पिछले अंक का शेष भाग…… http://www.aryamantavya.in/contribution-of-arya-samaj-in-south-india/ शैक्षिक संस्थाएँः– निजाम के राज्य में शिक्षा का अभाव था। बड़े-बड़े शहरों में भी शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी। अधिकांश जनता निरक्षर थी जिसके परिणामस्वरूप नवीन विचारों का स्पर्श तक न था। इतिहास, विज्ञान, गणित इत्यादि विषय उर्दू में पढ़ाएँ जाते थे। मातृभाषा में शिक्षा न दी जाने के कारण अनेक अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे। निजी विद्यालयों पर प्रतिबन्ध था, तथापि राष्ट्रीयता, नैतिकता, धार्मिक विचारों के लिए प्रतिबन्ध होते हुए भी १९१६ से १९३५ तक अनेक निजी संस्थाएँ शुरू की गई। जिसमें गुलबर्गा का नूतन विद्यालय, हिपरगा का राष्ट्रीय विद्यालय और हैदराबाद का केशव स्माारक आर्य विद्यालय प्रमुख हैं। इनके साथ-साथ आर्यसमाज ने भी अपने गुरुकुल तथा उपदेशक महाविद्यालयों … Continue reading दक्षिण भारत में आर्यसमाज का योगदान – डॉ. ब्रह्ममुनि→
वेद कहता है हमारे अन्दर एक दूसरे के प्रति चाहना हो। परस्पर अभिलाषा होनी चाहिए। यह जो मानसिक परिस्थित है, इसका मन में विचार होने की भूमिका बन चुकी है, मनुष्य के मन में जब द्वेष नहीं होता, सहानुभूति का भाव किसी के प्रति अनुकूलता का लक्षण है। इस भाव की अधिकता ही अपनेपन को जन्म देती है। अपनापन स्वाभाविकता को बताता है। यदि हमारे मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं है तो हम उसके कष्ट को देखकर उसे यह कष्ट क्यों मिल रहा है, इस प्रकार का दुःख उसको नहीं मिलना चाहिए इस प्रकार का विचार मन में आता है। अपनापन दूसरे के प्रति मन में निकटता का भाव उत्पन्न करता है। इस निकटता से उत्पन्न प्रसन्नता का … Continue reading स्तुता मया वरदा वेदमाता-५→
प्रश्न है–मृत्यु के बाद आत्मा दूसरा शरीर कितने दिनों के अन्दर धारण करता है? किन-किन योनियों में प्रवेश करता है? क्या मनुष्य की आत्मा पशु-पक्षियों की योनियों में जन्म लेने के बाद फिर लौट के मनुष्य योनियों में बनने का कितना समय लगता है? आत्मा माता-पिता के द्वारा गर्भधारण करने से शरीर धारण करता है यह मालूम है लेकिन आधुनिक पद्धतियों के द्वारा टेस्ट ट्यूब बेबी, सरोगसि पद्धति, गर्भधारण पद्धति, स्पर्म बैंकिंग पद्धति आदि में आत्मा उतने दिनों तक स्टोर किया जाता है क्या? यह सारा विवरण परोपकारी में बताने का कष्ट करें। – एन. रणवीर, नलगोंडा, तेलंगाना समाधान १– मृत्यु के बाद आत्मा कब शरीर धारण करता है, इसका ठीक-ठीक ज्ञान तो परमेश्वर को है। किन्तु जैसा कुछ ज्ञान … Continue reading मृत्यु के बाद आत्मा दूसरा शरीर कितने दिनों के अन्दर धारण करता है? आचार्य सोमदेव जी परोपकारिणी सभा→
