार में पहुँचाये जाते हैं।

सर सैयद अहमद का लेख याद कीजियेः मुसलमानों के सर्वमान्य नेता तथा कुरान के भाष्यकार सर सैयद अहमद खाँ ने अपने ग्रन्थ में एक कहानी दी है। एक मौलाना को सपने में शैतान दीख गया। मौलाना ने झट से उसकी दाढ़ी को कसकर पकड़ लिया। एक हाथ से उसकी दाढ़ी को खींचा और दूसरे हाथ से शैतान की गाल पर कस कर थप्पड़ मार दिया। शैतान की गाल लाल-लाल हो गई। इतने में मौलाना की नींद खुल गई। देखता क्या है कि उसके हाथ में उसी की दाढ़ी थी जिसे वह खींच रहा था और थप्पड़ की मार से उसी का गाल लाल-लाल हो गया था।

इस पर सर सैयद की टिप्पणी है कि शैतान का अस्तित्व कहीं बाहर नहीं (खारिजी वजूद) है। तुम्हारे मन के पाप भाव ही तुम से पाप करवाते हैं। अब प्रबुद्ध पाठक अपने आपसे पूछें कि यह क्रान्ति किसके पुण्य प्रताप से हो पाई? यह किसका प्रभाव है? मानना पड़ेगा कि यह उसी ऋषि का जादू है जिसने सर्वप्रथम शैतान वाली फ़िलास्फ़ी की समीक्षा करके अण्डबण्ड-पाखण्ड की पोल खोली।

‘जवाहिरे जावेद’ के छपने परः- देश की हत्या होने से पूर्व एक स्वाध्यायशील मुसलमान वकील आर्य सामाजिक साहित्य का बड़ा अध्ययन किया करता था। उस पर महर्षि के वैदिक सिद्धान्त का गहरा प्रभाव पड़ता गया परन्तु एक वैदिक मान्यता उसके गले के नीचे नहीं उतर रही थी। जब जीव व प्रकृति भी अनादि हैं, इन्हें परमात्मा ने उत्पन्न नहीं किया तो फिर परमात्मा इनका स्वामी कैसे हो गया? प्रभु जीव व प्रकृति से बड़ा कैसे हो गया? तीनों ही तो समान आयु के हैं। न कोई बड़ा और न ही छोटा है।

आचार्य चमूपति की मौलिक दार्शनिक कृति ‘जवाहिरे जावेद’ के छपते ही उसने इसे क्रय करके पढ़ा। पुस्तक पढ़कर वह स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी के पास आया। महाराज के ऐसे कई मुसलमान प्रेमी भक्त थे। उसने स्वामी जी से कहा कि आर्यसमाज की सब मान्यताएँ मुझे जँचती थीं, अपील करती थीं परन्तु प्रकृति व जीव के अनादि व का सिद्धान्त मैं नहीं समझ पाया था। पं. चमूपति जी की इस पुस्तक को पढ़कर मेरी सब शंकाओं का उत्तर  मिल गया।

मित्रो! कहो कि यह किस की दिग्विजय है। इसी के साथ यह बता दें कि दिल्ली के चाँदनी चौक बाजार में किसी गली में एक प्रसिद्ध मुस्लिम मौलाना महबूब अली रहते थे। मूलतः आप चरखी दादरी (हरियाणा) के निवासी थे। आपने भी यह अद्भुत पुस्तक पढ़ी। फिर आपने एक बड़ा जोरदार लेख लिखा। श्री सत्येन्द्र सिंह जी ने हमें उस लेख का हिन्दी अनुवाद करने की प्रेरणा दी। अब समय मिलेगा तो कर देंगे। इस लेख में पण्डित जी के एतद्विषयक तर्कों को पढ़कर मौलाना ने सब मौलवियों से कहा था कि यदि प्रकृति व जीव के अनादित्व को स्वीकार न किया जावे तो कुरान वर्णित अल्लाह के सब नाम निरर्थक सिद्ध होते हैं। मौलाना की यह युक्ति अकाट्य है। कैसे? अल्लाह के कुरान में ९९ नाम हैं यथा न्यायकारी, पालक, मालिक, अन्नधन (रिजक) देने वाला आदि। अल्लाह के यह गुण व नाम भी तो अनादि हैं। जब जीव नहीं थे तो वह किसका पालक, मालिक था? किसे न्याय देता था? प्रकृति उत्पन्न नहीं हुई थी तो जीवों को देता क्या था? तब वह स्रष्टा (खालिक) कैसे था? किससे सृजन करता था? मौलाना की बात का प्रतिवाद कोई नहीं कर सका। अब प्रबुद्ध पाठक निर्णय करें कि यह किस की छाप है? यह वैदिक दर्शन की विजय है या नहीं?

रक्त्साक्षी पंडित लेखराम ने क्या किया ? क्या दिया ? राजेन्द्र जिज्ञासु

Pt Lekhram

मूलराज के पश्चात् पंडित लेखराम आर्य जाति के ऐसे पहले महापुरुष थे जिन्हें धर्म की बलिवेदी पर इस्लामी तलवार कटार के कारण शीश चढाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ . वे आर्य जाति के एक ऐसे सपूत थे जो धर्म प्रचार व जाती रक्षा के लिए प्रतिक्षण सर तली पर धरकर प्रतिपल तत्पर रहते थे . उन्हीं के लिए कुंवर सुखलाल जी ने यह लिखा था :

हथेली पे सर जो लिए फिर रहा हो

वे सर उसका धड से जुदा क्या करेंगे

पंडित लेखराम ने लेखनी व वाणी से प्रचार तो किया ही, आपने एक इतिहास रचा . आपको आर्यसमाज तथा भारतीय पुनर्जागरण के इतिहास में नई -२ परम्पराओं का जनक होने का गौरव प्राप्त हुआ . श्री पंडित रामचन्द्र जी देहलवी के शब्दों उनका नाम नामी आर्योपदेशकों के लिए एक गौरवपूर्ण उपाधि बन गया . वे आर्य पथिक अथवा आर्यामुसाफिर बने तो उनके इतिहास व बलिदान से अनुप्राणित होकर आर्यसमाज के अनेक दिलजले आर्य मुसाफिर पैदा हो गए . किस किस का नाम लिया जाए . मुसाफिर विद्यालय पंडित भोजदत्त से लेकर ठाकुर अमरसिंह कुंवर सुखलाल डॉक्टर लक्ष्मीदत्त पंडित रामचंद्र अजमेर जैसे अनेक आर्यमुसाफिर उत्पन्न किये.

धर्म पर जब जब वार हुआ पंडित लेखराम प्रतिकार के लिए आगे निकले . विरोधियों के हर लेख का उत्तर दिया . उनके साहित्य को पढ़कर असंख्य जन उस युग में व बाद में भी धर्मच्युत होने से बचे. श्री महात्मा विष्णुदास जी लताला वाले पंडित लेखराम का साहित्य पढ़कर पक्के वैदिक धर्मी बने . आप ही की कृपा से स्वामी स्वतान्त्रतानंद जी महाराज के रूप में नवरत्न आर्य समाज को दिया .

 

बक्षी रामरत्न तथा देवीचंद जी आप को पढ़ सुनकर आर्यसमाज के रंग में रंगे  गए. सियालकोट छावनी में दो सिख युवक विधर्मी बनने लगे . वे मुसलमानी साहित्य पढकर  सिखमत  को छोड़ने का निश्चय कर चुके थे . सिखों की शिरोमणि संस्था सिख सभा की विनती पर एक विशेष व्यक्ति को महात्मा मुंशी राम जी के पास भेजा गया की शीघ्र आप सिविल सर्जन पंडित लेखराम को सियालकोट भेजें . जाती के दो लाल बचाने  का प्रश्न है . पंडित लेखराम महात्मा जी का तार पाकर सियालकोट आये . सियालकोट के हिन्दू सिखों की भारी भीड़ समाज मंदिर में उन्हें सुनने  को उमड़ पड़ी . टिल धरने को भी वहां स्थान नहीं था .

दोनों युवकों को धर्म पर दृढ कर दिया गया . इनमें एक श्री सुन्दरसिंह ने आजीवन आर्यसमाज की सेवा की . सेना छोड़कर वह समाज सेवा के लिए समर्पित हो गया .

