अम्बेडकर के वेदों पर आक्षेप

भीम राव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “सनातन धर्म में पहेलियाँ” (Riddles In Hinduism) में वेदों पर अनर्गल आरोप लगाये हैं और अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है। अब चुंकि भीम राव को न तो वैदिक संस्कृत का ज्ञान था और न ही उन्होनें कभी आर्ष ग्रंथों का स्वाध्याय किया था, इसलिये उनके द्वारा लगाये गये अक्षेपों से हम अचंभित नहीं हैं। अम्बेडकर की ब्राह्मण विरोधी विचारधारा उनकी पुस्तक में साफ झलकती है। इसी विचारधारा का स्मरण करते हुए उन्होनें भारतवर्ष में फैली हर कुरीति का कारण भी ब्राह्मणों को बताया है और वेदों को भी उन्हीं की रचना बताया है। अब इसको अज्ञानता न कहें तो और क्या कहें? अब देखते हैं अम्बेडकर द्वारा लगाये अक्षेप और वे कितने सत्य … Continue reading अम्बेडकर के वेदों पर आक्षेप

बुद्ध मत मे नारिया

अम्बेडकर वादी कहते है की नारियो का सम्मान सिर्फ बुद्ध मत ही करता है जबकि हिन्दू वैदिक मत मे नारियो पर अत्याचार होते थे …ओर सती प्रथा ओर बाल विवाह आदि अन्य कुप्रथाए हिन्दुओ द्वारा चलयी गयी….लेकिन कई वैदिक विद्वानों ,आर्य विद्वानों द्वारा इसका संतुष्ट जनक जवाब दिया जाता रहा है ,,, जैसे सीता जी की अग्नि परीक्षा पर ,सती प्रथा पर(*इस पेज पर भी एक पोस्ट इसी से सम्बंधित है ) लेकिन दुर्भावना से ग्रसित लोग आछेप करते रहते है । ओर वो भी कुछ प्रक्षेप को उठा कर ये लोग आक्षेप करते है ,,जैसे की मनुस्म्रती पर भी …जबकि मनुस्म्रति मे लिखा है :- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:। अर्थात जहा नारियो की … Continue reading बुद्ध मत मे नारिया

क्या श्री राम ने पशु वध किया था ??

अम्बेडकर वाड़ी दावा :- राम जी ने मॉस प्राप्त करने के लिए हिरण का वध किया था …. दावे का भंडाफोड़ :- प्रश्न-क्या श्री राम ने किसी हिरण की हत्या की थी? उत्तर-रामायण के अनुसार वो कोई हिरण नही था असल मे वो एक मायावी बहरूपिया मारिच था जिसने सीता जी ओर रामजी को भ्रमित करने के लिए हिरण का छद्म भेष बनाया था।(ये ठीक इसी प्रकार था जैसे कि रात मे रस्सी को साप समझ कर भ्रम मे पड जाना,रेगिस्तान मे प्यासे को पानी नजर आना) असल मे मारीच भेष बदलने के अलावा तरह तरह की आवाजे(मिमिकरी)निकालने मे भी माहिर था। उसके इस छल के बारे मे लक्ष्मण जी ओर श्री राम जी को भी पता चल गया था,, … Continue reading क्या श्री राम ने पशु वध किया था ??

क्या बुद्ध तर्कवादी ओर जिज्ञासु थे

अम्बेडकरवादी दावा :- बुद्ध तर्क वादी ओर जिज्ञासा को शांत करने वाले व्यक्ति थे….अपने शिष्यों को भी तर्क करने ओर जिज्ञासु बनने का उपदेश देते थे … दावे का भंडाफोड़ :- एक समय मलयूक्ष्य पुत्त नामक किसी व्यक्ति ने महात्मा गौत्तम बुध्द से प्रश्न किया- भगवन क्या यह संसार अनादी व अन्नत है? यदि नही तो इसकी उत्पत्ति किस प्रकार हुई? लेकिन बुध्द ने उत्तर दिया – है मलयूक्ष्य पुत्त तुम आओ ओर मेरे शिष्य बन जाऔ,मै तुमको इस बात की शिक्षा दुंगा कि संसार नित्य है या नही|” मलयूक्ष्य पुत्त ने कहा ” महाराज आपने ऐसा नही कहा|”(कि शिष्य बनने पर ही शंका दूर करोगे) तो बुध्द बोले- तो फिर इस प्रश्न को पूछने का मुझसे साहस न करे| … Continue reading क्या बुद्ध तर्कवादी ओर जिज्ञासु थे

साईँ भक्ति अर्थात लाश की उपासना !

  जिस  दिन ज्योतिर्पीठ  के  शकराचार्य  स्वरूपानन्द  सरस्वती  ने  हिन्दुओं द्वारा शीरडी  के फ़क़ीर ” साईँ  बाबा ” की उपासना के बारे में आपत्ति  उठाई   है  .तबसे  मीडिया  और साईं के भक्तों  ने स्वरूपानंद  के  खिलाफ  एक जिहाद  सी  छेड़  राखी  है.. कुछ लोग  साइन भक्ति को निजी और  आस्था  या श्रद्धा का मामला   बता  रहे  हैं   . लेकिन अधिकांश  हिन्दुओं  में  साईँ  बारे में  कुछ  ऐसे सवाल खड़े हो गए हैं  , जिनका प्रामाणिक  और शास्त्रानुसार   उत्तर  देना  जरुरी  हो  गया  है  ,  कुछ  प्रश्न  इस  प्रकार  हैं  , 1 क़्या  साइ कोई  हिन्दू  संत था  , जिसके  लिए उसकी हिन्दू विधि  से  आरती  और पूजा होती  है. 2 . क्या साइ के आचरण  और … Continue reading साईँ भक्ति अर्थात लाश की उपासना !

