*सच्ची रामायण की पोल खोल-८
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक कार्तिक अय्यर ।
।।ओ३म्।।
धर्मप्रेमी सज्जनों! नमस्ते ।पिछले लेख मे हमने पेरियार साहब के ‘कथा स्रोत’ नामक लेख का खंडन किया।आगे पेरियार साहब अपने निराधार तथ्यों द्वारा श्रीराम पर अनर्गल आक्षेप और गालियों की बौछार करते हैं।
*प्रश्न-८इस बात प अधिक जोर दिया गया है कि रामायण का प्रमुख पात्र राम मनुष्य रूप में स्वर्ग से उतरा और उसे ईश्वर समझा जाना चाहिये।वाल्मीकि ने स्पष्ट लिखा है कि राम विश्वासघात,छल,कपट,लालच,कृत्रिमता,हत्या,आमिष-भोज,और निर्दोष पर तीर चलाने की साकार मूर्ति था।तमिलवासियों तथा भारत के शूद्रों तथा महाशूद्रों के लिये राम का चरित्र शिक्षा प्रद एवं अनुकरणीय नहीं है।*
*समीक्षा* बलिहारी है इन पेरियार साहब की!आहाहा!क्या गालियां लिखी हैं महाशय ने।लेखनी से तो फूल झर रहे हैं! श्रीराम का तो पता नहीं पर आप गालियां और झूठ लिखने की साक्षात् मूर्ति हैं।आपके आक्षेपों का यथायोग्य जवाब तो हम आगे उपयुक्त स्थलों पर देंगे।फिलहाल संक्षेप में उत्तर लिखते हैं।
श्रीरामचंद्रा का चरित्र उनको ईश्वर समझने हेतु नहीं अपितु एक आदर्श मानव चित्रित करने हेतु रचा गया है।यह सत्य है कि कालांतर में वाममार्गियों,मुसलमानों और पंडों ने रामायण में कई प्रक्षेप किये हैं।उन्हीं में से एक मिलावट है राम जी को ईश्वरावतार सिद्ध करने की है।इसलिये आपको प्रक्षिप्त अंश पढ़कर लगा होगा कि ‘ श्रीराम को ईश्वरावतार समझना’ अनिवार्य है।परंतु ऐसा नहीं है।देखिये:-
*एतदिच्छाम्यहं श्रोतु परं कौतूहलं हि मे।महर्षे त्वं समर्थो$सि ज्ञातुमेवं विधं नरम्।।* (बालकांड सर्ग १ श्लोक ५)
आरंभ में वाल्मीकि जी नारदजी से प्रश्न करते हैं:-“हे महर्षे!ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति के संबंध में जानने की मुझे उत्कट इच्छा है,और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं।” ध्यान दें!श्लोक में नरः पद से सिद्ध है कि श्रीराम ईश्वरानतार नहीं थे।वाल्मीकि जी ने मनुष्य के बारे में प्रश्न किया है और नारदजी ने मनुष्य का ही वर्णन किया ।
*महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने यह सिद्ध किया है कि ईश्वर का अवतारलेना संभव नहीं।परमात्मा के लिये वेद में “अज एकपात” (ऋग्वेद ७/३५/१३)’सपर्यगाच्छुक्रमकायम'(यजुर्वेद ४०/८)इत्यादि वेद वचनों में ईश्वर को कभी जन्म न लेने वाला तथा सर्वव्यापक कहा है।(विस्तार के लिये देखें:- सत्यार्थप्रकाश सप्तमसमुल्लास पृष्ठ १५७)
अतः राम जी ईश्वर नहीं अपितु महामानव थे।
महर्षि वाल्मीकि ने कहीं भी श्रीरामचंद्र पर विश्वासघात, लालच,हत्या आदि के दोष नहीं लगाये वरन् उनको *सर्वगुणसंपन्न*अवश्य कहा है।आपको इन आक्षेपों का उत्तर श्रीराम के प्रकरणमें दिया जायेगा।फिलहाल वाल्मीकि जी ने राम जी के बारे में क्या *स्पष्ट* कहा है वह देखिये। *अयोध्याकांड प्रथम सर्ग श्लोक ९-३२*
