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कुरान समीक्षा : कुरान को मुहम्मद ने खुद बनाना मान लिया

कुरान को मुहम्मद ने खुद बनाना मान लिया

क्या मुहम्मद साहब का यह बयान मजबूर होकर सत्य को स्वीकार करता नहीं है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अम् यकूलून फ्तराहु कुल् इनिफ्………….।।

(कुरान मजीद पारा २६ सूरा अह्काफ रूकू १ आयत ८)

क्या यह कहते हैं कि इसको इसने (अपने दिल से) बना लिया है, तू कह कि अगर मैंने इसको अपने दिल से बनाया होगा तो तुम खुदा के मुकाबिले में मेरा कुछ नहीं कर सकते।

समीक्षा

आखिरकार मुहम्मद साहब ने कुरान को खुद बनाना मान ही लिया जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।

मानवधर्म शास्त्र का सार: पण्डित भीमसेन

विद्या यस्य सनातनी सुविमला, दुःखौघविध्वंसिनी।

वेदाख्या प्रथितार्थधर्मसुगमा, कामस्य विज्ञापिका।

मुक्तानामुपकारिणी सुगतिदा, निर्बाधमानन्ददा।

तस्यैवानुदिनं वयं सुखमयं भर्गः परं धीमहि।।1।।

यस्माज्जातमिदं विश्वं यस्मिंश्च प्रतिलीयते।

यत्रेदं चेष्टते नित्यं   तमानन्दमुपास्महे।।2।।

यदेव वेदाः पदमामनन्ति तपांसि यस्यानुगतास्तपन्ति।

शास्त्रं यदाप्तुं मुनयः पठन्ति, तस्यैव तेजः सुधियानुचिन्त्यम्।।3।।

दिक्कालाकाशभेदेषु परिच्छेदो न विद्यते।

यस्य चिन्मात्ररूपस्य नमस्तस्मै महात्मने।।4।।

सर्वासां सत्यविद्यानां मूलं वेदो निरुच्यते।

तस्यापि कारणं ब्रह्म तेन सृष्टौ प्रचारितः।।5।।

तस्य वेदस्य तत्त्वं हि मनुना परमर्षिणा।

तपः परं समास्थाय योगाभ्यासगतात्मना।।6।।

सारांशमखिलं बुद्ध्वा लोकानां हितकाम्यया।

धर्मः सनातनः स्मृत आपद्धधर्मश्च कालिकः।।7।।

प्रचाराधिक्यमापन्नः पुरा धर्मः सनातनः।

आसीदास्थाय सत्यां तां गुरुशिष्यपरम्पराम्।।8।।

या पश्चाज्छललोभाभ्यां मोहेन कलहेन वा।

अविद्योपासनेनापि   ब्रह्मचर्यादिवर्जनात्।।9।।

स्वार्थसाधनरागेण धर्मस्य परिवर्जनात्।

अधर्मसेवनेनापि नष्टा सत्या परम्परा।।10।।

तदा नानामतान्यासन् मनुष्याणामितरेतरम्।

श्रौतस्मार्त्तस्य धर्मस्य नाशस्तेनाभवत्पुनः।।11।।

स्वस्य स्वस्य मतस्यैव प्रचाराय पुनस्तदा।

विरुद्धपक्षसंसक्तैर्ग्रन्थानां निर्मितिः कृता।।12।।

ये च वेदानुगा ग्रन्थाः शुद्धा दृष्टा मतानुगैः।

तत्रापि सज्जितं वाक्यं स्वमतस्यैव पोषकम्।।13।।

तस्माच्च शुद्धग्रन्थानामार्षाणां श्रौतधर्मिणाम्।

धृतवर्णाश्रमतत्त्वानामद्य प्राप्तिः सुदुर्लभा।।14।।

यादृशाश्चोपलभ्यन्ते ग्रन्थाः परमर्षिनामतः।

तत्रापि निर्मितं भाष्यं तैरेव स्वमतानुगम्।।15।।

धर्मस्य वर्णनं तत्र सम्यङ् नैवोपलभ्यते।

मतवादं पुरस्कृत्य पक्षपातश्च वर्णितः।।16।।

तर्केणानुसन्धानं   मनूक्तं   नोपलभ्यते।

श्रौतस्मार्त्तस्य धर्मस्य तेषु भाष्येषु पश्यतः।।17।।

अतोऽहं बहुभिराज्ञप्तः सज्जनैर्धर्मवेदिभिः।

स्वयं चाप्यनुसन्धाय दृष्ट्वा च धर्मविप्लवम्।।18।।

मानवस्यास्य शास्त्रस्य वेदानामनुगामिनः।

भाष्यारम्भं करोम्यद्य लोकानां हितमाचरन्।।19।।

भियःषुग्वे1त्यपादाने2 निष्पन्ना षुगभावतः।

तादृशी यस्य सेनास्ति तन्नाम्नेदं वितायते।।20।।

यद्यप्येतादृशी शक्तिर्मयि मन्दे न विद्यते।

तथापि तर्त्तुमिच्छामि सत्यप्लवेन सागरम्।।21।।

सत्यो हि जगदाधारस्तस्य चैवानुचिन्तनात्।

सत्यधर्मप्रचाराय बुद्धिं मे प्रेरयिष्यति।।22।।

नराणामल्पशक्तित्वात्सर्वज्ञो नास्ति कश्चन।

विद्याब्धिवेदमूलेन विना चिन्मात्रमूर्त्तिना।।23।।

तस्मात्क्वापि विरुद्धं चेत्प्रमादादिसुदूषितम्।

गुणानुरागिभिस्त्याज्यं ज्ञात्वा नीचैरुपासितम्।।24।।

अब प्रस्तावना लिखने के पश्चात् मानव धर्मशास्त्र की मुख्य भूमिका का प्रारम्भ किया जाता है। इसलिये शिष्ट लोगों की परिपाटी अर्थात् ऋषि-महर्षि लोगों की आज्ञानुसार कि सब शुभ कार्यों के प्रारम्भ में सबके स्वामी परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना वा ध्यान करना चाहिये कि जिससे उसकी कृपा होकर बुद्धि निर्मल वा शुद्ध हो सकती है। इसी कारण उस कार्य का अच्छा बन जाना सम्भव है। इसलिये हमको भी प्रथम परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना करनी चाहिये, इस कारण पहले मग्लाचरण किया है।

