कुरान समीक्षा : बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दो

बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दो

बुराई का बदला नेकी से देने की खुदा की बात, बुराई का बदला बुराई से देने के कुरान पारा ४ सूरे बकर रकू २२ आयत १७८ के आदेश के विरूद्ध क्यों है? दोनों में से कुरान की कौन सी बात सही व कौन सी गलत है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व ला तस्तविल्-ह-स-नतु व………….।।

(कुरान मजीद पारा २४ सूरा अस-सज्दा रूकू २२ आयत ३४)

नेकी और बदी बराबर नहीं हो सकती। बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दे तो तुझमें और जिस आदमी में दुश्मनी थी उसे तू पक्का दोस्त पावेगा।

नोट- यह उपदेश अति उत्तम है, किन्तु खुदा के हुक्म के बिल्कुल खिलाफ है जिसमें उसने कहा था-

या अय्युउल्लजी-न आमनू कुति-ब……….।।

(कुरान मजीद पारा २ सूरा बकर रूकू २२ आयत १७८)

ऐ ईमान वालों! जो लोग मारे जावे उनमें से तुमको जान के बदले जान का हुक्म दिया जाता है । आजाद के बदले आजाद, गुलाम के बदले गुलाम, औरत के बदले औरत आदि-आदि।

‘‘लाजपत राय अग्रवाल’’

समीक्षा

एक जगह बुराई के बदले बुराई करने का हुक्म देना और दूसरी जगह बुराई का बदला भलाई से देना, इन दोनों में परस्पर विरोधी उपदेशों में से कौन सा माननीय है? खुदा को तो एक ही अच्छी बात कहनी चाहिये थी।

10 thoughts on “कुरान समीक्षा : बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दो”

  1. OM..
    ARYAVAR, NAMASTE..

    ‘सूरा अस-सज्दा’ ME SIRF 30 AAYAAT HAI, YEH AAYAAT-34 KAHAAN SE AAYA? MAI SANSHAYA ME HOON KRIPAYAA SANSHAYA DUR KIJIYE…
    DHANYAWAAD..

  2. OM..
    ARYAVAR, NAMASTE..
    “नेकी और बदी बराबर नहीं हो सकती। बुराई का बदला अच्छे बर्ताव से दे तो तुझमें और जिस आदमी में दुश्मनी थी उसे तू पक्का दोस्त पावेगा।” YEH AAYAAT IAME- (कुरान मजीद पारा २४ सूरा अस-सज्दा रूकू २२ आयत ३४) NAHIN,
    SURAA NO- 41- Fussilat (Expounded) or Ha Mim KE AYAAT-34 ME HAI..

    “34. Nor can goodness and Evil be equal. Repel
    (Evil) with what is better: Then will he between whom
    and thee was hatred become as it were thy friend and
    intimate!”
    DHANYAWAAD..

  3. बुराई का बदला अच्छे बरताव से दो इससे अभिप्राय यह है की कोई जुल्म करे जैसे गालियां देना, सताना, घृणा या बिना वजह मार-पीट करना आदि के लिये है। इसमें अच्छे बरताव करना चाहिए भलाई करना चाहिए। किसी की हत्या करना एक अलग मुद्दा है इसकी सजा खून का बदला खून से लिया जाता है
    खुद पर हुए जुल्म पर माफ कर देना रहमदिली है किसी दूसरे के ऊपर हुए ज़ुल्म की सज़ा देना न्याय है

    1. “दूसरे के ऊपर हुए ज़ुल्म की सज़ा देना न्याय है”

      fir musalman yadi kafir ka khun kar de to kya wahan ye siddhant apply hota hai

      ye dohrapan kyon

      1. प्यारे नबी सल्ल. ने फरमाया कि जो मुसलमान किसी मुवाहिद या ज़िम्मी का कत्ल कर डालेगा वो मुसलमान जन्नत की खुशबू न पा सकेगा [ Bukhari aur Nisaai ]
        क्योंकि रिवायतो मे है कि जन्नत की खुशबू बहुत दूर तक जाती है , यानी वो अपराधी जन्नत के आसपास भी न फटक सकेगा.. जन्नत की खुशबू न पा सकने का सीधा मतलब है ऐसा गुनाहगार शख्स दोज़ख मे जायेगा,

        नबी सल्ल. की एक दूसरी हदीस इस बात को और स्पष्ट करती है, आप सल्ल. ने फरमाया है कि जो मुस्लिम शख्स किसी गैर मुस्लिम का कत्ल कर देगा जिस गैर मुस्लिम की सुरक्षा का वादा किया गया था (अर्थात् वो ज़िम्मी या मुवाहिद था, और इस्लामी शासक के अधीन निवास करता था ) , तो ऐसे कातिल मुसलमान को अल्लाह जन्नत मे प्रवेश करने से रोक देगा [Abu Dawood]

