Category Archives: हिन्दी

एक आपबीती

एक आपबीती

मैं स्कूल का अध्यापक था। मेरे लेखों के कारण तथा सामाजिक गतिविधियों के कारण आर्यजगत् के बहुत लोग मुझे जानते थे। हिन्दी सत्याग्रह के पश्चात् मैं स्कूल छोड़कर दयानन्द कॉलेज हिसार की एम0ए0 कक्षा में प्रविष्ट हो गया। कॉलेज के प्राचार्य थे

प्रिं0 ज्ञानचन्द्रजी (स्वामी मुनीश्वरानन्दजी) हिसारवाले। वे यदा-कदा मुझे व्याज़्यान तथा प्रचार के लिए भी, कभी कहीं जाने को कह देते। कॉलेज में प्रविष्ट हुए एक-दो सप्ताह ही बीते कि उन्होंने आर्यसमाज, माडल टाउन के साप्ताहिक सत्संग में मेरा व्याज़्यान रख दिया। वे स्वयं माडल टाऊन में ही रहते थे।

व्याज़्यान से वे प्रभावित हुए। सत्संग के पश्चात् मुझे अपने घर पर भोजन के लिए कहा। मैं उनके साथ चला गया।

वे स्वयं मुझे भोजन करवाने लगे। मैंने कहा कि आप भी बैठिए। मेरे बहुत कहने पर भी प्रिंसिपल साहब न माने। घर पर सेवक भी था। उसे भी भोजन न लाने दिया। स्वयं ही परोसने लगे।

मुझे प्रतिष्ठित अतिथि बनाकर एक ओर बैठकर आर्यसमाज विषयक चर्चाएँ करते रहे। मैं इस दृश्य को कभी नहीं भूल पाता।

सच्ची रामायण की पोल खोल-९

*सच्ची रामायण की पोल खोल-९
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक कार्तिक अय्यर ।
*प्रश्न-९आगे रामायण को धर्मसंगत न होना तथा चेतन प्राणियों के लिये अनुपयोगी होना लिखा है।राक्षसों का यज्ञ में विघ्न,ब्रह्मा जी की विष्णु जी से प्रार्थना, विष्णु के अवतार का उल्लेख किया है विष्णु द्वारा जालंधर की पत्नी का शीलहरण करके आक्षेप किया है।आपने कहा है “इसका वर्णन आर्यों के पवित्र पुराण करते हैं!”*
*समीक्षा*-प्रथम,रामायण धर्मसंगत,अनुकरणीय है वा नहीं ये आगे सिद्ध किया जायेगा।
दूसकी बात,श्रीराम ईश्वरावतार नहीं थे,अपितु महामानव,आप्तपुरुष, राष्ट्रपुरुष आर्य राजा थे।इसका स्पष्टीकरण ‘श्रीराम’के प्रकरणमें करेंगे।
यहां आपने रामायण से छलाँग मारी और पुराणों पर पहुंच गये।पेरियार साहब! भागवत,मार्कंडेय,शिवपुराणादि ग्रंथों का नाम पुराण नहीं है। *वेद के व्याख्यानग्रंथ ऐतरेय,साम,गोपथ और शतपथ इतिहास व पुराण कहलाते हैं।*वर्तमान पुराण व्यासकृत नहीं हैं। ये १०००-१५०० वर्ष पूर्व ही बनाये गये हैं।इनको वैदिक धर्म के दुश्मन वाममार्गियों तथा पोपपंडितों ने बनाये हैं।इनमें स्वयं राम,कृष्ण, शिव,विष्णु, ब्रह्मा,शिव आदि की निंदा की गई हैं।मद्यपान,मांसभक्षण,पशुबलि,व्यभिचार आदि वेदविरुद्ध कर्मों का महिमामंडन इनमें हैं।अतः पुराण वेदविरुद्ध होने से प्रामाणिक नहीं हैं।
महर्षि दयानंद सत्यार्थप्रकाश मेंपुराणों के विषय में प्रबल प्रमाण एवं युक्तियां देकर लिखते हैं:-
( एकादश समुल्लास पृष्ठ २९७)
*”जो अठारह पुराणोंके कर्ता व्यासजी होते तो उनमें इतने गपोड़े नहीं होते।क्योंकि शारीरिक सूत्रों,योगशास्त्र के भाष्य और व्यासोक्त ग्रंथों को देखने से विदित होता है कि व्यास जी बड़े विद्वान, सत्यवादी,धार्मिक, योगी थे।वे ऐसी मिथ्या कथा कभीन लिखते।*
*……वेदशास्त्र विरुद्ध असत्यवाद लिखना व्यासजी सदृश विद्वानों का काम नहीं किंतु यह काम वेदशास्त्र विरोधी, स्वार्थी,अविद्वान लोगों का है..*
*….”ब्राह्मणानीतिहासान पुराणानि कल्पान् गाथानराशंसीदिति।”(यह ब्राह्मण व सूत्रों का वचन है-(१) ब्राह्मण ग्रंथों का नाम इतिहास पुराण है।इन्हीं ग्रंथों के ही इतिहास, पुराण,कल्प,गाथा और नाराशंसी ये पांच नाम है*
विस्तार से जानने के लिये सत्यार्थप्रकाश एकादश समुल्लास देखने का कष्ट करें।
अतः अष्टादशपुराण वेदविरुद्ध होने से अप्रमाण हैं ।इससे सिद्ध है कि विष्णु-जालंधर आदि की कथायें मिथ्या हैं। *और जहां-जहां पुराणोक्त गल्पकथायें रामायण में मिलें,वे भी कालांतर में धूर्तों द्वारा प्रक्षेपित की गई होने से अप्रमाण हैं-ऐसा जानना चाहिये।*
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य  टीम  या पंडित लेखराम वैदिक मिशन  उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |

मुस्लिम महिला ने लिखी किताब, ‘हलाल गाइड टू माइंड ब्लोइंग सेक्स’

 मुस्लिम महिला ने लिखी किताब, ‘हलाल गाइड टू माइंड ब्लोइंग सेक्स’

लंदन
अब मुस्लिम महिलाओं के लिए भी सेक्स गाइड आ गई है। खास बात यह कि यह ‘हलाल सेक्स’ गाइड है। कम से कम मुस्लिम लेखिका का दावा तो यही है। पिछले हफ्ते आई इस किताब ने खासतौर पर मुस्लिम समाज में सेक्स को लेकर एक बहस छेड़ दी है। किताब ‘द मुस्लिमा सेक्स मैन्युअल: अ हलाल गाइड टू माइंड ब्लोइंग सेक्स’ टाइटल से ऐमजॉन पर उपलब्ध है।

इस किताब की लेखिका ने फिलहाल अपनी पहचान छिपा रखी है। उन्होंने एक दूसरी पहचान ‘उम मुलाधत’ के नाम से इस किताब को लिखा है। कहा जा रहा है कि ‘हलाल सेक्स’ और शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं को सेक्स सिखाने वाली यह अपनी तरह की पहली किताब है।

सवाल यह है कि आखिर लेखिका को ‘हलाल सेक्स’ गाइड लिखने की जरूरत ही क्यों पड़ी? इसका जवाब मुस्लिम समाज में सेक्स को लेकर टैबू से जुड़ा हुआ है। लेखिका ने इस किताब के बारे में अपनी वेबसाइट पर लिखा है। उन्होंने अपनी एक मुस्लिम महिला मित्र की शादी का जिक्र किया है, जो अपनी सगाई के दौरान काफी खुश नजर आ रही थी।

शादी के कुछ दिनों बाद जब लेखिका अपनी मित्र से मिली तो उसके चेहरे पर खुशी नहीं थी। बातचीत के दौरान दोस्त ने स्वीकार किया कि उसकी सेक्स लाइफ नहीं के बराबर है। ऐसा तब था जब लेखिका की मित्र मेडिकल फील्ड से आती थी और उसे स्त्री-पुरुष शरीर का पूरा ज्ञान था। लेखिका के मुताबिक, उसे सेक्स के बारे में नहीं पता था।
अपनी वेबसाइट पर इसके बारे में लेखिका ने लिखा, ‘ओह, वह मकैनिक्स (सेक्स प्रकिया) जानती थी। पेनिस को वजाइना में डालना। क्लाइमेक्स। विद्ड्रॉ। लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि कैसे अपने पति को बिस्तर पर खुद के लिए तरसाए। वह नहीं जानती थी कि पति को क्या पसंद है। उसे खुद की भी पसंद पता नहीं थी।’

इसके बाद लेखिका ने अपनी शादीशुदा जिंदगी के दौरान हासिल सेक्स अनुभवों को उसे बताया। लेखिका ने सेक्स को लेकर तमाम जानकारियां अपनी दोस्त के साथ शेयर कीं। लेखिका के मुताबिक एक महीने बाद जब उसकी दोस्त फिर मिली तो इस बार उसके चेहरे पर मुस्कान थी। दोस्त ने तब लेखिका से कहा कि इन सारी बातों को लिखो और मुस्लिम लड़कियों के साथ शेयर करो।