सब दुःखों के समुदाय का ध्वंस- नाश करने वाली, जिसके होने से धनादि पदार्थ और सुगम रीति से धर्म प्राप्त हो सकता है, जिसमें धर्मानुकूल स्त्री सम्बन्ध रूप काम की आज्ञा है। जो ठीक-ठीक तत्त्वज्ञान होने से मुक्तों का उपकार करने वाली उसके अनुकूल चलने वाले संसारी जनों को जन्मान्तर में अच्छी गति देने वाली और सब बाधाओं से रहित आनन्द की दाता निर्मल शुद्ध सनातन वेद नामक जिसकी विद्या संसार में प्रकट हुई है, उसके सुखस्वरूप सर्वोत्तम ज्ञानमय तेज का हम लोग प्रतिदिन ध्यान वा धारणा करें।।१।। जिस सर्वनियन्ता परमेश्वर से यह प्रत्यक्ष चित्र-विचित्र अनेक प्रकार की शिल्पविद्या का दिखाने वाला जगत् उत्पन्न हुआ, जिसमें नियमपूर्वक स्थित होकर चेष्टा करता और जिसमें सब लय हो जाता है, उस आनन्द स्वरूप ब्रह्म की हम लोग उपासना करें।।२।। जिसके अधिकार या महत्त्व का सब वेद वर्णन करते अर्थात् कहीं साक्षात् और कहीं परम्परा से सब वेदों में जिसका वर्णन है, और जिसको प्राप्त होने की इच्छा से जिज्ञासु लोग तप करते तथा जिसको प्राप्त होने के लिए ऋषि-मुनि जन वेदाादि शास्त्रों को पढ़ते हैं, विचारशील पुरुषों को उसी के तेज का चिन्तन करना चाहिये।।३।। दिशा, काल और आकाश के भेदों में जिसका परिच्छेद नहीं अर्थात् किसी निज पूर्वादि दिशा, किसी निज क्षणादि काल और किसी निज अवकाश में जो नहीं रहता, किन्तु सब दिशा, काल और अवकाशों में विद्यमान है, उस चेतनमात्र स्वरूप सर्वव्याप्त परमेश्वर को हमारा नमस्कार प्राप्त हो।।४।। सब सत्य विद्याओं का मूल वेद माना जाता है, उस वेद का भी मूल कारण ब्रह्म है क्योंकि उसी परमेश्वर ने संसार में वेदों का प्रचार कराया।।५।। योगाभ्यास में तत्पर महर्षि मनु महाराज ने प्रबल उत्कृष्ट तप का आशय लेकर और उस वेद का मुख्य सारांश अभिप्राय जानकर संसार के उपकार की कामना से सनातन धर्म का तथा समयानुकूल आपत्काल में सेवने योग्य आपद्धर्म का स्मरण अर्थात् वेद से विचारकर प्रकट किया है।।६,७।। वह सनातन धर्म पूर्वकाल में गुरु-शिष्य की उस सत्य परम्परा के आश्रय से   अधिक कर प्रचरित था। अर्थात् पूर्वकाल में सृष्टि के आरम्भ से पुस्तकों के बिना ही वेदादिस्थ विद्या और धर्म के उपदेश में सृष्टि की निरन्तर चलने वाली प्रणाली से चलते थे।।