Category Archives: इस्लाम

मिर्ज़ा साहब गर्भवती हो गए ………

मिर्ज़ा गुलाम अहमद को इस्लाम के मनाने वाले मुहम्मद साहब के बाद अंतिम रसूल ए खुदा मानते हैं. हालांकि ज्यादातर मुसलमान मुहम्मद साहब को ही अंतिम रसूल मानते हैं लेकिन अहमदिया सम्प्रदाय मुहम्मद साहब के साथ नबुबत का खात्मा न मानकर इसे मिर्ज़ा गुलाम अहमद के साथ खात्मा मानते हैं और मिर्ज़ा गुलाम अहमद को अंतिम नबी मानते हैं.

मशहूर कादियानी शायर काजी अकमल के शेर का हवाला  देते हुए मौलाना मुहम्मद अब्दुर्रउफ़ ने लिखा है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद को मुहम्मद साहब से श्रेष्ठ मुलमानों का यह संप्रदाय मानता है. ये शेर मिर्ज़ा गुलाम अहमद मिर्ज़ा की मौजूदगी में पढ़े गए और मिर्ज़ा साहब ने भी उन्हें पसंद किया :

मुहम्मद फिर उतर आये हैं  हममें

और आगे से हैं बढ़कर अपनी शान में

मुहम्मद देखने हों जिसने अकमल

गुलाम अहमद को देख कादियां में

मुहम्मद साहब के बाद नबी होने के अतिरिक्त मिर्ज़ा गुलाम अहमद उनकी भविष्य वाणियों के लिए जाने गए . अल्लाह के द्वारा वही आने का दावा इस्लाम में  मुहम्मद साहब के बाद मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  ने भी किया. वही भी नायाब  कहीं महामारी फ़ैली किसी की मृत्यु हुयी किसी का क़त्ल हुआ मिर्ज़ा गुलाम अहमद तुरंत वही का दावा कर दिया करते थे .

लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जो मिर्ज़ा साहब और उनके इस्लाम का एक अलग ही नज़ारा प्रस्तुतु करती हैं. ये कुछ ऐसे वाकये हैं जो इस्लाम में मिर्ज़ा साहब से पहले किसी ने किये हों ऐसा मालूम नहीं होता.

मिर्ज़ा जी गर्भवती हो गए

मिर्ज़ा साहब फरमाते हैं  कि मरियम की तरह ईसा की रूह मुझमें फूंकी गई और लाक्षणिक रूप में मुझे गर्भ धारण कराया गया और की महीने के बाद दस महीने से ज्यादा नहीं , इह्लाम के जरिये से मुझे मरियम से ईसा बनाया गया . इस प्रकार से में मरियम का बेटा ईसा (इब्न मरियम ) ठहरा

– कश्ती ए नूह पृष्ट – ४६, ४७ संस्करण १९०२ ई

मिर्ज़ा साहब खुदा की बीवी

काजी यार मुहम्मद साहब कादियानी लिखते हैं कि हजरत मसीह मौउद ने एक अवसर पर अपनी यह स्तिथी प्रकट की कि “कश्फ़” (इलहाम या वहय) की हालात  आप पर इस तरह तारी हुयी कि मानों आप औरत हें और अल्लाह तआला ने अपनी पौरुष शक्ति (Sex Power) को जाहिर किया I समझदारों के लिए इशारा ही काफी है

– ट्रैक्ट १३४, इस्लामी कुर्बानी , पृष्ट १२ लेखक काजरी यार मुहम्मद

अभी तक तो इस्लाम के रसूल अल्लाह से बात करने, फरिश्तों  के युद्ध में लड़ने, चाँद के टुकडे होने जैसे चमत्कारों की बात किया करते थे.

लेकिन मिर्ज़ा साहब ने इससे आगे जाकर ये चमत्कार भी बढ़ा दिए कि वो गर्भवती हुए थे और  अल्लाह तआला पुरुषों पर अपनी पौरुष शक्ति (Sex Power) को जाहिर करता है I

हत्यारा मनुष्य था फ़रिश्ता नहीं :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

हत्यारा मनुष्य था फ़रिश्ता नहीं :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

१. मिर्ज़ा तथा मिर्जाई  पण्डित जी के हत्यारे को खुदा का भेजा फ़रिश्ता बताते व लिखते  चले आ रहे हैं .
कितना भी झूठ गढ़ते  जाओ , सच्चाई सौ पर्दे फाड़ कर बाहर  आ जाती है . मिर्जा  ने स्वयं  स्वीकार किया है . वह उसे एक शख्स ( मनुष्य ) लिखता है . उसने पण्डित लेखराम के पेट में तीखी छुरी मारी . छुरी मार कर वह मनुष्य लुप्त हो गया  पकड़ा नहीं गया

२. वह हत्यारा मनुष्य बहुत समय पण्डित लेखराम के साथ रहा . यहाँ बार बार उसे मनुष्य लिखा गया है . फ़रिश्ता नहीं . झूठ की पोल अपने आप खुल गयी
– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २३९ प्रथम संस्करण

हत्यारा मनुष्य ही था :- मिर्जा पुनः लिखता है ” मैं उस मकान की ओर चला जा रहा हूँ . मेने एक व्यक्ति को आते हुए देखा जो कि एक सिख सरीखा प्रतीत होता था ” कुछ ऐसा दिखाई देता था जिस प्रकार मेने लेखराम के समय एक मनुष्य को स्वप्न में देखता था .
– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – ४४०  प्रथम संस्करण

यहाँ  फ़रिश्ते को सिख, अकालिया, सरीखा आदि तथा डरावना बताकर सीखो को तिरस्कृत किया साथ ही वह भी बता दिया की कादियानी अल्लाह के फ़रिश्ते शांति दूत नहीं क्रूर डरावने व हत्यारे  होते हैं . झूठ की फिर पोल खुल गयी .

अल्लाह का फ़ारसी पद्य पढ़िए :-

मिर्जा ने अपने एक लम्बी फ़ारसी कविता में पण्डित जी को हत्या की धमकी दते हुए अल्लाह मियां रचित निम्न पद्य दिया है :-

अला अय दुश्मने नादानों बेराह

बतरस अज तेगे बुर्राने मुहम्मद

– दृष्टव्य – हकीकत उल वही  पृष्ठ – २८८   तृतीय  संस्करण

अर्थात अय मुर्ख भटके हुए शत्रु तू मुहम्मद की तेज काटने वाले तलवार से डर

प्रबुद्ध, सत्यान्वेषी और निष्पक्ष पाठक ध्यान दें की अल्लाह ने तलवार से काटने की धमकी दी थी परन्तु मिर्जा ने स्वयं स्वीकार किया है की पण्डित लेखराम जी की हत्या तीखी छुरी से की गयी . मिर्ज़ा झूठा नहीं सच्चा होगा परन्तु मिर्ज़ा का कादियानी अलाल्ह जनाब मिर्ज़ा की साक्षी से झूठा सिद्ध हो गया . इसमें हमारा क्या दोष

न छुरी , न तलवार प्रत्युत नेजा ( भाला )

मिर्ज़ा लिखता है ” एक बार मेने इसी लेखराम के बारे में देखा कि एक नेजा ( भाला ) हा ई . उसका फल बड़ा चमकता है और लेखराम का सर पड़ा हुआ है उसे नेजे से पिरो दिया है और खा है की फिर यह कादियां में न आवेगा . उन दिनों लेखराम कादियां में था और उसकी हत्या से एक मॉस पहले की घटना है

 

– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २८७   प्रथम संस्करण

 

यह इलहाम एक शुद्ध झूठ सिद्ध हुआ . पण्डित लेखराम जी का सर कभी भाले पर पिरोया गया हो इसकी पुष्टि आज तक किसी ने नहीं की .मिर्ज़ा ने स्वयं पण्डित जी के देह त्याग के समय का उनका चित्र छापा है मिर्जा के उपरोक्त कथन की पोल वह चित्र तथा मिर्जाई लेखकों के सैकड़ों लेख खोल रहे हैं

अपने बलिदान से पूर्व पण्डित जी ने कादियां पर तीसरी बार चढाई की मिर्ज़ा को  पण्डित जी का सामना करने की हिम्मत न हो सकी . मिर्जा को सपने में भी पण्डित लेखराम का भय सततता था उनकी मन स्तिथि का ज्वलंत प्रमाण उनका यह इलहामी कथन है :

झूठ ही झूठ :- मिर्जा का यह कथन भी तो एक शुध्ध झूठ है की पण्डित जी अपनी हत्या से एक मॉस पूर्व कादियां पधारे थे . यह घटना जनवरी की मास  की है जब पण्डित जी भागोवाल आये थे . स्वामी श्रद्धानन्द  जी ने तथा  इस विनीत ने अपने ग्रंथो में भागोवाल की घटना दी है . न जाने झूठ बोलने में मिर्जा को क्या स्वाद आता है .

तत्कालीन पत्रों में भी यही प्रमाणित होता है की पूज्य पण्डित जी १७-१८ जनवरी को भागोवाल पधारे सो कादियां `१९-२० जनवरी को आये होंगे . उनका बलिदान ६ मार्च को हुआ . विचारशील पाठक आप निर्णय कर लें की यह डेढ़ मास  पहले की घटना है अथवा एक मास पहले की . अल्पज्ञ जेव तो विस्मृति का शिकार हो सकता है . क्या सर्वज्ञ अल्लाह को भी विस्मृति रोग सताता है ?

अल्लाह का डाकिया कादियानी  नबी :-

मिर्जा ने मौलवियों का, पादरियों का , सिखों का , हिन्दुओं का सबका अपमान किया . सबके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया तभी तो “खालसा ” अखबार के सम्पादक सरदार राजेन्द्र सिंह जी ने मिर्जा की पुस्तक को ” गलियों की लुगात ” ( अपशब्दों का शब्दकोष ) लिखा है . दुःख तो इस बात का है की मिर्ज़ा बात बार पर अल्लाह का निरादर व अवमूल्यन करने से नहीं चूका . मिर्जा ने लिखा है मेने एक डरावने व्यक्ति को देखा . इसको भी फ़रिश्ता ही बताया है – ” उसने मुझसे पूछा कि लेखराम कहाँ है ? और एक और व्यक्ति का नाम लिया की वह कहा है ?

– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २२५   प्रथम संस्करण

पाठकवृन्द ! क्या  यह सर्वज्ञ अल्लाह का घोर अपमान नहीं की वह कादियां फ़रिश्ते को भेजकर अपने पोस्टमैन मिर्ज़ा गुलाम अहमद से पण्डित लेखराम तथा एक दूसरे व्यक्ति ( स्वामी श्रद्धानन्द ) का अता पता पूछता है . खुदा के पास फरिश्तों की क्या कमी पड़  गयी है ? खुदा तो मिर्ज़ा पर पूरा पूरा निर्भर हो गया . उसकी सर्वज्ञता पर मिर्जा ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया .

एक और झूठ गढ़ा गया : – ऐसा लगता है कि कादियां में नबी ने झूठ गढ़ने की फैक्ट्री लगा दी . यह फैक्ट्री ने झूठ गढ़ गढ़ कर सप्लाई करती थी पाठक पीछे नबी के भिन्न भिन्न प्रमाणों से यह पढ़ चुके हैं कि पण्डित जी की हत्या :
१. छुरी से की गयी

२. हत्या तलवार से की गए

३. हाथ भाले से की गयी

नबी के पुत्र और दूसरे खलीफा बशीर महमूद यह लिखते हैं :-

४. घातक ने पण्डित जी पर खंजर से वर किया
देखिये – “दावतुल अमीर ” लेखक मिर्जा महमूद पृष्ठ – २२०

अब पाठक इन चरों कथनों के मिलान कर देख लें की इनमें सच कितना है और झूठ कितना . म्यू हस्पताल के सर्जन डॉ. पेरी को प्रमाण मानते ही प्रत्येक बुद्धिमानi यह कहेगा कि बाप बेटे के कथनों में ७५ % झूठ है .

 

मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी की शालीनता

मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  कादियानी  और  उसकी उम्मत  लगातार ये कहती  आयी है कि  पण्डित लेखराम की वाणी अत्यन्त तेज  व  असभ्य थी . मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  और  न ही उसके चेले  आज तक  इस  सन्दर्भ में कोई  प्रमाण प्रस्तुत  कर पाए हैं . इसके विपरीत मिर्ज़ा  गुलाम अहमद स्वयम कहता है कि पण्डित लेखराम  सरल  स्वाभाव  के थे :

‘ वह अत्यधिक  जोश के होते हुए भी अपने स्वभाव से सरल था ”
सन्दर्भ- हकीकुत उल वही पृष्ट  -२८९ ( धर्मवीर पण्डित लेखराम – प्र राजेन्द्र जिज्ञासु)

मिर्ज़ा गुलाम अहमद और उनके चेले तो धर्मवीर पण्डित लेखराम जी के वो शब्द तो न दिखा सके न ही दिखा सकते हैं क्योंकि झूठ के पांव नहीं होते .

आइये आपको मिर्ज़ा गुलाम अहमद की भाषा की शालीनता के कुछ नमूने उनकी ही किताबों से देते हैं :

 

रंडियों की औलाद  

” मेरी इन किताबों को हर मुसलमान  मुहब्बत  की नजर से देखता है और उसके इल्म से फायदा उठाता है और मेरी अरु मेरी दावत के हक़ होने की गवाही देता है और इसे काबुल करता है .

किन्तु रंडियों (व्यभिचारिणी औरतों ) की औलादें मेरे हक़ होने  की गवाही नहीं देती ”

– आइन इ कमालाते  इस्लाम पृष्ट -५४८ लेखक – मिर्जा गुलाम अहमद प्रकाशित सब १८९३ ई

 

हरामजादे

” जो हमारी जीत का कायल नहीं होगा , समझा जायेगा कि उसको हरामी (अवैध संतान ) बनने का शौक हिया और हलालजादा (वैध संतान ) नहीं है .”

– अनवारे इस्लाम पृष्ट -३० , लेखक – मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी प्रकाशित – सन १८९४ ई

मर्द सूअर  और औरतें  कुतियाँ

” मेरे  विरोधी जंगलों के सूअर हो गए और उनकी  औरतें  कुतियों से बढ़ गयीं ”

– जज्जुल हुदा पृष्ठ – १० लेखक  मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  कादियानी प्रकाशित – १९०८ ई

जहन्नमी

मिर्ज़ा जी बयान करते हैं :

‘ जो व्यक्ति मेरी पैरवी नहीं करेगा और मेरी जमाअत में दाखिल नहें होगा वह खुदा और रसूल की नाफ़रमानी करने वाला है जहन्नमी है ”

– तबलीग रिसालत पृष्ट – २७ , भाग – ९

मौलाना मुहम्मद अब्दुर्रउफ़ “कादियानियत की हकीकत” में लिखते हैं कि मानो कि तमाम मुसलमान जो मिर्ज़ा गुलाम अहमद के हक़ होने की गवाही न तो वह जहन्नमी और हरामजादे , जंगल के सूअर और रण्डियों की औलादें हैं और मुसलमान औरतें हरामजादियां रंडियां (वैश्याएँ) और जंगल की कुतियाँ और जहन्नमी हैं

– पृष्ट -५४, प्रकाशन – २०१०

 

मिर्ज़ा गुलाम अहमद की भाषा शैली किस स्तर तक गिरी हुयी थी ये उसके चुनिन्दा नमूने हैं अन्यथा भाषा की स्तर इस कदर गिरा हुआ है कि हम उसे पटल पर रखना ठीक नहीं समझते .

समझदारों के लिए इशारा ही काफी है .