मिर्जा काद्यानी ने सत्बचन ( सिखमत  खण्डन ) पुस्तक लिखकर सिखों में रोष व निराशा उत्पन्न कर दी . उत्तर कौन दे ? सिखों ने पंडित जी की और से रक्षा करने के लिए निहारा . धर्मवीर लेखराम ने जालंधर में मुनादी करवा कर गुरु नानक जी के विषय में भारी सभा की . जालंधर छावनी के अनेक सिख जवान उनको सुनने के लिए आये . पंडित जी ने प्रमाणों की झडी  लगाकर मिर्जा की भ्रामक व विषैली पुस्तक का जो उत्तर दिया तो श्रोता वाह ! वाह ! कर उठे ! व्याख्यान की समाप्ति पर पंडित लेखराम जी को कन्धों पर उठाने की स्पर्धा आरम्भ हो गयी. मल्लयुद्ध के विजेता को अखाड़े में कन्धों पर उठाकर जैसे पहलवान घूमते  हैं वैसे ही पंडित जो उठाया गया .

 

जाती के लाल बचाने के लिए वे चावापायल में चलती गाडी से कूद पड़े. जवान भाई घर पर मर गया . वह सूचना पाकर घर न जाकर दीनानगर से मुरादाबाद मुंशी इन्द्रमणि जी के एक भांजे को इसाई मत से वापिस लाने पहुँच गए . मौलाना अब्दुल अजीज उस युग के एक्स्ट्रा असिस्टेंट कमिश्नर थे . इससे बड़ा पद कोई भारतीय पा ही नहीं सकता था . पंडित लेखराम का साहित्य पड़कर अरबी भाषा का इसलाम का मर्मग्य यह मौलाना पंजाब से अजमेर पहुंचा और परोपकारिणी सभा से शुद्ध करने की प्रार्थना की .”देश हितैषी “ अजमेर में छपा यह समाचार मेरे पास है . यह ऋषी जी के बलिदान के पश्चात् सबसे बड़ी शुद्धी थी .

स्वयं पंडित लेखराम ने इसकी चर्चा की है .यह भी बता दूँ की इसरो के महान भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर सतीश धवन मौलाना के सगे सम्बन्धियों में से थे . आपको लाला हरजसराय नाम दिया गया . इन्हें सभा ने लाहौर में शुद्ध किया . तब आर्यसमाज का कडा विरोध किया गया . अमृतसर के कुछ हिन्दुओं ने आर्य समाज का साथ भी दिया था . स्वामी दर्शनानंद तब पंडित लेखराम की सेना में थे तो उनके पिता पंडित रामप्रताप पोपमंडल  के साथ शुद्धि का विरोध कर रहे थे . आज घर वापस की रट  लगाने वाले शुद्धि के कर्णधार का नाम लेते घबराते व कतराते हैं  . क्या वे बता सकते हैं की स्वामी विवेकानन्द जी ने किस किस की घर वापसी करवाई . कांग्रेस का तो आदि काल का बंगाली ब्राहमण बनर्जी ही इसाई बन चूका था.

मौलाना अब्दुल्ला मेमार ने पंडित लेखराम जी के लिए “गौरव गिरि “ विशेषण का प्रयोग किया है . केवल एक ही गैर मुसलमान के लिए यह विशेषण अब तक प्रयुक्त हो हुआ है . यह है प्राणवीर पंडित लेखराम का इतिहास में स्थान व सम्मान .

सिखों की एक “सिख सभा “ नाम की पत्रिका निकाली गयी . इसका सम्पादक पंडित लेखराम जी का दीवाना था . पंडित लेखराम जी का भक्त व प्रशंषक था . उसका कुछ दुर्लभ साहित्य में खोज पाया . पंडित लेखराम जी जब धर्म रक्षा के लिए मिर्जा गुलाम अहमद की चुनौती स्वीकार कर उसका दुष्प्रचार रोकने कादियान पहुंचे तो मिर्जा घर से निकला ही नहीं

आप उसके इल्हामी कोठे पर साथियों सहित पहुँच गए . मिर्जा चमत्कार दिखाने की डींगे मारा करता था . पंडित जी ने कहा कुरआन में तो “खारिक आदात “ शब्द ही नहीं . उसने कहा _ है “ पंडित जी ने अपने झोले में से कुरान निकाल कर कहा  “ दिखाओ कहाँ है ?”

वहां यह शब्द हो तो वह दिखाए . मौलवियों ने इस पर मिर्जा को फटकार लगाईं हिया . पंडित जी ने अपनी ताली पर “ओम “ शब्द लिखकर मुट्ठी बंदकर के कहा “ खुदा से पूछकर  बताओ मैने क्या लिखा है ?. सिख सभा के सम्पादक ने लिखा है कि  मिर्जा की बोलती बंद  हो गयी , वह नहीं बता सका कि  पंडित जी ने अपनी तली पर क्या लिखा हिया . अल्लाह ने कोई सहायता न की . पंडित लेखराम जी के तर्क व प्रमाण दे कर देहलवी के प्रधान मंत्री राजा सर किशन प्रसाद को मुसलमान बनने  से बचाया था .

वेद सदन अबोहर पंजाब

जो डर गया वह मक्का गया

pk hindi

 

 

PK  का जवाब बिना पिए क्यूंकि पीने का शौक वैसे भी जन्नत जाने के शौकीनों को ज्यादा है हम तो सनातनी है भाई, जहाँ जन्नत या दोजख जैसे प्रदेशों की कोई जगह नहीं, 

आमिर खान एक जाना माना नाम एक अभिनेता और टी.वी. कार्यक्रम का होस्ट, आमतौर पर देखने में आता है की अभिनेता जनता को भावनात्मक रूप से काफी आकर्षित करते है, कोई human being जैसे नारे बना कर, कोई पाकिस्तानी बच्चों की मौत पर करोड़ों दान देकर और आमिर जैसे “सत्यमेव जयते” नाम के कार्यक्रम द्वारा जनता की परेशानियों और समाज में फैली बुराइयों का पर्दाफास कर ख़ासा आकर्षण पैदा कर लेते है, (वैसे भी इस्लाम को पैदा करने में माहिरता है, कभी इंजील कभी तौरात और अब कुरान पैदा हो गई, यहाँ पैदा शब्द को अवतरण से जोड़े)

मिर खान को एक वर्ग विशेष से बड़ा लगाव दीखता है, इतना लगाव की उसकी एक एक छोटी से छोटी बुराई को लोगों के सामने ऐसे लाता है जैसे कोई छुआ छुत का रोग है, जिससे १० कोस दूर रहा जाए! माना हिन्दुओं में जात पात, उंच नीच है, पर आज समय काफी बदल चुका है जात पात का जो स्तर ९० के दशक में था वो अब खत्म हो चूका है इसलिए मुझे नहीं लगता की इसे हिन्दुइज्म की बुराई के रूप में देखा जाए

अभी थोड़े दिन पहले ही इस सामजिक उधारक आमिर खान की एक फिल्म आई है “pk” !! इसे फिल्म ना कह कर हिन्दू विरोधी अभिनय कहा जाए तो इसके साथ सही न्याय होगा, बड़ी साफगोई से हमारे इस सामजिक उद्धारक ने हिन्दुओं की बड़े पैमाने पर बेइज्जती की है इस फिल्म में, और देखों हमारे सेकुलरों को जो ३०० रूपये किसी भले काम में खर्च ना करके इस बेहूदा फिल्म को देखने में खर्च कर देंगे, और फिल्म को देखने के बाद प्रशंसा के फूलों की बरसात करते है, इनके सेकुलरिज्म को देखने के बाद इनके पूर्वजों की पीड़ा याद आ जाती है जिन्होंने इस इस्लाम की वजह से कितनी यातनाये सही और यह उन्हीं की संताने आज उस इस्लाम की चाटुकारिता से आगे नहीं बढ़ पा रही है, चलिए इनका सेकुलरिज्म तो तब ही समाप्त होगा तब इस्लामी तलवार इनके गले पर पड़ी होगी |
आमिर खान की सामाजिकता को देखकर ये समझ नहीं आता की ये अपने अतीत को भूल चुके है या भूलने का नाटक कर रहे है, क्यूँ भूल जाते है ये अपने मजहब के उस घटिया कानून “तलाक” को जिसने कई परिवारों को उजाड़ दिया है, क्यों आमिर भूल गए “रीना दत्त” और उन दो बच्चों को जिनके वो पिता है, क्यूँ उन्हें मझधार में अकेला छोड़ अपनी सामजिक नांव को आगे ले गए? शायद इनके १२ वी पास दिमाग के लिए ये सामजिक कुरीति नहीं होगी | अब हमारे लिए ये तो तब तक सामजिक कुरीति ही है जब तक की आमिर इस इस्लामी कानून पर मुहं नहीं खोलते |

“pk” फिल्म में आमिर ने हिन्दुओं पर अभिनय करते हुए जमकर हमला बोला है, पर आमिर शायद ये कहावत भूल गए है की जिनके घर शीशे के बने होते है वो लोहे के महलों पर पत्थर नहीं मारा करते (कहावत को थोडा नया रूप दिया है जो की इस लेख की जरुरत है) क्यूँ आमिर अपने सामजिक ताने बाने की बुनाई में इस्लाम के पाखंडी किले को दरकिनार कर देते है, भाई दोगले मत बनों सत्यमेव जयते में तो बड़ा पक्ष लेते हो सच्चाई का फिर आपकी इस्लामी सचाई पर मुहं क्यों बंद हो जाता है, कहीं शाही इमामों के फतवों का भय तो नहीं है ?? या ये भय तो नहीं की अगर इस्लाम पर बोला जैसा औवेशियों ने सलमान की फिल्म “जय हो” की बर्बादी का मंजर बनाया था कही उनकी फिल्म का ना बन जाए ??

