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तुज़्हें याद हो कि न याद हो

तुज़्हें याद हो कि न याद हो

1903 ई0 की बात है प्रसिद्ध विद्वान् व लेखक श्री मुंशी इन्द्रमणिजी मुरादाबाद के एक अज़ीज़ भगवतसहाय भ्रष्ट बुद्धि होकर मुसलमान बन गये। वह मुंशी इन्द्रमणि, जिसकी लौह लेखनी से इस्लाम काँपता था, उसी की सन्तान में से एक मुसलमान बन जाए! मुसलमान तब वैसे ही इतरा रहे थे जैसे हीरालाल गाँधी के मुसलमान बनने पर। तब आर्यसमाज लाहौर में मुंशीजी के उस पौत्र को पुनः शुद्ध करके आर्यजाति का अङ्ग बनाया गया। मुंशी जगन्नाथदास के बहकावे

में आकर ऋषि दयानन्द व आर्यसमाज के विरुद्ध निराधार बातें कहने व लिखनेवाले मुंशी इन्द्रमणि तब जीवित होते तो ऋषि के उपकारों का ध्यान कर मन-ही-मन में कितना पश्चाज़ाप करते! आज भी इस बात की आवश्यकता है कि आर्यसमाज शुद्धि के कार्य को सतर्क व सक्रिय होकर करे। इसके लिए जन्म की जाति-पांति की गली-सड़ी कड़ियाँ तोड़ने का हम सबको साहस

करना चाहिए।

ढोंगी बाबाओं की दौड़ में एक चेहरा ये भी मौलाना अग्निवेश

 

agnivesh 1

देश में बढ़ रहे बाबाओं के प्रकोप और उनकी उग्र भीड़ ने इस देश को यह सीख तो दे ही दी है की इस देश में पाखंड अपने चरम पर है

गुरुडम की परम्परा कितनी घातक है इस देश के लिए जिसका नमूना हरियाणा दो बार देख चूका है और थोड़ी सी आशा जगी है की देश की आने वाली पीढ़ी अब इस गुरुडम से दूर रहेगी

मेरा मन्तव्य यह नही की किसी को गुरु न समझे गुरु तो हर वह मनुष्य है जिससे आप कुछ न कुछ किसी न किसी प्रकार से सीखते है परन्तु वह गुरु घातक है जो “गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागू पाय” वाली पंक्तियों को अपने पर लागू करवाते है

अर्थात वह गुरु घातक है जो अपने आप को ईश्वर के समकक्ष और उससे ऊपर दिखाए

 

आज इस देश में यही तो सब कुछ हो रहा महत्वकांक्षाओं के दायरे को पूरा करने के लिए कुछ लोग अपने आप को बाबा सिद्ध कर अपने शासन करने के स्वप्न को पूरा करने के लिए हर हद पार कर रहे है

मेरा मानना है की विद्वान कोई भी हो स्कोलर कैसा भी हो जब आपको उसमें अहंकार एक सिमित मात्रा से अधिक दिखने लग जाए उसे दरकिनार करना ही उचित है क्यूंकि उस राम रूपी विद्वान (जिसमें अहंकार बढ़ता जा रहा है) को आपके अत्यधिक समर्थन से रावण बनते देर नहीं लगेगी

 

इसी गलती से आज इस देश को कुछ रावण मिले है

 

रामपाल

रामवृक्ष

राम-रहीम

आशाराम

 

इनके समर्थकों में एक बात जो एक जैसी है वह ही शिक्षा का स्तर इन सभी रावणों के समर्थक लगभग निरक्षर या अल्पबुद्धि वाले है परन्तु कुछ भेड़ चाल के आदि पढ़े लिखे लोग भी इन रावणों के समर्थक बने बैठे है मेरी पीड़ा उस वर्ग को लेकर अधिक है क्यूंकि बिन आँखों के व्यक्ति का ठोकर खाकर गिरना और कई जगहों पर गिरते रहना स्वाभाविक और उसमें उसकी गलती नही परन्तु आँखे होते हुए जो गढ़े में गिरे ऐसे लोगों के प्रति पीड़ा होना लाजमी है

