डा . अम्बेडकर का खंडन प. शिवपूजन सिंह कुशवाह (आर्य समाज ) द्वारा

डा . शिवपूजन सिंह जी आर्य समाज के एक उत्क्रष्ट विद्वान् थे तथा अच्छे वैदिक सिद्धांत मंडन कर्ता थे | उन्होंने अम्बेडकर जी की दो किताब शुद्रो की खोज ओर अच्छुत कौन ओर केसे की कुछ वेद विरुद्ध विचारधारा का उन्होंने खंडन किया था | ये उन्होंने अम्बेडकर जी के देह्वास के ५ साल पूर्व भ्रान्ति निवारण एक १६ पृष्ठीय आलेख के रूप में प्रकाशित किया ओर अम्बेडकर साहब को भी इसकी एक प्रति भेजी थी | हम यहा उसके कुछ अंश प्रस्तुत करते है – डा. अम्बेडकर – आर्य लोग निर्विवाद से दो संस्कृति ओर दो हिस्सों में बटे थे जिनमे एक ऋग्वेद आर्य ओर दुसरे यजुर्वेद आर्य थे ,जिनके बीच बहुत बड़ी सांस्कृतिक खाई थी | ऋग्वेदीय आर्य … Continue reading डा . अम्बेडकर का खंडन प. शिवपूजन सिंह कुशवाह (आर्य समाज ) द्वारा

आधुनिक शिक्षा-व्यवस्था उचित नहीं, क्यों? और विकल्प

आधुनिक शिक्षा-व्यवस्था उचित नहीं, क्यों? और विकल्प  यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि इस संसार में मानव ऐसा प्राणी है जिसकी सर्वविध उन्नति कृत्रिम है, स्वाभाविक नहीं। शैशवकाल में बोलने, चलने आदि की क्रियाओं से लेकर बड़े होने तक सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उसे पराश्रित ही रहना होता है, दूसरे ही उसके मार्गदर्शक होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि समय-समय पर विविध माध्यमों अथवा व्यवहारों से मानव में अन्यों के द्वारा गुणों का आधान किया जाता है। यदि ऐसा न किया जाये, तो, मानव ने आज के युग में कितनी ही भौतिक उन्नति क्यों न कर ली हो, वह निपट मूर्ख और एक पशु से अधिक कुछ नहीं हो सकता -यह नितान्त सत्य है। अतः सृष्टि … Continue reading आधुनिक शिक्षा-व्यवस्था उचित नहीं, क्यों? और विकल्प

Whether women lack common sense?

  Woman in Indian civilization Womanhood has been reverenced in the ancient Indian culture as a manifestation of divine qualities. Womanhood is a symbol of eternal virtues of humanity expressed in compassion, selfless love and caring for others. The Indian philosophers of yore (the rishis) considered that the seeds of divinity grow and blossom in a truly cultured society where women are given due respect and equal opportunities of rise and dignity. The scriptures and later works on Indian culture and philosophy stand witness to the fact that women indeed receive high recognition and respect in the Vedic age. The contribution of women rishis in making the ancient Indian culture a divine culture were not less than those of their male counterparts. In the later ages too, women had always been integral … Continue reading Whether women lack common sense?

ब्रह्मकुमारी का सच : आचार्य सोमदेव जी

ब्रह्माकुमारी मत वाले हमारे प्राचीन इतिहास व शास्त्र के घोर शत्रु हैं। इस मत के मानने वाले १ अरब ९६ करोड़ ८ लाख, ५३ हजार ११५ वर्ष से चली आ रही सृष्टि को मात्र ५ हजार वर्ष में समेट देते हैं। ये लाखों वर्ष पूर्व हुए राम आदि के इतिहास को नहीं मानते हैं। वेद आदि किसी शास्त्र को नहीं मानते, इसके प्रमाण की तो बात ही दूर रह जाती है। वेद में प्रतिपादित सर्वव्यापक परमेश्वर को न मान एक स्थान विशेष पर ईश्वर को मानते हैं। अपने मत के प्रवर्तक लेखराम को ही ब्रह्मा वा परमात्मा कहते हैं।

आखिर क्या है वैलेंटाइन डे? शिवदेव आर्य

    भारतीय संस्कृति एवं परम्परा को समाज में इस प्रकार तोड़ा जा रहा है जिसका कोई बखान नहीं कर सकता और यदि लेखनी भारतीयता की व्यथा को व्यक्त करने की कोशिश भी करे तो उसे चारों ओर से कुचलने का प्रयास किया जाता है। पुनरपि ये लेखनी अपने कतव्र्य को कैसे भूल सकती है। ये तो अपने कर्म के प्रति सदैव कटिबद्ध रहती है। इसी लिए इसे ब्राह्मण की गौ कहा गया है अर्थात् ब्राह्मण की वाणी। ब्राह्मण को वेद सदैव आदेश देता है कि तू अपने कर्तव्य (जागृति) का विस्तार सदा करता रहे। जब-जब भी समाज में अन्धकार का वर्चस्व फैला है तब-तब लेखनी ने सूर्य के अद्वितीय प्रकाश के समान अन्धकार का दमन किया है। आज भी … Continue reading आखिर क्या है वैलेंटाइन डे? शिवदेव आर्य

