शौर्य की ज्वाला “पद्मावती” भाग -२ : गौरव आर्य

पहला भाग यहाँ से पढ़े (अगले भाग के लिए नीचे करें ) शौर्य की ज्वाला “पद्मावती” :गौरव आर्य गतांक से आगे   राजा रतनसिंह और रानी पद्मिनी को लेकर “मलिक मुह्हमद जायसी” ने एक काव्य “पद्मावत” लिखा था, आज विरोध का कारण वही काव्य है इतिहास के अभाव में लोगों ने “पद्मावत” को एतिहासिक पुस्तक मान लिया, परन्तु वह आजकल के किसी काल्पनिक उपन्यासों के जैसी है रानी पद्मिनी के जोहर के लगभग २५० वर्ष पश्चात एक मुगल कवि द्वारा राजपूतों की शान बताकर कोई काव्य लिखना और उसे प्रमाणिक मानना हमारे शोधकर्ताओं के उदासीन रवैये को प्रदर्शित करता है और आज पर्यन्त उसे प्रमाणिक मानकर उसका उपयोग लेना और फिल्मनिर्माता द्वारा उस पर फिल्म बनाना अत्यंत निराशाजनक है जबकि … Continue reading शौर्य की ज्वाला “पद्मावती” भाग -२ : गौरव आर्य

वाह! प्यारे वीर पं. लेखराम: पं. त्रिलोकचन्द्र जी ‘अमर’ शास्त्री

(विशेष टिप्पणी:- ७२ वर्ष पूर्व पं. त्रिलोकचन्द जी शास्त्री रचित यह सुन्दर गीत आर्य मुसाफिर के विशेषाङ्क में छपा था। पूज्य पण्डित जी सात भाषाओं के विद्वान्, तीन भाषाओं के सिद्धहस्त लेखक तथा कवि थे। सर्वाधिक पत्रों के सम्पादक रहे। तीन आर्यपत्रकारों १. स्वामी दर्शनानन्द जी, २. पं. त्रिलोकचन्द्र जी, एवं ३. पं. भारतेन्द्रनाथ पर आर्यसमाज को बहुत अभिमान है। आपने उर्दू-हिन्दी में कविता लिखनी क्यों छोड़ दी? यह कभी बताया नहीं। जीवन के अन्तिम वर्षों में केवल संस्कृत में ही काव्य रचना करते थे। पं. लेखराम जी पर उनकी यह ऐतिहासिक रचना, यह अमर गीत पाठकों को सादर भेंट है-‘जिज्ञासु’) रौदाय तालीम पं. लेखराम। लायके ताज़ीम पं. लेखराम।। अज़मते लासानी ज़ाहिर दर जहाँ। दौर अज़ त$फसीर पण्डित लेखराम।। उल$फते … Continue reading वाह! प्यारे वीर पं. लेखराम: पं. त्रिलोकचन्द्र जी ‘अमर’ शास्त्री

लव जिहाद कारण : निवारण

कल तक सनातनी परिवार में चहकती हुई बच्ची जो आध्यात्म में डूबी रहती थी, परिवार जिसे पलकों पर बिठाए रखता था,  लड़की के अच्छे भविष्य के लिए उसकी शिक्षा में कोई कमी नहीं रखी न ही उसकी इच्छाओं का कभी हनन किया गया हो, जिसके बचपन से लेकर जीवन पर्यन्त तक के स्वप्न माता पिता ने देखे हो और एक दिन वह आपके घर से यह कहकर चली जाए की में अपनी इच्छा से एक मुस्लिम लड़के से विवाह कर लिया है और मेने इस्लाम कबुल कर लिया है और अब में अपने पति के संग रहने जा रही हूँ, सोचिये वह पल आपके लिए कितना हृदय विदारक होगा ऐसी घटनाए आजकल रोजाना हो रही है रोजाना ५ १० १५ … Continue reading लव जिहाद कारण : निवारण

बोधगीत: – देवनारायण भारद्वाज ‘देवातिथि’