८।। जो परम्परा पीछे छल, कपट, लोभ, मोह, कलह, अविद्या के सेवन, ब्रह्मचर्यादि के छोड़ने, स्वार्थ साधन में तत्पर होने, धर्म के छोड़ देने और अधर्म का सेवन करने से वह सत्य परम्परा नष्ट हो गई।।९,१०।। उस समय परस्पर मनुष्यों में नाना प्रकार के मत चले उससे वैदिक और स्मार्त्त धर्म का और भी नाश हुआ।।११।। उस समय परस्पर विरुद्ध मतों में आसक्त लोगों ने अपने-अपने मत का प्रचार करने के लिए अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार ग्रन्थों का निर्माण किया।।१२।। और मतवादी लोगों ने जो वेदानुकूल शुद्ध ग्रन्थ देखे, उनमें भी अपने-अपने मत के पोषक वाक्य मिला दिये।।१३।। इसी कारण से जिनमें वर्णाश्रम धर्म का स्पष्ट आशय धरा गया था, ऐसे वैदिक धर्म के ऋषिप्रणीत शुद्ध ग्रन्थों का मिलना अब दुर्लभ हो गया।।१४।। शुद्ध ग्रन्थों में मतवादियों ने इसलिए अपने-अपने मत के पोषक वचन मिलाये कि जिससे हमारा मत निर्मूल न समझा जावे, किन्तु प्रतिष्ठित वेदमूलक ग्रन्थों में मिल जाने से सनातन माना जावे और हमको कोई न पकड़ सके। अब जैसे कुछ ग्रन्थ ऋषियों के नाम से मिलते हैं, उन पर भी उन्हीं लोगों ने अपने-अपने मत की पुष्टिपरक व्याख्या बनाई। यद्यपि व्याख्या करने वालों का भीतरी अभिप्राय यह नहीं था कि हम इस शास्त्र में अपना मत घुसेड़ें, तो भी उन-उन का अन्तःकरण उस-उस मत के रंग से रंगा होने के कारण वैसे ही भाष्य भी बनाये गये।।१५।। उन भाष्यों में ठीक-ठीक धर्म का वर्णन जैसा होना चाहिये, प्राप्त नहीं होता। और कहीं-कहीं अपने-अपने मत के आश्रय से पक्षपात भी वर्णन किया गया है।।१६।। इस मानवधर्मशास्त्र में तर्कपूर्वक धर्म का निर्णय करने के लिए “यस्तर्केणानुसन्धत्ते0”1 इत्यादि वचनों में स्पष्ट आज्ञा लिखी है, उसके अनुसार वेद सम्बन्धी और धर्मशास्त्र सम्बन्धी धर्म का वर्णन उन भाष्यों में देखने वाले को प्राप्त नहीं होता, जिससे आजकल के धर्म का निर्णय चाहने वाले मनुष्यों को सन्तोष हो।।१७।। इसी से अनेक धर्मज्ञ और सज्जन लोगों ने मुझको आज्ञा वा सम्मति दी तथा मैंने भी विचार किया कि वास्तव में ऐसी दशा होने से मुझको इस पर यथाशक्ति विचार करना चाहिये और मैंने यह भी विचारा कि ऐसा न करने से अब दिन-दिन धर्म की हानि होती जाती है। धर्मशास्त्र में आज्ञा है कि- ‘धर्म की हानि होती हो तो ब्राह्मण भी शस्त्र को ग्रहण करें।’२ और ‘विद्वानों का शस्त्र वाणी वा विद्या ही है कि जिससे अधर्म का ध्वंस हो सकता है।’३

