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शादी के लिए इस्लामी दुआ

 

जब व्यक्ति अपने कर्म पर विश्वास न कर जादू की तरह बिना कर्म किये फल की प्राप्ति करना चाहता है तो उसे कुछ ऐसे लोगों का सहारा मिलता है जो उसे उसके सब्ज बागों की दुनिया में सफ़र कराते हैं और उसे अपना मुरीद बनाये रखना चाहते हैं. ऐसे व्यक्ति या तो धन लाभ के लिए ऐसा करते हैं या कुछ अन्य कारण जिनकी वजह से ये ऐसे व्यक्तियों को सत्य से परिचित न करवा कर उन्ही की खयाली दुनिया के सच होने का उनको आभास कराते रहते हैं. प्राय सभी सम्प्रदायों में ऐसे लोग मिल जाते हैं.

ऐसा ही एक उदाहरण इस्लाम की मान्यताओं में से है जो दुआ के माध्यम से शादी करवाने के लिए विश्वास दिलाते हैं . आइये इस इस्लामी अजीबोगरीब जो उनकी नज़र में विश्वस्त और कामियाबी अमल है पर नज़र डालते हैं :-

जिनकी शादी न हो रही हो उनके लिए एक विश्वस्त और कामियाब अमल.

जिस लड़की – लड़के की शादी में किसी तरह की कुछ रुकावटें पड़ रही हो या रिश्ता कहीं से नहीं आ रहा हो और अगर आता हो तो ख़त्म हो जाता हो तो उस बच्ची के लिए , बच्चे की मन को चाहिए की डॉ रक्अत नमाज सुबह की तरह पढ़ कर दुरुद मुहम्मद (स.) व आके मुहम्मद अलैहुमुस्स्लाम पर पहले और आखिर में पढने के बाद पांच तसबीहें “तसबीह इ फ़ातिम :” इस तरह से पढ़े पहले ३३ बार सुबाहनल्लाह , ३३ बार अल्ह्म्दो लिल्लाह और फिर ३३ बार अल्लाहो अकबर उसके बाद सूरा ए ताहा व तवासें यासीन व हमीमऐन  सीन काफ को पढके सोने पीटने के साथ इमामे जमान : अलैहिस्सलाम के वास्ते से दुआ करे इंशाअल्लाह मुराद जरुर पूरी होगी . यह अमल कुछ दिनों तक जारी रखें.

मालूम होना चाहिए कि आसमान पर फरिश्तों उअर हूरों ने खातून जन्नत सलामुल्लाहे अलैहा और अमीरुल मोमिनीन हजरत अली बिन अबी तालिब अलैहिस्सलाम की शादी के समय यह दुआ पढी थी (बिहारुल अनवार भाग ३ , पृष्ठ १९, बहावल इ अहबाब जनतरी , पृष्ट ५०,५१ लेखक “तसबीह इ फातीम: के फजाएल “ अहबाब पब्लिशर्स लखनऊ १९९३ ई १४१३-१४ हि . इस्लाम और सेक्स पृष्ट ६

 

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