हदीस : तलाक़ की पसन्द तलाक़ नहीं

तलाक़ की पसन्द तलाक़ नहीं

ऐसा लगता है कि घरेलू कलह के अन्य मौके भी आते रहते थे, जिनमें से कुछ रुपए-पैसे को लेकर होते थे। ये मदीना-प्रवास के शुरू के दिनों में हुए होंगे, जबकि मुहम्मद के पास धन की कमी थी। एक बार अबू बकर और उमर मुहम्मद के पास गये और देखा कि वे “अपनी बीवियों से घिरे मायूस और खामोश बैठे हैं।“ उन दोनों पिताओं से उन्होंने कहा-“ये (पैग़म्बर की बीवियां और उन दोनों की बेटियां) मुझे घेरे हुए हैं, जैसा कि आप लोग देख ही रहे हैं, और मुझ से ज्यादा रुपये-पैसे मांग रही हैं।“ तब अबू बकर ”उठे और आयशा के पास गये और उसकी गर्दन पर थप्पड़ जमाया और उमर उठे और हफ़्जा को झापड़ लगाया“ (3506)।

 

इस अवसर पर पैग़म्बर ने अपनी बीवियों के सामने विकल्प रखा कि अगर वे ”दुनिया की जिंदगी और उसकी आराइशों की ख़्वास्तगार हों, बनिस्बत अल्लाह और उसके पैग़म्बर के और बनिस्बत बहिश्त के, तो वे (मुहम्मद) अल्लाह के रसूल उनको अच्छी तरह से रुख़सत कर देंगे“ (कुरान 33/28/29)। बीवियों ने पैग़म्बर और बहिश्त को चुना।

 

अनुवादक के अनुसार इस अहादीस (3498-3506) से यह सबक़ मिलता है कि “औरत की ओर से तलाक़ की पसंद जाहिर होने से ही तलाक़ लागू नहीं माना जाता। वह तभी मान्य होता है, जब सचमुच तलाक़ का इरादा हो।“

 

आज भोजन करना व्यर्थ रहा

आज भोजन करना व्यर्थ रहा

फरवरी 1972 ई0 में जब स्वामी श्री सत्यप्रकाशजी सरस्वती अबोहर पधारे तो कई आर्ययुवकों ने उनसे प्रार्थना की कि वे पण्डित गंगाप्रसादजी उपाध्याय के सज़्बन्ध में कोई संस्मरण सुनाएँ।

श्रद्धेय स्वामीजी ने कहा-‘‘किसी और के बारे में तो सुना सकता हूँ परन्तु उपाध्यायजी के बारे में किसी और से पूछें।’’

एक दिन सायंकाल स्वामीजी महाराज के साथ हम भ्रमण को निकले तब वैदिक साहित्य की चर्चा चल पड़ी। मैंने पूछा- ‘उपाध्यायजी का शरीर जर्जर हो चुका था, फिर भी वृद्ध अवस्था में

उन्होंने इतना अधिक साहित्य कैसे तैयार कर दिया? अपने जीवन के अन्तिम दिनों में उन्होंने कितने अनुपम व महज़्वपूर्ण ग्रन्थों का सृजन कर दिया।’’

तब उज़र में स्वामीजी ने कहा-‘‘उपाध्यायजी कहा करते थे, जिस दिन मैंने ऋषि मिशन के लिए कुछ न लिखा उस दिन मैं समझूँगा कि आज मेरा भोजन करना व्यर्थ गया। भोजन करना तभी

सार्थक है यदि कुछ साहित्य सेवा करूँ।’’

आपने बताया कि वे (उपाध्यायजी) एक साथ कई-कई साहित्यिक योजनाएँ लेकर कार्य करते थे। एक से मन ऊबा तो दूसरे कार्य में जुट जाते थे, परन्तु लगे रहते थे। इससे उनका मन भी

लगा रहता था, उनको यह भी सन्तोष होता था कि किसी उपयोगी धर्म-कार्य में लगा हुआ हूँ। बस, यही रहस्य था उनकी महान् साधना का।

इसपर किसी टिह्रश्वपणी की आवश्यकता नहीं। प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता था साहित्यकार के लिए यह घटना बड़ी प्रेरणाप्रद है।

HADEES : OTHER DISABILITIES

OTHER DISABILITIES

A freed slave is subjected to several other disabilities.  He cannot seek any new alliance, nor can he offer himself as an ally without the permission of his former owner.  One �who took the freed slave as an ally without the consent of his previous master, there is upon him the curse of Allah and that of His angels and that of the whole mankind� (3600).

author : ram swarup

हलाला से कई औरतों की जिंदगी हराम हो रही है

हलाला से कई औरतों की जिंदगी हराम हो रही है

तलाक के बाद अगर एक मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास वापस जाना चाहे तो उसे एक सजा से गुजरना पड़ता है. पहले एक अजनबी से शादी, फिर उससे यौन संबंध और उसके बाद तलाक. तब मिलेगा पहले वाला पति !

