अम्बेडकर के वेदों पर आक्षेप

भीम राव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “सनातन धर्म में पहेलियाँ” (Riddles In Hinduism) में वेदों पर अनर्गल आरोप लगाये हैं और अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है। अब चुंकि भीम राव को न तो वैदिक संस्कृत का ज्ञान था और न ही उन्होनें कभी आर्ष ग्रंथों का स्वाध्याय किया था, इसलिये उनके द्वारा लगाये गये अक्षेपों से हम अचंभित नहीं हैं। अम्बेडकर की ब्राह्मण विरोधी विचारधारा उनकी पुस्तक में साफ झलकती है।
इसी विचारधारा का स्मरण करते हुए उन्होनें भारतवर्ष में फैली हर कुरीति का कारण भी ब्राह्मणों को बताया है और वेदों को भी उन्हीं की रचना बताया है। अब इसको अज्ञानता न कहें तो और क्या कहें? अब देखते हैं अम्बेडकर द्वारा लगाये अक्षेप और वे कितने सत्य हैं।
अम्बेडकर के अनुसार वेद ईश्वरीय वाणी नहीं हैं अपितु इंसाने मुख्यतः ब्राह्मणों द्वारा रचित हैं। इसके समर्थन में उन्होनें तथाकथित विदेशी विद्वानों के तर्क अपनी पुस्तक में दिए हैं और वेदों पर भाष्य भी इन्हीं तथाकथित विद्वानों का प्रयोग किया है। मुख्यतः मैक्स मुलर का वेद भाष्य।
उनके इन प्रमाणों में सत्यता का अंश भर भी नहीं है। मैक्स मुलर, जिसका भाष्य अपनी पुस्तक में अम्बेडकर प्रयोग किया है, वही मैक्स मुलर वैदिक संस्कृत का कोई विद्वान नहीं था। उसने वेदों का भाष्य केवल संस्कृत-अंग्रेजी के शब्दकोश की सहायता से किया था। अब चुंकि उसने न तो निरुक्त, न ही निघण्टु और न ही अष्टाध्यायी का अध्यन किया था, उसके वेद भाष्य में अनर्गल और अश्लील बातें भरी पड़ी हैं। संस्कृत के शून्य ज्ञान के कारण ही उसके वेद भाष्य जला देने योग्य हैं।
अब बात आती है कि वेद आखिर किसने लिखे? उत्तर – ईश्वर ने वेदों का ज्ञान चार ऋषियों के ह्रदय में उतारा। वे चार ऋषि थे – अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा। वेदों की भाषा शैली अलंकारित है और किसी भी मनुष्य का इस प्रकार की भाषा शैली प्रयोग कर मंत्र उत्पन्न करना कदापि सम्भव नहीं है। इसी कारण वेद ईश्वरीय वाणी हैं।
यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः | ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्य्याय च | स्वाय चारणाय च प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृध्यतामुपमादो नमतु|| (यजुर्वेद 26.2)
परमात्मा सब मनुष्यों के प्रति इस उपदेश को करता है कि यह चारों वेदरूप कल्याणकारिणी वाणी सब मनुष्यों के हित के लिये मैनें उपदेश की है, इस में किसी को अनधिकार नहीं है, जैसे मैं पक्षपात को छोड़ के सब मनुष्यों में वर्त्तमान हुआ पियारा हूँ, वैसे आप भी होओ | ऐसे करने से तुम्हारे सब काम सिद्ध होगें ||
डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक में दर्शन ग्रंथों से भी प्रमाण दिये हैं जिसमें उन्होनें वेदों में आंतरिक विरोधाभास की बात कही है। अम्बेडकर के अनुसार महर्षि गौतम कृत न्याय दर्शन के 57 वे सुत्र में वेदों में आंतरिक विरोधाभास और बली का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार महर्षि जैमिनी कृत मिमांसा दर्शन के पहले अध्याय के सुत्र 28 और 32 में वेदों में जीवित मनुष्य का उल्लेख किया गया है। ऐसा अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक में वर्णन किया है परंतु ये प्रमाण कितने सत्य हैं आइये देखते हैं।
पहले हम न्याय दर्शन के सुत्र को देखते हैं। महर्षि गौतम उसमें लिखते हैं:
तदप्रामाण्यमनृतव्याघातपुनरुक्तदोषेभ्यः |58|
(पूर्वपक्ष) मिथ्यात्व, व्याघात और पुनरुक्तिदोष के कारण वेदरूप शब्द प्रमाण नहीं है।
न कर्मकर्त साधनवैगुण्यात् |59|
(उत्तर) वेदों में पूर्व पक्षी द्वारा कथित अनृत दोष नहीं है क्योंकि कर्म, कर्ता तथा साधन में अपूर्णता होने से वहाँ फलादर्शन है।
अभ्युपेत्य कालभेदे दोषवचनात् |60|
स्वीकार करके पुनः विधिविरुद्ध हवन करने वाले को उक्त दोष कहने से व्याघात दोष भी नहीं है।
अनुवादोपपत्तेश्च |61|
सार्थक आवृत्तिरूप अनुवाद होने से वेद में पुनरुक्ति दोष भी नहीं है।
अतः इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि वेदों में किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है और अम्बेडकर के न्याय दर्शन पर अक्षेप पूर्णतः असत्य हैं।
अब मिमांसा दर्शन के सुत्र देखते हैं जिन पर अम्बेडकर ने अक्षेप लगाया है:
अविरुद्धं परम् |28|
शुभ कर्मों के अनुष्ठान से सुख और अशुभ कर्मों के करने से दुःख होता है।
ऊहः |29|
तर्क से यह भी सिद्ध होता है कि वेदों का पठन पाठन अर्थ सहित होना चाहिये।
अपि वा कर्तृसामान्यात् प्रमाणानुमानं स्यात् |30|
इतरा के पुत्र महिदास आदि के रचे हुए ब्राह्मण ग्रंथ वेदानुकुल होने से प्रमाणिक हो सकते हैं।
हेतुदर्शनाच्च |31|
ऋषि प्रणीत और वेदों की व्याख्या होने के कारण ब्राह्मण ग्रंथ परतः प्रमाण हैं।
अपि वा कारणाग्रहणे प्रयुक्तानि प्रतीयेरन् |32|
यदि ब्राह्मण ग्रंथ स्वतः प्रमाण होते तो वेदरूप कारण के बिना वे बिना वेद स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त प्रतीत होने चाहिये थे, परंतु ऐसा नहीं है।
अतः इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि वेदों में कहीं भी किसी जीवित मनुष्य का उल्लेख नहीं किया गया है। अतः यह अक्षेप भी अम्बेडकर का असत्य साबित होता है।
प्रिय पाठकों, अम्बेडकर ने न तो कभी आर्ष ग्रंथ पढ़े थे और न ही उन्हें वैदिक संस्कृत का कोई भी ज्ञान था। अपनी पुस्तक में केवल उन्होनें कुछ तथाकथित विदेशी विद्वानों के तर्क रखे थे जो कि पूर्णतः असत्य हैं। अम्बेडकर ने ऋग्वेद में आये यम यमी संवाद पर भी अनर्गल आरोप लगाये हैं जिनका खण्डन हम यहाँ कर चुके हैं: यम यमी संवाद के विषय में शंका समाधान
अब पाठक गण स्वंय निर्णय लेवें और असत्य को छोड़ सत्य का ग्रहण करें और हमेशा याद रखें:
वेदेन रूपे व्यपिबत्सुतासुतौ प्रजापतिः| ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानम् शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु || (यजुर्वेद 19.78)