जो भी हो आपका भय साफ़ दिखता है, कोई बात नहीं हम समझ सकते है आप अपने अभिनय के इस मुकाम को मिटटी में नहीं मिलाना चाहते, पर हम बैठे है ना इस्लामी सत्य का ज्ञान लोगो तक लाने के लिए, हां ये बात अलग है की आपके प्रशंसक हमारी नहीं सुनेंगे क्यूंकि फ़िल्मी चकाचौंध चीज ही ऐसी है की जो फिल्मों में बताया जाए वो इन “kiss of love” को अंजाम देने वाले युवाओं के लिए राजा हरिश्चंद्र से भी बड़ा सत्य दीखता है

“pk” फिल्म में आपने एक जगह कहा है, जब आपसे आपके मुहं पर भगवान् का स्टीकर लगाने के कारण पूछा गया तो आपने कहाँ की “जैसे लोग जहाँ भगवान् की फोटो लगी हो वहां मूतते नहीं है वैसे ही मेरे मुहं पर स्टीकर देख कर कोई मुझे थप्पड़ नहीं मारेगा“ भाई कुछ तो इस्लाम की बाते भी इसी तरह कर लेते जैसे गाल पर “कुरान” लिख लेते, पर अच्छा किया नहीं लिखा अन्यथा लोगों को उसे पढ़ कर “कुरान सुरा बकर आयत नंबर २२३” याद आ जाती जिसमें लिखा है “आपकी बीवियां आपकी खेती है उन्हें चाहो जिधर से जिबह करो” उस आयत को याद कर लोग आपको थप्पड़ ना मार कर आपसे चाहते जिधर से जिबह कर लेते,

आपने कुरान नहीं लिखा इससे ही पता चल जाता है की १२वि पास आमिर को जनता ऐसे ही परफेक्टनिस्ट नहीं कहती
आपने इस फिल्म में एक जगह कहा है की “जो डर गया वो मंदिर गया” इससे भी आपकी परफेक्टनिस्ट झलक मिल जाती है देखिये कैसे

क्यूंकि सही मायनों में ये डायलोग कुछ ऐसा होना चाहिए था “जो डर गया वो मक्का गया” और इसे हम सही भी सिद्ध कर देंगे; हाँ ये बात अलग है की आप अपने डायलोग को सही सिद्ध नहीं कर पायेंगे क्यूंकि ईश्वर केवल मंदिरों में ही नहीं रहता है जैसे अल्लाह केवल मक्का में रहता है, ईश्वर सर्वव्यापी है, कण कण में विद्यमान है इसलिए हम उस परमपिता से गलत होने पर हमेशा घबराते है, क्यूंकि वो न्यायकारी है, ना की अल्लाह की भांति चापलूसी की रिश्वत लेकर क्षमा करने वाला

हिन्दुओं की मूर्ति पूजा की हंसी उड़ाने से पहले आमिर इस्लामी डर मक्का और उसके पास की दो पहाड़ियों पर नजर डालते तो कुछ जान पाते, ये दो पहाडिया है “सफा” और “मरवा” जहाँ किसी समय में मूर्ति पूजा हुआ करती थी. इन मूर्तियों को मुहम्मद साहब ने हटा दी थी इसे पाखण्ड बता कर पर मुहम्मद साहब इसके डर से बच ना पाए और इन्हें अल्लाह का निवास मान कर उन दो पहाड़ियों की परिक्रमा को उचित बताते हुए आयत भी उतार दी पढ़िए कुरान सुरा बकर आयत नम्बर १५८

और देखो

कुरान सुरा अन निसा आयत ७५-७७
बस उनको चाहिए ख़ुदा के मार्ग में लड़ें || जो लोग ईमान लाये ख़ुदा के मार्ग में लड़ते है, जो काफिर है वे बुतों के मार्ग में लड़ते है | बस शैतान के मित्रों से लड़ों, निश्चय उसका धोखा निर्बल है, जो उनको भलाई पहुँचती है, तो कहते है की यह अल्लाह की और से है और बुराई को तेरी और से बतलाते हा, कह सब अल्लाह की और से है ||७५-७७||

भला ! ईश्वर के मार्ग में लड़ाई का क्या काम ? और जो बुतपरस्त काफिर है, तो मुसलमान बड़े बुतपरस्त होने से बड़े काफिर होते है | क्योंकि ये हिन्दू छोटी मूर्तियों के सम्मुख नमते है और भक्ति करते है, वैसे ही मुसलमान लोग मक्का की जो एक बड़ी मस्जिद है उससके सामने नमते है, और यदि आप कहो की मक्का को खुदा नहीं समझते ये तो कुरान की आज्ञा है हम उसके सामने मुख रख कर नमते है, तो इसका मतलब मक्का में खुदा के होने की भावना मन में रख कर नमते हो, कान चाहे जिधर से भी पकड़ो बात तो एक ही है

ये तो केवल नजराना है अरबी पुस्तक का जिन्हें आमिर जी मानते है और नजराना है उस मक्का का जहाँ जाने के बाद आमिर जी को बड़ी शान्ति महसूस होती है, इन्हें इस्लामी पाखण्ड नहीं दिखा, दिखता भी केसे ? मारवाड़ी में एक कहावत है “आपरी माँ ने डाकण कोई कोणी केवे” अर्थात खुद की माँ चाहे कैसी भी हो कितनी ही कुलटा, कुलक्षिणी, कुपात्र हो पर स्वयं के लिए वो श्रेष्ठ ही रहती है, कुछ ऐसा ही हमारे महान सामाजिक उद्दारक आमिर खान के साथ है

हिन्दुओं की कुरीतियों से (जो की लगभग समाप्त हो चुकी है) लोगों को अवगत कराने से पहले इस्लामी कुरीतियों के दर्शन कर लेंगे तो आपका १२वि वाला दिमाग खुल जाए, इस्लाम जहां भाई भाई का नहीं है, बेटा पिता का नहीं है, भाई मेरे कुरान पढो माना आपको पढाई से नफरत सी है परन्तु जिस मजहब पर यकीं करते हो उसे तो पूरा जान लो

कुरान में पग पग पर लिखा है खुदा से डरों, खुदा बड़ा न्यायकारी है वो सब देखता है उससे डरों, तो आमिर भाई सबसे बड़ा डर तो इस्लाम में है जहाँ बिना गलती के भी डरना पड़ता है, जहाँ पग पग पर डरना पड़ता है, ये मजहब ही डरा डरा कर इतना बढ़ा है, इसलिए आपसे आशा है की आगे से किसी वर्ग विशेष की भावनाओं से खेलने से पहले अपने नंगेपन पर नजर डाल लें

हिन्दुओं से निवेदन है की अपने मेहनत के पैसों को अपने विरुद्ध होने वाली गतिविधियों पर बरबाद ना करें इससे अच्छा है एक किलो बादाम लाये सब खाए और स्वाध्याय करें इससे ज्यादा आनंद प्राप्त होगा

ताज महल ही बाक्की रह गया था !

taajmahl and azam

आज आजमखान की मांग टीवी पर देखने को मिली ये नेता जी ताजमहल को वक्फ बोर्ड को देने की मांग कर रहे थे, जिसे एक इमाम ने समर्थन देते हुए यह भी कह दिया है की ताजमहल में ५ वक्त की नमाज भी होनी चाहिए, आजमखान कह रहे है की ताजमहल को वक्फ बोर्ड को सौंप दिया जाए क्योंकि यह एक मकबरा है और मकबरा होने के नाते इस पर वक्फ बोर्ड का हक़ बनता है, वक्फ बोर्ड को सौंपने से इससे होने वाली आमदनी से मुसलमानों की तालीम में उपयोग में लिया जा सके, और इसकी आमदनी से कम से कम दो यूनिवर्सिटी बन सकती है, बड़ा अचरज हुआ इनकी बेबुनियाद मांग को देख कर, क्या इन्हें सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी कम लगती है, क्या देश की हजारों मस्जिदों से इतना धन भी प्राप्त नहीं होता की मुसलमानों की तालीम का अच्छे से बंदोबस्त किया जा सके, क्या इन मस्जिदों से प्राप्त धन का उपयोग कुरान में बताये जिहाद पर ज्यादा खर्च होता है ? इसलिए इन्हें अब ताजमहल का पैसा चाहिए |

