Category Archives: Pra Rajendra Jgyasu JI

ऋषि-जीवन पर विचारः- राजेन्द्र जिज्ञासु

ऋषि-जीवन पर विचारः-
परोपकारी में तो समय-समय पर ऋषि-जीवन की विशेष महत्त्वपूर्ण शिक्षाप्रद घटनाओं को हम मुखरित करते ही रहते हैं, सभा द्वारा ऐसी कई पुस्तकें भी प्रकाशित प्रचारित हो रही हैं। ऋषि-जीवन का पाठ करिये। चिन्तन करिये। ‘‘इसे पुस्तक मानकर मत पढ़ा करें। यह यति योगी, ऋषि, महर्षि का जीवन है।’’ यह पूज्य स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी का उपदेश है। क्या कभी जन-जन को सुनाया बतायाः-
1. ऋषि के सबसे पहले और सबसे बड़े भक्त, जो अन्त तक सेवा करते रहे, वे छलेसर के ठाकुर मुकन्दसिंह, ठा. मुन्नासिंह व ठाकुर भोपालसिंह जी थे।
2. अन्तिम वेला में सबसे अधिक सेवा ठाकुर भोपालसिंह जी ने की। ला. दीवानचन्द जी ने लिखा है कि जोधपुर में जसवन्तसिंह, प्रतापसिंह और तेजसिंह एक बार भी पता करने नहीं पहुँचे थे।
3. ऋषि जीवन चरित्र में जिस परिवार के सर्वाधिक सदस्यों की बार-बार चर्चा आती है, वह छलेसर का यही कुल था। स्वदेशी का बिगुल ऋषि ने छलेसर से ही फूँका था। आर्यो! जानते हो कि ऊधा ठाकुर भोपाल सिंह जी का पुत्र था।
4. ऋषि के पत्र-व्यवहार में इसी परिवार की-इसी त्रिमूर्ति की बार-बार चर्चा है, दूसरा ऐसा परिवार मुंशी केवलकृष्ण जी का हो सकता है, परन्तु उनके नाम हैं, प्रसंग थोड़े हैं।
5. आर्यो! जानते हो दिल्ली दरबार में ऋषि के डेरे की व्यवस्था छलेसर वालों ने ही की थी। ठा. मुकन्दसिंह आदि सब दिल्ली में महाराज के साथ आये थे।
6. हमारे मन्त्री ओम्मुनि जी की उत्कट इच्छा थी। हम यत्नशील थे। लो देखो! कूप ही प्यासे के पास आ गया। ठाकुर मुन्नासिंह जी की वंशज डॉ. अर्चना जी इस समय ऋषि उद्यान में पधारी हैं। आप गुरुकुल में दर्शन पढ़ रही हैं। सपूर्ण आर्यजगत् के लिए डॉ. अर्चना की यह ऋषि भक्ति व धर्म भाव गौरव का विषय है।

पादरियों की शंका या आपत्ति- राजेन्द्र जिज्ञासु

पादरियों की शंका या आपत्ति :-

तीनों पदार्थों को अनादि माना जावे तो फिर ईश्वर का जीवन व प्रकृति पर नियन्त्रण कैसे हो सकता है? इस आपत्ति का कई बार उत्तर दिया जा चुका है। आयु के बड़ा-छोटा होने से नियन्त्रण नहीं होता। अध्यापक का शिष्यों पर, बड़े अधिकारी का अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियन्त्रण अपने गुणों व सामर्थ्य से होता है। प्रधानमन्त्री युवक हो तो क्या आयु में बड़े नागरिकों से बड़ा नहीं माना जाता? उसका आदेश सबके लिये मान्य होता है, अतः यह कथन या आपत्ति निरथर्क है।