 

Pandit Lekhram gave Mirza Ghulam Ahmad a very hard time for a number of years. He would respond to the latter’s challenges, and would show up to meet him, and also wrote in an equally tough, though more civil tone, but nevertheless very sarcastic.  Here references are given of sarcastic & unplished tone of Mirza Ghulam Ahamd

 

 

शादी के लिए इस्लामी दुआ

 

जब व्यक्ति अपने कर्म पर विश्वास न कर जादू की तरह बिना कर्म किये फल की प्राप्ति करना चाहता है तो उसे कुछ ऐसे लोगों का सहारा मिलता है जो उसे उसके सब्ज बागों की दुनिया में सफ़र कराते हैं और उसे अपना मुरीद बनाये रखना चाहते हैं. ऐसे व्यक्ति या तो धन लाभ के लिए ऐसा करते हैं या कुछ अन्य कारण जिनकी वजह से ये ऐसे व्यक्तियों को सत्य से परिचित न करवा कर उन्ही की खयाली दुनिया के सच होने का उनको आभास कराते रहते हैं. प्राय सभी सम्प्रदायों में ऐसे लोग मिल जाते हैं.

ऐसा ही एक उदाहरण इस्लाम की मान्यताओं में से है जो दुआ के माध्यम से शादी करवाने के लिए विश्वास दिलाते हैं . आइये इस इस्लामी अजीबोगरीब जो उनकी नज़र में विश्वस्त और कामियाबी अमल है पर नज़र डालते हैं :-

जिनकी शादी न हो रही हो उनके लिए एक विश्वस्त और कामियाब अमल.

जिस लड़की – लड़के की शादी में किसी तरह की कुछ रुकावटें पड़ रही हो या रिश्ता कहीं से नहीं आ रहा हो और अगर आता हो तो ख़त्म हो जाता हो तो उस बच्ची के लिए , बच्चे की मन को चाहिए की डॉ रक्अत नमाज सुबह की तरह पढ़ कर दुरुद मुहम्मद (स.) व आके मुहम्मद अलैहुमुस्स्लाम पर पहले और आखिर में पढने के बाद पांच तसबीहें “तसबीह इ फ़ातिम :” इस तरह से पढ़े पहले ३३ बार सुबाहनल्लाह , ३३ बार अल्ह्म्दो लिल्लाह और फिर ३३ बार अल्लाहो अकबर उसके बाद सूरा ए ताहा व तवासें यासीन व हमीमऐन  सीन काफ को पढके सोने पीटने के साथ इमामे जमान : अलैहिस्सलाम के वास्ते से दुआ करे इंशाअल्लाह मुराद जरुर पूरी होगी . यह अमल कुछ दिनों तक जारी रखें.

मालूम होना चाहिए कि आसमान पर फरिश्तों उअर हूरों ने खातून जन्नत सलामुल्लाहे अलैहा और अमीरुल मोमिनीन हजरत अली बिन अबी तालिब अलैहिस्सलाम की शादी के समय यह दुआ पढी थी (बिहारुल अनवार भाग ३ , पृष्ठ १९, बहावल इ अहबाब जनतरी , पृष्ट ५०,५१ लेखक “तसबीह इ फातीम: के फजाएल “ अहबाब पब्लिशर्स लखनऊ १९९३ ई १४१३-१४ हि . इस्लाम और सेक्स पृष्ट ६

 

अब इस पर टिप्पणी क्या करें  पाठक स्वयं निर्णय करें

ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दें

कुरआन के नामकरण में गफलतबाजी

लेखक -देव प्रकाश
मुस्लिम विद्वान जलालुद्दीन सिद्दीकी ने अपनी पुस्तक तफसीर इत्तिकान में कुरआन और सूरतो के नाम के सम्बन्ध में चर्चा की है ,कि खुदावन्द ने अपनी पुस्तक के नाम उनके विपरीत रखे |
इसी पुस्तक में कुरआन के ५५ नाम लिखे है – तफसीर इत्तिकान ,प्रकरण १७ पेज १३२-३४
मुजफ्फरी के अनुसार अबूबकर ने कुरान को जमा किया तब लोगो ने इसका नामकरण करने को कहा तो किसी ने इंजील कुछ ने सफर नाम सुझाया लेकिन अबूबकर ने इब्ने मसूद के प्रस्ताव से नाम मुसहिफ़ रख दिया |
इसी प्रकार इब्ने अश्त्ता किताबुल मुसहिफ़ में मूसा बिन अकवा के आधार पर इब्ने शहाब की रवायत की अबू बकर ने सम्मति से मुसहिफ़ नाम रखा |
व्याख्याकार लिखता है कि अबूबकर वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कुरआन को संकलित कर उसका नाम मुसहिफ़ रखा |
– तफसीर इत्तिकान ,प्रकरण १७ पृष्ठ १३७
इस विषय पर हमने कुरआन के ५५ नाम फिर अबू बकर द्वारा मुसहिफ़ नाम रखना बताया अगले पोस्ट में इस विषय पर अन्य प्रमाणों के साथ कुरआन के नाम का कौल लिखेंगे | इन बातो से यह स्पष्ट है कि अबूबकर तक मुसलमान कुरआन का नाम ही निश्चय नही कर पाए थे ,और अगली पोस्ट में स्पष्ट करेंगे कि कुरआन का कुरआन नाम यहूदियों से लिया गया है | जिस पुस्तक का नाम ही निश्चय करना इतना मुश्किल रहा वो भला ईश्वरीय ग्रन्थ कैसे स्वीकार जा सकता है ?( शेष ……….

इस्लाम में विचित्र विवाह : मुतअ: ( सामयिक विवाह )

 

विवाह की एक व्यवस्था समाज में प्रारंभ से रही है .वैदिक व्यवस्था में १६ संस्कारों में से विवाह संस्कार भी एक प्रमुख संस्कार है. हमारी सामाजिक व्यवस्था में विवाह को धार्मिक संस्कार मानकर पूरा किया जाता है . वैदिक काल में वैवाहिक जीवन में स्त्री का एक महत्व पूर्ण योगदान रहा है . वैदिक मन्त्रों में स्त्री के संचालक, वकील सेनापति होने का वर्णन पाया जाता है यथा :

अहं केतुरहं मूर्धाहमुग्रा विवाचनी । ममेदनु क्रतुं पतिः सेहानाया उपाचरेत् ॥ ऋग्वेद १०,१५९, २

अर्थात मैं समाज को मार्ग दिखाने वाली पताका हूँ में समाज का सिर  हूँ मैं बड़ा अच्छा  विवाद करने वाली वकील हूँ .

 

मम पुत्राः शत्रुहणोऽथो मे दुहिता विराट् । उताहमस्मि संजया पत्यौ मे श्लोक उत्तमः ॥ ऋग्वेद १०,१५९, ३

 

गत मन्त्र की आदर्श माता यह कह पाती है कि मेरे पुत्र शत्रुओं को मारनेवाले हैं, ये कभी शत्रुओं से अभिभूत नहीं होते। और निश्चय से मेरी पुत्री विशिष्टरूप से तेजस्विनी होती है। और मैं सम्यक् शत्रुओं को जीतनेवाली होती हूँ। मेरे पति में उत्कृष्ट यश होता है। मेरे पति भी वीरता के कारण यशस्वी होते हैं। माता-पिता की वीरता के होने पर ही सन्तानों में भी वीरता आती है। माता-पिता का जीवन यशस्वी न हो तो सन्तानों का जीवन कभी यशस्वी नहीं हो सकता।

 

वहीं जब हम इस्लाम की व्यवस्थाओं पर नजर डालें तो स्त्री केवल एक भोग का साधन प्रतीत होती है . इस सम्बन्ध में डॉ. मोहम्मद तकी अली आबिदी (पी एच् डी फ़ारसी लखनऊ विश्वविद्यालय ) के विचारों पर इस बारे पर  गौर फरमाते हैं :

शादी का उद्देश्य इस्लामी नज़रिए से

शादी (हमेशा के लिए हो या सामयिक ) का बुनियादी उद्देश्य सेक्सी इच्छा की पूर्ति ही है और औलाद होना सेक्सी इच्छा की पूर्ति का नतीजा है जो दुसरे नंबर पर आती है यही कारण है की सेक्सी इच्छा की पूर्ति न होने पर शादी का उद्देश्य ही खतम हो जाता है लेकिन औलाद के बिना ऐसा नहीं होता और मनुष्य कभी कभी केवल सेक्सी इच्छा की पूर्ति की आवश्यकता महसूस करता है लेकिन संतान की इच्छा नहीं करता . इसलिए इस्लाम धर्म ने पत्नी न होने या पत्नी से पूरी तरह इच्छा पूर्ति न होने पर सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए मुतअ : (सामयिक शादी ) को जायज करार दिया है .