मुझे आश्चर्य होता है की इस विकासशील देश में जो एक जगह तो चाँद पर पहुँच चूका है और एक जगह आज भी कुछ तथाकथित बाबाओं का अंधभक्त बना हुआ है ऐसा क्यों है

 

जवाब बहुत साधारण है

 

वैदिक शास्त्रों से दुरी, वेदों के प्रति अरुचि, अनभिज्ञता, और अवैदिक साहित्यों के प्रति अधिक रूचि |

 

आर्य समाज में भी इसी तरह का एक व्यक्ति घुसा हुआ है (जबरदस्ती एक सभा के पद पर काबिज है)

आर्य समाज ने तो इस व्यक्ति की खाल के निचे छुपे भेड़िये को पहचान लिया है अब हमारा कर्तव्य है इसके बारे में आपको जानकारी दे दी जाय सूचित किया जिससे आने वाले समय में यह भेड़िया इन रावणों की तरह देश को वह और उसके अंधभक्त नुक्सान न पहुंचा सके

और आर्य समाज निवेदन करता है की देश में फेले ऐसे सांपो को पहचान कर समय पर ही इनके फन काट दिए जाए अन्यथा देश पुनः कई घातक परिणाम भुगतेगा

आर्य समाज में एक तथाकथित, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाला अग्निवेश जबरदस्ती घुसा बेठा है आर्य समाज ने तो उसे उसके पसंद के मजहब के लोगों का पसंदीदा तीन तलाक दे दिया है परन्तु यह व्यक्ति अब भी अपने वीडियों कार्यक्रमों में स्वामी दयानन्द सरस्वती की फोटो लगाकर लोगों को गुमराह कर रहा है और आर्य समाज के प्रति लोगों के हृदय में विष घोल रहा है

चिंता तो अब यही है की जिस प्रकार व्यक्ति पूजा में अंधे लोग जिस प्रकार इन बाबाओं के समर्थन में देश में आगजनी करते आये है उसी तरह यदि इस अग्निवेश पर शिकंजा नहीं कसा गया तो मुसलमान वैदिक धर्म के प्रति उग्र और हावी होने लगेंगे और इसके समर्थक जो एक शांतिप्रिय सम्प्रदाय से है वे समय आने पर अग्निवेश के लिए भी इस देश में आगजनी कर देंगे

अग्निवेश किसी प्रकार का समाज सेवी नहीं अपितु एक षड्यंत्र का हिस्सा है यह वामपंथी विचारधारा का व्यक्ति इस देश की अखंडता और सम्प्रभुता को नष्ट करने के लिए कार्यरत है

इसका जितना विरोध किया जा सकता है करना चाहिए

अंत में एक निवेदन

अपने वास्तविक पिता (ईश्वर जो निराकार है सर्वव्यापी है) को छोड़कर गल्ली कुचे में बैठे बाबाओं को अपना पिता मत बनाइए

उन्हें अपना पिता बनाने से आपका सर्वनाश ही है कल्याण नहीं

हदीस : मातम

मातम

जिस औरत का पति मर गया हो उसे इद्दा की अवधि में साज-सिंगार से परहेज करना चाहिए। लेकिन दूसरे रिश्तेदारों के लिए तीन दिन से ज्यादा का मातम नहीं करना चाहिए (3539-3552)। अबू सूफियां मर गये। वे मुहम्मद की बीवियों में से एक, उम्म हबीबी, के पिता थे। उसने कुछ इत्र मंगाया और अपने गालों पर मला और बोली-“क़सम अल्लह की ! मुझे इत्र नहीं चाहिए। लगाया सिर्फ़ इसलिए कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर को यह कहते सुना-अल्लाह और बहिश्त पर यक़ीन रखने वाली मोमिन औरत को इस बात की इज़ाज़त नहीं है कि वह मृतकों के लिए तीन दिन से ज्यादा का मातम करे, किंतु पति की मृत्यु के मामले में चार महीने और दस दिन तक मातम करने की इज़ाज़त है“ (3539)।

author : ram swarup

आर्यसमाजी बन गया तो ठीक किया

आर्यसमाजी बन गया तो ठीक किया

1903 ई0 में गुजराँवाला में एक चतुर मुसलमान शुद्ध होकर धर्मपाल बना। इसने गिरगिट की तरह कई रङ्ग बदले। इस शुद्धिसमारोह में कॉलेज के कई छात्र सज़्मिलित हुए। ऐसे एक युवक

