हदीस : ज़िहार और ईला

ज़िहार और ईला

अलग होने के दो अन्य रूप भी थे, जो कानूनी तलाक के बराबर नहीं माने जाते थे। ये थे जिहार और ईला जो मुहम्मद के समय अरब में प्रचलित थे। ज़िहार में पति प्रतिज्ञा करता था कि उसकी पत्नी उसके लिए मां की पीठ (ज़हर) जैसी होगी, और त बवह एक निश्चित अवधि तक पत्नी से दूर रहता था। अरबों में परहेज की यह प्रतिज्ञा एक रस्म थी और कुछ अहादीस के अनुसार, मुसलमान भी रोज़ों के दौरान ऐसी प्रतिज्ञा करते थे। परहेज का उद्देश्य पश्चाताप भी हो सकता था, और भक्तिभाव भी। या फिर यह प्रतिज्ञा गुस्से के दौर में भी ले ली जाती थी। तलाक़ के एक रूप में भी इसका इस्तेमाल होने लगा था। मुहम्मद ने जिहार के द्वारा तलाक़ की निंदा की (कुरान 58/1-5) और ऐसी प्रतिज्ञा लेने वाले एक पति को अपनी पत्नी के पास वापस जाने की इजाज़त दी। प्रतिज्ञा तोड़ने का पश्चाताप एक कफ्फारा के जरिये हो सकता था (कफ्फारा का अक्षरशः अर्थ है ’वह जो पाप को ढकता है‘)। इस प्रसंग में कफ्फारा या तो दो महीने का उपवास होता था या फिर साठ गरीब मर्द-औरतों को खाना खिला देना।

 

  1. फातिब अल-वाकिदी विलियम म्यूर द्वारा ”लाइफ आॅफ मोहमेंट“ में उद्धृत जिल्द 2, पृ0 272-273।

 

अलग होने का एक और रूप था ईला (’कसम खाना‘)। इस रूप में पति अपनी पत्नी के साथ मैथुन से विरत रहने की कसम खाता था। इस्लाम-पूर्व-पर्व में अरब लोग ईला को तलाक का ही एक रूप मानते थे। पर उससे शादी पूरी तरह रद्द नहीं हो जाती थी। कई बार ईला की कसम बीवी को सजा देने अथवा कसम तोड़ने के बदले में उससे धन ऐंठने के लिए भी ली जाती थी। मुहम्मद ने इसे वर्जित किया (कुरान 2/26)। जिस मर्द ने ऐसी प्रतिज्ञा की हो वह, बिना किसी दोष का भागी हुए, अपनी पत्नी के पास वापस जा सकता था। ऐसा न करने पर शादी चार महीने के बाद अपने-आप कानूनी तौर पर रद्द हो जाती थी। कसम तोड़ने का पश्चाताप किया जा सकता था। ”जब एक आदमी अपनी बीवी को अपने लिए अगम्या घोषित करता है, तब वह एक कसम खाता है जिसका पश्चात्ताप जरूरी है …. अल्लाह के पैगम्बर में आपके लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत है“ (3494-3495)। समय बीतने पर, इस्लाम में अलगाव के ये दोनों रूप समाप्त हो गये।

author : ram swarup

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