उच्च सिद्धान्त तथा उसके मानने वालों का ‘आचरण’-ये दो विभिन्न बातें हैं। मनुष्य की उन्नति और सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके सिद्धान्त और आचरण में कहाँ तक समता पाई जाती है। जब तक यह समता रहती है, वह उन्नति करता है, जब मनुष्य के सिद्धान्त और आचरण में विषमता की खाई गहरी हो जाती है, तब अवनति आरम्भ हो जाती है। मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि उसका लक्ष्य सदा ऊँचे सिद्धान्तों पर रहता है, परन्तु जब तक उसके आचरण में दृढ़ता नहीं होती, वह उन (सिद्धान्तों) की ओर अग्रसर नहीं हो सकता है, परन्तु संसार को वह यही दिखाना चाहता है कि उन सिद्धान्तों का पालन कर रहा है। इस प्रकार मानव समाज में … Continue reading हिन्दू जाति के रोग का वास्तविक कारण क्या है? -भाई परमानन्द→
उपप्रयन्तोऽअध्वरं मन्त्रं वोचेमाग्रये। आरेऽअस्मे च शृण्वते।। -यजु. ३/११ प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि गौतम है और देवता अग्रि=जगदीश्वर है। मन्त्र का विषय निरूपित करते हुए महर्षि दयानन्द ने लिखा है कि ‘अथेश्वरेण स्वस्वरूपमुपदिश्यते’ अर्थात् इस मन्त्र में ईश्वर ने अपने स्वरूप का उपदेश किया है। ईश्वर का स्वरूप कैसा है? इस बात का ज्ञान हमें इस मन्त्र द्वारा होता है। मन्त्र में परमेश्वर को यथार्थ श्रोता कहा गया है। वह सबकी स्तुतियों, प्रार्थनाओं, याचनाओं को यथार्थरूप में सुनता है। यह विचारणीय है कि उसके सुनने के साधन क्या हैं और कैसे सुनता है? क्या ईश्वर को सुनने के साधन हम जीवात्माओं के समान श्रोत्रादि हैं? इसका सीधा उत्तर नहीं में है। जीवात्माओं को तो शरीर, ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ और अन्त:करण चतुष्टय प्राप्त … Continue reading परमेश्वर व्यापक अन्तर्यामी परमैश्वर्यवान् यथार्थश्रोता: -डॉ. कृष्णपाल सिंह→
ओ३म्.. मलाई दयानन्द किन प्रिय छन्? – अविरल डि.सी “सत्यार्थी” महर्षि दयानन्द सरस्वती:भारतीय धार्मिक इतिहासको अत्यन्त चर्चित नाम हो । हुन त धार्मिक इतिहासमा भारतीय परम्परामा धेरै नाम छन् जस्तै राजा थाम मोहन राय , केशव चन्द्र सेन, सन्त कबीर, स्वामी विवेकानन्द आदि । तर सत्यता , आध्यात्मिकता, एकेश्वरवाद, वैदिक उन्मुखपन , पाखण्डहीन समाजको कल्पना जहाँ अंग्रेज कालीन उपनिवेशमा गर्न गाह्रो हुन्छ त्यसबेला केवर यौटा एक्लो साधुले यस्तो समाजको निर्माण गरिदियो जुन समाजको उददेश्य सनातन धर्मको परिभाषामा वैदिक विचारधाराको प्रवाहमै सारा राष्ट्रको मैल धुन सकोस् । हो ! त्यसैले महर्षि दयानन्द सरस्वती मलाई प्रिय छन् । शैव–औदिच्य–सामवेदी ब्राह्मण कुलमा जन्मिएर परिवारको बिघौको जमिनदारी,जागीर आदि सम्पत्ति हुँदा पनि मोह नगरेर ब्रह्मचारी–सन्यासी भएर धर्ममा रमाउने , तर्कशील–संयमी सन्तको रूपमा स्थित थिए हाम्रा स्वामी … Continue reading मलाई दयानन्द किन प्रिय छन्?→
