इस्लाम में नारी की स्थिति – १. बहुविवाह प्रथा

संसार में सभी सभ्य जातियों के लोग नारी जाति की रक्षा करना उसका सम्मान करना अपना सर्वोपरि धर्म समझते है | “नारी” पुत्री, बहिन व् माता के रूप में सम्मान की पात्र होती है |

विवाहित होने पर अपने पति के साथ गृहस्थ जीवन में पति की जीवनसंगिनी के रूप में जीवन को आनन्द से भरपूर रखने वाली गृहस्थ की चिंताओं से पति को मुक्त रखने वाली, तथा सामाजिक कार्यो में मंत्री के रूप में सलाह देने वाली, सेविका के समान उसकी अनुचरी –माँ के समान प्रेम से उसे भोजन से तृप्त रखने वाली और सृष्टिक्रम को जारी रखने वाली, श्रेष्ठ सन्तान को जन्म देने वाली, उसकी सर्वप्रथम शिक्षिका के रूप में निर्मात्री होती है | हिन्दू धर्म में नारी प्रत्येक स्थिति में पति एवं परिवार की समादरणीया एवं संचालिका बन कर रहती है जहाँ उसे अपना एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त होता है |

वैदिक धर्म में नारी का समाज में सर्वोपरि स्थान है | विवाहित होने पर पति-पत्नी के रूप में जीवन भर के लिए दो प्राणी एक दुसरे के अटूट साथी बन जाते है | तलाक व् बहु-पत्नीवाद के लिए वैदिक धर्म (हिन्दू समाज) में कोई स्थान नहीं है |

वैदिक धर्म के अन्दर तो युद्ध में भी नारियों की रक्षा का आदर्श मौजूद है | शत्रु पक्ष की स्त्रियों, कन्याओं, वृद्धो का युद्ध में अलिप्त एवं शरणागतों की रक्षा करने की मर्यादा आदि काल से कायम है |

आज इस्लाम मजहब में नारी की समाज-परिवार तथा युद्धों में शत्रु द्वारा नारी के साथ क्या व्यवहार होता है?  हम उसका कुछ दिग्दर्शन आगे कराते है | जिससे “मुस्लिम समाज में नारी की इस दुर्गति वाली स्थिति” को सभी पाठक भली-भांति समझ सकें |

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हुविवाह प्रथा

देखिये खुदा के कलामेपाक कहलाने वाले “कुरान शरीफ” के अन्दर वर्णन आता है की-

     “अगर तुमको इस बात का डर हो की बेसहारा लड़कियों में इन्साफ कायम रख सकोगे तो अपनी इच्छा के अनुकूल दो-दो, तीन-तीन, चार-चार औरतो से निकाह कर लो, लेकिन अगर तुमको इस बात का शक हो की बराबरी न कर सकोगे तो एक ही बीबी करना, या जो तुम्हारे कब्जे में हो उस पर ही संतोष करना | यह तदबीर मुनासिब है” |

(कुरान पारा ४ सुरह निसा आयत ३)

कुरान की इस आयत का अर्थ स्पष्ट है की-

“अगर तुमको बहुत सी बीबियों में इन्साफ कायम रख सकने का विश्वास हो” यानी सबके साथ हर बात में एक जैसा व्यवहार कर सको तो जितनी चाहो बेशुमार बेसहारा औरतो को बीबी ही बना कर रख लो, शरीर में दम हो, पैसे की ताकत हो तो खुदा को इसमें आपति नहीं है |

और यदि कमजोरी हो, तो भी दो-दो, तीन-तीन, चार-चार औरतें शौक के लिए रख लो या ब्याह लो | यदि बहुत ही कमजोरी हो तो फिर एक बीबी पर ही तसल्ली मज़बूरी में कर लो|

इसमें चार-चार के बाद “तक” शब्द नहीं है | इससे स्पष्ट है की “चार की ही अंतिम सीमा नहीं है, ज्यादा भी कर सकते हो”| समर्थ मुसलमानों को व्यभिचार के लिए बेशुमार औरतें रखने की छुट है |

कुरान ने यह खुलासा कही भी नहीं किया की मर्दों की तरह एक औरत कितने मर्दों को अपने शौक के लिए पाल सकती है ?

कुरान में आगे लिखा है, की-

ऐसी औरतें जिनका खाविन्द ज़िंदा हो, उनको लेना हराम है, मगर जो कैद होकर तुम्हारे हाथ लगी हो उनके लिए तुमको खुदा का हुक्म है |

   और उनके सिवाय भी अन्य दूसरी सब औरते हलाल है जिनको तुम माल असबाब देकर कैद से लाना चाहो, न की मस्ती निकालने के लिए |

(कुरान पारा ४ सुरह निसा आयत २४)

 

इस आयत के अनुसार शौहर वाली औरतों से निकाह करने को अल्लाह तआला ने मना किया है मगर दुश्मन की औरतों को व्यभिचार के लिए पकड़ लाने की स्वीकृति कुरान देता है |

रुपया पैसा (फीस) देकर व्यभिचार करने के लिए औरतें रखने की खुली छुट ऊपर कुरान की आयत में साफ़ दी गई है | उनको अगर चाहो तो निकाह करके अपनी बीबी भी बना सकते हो उसमे कोई रुकावट नहीं है |

कुरान एक बात और भी कहता है-

       “जिन औरतो के साथ तुम्हारे बाप ने निकाह किया हो, तुम उनके साथ निकाह न करना, मगर जो हो चुका सो हो चुका यह बड़े गजब की बात थी और बहुत ही बुरा दस्तूर था” |
(कुरान सुरह निसा आयत २२)

और देखिये अगली आयत में लिखा है की-

“तुम्हारी मातायें-बेटियां और तुम्हारी …………….दूध शरीकी बहिनें तुम पर हराम हैं”|

(कुरान सुरह निसा आयत ३३)

कुरान से पहिले किसी भी आसमानी किताब में खुदा ने अपनी सभी माताओं और बहिनों के साथ विवाह करने पर भी प्रतिबन्ध नहीं लगाया था | खुदा ने तौरेत, जबूर व् इंजील के द्वारा कभी भी इन प्रथाओं का निषेध नहीं किया था |

   जबकि यह व्यभिचार प्रथा आदम और हव्वा से उसकी सगी बेटी व बेटों के विवाह की प्रथा खुदा ने खुद ही चालु कराई थी जो अरब में शुरू दुनिया से चली जा रही थी |

   खुदा को इतने लम्बे अरसे तक इस रिवाज को रोकने की बात क्यों नहीं सूझी ? जो अब आकर अंत में इतने समय बाद कुरान में यह आदेश जारी किया |

   नोट:- सुन्नी मुसलमानों के मान्य इमाम “अबू हनीफा” तो सगी, माँ-बहिन और बेटी तक से भी जिना (व्यभिचार) करने को गुनाह नहीं मानते थे |

Next in this series :

इस्लाम में नारी की स्थिति – २ :- कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश

9 thoughts on “इस्लाम में नारी की स्थिति – १. बहुविवाह प्रथा”

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  2. Riswa aryaji…. ji apko quran ke bareme bahot pata hai achi bat hai…. lekin jo pata hai sab galat pata hai or ap islam ke bareme afwah faila rahe ho… yaha apko mai ek baat batana chahungi… islam me jina haram hai or isse hamare khuda ne hi manzoor nahi kiya hai na hamare nabi huzure akram sallalahu alaihi wassallam ne bhi mana kiya hai.. islam me ek se jada nikah karne ke liye isliye anumati di gayi hai taki koi besahara ko sahara mile or jina (vyabhichar) ko roka jaye…. ap ko mai batana chahungi ap jo islam ko galat or ganda dharm bata rhe ho kabhi apni bhagwano ko dekha b hai krishna ki priyasi koi or biwi koi or wo b 3. Shankar vishnu bramha kisi ne b ek hi shadi nae ki.eApke dharm me to khule aam rasleela manayi gayi gayi hai. Pandav paanch or unki ek hi biwi. Jisko b unhone daaw pr lagaya or haarne k baad puri mehfil me uska vastraharan. Indra ki sabha me apsaraye. Sadhu ko uksane wali menka… apke dharm me kaha koi aurat ko respect mili hai.. pati ke marne ke baad aurat ne sati jaane se to behtar hai shadi karke apna ghar basaye. Ap log k dharm me affair chahe jitne bhi karo shadi ek se karo .. ap logo ko islam hi mila hai badnam karne jab k islam ne hi aurat ki ijjat karna sikhaya hai…. kabhi acche or saaf dil se islam samzho galti kiski hai apko samaz ayegi.. or ek baat 14 saal vanwas agar raam ne kiya to seeta b uske saath gayi thi jab ke seeta ko nahi raam ko vanwaas hua tha or jab seeta ko raam ne waha se azaad kiya or laya to usse agni pariksha deni padi wo aisa q agar seeta paraye admi k yaha raam se alag rahi thi to raam b to seeta se alag Raha tha ye agni pariksha raam ne q nahi di…kya yaha aurat ko uska maan sanman mila…?? Muze bas itna kahna hai dusro par kichad mat uchalo cheeten apne hi upar udate hai….

    1. Amrin ji,

      Yadi adhik shadiyan karne se besaraharaon ko sahara mil jataa hai ye kahna theek naheen.
      Sahara dene ke liye putri ya bahin bhee to banaya ja sakta hai chalo theek hai ho sakta hai aap apnee sanskriti ke anusar ise theek n samajhen.

      Lekin ye bataiye ye ye 4 ki seema allah miyan ne achanak kyon laga dee .
      aur jinhone aapne hisaab se 4 se adhik ko sahara de rakha tha unke sahare ko achanak kyon chhudwa diya gaya unko kyon alaga karawa diya gaya aur 4 se jyada ki permission Muhammad sahib ko hee kyon dee gayee.

      Isake alawa islam men jo gulamon ko khareedane bechane ke jo legal riwaz hai uska kya ?
      kya wo jayaz hai ?

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