लेखिका ने सबकुछ लिखकर एक वर्ड डॉक्युमेंट बनाया और अपनी दोस्त को भेजा। दोस्त ने उस डॉक्युमेंट को दूसरी नई शादीशुदा दोस्तों के साथ शेयर किया। इसके बाद लेखिका से किताब लिखने को कहा गया। इस तरह से किताब की पृष्ठभूमि तैयार हुई।

किताब में लेखिका ने सेक्स को लेकर बेहद बोल्ड माने जानी वाली चीजों का भी जिक्र किया है। ऐमजॉन पर इस ‘हलाल सेक्स’ गाइड के कॉन्टेंट्स काफी बोल्ड नजर आ रहे हैं। इनमें डर्टी टॉक, फ्लर्टिंग विद अदर मेन, फर्स्ट टाइम, किसिंग, हैंड जॉब्स, हाउ टू गीव अ ब्लो जॉब, मसाज, स्ट्रिपिंग, पोजिशंस, रफ सेक्स, फोर्स्ड सेक्स, BDSM, पब्लिक सेक्स, एनल प्ले और थ्रीसम जैसे टॉपिक्स शामिल हैं।

द इंडिपेंडेंड से बात करते हुए लेखिका ने कहा कि उसे इस किताब को लेकर पॉजिटिव फीडबैक मिले हैं। पुरुषों ने भी उनसे संपर्क साध यह जानने की कोशिश की है कि अपनी पत्नियों को संतुष्ट कैसे करें। इसके बाद वह इस किताब के फॉलोअप पर भी विचार कर रही हैं। इस किताब में उन्होंने अपने एक्स्पीरियंस, दोस्तों से मिले टिप्स का इस्तेमाल किया है।

source : http://navbharattimes.indiatimes.com/world/britain/muslim-woman-writes-halal-guide-to-mind-blowing-sex/articleshow/59650010.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral&utm_campaign=muslim180717

हदीस : अन्य उपवास

अन्य उपवास

कई-एक अन्य उपवासों का भी उल्लेख है। एक ही अशुर उपवास, जो मुहर्रम के दसवें दिन रखा जाता है। अशुर के दिन का ”यहूदी सम्मान करते थे और वे उसे ईद मानते थे“ (2522) और इस्लाम से पहले के युग में ”कुरैश लोग उस दिन उपवास रखते थे“ (2499)। पर जब मुहम्मद ने मदीना की ओर प्रवास किया, तब उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए उसे वैकल्पिक बना दिया। अन्य स्वैच्छिक उपवासों का भी उल्लेख है, किन्तु उन पर विचार करने की यहां आवश्यकता नहीं।

 

इन उपवासों के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि कोई व्यक्ति सुबह उपवास करने का संकल्प सुना सकता है। और शाम को बिना किसी वजह के उसे भंग कर सकता है। एक दिन मुहम्मद ने आयशा से कुछ खाने को मांगा, पर कुछ उपलब्ध नहीं था। तब मुहम्मद ने कहा-”मैं उपवास रख रहा हूँ।“ कुछ वक्त बाद, उपहार में कुछ भोजन-सामग्री आई और आयशा ने उसे मुहम्मद के सामने रख दिया। मुहम्मद ने पूछा-”यह क्या है ?“ आयशा बोली-”यह हैस (खजूर और घी की बनी एक मिठाई) है।“ वे बोले-”इसे लाओ।“ आयशा आगे बतलाती हैं-”इस पर मैने उन्हें वह दिया और उन्होंने खा लिया।“ और तब वे बोले-”यह स्वेच्छा से उपवास रखना ऐसा है, जैसे कोई अपनी जायदाद में सदका निकाल कर रख दे। वह चाहे तो उसे खर्च कर सकता है, या फिर चाहे तो उसे रखा रहने दे सकता है“ (2573)।

author : ram swarup

अरे यह कुली महात्मा

अरे यह कुली महात्मा

बहुत पुरानी बात है। आर्यसमाज के विज़्यात और शूरवीर संन्यासी, शास्त्रार्थ महारथी स्वामी श्री रुद्रानन्दजी टोबाटेकसिंह (पश्चिमी पंजाब) गये। टोबाटेकसिंह वही क्षेत्र है, जहाँ आर्यसमाज के एक मूर्धन्य विद्वान् आचार्य भद्रसेनजी अजमेरवालों का जन्म हुआ। स्टेशन से उतरते ही स्वामीजी ने अपने भारी सामान के लिए कुली, कुली पुकारना आरज़्भ किया।