शिव शोध बोध प्रति पल पागो। जागो रे व्रतधारक जागो।। जब जाग गये तो सोना क्या, बैठे रहने से होना क्या। कत्र्तव्य पथ पर बढ़ जाओ, तो दुर्लभ चाँदी सोना क्या।। मत तिमिर ताक श्रुति पथ त्यागो। जागो रे व्रतधारक जागो।।१।। बन्द नयन के स्वप्न अधूरे, खुले नयन के होते पूरे। यही स्वप्न संकल्प जगायें, करें ध्येय के सिद्ध कँगूरे।। संकल्प बोध उठ अनुरागो। जागो रे व्रतधारक जागो।।२।। शिव निशा जहाँ मुस्काती है, जागरण ज्योति जग जाती है। संकल्पहीन सो जाते हैं, धावक को राह दिखाती है।। श्रुति दिशा छोडक़र मत भागो, जागो रे व्रतधारक जागो।।३।। बोध मोद का लगता फेरा, मिटता पाखण्डों का घेरा। शिक्षा और सुरक्षा सधती, हटता आडम्बर का डेरा।। बोध गोद प्रिय प्रभु से माँगो। जागो … Continue reading बोधगीत: – देवनारायण भारद्वाज ‘देवातिथि’

शौर्य की ज्वाला “पद्मावती” :गौरव आर्य

रानी पद्मावती को लेकर देश के आधुनिक गढ़रिये नई गाथा गढ़ रहे है पैसे और नाम की चकाचौंध में ये गढ़रिये अपने पूर्वजों के सम्मान को बेचने पर आमादा है वही इन वीर वीरांगनाओं के सम्मान के लिए आज जिन युवाओं को आगे आना चाहिए वे अपने चरित्र को ही भौतिकता की बलि पर चढा रहे है आज की राष्ट्र भक्ति जातिवाद और स्वार्थी भावनाओं से ग्रस्त होती जा रही है | किसी कवि ने ठीक ही कहा है “जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं | वह हृदय नहीं वो पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ||” भंसाली आज रानी पद्मावती के इतिहास को तोड़ मरोड़कर अपनी फिल्म में प्रस्तुत करने का साहस कर चूका … Continue reading शौर्य की ज्वाला “पद्मावती” :गौरव आर्य

आर्यसमाज – समस्या और समाधान:- धर्मवीर

आर्यसमाज से सम्बन्ध रखने वाले, आर्यसमाज का हित चाहने वाले लोग समाज की वर्तमान स्थिति से चिन्तित हैं। उन्हें दु:ख है कि एक विचारवान्, प्राणवान् संगठन निष्क्रिय और निस्तेज कैसे हो गया? इसके लिए वे परिस्थितियों को दोषी मानते हैं, आर्यों की अकर्मण्यता को कारण समझते हैं। यह सब कहना ठीक है, परन्तु इसके साथ ही इसके संरचनागत ढांचे पर भी विचार करना आवश्यक है, जिससे समस्या के समाधान का मार्ग खोजने में सहायता मिल सकती है। स्वामी दयानन्द जी ने अपने समय की सामाजिक परिस्थितियों को देखकर ऐसा अनुभव किया कि धार्मिक क्षेत्र में गुरुवाद ने एकाधिकार कर रखा है, उसके कारण उनमें स्वेच्छाचार और उच्छृंखलता आ गई है। इनके व्यवहार पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता, इस परिस्थिति … Continue reading आर्यसमाज – समस्या और समाधान:- धर्मवीर

नेपाल संवत र यसको महत्व:

नेपाल संवत र यसको महत्व: नेपाल संवत र यसको महत्व: प्रेम आर्य दोहा, कतार बाट सृष्टि सम्वत्: १,९६,०८,५३,११८ नेपाल सम्वत: ११३८, कछला-२५, बुधबार तिथि: पंचमी पक्ष: कृष्ण अयन: दक्षिणायन ऋतु: शरद बिक्रम संवत्: २०७४, कार्तिक-२२ गते ईसाई सम्वत्: २०१७, नवम्बर-०८ यो नेपालमा प्रचलित एक चन्द्रमासमा आधारित साल हो। विशेषगरी नेवार समुदायले प्रत्येक वर्ष गोवर्धन पर्वका दिन नयाँ बर्ष मनाउने ‘नेपाल संवत्’ को क्रमिक रुपमा नेपाल भरि नै यसको लोकप्रियता बढ्दै गएको पाइएको छ र यसलाई औपचारिक रुपमा नेपालको राष्ट्रिय मान्यता पनि दिइनु पर्दछ। यसलाई देशभरी नै विशेष पर्वको रुपमा मनाउनु पर्दछ। नेपाल संवतका प्रवर्तक शंखधर् साख्वा हुन्। उनले नेपालका सबै जनताको ऋण तिरेर नेपाललाई ऋणमुक्त बनाएको दिनको सम्झनामा यो सम्बत थालिएको हो। नेपाल सम्वत आज भन्दा ११३७ वर्ष पहिले भक्तपुरका राजा राघब देवको … Continue reading नेपाल संवत र यसको महत्व:

अविद्या को दूर करना ही देशोन्नति का उपाय है: – सत्यवीर शास्त्री

इस ईश्वर की अनात्म जड़ मूर्ति पूजा ने राष्ट्र व समाज को, इस आर्यावर्त देश भारत को, जिसे विदेशी लोग सोने की चिडिय़ा के नाम से पुकारते थे, जिसके ज्ञान-विज्ञान के कारण इसको विश्व का गुरु माना जाता था, उस राष्ट्र की आज अत्यन्त गरीब देशों में गिनती है। चरित्रहीनता और भ्रष्टाचार में इसकी गिनती प्रथम दर्जे के देशों में की जाती है, क्योंकि गरीबी का मुख्य कारण महाभारत के उपरान्त अविद्या के उपरोक्त लक्षणों में फँसकर अन्धविश्वास के कारण राजाओं, महाराजाओं तथा अन्य धनवान् तथा सामान्य व्यक्तियों ने भी राष्ट्र की सम्पत्तियों का बहुत बड़ा हिस्सा इन पत्थर के भगवानों के मन्दिरों में समर्पित कर दिया तथा विदेशी लुटेरे आक्रमणकारी मन्दिरों से इक_े किये धन को लूटते रहे। मुहम्मद … Continue reading अविद्या को दूर करना ही देशोन्नति का उपाय है: – सत्यवीर शास्त्री

परमेश्वर का मुख्य नाम ‘ओ३म’ ही क्यों?: आचार्य धर्मवीर

यह लेख आचार्य धर्मवीर जी द्वारा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में दि. २६/०६/२००१ को दिया गया व्याख्यान है, इस व्याख्यान में ईश्वर के स्वरूप और उसके नाम ओ३म् का विवेचन बड़ी ही दार्शनिक शैली से किया गया है। -सम्पादक ओ३मï् भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयातïï्।। आज हम परमेश्वर के मुख्य नाम ‘ओ३मï्’ पर चर्चा करेंगे। बड़ा ही प्रसिद्ध नाम है। गायत्री-मन्त्र बोलते समय सबसे पहले  ‘ओ३मïï्’ शब्द आता है, पहले हम ‘ओ३मï्’ का स्मरण करते हैं। स्वामी जी इसका अर्थ करते हुए लिखते हैं कि ‘‘यह परमेश्वर का मुख्य और निज नाम है।’’ इसमें तीन चीजें ध्यान देने योग्य हैं- एक तो मुख्य, दूसरा निज और तीसरा है नाम। ये कोई विशेषण नहीं हैं। सामान्यत: हम किसी … Continue reading परमेश्वर का मुख्य नाम ‘ओ३म’ ही क्यों?: आचार्य धर्मवीर

ब्रह्माकुमारी का सच : आचार्य सोमदेव जी

जिज्ञासा– मैं परोपकारी का लगभग ३० वर्षों से नियमित पाठक हूँ। आपसे मैं आशा करता हूँ कि तथाकथित असामाजिक तत्वों व संगठनों द्वारा आर्यसमाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा पर किए जा रहे हमलों व षड्यन्त्रों का आप जवाब ही नहीं देते, उन्हें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती देने में भी सक्षम हैं। ऐसी मेरी मान्यता है। ऐसे ही एक पत्र मेरे (आर्यसमाज सोजत) पते पर दुबारा डाक से प्राप्त हुआ है। इस पत्र की फोटो प्रति मैं आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह पत्र ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ा किसी व्यक्ति का है, मैंने उससे फोन पर बात भी की है तथा उसे कठोर शब्दों में आमने-सामने बैठकर चर्चा के लिए चुनौती दी है। परन्तु फोन पर उसने कोई … Continue reading ब्रह्माकुमारी का सच : आचार्य सोमदेव जी

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)