तालीम की बात आई तो सोचा इनकी तालीम पर थोड़ी रौशनी डाल दी जाए तो आम जनता को कुछ जानकारी मिले और सेकुलरो की आँख की पट्टी खुल सके, इनकी तालीम की जानकारी मिलने के बाद हिन्दू-मुस्लिम भाई भाई शायद बोलना भी पाप लगने लगेगा, आइये आपको मदरसों की तालीम का दर्शन कराते है |

भारतीय मदरसों में भारत में स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा तो दी ही जाती है, यदि यही शिक्षा देनी है तो मदरसों की क्या जरुरत है, यह शिक्षा तो सरकारी स्कूलों में निःशुल्क दी जाती है, और उसमें ऐसा कोई कानून नहीं है की उसमें मुसलमान नहीं पढ़ सकते है हर कोई पढ़ सकता है तो अलग से मदरसा क्यों ?

मदरसों में स्कूली शिक्षा के अलावा एक शिक्षा और दी जाती है जिसे ये खुदाई पुस्तक कहते है, कुरान!! जी हाँ !! मदरसों में कुरानी की तालीम दी जाती है, इस तालीम को पाने के बाद कोई मुस्लिम हिन्दू- मुस्लिम भाई भाई का राग तो कतई नहीं अलापेगा !

ऐसा क्या है कुरान में जो मुसलमान इसकी तालीम पाने के बाद जिहादी बन जाता है, यह सोचने की जरुरत है इसी की जानकारी हम इस लेख में देना चाहते है

देखिये कुरान की तालीम

और जब इरादा करते हैं हम ये की हलाक अर्थात कत्ल करें किसी बस्ती को, और हुक्म करते है हम दौलतमंदों को उसके की, पास! नाफ़रमानी करते हैं, बीच उसके | बस! साबित हुई ऊपर उसके मात गिज़ाब की, बस! हलाक करते हैं हम उनको हलाक करना |
(कुरान मजीद, सुरा ६, रुकू २, आयत ६ )

और देखिये इससे अगली आयत में कहा गया है की-
और बहुत हलाक किये हैं हमने क्यों मबलगो? तुम्हारा खुदा तो जब उसे किसी बस्ती के हलाक करने का शौक चढ़ आये तब उसमें रहने वाले दौलतमंदों को नाफ़रमानी करने अर्थात आज्ञा न मानने वाले का हुक्म दे ! या यूँ कह सकते हैं की इसके इस हुक्म की तामिल करें नाफ़रमानी करो तो उन्हें और उनके साथ बस्ती में रहने वाले बेगुनाहों, मासूम बच्चों तक को अपना शौक पूरा करने के लिए हलाक अर्थात कत्ल करें !

और देखिये
और कत्ल कर दो, यहाँ तक की ना रहे फिसाद, यानी गलबा कफ्फार का ||
(कुरान मजीद, सुरा अन्फाल, आयत ३९)
मुशिरकों को जहाँ पाओ कत्ल कर दो और पकड़ लो और घेर लो और हर घात की जगह पर उनकी ताक में बैठे रहो …….||
(कुरान मजीद, सुरा तौबा, आयत ५)
इस आयत का नतीजा यदि देखना है तो देखो कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ था, केवल एक पत्र दिया गया की घर खाली करों एक दिन का समय है अन्यथा मार दिए जाओगे, और काफी संख्या में कश्मीरी पंडित मार दिए गए या भगा दिए गए,

और देखिये

ऐ नबी ! मुसलमानों को कत्लेआम अर्थात जिहाद क लिए उभारो ……||
(कुरान मजीद, सुरा अन्फाल, आयत ६५)

जब तुम काफिरों (गैर मुसलमान) से भीड़ जाओ तो उनकी गर्दन उड़ा दो, यहाँ तक की जब उनको खूब कत्ल कर चुको, और जो जिन्दा पकडे जाएँ, उनको मजबूती से कैद कर लो
(कुरान मजीद, सुरा मुहम्मद, आयत ४)

ऐ पैगम्बर! काफ़िरों और मुनाफिकों से लड़ो और उन पर सख्ती करो, उनका ठिकाना दोज़ख है, और वह बहुत ही बुरी जगह है |
(कुरान मजीद. सुरा तहरिम, आयत ९)

यह नजराना है कुरान से आपके लिए इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ भरा पड़ा है इस खुदाई पुस्तक में, अब कहिय जनाब ! यहाँ आपका क्या कहना है ? इन आयतों में क्या यहाँ धर्म के विरोधियों, जालिमों और बदमाशों के कत्ल करने इजाजत नहीं है | बल्कि स्पष्ट तौर पर काफ़िरों को कत्ल करने का निर्देश है, और आप ये जानते हैं की “काफिर” बद्चलनों, बदमाशों, चोरों, डाकुओं, लुटेरों और दुष्टों आदि को नहीं बल्कि उनको कहा जाता है जो की हजरत मोहम्मद साहब को खुदा का रसूल ना मानें, चाहे वो शख्स कितना भी नेक चलन, अच्छे आचरण वाला भला आदमी ही क्यों न हो ?
परन्तु चाहे जनता दुष्टाचरण करने वाली भी हो, दुनियाभर की बुराइयां उसमें मौजूद हों, परन्तु वह हजरत मोहम्मद साहब को खुदा का रसूल मान ले, बस! समझों की वह मोमिन बने बनाये हैं |

इतना कुछ जानने के बाद भी यदि आप मदरसों में दी जाने वाली तालीम के पक्षधर है, तो आपसे बड़ा धर्म का दुश्मन कौन हो सकता है, आजमखान साहब मदरसों की तालीम से इतना मोह कैसे है क्या मुज्जफरनगर दंगों से भी बड़ा काण्ड करने की इच्छा है क्या ??

अब ये सवाल तो स्वयं आजमखान चाह कर भी नहीं दे सकते है खैर मदरसों की चल चलन हम तो भलीं भांति जानते है बाकी पाठकगण समझदार है लेख पढ़े कुछ खामियां हो तो अवगत जरुर कराये

और हाँ !! अपना सेकुलरिज्म का चश्मा जरुर उतार लें !!

औ३म

नमस्ते

महिलाओ के प्रति कुरान का दृष्टिकोण

women in islam 2

मुसलमान कहते है भारत में कुरान की जरुरत इसलिए हुई की यहाँ अत्याचार, मारकाट, औरतों पर जुल्म चरम पर था, उस स्थिति को सुधारने के लिए भारत में कुरान की जरूरत हुई, कुरान को खुदाई पुस्तक बताकर उसे भारतीय जनता का उधारक बताया है, जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है, यदि कुरान को केवल उपरी नजर से भी पढ़ा जाए तो सच्चाई सामने आ जायेगी

सच यह है की भारतीय जनता को गुमराह करने के लिए ये उलजुलूल तर्क कुरान में दिए है, भारत देश जिसमें रहने वाले लोग वैदिक धर्मी थे, यही एक मात्र धर्म है संसार में जिसमें औरत को पूजनीय बताया गया है, वेद का एक-एक मन्त्र पढ़ लिया जाए तो भी उसमें औरत के लिए गलत कुछ नहीं लिखा है, यही एक मात्र देश है जहाँ नारी को पुरुष के समकक्ष अधिकार दिए गए है
वही दूसरी और वो मजहब जो कुरान को मानता है, वहां औरत पर जुल्म इतने है की ह्रदय काँप जाए, औरत को भोग की वस्तु बना कर उसको तरह तरह से अप्राकृतिक रूप से भोगने के आदेश दिए हुए है, १०-१० बच्चे पैदा करने तक मजबूर किया जाता है, एक पुरुष अनेकों महिलाओं से निकाह कर सकता है, वो भी केवल अपनी काम इच्छा की पूर्ति के लिए, इस्लाम का शरियत कानून देख लों जो औरतों पर ऐसे अत्याचार करता है की सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है, संक्षिप्त में आपको इस्लाम में महिलाओं की स्थिति के दर्शन कराते है

कुरान में गैर इस्लामी लोगों को मारने, काटने की बहुत जगह आज्ञा दी गई है, और सबसे ज्यादा अत्याचार करने की आज्ञा है तो वो है औरतों पर, इस खुदाई पुस्तक में औरत को भोग का साधन मात्र बताया गया है, लुटने, भोगने की चीज बताया है, आइये देखते है खुदा के औरतों पर जुल्म:-

धर्म के अनुसार औरत पर जुल्म करने वाले को जालिम और दुष्ट कहा गया है, और जो खुदा अपनी ही प्रजा (स्त्रियों) पर जुल्म ढाने, उनसे व्यभिचार करने, बलात्कार करने का हुक्म दे तो क्या वह जालिम और दुष्ट नहीं है?