मुतअ : (सामयिक शादी ) जायज है : मौलवी डॉ. मोहम्मद तकी अली आबिदी साहब फरमाते हैं कि  मुतअ के लिए निकाह पढ़ा जाता है और उसके बाद औरत आदमी पर हलाल हो जाती और जिसके बाद दोनों स्त्री और पुरुष आपस में किसी भी तरह से आनंद उठा सकते हैं  इसे निकाह इ मुवक्क्ती (सामयिक निकाह अर्थात मुतअ : ) कहते हैं . मौलवी साहब फरमाते हैं की इस निकाह में समय सीमा तय होतीहै और शर्त भी लगाई जा सकती है अर्थात स्त्री पुरुष जब तक साथ रहना चाहें रह सकते हैं और जब समय सीमा समाप्त हो जाये उनका रिश्ता ख़तम हो जायेगा .

मुतअ : (सामयिक शादी ) जवानों को पवित्र रखने का साधन : मौलवी तकी अली आबिदी साहब फरमाते हैं कि मनुष्य को कभी कभी ऐसे हालात से गुजरना पढता है कि जिनमें निकाह संभव नहें होता और वह बलात्कार या सामयिक शादी में से किसी एक को अपनाने पर मजबूर हो जाता है इसलिए सामयिक शादी महत्वपूर्ण है

इस्लाम में मुतअ : बड़ी नेअमत है और जवानों की पाकदामनी और परहेजगारी को बाकी रखने और हरामकारी से बचाए रखने में मददगार सभीत होता है

( अब ये तो पाठक ही निश्चित करें कि कैसी परहेजगारी और हरामकारी से बचा जा रहा है J )

कुरआन में मुतअ का समर्थन :

 

“जिन औरतों को तुमने मुतअ किया हो तो उन्हें जो महर तय किया हो दे दो और महर के तय होने के बाद आपस में (कमी व ज्यादती पर ) राजी हो जाओ तो इसमें तुम पर कुछ गुनाह नहीं है . बेशक खुदा (हर चीज का ) जानकार और मसलहतों का पहचानने वाला है ( सूरा ए  निसा आयत २४ )

उपरोक्त आयत मुतअ के जाएज और हलाल होने पर डाली है जो मनुष्य को गुमराही और बदकारी से बचा सकती है . कुरान में आगे मिलता है :

 

“ जो शख्स मुतअ करे आयु में एक बार वह स्वर्ग के लोगों में से है और उस पर पाप नहीं किया जायेगा जो स्त्री और पुरुष मुतअ करें मगर स्त्री पाकदामन हो मोमिन हो “

मुतअ के बारे में जाएज होने का सुबूत इससे भी मिलता है की रसूल के ज़माने के बाद रसूल के असहाब (हजरत अबू बकर और हजरत उमर ) की हुकूमत के दौर में भी मुतअ होता रहा .

मुसलामनों में मुतअ को लेके भिन्न भिन्न मत हैं . मुसलमानों का एक पक्ष मुतअ को जायज मानता है.

मुतअ बलात्कार रोकने का साधन

हजरत अली लिखते हैं : अगर हजरत उमर लोगों को मुतअ के लिए मना  न करते तो क़यामत तक अलावा शकी (निर्दय ) और बदबख्त ( अभागा) के कोई जिना अर्थात बलात्कार नहीं करता –सूरा ए निशा आयत -२४ का हाशिया मौलाना फरमान अली .

अर्थात हजरत अली के नजदीक मुतअ जिना अर्थात बलात्कार और हरामकारी से बचाने वाली चीज है और मुतअ को रोकना ठीक नहीं है क्योंकि हजरत अली इसे रोकने को ठीक नहीं समझते क्योंकि मुतअ प्राकृतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए धार्मिक और जाएज काम है .

( भगवान् बचाए ऐसे पाक काम से J )

लिव इन रिलेशन शिप मुतअ प्रथा से मिलता जुलता

मौलवी तकी अली आबिदी साहब फरमाते हैं कि आने वाली जिन्दगी को खुशगवार बनाने के लये ही अब योरोप में बिना निकाह के सेक्सी सम्बन्ध बनाये जाते हैं . इन सेक्सी सम्बन्धों का तात्पर्य यह होता है की निकाह से पूर्व ही आने वाली शादी की जिन्दगी के खुशगवार होने का यकीन कर लिए जाये और इस तरह की शादीयों को आरजी (अस्थायी ) आजमाइशी (परख की ) या वक्ती शादी का नाम दिया जाता है . इससे सुबूत मिलता है इस इस तरक्की के युग में गैर कानूनी और नाजाएज कामोंसे रोकने और प्राकृतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए सामयिक शादी को जगह दी जा रही है जो काफी हद तक इस्लामी (अर्थात प्रकृति के अनुसार धर्म के ) कानून मुतअ से मिलती जुलती हैं इसलिए तो हजरत अली ने कहा:

हजरत अली लिखते हैं : अगर हजरत उमर लोगों को मुतअ के लिए मना  न करते तो क़यामत तक अलावा शकी (निर्दय ) और बदबख्त ( अभागा) के कोई जिना अर्थात बलात्कार नहीं करता –सूरा ए निशा आयत -२४ का हाशिया मौलाना फरमान अली .

अब पाठक गण स्वयं निर्णय करें मुत्ता क्या है?

इस्लामी निकाह का यह तरीका कहाँ तक ठीक और नैतिकता की कसौटी पर खरा उतरता है ?

 

सत्यार्थ प्रकाश के 14 वें समुल्लास पर आपत्तियाँ और  उनका उत्तर – राजेन्द्र जिज्ञासु

 

सत्यार्थ प्रकाश प्रकरण पर अदुल गनी व खलील खान ने जो आक्षेप किया है, उसका विवरण निम्न प्रकार है। पहली बात तो यह आक्षेप ही गलत है, क्योंकि ऋषि दयानन्द कुरान पढ़ना या अरबी भाषा जानते ही नहीं थे।

शाह रफी अहमद देहलवी के उर्दू अनुवाद का जो अन्य मौलवियों ने देवनागरी या हिन्दी में अनुवाद किया है, स्वामी जी ने उसी को ही ज्यों का त्यों लिया है। अनुभूमिका में साफ लिखा है, यदि कोई कहे कि यह अर्थ ठीक नहीं है, तो उसको उचित है कि मौलवी साहिबों के तर्जुमों का पहले खण्डन करे, पश्चात् इस विषय पर लिखे, क्योंकि यह लेख केवल मनुष्यों की उन्नति और सत्यासत्य के निर्णय के लिए है। दो लोगों ने सत्यार्थ प्रकाश के चौदह समुल्लास का सुरा तहरीम 66 आयत 1 से 5 पर ऋषि ने दो किस्सा या कहानी है लिखा।

आक्षेपकर्ता ने यह कहानी कुरान में नहीं है, ऐसा लिखा तथा कहा- जब यह कहानी नहीं है कुरान में फिर दयानन्द ने क्यों लिखा? अतः दयानन्द कृत सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये। विरोध यही है।

इसका उत्तर है कि कुरान की आयतों के उतरने का कारण है जिसे शानेनुजूल कहा जाता है, अर्थात् किस बिना पर यह आयत उतरी? या किस आधार पर यह आयत उतरी ? वजह क्या थी? इसे शानेनुजूल कहा जाता है।