इत्यादि प्रकार के विचार से लोक का उपकार होना मानकर मैं अब वेदों के अनुयायी इस मानव धर्मशास्त्र के भाष्य का प्रारम्भ करता हूं।।१८,१९।। बीसवें श्लोक में मेरा नाम (भीमसेन शर्मा) व्याकरण के अनुसार दिखाया गया है।।२०।। यद्यपि मुझ मन्दबुद्धि में ऐसी शक्ति नहीं है जो वेदानुकूल धर्म का ठीक-ठीक निर्णय कर सकूं, तो भी सत्यरूप नौका के आश्रय से इस मानव धर्मशास्त्र रूप समुद्र के पार होना चाहता हूं।।२१।। और वही सब जगत् का आधार सर्वान्तर्यामी परमेश्वर ही मुख्य कर सत्य है, उसका स्मरण, ध्यान, स्तुति, प्रार्थनादि करने से सत्य धर्म का प्रचार होने के लिए वह परमेश्वर मेरी बुद्धि को अवश्य प्ररेणा करेगा।।२२।। सब विद्याओं का सागर जो वेद उसके कर्त्ता चेतनमात्र स्वरूप एक परमेश्वर को छोड़कर अन्य कोई भी सर्वज्ञ नहीं है, किन्तु सभी मनुष्य अल्पज्ञ हैं। इस कारण मेरे भाष्य में प्रमादादि से कहीं विरुद्ध वा दूषित लेख किन्हीं महाशयों वा विद्वानों को जान पड़े तो गुणानुरागी लोगों को वह दोष छोड़ देना चाहिये, क्योंकि अच्छे लोगों का स्वाभाविक धर्म यही है कि वे दूसरे के गुणों को अच्छा समझ के उसके सहकारी बनते हैं। और कोई दोष जान पड़ता है तो छोड़ देते हैं, क्योंकि दोषों का ग्रहण करना नीच पुरुषों का काम है। और यह भी हो सकता है कि जैसे प्रमादाादि से मेरा लेख कहीं दूषित हो जाये, वैसे प्रमादादि के होने से मेरे निर्दोष लेख को भी कोई विरुद्ध मान सकता है, इसलिये विचारशीलों को उचित है कि यदि कहीं विरुद्ध जान पड़े तो प्रथम मुझसे ही पूछ देखें, यदि भूल होगी तो मैं स्वयं मान लूंगा। और वह ठीक हो जायगा।।२३,२४।।

कुरान समीक्षा : खुदा का दफ्तर भी है

खुदा का दफ्तर भी है

खुदा का दफ्तर, मुहाफिजखाला, कचहरी किस स्थान पर है? पता लगाकर यह भी बतावें कि वह कहीं रूसी अमरीकी राकेटों से बिस्मार अर्थात् नष्ट तो नहीं हो गये?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

हाजा किताबुना यन्तिकु अलैकुम्…………।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जासिया रूकू ४ आयत २९)

यह हमारे दफ्तर की किताब है जो तुम्हारे काम ठीक-ठीक बतलाता है। जो कुछ तुम करते थे हम उनको लिखवाते जाते थे।

समीक्षा

खुदा के यहाँ दफ्तर भी हैं, उनमें क्लर्क रहते हैं, जो हिसाब किताब ठीक रखते हैं। शायद दफ्तरों (मुहाफिज खानों) की रक्षा के के लिए दरोगा सिपाही भी तैनात रहते होंगे। खुदा उनको सरकारी वर्दियाँ भी देता होगा। रक्षा के लिए ३०३ नं० की लम्बी मार की राइफल भी उनको दी जाती होगी। खुदा भी एक तहसीलदार साहब से किसी बात में कम नहीं था।

कुरान समीक्षा : खुदा ने गुमराह किया

खुदा ने गुमराह किया

बतावें कि गुमराह करने वाला खुदा मुल्जिम क्यों नहीं है और जिसे उसने गुमराह किया उसें दोषी मानना अन्याय क्यों नहीं है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अ-फ-रऐ-त-मनित्त-ख-ज इलाहहू…………।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जासिया रूकू ३ आयज २३)