देखिये कुरान में कहा गया है की–
या अय्युह्ल्लजी-न आमनू कुति-ब……..||
(कुरान मजीद पारा २ सूरा बकर रुकू २२ आयत १७८)

ऐ ईमान वालों ! जो लोग मारे जावें, उनमें तुमको (जान के) बदले जान का हुक्म दिया जाता है| आजाद के बदले आजाद और गुलाम के बदले गुलाम, औरत के बदले औरत|
इसमें हमारा एतराज इस अंश पर है की “औरत के बदले औरत” पर जुल्म किया जावे | यदि कोई बदमाश किसी की औरत पर जुल्म कर डाले तो उस बदमाश को दण्ड देना मुनासिब होगा किन्तु उसकी निर्दोष औरत पर जुल्म ढाना यह तो सरासर बेइन्साफी की बात होगी | ऐसी गलत आज्ञा देना अरबी खुदा को जालिम साबित करता है, न्यायी नहीं |

वल्मुहसनातु मिनन्निसा-इ इल्ला मा………||
(कुरान मजीद पारा ५ सुरा निसा रुकू ४ आयत २४)
ऐसी औरतें जिनका खाविन्द ज़िंदा है उनको लेना भी हराम है मगर जो कैद होकर तुम्हारे हाथ लगी हों उनके लिए तुमको खुदा का हुक्म है …… फिर जिन औरतों से तुमने मजा उठाया हो तो उनसे जो ठहराया उनके हवाले करो | ठहराए पीछे आपस में राजी होकर जो और ठहरा लो तो तुम पर इसमें कुछ उर्ज नहीं | अल्लाह जानकर हिकमत वाला है

समीक्षा

निर्दोष औरतों को लुट में पकड़ लाना और उनसे व्यभिचार करने की खुली छुट कुरानी खुदा ने दे दी है, क्या यह अरबी खुदा का स्त्री जाती पर घोर अत्याचार नहीं है ? क्या वह व्यभिचार का प्रचारक नहीं था, फीस तय करके औरतों से व्यभिचार करने तथा फीस जो ठहरा ली हो उसे देने की आज्ञा देना क्या खुदाई हुक्म हो सकता है ? अरबी खुदा और कुरान जो औरतों पर जुल्म करने का प्रचारक है क्या समझदार लोगों को मान्य हो सकता है ?

और देखिये इस्लामी पुस्तक कुरान बीबियों को किस तरह काम पूर्ति का साधन मानती है,
अपनी बीबियों के साथ पीछे से संभोग करना, क्या यह भी कोई शराफत की बात है जिसकी आज्ञा खुदा ने दी ?
देखिये कुरान में कहा गया है की—
निसा-उकुम हरसुल्लकुम फअतु……….||
(कुरान मजीद पारा २ सुरा बकर रुकू २८ आयत २२३)

तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ है | अपनी खेती में जिस तरह चाहो (उस तरह) जाओ | यह अल्लाह का हुक्म है |
पीछे से सम्भोग करने का आशय दो तरीकों से है, एक तो प्राकृत सम्भोग से है दुसरा अप्राकृतिक सम्भोग अर्थात –गुदा मैथुन से है, हम मानते हैं इनमें से कोई भी हो दोनों ही गलत है |
चरक और सुश्रुतु की मान्यतानुसार अगर उलटे सीधे तरीकों से सम्भोग किया जाएगा तो उनके द्वारा पैदाशुदा संतान भी उलटी-सीधी अर्थात विकारित ही पैदा होगी |
जैसे की पीछे से प्राकृत सम्भोग करने पर वायु का दबाव अधिक रहने के कारण कष्टदायक होता है तथा संतान भी विकलांग ही पैदा होती है |
रही बात गुदा मैथुन की ? उसका समर्थन तो कुरान में साफ़ शब्दों में किया गया है
देखिये-
“कुरान मजीद सुरा बकर पारा-२, रुकू २८, आयत २२३”
जिसमें अल्लाह ताला ने कहा है की—
“औरतें तुम्हारी खेतियाँ है जिधर से चाहो उधर से जाओ“ तथा “तफसीरे कबीर जिल्द २, हुज्जतस्सलिसा, सफा २३४, मिश्र छापा”
जिसमें गुदा मैथुन अर्थात इग्लामबाजी का स्पष्ट आदेश मौजूद है |
अतः पीछे से सम्भोग करने का तात्पर्य दोनों तरह से माना जा सकता है, जो मानवता, नैतिकता व् ईश्वरीय नियम के विरुद्ध है |

ऐसी कई कुरानी खुदा की आज्ञा कुरान में दी है यह तो केवल कुरानी खुदा की फिल्म का ट्रेलर है पूरी फिल्म आपको www.aryamantavya.in पर इस्लाम से सम्बंधित पुस्तकों में मिल जायेगी

जिस कुरान की जरुरत भारत में औरतों पर अत्याचार को रोकने के लिए बताई है वही कुरान भारत जैसे धार्मिक देश में जहाँ पर नारी को पूजनीय बताया गया है वही पर यह कुरान औरत पर बलात्कार आदि जैसे अत्याचारों को बढ़ावा देने का कारक बन गई है, पाठकगण अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग करें और हो सके तो कुरान का स्वयं भी अध्ययन करें ताकि आप स्वयं दूध का दूध पानी का पानी कर सके यदि कुरान पढने का समय नहीं दे पाते है, तो आप www.aryamantavya.in इस साईट पर आये ताकि हम आपका इस्लाम के जुल्म से भरे चेहरे का दर्शन करा सके

पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें

नमस्ते
औ३म्

AryaMantavya – आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम) – AryaMantavya – आर्य मंतव्य | aryamantavya
www.aryamantavya.in

मैंने इस्लाम क्यों छोड़ा………

leave islam

 

 