        न सिर्फ जान की हिफाज़त बल्कि गैर मुस्लिमों को ज़रा सी भी तकलीफ मुसलमानों द्वारा न पहुंचाई जाए नबी सल्ल. ने ऐसे आदेश भी मुसलमानों को दिए हैं, आप सल्ल. ने फरमाया :-
        “जो मुसलमान शख्स किसी ज़िम्मी को तकलीफ पहुंचाएगा, मै ऐसे मुसलमान के खिलाफ खड़ा होऊंगा और कयामत के दिन ऐसा मुस्लिम मेरा दुश्मन होगा ”
        [Al khateeb]
        गौरतलब है कि इस्लामी आस्था के अनुसार नबी सल्ल. सहमति के बगैर नबी सल्ल. की उम्मत मे आने वाला कोई भी मुस्लिम न तो दोजख के दण्ड से बच सकेगा और न जन्नत मे जा सकेगा, अत: कोई भी मुस्लिम नहीं चाहेगा कि उसके किसी कृत्य से नबी सल्ल. उसके विरोधी हो जाएं

        आं हजरत सल्ल. ने एक और हदीस मे फरमाया है कि जो शख्स किसी ज़िम्मी को कष्ट पहुंचाता है, वो मुझे ( यानी अल्लाह के नबी सल्ल. को ) कष्ट पहुंचाता है, और जो मुझे कष्ट पहुंचाता है, वो अल्लाह को क्रोधित करता है ।
        (TABARAANI in ‘Mujam al Awsaat’)

        नबी करीम सल्ल. ने फरमाया कि जो मुसलमान किसी ज़िम्मी या मुवाहिद पर ज़ुल्म करेगा , उसके हक को मारेगा या उसकी चीज़ ज़बरदस्ती ले लेगा, या उस ज़िम्मी या मुवाहिद पर ऐसी ज़िम्मेदारी डाल देगा जिसे पूरी करना उस ज़िम्मी, मुवाहिद के बस के बाहर होगा तो मैं कयामत के रोज़ खुदा की अदालत में मुसलमान के विरुद्ध पेश होने वाले मुक़दमे में उस गैर-मुस्लिम का वकील बनकर खड़ा होऊँगा.” [Abu Dawood] ,

        दार उल इस्लाम यानी इस्लामी राज्य मे रहने वाले गैरमुस्लिमों को अपना धर्म मानने और उस धर्म के रीति रिवाज़ो को मानने की पूरी आजादी दी गई है, और उन गैर मुस्लिमों पर धर्म के मामले मे किसी तरह का दबाव भी मुसलमान नहीं बना सकते …. इन सभी नियमों का पालन इस्लाम के चारों खलीफाओं ने अपने अपने शासनकाल मे किया और बाद मे आने वाले शासकों ने भी इस व्यवस्था का पालन करने के पूरे पूरे प्रयास किए ॥

        1. pls refer to the verse below:

          the verse below (4:93) :

          وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّـهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا ٩٣

          But whoever kills a believer intentionally – his recompense is Hell, wherein he will abide eternally, and Allah has become angry with him and has cursed him and has prepared for him a great punishment. (93)

  4. “अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता कि तुम उन लोगों केसाथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो,जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और नतुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला। निस्संदेह अल्लाहन्याय करनेवालों को पसन्द करता है अल्लाह तो तुम्हेंकेवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंनेधर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारेअपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने केसम्बन्ध में सहायता की। जो लोग उनसे मित्रता करेंवही ज़ालिम है।” [सूरह मुम्ताहना; 60, आयत 8-9] ———– काफिर अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के होते हैं कुरआन में जिन काफ़िरों की हत्या करने के लिये कहा गया था वह बुरे काफ़िर थे

    1. psl refer below:

      Quran (2:191-193) – “And kill them wherever you find them, and turn them out from where they have turned you out. And Al-Fitnah [disbelief or unrest] is worse than killing… but if they desist, then lo! Allah is forgiving and merciful. And fight them until there is no more Fitnah [disbelief and worshipping of others along with Allah] and worship is for Allah alone. But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun

  5. Poori verse ka translation yeh hai.
    O Believers, the law of retribution has been prescribed for you in cases of murder; if a free man commits a murder, the free man shall he punished for it and a slave for a slave: likewise if a woman is guilty of murder the same shall he accountable for it. But in case the injured brother is willing to show leniency to the murderer, the blood money should he decided in accordance with the common law and the murderer should pay it in a genuine way. This is an allowance and mercy from your Lord. Now there shall be a painful torment for anyone who transgresses the limits after this. O men of understanding.

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