मनुष्य का व्यवहार जड़ वस्तुओं से भी होता है तथा चेतन पदार्थों से भी होता है। जड़ वस्तुओं से व्यवहार करते हुए वह जैसा चाहता है, वैसा व्यवहार कर सकता है। जड़ वस्तु को तोडऩा चाहता है, तोड़ लेता है, जोडऩा चाहता है, जोड़ लेता है, फेंकना चाहता है, फेंक देता है, पास रखना चाहता है, पास रख लेता है। वह पत्थर को भगवान् बनाकर उसकी पूजा करने लगता है, वह पत्थर उसका भगवान् बन जाता है। व्यक्ति उस पत्थर को अपनी सीढिय़ों पर लगाकर उन पर जूते रखता है, उसे उसमें भी कोई आपत्ति नहीं होती। अत: जड़ वस्तु के साथ मनुष्य का व्यवहार अपनी इच्छानुसार होता है, अपनी मरजी से होता है, जड़ वस्तु क ी कोई मरजी … Continue reading शिक्षा समानता का आधार है: -धर्मवीर→
यह सन् १९९४ से भी पहले की घटना है, आदरणीय क्षितीश कुमार जी वेदालंकार ने हमारा एक लेख ‘जब महात्मा मुंशीराम जी को फांसी पर लटकाया गया’ पढक़र अत्यन्त भावुक होकर बड़े प्रेम से इस विनीत से कहा था कि अब तक जिस-जिसने भी स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज की जीवनी लिखी है, उनमें से कोई भी उर्दू नहीं जानता था। उस युग में आर्यसमाज के सब बड़े-बड़े पत्र उर्दू में छपते थे। साहित्य भी अधिक उर्दू में छपता रहा, इस कारण श्री स्वामी जी के जीवनी लेखक उनसे पूरा न्याय न कर सके। आपने आर्यसमाज के निर्माताओं के जीवन पर बहुत खोजपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज पर अब लेखनी उठायें। गुणी कृपालु विद्वान् का आदेश शिरोधार्य करते … Continue reading ‘शूरता की शान श्रद्धानन्द थे’: राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’→
ओ३म्.. प्राचीन विमान शास्त्र: -प्रेम आर्य दोहा, कतार बाट वैदिक कालमा अनेकौं प्रकारका आविष्कारहरु भैसकेका थिए। यसको प्रमाण अनेकौं वैदिक साहित्यमा उपलब्ध हुन्छन्। पश्चिमका वैज्ञानिकहरुले स्वत्वाधिकार(कपी-राइट) को उल्लंघन गरेर हाम्रो विद्या चोरि गरेका हुन्। वैदिक ऋषि (वैज्ञानिक) हरु सांसारिकता देखि टाढै रहन्थे, त्यसैले उनीहरुले भौतिक उन्नतिलाई अधिक प्रश्रय दिएनन् तर उनीहरुले सबै जान्दथे। ऋग्वेदमा वरुणको स्तुतिमा भनिएको छ कि उनले आकाशमा उड्न सक्ने पंक्षीहरुको मार्ग जान्दथे: “वेदा यो वीनां पदमन्तरिक्षेण पतताम् ।” (ऋग्वेदः१/२५/७) आकाशमा उड्ने वायुयानहरुको लागि ऋग्वेदमा ‘नौ’ र ‘रथ’ शब्दको प्रयोग भएको छ। यिनलाई “अन्तरिक्षप्रुद्” (अन्तरिक्षमा चल्ने) र “अपोदक” (जल-स्पर्श-रहित) भनिएको छ। मन्त्रमा यिनलाई “आत्मन्वती” भनिएको छ। यसबाट सूचित हुन्छ कि यसमा कुनै मशीन राखिन्थ्यो जसको कारणले यी सजीव तुल्य हुन्थ्ये। “नौभिरात्मन्वतीभिः अन्तरिक्षप्रुद्भिः अपोदकाभिः ।” (ऋग्वेदः १/११६/३) “वीडुपत्मभिः” … Continue reading वैदिक कालमा आकाश-मार्ग बाट आवागमन→
पिछली बार इस ग्रन्थ की मौलिकता तथा विशेषताओं पर हमने पाँच बिन्दु पाठकों के सामने रखे थे। अब आगे कुछ निवेदन करते हैं। ६. इस जीवन-चरित्र में ऋषि जीवन विषयक सामग्री की खोज तथा जीवन-चरित्र लिखने के इतिहास पर दुर्लभ दस्तावेज़ों के छायाचित्र देकर प्रामाणिक प्रकाश डाला गया है। दस्तावेज़ों से सिद्ध होता है कि ऋषि के बलिदान के समय पं. लेखराम जी के अतिरिक्त कोई उपयुक्त व्यक्ति-इस कार्य के लिये ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, डगर-डगर धक्के खाने को तैयार ही नहीं था। सब यही कहते थे कि ऋषि जी की घटनायें उनके घर में मेज़ पर पहुँचाई जायें। ऐसे दस्तावेज़ हमने खोज-खोजकर इस ग्रन्थ में दे दिये हैं। ऋषि का जीवन-चरित्र लिखने में तथा सामग्री की खोज में जो महापुुरुष, विद्वान् … Continue reading महर्षि दयानन्द सरस्वती- सम्पूर्ण जीवन चरित्र: राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’→