को उसके पिता ने कहा-‘‘हरिद्वार जाकर प्रायश्चिज़ करो, नहीं तो हम पढ़ाई का व्यय न देंगे।’’ प्रसिद्ध आर्य मास्टर लाला गङ्गारामजी को इसका पता लगा। आपने उस युवक को बुलाकर कहा तुम पढ़ते रहो, मैं सारा खर्चा दूँगा। इस प्रकार कई मास व्यतीत हो गये तो लड़के के पिता वज़ीराबाद में लाला गङ्गारामजी से मिले और कहा-‘आप हमारे लड़के को कहें कि वह घर चले, वह आर्यसमाजी बन गया है तो अच्छा ही किया। हमें पता लग गया कि आर्यसमाजी बहुत अच्छे होते हैं।’ ऐसा था आर्यों का आचरण।

हदीस : तलाक़शुदा के लिए गुज़ारा-भत्ता नहीं

तलाक़शुदा के लिए गुज़ारा-भत्ता नहीं

फ़ातिमा बिन्त क़ैस को उसके पति ने “जब वह घर से बाहर था“ तलाक़ दे दिया। वह बहुत नाराज हुई और मुहम्मद के पास पहुंची। उन्होंने उससे कहा कि ”अटल तलाक़ दे दिये जाने पर औरत को आवास और गुजारे के लिए कोई भत्ता नहीं दिया जाता।“ लेकिन पैग़म्बर ने कृपा करके उसके लिए दूसरा खाविंद खोजने में उसकी मदद की। उसके सामने दो दावेदार थे-अबू जहम और मुआविया। मुहम्मद ने दोनों के खि़लाफ राय दी। कारण, पहले वाले के ”कंधे से लाठी कभी नहीं उतरती थी“ (अर्थात् वह अपनी बीवियों को पीटता रहता था) और दूसरा ग़रीब था। उन दोनों की जगह उन्होंने अपने गुलाम और मुंह-बोले बेटे ज़ैद के लड़के उसाम बिन ज़ैद का नाम पेश किया (3512)।

 

बाद में एक अधिक उदार भावना उभरी। उमर ने व्यवस्था दी कि पतियों को अपनी तलाक़शुदा बीवियों के लिए इद्दा की अवधि में गुजारा-भत्ता देना चाहिए, क्योंकि फक़त एक औरत होने के कारण पैग़म्बर के लफ्जों का सच्चा मक़सद फातिमा ने गलत समझा। ”हम अल्लाह की किताब और अपने रसूल के सुन्ना को एक औरत के लफ्ज़ों की खातिर नहीं छोड़ सकते“ (3524)।

 

इद्दा इंतजार की वह अवधि है, जिसमें औरत दूसरी शादी नहीं कर सकती। सामान्यतः वह चार महीने और दस दिन की होती है। लेकिन उस बीच औरत अगर बच्चे को जन्म दे दे तो वह अवधि तुरन्त खत्म हो जाती है। एक बार इद्दा खत्म हो जाने पर औरत दूसरी शादी कर सकती है (3536-3538)।

 

चार महीने के लिए भत्ता देना बहुत मुश्किल नहीं था। इस प्रकार पतियों को भविष्य में किसी बोझ का कोई डर न होने से वे अपनी बीवियों से आसानी के साथ छुटकारा पा जाते थे। फलस्वरूप तलाक़ का डर मुस्लिम औरतों के सिर पर बुरी तरह छाया रहता था।

author : ram swarup

जब तक आर्यसमाज का मन्दिर नहीं बनता

जब तक आर्यसमाज का मन्दिर नहीं बनता

यह घटना उज़रप्रदेश के प्रयाग नगर की है। पूज्य पण्डित गङ्गाप्रसादजी उपाध्याय अपने स्वगृह दया-निवास [जिसमें कला प्रेस था] का निर्माण करवा रहे थे। घर पूर्णता की ओर बढ़ रहा था।