लेखक :डॉ आनंदसुमन सिंह पूर्व डॉ कुंवर रफत अख़लाक़ 

इस्लामी साम्प्रदाय में मेरी आस्था दृड़ थी | मै बाल्यकाल से ही इस्लामी नियमो का पालन किया करता था | विज्ञानं का विद्यार्थी बनने के पश्चात् अनेक प्रश्नों ने  मुझे इस्लामी नियमो पर चिन्तन करने हेतु बाध्य किया | इस्लामी नियमो में कुरआन या अल्लाहताला या हजरत मुहम्मद पर प्रश्न करना या शंका करना उतना ही अपराध है जितना किसी व्यक्ति के क़त्ल करने पर अपराधी माना जाता है |युवा अवस्था में आने के पश्चात् मेरे मस्तिष्क में सबसे पहला प्रश्न आया की अल्लाहताला रहमान व् रहीम है , न्याय करने वाला है ऐसा मुल्लाजी खुत्बा ( उपदेश ) करते है | फिर क्या कारण है की इस दुनिया में एक गरीब , एक मालदार , एक इन्सान , एक जानवर होते है | यदि अल्लाह का न्याय सबके लिए समान है जैसा कुरआन में वर्णन किया गया है , तब तो सबको एक जैसा होना चाहिए | कोई व्यक्ति जन्म से ही कष्ट भोग रहा है तो कोई आनन्द उठा रहा है |यदि संसार में यही सब है तो फिर अल्लाह न्यायकारी कैसे हुआ ? यह  प्रश्न मैंने अनेक वर्षो तक अपने मित्रो , परिजनों एवं मुल्ला मौलवियों से पूछता रहा किन्तु सभी का समवेत स्वर में एक ही उत्तर था , तुम अल्लाहताला के मामले में अक्ल क्यों लगाते हो ? मौज करो , अभी तो नैजवान हो | यह मेरे प्रश् का उत्तर नहीं था | निरंतर यह विषय मुझे बाध्य करता था और मै निरंतर यह प्रश्न अनेक जानकार लोगो से करता रहता था किन्तु इसका उत्तर मुझे कभी नहीं मिला | उत्तर मिला तो महर्षि दयानंद सरस्वती के पवित्र वैज्ञानिक ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में | जिसमे महर्षि ने व्यक्ति के अनेक एवं इस इस जन्म में किये गये सुकर्म या दुष्कर्मो को अगले जन्म में भोग का वर्णन किया | यह तर्क संगत था क्योंकि हम बैंक में जब खता खोलते है तो हमे बचत खाते पर नियमित छह माह में ब्याज मिलता है , मूलधन सुरक्षित रहता है , तथा स्थिर निधि पर एक साथ ब्याज मिलता है , उसी प्रकार जीवात्मा सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात् अनेक शरीरो, योनियों में परवेश करता है तथा अपने सुकर्मो और दुष्कर्मो का फल भोगता है |पुनर्जन्म के बिना यह सम्भव नही हो सकता | अतः पुनर्जन्म का मानना आवश्यक है किन्तु मुस्लिम समाज पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता |उनकी मान्यता तो यह है की चौहदवी शताब्दी में संसार मिट जाएगा | कयामत आएगी और फिर मैदानेहश्र में सभी का इंसाफ होगा |किन्तु उस मैदानेहश्र में जो भी हजरत मुहम्मद के ध्वज निचे आ जायेगा , मुहम्मद को अपना रसूल मान लेगा वही इन्सान बख्सा जाएगा | अर्थात उसे अपने कर्मो के फल भुक्त्ने का झंझट नहीं करना पड़ेगा और वह सीधा जन्नत में जावेगा , जो बुद्धिपरक नहीं लगता |क्योंकि एक व्यक्ति के कहने मात्र से यदि सारा खेल चलने लगे तो संसार में अन्य मत मतान्तरो को मानने की आवश्यकता क्यों पड़े ?और सृष्टि का अंत चौहदवी सदी में माना जाता है जबकि चौहदवी शदाब्दी तो समाप्त हो गयी | फिर यह संसार समाप्त क्यों नहीं हुआ ? कयामत क्यों नहीं आई ? क्या मुहम्मद साहब और इस्लाम से पूर्व यह संसार नहीं था ? क्योंकि इस्लाम के उदय को लगभग १५०० वर्ष हुए है संसार तो इससे पूर्व भी था और रहेगा | मेरा दूसरा प्रश्न था की जब एक मुस्लिम पीटीआई एक समय में चार पत्निया रख सकता है तो एक मुस्लिम औरत एक समय में चार पति क्यों नही राख सकती ? इस्लाम में औरत को अधिक अधिकार ही नही है | एक पुरुष के मुकाबले दो स्त्रियों की गवाही ही पूर्ण मानी जाती है | ऐसा क्यों ? आखिर औरत भी तो इंसानी जाती का अंग है | फिर उसे आधा मानना उस पर अत्याचार करना कहाँ की बुद्धिमानी है और कहाँ तक इसे अल्लाह ताला का न्याय माना जा सकता है ?८० साल का बुड्ढा १८ साल की लड़की से विवाह रचाकर इसे इस्लामी नियम मानकर संसार को मजहब के नाम पर मुर्ख बनाये यह कहाँ का न्याय है ?इस प्रश्न का उत्तर भी मुझे सत्यार्थ परकाश से मिला | महर्षि दयानंद ने महर्षि मनु और वेद वाक्यों के आधार पर सिद्ध किया की स्त्री और पुरुष दोनों का समान अधिकार है | एक पत्नी से अधिक तब ही हो सकती है जब कोई विशेष कारण हो (पत्नी बाँझ हो , संतान उत्पन्न न कर सकती हो ) अन्यथा एक पत्नीव्रत होना सव्भाविक गुण होना चाहिए | मनु ने कहा है –

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः  अर्थात जहाँ नारियो का सम्मान होता है वहां देवता वास करते है | तीसरा प्रश्न मेरे मन में था स्वर्ग व् नरक का | इस्लामी बन्धु मानते है की कयामत के बाद फैसला होगा | उसमे अच्छे कर्मो वालों को जन्नत और बुरे कर्मो वालो को दोजख मिलेगा | जन्नत का जो वर्णन है वह इस प्रकार है की वहां सेब , संतरे , शराब , एक व्यक्ति को सत्तर हुरे  तथा चिकने चुपड़े लौंडे मिलेंगे | मै मुल्ला मौलवियों व् मित्रो से पूछता था की बताये , जब एक पुरुष को जन्नत में लडकिय मिलेंगी तो मुस्लिम महिलाओं को क्या मिलेगा ? मेरे इस प्रश्न ने वे चिड़ते थे | चौहदवी सदी तो बीत गयी पर कयामत क्यों नही आई ? क्या अब नहीं आएगी ?अल्लाह के वायदे का क्या हुआ ?इससे क्या यह स्पष्ट नहीं की कुरआन किसी आदमी की लिखी है ?इन सब प्रश्नों से मेरा तात्पर्य किसी का दिल दुखाना नही अपितु केवल अपने मन में उठ रही शंकाओं का समाधान करना था | किन्तु कभी किसी ने मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया अपितु इन सब से दूर रहकर महज अल्लाह की इबादत में वक्त गुजारने और मौज उड़ाने का रास्ता दिखाया |

चौथा प्रश्न मेरे दिल में था सभ्यता का | मैंने मुस्लिम इतिहास गम्भीरता से अध्ययन किया है | इतिहास साक्षी है की इस्लाम कभी भी वैचारिकता या सवविवेक के कारण नहीं फैला अपितु इस्लाम आरम्भिक काल से अब तक तलवार का बल , भय , बहुपत्नी प्रथा , स्वर्ग का लोभ या धन का मोह आदि ही इस्लाम के विस्तार के कारण बने | इस्लाम की शैशव अवस्था में हजरत मुहम्मद साहब को अनेक युद्ध करने पड़े | स्वंय उनके चाचा अबुलहब ने अंतिम समय तक इस्लाम को नहीं स्वीकार किया क्योंकि वह उसे वैज्ञानिक व् तर्क सम्मत नहीं मानते थे | हजरत मुहम्मद को मक्का से निष्कासित भी होना पड़ा क्योंकि वह अरब की सभ्यता में आमूल परिवर्तन की कल्पना करते थे और अरब वासी अनेक कबीलों में बनते हुए थे | अबराह का लश्कर तो एक बार मक्का में स्थापित भगवान शंकर के विशाल शिवलिंग ( संगे अस्वाद ) को मक्का से ले जाने के लिए आया था किन्तु भीषण युद्ध में अनेको ने अपने प्राण गंवा दिए | यह मक्का शब्द भी संस्कृत के मख अर्थात यज्ञ शब्द का ही बिगड़ा रूप है | इस समय इस विषय पर चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं है | मुस्लिम इतिहास में एक भी प्रमाण त्याग , समर्पण या सेवा का नही मिलता | वैदिक इतिहास के झरोखे से देखे तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वन को प्रस्थान करते है किन्तु दूसरी और औरंगजेब अपने पिता को जेल में कैद कर बूंद बूंद पानी के लिए तरसाता है | यह त्याग , समर्पण एवं सेवा का ही प्रतिफल है की विगत दो अरब वर्षो में वैदिक संस्कृति महँ बनी रह स्की |मेरे परिवार के इतिहास के साथ भी एक काला पृष्ठ जुदा है की उन्हें प्रलोभनवश अपना मूल धर्म त्याग कर इस्लाम में जाना पड़ा | मै स्पष्ट शब्दों में कहता हूँ की आपकी पूजा पद्धति कुछ भी हो सकती है , आप किसी भी समुदाय के हो सकते है किन्तु जिस देश में प्ले बड़े है उस देश को तो अपनी माँ ही मानना चाहिए | राष्ट्रभक्ति किसी व्यक्ति का पहला कर्तव्य होना चाहिए , वैदिक धर्म की महानता के अनेक प्रमाण दिए जा सकते है किन्तु यहाँ मेरा उद्देश्य मात्र कुछ विचारों पर लिखना है |क्योंकि विगत छः वर्षो में मेरे सम्मुख यह प्रश्न रहा है की मै हिन्दू क्यों बना ?मै प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से हिन्दू ही मानता हूँ क्योंकि कोई मनुष्य बिना माँ के गर्भ के पैदा नहीं हो सकता यहाँ तक की विज्ञानं की पहुँच टेस्ट ट्यूब चाइल्ड को भी माँ के गर्भ में आश्रय लेना पड़ा , तभी उसका पूर्ण विकास सम्भव हो पाया है |अतः माँ के गर्भ में तो प्रत्येक हिन्दू ही होता है जन्म के पश्चात्  मुस्लमानिया कराए बिना मुसलमान और बपतिस्मा कराए बिना इसाई नहीं बना जा सकता |अतः इन क्रियाओं के पूर्व बच्चा काफिर अर्थात हिन्दू होता है अतः संसार का प्रत्येक शिशु हिन्दू है | मूल हम सबका वेद है अर्थात सत्य सनातन वैदिक धर्म | आशा है मेरे मित्र मेरी भावना को समझेंगे ,  मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओ को चोट पहुँचाने का नहीं है अपितु केवल अपने विचारों से समाज को अवगत कराना मात्र है | किन्तु यदि फिर भी किसी की भावनाओं को मेरे कारण ठेस लगे तो उन सबसे मै क्षमा – याचना करता हूँ |

इस्लाम में नारी की स्थिति – २ :- कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश

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कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश

कुरान में लिखा है की-

    “अगर तुम्हारा इरादा एक बीबी को बदल कर उसकी जगह दूसरी बीबी करने का हो तो जो तुमने पहिली बीबी को बहुत सामान दे दिया हो तो भी उसमे से कुछ भी न लेना |

   क्या किसी को तौहमत लगा कर जाहिर बेजा बात करके अपना दिया हुआ वापिस लेते हो ?”