तो सुरा तहरीम का शाने नुजूल के सभी अनुवाद कर्त्ताओं ने कुरान के फुटनोट में लिखा है, वह अनुवाद उर्दू, हिन्दी व अंग्रेजी सब में है, और विस्तार में बुखारी शरीफ हदीस, व शाही मुस्लिम हदीस में प्रत्येक सुरा का शानेनुजूल लिखा है।

अतः इन आयतों में स्वामी जी ने दो कहानी है लिखा है, परन्तु कहानी को स्वामी जी ने उद्धृत नहीं किया, मैं उन दोनों क हानी को लिखता हूँ उमूल मोमेनीन (मुसलमानों की मातायें) अर्थात् हजरत मुहमद सःआःवःसः की सभी बीबीयाँ, सभी मुसलमानों की मातायें हैं, विधवा होने पर भी वह किसी से निकाह नहीं कर सकतीं, और न कोई मुसलमान उनसे निकाह कर सकता, क्योंकि माँ जो ठहरीं। हजरत जैनब नामी बीवी के पास हजरत साहब शहद पीने को जाया करते थे। हुजूर की सबसे कमसिन पत्नी हजरत आयशा ने एक और पत्नी हजरत हफसा दोनों ने परामर्श कर पति हजरत मुहमद साहब से कहा कि दहन मुबारक से मगाफीर की बू आती है, चुनान्चे आपने क्या खाया?

जवाब में हुजूर ने कहा- अगर शहद पीने से बू आती है, तो आइन्दा मैं शहद का इस्तेमाल नहीं करुँगा। पहली कहानी यह है, और आयत का शानेनुजूल यह है। (मैंने कसम खाली है, तुम किसी से मत कहना)

दूसरी कहानी है कि हजरत साहब ने एक काम को न करने की कसम खा लिया तो अल्लाह ने यह आयत उतारी- ऐ नबी क्यों हराम करते हो उस चीज को? जिसे अल्लाह ने हलाल किया है तुहारे लिए, अपनी बीविओं के खुशनुदियों के लिए (प्रसन्न के लिए)। हजरत हफसा के घर गए, वह मईके गई भी तो हुजूर ने मारिया, कनीज, के साथ एखतलात किया, हफसा ने दोनों को कमरे में देख लिया- हुजूर ने कसम खाली थी न करने को। तफसीर हक्कानी – पृ.125

एक बार हजरत साहब ने एक पत्नी हफसा से कहा, दूसरों से कहने को मना किया पर हजरत हफसा ने हजरत आयशा नामी पत्नी से कह दी । जिस पर अल्लाह ने पत्नियों को डाँट लगाते हुए कहा कि नबी अगर तुम लोगों को तलाक दें, तो उनकी पत्नियों की कमी नहीं, जिसे कुरान में अल्लाह ने कहा।

असा रबुहू इन तल्लाका ‘कुन्ना अई’ युब दिलाहू अजवाजन खैरम मिन कुन्ना मुसलिमातिम मुमिनातिन, कानेतातिन, तायेनातिन, सायेहातिन, सईये बातिय वा अबकरा। तहरीम – आ. 5

इन दो कहानी का ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश में उल्लेख किया है, जो कुरान तथा हदीस में आयत का शानेनुजूल ही इस प्रकार है।

कुरान का अंग्रेजी अनुवादक पिक्यल व एन.जे. दाऊद, हिन्दी अनुवाद नवल किशोर ने भी लिखा है तथा उर्दू अनुवादकों ने भी लिखा है। अवश्य यह लिखना मैं युक्ति-युक्त समझता हूँ उर्दू अनुवादक ने लिखा यह किस्सा पादरियों ने अपने मन से मिला दिया है।

विचारणीय बात है कि ऋषि दयानन्द ने इसी आयत की समीक्षा में लिखा है, अल्लाह क्या ठहरा मुहमद साहब के घर व बाहर का इन्तेजाम करने वाले मुलाजिम ठहरा?

जरा सोचे तो सही कि कुरान का अल्लाह समग्र मानव मात्र का होने हेतु मानव मात्र के लिए उपदेश होना था कुरान का उपदेश।

किन्तु मानव मात्र का उपदेश तो क्या है, नबी के पति-पत्नी का घरेलू वार्तालाप ही अल्लाह का उपदेश है। समग्र कुरान में इस प्रकार अनेक घटनाएँ हैं। यहाँ तक कि नबी पत्नी बदचलन है या नहीं हैं, कुरान में अल्लाह गवाही दे रहे हैं। सुरा नूर-24 आयत 6 पर देखें।

बल्लजीना यरमूना अजवाजहुम व लम या कुल्लाहुम शुहदाऊ इल्ला अन फुसुहुम फ शहादतो अहादेहिम अरबयो शहादतिम बिल्ला हे इन्नाहू लन्स्सिादेकीन।

अब समीक्षा में ऋषि दयानन्द जी ने अपना विचार ही तो अभिव्यक्त किया है, न कि कुरान में यह क्यों लिखा है, यह पूछा?

अपने विचार अभिव्यक्त करने की छूट भारतीय संविधान में सबको है, और मानव बुद्धि परख होने हेतु किसी चीज को मानने के लिए बुद्धि का प्रयोग तो करना ही चाहिये। दयानन्द तो दोषी तब होते, जब अपनी मनमानी बातों को कुरान की आयतों के साथ मिलाते? उन्होंने तो मात्र कुरान की बातों को सामने रखा।

आक्षेप कर्ता ने सुरा कदर जो संया 97 है आयत 1 से 4 को लिखा है, तथा सत्यार्थ प्रकाश पर आक्षेप किया है, कुरान में क्या कहा वह प्रथम प्रस्तुत करता हूँ।

तहकीक नाजिल किया हमने कुरान को बीच रात कदर के, और क्या जाने तू के क्या है रात कदर की, रात कदर की बेहतर है, हजार महिने से, उतरते हैं फरिश्ते और रूह पाक अपने परवार दिगार के  हुक्म से, हजार चीजों को लेकर अपने वास्ते, सलामती है वह तुलुय हो फजर। आक्षेप कर्ता को चाहिये था, दयानन्द को गभीरता से पढ़कर कुरान में सभी प्रश्नों को जानने का प्रयत्न करना, क्योंकि दयानन्द ने जो प्रश्न किया है, कुरान से उसका जवाब कुरानविदों के पास नहीं है।

कुरान में कई जगह कहा गया कि कुरान को बरकत वाली रात में उतारा, यहाँ तक कि उल्लहा ने कसम खाकर कहा। एक रात में कुरान को उतारा, किन्तु पूरी कुरान की आयतों को दो भागों में बाँटा गया, मक्की व मदनी में, अर्थात् प्रत्येक सुरा के प्रथम में लिखा है कि यह सुरा मक्का में और यह मदीना में उतारी गई आदि। दयानन्द का कहना सही है कि समग्र कुरान एक ही बार में उतरी? या कालान्तर में? क्योंकि इसका विरोध कुरान से ही होता है।

जो पवित्र आत्मा हजरत जिब्राइल को उतरना इस आयत में माना गया जो ऋषि ने वह पवित्र आत्मा कौन है लिखा, अल्लाह तक पहुँचने में जिब्राइल को पचास हजार साल लगते हैं, तो कुरान को उतरने में कितने वर्ष लगे?