एक दिन उपाध्यायजी निर्माण-कार्य का निरीक्षण कर रहे थे। अनायास ही मन में यह विचार आया कि मेरा घर तो बन रहा है, मेरे आर्यसमाज का मन्दिर नहीं है। यह बड़े दुःख की बात है।

इस विचार के आते ही भवन-निर्माण का कार्य वहीं रुकवा दिया। जब आर्यसमाज के भवन-निर्माण के उपाय खोजने लगे तो ईश्वर की कृपा से उपाध्यायजी का पुरुषार्थ तथा धर्मभाव रंग

लाया। उपाध्याय जी ने अस्तिकवाद पर प्राप्त पुरस्कार समाज को दान कर दिया। मन्दिर का भवन भी बन गया। उसी मन्दिर में विशाल ‘कलादेवी हाल’ निर्मित हुआ।

मैं यह घटना अपनी स्मृति के आधार पर लिख रहा हूँ। घटना का मूल स्वरूप यही है। वर्णन में भेद हो सकता है। यह घटना अपने एक लेख में किसी प्रसङ्ग में स्वयं उपाध्यायजी ने उर्दू

साप्ताहिक रिफार्मर में दी थी। उपाध्यायजी के जीवन की ऐसी छोटी-छोटी, अत्यन्त प्रेरणाप्रद घटनाएँ उनके जीवन-चरित्र ‘व्यक्ति से व्यक्तित्व’ में हमने दी हैं, परन्तु आर्यसमाजी स्वाध्याय से अब कोसों दूर भागते हैं। स्वाध्याय धर्म का एक खज़्बा है। इसके बिना धार्मिक जीवन है ही ज़्या?

हदीस : तलाक़ की पसन्द तलाक़ नहीं

तलाक़ की पसन्द तलाक़ नहीं

ऐसा लगता है कि घरेलू कलह के अन्य मौके भी आते रहते थे, जिनमें से कुछ रुपए-पैसे को लेकर होते थे। ये मदीना-प्रवास के शुरू के दिनों में हुए होंगे, जबकि मुहम्मद के पास धन की कमी थी। एक बार अबू बकर और उमर मुहम्मद के पास गये और देखा कि वे “अपनी बीवियों से घिरे मायूस और खामोश बैठे हैं।“ उन दोनों पिताओं से उन्होंने कहा-“ये (पैग़म्बर की बीवियां और उन दोनों की बेटियां) मुझे घेरे हुए हैं, जैसा कि आप लोग देख ही रहे हैं, और मुझ से ज्यादा रुपये-पैसे मांग रही हैं।“ तब अबू बकर ”उठे और आयशा के पास गये और उसकी गर्दन पर थप्पड़ जमाया और उमर उठे और हफ़्जा को झापड़ लगाया“ (3506)।

 

इस अवसर पर पैग़म्बर ने अपनी बीवियों के सामने विकल्प रखा कि अगर वे ”दुनिया की जिंदगी और उसकी आराइशों की ख़्वास्तगार हों, बनिस्बत अल्लाह और उसके पैग़म्बर के और बनिस्बत बहिश्त के, तो वे (मुहम्मद) अल्लाह के रसूल उनको अच्छी तरह से रुख़सत कर देंगे“ (कुरान 33/28/29)। बीवियों ने पैग़म्बर और बहिश्त को चुना।

 

अनुवादक के अनुसार इस अहादीस (3498-3506) से यह सबक़ मिलता है कि “औरत की ओर से तलाक़ की पसंद जाहिर होने से ही तलाक़ लागू नहीं माना जाता। वह तभी मान्य होता है, जब सचमुच तलाक़ का इरादा हो।“

 