(कुरान सुरह निसा आयत २०)

तलाक देकर या बिना तलाक दिए मर्दों को इच्छानुसार आपस में अपनी बीबियाँ बदल लेने का अधिकार कुरान ने इस शर्त पर दिया है की इसे दिया हुआ माल वापिस न लिया जावे |

इस शर्त का पालन करने वाले दो दोस्त आपस में अपनी बीबियाँ ऐसे ही बदल सकते हैं जैसे लोग अपनी बकरी या गाय, भेंस आदि बदल लेते हैं |

हिन्दू समाज में पति-पत्नी का रिश्ता जीवन भर के लिए अटूट होता है, पर इस्लाम में मर्द जब चाहे तब अपनी पुरानी बीबी को अपनी पुराणी जूती की तरह नई नवेली बीबी से बदल सकता है |

इस्लाम में कोई बीबी नहीं जानती की उसका शौहर कब उसे किसी दूसरी नई बीबी से बदल लेवे | इसके लिए तलाक का आसान तरीका इस्लाम में चालु जो है |

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इस्लाम में नारी की स्थिति – १. बहुविवाह प्रथा

संसार में सभी सभ्य जातियों के लोग नारी जाति की रक्षा करना उसका सम्मान करना अपना सर्वोपरि धर्म समझते है | “नारी” पुत्री, बहिन व् माता के रूप में सम्मान की पात्र होती है |

विवाहित होने पर अपने पति के साथ गृहस्थ जीवन में पति की जीवनसंगिनी के रूप में जीवन को आनन्द से भरपूर रखने वाली गृहस्थ की चिंताओं से पति को मुक्त रखने वाली, तथा सामाजिक कार्यो में मंत्री के रूप में सलाह देने वाली, सेविका के समान उसकी अनुचरी –माँ के समान प्रेम से उसे भोजन से तृप्त रखने वाली और सृष्टिक्रम को जारी रखने वाली, श्रेष्ठ सन्तान को जन्म देने वाली, उसकी सर्वप्रथम शिक्षिका के रूप में निर्मात्री होती है | हिन्दू धर्म में नारी प्रत्येक स्थिति में पति एवं परिवार की समादरणीया एवं संचालिका बन कर रहती है जहाँ उसे अपना एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त होता है |

वैदिक धर्म में नारी का समाज में सर्वोपरि स्थान है | विवाहित होने पर पति-पत्नी के रूप में जीवन भर के लिए दो प्राणी एक दुसरे के अटूट साथी बन जाते है | तलाक व् बहु-पत्नीवाद के लिए वैदिक धर्म (हिन्दू समाज) में कोई स्थान नहीं है |

वैदिक धर्म के अन्दर तो युद्ध में भी नारियों की रक्षा का आदर्श मौजूद है | शत्रु पक्ष की स्त्रियों, कन्याओं, वृद्धो का युद्ध में अलिप्त एवं शरणागतों की रक्षा करने की मर्यादा आदि काल से कायम है |

आज इस्लाम मजहब में नारी की समाज-परिवार तथा युद्धों में शत्रु द्वारा नारी के साथ क्या व्यवहार होता है?  हम उसका कुछ दिग्दर्शन आगे कराते है | जिससे “मुस्लिम समाज में नारी की इस दुर्गति वाली स्थिति” को सभी पाठक भली-भांति समझ सकें |

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इस्लामी बंदगी दरिंदगी और गंदगी !

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इस्लामी बंदगी दरिंदगी और गंदगी !

लेखक- सत्यवादी 

जगत में जितने भी जीवधारी हैं, सबको अपनी जान प्यारी होती है .और सब अपने बच्चों का पालन करते हैं. इसमे किसी को कोई शंका नहीं होना चाहिए. परन्तु अनेकों देश के लोग इन निरीह और मूक प्राणियों को मार कर उनके शरीर के अंगों या मांस को खाते हैं. ऐसे लोग इन प्राणियों को मार कर खाने के पक्ष में कई तर्क और फायदे बताते हैं.

सब जानते हैं कि बिना किसी प्राणी को मारे बिना उसका मास खाना असंभव है, फिर भी ऐसे लोग खुद को “शरीर भक्षी (Carnivorous) कि जगह (Non vegetarian ) कहकर खुद को सही ठहराते हैं. कुछ लोग शौक के लिए और कुछ देखादेखी भी आमिष भोजन करते हैं.

लेकिन इस्लाम ने मांसभक्षण को और जानवरों की क़ुरबानी को एक धार्मिक और अनिवार्य कृत्य बना दिया है. और क़ुरबानी को अल्लाह की इबादत का हिस्सा बताकर सार्वजनिक रूप से मानाने वाला त्यौहार बना दिया है.

क़ुरबानी क्या है, इसका उद्देश्य क्या है, और मांसाहार से इन्सान स्वभाव में क्या प्रभाव पड़ता है, यह इस लेख में कुरान और हदीस के हवालों दिया जा रहा है .साथ में कुछ विडियो लिंक भी दिए हैं . देखिये —

 

1-कुरबानी का अर्थ और मकसद —-

अरबी शब्दकोश के अनुसार “क़ुरबानी قرباني” शब्द मूल यह तीन अक्षर है 1 .قकाफ 2 .رरे 3 और  ب बे = क र बق ر ب .इसका अर्थ निकट होना है .तात्पर्य ऐसे काम जिस से अल्लाह की समीपता प्राप्त हो .

हिंदी में इसका समानार्थी शब्द ” उपासना” है .उप = पास ,आस =निकट .लेकिन अरबी में जानवरों को मारने के लिए “उजुहाالاضحي ” शब्द है जिसका अर्थ “slaughter ” होता है .इसमे किसी प्रकार की कोई आध्यात्मिकता नजर नहीं दिखती है .बल्कि क्रूरता , हिंसा ,और निर्दयता साफ प्रकट होती है .जानवरों को बेरहमी से कटते और तड़प कर मरते देखकर दिल काँप उठता है और यही अल्लाह चाहता है. और कुरान में कहा गया है .

 

“और उनके दिल उस समय काँप उठते हैं , और वह अल्लाह को याद करने लगते हैं ” सूरा -अल हज्ज 22 :35″.

 

 

2-क़ुरबानी की विधियाँ —

यद्यपि कुरान में जानवरों की क़ुरबानी करने के बारे में विस्तार से नहीं बताया है और सिर्फ यही लिखा है.

“प्रत्येक गिरोह के लिए हमने क़ुरबानी का तरीका ठहरा दिया है , ताकि वह अपने जानवर अल्लाह के नाम पर कुर्बान कर दें ”  – सूरा -हज्ज 22 :34″.

 

लेकिन सुन्नी इमाम ” मालिक इब्न अबी अमीर अल अस्वही” यानि मालिक बिन अनस مالك بن انس “(711 – 795 ई० ) ने अपनी प्रसिद्ध अल मुवत्ता The Muwatta: (Arabic: الموطأ‎)  की किताब 23 और 24 में जानवरों और उनके बच्चों की क़ुरबानी के जो तरीके बताएं है. उसे पढ़कर कोई भी अल्लाह को दयालु नहीं मानेगा.