*सा हि रूपोपमन्नश्च वीर्यवानसूयकः।भूमावनुपमः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमः।९।कदाचिदुपकारेण कृतेतैकेन तुष्यति।न स्मरत्यपकारणा शतमप्यात्यत्तया।११।*
अर्थात्:- श्रीराम बड़े ही रूपवान और पराक्रमी थे।वे किसी में दोष नहीं देखते थे।भूमंडल उसके समान कोई न था।वे गुणों में अपने पिता के समान तथा योग्य पुत्र थे।९।।कभी कोई उपकार करता तो उसे सदा याद करते तथा उसके अपराधों को याद नहीं करते।।११।।
आगे संक्षेप में इसी सर्ग में वर्णित श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं।देखिये *श्लोक १२-३४*।इनमें श्रीराम के निम्नलिखित गुण हैं।
१:-अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता।महापुरुषों से बात कर उनसे शिक्षा लेते।
२:-बुद्धिमान,मधुरभाषी तथा पराक्रम पर गर्व न करने वाले।
३:-सत्यवादी,विद्वान, प्रजा के प्रति अनुरक्त;प्रजा भी उनको चाहती थी।
४:-परमदयालु,क्रोध को जीतने वाले,दीनबंधु।
५:-कुलोचित आचार व क्षात्रधर्मके पालक।
६:-शास्त्र विरुद्ध बातें नहीं मानते थे,वाचस्पति के समान तर्कशील।
७:-उनका शरीर निरोग था(आमिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता),तरूण अवस्था।सुंदर शरीर से सुशोभित थे।
८:-‘सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् सांगवेदवित’-संपूर्ण विद्याओं में प्रवीण, षडमगवेदपारगामी।बाणविद्या में अपने पिता से भी बढ़कर।
९:-उनको धर्मार्थकाममोक्ष का यथार्थज्ञान था तथा प्रतिभाशाली थे।
१०:-विनयशील,गुरुभक्त,आलस्य रहित थे।
११:- धनुर्वेद में सब विद्वानों से श्रेष्ठ।
कहां तक वर्णन किया जाये? वाल्मीकि जी ने तो यहां तक कहा है कि *लोके पुरुषसारज्ञः साधुरेको विनिर्मितः।*( वही सर्ग श्लोक १८)
अर्थात्:- *उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था कि संसार में विधाता ने समस्त पुरुषों के सारतत्त्व को समझनेवाले साधु पुरुष के रूपमें एकमात्र श्रीराम को ही प्रकच किया है।*
अब पाठकगण स्वयं निर्णय कर लेंगे कि श्रीराम क्या थे?लोभ,हत्या,मांसभोज आदि या सदाचार और श्रेष्ठतमगुणों की साक्षात् मूर्ति।
श्रीराम के विषय में वर्णित विषय समझना मानव बुद्धि से परे नहीं है।शायद आप अपनी भ्रांत बुद्धि को समस्त मानवों की बुद्धि समझने की भूल कर दी।रामायण को यदि कोई पक्षपातरहित होकर पढे़ तो अवश्य ही जान जायेगा कि श्रीराम का चरित्र कितना सुगम व अनुकरणीय है।
आगे दुबारा शूद्रों और महाशूद्रों का कार्ड खेलकर लिखा है कि इन लोगों के लिये कुछ भी अनुकरणीय व शिक्षाप्रद नहीं है।यह पाठक रामायण का अध्ययन करके स्वतः जान जायेंगे कि उनके लिये क्या अनुकरणीय है?
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क्रमशः—–
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
नोट : यह लेखक का अपना विचार है | लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार पंडित लेखराम वैदिक मिशन या आर्य मंतव्य टीम नहीं होगा