आज भोजन करना व्यर्थ रहा

आज भोजन करना व्यर्थ रहा

फरवरी 1972 ई0 में जब स्वामी श्री सत्यप्रकाशजी सरस्वती अबोहर पधारे तो कई आर्ययुवकों ने उनसे प्रार्थना की कि वे पण्डित गंगाप्रसादजी उपाध्याय के सज़्बन्ध में कोई संस्मरण सुनाएँ।

श्रद्धेय स्वामीजी ने कहा-‘‘किसी और के बारे में तो सुना सकता हूँ परन्तु उपाध्यायजी के बारे में किसी और से पूछें।’’

एक दिन सायंकाल स्वामीजी महाराज के साथ हम भ्रमण को निकले तब वैदिक साहित्य की चर्चा चल पड़ी। मैंने पूछा- ‘उपाध्यायजी का शरीर जर्जर हो चुका था, फिर भी वृद्ध अवस्था में

उन्होंने इतना अधिक साहित्य कैसे तैयार कर दिया? अपने जीवन के अन्तिम दिनों में उन्होंने कितने अनुपम व महज़्वपूर्ण ग्रन्थों का सृजन कर दिया।’’

तब उज़र में स्वामीजी ने कहा-‘‘उपाध्यायजी कहा करते थे, जिस दिन मैंने ऋषि मिशन के लिए कुछ न लिखा उस दिन मैं समझूँगा कि आज मेरा भोजन करना व्यर्थ गया। भोजन करना तभी

सार्थक है यदि कुछ साहित्य सेवा करूँ।’’

आपने बताया कि वे (उपाध्यायजी) एक साथ कई-कई साहित्यिक योजनाएँ लेकर कार्य करते थे। एक से मन ऊबा तो दूसरे कार्य में जुट जाते थे, परन्तु लगे रहते थे। इससे उनका मन भी

लगा रहता था, उनको यह भी सन्तोष होता था कि किसी उपयोगी धर्म-कार्य में लगा हुआ हूँ। बस, यही रहस्य था उनकी महान् साधना का।

इसपर किसी टिह्रश्वपणी की आवश्यकता नहीं। प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता था साहित्यकार के लिए यह घटना बड़ी प्रेरणाप्रद है।

हलाला से कई औरतों की जिंदगी हराम हो रही है

हलाला से कई औरतों की जिंदगी हराम हो रही है

तलाक के बाद अगर एक मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास वापस जाना चाहे तो उसे एक सजा से गुजरना पड़ता है. पहले एक अजनबी से शादी, फिर उससे यौन संबंध और उसके बाद तलाक. तब मिलेगा पहले वाला पति !

सरवत फातिमा

सरवत फातिमा
     

भारत में दिन पर दिन ट्रिपल तलाक का विरोध बढ़ता ही जा रहा है और इस प्रथा का विरोध होना भी चाहिए. ट्रिपल तलाक की वजह से निकाह के बाद भी मुस्लिम महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पातीं हैं. यही नहीं ट्रिपल तलाक एक ऐसा हथियार है जिसकी वजह से महिलाएं अपने पति के हाथ का मोहरा भर बनकर रह जाती हैं. लेकिन इस्लाम में औरतों पर अन्याय का एक और हथियार है जो तीन तलाक से भी ज्यादा शर्मनाक है. इस प्रथा को हलाला कहते हैं.

halala-2_041217052335.jpgहलाला ने कई औरतों को बर्बाद किया

अगर आपको नहीं पता कि हलाला क्या है तो जान लीजिए. तलाक के बाद अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास वापस जाना चाहती है तो पहले उसे एक अजनबी से शादी करनी होगी. यौन संबंध भी रखना होगा और फिर इस पति से तलाक के बाद ही औरत अपने पहले पति के साथ वापस रह सकती है. ये अपने आप में एक अजीब रिवाज तो है ही साथ ही मुस्लिम औरतों के लिए शोषण, ब्लैकमेल और यहां तक ही शारीरिक शोषण का दलदल भी साबित हो सकता है.