महर्षि दयानन्द जी का प्रादुर्भाव विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। महर्षि का बोध पर्व उससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण घटना है। आज पूरे विश्व में मानव के अधिकारों तथा मानव की गरिमा का मीड़िया में बहुत शोर मचाया जाता है। ऋषि के प्रादुर्भाव से पूर्व मानव के अस्तित्व का धर्म व दर्शन में महत्व ही क्या था? बाइबिल की उत्पत्ति की पुस्तक में आता है कि परमात्मा ने जीव, जन्तु, पक्षी, प्राणी पहले बनाये फिर उसने कहा, ‘‘Let us make man in our image’’ अब नये बाइबिल में श द बदल गये हैं। अब हमें पढ़ने को मिलता है, ‘‘Let us make human beings in our image, in our likeness.’’ अर्थात् परमात्मा ने कहा हम ‘पुरुष को’ (अब … Continue reading विश्व को ऋषी दयानन्द की देन – प्रा राजेंद्र जिज्ञासु→
हमने इन दिनों संघ प्रमुख श्रीयुत् मोहन भागवत तथा उनके साथियों के ‘घर वापसी’ पर टी.वी. में विचार सुने। उनके संघ परिवार के विचारकों स्वयं सेवकों को भी टी.वी. पर सुना। भागवत जी ने कहा, ‘‘हिन्दू अब जागा है, हमें कोई रोक नहीं सकता। लूटा गया माल हम वापस लेंगे इत्यादि।’’ अच्छी बात है हम तो पहले से ही कहते आये हैं कि सबको अपनाना चाहिये परन्तु हमारी सुनी किसने? चलो भाई! जब जागे तभी सवेरा। हमने कई वर्ष पूर्व एक गीत में लिखा था- ‘खुले धर्म के द्वार ऋषि जब अलख जगाई’ क्या संघ परिवार यह बतायेगा कि इनकी नींद कब खुली? कैसे खुली? अथवा यह कब जागे? किसने जगाया? जिसने जगाया उसका नाम तो बताने की कृपा करो। … Continue reading जब जागे तभी सवेरा परन्तु…..:- प्रा राजेंद्र जिज्ञासु→
किसी के लेख में यह छपा बताते हैं कि महात्मा मुंशीराम जी ने रात-रात में ‘सद्धर्मप्रचारक’ उर्दू साप्ताहिक को हिन्दी में कर दिया। एक प्रबुद्ध आर्य भाई ने चलभाष पर प्रश्न किया कि ‘सद्धर्मप्रचारक’ को हिन्दी में निकालने के महात्मा जी के साहसिक क्रान्तिकारी पग पर आप प्रामाणिक तथ्यपरक प्रकाश डालें। यह प्रश्न तो उन्हीं लेखक जी से पूछा जाता तो अच्छा होता तथापि मैं किसी आर्य भाई को निराश नहीं करता। कोई चार दिन पूर्व तड़प-झड़प लिखकर भेजी तो कुछ समाधान करते हुए लिखा कि स्मृति के आधार पर बहुत कुछ लिखा है। सद्धर्मप्रचारक की अन्तिम फाईल खोज कर कोई भूल मेरे लेख में होगी तो उसे फिर सुधार कर दूँगा। अब चैन कहाँ? वह फाईल खोज निकाली। लीजिये! … Continue reading सद्धर्मप्रचारक उर्दू हिन्दी का जन्म-भ्रान्ति निवारण- राजेन्द्र जिज्ञासु→
अनित्याशुचिदुःखानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या-५ – स्वामी विष्वङ् पिछले अंक का शेष भाग….. इस सम्बन्ध में महर्षि मनु महाराज कहते हैं- सर्वेषामेव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम्। योऽर्थे शुचिर्हि स शुचिर्न मृद्वारिशुचिः शुचिः।। -मनुस्मृति ५.