इसी प्रकार जीव की कर्म करने की स्वतन्त्रता के आक्षेप को समझना चाहिये। विकासवाद की दुहाई देने वालों का यह आक्षेप भी व्यर्थ है। जब जड़ प्रकृति में प्राकृतिक निर्वाचन का नियम कार्य करता है, तो निर्वाचन की स्वतन्त्रता तो आपने मान ली। निर्वाचन वही करेगा, जो स्वतन्त्र है। मनोविज्ञान का सिद्धान्त कहता है घोड़े को आप जल के पास तो ले जा सकते हैं, परन्तु जल पीने के लिए वह बाधित नहीं किया जा सकता। इसमें वह स्वतंत्र है। जीव की स्वतन्त्रता तो व्यवहार में पूरा विश्व मान रहा है। वे दिन गये जब सब अल्लाह की इच्छा चलती थी या शैतान दुष्कर्म करवाता था, फिर तो कोई मनुष्य न पापी माना जा सकता है और न ही महात्मा।

पण्डित लेखराम ने कहाँ लिखा है? :राजेन्द्र जिज्ञासु

पण्डित लेखराम ने कहाँ लिखा है?

एक बन्धु ने पूछा है- क्या पुस्तक मेले में आपसे किसी ने चाँदापुर शास्त्रार्थ विषय में पण्डित लेखराम का प्रमाण माँगा? मैंने निवेदन किया कि बौद्धिक व्यायाम करके प्रसिद्धि पाना और बात है, सामने आकर शंका निवारण करवाना, गभीरता से सत्य को जानना दूसरी बात है। कोई पूछता तो मैं बता देता कि पं. लेखराम जी की ‘तकजीबे बुराहीन अहमदिया’ के आरभिक पृष्ठों पर ही मेरे कथन की पुष्टि में स्पष्ट शदों में लिखा पैरा मिलेगा। माता भगवती जब ऋषि जी से मुबई में मिली थी, तब वह 38 वर्ष की थी। यह कृपालु तो उसे ‘लड़की’ बनाये बैठे हैं। इन्होंने सनातनी विद्वान् पं. गंगाप्रसाद का ऋषि महिमा में लिखा अवतरण, हजूर जी महाराज लिाित ऋषि-जीवन, निन्दक जीयालाल लिखित ऋषि का गुणगान और मिर्जा कादियानी द्वारा महर्षि की हत्या या बलिदान के प्रमाण तो न जाने और न उनका लाभ उठाया। उनको एक काम मिला है, करने दीजिये।

हिन्दू संस्कृति-हिन्दू धर्म व हिन्दू जाति :राजेन्द्र जिज्ञासु

हिन्दू संस्कृति-हिन्दू धर्म व हिन्दू जातिः-

देशभर में जातिवादी घातक आन्दोलन चल रहे हैं। घर वापसी की बात करके हिन्दू जाति के वाकशूर रक्षक घरों में जा बैठे हैं। जाति बन्धन तोड़ने व शुद्धि के लिये क्या किया? आर्यसमाज से कुछ सीखते तो कुछ जाति हित होता। आर्यसमाज में भी इनके भाषण सुनकर एक ने शुद्धि आन्दोलन के कर्णधारों के कुछ नाम उगलते हुए किसी ‘ऋषिदेव’ का नाम लिखा बताते हैं। आर्यसमाज में ऋषि देव नाम का कोई व्यक्ति शुद्धि का प्रचारक नहीं रहा। कल्पित इतिहास का क्या लाभ। मेहता जैमिनि, पं. भोजदत्त, स्वामी स्वतन्त्रानन्द, पं. शान्तिप्रकाश, पं. चमूपति, पं. नरेन्द्र जी हैदराबाद तो इन अति उत्साही लेखकों को भूल गये या पता नहीं।

टी.वी. के भगवानों की आरतियाँ व महिमा सुन-सुनकर रोना आता है। देश में बेकारी फैली है। भगवानों के मुकट व सिंहासनों के समाचार पढ़िये। भगवान बढ़ रहे हैं और उनकी सपदा बढ़ रही है। जातीय रोग बढ़ रहे हैं। आर्यसमाज राजनेताओं को महिमा मण्डित करने के लिए समेलन सजाता रहता है। कुछ वक्ता सरकारी भार बनकर मन्त्रियों का गुणगान करके आर्यसमाज का अवमूल्यन कर रहे हैं।

