सच्ची रामायण की पोल खोल-७

*सच्ची रामायण की पोल खोल-७-
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक *कार्तिक अय्यर*
।।ओ३म ।।
 धर्मप्रेमी सज्जनों! नमस्ते!
पेरियार साहब के ‘कथा प्रसंग’नामक लेख का खंडन आगे करते हैं।
*प्रश्न-७* *रामायण में जो सद्गुण, दूरंदेश,करुणा,शुभेच्छाओं की शिक्षा,जिस निर्मूल रूप से दी गई है,वह मानव-शक्ति तथा समझ के परे है-आदि बातें लिखी हैं*(पेज नंबर १५ पंक्ति ५)
*समीक्षा*:-
*मजा़ आता जिसे है जहर के प्याले चढ़ाने में ही,वह व्यक्ति अमृत-तत्व का महत्व क्या जाने।*
*मन में अगर दशशीश के दश शीश बसते हों,वह व्यक्ति प्रभु श्रीराम यश- सामर्थ्य क्या जाने।।*
रामायण एक सार्वभौमिक ग्रंथ है।आपके दिये तर्क कितने हास्यास्पद हैं,यह तो पाठकजन वाल्मीकि रामायण पढ़कर ही जान लेंगे।आप कहते हैं कि ‘रामायण की सद्गुण आदि की शिक्षायें निर्मूल तथा असत्य रूप से दी गई हैं’। सच कहें तो आपकी पुस्तक और लेखनी है।रामायण का मूल ही नैतिक मूल्यों का प्रकाश करना है ,जो मानववमात्र के लिये सहज,सरल,बोधगम्य,और अनुकरणीय है।’मानव शक्ति की समझ से परे हैं ‘-यह कहना ठीक नहीं।शायद आपने अपनी बुद्धि-सामर्थ्य को सम्पूर्ण मानवों की मानव-शक्ति समझने कीभूल कर दी।रामायण तो “यावच्चंद्र दिवाकरौ” है जबकि आपकी पुस्तक की हैसियत सड़े-गले कूड़ेदान में ही है।
अस्तु।
हम आपको वाल्मीकि रामायण की रचना का कारण बताता हूं।देखिये-
*श्रुत्वा वस्तु समग्रं तद्धर्मार्थसहितंसहितम्।व्यक्तमन्वेषते भूयो यद्वृत्तं तस्यधीमतः।।* (बालकांड सर्ग ३ श्लोक १)
*अर्थात् -नारदजी से श्रीराम का चरित्र सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने धर्म-अर्थ से युक्त सर्वजन-हितकारी राम के जीवन की घटनाओं को उत्तम प्रकार से एकत्रित करना आरंभ किया*
साफ है, ‘धर्मार्थ काम मोक्ष युक्त होने से श्रीराम चरित्र सर्वजनहिताय सर्वजन सुखाय है।’यही रामायण का उद्देश्य है।
रामायण में सद्गुणों का सागर है।श्रीराम एक आदर्श महामानव,पति,प्रजापालक,मित्र तथा योद्धा हैं।श्रीलक्ष्मण जी एक आदर्श भ्राता हैं जो बड़े भाई के सुख-दुख ,लाभ-हानि में नगर हो या जंगल,हर जगह साथ खड़े रहते हैं।भगवती सीता जी एक ऐसी नारी-रत्न हैं,जिनके पातिव्रत्य,शील तथा तेज के आगे आगे रावण जैसा प्रतापी भी फीका पड़ जाता है।मां सीता मन,कर्म तथा वाणीसे पति-प्रेम में अनुरक्त हैं।रावण ज्ञानवान तथा प्रतापी होते हुये भी अपने नीच कर्मों के कारण पतित हुआ।इस प्रकार रामायण में आज्ञापालन,दीन,दुर्बल एवं आश्रित संरक्षण,एकपत्नीकव्रत,आदर्श पातिव्रत्य, न्यायानुकूलआचरण,त्याग,उदारता,शौर्य तथा वीरता की शिक्षायें प्राप्त होती हैं,जो यत्र-तत्र मोतियों के समान बिखरी पड़ी है।कहां तक कहा जाये?पाठकजन संक्षेप में ही रामायण का महत्व समझ जायेंगे।
क्रमशः—–
आगे की पोस्ट में पुरजोर खंडन किया जायेगा।पाठकगण इसका आनंद लेवें।
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये
धन्यवाद ।
 कृपया पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *