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इस्लाम में विचित्र विवाह : मुतअ: ( सामयिक विवाह )

 

विवाह की एक व्यवस्था समाज में प्रारंभ से रही है .वैदिक व्यवस्था में १६ संस्कारों में से विवाह संस्कार भी एक प्रमुख संस्कार है. हमारी सामाजिक व्यवस्था में विवाह को धार्मिक संस्कार मानकर पूरा किया जाता है . वैदिक काल में वैवाहिक जीवन में स्त्री का एक महत्व पूर्ण योगदान रहा है . वैदिक मन्त्रों में स्त्री के संचालक, वकील सेनापति होने का वर्णन पाया जाता है यथा :

अहं केतुरहं मूर्धाहमुग्रा विवाचनी । ममेदनु क्रतुं पतिः सेहानाया उपाचरेत् ॥ ऋग्वेद १०,१५९, २

अर्थात मैं समाज को मार्ग दिखाने वाली पताका हूँ में समाज का सिर  हूँ मैं बड़ा अच्छा  विवाद करने वाली वकील हूँ .

 

मम पुत्राः शत्रुहणोऽथो मे दुहिता विराट् । उताहमस्मि संजया पत्यौ मे श्लोक उत्तमः ॥ ऋग्वेद १०,१५९, ३

 

गत मन्त्र की आदर्श माता यह कह पाती है कि मेरे पुत्र शत्रुओं को मारनेवाले हैं, ये कभी शत्रुओं से अभिभूत नहीं होते। और निश्चय से मेरी पुत्री विशिष्टरूप से तेजस्विनी होती है। और मैं सम्यक् शत्रुओं को जीतनेवाली होती हूँ। मेरे पति में उत्कृष्ट यश होता है। मेरे पति भी वीरता के कारण यशस्वी होते हैं। माता-पिता की वीरता के होने पर ही सन्तानों में भी वीरता आती है। माता-पिता का जीवन यशस्वी न हो तो सन्तानों का जीवन कभी यशस्वी नहीं हो सकता।

 

वहीं जब हम इस्लाम की व्यवस्थाओं पर नजर डालें तो स्त्री केवल एक भोग का साधन प्रतीत होती है . इस सम्बन्ध में डॉ. मोहम्मद तकी अली आबिदी (पी एच् डी फ़ारसी लखनऊ विश्वविद्यालय ) के विचारों पर इस बारे पर  गौर फरमाते हैं :

शादी का उद्देश्य इस्लामी नज़रिए से

शादी (हमेशा के लिए हो या सामयिक ) का बुनियादी उद्देश्य सेक्सी इच्छा की पूर्ति ही है और औलाद होना सेक्सी इच्छा की पूर्ति का नतीजा है जो दुसरे नंबर पर आती है यही कारण है की सेक्सी इच्छा की पूर्ति न होने पर शादी का उद्देश्य ही खतम हो जाता है लेकिन औलाद के बिना ऐसा नहीं होता और मनुष्य कभी कभी केवल सेक्सी इच्छा की पूर्ति की आवश्यकता महसूस करता है लेकिन संतान की इच्छा नहीं करता . इसलिए इस्लाम धर्म ने पत्नी न होने या पत्नी से पूरी तरह इच्छा पूर्ति न होने पर सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए मुतअ : (सामयिक शादी ) को जायज करार दिया है .

मुतअ : (सामयिक शादी ) जायज है : मौलवी डॉ. मोहम्मद तकी अली आबिदी साहब फरमाते हैं कि  मुतअ के लिए निकाह पढ़ा जाता है और उसके बाद औरत आदमी पर हलाल हो जाती और जिसके बाद दोनों स्त्री और पुरुष आपस में किसी भी तरह से आनंद उठा सकते हैं  इसे निकाह इ मुवक्क्ती (सामयिक निकाह अर्थात मुतअ : ) कहते हैं . मौलवी साहब फरमाते हैं की इस निकाह में समय सीमा तय होतीहै और शर्त भी लगाई जा सकती है अर्थात स्त्री पुरुष जब तक साथ रहना चाहें रह सकते हैं और जब समय सीमा समाप्त हो जाये उनका रिश्ता ख़तम हो जायेगा .

