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एक आपबीती

एक आपबीती

मैं स्कूल का अध्यापक था। मेरे लेखों के कारण तथा सामाजिक गतिविधियों के कारण आर्यजगत् के बहुत लोग मुझे जानते थे। हिन्दी सत्याग्रह के पश्चात् मैं स्कूल छोड़कर दयानन्द कॉलेज हिसार की एम0ए0 कक्षा में प्रविष्ट हो गया। कॉलेज के प्राचार्य थे

प्रिं0 ज्ञानचन्द्रजी (स्वामी मुनीश्वरानन्दजी) हिसारवाले। वे यदा-कदा मुझे व्याज़्यान तथा प्रचार के लिए भी, कभी कहीं जाने को कह देते। कॉलेज में प्रविष्ट हुए एक-दो सप्ताह ही बीते कि उन्होंने आर्यसमाज, माडल टाउन के साप्ताहिक सत्संग में मेरा व्याज़्यान रख दिया। वे स्वयं माडल टाऊन में ही रहते थे।

व्याज़्यान से वे प्रभावित हुए। सत्संग के पश्चात् मुझे अपने घर पर भोजन के लिए कहा। मैं उनके साथ चला गया।

वे स्वयं मुझे भोजन करवाने लगे। मैंने कहा कि आप भी बैठिए। मेरे बहुत कहने पर भी प्रिंसिपल साहब न माने। घर पर सेवक भी था। उसे भी भोजन न लाने दिया। स्वयं ही परोसने लगे।

मुझे प्रतिष्ठित अतिथि बनाकर एक ओर बैठकर आर्यसमाज विषयक चर्चाएँ करते रहे। मैं इस दृश्य को कभी नहीं भूल पाता।