हालांकि कई मुस्लिम देशों ने इस अमानवीय प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन भारत, पाकिस्तान, ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों में ये प्रथा अभी भी प्रचलित है. यही नहीं इस क्षेत्र में अब तो कई ऑनलाइन सेवाएं भी उपलब्ध हो गई हैं. यहां पर औरतों को अपने पहले पति के पास जाने के लिए हलाला के अंतर्गत शादी और सेक्स की सेवाएं मुहैया कराई जाती हैं. और ये बताने की तो कोई जरुरत ही नहीं कि इस सेवा के लिए मोटी कीमत वसूल की जाती होगी.

muslim-woman_041217052357.jpgकरे कोई भरे कोई

बीबीसी ब्रिटेन की एक रिपोर्ट के अनुसार इन सेवाओं के लिए एक फेसबुक पेज भी है. इस पेज पर उनके लिए काम करने वाले लोग और वो पुरुष जो इस तरह के अस्थायी विवाहों में रुचि रखते हैं अपना प्रचार करते हैं. एक व्यक्ति, इस फेसबुक पेज पर हलाला का प्रचार करते हुए कहता है कि- ‘हलाला के लिए महिला उसे पैसे देगी फिर उसके साथ यौन संबंध भी बनाएगी ताकि बाद में मैं तुम्हें तलाक दे सकूं.’ इस आदमी ने यह भी कहा कि- ‘उसके पास और भी कई पुरुष हैं जो ये काम कर रहे हैं.’ इसी बातचीत के क्रम में उसने बताया कि- ‘उसके साथ काम करने वाले एक आदमी ने हलाला के लिए की गई शादी के बाद औरत को तलाक देने से मना कर दिया. जिस वजह से उसने खुद उस आदमी को और ज्यादा पैसे दिए. तब जाकर महिला को तलाक मिला और वो अपने पहले पति के पास जा पाई.’

तसल्ली इस बात की है ब्रिटेन सहित कई देशों में इस्लामी शरिया काउंसिल दिखावे के लिए किए गए ऐसे अस्थायी विवाहों के चक्कर में फंसने से महिलाओं को रोकता है. लेकिन फिर भी लोग इस प्रथा का दुरुपयोग करने और पैसा बनाने के लिए इसे इस्तेमाल कर रहे हैं.

देखिए, यह रोंगटे खड़े करने वाली डॉक्‍यूमेंटरी-

source : http://www.ichowk.in/society/muslim-woman-halala-adultry-nikah-exploitation-marraige-triple-talaq/story/1/6428.html

हदीस : मुहम्मद का अपनी बीवियों से अलगाव

मुहम्मद का अपनी बीवियों से अलगाव

ईला अपनी बीवी से अस्थायी अलगाव है। इस अर्थ में मोमिन सचमुच भाग्यशाली है कि उनके सामने पैगम्बर ने एक ”आदर्श उदाहरण“ पेश किया है।

 

मुहम्मद को एक बार उनतीस दिन के लिए अपनी बीवियों से अलग रहना पड़ा। सही मुस्लिम उस घटना का वर्णन अनेक अहादीस में करती है। पर उस पर विचार करने के पहले हम पृष्ठभूमि के रूप में कुछ जानकारी प्रस्तुत कर देते हैं।

 

अपनी अनेक बीवियों के पास जाने के लिए मुहम्मद पारी का एक सीधा साधा नियम चलाते थे। दरअसल उनकी जीवनचर्या के दिन, जिन बीवियों के पास वे जाते थे, उनके नाम से ही जाने जाते थे। एक दिन मुहम्मद को हफ्ज़ा के यहां जाना था, पर उसकी बजाय हफ्जा ने देखा कि वे अपनी कोष्टवंशीय और रखैल सुन्दरी मरियम के पास हैं। हफ्जा बिफर उठी। चीख कर बोली-”मेरे ही कमरे में, मेरे ही पारी में और मेरे ही बिस्तर पर।“ मुहम्मद ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए वायदा किया कि वे फिर कभी भी मरियम के पास नहीं जायेंगे। पर साथ ही उन्होंने हफ्जा से अनुरोध किया कि वह इस घटना को गुप्त रखे।

 

किन्तु हफ्ज़ा ने यह बात आयशा को बता दी। और बहुत जल्दी ही सब लोगों ने इसे सुन लिया। मुहम्म्द की कुरैश बीवियां मरियम से नफरत करती थी और ”उस कम्बख़्त कमीनी“ से जलती थीं, जिसने मुहम्मद का एक पुत्र भी पैदा किया था। जल्दी ही हरम में गपशप, रोष और तानाज़नी का माहौल बन गया। मुहम्मद बहुत क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने अपनी बीवियों से कहा कि मुझे तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने अपने को उनसे अलग कर लिया। और जल्दी ही यह अफवाह फैल गयी कि वे उन सबको तलाक दे रहे हैं। वस्तुतः मोमिनों की दृष्टि में यह अफ़वाह इस खबर से ज्यादा दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण थी कि मदीना पर जल्दी ही घसान (रूम के सहायक अरब एक कबीले) का हमला होने वाला है।

 

एक लंबी हदीस में उमर बिन अल-खत्ताव (हफ़्ज़ा के पिता) बतलाते हैं-”जब रसूल-अल्लाह ने अपनी बीवियों से खुद को अलग कर लिया, तब मैं मस्जिद में गया और मैंने देखा कि लोग जमीन पर कंकड़ फेंक कर कह रहे हैं-अल्लाह के पैगम्बर ने अपनी बीवियों को तलाक दे दिया।“ उमर ने सच्चाई जानने का निश्चय किया। पहले उन्होंने आयशा से पूछा कि क्या उसने ”अल्लाह के पैगम्बर को तकलीफ देने का दुस्साहस किया है।“ आयशा ने उनसे कहा कि अपना रास्ता नापो। “मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं है, तुम अपने भाण्डे (हफ्ज़ा को) सम्हालो।“ फिर उमर हफ़्ज़ा के पास गये और उसे झिड़का-”तू जानती है कि अल्लाह के पैगम्बर तुझे प्यार नहीं करते और यदि मैं तेरा पिता न होता, तो वे तुझे तलाक़ दे चुके होते।“ वह बुरी तरह रोने लगी।

 

तब उमर ने मुहम्मद के सामने हाजिर होने की इजाज़त चाही। प्रार्थना नामंजूर कर दी गयी। पर उन्होंने आग्रह जारी रखा। उन्होंने मुहम्मद के दरबान रहाब, से कहा-”ऐ रहाब ! मेरे लिए अल्लाह के पैगम्बर से इजाज़त लो। मुझे लगता है कि अल्लाह के पैगम्बर यह समझ रहे हैं कि मैं हफ़्ज़ा के वास्ते आया हूं। कसम अल्लाह की ! अगर अल्लाह के पैगम्बर मुझे उसकी गर्दन उड़ा देने का हुक्म देंगे, तो मैं यकीनन वैसा करूंगा।“ उसको इजाज़त मिल गयी।

 

उमर जब भीतर गये, तो देखा कि “उन (मुहम्मद) के चेहरे पर गुस्से की छाया है।“ अतः उन्होंने मुहम्मद को शांत करने की कोशिश की। वे बोले-”हम कुरैश लोग अपनी औरतों पर आधिपत्य रखते थे। लेकिन जब हम मदीना आये, तो हमने देखा कि यहां के लोगों पर उनकी औरतों का आधिपत्य है। और हमारी औरतों ने उनकी औरतों की नक़्ल करना शुरू कर दिया।“

 

उन्होंने यह भी कहा-”अल्लाह के पैगम्बर ! आपको अपनी बीवियों से मुश्किल क्यों महसूस हो रही है ? अगर आपने उन्हें तलाक दे दिया है तो यकीनन अल्लाह आपके साथ है और अल्लाह के फरिश्ते जिब्रैल तथा मिकैल, मैं और अबु बकर सब मोमिन आपके साथ हैं।“

 