उनके पास बहुत सारी पुस्तकें थीं। पुराने आर्य विद्वान् पुस्तकों का बोझा लेकर ही चला करते थे। ज़्या पता कहाँ शास्त्रार्थ करना पड़ जाए।

टोबाटेकसिंह स्टेशन पर कोई कुली न था। कुली-कुली की पुकार एक भाई ने सुनी। वह आर्य संन्यासी के पास आया और कहा-‘‘चलिए महाराज! मैं आपका सामान उठाता हूँ।’’ ‘‘चलो

आर्यसमाज मन्दिर ले-चलो।’’ ऐसा स्वामी रुद्रानन्द जी ने कहा।

साधु इस कुली के साथ आर्य मन्दिर पहुँचा तो जो सज्जन वहाँ थे, सबने जहाँ स्वामीजी को ‘नमस्ते’ की, वहाँ कुलीजी को ‘नमस्ते महात्मा जी, नमस्ते महात्माजी’ कहने लगे। स्वामीजी यह देख कर चकित हुए कि यह ज़्या हुआ! यह कौन महात्मा है जो मेरा सामान उठाकर लाये।

पाठकवृन्द! यह कुली महात्मा आर्यजाति के प्रसिद्ध सेवक महात्मा प्रभुआश्रितजी महाराज थे, जिन्हें स्वामी रुद्रानन्दजी ने प्रथम बार ही वहाँ देखा। इनकी नम्रता व सेवाभाव से स्वामीजी पर