सत्यार्थ प्रकाश पर आक्षेप कर्ताओं ने सुरा बकर-संया 2 आयत 25 से 37 तक का उल्लेख किया है।

सुरा बकर आयत 25 में लिखा- बशारत हैं उनके लिए जो नेक अमल करेंगे, अल्लाह उनको जन्नत में दाखिल करायेंगे, जिसके नीचे नहरे हैं, तरह-तरह के मेवे खाने को मिलेंगे, मेवे (फल) देखने में एक जैसा होगा पर स्वाद अलग-अलग है। खिलाने वाला कहेगा- अरे इसे खाकर देखें इसका स्वाद ही अलग है और वहाँ हुर गिलमों, पवित्र शराब तथा परिन्दों का गोश्त का कबाब भी खाने को मिलेगा, यह प्रमाण पूरी कुरान में अनेक बार आया है। यहाँ तक कि हम उमर औरतें, दिल बहलाने वाली औरतें, बड़ी-बड़ी आँख वाली जैसे मोती का अण्डा, रेशम का कपड़ा पहनकर जिससे तन दिखाई दे सोने के कंगन पहन कर सामान परिवेशन करेंगी- बहुत जगह कुरान में लिखा है।

ऋषि दयानन्द जी ने मात्र जानकारी लेनी चाही कि दुनिया में स्त्री, पुरुष जन्म लेते व मरते हैं, पर जन्नत में रहने वाली सुन्दर स्त्रियाँ अगर सदाकाल वहाँ रहती हैं? तो क्या वह एक जगह रहते -रहते ऊब नहीं जाती होंगी? जब तक कयामत की रात नहीं आवेगी, तब तक उन बिचारियों के दिन कैसे कटते होंगे?

मेरे विचारों से सत्यार्थ प्रकाश में दर्शाये गए इन्हीं प्रश्नों को तीस हजारी कोर्ट से न पूछ कर उस्मानगनी व खलील खान को चाहिये था- डॉ. मुति मुकररम से ही पूछते। अब मुति साहब ने इन लोगों को जवाब देने के बजाय सुझाव दे डाला- कोर्ट में जा कर पूछो कि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश में यह क्यों लिखा?

किन्तु दयानन्द ने जो कुछाी लिखा है, वह कुरान में पहले से ही मौजूद है। अगर कुरान में यह बात न होती तो ऋषि दयानन्द यह न पूछते कि उन सुन्दरी स्त्रियों का एक जगह रहने में मन में घबराहट होती या नहीं? जवाब तो कुरान विचारकों को देना चाहिये। सुरा बकर-आयत 31 से 37 में सत्यार्थ प्रकाश पर जो आरोप है, वह भी निराधार है। अल्लाह ने आदम को सभी चीजों का नाम बता दिया, और फरिश्तों से पूछा कि अगर तुम सच बोलने वाले हो, तो उन चीजों का नाम बताओ। पर वह तो सच बोलने वाले ही थे, तो कहा हम तो उतना ही जानते हैं जितना तू ने हमें सिखाया।

इतने में अल्लाह ने आदम से पूछा, तो वह सभी नाम बता दिया। फिर अल्लाह ने कहा- हम बता नहीं रहे थे तुहें? जाव इन्हें सिजदा करो।

सत्यार्थ प्रकाश में लिखा- ऐसे फरिश्तों को धोखा दे कर अपनी बड़ाई करनााुदा का काम हो सकता है?

इसमें दयानन्द की क्या गलती? अल्लाह ने कुरान में कहा, व अल्ला मा आदमल असमा आ कुल्लाहा सुमा अराजा हुम अललमल इकते।

दयानन्द का कहना है कि जिस फरिश्ते ने आसमानों, और जमीनों में अल्लाह की इतनी इबादत की, अल्लाह ने जिसे आबिद, जाबिद, शाकिर, सालेह, खाशेय आदि नामों की उपाधि दी, और चीजों का नाम नहीं बताया, अब उसी की लाई गई मिट्टी से आदम को बनाकर सभी नाम बताना? क्या यह अल्लाह का धोखा नहीं?

क्या यह अल्लाह का पक्षपात नहीं? मात्र दयानन्द ही क्यों, कोईाी बुद्धि परख मानव इसे दगा ही मानेगा। क्या यह अल्लाह का काम हो सकता है?

अवश्य कुरान में इसकी चर्चा और भी कई जगहों पर हैं, जैसा संया 7 अयराफ में 12 से 19 तक लिखा है, और यहाँ तो उस फरिश्ते ने अल्लाह के सामने अंगुली नचा कर कहा, काला फबिमा अगवई तनी ला अकयूदन्नालहुम सिरातकल मुस्ताकीम-गुमराह किया तू ने मुझको, मैं भी उसे गुमराह करूँगा जो तेरे सीधे रास्ते पर होगा उसे आगे से पीछे से, दाँई और बाँई से उसे गुमराह करूँगा।

अब देखें अल्लाह ने उस शैतान को रोक नहीं पाया, और कहा- जो मेरे रास्ते पर होगा उसे तू गुमराह नहीं कर पायगा। शैतान ने कहा- मैं उसे ही गुमराह करूँगा जो तेरे रास्ते पर होगा, और आदम को गुमराह कर दिखाया।

यह सभी बातें कुरान में ही मौजूद है कि अल्लाह अगर शैतान के पास निरुत्तर हो और कोई मानव अपनी अकल पर ताला डाल कर सत्य बचन महाराज कहे तो इसमें ऋषि दयानन्द की क्या गलती है?

सुरा-2 आयत 37 पर जो आक्षेप है वह देखें, अल्लाह ने कहा- आदम तुम अपने जोरू के साथ वाहिश्त में रहो जहाँ मर्जी, जो मर्जी खाब पर नाजिदीक न जाव उस दरत के गुनहगार हो जावगे, और निकाल दिये जावगे यहाँ से- व कुलना या आदमुस्कुन अनता व जाब जुकल जन्नाता आदि

अब ऋषि दयानन्द ने जो लिखा- देखिये, खुदा की अल्पज्ञता! अभी तो स्वर्ग में रहने को दिया और फिर उसे कहा निकलो, क्या खुदा नहीं जानता था कि आदम मेरा आदेश का उल्लंघन कर उसी फल को खायेगा, जिसे मैंने मना किया? स्वामी जी ने आगे लिखा कि जिस वृक्ष के फल को आदम को खाने से मना किया, आखिर अल्लाह ने उसे बनाया किसके लिए था? यह सभी प्रश्न तो दयानन्द का है, पर उल्टा दयानन्द के अनुयाइयों से पूछा जा रहा है कि दयानन्द ने अपने सत्यार्थ प्रकाश में क्यों लिखा? यहाँ तो उल्टी गंगा बह रही है।

जहाँ तक अल्लाह की अल्पज्ञता की बात है, वह तो कुरान से ही सिद्ध हो रही है, अल्लाह को पता नहीं था कि शैतान आदम को बहका देगा तथा शैतान हमारे हुकम का ताबेदार नहीं रहेगा आदि। दूसरी बात है कि अल्लाह ने आदम को बताया कि शैतान तुहारा खुला दुश्मन है, उसके बहकावे में मत आना।

और इधर शैतान को वर दे दिया कयामत के दिन तक जिन्दा रहने का, हर मानव के नस, नाड़ी तक पहुँचने का, व सीधे रास्ते पर चलने वालों को गुमराह (पथभ्रष्ट) करने का, अल्लाह ने ही मुहल्लत दी। ऋषि दयानन्द को इसीलिए लिखना पड़ा- यह काम अल्लाह का नहीं, और न ही यह उसकी ग्रन्थ की हो सकती है।

यहाँ अल्लाह ने चोर को चोरी करने व गृहस्थ को सतर्क रहने वाली बात की है। इसका प्रमाण भी कुरान के दो स्थानों पर मौजूद है, जैसा-सुरा इमरान आयत 54 तथा अनफाल-आ030- व मकारू व मकाराल्लाहू बल्लाहू खैरुल मारेकीन।

अर्थ- मकर करते हैं वह, और मकर करता हूँ मैं, और मैं अच्छा मकर करने वाला हूँ। ध्यान देने योग्य बात है कि मकर का अर्थ है धोखा और अल्लाह से अच्छा धोखा करने वाला कोई नहीं, जो अल्लाह खुद कर रहे हैं अपनी कलाम में, अब अल्लाह व अल्लाह की कलाम की दशा क्या होगी? ऋषि दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश में यही तो जानकारी इस्लाम के शिक्षाविदों से लेना चाह रहे हैं। अब प्रश्नों का जवाब देने के बजाय कोई कहे कि सत्यार्थ प्रकाश में क्यों लिखा,उसका तो ईश्वर ही मालिक है। एक बात और भी जानने की है, ऊपर लिख आया हूँ शानेनुजूल को, कि आयत उतारने का कारण क्या है। इसका मतलब भी यह निकला- अल्लाह सर्वज्ञ नहीं है, जो ऋषि ने अनभिज्ञ लिखा है। अगर कारण नहीं होता, तो अल्लाह आयत नहीं उतरते। कारण हो सकता है, यह ज्ञान कारण से पहले अल्लाह को नहीं था।

कुरान में ही अल्लाह ने कहा- ला तकर बुस्सलाता व अनतुम सुकाराआ। अर्थ- न पढ़ो नमाज जब कि तुम शराब की नशे में हो।

अर्थात् शराब पीकर नमाज नही पढ़नी चाहिये।

अब इसका शाने नुजूल देखें, एक सहाबी (मुहमद साहब का साथी) शराब पीकर नमाज पढ़ा रहे थे, नशे की दशा में कुरान की आयतों को पढ़ने का क्रम भंग किया, तो दूसरे ने हजरत से शिकायत की, तो अल्लाह ने यह आयात जिब्राइल के माध्यम से उतारी।

यह आयत उतरते ही सभी अरबवासी जो घर-घर शराब बनाते थे, सब ने शराब बहादी नालाओं में शराब बहने लगा, आदि।

इससे यह पता चला कि शराब पीने से नशा होता है, यह ज्ञान अल्लाह को नहीं था वरना शराब तो प्रथम से ही हराम होना था? अगर वह सहाबी कुरान पढ़ने का क्रम नशा में भंग न करते, तो अल्लाह को यह आयत उतारना ही नहीं पड़ता।

ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश में यही तर्क पूर्ण बातें की हैं, अगर कोई अक्ल में दखल न दे, या अक्ल में ताला डालना चाहे तो ऋषि दयानन्द की क्या गलती है? दयानन्द ने साफ कहा है कि हठ और दुराग्रह को छोड़ मानव मात्र का भलाई जिससे हो, सत्य के खातिर काम करना चाहिये, मानव बुद्धि परख होने हेतु प्रत्येक कार्य को बुद्धि से करना चाहिये, क्योंकि इसी का ही नाम मानवता है। सुरा 2 आयत 87 को अगर ध्यान से पढ़ते तो शायद आक्षेप न कर पाते, क्योंकि सत्यार्थ प्रकाश में ऋषि दयानन्द ने कुरान में कही गई बातों को ज्ञान विरुद्ध तथा सृष्टि नियम विरुद्ध सिद्ध किया है। हजरत मूसा को अल्लाह ने अगर किताब दी, उसमें क्या कमी थी जो पुनः ईसा को अलग किताब देनी पड़ी? उससे पहले दाऊद को भी किताब दी थी, उसमें कौन-सी बातों को अल्लाह कहना भूल गये थे, जो अन्तिम में कुरान के रूप में हजरत मुहमद को अल्लाह ने दिया?

अल्लाह का ज्ञान पूर्ण है अथवा अधूरा? क्योंकि परमात्मा का ज्ञान पूर्ण होना आवश्यक है और सार्वकालिक, सार्वदेशिक, सार्वभौमिक होना चाहिये। कुरान इसमें खरा नहीं उतरता। हजरत मूसा ने मौजिजा दिखाया और नबिओं ने भी मौजिजा दिखाया, मौजिजा का अर्थ है चमत्कार। अगर चमत्कार तब होते थे, तो अब क्यों नहीं?

अगर चमत्कार से हजरत मरियम कुँवारी अवस्था में हजरत ईसा को जन्म देना मान लिया जाय, तो क्या सृष्टि नियम विरुद्ध नहीं होगा? कोई मेडिकल साइंस का जानने वाला इसे सही ठहरा सकता है? इसे अल्लाह ने सुरा अबिया-आयत-88 में क्या कहा, देखें- वल्लाति अहसनत फरजहा फनाफखना फीहा मिर रूहिना वज अलनाहा वबनहा

– कि अल्लाह ने मरियम के शर्मगाह (गुप्तइन्द्रियों) में फूँक मार दिया और मरियम गर्भवती हो गई।

कोई भी बुद्धिमान इस बात को ईश्वरीय ज्ञान तथा ईश्वरीय कार्य कैसे मान सकते हैं? ऋषि दयानन्द ने लिखा है, भोले-भाले लोगों को बहकाया गया है।

अगर ऋषि दयानन्द अपने कार्यकाल में इस पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश को न लिखते, तो आर्य जाति को बचने का रास्ता बन्द था। सारा भारत कुरान का मानने वाला बन जाता, या बलात् बना दिया जाता। दयानन्द का बहुत बड़ा उपकार है इस पुस्तक को लिखने का।

गुरुदत्त विद्यार्थी ने कहा- अगर सारी सपत्ति बेचकर भी सत्यार्थ प्रकाश खरीदना पढ़े तो भी इसका मूल्य कम है। मैं इसे अवश्य खरीदता।

– वेद सदन, अबोहर, पंजाब-152116

देखें तो पण्डित लेखराम को क्या  हुआ? प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

 

पण्डितजी के बलिदान से कुछ समय पहले की घटना है।

पण्डितजी वज़ीराबाद (पश्चिमी पंजाब) के आर्यसमाज के उत्सव

पर गये। महात्मा मुंशीराम भी वहाँ गये। उन्हीं दिनों मिर्ज़ाई मत के

मौलवी नूरुद्दीन ने भी वहाँ आर्यसमाज के विरुद्ध बहुत भड़ास

निकाली। यह मिर्ज़ाई लोगों की निश्चित नीति रही है। अब पाकिस्तान

में अपने बोये हुए बीज के फल को चख रहे हैं। यही मौलवी

साहिब मिर्ज़ाई मत के प्रथम खलीफ़ा बने थे।

पण्डित लेखरामजी ने ईश्वर के एकत्व व ईशोपासना पर एक

ऐसा प्रभावशाली व्याख्यान  दिया कि मुसलमान भी वाह-वाह कह

उठे और इस व्याख्यान को सुनकर उन्हें मिर्ज़ाइयों से घृणा हो गई।

पण्डितजी भोजन करके समाज-मन्दिर लौट रहे थे कि बाजार

में एक मिर्ज़ाई से बातचीत करने लग गये। मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद

अब तक कईं बार पण्डितजी को मौत की धमकियाँ दे चुका था।

बाज़ार में कई मुसलमान इकट्ठे हो गये। मिर्ज़ाई ने मुसलमानों को

एक बार फिर भड़ाकाने में सफलता पा ली। आर्यलोग चिन्तित

होकर महात्मा मुंशीरामजी के पास आये। वे स्वयं बाज़ार

गये, जाकर देखा कि पण्डित लेखरामजी की ज्ञान-प्रसूता, रसभरी

ओजस्वी वाणी को सुनकर सब मुसलमान भाई शान्त खड़े हैं।

पण्डितजी उन्हें ईश्वर की एकता, ईश्वर के स्वरूप और ईश की

उपासना पर विचार देकर ‘शिरक’ के गढ़े से निकाल रहे हैं।

व्यक्ति-पूजा ही तो मानव के आध्यात्मिक रोगों का एक मुख्य

कारण है।

यह घटना महात्माजी ने पण्डितजी के जीवन-चरित्र में दी है

या नहीं, यह मुझे स्मरण नहीं। इतना ध्यान है कि हमने पण्डित

लेखरामजी पर लिखी अपनी दोनों पुस्तकों में दी है।

यह घटना प्रसिद्ध कहानीकार सुदर्शनजी ने महात्माजी

के व्याख्यानों  के संग्रह ‘पुष्प-वर्षा’ में दी है।

 