वर्तमान युग में वेदों की प्रासंगिकता : शिवदेव आर्य, पौन्धा, देहरादून

  परमपिता परमेश्वर ने जब सृष्टि का निर्माण किया तब सृष्टि में अनेकविध जड़-चेतनों का निर्माण किया। इन नाना विध जड़-चेतनों में यदि कोई सर्वश्रेष्ठ है तो वह है मनुष्य। जैसे परमात्मा ने अपनी सर्वोत्तम कृति मनुष्य को बनाया है ठीक वैसे ही मनुष्यों ने भी अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना के रुप में संसार का निर्माण किया है। इसीलिए मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा जाता है। मनुष्य ने जिस प्रकार के नियम और व्यवस्था की है उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता  हैै कि उसने पूर्णरुप से परमात्मा की नकल की है क्योंकि परमेश्वर अपने द्वारा निर्मित सृष्टि के नियमों के सदैव अनुकुल रहता है वैसे ही मनुष्य अपने द्वारा निर्मित समाज के नियमों में बंधा हुआ होता है। इस प्रकार हम … Continue reading वर्तमान युग में वेदों की प्रासंगिकता : शिवदेव आर्य, पौन्धा, देहरादून

पारसी मत का मूल वैदिक धर्म(vedas are the root of parsiseem)

वेद ही सब मतो व सम्प्रदाय का मूल है,ईश्वर द्वारा मनुष्य को अपने कर्मो का ज्ञान व शिक्षा देने के लिए आदि काल मे ही परमैश्वर द्वारा वेदो की उत्पत्ति की गयी,लैकिन लोगो के वेद मार्ग से भटक जाने के कारण हिंदु,जेन,सिख,इसाई,बुध्द,पारसी,मुस्लिम,यहुदी,आदि मतो का उद्गम हो गया। मानव उत्पत्ति के वैदिक सिध्दांतानुसार मनुष्यो की उत्पत्ति सर्वप्रथम त्रिविष्ट प्रदेश(तिब्बत) से हुई (सत्यार्थ प्रकाश अष्ट्म समुल्लास) लेकिन धीरे धीरे लोग भारत से अन्य देशो मे बसने लगे जो लोग वेदो से दूर हो गए वो मलेच्छ कहलाए जैसा कि मनुस्मृति के निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है “ शनकैस्तु  क्रियालोपादिमा: क्षत्रियजातय:। वृषलत्वं गता लोके ब्रह्माणादर्शनेन्॥10:43॥  – निश्चय करके यह क्षत्रिय जातिया अपने कर्मो के त्याग से ओर यज्ञ ,अध्यापन,तथा संस्कारादि के निमित्त … Continue reading पारसी मत का मूल वैदिक धर्म(vedas are the root of parsiseem)

Duties of a Householder & King

Duties of a Householder AV 6.122, AV6.123 Author :- Subodh Kumar ऋषि:  -भृगु = जो साधना के  मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन को  अधिकाधिकपवित्र बना लेता है तब वह सब धनों का विजेता शक्तिशाली बन कर परम आत्मत्व से सब से सखित्व भाव रखता है. देवता:- विश्वेदेवा:    गृहस्थ के दायित्व – दान और पञ्चमहायज्ञ परिवार विषय   अथर्व 6.122, पञ्च महायज्ञ विषय यज्ञ का रहस्य: (आचार्य डा. विशुद्धानंद मिश्र की व्याख्या से साभार उद्धरित)     वेद धर्मका प्राण हैं और यज्ञ इस की आत्मा है । यज्ञ सर्वधर्म रूप भवन की आधारशिला है । ‘ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि  धर्माणि प्रथमान्यासन्‌’ – ध्यान यज्ञ से देवताओं ने यज्ञ पुरुष की पूजा की,यज्ञ ही प्रथम धर्म  है ।  ‘प्रजापतिर्वै यज्ञ: ,विष्णु र्वै यज्ञ:’ –यज्ञ ही  प्रजापति है और यज्ञ … Continue reading Duties of a Householder & King

सोम रस ओर शराब

कई पश्चमी विद्वानों की तरह भारतीय विद्वानों की ये आम धारणा है ,कि सोम रस एक तरह का नशीला पदार्थ होता है । ऐसी ही धारणा डॉ.अम्बेडकर की भी थी ,,डॉ.अम्बेडकर अपनी पुस्तक रेवोलुशन एंड काउंटर  रेवोलुशन इन असिएन्त इंडिया मे निम्न कथन लिखते है:- यहाँ अम्बेडकर जी सोम को वाइन कहते है ।लेकिन शायद वह वेदों मे सोम का अर्थ समझ नही पाए,या फिर पौराणिक इन्द्र ओर सोम की कहानियो के चक्कर मे सोम को शराब समझ बेठे । सोम का वैदिक वांग्मय मे काफी विशाल अर्थ है ,सोम को शराब समझने वालो को शतपत के निम्न कथन पर द्रष्टि डालनी चाहिए जो की शराब ओर सोम पर अंतर को स्पष्ट करता है :- शतपत (5:12 ) मे आया … Continue reading सोम रस ओर शराब

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)