अम्बेडकर वादी का गलत गायत्री मन्त्र का अर्थ और उसका प्रत्युत्तर

कुछ दिन पहले एक अंबेडकरवादी नवबौद्ध मूलनिवासी  ने एक पोस्ट मे गायत्री मन्त्र का अत्यन्त गंदा और असभ्य अर्थ किया था और कुछ दुष्ट मुल्लों ने उस पोस्ट को बहुत अधिक शेयर किया था। उस पोस्ट मे उस अम्बेडकरवादी   ने प्रचोदयात् शब्द को प्र+चोदयात को अलग कर के अत्यन्त असभ्य अर्थ किया है। इस मन्त्र पर विचार करने से पहले संस्कृत के कुछ शब्दो पर विचार करे जो हिन्दी मे बिलकुल अलग अर्थों मे प्रयोग करते हैं।संस्कृत के अनेक शब्द हिन्दी में अपना अर्थ आंशिक या पूर्ण रूप से बदल चुकें हैं। पूरण रूप से अर्थ परिवर्तन- उदाहरण- 1-अनुवाद- (हिन्दी)-भाषान्तर, Translation (संस्कृत)- विधि और विहित का पुनःकथन (विधिविहितस्यानुवचनमम्नुवादः -न्यायसूत्र 4।2।66), प्रमाण से जानी हुई बात का शब्द द्वारा कथन( … Continue reading अम्बेडकर वादी का गलत गायत्री मन्त्र का अर्थ और उसका प्रत्युत्तर

Viman Vidya and Shivkar Bapuji Talpade

Viman Vidya and Shivkar Bapuji Talpade  Author : Vijay Upadyaya Introduction According to Bhāratiya knowledge heritage, Veda is the source of all knowledge. Our scholars and seers have derived all knowledge from this only. But after the Mahabhārat war with the decline in the Vedic ethics, scientific deciphering tradition of Veda was also vanished gradually. But in the 19th century it was again brought into practiced by Swāmi Dayānand Saraswati and he started the scientific deciphering process of the Vedas. He had brought into light the forgotten Vimāna Vidyā existed during the Vedic period and explained the various technologies present in the Vedas in his book titled ‘Rig-Vedādic-Bhāshya-Bhumikā’ published in 1877. In the ‘Nau-Vimāna Vidyā’ chapter of this book he … Continue reading Viman Vidya and Shivkar Bapuji Talpade

चलें यज्ञ की ओर…. शिवदेव आर्य, गुरुकुल-पौन्धा, देहरादून

  वेद व यज्ञ हमारी संस्कृति के आधार स्थम्भ हैं। इसके बिना भारतीय संस्कृति निश्चित ही पंगु है। यज्ञ का विधिविधान आदि काल से अद्यावधि पर्यन्त अक्षुण्ण बना हुआ है। इसकी पुष्टि हमें हड़प्पा आदि संस्कृतियों में बंगादि स्थलों पर यज्ञकुण्डों के मिलने से होती है। वैदिक काल में ऋषियों ने यज्ञों पर अनेक अनुसन्धान किये। अनुसन्धान की प्रथा वहीं तक समाप्त नहीं हो गई अपितु इसका निर्वाहन निरन्तर होता चला आ रहा  है।  यज्ञ से प्राप्त अनेक लाभों को दृष्टि में रखते हुए शतपथ ब्राह्मणकार ने लिखा है कि ‘यज्ञो वै श्रेष्ठतं कर्म’ अर्थात् यज्ञ संसार का सबसे श्रेष्ठ कर्म है और इसी श्रेष्ठ कर्म को करने  से मनुष्य सर्वदा सुखी रहता है। इसी बात को ऋग्वेद में निरुपित … Continue reading चलें यज्ञ की ओर…. शिवदेव आर्य, गुरुकुल-पौन्धा, देहरादून

‘वेदाविर्भाव और वेदाध्ययन की परम्परा पर विचार’

ओ३म् ‘वेदाविर्भाव और वेदाध्ययन की परम्परा पर विचार’                 सृष्टिकाल के आरम्भ से देश में अनेक ऋषि व महर्षि उत्पन्न हुए हैं। इन सबकी श्रद्धा व पूरी निष्ठा ईश्वरीय ज्ञान वेदों में रही है। यह वेद सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर द्वारा हमारे अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को उनकी आत्मा में अपने आत्मस्थ स्वरूप से प्रेरणा द्वारा प्रदान किये थे। आप्त प्रमाणों के अनुसार इन ऋषियों ने यह ज्ञान ब्रह्माजी को दिया और ब्रह्माजी से इन चारों वेदों को सृष्टि के आरम्भ में अन्य स्त्री व पुरूषों को पढ़ाये जाने की परम्परा का आरम्भ हुआ। इस विवरण से यह ज्ञात होता है कि ब्रह्मा जी को … Continue reading ‘वेदाविर्भाव और वेदाध्ययन की परम्परा पर विचार’

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)