मुहम्मद कुछ ढीले पड़े। उमर बतलाते हैं-“मैं उने तब तक बात करता रहा, जब तक उनके चेहरे से गुस्सा मिट नहीं गया …… और वे हंसने लगे।“ इस नये मनोभाव की दशा में पैगम्बर पर कुरान की वे प्रसिद्ध आयतें उतरीं, जिनमें उन्हें मरियम के बारे में उनकी कसम से मुक्त कर दिया गया, उनकी बीवियों को तलाक़ की धमकी दी गई, और उमर का यह आश्वासन भी शामिल किया गया कि सभी फरिश्ते और मोमिन उनके साथ हैं। अल्लाह ने कहा-“ऐ पैगम्बर ! अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो जायज़ किया है, उससे तुम अपने-आपको वंचित क्यों करते हो ? क्या अपनी बीवियों को खुश करने की ललक से ? ….. अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी कसमों का कफ़्फ़ारा मुक़र्रर कर दिया है।“ अल्लाह ने पैगम्बर की बीवियों से भी साफ-साफ कह दिया कि “अगर वह तुम्हें तलाक़ दे देता है तो अल्लाह बदले में उसे तुमने बेहतर बीवियां दे देगा।“ अल्लाह ने उन सब को, खासकर आयशा और हफ़्ज़ा को, इन शब्दों में चेतावनी दी-”तुम दोनों अल्लाह के आगे तौबा करो-क्योंकि तुम्हारे दिन क़ज़ हो गये हैं-लेकिन अगर तुम उसके खिलाफ परस्पर सांठगांठ करोगी, तो निश्चय ही अल्लाह मालिक है, और अल्लाह और जिब्रैल और नेक मुसलमान और फ़रिश्ते सब उसके साथ हैं।“ अल्लाह ने उनसे यह भी कहा कि अगर वे उसके साथ दुव्र्यवहार करेंगी तो पैगम्बर की बीवी होना, कयामत के रोज, उनके किसी काम नहीं आएगा। “जो लोग यकीन नहीं लाते, उनके सामने अल्लाह मिसाल पेश करता है। नूह की बीवी और लूत की बीवी की मिसाल सामने हैं। वे दोनों दो नेक बंदों की ब्याहता थी और दोनों ने खयानत की। और अल्लाह के मुक़ाबले में उन औरतों के खाविंद उनके किसी काम न आये। और उनसे कहा गया-दाखिल होने वालीं के सथ तुम भी (दोज़ख़ की) आग में दाखिल हो जाओ“ (कुरान 66/1-10)।

 

बात आयी-गयी हो गयी। और वे सब फिर उनकी बीवियां बन गयी। पाक पैगम्बर ने उनसे (अपनी बीवियों से) “एक महीने तक अलग रहने की कसम खायी थी और अभी सिर्फ उनतीस दि नही गुजरे थे। किन्तु वे उनके पास पहुंच गए।“ आयशा ने शरारतन पैगम्बर को याद दिलाया कि एक महीना पूरा नहीं हुआ है, सिर्फ उनतीस दिन ही हुए हैं। इस पर मुहम्मद ने जवाब दिया-”कई बार महीने में उनतीस रोज ही होते हैं। (3507-3511)

 

उमर अब मस्जिद के दरवाजे पर खड़े हो गये और पूरे ज़ोरों से पुकार कर बोले-“अल्लाह के पैग़म्बर ने अपनी बीवियों को तलाक़ नहीं दिया है।“ मुहम्मद पर एक आयत भी उतरी, जिसमें मोमिनों को इसके लिए झिड़का गया कि वे इतनी जल्दी अफ़वाहों पर यक़ीन कर लेते हैं-“और अगर उनके पास अमन या खतरे की कोई खबर पहुंचती है, तो उसे मशहूर कर देते हैं। लेकिन अगर उन्होंने उसे पैगम्बर या सरदारों के पास पहुंचाया होता तो तहक़कीक़ करने वाले तहक़ीक़ कर लेते“ (4/83; हदीस 3507)।

author : ram swarup