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सद्धर्मप्रचारक उर्दू हिन्दी का जन्म-भ्रान्ति निवारण- राजेन्द्र जिज्ञासु

किसी के लेख में यह छपा बताते हैं कि महात्मा मुंशीराम जी ने रात-रात में ‘सद्धर्मप्रचारक’ उर्दू साप्ताहिक को हिन्दी में कर दिया। एक प्रबुद्ध आर्य भाई ने चलभाष पर प्रश्न किया कि ‘सद्धर्मप्रचारक’ को हिन्दी में निकालने के महात्मा जी के साहसिक क्रान्तिकारी पग पर आप प्रामाणिक तथ्यपरक प्रकाश डालें। यह प्रश्न तो उन्हीं लेखक जी से पूछा जाता तो अच्छा होता तथापि मैं किसी आर्य भाई को निराश नहीं करता। कोई चार दिन पूर्व तड़प-झड़प लिखकर भेजी तो कुछ समाधान करते हुए लिखा कि स्मृति के आधार पर बहुत कुछ लिखा है। सद्धर्मप्रचारक की अन्तिम फाईल खोज कर कोई भूल मेरे लेख में होगी तो उसे फिर सुधार कर दूँगा।

अब चैन कहाँ? वह फाईल खोज निकाली। लीजिये! ‘सद्धर्मप्रचारक’ के जन्म-पुनर्जन्म का प्रामाणिक इतिहास। सुन-सुनाकर और कुछ कहानी को चटपटा बनाने वाले इतिहास को प्रदूषित करने का अवसर हाथ से जाने नहीं देते। अनजाने में भी इस पत्रिका के बारे में कई एक ने कई भ्रान्तियाँ फैला रखी हैं। आज यथासम्भव सब भ्रामक लेखों का निराकरण हो जायेगा।

महात्मा मुंशीराम जी ने रात-रात में अथवा एकदम ‘सद्धर्मप्रचारक’ उर्दू को हिन्दी में नहीं निकाला था। हाँ! जब निश्चय कर लिया तो फिर टले नहीं। घाटा, हानि का भय दिखाया गया परन्तु उन्होंने हानि लाभ की चिन्ता नहीं की, पग दृढ़ता से आगे धरते गये। ‘प्रचारक की काया पलट का दृढ़ निश्चय’ एक लम्बा लेख पाँच अक्टूबर सन् १९०६ के अंक में दिया था। यह मेरे सामने है। इसके बाद निरन्तर पाँच मास तक प्रायः प्रत्येक अंक में प्रचारक के हिन्दी संस्करण के बारे में विज्ञापन तथा लेख छपते रहे जो सब मेरे पास हैं। सद्धर्मप्रचारक के सम्पादकीय लेख एक ग्रन्थ के रूप में भी बाद में छपे थे जो इतिहास की धरोहर है और बहुत से तथ्यों पर जिससे प्रकाश पड़ता है। वह ग्रन्थ मेरे पास भी है और बन्धुवर सत्येन्द्रसिंह आर्य के पास भी है। विस्तारपूर्वक एतद्विषयक जानकारी इतिहास प्रेमी चाहेंगे तो फिर कभी यह सेवा भी की जा सकती है।

. डॉ. जे. जार्डन्स जी ने लिखा है कि उर्दू सद्धर्म-प्रचारक सन् १८८८-१९०७ तक निकलता रहा। यह सत्य नहीं है। लेखक से भूल हुई है। किसी ने कभी इस चूक पर दो शब्द  नहीं लिखे।

. स्वामी श्रद्धानन्द जी पर हिण्डौन से छपे ग्रन्थ में लिखा है कि उर्दू सद्धर्मप्रचारक का जन्म १९ फरवरी १८८९ में हुआ, यह भी सत्य नहीं। भ्रामक कथन है।

प्रबुद्ध पाठक नोट करें कि इस समय मेरे सामने सद्धर्म-प्रचारक का प्रथम अंक है। यह १३ अप्रैल सन् १८८९ को निकला था। तब इसके आठ ही पृष्ठ होते थे। एक ही वर्ष में पृष्ठ संख्या १६ और सन् १९०७ में १८ और कभी-कभी २२ पृष्ठ भी होते थे। मैंने सब अंक देखे हैं। स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी ने भी सद्धर्मप्रचारक का जन्म वैशाखी (१३ अप्रैल) लिखा है।

. हिण्डौन वाले ग्रन्थ में इसके जन्म की एक और स्थान पर भी जन्म तिथि १९ फरवरी १८८९ छपी है जो ठीक नहीं है।

सेवा का एक अवसर मिला। भ्रम भञ्जन कर दिया। पूरी खोज करने में लगा तो पता चला कि अपने समय के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् और पं. बाल शास्त्री काशी के शिष्य गोस्वामी घनश्याम मुलतान निवासी सद्धर्मप्रचारक उर्दू के नियमित लेखक थे। उनके कई लेख मिले हैं। इनको हिन्दी में अनूदित करके ‘परोपकारी’ में प्रकाशित करवा दिया जायेगा। वे ‘परोपकारी’ के भी तो लेखक रहे।