तुहें याद हो कि न याद होः- राजेन्द्र जिज्ञासु

राजेन्द्र जिज्ञासु
तुहें याद हो कि न याद होः-

आर्य समाज को याद हो, कि न याद हो यह सेवक गत आधी शताब्दी से यह याद दिलाता आ रहा है कि उर्दू साहित्य के एक मूर्धन्य कवि श्री दुर्गासहाय सरूर आर्यसमाज जहानाबाद के मन्त्री थे। आपके गीतों को गाते-गाते देश सेवक फाँसियों पर चढ़ गये। आपने देश, जाति व वैदिक धर्म पर उच्च कोटि की प्रेरणाप्रद पठनीय कवितायें लिखीं। आपके निधन पर महरूम जी की लबी कविता का एक पद्य भारत व पाकिस्तान में किसी बड़े व्यक्ति के मरने पर वक्ता पत्रकार लगभग एक शतादी से लिखते व बोलते चले आ रहे हैं। पं. लेखराम जी के बलिदान पर लिखी आपकी कविता सुनकर आपके कविता गुरु मौलाना ने कहा था, ‘‘तू एक दिन मेरा नाम रौशन करेगा।’’ मैं 45 वर्ष से यह कविता खोज रहा था। किसी ने सहयोग न किया। देश भर में घूम-घूम कर आर्य पत्रों से ‘सरूर’ जी की कई कवितायें खोज पाया। अब आर्य समाज कासगंज के पुस्तकालय से राहुल जी और कई कवितायें ले आये हैं। श्री राम, ऋषि दयानन्द, गऊ, माता सीता, विधवा, अनाथ, मातृभूमि आदि पर हृदय स्पर्शी ऐसी कवितायें प्राप्त हुई हैं, जिनमें डॉ. इकबाल ने प्रेरणा ली। आज से यह साहित्यिक कुली इनका देवनागरी में सपादन करना आरभ कर रहा हूँ। इसे एक जाति भक्त प्रकाशित प्रसारित करने को आगे आयेगा। शेष फिर लिखा जावेगा।

त्रैतवाद पर मौलिक तर्कः- राजेन्द्र जिज्ञासु

हमने पं. शान्तिप्रकाश जी आदि विद्वानों के आर्य सिद्धान्तों पर प्रमाण संग्रह के मोटे-मोटे रजिस्टर देखे। अब मौलिक सैद्धान्तिक साहित्य की चर्चा समाजों में नाम-नाम की है। श्री डॉ. हरिश्चन्द्र जी की एक रोचक अंग्रेजी पुस्तक के कुछ पृष्ठ मैंने अपनी 10-11 वर्षीया नातिन मनस्विनी को पढ़ाये। उसे पुस्तक रोचक व पठनीय लगी। उसे स्कूल में बोलने को कहा गया। उसने डॉ. हरिश्चन्द्र जी की पुस्तक के आधार पर त्रैतवाद पर बोलकर वाह-वाह लूट ली। उसने कहा-संसार का कार्य-व्यापार व्यवहार सब तीन से ही चलता है-ग्राहक चाहिये, माल चाहिये और विक्रे ता चाहिये। एक के न होने से व्यापार नहीं चल सकता। रोगी, डॉक्टर व औषधियों से ही अस्पताल चलता है। सिखों के ग्राम में नाई और नंगे पैर घूमने वालों के ग्राम में बाटा की दुकान क्या चलेगी? इसी प्रकार से आप सोचिये तो पता चलेगा कि तीन के होने से ही संसार चलेगा।
इसी प्रकार सृष्टि की रचना तीन से ही सभव है। सृष्टि रचना का जिसमें ज्ञान हो वह सत्ता (प्रभु) चाहिये, जिसके लिये सृष्टि की उपयोगिता या आवश्यकता है, वह ग्राहक (जीव) चाहिये तथा जिससे सृष्टि का सृजन होना है, वह माल (प्रकृति) चाहिये। डॉ. हरिश्चन्द्र जी की रोचक पुस्तक से यह पाठ उसे मैंने कभी स्वयं पढ़ाया था। ऐसे मौलिक तर्कों व लेखकों को मुखरित करिये।
श्री पं. रामचन्द्र जी देहलवी कहा करते थे- नीलामी 1,2 व 3 पर छूटती है। दौड़ 1,2 व 3 पर ही क्यों आरभ होती है? वह कहा करते थे, अनादि काल से तीन अनादि पदार्थों का मनुष्य जाति को यह संस्कार दिया जाता है। दौड़ या नीलामी तीन से आगे 5,7 व दस पर क्यों नहीं होती? अब सस्ते दृष्टान्त व चुटकुले सुनाकर वक्ता अपना समय पूरा करते हैं।