विशेष प्रभाव पड़ा।

*सच्ची रामायण की पोल खोल-८

*सच्ची रामायण की पोल खोल-८
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक कार्तिक अय्यर ।
।।ओ३म्।।
धर्मप्रेमी सज्जनों! नमस्ते ।पिछले लेख मे हमने पेरियार साहब के ‘कथा स्रोत’ नामक लेख का खंडन किया।आगे पेरियार साहब अपने निराधार तथ्यों द्वारा श्रीराम पर अनर्गल आक्षेप और गालियों की बौछार करते हैं।
*प्रश्न-८इस बात प अधिक जोर दिया गया है कि रामायण का प्रमुख पात्र राम मनुष्य रूप में स्वर्ग से उतरा और उसे ईश्वर समझा जाना चाहिये।वाल्मीकि ने स्पष्ट लिखा है कि राम विश्वासघात,छल,कपट,लालच,कृत्रिमता,हत्या,आमिष-भोज,और निर्दोष पर तीर चलाने की साकार मूर्ति था।तमिलवासियों तथा भारत के शूद्रों तथा महाशूद्रों के लिये राम का चरित्र शिक्षा प्रद एवं अनुकरणीय नहीं है।*
*समीक्षा* बलिहारी है इन पेरियार साहब की!आहाहा!क्या गालियां लिखी हैं महाशय ने।लेखनी से तो फूल झर रहे हैं! श्रीराम का तो पता नहीं पर आप गालियां और झूठ लिखने की साक्षात् मूर्ति हैं।आपके आक्षेपों का यथायोग्य जवाब तो हम आगे उपयुक्त स्थलों पर देंगे।फिलहाल संक्षेप में उत्तर लिखते हैं।
  श्रीरामचंद्रा का चरित्र उनको ईश्वर समझने हेतु नहीं अपितु एक आदर्श मानव चित्रित करने हेतु रचा गया है।यह सत्य है कि कालांतर में वाममार्गियों,मुसलमानों और पंडों ने रामायण में कई प्रक्षेप किये हैं।उन्हीं में से एक मिलावट है राम जी को ईश्वरावतार सिद्ध करने की है।इसलिये आपको प्रक्षिप्त अंश पढ़कर लगा होगा कि ‘ श्रीराम को ईश्वरावतार समझना’ अनिवार्य है।परंतु ऐसा नहीं है।देखिये:-
*एतदिच्छाम्यहं श्रोतु परं कौतूहलं हि मे।महर्षे त्वं समर्थो$सि ज्ञातुमेवं विधं नरम्।।* (बालकांड सर्ग १ श्लोक ५)
 आरंभ में वाल्मीकि जी नारदजी से प्रश्न करते हैं:-“हे महर्षे!ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति के संबंध में जानने की मुझे उत्कट इच्छा है,और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं।” ध्यान दें!श्लोक में नरः पद से सिद्ध है कि श्रीराम ईश्वरानतार नहीं थे।वाल्मीकि जी ने मनुष्य के बारे में प्रश्न किया है और नारदजी ने मनुष्य का ही वर्णन किया ।
*महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने यह सिद्ध किया है कि ईश्वर का अवतारलेना संभव नहीं।परमात्मा के लिये वेद में “अज एकपात” (ऋग्वेद ७/३५/१३)’सपर्यगाच्छुक्रमकायम'(यजुर्वेद ४०/८)इत्यादि वेद वचनों में ईश्वर को कभी जन्म न लेने वाला तथा सर्वव्यापक कहा है।(विस्तार के लिये देखें:- सत्यार्थप्रकाश सप्तमसमुल्लास पृष्ठ १५७)
 अतः राम जी ईश्वर नहीं अपितु महामानव थे।
 महर्षि वाल्मीकि ने कहीं भी श्रीरामचंद्र पर विश्वासघात, लालच,हत्या आदि के दोष नहीं लगाये वरन् उनको *सर्वगुणसंपन्न*अवश्य कहा है।आपको इन आक्षेपों का उत्तर श्रीराम के प्रकरणमें दिया जायेगा।फिलहाल वाल्मीकि जी ने राम जी के बारे में क्या *स्पष्ट* कहा है वह देखिये। *अयोध्याकांड प्रथम सर्ग श्लोक ९-३२*
*सा हि रूपोपमन्नश्च वीर्यवानसूयकः।भूमावनुपमः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमः।९।कदाचिदुपकारेण कृतेतैकेन तुष्यति।न स्मरत्यपकारणा शतमप्यात्यत्तया।११।*
अर्थात्:- श्रीराम बड़े ही रूपवान और पराक्रमी थे।वे किसी में दोष नहीं देखते थे।भूमंडल उसके समान कोई न था।वे गुणों में अपने पिता के समान तथा योग्य पुत्र थे।९।।कभी कोई उपकार करता तो उसे सदा याद करते तथा उसके अपराधों को याद नहीं करते।।११।।
आगे संक्षेप में इसी सर्ग में वर्णित श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं।देखिये *श्लोक १२-३४*।इनमें श्रीराम के निम्नलिखित गुण हैं।
१:-अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता।महापुरुषों से बात कर उनसे शिक्षा लेते।
२:-बुद्धिमान,मधुरभाषी तथा पराक्रम पर गर्व न करने वाले।
३:-सत्यवादी,विद्वान, प्रजा के प्रति अनुरक्त;प्रजा भी उनको चाहती थी।
४:-परमदयालु,क्रोध को जीतने वाले,दीनबंधु।
५:-कुलोचित आचार व क्षात्रधर्मके पालक।
६:-शास्त्र विरुद्ध बातें नहीं मानते थे,वाचस्पति के समान तर्कशील।
७:-उनका शरीर निरोग था(आमिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता),तरूण अवस्था।सुंदर शरीर से सुशोभित थे।
८:-‘सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् सांगवेदवित’-संपूर्ण विद्याओं में प्रवीण, षडमगवेदपारगामी।बाणविद्या में अपने पिता से भी बढ़कर।
९:-उनको धर्मार्थकाममोक्ष का यथार्थज्ञान था तथा प्रतिभाशाली थे।
१०:-विनयशील,गुरुभक्त,आलस्य रहित थे।
११:- धनुर्वेद में सब विद्वानों से श्रेष्ठ।
कहां तक वर्णन किया जाये? वाल्मीकि जी ने तो यहां तक कहा है कि *लोके पुरुषसारज्ञः साधुरेको विनिर्मितः।*( वही सर्ग श्लोक १८)
अर्थात्:- *उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था कि संसार में विधाता ने समस्त पुरुषों के सारतत्त्व को समझनेवाले साधु पुरुष के रूपमें एकमात्र श्रीराम को ही प्रकच किया है।*
 अब पाठकगण स्वयं निर्णय कर लेंगे कि श्रीराम क्या थे?लोभ,हत्या,मांसभोज आदि या सदाचार और श्रेष्ठतमगुणों की साक्षात् मूर्ति।
 श्रीराम के विषय में वर्णित विषय समझना मानव बुद्धि से परे नहीं है।शायद आप अपनी भ्रांत बुद्धि को समस्त मानवों की बुद्धि समझने की भूल कर दी।रामायण को यदि कोई पक्षपातरहित होकर पढे़ तो अवश्य ही जान जायेगा कि श्रीराम का चरित्र कितना सुगम व अनुकरणीय है।
आगे दुबारा शूद्रों और महाशूद्रों का कार्ड खेलकर लिखा है कि इन लोगों के लिये कुछ भी अनुकरणीय व शिक्षाप्रद नहीं है।यह पाठक रामायण का अध्ययन करके स्वतः जान जायेंगे कि उनके लिये क्या अनुकरणीय है?
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद ।
कृपया पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें।
क्रमशः—–
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा

हदीस : कुछ परिस्थितयों में उपवास अनिवार्य नहीं

कुछ परिस्थितयों में उपवास अनिवार्य नहीं

कुछ परिस्थितियों में उपवास वैकल्पिक है। मसलन, यात्रा के समय उपवास तोड़ा जा सकता है। इस विषय में किसी के पूछने पर मुहम्मद बोले-”चाहो तो रोज़ा रखो, चाहो तो तोड़ दो“ (2488)।

 

अगर आप ”अल्लाह की राह” यानी जिहाद में व्यस्त हैं, तो रोज़ा न रखने का भी पुरस्कार है। मुहम्मद मोमिनो से कहते हैं-”तुम सुबह दुश्मन से भिड़ने जा रहे हो और रोज़ा तोड़ने से ताकत मिलती है, तो रोज़ा तोड़ दो“ (2486)।

 

कई बार औरतें उपवास नहीं रखती थीं, ताकि वे अपने खाविंद के प्रति अपना फर्ज़ बेरोक निभा सकें। आयशा बतलाती हैं-”मुझे रमज़ान के कुछ रोज़े पूरे करने थे, पर मैं नहीं कर सकी ….. अल्लाह के रसूल के प्रति अपना फर्ज़ निभाने के लिए“ (2549)। मुहम्मद की दूसरी बीवियों के बारे में भी आयशा यही बतलाती हैं। ”अल्लाह के रसूल के जीवन-काल में, अगर हममें से किसी को (रमज़ान के रोज़े स्वाभाविक कारणों से यानी माहवारी के कारण) तोड़ने पड़ जाते तो फिर उन्हें पूरा करने का मौका, रसूल-अल्लाह के पास रहने के कारण, शबान (आठवें महीने) के आने तक नहीं पाती थी“ (2552)। अनुवादक व्याख्या करते हैं कि मुहम्मद की प्रत्येक बीवी ”उनके प्रति अधिक समर्पित थी कि वह रोज़े टाल जाती थी ताकि उनके प्रति बीवी का फर्ज़ निभाने में उसे रोज़े की रुकावट आड़े न आए“ (टि0 1546)।

 

फिर समर्पण के कारण ही नहीं, बल्कि मुहम्मद के आदेश के कारण भी बीवियां रोज़े नहीं रखती थीं। ”जब खाविन्द (घर पर) मौजूद हो तो उसकी इजाज़त के बिना किसी भी औरत को रोज़ा नहीं रखना चाहिए। और खविन्द की मौजूदगी में उसकी इजाज़त के बिना औरत को किसी भी महरम को घर में नहीं आने देना चाहिए“ (2238)। (महरम उस नज़दीकी रिश्तेदार को कहते हैं, जिसके साथ विवाह अवैध होता है)। औरत उसकी मौजूदगी में आज़ाद महसूस करती है और उसे पर्दा रखने की जरूरत नहीं होती।

 

अनुवादक हमें इस आदेश का औचित्य बतलाते हैं। ”इस्लाम का लोगों की प्राकृतिक प्रवृत्तियों के प्रति ऐसा सम्मान-भाव है कि वह औरतों को (स्वेच्छा से) उपवास न रखने की और अपने उन रिश्तेदारों को भी अपने कमरे में न आने देने की व्यवस्था देता है, जो उनके लिए महरम हों, जिससे कि वे (महरम) खाविन्दों द्वारा यौन-वासना की तृप्ति के रास्ते में बाधा न बने“ (टि0 1387)।

author : ram swarup

न जान, न पहचान-फिर भी

न जान, न पहचान-फिर भी

एक बार पूज्य स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी महाराज अपने भज़्त वैद्य तिलकराम जी ब्रह्मचारी के औषधालय उन्हें मिलने गये। तब वैद्य जी भीतर रोगियों को देखने में व्यस्त थे। कुछ रोगी बाहर के कमरे में अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। वहीं एक बैंच पर लेटा हुआ एक रोगी शिर दर्द से हाय हाय कर रहा था। दर्द के मारे आँखें भी नहीं खोल सकता था। स्वामी जी उसके पास ही बैठे थे।