मुतअ : (सामयिक शादी ) जवानों को पवित्र रखने का साधन : मौलवी तकी अली आबिदी साहब फरमाते हैं कि मनुष्य को कभी कभी ऐसे हालात से गुजरना पढता है कि जिनमें निकाह संभव नहें होता और वह बलात्कार या सामयिक शादी में से किसी एक को अपनाने पर मजबूर हो जाता है इसलिए सामयिक शादी महत्वपूर्ण है

इस्लाम में मुतअ : बड़ी नेअमत है और जवानों की पाकदामनी और परहेजगारी को बाकी रखने और हरामकारी से बचाए रखने में मददगार सभीत होता है

( अब ये तो पाठक ही निश्चित करें कि कैसी परहेजगारी और हरामकारी से बचा जा रहा है J )

कुरआन में मुतअ का समर्थन :

 

“जिन औरतों को तुमने मुतअ किया हो तो उन्हें जो महर तय किया हो दे दो और महर के तय होने के बाद आपस में (कमी व ज्यादती पर ) राजी हो जाओ तो इसमें तुम पर कुछ गुनाह नहीं है . बेशक खुदा (हर चीज का ) जानकार और मसलहतों का पहचानने वाला है ( सूरा ए  निसा आयत २४ )

उपरोक्त आयत मुतअ के जाएज और हलाल होने पर डाली है जो मनुष्य को गुमराही और बदकारी से बचा सकती है . कुरान में आगे मिलता है :

 

“ जो शख्स मुतअ करे आयु में एक बार वह स्वर्ग के लोगों में से है और उस पर पाप नहीं किया जायेगा जो स्त्री और पुरुष मुतअ करें मगर स्त्री पाकदामन हो मोमिन हो “

मुतअ के बारे में जाएज होने का सुबूत इससे भी मिलता है की रसूल के ज़माने के बाद रसूल के असहाब (हजरत अबू बकर और हजरत उमर ) की हुकूमत के दौर में भी मुतअ होता रहा .

मुसलामनों में मुतअ को लेके भिन्न भिन्न मत हैं . मुसलमानों का एक पक्ष मुतअ को जायज मानता है.

मुतअ बलात्कार रोकने का साधन

हजरत अली लिखते हैं : अगर हजरत उमर लोगों को मुतअ के लिए मना  न करते तो क़यामत तक अलावा शकी (निर्दय ) और बदबख्त ( अभागा) के कोई जिना अर्थात बलात्कार नहीं करता –सूरा ए निशा आयत -२४ का हाशिया मौलाना फरमान अली .

अर्थात हजरत अली के नजदीक मुतअ जिना अर्थात बलात्कार और हरामकारी से बचाने वाली चीज है और मुतअ को रोकना ठीक नहीं है क्योंकि हजरत अली इसे रोकने को ठीक नहीं समझते क्योंकि मुतअ प्राकृतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए धार्मिक और जाएज काम है .

( भगवान् बचाए ऐसे पाक काम से J )

लिव इन रिलेशन शिप मुतअ प्रथा से मिलता जुलता

मौलवी तकी अली आबिदी साहब फरमाते हैं कि आने वाली जिन्दगी को खुशगवार बनाने के लये ही अब योरोप में बिना निकाह के सेक्सी सम्बन्ध बनाये जाते हैं . इन सेक्सी सम्बन्धों का तात्पर्य यह होता है की निकाह से पूर्व ही आने वाली शादी की जिन्दगी के खुशगवार होने का यकीन कर लिए जाये और इस तरह की शादीयों को आरजी (अस्थायी ) आजमाइशी (परख की ) या वक्ती शादी का नाम दिया जाता है . इससे सुबूत मिलता है इस इस तरक्की के युग में गैर कानूनी और नाजाएज कामोंसे रोकने और प्राकृतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए सामयिक शादी को जगह दी जा रही है जो काफी हद तक इस्लामी (अर्थात प्रकृति के अनुसार धर्म के ) कानून मुतअ से मिलती जुलती हैं इसलिए तो हजरत अली ने कहा:

हजरत अली लिखते हैं : अगर हजरत उमर लोगों को मुतअ के लिए मना  न करते तो क़यामत तक अलावा शकी (निर्दय ) और बदबख्त ( अभागा) के कोई जिना अर्थात बलात्कार नहीं करता –सूरा ए निशा आयत -२४ का हाशिया मौलाना फरमान अली .

अब पाठक गण स्वयं निर्णय करें मुत्ता क्या है?

इस्लामी निकाह का यह तरीका कहाँ तक ठीक और नैतिकता की कसौटी पर खरा उतरता है ?