रहमान व रहीम वाला तर्कः: राजेन्द्र जिज्ञासु

रहमान व रहीम वाला तर्कः-
अप्रैल प्रथम 2016 के अंक में श्रीयुत पं. रणवीर जी ने विश्व पुस्तक मेले हैदराबाद में मुस्लिम मौलवियों के इस प्रचार अभियान को विफल बनाने सबंधी उनका लेख पढ़ लिया होगा। अनेक उच्च शिक्षित प्रतिष्ठित आर्यों ने बार-बार यह अनुरोध किया है कि वेद आदि आर्ष ग्रन्थों में हजरत मुहमद के नाम का उल्लेख है- मुसलमानों के इस दुष्प्रचार के उत्तर में एक पुस्तक अवश्य लिखकर दूँ। वे तो पुराणों में भी मुहमद का नाम निकाल लाने का तमाशा करते हैं। हिन्दू -हिन्दू की रट लगाने वालों से इस दुष्प्रचार के प्रतिकार की आशा नहीं की जा सकती।
इस सेवक ने ‘कुरान सत्यार्थ प्रकाश के आलोक में’ तथा ‘ज्ञान घोटाला’ लघु पुस्तक में इसका उत्तर देकर सबकी बोलती बन्द कर दी है। आर्य समाज में पादरी स्काट व सर सैयद अहमद की रट लगाने वाले इन आक्रमणों का सामना नहीं कर सकते। जब रणवीर जी व राहुल जी ने चुनौती दी कि कुरान में प्रायः हर सूरत के आरभ में अल्लाह मियाँ महर्षि दयानन्द का नाम लेकर ही अपना कथन करता है। वे कुरान ले आये और कहा, ‘‘दिखाओ कहाँ है स्वामी दयानन्द का नाम?’’
झट से इन आर्य वीरों ने ‘रहमान-उल-रहीम’ निकालकर कहा, ‘‘यह लो दयालु दयानन्द या दयावान दयानन्द के नाम से आरभ करता हूँ, लिखा है या नहीं?’’ पाठक पढ़ चुके हैं कि यह सुनकर उनके पाँव तले से धरती खिसक गई। वे भाग खड़े हुए। हम आपसे बात नहीं करते। आप जाओ, जान छोड़ो। परोपकारिणी सभा अपने पाक्षिक ‘परोपकारी’ के द्वारा प्रत्येक मोर्चे पर आपको खड़ी दिखेगी। आप भी कुछ करो। सहयोग करो। कुछ सीखो। ऐसे साहित्य का प्रसार करो।