चाँदापुर शास्त्रार्थ का भय-भूत:- एक आर्य भाई ने यह जानकारी दी है कि आपने ऋषि-जीवन की चर्चा करते हुए पं. लेखराम जी के अमर-ग्रन्थ के आधार पर चाँदापुर शास्त्रार्थ की यह घटना क्या दे दी कि शास्त्रार्थ से पूर्व कुछ मौलवी ऋषि के पास यह फरियाद लेकर आये कि हिन्दू-मुसलमान मिलकर शास्त्रार्थ में ईसाई पादरियों से टक्कर लें। आप द्वारा उद्धृत प्रमाण तो एक सज्जन के लिये भय का भूत बन चुका है। न जाने वह कितने पत्रों में अपनी निब घिसा चुका है। अब फिर आर्यजगत् साप्ताहिक में वही राग-अलापा है। महाशय चिरञ्जीलाल प्रेम जैसे सम्पादक अब कहाँ? कुछ भी लिख दो। सब चलता है। इन्हें कौन समझावे कि आप पं. लेखराम जी और स्वामी श्रद्धानन्द जी के सामने … Continue reading चाँदापुर शास्त्रार्थ का भय-भूत: – राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’→
ओ३म्.. तनाव मुक्त र आनन्दित जीवन बिताउनको लागि सात्विक आहार अपनाउँ.. दुःखको कुरो छ कि गलत संस्कार, यथार्थ ज्ञानको अभाव, तथा पाश्चात्य संस्कृतिको अन्ध-नक्कलले गर्दा आजभोली मांसाहारी भोजन गर्ने चलन बढ्दैछ । यति सम्म अज्ञानता छ कि कसैले त अण्डालाई पनि साकाहारी भोजनमा लिन थालेका छन्। यो भन्दा बिडम्बना अरु के होला र!? मांसाहारले केवल जिब्रोको स्वाद मेटाउन बाहेक अर्को मानव स्वास्थ्यलाइ कुनै किसिमको पनि हित गर्दैन। कसैले समाजमा केवल आफ्नो धाक र बोक्रे सान देखाउनको लागि मात्र पनि निर्दोष पशु-पंक्षीहरु मार्ने गर्दछन। यसैको दुष्परिणाम हो आज हाम्रो समाजमा कहिल्यै नाम नै नसुनेका भयङ्कर रोगले वास गरेको छ, मानिसहरु रोग ग्रस्त भएका छन् जसको कारण आफ्नो अमुल्य समय अस्पतालको चक्कर काट्नमा बिताएका छन्, अथाह धन-सम्पत्ति औषधिमा नाश गरेका छन्, … Continue reading तनाव मुक्त र आनन्दित जीवन बिताउनको लागि सात्विक आहार अपनाउँ …!→
वृद्धों की दिनचर्या:- सेवानिवृत्त होने पर क्या करें? समय कैसे बिताया जाये? यह समस्या बहुतों को सताती है। ऐसा इसलिये होता है, क्योंकि अधिकांश लोग उद्देश्यहीन जीवन जीते हैं। वे पैदा हो गये, इसलिये जीना पड़ता है। खाने-पीने के आगे कुछ सोचते ही नहीं। दयानन्द कॉलेज शोलापुर में विज्ञान के एक अत्यन्त योग्य प्राध्यापक टोले साहिब थे। धोती पहने कॉलेज में आते थे। अध्ययनशील थे, परन्तु थे नास्तिक। एक बार वह हमारे निवास पर पधारे। मेरे स्वाध्याय व अध्ययन की उन्होंने वहाँ बैठे व्यक्तियों से चर्चा चला दी। वह सेवानिवृत्त होने वाले थे। उनकी पुत्रियों के विवाह हो चुके थे। अपने बारे में बोले, मेरी समस्या यह है कि रिटायर होकर समय कैसे बिताऊँगा? मैं नास्तिक हूँ। मन्दिर जाना, सन्ध्या-वन्दन … Continue reading वृद्धों की दिनचर्या: – राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’→