१०६ अर्थात् संसार में बहुत प्रकार की शुद्धियाँ हैं परन्तु उन सभी प्रकार की शुद्धियों में से धन-संम्पति की शुद्धि सबसे बड़ी शुद्धि है। जो-जो मनुष्य धन के विषय में शुद्ध हैं, वही-वही शुद्ध कहलाता है। बाकी मिट्टी से, जल से जो शुद्ध होने का दिखावा करते हैं, वह केवल दिखावा मात्र है। यथार्थता में अन्दर की पवित्रता से ही बाहर की वस्तुएँ पवित्र होती हैं, अन्यथा नहीं। यहाँ पर महर्षि मनु ने धनार्जन पर विशेष ध्यान दिया है। आजकल मनुष्य धनार्जन जिस किसी भी रीति से प्राप्त करने में जुटे … Continue reading आध्यात्मिक चिन्तन के क्षण……….- स्वामी विष्वङ्→
समय-समय पर भारतीय गौरव की चर्चा में इस देश के साहित्य की भी चर्चा होती है। अंग्रेजों ने देश को दास बनाने के लिए यहाँ के गौरव को नष्ट किया है, ऐसे समय में किसी गौरव पूर्ण बात की चर्चा अच्छी लगती है। प्रधानमन्त्री मोदी ने जापान जाकर वहाँ के प्रधानमन्त्री को गीता की पुस्तक भेंट की तो गीता पर फिर से चर्चा चलने लगी। लोगों ने गीता के महत्व को रेखांकित करने के लिए गीता को राष्ट्र ग्रन्थ घोषित करने की माँग कर दी, विदेश मन्त्री सुषमा स्वराज ने अपने कार्यक्रम में कह दिया, सरकार तो गीता को राष्ट्र ग्रन्थ मानती है, बस केवल घोषणा करनी शेष है? विदेश मन्त्री के कथन से तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के पेट में … Continue reading राष्ट्रीय पुस्तक क्या हो? डॉ धर्मवीर→
हिन्दू धर्म पर कटाक्ष करती ओर अंट शंट झूटे आरोपों से युक्त एक अम्बेडकरवादी ऐ आर बाली ने हिन्दू धर्म पर पुराणों के अलावा वेदों के सन्धर्भ से आरोप लगाया कि वेदों में पिता पुत्री ,माता पुत्र , भाई बहन आदि के बीच योन सम्बन्धो की छुट थी | वेसे आपको बता दे हम पुराणों को प्रमाण नही मानते क्यूंकि पुराण काफी बाद के है ओर उनमे सत्य इतिहास भी होना सम्भव नही लेकिन फिर भी आपके कुछ तथ्य पुराणों से जांचते है .. एक बात ओर ध्यान रखिये यदि किसी एतिहासिक घटना में कोई बुद्धि विरोध या अश्लील प्रसंग आता है तो उसका ये मतलब नही कि वो उसके धर्म का या संस्कृति का अंग है ..जेसे जापान में … Continue reading हिंदूइस्म धर्म या कलंक का प्रत्युतर→
दिल्ली से स्वामी अग्निवेश के साप्ताहिक समाचार-पत्र वैदिक सार्वदेशिक में भवानीलाल जी का एक लेख ‘आर्यसमाज में उच्चतर शोध की स्थिति सन्तोषप्रद नहीं’ शीर्षक से अंक २९ जनवरी से ४ फरवरी, पृष्ठ संख्या ०६ पर प्रकाशित हुआ है। इस लेख के शीर्षक से लेखक के पीड़ित होने का तो पता लग रहा है, परन्तु पीड़ा आर्यसमाज के शोध को लेकर है या परोपकारिणी सभा को लेकर है, क्योंकि भारतीय जी सभा के सम्मानित सदस्य और अधिकारी भी रहे हैं, इस प्रकार यह बात पाठक को पूरा लेख पढ़ने के बाद ही स्पष्ट हो पाती है। लेख में जिन-जिन शोध संस्थाओं की तथा शोध विद्वानों की चर्चा की है, उन संस्थाओं के विद्वान् दिवंगत हो चुके हैं या फिर उन संस्थाओं … Continue reading भारतीय जी की शोध व्यथा-कथा – ओममुनि वानप्रस्थी→