मिलावट, हटावट, बनावट की रोकथामः- राजेन्द्र जिज्ञासु

मिलावट, हटावट, बनावट की रोकथामः-
आर्य समाज के लिये एक-एक श्वास देने वाले रक्त की धार से इस वाटिका को सींचने वाले एक नेता ने सवा सौ वर्ष पहले लिखा था कि कई व्यक्ति ऋषि की विचारधारा के कारण से नहीं, स्वप्रयोजन से आर्य समाज में घुसे। कुछ अपना उल्लू सीधा करके समाज को छोड़ भी गये। ऐसे ही कुछ लोगों ने आर्य समाज के सिद्धान्तों का हनन किया। इसके साहित्य व इतिहास में मिलावट, हटावट व बनावट करते चले गये। आर्य समाज के गौरव व इतिहास को रौंदा गया। इतिहास जो हम चाहें, वैसा लिखा जावे-यह एक घातक खेल है। महात्मा मुंशीराम जी ने लाला लाजपतराय के देश से निष्कासन के समय से लेकर (लाला लाजपतराय के अनुसार) सन् 1915 तक आर्यसमाज के दमन, दलन व सरकार की घुसपैठ से समाज की रक्षा के लिये महात्मा मुंशीराम जी की सेवाओं व शूरता पर गत साठ-सत्तर वर्षों में कोई उत्तम ग्रन्थ आया क्या? यह इतिहास छिपाया व हटाया गया। आचार्य रामदेव जी को डी.ए.वी. कॉलेज से निकाला गया। यह दुष्प्रचार आरभ हो गया कि पढ़ाई बीच में छोड़ी गई। आचार्य जी के बारे में सर्वथा नया इतिहास गढ़ कर परोसा जा रहा है। स्वामी सोमदेव की मृत्यु एक ही बार हुई। उन्हें दूसरी बार फिर मारा गया। लाला लाजपतराय जी को ईश्वर ने तब जन्म दिया, वह इतिहास प्रदूषण वालों को नहीं जँचा, उनको अपनी इच्छा का जन्मदिवस अलाट किया गया। महात्मा हंसराज लिखते हैं कि उन्होंने ऋषि को न देखा, न सुना। प्रदूषणकारों ने महात्मा जी के लाहौर देखने से पहले ही उन्हें लाहौर ऋषि का उपदेश सुना दिया। महाशय कृष्ण जी, नारायण स्वामी जी का नया इतिहास गढ़कर मिलावट कर दी।
ऋषि के जीवन काल में महाराणा सज्जन सिंह जी ने अनाथ कन्याओं की शिक्षा के लिए भारी दान दिया। इतिहास में हटावट करके यह घटना दी गई। हैदराबाद सत्याग्रह जब चरमोत्कर्ष पर था, स्वामी स्वतन्त्रानन्द अड़ गये कि मैं तो जेल जाऊँगा। आर्य नेताओं के सामने यह नया संकट खड़ा हो गया। महाराज को जेल जाने से रोकने के लिए बैठक पर बैठक बुलाई गई। यह इतिहास कहाँ किसने लिखा है? नारायण स्वामी जी का दबाव देकर महाशय कृष्ण जी ने लाहौर में आपरेशन करवाया। महाशय जी के बहुत दबाव देने पर स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी ने मुबई ओपरेशन करवाना मान लिया। यह इतिहास कहाँ गया? यह स्वर्णिम इतिहास हटाया गया। क्यों? ऋषि के जीवन काल में कर्नाटक में आर्यसमाज पहुँच गया। यह स्वर्णिम इतिहास हटावट का शिकार हो गया। पं. लेखराम जी का तिल-तिल जलने का इतिहास हटाया गया या नहीं? जिस रमाबाई के कारण सहस्रों स्त्रियाँ धर्मच्युत हुईं, आर्य समाज तड़प उठा, उस रमाबाईके फोटो छपने लगे। वह ऋषि की भक्त और प्रशंसक बना दी गई। यह क्या?