ऐ पैगम्बर! भला देखो तो जिसने अपनी ख्वाहिशों को अपना पूजित ठहराया और इल्म होते हुए भी अल्लह ने उसें गुमराह कर दिया और उसके कानों पर और उसके दिल पर मुहर लगा दीं और उसकी आंखों पर पर्दा डाल दिया तो खुदा के (गुमराह किये) पीछे कौन उसको हिदायत दे? क्या तुम नहीं सोचते।

समीक्षा

अगर कोई आदमी अपनी पसन्द के अनुसार किसी की उपासना करे तो अरबी खुदा जल भुन कर उसके दिलो दिमाग पर मोहर कर देता है कि वह सही रास्ता न अपना सके। ऐसे बुरे खुदा को मानने वाले दया के पात्र हैं।

कुरान समीक्षा : हर आदमी का हाल दो-दो फरिश्ते लिखते रहते हैं

हर आदमी का हाल दो-दो फरिश्ते लिखते रहते हैं

इन दो फरिश्तो के हर व्यक्ति का हाल लिखते रहने ही मिथ्या कल्पना को सत्य साबित करें?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अम् यह-सबू-न अन्ना ला नस्मअु ………..।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ७ आयत ८०)

क्या ये लोग यह ख्याल करते हैं कि हम इनके भेद और मशविरें नहीं जानते, हां-हां हम सब जानते है और हमारे फरिश्ते उनके पास सब बातों को लिख लेते हैं ।

समीक्षा

खुदा ने हर आदमी पर दो-दो फरिश्ते लगा रखे हैं जो उसके हर काम को लिखते रहते हैं और उसकी रिपोर्ट खुदा को देते रहते हैं ऐसा कुरान व इस्लाम मानता है

कुरान समीक्षा : खुदा का गुस्सा होना

खुदा का गुस्सा होना

गुस्सा होना, स्वभाव से क्रोधी होना यह दिमागी बीमारी होती है। क्या खुदा भी उस बीमारी का शिकार है? होम्योपैथिक में ‘‘कैमोमिला’’ नाम की दवा खिलाने से यह बीमारी मिट जाती है? क्या आलिमाने कुरान खुदावन्द को उस दिमागी रोग से इस दवा देकर रोग मुक्त करके उसका उपचार की कृपा करेंगे? इससे दुनियां का भी भला हो सकेगा। खुदा की दिमागी उत्तेजना शान्त हो जावेगी जिससे वह अपने फैसले ठंडे दिमाग से कर सकेगा।

फ-लम्मा आसफू-नन्-त-कम्ना………..।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ५ आयत ५५)

फिर जब उन लोगों ने हमको गुस्सा दिलाया, हमने इनसे बदला लिया, फिर इन सबको डूबो दिया।

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खुदा को भी गुस्सा आ जाता था, और बदला ले बैठता था, उसका दिमाग भी ठण्डा नहीं था, खुदा का अपने गुस्से पर भी काबू न था, हो सकता है खुदा को अय्याशी का शौक हो, शराब भी पीता हो, पर कुरान में इन बातों का जिकर नहीं है।

मुन्सिफ को तो शान्त दिमाग का होना चाहिए। क्रोधी, कामी लोभी, मोही होना तो बुराई की बात है।

कुरान समीक्षा : खुदा शैतान पीछे लगा देता है

खुदा शैतान पीछे लगा देता है

जब लोगों को गुमराह करने के लिए स्वयं खुदा उनके पीछे शैतान की तरह लगातार रहता है तो खुदा डबल शैतान हुआ या नहीं? गुनहगार दोनों में से कौन हुआ?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व मंय्यअ्-शु अन् जिक्रिर्-रह्मानि………..।।

(कुरान मजीद पारा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ४ आयत ३६)

और जो शख्स खुदा कृपालु की याद से बरगलाता है हम उस पर एक शैतान मुकर्रर कर दिया करते हैं और वह शैतान बरगलाने के लिए हमेशा उसके साथ रहता है।

व इन्नहुम् ल-य सुद्दूहुम्……….।।

(कुरान मजीद परा २५ सूरा जुरूरूफ रूकू ४ आयत ३७)

और शैतान पापियों को सीधी राह से रोकता है और वे समझते हैं कि हम सीधे रास्ते पर हैं। क्या तुमने नहीं देखा कि हमने शैतानों को काफिरों पर छोड़ रखा है कि वह उनको उकसाते रहें।