3-पशुवध की राक्षसी विधियाँ  —

मांसाहार अरबों का प्रिय भोजन है, इसके लिए वह किसी भी तरीके से किसी भी जानवर को मारकर खा जाते थे. जानवर गाभिन हो या बच्चा हो या मादा के पेट में हो सबको हजम कर लेते थे. और रसूल उनके इस काम को जायज बता देते थे बाद में यही सुन्नत बन गयी है और सभी मुसलमान इसका पालन करते हैं. इन हदीसों को देखिये —

अ -खूंटा भोंक कर —

 

“अनस ने कहा कि बनू हरिस का जैद इब्न असलम ऊंटों का चरवाहा था, उसकी गाभिन ऊंटनी बीमार थी और मरणासन्न थी. तो उसने एक नोकदार खूंटी ऊंटनी को भोंक कर मार दिया. रसूल को पता चला तो वह बोले इसमे कोई बुराई नहीं है तुम ऊंटनी को खा सकते हो “ — मालिक मुवत्ता-किताब 24 हदीस 3 .

 

ब-पत्थर मार कर —

 

“याहया ने कहा कि इब्न अल साद कि गुलाम लड़की मदीने के पास साल नामकी जगह भेड़ें चरा रही थी. एक भेड़ बीमार होकर मरने वाली थी.तब उस लड़की ने पत्थर मार मार कर भेड़ को मार डाला .रसूल ने कहा इसमे कोई बुराई नहीं है ,तुम ऐसा कर सकते हो “ — मालिक मुवत्ता -किताब 24 हदीस 4.

 

 

जानवरों को मारने कि यह विधियाँ उसने बताई हैं, जिसको दुनिया के लिए रहमत कहा जाता है ? और अब किस किस को खाएं यह भी देख लीजये —

4- किस किस को खा सकते हो —

इन हदीसों को पढ़कर आपको राक्षसों की याद आ जाएगी.यह सभी हदीसें प्रमाणिक है यह नमूने देखिये —

अ -घायल जानवर —

 

“याह्या ने कहा कि एक भेड़ ऊपर से गिर गयी थी ,और उसका सिर्फ आधा शरीर ही हरकत कर रहा था ,लेकिन वह आँखें झपक रही थी .यह देखकर जैद बिन साबित ने कहा उसे तुरंत ही खा जाओ “ मालिक मुवत्ता किताब 24 हदीस 7.

 

ब -मादा के गर्भ का बच्चा —

 

अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि जब एक ऊंटनी को काटा गया तो उसके पेट में पूर्ण विक्सित बच्चा था ,जिसके बल भी उग चुके थे . जब ऊंटनी के पेट से बच्चा निकाला गया तो काफी खून बहा ,और बच्चे दिल तब भी धड़क रहा था.तब सईद इब्न अल मुसय्यब ने कहा कि माँ के हलाल से बच्चे का हलाल भी माना जाता है . इसलिए तुम इस बच्चे को माँ के साथ ही खा जाओ “ मुवत्ता किताब 24 हदीस 8 और 9.

 

स – दूध पीता बच्चा  —

 

“अबू बुरदा ने रसूल से कहा अगर मुझे जानवर का केवल एकही ऐसा बच्चा मिले जो बहुत ही छोटा और दूध पीता हो , रसूल ने कहा ऐसी दशा में जब बड़ा जानवर न मिले तुम बच्चे को भी काट कर खा सकते हो “ मालिक मुवत्ता -किताब 23 हदीस 4.

 

5- क़ुरबानी का आदेश और तरीका —

वैसे तो कुरान में कई जानवरों की क़ुरबानी के बारे में कहा गया है ,लेकिन यहाँ हम कुरान की आयत विडियो लिंक देकर कुछ जानवरों की क़ुरबानी के बारे जानकारी दे रहे हैं .ताकि सही बात पता चल .सके , पढ़िए और देखिये , —

 

अ – गाय —

“याद करो जब अल्लाह ने कहा की गाय को जिबह करो ,जो न बूढी हो और न बच्ची बीच का आयु की हो “सूरा -बकरा 2 :67 -68.”

ब- ऊंट —

“और ऊंट की कुरबानी को हमने अल्लाह की भक्ति की निशानियाँ ठहरा दिया है “सूरा अल हज्ज 22 :36”

स -चौपाये बैल —

“तुम्हारे लिए चौपाये जानवर भी हलाल हैं ,सिवाय उसके जो बताये गए हैं “सूरा-अल 22 :30.”

6- गैर मुस्लिमों को गोश्त खिलाओ  —

“इब्ने उमर और और इब्न मसूद ने कहा की रसूल ने कहा है ,कुरबानी का गोश्त तुम गैर मुस्लिम दोस्त को खिलाओ ,ताकि उसले दिल में इस्लाम के प्रति झुकाव पैदा हो “

it is permissible to give some of it to a non-Muslim if he is poor or a relative or a neighbor, or in order to open his heart to Islam.

“فإنه يجوز أن أعطي بعض منه الى غير مسلم إذا كان فقيرا أو أحد الأقارب أو الجيران، أو من أجل فتح صدره للإسلام “

Sahih Al-Jami`, 6118.

 

गैर मुस्लिमों जैसे हिन्दुओं को गोश्त खिलाने का मकसद उनको मुसलमान बनाना है ,क्योंकि यह धर्म परिवर्तन की शुरुआत है .बार बार खाने से व्यक्ति निर्दयी और कट्टर मुसलमान बन जाता है .

7- गोश्तखोरी से आदमखोरी —

मांसाहारी व्यक्ति आगे चलकर नरपिशाच कैसे बन जाता है ,इसका सबूत पाकिस्तान की ARY News से पता चलता है ,दिनांक 4 अप्रैल 2011 पुलिस ने पाकिस्तान पंजाब दरया खान इलाके से आरिफ और फरमान नामके ऐसे दो लोगों को गिरफ्तार किया ,जो कब्र से लाशें निकाल कर ,तुकडे करके पका कर खाते थे . यह परिवार सहित दस साल से ऐसा कर रहे थे.दो दिन पहले ही नूर हुसैन की 24 की बेटी सायरा परवीन की मौत हो गयी थी ,फरमान ने लाश को निकाल लिया ,जब वह आरिफ के साथ सायरा को कट कर पका रहा था ,तो पकड़ा गया . पुलिस ने देगची में लड़की के पैर बरामद किये . इन पिशाचों ने कबूल किया कि हमने बच्चे और कुत्ते भी खाए हैं .ऐसा करने कीप्रेरणा हमें दूसरों से मिली है , जो यही काम कराते हैं . विडियो लिंक —

8- हलाल से हराम तक —

खाने के लिए जितने भी जानवर मारे जाते हैं ,उनका कुछ हिस्सा ही खाया जाता है , बाकी का कई तरह से इस्तेमाल करके लोगों को खिला दिया जाता है ..इसके बारे में पाकिस्तान के DUNYA NEWS की समन खान ने पाकिस्तान के लाहौर स्थित बाबू साबू नाले के पास बकर मंडी के मजबह (Slaughter House ) का दौरा करके बताया कि वहां ,गधे कुत्ते , चूहे जैसे सभी मरे जानवरों की चर्बी निकाल कर घी बनाया जाता है . यही नहीं होटलों में खाए गए गोश्त की हडियों को गर्म करके उसका भी तेल निकाल कर पीपों में भर कर बेच दिया जाता है ,जिसे जलेबी ,कबाब ,समोसे आदि तलने के लिए प्रयोग किया होता है . खून को सुखा कर मुर्गोयों की खुराक बनती है . फिर इन्हीं मुर्गियों को खा लिया जाता है .आँतों में कीमा भरके बर्गर बना कर खिलाया जाता है .विडियो लिंक —

हमारी सरकार जल्द ही पाकिस्तान के साथ व्यापारिक अनुबंध करने जारही है ,और तेल या घी के नाम पर जानवरों की चर्बी और ऐसी चीजें यहाँ आने वाली हैं .

 

लोगों को फैसला करना होगा कि उन्हें पूर्णतयः शाकाहारी बनकर, शातिशाली, बलवान, निर्भय और जीवों के प्रति दयालु बन कर देश और विश्व कि सेवा करना है या धर्म के नाम पर या दुसरे किसी कारणों से प्राणियों को मारकर खाके हिसक क्रूर निर्दयी सर्वभक्षी पिशाच बन कर देश और समाज के लिए संकट पैदा करना है .

 

दूसरे धर्मों के लोग ईश्वर को प्रसन्न करने और उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करके खुद को कष्ट देते हैं. लेकिन इस्लाम में बेजुबान जानवरों को मार कर अल्लाह को खुश किया जाता है और इसी को इबादत या बंदगी माना जाता है .फिर यह बंदगी दरिंदगी बन जाती है और जिसका नतीजा गन्दगी के रूप में लोग खाते हैं.

 

इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद विचार जरुर करिए — माँसाहारी अत्याचारी ,और अमानुषिक हो सकते हैं लेकिन बलवान और सहृदय कभी नहीं सो सकते .