ईश्वरीय ज्ञान: प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

 

अपनी मृत्यु से पूर्व स्वामी रुद्रानन्द जी ने ‘आर्यवीर’ साप्ताहिक

में एक लेख दिया। उर्दू के उस लेख में कई मधुर संस्मरण थे।

स्वामीजी ने उसमें एक बड़ी रोचक घटना इस प्रकार से दी।

 

आर्यसमाज का मुसलमानों से एक शास्त्रार्थ हुआ। विषय था ईश्वरीय

ज्ञान। आर्यसमाज की ओर से तार्किक शिरोमणि पण्डित श्री रामचन्द्रजी

देहलवी बोले। मुसलमान मौलवी ने बार-बार यह युक्ति दी कि

सैकड़ों लोगों को क़ुरआन कण्ठस्थ है, अतः यही ईश्वरीय ज्ञान है।

पण्डितजी ने कहा कि कोई पुस्तक कण्ठस्थ हो जाने से ही ईश्वरीय

ज्ञान नहीं हो जाती। पंजाबी का काव्य हीर-वारसशाह व सिनेमा के

गीत भी तो कई लोग कण्ठाग्र कर लेते हैं। मौलवीजी फिर ज़ी यही

रट लगाते रहे कि क़ुरआन के सैकड़ों हाफ़िज़ हैं, यह क़ुरआन के

ईश्वरीय ज्ञान होने का प्रमाण है।

 

श्री स्वामी रुद्रानन्दजी से रहा न गया। आप बीच में ही बोल

पड़े किसी को क़ुरआन कण्ठस्थ नहीं है। लाओ मेरे सामने, किस

को सारा क़ुरआन कण्ठस्थ है।

 

इस पर सभा में से एक मुसलमान उठा और ऊँचे स्वर में

कहा-‘‘मैं क़ुरआन का हाफ़िज़ हूँ।’’

स्वामी रुद्रानन्दजी ने गर्जकर कहा-‘‘सुनाओ अमुक आयत।’’

वह बेचारा भूल गया। इस पर एक और उठा और कहा-‘‘मैं

यह आयत सुनाता हूँ।’’ स्वामीजी ने उसे कुछ और प्रकरण सुनाने

को कहा वह भी भूल गया। सब हाफ़िज़ स्वामी रुद्रानन्दजी के

सज़्मुख अपना कमाल दिखाने में विफल हुए। क़ुरआन के ईश्वरीय

ज्ञान होने की यह युक्ति सर्वथा बेकार गई।

 

पूर्वजों का मनन-चिन्तन व युक्तियाँः- राजेन्द्र जिज्ञासु

  माननीय आचार्य सोमदेव जी की पुस्तक ‘जिज्ञासा-समाधान’ के प्रथम भाग का प्राक्कथन लिखते हुए मैंने आर्यसमाज की शंका-समाधान की परपरा की ओर आर्यों का ध्यान खींचा है। इस परपरा के जनक महर्षि दयानन्द जी महाराज हैं। इस परपरा को अखण्ड बनाना हमारा पवित्र कर्त्तव्य है। पं. गुरुदत्त जी, पं. लेखराम जी, स्वामी श्रद्धानन्द जी, पं. गणपति शर्मा, पं. धर्मभिक्षु, पं. रामचन्द्र देहलवी, पं. नरेन्द्र जी आदि ने जान जोखिम में डालकर इस परपरा को अखण्ड बनाया है। इस स्वर्णिम इतिहास में हम भी नये-नये अध्याय जोड़ें।

मैंने प्राक्कथन में सुझाया है कि प्रत्येक आर्य वक्ता व लेखक को शंका-समाधान, प्रश्नोत्तर करते हुए पूर्वजों का नाम ले-लेकर महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उनके द्वारा दिये गये मौलिक उत्तर जोड़ने चाहिए। पूर्वजों के साहित्य की सूचियाँ देने से कुछ न बनेगा। बहुत प्रामाणिकता से उनके दिये उत्तर उद्धृत किये जायें। कुछ उदाहरण देते हैं-

  1. 1. पं. लेखराम जी ने शैतान द्वारा पाप करवाने पर लिखा है- ‘‘वास्तव में शैतान को पाचन वटी मानकर पापों से बचना छोड़ दिया।’’
  2. 2. ऋषि ने खाने-पीने से बहिश्ती मल विसर्जन करेंगे तो दुर्गंधि व प्रदूषण होगा तो गंदगी मल-मूत्र कौन उठायेगा? यह प्रश्न किया तो मौलाना सना उल्ला ने लिखा कि यह बेगार काफ़िरों से ली जायेगी। इस पर पं. चमूपति जी ने लिखा- ‘‘तो क्या दोज़ख (नरक) भी उनके साथ बहिश्त में जायेगा अथवा स्वल्प काल के लिये वे नरक से छुटकारा पायेंगे?’’
  3. 3. बहिश्त में जब सुख-सुविधायें, खाने के पदार्थ, संसार जैसे होंगे तो स्वास्थ्य रक्षा के लिए परिश्रम, पुरुषार्थ करने की क्या व्यवस्था होगी? पं. चमूपति जी का यह प्रश्न कितना स्वाभाविक व मौलिक है!

अपने सिद्धान्तों की पुष्टि मेंःहमारे विद्वान् अवैदिक मान्यताओं व पाखण्ड-खण्डन के लिए अच्छे-अच्छे लेख व पुस्तकें लिखते हैं परन्तु अब एक चूक हमारे लेखक कर रहे हैं। अन्य मतों की वेद विरुद्ध बातों की तो चुन-चुन कर चर्चा करते हैं, अवैदिक मतों के साहित्य में वैदिक सिद्धान्तों के पक्ष में लिखे गये प्रमाण अथवा वैदिक धर्म की मान्यताओं की जो रंगत बढ़ रही है, उसका प्रचार नहीं किया जाता। पुराने आर्य विद्वानों से हम यह भी सीखें यथा सर सैयद अहमद लिखते हैं-

(1) ‘‘पहले आदम को केवल वृक्षों के फल खाने की आज्ञा दी गई। पशुओं के मांस के खाने की अनुमति नहीं थी।’’

(2) ‘परोपकारी’ में ‘तड़प-झड़प’ में अमरीका से प्रकाशित नये बाइबिल से प्रमाण दिये गये थे कि सृष्टि की उत्पत्ति के वर्णन में अब शाकाहार का ही आदेश हैं। माँसाहार का हटा दिया गया है।

(3) आदि सृष्टि में अनेक युवा पुरुष व स्त्रियाँ पैदा की गई, बाइबिल में यह वर्णन पढ़कर ऋषि की जयकार क्यों नहीं लगाई जाती। ऐसे-ऐसे प्रमाण खोज-खोज कर हम सब दें।

(4) ब्रह्माकुमारी वाले बार-बार ईश्वर की सर्वव्यापकता का खण्डन करते हुए कई कुतर्क देते हैं। इससे ईश्वर मल-मूत्र में भी मानना पड़ेगा। जहाँ क्रिया होगी, वहाँ कर्त्ता होगा ही। जहाँ कर्त्ता होगा, वहीं क्रिया होगी। सृष्टि में कहाँ गति नहीं। परमाणु में भी विज्ञान गति मानता है। वेद भी डंके की चोट से यही कहता है। जगत् शब्द ही गति का बोध करवाता है फिर ईश्वर की सर्वव्यापकता में संशय क्या रहा? क्या गंदे नालों में कीड़े-मकोड़े पैदा नहीं होते? इन्हें क्या ईश्वर नहीं बनाता? ईश्वर का नाक ही नहीं, उसे दुर्गंधि क्यों आयेगी? उसका शरीर ही नहीं (अकायम) उसे मल क्यों चिपकेगा? ये कुछ संकेत यहाँ दिये हैं। मैं तो पूर्वजों की इस शैली को ध्यान में रखता हूँ। आगे कभी फिर इस पर लिखा जावेगा।