Tag Archives: thany the ve aary sewak

धन्य थे वे आर्यसेवक

धन्य थे वे आर्यसेवक

बहुत पुरानी बात है पण्डित श्री युधिष्ठिरजी मीमांसक ऋषि दयानन्द के एक पत्र की खोज में कहीं गये। उनके साथ श्री महाशय मामराजजी खतौली वाले भी थे। ये मामराजजी वही सज्जन

हैं जिन्होंने पण्डित श्री भगवद्दज़जी के साथ लगकर ऋषि के पत्रों की खोज के लिए दूर-दूर की यात्राएँ कीं, परम पुरुषार्थ किया।

पूज्य मीमांसकजी तथा मामराजजी ने निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचकर पुराने कागजों, पत्रों के बस्तों को उलट-पुलट करना आरज़्भ किया।

जिस घर में पत्र की खोज हो रही थी, उनका रिकार्ड देख-देखकर पण्डित युधिष्ठिरजी मीमांसक तो हताश होकर लौट आये। कोई पत्र न मिला। मामराजजी वहीं डटे रहे। कुछ दिन और लगाये। वहाँ से ऋषि का एक पत्र खोजकर ही लौटे। मामराजजी कोई गवेषक न थे, लेखक न थे, विद्वान् न थे, परन्तु गवेषकों, लेखकों, विद्वानों व ज्ञान-पिपासुओं के लिए व ऋषि के पत्रों का अमूल्य भण्डार खोजकर हमें दे गये। उनकी साधना के बिना पण्डित श्री भगवद्दज़जी व

मान्य मीमांसकजी का प्रयास अधूरा रहता। कम पढ़े-लिखे व्यक्ति भी ज्ञान के क्षेत्र में कितना महान् कार्य कर सकते हैं, इसका एक उदाहरण आर्यसेवक मामराज जी हैं। जो जीवन में कुछ

करना चाहते हैं, जो जीवन में कुछ बनना चाहते हैं-श्रीमामराज का जीवन उनके लिए प्रेरणाओं से परिपूर्ण है। आवश्यकता इस बात की है कि युवक साहस के अङ्गारे मामराजजी की कर्मण्यता

तथा लगन को अपनाएँ।