उसकी व्याकुलता देखकर आपने उसका सिर दबाना आरज़्भ कर दिया। कुछ ही मिनटों में उसे कुछ चैन आया। उसने आँखें खोलीं।

एक प्रतापी साधु को सिर दबाते देखकर बोला, महात्मन! यह ज़्या कर रहे हैं? मुझ साधारण व्यज़्ति का सिर……। महाराज बोले, ‘‘जो बड़े छोटों की सेवा नहीं करेंगे तो छोटों को सेवा करना कैसे आएगा?’’

सच्ची रामायण की पोल खोल-७

*सच्ची रामायण की पोल खोल-७-
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक *कार्तिक अय्यर*
।।ओ३म ।।
 धर्मप्रेमी सज्जनों! नमस्ते!
पेरियार साहब के ‘कथा प्रसंग’नामक लेख का खंडन आगे करते हैं।
*प्रश्न-७* *रामायण में जो सद्गुण, दूरंदेश,करुणा,शुभेच्छाओं की शिक्षा,जिस निर्मूल रूप से दी गई है,वह मानव-शक्ति तथा समझ के परे है-आदि बातें लिखी हैं*(पेज नंबर १५ पंक्ति ५)
*समीक्षा*:-
*मजा़ आता जिसे है जहर के प्याले चढ़ाने में ही,वह व्यक्ति अमृत-तत्व का महत्व क्या जाने।*
*मन में अगर दशशीश के दश शीश बसते हों,वह व्यक्ति प्रभु श्रीराम यश- सामर्थ्य क्या जाने।।*
रामायण एक सार्वभौमिक ग्रंथ है।आपके दिये तर्क कितने हास्यास्पद हैं,यह तो पाठकजन वाल्मीकि रामायण पढ़कर ही जान लेंगे।आप कहते हैं कि ‘रामायण की सद्गुण आदि की शिक्षायें निर्मूल तथा असत्य रूप से दी गई हैं’। सच कहें तो आपकी पुस्तक और लेखनी है।रामायण का मूल ही नैतिक मूल्यों का प्रकाश करना है ,जो मानववमात्र के लिये सहज,सरल,बोधगम्य,और अनुकरणीय है।’मानव शक्ति की समझ से परे हैं ‘-यह कहना ठीक नहीं।शायद आपने अपनी बुद्धि-सामर्थ्य को सम्पूर्ण मानवों की मानव-शक्ति समझने कीभूल कर दी।रामायण तो “यावच्चंद्र दिवाकरौ” है जबकि आपकी पुस्तक की हैसियत सड़े-गले कूड़ेदान में ही है।
अस्तु।
हम आपको वाल्मीकि रामायण की रचना का कारण बताता हूं।देखिये-
*श्रुत्वा वस्तु समग्रं तद्धर्मार्थसहितंसहितम्।व्यक्तमन्वेषते भूयो यद्वृत्तं तस्यधीमतः।।* (बालकांड सर्ग ३ श्लोक १)
*अर्थात् -नारदजी से श्रीराम का चरित्र सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने धर्म-अर्थ से युक्त सर्वजन-हितकारी राम के जीवन की घटनाओं को उत्तम प्रकार से एकत्रित करना आरंभ किया*
साफ है, ‘धर्मार्थ काम मोक्ष युक्त होने से श्रीराम चरित्र सर्वजनहिताय सर्वजन सुखाय है।’यही रामायण का उद्देश्य है।
रामायण में सद्गुणों का सागर है।श्रीराम एक आदर्श महामानव,पति,प्रजापालक,मित्र तथा योद्धा हैं।श्रीलक्ष्मण जी एक आदर्श भ्राता हैं जो बड़े भाई के सुख-दुख ,लाभ-हानि में नगर हो या जंगल,हर जगह साथ खड़े रहते हैं।भगवती सीता जी एक ऐसी नारी-रत्न हैं,जिनके पातिव्रत्य,शील तथा तेज के आगे आगे रावण जैसा प्रतापी भी फीका पड़ जाता है।मां सीता मन,कर्म तथा वाणीसे पति-प्रेम में अनुरक्त हैं।रावण ज्ञानवान तथा प्रतापी होते हुये भी अपने नीच कर्मों के कारण पतित हुआ।इस प्रकार रामायण में आज्ञापालन,दीन,दुर्बल एवं आश्रित संरक्षण,एकपत्नीकव्रत,आदर्श पातिव्रत्य, न्यायानुकूलआचरण,त्याग,उदारता,शौर्य तथा वीरता की शिक्षायें प्राप्त होती हैं,जो यत्र-तत्र मोतियों के समान बिखरी पड़ी है।कहां तक कहा जाये?पाठकजन संक्षेप में ही रामायण का महत्व समझ जायेंगे।
क्रमशः—–
आगे की पोस्ट में पुरजोर खंडन किया जायेगा।पाठकगण इसका आनंद लेवें।
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये
धन्यवाद ।
 कृपया पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा

हदीस : रमज़ान के दौरान मैथुन की अनुमति

रमज़ान के दौरान मैथुन की अनुमति

उपवास की कठोरता को पैगम्बर इस घोषणा द्वारा बहुत-कुछ सौम्य बना देते हैं कि ”भूल से खा-पी लेने पर उपवास नहीं टूटता“ (2475)। चुम्बन और आलिंगन की भी अनुमति है (2436-2450)। मुहम्मद की बीवियां-आयशा, हफ्सा और सलमा, सभी बतलाती हैं कि पैगम्बर उपवास के दौरान उन्हें चूमते थे और आलिंगन में बांध लेते थे। आयशा बतलाती हैं-”रोजे के दौरान अल्लाह की रसूल ने अपनी बीवियों में से एक को चूम लिया और तब वे (आयशा) मुस्कुरा उठी“ (2436)।

 

अनुवादक व्याख्या करते हैं-”मानवजाति पर अल्लाह की यह बहुत बड़ी मेहरबानी है कि उसने अपने पैगम्बर मुहम्मद के जरिए हमारे जीवन के हर क्षेत्र में हमारा पथ-प्रदर्शन किया। इस्लाम से पहले लोग उपवास की अवधि में अपनी बीवियों से पूरी तरह परहेज़ करते थे। इस्लाम ने इस रीति का अनुमोदन नहीं किया“ (टि0 1502)।

 

उपवास वाली रात में मैथुन की भी अनुमति है। उसको दैवी स्वीकृति दी गई है। कुरान का कहना है-”रोजों की रातों में तुम्हारे लिए अपनी औरतों के पास जाना जायज़ कर दिया गया है“ (2/187)। यहां तक कि यदि कोई वीर्य-स्राव की दशा में सोकर उठता है और वह, विधिविहित स्नान कर पाए, इसके पहले ही सूर्योदय हो जाता है, तब भी उसे उपवास जारी रखना चाहिए। जनवह की दशा में भी (जिसमें व्यक्ति ”अस्वच्छ“ होता है और कोई मज़हबी काम नहीं कर सकता अथवा मज़हबी सभाओं में नहीं जा सकता) रोज़ा टूटता नहीं।

 

मुहम्मद की बीवियां, आयशा और सलमा बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल रमज़ान के महीने में कई बार मैथुन, के उपरान्त, जुनुब की दशा में सुबह उठते थे और रोज़ा रखते थे“ (2454)। इसी विषय पर अन्य अहादीस भी हैं (2451-2456)।

 

रमज़ान के महीने में दिन में मैथुन किया जाए तो उसके प्रायश्चित का विधान है-या तो एक गुलाम को आजाद कर देना, या ऐसा न हो जाए तो दो महीने रोज़ा रखना, या वह भी न हो जाए तो साठ गरीब लोगों को खाना खिला देना। पर पैगम्बर की जिन्दगी में ही इस निषेध का उल्लंघन करने वाले एक गरीब का प्रायश्चित मुफ्त में हो गया। मुहम्मद ने उसे खजूर की एक डलिया दी और कहा-”जाओ और इसे अपने घर वालों को खिलाओ“ (2457)।

 

जो रोज़े छूट जायें, वे बाद में साल के भीतर कभी भी पूरे किए जा सकते हैं। औरतें माहवारी के दिनों में रोज़े नहीं रखतीं, पर अगले साल का रमज़ान आने के पहले (शावान के महीने में) कभी भी वे उतने दिन के उपवास पूरा कर लें।

author : ram swarup