 

वेदों को जाननेवाले ही धर्माधर्म के जानने तथा धर्म के आचरण और अधर्म के त्याग से सुखी होने को समर्थ होते हैं ||

7 thoughts on “अम्बेडकर के वेदों पर आक्षेप”

    1. pyaar karo janab ambedkar se kisne mana kiya hai. achhe kaam jo unhone kiye hain uska samman karo pyaar karo aur jo murkhata waale kaam kiye hain uskaa virodh karo. ham bhi ambedkar sahab kaa samman karte hain.

      1. मूर्खता ओ की परिसीमा स्वत: आप गाठ रहे है सिरी मान…, अंबेडकर साहब के वेदो के तर्क पर बिना कि सी विवेक बुद्धि का प्रयोग न करके ..!
        वेदों की तर्क की गंभीरता ओ को समझो यूँ ही जवाब देना अज्ञानता दर्शक है.

        1. जनाब आप प्रमाण देना किस वेद का भाष्यकार से वेद पढ़ा था आपके बाबा (god) ने
          जानकारी देना | और वह वेद कहा मिलेगा | हवा हवाई में मत बात करो मुर्ख लोगो की तरह |
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          वेद की जानकारी के लिए | मगर आप तो अंधे हो आपको यह वेद नजर नहीं आएगा | मुर्खता की हद होती है |

  1. वृग्वेद वेदों के मूल के बारे में एक सिद्धांत प्रतिपादन करता है . यह एक प्रसिद्ध पुरुष सूक्त में निहित है तद्नुसार पुरुष नाम के एक मनगढ़ंत जिव ने एक मनगढ़ंत यज्ञ किया था .इस यज्ञ ने वृग , यजु, और साम नाम के तीनो वेदों को जन्म दिया .
    *मनुस्मृति के नुसार वेदों के मूल के बारे में दो मत मिलते है .
    एक जगह कहां गया है कि वेदों की उतपत्ति ब्रम्ह से हुई है.
    *छान्दोग्य उपनिषद में वेदो के मूल की जो व्याख्या की है वह वहीँ सतपथ ब्राम्हण की है अर्थात वृग्वेद अग्नि से उत्पन्न हुआ ,यजुर्वेद वाणी से और सामवेद सूर्य से.
    *तैत्रय ब्राम्हण में तिन मत अभिमत किये गए है .उसका यह भी मत है की वेदों के मूल में प्रजापति है .उसका यह भी मत है की प्रजा पति ने सोम को उत्पन्न किया और इसके बाद तिन वेदों की उत्पत्ति हुई .इसी ब्राम्हण ग्रन्थ में एक और अभिमत भी दिया गया है जिसका प्रजापति से कोई संबंध नही .
    *तैत्रय ब्राम्हण की एक तीसरी मौलीक व्याख्या है इसके अनुसार वेद् प्रजापति की दाढ़ी से उत्पन्न हुए.
    *विष्णु पुराण के अनुसार ‘ब्रम्हा ने अपने पूर्वाभिमुख मुंह से गायत्री ,वृग्वेद के मन्त्र , त्रिवृत ,सोमरथन्तर,यज्ञप्रथा ,अग्निस्तोम की रचना की.दक्षिणभिमुख से ई
    उसने यजुर्वेद के मन्त्रो , त्रिष्टंभ छन्दस् ,पच्च दस स्त्रोत्र ,वैरूप तथा अतिरत्र की रचना की.उत्तराभिमुख मुंह से उसने एकविंश विज छन्दों की रचना की.
    *वेदों के मूल के बारे में हमारे पास ग्यारह भिन्न भिन्न मन्तव्य है_
    १.पुरुष के दिव्ययज्ञ से उतपन्न
    २.स्कन्ध या स्तंभ पर आधारित
    ३.उस से काट लिए गए या छिन लिए गए ,उसका बाल या मुंह.
    ४.इंद्र से उतपन्न
    ५.काल से उतप न्न
    ६.अग्नि ,वायु और सूर्य से उतपन्न
    ७. प्रजापति या जल से उतपन्न
    ८.ब्रम्हा का सांस मात्र
    ९. मानस रूपी समुद्र में से देवता ओ द्वारा खोदकर निकाले गए .
    १०. प्रजापति दाढ़ी के बालो से उतपन्न तथा
    ११. वाणि की सन्तति.
    एक प्रश्न के चकरा देने वाले इतने अधिक उत्तर !
    जिन्होंने इतने अधिक भिन्न भिन्न
    उत्तर उपस्थित किये वे संभवतः सभी ब्राम्हण रहे होंगे .वे सभी एक ही वैदिक विचार सरणी के समर्थक रहे .उन्ही की हाथो में प्राचीन वैदिक वाङ्गमय सुरक्षित था.
    एक स्वाभाविक व्यक्ति की स्वाभाविक जिज्ञासा है की एक सीधे साधें प्रश्न के- वेदों का मूल क्या था ?? इतने अधिक बेमेल उत्तर
    क्यों….???

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