सेवाधन के धनी आर्य नेता वैद्य रविदत्त जीः- राजेन्द्र जिज्ञासु

सेवाधन के धनी आर्य नेता वैद्य रविदत्त जीः-

ब्यावर के आर्य मन्दिर में एक रोगी, वयोवृद्ध महात्मा की दो आर्य पुरुष अत्यन्त भक्तिभाव से सेवा किया करते थे। उसे स्नान आदि सब कुछ ये ही करवाते थे। एक जैनी ने इनको सुधबुध खोकर सेवा करते कई बार देखा। एक दिन उसने आर्य सेवक वैद्य रविदत्त जी से कहा, ‘‘क्या मेरी अन्तिम वेला में भी ऐसी सेवा हो सकती है?’’ वैद्य जी ने कहा, ‘‘भाई, आपने इच्छा व्यक्ति की है तो आपकी भी अवश्य करेंगे।’’

उसने अपनी सपत्ति की वसीयत आर्य समाज के नाम कर दी। समय आया, वह रुग्ण हो गया। सभवतः शरीर में ….. पड़ गये। वैद्यजी अपने सैनिक ओमप्रकाश झँवर को साथ लेकर समाज मन्दिर में उसका औषधि उपचार तो करते ही थे, मल-मूत्र तक सब उठाते। मल-मल कर स्नान करवाते। संक्षेप से यह जो घटना दी है, यही तो स्वर्णिम इतिहास है। कहाँ किसी ने यह इतिहास लिखा है? स्कूलों, संस्थाओं व सपदा के वृत्तान्त का नाम इतिहास नहीं, इतिहास वही है, जो ऊर्जा का स्रोत है।

ठाकुर शिवरत्न जी पातूर: राजेन्द्र जिज्ञासु

ठाकुर शिवरत्न जी पातूरः-

विदर्भ में परतवाड़ा कस्बा में पंकज शाह नाम का एक सुशिक्षित युवक दूर-दूर तक के ग्रामों में प्रचार करवाता रहता है। इसी धुन का एक धनी युवक ठाकुर शिवरत्न इस क्षेत्र में ओम् पताका लेकर ग्राम-ग्राम घूमकर प्रचार करता व करवाता था। महर्षि दयानन्द के सिद्धान्तों को उसने जीवन में भी उतारा। वाणी से तो वह प्रचार करता ही था। वह एक प्रतिष्ठित सपन्न परिवार का रत्न था।
उसकी पुत्री विवाह योग्य हुई। उसने महात्मा मुंशीराम जी को अपना आदर्श मानकर जाति बंधन, प्रान्त बंधन तोड़कर अपनी पुत्री का विवाह करने की ठान ली। महात्मा मुंशीराम का ही एक चेला, कश्मीरी आर्य युवक पं. विष्णुदत्त विवाह के लिये तैयार हो गया। विष्णुदत्त सुयोग्य वकील, लेखक व देशभक्त स्वतन्त्रता सैनिक था। महाशय कृष्ण जी का सहपाठी था। ठाकुर जी को यह युवक जँच गया। आपने कन्या का विवाह कर दिया। ऐसा गुण सपन्न चरित्रवान् पति प्रत्येक कन्या को थोड़ा मिल सकता है!
हिन्दू समाज हाथ धोकर ठाकुर जी के पीछे पड़ गया। श्री ठाकुर शिवरत्न का ऐसा प्रचण्ड सामाजिक बहिष्कार किया गया कि उन्हें महाराष्ट्र छोड़कर पंजाब आना पड़ा। कई वर्ष पंजाब में बिताये, फिर महाराष्ट्र लौट गये। पातूर का कस्बा नागपुर के समीप है। संघ की राजधानी नागपुर है। हिन्दू समाज के कैंसर के इस महारोग जातिवाद से टक्कर लेने वाले पहले धर्म योद्धा ठाकुर शिवरत्न का इतिहास क्या संघ ने कभी सुनाया है? इतिहास प्रदूषण अभियान वालों ने ठाकुर शिवरत्न के कष्ट सहन व सामाजिक प्रताड़नाओं का प्रेरक इतिहास हटावट की सूली पर चढ़ा दिया है। मैं जीते जी ठाकुर शिवरत्न के नाम की माला फेरता रहूँगा।
– वेद सदन, अबोहर, पंजाब