सरवत फातिमा

सरवत फातिमा
     

भारत में दिन पर दिन ट्रिपल तलाक का विरोध बढ़ता ही जा रहा है और इस प्रथा का विरोध होना भी चाहिए. ट्रिपल तलाक की वजह से निकाह के बाद भी मुस्लिम महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पातीं हैं. यही नहीं ट्रिपल तलाक एक ऐसा हथियार है जिसकी वजह से महिलाएं अपने पति के हाथ का मोहरा भर बनकर रह जाती हैं. लेकिन इस्लाम में औरतों पर अन्याय का एक और हथियार है जो तीन तलाक से भी ज्यादा शर्मनाक है. इस प्रथा को हलाला कहते हैं.

halala-2_041217052335.jpgहलाला ने कई औरतों को बर्बाद किया

अगर आपको नहीं पता कि हलाला क्या है तो जान लीजिए. तलाक के बाद अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास वापस जाना चाहती है तो पहले उसे एक अजनबी से शादी करनी होगी. यौन संबंध भी रखना होगा और फिर इस पति से तलाक के बाद ही औरत अपने पहले पति के साथ वापस रह सकती है. ये अपने आप में एक अजीब रिवाज तो है ही साथ ही मुस्लिम औरतों के लिए शोषण, ब्लैकमेल और यहां तक ही शारीरिक शोषण का दलदल भी साबित हो सकता है.

हालांकि कई मुस्लिम देशों ने इस अमानवीय प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन भारत, पाकिस्तान, ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों में ये प्रथा अभी भी प्रचलित है. यही नहीं इस क्षेत्र में अब तो कई ऑनलाइन सेवाएं भी उपलब्ध हो गई हैं. यहां पर औरतों को अपने पहले पति के पास जाने के लिए हलाला के अंतर्गत शादी और सेक्स की सेवाएं मुहैया कराई जाती हैं. और ये बताने की तो कोई जरुरत ही नहीं कि इस सेवा के लिए मोटी कीमत वसूल की जाती होगी.

muslim-woman_041217052357.jpgकरे कोई भरे कोई

बीबीसी ब्रिटेन की एक रिपोर्ट के अनुसार इन सेवाओं के लिए एक फेसबुक पेज भी है. इस पेज पर उनके लिए काम करने वाले लोग और वो पुरुष जो इस तरह के अस्थायी विवाहों में रुचि रखते हैं अपना प्रचार करते हैं. एक व्यक्ति, इस फेसबुक पेज पर हलाला का प्रचार करते हुए कहता है कि- ‘हलाला के लिए महिला उसे पैसे देगी फिर उसके साथ यौन संबंध भी बनाएगी ताकि बाद में मैं तुम्हें तलाक दे सकूं.’ इस आदमी ने यह भी कहा कि- ‘उसके पास और भी कई पुरुष हैं जो ये काम कर रहे हैं.’ इसी बातचीत के क्रम में उसने बताया कि- ‘उसके साथ काम करने वाले एक आदमी ने हलाला के लिए की गई शादी के बाद औरत को तलाक देने से मना कर दिया. जिस वजह से उसने खुद उस आदमी को और ज्यादा पैसे दिए. तब जाकर महिला को तलाक मिला और वो अपने पहले पति के पास जा पाई.’

तसल्ली इस बात की है ब्रिटेन सहित कई देशों में इस्लामी शरिया काउंसिल दिखावे के लिए किए गए ऐसे अस्थायी विवाहों के चक्कर में फंसने से महिलाओं को रोकता है. लेकिन फिर भी लोग इस प्रथा का दुरुपयोग करने और पैसा बनाने के लिए इसे इस्तेमाल कर रहे हैं.

देखिए, यह रोंगटे खड़े करने वाली डॉक्‍यूमेंटरी-

source : http://www.ichowk.in/society/muslim-woman-halala-adultry-nikah-exploitation-marraige-triple-talaq/story/1/6428.html

हदीस : मुहम्मद का अपनी बीवियों से अलगाव

मुहम्मद का अपनी बीवियों से अलगाव

ईला अपनी बीवी से अस्थायी अलगाव है। इस अर्थ में मोमिन सचमुच भाग्यशाली है कि उनके सामने पैगम्बर ने एक ”आदर्श उदाहरण“ पेश किया है।

 

मुहम्मद को एक बार उनतीस दिन के लिए अपनी बीवियों से अलग रहना पड़ा। सही मुस्लिम उस घटना का वर्णन अनेक अहादीस में करती है। पर उस पर विचार करने के पहले हम पृष्ठभूमि के रूप में कुछ जानकारी प्रस्तुत कर देते हैं।

 

अपनी अनेक बीवियों के पास जाने के लिए मुहम्मद पारी का एक सीधा साधा नियम चलाते थे। दरअसल उनकी जीवनचर्या के दिन, जिन बीवियों के पास वे जाते थे, उनके नाम से ही जाने जाते थे। एक दिन मुहम्मद को हफ्ज़ा के यहां जाना था, पर उसकी बजाय हफ्जा ने देखा कि वे अपनी कोष्टवंशीय और रखैल सुन्दरी मरियम के पास हैं। हफ्जा बिफर उठी। चीख कर बोली-”मेरे ही कमरे में, मेरे ही पारी में और मेरे ही बिस्तर पर।“ मुहम्मद ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए वायदा किया कि वे फिर कभी भी मरियम के पास नहीं जायेंगे। पर साथ ही उन्होंने हफ्जा से अनुरोध किया कि वह इस घटना को गुप्त रखे।

 

किन्तु हफ्ज़ा ने यह बात आयशा को बता दी। और बहुत जल्दी ही सब लोगों ने इसे सुन लिया। मुहम्म्द की कुरैश बीवियां मरियम से नफरत करती थी और ”उस कम्बख़्त कमीनी“ से जलती थीं, जिसने मुहम्मद का एक पुत्र भी पैदा किया था। जल्दी ही हरम में गपशप, रोष और तानाज़नी का माहौल बन गया। मुहम्मद बहुत क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने अपनी बीवियों से कहा कि मुझे तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने अपने को उनसे अलग कर लिया। और जल्दी ही यह अफवाह फैल गयी कि वे उन सबको तलाक दे रहे हैं। वस्तुतः मोमिनों की दृष्टि में यह अफ़वाह इस खबर से ज्यादा दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण थी कि मदीना पर जल्दी ही घसान (रूम के सहायक अरब एक कबीले) का हमला होने वाला है।

 

एक लंबी हदीस में उमर बिन अल-खत्ताव (हफ़्ज़ा के पिता) बतलाते हैं-”जब रसूल-अल्लाह ने अपनी बीवियों से खुद को अलग कर लिया, तब मैं मस्जिद में गया और मैंने देखा कि लोग जमीन पर कंकड़ फेंक कर कह रहे हैं-अल्लाह के पैगम्बर ने अपनी बीवियों को तलाक दे दिया।“ उमर ने सच्चाई जानने का निश्चय किया। पहले उन्होंने आयशा से पूछा कि क्या उसने ”अल्लाह के पैगम्बर को तकलीफ देने का दुस्साहस किया है।“ आयशा ने उनसे कहा कि अपना रास्ता नापो। “मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं है, तुम अपने भाण्डे (हफ्ज़ा को) सम्हालो।“ फिर उमर हफ़्ज़ा के पास गये और उसे झिड़का-”तू जानती है कि अल्लाह के पैगम्बर तुझे प्यार नहीं करते और यदि मैं तेरा पिता न होता, तो वे तुझे तलाक़ दे चुके होते।“ वह बुरी तरह रोने लगी।

 

तब उमर ने मुहम्मद के सामने हाजिर होने की इजाज़त चाही। प्रार्थना नामंजूर कर दी गयी। पर उन्होंने आग्रह जारी रखा। उन्होंने मुहम्मद के दरबान रहाब, से कहा-”ऐ रहाब ! मेरे लिए अल्लाह के पैगम्बर से इजाज़त लो। मुझे लगता है कि अल्लाह के पैगम्बर यह समझ रहे हैं कि मैं हफ़्ज़ा के वास्ते आया हूं। कसम अल्लाह की ! अगर अल्लाह के पैगम्बर मुझे उसकी गर्दन उड़ा देने का हुक्म देंगे, तो मैं यकीनन वैसा करूंगा।“ उसको इजाज़त मिल गयी।

 

उमर जब भीतर गये, तो देखा कि “उन (मुहम्मद) के चेहरे पर गुस्से की छाया है।“ अतः उन्होंने मुहम्मद को शांत करने की कोशिश की। वे बोले-”हम कुरैश लोग अपनी औरतों पर आधिपत्य रखते थे। लेकिन जब हम मदीना आये, तो हमने देखा कि यहां के लोगों पर उनकी औरतों का आधिपत्य है। और हमारी औरतों ने उनकी औरतों की नक़्ल करना शुरू कर दिया।“

 

उन्होंने यह भी कहा-”अल्लाह के पैगम्बर ! आपको अपनी बीवियों से मुश्किल क्यों महसूस हो रही है ? अगर आपने उन्हें तलाक दे दिया है तो यकीनन अल्लाह आपके साथ है और अल्लाह के फरिश्ते जिब्रैल तथा मिकैल, मैं और अबु बकर सब मोमिन आपके साथ हैं।“

 

मुहम्मद कुछ ढीले पड़े। उमर बतलाते हैं-“मैं उने तब तक बात करता रहा, जब तक उनके चेहरे से गुस्सा मिट नहीं गया …… और वे हंसने लगे।“ इस नये मनोभाव की दशा में पैगम्बर पर कुरान की वे प्रसिद्ध आयतें उतरीं, जिनमें उन्हें मरियम के बारे में उनकी कसम से मुक्त कर दिया गया, उनकी बीवियों को तलाक़ की धमकी दी गई, और उमर का यह आश्वासन भी शामिल किया गया कि सभी फरिश्ते और मोमिन उनके साथ हैं। अल्लाह ने कहा-“ऐ पैगम्बर ! अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो जायज़ किया है, उससे तुम अपने-आपको वंचित क्यों करते हो ? क्या अपनी बीवियों को खुश करने की ललक से ? ….. अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी कसमों का कफ़्फ़ारा मुक़र्रर कर दिया है।“ अल्लाह ने पैगम्बर की बीवियों से भी साफ-साफ कह दिया कि “अगर वह तुम्हें तलाक़ दे देता है तो अल्लाह बदले में उसे तुमने बेहतर बीवियां दे देगा।“ अल्लाह ने उन सब को, खासकर आयशा और हफ़्ज़ा को, इन शब्दों में चेतावनी दी-”तुम दोनों अल्लाह के आगे तौबा करो-क्योंकि तुम्हारे दिन क़ज़ हो गये हैं-लेकिन अगर तुम उसके खिलाफ परस्पर सांठगांठ करोगी, तो निश्चय ही अल्लाह मालिक है, और अल्लाह और जिब्रैल और नेक मुसलमान और फ़रिश्ते सब उसके साथ हैं।“ अल्लाह ने उनसे यह भी कहा कि अगर वे उसके साथ दुव्र्यवहार करेंगी तो पैगम्बर की बीवी होना, कयामत के रोज, उनके किसी काम नहीं आएगा। “जो लोग यकीन नहीं लाते, उनके सामने अल्लाह मिसाल पेश करता है। नूह की बीवी और लूत की बीवी की मिसाल सामने हैं। वे दोनों दो नेक बंदों की ब्याहता थी और दोनों ने खयानत की। और अल्लाह के मुक़ाबले में उन औरतों के खाविंद उनके किसी काम न आये। और उनसे कहा गया-दाखिल होने वालीं के सथ तुम भी (दोज़ख़ की) आग में दाखिल हो जाओ“ (कुरान 66/1-10)।

 

बात आयी-गयी हो गयी। और वे सब फिर उनकी बीवियां बन गयी। पाक पैगम्बर ने उनसे (अपनी बीवियों से) “एक महीने तक अलग रहने की कसम खायी थी और अभी सिर्फ उनतीस दि नही गुजरे थे। किन्तु वे उनके पास पहुंच गए।“ आयशा ने शरारतन पैगम्बर को याद दिलाया कि एक महीना पूरा नहीं हुआ है, सिर्फ उनतीस दिन ही हुए हैं। इस पर मुहम्मद ने जवाब दिया-”कई बार महीने में उनतीस रोज ही होते हैं। (3507-3511)

 

उमर अब मस्जिद के दरवाजे पर खड़े हो गये और पूरे ज़ोरों से पुकार कर बोले-“अल्लाह के पैग़म्बर ने अपनी बीवियों को तलाक़ नहीं दिया है।“ मुहम्मद पर एक आयत भी उतरी, जिसमें मोमिनों को इसके लिए झिड़का गया कि वे इतनी जल्दी अफ़वाहों पर यक़ीन कर लेते हैं-“और अगर उनके पास अमन या खतरे की कोई खबर पहुंचती है, तो उसे मशहूर कर देते हैं। लेकिन अगर उन्होंने उसे पैगम्बर या सरदारों के पास पहुंचाया होता तो तहक़कीक़ करने वाले तहक़ीक़ कर लेते“ (4/83; हदीस 3507)।

author : ram swarup

 

धन्य थे वे आर्यसेवक

धन्य थे वे आर्यसेवक

बहुत पुरानी बात है पण्डित श्री युधिष्ठिरजी मीमांसक ऋषि दयानन्द के एक पत्र की खोज में कहीं गये। उनके साथ श्री महाशय मामराजजी खतौली वाले भी थे। ये मामराजजी वही सज्जन

हैं जिन्होंने पण्डित श्री भगवद्दज़जी के साथ लगकर ऋषि के पत्रों की खोज के लिए दूर-दूर की यात्राएँ कीं, परम पुरुषार्थ किया।

पूज्य मीमांसकजी तथा मामराजजी ने निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचकर पुराने कागजों, पत्रों के बस्तों को उलट-पुलट करना आरज़्भ किया।

जिस घर में पत्र की खोज हो रही थी, उनका रिकार्ड देख-देखकर पण्डित युधिष्ठिरजी मीमांसक तो हताश होकर लौट आये। कोई पत्र न मिला। मामराजजी वहीं डटे रहे। कुछ दिन और लगाये। वहाँ से ऋषि का एक पत्र खोजकर ही लौटे। मामराजजी कोई गवेषक न थे, लेखक न थे, विद्वान् न थे, परन्तु गवेषकों, लेखकों, विद्वानों व ज्ञान-पिपासुओं के लिए व ऋषि के पत्रों का अमूल्य भण्डार खोजकर हमें दे गये। उनकी साधना के बिना पण्डित श्री भगवद्दज़जी व

मान्य मीमांसकजी का प्रयास अधूरा रहता। कम पढ़े-लिखे व्यक्ति भी ज्ञान के क्षेत्र में कितना महान् कार्य कर सकते हैं, इसका एक उदाहरण आर्यसेवक मामराज जी हैं। जो जीवन में कुछ

करना चाहते हैं, जो जीवन में कुछ बनना चाहते हैं-श्रीमामराज का जीवन उनके लिए प्रेरणाओं से परिपूर्ण है। आवश्यकता इस बात की है कि युवक साहस के अङ्गारे मामराजजी की कर्मण्यता

तथा लगन को अपनाएँ।

HADEES : WHO INHERITS A SLAVE�S PROPERTY?

WHO INHERITS A SLAVE�S PROPERTY?

Even if a slave�s person was freed, any property he might have or come to have was inherited by the emancipator (3584-3595).  �Aisha was ready to help a slave-girl, BarIra, to purchase her freedom on the condition that �I shall have the right in your inheritance.� But the owner, though ready to free her for cash money, wanted to retain the right of inheritance for himself.  Muhammad gave his judgment in favor of �Aisha: �Buy her, and emancipate her, for the right of inheritance vests with one who emancipates.� Muhammad then admonished: �What has happened to the people that they lay down conditions which are not found in the Book of Allah� (3585).

author : ram swarup

हदीस : ज़िहार और ईला

ज़िहार और ईला

अलग होने के दो अन्य रूप भी थे, जो कानूनी तलाक के बराबर नहीं माने जाते थे। ये थे जिहार और ईला जो मुहम्मद के समय अरब में प्रचलित थे। ज़िहार में पति प्रतिज्ञा करता था कि उसकी पत्नी उसके लिए मां की पीठ (ज़हर) जैसी होगी, और त बवह एक निश्चित अवधि तक पत्नी से दूर रहता था। अरबों में परहेज की यह प्रतिज्ञा एक रस्म थी और कुछ अहादीस के अनुसार, मुसलमान भी रोज़ों के दौरान ऐसी प्रतिज्ञा करते थे। परहेज का उद्देश्य पश्चाताप भी हो सकता था, और भक्तिभाव भी। या फिर यह प्रतिज्ञा गुस्से के दौर में भी ले ली जाती थी। तलाक़ के एक रूप में भी इसका इस्तेमाल होने लगा था। मुहम्मद ने जिहार के द्वारा तलाक़ की निंदा की (कुरान 58/1-5) और ऐसी प्रतिज्ञा लेने वाले एक पति को अपनी पत्नी के पास वापस जाने की इजाज़त दी। प्रतिज्ञा तोड़ने का पश्चाताप एक कफ्फारा के जरिये हो सकता था (कफ्फारा का अक्षरशः अर्थ है ’वह जो पाप को ढकता है‘)। इस प्रसंग में कफ्फारा या तो दो महीने का उपवास होता था या फिर साठ गरीब मर्द-औरतों को खाना खिला देना।

 

  1. फातिब अल-वाकिदी विलियम म्यूर द्वारा ”लाइफ आॅफ मोहमेंट“ में उद्धृत जिल्द 2, पृ0 272-273।

 

अलग होने का एक और रूप था ईला (’कसम खाना‘)। इस रूप में पति अपनी पत्नी के साथ मैथुन से विरत रहने की कसम खाता था। इस्लाम-पूर्व-पर्व में अरब लोग ईला को तलाक का ही एक रूप मानते थे। पर उससे शादी पूरी तरह रद्द नहीं हो जाती थी। कई बार ईला की कसम बीवी को सजा देने अथवा कसम तोड़ने के बदले में उससे धन ऐंठने के लिए भी ली जाती थी। मुहम्मद ने इसे वर्जित किया (कुरान 2/26)। जिस मर्द ने ऐसी प्रतिज्ञा की हो वह, बिना किसी दोष का भागी हुए, अपनी पत्नी के पास वापस जा सकता था। ऐसा न करने पर शादी चार महीने के बाद अपने-आप कानूनी तौर पर रद्द हो जाती थी। कसम तोड़ने का पश्चाताप किया जा सकता था। ”जब एक आदमी अपनी बीवी को अपने लिए अगम्या घोषित करता है, तब वह एक कसम खाता है जिसका पश्चात्ताप जरूरी है …. अल्लाह के पैगम्बर में आपके लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत है“ (3494-3495)। समय बीतने पर, इस्लाम में अलगाव के ये दोनों रूप समाप्त हो गये।

author : ram swarup

स्वामी अग्निवेश आर्य नहीं अनार्य है

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नमस्ते मित्रों

कुछ लोग कहते है की यदि वास्तव में भारत का और सनातन वैदिक धर्म का कोई बड़ा शत्रु है तो वह है मुस्लिम ! नहीं !!! वास्तविक कट्टर शत्रु तो कम्युनिस्ट है !!!

जी हाँ !! कम्युनिस्ट कोई संगठन मात्र नहीं यह एक विचारधारा भी है और इस विचारधारा से ग्रसित लोग हमारे इर्दगिर्द भी है, जिन्हें पहचानना थोड़ा सा कठिन अवश्य है परन्तु नामुमकिन नहीं, बस जरूरत है थोड़ी सी सतर्कता की |

कम्युनिस्ट विचारधारा किस तरह की होती है इसे आसान शब्दों में यु समझिये आपके यहाँ एक नौकर काम करता है और कोई व्यक्ति उससे कहता है की तुम्हारा मालिक तुमसे ज्यादा कैसे कमा रहा है, तुम उसके यहाँ काम मत करों, उसके खिलाफ आवाज बुलंद करो और लोगों को साथ लेकर आन्दोलन शुरू करो, अगर तब भी तुम्हारा काम नहीं बनता है तो उसके खिलाफ हथियार उठा लो, अगर तुम्हारे पास हथियार के भी पैसे नहीं है तो में दूंगा, ऐसी सलाह देने वाले लोग कम्युनिस्ट होते है

आज ऐसे ही एक कम्युनिस्ट विचारधारा वाले व्यक्ति के बारे में आपको जानकारी देंगे

 

अग्निवेश (आर्य), उर्फ़ वेपा श्याम राव,

आर्य मात्र इसलिए लगाया है की लोग इसे इस नाम के साथ ही जानते है, अन्यथा इस व्यक्ति में आर्य जैसा कोई गुण नहीं है

कहते है यदि जल्द बुलंदियों पर पहुंचकर अपने आप को विख्यात करना हो तो किसी बड़े संगठन के साथ अपना नाम जोड़ लो

कुछ ऐसा ही अग्निवेश ने किया

आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम में जन्मे श्याम राव ने वकालात की पढाई पूरी कर क्रिस्चियन स्कुल में व्याख्याता के रूप में कुछ वर्ष कार्य किया (स्वाभाविक है एक तो देश के सेक्युलर संविधान का प्रभाव था ही फिर क्रिश्चिनीटी ने भी थोड़ा प्रभावित किया तो यह झोल कम्युनिस्ट बनाने में आग में घी का काम कर गया)

व्याख्याता के रूप में स्वयं को विख्यात ना होता देख राजनीति में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की मंशा से ये कलकता छोड़कर हरियाणा चले आये यहाँ आकर स्वामी इन्द्रवेश के साथ मिलकर “आर्य सभा” का निर्माण किया |

 

आर्य समाजी बन्धु उस समय इस व्यक्ति के सनातन धर्म के कार्यों से प्रभावित होकर इसके समर्थक बन गये और इसे नेता बनाने में जोश के साथ प्रचार करने लगे

अग्निवेश ने कहाँ था की यदि हरियाणा को आर्य राज्य (अर्थात राजनितिक गंदगी को साफ़ करना) न बना दिया तो अपने आप को जिन्दा जमीन में गड़वा देंगे

हरियाणा की राजनितिक गंदगी को तो साफ़ न कर पाए अपितु स्वयं राजनीति से साफ़ हो गये उसके बाद से जो इनके प्रचारक थे वे इन्हें “ज़िंदा लाश” कहकर भी सम्बोधित करते है आप भी कभी मिल जाए तो उपयोग में लेकर देख लीजियेगा

आर्य समाज और राजनीति से अपने आपको प्रसिद्ध करने के बाद जब इन्हें लगा की अब अपने पैर और पसारने चाहिए तो

कुछ सालों बाद यह माओवादियों और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने लगा नाम तो शान्ति वार्ता का था परन्तु वास्तविकता यह थी की यह स्वयम कम्युनिस्ट विचारधारा से ग्रसित माओवादी संगठन से सांठगाँठ कर चुका था

जब माओवादियों नक्सलियों से इसके मिले होने के प्रमाण मिलने लगे तो इसकी छवि थोड़ी सी धूमिल होने लगी तो जिस प्रकार का यह मौकापरस्ती है ही इसने अपनी छवि को पुनः बनाने के उद्देश्य से “अन्ना हजारे” पर परजीवी बनने की ठान ली और “जन लोकपाल विधेयक” आन्दोलन की टीम से जुड़ गया

और इसने उस आन्दोलन को भी दो फाड़ कर दिया (जिसे दिल्ली वाले अभी तक भुगत रहे है) और तत्कालीन सरकार की चापलूसी करते हुए यह एक भेदिया बन गया

उसके बाद यह व्यक्ति अल्पसंख्यकों का वकील (शुभचिंतक) बना
मुस्लिम और ईसाईयों की सुरक्षा को लेकर सरकार के खिलाफ यह व्यक्ति आज भी कार्यरत है जिससे आर्य समाज कोई सरोकार नहीं रखता

निःसंदेह आर्य समाज हिन्दुओं के कुछ पाखंडों का विरोधी रहा है परन्तु शत्रु नही, यह स्वाभाविक है की हम कभी कभी कडवा सच सहन करने की क्षमता नहीं रखते है और सच कहने वाले को अपना शत्रु समझ बैठते है कुछ ऐसा ही कुछ हिन्दुओं का व्यवहार आर्य समाज के प्रति रहा हो परन्तु लोग यह जानते है की आर्य समाज सनातन वैदिक धर्म का सबसे बड़ा रक्षक है, आर्य समाज कभी भी मुसलमानों, ईसाईयों या किसी भी गैर सनातनी के तुष्टिकरण का कोई कार्य नहीं करता, आर्य समाज समाज में जागृति लाने का, लोगों को सनातन धर्म में पुनः लाने का प्रयास अवश्य करता है परन्तु कभी भी देशद्रोहियों का समर्थक नहीं रहा अपितु समय आने पर ऐसे देशद्रोहियों का सर्वनाश अवश्य करता है

 

अग्निवेश ने आजकल हिन्दुओं पर, देश पर और देश की संस्कृति पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया है

हाल ही में राम मन्दिर पर कुछ विरोधाभासी टिप्पणियाँ भी की है

गौ रक्षा आन्दोलन पर भी प्रहार किया है

गौ भक्षकों का समर्थक बनकर वैदिक धर्म को हानि पहुंचा रहा है

छत्तीसगढ़ में हुए एनकाउंटर को लेकर भी अभी यह व्यक्ति सरकार का विरोधी बना हुआ है

इस व्यक्ति का दोगलापन देखिये जब नक्सली पुलिस को मारती है तो इसके मुह से आवाज नहीं निकलती परन्तु जब पुलिस नक्सलियों का सफाया करती है तो यह कहते है की इससे शांतिवार्ता विफल हो रही है सरकार गलत कर रही है
अग्निवेश मुस्लिमों के संगठन, आतंकवादियों से सम्पर्क को लेकर काफी विवादित रहा है (जिसके छाया चित्र इन्टरनेट पर मिल जाते है) और इसके बाद राम मन्दिर, वन्दे मातरम, गौ रक्षा, आदि बातों को लेकर विरोधाभासी ब्यान देकर इसने स्वयं के दुष्ट और देशद्रोही होने के भरपूर प्रमाण दे दिए है

आर्य समाज का इस व्यक्ति से अभी से नहीं अपितु काफी समय पहले से विवाद रहा है, आर्य समाज की एक सार्वदेशिक प्रतिनिधि सभा पर इसने कब्जा भी कर रखा है और अपने आप को आर्य समाज के वक्ता और मुखिया के रूप में प्रदर्शित करता रहा है

आर्य समाज इस व्यक्ति से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नही रखता ना ही इससे जुड़े लोगों से,

आर्य समाज हमेशा अपने सिधान्तों को लेकर अडिग रहा है इसलिए किसी भी ऐसे व्यक्ति का आर्य समाज कभी समर्थक नही हो सकता जो देश को तोड़ने की गतिविधियों में संलिप्त हो !

यहाँ तक की हम तो वर्तमान सरकार से निवेदन करते है की इस व्यक्ति की जांच की जाए यह व्यक्ति हार्दिक पटेल, वृंदा करात जेसे कम्युनिस्टों के गुट का ही व्यक्ति है और इस पर पाबंदियां लगाई जाए

और हम सूचित करना चाहते है समस्त सनातनियों को की अग्निवेश किसी प्रकार से आर्य समाज से कोई सम्बन्ध नही रखता, यह हर कार्यक्रम में स्वामी दयानन्द जी की फोटो अपने साथ लगाकर स्वयं को समाज सुधारक के रूप में प्रदर्शित करता है परन्तु सच इससे बिलकुल विपरीत है, यह व्यक्ति इस देश को बांटने, सनातन धर्म को नष्ट करने, वर्तमान सरकार को बदनाम करने जैसे कार्यों में संलिप्त है

सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा पर ये जबरदस्ती काबिज है और उसी के सम्बन्ध को लेकर यह स्वयं को आर्य समाज के प्रतिनिधि के रूप में प्रदर्शित करता है

जिसका आर्य समाज किसी प्रकार का कोई समर्थन नहीं रखता

अग्निवेश को लेकर आर्य समाज से वैर पालने से पूर्व किसी भी नजदीकी आर्य समाज से इसकी जानकारी प्राप्त अवश्य करे

धन्यवाद

जब मुंशीरामजी ने प्रतिज्ञा की

जब मुंशीरामजी ने प्रतिज्ञा की

जब गुरुकुल की स्थापना का आर्यसमाज में विचार बना तो आर्यसमाज लाहौर के उत्सव पर बड़ी कठिनाई से इस कार्य के लिए दो सहस्र रुपये दान इकट्ठा हुआ। इस कठिनाई को दूर करने

के लिए मुंशीरामजी (स्वामी श्रद्धानन्दजी) ने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक गुरुकुल के लिए तीस सहस्र रुपये इकट्ठे नहीं कर लूँगा तब तक मैं अपने घर में पग नहीं धरूँगा। सब जानते हैं कि आपने यह प्रतिज्ञा पूरी करके दिखाई।

आपने इस प्रतिज्ञा को किस शान से निभाया, इसका पता इस बात से चलता है कि उन दिनों जब कभी आप जालन्धर से निकलकर कहीं जाते तो आपके बच्चे आपको जालन्धर स्टेशन पर ही आकर मिला करते थे। आप अपने घर पर पग नहीं धरते थे। और जब प्रतिज्ञा पूरी करके आप लाहौर आये तो वहाँ एक बड़ी विशाल सभा का आयोजन हुआ। तब आपके गले में लाला काशीराम वैद्यजी द्वारा तैयार की गई कपूर की माला डाली गई।