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गलत रास्ते पर चलने वालों को नेक रास्ता बताना खुदा को योग्य था। पर वह भला आदमी भूले भटके लोगों को गुमराह कराने के लिए उस बदमाश शैतान को उनके पीछे लगा देता है ताकि वह उन्हें हमेशा बुराई की ओर ही ले जाता रहे। अरबी खुदा इन्सान का पक्का दुश्मन था उसके काम सभी शरारत के ही रहे हैं कहीं खुदा लोगों को गुमराह बिना वजह करता है, कहीं शैतान से गुमराह कराता है। ऐसे खुदा को रक्षक मानना भी गलती की ही बात है।

कुरान समीक्षा : कुरान में झूठ का प्रवेश नहीं है

कुरान में झूठ का प्रवेश नहीं है

कुरान में झूठ का प्रवेश नहीं है यह दावा क्यों न गलत माना जावे? जबकि कुरान में-

आसमान में ओलों के पहाड़ जमे होने की बात

कागज की तरह आसमान का लपेटना

आसमान में बुर्ज है

आदि अनेक स्थल सर्वथा काल्पनिक लिखे हुए मिलते हैं?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्नल्लजी-न क-फरू बिज्जिविर…….।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा हामीम अस-सज्दा रूकू ५ आयत ४१)

यह कुरान एक बुलन्द मर्तबा अर्थात क्या अजीब किताब (कुरान) है।

ला यअ्तीहिल्-बातिलु मिम्बैनि……….।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा हामीम अस-सज्दा रूकू ५ आयत ४२)

इसमें झूठ का न इसके आगे से और न इसके पीछे से दखल है । हिकमत वाले खुदा ने इसें सब खूबियों के सहारे से उतारी हुई है।

समीक्षा

इस किताब में पीछे जो भी अवैज्ञानिक बातों को कुरान से उल्लेख है उनसे कुरान की इस आयत के दावे का खण्डन स्वयं ही हो जाता हैं ।

कुरान समीक्षा : बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दो

बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दो

बुराई का बदला नेकी से देने की खुदा की बात, बुराई का बदला बुराई से देने के कुरान पारा ४ सूरे बकर रकू २२ आयत १७८ के आदेश के विरूद्ध क्यों है? दोनों में से कुरान की कौन सी बात सही व कौन सी गलत है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व ला तस्तविल्-ह-स-नतु व………….।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा अस-सज्दा रूकू २२ आयत ३४)

नेकी और बदी बराबर नहीं हो सकती। बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दे तो तुझमें और जिस आदमी में दुश्मनी थी उसे तू पक्का दोस्त पावेगा।

नोट- यह उपदेश अति उत्तम है, किन्तु खुदा के हुक्म के बिल्कुल खिलाफ है जिसमें उसने कहा था-

या अय्युउल्लजी-न आमनू कुति-ब……….।।

(कुरान मजीद पारा २ सूरा बकर रूकू २२ आयत १७८)

ऐ ईमान वालों! जो लोग मारे जावे उनमें से तुमको जान के बदले जान का हुक्म दिया जाता है । आजाद के बदले आजाद, गुलाम के बदले गुलाम, औरत के बदले औरत आदि-आदि।

‘‘लाजपत राय अग्रवाल’’

समीक्षा

एक जगह बुराई के बदले बुराई करने का हुक्म देना और दूसरी जगह बुराई का बदला भलाई से देना, इन दोनों में परस्पर विरोधी उपदेशों में से कौन सा माननीय है? खुदा को तो एक ही अच्छी बात कहनी चाहिये थी।

कुरान समीक्षा : खुदा का जमीन और आसमान से बाते करना

खुदा का जमीन और आसमान से बाते करना

साबित करें कि क्या बेजान पदार्थों से बातें करना सम्भव हो सकता है? जो कुछ चीज ही नहीं है जैसे आसमान, उससे बातें कैसे की जा सकती हैं और वह जवाब कैसे दे सकता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

सुम्मस्तवा इलस्समा-इ व हि-य…………।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा हामीम अस-सज्दा रूकू २ आयत ११)

जमीन और आसमान दोनों से कहा कि तुम दोनो आओ चाहे खुशी से या लाचारी से? दोनों ने कहा- हम खुशी से आये।

समीक्षा

खुदा का जमीन और आसमान से बातें करना और उनका जवाब देना असम्भव है?

अगर ठीक है तो भक्तों का अपनी बेजान मूर्तियों से बातें करना मनौती मांगना भी क्यों न ठीक माना जावेगा?